Book Title: Rushimandal Vrutti Purvarddha
Author(s): Shubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
Publisher: Jain Vidyashala Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HI RISAACCUSA AMRALA Mastepos SAYA CQQQQQQQQQQQQQQQQQQQQQQQQ:QQQQQQQQQQQQQQQQQQQQQQ8 पंडित श्री शुभवर्द्धनसुरिविरचित RGIC bR८ ऋषिमंडल वृत्ति (नाषांतर) VASS 900000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000) arees आ ग्रंथ चतुर्विध संघने वांचवा योग्य जाणी तेनुं शास्त्री हरिशंकर कालीदास पासे गुजराती लाषामां नाषांतर करावी तेने यथामति शुद्ध करी. उपावी प्रसिह करनार, शा. रवचंद जयचंदे स्थापन करेली, श्री जैन विद्याशाला. डोशीवाडानी पोल-अमदावाद. &00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 DARSHAN अमदावाद आ ग्रंथ निर्मल मिन्टिंग प्रेसमां लल्लुभाइ ईश्वरदासे छाप्यो. सवत १९५८. सम १९०२. प्रसिसकाए आ पंथने फरी छापवा छपाचवा संबंधी सर्व हक पोताने स्वाधीन राख्या छे. AAAAAA किंमत 3-5-0. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ यामां कशव वैद्यनुं नाम प्राप्युं छे. वे त्रण प्रतोमां तपास करतां तेनुं तेज नाम निकलवाथी अमे आ पुस्तकमां केशव वैद्य नाम श्राप्यं बे. परंतु तत्त्वकेवली गम्य a. श्री पुस्तक बहु रसीक होवाथी प्रमारा श्रावक बंधुनए तेनुं गुजराती नाषांतर करी बपाववानी थमने भलामण करवायी श्रमे तेनुं श्रमारी विद्याशालाना शास्त्री हरिशंकर कालीदास पासे सरल गुजराती भाषामां भाषांतर करावी उपायुं बे, तेथी श्रमो जैनबंधुनने विनंती करीए बीये के, प्रापएने उत्तम धर्ममार्ग देखामवारूप आपला उपर उपकार करनारा पूर्वाचार्योए बहु प्रयासथी रचेलां संस्कृत पुस्तकोनां सरल गुजराती भाषांतरने वांचवानो लान लइ ते महात्माए करेला नपकारने जुली जवुं नही. 10 या पुस्तक उपाती वखते बहु कालजी राखवामां आवी बे तो पण हष्टिदोषी अथवा कानो, मात्रा, मीरुं नमी जवाथी थयेली मूल्योनुं शुद्धिपत्र पावल दाखल करयुं ने बतां जो कोइ बीजी भूल रही गइ होय तो तेने वांचनारा लऊन पुरुषोए कृपा करी सुधारी लेवुं. एज. ल. विद्याशाला. 1 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. श्रा चालता समयमां श्री तीर्थंकर, केवली अथवा तो तेवा ज्ञानी पुरुषोनो विरह होवाने लीधे तेमज अवसर्पिणी कालना महात्म्यने लीधे दिवसे दिवसे वृक्षवस्था पामता एवा धर्मने आधाररूप पूर्वनां आचार्योए बनावेला पुस्तको अने सुसाधुन ले. तेमां सुसाधुनने पण पुस्तकोनो मुख्य आधार होवाश्री महात्मानए रचेलां पुस्तकोज खरी रीते धर्मना आधाररूप ने. पु. स्तकोमां पण विधिवादानुयोग, कथानुयोग विगेरे बहु नेदो बे.तेमां विधिवादानुयोग विगेरे साधु श्रावकादिकनी दिवस क्रियाविधि विगेरे सूचवे ने, परंतु कानुयोग तो महात्माननां तेवां तेवां नत्तम आचरणादिकने कहेवाना मीषथी संसारमां लीपा रहेला मनने संसारथी नग करावे , एटलुंज नहि पण क्यारेक तो मनने एवं वैराग्यवासीत करी प्रापे ले के, पनी तेने को व. खत संसार नपर प्रीति नत्पन्न प्रती नश्री. जैनधर्ममां कथानुयोगनां बहु पुस्तको ठे, तो पण श्री विजयगणीना शिष्य शुनवाईनगणीये रचेलां कथानुयोगनां बहु पुस्तको उ रसथी नरपुर होवाश्री चित्तने बहु चमत्कार उपजावे . तेमां पण ते मुनीश्वरे रचेलुं आ श्री ऋषिममंल तो अनहद आनंद आपेले. कारण के, तेमां तीर्थंकरोनां, चक्रवर्तीयोनां, वासुदेवनां बलदेवनां, अने महा मुनियोनां विचित्र चरित्रो आवेलां.महा मुनिये आ पुस्तकना बेनाग पामया 'के.तेमां पहेलो नाग दमदंत महा मुनिनी कथा सुधी , अने पांमव चरित्र श्री आरंनी वीजो नाग कस्यो . पहेलो नाग टुंको अने बीजो नाग बहु. म्होटो होवाथी तेमज पांमवानां अनुत चरित्रने वांचवानी होसीला : बंधुनने बहु नत्कंग होवाथी पांमवोनुं चरित्र पण अमे आ पहेला नागमा ज दाखल करयुंठे के, जेथी पूर्वाई अने नतराई ए बन्ने पुस्तको सरखा कदना , गाय. श्रा पुस्तव नी अंदर सघलां नविनज चरित्रो आवेलां , परंतु आदिना गर्नु चरित्र जेम वीजा केटलांक पुस्तकोनी अंदर आरंन्ने आवी गयेवं ने तेम आ स्तिकनी यात्रा की --- " अ त चरित्र) - तेम ते. जीवानंद वै . Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रारभ्यते न खलु विघ्ननयेन निचैः प्रारम्य विघ्नविहता विरमंति मध्याः ॥ विनैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजंति ॥ १ ॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ ग्रंथमां आवेलां चरित्र तथा कथाननी अनुक्रमणिका. बर. चरित्र तथा कथापार्नु. नंवर. चरित्र तथा कथा. पार्नु. मंगलाचरण.................? १ए नंदन बलदेव चरित्र......१५२ आदिनाथ चरित्र............३ २० पद्म बलदेव चरित्र.......१५२ ३ महावीरस्वामी चरित्र. ...श्ए १ बलन्नइ बलदेव चरित्र... ६ - सगरचक्रवर्ती चरित्र. ...पए २२ मल्लिनाथ चरित्र. ......श्एए ५ मघवान् चक्रवर्ती चरित्र...६७ । २३ स्कंदक सूरिनो कथा.....३२० । ६ सनत्कुमार चक्रवर्ती चरित्र.६७ श्व कार्तिक शेठनी कथा.....३३५ ७ शांतिनाथ चरित्र. ... ...७७ २५ कीर्तिधर तथा सुकोशल मु. G कुंघुनाथ चरित्र..........१२६ निनी कथा............३३७ ए अरनाथ चरित्र..........१२ए २६ अंधकवृष्णि राजाना आठ १० महापद्म चक्रवर्ती चरित्र. १३१ पुत्रोनी कथा............३४५ ११ हरिषेण चक्रवर्ती चरित्र. १४० रथनेमिनी कथा..........३४६ -१२ जय चक्रवर्ती चरित्र. ...१४१ शक जालि विगेरे कुमारोनी कथा३६० १३ महावल चरित्र..........१५३ शए देवकीना उ पुत्रोनी कथा. ३६१ १४ विजय वलदेव चरित्र. ...१४ ३० ढंढरा मुनिनी कथा......३७३ १५ नवलदेव चरित्र.......१४ ३१ थावञ्चा पुत्रनी कथा......३७६ १६ सुप्रन्न वलदेव चरित्र ..." ३२ नारद ऋषिनी कथा.......३गए करमदीन बलदेव चरित्र.: ३३ दमदंत महामुनिनी कथा.३३ श्रा पुसनंद बलदेव चरित्र नविन ३५ पांव चरित्र............३ए _ चरित्र जेम वाजा केट.. रस्तको. Page #6 --------------------------------------------------------------------------  Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किंमतं. 3-0-0 ?-9-0 ?-0-0 श्री. अमदावाद जैन विद्याशालामा वेचातां पुस्तकानु सूचिपत्र. 2-00-0 01510 019-0 १-४-० 3-0-0 ?-0-0 ० - ६-० 0-R-0 श्राद्धविधि ( श्रावकनी सामाचारी) सुलसाचरित्र ( वांधेली चोपमी) २--0 सुलसा चरित्र ( बुटापाना) भरतेश्वरवृत्ति समकित कौमुदी संबोध सत्तरी पर्यूषण महात्म्य वालावबोध सजाय माला शास्त्री $3 55 गुजराती ラウ प्रकरणमाला सिंडुरप्रकर देवसी राइप्रतिक्रमण ऋषिमंगलवृत्ति 95 या नीचेना पुस्तकोनी किंमत मूल कीमंत करतां घटामेली बे, तेषी ते वे पटी घटामेली कींमत प्रमाणे वेचाय बे. मूल किंमत घटाडेली किंमत. १-०-० १-०-० देवसी राइप्रतिक्रमण १-८-०१-४-० पंमित वीरविजयजीकृत पूजासंग्रह १-४-० १-०-० जयानंद केवलीनो रास गुजराती १-८-०१-४-० पूजासंग्रह पद्मविजयजीकृत तथा रूपविजयजीकृत शास्त्री *५५० -१२- ० स्नात्र पंचाशिका व१६ सुमन चावंदनमाला करच सुदर्शन बलदेव चरिज्यतीर्थ महात्म्य सार "" शास्त्री 25 93 99 13 गुजराती शास्त्री गुजराती शास्त्री गुजराती या पुस्तनंद वलदेव चरित्र तिक्रमण तथा नवस्मरण अर्थ संहित चरित्र जेम वाजा केला4 नईवाला जीससी माराके उपावेलां सर्वे पुस्तको शास्त्री तकनी म बातां मले, Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाभी फटारसनागर सरि शाम मदिर भी बधाबीर जैन आराधना इन्द, कोपा श्री युगादिदेवाय नमः श्री ऋषिमंडलवृत्ति लाषांतरसहित ___ (पूर्वार्द्ध) प्रथम टीका करनार श्री शुन्नवईनगणी व श्लोकवमें मंगलाचरण करे . ( आख्यानकी वृत्तम्.) योऽजयगादौ शिवशुधमार्गप्रकाशकत्वाइविरेव साक्षात् ॥ गोनिः स्वकीयैः प्रहरंस्तमांसि, स नाजिनूरिविनूतये वः ॥१॥ शब्दार्थ-युगादिकने विषे जे पोतानी वाणीवमे अज्ञानरूप अंधकारनो नाश करता उतां कल्याणकारी शुभ मार्गने प्रकाश करवायी साक्षात् सूर्यरूपज श्रयेला बे, ते श्री नान्निराजाना पुत्र (ऋषनदेव प्रस्तु) तमारी म्होटी संपत्तिने अर्थे थान ॥१॥ चित्रं प्रदत्ते विजयांगजोऽपि, प्रणेमुषां यो विजयाभूतानाम् ॥ जिनो वितीयोऽपि जनेऽक्तिीयः, श्रिये स नूयाद जितप्रभुर्वः॥॥ शब्दार्थ-विजयारामीना पुत्र एवाय पण जे अन्नु, विजयने विषे अनुत एवा नमन करनारा जनोने आश्चर्य करे . वली बीजा जिनेश्वर प्रन्नु उतां पण । मनुष्यने विषे अश्तिीय (एकज); एवा ते श्री अजितनाथ प्रन्नु तमारी संपत्तिने अर्थे धान ॥२॥ निजावतारेऽपि जगऊनानां, कृता प्रशांतिर्विकृतामयानां ॥ येनार्थिसार्थेष्टसुरज्मालः, स शांतिदेवस्तनुतां हितानि ॥३॥ शब्दार्थ-जेमणे पोताना अवतारने विषे पण महा नयंकर एवा रोगवा-दाला जगत्ना मनुष्योने शांति करी. वली याचकोना समूहने इचित वस्तु आप- IT वामां कल्पवृक्ष समान कांतिवाला ते शांतिनाथ ग. . 2 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) झषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. कुर्वत्यनिष्टं कमठासुरे श्री नागाधिपे चामितन्नक्तिपूजां ॥ योः समादृष्टिरद्यदीया, पार्श्वप्रनुर्विघ्ननिदे स वोऽस्तु ॥४॥ शब्दार्थ-कमगसुरे अनिष्ट करे इते अने नागाधिपे (धरणे३) अत्यंत नक्ति पूजा करे उते पण जेमनी दृष्टि ते बन्ने (कमठ तथा धरणेंइ) नपर समान हती एवा ते श्री पार्श्वनाथ प्रत्नु तमारा विघ्नोनो नाश करवाने अर्थे थान ॥४॥ येनाहती ज्ञातकुलं प्रवृद्धि, नीतं नितातं निजकावतारात् ॥ स विश्वविश्वार्चितपादपद्मः, पायादपायात्मनुवईमानः॥५॥ शब्दार्थ-जे अरिहंत प्रनुए पोताना अवतारथी ज्ञातकुलने अत्यंत वृद्धि पमामयुं बे, विश्वे पूज्यु ले चरण कमल जेमनुएवा ते श्री वईमान प्रन्नु तमा नाश (मृत्यु) की रक्षण करो ॥५॥ दृषत्समानोऽपि हि यत्प्रसादमाप्याति मूढः पुरुषोऽतिददः ।। आदेयवाग् स्याङगतीजनेषु, वयं स्तुमस्तान सुगुरून् सुरखून ॥६॥ शब्दार्थ-जेमना प्रसादथी पथ्यर समान मूढ पुरुष पण जगतना मनु. ष्योने विषे अत्यंत विज्ञान अने ग्रहण करवा योग्य वाणीवालो थाय ने एवा ते सुगुरु रूप कल्पवृदने अमे स्तवीए गए ॥६॥ आ प्रमाणे उ काव्यथी मंगलाचरण करीने पी श्री शुभवईनगणी 'मूल ग्रंथनी टीकानो आरंन करे .. आ संसारने विषे नाना प्रकारना नवमां नपार्जन करेला असंख्य पा१ पापना तापनो नाश करवाने चं समान, नविक जनना समूहने अत्यंत मंगवर लकारी अने सर्व सिहांतोना समुश्रूप श्री धर्मघोष स्टूरिए रचेला सर्वागमोक्त करआ महर्षिमंझलना स्तोत्रनु कांक व्याख्यान अल्पबुध्विालो हुँ पोताना अने था परना अनुग्रहने माटे लवु ई. ( आर्यावृत्तम.) ' नतिजरन मिसुरवर-तिरीममणिपंतिकं तिकयसोहे ॥ पायपंकेरुहे न मिमो ॥१॥ चरि Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथचरित्र. (३) शब्दार्थ-नक्तिना नारथी नम्र श्रयेला इंज्ञदिक देवतानना मुकुटना मगिननी पंक्तिनी कांतिये करीने सुशोजित बनेला श्री ऋषभादिक जिनवरोना चरण कमलने अमे नमस्कार करीए गए. ॥१॥ तेमां प्रथम मंगलने माटे लेशमात्र श्री युगादिदेवर्नु (श्री ऋषन्नप्रन्नु मुं) चरित्र कहेवाय ने. ॥श्री आदिनाथचरित्रम् ॥ देवतानने दर्ष पमामनार अने सर्व प्रकारला धर्म कर्मना मार्गने प्रगट करनार श्री षन्नप्रन्नुने तेमना चरित्रना बंधथी हुं कांइक वर्णन करीश. पूर्वे महाविदेह क्षेत्रने विषे कितिप्रतिष्टित नामना नगरमां कुबेरना समान धनवंत धन नामनो सार्थपति रहेतो हतो. एकदिवस कार्यने विषे निपुण एवो ते पोताना नगरथी चार प्रकारना करीआए लश्श्री वसंतपुर प्रत्ये वेपार करवा माटे जवानी तैयारी करवा लाग्यो. तेनी साथे पोताना शिष्यवर्ग सहित श्रीधर्मघोष आचार्य पण ते नगर जेवा तैयार थया.अनुक्रमे प्रयाण करता तेमने मार्गने विषे वर्षाकाल प्राप्त थवाश्री ते सार्थपतिए एक म्होटा अरगनीमध्ये पमाव करयो. त्यां काल विलंब अवाधीनाथु थै रहेवाने लीधे सौ माणसो कंद मूलनुं नकण करवा लाग्या. ते जोश्ने धन सार्थपति पोताना मनमां विचार करवा लाग्यो के, “अहो ! नाथा रहित ए मुनिन शुं करता रहेता हो? अने तेन शुं निदा लावीने नोजन करता हशे!" आम विचार करीने ते तेमनी पाले गयो अने हर्षश्री मुनिनने कदेवा लाग्यो के “हे नगवंतो ॥ पूज्य एवा तमे म्हारा सार्थने विषे आव्या गे, बता में पापीये आपनी जरा पण चिंता करी नथी, तेथी तमे नक्त पान विना दुःखी अता हशो; माटे म्हारा नपर कृपा करीने म्हारा स्थानकने विषे पधारो अने तमारे योग्य एवं जे वक्त पान होय ते ग्रहण करीने मने निस्तारो.पती तेनो अतिशुनाव जाणीवे आ- ' चरण अने अनाचरण जाणवामां कुशल एवा धर्मघोष सूरि तेना आश्नमे (तंबुप्रत्ये) आव्या. त्यां जेने सर्व शरीरे रोमांच थयो ले एवा ते सार्थपतिए सर्व प्रकारना उषया रहित तेमने बहु घी वहोराव्यु. आवा शुक्ष्नावश्री आपेला दानना प्रनावे करीने तेज जवने विषे प्राप्त अयुं बोधीबीज जेने एंवो ते सा Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूवो. पति मृत्यु पामीने उत्तर कुरु देशने विषे त्रण पल्योपमनी प्रायुष्यवालो युगलीयापणे नत्तपन्न थयो. त्यांथी मृत्यु पामीने पहेला देवलोकने विषे त्रण पल्योपमनी आयुष्यवालो देवता थयो ने त्यांथी चवीने ज्यां पश्चिम महावि saat विषे वैताढ्य पर्वत पर आवेली गंधिलावती नामे विजयमां रडेला गंधार देशमां गंधसमृद्धि नगरने विषे महा बलवंत एवो प्रतिबल नामनो राजा राज्य करतो हतो; त्यां ने घनसार्थपतिनो जीव इंड समान कांतिवाला तेना महावल नामना पुत्रपणे नृत्पन्न ययो. पिता मृत्यु पाम्या पढी राज्यासन नपर बेठेलो महाबल राजा ईश्नी पेठे साम्राज्य पद जोगववा लाग्यो. तेने विनयादि सर्व गुणवाली श्रेष्ट विनयवती नामे स्त्री इती. साधुननो उपासक स्वयंबदनामे मंत्री हतो ने संन्निश्रोत नामे ष्ट बुद्धिवालो बीजो प मंत्री दतो. एक दिवस राज्य सभामां नाट्य चालतुं हतुं ते वखते तेमां श्रासक्त बनेला महाबल राजाने स्वयंबुद्ध मंत्रीए तत्वना जाणपणाथी विनंती करी के, " हे महाराज ! या सर्व गीत विलाप समान अने नाट्य विगेरे सर्व विटंबना समान वे. सुवर्णादिना श्राभरणो जाररूप वे अने सर्वे कामो पण दुःखदायी d. एम मानीने जिनेश्वर प्रमुए कहेला धर्मने जावथी आदरो. कारण के, जेनाथ तमने परलोकने विषे पण घणुं सुख प्राप्त थाय. वली हे राजन् ! हवणां आपना घरने विषे देवता समान जे संपत्ति बे, ते पण निश्चय पूर्व जन्ममां करेला पुण्यनुं फलज बे. " आवां स्वयंबुध मंत्रीनां वचन सांगली दुष्टबुद्धिवालो वीजा संन्निश्रोत मंत्री बोल्यो. “दे प्रनो ! या स्वयंबुद्ध मंत्री जे कहे ते सर्व मिथ्या जालो. स्वामिन्! आप हृदयमां जरा विचार तो करो के, प्राप्त श्रयेला लाजने त्यजी दइने अप्राप्य एवा लानने माटे कयो पुरुष म्होटो प्रयत्न करे ? या राज्यादिक मनोरथो हाथमां प्राप्त भयेला बे, तो पनी थइ गयेलावा हवे पी यवाना स्वप्न समान सुख क्या ! अने वली परजव पण को दी ! माटे हे महाराज ! आ प्राप्त थयेला जोगोने दीर्घ काल सुधी नोवो ने जो आप धर्मना अर्थी हो तो अंत अवस्थाने विषे स्वयं बुधना कदेवा प्रमाण ते जैनधर्मने नज्वल करजो.” संनिन्नश्रोत मंत्रीनां वचन सांजली स्वयंध कहेवा लाग्यो. “ अरे ! रणमां घायल यया पठी अश्वादिनं दम Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथचरित्र. (५) न कोण करे ? शत्रुए घेरी लीधेला नगरने विषे धनधान्यादिनो संग्रह शी रीते थाय ? अने घर बलवा लाग्या पठी कूवो केम खोदाय ? माटे प्रथमथी करीराखेला अश्व दमनादि श्रेष्ट ने.कारण जो एप्रकारे प्रयमयी जे धर्म करी राखेलो होय तो ते सुख आपनारो श्राय . हे नूपति ! ए नपर हाथीनुं दृष्टांत आपुं ते सांनलो. को एक सुका गयेती नदीने विषे कादवमां म्होटो गजराज खुची गयो. तेणे नीकलवाने माटे घणीए महेनत करी पण सर्व फोगट गइ. पठी तरसग्री पीमा पामेलो ते केटलेक काले नूख तरसनी वेदनाथी काल धर्म पाम्यो एटले शीयाल विगेरे पशुनए तेनुं कलेवर गुदाहारथीनदण करवा मांमयु. मांसने विषे लुब्ध श्रयेला केटलाक कागमान ते चारथी प्रवेश करीने अंदरनुं मांस पण लक्षण करता.एवामां ननालानी ऋतु आववाथी हाथीनुं गुदा हार संकोचाइ जवाने लीधे केटलाक कागमान अंदर रही गया. पगरी वर्षा ऋतुमां जलना प्रवाहथी ते हाथीन कलेवर समुश्मध्ये गयुं. त्यां मत्स्य विगेरे जलचर जीवोए तेने चीरी नांख्यु एटले तेमांथी कागमान नीकल्या. पीते कागमान आम तेम घगुंए नम्या, पण कांगे प्राप्त न थवाथी जलने विषेज मृत्यु पाम्या. परंतु जो ते कागमान प्रथमधीज नीकली गया होत तो सुखी थात. आ इष्टांतनो सार एवो के, कागमा समान नव्य प्राणीन, हाथीना अंगसमान मनुष्यन्नव, मांसना नदण रूप नोग, गुदाधारसंकोचा जवु ए नवना प्रतिबंध अने तेमांथी नीकली जq ए मृत्यु . माटे राजन् ! तमे प्राणीनना नत्तम नोगोने पण तुब जाणो. कारण के, जे पुरुष तेवा लोगोने नावथी त्याग करे ले ते तत्त्वनो जाण कहेवाय . वली हे राजन् ! तमे शीयालनी पेठे तुब एवी नोगस्मृधिमां न बंधान अने दीर्घकाल सुधीना पुष्कल सुखने म हारी जान." संनिनश्रोत मंत्रीए कद्यु. “हे स्वयंबु मंत्री! तमे ए शीयालनी वात शी कही ?” स्वयंबुझे कहूं. सांजलो तेनुं इष्टांत. को एक अरण्यने विषे नमता एवा बलवंत (निल्ले) म्होटा हाथीने जोइने तेने बलथी बाण मारयु. बागथी विधायेलो तेहाथी पासेयी जता एवा ए. क सर्प नपर पम्यो. पठी धनुष बाणने नीचे मूकी दश्ने पेलो वनेचर हाथीना दांतने ग्रहण करवा नत्साहवंत अश् जेटलामा हर्षथी हानीनी पासे आवेने ते. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) झषिमंमलत्ति-पूर्वार्ध. टलामां हाथीना कलेवरथी दबाइ रहेला पेला सर्प तेने मंश दीधो, आ प्रमाणे . तेन त्रणे मृत्यु पाम्या. पठी कोइ एक शीयाल ते त्रणेने पमेला जोश हर्षथी विचार करवा लाग्यो के, “अहो! आ हाथीतो म्हारे जीवित पर्यंतनीआजीविका थ. वली आ मनुष्य अने सर्प पण म्हारे केटलोक काल चालशे; माटे तेननु रक्षण करीने हवणा आ धनुष्यना बंधनने लक्षण करूं.” आवो विचार करीने ते शीयाल जेटलामां धनुष्यनी दोरीनुं नक्षण करवा लाग्यो तेटलामां बूटी गयेला अर्थात् पहोला अश् गयेला कामगना बेमावमे करीने गलाने विषे विधायेलो ते शीयाल तत्काल मृत्यु पाम्यो. (स्वयंबुः मंत्री कहे के,) ए प्रमाणे जे पुरुष मनुप्यसुखमां आसक्त थ परलोकने विषे अवलामुखवालो थाय नेते आशीयालनी पेठे अन्यजन्मने विषे अत्यंत दु:खी थाय .हे राजन् ! वली सांजलो. आपणे ज्यारे नंदनवनने विषे गया हता त्यारे देवतानने दीग हता. ते वखते तेन्मांधी एक देवताए आपने कह्यु के, “हे नूपति ! हुँअतिबल नामनो त्हारो पितामह (दादो) चारित्रने पालीने बीजा देवलोकमां देवता पणे नत्पन्न अयोबु; माटे हे वत्स ! निरंतर जिनधर्मने विषे म्होटो नद्यम कर. (स्वयंबु कहे के,) हे नृपेंद! जो आ म्हारं वचन आपने स्मरणमां आवतुं होय तो निःशंसय परलोक , एम जाणो.” पठी “हे मंत्री! ते ९ जाणुं." एम महाबल राजाए कडं एटले स्वंबु मंत्रीए नूपतिने जैनधर्ममां स्थिर करवाने माटे फरीश्री कह्यु के, “हे नूप! पूर्वे आपना वंशने विष कुरुचं नामे राजा भयो हतो. तेने कुरुमती नामनी स्त्रीयकी नत्पन्न श्रयेलो हरिचंड नामे पुत्र हतो. ए कुरुचं राजा इष्ट होवाथी नाना प्रकारना घोर पापकर्म आचरतो; तेथी तेने मृत्युकाल प्राप्त भयो एटले पापना नदयथी गायन गालो समान लाग्यु; सुरूप कुरूप समान जणायु; मधुर आहार कमवा सरखो लाग्यो;गो. शीर्षनो लेप ऽगंधरूप थयो अने कोमल एवीय पण शय्या गेलाना अग्नि समान जणा. वली तेने कोमल स्पर्शवाली अन्य वस्तुन पण अत्यंत कांटारुप यश पमी. या प्रमाणे महा दुःखी श्रयेलो ते राजा कालधर्मने पाम्यो. पगी तेनो पुत्र हरिचंड राज्यासन नपर वेठगे. एकदिवस हरिचंड संसारथकी लय पामतो तो पोताना सुबुद्धि मंत्रीने कदेवा लाग्यो के, "हे सुवुद्धि मंत्री ! मने नत्तम ध. र्म संन्नलाव." ते नपरथी प्रधान तेने केवलज्ञानी पासे लश् गयो. त्यां हरिचंद Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथचरित्र. (७) राजाए ते केवलज्ञानीने पूग्यु के, "हे विन्नो ! म्हारो पिता मृत्यु पामीने का गतिमां नत्पन्न भयो ?" केवलीए कडं. “हे राजन् ! ते घोर एवा पापना नदयथी सातमी नरकने विषे दुःखनुं पात्र थयो .” केवलीनां आवां वचन सां.. नली प्राप्त भयो ने वैराग्य जेने एवो ते हरिचंड राजा संयम ग्रहण करी अने सर्व कर्मनो कय करी मोक्ष पाम्यो. (स्वयंबुह मंत्री महाबल राजाने कहे डे के) हे महाराजाधिराज ! ते वंशने विषे घणा राजान निवृत्ति पाम्या पठी आप राजा थया गे अने हुं पण सुबुद्धि मंत्रीना वंशने विषेज नत्पन्न थयो बुमाटे आपना वंशने विषे अमारो अधिकार परंपराथी चाल्यो आवे . हे प्रश्नो! श्रा सर्व में अवसर विना कडं , तो पण तेनुं कारण सांनलो.आजे हुं नंदन वनमां तीर्थयात्रा करवा गयो हतो. त्यां में विजयामितघोष नामना बे चारण मुनिने दीग. में तेमने नक्तियी प्रणाम करीने आप-आयुष्य पूज्यु तोतेमणे कडं के, “नूपतिनुं आयुष्य हवे एक मास बाकी ." हे प्रत्नो ! आवां तेमनां वचन सांजली नयत्रांत अयेलो हुँ अहिं आपनी पासे आव्यो बु.तो हवे आप ए म्हारा वचनने सत्य मानी सुखे अरिहंत प्रनुना धर्मर्नु आचरण करो.” नय पामेला महाबल राजाए कह्यु. “अरे प्रधान ! जो म्हारं हवे एकज मासनुं आयुष्य ने तो पी हुं परलोक संबंधी हित शुं करूं ? ” मंत्रीए कां. "हे विन्नो ! खेद न करो. कारण के, सावद्य योग रोकनार माणसने एक दिवस पण घणो ? तो पी आपनुं आयुष्य तो एक मास, जे."आप्रमाणे मंत्रीए का एटले महाबल राजाए अध्य महोत्सव करी हर्षथी दीक्षा लीधी. परी बावीश दिवस सुधी अनशन व्रत पाली ते राजा मृत्यु पामीने बीजा देवलाकने विषे ललितांग नामे देवता थयो. हे नव्यो! पली तेनो जेवी रीते नत्तम जीवनी साथे संबंध अयो. ते हुँ तमने कहुं बु, माटे ते ध्यान दश्ने सजिलो. जंबूहीपना धातकी खंमने विषे मंगलावती विजयमां नंदी नामे गाम ने. त्यां को एक नागिल नामे कुटुंबी वसतो हतो. तेनी स्त्रीये मृगश्री विगेरे ( पुत्रीननी लुपर एक सातमी अत्यंत अप्रिय एवी पुत्रीने जन्म आप्यो. माता पिताए अप्रिय होवाने लीधे ए पुत्री- नाम पण न पामथु, तेथी लोकमां ते "निर्नामिका एवा नामश्रीजप्रसिइथ.माता विगेरेने अप्रिय एवीय पण ते पुत्री कष्ट Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (G) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. श्री वृद्धि पामवा लागी. कर्वा के-सार विनानो पदार्थ पण वृद्धि पामे .एक दिवस निर्नामिकाये केटलाक बालकोने कांश सारं खावानुं खाता जोश पोतानी माता पासे आवीने कडं के, “हे मात ! मने ते वस्तु लावी आप.” माताये पुत्री अप्रिय होवाने लीधे तेने कडं. “अरे कुर्नागिणी ! तुं मर अने गगनतिलक पर्वतना शिखर नपर जश्ने फलोनुं नकण कर.” माताये आ प्रमाये कहीने तत्काल तेने घरमांथी काढी मूकी, तेथी ते बीचारी रुदन करती करती ते महा नयंकर पर्वत पर गइ अने त्यां पमेला मनोहर पाका फलोने रुचि प्रमाणे नक्षण करी संतुष्टचित्तवाली थने त्यांज निवास करीने रही अने पदी विगेरेना मधुर शब्दो सनिलवा लागी. एक दिवस ते कुमारीकाये युगंधर गुरुने जो प्रणाम करीने पूज्यु के, "हे नगवन् ! सर्व प्राणीनने विषे को जीव म्हारा सरखो उःखी ?” गुरुए ते कुमारीनी आगल मनुप्य, तिर्यच अने नारकीनना कुःखो कह्या एटले प्रतिबोध पामेली ते कुमारीकाये हर्षथी श्रावक धर्म अंगीकार करयो. पी गुरुने वंदना करीपोताना आश्रम प्रत्ये आवेली ते कुमारीकाये तप करी, शांत थर अंते अनसन ग्रहण करयु. एवामां रात्रीने विषे ललितांग नामना देवताने जोश्ने ते मोह पामी. ते वखते ते देवता पण स्वयंप्रना देवीना वियोगथी पीडित थयो हतो; तेथी तेणे मंत्रीना वच. नथी निर्नामिकाने नियाj कराव्यु एटले ते निर्नामिका मृत्यु पामीने ललितांग देवतानी स्त्री स्वयंप्रना थश्. एक दिवस ते स्वयंप्रनाये जातिस्मरण ज्ञानथी पोतानो पूर्व जन्म दीगे.पठी ते तेज गगनतिलक पर्वत नपर पोताना गुरु यगंधरने जोइ त्यां तेमने नाटक देखामी पोताने स्थानके गइ.हवे ललितांग देव पण को एक दिवस इशाने देवनी साथे श्री नंदीश्वरनी यात्राये जतो हतो. एवामां ते चवीने जंवूछीपना विदेह क्षेत्रने विषे रहेली महा पुष्कलावती विजयमां पूर्ण समृध्विाला लोहार्गल नगरमां सुवर्णजंघ राजानी लक्ष्मी राणी थकी वजजंघ नामना पुत्रपणे नत्पन्न थयो अने अनुक्रमे राज्य पाम्यो. हवे अहिं तेना वियोगथी पीडा पामेली स्वयंप्रन्नादेवी पण गुरुथकी धर्मोपदेश पामीने श्री नमीश्वरनी यात्रा करती चवीने तेज विजयमां पुमरीकिणी नगरी ने विपे वजसेन राजानी गुणवती स्त्री थकी श्रीमती नामे पुत्रीपणे नुत्पन्न श्र.... इने अनुक्रमे यौवन अवस्था पामी. एक दिवस देवता, आगमन जोवायी जा Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथचरित्र. (ए) तिस्मरण ज्ञान प्राप्त श्रवाने लीधे अत्यंत दुःखी श्रयेली ते मूळ पामी. मूर्चा निवृत्त थ एटले ते विचार करवा लागी के " अहो ! क्यां ते म्हारा पूर्व नवनो पति ? म्हारे आ नवने विषे पण पूर्वनवना पति विना बीजानो खप नथी अने तेज कारणश्री हवे हुं बीजा पुरुषनी साथे बोलीश पण नहीं.” श्रा प्रमाणे ते विचार करती हतो एवामां धावमाताये मूर्जानुं कारण पूबवाथी तेणे पोतानो सर्व अभिप्राय कही बताव्यो एटले धावमाताये तेना पूर्वनवर्नु यथार्थ चरित्र पट्टमां आलेख्यु. तेमां प्रथम नंदिगाम, गगनतिलक पर्वत, पुष्पित नद्यान, अशोक वृक्ष, युगंधर गुरु, देव- युगल, शानेश देव, श्रीप्रन्न विमान, स्वयंबुइ तथा संनिन्नश्रोत बन्ने मंत्री ए प्रमाणे आलेख्यु. वली तेज पट्टमा स्वयंप्रना अने ललितांग देवने पण आलेख्या. पती ते धावमाता पट्टने हाथमां लश् राजपुत्री श्रीमतीना पूर्वन्नवना पतिने शोधवा माटे नगरमां फरवा लागी. एवामां कोइएक धूर्त पुरुषे पट्टने जोश मोहथी ते धावमाताने कह्यु के, “हे न ! हुं तेनुं सर्व चरित्र जाणुं बु” धावमाताये कडं. “हे वत्स! जो तुं जाणतो होय तो यथार्थरीते तत्काल कही आप.” पली पेलो धूर्त पुरूष जेमतेम कहेवा लाग्यो एटले धावमाताये पोताना मनमां विचार कस्यो के, “श्रा को धूर्त पुरुष नेमाटे म्हारे तेने निश्चे नेतरवो.”एमधारीने तेणे पेला धूर्त पुरुषने कj. “हे ना! तुं ललितांग तो खरो, पग स्वयंप्रना हवणां खुली थइ ; माटे ते पोताना पूर्वनवना पतिने श्छे ले. कारण के, स्वजन बिना तेनुं बीजुं कोण पालन करे ? माटे हे नत्तम ! तुं त्यां चाल अने ते पांगली एवी स्वयंप्रन्ना देवीनुं पालन कर." आवां धावमातानां वचन सांजलीने ते धूर्त पुरुष नय पामीने शीयालनी पेठे नासी गयो, आ प्रमाणे धावमाताने राजकुमारीना पूर्व नवना पतिनो मेलाप न अवाश्री ते पाठी प्रावी. पठी ते पुष्कलावती विजयना सर्वे राजान एकग थया; परंतु पट्टने जोइने ते सर्वे जेम आव्या हता तेम पाग पोतपोताने देश चाटया गया. __पनी लोहार्गल नगरना महाराजा वचजंघे त्यां आवीने अने पट्टने जोश्ने आश्चर्यश्री धावमाताने पूज्यु के, “आ पट्ट कोणे आलेख्यो ? " धाव माताये कहूं." हे प्रन्नो ! आप शुं पूगेगे ?" पली वचजंघ राजाए पोतेज । नर्व चरित्र कही आप्यु. ए नपरथी धावमाताये कयुं. "आपनी पूर्व नवनी Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वार्ध, प्रिया आ श्रीमती कन्या के अने वज्रसेन राजा तेने आपनी साथेज परणावो; परंतु हवणां आप पोताना नगरप्रत्ये जान." पठी हर्ष पामेलो वजजंघ राजा पोताना लोहार्गल नगर प्रत्ये गयो अने धावमाताये ते सर्व वात श्रीमतीनी आगल व तेन राजाने कही. वजसेने पण कद्यु. “हे प्रियधाच ! हुं पण श्रीमती अने ललितांग कुमारनी पूर्व जन्मनी वात जाणुं चं, ते सांजल. महाविदेह क्षेत्रमा सलिलावती नामनी विजयने विष वीतशोका नामनी नगरी ने. त्यां जितशत्रु नामनो राजा राज्य करे . तेने पेहेली मनोहरी अने बीजी केकयी एम वे स्त्रीयो . ते बन्ने स्त्रीयोने अचल अने विधीशन नासना बे पुत्रो अया. पिता मृत्यु पाम्या पठी विजयना सर्व राजाने जीतीने ते बन्ने नाइ महा बलवंत एवा केशव अने बलदेव नामयी प्रसिथ‘या. एक दिवस मनोहरीये पोताना पुत्र अचलने पूज्यु के, "हे पुत्र ! हुं जैनी दीक्षा धारण करूं ?” अचले तेने स्नेहथी दीदा देवानी ना पामी.माताये बहु आग्रह करयो एटले अचले कयुं के, “ जो तुं मने बोध पमाम, तो हुँ रजा आपुं." पठी मनोहरीये ते वातने कबुल करी चारित्र लीधुं. अनुक्रमे अतिचार रहित चारित्रने पाली ते मनोहरी मृत्यु पामीने लांतक देवलोकमां इंश पद पामी. ते इंश हुँ पोते हतो. हवे कोइ वखते ऽष्ट घोमानए अचलने अने विधीशनने म्होटा अरण्यमां खेंची आण्या. त्यां ते बन्ने ज्वाइन पी गया. घोमान मरी गया अने विधीशन पण मृत्यु पाम्यो. अचल तेने मृत्यु पामेलो जो मूळ पाम्यो. आ वखते लांतक देवलोकमां ते वात जाणीने हुं इंडनुं रूप त्यजी रय नपर बेसी तुरत त्यां आव्यो. में अचलने कडं. “हे ना ! विद्याधरनी सा युः करवा गयो हतो. आ प्रमाणे तने कोणे करने ? न.आप. पापणी नगरी प्रत्ये जइए.” म्हारां आवां वचनथी अचल नग्यो अने ते विधीशनना शरीरने वालीने पी अमे नगरीमा आव्या. पठी में मनोहरीनु स्वरूप करी अचलने देखामथु; तेथी ते बोली नग्यो के, “ हे मात ! तुं अहिं क्यांश्री श्रावी ?" माताये कडं. “हे वत्स ! हुं नत्तम रीते चारित्र पाली लांतक देवलोकमां महा वैनववालो देवता श्रयो .