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आगम विधि वाद ॥ मु० ॥ ई० ॥ २ ॥ ज्ञान ध्या न सद्यायमें जी, स्थिर बेठा मुनिराज ॥ शाने चपलपणुं करे जी, अनुभव रस सुखराज ॥ मु० ॥ ई० ॥ ३ ॥ मुनि उठे वसहीथकी जी, पामी कारण चार | जिनवंदन ग्रामांतरे जी, के आहार निहार ॥ मु० ॥ ई० ॥ परम चरण संवर धरु जी, सर्व जाण जिन दिह ॥ शुचिसमता रुचि उपजे जी, तेणें मुनिने ए इ ॥ मु० ॥ ई० ॥ ५ ॥ राग वधे स्थिरजावथी जी, ज्ञान विना परमाद ॥ वीतरागता ईहता जी, विचरे मुनि साल्हाद ॥ मु० ॥ ई० ॥ ॥ ६ ॥ ए शरीर जवमूल बे जी, तसु पोषक आहार ॥ जाव योगी नवि दुवे जी, तां अनादि याचार ॥ मु० ॥ ई०||७|| कवलादा रें निहार बे जी, एह अंग व्यवहार ॥ धन्य यतनुं परमातमा जी, जिहां निश्चलता सार ॥ मु० ॥ ई० ॥ ८ ॥ परपरिणति कृत चपलता जी, केम मूकशे एह ॥ एम विचारी कारणें जी, करे गोचरी तेह || मु० ॥ ई० || || मावंत दयालुआ जी, निःस्पृह तनु नीराग ॥ नीरविषे गजगति परें जी, विचरें मुनि महानाग ॥ मु० ॥ ई० ॥ १० ॥ परमानंदर स अनुजव्या जी, निजगुणरमता धीर ॥ देवचंद्र
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