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________________ (१७७) जी बप्पन्न कुमारी देवी के, जिनजीने दू लख्या रे लोल ॥३॥ प्रजुजी अर्धरयणी मजार के, चो शह सुरपति रे लोल ॥ प्रजुजी नवराव्या जिनरा ज के, सहु मली नरपति रे लोल ॥४॥ प्रजुजी श्रवतस्या पोसह मास के, दशमी दिन वली रे लोल ॥ प्रजुजी सेवा करे दिन रात के, सहु नर सली ललीरे लोल ॥५॥ प्रजुजी गुलाल विजयनो शि ष्य के, कर जोडी कहे रे लोल ॥प्रनुजी अविच ल देजो राज के, गौतम सुख लहरेलोल ॥६॥ ॥ श्रथ कुंथुजिनस्तवनं ॥ ॥ मुखने मरकडले ॥ ए देशी ॥ __कुंथुनाथतणी बलिहारी जी ॥ जाउ जिन ना मणे ॥ एम बोले अमरनी नारी जी ॥ जा ॥ जि न पूजवा चालो जय जी ॥ जाण ॥ जेम थापणे पावन थश्ये जी ॥ जा० ॥१॥प्रमूर्ति मोहन गारी जी॥ जा ॥ नवियणने बहु हितकारी जी ॥ जाण ॥ रूपें मोह्या सुर नर नूप जी ॥ जाण ॥ प्रजुनी ज्योति अनूप जी ॥ जाण ॥५॥प्रनु सम वसरण मन मोहे ॥जी॥ जा ॥ बार गुणो श्र शोक वृक्ष सोहे जी ॥ जाण ॥ फुलवृष्टि ढीचण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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