तुं विवेक रहित थश्ने त्हारा विधी शन नाऽनो शोक करे ठे, माटे पूर्वना संकेतश्री तने वोध करवा आव्यो व. .... वे तुं विधीझननां वहु शोक त्यजी दर जिनेश्वरे कहेलो धर्म कर; जेथी तने Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथचरित्र. (११) आलोक अने परलोकमां सुख थाय." म्हारो आवां वचनथी अचल प्रतिबोध पाम्यो अने चारित्र लश् तपथी श्री प्रन्ननामना विमानमांललितांग देवता प्रयो. त्यां देवसुख नोगवी ते देवताचवी गयो अने तेने पदे पवित्र आत्मावालो वजजंघ ललितांग अयो. वली पूर्वनी स्वयंप्रन्नादेवी पण चवी गइ,तेथी तेना पदे पवित्र आत्मावालोश्रीमतिनो जीव स्वयंप्रनाथलांतक देवलोकमां सत्तर सागरोपमनी आयुष्यवालो हुं पण आयुष्यने पूर्ण करी वज्रसेन नामनो राजा थयो ." आ प्रमाणे श्रीमति अने ललितांगनुं स्वरूप कही वजसेन राजापोते आनंद पाम्यो. पगी वज्रसेन राजाए अनेक महोत्सवपूर्वक पोतानी पुत्री श्रीमती हाथी विगेरेनी नेटो सहित वनजंघ राजाने आपी. पडी हर्षित मनवालो ते महाराजा श्रीमती सहित पोताना लोहार्गल नगरने विषे गयो, अहिं पाबल वजसेन राजाए पोताना पुत्र पुष्कलपालने राज्य आपी सांवत्सरीक दान दइ, चोसठ इंशेए करेला नत्सव पूर्वक दीक्षा धारण करी तीर्थंकर पद प्राप्त करयु. अहिं वज्रजंघ राजाने पण अनुक्रमे एक पुत्र अयो अने अनुक्रमे वृहिपामतो एवो ते पुत्र निर्मल यौवनावस्था पाम्यो. एवामां पुंगरी किणि नगरीना राजा पुष्कलपाले पोताना नपर शीमामाना राजा विरुइ श्रयेला जाणी पोतानी सहाय्य माटे वज्रजंघ राजाने बोलाववा दूत मोकल्यो. पी वबजंघ राजा पण नगरने विषे पोताना पुत्रने राखी पोते श्रीमती सहित म्हो:टी सेना लश् नत्साहयी शरवण नामना अरण्यने रस्ते थइ चाल्यो एटले तेने केटलाक माणसोए कह्यु के, “हे प्रनो आ मार्गने विषे लयंकर दृष्टीविष सपो रहे ; माटे एने त्यजी दर बीजा रस्तेषी जान.” लोकोनां आवां वचन सांजली वजजंघ नूपति ते मार्गने त्यजी द बीजे मार्गेथी पुंमरी किएपी नगरी प्रत्ये गयो. परी ते बन्ने महा बलवंत राजानना नयथी सर्वे राजा पुष्कलपालनी आशामां वर्तवा लाग्या, पठी पुष्कलपाल नूपतिए वज्रजंघ राजानो आदर सत्कार करीने विदाय करयो. ते वखते केटलाक माणलोए तेने कर्वा के, . “ हे विनो! तमारे शरवण अरण्यना रस्ते अश्नेज लोहार्गल नगरे जq.” राजाए कारण पूब्युं एटले तेनए कह्यु के, “ ते वनमां बे साधुनने केवलज्ञानना म्होटा नत्सव अवाथी इष्टी विष सर्पो शांत अश् गया ." लोकोनां आवां वचन सनिलीने तेज रस्ते अश्ने जता एवा वजजंघ राजाए त्यांझानधारीन Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. मां नत्तम एवा सागरसेन अने मुनिसेन नामना बन्ने साधुनने दींग. पठी तेनने वंदना करी वनजंघ राजा पोताना लोहार्गल नगरने विषे गयो. ते वखते राज्यना लोनी एवा तेना पुत्रे वजजंघने रहेवाना घरनी अंदर विषनो धुमामो दीधो. पठी जेटलामां महाराजा वजजंघे पोतानी प्राणप्रिया श्रीमती सहित ते घरनी अंदर प्रवेश करयो के, तुरतज विषना धुमामाथी लीपाइ गयेला अंगवाला ते बन्ने जणा मृत्यु पाम्या. त्यांशी तेन नत्तरकुरुक्षेत्रने विषे त्रण पख्योपमनी सूक्ष्म आयुष्यवाला युगलियापणे नुत्पन्न श्रया अने त्यांथी तेन मृत्यु पामीने पेहेला सौधर्म देवलोकने विषेत्रण पक्ष्योपमनी आयुष्यवाला देवता श्रया. हवे वजजंघनो जीव पहेला देवलोकथी चवीने जंबूदीपमां वहाव्रज नामनी विजयने विषे प्रनंकर नगरमां सुविधि वैद्यना केशव नामना पुत्र पणे नत्पन्न अयो. श्रीमतीनो जीव पण स्वर्गथी च्यवीने तेज नगरमां शेग्ना नयघोष नामना पुत्रपणे नत्पन्न अयो. ते पोते श्रेयांस कुमारनो आत्मा हतो. अनुक्रमे ते बनेने गाढ प्रीति इ. वली वैद्यना पुत्र केशवने तेज नवमां पोताना समान गुणवाला राजपुत्र महीधर, मंत्रीपुत्र सुबुद्धि, सार्थवाह पुत्र पूर्णन अने शेठना पुत्र गुणाकरनी साथे मीत्राश् श्रइ. एक दिवस प्रीतिना पात्ररुप ते नए मित्रो परस्पर प्रेमथी व्याप्त श्रया उतां केशवना घरे एकग थश्ने बेग हता. ते वखते अनेक जीवयुक्त एवा कोमना रोगथी व्याप्त अयेला कोइ निवार्थी मुनिने जो पेला पांचे मित्रोए हास्य पूर्वक केशवने कह्यु के, “ हे नात! तें आवा मुनिने क्यारे पण नपचार करयो नहीं.” केशवे कह्यु. “ हुँतेनो नपाय करीश; परंतु तेने माटे लक लद मूल्यवाळी त्रण वस्तुन जोशे. ते एज के, रत्नकंबल, गोशीर्ष चंदन अने लद. पाक तेल. तेमां म्हारा घरने विषे लहपाक तेल तो हशे; माटे तमे बाकीनी बन्ने वस्तुने तत्काल मेलवो." आवां केशवनां वचन सांजली उत्पन्न थठे श्रदाजेमने एवा ते सर्वे मित्रो गोशीर्ष चंदन अने रत्नकंबनी शोध करतां करतां को वेपारीनी उकाने गया अने तेने पूवा लाग्या के, “हे ना ! तमारी बुकानने विपे आ वने वस्तुन ?" तेणे कद्यु. “हा, पण तमारे तेनुं शुं काम !" तेनुए कह्यु. “ मुनिराजना उषधने माटे जोइए पीए, माटे Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथचरित्र. दरेकर्नु लक्ष लक्ष मूल्य लश्ते बन्ने वस्तुन अमने तत्काल आपो.” वेपारीए कडं. “ हे उत्तम पुरुषो! साधुने अर्थे तो एमज लइ जान. म्हारे ए वस्तुना । मूल्यनुं जरुर नथी.” पनी ते वेपारीए नावथी बन्ने वस्तुन साधुने अर्थे आपीने तेज नवने विषे दीक्षा ग्रहण करीने मोक्ष पद प्राप्त करयु. हवे पेला गए मित्रो रत्नकंबलादि सर्व वस्तुन लइ, नगरनी बहार जश साधुने नपाय करवा लाग्या. तेमां प्रथम लकमूल्यवाला लक्षपाक तेलथी मुनिना शरीरने मर्दन करी रत्नकंबल नढामीने तेमने तमके बेसारया. आम क. रवाथी तो एम वन्यु के, तेल अने तमकाना तापथी तप्त श्रयेला जीवो मुनिना देहमांथी निकलीने रत्नकंबलने विषे चोटी गया. पी ते सर्व जीवोने पेला गए मित्रोए नकृष्ट दयाने लीधे गायना कलेवरने विषे मूक्या. आ प्रमाणे त्रपवार करवाथी तो साधुनी चाममी, मांस अने हामकामां रहेला सर्व जीवो जाणे तेमना पुण्यथीज खेचायला होय नहि शं? एम बहार निकली गया.पनी शीतलता करवाने माटे गोशीर्ष चंदननो लेप करी, संरोहणी नामनी महोय. धीवमे मुनिना शरीरने निइ रहित बनावी दीधुं. परी तेनए रत्नकंबलने वे. चीनपजेला पैशाथी एक जिनमंदीर बंधाव्यु. पीतेन शुरु एवा श्रावक धर्मने पाली अंते मृत्यु पामीने बारमा अच्युत देवलोकने विषे देवता श्रया, हवे प्रथम वैद्यपुत्र केशवनो जीव त्यांथी चवीने जंबूहीपमा पूर्वमहाविदेह केत्रने विषे पुष्कलावती विजयनी पुंगरी किणी नगरीमां वनसेन राजानी स्त्री धारणीना नदरने विषे नत्पन्न थयो. अनुक्रमे ते अवतरयो अने तेनुं वजनान एवं नाम पामयु. बाकीना चार मित्रो पण तेना सुबाहु, बाहु, पीठ अने महापीठ नामना सगा नाश्न अया. श्रेयांसनो जीव बीजे को ठेकाणे अवतरी श्री वजनाननो सारथी अयो. पनी वजसेन राजाए प्रव्रज्या धारण करी केवलज्ञान मेलव्यु एटले वजनान्न म्होटो होवाथी राज्यासन नपर बेगे. अनुक्रमे ते चक्रवर्ती श्रयो अने बाकीना चार न्हाना नाश्न मंगलीक (खंमिया) राजान थया. वजनान्ने कुमार अवस्थामां त्रीश लाख पूर्व, सामान्य राज्य पदवीमां सोल लाख पूर्व, चक्रवर्तीपणामां चोवीश लाख पूर्व अने साधुपणामां चौद लाख पूर्व एम चोराशी लाख पूर्वनुं आयुष्य नोगव्यु बे. पठी सर्व पुत्रोए पिता श्री वजसेन मुनिपासे हर्षयी दीदा धारण करी. अनुक्रमे वजना Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. मुनिए चौद पूर्वनो अन्न्यास करीने आचार्य पद मेलव्युं अने बाकीना चार मुनिनए एकादशांगीनो अभ्यास करयो. बाहुमुनि निरंतर साधुनने नक्तपानादिलावी आपता अने सुबाहु मुनि सर्व साधुननी सेवा करता ए नपरथी ते बन्ने साधुनए अनुक्रमे नोगकर्म अने वलकर्म नपार्जन करयुं हतुं. ज्यारे गुरु ते वन्ने साधुननी प्रशंसा करता त्यारे पीठ अने महापीठ इर्ष्या करता ते नपरथी पापनेलीधे तेनए पण अत्यंत बलीष्ट एवं स्त्रीनामकर्म नपार्जन करथु इतुं. वजनान्न मुनिए पण अरिहंतादिक मनोहर वीश स्थानकने आराधवाथी संसार समुश्ने तारनारूं तीर्थकर नाम-गोत्रकर्म नपार्जन करयुं. पठी अनुक्रमे ते सर्वे साधुन कालधर्म पामीने सर्वार्थलि विमानने विषे देवतापणे नत्पन्न थ या, सारथीनो जीव तेज विमानने विषे देवतापणे नत्पन्न भयो. हवे पश्चिम महाविदेह केत्रमा परस्पर स्नेहथी व्याप्त एवा सागरचंड अने अशोकदत्त नामना वे मीत्रो क्हेपार करता हता; परंतु तेनमा सागरचंड सरल स्वन्नाववालो अने अशोकदत्त मायावी हतो. सागरचंज्ने शुशीलवती प्रियदर्शना नामनी स्त्री हती. अनुक्रमे ते त्रणे जपान पोत पोतानुं आयुष्य पूर्ण करी मृत्यु पाम्या. तेमां सागरचंड अने प्रियदर्शना, आ जंबूहीपने विषे नरतत्रना दक्षिण नागमां गंगा अने सिंधु नदीना मध्य प्रदेशने विषे आ अ वरुपिणीना त्रीजा आरामां पख्योपमनो आठमो नाग बाकी रह्यो हतो ते वखते नवसे धनुष्य नंचा शरीरवालो युगलीयापणे नत्पन्न अयो. अशोकदत्त पण पूर्व जन्ममा करेला कपटश्री तेज ठेकाणे हाथीरूपे नत्पन्न भयो. एकदिवस वनमा फरता एवा ते हाथीए युगलधर्मे प्राप्त थयेला एवा पोताना पूर्व नवना मित्र सागरचंडने दीगे. पठी एकवीजाना परस्पर दर्शनथी नुत्पन्न श्रयेली प्रीतिने लोधे गजराजे ते जोमलाने पोतानी पीठ नपर बेसारयुं तेयो बोजा युगलीयानए तेनुं विमलवाहन नाम पाड्युं अने तेनो स्त्रीनु नाम चयशा पम्यु. ते वखते कालधर्मना अनुसारे कल्यवृदो अल्प थवा लाग्या एटले ममता करता एवा तथा अत्यंत क्लेश करता एवा युगलियान विमलवाहनने कहेवा लाग्या. * . “ तमे अमारा अधिपतो गे, माटे नीति प्रवर्तावो.” ते नुपरथी तेणे हकार आ विश स्थानक, स्वरूप विद्याशालामां छपायेली भरतेश्वर वाहुबलि वृत्तिना पाना थी जोउ लेबु. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री प्रादिनाथचरित्र. (१५) नामवाली अर्थात् "हां" एवी महानीति प्रकाशीत करी. पढी थोरुं आयुष्य बाकी हतुं ते वखते चंश्यशाथी पूर्वना पूएयने लीधे चतुष्मान् प्रने चंडकांता नामनुं एक जोडलुं नृत्पन्न ययुं पब्योपमना दशमा जागनुं पोतानुं आयुष्य पूर्ण येते विमलवाहन पोताना पदने विषे चतुष्मानने स्थापन करी पोते कालधर्म पामी जवनवासी सुवर्णकुमार देवतान्ने विषे देवपणे उत्पन्न थयो. " चक्षुष्मान् आठ धनुष्यप्रमाण नंचा शरीरवालो हतो. ते पोताना पीतानी पेठे चंडकांता प्रियासहित इकारनी तिथी राज्य चलाववा लाग्यो अनुक्रमे ते पण प्रयुज्य पूर्ण थवाने अवसरे पोतायकी नृत्पन्न थयेला यशस्वी नामना पुत्रने प्रियंगुप्रिया सहित कुलकरना पढ़ने विषे स्थापन करीने अंते कालधर्म पामी सुवर्णकुमार देवतान्ने विषे देवपणे उत्पन्न थयो. चक्षुष्मान् पिताना करता यशस्वी कांइक नया आयुष्यवालो तथा नवी उंचाइवालो ( सामासातसें धनुष्यनी उंचाइवालो) हतो. तोपरा पितानी पेठे राज्य करतो हतो; परंतु मदमां आवी गयेला युगलीयान हकारनीतिनुं नलं - घन करवा लाग्या, ते उपरथी तेले हकारनी तिने अनुसरती मकार नामनी "मां" ए नामनी महानीति प्रकाश करी. पटी आयुष्य पूर्ण थवाने अवसरे अनिचंद नामना पुत्रने सुरूपा प्रिया सहित पोताने पदे स्थापी पोते नद्धिकुमारने विषे देवपणे उत्पन्न थयो, हवे सातसें धनुष्यप्रमाण नंचो, पिताना समान आयुष्यवालो ने चंसमान कांतिवालो अभिचंड पोताना सरखी रूपवाली प्रियानी साधे सुख जोगवतो बतो राज्य करवा लाग्यो. अनुक्रमे ते पण कुलकर एवा प्रसेनजित् नामना पुत्रने चक्कुकांता स्त्रीसहित पोताना पदने विषे स्थापन करी पोते पितानी गतिने पाम्यो. पबी सामा बसें धनुष्य प्रमाण चाइवालो ने सुबर्णनी समान कांतिवालो प्रसेनजित् पोतानी चं कांता नामनी प्रिया सहित राज्य करवा लाग्यो. ते वखते बीजा युगलीया इकारनीतिनुं तथा मकारनीतिनुं नल्लंघन करवा लाग्या एटले ते प्रसेनजिते धिक्कारनी तिने प्रकाश करी. अनुक्रमे आयुष्य पूर्ण थवाने अवसरे मरुदेव नामना पुत्र श्रीकांता प्रियासहित पोताने पढ़े स्थापन करीने पोते कालधर्म पामी दीपकुमारने दिषे महा समृद्धिवंत देवता थयो. दवे सुवर्णसमान कांति वाला, सामापांच धनुष्यप्रमाण उंचाश्वाला, त्रण नीतिना जाए अने श्रीकां Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वाई. ता नामनी प्रियायुक्त एवा मरुदेव, नानिनामना पोताना पुत्रने मरुदेवी ना. मनी प्रियासहित पोताने पदे स्थापन करी पोते मृत्यु पामीने दीपकुमारने विषे देवरुपे नत्पन्न अयो, पगरी सवापांचसे धनुष्यप्रमाण देहवाला, संख्याता पूर्व लक्ष्ना आयुष्यवाला अने मरुदेवी नामनी वहाली प्रियावाला, नान्निकुलकर पूर्वे कहेली त्रणनीति प्रमाणे राज्य करवा लाग्या. हवे सुखम उखम आरो चालतो हतो, ते वखते सवार्थसिद विमानथी चवीने श्री वजनामनो जीव जंबूचीपना नरत क्षेत्रनी विनीता नगरीमां अशाममासनी अंधारी चोथने दिवसे नत्तराषाढा नक्षत्रनो योग बते मरुदेवीना नदरने विषे अवतरयो. ते वखते रात्रीने विषे माता मरुदेवीये जगत्मा श्रेष्ट एवा आ चौद महास्वप्न दीगं. तेमां प्रथम पाणी वरसी जवाने लीधे नुज्वल वादलां समान कांतिवालो, पुल, मुख,कोंढ अने शींगमानश्री सुशोनित एवो वृषन्न जो. यो. वीजे स्वप्ने ऐरावण हाथीनी नपमावालो, चार दांत वाळो, श्वेतवर्णवाळो अने जेना साते अंग पृथ्वीनो स्पर्श करी रह्या हता एवा हाथीने पोताना मुखमां प्रवेश करतो दीगे.त्रीजे स्वप्ने कपूरना हार अने नीहार (बरफ) ना समान कांतिवाला अने केशवालीश्री मनोहर एवा केशरीसिंहने माता मरुदेवीये पो. ताना मुखमा प्रवेश करतो दीगे, चाथे स्पप्ने दिशानना गजेंशेए सिंचन करेली अने उत्तम वैनववाळी लमीदेवीने पोताना मुखमां प्रवेश करती दीरी. पांच. मे स्वप्ने पांचवर्णना पुष्पोथी गुंथेली अने अत्यंत सुगंधीवाली बे दिव्यमालाने दीी. ठठे स्वप्ने पांच प्रकारना ज्योतिश्चकथी विंटलाइ रहेला अने प्रकाश. श्री अंधकारना समूहने नाश करनारा पूर्ण चंद्रने दीगे. सातमे स्वप्ने माता म. रुदेवीये किरणोवमे ग्रहोना तेजने हरण करनारा, अंधकारना समूहने नाश करनारा अने कमलना समूहने प्रवोध करनारा सूर्यने दीगे. आठमे स्वप्ने शब्द करती एवी लद घुघरीनथी सुशोनित, आकाशने स्पर्श करी रहेला अने वीजी न्हानी हजारो ध्वजानथी युक्त एवा मनोहर इंध्वजने दीगे. नवमा स्वप्ने पवित्र जलश्री नरेलो, कमल नपर रहेलो, कमलवमे ढंकाये. लोअने सर्व कल्याणना मूल रूप एवो कलश दीगे. दशमे स्वप्ने राजहंसोए मटन करी नाखेला कमलना रसथी कांक पीळा वर्णना जलवाळं अने श्वेतवर्णना कमलोधी व्याप्त एवं पद्म सरोवर दी. अग्यारमे स्वप्ने दूध स. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथचरित्र. ( १७ ) मान जलयी जरपूर, चंचल एवा कल्लोलयी नबलतो अने नाना प्रकारना रत्नना समूहथी पूर्ण एवो कीरसमुइ दीगे. बारमे स्वप्ने सुवर्ण तथा रत्नोश्री भरपूर, रत्नजमीत्र सुवर्णना हजारो स्तंभवालुं अने वागती एवी नोबती आनंदना स्थानरूप विमान दीतुं. तेरमे स्वप्ने चंद्र सूर्यना तेज सरखा, मेरुपर्वतना शिखर समान अने स्फुट एवा पांचवर्णनां रत्नोना समूहने दी. चौदमे स्वप्ने प्रसरती एवी ज्वालानी फालेकरीने जटावाला, मध अने घीश्री सिंचन श्रयेला धूमाकारहित अमिने दीगे. - प्रावां चौद स्वप्न जो प्रजाते जागी नठेला मरुदेवी माताये पोताना स्वननो विचार नाभिकुलकरने कह्यो अने पी जेटलामां नाजिराजा तेमने स्वarat विचार headलामां जिनेश्वर प्रजुनी भक्तिथी व्याप्त थयेला इंदे त्यां प्रवीने या प्रमाणे कां. " हे त्रण जगत्नी मात ! हे श्रेष्ठ रत्नगर्भवाली ! तमने हुं नमस्कार करूं बुं. हे देवी! तमारे धर्म ने विषे चक्रवर्ती एवो उत्तम पुत्र थो. पी चैत्र मासनी अंधारी आठमने दिवसे उत्तराषाढा नक्षत्रना योगमां " प्रभु अवतरचा. ते वखते नृप्पन कुमारीकानए त्यां प्रावीने भूमी मार्जन, जल सिंचन, दर्पण, कारी, वींऊला, अने चामर विगेरंना उपचारोथी प्रभुनी सेवा तेमज रानी पोटली बांधवा विगेरे घाट क्रियान करी. पी पूर्ण जक्तिथी जरपूर मानो वा चोसठ इंशे पोतानी नक्तिथी मेरु पर्वतना शिखरने विषे प्रजुने अभिषेक महोत्सव करी, नानी राजाना घरने विषे रत्न विगेरेनी वृष्टी करी तेमज प्रजुनी तथा माता मरुदेवानी नमस्कार पूर्वक स्तुति करी पोत पोताने स्थानके गया. माता स्वप्नामा प्रथम वृषन दीठो हतो तेमज प्रजुना सायलने विषे वृषननुं चिन्ह हतुं ए उपरथी अत्यंत हर्षवाला माता पिताए इंनी प्रज्ञाश्री शुभ दिवसे तेमनुं वृषन (रुषन) एवं नाम पामधुं अरिहंत प्रजुनी सर्व प्राद्य क्रीयान इंज्ञेथीज कराय बे. ए उपरथी एक दिवस इंड दाथमां शेरमीनो सांगे लइ प्रजुनो वंश स्थापन करवा माटे आव्यो पढी आवेला इंइने 'जोइ प्रजुए शेरमीनो सांगे लेवाने माटे लांबो हाथ करो. ते उपरथी प्रजुना वंशजो 5क्ष्वाकु नामना कत्री थया. या प्रमाणे इंथी प्रजुना वंशनी स्थिति यई. माता पिता जेजे श्रवसरे प्रभुने योग्य क्रीया करवानी इवा करतां हतां तेते अवसरे Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ऋषिममलति-पूर्वाई, तेते सर्व क्रीयान इंडेकरेली तेन जोतां हतां. हवे को एक दिवस को युगलनुं बालजोड़ें तालवृदनी नीचे रमतुं हतुं. एवामां अकस्मात् तालफल पडवाथी काकतालीय न्यायनी पेठे पुत्र रूप बालक मृत्यु पाम्यो एटले कन्याने "आ शषननी स्त्री थशे.” एम कहीने नानी राजाए तेने लश् अने तेनुं सुनंदा नाम पामयु. पठी सुनंदा अने सुमंगला एबन्ने कन्यान सहित श्री शषन्न प्रन्नु पोताना पुण्यना योगथी जगत्ने आश्चर्यकारी यौवनावस्था पाम्या.प्रनुना विवाहना अवसरे विवाह संबंधी सर्व काम इंअने इंशाणीये करयु.पी काश्क न्यून एवा उ लाख पूर्व गये ते सर्वार्थसिह विमानथी चविने बाहु अने पीठना जीव सुमंगलाथकी नरत अने ब्राह्मी नामना युगलपणे नत्पन्न थया. पती तेज देवलोकथकी चवीने सुबाहु अने महापीग्ना जीव सुनंदाथकी बाहुबलि अने सुंदरी नामना युगलपणे नत्पन्न अया. त्यारपती सुमंगलाए श्रेष्ट लक्षणोथी मनोहर एवा बीजा नगणपचास पुत्रना जोमलांने जन्म आप्यो. हवे परस्पर नीतिनुं नल्लंघन करता एवा युगलीयानना समूहो झानथी, कांतिथी अने बुध्थिी अधिक एवा झपन्न प्रजुने जोड्ने कहेवा लाग्या के “हे प्रनो ! तमे अमारे माटे नीति प्रगट करो. कारण के, जे राजा होय ने ते नीतिने प्रगट करे .” प्रनुए कह्यु. “हे युगलिको! ते वातनी तमे नाभिकुलकर नुपति पाले जश्ने याचना करो". ते उपरथी सर्वे युगलियान नालिराजानी सन्नामां आवीने ते प्रमाणे याचना करवा लाग्या. नालिराजाए कह्यु. “तमारो राजा ज्ञषन्न थान.” पठी सर्वे युगलियान प्रनु पासे आवीने कहेवा लाग्या के, “नालिराजाए अमारा पति आपने ठराव्या वे; माटे तमने नंचा स्थान नपर वेसारी अमे जलवमे अनिषेक करीए.कारण जे राजा होय रे तेनाश्रीज नीति प्रकाश करायचे." पठी ते सर्वे युगलियान जिनेश्वर प्रन्नुने धुलना ढगला नपर बेसारीने अनिषेकने माटे जल लेवा गया. एवामां आवीने प्रतुने बहु आनुषणोथी सुशोनीत करीने एक सुंदर ग्रासन नपर वेसारया. पठीयुगलियान जल लश्ने अाव्या अने प्रन्नुने घरेणां विगेरेथी सुशोनित श्रयेला जोक्ने तेमणे अत्यंत दर्पथी प्रन्नुना वे चरणने विषे आणेला जलश्री तेमणे अन्निपेक करयो. परी Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथचरित्र. (१५) ३३"आ युगलियान विनीत .” एम कहीने बार योजन लांबी अने नव योजन पहोली विनीता नामनी नगरी बनावी पी. पठी प्रनुए ब्राह्मीने ज'मणे हाथे अढार जातनी लीपी शीखवी अने सुंदरीने मावा हाथथी गणित शास्त्र शीखव्यु. वली लरतने रूपना कार्य अने बाहुबलिने मनुष्य विगेरंना लक्षण तथा तेमनां मान, नुन्मान अने प्रमाण एत्रण जातनानेद तथा तेमनां लक्षण शीखव्या. अश्वादि चार पगवाला पशुननां लक्षणने निरुपणकरी, चारवर्णनी स्थापना करी अने सर्व कलान प्रदर्शित करीने प्रनुए पोताना नरतादि सो पुत्रने जूदा जूदा देशने विषे राजान बनाव्या अने पोते चार हजार राजान सहित चैत्रमासनी अंधारी आग्मने दिवसे नत्तराषाढा नक्षत्रना योगमां उन्नक्तसहित सिक्षार्थनामना नद्यानमां आवी संयम ग्रहण करचो.ते वखते साथे रहेला चार हजार राजानए पण चारित्र लीधुं; परंतु तेन निदा नहिं पामवाथी वनने विषे तापसो थया. कच अने महाकछ पण तापसपणुं पाम्या, ते वखते तेनना पुत्रो देशांतरथी पितानी सेवा करवाने माटे त्यां आव्या एटले कब अने महाकछे ते पोताना पुत्र नमि विनमिने कयु के, " हे पुत्रो! तमे घरे जान अयवा तो कल्पवृक्ष समान जिनेश्वर प्रनुनी सेवा करो."पठी राज्यनी श्चाथी जिनेश्वर प्रन्नुनी सेवा करता एवा ते बनेने (नमि विनमिने) धरणेंडे सर्व विद्या आपीने वैताढ्य पर्वतनी उत्तरश्रेणि तथा दक्षिणश्रेणिना अधिपति बनाव्या. हवे निदा नहिं मलवाने लीधे एक वर्ष पर्यंत निराहार अने निकुकोना मध्ये मुख्य एवा प्रनु विहार करता करता निकाने अर्थे हस्तिनापुर प्रत्ये श्राव्या. ते वखते त्यां बाहुबलिनो पुत्र सोमयशा स्वर्गमां इंनी पेठे राज्य करतो हतो. तेने श्रेयांसकुमार नामे पुत्र हतो. एकदा ते श्रेयांसे एबुं स्वप्न दी के, “ जाणे में स्यामवर्ण थ गयेला मेरुपर्वतने अमृतथी धोश्ने अति नज्वल करयो. " ते वखते त्यांना शेग्ने एवं स्वप्न आव्युं के, “ जाणे सूर्यथकी पृथ्वी नपर पमेला किरणो श्रेयांसकुमारे लश्ने पाग त्यांज(सूर्यना प्रतिबिंबने विवे) स्थापन करयां." वली सोमयशाने पण तेज रात्रीने विषे एवं स्वप्न आव्यु के, “ जाणे युरु करतो एवो को सुन्नट श्रेयांसकुमारनी सहा-- यथी विजयलक्ष्मी पाम्यो.”सवारे ते त्रजणा सन्नामां नेगा थया अने “श्रे Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) ऋषिममलत्ति-पूर्वाई. यांसकुमारनो नदय अशे."एम परस्पर विचार करी पोतपोताने स्थानके गया. पठी जेटलामां श्रेयांसकुमारे पोताना घरने विषे नीकाना अर्थी एवा प्रन्नुने प्रवेश करता जोया तेटलामां शुन्न हृदयवाला तेने जातिस्मरण शान नत्पन्न थवाथी तेणे जाण्यु के, “हुँ पूर्व जन्मने विषे वजसेन जिनेश्वरना वजनान्न पुत्रनो चक्री नामे सारथी हतो. ते वखते में वनसेन केवलीना मुखथी एवं सांनव्युं हतुं के, “आ वजनान्नकुमार नरतक्षेत्रने विषे तीर्थकर थशे." श्रा प्रकारना पूर्वनवने जागी नत्पन्न भयो रोमांच जेने एवा सोमप्रन्न राजाना पुत्र श्रेयांसकुमारे पोतानेन्नेटमांआवेलाशेरमीनारसनाघमां नघामी प्रनुपासे जश्ने कडं के, “हे प्रनो! प्रासुक एवा आ कुरसने ग्रहण करो.” पठी प्रनुए एकवर्षे ते निर्दोष आहार ग्रहण करयो. ते वखते "अहोदान! अहोदान!!" एवो शब्द करता एवा देवतानए श्रेयांसकुमारना आंगणाने विषे सुवर्ण अने रत्ननी वृष्टी करी. ते उपर कवी घटना करेले के, जेणे शपन्न प्रजुने नाववके निर्मल दान आपवायो पोतानुं घर बहु धनश्री पूर्ण करयुं, पोतानां देदीप्यमान यशना समूहथी त्रण नुवन पूर्ण करयु, आत्मा पुण्यना नारथी पूर्ण करयो अने लोकने विषे आ सत्पात्रदान प्रवर्ताव्यु. ते श्रेयांसनाम जगत्ने विषे कोने कोन वखावा.योग्य नथी यतुं? अर्थात् श्रेयांस एज नाम वखाणवा योग्य ले. पठी राजा विगेरे सर्व लोक,महात्मा श्रेयांसकुमारना घर प्रत्ये जश्ने तेनां वखाण करवा लाग्या. ते वखते श्रेयांसकुमारे तेनुनी आगल पात्रदाननी प्रशंसा करी के, जेथी त्यार पठी लोकने विषे पात्रदान प्रवत्यु. “ तमे ए शीरीते जाएयु?" एम लोकोना पूबवा नपरथी सोमयशाना पुत्रे कडं के, “प्रन्नुने देखवाथी मने जातिस्मरण झान नत्पन्न थयुं बे; तेथो में जाण्यु." वली तेणे कडं के, "म्हारे पूर्वना नवथी प्रनुनी साये संबंध चाल्यो आवे ने; माटे प्रनुना दर्शनथीज मने जातिस्मरण शान नुत्पन्न थयुं ." आ प्रकारे श्रेयांसकुमारना अने प्रनुना परस्पर पूर्वनवना संबंधने सांजली आश्चर्य पामेला लोक पोत पोताने स्थानके गया. पठी जे स्थानके प्रन्नु नन्ना हता त्यां श्रेयांसकुमारे रत्ननुं एक पीठ कराव्यु, ते प्रतुना प्रनावथी सूर्यना मंगल समान शोनवा लाग्यु. हवे नगवान् पृथ्वी नपर विहार करता करता तहशिलापुरी प्रत्ये ग Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथचरित्र. (१) या एटले सेवकोए हर्षथी प्रन्नुर्नु आगमन बाहुबलिने निवेदन करयु. बाहुबलिए पण तेनने प्रीतिदान आपीने कयुं के, “ हुँ प्रनाते नत्सव सहित प्रनुर्नु दर्शन करीश." परंतु प्रनाते प्रतिबंधथी रहित एवा प्रन्नु तो बीजे स्थानके विहार करी गया. कारण के, अरिहंतोने प्रेमनुं बंधन होतुं नथी. हवे अन्नाते प्रन्नुने नहिं देखवाथी शोक करता एवा बाहुबलिए नगवानना कायोत्सर्ग स्थाने सूर्यमंझल समान देदिप्यमान पांच योजन प्रमाण -चुं, ध्वजाथी सु.. शोनित दमवालुं अने योजन प्रमाण विस्तारवालुं प्रनुनी बे पाउकायुक्त रत्न समान स्तूप कराव्यु. पठी उद्मस्थावस्थामा रहेला नगवान जोगगाढ, बइलाख्य अने बहली विगेरे देशोमां विहार करता करतां पुरिमताल नगरना शकटोद्यानमां आव्या.त्यांअध्मनो तप करीने वमनी नीचे बेठेलाप्रन्नुने फागण मासनी अंधारी अगीयारसने दिवसे उत्तराषाढा नक्षत्रमांसवारे केवलज्ञान प्राप्त थयु. तेज वखते जरत राजानी आयुधशालामां पण चक्ररत्न नुत्पन्न - यु. पी प्रन्नुने केवलज्ञाननी नत्पचिनी तथा आयुधशालामां चक्ररत्ननी नत्पत्तिनी वधामणी आपनारा बन्ने सेवकोए एक कालेज नरत राजाने वधामणी आपी. पनी “ आ बनेना मध्ये प्रथम पूजा कोनी करूं ? " एम कण मात्र विचार करीने नत्पन्न थयो विवेक जेने एवो नरत राजा विचार क-' रवा लाग्यो. “ पितार्नु पूजन करे ते चकरत्ननुं पण निश्चय पूजन करेलु गणाय. कारण चक्ररत्न आ लोकमां सुख आपनारुं अने प्रत्तु तो परलोकने विषे पण सुख आपनार बे; माटे पिताज प्रथम पूजन करवा योग्य ,पण चक नथी.”एवो विचार करीने तेणे पोतानी पितामह (बापनीमा)मरुदेवा माताने कडं. “ हे माता ! फट चालो, हुं आपने त्रण लोकना पति रूप आपना पुपनी समृद्धि बतावं." नरतनां आवां वचन सांजली मरुदेवा माताये हर्षपामीनरतने कयुं. “तुं मने म्हारा पुत्र ऋषजनुं दर्शन कराव्य." माताये आ प्रमाणे कडं एटले नरत राजा तेमने हाथी नपर बेसारीने जिनेश्वर प्रनुने वंदना करवा चाल्यो. पडी देवतानना वैमानना समूहथी चारे तरफ व्याप्त थ रहेला आकाशने जोइने नरत राजाए मरुदेवा माताने कडं. “ हें अंब! त्रण जगत्ने आश्चर्यकारी आपना पुत्रनी आ समृहि जून के, जेमना आगल आ म्हारी सर्व समृदिअल्पमात्र देखाय ." आ प्रकारनी पुत्रनी सं Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) ऋषिममलरत्ति-पूर्वाई. पत्तिने अने पुत्रने वारंवार स्मरण करता एवा मरुदेवा माता ते वखते नत्कृष्ट आनंद पाम्या अने हर्षना आंसुने लीधे बाह्य (नपरनां) अने अभ्यंतर (अंदरनां) नेत्रनां पमलनो नाश अवाथी माता मरुदेवा पोताना पुत्रनी बाह्य अने अभ्यंतर लक्ष्मी जोइने तत्काल परम पदने पाम्या. अर्थात् मोद पाम्या. पी लरतराजाए माता मरुदेवाना देहने अग्निसंस्कार करी समवसरएमां जश्ने प्रन्नुनो केवल महोत्सव करयो. ते वखते प्रन्नुए पापने नाश करनारी धर्म देशना आपी के, जेने सांजलीने केटलाक वैराग्यवंत थया. पी नरतना पांचसे पुत्रोए अने सातसे पौत्रोए (पुत्रना पुत्रोए) श्री जिनेश्वर प्रनु पासे दीका लीवी.ऋषत्नसेन विगेरे चोराशी गणधरो अया. ब्राह्मी आदि साध्वी अने श्रेयांसकुमार विगेरे श्रावको अया. सुंदरी पण दीक्षा ग्रहण करवाने तैयार थर हती, परंतु “आम्हारुं स्त्रीरत्न थवानुं .” एम धारीने नरतराजाए तेने दीक्षा लेवानी ना कहेवाश्री ते श्राविका थ६. आ प्रमाणे प्रत्लुना चार प्रकारना संघरी स्थापना पश्. ते वखते कल अने महाकचे पोतानुं तापसपणं त्याग करीने प्रव्रज्या आदरी. पठी प्रत्नुने नमस्कार करी घरप्रत्ये आवेला नरत राजाए चक्ररत्ननी पूजा करी अहा महोत्सव करयो. त्यारबाद साठ हजार वर्ष पर्यंत पराक्रमथी नरतकेत्रने साधी नवनिधि अने चौदरत्नने ग्रहण करी पच्चिस हजार यद अने वत्रीश हजार राजाए परवरेलो ते नरतराजा पोतानी विनिता नगरी प्रत्ये आव्यो.पली तेरो बार वर्ष पर्यंत चक्रवर्तीनो अनिषेक कराव्यो, एक दिवस नरतराजाए उर्बल अंगवाली सुंदरीने जोश्ने रसोइयाने कां के, “अरे! शुं म्हारा घरने विषे एटलुं पण सारु नोजन नथी के, आ सुंदरी दुर्बल अंगवाली देखाय ठे? ” रसोश्याए कह्यु. “हे राजन्! आप दिग्विजय करवा गया ते दिवसयी आरंन्नीने आ सुंदरी निरंतर आंबिलनो तप करे ." पठी तेने विषे मंदरागवाला लरतराजए सुंदरीने कां. “ तुं मरजी प्रमाणे नोग जोगव्य अथवा तत्काल प्रव्रज्या ग्रहण कर.” ते नपरथी वैराग्यवंत थ. येली सुंदरीए जिनेश्वरप्रनु पासे संसारनो नाश करनारी दीक्षा लीधी. पठी महा पराक्रमवंत एवा जरतराजाए पोताना अम' लाइन पाते दतो मोकल्या; तेथी तेन त्यां जा तेमने कहेवा लाग्या के, “तमे नरत चक्रवर्तीनी सेवा करो." ते नपरथी ते सौए कह्यु के, “दे जमो! नरतने अने! Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आदिनाथचरित्र. अमने राज्य तो पिताए आप्यु , तो अमे तेनी सेवा केम करीए? अमे पितानी आझा लेश्ने तेनी साथे युः करीशु."एम कहीने तेन सर्वे अष्टापद पर्वत नपर प्रन्नुनी पासे गया.त्यांप्रनुएतेनुनी आगल एक अंगाराकरनारनुं दृष्टांत कां के, __ "कोइ एक अंगारानो करनार पाणी लश्ने अंगारा करवा माटे वनमांगयो. त्यां अंगारा करता करतां पाणी खूटयु; माथे सूर्यनो तप पमतोहतो अने पमखे अग्नि सलगतो हतो तेथी बलवमे काष्टने कापता एवा ते अंगारा करनारने घणी तरश लागवाथी मूर्ग आवी एटले पासे रहेला बीजा सऊन पुरुषो तुरत तेने घेर लश् गया. पठी मूर्गमां ने मूर्गमां पेलाए नदी, कूवा, धरा अने समुझे दीग ते तेरो पीधां; परंतु तेनी तरश निवृत्त पामी नहीं. पठी तेणे एक घासनो पूलो लश तेने सलगावीने एक जीविमनी पोलाणमां मूक्यो, पी तेमाथी निकलतां एवा पाणीनां टीपाने ते जीववमे चाटवा लाग्यो. (नगवान् पोताना पुत्रोने कहे ने के,) हे वत्सो ! तमे पण ए अंगारा करनारनी पेठे देवताना नोगधी तृप्ति पाम्या नथी तो पी हवणां ए राज्यथी शी तृप्ति पामवाना गे?” आ प्रमाणे कहीने पी प्रभुए पापने नाश करनारु दश दै. कालिकनुं अध्ययन तेमने कही संनलाव्यु. ते सांजलीने वैराग्यवंत थयेला ते सर्वे पुत्रोए तेज वखते प्रभु पासे दीक्षा लीधी. पडी तेनना पुत्रो हर्षथी नरत राजानी आझाने अंगीकार करी उत्तम सुखकारी पोत पोताना राज्यो करवा लाग्या. परी नरत राजाए एक उतने शीखामण आपीने बाहुबलि पासे मोकल्यो. दूत त्यां जश्ने सुनंदाना पुत्र बाहुबलिने मधुर वचनथी कहेवा लाग्यो के, “हे राजन् लरतराजाने खंझना राजान हर्षथी सेवे दे तो तमे महाबलवंत अने चक्रवर्ती एवा ए नरतराजानी सेवा शा माटे करता नथी?"बाहुबलिए कह्यु. “ मने पिताएज राज्य बहेंची आप्युं , तो पड़ी हुं शा माटेनरतनी वृथा सेवा करूं? शुमने ए सेवा करवाथी वधारे करी आपे तेवो ? के शुं ते म्हारा व्याधीनने नाश करी शके तेवो ?, शुं आवती एवी वृक्षवस्थाने रोकी राखे तेवो ? अथवा शुं प्राप्त श्रयेला मरणने निवारण करी शके तेवो बे? आ उपर कहेलाने निवृत्त करवाने इंश पण समर्थ नथी. म्हारे अने एने मनुष्यपणुं समान तो पनी हुं लघुपणाने आपनारी तेनी सेवा शा माटे Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) ऋषिममलयत्ति-पूर्वार्ध. करूं?" श्रा प्रमाणे कहीने बाहुबलिए दूतने पोताना नगरमांथी काढी मूक्यो. पली दूते जश्ने बाहुबलिनु कहेलुं सर्व नरतराजाने कां. पठी महा पराक्रमवाला ते बन्ने जगान सैन्य सहित उर्जय मृगेंनी पेठे पोतपोताने सीमामे एकठा यया. त्यां अकाले मनुष्यनो कयकारी युद्ध करता एवा ते बन्ने जणाने जोश्ने देवतानए शांत करीने आ प्रमाणे कां. “ तमे अ. मारा कहेवा प्रमाणे पांच प्रकार, युइ करो.” बन्ने राजानए कडं. “हे देवतान! कयु कयुं युः करीए, तेकहो ?” देवतानए कां. “ प्रथम दृष्टयुद्ध करो." पठी देवतानां कहेवा प्रमाणे दृष्टियुः करता एवा ते बन्ने जणामां बादुबलिनो विजय अयो. पठी देवतानी आझाथी परस्पर वाक्यु अने बाहुयुः करवामां पण बाहुबलिज विजयी निवमयो. डेवट देवतानए बतावेला दंम अने मुष्टियुक्ष्मां पण बाहुबलिनो जय अने जरतनो पराजय श्रयो.