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________________ करतां, समकि पडिक्कमणुं कि ॥ फोगट कि ( १७५ ) नी साख ॥ विधियें जिनदरसण त थाये राख रे ॥ प्राणी० ॥ ए ॥ रिया करे बेठा, मुख उघाडे बोले रिया तेहनी कहियें, बृहदावश्यक बोले रे ॥ प्रा ० ॥ १० ॥ साहमीवत्सल नाम करीने. घर घ र मागे नाएं ॥ दाननो संग्रह जिनवरें जाख्यो, ठाणंग दशभुं ठाणं रे ॥ प्राणी० ॥ ११ ॥ ज्ञाति जमण जेम नेला होये, सहामीवत्सलमांय ॥ ए तुं नाखे संयति पोखे, वत्सल धामी कहियें रें ॥ प्राणी० ॥ १२ ॥ बयें चूक्यो बारे मूल्यो, पं चनुं नाम न जाणे ॥ मांहो मांहे विरोध ते रा खे, नहिं श्रावक हिना रे ॥ प्राणी० ॥१३॥ कुगुरु वे दरख पावे, देपालाना साथी ॥ जे म जेम नाच नचावे कुगुरु, तिम तिम उनसे बाती रे ॥ प्राणी० ॥ १४ ॥ समुगुरु देखीने बु पी जावे, अथवा मांगें द्वेष ॥ अल्प श्रजखं बां धे ते मूरख, पंचम अंगें देख रे || प्राणी० ॥ १५ ॥ श्रावकनी ए सरधा देखी, श्राविका ते पण चूकी ॥ देवी देव मनावण चाली, पुत्रतणी थइ मूखी रे ॥ प्रा० ॥ १६ ॥ पडिक्कमणुं करवाने यावे, वा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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