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________________ (ए) तो नवकारसी प्रमुखनु पच्चरकाण मनने जावें धारे, तेथी तपाचार निर्मल थाय ॥ इति ॥ ॥पड़ी एक जण उन्नो थश्ने श्वामि खमासमण पूर्वक श्छाकारेण संदिसह नगवन् ! चोथा श्राव श्यक जणी लघु अतिचार आलोखं जी. ॥अथ लघु अतिचार ॥ ॥प्रथम नवकार कहीने, श्वं अरिहंतदेव, सु साधु गुरु, जिनप्रणीतधर्म, जावतो समकित प्रतिपा बुं; अव्यतो लौकिक लोकोत्तर देवगत, गुरुगत, पर्व गत मिथ्यात्व विषे जयणा करूं. ए श्रीसमकित तणा पांच अतिचार शोधुं. शंका, कंखा, वितिगिछा, पर पासंमीपरसंसा, परपासंगी संथुर्ज. ए पांच अतिचार मांहेजिको कोश् अतिचार हु होय, ते सवि हुँ, मने, वचनें, कायायें करी मिला मि फुक्कडं. १ ए बार व्रतमांहे पहेबुं प्राणातिपातविरमण व्रत. स्थूल बेंजियादिक त्रस जीव निरपराध उपेतकरण संकल्पी करी हणवा नियम, आरंने जयणा, ए प हेला प्राणातिपातविरमणव्रत तणा पांच अतिचार शोधुं, बंधे, वहे, विछेए, अश्नारे, जत्तपाणबुड़े ए ॥ ए पांच अतिचारमाहे जिको को अति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003854
Book TitleVidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1895
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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