आ प्रकारनो सर्व युक्ष्मां बाहुबलिनो विजय जोइ लरतराजा मनमां विचार करवा लाग्यो. "अहो! सर्व प्रकारना युक्ष्मां विजय पामनारा आ बाहुबलिनेज हुँ चक्रवर्ती मार्नु के शं?"आमधारी तेणे चक्र, स्मरण करयुं एटले वैरीनो नाश करनारुं चक्र तत्काल तेना हायने विषे प्राप्त अयु. पठी त्नरते बाहुबलि सामुं चक्र मूक्यु; परंतु ते तो तेने नहिं मारतांप्रदक्षिणा करीने पावू लरतना हाथने विषे प्राप्त थयु. पठी अत्यंत क्रोध पामेलो बाहुबलि मुठी नपामी नरतने मारवा माटे दोमयो; परंतु रस्तामां वैराग्य प्राप्त थवाने लीधे ते पोताना मनमां विचार करवा लाग्यो के, “अरे! चक्रवर्ती राज्यने धीकार हो के, जेना माटे लोनथी आकुल व्याकुल अयला नाश्यो पोताना नाश्योने मारवा माटे दोमे .” एम कहीने देवताए आपेला साधु वेष धारण करी प्रव्रजित श्रयेलो अने कृतार्थ एवो ते बाहुबलि कोयोत्सर्गे नन्नो रह्यो ते एवो अन्निग्रह लश्ने के, “केवलज्ञान प्राप्त श्रया विनानो हुँ केवलझानी एवा म्हारा न्हाना नाश्योने शी रीते मटुं? माटे हुं त्यां सुधी अहिंज रहीश के, ज्यां सुधी मने केवलज्ञान नुत्पन्न थाय.” आ प्रमाणे त्यांज कायोत्सर्गे उन्ना रहेला तेने एक वर्ष पूर्ण थयुं एटले प्रनुए तेने प्रतिबोध पमामवाने माटे पोतानी ब्राह्मी अने सुंदरी वने पुत्रीनने मोकली. पठी बाइबलि पास यावीने ते वन्ने जणीनए तेने कह्यु. “हे बंधो! हाथी उपर रहेलाने केव Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री आदिनाथचरित्र. (२५) वलज्ञान नत्पन्न श्रतुं नथी." आवां व्हेनोनां वचन सांजली बाहुबलि विचार । करवा लाग्यो के, “अहो! मान एज मदोन्मत गजराज देखाय . जगतपूज्य एवा पोतानानाश्योने वंदन करवामां म्हारी शी हानी श्रवानी ?.माटे चाल, हवे हुँ न्हाना नाश्योने तथा जिनेश्वर प्रतुने वंदन करवाने जानं."आम धारी जेवो ते पग नपामी आगल चालवा जाय ले एटलामां तेने केवलज्ञान प्राप्त आयु, तेथी ते जिनेश्वरनी पासे जश् केवलीननी पर्षदामां बेगे. नरतराजा पण बाहुबलिना पदे तेना पुत्र सोमप्रन्नने स्थापी पोते विनिता नगरीमां जश् अनर्गल नोगोने नोगववा लाग्यो. जरतनो पुत्र मरिचि के, जे प्रन्नुनी साथे दीक्षा ग्रहण करीने पूर्ण एकादशांगीनो धारक थइ विहार करतो हतो; ते ननालानी ऋतुमां तापना परिसहने सहन करवा समर्थ श्रयो नहिं, तेथी मूढ मनवाला तेणे परिव्राजकनुं शासन प्रवर्ताव्यु. अर्थात् ते तापस थयो. - को वखते श्री शषनस्वामी विहार करता करता अष्टापद पर्वत नपर समवसस्या. ते वखते नरतराजा विचार करवा लाग्यो के "म्हारा राज्यने विषे सुखी अथवा सुखी कोण ? म्हारा नवाणुं नाश्योए, बेबेन्होए, पांचसे पुत्रोए अने बीजा पुत्रना पुत्रोए आ प्रमाणे सर्व संबंधीए प्रन्नु पासे दीक्षा लीधी डे." आ प्रमाणे विचार करीने वली ते चिंतववा लाग्यो के, " हित वादिनए नोगवेला आ राज्यवमे करीने शुं? निमंत्रण करया उतां पण तेन प्रन्नु विगेरे म्हारा संबंधित तो ते राज्यने श्छता पण नथी, माटे हवे ९ तेननी नत्तम अनादिकथी लक्ति करूं.” आम धारी लरतराजाए पांचसे गामाथी खेंचीलवाय एटला विविध प्रकारना आहारने लावी प्रनुने निमंत्रण करयु. ते वखते प्रत्लुए कडं के, “हे नरत! आधाकर्मादि दोषयुक्त आ अन्न साधुनने कटपे नहीं; तेमां पण प्रासुक एवोय पण राजपिंम तो नज कटपे." आ प्रमाणे प्रत्नुए ना कह्याथीनरत जेटलामां अत्यंत खेद पामे देतेटलामां आवीने प्रनुने अवग्नह पूज्या; तेथी प्रन्नुए तेने संबंधी, चक्रवर्तीसंबंधी, राजासंबंधी, शयातर संबंधी अने साध्वीसंबंधी आवा पांच प्रकारना अवग्रहनुं स्वरूप कडं. तेमां इंद पोतानो अवग्रह साधुने माने जे. पी लरते पण पोतानो अवग्रह जाणी अने इंश्ने पूरीने पोते प्राणेलो आहार श्रावकोने आपी दीधो. पठी तेणे ६इने तेनुं (इंड्नु) खलं स्वरुप देखामवानुं कडं एटले ३६ नरतराजानी आझा नि Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. ष्फल न थाय एटला हेतुथी पोताना खरा स्वरुपनी एक आंगली तेने वतावी, जेधी जरते अहा महोत्सव करयो. अने ते "२६ महोत्सव" एवा नामथी. प्रसिह थयो. पठी लरतराजाए श्रावकोने कां के, “ तमारे आरंन मूकी दश्ने निरंतर म्हारे घेर नोजन करवू अने सवारमा एम कहेवू के, “तमे जीताएला गे, नय वर्ते जे; माटे (आत्मगुणने) न हो न हणो." जरतराजानां आवां वचन सांजली सर्वे श्रावको एज प्रमाणे करवा लाग्या, को एक दिवस ते श्रावकोनां एवां वचन सांजली नरतराजा विचार करवा लाग्यो के “हुंकषायोथी जीताएलोबुं अने आ संसारने विषे नय वर्ते." ___ एक दिवस रसोइए आवीने भरतराजाने विनंती करीने का के, "हे स्वामिन् ! आलस्यवाला घणा माणसो अहिं निरंतर नोजन करवा आवे . तो पी अमो एटली बधी रसोशी रीते करी शकीए.” रसोइयानां आवां वचन सान्नली नरत राजा लोजन करवा आवेला श्रावकोने या प्रमाणे पूबवा लाग्यो. “ तमे शुं शुं जाणो बगे? "केटलाके का. “हे नरेश्वर ! अमे पांच अणुव्रत जागीए वीए." एज प्रमाणे केटलाके त्रण गुणव्रत अने केटलाके चार शिक्षाबत जाणवायूँ कह्यु. ए नपरथी नरतराजाए तेननी नलखागने माटे तेमनी गतिने विषे पांच, त्रण अने चार एम अनुक्रमे काकिणीरत्नवमे रेखान करी. बाकीना के जेन का नहोता जागता तेनने तेणे वहार काढी मूक्या. या प्रमाणे लरतराजा ब ब महिने परीक्षा करवा लाग्या, अनुक्रमे काकिणी रत्नना चिह्नने स्थानके जनो यइ. नरत चक्रवर्तीना वंशने विषे 'पण आदित्ययशादि राजानए सोनानी, रुपानी अने सूतर विगेरेनी जनो धारण करवा मांमी. आ धर्म दीर्घकाल सुधी अर्थात् शीतलनाथ ती'थैकर थया त्यां सुधी प्रवयो. त्यार पठी काकिणी रत्नना चिह्नने धारण करनारा श्रावको मिथ्यात्वपणाने पामीने ब्राह्मणो थया के, जेन मिथ्यात्वना नपदेशयी लोकने विषे गुरुन श्रइ पम्या.पठी सर्व लोको पण तेमने दान आ'पवा लाग्या.श्री नरत सजाए श्रावकोना हितने माटे जिनेश्वरना स्तोत्र रूप श्रावक धर्मनुं निरुपण करनारा वेदो बनाव्या; परंतु ते कालयोगे सुलसादिकथी अनार्यपणुं पाम्या अने ते अवसरे तो सर्व प्रकारे साधुननो विछेद थयो. एक दिवम नरतराजाए प्रन्नुने पूज्यु. “हे प्रलो! आ सन्नामां को एवो Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) श्री आदिनाथचरित्र. पुरुष के, जे आपनी पेठे धर्मतीर्थ प्रवर्तीवे." प्रनुए कां. "त्हारो पुत्र मरीचि बेल्लो (चोवीसमो) वीर नामे तीर्थंकर थशे; परंतु पहेलां तो ते वासुदेव, महाविदेह क्षेत्रने विषे मूका नगरीमां चक्रवर्ती अने बेवट नरतक्षेत्रमा तीर्थकर शे.” प्रत्तुना आवां वचन सांजलीलरतराजा जगवानने नमस्कार करीने पछी मरीचिने वंदन करवा गयो. त्यां जश् तेने त्रण प्रदक्षिणा तथा नमस्कार करीने कडं. “ आप प्रथम वासुदेव, पडी महाविदेह केत्रने विषे मूकानगरीमां चक्रवर्ती थवाना गे ए हेतुथी नहि तेमज आ कुलिंग धारण करयु ने एथी पण नहीं; परंतु येवट आ नरतत्रने विषे ल्ला वीरनामे तीकर थवाना बो ए हेतुथीज हुं आपने नक्तिपूर्वक वंदना करुं बुं." श्रा प्रमाणे कदीने जरतराजा गया पठी तेमना वचनथी हर्ष पामेलो मरीचि प्रणवार पोताना हाथथी खन्नाने मारी कहेवा लाग्यो के, “अहो। म्हारी पदवी, स्थान अने कुल जगत्मां सर्वोत्तम ." श्रावी रीते क-- हेता एवा तेणे कुलमदथी नीच गोत्रकर्म नपार्जन करयुं. अहो ! सुखने नाश करनारी प्राणीननी मदप्राप्तिने धिक्कार थान धिक्कार थान.!! प्रन्नुर्नु कुमार अवस्थामां विशलाख पूर्व, नूपतिपणामां सग्लाख पूर्व, बद्मस्थावस्थामां एकहजार वर्ष अने बाकीचें केवलीपणामां एम कुल चोराशीलाख पूर्वनुं आयुष्य इतुं. दवे प्रजुना साधु साध्वी विगेरे परिवारनुं प्रमाण कहे . गणने धारण करनारा चोराशी गणधरो, चोराशीहजार पुंमरीकादिक साधुन, त्रणलाख ब्राह्मी विगेरे साध्वीन, त्रणलाख अने पंचागुंहजार श्रावको, पांचलाख अने चोपनहजार सुन्नज्ञदिक यशवंती श्राविकान, चारहजार चारसे ने सत्तावन गुणवंत चौद पूर्वधारीन, नव हजार अवधिज्ञानीन, वीशहजार केवलीन, वीशहजार अने उसे वैक्रियल ब्धिवालान, बारहजार अने सातसें मनःपर्यवं ज्ञानवाला, बारहजार उसे अने पचास वादीसाधुन तथा बावीशहजार अने नवसें अनुत्तर विमानवासी महात्मान, आ प्रमाणे प्रन्नुनो परिवार हतो. हवे त्रीजा श्राराना त्रण वर्ष अने मामा आठ मास बाकी रह्ये ग्तेमाघ मासनी अंधारी तेरसने दिवसे अनिचा नक्षत्रनो चं उते मनात समये चौद नक्ते (उ नपवासे) पर्यकासने (पलांढीवाली) बेठेला प्रन्नु पोताना, न Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) ऋषिममलत्ति-पूर्वाई. वाणुं पुत्र, आठसे पौत्र (पुत्रना पुत्र) अने दश हजार साधुन सहित मोद। पाम्या. प्रन्नुना निर्वाण कल्याराने सांजली अत्यंत शोकाकुल श्रयेलो जरत राजा पगे चालतो अष्टापद पर्वत प्रत्ये आव्यो. इंशे पण प्रन्नुना निर्वाण समयने जाणी तेमनो महोत्सव करवा माटे पोत पोताना परिवार सहित त्यां आव्या. पठी प्रन्नुनी गोल आकारवाली, इक्ष्वाकुसाधुननी त्रण खूणावाली अने बाकीना महात्माउनी चार खूणावाली एम अनुकमे पूर्वादि दिशाथी जूदी जूदी चितान रची. पी पूर्वादि दिशामांथी अग्निकुमार देवतानए पोताना , मुखथी अनि प्रगट करयो. श्रा प्रमाणे अनि संस्कार करीने पनी इथे प्रन्नुनी जमणी दाढ गृहण करी. श्शाने३ माबी दाढ लीधी तथा बीजा चमरेंज्ञादि सर्वे देवतानए नस्मलीधी. देवताना प्रमाणे प्रन्नुनो निर्वाण नत्सव करीने पोत पोताने स्थानके गया. नरत राजाए प्रन्नुनी अग्निसंस्कारनी नूमी नपर एक योजन विस्तार वालुं अने उ गान नचुं बेठेला सिंहने आकारे प्रासाद कराव्यु.तेमां पोत पोतानां शरीरना प्रमाणवाली चोविश जिनेश्वरोनी प्रतिमानुं स्थापन करयु. वली तेणे पोताना नवाणुं नाश्योनी प्रतिमा करावी जूदा जूदा स्तूपोमां पधरावी. या प्रमाणे तेणे एक श्री जिनेश्वर, तथा नवाणुं पोताना नाश्ना स्तूपो कराव्यां अने तेनुं रक्षण करवा माटे लोहयंत्रमय झारपालो बनाव्या. पी दंमरत्नथी अष्टापद महा पर्वतने टांकीने तीर्थ रवाने माटे फक्त आठ पगथीयां वनाव्यां. वली म्लेबादिना नयथी तीर्थ रवाने माटे सगर राजाना जन्दु विगेरे पुत्रोए दंझरत्नवझे तेज तीर्थने विषे गंगा नुतारी. पठी ते जिनेश्वरनां मंदिरने विषे प्रनुनी पूजा करता एवानरत राजाए पांच लाख पूर्व निवृत्त करया, एक दिवस त्नरत राजा अरिसा नुवनमां नन्ना हता, त्यां तेमना हाथनी आंगलीमांथी वीटी पमी गइ. ते नपरथी तेमणे पोताना सर्व अलंकारो नता-" री नांख्या. पठी संवेगथी शुन्न ध्यान ध्यातां तेमने केवलज्ञान प्रगट अयुं एट-. ले ३३ अावीने तेमने यतिवेश प्राप्यो. अनुना निर्वाण पठी पांच लाख पूर्व गये ग्ते नरत राजाने अरिसान्नुवनमां केवलज्ञान नत्पन्न थयु. पी इंना कद्देवा नपरथी नरत नूपतिए दशहजार राजान सहित व्यलिंग.गृहण करयु श्रने कर्मरूप मलनो त्याग कस्यो, Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामी चरित्र. (ए) जरतराजाए सित्तोतेर लाख पूर्व कुमार अवस्थामां, एकहजार वर्ष मांगलिक मां, एकहजार वर्षा एवा बलाख पूर्व चक्रवर्तीपणामां ने एकलाख पूर्व केवलीपणामां एम चोराशीलाख पूर्व सुधी आयुष्य जोगव्यं. भरतमुनिविहार का आवीने तेमना पुत्र आदित्ययशाने महोत्सवपूर्वक राज्याभिषेक करयो. या प्रमाणे युगादीश्वर प्रजुना आठ वंशजोने दे स्वर्गमांश्री प्रवीने महोत्सव पूर्वक अभिषेक करयो बे. ॥ इति श्री प्रदिनाथचरित्रं समाप्तम् ॥ बीजा जिनेश्वरोनां चरित्रो तो ज्यां ज्यां कह्यां होय त्यां त्यांथी जाणी वा; परंतु श्री महावीर स्वामीना चरित्रने तो श्री धर्मघोषसूरि पोतेज चवे बे 1 निप्रिपरी सहचंमुं, संजग्गुवसग्गवग्ग रिनपसरं ॥ संपत्त केवल सिरिं सिरिवीर जिलेसरं वंदे ॥ ५ ॥ + अर्थ - परीषदना सैन्यने जीतनारा, उपसर्गना समूह रूप शत्रुना युथने मर्दन करनारा केवलज्ञान रूपी लक्ष्मीने मेलवनारा श्री वीर जिनेश्वरने हुँ वंदना करूं बुं. २ पूर्व भवना संबंधी आरंभीने श्री महावीर स्वामीनुं चरित्र श्री रुषदत्त ने देवानंदाना अधिकारने विषे कदेलुं बे; माटे अदियां तो श्री महावीर स्वामीने थयेला उपसर्गों कही शुं. ते या प्रमाणे ॥ श्री महावीरस्वामी चरित्रम् ॥ श्री वर्धमान स्वामी ग्रहस्थावासमां त्रीश वर्ष रहने पछी चोस - ए करेला महोत्सव पूर्वक दीक्षा लीधी. कोइ वखते फक्त बेज घमी दिवस बाकी हतो ते वखते पोतानी पासे रहेला बीजा साधुननी रजा लइ श्री व ईमान स्वामी पोते कर्मार नामना गामे गया; परंतु त्यां अंधारुंथर जवाथी गामनी बहार कायोत्सर्गे रह्या पक्षी गाम मध्ये पेसता एवा कोइ गोवालीयाए तेमने कह्युं. "हे देव ! हे प्रार्य ! तमे हमणां प्रा म्हारा बे वाबकाने जोता रहेजो.” एम कहीन ते तो गाममां गयो, पाबल वाबगान पण चरता चरता 4 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. बहु दूर जता रह्या, कारण पशुनने विवकीपणुं क्यांथी दोय ! हवे पेलो गोवालीयो गाममा जश्ने पागे आव्यो त्यारे तेणे वाउमा नहिं देखवाथी प्रन्नुने पूज्यु. “म्हारा वाउमा क्या ?" आम पूवा उतां प्रन्नुए तो उत्तर आप्यो नहिं ते नपरथी “आ ते पुरुष के बीजो!!” एम मनमां विचार करतो तेगोवालीयो आम तेम शोधवा लाग्यो. एवामां पेला वाउमान त्यां आवीने बेग. पठी गावालीयो फरतो फरतो पागे त्यां आवी वाग्मानने जो विचार करवा लाग्यो. “निश्चय आरोज म्हारा वाउमा हरण कस्या हता.” एम धारी कोपथी एक म्होटी शीला नपामी ते गोवालीयो प्रन्नुने मारवा माटे दोमयो. आ वात अवधिज्ञानश्री इंडे जाणी, तेथी ते तत्काल प्रनुनी पासे आवी नपसर्ग । करता एवा गोवालीयाने नक्तिथी निवृत्ति पमामयो. पठी वीर प्रन्नुने नम- : स्कार करीने इंडे कडं. "हे स्वामिन् ! आपने बहु नपसर्गो थवाना बे; माटे हुं। वार वर्ष पर्यंत आपनी पासे रदिश.” प्रनुए कह्यु. “हे इंश ! जे थवानुं होय ते थया विना रहेतुं नथी. वली तीर्थकरो तो परनिश्रायकरीने श्रेष्ट एवा झानने मेलवे ." ज्यारे प्रन्नुए आवी रीते इंश्ने ना कही त्यारे तो तेणे पोतानी मासीना पुत्र सिदार्थ नामना व्यंतरने प्रनुनी पासे रक्षण करवाने मुकी पोते स्वर्गे गयो. पठी बीजे दिवसे सवारे श्री महावीर स्वामी कुल्लाग नामना सनिवेसे . गया. त्यां बहुल नामना ब्राह्मणे तेमने बध्ना पारणे खीर वहोरावी. प्रनुए त्यांज ते ग्रहस्थाना पात्रमा पारगुं कर. ते एम देखामवाने माटे के, म्हारे सुपात्र साधुनने धर्मोपदेश करवो, पठी देवतानए “अहोदान ! अहोदान !! एम कहेता कहेता ते ब्राह्मणना घरने विषे सामावार क्रोम सोनयानी वृष्टि करी. पठी प्रन्नु मोराग नामना सनिवेश प्रत्ये समवसस्या. त्यां को तेमना पितानो मित्र दूजंतक नामनो कुलपति रहेतो हतो. तेणे प्रन्नुने वंदन करी अत्यंत हर्पित थइ अने तेमने रहेवा माटे स्थान प्राप्यु; परंतु प्रत्तु तो त्यां . एकज रात्री रहीने बीजे विहार करी गया. केटलाक दिवस पठी पहेला चोमासाना चार मास निवास करवाने माटे प्रन्नु पाग त्यांज आव्या अनेकुलपतिए श्रापेली एक कुंपमीमां रह्या. को वखते केटलीक गायो घास नहिं मलवाने लीधे कुंपमीना घासने खावा लागी. ते जोश तापसे गायोने निवारण लवाने लीक कुपनीमा रह्या. कोपाग त्यांज श्राव्या Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामीचरित्र. ( ३१ ). करता बता कुंपमीमा रहेला प्रभुने कह्युं के, "हे देव ! हे श्रार्य ! पक्षीन पल पोताना स्थाननी रक्षा करे बे तो तमे गायोथी नक्षण कराती पोतानीज कुंपमीने कम नथी रक्षण करता ? " तापसनां श्रावां वचन सांजली दयाना समुरूप प्र ते स्थानने प्रीयकारी मानी चोमासाना पंदर दिवस गया बतां पण पांहोने लइने त्यांथी चाल्या. ते श्रभिग्रहो या प्रमाणे - १ शरीर नपर राग रहित एवा म्हारे श्रप्रीति थाय तेवा स्थानके निवास करवो नहीं; २ निरंतर कायोत्सर्गमा रहेवुः ३ हमेशां मौन धारण करवुं, ४ हाथरूप पात्रमांज जोजन कर; ५ कोइ ग्रहस्थ वंदन करे तो पण तेनो सत्कार करवो नहीं. श्रा प्रमाणे पांच अभिग्रहोने धारण करी प्रभु प्रस्थिनामना गाममां प्राव्या. त्यां ते बीजा मासोए ना कह्या बतां पण शूलपाणियना मंदिरने विषे रह्या. हवे ए गामनुं नाम अस्थिगाम शाथी पमयुं, ते कहे बे. पूर्व प्रा गामनुं नाम वर्द्धमान हतुं. त्यां वेगवती नामे नदी हती. एनदी मां घणी वेलुं हती. एक दिवस धनदेव नामे सार्थवाद मालश्री नरेलां पांचसें गामांन सहित त्यां आवी चमचो. नदीमां वेलुं बहु होवाथी कोइ गाऊं सामे पार जइ शक्युं नहीं एटले एक जव्य बलदे पांचसे गामान नदीने सामे पार पहोचामयां; परंतु पोते तूटी गयो. बलदने तूटी गयेलो जासी धनदेव सार्थ - वाहतेने आजीविका सहित गामना माणसोने जलावी पोते पोताना नगर तरफ चाल्यो गयो. हवे पाबल नगरवासी लोकोए उनालानी रुतुमां तेनी घास पाणीथी सेवा करी नहीं; तेी ते बीचारो भूख तरसयी मृत्यु पामीने महाबलवंत शूलपाणी नामे यह थयो अने ते पूर्व जवनुं वैर संभारी क्रोधव मरकी विगेरेना रोगो उत्पन्न करी ते गामना प्राणीजने मारवा लाग्यो. लोकोए तेने बलीदान आपका विगेरेथी संतोष पमाग्यो एटले ते आकाशमां श्रदृश्यपणे रहने देवा लाग्यो के, “ में उत्पन्न करेला रोगश्री मृत्यु पामेला प्राणीजनां aft (anai) बनावेला पीठने विषे एक मंदिर करावो ने तेमां वृषन रुपे म्हारी मूर्ति स्थापो. " लोकोए तेना कहेवा प्रमाणे सघलुं करयुं अने शर्मा नामना ब्राह्मणने त्यां पूजा करवा राख्यो. ए उपरथी ए गामनुं नाम वर्धमान मटीने अस्थिगाम परुयुं वे मञ्जुतो वर्षातुमां निश्चय करीने प्र . १ * Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ t (३२) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्द्ध. हिंज रह्या. एवामां सायंकाले ईशर्मा ब्राह्मणे श्रावीने श्री वीरप्रभुने कयुं. " हे देव ! आर्य ! आप हिं रहेशो नहिं. कारण प्रा यक्ष मदा मत्सरवा लो े; तेथी आपने उपसर्ग करशे. " ईशर्मानां श्रावां वचन सांजलता बतां पण जाणे न सांजलता होय नहिं ? एम प्रनुतो यक्षनो नपकार करवाने माटे मौन धारण करीने कायोत्सर्गे त्यांज रह्या, पबी महा क्रोध पामेलो शूलपाणी यक्ष त्यां रहेला जिनेश्वरने जो अट्टाहासपूर्वक पिशाच, सर्प अने वाघ विगरेना रूपोने धारण करी प्रजुसामो दोमवा लाग्यो. ज्यारे श्रावा श्रावा - यंकर नृपसर्गोथी पण प्रतु कोन न पाम्या त्यारे तो दुष्टात्मा एवा ते यके प्रजुने बीजानी न सहन शके एवी (मायुं, कान, नाक, दांत, आंख, नख श्रने 'पुंठ ए) साते अंगने विषे वेदनान करी. या वेदनानथी पण ज्यारे प्रभु जरा प एग कोन न पाम्या त्यारे तो ते यह विचार करवा लाग्यो के, “ अरे ! श्रावा उपसर्गोथी पण दोन नहि पामेला प्रा मेरु पर्वतना सरखा कोण बे ? पबी तेणे अवधि ज्ञानथी जोयुं तो श्री जिनेश्वर एवा वीर प्रभुने जाएया; तेथी तो ते शांत चित्तवालो थर प्रजुने खमाववा लाग्यो. एवामां सिद्दार्थ नामना व्यंतरे त्यां प्रावीने ते शूलपाणी यने प्रतिबोध प्रमामयो. हवे प्रभु देशेन्यून एवा रात्रीना चार प्रहर उपसर्गोथी पीडा पाम्या; तेथी पावली रात्रीने विषे निशवश थया. एवामां तेमणे पाडली बे घमी रात्री रहि एटले आा दश स्वन्न दीगं. ते या प्रमाणे १ पोते इलो ताल प्रमाण नंचो पिशाच, श् बे कोकिलान (तेमां एक धोलो ने ३ बीजो विचित्र ) ४ पुष्यनी वे मालान, ५ गायोनो समूह, ६ सरोवर, पोतानी बन्ने भूजानुश्री तरी शकातो समुह, सूर्य, ए पोतानां आंतरमाथी विंटलाएलो मानसोत्तर पर्वत, अने १० मेरुपर्वत. " या दश स्वप्नांने जो भगवान् प्रनाते जाग्या एवामां तो जेणे दीक्षाने त्याग करी इती एवो श्री पार्श्वनाथ प्रभुनो शिष्य नृत्पल नामनो निमित्तियो त्यां प्रवी प्रजुने नमस्कार करीने हर्पथी वोल्यो. “हे स्वामिन् ! आपे दश स्वप्नांन जोयां बे, तेनुं फल सांजलो. १ पे जे ताल प्रमाण पिशाच हयो एनुं फल एम वे के, हवे आपने मोह श्रो नहीं ? धोला का किलाने जोवाथी आपने शुकलध्यान थड़ो. ३ 1 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामीचरित्र. (३३) विचित्र कोकिलाने जोवानुं फल एम ने के, आप हादशांगीनी प्ररुपणा कर शो. ४ गायना समूहना दर्शनथी तो चतुर्वर्ग संघनी स्थापना रूप फल सूच२वाय . ए वली शरोवरना दर्शनथी आपनी चार निकायना देवतान सेवा करशे. ६ नूजाथी तरी शकाता समुनां दर्शन, फल तो एवं ने के, श्राप संसार समुज्ने सुखेथी तरशो. ७ सूर्यनुं दर्शन तो निर्मल एवं केवलज्ञान रूप फल आपे , वली हे जिनाधिश ! आपे पोताना आंतरमांधी विंटलाएला मानुषोतर पर्वतने जोयो तो आपना यशथी त्रण लोक विंटा जशे एम जणाय ने अने ए मेरु पर्वतना दर्शनथी आप सिंहासन नपर विराजमान था धर्मदेशना आपशो; परंतु हे विनो! आपे पुष्पनी बे मालान दीठी तेनुं फल शुं हशे? ते हुं जाणी शकतो नथी.” उत्पलनां आवां वचन साजली प्रन्नुए कह्यु. “हे नत्पल ! पुष्पनी बे माला, फल एवं सूचवाय डे के, हुं मनुष्य, देवता अने असुरोनी पर्षदामां साधु अने श्रावक ए बंने धर्मने प्रकाश करीश." पठी प्रन्नु त्यां एक पके न्यूँ एवं प्रथम चोमासु पूर्ण करी मोरागसन्नि वेशे गया अने त्यां गामनी बहार कायोत्सर्गे रह्या. त्यां पण सिक्षार्थ व्यंतर प्रन्नुना मुखमां निवास करी लोकोने नूत, नविष्यादिक कहेवा लाग्यो. ते एटलाज हेतुथी के, लोको त्यां प्राचीने प्रनुनी स्तुति करे. पठी मनुष्यनी मध्ये महिमावंत श्रयेला वीर प्रनुने जो तेमना नपर इावंत श्रयेलो अखंदक नामनो को पाखंमी निमित्तियो त्यां आव्यो अने सर्व प्रकारना पूजनथी व्याप्त तथा अधम एवो ते हाथमां तृण लश्ने प्रनुने पूबवा लाग्यो के, "आ तृण वेदाशे के नहिं, ते झट कहो ?” आ प्रमाणे तेणे प्रश्न कस्यो एटले सिक्षार्थ देव के, जे प्रन्नुनां मुखमां अदृश्यपणे रहेलो हतो तेणे नत्तर आप्यो के, “ते तृण बेदाशे नहि." पनी अखंदक ते तृणने दवा लाग्यो एटलामां इं३ तेनी आंगली बेदी नांखी. पठी प्रन्नुने विषे अत्यंत मत्सर धरता एवा ते अबंदकने विषे महा क्रोध पामेला सिमर्थ व्यंतरे लोकोनी पागल कह्यु के, “हे लोको! आ चोर ,” लोकोए कडं. “हे मुनि! ए आपे शी रीते जाण्युं ?” सिक्षार्थे कहूं. “हे जनो ! एणे वीरघोष नामना पुरुषनो दशपल प्रमाणनो एक गोलाकार वाटको चोरीने खजुरीनी नीचे पश्चिमदिशामा हस्तप्रमाण जोयमां Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. माट्यो .” लोको ते वाटकाने लक्ष आवीने फरी पूरवा लाग्या. "हे मुनि! एणे बीजुं शुं करयु ?" लिहार्थे कj. “ एणे इंशार्मा नामना ग्रहस्थना वोकमानुं नक्षण करीने तेनां अस्थि (हालकां) बोरमीनी नीचे लकरमामां माटयां .” लोकोए ते जोइने खरेखरो निश्चय कस्यो, बली तेमणे त्रीजीवार अबंदक संबंधी वात मुनिने पूजी एटले तो सिक्षार्थे कडं के, "त्रीजी वाततो तेनी स्त्री कहेशे, हुं नहि कहुं.” पी सर्वे मागसो विस्मय पासी अबंदकने घरे जश्ने तेनी स्त्रीले पूवा लाग्या. ए उपरथी तेनीस्त्रीये अत्यंत क्रोध करीने कां के, “अरे लोको ! ए महापापी पोतानी व्हेलने नोगवे ने अने म्हारी क्यारे पण हा करतो नथी, तेथी तेनुं मोढुं जोवू पण योग्य नथी.” पीतो लोकोथी महा निंदा पामेलो ते प्रतुनी पासे जश्ने कहेवा लाग्यो के, “हे दयानिधि ! आपतो अहिंथी विहार करी जशो, पण हुं क्यां जईश? " पठी प्रनुए पोतानो निवास अबंदकने अप्रीतिकर थयो जाणी त्यांथी विहार करयो; परंतु पोताना पितानो मित्र को ब्राह्मण तेमनी पाउल चाल्यो, रस्ते दक्षिणवाचाल अने उत्तरवाचाल नामना गामोनीमध्ये तेणे सुवर्णवालुका नामनी नदीमां कांटा नपर रहेढुं वस्त्र लीधुं अने प्रत्तु तो उत्तरवाचाल गामनी पासे महावनमां कनकखल नामना कोइ तापसना आश्रममां मेरु पर्वतनी पेठे निश्चल थइ कार्योत्सर्गे रह्या. हवे ते वनमां सहा जयंकर एवो चंग कौशिक नामनो दृष्टिविष सर्प रहेलो हतो. ते अर्हत प्रलुने जोइ अत्यंत क्रोध - करी पोताली विषमय दृष्टिथी तेमने जोवा लाग्यो; पण तेनुं वष्टिविध स्वामिना अंगने विवे चम्यु नहि तेश्री तो तेणे श्री वीर प्रत्लुने दंश दीधो, तो पण प्रनुने विष तो चम्युंज नहि.. पठी हाहाकार करतो ते सर्व समर्थ एवा वीर प्रजुने जोतो तो विचारवा लाग्यो के, "अहो! आ पुण्यवंत एवा कोण महात्मा ठेके, जे म्हारी विषमय दृष्टिथी पण जस्मरूप न या ? " आम विचार करतो ते संर्प जेटलामा प्रजुना सामुं जूए के तेटलामां तो तेनी दृष्टिनुं सर्व विष शांत था । गयुं. पाठी “हे चम कौशिक सर्प ! तुं शांति कर." आवां प्रजुनां वचन सां- ' नलीने विचार श्रयो के, "अहो! में आवी वाणी को ठेकाणे लांजली अने आयु रूपस को ठेकाणे जोयुं ." अाम विचार करता करतां तेने Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामीचरित्र. (३५) जाति स्मरण ज्ञान नत्पन्न प्रयुं अने पोताना पूर्व नको पण तेणे जोया के, "हुँ पूर्व नवने विधे साधु हतो. में लिया लेवा जतां एक देमकी मारी हती.. वे सायंकाले प्रतिक्रमणमां बालशिष्ये भने ते संबंधी आलोयण लेवार्नु कह्या उतां में लीधी नहि; परंतु नसटो हुँ क्रोध करी तेने मारवा दोमयो. रस्तामांअंधासे होवाथी एक स्थंज साये अश्रमायो, तेथी मृत्यु पामीने हुं जोतिषिक देवता थयो. परी त्यांची चवीने या वनने विषे पांचशे शिष्योना परिवारवालो ता-. पस थयो. एक दिवस राजकुमारने आ अमारा वनमांथी फलफुल विगेरे ल जतां जोयो, तेथी हुँ फरसी लश्तेने मारवा दोमयो; पण रस्तामा अंधारो कूवो आववाश्रीलेमा पमयोअने फरशी म्हाराशरीरने वागी,तेथीहुँ मृत्युपामीले आज वनने विषे दृष्टिविष सर्परूपे उत्पन्न भयो."आप्रमाणेपोताना पूर्व जवनेसंजारी सर्पकहेवालाग्यो के,"अहो! हुम्हारो मनुष्यन्नव वृथा हारी गयो."पठी सर्प प्रनुने खमावी, अनशन लई, राफमामां मुख राखी अने शरीरने तेथी बहार राखीने रह्यो. नगवान पण तेना नपर कृपा करीने त्यांज रह्या. पनी गोवालीयान ते सपने पुरयीज पथ्थर विगेरे मारवा लाग्या, तो पण ते जरा पण चलायमान अयो नहि एटले. तो ते सौतेनी पासे आवीने लाकमीनथी मारवा लाग्या, तोपण ते सर्प कोश्ने दंश करयो नहि.पी तोसर्व गोवालीयानये नगरमां जश् तेनी यथार्थ वात कही एटले तोलोको त्यां आवी ते सर्पगें पूजन तथा वंदन करवा लाग्या. वली ए रस्ते थश्ने घी वेचवा जनारी स्त्रीयोए लक्तिथीं आदर पूर्वक तेना शरीरने विषे घीनो लेप कस्यो. आम करवाथी तो. घीना सुगंधने लीधे पिपीलिका (कीमि)योए तेनुं जहण करयु. एथी एक पक्ष सुधी पीमा जोगवी ते सर्प मृत्यु पामीने आठसे देवलोके देवता रूपे नुत्पन्न भयो, पली प्रतु उत्तरवाचाल गाममां गया. त्यां तेमणे नागसेन श्रावकने घेर पक्षने, अंते खीरथी पारगुं करयुं. त्यां पंचदिव्य प्रगट यां अने देवताए सुवर्णनी वृ. ष्टि करी. पनी श्वेतांबी नगरीने विषे पण श्रावकधर्मी प्रदेशी राजाए पण आदरथी प्रतुनी पूजा करी. पठी सुरनिपुर प्रत्ये जता एवा नगवानने रस्तामा प्रदेशी राजाना वैशना बीजा पांच राजान मल्या अने तेमणे तेमने वंदना करी. त्यांथी श्री वीरप्रन्तु सुरनिपुर प्रत्ये आवीने घणा नपसर्गोना समूहले सहन करवा माटे Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. गंगानदीमां नावने विषे बेग. एवामां शुकन जागवामां चतुर एवा खेमिल नामना पुरुषे घुवमना शब्दने सांजलीने सिध्यात्र नामना म्होटाखलाशीने का के, “हे सिध्यात्र! म्हारां वचन सान्नल.आजे समुश्मा मरणांतकारीसह विघ्न अशे; परंतु आ महासाधुना महिमाथी मंगल थशे.” खमील आ प्रमाणे कहेतो हतो एवामां वाहाण समुस्ते वेगथी चाल्यु. हवे लगवाने त्रिपृष्ट वासुदेवना नवमां जे सिंहने मास्यो हतो ते हवणां सुदंष्टनामे नागकुमार देवता थयो हतो. तेणे नावमां बेठेला प्रचने जोया; तेथी, ते पूर्वना वैरने संन्नारी श्री वीरप्रनुने हवा माटे वहागने मोलावा लाग्यो. एवामां प्रन्नुने नपसर्ग प्राप्त थयो जागी कंबल अने संबल नामना बे देवतान तत्काल त्यां आव्या अने तेनए अत्यंत दुर्बल एवा सुदंष्ट्र नागकुमारने जीतीने प्रन्नुनो महिमा वधारयो. ते कंबल अने संबल बन्ने देवतान कोण हता ? तेनी अहिं कथा कहे . मथुरा नगरीने विषे महा धनवंत जिनदास नामे श्रावक वसतो हतो. तेणे पांचमा व्रतनी अपेक्षाये चतुष्पदनु पञ्चखाण करयुं हतुं. आनीर लोकोनी साये क्रय विक्रय करनारा ए जिनदासे एक दिवस को आन्नीरने विवाह संबंधि उपकरण आप्यां. केटलाक दिवस पनी पेलो आनीर जिनदासने घेर आव्यो अने “आ म्हारा कंबल अने संबल नामना बे वृषन्न तमे राखो,बीजा नहि.” एम कहीने पेला विवाह संबंधी लीधेला नपकरणना बदलामां बे बलद छठने घेर बांधी गयो, शेठ ते बन्ने बलदोने निर्दोष आहार खवरावे अने आउम चौदा विगेरे तिथीने विषे अरिहंत प्रन्नुनो धर्म संन्नलावे. आ प्रमाणे शेठ नां मुखथी धर्म सन्निलता एवा ते वने बलदो लघु कर्मपणाने लीधे शुक्ष एवा श्रावक धर्मने पाम्या. पठी ज्यारे शेठ आठम चौदश विगेरे तिथीनने विषे पौषध करे त्यारे ते वन्ने बलदो पण उपवास करे. एक दिवस शेग्नो कोइ मित्र नंमिर यदनी यात्राये जवानो हशे. तेणे शेठने पूग्धा विनाज ते पुष्ट वलदोने रथमां जोमी रस्ते वहु दोमाव्या; तेथी तन तूटी गया. पठी यात्रा करीने पाठा यावी मित्रे ते बन्ने वलदो शेग्ने घेर - बांध्या. शेठे पण पुत्र समान पालेला ते वलदाने तूटी गयेला जोइ अत्यंत खेद करता उता औषध करवा मांमधु; परंतु तेश्री तेनने जरा पण गुण थयो नहि. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामी चरित्र. ( ३७ ) पीते बने बलदो अनशन करें। श्रने शेग्ना मुखश्री पंच नवकार सांगली काल धर्म पामीने नागकुमार देवतापणे उत्पन्न थया ते एज कंबल ने संबल देवतान के, जेम प्रजुने सुदंष्ट्रयकी थयेला नृपसर्गो अवधि ज्ञानयी जाली भक्ति पूर्वक तत्काल त्यां प्रवीने निवारघा. हवे प्रभु गंगाने तीरे इर्यावही प्रतिक्रमी जेटलामां चाल्या तेटलामां पावल of को एक सामु शास्त्रनो जाए पुष्प नामनो पुरुष आव्यो. ते त्यां सार्गने विषे चक्र, ध्वजा, अंकुश विगेरे श्रेष्ट लक्षण युक्त प्रजुनां पगलां जोइ विचारवा लाग्यो के, "आ कोइ चक्रवर्ती जाय बे." एम धारी ते प्रजुनी पाबल चाल्यो. पी ते अनुक्रमे प्रतुनां पगलां जोतो जोतो स्थूणा नामनी नगरीये पहोच्यो. त्यां तो तेणे नगरनी बहार वस्त्र रहित कायोत्सर्गे नजेला मनुने जोया एटले तो ते विचारवा लाग्यो के, “ अहो ! म्हारुं सामुदिक शास्त्र वृथा थयुं." आ प्रमाणे ते पुष्प खेद करतो हतो, एवामां ते वात अवधिज्ञानथी जाली इं त्यां आव्यो ने प्रभुने प्रणाम करी पुष्पने कहवा लाग्यो के, " हे पुष्य ! तुं वृया खेद न कर. कारण, ए धर्म चक्रवर्ती बे. एमना शरीरने विषे पण गायना दुध समान नज्वल वर्णवाला धर्म चक्रवर्तीनां चिन्हो बे.” आवां नां शुद्ध वचन सांजली अत्यंत प्रसन्न ययेलो पुष्प श्री वीर प्रजुने जक्तिथी प्रणाम कपोताने घरे गयो. दवे बीजा चोमासाने विषे प्रभु राजगृह नगरमां वणकरनी शालाने विषे रह्या. त्यां कोइ एक पृथ्वी नपर जमतो अने जेणे दाथमां चित्रनो पह धारण करो दतो एवो मंखलीना पुत्र गोशालो प्रथम श्राव्यो हतो. गोशालानी उत्पत्ति एम बे के सरवण नामना सन्निवेशने विषे मंखलि नामे कोइ मंख रहे तो दतो, तेने सुना नामे वहाली स्त्री हती. एक दिवस ते सुनाये को एक ब्राह्मणनी घणी गायोवाली गोशालामां पुत्र प्रसव्यो. ते उपरथी माता पिता पुत्रनुं नाम " गोशाल" पारुयुं. 7 पी विशुद्ध अध्यवसायवाला प्रजुने मासखमणे विजय शेठे हर्षथी कूर विगेरेी पारं कराव्यं एटले तेना घरने विषे पंच दिव्य प्रगट थयां. ते जोड़ने आश्चर्य पामेला गोशाले तीर्थपति एवा श्री वीर प्रजुने कह्युं के, " हुं आपनो शिष्य बुं.” पबी वीजा पारणाने विषे श्री जिनेश्वर प्रजुने श्रानंदथी रोमांच Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वाई. युक्त थयेला दोठे पक्वान्नश्री प्रतिलाभ्या. त्रीजा पारणे नंद शेठे सर्वोत्तम एवा परमान्नी प्रजुने पारणुं कराव्यं. पटी चोथे पारणे तो प्रभु कुल्लाग नामना सन्निवसे गया. त्यां बहुल नामना ब्राह्मणे प्रजुने खीर वहोरावी ने देवताए करेला पंच दिव्यश्री तथा सुवर्ण वृष्टि विगेरेथी पोतानुं घर तथा पुण्यराशीश्री पोतानो आत्मा पूर्ण कस्यो. आवां आवां श्राश्वर्य जोइ चकीत थ गयेलो गोझालो तो पोतानी उपधीने दूर मूकी, मस्तक मुंगावी अने वेश धारण करीनें प्रभु पासे आवी कहेवा लाग्यो के, “हुं पण दिक्षीत थयोबुं, माटे थापनो शिप्य कुं.” एम कही ते प्रजुनी साथे फरवा लाग्यो. एक दिवस प्रभु गोशाला सहित स्वर्णखिल नामना गाम प्रत्ये जता हता; त्यां गामनी बहार केटलाक गोवालीयाने खीर रांधता जोइने गोशालाए श्री वीर प्रजुने कर्तुं के, " हे जगवन् ! प्रापणे अहिं जोजन करीए.” त्यारे सिहा क. " ए खीरनुं पात्र हवणां फुटी जशे " पढी गोशालो गोवालीयाने कवा लाग्यो के, " हे गोवालो ! तमारे या खीरनां पात्रनुं यत्नश्री रक्षण कखुं. कारण के, प्रा प्रभु कहे वे के, ते हवणां फुटी जो.” पछी गोवाली यानएते पात्रनुं यत्नश्री रक्षण करयुं; तो पण ते फुटी गयुं. ते जोइ गोशालो कदेवा लाग्यो के, "जावी अन्यथा श्रतुं नथी." एम कहीने पबी तेणे नियतवा - दीप अंगीकार करयुं. पी जगवान् विहार करता करतां ब्रह्मगाम प्रत्ये गया. त्यां ते गाममां वे पाटी हती. एक पाटीनो अधिपति नंद नामनो ब्राह्मण हतो ने बीजी पाटीनो अधिपति तनो जाइ उपनंद नामनो हतो. प्रतु नंदनी पाटीमां गया. त्यां नंदे तेमने खीरश्री पार कराव्यं अने गोशालो उपनंदनी पाटीमां गयो, त्यां नृप नंदने घेर तेने कोइ दासी ये अनादरथी टाढूं अन्न व होराव्यं, तथी अत्यंत क्रोध पामेलो ते गोशालो टाढा अन्नने ते खीना मस्तक नपर फेंकी कडेवा लाग्यो के, " जो म्हारा धर्मगुरुनुं तपोतेज होय तो या व्हारु घर बली जान .!” पी प्रजुना अतिशयनो नद्योत करवाने पर्थे सुकृतना समीपपणाथी ते वखते देबताए अर्धा गाम सहित तेनुं घर वाल्युं. वे प्रजुए त्रीजुं चोमासु ववे मासनी तपस्याए चंपा नगरीमां करयुं, त्यां पार करीने कोल्लाग शन्निवेशे जर त्यां एक शून्य घरमां तेंमले कायो Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामीचरित्र. (३५) त्सर्गे निवास करचो. गोशालो बारणे रह्यो एवामां ते गामना राजानो पुत्र सिंहरण विद्युन्मति दासीनी साथे त्यां कीमा करवा आव्यो. तेने जोड्ने दुष्ट शुध्विालो गोशालो हश्यो; तेथी सिंहरथे तेने खूब मारयो, गोशालो प्रधुने कहेवा लाग्यो, “हे स्वामिन् ! मने मारता एवा आ राजपुत्रने तमे केम ना कहेता नथी?” सिहार्थे उत्तर आप्यो के, “तें एवं शा माटे करयु.” परी प्रनु पाशलक नामना सनिवेशे जइ त्यां एक शून्य घरमां कायोत्सर्ग रह्या. गोशालो पण साथेज हतो, तेथी ते त्यां पण तिलका दासीनी साथे क्रीमा करीने ते शून्य घरमांयी निकली जता एवा स्कंद नामना कत्री कुमारने गोशालो हश्यो; तेथी तेणे पण गोशालाने खूब प्रहार करयो, पी नगवान् त्यांनी चंपा नगरीना रमणीय नद्यानने विषे कायोत्सर्गे रह्या अने त्यांची कुमार नामना सन्निक्शे जर त्यां रह्या. एवामां श्री पार्श्वनाथ प्रत्तुना गुणवंत शिष्य श्री मुनिचं मूरि कूपनय नामना कुंजारना घरे केटलाक साधुन सहित रह्या हता.तेमने जो गोशाले पूज्यु के, “तमे कोण गे?".तेलए कां. “अमे निग्रंथो (साधुन) बीए." ते सांतली गोशाले कडं. “अहो तमे क्या ? अने म्हारा धर्माचार्य गुरु क्यां ? साधुए कह्यु. “ जेवो तुं ने तेवो त्हारो गुरु पण जम हशे. "मुनिननां आवां वचन सांजली अत्यंत क्रोधातुर श्रयेला गोशाले कडं के, "अरे महा मूढो!जो तमे म्हारागुरुनी नींदा करोगे तो तेम्हारा गुरुना तपथी आतमारो आश्रम तुरत नस्मरूप थइ जान.” साधुनए कडूं. "अमने कशोलय नथी." पठी गोशाले प्रनु पाले आवीने सर्व वार्ता निवेदन करी एटले सिधार्थे का. “शुइ चारित्र पालनारा ए साधुन नस्मरुप थाय नहीं. पनी निजकटपनी तुलना करता बता श्री मुनिचं सूरि रात्रीये कार्योत्सर्गे रह्या हता तेमने कुंनारे चोर बुध्थिी गले पकमीने खूब प्रहार कस्यो. एटलामां मूरिने अवधिज्ञान नत्पन्न अयुं अने ते मरण पामीने देवलोकने विषे देवता रूपे नत्पन्न अया. देवताए महिमा कस्यो तेनो प्रकाश थयो ते जो गोशालो तत्काल प्रन्नुने कहेवा लाग्यो के, “हे विनो! जून जून!! पेला साधुननी वसति बलवा लागी." पठी सिझर्थे सर्व वार्ता निवेदन करी एटले तो ते गोशालो अत्यंत विस्मय पामी गयो. वली सुगंधि जलनी वृष्टि अने नत्तम पुष्पनी वृष्टी जो वधारे क्रोधातुर श्रयेलो गोशालो सूतेला बीजा साधुन पासे जइ या प्रमाणे क Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. देवा लाग्यो के, “अरे साधुन ! तमे निश्चिंत चित्तवाला थश्ने केम सूता गे?' श्रा तमारा उत्तम गुरुतो काल धर्मने पामेला ." आम तिरस्कार करी गोशाले ते सर्वे साधुनने जगामया. पनी अत्यंत खेदातुर श्रयेला ते सर्वे साधुनए गुरुनी अंत्य क्रीया करी. पठी प्रन्नु त्यांथी चोराकसनिवेशे जश्ने त्यां कायोत्सर्गे रद्या. अहिं चोरलोकोने शत्रु तरफथी घणी बीक हती अने गोशालो गाममा फरतो इतो; तेथी पाप वृत्तिवाला चोर लोकोए तेने हेरु जाणी बंधनश्री बांधी केदखाने ना-' ख्यो, प्रभुने पण एमज करचुं, परंतु कोश् नत्पल नामना ब्राह्मणनी सोमा अने जयंती नामनी बे व्हेनोए गोशालाने तथा प्रन्नुने गेमावी तेननो नपसर्ग दूर करयो. हवे प्रनु त्यांथी विहार करी चोडुं चोमासु पृष्ट चंपा नगरीये र.. ह्या. त्यां तेमणे गामनी व्हार कायोत्सर्गे रही चार मास नपवास वमेज निर्ग- । मन कल्या. त्यांथी जिनेश्वर प्रन्नुए कयंगल नामना सनिवेशे जश् दिव्य एवा देवमंदिरमां कायोत्सर्गे निवास करयो. त्यां दारि नामना स्थविर पाखंमिन पोत पोतानी स्त्रीन सहित जागरणनो दिवस होवाथी नृत्य करता हता,तेनने जोड्ने गोशालो बहुज इश्यो एटले ते पाखंमिनए तेने वरसाद वरसतामां वहार काढी मूल्यो; परंतु "आ प्रजुनो लक्त .” एम धारीतेने पागे आएयो, हवे प्रन्नु श्रावस्ति नगरी प्रत्ये जश् त्यां गामनी बहार कायोत्सर्गे रह्या. . ते वखते गोशाले प्रजुने पूठ्यु के, “आजे मने शुंनोजन मलशे ?” सिझार्थे उत्तर आप्यो के, “आजे तने मनुष्यनुं मांस मलशे.” नगवाननां आवां वच- , न सांजली गोशालो श्रावकनां घरे फरतो फरतो पितृदत्त नामना श्रावकने घेर वद्दोरवा गयो. हवे त्यां एम वन्युं हतुं के, ते श्रावकनी स्त्री सुनाये एक दिवस शिवदत्त नामना लिमितियाने पूठ्युं के, "हे ना! म्हारे बालको जीवतां नयी, तो करवायी जीवतां रहे ते तुं कहे ?" तेनां आवां वचन सान्नली निमितिका कह्यु के, "जो तुं त्हारा मृत्यु पामेला गर्जनी श्रेष्ट खीर बनावी तपस्वी ने वहोरावे तो वालक जीवतां रहे. पठी ते स्त्रीये पोताना मृ- .. त्यु पामेला वालकनी खीर वनावी दासी पासे गोशालाने वोलावी तेने ते वहोराव अने आपना नयश्री घरनुं वारगुं फेरवी नाखीने रही. गोशालो पण ग्वीर जमीने पठी प्रन्नुने कहेवा लाग्यो के, “ आपनुं वचन मिथ्या श्रयु.” Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामीचरित्र. ( ४१ ) सिद्धार्थे क. " अरे मूढ ! म्हारी वाली क्यारे पण मिध्यान होय. जो तने विश्वास न होय तो टी करीने जो. " गोशालाए तेम करयुं तो तेथे बा - लकना बालनखो (नखना करुकाल) दीग. आधी अत्यंत क्रोध पामेलो गोशालो सुनाना घरे गयो; परंतु तेथे घरनुं बारणुं फेरवी नाखेलुं होवाथी तेनलखी शक्यो नहि. पठी तेथे सर्व पाको बाल्यो. पबी हलिक नामना गामने विषे हरिवृनी नीचे कायोत्सर्गे रहेला प्रजुना चरण त्यां कोइए करेला अभिश्री दाऊया श्रने बलता एवा अग्रिने जोइ गोशालो तो त्यांथी नाशी गयो. पबी जगवान् अंगलागासे प्रावी विष्णुना मंदिरमां कायोत्सर्गे रह्या. त्यां गोशाला प्रांखो काढीने बालकोने जय पमानवा लाग्यो, तेथी ते बालकोना पितानए तेने बहु मारीने पती प्रजुनो दास जाली बोमी दीधो. हवे त्यांथी प्रतुए प्रवर्त्तक नामना गाये जइ बलदेवना मंदिरमां कायोत्सर्गे निवास कस्यो. त्यां परा गोशालो पोताना मुखने पोलुं करी सर्व बालकोने बीवराववा लाग्यो; ते उपरथी ते बालकोना पितानए गोशालाने "प्रा को पिचाश वे." एम धारी मारवानो विचार करयो ने प्रजुने पण ते दुष्ट पापवृत्तिवालानए जेटलामां बांध्या तेटलामां तो मंदिरनी अंदर मूर्तिरूपे वेळेला बलन हल उपाफ़ी उठीने तेमने बोमाव्या. त्यांथी प्रजुए चौरक नामना सन्निवेशे कायोत्सर्गे निवास करचो. त्यां गोशालो को ग्रहस्थना Hina रंधा जोजन जोइ गुप्तरीते वारंबार ग्रामतेम जोवा लाग्यो; तेथी लोको तेने चोर धारी दंग विगेरेथी प्रहार करवा मांगचो. ते वखते गोशालाए क के, " तमारो मंरुप म्हारा स्वामीना तेज वमे नस्मरुप थइ जाल.” आ प्रमाणे गोशाले शाप प्राप्यो एटले ते तेमज युं. त्यार पी भगवान् कलंबुक नामना सन्निवेशे गया. त्यां मेघ अनेकालहस्ति नामे बे नाइन वसता हता. कालहस्तिए रस्तामां प्रजुने तथा गोशालाने जोइ क्रोधथी तेमने उपसर्ग करी तथा वांधीने पोताना नाइ मेघनी पासे मोकल्या; परंतु ए मेघे तो पूर्वे प्रभुने कुंम गामसां जोया हता; तेथी तेएो तो नम्रता पूर्वक तेमने बोमी दइने पूज्या. his add नार्य लोकोए करेला एवा नाना प्रकारना उपसर्गने सहन करीने पूर्णकलश नामना गामे जता एवा जिनेश्वर प्रजुने रस्तामां बे म्होटा ६ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. चोर मल्या. पठी चोरो “श्रा आपणने अपशुकन थयां.” एम धारी तेन तत्काल प्रचुने मारवा दोमया; परंतु इंडे वज व तेननेज मारी नाख्या. त्यार परी सरल स्वन्नाववाला नगवान पांचमुं चोमासुं नकिा नगरी (लहिलपुर)मा रह्या. त्यां तेमणे चोमासी तप कलो. पारणाने अंते धर्म ध्यानमां परायण एवा प्रत्नु त्यांथी कदली नामना गामने विषे जश्ने कायोत्सर्गे रखा. त्यां गोशालो दाहिं अने जातर्नु भोजन करतो तो जरा पण तुप्ति न पाम्यो; तेयी लोकोए तेने बहुज धिक्कास्यो. लगवान् त्यांथी जंबूखंग नामना गामे गया. त्यां परा मंखलिनो पुत्र ( गोशालो) बुध अने चोखानुं भोजन करतो तो पण अतृप्त रह्यो; तेथी लोकोए त्यां पण तेनो बहु तिरस्कार करचो. त्यांथी प्रनु तंबापुरे गया. त्यां श्री पार्श्वनाथना शिष्य नंदिषेण घसा शिष्यो सहित कायोत्सर्ग रहेला हता. तेमने को आरक्षकनो पुत्र के, जे चोर हतो तेणे बुधिपूर्वक बागवमे मास्वा; तेथी तेमने अवधिज्ञान नत्पन्न अर्यु एटले मुनिचंनी पेठे देवता त्यां आववा लाग्या, तेमना तेजनो प्रकाश जोश गोशालो प्रचने कहेवा लाग्यो के, “जून ! पेला साधुटनो नपाश्रय बले .” त्यांथी प्रन्नु कूपिक नामना सन्निवेशे गया. त्यां तेमने “ आ को हेरु ठे." एम धारीने लोकोए बांध्या; परंतु पार्श्वनाथ प्रनुनी पासे रहेनारी तेमनी शिष्यणी प्रगटलाये अने विजयाये तेमने गेमकाव्या. । प्री गोशाले प्रतुने कां के, “हे प्रश्नो! तमने बहु नपसर्ग प्राप्त थाय गे, माटे हवे हुँ तमाराधी जूदो रहीश.” एम कही नगवानने मूकी पोते जूबा मार्गे चाल्यो, रस्तामा केटलाक चोरो मल्या. तेलए तेनी पासे नार उपभाव्यो, तेथी गोशालो हसीने (मामा) एम चोर लोकोने कहेतो तो मनमा विचार करवा लाग्यो के, “जो आ लोको मने गेमीदे तो हुँ तुरत प्रनुनी पासे जानं. कारणके, तेमनी पासे जवाथी सने कांश परान्नोजन मलशे." एम बारी गोझालो पोतानी दृष्टिने आमतेम फेरवतो उतो प्रजुने जोवा लाग्यो;परंतु प्राणी नपर अनुग्रह करनार लगवंत तो वैशाली नगरी प्रत्ये लुवारनी शालामां कायोत्सर्गे रह्या हता. लुवार ठ महिना थया मांदो हतो, पण ते दिदनेज साजो श्रयेलो दोवानी ते पोतानी शालामां कार्योत्सर्गे नन्नेला प्रनुने जो क्रोधी घण ल मारवा दोमयो, आवो घोर उपसर्ग प्राप्त यतो जोश Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामींचरित्र. (४३), तत्काल आवीने तेनाज घणवझे ते लुवारने मास्यो.. त्यांथी जगवाने ग्रा| माक सनिवेशना बिनीतक लद्यानने विषे निवाल कस्यो. त्यां तेमनी यके -- - त्तम प्रकारे पूजा करी. प्रतु त्यांथी शालिशीर्ष गामना उद्याने रह्या. त्यां कि पृष्ट वासुदेव नवमां अपमान करवायी जे अंतःपुरनी स्त्री मृत्यु पामीने व्यंतरी थर हती ते पूर्वना वैरथी अत्यंत क्रोध पामती उती तापसीनुं रूप धारण करीने जलथीनीना एका पोताना जटाना नारथी प्रनुने सिंचन करती उती अत्यंत पवन नाखवा लागी. आ वखते माघ मास हतो; तेथी प्रलुने बहु शीत नपसर्ग सहन करवो पमयो. पठी विशुः परिणामवाला प्रनुने उहने तपे परम अवधि नामनुं ज्ञान नुत्पन्न अयुं. ते वखते त्रण प्रहर सुधी प्रजुने नुपसर्ग करवाथी अत्यंत खीन श्रयेली व्यंतरी शांतपणाथी प्रजुने नलखीने सर्व शहिपूर्वक महोत्सव करवा पूर्वक स्तुति करवा लागी. पली बहा चोमासाने विषे प्रलु नश्किा नगरीने विषे गया. त्यां तेमणे चातुर्मासिक तप करीने घसा अन्निग्रहो धारण कस्या. उ मासने अंते फरीथी गोशालो आवीने प्रक्षुने म-- ख्यो. नगवाने पण चातुर्मासने अंते कायोत्सर्गने पारीने मगध देशमा निर्विघ्न पणे विहार करता करता सातमा चोमासाने विष आलंलिका नगरीथे, जइ गामनी व्हार कायोत्सर्गे निवास करयो. चातुर्मास पूर्ण श्रया पठी कायोत्सर्ग ने पारी त्यांथी श्री अरिहंत प्रनु कुंमक नगरे. गया. त्यां तेमणे विष्णुना मंदिरमा कायोत्सर्ग कस्यो, गोशालो पण विष्णुनी मूर्तिनां मुख पागल पो. तानी पुंठ राखीने रह्यो. प्रनाते पूजारीये प्रावीने तेने बहु मास्खो. त्यांची प्रनुए विहार करी मर्दना गाममां आवीने बलनना मंदिरमा एकबाजुए कायोत्सर्ग कस्यो. त्यां परा गोशालो बलदेवना मुख आगल पोतानुं पुरुष चिन्ह राखी नन्नो रह्यो; तेथी त्यां पण पूजारीये तेने बहुज कूटयो अने पनी गेमयो. पर बहुशाला नगरना शालवन नामना नद्यानने विषे कायोत्सर्गे रहेला प्रन्नुने कटपूतना नामनी व्यंतरीये महा नपसर्गो कस्या, परंतु प्रनुने शांत चितवाला जाणीने शांत श्रयेली ते व्यंतरीये हर्षथी प्रनुनो म्होटो महिमा कस्यो.. ' त्यांथी नगवान् लोहार्गल नगरने विषे गया. त्यां चोकी करनार । पुरुषो “आ चोर ले.” एम धारी गोशाला सहित प्रन्नुने बांधी जितशत्रु राजा पासे ले गया; परंतु त्यां कोई प्रश्रमयी सेवा माटे आवेला नत्पल नामनाप Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. रिव्राजके तेमने गमाव्या. त्यांधी लगवाने पुरिमताल नगरने विषे कायोत्समें निवास कस्यो. एवा वखतमां शकटमुख नद्यानना अने ते पुरिमताल नगर ना मार्गला नद्यानना जीर्ण प्रासादमा रहेली श्री मल्लिनाथनी मूर्तिने नमस्कार करी कोइ बग्गुर नामलो शेठ पोतानी सुन्न नामनी प्रिया सहित बोल्यो के, “हे निर्मम! जो म्हारे आपना प्रसादथी संतान थशे तोहुंआ नविन मंदिर बंधावीने तमारी पूजा करीश.” अनुक्रमे तेने पुत्र श्रयो एटले ते वग्गुर शेठ श्री मल्लिनाथ, नविन जिनालय बंधावी म्होटा महोत्सवपूर्वक पूजा करवा चाल्यो. ते वखते ईशान देवना इंशेए तेने कर्वा के, “ हे वग्गुर ! तुं नाव अरिहंतने त्यजी दश्ने बीजाने केम वंदन करवा जाय ?" ईशान देवैज्ञेनां आवां वचन सांजली वग्गुर शेठ श्री वीरप्रजुने नावजिनेश्वर मानी तेमर्नु पूजन करी महोत्सवपूर्वक श्री मल्लिनायना मंदिर प्रत्ये चाल्यो. हवे त्यांथी श्री वीरपत्नु ननाय नामना सनिवेझो जता हता एवामां रस्ते म्होटा दांतवालुं स्त्री पुरुष, जो सामु मल्यु. तेने जोक्ने गोशालो हशी पम्यो,तेथी ते पुरुषे गोशालाने दोरीवती बांधीने वांसनी जालमां नाख्यो; परंतु पाग्लथी तेणे प्रतुने जोश्ने तेमनो लक्त जाणी तुरत गोशालाने बूटो कस्बो. त्यांची प्रन्नु गोनूमि प्रत्ये गये उते गोशालो गोवालीआडने कहेवा लाग्यो के, "हे म्लेचो! आ मार्ग बलो.” आवां गोशालानां वचन सांजली अत्यंत क्रोधातुर श्रयेला लेनए गोशालाने बांधी वंशजालमां नाख्यो; परंतु पाउलथी तेनए तेने जिलेश्वरनो सेवक जागी तुरत गेमी मूक्यो. पठी आग्मुं चोमासुं प्रस्तुए राजगृह नगरने विषे तपथी निर्गमन करयु. नवमे चोमासे प्रन्नु वच नसीखेच देशने विये गया. त्यां म्लेछोए निरंतर बहु नपसर्ग कस्या; परंतु प्रलुए उपसर्गोने लहन करता उता पण निराहारपणे त्यांज निवास कस्यो. प्रलए चोमा पूर्ण श्रया पठी पण निराहारपणे वीजा बे मास ते देशमां विहार कस्त्रो. आ प्रमाणे प्रन्नुए ते देशमां ठ मास विहार कस्यो, तेथी प्रन्नुने ते देशमां उमासिक तप श्रयुं. जो वसती न मले तो चोमासामां पण तेवा वमती विनाना एकज स्थानके रदेवानो का नियम नथी, तो पण प्रनुतो त्यांज रह्या, त्यांची प्रजुए सितार्थपुर प्रत्ये निवास करी अले त्यांयी कुर्म गाल जवानुं प्रयाण करयु. रस्तामां गोशालाए एक तिलनो गेम जोश्ने Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामीचरित्र. (४५) प्रन्नुने पूच्यु के, “हे विनो! आ तिलनो गेम फलीनूत थशे के नहि ?" प्रलुए नुत्तर आप्यो के, “ सात तिलपुष्पना जीवो तो मरी गया मे; परंतु हे न६ ! एक शीगने विषे तिलनो लान्न थशे." आ प्रमाणे प्रन्नुए कहेली तिलनी नत्यतिनी वात सांजलीने तेमना कह्याथी उलटो चालनारो ते गोशालो प्रत्ननुं वचन मिथ्या करवाने माटे तिलना गेमने नखेमी नाखीने फेंकी दीधो अने पनी आगल चाल्यो. हवे अहिं सांनिध्य रहेला देवतानए ते वखते बहु वर्षाद वरसाव्यो, तेथी गायोनी खरीयोवमे चंपायेलो ते तिलनो गेम फरीथी पृथ्वीमां चोटी गयो. केटलाक दिवस पनी एज रस्ते थइने पाग वलेला प्रनुए अने गोशाले तेटलाज तिलो दीग. ए नपरथी गोशालाए पोतानुं नियतवादीपगुं वधारे दृढ करयु. त्यांची निस्पृहवंत एवा प्रन्नु कुर्मगामे गया. त्यां लोकप्रसिह एवो लोकायन नामे बाल तापस तप करतो हतो. ते तापसनी नत्पत्ति विस्मय करनारी , ते आ प्रमाणे. श्री राजगृह नगर अने चंपापुरीनी वचे गोर्बर नामर्नु गाम . त्यां गो संख्याक नामनो अपुत्रिन गोवाल राजा वसतो हतो. एक दिवस चोरलोकोए ते गाममां धाम पामी; तेथी सघला माणसो नासवा लाग्या. एवामां एक स्त्रीने चोर लोको पकमीने लश् गया; परंतु ते स्त्रीनो पुत्र गाममांज रही गयेलो होवायी पेला गोसंख्याक नामना गोवाले दीगे; तेथी तेरो पाताना घरने विषे ते पुत्रने लावीने पोतानी स्त्रीने सोप्यो. स्त्रीये पण तेने पोताना पुत्रनी पेठे पालीने म्होटो कस्यो. हवे पेला चोरलोकोए जे स्त्री- हरण करयुं हतुं ते स्त्रीने तेनए चंपानगरीमा एक गणिकाने घेर वेची; तेथी ते स्त्रीये पण गणिकानोनद्यम करवा मांझयो. ____ हवे यौवनावस्था पामेलो ते बालक एक दिवस घी लश्ने वेचवा माटे चंपा नगरीमा गयो; परंतु कामदेवथी विह्वल थवाने लीधे ते ज्यां पोतानी माता वेश्यानो धंधो करती हती त्यां गयो. पठी पागे धावतां रस्ते तेनो पग विष्टाथी खरमायो एटले यौवनश्री नन्मत्त ने मन जेर्नु एवो ते रस्ते बेठेला एवा को वाग्माने पोताना खरमायेला पगथी घसवा लाग्यो. पठी कुलदेवीनां सानिध्यपणाने लीधे ते वाउमो पासे वेठेली पोतानी माताने कहेवा लाग्यो Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) ऋषिममलत्ति-पूर्वाई. के, “हे मात! आ खल पुरुष पोताना खरमायेला पगथी मने स्पर्श करे ये." धेनुये पण देवीनां सानिध्यपणाथी पोताना वाउमाने का के, “हे वत्स ! आ महापापी पोतानी मातानी साथे क्रीमा करे , तोपण एवात त्हारे कोने कहेवी नहि.” माता पुत्रनो आ प्रकारे श्रतो वार्तालाप सांजलीने पठी ते पोतानी माताने वेश्यानो धंधो करती जाणीने अने तेने त्यजी दश्ने वैराग्यना रसथी नावित थयो श्रको प्राथामिक दिक्षाने धारण करी वेश्यायन नामे तापस श्रयो अने करुणायुक्त हृदयवालो ते सूर्यना तापथी आतापना करतो तो निरंतर तप करवा लाग्यो. सूर्यना तापथी तेना मस्तकने वीषे जून पमवा लागी अने ते जूनने पोते दयाने लीधे पोतानी जटामांज राखवा लाग्यो; तेथी तेनुं यूकाशय्यातर (जुनवालो साधु) एवं नाम पम्यु. . हवे गोशालो मुनिने आ प्रकारना जोइ पूबवा लाग्यो के, "अरे! यूकाशय्यातर । तमे दीक्षित गे के अदीक्षित गे? आ प्रमाणे दुरात्मा एवा ते गोशालाये त्रणवार पूज्युं एटले तो वेश्यायन नामना तापसे क्रोधथी तत्काल तेजोलेश्या मूकी. प्रतुए पण कृपाश्री तेजोलेश्याना लपर शीतलेश्या मूकी; जेश्री तेजोलेश्या शीतलेश्याथी बूमा गइ. पी गोशालो प्रन्नु पाले गयो एटले सिक्षार्थे तेने कडं. "तुं हवणां मृत्यु पामत. कारण त्हारी वाणीना अनियमश्री आ तापसे तेजोलेश्या मूकी हती; परंतु प्रन्नुए कृपाथी शीतलेश्या मूकीने तेने (तेजोलेश्याने) शांत करी . सिवानां आवां वचन सांजली अत्यंत नय पामेलो गोशालो प्रजुने पूवा लाग्यो के, “हे अरिहंत! तेजोलेश्या शी रीते नुत्पन्न बाय?" आवा गोशालाना प्रश्न उपरथी सिार्थे कडं के, "निरंतर आतापना करनारा पुरुषने उठना पारणे एक मूठी अमद खातांअने एक चलु (गपुं) नुनुं पाणी पीतां उ मासने अंते तेजोलेश्या नत्पन्न थाय जे." सिधा कहेली तेजोलेश्यानी नुत्पत्तिना नपायने सांगली पुष्ट बुध्विालो गोशालो प्रन्नुश्री जूदो या श्रावस्ती नगरीने विषे कुंन्नारनाघेर रही तेजोलश्याने नपायग्री साधवा लाग्यो. वली ते अष्टांग निमित्तने पण शीख्यो, पीते गोशालो "हुँ पोतेज जिन अने ते अजिन वे.” एम सर्वने कतोअने मागसोना समृडने ठेतरतो पृथ्वी नपर विचरवा लाग्यो. दवे श्री वीरप्रन्नु पण विशालानगरी प्रत्ये गया. त्यां तेमना पिताना मि Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामीचरित्र, (४७) " शंखनामना कुलपतिए "आ बालमुनि.” एम धारी तमनी हर्षश्री पूजा करी. त्यांची प्रन्नु दमिका नामनी नदी वदाणवमे नतस्या एटले खारवा लोकोए प्रतुने रोकीने तेमती पासे वाहाणनुं नाउँ मागवा मामयु. एवामां शंखरा जानी व्हेनना पुत्र चित्र नूपतिए ते आवेला अने खारवा लोकोए रोकी राखेला वीरप्रन्नुने गेडाव्या, पठी त्यांथी प्रत्नु वाणीज गामप्रत्ये गया. अहिं आनंद नामनो श्रावक रहेतो हतो. ते आतापना करतो होवाथी तेने ठने पारणे तेज वखते अवधिज्ञान नत्पन्न थयुं हतुं. तेणे प्रतुने जाणीने पठी वंदना करीने कह्यु के, “परीषहने सहन करनारा हे प्रत्नो! तेमने आटला वखतमांझान नत्पन्न थशे." पठी महा तपोवंत एवा वीर प्रत्तुनुं दशमुं चोमातुं श्रावस्ती नगरीमां थयु. त्यांथी प्रन्नु सानुलष्टिक नामना गामे गया अने त्यां गामनी व्हार नद्यानने विषे कायोत्सर्गे रया, अहिं नगवाने अनुक्रमे अावीश दिवसे करीने न, महान अने सर्वतो न नामनी पमिमा करी. पठी आनंद श्रावकने घरे दासीये आपेला शीतल (टाढा) अन्नवमे प्रजुने पार' भयुं. त्यां पंचदिव्य प्रगट श्रयां. त्यांची प्रनुए बहुम्लोरोथी व्याप्त एवी दृढ नुमिने विषे पेढालपुर नगरना नद्यानने विषे रहेला पोलास नामना चैत्यने विषे कायोत्सर्गे निवास कस्यो. अहिं तेन अध्मने तपे पाउली रात्रीए कार्योत्सर्ग रह्या हता एवामां प्रचना निमेष रहित एवा योग्य पुजलने अवधिज्ञानथी जाणीने कांश्क नम्र अश्ले काया जेनी एवो इंश् सन्नामां बेगे बेटगे अत्यंत हर्ष पामीने कहेवा लाग्यो के, ____ "श्री वीरप्रन्नुना मनने चलाववाने त्रण लोक पण समर्थ नथी.” श्रावां इंज्ञां वचन सांजली संगमक नामनो देव इर्ष्याथी कहेवा लाग्यो के, “जेश्रा इंश एम कहे जे के, अरिहंतनुं मन चलाववाने को समर्थ नथी; ते हुँ एर्नु वचन मिथ्या करीने अरिहंतने तेमना नियमथी ब्रट करीश. कारण ए प्रन्नु बीजाना आश्रयश्रीज तप करे जे.” आम कहेता एवा ते संगमकदेवताने ६३. बहु ना कही तोपण तेतो तत्काल प्रनुनी पासे आवीने तेमने नपसर्ग करवा लाग्यो. तेमां प्रथम धुलनी वृष्टिश्री तेणे प्रत्नुने श्वासोश्वास लेतां बंध करी दीधा. बीजो उपसर्ग एवो करयो के, कीमीयोना रूपथी प्रभुना अंगने विपे प्रवेश करीने तेमनुं शरीर चालनी समान वनावी दीधुं. वली मचर अने दंशथी प्रन्नु- , Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८ ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वाई. ना शरीरे बहु पीमा करी. देवताए करेला या प्रकारना उपसर्गथी प्रभु बहु पीका पाम्या वली ते देवताए घीमेलोनां रूप बनावी अरिहंत प्रजुने बहुवार पीया. एज प्रमाणे बी, नोलीया, सर्प अने नंदरनां रूप धारण करीने वारंवार पीमा उपजावी. वली तेथे हाथीनुं रूप बनावी नंचे नबाल्या, पगवमे मर्दन कराने दांतो मारया. पिशाचनां रूपथी उपसर्ग करी ने पटी वाघनां रूपथी दाढोवमे तामन करचा. तेमज सिद्धार्थ ने त्रिशलामातानुं रूप करीरी प्रजुने मोह पमाया. रसोइयानुं रूप धारण करीने प्रभुना बने पगनी वच्चे निसलगावी रसोइ बनावी. चंगालनुं रूप बनावी प्रजुना कान विगेरेमां माला वनाव्या. पक्षीनां रूप बनावी वज्रसमान तीक्षण चांचवमे पीमा पमायाः कठोरवायुषी नंचे नाली पृथ्वी नपर फेंक्या. वंटोलीयानां रूपे चक्रनी पेठे माव्या. बेवट ते डुरात्मा देवताए कालचक्रथी हसेला प्रभु जानु ( ढींचा ) पर्यंत मीमांखूची गया. सवारे इंड्समान समृदिने विकुर्वी वैमानमां बेठेलो ते देवता प्रभुने कहेवा लाग्यो के, " हे प्रनो ! स्वर्ग अने मोहनी सिद्धिने वरो. " या प्रमाणे तेरो एक रात्रीने विषे नगलीश नृपसर्ग करया. पक्षी अधम एवो ते संगमक पोताना विनंगज्ञानयी जोवा लाग्यो के, “आ मुनि में करे - ला नृपसर्गोवमे पोताना नियमश्री ऋष्ट थया बे के नहि ? " आम विचारी ज्ञानवमे जोवा लाग्यो तो मालम पमथुं के, कोजने नहि पामेला अने पनिकायना जीवनुं हितवता प्रभु ध्यानमांज रहेला बे. त्यांथी वालुका गाम. प्रत्ये जता एवा प्रजुने ते दुरात्मा संगम देवताए ढींचण प्रमाण वेलुवाला रस्वामां पांचशे चोरोने विकुर्वी तेनुंना वाहनने विषे जोमया. वली तेणे पोताना वज्रमय अंगश्री प्रनुने (मामा) एम कहने गाढ आलिंगन करयुं. या प्रालिंगन ते एवा बलग्री करयुं हतुं के, जो पर्वत होय तो पण ते तत्काल चूर्णरूप s जाय; परंतु प्रभु तो महा शक्तिवंत होवाथी कांइ प्रयुं नहि. प्रभु वालुका गा गया. त्यां पण ते देवताए प्रभुनुं एक प्रांखे काएं एवं स्त्री रूप बनाव्यं सुनूम गाममां स्त्रीयोनी प्रागल हाथ जोमी रहेला जारनुं रूप बनाव्यं. या प्रकारे विविध कुचेष्टान तथा अनेक प्रकारना उपसर्गो लोको पासे पगले पगले करावतो तो ते संगमक प्रभुने पीमा करतो हतो. मलय गाममां प्रजुनुं पिशाचमय रूप बनावी स्त्री विगेरेने गालो देवराववा लाग्यो, ते उपरश्री Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामी चरित्र. ( ४ ) जोको तेमने बहु माया. वली हस्तिशीर्ष गाममां निकाने अर्थे गयेला प्रभुनुं शिवरूप विकुर्विने स्त्रीयोनी समक्ष पुरुष चिन्हने खेंची विकारमय बनाव्यं. ते उपरथी लोकोंए प्रजुने बहु माख्या पी प्रभुए विचारचं के, था लोको मने बहु नृपसर्ग करे बे; तेथी हवे म्हारे नगरमां जवुंज नहि. " एवं धारी प्रभु नगरनी व्हार रह्या. संगमक पण “शुं ते दजु नथी याक्या ? ” ग्राम पोताना अवधिज्ञानथी जोवा लाग्यो तो मालम पमथुं के, " प्रभु तो पोताना शुभ ध्यानथी जरापण सृष्ट थया नथी." प्रभुनुं श्रावुं उत्कृष्ट लिंगश्मशानपणुं (शरीरनुं निरनी मानपं) जोड़ने लोकमां शिवलिंगादिक प्रवर्त्या. एक दिवस तोसल नामना सन्निवेशनी व्हार प्रभु कायोत्सर्गे रह्या हता, वामां पेलो देवताने विषे अधम एवो संगमक, एक कुशिष्यनुं रूप धारण करी गाममा खातर पारुवा लाग्यो. लोकोए तेने पकमीने बांध्यो एटले तेथे कह्युं के, "गामनी व्दार रहेला म्हारा गुरुए मोकलवाथी हुं श्रहिं श्राव्यो बुं.” ए उपरथी क्रोधातुर थयेला लोकोए " आ वध करवा योग्य बे. " एम धारीने प्रजुने बांध्या. परंतु कोइ नूइलनामना इंड्जालिके बोमाव्या. वली मोसली नामना सन्निवेशने विषे शिष्यरूप बनेला संगम देवताने सुरंगादि शोधतो जोइ लोको पूब एटले ते कर्तुं के, “ हुं गाममां खातर पारुवा जानं त्यारे म्हारा गुरुने कोइ उपश्व न करे, माटे हुं तेमना प्रर्थे एकांत स्थान शोधुं बुं.” पछी लोकोए जिनेश्वरने बांधला जोइने प्रजुना पिताना मित्र कोइ मागध नामना पुरुषे भगवानने बोमाव्या. तोसली गामने विषे ते संगमक देवताए तेवी जरी करवायी तोसली नामना क्षत्रिये प्रभुने सात दोरीवती बांध्या; परंतु धर्मना प्रजावणी ते सघली दोरी तूटी गई. ते उपरथी तोसलिके “ आा चोर नथी." एम धारी प्रज्जुने बोमी मूक्या. वली एवी रीते सिद्धार्थ नगरमां पण प्रजुने चोररूपे बंधाव्या. त्यां पण कौशिक नामना श्रावके बोमाव्या. तो ५ पी प्रभु वजनगरे गया. ते दिवसे त्यां सर्वने घरे खीर रंधाती इती. पण देव उपसर्ग करे बे.” एम धारी प्रभुतो नगर व्हार कायोत्सर्गे रह्या. देवता त्यां पण बहु उपसर्ग कस्या. पबी बीजे दिवस शांत चित्तवालो थयेलो ते देवता अवधिज्ञानथी प्रजुने शुद्ध परिणामवाला जाणीने श्रने " नृपसर्ग करतां व मास या." एम विचारीने कड़ेवा लाग्यो. "हे उत्तम ! निक्काने माटे ७ f Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) ऋषिममलत्ति-पूर्वाई. प्रामादिकने विषे जान अने हवे पगी हुँ तमने निश्चय कांड पण घोर नपसर्ग. करीश नहि.” प्रन्नुए कह्यु. “ हे देव ! हुं म्हारी मरजी प्रमाणे जश्श, त्हारे कांश पण कहे, नहि. पडी तेज गाममां प्रन्नु वीजे दिवसे निकाने अर्थे गया. त्यां कोई वत्सपालिका नामनी वृक्ष मोशीये तेमने टाढी खीर वहोरावी. ते उपरथी तेना घरने विषे सुवर्णवृष्टि श्रइ. अन्नव्य एवो संगम देवता पण उ मास पर्यंत. नन एवा नपसर्गो करीने पठी ते व्रज नामना गामप्रत्ये प्रन्नुने नहि लांगेला परिणामवाला जाणीने ते अधम संगमक नत्साह रहित अश्ने स्वर्गप्रत्ये चाल्यो गयो. दवे ज्यारथी आ नवमा वर्षने विषे संगमदेवता ए प्रन्नुने नपसर्ग करवा मांझया ते दिवसथी आजसुधी एटले उ मास पर्यंत ईजादिक सर्वे देवता अत्यंत नवेग मनवाला रह्या. पठी अत्यंत क्रोधातुर थये. ला इंडे संगमक देवताने स्वर्गमांथी काढी मूक्यो; तेथी ते अधमदेव हवणां पण मेरुपर्वतनी चूलिकाने विषे पोतानी प्रिया सहित वसे ले अने ते संगमकना नको तो इंश्ना आग्रहथी स्वर्गने विषे रह्या. पठी विद्युत्कुमार देवें अलनिकापुरी प्रत्ये आवी प्रन्नुने वंदना करी हाथजोगीने पूबवा लाग्यो के, “हे तीर्थेश! आपे बहु नपसर्गो जीतेला बे, ते थी हुँ आपने कुशल समाचार पू . परी श्वेतांबिका नगरी प्रत्ये गयेला तथा निर्विघ्नपणे वर्तता एवा प्रनुने इंछ कुशल समाचार पूबवा आव्यो. त्यांथी प्रतु श्रावस्ति नगरी प्रत्ये प्रावीने गामनी व्हार कार्योत्सर्गे रह्या. ते वखते त्यांना लोको कार्तिकस्वामीनी मूर्तिनो नत्सव करता हता. आ वखते इंते कार्तिकस्वामीनी मूर्तिमा प्रवेश करीने श्रीवीरप्रनुने नमस्कार कस्या. आम श्रवाश्री तो सर्वे लोको आदरथी अरिहंत प्रन्नुर्नु वंदन करवा लाग्या. त्यांची कौशांबी नगरी प्रत्ये गयेला प्रचुने कुशल समाचार पूवा माटे वैमानीक देवता सहित दिवस अने रात्रिना अधिपति एवा सूर्य अने चं त्यां आव्या, एज प्रमाणे वाराणसी नगरीमां इंश, राजगृह नगरमां इशानेश, अने मिथिला नगरीमा जनकराजा तथा धरणे प्रजुने कुशल समाचार पूचा आव्या. त्यांश्री प्रन्नुनें अग्यारमुं चोमासुं विशालानगरी प्रत्ये प्रयु. अहिं पण नूतानंद हरिये प्रतुने कुशल समाचार पूल्या. त्यांची प्रत्तु सुंसुमारपुर प्रत्ये जश्ने कायात्मगें रह्या. ते वखते नवीन नुत्पन्न अयेला नुवनपतिना इंश् चमड़े पोताना Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामीचरित्र. (५१) मस्तक नपर रहेला सौधर्मेनां सिंहासनने जोक्ने विचारचं जे, “हु तेने हेठो पगडं.” आम धारी ते त्यां गयो, परंतु इंश्यी परान्नव पामेलो ते सुंसुमारपुर प्रत्ये प्रावीने कायोत्सर्गे रहेला श्रीवीरप्रन्नुना शरणे रह्यो; तेथी ते लिय थयो. त्यार परी नोगपुरने विवे माहें नामनो कृत्रिय क्रोधथी जेटलामां खजुरीनी कांटावाली सोटीवमे प्रन्नुना शरीरने पीमा नपजावे तेटलामा प्रनुने कुशल समाचार पूबवा आवता एवा सनत्कुमार देवेई तेने तत्काल निवास्यो. त्यांथी प्रन्नु नंदि गाम प्रत्ये गया. त्यां तेमना पिताना मित्र नंदे तेमने वंदना करी. त्यांची मिंढक गाम प्रत्ये कायोत्सर्गे रहेला प्रजुने कोइ एक गोवाल क्रोधथी नपसर्ग करवा लाग्यो एवामां वंदन करवा माटे आवेला इं . यंकर रूपथी तेने त्रास पमामीने काढी मूक्यो. त्यांथी प्रन्नु कौशांबी नगरी प्रत्ये गया. त्यां शतानिक नामे राजा राज्य करतो हतो. अहिं प्रनुए पोताना पूर्वना पुष्ट कर्मने जीतवा माटे पोष मासनी शुकल पडवेने दिवसे एवो घोर अनिग्रह लिधो के, “जो को मने ब्ययी सूपमाने खूणे रहेला अमदना वाकला गोचरी वखत गया पी वहोरावे तो म्हारे पार| करवं. परंतु ते वहोरावनार राजानी पुत्री उतां दासीपणाने पामेली होवी जोइए. वली तेनो जमलो पग नंबरायी व्हार अने माबो उंबराथी अंदर होवो जोशए. माथ मुंमेली तथा पगे बेमीवाली तेमज त्ररा नपवासवाली अने रुदन करती होवी जोइए.” आ प्रमाणेनो प्रन्नुनो अन्निग्रह त्यां चार मास सुधी पुरो अयोनहि. हवे अहिं एवं वन्युं हतुं के, शतानिक राजाए दधिवाहन नूपतिनो यु मां पराजय करीने तेनी चंपा नगरी लुटी. ते वखते मृगावती, शतानीक, नंदाप्रिया सहित सुगुप्त, झारपालीका विजया अने धर्मोपाध्याय एटला जशा बहु दुःख पाम्या, वली ते युःक्ष्मां वसुमति के जेनुं बीजुं नाम चंदनबाला हतुते पुत्री सहित तेनी धारणी माताने को शतानिक राजानो लश्करी माणस पंकमीने कौशांबी नगरीये लाव्यो; परंतु रस्ते माता धारणी तो मृत्यु पामी; तेथी पेला लश्करीये चंदनवाला पुत्रीने कोइ धनावह शेठने त्यां वेचाती आपी. धनावद शेठे. पण ते पुत्रीने पोताने घेर तेमी जश् अने तेने स्नान, वस्त्र, विलेपन तथा अलंकारादिकथी सुशोनित करी. एक दिवस शेठना पग धोवरावती एवी चंदन बालाना केशने नीचे पमता जोश शेटे ते केशने जंचा राख्या ते जोश धनावद Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. शेग्नी स्त्री मूलाये विचार करयो के, “निश्चय ए म्हारी शोक्य थशे." आम धारी तेणे ते बीचारीने बेमीमां नाखी त्रण दिवस सुधी नोजन न आप्युं. वली ते वीचारीनुं मस्तक पण मुंभावी नाख्यु. डेवट मूलाये तेने लक्षण करवा माटे आपेला अमदना बाकला सूपमाने खूणे राखीने अने ते सुपमाने हाथमां धारण करी रहेली, वली एक पग नंबरानी बहार अने एक पग अंदर राखीने बेठी बेठी रुदन करती एवी ते चंदनबालाये पांच मास अने घोविश दिवसे गोचरीने अर्थे फरता अनिग्रह धारी एवा वीरप्रनुनो अमदना बाकला वहोरावी अन्निग्रह पूर्ण करचो. ते वखते आकाशमांथी सुवर्णवृष्टि श्रइ. प्रन्नु रूप सत्पात्रने दान आपवायी चंदनबालानी बेमी पोतानी मेले तूटी गइ, केशपाश नवो आव्यो अने तेनुं सर्व अंग अलंकारयुक्त थइ गयु.पली दधिवाहनना कंचुकि एवा नुत्पले तेने तुरत नलखी अने मृगावती राणीये पण तेने पोतानी व्हेननी पुत्री जाणी. पठी शतानिक राजाने चंदनबाला सोपी अने कडु के, तमे तेनु रहण करजो. कारण के, ए श्री वीरस्वामिनी प्रथम साध्वी श्रवानी ने. पली सुमंगल गामने विष प्रन्नुने वंदन करवा माटे सनत्कुमार माहें आव्यो.पालक नामना गामने विषे पण वाश्ल नामे को वसिक यात्रार्थे जतो हशे ते पो तानी सन्मुख आवता श्रीवीरप्रनुने जोश अमंगलिक मानी क्रोधथी तरवारवमे तेमने मारवा दोमयो; परंतु रस्तामांज तेनो सिक्षार्थे विनाश कस्यो. पठी प्रन्नुए वारमुं चोमासु चंपानगरीमा स्वातिदत्त ब्राह्मणनीअग्निहोत्रशालामां करयु. त्यां प्रन्नु चार मास पर्यंत निश्चल ध्यानयी रह्या. ते वखते पूर्णन अने माणिनइनामनाजेबेयको तेमनी सेवामा रह्या हता तेनतो तेमने जोश्ने आश्चर्य पामी गया. पठी स्वातिदत्त ब्राह्मणे प्रभुने प्रश्न करयु के, "आत्मा (जीव) कोने कहेवो?" प्रनुए कह्यु “जे हुं एवो अनिमान करे , तेज आत्मा (जीव) कदेवाय ते." या प्रमाणे नगवाने जीवनुं स्थापन करयुं एटले वली स्वातिदत्ते तेमने फरीथी पूज्यु के, “हे प्रन्नो! प्रदेशन अने प्रत्याख्यान कोने कहेवू?" प्रनुए कां. "हे विप्र! प्रदेशन वे प्रकार- .एक धार्मिक अने वीजुंअधार्मिक. तेमज प्रदेशन शब्दवमे करीने पण निश्चय नपदेशज कहेवाय ते.वली मूलगुण अने ननरगुणयी प्रत्याख्यान पण जिनेश्वरोए वे प्रकारनु का ठे.” प्रन्नुनां आवां वचन सानली विप्र स्वातिदत्त अने पूर्णनइ तथा माणिनवने यो प्रतिबोध Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामीचरित्र. (५३) पाया. पी जूंकि गाम प्रत्ये गयेला जगवान् पासे इे प्रावीने तथा म्हो नाटक करी बतावीने पढी कर्तुं के. “दे नाथ ! तेमने थोमा दिवसमां केवल ज्ञाननी उत्पत्ति थशे.” त्यांथी जगवान् मिंटिक गामे गया. त्यां तेमनी वंदना करवाने माटे चमरे आव्यो. पबी षरूमानी गामनी व्हार कायोत्सर्गे रहेला प्रभुने कोइ गोवालीन पोतानो बलद जलावी पोते गाममां गयो. थोमी वारे पाठावी ते प्रभुने पूब्युं के “ दे देव ! में आपने म्हारो बलद नलाव्यों हतो ते देखतो नथी माटे क्यां गयो ? " गोवाले ग्राम पूग्या बतां परा ज्यारे प्रभु तो मौन रह्या त्यारे तो तेणे क्रोधथी प्रभुना बन्ने कानने विषे एवां खीला माझ्या के, ते बन्ने खीलानां मुख अंदर एकगं थइ गया. वली ते दुरात्मा गोवाले खीलाना नपला जागने कापी नाखी कोइथी न देखाइ शके तेम aar. xsो ! धिक्कार पूर्वे करेलां कर्मने के, जे भवांतरने विषे पण भोगव्यां विना बूटी शकतां नयी. प्रजुए त्रिपृष्ट वासुदेवना नवे शघापालकना बन्ने कानने विषे कालेलुं तरखं रेमाव्यं दतुं ते कर्म अत्यारे नदय प्राव्यं. ते शषापालक पण संसारमा जमतो जमतो गोवाल थयो अने तेथे पूर्वना वैरने लीवेज श्री वीरप्रभुना कानने विषे खीला माया. हवे प्रभु मध्यम एव पापा नगरी प्रत्ये याव्या त्यां ते गोचरीने श्रर्थे फरता फरता सिद्धार्थ नामना व शिकूने घेर गया. वणिके प्रभुने शल्य (कानमां खीला) वाला जाणी ते वात खरक नामना वैद्यने कही; तेथी वैद्य बहु दुःख पाम्यो. पी ते बने जला प्रजुनी पाबल पाबल उद्यानमां जइ साएासीनवमे ते बन्ने खीलाने प्रयत्नथी खेंची काढया. श्रा वखते प्रभुने बहु वेदना थवाश्री ते म एवी जयंकर बूम पामी के, जाणे म्होटो पर्वत फाट्यो होयनी शुं ? पनी वैद्ये व्रणरोहिणी औषधीना प्रयोगथी प्रभुने पीमा रहित कस्या. प्रभुने - येला नृपसर्गने विषे केटलाक दुःसह अने केटलाक सामान्य दता. तेमां जघन्यने विषे तो कटपूतना व्यतरीये करेलो शीतवेदना उपसर्ग दतो. मध्यhi संगमिक देवताए करेला नृपसर्गो दता श्रने उत्कृष्ट तो प्रजुना कानमांथी खीला काढवानो हतो. प्रभुने उपसर्गोनो आरंभ पण गोवालथी अने अंत प गोवालथीज श्रो. पी प्रभुना कानने विषे खीला मारनारो गोवाल पोताना दुष्टकर्मी मृत्यु पामीने सातमी नरके गयो तथा सिद्धार्थ वणिक् अने ख Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. रक वैद्य ए बन्नेजणा पोताना पुण्यने लीधे स्वर्गे गया, हवे जूनिक नामना गामनी समीपे झजुवालिका नामनी नदीने तीरे व्या । वृत्त नामना चैत्यनी पासे श्यामाक नामना कणबीना खेतरमांशालवृदनी नीचे . नत्कटितासने बेठेला प्रन्नुने नक्ते सुध्यान ध्याता कर्मक्षय थवाने लीधे केवलज्ञान नत्पन्न श्रयु. ते वखते चोसठ इंशेए तुरत एकग श्रश्ने जगत्ने आश्चर्यकारी एवी समवसरणनी रचना बनावी. प्रन्नुए पण "आ माणसो नाव रहित ने.” एम धारीने पण पोतानो आचार जणावाने माटे एक मुहूर्त (बे घमी) धर्मदेशना आपी. पठी अमरेंशए परवस्या थका नगवान् एकज रात्रीमां बार योजन प्रमाणवालो मार्ग नलंघीने तत्काल मध्यम अपापा नगरी प्रत्ये आव्या, त्यां सौमिल नामनो ब्राह्मण यज्ञ करतो हतो, तेने माटे इंश्नति विगेरे म्होटा अगीयार नपाध्याय त्यां आव्या हता. आ सर्वेने बोध करवा माटे प्रन्नुतो नगरीनी व्हार महसेन नद्यानमां समवसख्या. देवतानए धर्मदेशनाने माटे एक म्होटुं समवसरण रच्यु. त्यां सिंहासनने विष बेशी प्रन्नु धर्मदेशना आपवा लाग्या, जेथी देवता महोत्सर्व पूर्वक त्यां आववा लाग्या. देवताउने आवता जो इंश्नूति विगेरे नपाध्यायो सोमिल ब्राह्मणने कदेवा लाग्या के, “याझिक गोरोए अग्निने विषे सारी रीते आहुति आपवाथी देवता पोते अहिं आवे ." आ प्रमाणे तेन वात करे ये एटलामां तो देवतान यशस्थानने त्यजी दश्ने जिनेश्वर प्रन्नुनी पासे गया एटले तो वली इंश्नति नपाध्याय अन्य पुरुयोने पूवा लाग्यो के, “हे लोको! आ सर्वे देवताल यझस्थानने मूकीनेबीजे क्यां जाय ? " तेनए नत्तर आप्यो के, “हर्षवंत एवा ते देवता सर्व एवा श्री वीरप्रन्नुनी पासे जाय .” आवां लोकोनां वचन सांगली अत्यंत गर्वयुक्त श्रयेलो इंश्लूति पोताना पांचसे शिष्योने लश्ने प्रचना समवसरणमां गयो. त्यां ते त्रलोकनी लक्ष्मीश्री सुशोनित एवा श्री वीरप्रनुने जोरने पोताना चित्तमां चमत्कार पाम्यो अने "शुं आ सर्वझ हो के वीजा !!!" एम शंका पामतो उतो वेगे. एवामां प्रनुए तेनो आशय जाणीने तेने कर्वा के, "हे इंतूति ! तुं नले आव्यो.” प्रन्नुनां आवां वचन सानली इंश्नूति विचार करवा लाग्यो, “शुंए मने नलखता हशे ? हा ! ए मने जाणताज ह. हो. कारण मने कोण नहिं नलखतुं होय ? परंतु जो ए म्हारो संशय जाणे Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महावीरस्वामीचरित्र. (५५) अने तेने टाले तो हुँ एमने सर्व जागुं." आम धारी ते जेवो स्थिर प्रश्ने रहे एटलामा प्रन्नुए "तने जीव विषयनो संशय ?" एम कहीने पी वेदनां पदोनो नच्चार करी तेनो संशय बेदी नांख्यो; जेथी ते इंश्नतिये पोताना पांचसो शिष्य सहित चारित्र अंगीकार करा. पठी अग्मिन्नूतिना पण कर्म संबंधी संशय दूर थवाथी तेणे पण पांचसो शिष्य सहित दीक्षा लीधी. वली शरीर एज आत्मा, ए संशय बेदावाथी वायुनूलिये पण पांचसो शिष्य सहित व्रत ग्रहण करयु. पंच महानूत संबंधी संशयनो प्रनुए वेदनां वाक्यथी नाश कस्यो, ए नपरथी व्यक्त नामना ब्राह्मणे पांचसो शिष्य सहित व्रत अंगीकार करथु. आजन्मने विषे जेवू होय तेवूज परनवने विषेमले, आ संशय पण प्रनुए बेद्यो; तेथी सुधर्मा नामना ब्राह्मणे पांचसो शिष्य सहित चरित्र लीधुं. बंध अने मोकनो संशय प्रनुए वेदयुक्तिथी द्यो. ए नपरथी मंमिकना पुत्र मंमिते सा. मात्रणसो शिष्य सहित दीक्षा लीधी. देवताल ले के नथी, आ संशय पण प्रन्नुए दवाथी मौर्यपुत्रे त्रसो शिष्य सहित चरित्र लीधुं. नरक डे के नथी, आ शंसय प्रन्नुए उद्यो, एथी अकंपिते त्रासो शिष्य सहित दीक्षा लीधी. पुण्यपाप डे के नथी, आ संशयनो प्रन्नुए नाश करवायी अचलवाताए त्र सो शिष्य सहित चारित्र आदरयु. परलोक बे के नथी, आ संशय बेदवाथी मेतार्ये त्रसो शिष्य सहित व्रत अंगीकार करयु.,मोद के नथी, आ संशयनो उत्तर प्रन्नुए वेद वचनवमे आपवाथी प्रनास नामना विप्रे त्र सो शिष्य सहित व्रत आदरयु.आ वखते आवी रीते इंश्तूति विगेरे अगीयार जगाए पोताना शंसयनो नाश थवाथी चुमालीशसो शिष्यो सहित दीक्षा लीधी. पी प्रनुए तेलने त्रीपदीनुदान करयु अर्थात् त्रिपदीनणावी एटले तेनुए हादशांगी रची. परीनगवाने ते अगीयारे जगाने पोताना गणधर पदे स्थाप्या.प्रन्नुने चौदहजार साधुन, शुक्ष शीलवंत त्रिशहज़ारं साध्वियो, एक लाख अने गणसाठ हजार श्रावको,त्रण लाख अने अढारहजार श्राविकान,त्रासो चौद पूर्वधारियो, तेरसो अवधिज्ञानि साधुन, सातसो व्रतधारी एवा केवलज्ञानीयो. सातसो वैक्रियल ब्धिने धारण करनारान, पांचसो मनःपर्यवज्ञानने धारण करनारान, चारसो वादलब्धिने धारण करनारा तपस्वीन, आठसो अनुत्तर देवलोकमां जनारान अने सातसो अंतेवासी सिझे, आ प्रमाणेनो परिवार हतो. प्रन्नु Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. ग्रहस्थावासमा त्रीश वर्ष, बद्मस्थपणे बार वर्ष अने सामा ब मास तथा केवल पोबमासमां कां ना त्रीश वर्ष एम प्रजुनुं सर्व श्रायुष्य बोतेर वर्षनुं हतुं. हवे सुखम दुःखमकालना त्रणवर्ष सामाग्रामास बाकी रह्ये ते प्रपापा नगरीने विषे "कार्तिकवदी अमावस्याने दिवसे स्वाति नक्षत्रना योगमां म तप करीने पर्यकासने बेठेला कर्मरहित प्रजुए पंचावन पुण्यपापना फरूप त्रिश अध्ययन सनामां देशनारूपे कहीने अने प्रधान नामना अध्ययननुं निरुपण करीने पबी मोकलक्ष्मीनो अंगीकार करचो. हे नव्यलोको ! जेमले संगमक देवता विगेरे जीवोए करेला नृपसर्गना समूदने धीरजताथी सदन करया बे, जेम गाढ एवं तप करयुं बे ने जेमणे दुःसह एवा परीषदोनी सेना ने लीलामात्रमां जीती सीधी बे ते इंद्रादि देवतानए पूजन करेला श्री वीर जिनेश्वरने तमे नमस्कार करो. ॥ इति श्री महावीरचरित्रं संपूर्णम् ॥ निम्म विप्र बारसंगे नियत्रणंगे विमुक्कनवसंगे ॥ करुणामयजल निहिणो नमामि गणहारिणो सबे ॥३॥ अर्थः- द्वादशांगीना रचनारा, कामदेवनो नाश करनारा, संसारना संगने त्यजी देनारा अने दयारूप अमृतना समु एवा सर्व गणधरोने हुं नमस्कार करूं हुँ. ॥ १ ॥ हिं सर्व तिर्थंकरोना सर्व गएाधरोने नमस्कार करूँ हुँ, एम कहुँ. तो कया कया तिर्थंकरना केटला केटला गणधरो दता ते कहे . १ श्री रुपनदेव प्रजुना पुंमरिकादि चोराशी गणधरो दता. २ अजितनाथना सिंहसेना दिक पंचाणुं गणधरो हता. ३ शंभवनाथना चारुरु विगेरे एक सो अने बे गणधरो हता. ४ अभिनंदनना वज्रनाभादिक एकसोने सोल गणधरो इता. ए पद्मप्रजुना सद्योतादिक एक सो ने सात गणधरो हता. ६ सुमतिनाथना चमरादिक एक सो गणधरो हता. 3 सुपार्श्वनाथना विदर्भादिक पंचाणुं गणधरो हता. चंमना दिन्नादिक त्राणुं गणधरो हता. एए सुविधिनाथना वराहादिक ग्रा मा मास पुनर्माया गणवा. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल गाथान. (५७) -झी गणधरो हता. १० शीतलनायना नंद विगेरे एकाशी गणधरो हता. ११ श्रेयांसनाथना कौस्तुनादिक गेतर गणधरो हता. १२ वासुपुज्यना सुन्नूमादिक गसठ गराधरो हता. १३ विमलनाथना मंदर विगेरे सत्तावन गणधरो हता. १४ अनंतनाथना यशादिक पचास गणधरो हता. १५ धर्मनाथना अरिष्टप्रमुख त्रेतालीश गणधरो हता.१६ शांतिनाथना चक्रायुधादिक त्रिश गणधरो हता. १७ कुंथुनाथना शंखादिक पांत्रिश गणधरो हता. १७ अरनाथना कुंनादिक तेत्रिश गणधरोहता. १ए मल्लिनाथना निषगादिक अधाविश गणवसे हता २० मुनिसुव्रतस्वामिना मल्लप्रमुख अढार गणधरो हता. २१ नमिनाथना संतु विगेरे सत्तर गणधरो हता. शश्नेमिनाथना (आवश्यकसूत्रना अन्निप्राय प्रमाणे ) वरदत्तादि अगियार गणधरो अने (कल्पसूत्रना अभिप्राय प्र5 प्रमाणे ) अढार गणधरो हता. २३ पार्श्वनाथना (आवश्यकसूत्रना अनिमायथी )आर्यदिनादिक दश अने (कल्पसूत्रना अभिप्रायश्री ) पाठ गणधरो हता. श्व महावीरस्वामीना गौतमादिक अगीयार गणधरो हता. ए चोवीश जिनेश्वरना पहेला पहेला गणधरोने हुं वंदना करूं . एनपर आ नीचेनी त्रण गाथान कहे जे. . सिरिनसहसेण पहु सी-हसेण चारूरु वजनाहरका ॥ चमरो सऊो अ विद-प्न दिन्न पहुणो वराहो अ॥१॥ पहुनंद कुतुनो चिय, सुन्नुम मंदर जसा अरिो अ॥ चक्कानह संखा कुं-न निसय मल्लीय संजू ॥२॥ वरदत्त अजा दिन्ना, तहिंदलुई अ गणहरा पढमा ॥ सीसा सहाईणं, हरंतु पावा पणयाणं ॥३॥ अर्थ-१ श्री षन्नसेन, २ प्रनु सिंहसेन,३ चारुरु,ध वजनान्न, ए चमर, ६ सद्योत, ७ विदन, दिन, ए प्रत्तु वराह, १० नंद, ११ कौस्तुन्न, १२ सुनूम, १३ मंद, १५ यशा, १५ अरिष्ट, १६ चक्रायु, १७ शंख, १० कुंल, १ए निषग, २० मल्ल, १ शंन्नु, शश्वरदत्त, २३आर्यदिन्न, श्वइंनूति, चोविश तीर्थकरनों आ चोवीश शिष्यो सहित प्रथम गणधरो नमस्कार करता एका प्राणीजनां पापने नाश करो. ॥ ३॥ इति गणधरोनी स्तुति. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. हवे प्रथम चक्रवर्ती एवा नरतमुनिनी स्तुति करे . जरहमहारायरिसिं, गिहिवेसुपन्ननाणवररयणं॥ दसहिं सहस्सेहि समं, निखंतं वंदिमो सिरसा ॥४॥ अर्थ-जेमने गृहस्थना वेशमांज केवलज्ञानरूप रत्न नत्पन्न थयुं ने अने जेमणे दशहजार राजाननी साये चारित्र अंगीकार करयुं ने एवाते नरत महा राजर्षिने अमे मस्तकवमे नमस्कार करीए गए. हवे महाबल एवा बाहुबलि महर्षिनी स्तुति करे . हबिविलग्गस्स न केवलं तिसोकण व रिसपमिमंते ॥ पयपनमसमुप्पामिअ-नाणवरो जयन बाहुबली ॥५॥ अर्थ-जेमणे एक वर्ष कायोत्सर्गे रह्या पनी "हाथी (गर्वरूप हाथी) नपर चमेलाने केवलझान न होय.” एवां पोतानी व्हेनोनां वचन सांजली आगल चालवा माटे पग नपामवाथी जेमने केवलज्ञान प्राप्त अयुं बे एवा बाहुबलि जयवंता वर्तों ॥ ५ ॥ आजरत अने बाहुबलिनो संबंध श्री शषनदेवना चरित्रधी जाणी लेवो. हवे नरतराजाना वंशना अजितनाथ सुधीना सर्व राजर्षिननी स्तुति त्रण गाधाथी कहे . सुरवणा अहिसित्ता, नरहपए अचलरहवरपहुणो॥ . आश्चजसप्पमुहा, अहवि सासयसुहं पत्ता ॥६॥ अर्थ-सौधर्मं जेवी रीते नरतराजाने केवलज्ञान नत्पन्न अयुं ते वखते तेमनो केवल महोत्सव करीने तेमना पदे तेमना पुत्रने राज्याभिषेक कस्यो तेज प्रकारे अर्ध चक्रवर्तीनो अर्धा लरतक्षेत्रना राज्यने विषे राज्याभिषेक कस्यो .नरतना पुत्रोनो वंश नीचे प्रमाणे १ आदित्ययशा, २ महाबल. ३ अतिवल. ध बलन्न, ए बलवीर्य, ६ कार्तवीर्य; ७ जलवीर्य अने उ दंमवीर्य एम आठ आठ पुत्रो साश्वता सुखने पाम्या ने. ते वात आदिनाथना चरित्रथी 'जागी लेवी ॥६॥ अन्नेवि पुहविवश्णो, नसनस्स पनप्पए असं खिला॥ जाव जिप्रमत्तुराया,अजियजिण पिया समुप्पन्नो ॥७॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सगर चक्रवर्ती चरित्र. (एए) अर्थ-श्री ऋषनदेव प्रजुना परी तेमना वंशने विषे श्री अजितनाथ जिनेश्वरना पिता जितशत्रु राजा जेटला कालमां नत्पन्न श्रयाने तेटला कासमां (पचास क्रोम लाख सागरोपम कालमां) बीजापण असंख्याता पृथ्वोपतियो थइ गया ॥७॥ तेनए शुं करचुंडे ? ते नीचेनी गायाथी कहे जे. ननितु रऊलविं, पवश्या केवि सिवपुरं पत्ता॥ . सबबपञ्चमवरे, अवरे ते वंदिमो सिरसा ॥७॥ अर्थ-तेमांयी केटलाक तो राज्यलक्ष्मीने त्यजी दइने दीदा धारण करी मोक्षपुरने पामेला डे अने बाकीना सर्वार्थसिइ वैमाने प्राप्त थया . ते सर्वेने हुं मस्तकवझे नमस्कार करुं दुं ॥ ७॥ नरत चक्रवर्ती संबंधी जे कांइ कहेवा, हतुं ते आगलनी गाथामां कदेवाइ गयुं . हवे बाकी रहेला चक्रवर्तीनी स्तुति एक गाधाथी कहे . तणमिव जरतपहुत्तं, चश्तु नरवश्सहस्सपरियरिए॥ निखंते नरनाहे, नमामि नवसगरपामुके ॥ ५॥ अर्थ-नरतत्रना प्रनुपणाने तृणनी पेठे त्यजी दश्ने हजारो नूपतियोथी परवरेला अने दीक्षा धारण करेला सगर विगेरे नव चक्रवर्ती राजाउने हुं नमस्कार करूंबु. आ गाथानी अंदर "नव" ए शब्द मूक्यो , ते नपरथी एम समजवायूँ के, चक्रवर्तीयो बार बे. तेमां प्रथम नरतनुं आख्यान आगल कहेलु . सुन्नूम अने ब्रह्मदत्त सातमी नरके गयेला होवाथी तेन वंदना करवाने योग्य नथी; बाकीना नव वंदना योग्य ने एज हेतुथी "नव” शब्द मूल्यो . हवे तेमां प्रथम सगर चक्रवर्तीनुं चरित्र कहेवाय बे. ॥श्री सगर चक्रवर्ती चरित्रम् ॥ साकेत नगरने विषे श्वाकु कुलमांनत्पन्न श्रयेला अने पापभीनय पामता एवा जितशत्रु अने सुमित्र नामना बे नाश्त राज्य करता हता. तेमां जितशत्रुराजाने विजया नामनी स्त्री हती अने सुमित्रने वैजयंती नामनी गुणवंत स्त्री दती. . एक दिवस विजया अने वैजयंती ए बन्ने स्त्रीयोए जूदा जूदा गजादि चौद Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. महास्वप्नो दीगं. प्रज्ञाते ते वात तेनुए पोतपोताना पतिने कही एटले जितशत्रुसुमित्र बन्ने जाइयोए स्वप्न पाठकोने बोलावीने स्वप्ननो अर्थ पूग्यो. ते नृपरथी स्वप्न पाठकोए तेनने कर्तुं के, “तमारे एकने तीर्थकर ने बीजाने चक्रवर्ती एवा वे पुत्रो थशे.” अनुक्रमे तेडने उत्तम लक्षणवाला वे पुत्रो थया. तेमां एके पोताना पुत्रनुं नाम अजित ने बीजाए सगर पामधुं पढी अनुक्रमे वृद्धि पामीने नत्कृष्ट यौवनने पामेला ते बन्ने पुत्रोने माता पिताए उत्तम रूपवाली राजकन्यानु परणावी. पी जितशत्रु राजाए जितने राज्यासन उपर बेसारी सगरने युवराज पछि प्रापी पोते महोत्सवपूर्वक सुमित्र बंधुनी साथे नावी दीक्षा लइ उत्तम प्रकारे चारित्रने पाली मोक्षपद पाम्यो. वे अजित राजा पण दीर्घकाल सुधी राज्यने पाली पबी सगरने पो ताने पदे स्थापी पोते दीक्षा लइ त्रिजगत्प्रभु एवा तीर्थंकर थया. अठार लाख पूर्व कुमार अवस्थामां, त्रेपन लाख पूर्व राज्यावस्थामां, वार वर्ष ब्रह्मस्थावस्थामां अने एक लक्षपूर्वथी कांइक नहुँ चारित्रावस्थामां एम सघलुं मली प्रनुं बोतेर लाख पूर्वनुं आयुष्य हतुं. हवे सगर राजा पण व खंगवाला भरत क्षेत्रने साधीने चौद महारत्न तथा नव निधाननो अधिपति श्रयो साम्राज्यनुं पालन करता एवा ते राजाने सर्वांगे सुंदर एवा जन्दुकुमार विगेरे साठहजार पुत्रो थया. एक दिवस तेन सर्वे पितानी आज्ञा लड़ सघला भरतक्षेत्रने जोवा माटे पोताना नगरथी निवल्या. अनुक्रमे तेन दीन अने अनाथ लोकोने प्रीतिदान आपता त महोत्सव करता अष्टापद पर्वतप्रत्ये गया. त्यां तेन भरतराजाए करावेतुं श्री अरिहंत प्रतुतुं प्रासाद जो अने पोत पोताना वर्ण अने प्रमाणयुक्त तेमनी प्रतिमाने जोइ तेमने वंदन करी प्राश्वर्ययुक्त थया बता पोताना मंत्रिने पूठवा लाग्या के, “ जगत्ने प्रावर्यकारी एवं प्रा प्रासाद को कराव्यं वे ? " मंत्री कां. "हे कुमारें ! सांजलो, ते हुं तमने कहूं. "" पूर्वे तमारा कुलने विपे समर्थ एवा श्री युगादि प्रभु तीर्थकर थया बे. जमले प्रथम राज्यपछि धारण करी चार वर्णनी व्यवस्था करी ठे. शिल्पशा , कला. विकला अने अठार प्रकारनी लिपी पण तेमज लोकोना नपकानेक व.पी लोकांतिक देवताए ग्रावीने दीक्रानो अवसर नजिक Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सगर चक्रवर्ती चरित्र. (६१) आवेलो कहेवाश्री प्रनुए पोताना सो पुत्रोने जूदा जूदा राज्यने वित्र स्थापीने अने एक वर्ष पर्यंत दानरूप आषाढ मासना मेघश्री खंम पृथ्वीने शीतल करीने इं३ करेला महोत्सव पूर्वक चार हजार राजान सहित चारित्र धारण करी देवट दश हजार साधुन सहित मोदलदमीनो अंगीकार कस्यो. पी प्रन्नुना सो पुत्रोनी मध्ये जे पवित्र बुध्विालो म्होटो नरत हतो ते आ नरतक्षेत्रने विषे प्रथम चक्रवर्ती अयो. तमारा पिता तुल्य एवा ते राजाए आ जिनेश्वरर्नु प्रासाद करावीने तेमां पोत पोताना प्रमाण तथा वर्णवाला जिनेश्वरोनी चोविश प्रतिमाने स्थापन करी. आ प्रमाणे कस्या परी महात्मा एवा ते नरत चक्रवर्तीये पोताना वार्षिक रत्नवझे रत्नमय स्तुपो अने बीजुं सघटुं एज प्रमाणे कराव्यु. ज्यां सुधी नरत चक्रवर्तीये पांच सद पूर्व पर्यंत राज्य करयुं त्यां सुधी तेणे पोतेज पूर्ण नक्तिथी ए सर्वप्रतिमान्नु पूजन करयु. पी समग्र अलंकार युक्त देहवाला अने नावनाने नावता एवा नरत राजा अरिसानुवनमां केवलज्ञान पामी अनुक्रमे मोहलक्ष्मीने पाम्या. पठी इंडे आवीने त्नरतना पुत्र श्री आदित्ययशाने तेना पदने विषे स्थापन कस्यो.बीजा पण सात राजाने अनुक्रमे तेज पदे स्थाप्या.आ प्रमाणे आदित्ययशा विगेरे आठे राजानअरिसा नुवनमां केवलज्ञान प्राप्त करी मुक्तिनानोक्ता थया." - मंत्रीनां आवां वचन सांजली सगर चक्रवर्तीना साठ हजार पुत्रो विमय पामता उतां कहेवा लाग्या के, “अहो ! आ अमारुं कुल जयवंतु वो.” आवा सिंहनादथी तेनए आकाश गजावी मूक्यु. पनी तन परस्पर कहेवा लाग्या के, “ जेवी शोना जरतराजाए तेमना पिताश्री आदिनाथनी करी तेवी शोना "आपणे आपणा पिताश्री अजितनाथनी करावीशुंअने तेवुज जिनालय बंधावीशुं." आम धारी तेलए अष्टापद समान बीजो पर्वत जोवा मांमयो; परंतु अष्टापद पर्वत समान तेनए एके पर्वत दीगे नहि, तेथी तन पोताना प्रधानने पूबवा लाग्या के, “हे प्रधान ! कहो, आ अष्टापद केटला काल • सुधी अश्य रहेवालो ?” मंत्रिये कयुं. “हे राजकुमारो! सान्नलो, केवल झानीये एम कहेलु डे के, अवसर्पिणीकाल पर्यंत ए अक्षय रहेवानो .” कुमारोए कह्यु. “जो एम ले तो आपणे आ जिनालय, रक्षण करीए के, जेथी करीने लोनी.मागसो ए श्रेष्ट स्थाननो नाश करी शके नहि.". Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६‍ ) ऋषिमंगलवत्ति - पूर्वा ६. पत्री तेन दंमरत्नवमे अष्टापद पर्वतने मेखला रहित करचो. आटलं क स्वाथी तेमने तृप्ति नहि, तेथी ते ए ए पर्वतनी चारे तरफ खाई खोदवा मांमी अने ते तेमले पहेला पाथरा सुधी खोदी एवामां अग्निना समान कांतिवालो नागेंs त्यां श्रावी तेमने कदेवा लाग्यो: “दे कुमारो ! तमे प्रां खाइ खोदवावकरीने श्रमारा निवास स्थाननो जंग न करो. " कुमारोए कह्युं. " आ पृथ्वी कोनी बे ? ” नागेरे उत्तर आप्यो के, " हे श्रेष्टो ! ए तमारी बे. " राजकुमारोए क. "जो एम बे तो पढ़ी प्रमारी पृथ्वी मां खोदता एवा मोने दारे ना कवानी शी जरुर बे ? तुं पोताने स्थानके जा अने दवे प बी थी बोलीश नहि. " श्रम कुमारोए तिरस्कार कस्बो एटले नागैइ पोताने स्थाने गया. पी कुमारो पण ते खाइने पाणीथी नरवा माटे गंगाने त्यां लाव्या. खाइने विषे पती एवी गंगाने जोइ प्रसन्न मनवाला ते संव कुमारोए जगत्ने पूरी देनारा सिंहनाद कस्या. पबी तेनुना सिंहनादथी अने अखंमित धारावाला जलवमे पोतानुं स्थान व्याप्त थवाने सीधे अत्यंत क्रोधातुर थयेला तेमज ज्वाजल्यमान कांतिवाला नागेंरे त्यां श्रावीने तत्काल पोतानी विषष्टिना अग्नी ते साठहजार पुत्रोने जस्मीभूत करी नाख्या. श्रा प्रमाणे स्मीभूत श्रयेला जन्तु विगेरे साठ हजार राजकुमारोने जोइ बीजा राजा विगेरे सर्वे सामंतो विलाप करवा लाग्या वली बुटा केशवाली, कंचना हारोने तोमी नाखती, कंकणोने मांगी नाखती ने प्रति दुःखित ययेली ते कुमारोनी स्त्रियो पण विह्वल बने पृथ्वी नपर आलोटवा लागी अने विलाप करवा लागी के, "हादेव ! हा नाथ ! हा स्वामिन् ! निर्नाथ एवी अमोने व्यजी दइने तमे क्यां जता रह्या ?” आ प्रमाणे विलाप करता एवा सर्व सैन्यने मुख्य प्रधान कोमल वाणीथी आश्वासन करवा लाग्यो के, "आ संसारज असार बे; जावी अन्यथा धतुं नथी; माटे दवे सौ पोत पोताना कार्यने विषे चित्त राखो कारण के, श्रा पुत्रो शोक करवा योग्य नथी. तेन तो वहु तीर्थोने वंदना करी अने या स्थाननुं रक्षण करीने सत्पुण्य मेलवी मोक्षगतिनां पात्र थयां वे." प्रधान मंत्रीये श्रा प्रमाणे सर्व सैन्यने बोध पमामी प्रयाण कराव्यं. अनुक्रमे ते सर्वे सामंतो सदित मंत्रीयो नगरनी पासे यावी पहोच्या एटले तेन परस्पर विचार करवा लाग्या के, "हवे सगर महाराजानी पासे जड़ने एम कोस कहेशे के, "दे नाथ ! Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री सगर चक्रवर्ती चरित्र. . (६३) राजकुमारो विना अमे सौ श्राव्या बीए.” आम विचार करतां अग्निमां प्रवेश करवो योग्य धारी तेन सौ ते प्रमाणे तैयारी करवा लाग्या, एवामां ते वखते को एक ब्राह्मण त्यां आवी चड्यो. ब्राह्मण तेनी आवी तैयारी जो कहेवा लाग्यो के, “तमे वृथा खेद करवो त्यजी दो. कारण माणसने सुख दुःख प्राप्त पाय एकां आश्चर्य नथी.आ आदि अनेअंत रहित एवा संसारमा नाना प्रकारना कर्मने वश थर रहेला जीवोने एवी को वस्तु नथी के, जेनो क्षय थतो नदि होय. माटे हे सामंतो! तमे मृत्यु पामशो नहि अने सगर चक्रवर्तीने आ सर्व व्रतांत हुं कहीश.” ब्राह्मणनां आवां वचन सांजली तेन घणो हर्ष पाम्या. पी ब्राह्मण “हुं ठगायो बुं! हुं बेतरायो बुं!!” एम पोकार करतो दीनमुखवालो थ राजधारे आव्यो, त्यां सगर राजाए पोकार करता ते ब्राह्मराने तत्काल बोलावीने पूग्यु के, "हे धिजे ! तुं कोनाथी ठगायो ?" तेणे उत्तर आप्यो के, “हुं दैवथी ठगायो बु. कारण के, म्हारे एकनो एकज पुत्र हतो, तेने इष्ट साप करमवाथी ते तत्काल निर्जीव थ गयो ने. माटे हे कृपानिधि ! म्हारा नपर दया करी तेने जीवतो करो.” आ वखते पेला प्रधान विगेरे सामंतोए वीने सगर चक्रवर्तीने नमस्कार कस्यो. पठी सगर राजाए वैद्य लोकोने आशा करी के, “हे वैद्यो! ए ब्राह्मणना पुत्रने सापना विषयी मुक्त कसे." वेद्यो ब्राह्मणने घेर गया अने पुत्रने मरी गयेलो जोइ फरी राजा पासे आवी कदेवा लाग्या के, “दे नृपें! ए पुत्र मृत्यु पामेलो; माटे हवे जेना कुलमां के जेना गोत्रमा कोइ पण मरी गयुं न होय तेना घरेयी जस्म मंगावी आपो तो हुं तेने जीवतो करीए.” वैद्यनां आवां वचन सांजली सगर चक्रवर्तीये तेवा कुल अथवा गोत्रना घेरथी नस्म लश् आववानी पोताना सेवकोने आज्ञा आपी, परंतु ते यत्नश्री शोधतां पण क्यांश्थी मली शकी नहि. कारण के, सर्व कुलने विषे मरण श्रयेलांज हता. आ वात वैये राजाने करी एटले तेणे ब्राह्मणने कह्यु के, “हे जि ! तुं शा कारण माटे शोक करे वे. जगत्मां मृत्यु साधारणरुप ने तो पठी त्हारे पुत्रनो शोक करवो घटे नहि. केमके आ संसारज निश्चय जन्ममृत्युरुप बे; माटे दे जि! तुं रुदन मूकी दश् शोकनो त्याग करी आत्महित कर, कारण के, तने पण श्रोमा कालमांज मृत्युरूप सिंह गली जशे." ब्राह्मणे की. " है नाथ! आप कहोगेते सत्य Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. बे; परंतु पुत्र विना म्हारा कुलनो रूप याय के एटला माटे हुं शोक करूं कुं आपन दलाला एवा म्होटा महिमावाला तथा दुःखी अने दीन पुरुषो नपर दया करनारा बो, माटे हे कृपालु स्वामी ! म्हारा पुत्रने तत्काल जीवतो करो. ” राजाए कह्युं. “हे द्विजवर ! मृत्यु पामेलाने जीवावा इंड पण समर्थ नथी; तो पी माणसोनी तो वातज शी ? माटे तुं प्र त्हारी हग्ने त्यजी दे. वली प्राप्त ययेला मृत्युने शास्त्र अथवा मंत्र के तंत्रथी पाठुं वाली शकातुं नथी; माटे तुं व्हारा पुरुषार्थने त्यजी न दे. वली शोक त्यजी दइ शीघ्रं श्रात्मानो विचार कर. कारण के, मुर्ख पुरुषोज विनष्ट वस्तुने विषे शोक करे बे विवेकी करता नथी. ” ब्राह्मणे कयुं. " हे सत्वना समुझ महाराज ! जो नतम पुरुषो विनष्ट वस्तुने विषे शोक न करवो, एम आप कहो बो तो आपे प क्यारे शोक करवो नहि." ब्राह्मणनां यावां वचन सांगली सगर महाराजाए कह्युं. "अरे! तुं शुं मने पण शोक न करवानुं कहे बे ! तो पबी दैवे रक्षण करेला एवा मने पण शुं शोकनुं स्थान प्राप्त यवानुं बे ?” ब्राह्मणे कह्यं. “प्रापने उत्पन्न थयेला शोकनुं स्थान वहु दुःसह अने संभाव्य वे तो पण आपे धीरपशुं अंगीकार करवुं.” विमनां प्रावां वचनथी जयत्रांत थयेला सगर चक्रवतीये तेने “हे विप्र ! म्हारे पण शोकनो शो हेतु बे ?” एम पूबचं एटले तेणे जणाव्यं के, “प्रापना साठ हजार पुत्रो मृत्यु पाम्या बे.” ब्राह्मणनां यावां वचन सांगली वज्रश्री हणायेलानी पेठे प्रत्यंत दुःखित मनवालो सगर राजा मूर्छा पामीने सिंहासनी भूमि पर पी गयो. मूहीने अंते शोकथी भरपूर हृदयवालो ते रुदन करतो तो विविध प्रकारना विलाप करवा लाग्यो. हा उत्तमस्व जाववाला पुत्रो ! मनने वहाला ने गुराना समुझे ! मने अनाथने त्यजी दइने तमे क्यां जता रह्या हो ? मने एकवार तो दर्शन आपो. अरे! म्हारा पुत्रोने बलात्कारे गृहण करीने दैवेज म्हारो अपकार कस्बो वे. दादा कठोर हृदय ! तुं पुत्रना वियोगी केम फाटी जतुं नथी ? अरे प्राणो ! हवे तमारुं विधिपूर्वक रकस करनार कोण थशे ? हवे हुं ते प्रतिमां पेशुं के पर्वत उपरथी ॐपापात करूँ !!!" या प्रमाणे विलाप करता एवा सगर महाराजाने फरीथी ब्राह्मणे कह्युं. “हे महाराज ! याप मने उपदेश देता हता ते शुं तमे विचारता नयी ? याप जे संसारनी असारता कहेली वे ते सत्यज वे शोकश्री विधुर वनी · 7 • Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सगर चक्रवर्ती चरित्र. (६५) गयेला प्राणीयो पोतार्नु हित विचारी शकता नथी; परंतु सर्वेनुं परोपदेश करवामांज कुशलपणुं देखाय ये." सगर चक्रवर्तीये कां. “ एक पुत्र मृत्युपामवाथी तने केवं दुःख श्रयुं हतुं? तो पठी म्हारा तो साठ हजार पुत्रोनो दैवे नाश करी नाख्यो ." ब्राह्मणे कयुं: “हे महाराज ! म्होटाने म्हॉटुं दुःख होय . कारण के, वजना प्रहार तो पृथ्वीज सहन करी शके ये तृण सहन करी शकतुं नथी. वली सऊन पुरुषो तो संपत्तिने विष तथा आपत्तिने विषे एकज स्वन्नाववाला होय . जेमके सूर्य नदय समये तथा अस्त समये एकज स्वन्नावनो (लाल रंगनो) होय ; माटे हे महाराज! वीरपणुं धारण करी संसारनी असारता विचारी त्रण जगत्समान वियोगनी पीमामां विह्वलपणुं न करो. वली शोक मनुष्यने कां रक्षण कर्ता श्रतो नथी, परंतु तेथी नलटुं कर्म बंधन थाय ने, माटे माह्या पुरुषो संतापना कारणरूप शोक करता नथी.” इत्यादि वचनोथी ब्राह्मणे प्रतिबोध पमामेलो लगर राजा बीजानने पूवा लाग्यो के, “ म्हारा पुत्रो शी रीते मृत्यु पाम्या ?” आ वखते इं प्रत्यद थ तेना पुत्रोनो सर्व वृतांत कही संन्नलाव्यो. ते नपरथी सगर राजा विचार करवा लाग्यो के, "क्यारे पण नवितव्यता वृथा अती नश्री." आ वखते अष्टापदनी पासे रहेनारा सर्वे माणसो त्यां आवीने करुण स्वरथी सगर चक्रवर्तीनी विज्ञापना करवा लाग्या के, “हे विनो! तमारा पुत्रोए अष्टापदनुं रक्षण करवा माटे जाह्नवीनो प्रवाह आणेलो ने ते बहु देशने बोली दे ;माटे समुनी पेठे प्रसरता एवाते प्रवाहने निवृत्त करवामां आपना विना बीजा कोनुं सामर्थ्य नथी." पठी सगर राजाए पोताना पौत्र नगीरथने कडं के, "हे वत्स ! तुं त्यां जा अने दंगरत्नश्री ते जलना प्रवाहने समुह प्रत्ये लश् जा.” पी लगीरथ पितामह ( सगर राजा )नी आज्ञा लइ त्यां गंगानी पासे जा विधिपूर्वक अहम तपवमे नक्तिथी नागेंऽनुं आराधन करवा लाग्यो एटले तेनी नक्तिथी संतुष्ट श्रयेला अने ज्वाजल्यमान कांतीवाला नागे त्यां. आवीने तेने कयु के, “हे जगीरथ ! कहे, हुं त्हारूं शुं अनीष्ट करूं?" जगीरथे नमस्कार करीने कडं. "हे नागेंऽ! हुं त्दारा प्रसादथी लोकनेकुःख आपनाराआ गंगाना प्रवाहने समुह प्रत्ये लइ जान.” नागे कहूं. “ हे लगीरथ ! तुं हारूं शचित कर. हुं म्हारा सर्वे नागोने निवृत्त पमामीश." पठी नगीरथे वलीदान । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) ऋषिममलयत्ति-पूर्वाई. अने पुष्पादिकथी नागेनी पूजा करी अने पती हर्षथी.दरत्नवझे, गंगानाः प्रवाहने समुह प्रत्ये जोमयो. नगीरथ राजाए नागनी पूजा करी ए नपरथी लोकमां नागपूजा चालु यह अने गंगासागरनुं तीर्थ पण लोकमां प्रसिदिपाम्यु. जन्हु राजा गंगाने अहिं लाग्यो, माटे ते गंगानुं नाम जान्हवी पमा अनेन;.. गीरथ समुह प्रत्ये ले गयो, माटे तेनुं नागीरथी एवं नाम प्रसिइ.यु. पी नागसमूहे एकग श्रश्ने नगीरथनो पूजादिकथी सत्कार कस्यो एटले तेरो सा-, केतनपुर प्रत्ये जर सर्व वात-पितामह (सगर चक्रवर्ती )ने निवेदन करी: पो सगर-राजाए कुमार नगीरथने पोताने पदे स्थाप्यो अने पोते अजितना श्र प्रन्नु पाले विधिपूर्वक व्रत आदरयु अनुक्रमे सगर झषि तप करवाश्री घोर कर्म रूप मलनो त्याग करी अनंत सुखरूप मोदपद पाम्या. __ एक वखत-नगीरथ राजाए केवल ज्ञानीने, जो तेमने हर्षथी जन्हु विगेरेः कुमारोनो पूर्व जव पूग्यो के, “हे प्रनो! म्हारा पिताजन्हु विगेरे सगर, राजाना-साठ हजार कुमारो एकी वखते केम मृत्यु पाम्या?" केवलीये कां. " हे नूपति ! ते वृत्तांत सांजव्य. को एक महासंघ समेतशिखरनी यात्राये जतो हतो. रस्ते ते कोई, महा अरण्यने उल्लंधी एक गाम पाले आवी पहोच्यो; परंतु ते गामना लोको अनार्य अने-पाप बुध्विाला होवाथी उर्वचनादिके करीने संघने नपव करवा लाग्या; तेथी तेनए सामुदायिक अशुन्न कर्म बांध्यु. एवामां त्यां को एक कुंन्नारे आवीने ते संघने नपश्व करनारा उष्टलोकोने निवृत्त कस्या अने का के, "हे. मूढो ! जिनेश्वरनी यात्राये आवेला आ पवित्र एवा संघने घोर एवो नपड्व न करो, कारण के, वीजा साधारण प्राणीने पण नपञ्च करवायी मनुष्य घोर कर्म वांधे , तो पठी आ जगत्पूज्य एवा संघने उपाय, करवायी घोरकर्म वांधे तेमां तो झुंज कहेवू. हे महामूढो ! जोके पापात्मा पुरुयो पाते, आवेला परुणाननी सेवान्नक्ति करता नश्री तो पी तेमने नपड्या शामाटे करवो जोइए ?" आम कहीने संघने नपश्व करनारा लोकोन नि.. वात्या, तेथी संघ पोताने स्थानके गयोअने कुंनार पण प्रसन्न चित्तवालो अयो. नंच एम वन्यु के, एक दिवस तेज, गाममा रहेनारा चोरलोकोए राजा, . ना घरमा खातर पामयु; तेश्री राजानी सेनाये त्यां प्रावीने अने ते गामना: Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मघवान् चक्रवतीं चरित्र. (६७) दरवाजा बंध करीने ते गामने सलगांवी मूक्यु. संघने उपश्व करवा रूप वृकनुं ते तेमने कमवुं फल नृत्पन्न युं. या वखते कुंजारने कोई संबंधी ये sis विचार माटे बीजे गाम बोलावेलो होवाथी ते त्यां गयो हतो, तेथी संघना रक्षणना पुण्यश्री ते पची गयो. पंवी ते गाममां साठ हजार माणसो बलीने स्मरूप थइ गया. कारण के, करेलुं घोर पाप शुं वृथा थीय खरुं ? अर्थात् नज याय. या प्रमाणे ते मृत्यु पामेला माणसो पोताना कर्मवमे एक 'अरनी पासेना गाममा उत्पन्न प्रया, त्यां तेन एकंा थइने रहेता हता एवामां को एक बनना हाथीये तेमने मारी नाख्या, तेथी तेन दुःखना समूहथी यात एवी अनेक प्रकारनी योनिने विषे नमतां जमतां अनेक जन्मने धारण करी कोइ पण पुण्यना प्रजावने लीधे सगर राजाना साठ हजार पुत्रपणे नत्पन्न थया. हवणां पण ते पूर्व जवनां कर्मने सीधे तेन साधेज मृत्यु पाम्या बे. हवे कुंभार पण मृत्यु पामीने कोइ एक नंगरने विषे धनवंत वशिकू थ'यो. त्यांथी ते बीजा जन्मे राजा थयो. ए नवमां तेरो चारित्र अंगीकार करी मदा समृद्धिवंत एवं देवपद मेलव्युं पक्षी ते देवभवमां पण देवता संबंधि - नेक दिव्यगोने जोगवी महापुण्यवंत एवो तुं संगर चक्रवर्त्तीना पुत्र जन्हु राजाना पुत्रपणे उत्पन्न थयो बे." प्रा प्रमाणे ज्ञानीनां मुखथी जन्हु विगेरेनो पूर्वभव सांगली वैराग्यथ । पूर्ण थयेलो नगीरथ पोताना घरे गयो. ॥ इति श्री सगर चक्रवर्ती चरित्रम् ॥ ॥ श्री मघवान् चक्रवर्ती चरित्रम् ॥ हवे संपथी श्री मघवान् चक्रवतीनुं चरित्र कदेवाय वे. श्रावस्ती नामनी महा नगरीमां समुविजय नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने उत्तम गुणोने धारण करनारी जा नामे स्त्री हती. ते नये रात्रीने विषे चौद महा स्वप्न जोयां. पी पूर्णमासे ते झये एक पुत्र | रत्नने जन्म प्राप्यो राजाए तेनुं महोत्सव पूर्वक " मघवान् ” एवं नाम पाचं. पीते बालक अनुक्रमे चंदनी पेठे उत्कृष्ट समृद्धि सहित यौवनावस्थाने पाम्यो एटले पिता तेने पोताना राज्यने विषे स्थाप्यो पवी मघवान् भूपतिये भरत क्षेत्रने साधी चक्रवर्ती पद धारण करयुं. अनुक्रमे तेने बहुकाल विषयसुख · Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. नोगवतां वैराग्य प्राप्त अयो; तेथी वैराग्यना रंगथी रंगीत श्रयेलो ते विचारवा लाग्यो के, “ जे पदार्थो प्रतिबंधना हेतुरूप ने ते सर्वे अस्थिर देखाय ने नदार पुत्रो,मनोन्निष्ट प्रियान, मनोहर लोगो, म्होटी संपत्तियो, निरोगी शरीर, दीर्घ आयुष्य अने अनुत रूप ए सर्व संसारनी वृद्धि करनारा अने नाशवंत जणाय . तेमज आ संसारसुख पण स्वप्न समान देखाय जे.” आ प्रमाणे विचार करी श्री मघवान् चक्रवर्तीये पुत्रने विषे राज्यनो नार आरोपण करी पोते चारित्र अंगीकार करयु. पी घोर तप करी कर्मनो मल धो नाखनारा ते महामुनि केवलज्ञान पामी अंते मुक्ति रमणीने वस्या. ॥इति श्री मघवान् चक्रवर्ती चरित्रम्॥ ॥श्री सनत्कुमार चक्रवर्ती चरित्रम् ॥ आ लरतत्रना कुरुजांगल देशने विषे श्री हस्तिनापुर नामे मनोहर नगर ये. त्यां प्रजाने आनंदकारी अश्वसेन नामे राजा राज्य करतो हतो. तेना म्होटा अंतःपुरने विष सहदेवी विगेरे अनेक स्त्रियो हती अने चक्रवर्तीना लकणवालो सनत्कुमार नामे तेने एक पुत्र हतो. ए कुमारने सूरकालिंदी नूपतिनो पुत्र महेंश्तेन वहालो मित्र हतो. तेणे पोताना मित्र सनत्कुमारने सर्वकलामां निपुण कस्यो हतो. एक दिवस ते वन्ने मित्रो धोमा नपर बेसी नद्यानमां क्रीमा करता हता एवामां अविनित घोमाए ते राजकुमार सनत्कुमारनुं हरण करा. पंचमगतिथी चालतो ते घोमो कणवारमा अदृश्य श्रश् गयो. ते वात राजाए सांजली, तेथी ते अश्वसेन नूपति पण कुमारनी पाठल शोध करवा चाल्यो. राजा कुमारना घोमानां पगलां जोतो जोतो आगल जातो हतो; परंतु वायुथी नुमती धुलने लिधे घोमानां पगलां ढंका जवाने लिधे रत्तो मालमन पमवाथी ते पायो वली घरप्रत्ये आव्यो. पठी महेंउसिंह पोताना मित्रली शोधे चाल्यो. ते एक वर्ष पर्यंत नम्यो; परंतु क्यांऽश्री कुमारनी शोध पाम्यो नहि. पठी सिंहसमान पराक्रमी ते कोऽ एक अरण्यमां पेगे. त्यां ते अनेक पदीनना शब्द सान्नलतो अने कमलवनोना परिमलने ग्रहण करतो फरतो हतो. एवामां तेणे वेगुंठें गायन सांतव्यु. “ए शुं दशे ?" एम धारी जेवो ते तेना सन्मुख जा Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सनत्कुमार चक्रवर्ती चरित्र. (६५) यो एटलामां तो तेणेते वनमां स्त्रीयोनी मध्ये रहेला सनत्कुमारने दीगे. पी। तो ते महेंऽसिंह विस्मय पामी विचार करवा लाग्यो के, "शुं आ सनत्कुमार ने के कोई बीजो विद्याधर ? " आम जेटलामां ते विचार करे तेटलामां . बंदिजनोए जय जय शब्दपूर्वक कर्यु के, “अश्वसेन राजाना वंशमां मुक्ताफल समान, कुरुवंशरूप घरना स्तंन्नरूप, त्रय जगतना पति, देवलक्ष्मीना स्थान, सर्वत्र महात्म्यने पामनारा अने सर्वगुणोना समुश् एवा हे सनत्कुमार ! तमे जयवंता वर्तो." बंदिजनोनी आवी वाणी सांजली श्रयो निश्चय जेने एवा ते महेंसिंहे पोतानी सन्मुख नन्नेला सनत्कुमारने नलख्यो. सनत्कुमारे पण । तेने नलख्यो; तेथी ते नठीने महेंऽसिंहने नेटी पड्यो. आम तेन परस्पर नेटीने पठी एक आसन नपर बेग एटले तो सर्वे विद्याधरो विस्मय पामीगया, पठी कुमारे "तुं अहिं केम आव्यो?” एम महेंऽसिंहने पूज्यु. ते नपरथी तेणे एना नगरनो अने पोतानो सर्व वृत्तांत कही संन्नलाव्यो. पठी महेंसिंहे सनकुमारना आग्रहथी नोजनादि करीने कुमारने तेनो सर्व वृत्तांत पूग्यो एटले तोते पोतानो वृत्तांत जणावा माटे तेने पोताना अंतःपुरमा तेमी गयो.त्यां सनत्कुमारे पोतानी प्रिया वकुलमतिने आज्ञा करी के, "आ म्हारा मित्रने म्हारो सर्व वृत्तांत कहे.” पीते बकुलमतिये प्रज्ञप्ति विद्यार्नु स्मरण करी सनत्कुमारनो सर्व वृत्तांत कहेवो शरु कस्यो. ____ “हे मित्र! उर्विनीत घोमो जेटलामां कुमारने आ अरण्य प्रत्ये लश् आव्यो तेटलामां ते घोमो तत्काल मृत्यु पाम्यो. कुमार पण दावान लथी दग्ध थयेला आ वनमां अत्यंत तृषाथी पीमा पामतो तो मूबी पाम्यो. एटलामां अहिंज रहेनारा को दयावंत विद्याधरे तेने जलनु सिंचन करयु. थोमीवारे मूळनो नाश श्रयो एटले कुमारे पेला पासे नन्नेला विद्याधरने पूज्यु के, “तु कोण ठे अने आ जल क्याथी आएयुं ?" तेणे नत्तर प्राप्यो के, “हुंआ अरण्यमा रहेनारो विद्याधर बुं अनेआ जल मान सरोवरनुं जे.” कुमारे कहूं."हे गुह्यक! तुं मने झट मान सरोवर प्रत्ये लक्ष जा के, ज्यां हुं स्नानविधि करीने शीतल थनं.” पठी विद्याधर कुमारने तत्काल मान सरोवर प्रत्ये लइ गयो. कुमार मान सरोवरमां स्नान करतो हतो एवामां वैताढ्य पर्वत नपर रहेनारो असिताद नामनो विद्याधर के, जे तेनो शत्रु हतो तेणे तेने दीगे; तेथी पूर्वना Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. वैरने लीधे ते बन्नेनुं महा युः चाल्यु. तेमा प्रथम ते विद्याधरे महा वायु । . कुर्वी घाढ अंधकार करी नाख्यु. पी महा नयंकर घोर पिचाशना सरख अनेक रूपो बनाव्यां. कुमार आथी नय पाम्यो नहि एटले तो विद्याधरे तेने पाशवमे बांध्यो; परंतु ते पाशने तो तेणे हाथथी दोरीनी पेठे तत्काल तोमी नाख्यो. ज्यारे महा बलवंत एवा सनत्कुमारे पाशने तोमी नाख्यो त्यारे तो अत्यंत उष्ट एवा ते विद्याधरे कुमारना हृदयमां मुजरनो प्रहार कस्यो, कुमारे चंदन, वृद नपामी तेने मारयुं एटले तेणे महा कोपथी कुमारना नपर म्होटो पर्वत फेंक्यो. कुमारे वज्र समान पोतानी मुठीथी ते पर्वतने चूर्ण रूप करी नाख्यो. आम अवाश्री तो क्रोधथी व्याप्त श्रयेला मनवालो ते विद्याधर कुमारनी साधे युः६ करवा लाग्यो; परंतु वटे कुमारे पोतानी वज समा-न मुगीथी तेने एवो तामन कस्यो के, जेथी ते म्होटी बूम पामतो तो कागमानी पेठे नासी गयो, आ वखते आकाशमां नन्ना रहेला अन्य विद्याधरो "आ कुमारनुं नुजबल आश्चर्यकारी ने के, जेणे युद्धमा आवा विद्याधरने जीत्यो." आवी नद्घोषणापूर्वक कुमारंना नपर पुष्पवृष्टि करवा लाग्या. पी महेंधसिंह सनत्कुमारनी स्त्री बकुलमतिने पूवा लाग्यो के, “कुमारने ए विद्याधर साथे केम वैर थयुं हतुं ?” वकुलमतिये 'पोतानी विद्याना वलश्री कह्यु के पूर्वे कांचनपुर नगरने विषे महायशवंत विक्रमयश नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने अंतःपुरमां पांचले प्रियान हतो. वली ते नगरमा 'नत्तम बुविालो नागदत्त नामे सार्थवाह रहेतो हतो. तेने विष्णुश्री नामे स्त्री हती. एक दिवस विक्रमयश नूपतिये रागने लीधे विष्णुश्रीनुं हरण करयु. ए नपरश्री मोहने लीधे नागदत्त सार्थवाह गांमो अइ गयो अने विक्रमयश राजा विप्णुश्रीनी साथे प्रासक्तिश्री क्रीमा करवा लाग्यो; तेथी वीजी स्त्रीयोये षथी कामण करावी विष्णुश्रीने मारी नाखी. पठी विक्रमयश राजा मोहथी तेने अग्निसंस्कार करवा देतो नदोतो; तेश्री प्रधान विगेरे पुरुषोए राजानी नजर चुकवीने विष्णुश्रीना कलेवरने एक म्होटा अरण्यमां मोकलाव्यु.पी राजाए मोदश्री त्रण दिवस सुधी नोजन लीधुं नदि; तेथी प्रधान विगेरे पुरुषोए "श्रा नृपति विष्णुश्रीना शरीरने दीग विना मृत्यु पामशे.” एम धारी तत्काल ते Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सनत्कुमार चक्रवर्ती चरित्र. (७१) वगंधवाला. अने, अनेक जीवोथी व्याप्त थ गयेला विष्णुश्रीना कलेवरने मंगावी जाने देखामयु. राजा पण ते कलेवरने जोइ. विचार करवा लाग्यो के, "अरे जीव !ते जेने माटे जाति, कुल, शील, लजा अने कीर्ति विगेरे सर्व त्यजी दीधुं के तेनी आ अवस्था श्र! हा धिक्कार ने महापाप करनारा एवा मने!! हवे परलोकने विधे म्हारी शी गति अशे!!!” आम पस्ताचो करता एवा ते । राजाने तत्काल महा वैराग्य नत्पन्न भयो; तेथी तेणे श्री सुव्रत गुरु पासे संसार समुश्ने तारनारी दीक्षा लीधी. पठी ते निरतिचारपणे चारित्रने पाली अने अंते मृत्यु पामी सनत्कुमार देवलोकने विषे देवतापणे नत्पन्न अयो. त्याश्री चवीने ते रत्नपुर नगरमां को शेठना जिनधर्मा नामना पुत्रपणे नत्पन अयो. त्यां ते शुइ एवो श्रावकधर्म पालतो हतो. हवे नागदत्त सार्थवाहनो जीव पण प्रियाना वियोगटी संसारने विषे नमतो जमतो, सिंहपुर नगरमां धनवंत, अग्निशर्मा नामना ब्राह्मणपणे उत्पन्न थयो. अनुक्रमे वैराग्य प्राप्त अवाश्री तेणे त्रिदंमीव्रत ग्रहण करयु. घोर तप करतो एवो, ते त्रिदंमी कोइ, वखते रत्नपुर नगरने विषे गयो, त्यां तेनुं परिव्राजकना नक्त एवा, हरिवाहन राजाए नावभी पारणाने माटे आमंत्रण करयु; तेथी,ते त्रीदमी राजाना घर प्रत्ये गयो. त्यां तेणे पेला जिनधर्मा श्रावकने दीगे एटले तो त्रिदंमी कोध करीने राजाने कहेवा लाग्यो के, “हुँ त्हारा घरने विषे, त्यारेज पारगुं करीश के, ज्यारे आ शेठ पोतानी पीठ नपर म्हास,नोजननो थाल धारण करी राखे. वली हे राजन् ! हुं अत्यंत नष्ण एका ' पायसान्नथीज़ ( खीरथीजा) पारगुं करीश.” राजाए त्नक्तिश्री त्रिदंमीने तेज • प्रमाणे, पारगुं कराव्यु. त्रिदंमी. पारगुं करी रह्या पगी शेग्नी पीठ नपरथी थाल ल लीधो तो. त्यां म्होटा फोल्ला नत्पन्न अया. शेग्ने तेनी बहु पीमा नत्पन्न श्रवाशी वैराग्य नुत्पन्न भयो; तेथी पर्वत समान धीर एवा तेणे पोताने • घरे जर सर्व परिवारनी रजा लश्ने जिनेश्वरनी पूजा करवा पूर्वक अनशन व्रत धारण करयु पनी नत्तम बुध्विालो ते एक पद पर्यंत चारे दिशा-मां का'योत्सर्गे रह्योः त्यां गीध अने शियाल विगेरे पशुन्थी निरंतर नहण करातो ते शुन्न नाववालोजिनधर्मा मृत्यु पामीने सौधर्म देवलोके देवेपणे नत्पन्न थयो. त्रिदमी पण मृत्यु पामीने पापकर्मने लीधे तेज देवेंना वाहन ऐरावण हाश्री Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) वाषिमंमलत्ति-पूर्वाई. रूपे नत्पन्न अयो, आ प्रमाणे ते हाथी मनुष्य अने तिर्यंच योनिने. विषे दीर्घ-- काल सुधी भ्रमण करी असिताद नामना यक्षपणे नत्पन्न भयो अने सौधदेवलोकनो इंट् अश्वसेन राजाना पुत्र सनत्कुमारपणे नत्पन्न अयो. हे मित्र. यदनी साथे कुमारने वैरनुं एज कारण जाण्य. बकुलमतिये महेंसिंहने आ प्रमाणे वैरनुं कारण कही संनलाव्यु. वली वकुलमतिये कह्यु के, हे महेशसिंह! पठी सनत्कुमार यदने जीती आगल चाख्यो. अनुक्रमे ते पाउला पहोरे सर्व प्रकारनी शोन्नाथी मनोहर एवा नंदन वनने विषे आवी पहोच्यो. त्यां तेणे नानुवेग विद्याधरनी आठ कन्यानने दीठी."आकोण हशे!" एम विचारी तेणे एक न्हानी कन्याने पूग्यु के,“तमे कोण गेअने अहिं केम रहो गे?" ते कन्याये कडं. "हे कुमारे! ते वात सांनलो, प्रियसंगमा नामनी नगरी . त्यां विद्याधरोने विषे नत्तम एवो नानुवेग नामे विद्याधर राज्य करे . तेनी अमे आठ पुत्रीयो बीए. हे न! तुं ते अमारी नगरी प्रत्ये चाल. त्यां अमारो पिता त्हारी पूर्ण हर्षयी सेवा नक्ति करशे." पठी ते कन्याना सेवके देखाइयो ठे मार्ग जेने एवो ते कुमार जेटलामां ते नगरनी पासे पहोच्यो तेटलामां सूर्यास्त श्रवाने लीधे सर्व जगत् अंधकारमय अश् गयु. कंचुकि कुमारने नूपति पासे तेमी गयो एटले नानुवेग राजाए तेने बहु आदर सत्कार करीने पो कां के, “हे कुमार ! मने । अचिमाली मुनिये पूर्वे का हतुं के, जे सुन्नट पोताना नुजवलथी असिताव नामना यदने जीतशे तेज नाग्यशाली पुरुष त्हारी आठे पुत्रीयोने परणशे; माटे हे न ! हवे तुं ते म्हारी पुत्रीयोनी साथे लग्न कर.” नानुवेग विद्याधरनी प्रावी आझाश्री कुमारे महोत्सव पूर्वक हर्षश्री ते सर्वे कन्याननी सारेलग्न करयु. पठी ते सर्व स्त्रीयोनी सा रतिग्रहमा सुतेलो कुमार ज्यारे सवारे जागी नग्यो त्यारे तो तेणे पोताने पृथ्वी नपर पमेलो दीगे.पठी कुमार अाश्चर्यश्री विचारवा लाग्यो के, "शुं आते सत्य ठे के साया !?" आम विचार करता एवा तेणे पोताना हायने विपे कंकणदोरो दीठो; तेथी तो ते अत्यंत ग्वदातर अयो. पठी कुमार त्यांधी चाली निकल्यो अने एक म्होटा अरण्यमा श्रावी पदोग्यो. त्यां तेणे पर्वतना शिखर नपर देव लोकना वैमानसमान मणि अन मुवर्णश्री रचेलो एक म्होटो सात.मालनो महेल जोयो.कुमार तेनी पासे Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री सनत्कुमार चक्रवर्ती चरित्र. (७३) गयो तो तेणे कोश्नो करुणायुक्त रुदननो शब्द सांजल्यो. पठी अंदर पेसी जेवो ते सातमे माले गयो तो त्यां तेणे कोई एक कन्या दीठी. वली “हे अश्वसेन राजाना वंशना विनूषण सनत्कुमार ! तमे नवांतरने विषे पण म्हारा नर्तार अजो." एवा शब्दथी विलाप करीने रुदन करती सांजलीने कुमारे ते कन्याने तेनुं कारण पूग्युं एटले ते कन्याये की. “साकेतपुरना सुरनि नूपतिनी चंयशा राणीना नदरने विषे नत्पन्न थयेली हुं सुनंदा नामनी पुत्री बु. एक दिवस चित्रपटने जोर हुं अश्वसेन राजाना पुत्र सनत्कुमारने विषे आसक्त प्रश्ने में हृदययी तेनेज म्हारो पति धात्यो. पली म्हारा माता पिताए म्हारो तेनी साथे विवाह कस्यो; परंतु आज सुधी तेनी साथे म्हारूं लग्न करयु नहोतुं. एवामां को विद्याधर रत्नमंदिरमांथी हरण करी मने अहिं लाव्यो. पनी ते पोतानी विद्याना बलथी बनावेला आ मनोहर मंदिरने विषे मने मूकी तेक्यांश चाल्यो गयो बे.” सुनंदा जेटलामां आ प्रमाणे पोतानी वार्ता कुमारने निवेदन करे ने तेटलामां ते विद्याधरे आवीने सनत्कुमारने आकाशमां फेंक्यो, आधी सुनंदा " हा हा” शब्द करवा लागी. पठी पृथ्वी नपर पमेलो कुमार पोतानी दृढमुष्टिथी ते विद्याधरनो नाशकरी स्त्रीरत्न थनारी ते सुनंदाने परण्यो, ___ दवे जे विद्याधरने सनत्कुमारे हण्यो, तेनी संध्यावली नामे व्हेन विद्याधरी ते वखते त्यां आवी चमी. ते पोताना बंधुने मरायेलो जोइ पहेली अत्यंत क्रोधातुर श्रश्; परंतु पाब्लथी ते “ तुं हारा बंधुने हणनारनी प्रिया अश्श.” एवां निमित्तियानां वचन संन्नारी शांतपणुं पामीने कुमार उपर आसक्त अश्. पनी कुमारे सुनंदानां वचनश्री तत्काल ते विद्याधरीनो पाणीग्रहण करयो, एवामां को विद्याधरना बे पुत्रो त्यां आवी सनत्कुमारने नमस्कार करीने कदेवा लाग्या के, “ हे स्वामिन् ! अमे चंद अने नानुवेग नामना विद्याधरोना हरिचंड अने चंसेन नामना पुत्रो बीए. अमारा पिताए अमने तमारी पासे संदेशो कदेवा मोकळ्या ठे के, अशनिवेग नामनो विद्याधर पोताना पुत्रनां मृत्युथी क्रोध पामी तमारा नपर चमीआवे बेमाटे अमेतमारी साहाय करवा आवीये जीए. अमारा पितान अमारी पाबलज आवे .” आम ते विद्याधरोना बन्ने पुत्रो कहे जे एटलामां तो अशनिवेग विगेरे सर्वे विद्याधरो तत्काल त्यां Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. आवी पहोच्या. आ समये संध्यावलीये पोताना पिता अशनिबेगने उर्जय मा: नी पोताना पति सनत्कुमारने तुरत प्रज्ञप्ति विद्या आपी. पी कुमार अने. शनिवेग बन्ने जणा क्रोधातुर थश्ने परस्पर युह करवा लाग्या. तेमां अशनिवेगे कुमार नपर सास्त्र फेंक्यु एटले कुमारे गरुमास्त्र मूकी सर्पास्त्रने तत्काल निष्फल करी नाख्यु. विद्याधरे आग्नेयास्त्र मूक्युं तेना नपर कुमारे वारुणास्त्र मूक्यु. विद्याधरे पर्वतास्त्र मूक्युं तेना नपर कुमारे वज्रास्त्र मूक्यु. पगी बाणनी वृष्टि करता एवा विद्याधरनां धनुष्यनी दोरी कुमारे तोमी नाखी. विद्याधरे खड़ खेच्युं एटले कुमारे तेनो हाथ कापी नाख्यो अने व्वटे बाहु युध्ने - छता एवा ते विद्याधरनुं मस्तक पण चक्रवमे बेदी नाख्यु. पठी विजयवंत एवो सनत्कुमार अनेक विद्याधरोथी परवस्यो थको वैताढ्य पर्वत नपर गयो. त्यां विद्याधरोए तेने महोत्सवपूर्वक चक्रवर्तीपदे स्थाप्यो. एक दिवस विद्याधरपति चमवेगे आवीने सनत्कुमारनी विनंती करी के, “हे स्वामिन् ! म्हारे नुत्तम रूपवंती एक हजार पुत्रीयो ने; ते सर्वेना पति आप थवाना गे, एम ज्ञानीये कडं ; माटे हे प्रनो ! तमे ते सर्वेने परणो.” पठी कुमारे ते सर्वे विद्याधरकन्यानी साथे लग्न करयु. (वकुलमति महेशसिंहने कहे ठेके) हे महेंऽसिंह! पठी सनत्कुमार वैताढ्य पर्वतने साधी अने जिनेश्वरनी पूजा करी जेटलामां अहिं क्रीमा करवा आव्या । तेटलामां आजे तमे मल्या गे." आ प्रमाणे बकुलमतिये टुंकामां सनत्कुमारनुं सर्व चरित्र कह्यु. पठी सनत्कुमार वकुलमतिना घरेथी नठी महेशसिंहनी साथे वैताच्य पर्वत नपर गयो. त्यां महेंउसिंहे सनत्कुमारनी विनंती करीने कडं के, “हे स्वामिन् ! तमारा मातपिता तपारा वियोगथी बहु पीमा पामेले." मित्रनां आवां वचन सांतली चित्तमां मातापिता उपर अत्यंत स्नेहवंत श्रयेलो सनत्कुमार चक्रवर्ती विविध प्रकारनां वैमानो सहित तत्काल हस्तिनापुरे श्राव्यो. त्यां मातापिता पोताना पुत्रनी आश्चर्यकारी संपत्ति जो घणो हर्ष पाम्यां. सर्व नगरवासी लोक पण अत्यंत आनंदित प्रया. पी अश्वसेन नूपतिये पोताना राज्यने विपे सनत्कुमारने अनिषेक करी मित्र महेंसिंदने सेनापति पदे स्थाप्यो अने पोते श्री धर्माहत्तीयने विषे चारित्र अंगीकार करी तपस्या करवा लाग्यो, Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सनत्कुमार चक्रवर्ती चरित्र. (७५) . अहिं सनत्कुमारे पञ्चास हजारवर्ष कुमार अवस्थामां अने तेटलाज मंमलिक पदे निवृत्त करीने चक्रवर्ती पद धारण करयु. पी मागध अने वरदामादिक सहित सर्व नरतदेत्रने साधी ते पागे एक हजार वर्षे हस्तिनापुर प्रत्ये प्राव्यो एटले इं३ तेने पोताना समान जागी पोताना बंधुना प्रे. मथी कुबेरने आशा करी के, “तुं नरतकेत्रने विषे जश् म्हारा नामथी सनकुमारने विचित्र प्रकारना महोत्सव पूर्वक चक्रवर्तीनो अनिषेक कर तथा वनमाला, दिव्य वस्त्र, कुंमल, मुकुट, बत्र,चामरो, हार, सिंहासन अने पादपीठ विगेरे तेने आप. वली त्दारे म्हारुं नाम लश्ने तेने कहेवु के, पहेला देवलोकनो इंश तमने कुशल समाचार पूजे जे." आ प्रमाणे इंडे आज्ञा करेलो ते कुबेर सर्व वस्तुने लश् हस्तिनापुर प्रत्ये गयो. वली इं३ ते अनिषेकना महोत्सव कार्यमां दस्तिनापुरप्रत्ये पोतानी रंन्नादि बहु दिव्य अप्सरानने मोकली; तेश्री ते अप्सरान पण त्यां गइ. कुबेरे पण हस्तिनापुरप्रत्ये आवीने सनत्कुमारनी आगल सर्वे वस्तुन मूकी इ कहेला समाचार निवेदन कस्या. पली योजन प्रमाण मणिपीठ रची तेना नपर अनिषेक मंझपने विषे रत्न सिंहासन बनावी तेमां स्त्रीरत्न सहित चक्रवर्तीने बेसारी कीरसमुश्मांथी मणि जमित्र सुवर्णना कलशामां नरेला जलवमे वाजींत्रोना शब्द पूर्वक अनिशेक कस्यो. ते वखते रंनादि देवांगनान प्रीतिपूर्वक नृत्य करवा लागी. आप्रमाणे बार वर्ष पर्यंत महा संपत्तिथी अन्निषेक करी अने तेने हस्तिनापुरप्रत्ये प्रवेश करावी कुबेरादि सर्वे देवतान स्वगप्रत्ये गया. पनी विख्यात कीर्तिवंत एवा सनत्कुमार चक्रवर्तीये कुटुंब सहित एक लाखवर्ष पर्यंत असंख्य नोगोनोगव्या. एक दिवस हर्षित एवा देव दानवोनी पंक्तिथी नरपूर एवी सन्नामां विविध प्रकारनी नाट्यविधिने जोतो तो सौधर्मे बेगे हतो. ते वखते ईशान देवलोकमां रहेनारो संगमक नामनो देव त्यां आव्यो. तेना शरीरनी कांतिथी सर्वे देवता निस्तेज थइ गया.ते मपरथी आश्चर्य पामेला देवतानए इंश्ने पूज्यु के, “हे सुरें! आ देवतानी बार सूर्यथी पण अधिक कांति शा कारणे ? ते अमने कहो.” कडं. “ हे देवो! एणे परनवने विषे विशुः६ एवं आंबिल करी तपने वृदिपमामयुं हतुं;तेथी तेनी आ नवने विषे अधिक कांतिथ ये." देवतानए Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. फरीथी पूज्यु."आना समान तेजवंत बीजो कोइ पण पृथ्वीने विषे?"इकडं: "पृथ्वी नपर सनत्कुमार चक्रवर्ती एनाथी अधिक कांतिवालो .” इंश्नांधावांव चन सांजलीने संतुष्ट श्रयेला विजय अने वैजयंत नामना बे देवतान ब्राह्मलनुं रूप धारण करी सनत्कुमारनुं स्वरुप जोवा माटे हस्तिनापुरप्रत्ये आव्या. आ वखते मध्याह्ननो समय होवाथी सनत्कुमार न्हावण करतोहतो; त्यां देवतानतेनादेहने जो अत्यंत हर्ष पाम्या. ते वखते सनत्कुमारे तेमने कडं के, “हे विप्रो! हवणां तमे म्हारुं शरीर शुं जून गे? परंतु सर्व अलंकारयुक्त एवा ए म्हारा शरीरने तमारे सांजे सन्नामां आवीने जोवू.” पछी चक्रवर्तीये ते दिवसे विशेष आनरणोथी पोताना शरीरने सणगारी सन्नामां बेसी पेला बन्ने विप्रोने बोलाव्या. ब्राह्मणनां रूप धारण करनारा देवता त्यां आवी राजाना देहनी हानी जोश खेद पामता उता तत्काल पोताना मस्तकने धूगाववा लाग्या. मस्तक धूणावता एवा ब्राह्मणोने जो विस्मित श्रयेलो सनत्कुमार चक्रवर्ती तेमने पूबवा लाग्यो के, “तमे तमाहं मस्तक केम धूणावो गे?" तेनए कडं. “हे महाराज! हवणां तमारा देहले विषे कांश हानी देखाय ने. कारण जेवू रूप अमे पूर्वे दोई हतुं तेवू हवणां देखातुं नथी.” आ प्रमाणे ते विप्ररूप देवताननां मुखथी पोतानां शरीरनी हानी सांजली पुण्यवंत एवा सनत्कुमार चक्रवर्तीये बोध पामीने विनयंधर गुरु पाले दीक्षा लीधी. पळी ते बन्ने देवता तेने कद्देवा लाग्या के, “हे वीर ! तमे पण प्रसिह यशवंत एवा पोताना पूर्वजन्नरत राजानी पेठे सत् आचरण आदरयुं ते बहु सारं करयु." श्राम ते बन्ने देवतान तेनी स्तुति करी तत्काल स्वर्गप्रत्ये गया. पठी सनत्कुमार मुनि विहार करवा लाग्या. तेमनी पागल तेमनो परिवार पण फरवा लाग्यो, परंतु मुनिये तेना सामुं जोयुं नहि. आम उ मास सुधी चाल्यं. पठी आवीने ते सर्व परिवारने पागे वाल्यो, एक दिवस ते मुनिये म्ना पारणाने विये वकरानी गश युक्त कांगना सरखा खराव चोखानुं नोजन करयुं; तेथी तेमना शरीरे दुःसह एवा सात रोगो नत्पन्न श्रया. ते या प्रमाणे. १ नोजनादि नपर अरुचि, २ शरीरे खरज, ३ पेटमां महा वेदना, ४ नेत्रमा म्होटुं दुःख, ५ ताव, ६ श्वास, ७ अने दाइ. सनत्कुमार चक्रवीये ते सात रोगाने सातसें वर्ष सुधी सहन कस्या; तेथी तेमने आमपौषधि Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (99) विगेरे सर्व लब्धि प्राप्त थइ. एक दिवस इंड् देवसनामां दर्षथी प्रशंसा करवा लाग्यो के, “सनत्कुमार मुनि जेवी रीते रोगने सहन करे बे तेवी रीते बीजो कोइ करशे नहि." इन आवां वचन सांगली उत्पन्न यह बे इर्ष्या जेमने एवा ते विजय ने वैजयंत बने देवता वैद्यनां रूपने धारण कर तत्काल सनत्कुमार मुनिनी पासे आया अनेकवा लाग्या के, "हे राजर्षि ! तमारा या सर्वे रोगोनो अ तत्काल नाश करीए.” मुनिए कयुं "कया रोगोनो नाश करवामां तमारी शक्ति बे ?" देवतानए कर्तुं “हे साधु ! केटला प्रकारना महारोगो कहेला बे ?” मुनिये . " हे वैद्यो ! बाह्य अने आभ्यंतर एवा जेदथी रोगो वे प्रकारना बे. मां कया रोगोनो नाश करवामां तमारी शक्ति बे ?" तेनए कयुं . " हे मुनि ! बाह्य रोगनो नाश करवामां अमारी शक्ति बे." ते सांजली मुनिये क. "दे महाभाग ! ते शक्ति तो म्हारी पण बे." एम कही मुनिये पोताना हाथनी प्रांगली पोताना मुखमां नांखी सुवर्ण समान बनावी आपीने तेमने कह्युं के, " श्लेष्मादिकथी म्हारा बाह्य रोगो नाश थाय छे; परंतु आभ्यंतर रोगो नाश तानी तेनो तमे विनाश करो.” देवतारूप वैद्योए कहुँ. " हे साधु ! यात्र्यंतर रोग समाववाने अमारी शक्ति नयी. ते रोगोने नाश करवामां तो तमरीज शक्ति बे." एम कही तेनए पोताना स्वरूपने प्रगट करी देवसनामां इे करेली तेमनी प्रशंसा कही संजलावी. पबी तेन मुनिने नमस्कार करी स्वर्ग प्रत्ये गया. मुनि, सनत्कुमार पण अनशन व्रत धारण करी सनत्कुमार देवलोक प्रत्ये गया. त्यांथी चवीने महाविदेह क्षेत्रने विषे कर्मनो दय करी सिद्धि पामशे. पच्चास हजार वर्ष कुमार अवस्थामां, पच्चास हजार वर्ष सामान्य राजापणे, एक लाख वर्ष चक्रवतीपदे ने एक लाख चारित्रमां एम ए सनत्कुमार चक्रवर्त्तीतुं कुल ऋण लाख वर्षनुं श्रायुष्य हतुं. ॥ इति सनत्कुमार चक्रवर्ती चरित्रम् ॥ ॥ श्री शांतिनाथ चरित्रम् ॥ जेमले गर्भमा रह्या बतां सर्व जीवोने शांति करी बे, ते शांतिना करदार श्री शांतिनाथने हुं नमस्कार करूं कुं. श्री शांतिनाथ जिनेश्वरना वार 1 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. नवनुं स्वरूप हुँ पोताना प्रतिबोधने अर्थे कहुं छ; माटे हे नव्यजनो ! तमे ते. श्री शांतिनाथनां चरित्रने नावथी सांनलो. आ जंबूद्दीपना नरतक्षेत्रने विषे अनंत रत्नाथी नरपूर एएँ रत्नपुर ना-2 मर्नु नगर . त्यां धर्ममां प्रविण, परोपकारी, प्रजानुं पालन करवामां सावधान, शत्रुनो नाश करवामां समर्थ तेमज नदार, धीर अने गंन्नीरादि गुणो. वालो श्रीषेण नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने शील रूप आनूषणोने धारण करनारी, प्रेमर्नु पात्र अने सर्व कलामां कुशल एवी एक अन्निनंदिताअने वीजी सिंहनंदिता एम बे स्त्रीयो हती, आ बन्ने स्त्रीयोनी साथे विषय सुख नोगवता एवा श्रीषेण राजाना एक दिवसनी पेठे बहु वर्षो चाख्या गया. एक दिवस झतुकाले स्नान करेली मुख्य स्त्री अन्निनंदिता रात्रीये पोताना शयनमंदिरमा सूति हती ते वखते तेणे स्वप्नामां अंधकारनो नाश करनारा सूर्यचंने एकी वखते पोताना खोलामां जोया. पगी जागी नठेली ते राणी हर्ष पामती उती मनमां विचार करवा लागी. “शास्त्रना जाण पुरुषो एम कंहे के, नत्तम स्वप्न जोड्ने ते स्वप्नानी वात जेवातेवाबीजा माणसने कहेवी नहि तेमज पठी सूवू पण नहि." आ प्रमाणे विचार करीने ते अग्निनंदिता राणीये स्वप्तानी वात प्रनाते पोताना पति श्रीषेण राजाने कही. राजाए पण पोतानी बुड़ियी अने शास्त्रथी स्वप्ननां फलनो विचार करीने प्रसन वाणीश्री राणीने कडं. “हे देवी ! आ स्वप्नना महिमाथी तने पृथ्वीमां विख्यात अने कुलने प्रकाश करनारा नत्तम वे पुत्रो थशे.” राजानां आवां वचन सांजलीने प्रसन्न श्रयेली राणी जेम नपकारी अने करेला गुणने जाणनारा एवा वे पुरुषथी पृथ्वी शोने तेम वे गर्जने धारण करती उती शोनवा लागी. पठी पूर्ण समये जम नत्तम नीति धर्म अने अर्थने प्रगट करे तेम रापीये शुन्न अवसरे वे पुत्रोने जन्म आप्यो. पिताए दश दिवस गया परी महोत्सवपूर्वक ते वने पुत्रोनां इंपेग अने विंडपण एवां नाम पामयां. अनुक्रमे ते बन्ने कुमारो आठ वर्पना श्रया एटले पिताए तेमने कलाचार्य पासे अच्यास करवा मोकल्या. त्यां तेन कलानो अभ्यास करता करता यौवनावस्था पाम्या, . दवे या नरतकेत्रमा मगध देशने विषे लटमीश्री सुशोनित एवं अच.. ल नामनुं गाम . त्यां वद अन शास्त्रनो जाग एवो धरणिजटा नामनो ब्राह्म Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (30) व रदेतो हतो. तेने यशोनश नामनी स्त्री हती. ए यशोन्नशथी नंदिषेण अने श्रीनूति ए नामना बे पुत्रो थया हता, धरणीजटा ब्राह्मण ए बन्ने पुत्रोने नि'रंतर यत्नयी वेदशास्त्रनो अभ्यास करावतो हतो. वली ए ब्राह्मणने कषिला नामनी दासी हती के, जेनो कपिल नामनो पुत्र हीन जातिनो होवा उतां बहु बुध्विान् इतो. धरणीजटा ब्राह्मण पोताना पुत्रोने जे जे नणावतो ते ते सांजलीने कपिल चौद विद्यानो पारगामी अयो. पळीनीच जातिने लीधे मान नहि पामवाथी कपिल पोतानो कंठमां बे जनो धारण करी त्यांथी चाली निकल्यो अने “हुं म्होटो ब्राह्मण मु.” एम मानीने पृथ्वी नपर फरतो फरतो रत्नपुर नगरने विषे आव्यो. आ नगरमां सत्यकी नामनो नपाध्याय रहेतो इ, तो अने ते बहु शिष्योने नणावतो हतो. कपिले ते अभ्यास करनारा शिष्योने वेद तथा उपनिषद्नां एवां प्रश्न पूज्यां के, जेनो नत्तर प्रापवाने एक शिष्य 'पण समर्थ अयो. पठी सत्यकीये तेने बहु गंभीर प्रश्नो कस्वां; पण तेनो नत्तर तो तेणे पोतानी बुझिना बलश्री तुरतज आपी दीधो; तेथी सत्यकी बहु प्रसन्न थयो. पठी सत्यकीये तेने महा बुध्विान् जाणी पोताना नपाध्याय पदने विषे स्थापन कस्यो, कह्यु बे के-गुणोथी कयुं पद नथी मली शकतुं ? अर्थात् सर्व पद मली शके . . हवे केटलाक दिवस गया पडी को वखते ए सत्यकीनी स्त्री जंबुकाये पोताना पतिने एकांतमां कडं के, “हे नाथ! आ सत्यनामा नामनी तमारी पवित्र पुत्री यौवनावस्था पामी ; माटे हवे तेनो विवाह करवो योग्य रे. वली हे नाथ! आ एक कपिल विना बीजो कयो पुरुष ए पुत्रीनो योग्य वर ? माटे विशाल बुध्विाला ए कपिलनी साथे पुत्रीनो विवाह करो.” सत्यकी नपाध्याये प्रियानां आ सर्व वचन मान्य राख्यां, कह्यु ले के-विवाहनां कार्यमां पुरुषो घणुं करीने स्त्रीयोनां कहेवा प्रमाणे करे . पठी सत्यकी ब्राह्मणे शुन्न दिवसे नत्तम लग्नमां पोतानी पुत्रीने कपिलनी साथे परणावी. वली धन थान्यादिकथी पूर्ण एवं घर तेने रहेवा माटे आप्यु; तेथी कपिल सघला नगरने विषे प्रसिद्धि पाम्यो. पठी कपिल सत्यनामानी साधे विषयसुख सुख नोगवतो त्यां सुखेथी रहेवा लाग्यो. कारण के, कुलरहित एवाय पण जो विद्यावंत पुरुषो होय तो ते वखणाय ने. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषिमंगलवति - पूर्वाई. दवे धान्य अने तृानी वृद्धि करवायी जगत्ना जीवोने दर्ष पमामनारो, Sकालने दूर करनारो वर्षाकाल आव्यो. एवामां एक दिवस रात्री ये देव मंदिरमां नाटक चालतुं हतुं ते जोवा माटे कपिल त्यां गयो. बहु रात्री गया पठी नाटक बंध युं एटले सौ माासो पोतपोताने घेर जवा लाग्या. आव खते वर्षाद बहु तो हतो ने रात्रीनो घोर अंधकार होवाथी रस्ते कोइ जतुं प्रावतुं नहोतुं; तेथी कपिल पोताना मनमां विचार करवा लाग्यो के, " हुं लुगकांने फोगट शा माटे जिंजवुं ? अत्यारे रस्तामा कोइ जतुं प्रावतुं नथी.” आम धार ते पोताना सर्व लुगमां काढी एक पोटली बांधीने काखमां घाली नागो नागो पोताना घरनां बारला पासे प्राव्यो. त्यां ते सर्व लुगमां पढे। घरमा पेठगे. या वखते तेनी स्त्री सत्यनामा घरमांथी बीजां लुगंमां लावीने तेने कहेवा लागी. " हे प्राणनाथ ! वरसादथी जिंजायेलां लुगमांने काढी नाखी श्रा को पहेरो” प्रियानां प्रावां वचन सांगली कपिले कां. " हे प्रिया ! मंत्रशक्तिना प्रजावधी म्हारां लुगमां जिंजायां नथी. जो शंशय होय तो तपासी जो. " पठी सत्यनामाये आश्चर्यथी हायवमे तपासी जोयुं तो तेनां युगमां कोरां दीगं; तेथी ते जेटलामां मनमां कांइ विचार करती इती तेटलामा विजलीना प्रकाशश्री सत्यनामाये पोताना पतिनुं शरीर जिंजोयेलुंदीतुं एटले ते विचार करवा लागी के, “निश्वे या म्हारो पति वरसादी पोतानां लुगमां जिंजावाना जयने सीधे सर्व लुगमां गोपवी राखी नांगो नागो घेर व्योवे. ए पोतानी फोगट स्तुति करे वे. तेनां प्रावां प्राचरणथी ते कुलीन नथी, एम निश्चय याय के आवा कुल रहितनी साथे घरवास राखवाश्री म्हारी पण विंटवना थशे.” या प्रमाणे विचार करी सत्यनामाये तेना नपरी राग न कस्यो; परंतु लोक लाजश्री तेनी साथे घरवास तो राख्यो. ' ( ८० ) हवे एम वन्युं के धरणीजटा ब्राह्मण महा विद्यावंत उतां कर्मना दोषश्री निर्धन वनी गयो; तेश्री कोइ वखते धननी प्रशाथी ते लोकमां प्रसिद्ध पामेला ने महा धनवंत वनेला कपिलने जाणीने तेने त्यां परुणा तरीके या व्यो. पी भोजन करवाना अवसरे कपिल कांइक सीप काढी धरणी जटाथी - दो जोजन करवा वेगे. श्री सत्यनामाने मनमां वधारे त्रांति पेठी; तेथी ते पोतानो पति नोजन करीने व्हार गया पठी एकांतमां पोताना ससराध Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्री शांतिनाथ चरित्र. (१) रणीजटा ब्राह्मणने सोगन आपीने पूबवा लागी." हे तात ! जो तमे म्हारी पासे जुडं बोलो तो तमने ब्रह्महत्यादि महापाप .आ तमारो बुध्विान् पुत्र शुभ माता पितानां कुलमां नत्पन्न ययेलो ब्राह्मण ने अथवा नीच जातिनो बीजो को ? तमे आ वात म्हारी पासे साचे साची कही आपो." पठी धरणीजटा ब्राह्मणे सोगन पूर्वक जेवू हतुं तेवं कपिलनुं सत्य वृत्तांत कही आप्यु. कारणके, संत पुरुषो हमेशां सत्यने विषे प्रीतिवाला होय . पडी कपिले योग्य धन विगेरेथी सत्कार करीने रजा आपवाथी धरणीजटा ब्राह्मण पोताना गामप्रत्ये आव्यो. . हवे विरक्त थयेली सत्यनामा कपिलना रथी श्रीषेण राजापासे जश हाथजामीने कहेवा लागी. “हे देव ! तमे जगत्तुं रक्षण करनारा पांचमा लोकपाल गे, वली दीन, अनाथ अने शरणे आवेला सर्वे माणसोना आधार गे. माटे हे महाराज ! म्हारा नपर दया करो.” राजाए कह्यु. “हे वत्से ! प्रथम तुं पूज्य एवा सत्यकी नपाध्यायनी मान्यवंत पुत्री अने त्हारा पिताने प्रिय एवा कपिलनी स्त्री , बतां तने एवं शुं दुःखनुं कारण आवी पम्युं - ते कहे ? सत्यनामाये कह्यु. “हे राजन् ! आपे कडं ते योग्य बे; परंतु म्हारो पति अकुलीनपणाथी उषित .” राजाए "तें ए शी रीते जाण्यु ?” एम पूग्युं एटले सत्यनामाये पोताना पतिनुं सर्व वृत्तांत कही आप्यु. वली तेणे का के, “हे पृथ्वीनाथ ! म्हारे एनी साथे घरवालथी सरयु. हवे आप एवं करो के, मेथी हुं हमेशां शु६ एवं शीलवत पालुं.” पढी राजाए कपिलने बोलावीने कडं के, “दे न ! आ त्हारी प्रिया सत्यनामा घरवासयी वैराग्यवाली अने, माटे तुं पोताना परिग्रहथी ते स्नेह विनानी स्त्रीने त्यजी दे के, जेथी ते पोताना पिताना घेर रही कुलने योग्य एवो धर्म आचरे,"कपिले कहूं. “हे देव ! हुं एना विना कणमात्र रहेवा समर्थ नथी, माटे एनेशी रीते त्यजी दवं?"राजाए फरी सत्यनामाने पूज्यु एटले तेणे उत्तर आप्यो के, ." जो ते मने त्यजी देशे नहि तो हुँ निश्चे मृत्यु पामीश.” राजाए फरी कपिलने कयुं के, “अरे तुं एने आग्रहथी पकी राखी शामाटे स्त्री हत्यानुं पाप बांधे ठे ? तुं पापथी पण नय पामतो नयी ? ए अमारी राणीयो पासे सुखेथी केटलाक दिवस रहेशे.” राजानां आ वचन कपिले मान्य राख्यां. वि Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (0) ऋषमलता। ऋषिमंमलवत्ति-पूर्वाई. नीत एवी सत्यलामा पण शीलनुं रक्षण करती ती केटलाक दिवस सुधी श्रीषेण राजानी प्रिया पासे रही. हवे को वखते कौशांवी नगरीमा बल राजाए श्रीमती राणीना नदर श्री उत्पन्न श्रयेली श्रीकांता लामनी पोतानी पुत्री श्रीषण राजाना पुत्र इंषे. सनी साथे परणाववा माटे परिवार सहित तेना नगरने विषे मोकली. अत्यंत .. रूपवाली अने नवयौवनश्री मनोहर एवी ते कन्याने जोइ श्रीषेण राजाना इंच. घेण अने बिंबेण नामना बन्ने पुत्रो तेने परणवा माटे तैयार थया. पठी तेन हथीयार बांधी अने कवच धारण करी मदोन्मत्त हाशीनी पेठे देवरमण नद्यानमां जश्ने परस्पर युः६ करवा लाग्या. थोमा कषायवालो, निर्मल मनवालो, जिनवचनश्री जावित आत्मावालो, कमावान् अने प्रियवादी एवो श्रीबेण राजा। पोताना पुत्रोने युह करता जो तेमने वारवाने समर्थन यवायी वैराग्यवंत था, विचार करवा लाग्यो के, "अहो ! विषयनुं लंपटपणुं आश्चर्यकारी ! कर्मनुं विचित्रपणुंआश्चर्यकारी! रागवरूप शत्रुन आश्चर्यकारी अने मोहर्नु विलसित पण आधर्यकारी ! ल्हारा पुत्रो महाबुध्विंत अने महात्मा ,उतां तेन एक कत्याने साटे आवो घोर युः६ करे .पुत्रोनांवांकुराचरणथी लला पामेलो हंसलामा प्रधानादि नत्तम पुरुषोने म्हारं मुख केम देखामी शकीश? हवे वखते लोसरण पामकुंए बधारे सारूं."आप्रमाणे विचार करीने श्रीषण राजाए पोतानो विचार पोताली वे स्त्रीयोने कहो. पगी ते बन्ने स्त्रीयो सहित श्रीषण राजा पंच नवकारर्नु स्मरण करी विषयुक्त कमलने सुंघवाना प्रयोगथी मृत्यु पाभ्यो. ( पहेलो भव ) सत्यनामाये पण नीच एवा कपिलना संगथी लय पासीले श्रीपेरा राजानी पेठे पोताना जीवितने त्यजी दी). पीते चारे जीवो जंबीपनी मध्ये रहेला लसर कुरुक्षेत्रमा युगलियापणे नत्पन्न प्रया. तेमां श्रीपेसनो जीव अने तेनी पहेली स्त्री अन्निनंदितानो जीव ए एक युगल युं तथा वीजीवी सिंहनंदितानो जीव अने सत्यनामानो जीव ए वीजुं युगल नुत्पन्न अयुं. (वीजो भव ). दवे कौशांवी नगरीना बल राजानी पुत्री श्रीकांताने माटे श्री राजाना वे पुत्रो युः करता इता, एवामां क्यांइश्री कोs चारण मुनिये आवीने ते ने कहाँ के, "अरे! उनम बंडामां नुत्पन्न श्रयेला तमे बन्ने जसा आवां निंदा Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (३) करवा योग्य कार्यने माटे युद्ध करतां केम लजा नथी पामता? आq तमारु अयोग्य आचरण जो तमारो पिता श्रीषण राजा तमारी बन्ने माताल सहित विष सुंघवाना प्रयोगथी मृत्यु पाम्यो . जे मातापिताना नपकारनो सीमामो आ पृथ्वी नपर मली शके तेम नथी ते मातापिताना विनाशने अर्थे श्रयेलां मातमारां दुराचरणने धिक्कार थान! धिक्कार थान!! अरे मोहनी वेल, वलदने बांधवानी दोरीना सरखी पुरुषने बांधवानी दोरी तेमज पोतानी इछा प्रमाणे चालनारी अने क्लेशनी नूमि एवी स्त्रीने त्यजी यो." चारण मुनिनां धावां वचन सांजली प्रबोध पामेला ते वन्ने लाश्योए यु.६ त्यजी द अने मुनिने नमस्कार करीने स्तुति करी.हे सुनि! तमेज अमारा गुरु, मातापिता अने स्नेहवंत बंधु गे के, जे तमे रागववके मेलवाती दुर्गतीश्री अमाझं रक्षण करयु ने.” पठी तेन मुनिने नमस्कार करी अने श्रीकांताने त्यजी दर घेर गया. त्यां तेमणे पोताना मातापिता प्रेसकार्य करा. त्यार पठी तेमणे पोताना गोत्री पुरुषने राज्य आपी धर्मरूचि मुनि पाले चार हजार माणसो सहित चारित्र लीधुं. दीर्घकाल सुधी चारित्र पाली, बह अध्म विगेरे विविध प्रकारचें तप करी अने डेवट केवल ज्ञान मेलवी तेन बन्ने नाइयो मोद पाम्या. श्रीषेण राजाना जीव विगेरे जेबे युगल या हसा तेल पण उत्तर कुरुदे ने विषेत्रण पख्योपमनुं आयुष्य पूर्ण करी अने पती चवीने तेन सौधर्म दे. वलोकने विषेत्रण पख्योपमनांआयुष्यवाला देवता गया. (बीजो भव ). हवे आलरतकेत्रमा वैताध्य पर्वतनी उत्तर श्रेणिनां आजूषणरूप रथन्मूपुरचक्रवाल नामर्नु नत्तम नगर बे. त्यां ज्वलनजटी नामनो बलवंत विद्याधर राजा राज्य करतो हतो. जेम अग्निने स्वाहा स्त्री तेम ते राजाने वायुवेगा नामनी स्त्री हती. ते स्त्रीना नदरथी सूर्यनुं स्वप्न सूचवीने उत्पन्न श्रयेलो, शत्रुना समूहरूप गाढ अंधकारने नाश करवामां सूर्य समान अर्ककीर्ति नामनो पुत्र जन्म्यो हतो. कलानो अभ्यास करतो एवो ते पुत्र ज्यारे यौवनावस्था पान्यो । त्यारे सर्वगुण संपन्न ते पुत्रने पिताए युवराज पछी आपी. त्यार परी चंडलेखाना स्वप्नने सूचवीने ते वायुवेगाशी वीजी स्वतंत्रपणा रहित स्वयं ग्रन्ना नामनी पुत्री श्र.. . एक दिवस ते नगरने विषे पापने नाश करनारा अभिनंदन अने जगत Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. नंदन नामना वे चारणमुनि आव्या. स्वयंप्रना राजपुत्री ते बने मुनियो पासेथी धर्म सांजली शुइ सामाचारीवाली अने पवित्र मनवाली श्राविका श्रश्. पठी बन्ने मुनियोए त्यांथी विहार कस्यो. को वखते पर्वने दिवसे स्वयंप्रन्ना राजकन्याये पौषधव्रत करयु. पारणाने दिवसे तेणे घरमा रहेली जिनप्रतिमार्नु पूजन करी अने पठी पितानी पासे जश्ने प्रनुनी शेषामाला पिताने आपी. पिताये पण ते शेषामालाने पोताना मस्तक नपर चमावीने पुत्रीने खोलामां बेसारी. पी पिता पण ते पुत्रीनुरूप अवस्था विगेरे जोश मनमां विचार करवा लाग्यो के, "आ म्हारी पुत्री हवे परणाववा योग्य थ ; परंतु रूपगुणादिके करीने समान एवो कयो विद्याधर तेनो पति थशे?" आ प्रमाणे विचार करता एवा ज्वलनजटीये “हे वत्से ! जा पारj कर.” एम कही पुत्रीने रजा आपीने संनिनश्रोत नामना निमितियाने बोलावीने पूज्यु के, "म्हारी पुत्रीनो योग्य वर कोण थशे ?" निमित्तियाए कह्यु के, “हे राजन् ! पोतनपुरना प्रजाप्रति नामना राजाना जे त्रिपृष्ट अने अचल नामना बे पुत्रो , तेन आ नरतकेत्रमा वासुदेव अने वलदेव श्रवाना ठे अने तेन आ हयग्रीव नामना प्रतिवासुदेवने मारशे. आ प्रमाणे में साधुना मुखश्री सांनब्युं . वली हुं म्हारा झानवलथी जाणीने कहुं यूँ के, तेज त्रिपृष्ट तमने विद्याधरपतिपणुंआपशे अने आ तमारी स्वयंप्रन्ना पुत्री तेनी मुख्य पट्टराणी थशे." पठी ज्वलनजटी विद्याधरे सत्कार करी निमित्तियाने रजा आपीने मारीचि नामना दूतने पोतनपुरे मोकल्यो. दूते त्यां जश् प्रजापति राजाने नमस्कार करीने कर्वा के, “ ज्वलनजटी नामनो अमारो विद्याधरराजा पोतान। स्वयंप्रन्ना नासनी पुत्री तमारा पुत्र त्रिपृष्टने आपवानुं कहेवामाटे मने तमारी पासे मोकळ्यो ." प्रजापति राजाए “ए वात अमने पण गमती ; तेथी हुं ते कबूल करूं." एम कही सत्कार करी दूतने रजा आपी एटले ते दूते रअनूपुरचक्रवाल नगरमां आवी ज्वलनजटीने सर्व समाचार आप्या, हवे एक दिवसे प्रतिवासुदेव एवा हयग्रीव राजाये अश्वविप्रत्यय नामना निमित्तियाने पूठ्यु के, “ म्हारूं मृत्यु कोनाश्री अशे ?” निमित्तियाए कह्यु. "जे पुम्य तमारा चंवेग नामना दूतनो तिरस्कार करशे अने तमारा मांगरना ग्वेनरामां नपञ्च करनारा सिंहने मारशे, ते पुरुपयी तमारुं मृत्यु प्रशे." ४ . Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (ज्य) निमित्तियानां आवां वचन सांजली हरिग्रीव राजाये तेने सत्कार करी रजा पापी. को वखते हयग्रीव राजाये प्रजापति नूपतिना त्रिपृष्ट अने अचल नामना बे पुत्रोने क्रूर सान्नल्या; तेथी तेणे ते बन्ने कुमारोने जोवामाटे पोताना चंवेग नामना दूतने पोतनपुर मोकल्यो. दूत पोतनपुरमां राजानी सन्नामां गयो ते वखते त्यां नृत्य चालतुं हतुं तेमां ते दूतना आववाथी नंगपमयो; तेथी त्रिपृष्ट अने अचल ए बन्ने कुमारो दूत नपर बहु क्रोध पाम्या; परंतु तेन तेवखते कांइ बोल्या नहि. प्रजापति राजाये दूतनो सत्कार करी रजा आपी एटले ते पोताने नगरे जवा तैयार थयो. आ वखते आगलथी मोकली राखेला दूतोए बन्ने कुमारोने खबर आपी एटले त्रिपृष्ठ तथा अचल बन्ने राजपुत्रोए तेनी पागल ज रंगमां नंग करवा रूप ते दूतना अविनयने वारंवार संन्नारी तेने मुरी अने पाटु विगेरेना प्रहारथी बहु मास्यो. प्रजापतिराजाए पोताना पुत्रोनुं आ वृत्तांत जाण्युं; तेथी तेणे दूत पासे वी तेनी क्षमा मागीने बहु च्यादिकथी नक्ति करी. हयग्रीव राजाये पोताना दूतनो तिरस्कार अवानी वात सेवको पासेथी सांजली. चंवेग दूते पण तेनी पासे आवी सर्व वात कही अने कां के, “ए प्रजापति राजाना पुत्रोनुं कर्तव्य हतुं; परंतु प्रजापतिराजा पोते जरा पण तमारी आज्ञा नल्लंघन करतो नथी, माटे आपे तेना नपर क्रोध करवो नहि.” हवे हयग्रीव राजानां मांगरनां खेतरोमां दरेक वर्षे सिंह नपश्व करतोहतो, तेथी बहु राजान वारंवार ते खेतरोनुं रहण करता हता.. आ वर्षे प्रजापतिनो वारो नहोतो, तो पण क्रोधथी हयग्रीव राजाए दूत मोकली तेनेज खेतरोनुरक्षण करवायूँ कहेवराव्यु. पठी खेतरोनुं रक्षण करवा जवा माटे तैयारी करता एवा पिताने ना पामीने बलवंत एवा त्रिपृष्ट तथा अचल ए बन्ने कुमारो मांगरना खेतरो पाले गया. ते वखते मांगरना खेतरोनुं रक्षण करनारावीजा पुरुषोए विस्मय पामी तेमने कडं के, "अरे! आ मांगरना खेतरोनुं तो म्होटा बलवंत राजान वाहन उपर बेसी म्होटी सेनाथी रक्षण करें अने सेना तथा कवचादिक विना तेनुं रक्षण करवा माटे तमे नवा कोण आवेला गे?" त्रिपृष्ट का. “अरे रक्षको! प्रथम तमे मने सिंह देखामो के, जेने मारीने हुँ खेतरोनुं रक्षण करवानो सौनो क्लेश दूर करूं.” पठी ते पुरुषोए पर्वतनी गुफामां बेठेलो सिंह देखामयो; तेश्री त्रिपृष्ट रथमां बेसी गुफाना वारणा पासे गयो. रथना चित्कार शब्दश्री . Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. सिंह पण जागी जीने म्होढाने पोलु करतो तो गुफाथी बहार निकल्यो. सिं हने पगे चालतो जोइ त्रिपृष्ट कुमार रथथी नीचे उतरी पमयो, वली सिंहने आयुध विना जोइ पोते पण शस्त्र कोरे मूकी दीधां. आq कुमारनुं आचरण जो सिंह विस्मय पामी विचार करवा लाग्यो के, "अहो! मने आश्चर्य थाय ने के, एक तो ते पोते एकलोआव्यो ठे.वली बीजुं मने पगे चालतो जोइ पोते रथथी नीचे नतरी पगे चालवा लाग्यो. ठेवटे मने आयुध विनानो जोश पोते पण आयुध त्यजी दीधां! ! ! परंतु हुं आजे तेने म्हारा अपमाननुं फल बतावं.” आम घारी सिंहे बंचे नचली तेना माथा नपर पमतुं मूक्यु. कुमारे पण तुरतज पोताना वन्ने हाथ तेनां मुखमां घाली दीधा. पनी एक हाथथी नपला होग्ने अने बीजा हाथश्री नीचला होउने पकमी जीर्ण पांदमानी पेठे ते सिंहने चीरीने पृथ्वी नपर फेंकी दीधो. आ वखते सिंह, कलेवर क्रोधथी कंपतुं हतुं; तेने जो त्रिपृष्टना सारथीये ते कलेवरने का के,“अरे सिंह! आ राजकुमार माणलोनो सिंह ठे अने तुं पशुडनो सिंद . जो सिंहे सिंहले मास्यो ने तो पठी तुंशा माटे क्रोध करे ठे?" सारथीनां आवां वचन सांजली प्रसन्न थयेलो सिंह मृत्यु पामी नरके गयो. पठी त्रिपृष्टे सिंहढं चामखें विद्याधर साथे हयग्रीव राजाने मोकलावीने कहेवराव्यु के, "तुंम्हाराप्रसादयी हवे शांतपणे चोखानु नोजन कर.” हयग्रीव राजा पण सिंहना चांसमाने जोइ अने विद्याधरनां वचन सांजली विचार कर• वा लाग्यो के, “निश्चे आवा नुज पराक्रमयी ते मने पण पोची वले तेवो ." हवे ज्वलनजटी विद्याधरनी पुत्री स्वयंप्रनाने त्रिपृष्टनी साथे परगाववा संबंधी कांइ वात सांजली हयग्रीव राजाए दूत मोकली ते कन्या, मागुं करयु. ज्वलनजटीये पण तेने कांश योग्य नत्तर आपीने शांत कस्यो. पठी ते विद्याधरपतिये पोतानी पुत्री स्वयंप्रना गुप्तरीते पोतनपुर मोकली त्रिपृष्टनी साधे परणावी दीधी. आ वात हयग्रीव राजाना प्रधान हरिस्मश्रुए सांजली; तेयी तेरो ते वात पोताना राजा दयग्रीवने कही. वात सांतलतांज तुरत क्रो व पामेला दयग्रीवे तेने आडा करी के, “त्रिपृष्ट तथा अचल ए वन्ने नाश्योने तथा विद्याधरपति ज्वलनजटीने बांधी तुरत म्हारी पाले लावो.” पठी प्रधाने दृत मोकल्या. दूते रयनपुरचक्रवालपुरे जा ज्वलनजटीने कडं के, " अरे ! अमाग महागला हयग्रीवने माटे कन्यारत्न मोकली आप. तुं शं नथी जा Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. ( 59 ) रातो के, रत्नोनो धली राजा दोय बे?” ज्वलनजटीये उत्तर प्राप्यो के, “ में म्हारी पुत्री त्रिपृष्टने परणावी वे, माटे ते पुत्रीनुं रक्षण दवणां त्रिपृष्ट करे " पी त्रिपृष्टे त्यां श्रावी दूतने कर्तुं के, “अरे दूत! ते कन्याने तो हुं परएयो , माटे ते कन्यानी इच्छा करनारो म्हारो राजा शुं जीववाथी मृत्युने वधारे पसंद करे बे ?" दूते या वात हयग्रीव राजाने कही; तेथी क्रोध पामेला हयग्रीवे ते पोताना शत्रुने मारवा माटे बहु सुनटो मोकल्या. त्यां तेडने महा बलवंत एवा त्रिपृष्ट कुमारे क्षणमात्रमां जीत्या. पढी हयग्रीव पोते चमी श्राव्यो त्रिपृष्ट पण सामो थयो . प्रथम मुख्य सेनापतियोनुं युद्ध चाल्युं, तेमां विद्याधरोये राकस, वाघ, भूत, विगेरेनां रूपो धारण करयां; तेषी त्रिपृष्टनी सेना नासी जवा लागी. पी त्रिपुटे रथमां बेसी सेनानी आगल प्रवीने शंख वगामचो, जेथी तेनो शब्द सांजली सेना तैयार थने तेनी पासे श्रावी. पी त्रिपृष्ट अने हयग्रीबनुं युद्ध चाल्यं. हयग्रीव जे जे दिव्य शस्त्रो फेंकवा लाग्यो ते ते शस्त्रोने त्रिपृष्ट कापी नाखवा लाग्यो. बेवट अर्थचक्री एवा त्रिपृष्टे जयंकर चक्र फेंक्यूँ; पण ते चक्र तो त्रिपृष्टनी गतिनो स्पर्श करीने तेनी पासे रहुं. पटी चक्र हाथमां लइ त्रिपृष्टे हयग्रीवने कर्तुं के, “तुं मने नमस्कार करी पोताने मारनारने निवृत्ति पमाम." हयग्रीवे कां. “शत्रुने नमस्कार करवायी मृत्यु पामवुं ए वधारे सारुं बे; माटे तुंम्हारा उपर चक्र मूक." पबी त्रिपृष्टे चक्र फेंक्युं; तेथी ते चक्र हयग्रीवनुं मस्तक कापीने फरी त्रिपृष्ट पासे आव्युं. या वखते प्राकाशमां बारदेला देवताए त्रिपृष्ट नपर पुष्पनो वर्षाद कस्यो. पी त्रिपृष्टे अर्धा जरतक्षेत्रने साधी बनी पेठे मावा हाथथी 'कोटी शिला नपामी ते उपरथी अनेक विद्याधरो सहित ज्वलनजी विद्याधरे तेने अर्धचक्रीनो अनिषेक कस्यो वली त्रिपृष्टनी मेघवर्णनामना विद्याधरे पोतानी पुत्री ज्योतिर्माला ( के जे विद्युमन विद्याधरनी व्हेन यती दती तेने) अर्ककीर्तिनी साधे परणावी, जेथी अर्ककीर्ति तेनी साथे विषय सुख जोगववा लाग्यो. sa श्रीषे राजानो जीव सौधर्म देवलोकयी चवीने जेम तलावमां राज हंस उतरे तेम ज्योतिर्मालाना ब्रदरने विषे उत्पन्न थयो ज्योतिर्मालाये ते सत्रीये स्वनामां कांतिवंत एवा सूर्यने दीठो. अनुक्रमे अवसरे पुत्र जन्मगे ने १ क्रोडमाणसथी उपडे तेवी शिला. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (60) ऋषिमंगलवति - पूर्वा ६. अने तेनुं प्रमिततेज नाम पाम पढी अर्ककीर्तिना पिता ज्वलनजटी धरे अभिनंदन सुनि पासे दीक्षा लीधी. त्यार पछी कपिल ब्राह्मणनी स्त्री सत्यनामानो जीव पहेला देवलोकथी चवीने ज्योतिर्मालाना नदरने विषे प्रक कीर्तिनी पुत्रीपणे उत्पन्न ययो. माताये स्वप्नामां तारानथी सुशोभित रात्री दीवी हती, तेथी ते पुत्रीनुं सुतारा नाम पामधुं अनुक्रमे ते पुंत्री युवावस्था पामी. दवे श्रीपेराजानी स्त्री अभिनंदितानो जीव पहेला देवलोकश्री चवीने त्रिपृष्टनी स्त्री स्वयंप्रना के जे ज्वलनटी विद्याधरनी पुत्री हती तेना नदरने विषे पुत्रपणे अवतस्यो. माताये स्वप्नामां महालक्ष्मीनो अभिषेकोत्सव दीगे हतो; तेथी ते पुत्रनुं 'विजय' एवं नाम पामयुं. स्वयंप्रनाये बीजापण एक पुत्रने जन्म आप्यो. तेनुं नाम विजयन पामयुं, बेवट सिंहनंदितानो जीव स्वर्गश्री चवी त्रिपुष्टनी ज्योतिप्रज्ञा नामनी पुत्रीपणे उत्पन्न थयो. पनी ते पुत्री ज्यारे अनुक्रमे म्होटी यइ त्यारे तेनो स्वयंवर मंरुप करी त्रिपृष्ट वासुदेवे दूत मोकली अनेक राजानने तेमाव्या. श्रवखते कीर्तिये कां कार्यमाटे पोताना प्रधानने त्रिपृष्ट वासुदे << व पासे मोकल्यो. ते प्रधान त्रिपृष्ट पासे यावी हाथ जोमीने कहेवा लाग्यो के, 'हे देव ! जो आप आज्ञा आपो तो अमारा राजा प्रर्ककीर्तिनी पुत्री सुतारा पण या तमे रचेला स्वयंवरमां एकठा ययेला राजानमांथी पोताने इछित वर वरे. " प्रधाननां यावां वचन सांजली हर्ष पामेला त्रिपृष्ट वासुदेवे कह्युं. “हे प्रधान! तमारे अर्ककीर्ति राजाने कहेवुं के म्हारे तेमना अने म्हारा घरमांकां अंतर नथी. " पवी पुत्रीने साथे लइ प्रमिततेज पुत्र सहित - र्ककीर्ति राजा त्रिपृष्ट बासुदेवना पोतनपुर श्राव्यो. त्यां तेनो त्रिपृष्टे बहु श्रादर सत्कार कस्यो. पवी त्रिपृष्टे स्वयंवर मंरुप रचावी तेमां जूदा जूदा नामवाला सिंहासनो मूकाव्यां. तेमां सर्व राजान पोतपोताने सिंहासने वेग अने त्रिपृष्ट तथा चल ए वन्ने जाइयो स्वयंवरना मध्यमागे रहेला पोतानां सिंहासन नपर वेग. 3 या वखते स्नान करी श्वेत वस्त्रने धारण करवाथी सुशोभित बनेली, - ज्वल अंगराग ने पुष्पमालाथी मनोहर देखाती, म्होटी पालखी म्ां वेठेली, बन्ने त्राजुये चामरोश्री विंजाती, ज्योतिः प्रन्ना ने सुतारा वन्ने कुमारीयो स्वच उतरेली देवकन्यानी पेठे स्वयंवर मंरुपमां ग्रावीने पालखीमांथी नीचे Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. ● प्रिये तरी सर्वे राजानने जोवा लागी सर्वे राजानने जोया पनी त्रिपृष्टनी पुत्री कीर्तिना पुत्र प्रमिततेज कुमारना कंठमां वरमाला पहेरावी कीर्तिनी पुत्री सुताराये त्रिपृष्टना पुत्र विजयना कंठमां वरमाला पहेवी. ते श्रवसरे विद्याधरो, राजान ने बीजा माणसो हर्ष पामता वतां "सारुं री ! सारुं वरी !!” एम म्होटा शब्द करवा जाग्या. पी त्रिपृष्टे अने अर्ककीर्तिये जा सर्व राजानने सत्कार करी रजा आपीने पोतपोतानी पुत्रीनो विवाह यो पी कीर्ति ज्योतिमना ( पोताना पुत्र प्रमिततेजनी वहु ) ने साये ने पोतानी पुत्री सुताराने त्यां त्रिपृष्टने घेर मूकी पोताना नगर प्रत्ये प्राव्यो. केटलाक दिवस पक्षी वैराग्यवंत श्रयेला तेथे मुनि पासे चारित्र लीधुं. वे त्रिपृष्ट वासुदेव मृत्यु पाम्या पबी कोइ वखते श्री श्रेयांसनाथना शिष्य सुवर्ण कुंन नामना मुनि परिवार सहित पोतनपुरे ग्राव्या. मुनिने ग्रान्या जाली त्रिपृष्टनो भाइ अचल (बलदेव) तेमने वंदना करवा गयो. यांत प्राचार्यने नमस्कार करी योग्य स्थानके बेसी मोहनिशने नाश करनारी धर्मदेशना सांजली. पबी अवसरे ते मुनिने पूब के, " हे जगवन् ! विमां प्रख्यात गुणोए करीने म्होटो एवो म्हारो न्हानो जाइ त्रिपृष्ट वासुदेव क गति पायो बे ?” मुनिये कां. " हे राजन् ! पंचेंयिनो वध कर मां प्रीतिवाल ने महा आरंभ करवामां सावधान एवो ते क्रूर व्हारो न्दातो जाइ त्रिपृष्ट वासुदेव मृत्यु पामीने सातमी नरके गयो बे.” मुनिनां प्रावां वचन सांजली स्नेही मोद पामेलो प्रचल विलाप करवा लाग्यो के, “विश्वमां वीर एवा हे धैर्यधारी जाइ ! व्हारी या शी गति थइ ! ! ! गुरुए कहूं. “दे राजन् ! तुं शोक न कर. पूर्वना जिनेश्वरोए कांबे, ते सांगल. ए व्हारोजाइ जरतत्रने विषे बेल्लो तीर्थंकर थशे.” मुनिनां आवां वचन सांली चले (बलदेवे ) विजयने राज्यासन उपर बेसारी ने विजयन ने युवराज पी पी पोते तेज सुगुरु पासे दीक्षा लीधी. पबी एक दिवस सनामां वेठेला विजयराजानी पासे द्वारपाले आवीने विनंती करी के, “हे प्रभो ! थापना मंदिरना बारणा पासे आपने मलवानी ा करतो एवो कोई निमित्तियो नो बे, ते अहिं श्रावे के पाो जाय ? ” राजा तेने प्राववानी रजा आपी एटले निमित्तियो सभामां प्रावी राजाने १२ (NA) Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशीर्वाद प्रापाहारा हाणमा पुस्ता होय ते मने (ए ) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. आशीर्वाद आपीने योग्य स्थानके वेगे. पी राजाए तेने कडं के,“हे। मित्तना जाग ! त्हारा हाथमां पुस्तक रहेखें , माटे हवणां जे कांश सारं अथवा खोटुं त्हारा जोवामां आवतुं होय ते मने कहे." निमित्तियाए कां. "हे देव ! हुंआ वखते म्हारा ज्ञानथी जे कांश जोन बुं, ते कहेवाने समर्थ । नयी उतां पण आपनी श्राज्ञाथी कहुं दुं के, “आजथी सातमे दिवस पोतनपुरला राजाना मस्तक नपर विजली पमशे." निमित्तियानां आवां वचन सांजली सर्व सना वजथी हणायलानी पेठे बहु दुःखवाली श्रइ. विजयराजाए पण क्रोध पामी तेने कडं के, “अरे धर्मति ! पोतनपुरना राजाना मस्तक नपर ज्यारे विजली पमवानी ने त्यारे त्हारा मस्तक नपर शुं परवानुं ने ते तो कहे ?" निमित्तियाए का. “महाराज ! तमे म्हारा नपर शामाटे कोप करो गे? में जेवं म्हारा झानथी जाण्युं तेज प्रमाणे थवानुं . बीजी रीते ते थवानुं नथी. वली म्हारा मस्तक नपर वस्त्र, आन्नूषण अने रत्नोनी वृष्टि श्रवानी .” राजाए कह्यु. “तुं आ निमित्तशास्त्र कोनी पासेथी नण्यो ठे?" निमित्तियाए कह्यु. “हे महाराज ! जे वखते बलदेवे दीक्षा लीधी ते वखते में पण तेमनीज साथे दीझा लइ केटलोक काल पाली हती. ते अवसरे में शास्त्रनो अभ्यास करलो हतो तेज हुं आपने कहुं यूँ के, सर्वज्ञना शासन विना वीजे कोइ ठेकाणे सम्यक्जान नथी. त्यार परी हुं विषयमा आसक्त घवायी फरी गृहस्यावस्यामां आवी पमयो अने विवाह करी धननी . हाथी अहिं आव्यो ." पठी ते निमित्तियानुं सत्य निमित्त जाणी सर्वे राजलोको ते वखते पोताना राजानुं रक्षण करवाना विचारणी प्राकुल व्याकुल थवा लाग्या. एवामा एक मंत्रीये का के, “आपणे सात दिवस सुधी महाराजाने वहाणमा बेसारी प्रयत्नश्री नमुनी मध्ये राखीये" वीजाए कडं के, “पाणीनी अंदर विजलो पेसी शके नहि, परंतु वहाणमां पाती एवी ते विजलीने कोण निवाग्ण हरी शके तेम ठे? माटे महाराजने ताठ्य पर्वतनी गुप्त गुफामां शखीने विजलीना नययी रकण करवा." या अवसरे बीजो मंत्री बोली नब्यो के, "ए उपाय पण मुखकारी नयी; परंतु नाशनुं कारण . तेनुं दृष्टांत सांजलो. विजयपुर नगरमां रुलोम नामनो ब्राह्मण रहेतो इतो. तेने ज्वलन Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री शांतिनाथ चरित्र. (१) शिखा नामनी स्त्री हती. तेनने सखी नामनो पुत्र हतो. ते नगरमां मांसनो लोलुपी कोइ राक्षस रहेतो हतो. ते हमेशां बहु माणसोने मारतो हतो, तेथी ते नगरना राजाए तेने एक एक माणस हमेशां आपवानी व्यवस्था करीहती. तेमां तेणे एवी गोठवण करी हती के, ते नगरना मागसोना नामनी चीगेयो करीने एक म्होटा पात्रमा नरी राखीने तेमांथी हमेशा एक चीठी काढवी. तेमां जेनुं नाम आवे ते माणसनो वारो ते दिवसे होवाथी तेने राक्षस पासे मोकली आपे अने ते दिवसे बाकीना माणसोनुं रक्षण करे.एम करतां करतां एक दिवस रुसोम ब्राह्मणना पुत्रनुं नाम निकलवाश्री तेनो वारो आव्यो एटले तेनी माता बहु कुःख पामीने रोवा लागी. तेनो रोवानो शब्द सांनली तेना घरनी पासे रहेनारा दयावंत नूतो त्यां आवीने कहेवा लाग्या के, “हे मात! तमे दुःख पामशो नहि. राजा ज्यारे तमारो पुत्र राक्षसने सोपशे त्यारे अमे तेने पागे लावी तमने आपिशुं." नूतानां आवां वचनथी ज्वलशिखा हर्ष पामी. पठी राजाए ज्यारे तेनो पुत्र राक्षसने सोंप्यो त्यारे नूतोए तेने पागे आणी माताने सोंप्यो. पुत्रना मृत्युथी नय पामती एवी माताये पण तेने तुरत पर्वतनी गुफामां मूकी बारगुं बंध करी दी . परंतु ते गुफ़ानी अंदर पण म्होटो अजगर रहेतो हतो तेणे ते पुत्रने रात्रीये गल्यो, त्रीजो मंत्री कहे ले के, हुं एटलाज माटे कहुं यूँ के, माणसोनुं कर्म कोइथी फेरवी शकाय तेम नश्री. महाराजानुं जे अवार्नु हशे ते थशे; तो पण तेमना विघ्ननी शांतिने माटे अमे तो तप करिशुं. ___चोथा मंत्री कह्यु. “ ए त्रीजा मंत्रीये कहूं ते सत्य बे; परंतु जे म्हारां मनमां ने ते पण हुं तमने कहुं. आ निमित्तियाए पोतनपुरना राजाना मस्तक नपर विजली पमवानुं कह्यु ; कांइ विजय राजानाज मस्तक पर पमवानुं कडं नथी; माटे आपणे सात दिवस सुधी पोतनपुरनी राजपछी बीजा कोइ.ने सोपवी." चोथा मंत्रीनां आ वचनने निमित्तियाए बहु वखाण्यां अने वली' तेणे कडं के, “हुं आ वातज कहेवा माटे अहिं आव्यो हतो. ए विना बीजा विचार करवाथी शुं ? राजा सात दिवस सुधी जिनमंदिरमा रहीने तप करो के, लेथी आ म्होटी आपत्ति उल्लंघी जवाय.” राजाए कह्यु. “आपणे जे ___ कोइने सात दिवस राजपही आपशुं ते मृत्यु पामशे; माटे आ वातनो लेद Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ऋषिमंम्लत्ति-पूर्वाई. व्हार पामवो नहि.” मंत्रीयोए कह्यु. “महाराज! आपे कडं ते योग्य , परंतु आपणे राज्याभिषेक आ यकप्रतिमाने करीये. जो देवताना प्रत्नावधी आपत्ति नहि आवे तो सारु, नहितो आ काष्टमय यकप्रतिमानोज नाश थशे." पी विजय राजा अंतःपुर सहित जिनमंदिरमा जइ पौषध व्रत लइने संथारा नपर बेसी तप नियमथी पवित्र आत्मावालो थयो बतो मुनिनी पेठे रह्यो. मंत्री सामंत विगेरे बीजा अधिकारीयो पण राजाना पदे यदनी प्रतिमाने स्थापीने तेनी पासे रह्या. पठी सातमे दिवस मेघथी आकाश व्याप्त थइ गडे अने घोर गर्जनाथी वरसाद पमवा लाग्यो, विजली वारंवार प्रकाश करती बती आकाशमाथी जाणे यम राजानो दंम होयनी ? एम यक्षनी प्रतिमा नपर पमी, जेश्री राजाने ते महा नपसर्ग आवी विधि करवायी विनाश पाम्यो.पी निमित्तियानां वचनथी राजा पोताना घर प्रत्ये आव्यो, त्यां अंतःपुरनी स्त्रीयोये हर्पितचित्तथी वस्त्र, आभूषण अने रत्नोथी निमित्तियानो सत्कार कस्यो: राजाए पण तेने बहु धन आपवा पूर्वक रजा आपीने यहनी रत्नमय मूर्ति करावी. वली कल्याणनी परंपरा करनारी जिनबिंबनी पूजा रचावीने जापो फरीश्रीज जन्म पाम्यो होयनी ? तेम महोत्सव करी राजा फरीथी राज्यासन नपर वेगे. ___ हवे एक दिवस विजय राजा सुतारा पट्टराणी सहित क्रीमा करवा माटे ज्योतिर्वन नामना नद्यानने विषे गयो. त्यां पर्वतनी एक वाजुए गयामां पतिनी साथे क्रीमा करती एवी सुताराये सुवर्णना अंगवालुं अने मनोहर नेत्रवाटुं एक मृग दी. पठी तेणे पतिने कडं के, " हे नाथ ! ए मृग मने लावी आपो.” प्रियाना स्नेहथी मोह पामेलो राजा ते मृगनी पागल दोमयो, पण मृग तो वदु दूर गया पठी वेगथी नछलीने आकाशमां चाल्युं गयु.पा वखते अशनिघोय नामनो विद्याधर वायुना वेगथी सुताराने हरण करी पोताने नगरे लइ गयो. वली पापी एवा ते विद्याधरे प्रतारणी नामनी पोतानी विद्याने त्यां सुतारानुं रूप बनावी मूकी. पठी ते कत्रिम सुताराने कुर्कुट सापे दंश दीघो; तेथीते "हे नाथ ! फट पाग श्रावो ! ऊट पाग आवो !!” एम पोकार करवा लागी. विजय राजा तुरत पागे श्राव्यो तो तेणे विपनी वेदनाथी पीमा पामती एवी प्रियाने दीठी. कणवारमां तो करमाइ गयेला मुखवाली * Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. ते पट्टराणी नेत्र बंध करी राजाना जोता जोतामां मृत्यु पामी. पी राजा मूर्छा पामी पृथ्वी नपर पमयो. बहु वारे महा कष्टथी सचेत थयो त्यारे ते श्री प्रमाणे विलाप करवा लाग्यो. "देवताने पण प्रिय स्वरूपवाली, नदार विवेकवाली, गुणोने धारण करनारी अने प्रीतिवाली हे सुतारा प्रिया ! तुं क्यां गइ बे ?” प्रमाणे राजा बहु वखत विलाप करीने प्रियानी चिता रची तेमां पोते बली मरवा तैयार थयो एटलामां ते स्थानके प्रकाशमांथी वे विद्याधरो न्या. पी एक विद्याधरे मंत्रेतुं जल चितानी अनि उपर बांटयुं एटले तेair EE शब्द करती प्रतारणी विद्या तुरत नासी गइ. विजयराजा "श्रा शुं युं ! श्र शुं पयुं !!" एम आश्चर्यथी बोलवा लाग्यो एटले ते बन्ने विद्याधरोए नमस्कार करी तेने कह्युं के, " हुं प्रमिततेज विद्याधरनो संभिन्नश्रोत नामनो निमित्तियो बुं. प्रा साथे बे ते म्हारो पुत्र बे. अमे बन्ने जला शत्रुंजयादि तीर्थो नमस्कार करवा जता हता एवामां " अरे श्री विजयनरेश्वर प्राणनाथ ! अरे विवेकवंत प्रमिततेज बंधु ! म्हारुं रक्षण करो ! म्हारुं रक्षण करो !! " मे तेनां आवां वचन सांजली तुरत पावा वल्या ने मारा महाराजा श्रमिततेजनी व्हेननुं हरण यतुं जोइ क्रोधथी तरवार काढी युद्ध करवा तैयार थया एवामां सुताराये अमने कह्युं के, “ तमे युद्ध करशो नहि; परंतु ज्योतिर्वनमां जइ प्रतारिणी विद्यानी पाबल मरवा तैयार श्रयेला विजय महाराजानुं रक्षण करो. " प्रमे तेनां वचनथी तुरतहिं आव्या एटलामां प्रतारिणी विद्या नासी गइ." आवी रीते कहीने बन्ने विद्याधरो खेदयुक्त चित्तवाला राजाने शांत करी नट्या अने वात कही. हवे आ वात स्वयंप्रज्ञा माताये अने विजयन सांगली; तेथी तेन जेटलामां बहु शोक करवा लाग्या तेटलामां कोइ एक पुरुषे श्राकाशमार्गेश्री त्यां श्रावो तेमने कहां के, “दे स्वयंप्रना देवी! तमे शोक करशो नहि. वली म्हारां वचन सांगतो. रथनूपुरचक्रवाल न मरना महाराजा अमित विद्याधरनो मान्यवंत एवो संन्निश्रोत नामे निमित्तियो म्हारो पिता बे. हुं तेमनो दीपशिख नामनो पुत्र हुँ. एक दिवस अमे बन्ने जा ज्योर्तिवन नामना उद्यानमां क्रीमा करता हता एवामां चमरचंचापुरीनो राशनिघोष सुताराने दरण करी लइ जतो श्रमारा जोवामां श्राव्यो. अमे तेनी साथे युद्ध करवा तैयार थया, पण सुताराये तेम करवानी ना पामीने (LUS) Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए४) ऋषिमंमलसि-पूर्वाई. विजयराजानुं रक्षण करवानुं कडं. अमे ते प्रमाणे प्रतारिणी विद्यानी । मरवा तैयार श्रयेला राजानुं रकण करयुं . पी सुतारानी सर्व वात जाणी. ने तेने मेलववा माटे तैयार श्रयेला विजय राजानी आझाथी आ सर्व समा चार कहेवा माटे हुं तमारी पासे आव्यो बु.” पनी स्वयंप्रनाये सत्कार करेलो दीपशिख फरी विजयराजा पासे गयो अने ते पिता पुत्र बन्ने जया राजा विजयने तेना नगरमां तेमो लाव्या. त्यां अमिततेज विद्याधरराजाए सेवान्नक्तिथी तेने पूग्युं एटले तेणे पोतानी सर्व वात कही. ते सांजली महा क्रोध पामेला विद्याधरपति अमिततेजे मरीचि नामना दूतने शीखामण आपी चमरचंचापुरीने विषे मोकल्यो. दूते चमरचंचापुरीमा जश्ने अशनिघोषने कह्यु के, “तुं अजाणपणाथी अमारा महाराजानी व्हेन जे विजयराजानी स्त्री ने ते सुताराने अहिं लाव्यो , ते तेमने मट पागे पापी दे; परंतु त्हारे त्यां राखी पोतानो अनर्थ करीश नहि.” अशनिघोष गर्वधी नंचुं मायूं करीने बोलवा लाग्यो के, “अरे दूत ! शुं एने पारी आपदा माटे हुँ अहिं लाव्यो ? म्हारी पासेयी जे पुरुष ते सुताराने लश् जवानो श्चा करे , ते पुरुषरूप पतंगीयो निश्चे म्हारी फलहलती तरवाररूप दीपकज्योतमां ऊंपलाशे.” एम कही अशनिघोषे दूतने गहुँ पकमी काढी मूक्यो. पठी दुने रथनूपुर चक्रवाल नगरमां आवी सर्व समाचार कडा. पनी अमिततेज विद्याधरे विजयराजाने वे विद्यान आपी. तेमां एक विद्या शस्त्रने निवारनारी अने वीजी वंधन करनारी तेमज गेमावनारी. वने विद्यायो विजयराजाए सात सात दिवसे साधी. पठी विद्यासिह अयेलो पोतनपुरपति विजयराजा शत्रुनी साथे युः६ करवा चाल्यो. ते वखते अमिततेज विद्याधरना रश्मिवेनादि सेंकमो पुत्रो विजयराजानी साथे चाल्यो अने अमिततेज पोते पोताना म्होटा पुत्र सहवरश्मी सहित शत्रुनी विद्यानो नाश करनारी महाज्वाला नामनी विद्याने साधवा माटे हिमालय पर्वत नपर गयो. त्यां ते मासनक्तयी विद्या साधवा लाग्यो. हवे अहिं सैन्य सहित विजय राजाने पोताना नगरनी पासे आव्यो.' जाणी अशनिघोर विद्याधरे सेनासहित पोताना पुत्रोने सामा युद्ध करवा मोकन्या. पठी पोतपोताना अधिपतिनो विजय इयती वन्ने सेना परस्पर युद्ध करवा Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शातिनाथ चरित्र. (ए ) लिलागी. आ प्रमाणे अमिततेजना रश्मिवेगादि पूत्रोनी साथे एक मास सुधी युक्ष ने पगे अशनिघोषना बलवंत एवाय पण पुत्रो हारी गया; तेथी अशनिघोष पोते यु६ करवा आव्यो. तेरो बलवंत एवाय पण अमिततेजना पुत्रोने 'नसामी मूक्या. पठी विजय राजा यु करवा प्राव्यो. कारण हाथीननी साथे युह करवा सिंहज समर्थ होय . क्रोध युक्त एवा विजय राजाए खजनो घा _ करीने अशनिघोषना बे ककमा करी नाख्या; तेथी बे अशनिघोष श्रया. तेमना पण बबे ककमा कस्या एटले तो चार अशनिघोष यया. आवी रीते ककमा करतां करतां सेंकडो अशनिघोषो थया एटले तो विजय राजा आकुल व्याकुल श्रवा लाग्यो एवामां विद्यालिह श्रयेलो अमिततेज विद्याधर आवी पहोच्यो, - अमिततेजने आव्यो जाणी तेना नयथी अशनिघोष मायाने त्यजी दइ नासी जवा लाग्यो.तेने नासी जतो जोइ अमिततेजे पोतानी विद्यामुखी नामली 'विद्याने आज्ञा करी के, " त्हारे ए पापीने दूरथी पण अमारी पाले लइ पाद वो.” पठी विद्यामुखी तेनी पाल चाली; परंतु अशनिघोषतो सीम नामना पर्वत नपर श्री झबलस्वामीना मंदिरनी पासे जेमने केवलज्ञान उत्पन्न अयुं दे अने जेमने शैकमो देवतान वंदन करी रह्या ठे एवा बलदेव मुनिना शरणे गयो. पने विद्याये पाग आवी अमिततेजने सर्व वात निवेदन करी,अमिततेज - पण “तुं सुताराने साथे लइ अमारी पासे आव." एम मारीचि नामना दूतने आझा करी पोते विजय राजा सहित सर्व सैन्यने साथे लइ श्री रुपनदेव प्रजना मंदिरनी पासे बलदेव मुनिने वंदना करवा गयो. मारीच दूत पण सुताराने ल. इतेमनी पासे गयो. त्यां तेणे अक्षत व्रतवाली देवी विजय राजाने सोंपी. त्यां अशनिघोषे ते बन्ने राजानी कमा मागी अने तेमणे पण तेनो आदर करयो त्यारे तेन परस्पर क्षेत्र रहीत श्रया. आ वखते केवलीये नव्यजनोना कानने विषे अमृतनी धारा समान धर्मदेशना आपी के, “हे नव्यजनो ! रागषने वश थयेला जीवो बहु अनर्थों करीने पोतानो जन्म निरर्थक गमावी नाखे ने. - वली ते रागविना बंधनने पामेला जीवो मोद मेलववाने शक्तिवंत थता न श्री; माटे तमे शत्रुरूप ते दागवने त्यजी द्यो.” केवलीनी आवी देशना सांनली प्रबोध पामेला केटताक माणसोए दीक्षा लीधी अने केटलाके श्रावक धर्म धारण कस्यो, पठी अशनिघोजे केवलीने पूब्यु के, हे, प्रनु ? में राग Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए६) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. विना सुताराने हरण करी म्हारा घरमां शा माटे राखी ?" केवलीये .. राजन् ! आ अमिततेजनो जीव पूर्व नवने विषे रत्नपुर नगरमां श्रीषेण ना मनो राजा हतो.” इत्यादि तेना सर्व नव कहीने वली कां के, “ते वखते तुं कपिल हतो अने त्हारे सत्यत्नामा नामनी स्त्री हती. ए सत्यनामा आनवने विषे सुतारा थइ . अने कपिलनो जीव ते तुं केटलाक नव करीने पी तपस्वीना कुलमां नुत्पन्न थयो, त्यां बाल तप करीने मृत्यु पामेलो तुं अशनिघोष श्रयो . हे राजन् ! पूर्व नवना संबंधथी रागरहित एवाय पण तें तेसुतारानुं हरण करयुं हतुं. पूर्व नवने विषे पण ए सुतारा त्हारा उपर स्नेह रहित हती. ए कारणथी हवणां पण तुं एना नपर मंद रागवालो .” आवी रीते पोतपोताना पूर्वनवो सांजली अमिततेज राजा विगेरे सर्वे माणलो हर्ष पामीने कहे वा लाग्या के, "अहो! महात्माने कां अजाण्यु नथी! पठी अमिततेजे केवलीने पूज्यु के, “ हे प्रन्नु ! हुं नव्य बुं के अन्नव्य ?" केवलीये कवू. “हे राजन् ! तुं आजथी नवमे नवे आनरतक्षेत्रमा पांचमो चक्रवर्ती अने शोलमो तीर्थंकर थश्श. तेमज आ विजयराजा त्हारो पुत्र थइने गणधरपद धारण करशे." केवलीनां आवां वचन सांजली अमिततेज अने विजय ए वन्ने जगाये सम्यक्त्वमूल श्रावकधर्म आदस्यो. वैराग्यवंत थयेला अशनिघोचे पण पोताना पुत्रने राज्य आपी पोते ते केवली पासे चारित्र लीधुं. स्वयंप्रनाये पण बहु स्त्रीयो सहित केवलीनी पासे दीक्षा लीधी. पठी विजय अने अमिततेज बन्ने जणा पोतपोताना परिवार सहित मुनिने वंदना करी पोतपोताला त्यानके गया. त्यां तेलये देवपूजा, गुरुनक्ति अने तप विगेरे धर्म कार्यश्री केटलाक दिवस निर्गमन कस्या. पुण्यात्मा एवा अमिततेज विद्याधरे पांचवर्णनां नत्तम रत्नोथी एक जिनमंदिर कराव्युं अने तेनी पासे एक पौषधशाला करावी. एक दिवस ते पौषधशालाने विषे विद्याधरोनी सन्नामां बेठेलो अमिततेज धर्मकया करतो इतो एवामां शाश्वता जिनेश्वरना दर्शन कग्वा माटे श्राकाशमार्गे श्रग्ने जता एवा वे चारण मुनियोए ते नविन जिनमंदिर दी; तेश्री तेन ते जिनप्रतिमाने वंदन करवामाटे नीचे नतस्या. राजा । अमिततज बन्ने मुनियोने श्रासन नपर वेसारी नतिथी वंदना करी, पठी एक मुनिय कां के, “हे गजन् । जो के तुं पोते धर्म जाणे , तो पण अ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (५७) मारे धर्म कहेवो योग्य वे; माटे कहुं ते तुं सांजल. । आ मनुष्य नव विगेरे सर्वसामग्री पामीने अने जास्थितिने जागीने सुखना अर्थी मागसोए निरंतर धर्म आचरवो.” मुनिनो आवो धर्मोपदेश लोनली हर्षित श्रयेला अमिततेजे तेमने नमस्कार कस्यो, पी बन्ने मुनियो 'आकाशमार्गे श्रश्ने उचित स्थानके चाल्या गया अने अमिततेजे तया विजये केटलोक काल धर्मध्यानमा निवृत्त कस्यो. पठी पुण्यात्मा ते बन्ने राजा दवर्षे त्रण यात्रा करवा लाग्या. तेमां वे शाश्वत् तीर्थनी यात्रा अने एक अशाश्वत् तीर्थनी यात्रा. चैत्रमासना शुक्लपक्षमा पहेली शाश्वतीयात्रा अने बीजी आसोमासमां अनार नामनी यात्रा. देव अने विद्याधरो चैत्र तथा आसोमासमां नंदीश्वरे यात्रा करता अने वाकीना सर्वे माणसो पोतपोताना स्थानके रही जिनमंदिरमां हर्षथी यात्रा करता. वली ते राजान त्रीजी यात्रा सीम प"वंत नपर ज्यां बलदेव मुनिने केवलज्ञान नत्पन्न अयुं हतु ते आदीश्वर प्रन्नुना मंदिरमा करता हता. आ प्रमाणे बहु वर्षों सुधी यात्रा करीने को वखते अमिततेज अने विजय ए बन्ने जगा मेरुपर्वत पर शाश्वताजिननां दर्शन करवा गया. त्यां तेमणे नंदनवलमा विमल अने महामति नामना वे चारण मु. लिने बेग्ला दीग. मुनिने वंदना करी अने तेमनो धर्मोपदेश लांजलीने बन्ने । जगाए तेमने पूज्युं के, “हे नगवन् ! अमाझं केटलु आयुष्य के ?" मुनियोए “ तमाएं बवीश दिवसनुं आयुष्य .” एम कर्वा एटले तेन बन्ने कहेवा लाग्या के, “ हाय ! हाय !! विषय रूप मांसने विषे गीधपदीनी पेठे लोनी श्रयेला आपणे आटला वखत सुधी चारित्र लश् शक्या नहि ! हवयां अल्प आयुषवाला आपणे शुं करीशुं ? " मुनियोए कह्यु. “ एमां समारं झुं नाश अयु ले ? कारण हवणां तुरत लीधे व्रत पण तमने स्वर्ग तथा मोश आपनारूं थशे.” ___ पठी अमिततेज अने विजय बने जया पोतोताने नगरे गया. त्यां ते। नए पोतपाताना पुत्रोने राज्य आपी बन्ने जगाये अजिनंदन मुनि पासे लाये चारित्र लीधुं. पली पादपोपगमन अनशन लश्ने रहेला ते बन्नेनी मध्ये विजय मुनिने पोताना पिता बलदेव- बल सानरयुं तेश्री तेमणे एवं नियागं करयु के, “हुँ पण या तपथी म्हारा पिताना समान बलवंत पानं." विज Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋपिमंगलवत्ति-पूर्वाई. य सुनिये याप्रमाणे नियाणुं करधुं प्रने प्रमिततेजे नियायुं करचं ना पठी ले बन्ने जान मृत्यु पामी प्राणत देवलोकमां साथीयाना सरखा श्र कारवाला नंदकावर्त नामना वैमानमां दिव्यचूल ने मणिचूल नामना महते समृवित देवता श्रया. त्यां तेमले समग्र देवकार्य करी, दिव्य सुख जागेवी तेनज जिनचैत्यवंदन विधि करवापूर्वक नंदीश्वर द्वीपसां यात्रा करीने पोताना सम्यक्त्व रत्नने उज्वल करयुं. (चौथो तथा पांचमो भव . ) ( C ) या जंबूडीपना पूर्व महाविदेह क्षेत्रनी मध्यमां रहेली रमणीय नामनी विजयमा शुभगा नासनी नगरी बे. त्यां गांजीर्य विगेरे गुणोथी समुना सरखो महा प्रतापर्यंत स्तिमितसागर नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने पवित्रशीली पृथ्वीना समान पहेली वसुंधरी ने गुरायुक्त एवी वीजी प्रहरी एम वे स्त्रीयो हती. हवे दिव्यचूलनो जीव प्राणत देवलोकथी चवीने वसुंधरीना उदरने विषे श्रवतरचो. माताये ते वखते रात्रीये स्वप्तामां गज, पद्म सरोवर, चंड़ ने वृपन जोया. कारण ते चार बलदेवना जन्मने सूचवनारा शुज वे. पर्वी वसुंधरीये पूर्ण अवसरे सुवर्णना सरखी कांतिवाला पुत्रने जन्म प्राप्यो. पिता तेनुं पराजित एवं उत्तम नाम पारुयुं पटी मणिचूलनो जीव पण प्राणत देवलोकश्री चवी नुदरीना उदर रूप मानसरोवरने विषे हंसनी पेठे उत्पन्न यो. ते वखते रात्रीमां अनुधरीये स्वप्नाने विषे सिंह, सूर्य, कुंज, समुझ, लक्ष्मी, रतनो राशी ने अभिज्वाला ए सातने पोताना मुखने विषे प्रवेश करता दीठा. पठी जागी नवेली धनुधरीये स्वप्नानी वात पतिने कही एटले स्तिमितसागर राजाए स्वप्न पाठकने बोलावी स्वप्ननी बात कही एटले तेणे करूं के,"हे राजन् ! या स्वप्नश्री तसने वासुदेव पुत्र अशे अने प्रथमनो पुत्र बलदेव श्रो.” पठी राजाए धनादिकश्री सत्कार करेलो स्वप्नपाठक पोताने घर गयो, पती तुम्हरीये पूर्ण अवसरे श्यामकांतिवाला पुत्रने जन्म प्यो पिताए तेतुं 'अनंतवीर्य' नाम पारुयुं. अनुक्रमे कलाउनो अभ्यास करता करता युवावस्थामां ग्रावी पहोचेला श्रने रूप लावण्यश्री मनोहर एवा पुत्राने स्तिमितसागर राजाए उत्तम कन्यानु साथै पराव्या. एक दिवस ते नगरीना नद्यानने विषे उत्तम ज्ञानधारी स्वयंप्रजप्रभु ना ते Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्री शांतिनाथ चरित्र. (एए) मारे मुनि प्राध्या हता. ते वखते राजा क्रीमा करवा गयो हतो. त्यां क्रीमा तां बाकी गयेलो ते नयानमां आवी अशोक वृदनी नीचे बेगे. एवामां सां तेणे निश्चल ध्यानथी वेठेला मुनिने दीग. पी शुजन्नावथी मुनिनी पासे म तेमने त्रण प्रदक्षिणा पूर्वक वंदना करीने ते योग्य स्थानके बेठो एटले मुनिये धर्म देशना आपी के, “कषाय (क्रोध, मान, माया, लोन) रूप वृदोने ध्यानरूप फुल पाइने पठी आलोकमां पापकर्म रूप फल अने परलोकमां उर्गति रूप फल थाय . संसारथी उग पामेला चित्तवाला अने मोक्षसुखनी इछा करनारा मागसोए अनर्थना कारणरूप ते कषायोले त्यजी देवा."मुनिनो आवो पवित्र धर्मोपदेश सान्नली वैराग्यवंत श्रयेला स्तिमितसागर राजाए अनंतवीर्यने राज्य आपी अने अपराजितने युवराज पक्षी आपीने पोते ते स्वयंप्रनप्रनु मुनि पासे दीका लीधी. पठी अंत अवसरे मनथी व्रतनी कांक "विराधना करी मृत्यु पामेलो ले अधोलोकमां चमरें अयो. हवे समृवित एका अपराजित अने अनंतवीर्यने कोइ विद्याधरनी साथे प्रीति श्रश्; तेथी ते विद्याधरे तेमने आकाशगमननी विद्या शीखवी अने ते साधवाना लुपाय तया सामग्री बतावी. आ अनंतवीर्य राजाने त्यां गीत अने. नृत्यमां चतुर एवी बर्बरी अने चिलाती नामनी वेश्या हती. एक दिवस ते - बन्ने स्त्रीयोनां अजून गीत अने नृत्यना रंगमां अनंतवीर्य अने अपराजित बन्ने जणा व्याप्त थ रह्या हता एवामां पोतानी श्याप्रमाणे विचरनारा, ब्रह्मचारी अने क्लेश कराक्यो जेमने प्रोय रे एका पुण्यात्मा नारद ऋषि आव्या. पण ते बन्नेमांधी कोइये लामा जश्तेलनो सत्कार कस्यो नहि. तेथी नारद क्रोध पामी विचार करवा लाग्या के, "आ बन्ने जणा दासोना नाट्यने विषे मोह पामेला ने, माटे तेमणे म्हारो सत्कार कस्यो नश्री. तो हवे म्हारे आ कलाना पात्ररूप बन्ने वेश्यानने कोइ बलवंत पुरुष पाले हरण कराववी." आ प्रमाणे विचार करी नारद त्यांश्री प्रतिवासुदेव एवा विद्याधरना अधिपति दमितारि राजा । पासे गया. त्यां राजाए तेमने आदर सत्कारथी आसन उपर बेसारीले पठी ''पूज्युं के, “हे ऋषि! तमे पृथ्वी उपर कांई आश्चर्य दीर्छ होय तो कहो ? " नारदे का. “हे राजन् ! सांजल. हुं सुनगा नगरींना राजा अनंतवीर्यनी पासे __ गयो हतो. में त्यां विश्वने आश्चर्य करनारी बर्वरी, अने चिलाती नामनी तेली Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ऋषिमंमलदत्ति-पूर्वाई. वे उत्तम नर्तकीयोने जो. हे राजन् ! ते बन्ने नर्तकीयो विनाआ हारी विद्या अश्वा विस्तारवंत राज्यथी पण शृं?" आ प्रमाणे कहीने नारद त्या थी चाल्या गया. परी दलितारि राजाए दूत मोकल्यो; तेयी ते पोताना स्वामीना बलर्थ गर्वधारी दूत अनंतवीर्य राजानी पासे आवीने कहेवा लाग्यो के, “हे राजन् . रत्न तो राजानी पाले होय , माटे आ तमारी बन्ने नर्तकीयो दमितारि महाराजाने अर्पण करो.” दूतनां आवां वचन सांजली अनंतवीर्य अने अपराजित बने जगाए का. “हे दूत! ए योग्य ने; परंतु तुं त्हारा राजाना कहेबाथी बोले ठे. पोतानी मरजीश्री बोलतो नश्री. तो हवे अमे विचार करीने ते प्रमाणे करिशं. तुं त्हारा राजापासे जा.” दूतने आ प्रमाणे कहोने रजा श्राप्या पठी ते वने नाश्यो विचार करवा लाग्या के, “ए दमितारि राजा पोतानी विद्याना वलयी आपणो परानव करशे, माटे आपणे पण आपणा चित्तमां रहेली विद्याने साधीने तेना गर्वनो नाश करीये." आवी रीते ते बन्ने बंधुन विचार करताहता एवामांतेमणे पूर्व जन्मे साधेली तेज विद्या पोतानी मेले त्यां आदी अने"तमे विद्या सिहश्रया गे.”एमकहीने तेणे तेमना शरीरने विषे निवास करयो; तेत्री ते बन्ने नाइयो विद्याना प्रजावधी म्होटा बलवंत विद्याधर अया. पठो तेसो गंव, पुष्प विगेरेश्री विद्यादेवीनुं पूजन करयु, आ खते फरीथी दमितारि राजालो दूत त्यांग्रावी तेमने कहेवा लाग्यो के, "अरे ! शंतमेदमितारि महाराजाना हायश्री यमराजाना परुणा थवानी श्या करोगे? के जे तमे आज सुवी बन्ने नर्तकीयोने मोकली नहि ? " परी बन्ने नाश्योए का के, "निये स्वामीन हीत करवू जोश्ये."पठी वने जणा दमितारिराजानी कनकधी पुत्रीलालजयी नत्तम नर्तकीनुरूप धारण करी दमितारि राजा पासे गया. त्यां दमितानि राजाए तेमटुं कलाकौशल्य जोड़ने कह्यु के, “ तमारे म्हारी पुत्री कलयीने विनोद कराववो.” राजानो आवो वीलामीने उध नलाववा जेवो सली गगजित अने अनंतवीर्य बन्ने नाइयो वह दर्य पाम्या. पठी -:: मां जड कनकदीन स्वरूप जोड़ने विचार के, “निश्चय व्र १) नुनम इन्दुनो सार लश्ने या कन्याले नारी." आम विचान पत्र जगा हास्ययी मनोहर अन देशी नापायुक्त मधुर प्रिय बच , Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . __ श्री शांतिनाथ चरित्र. (११) मारे। तेनी साये वार्ता विनोद करवा लाग्या एटले कनकश्रीये अनंतवीर्यना गुण में रूप विगेरे अपराजितने पूग्यु. अपराजिते कडं, “एना रूप, चातुर्य अने सुन्जिीर्यादि गुणो बहु जीनोश्री पण कही शकाय तेम नथी. आत्रण लोकमां ऐना जेवू रूपवान् अने गुणवान कोइ नश्री. नाग्य विना एनुं नाम सांजल, उर्जन ठे तो पी रूप अने लावण्यनुं दर्शन तो क्याथीज थाय ?” आवा अनंतवीर्यना गुणो सांजली कनकश्री अत्यंत रोमांचयुक्त श्र गश्तेथी अपराजिते तेने फरी कां के, “हे राजकन्या ! जो त्हारे एनुं स्वरूप जोर्रा होय तो कहे, ते हवणांज बतावं." कन्याये का. “ ते स्वरूप एक वखत बतायो तो म्हारो जन्म सफल थाय.” पो अपराजित अने अनंतवीर्य बन्ने जगाये पोतानुं स्वरूप प्रगट करयु. ते जोइ हायत प्रयेली कनकनीये का के, “निश्चय हुं तमारी आझा प्रसायो चालनारी दाली ." तेनां आवां वचन सांजली 'अनंतवीर्ये कहां. “ जो एम ने सो बाल, अमारी नगरीये जश्ये.” कनकश्रीये कडं. “आपर्नु कहेवं सत्य ये; परंतु म्हारो पिता बहु नयंकर ने, तेथी ते 'तमारो नाहा करशे.” बन्ने नाश्योए हसीने कडं. तेनो त्हारे जरा पण जय न राखवो. ए अमारी सामो एक क्षणमात्र रही शकवानो नथी.” तेन्नां आवां वचन सांजली प्रेमपाशथी बंधायली कनकश्री रूप अने सौंदर्यधी तेमना नपर आशक्त थ उती तेमनी साथे चाली निकली.पली विद्याश्री तैयार करेला वैमानमां बेसीने आकाश मार्गे नन्ना रहेला अनंतवीर्ये सन्नामां बेठेला दमितारि राजाने कडं के, “अरे सामंत, मंत्री सेनापति विगेरे पुरुषो! सांजलो. हुं आ तमारा राजानी पुत्रीनुं हरण करीने जानं बु. तमे पाउलश्री एम कहे. शो के, अमने कह्या विना चोरी करीने चाल्यो गयो, माटे कहुं ."अनंतवीर्यनां आवां वचन सांजली कोपथी विकराल देखाता दमितारिये का के, “अरे ! ए उष्टने झट पकमो ! पकमो !!" परी सर्वे विद्याधरो हुंकार शब्द कर ता “अरे उष्ट ! तुं क्यां जवानो के ?” एम कही हथीयार लइ, सिंहनी पा। उल शियालनी पेठे अनंतवीर्यनी पागल दोमया, पण ते सर्वेने अनंतवीर्ये प वन जेम पांदमाने नरामी मूके तेम नलामी मूक्या. पठी कल्यांतकाले नछलता समुनी पेठे चालती लेनाथी गर्वधारी तेम हाथी, घोमा अने पायदलना म्होटा शव्दयी आकाशने गजावी मूकतो दमितारि राजा पोते चाल्यो. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ऋषिमंझलवृत्ति-पूर्वाई. तेने पावतो जोइ लय पामेली कनकश्रीने शांति करी अनतवीर्य छात्रना। न्यनो नाश करवा माटे पोतानुं सैन्य एक करयु. पर बन्ने सेनानुं युइचे, ख्युं तेमां पोतानी सेनाने शत्रुनए नसामी मूकी जोइने जेटलामा अनंतवी काश्क व्याकुल थवा लाग्यो तेटलामां वनमाला, गदा खड, मणि शंख, धनुन व्य अने प्रतिवासुदेव पासेश्री आववानुं चक्र ए सात रत्न प्रात श्रयां. पठी पांचजन्य शंख लश अनंतवीर्ये एवो नयंकर शब्द करयो के, जेशी शत्रु लैन्य ते सांतली सूर्ग पामी गयुं अने पोतार्नु सैन्य नुत्साहवंत अयु; तेश्री दमितारि राजा पोते युद्ध करवा आव्यो. तेने जोर शस्त्रयी जरपूर रथमां बेली अनंतवीर्य अने अपराजित बन्ने जशा तैयार अया. ते वखते रमजूमीने विषे लोहीनी नदीमां सुलटोना जूदा जूदा शरीरो नृत्य करवा लाग्या. दमितारि राजाना सर्व शस्त्रो अनंतवीर्ये कापी नाख्यां एटले तेणे देदीप्यमान एवं चक्र अनंतवीर्य पर मूत्युं. परंतु ते चक्र तो अनंतवीर्यना हृदयनो स्पर्श करीने तेनाज हाथ उपर वे.पी अनंतवीर्ये कहूं के, "हे दमितारि! तु राज्यलक्ष्मी लोगव. मृत्यु न पास. तुं कनकश्रीनो पिता ये तो हुँ तने जीवतो कुं बुं, माटे जा.” दमितारिये कयु, “ जेवी रीते में भूकेलु ऋक निष्कल गयुं तेवी रीते दाराशी मूकायटुं ते चक्क पण मिकल घशे. एम हुँ धारूं.” एम कही तरवार लक्ष पोतानी लामे दोमता एका ते दलितारिनु मस्तक अनंतवीर्य कापी नाख्यु. आ वखते आकाशमां बना रहेला व्यंतरोए हर्ष श्री स्तुति करवापूर्वक अनंतवीर्यना मस्तक उपर पुष्पवृष्टि करी अने कह्यं के, “बलवंत एवो श्रा अनंतवीर्य आ विजयनो अर्ध चक्रवर्ती वासुदेव के अने आ बीजोते बलदेव ठे. ते वन्ने दीर्घकाल सुधी विजयवंता वर्तो.” पण विचाधर मुनटो अनंतवायनो आश्रय करता ता तेमने प्रणाम करवा लाग्या. अनंतवीर्ये पण ते सर्वनो आदरसत्कार कस्यो. पठी अपराजित अने अनंतवीर्य बन्ने जगा विद्याधगे सहित मनोहर वैमानमा चेलीले पोतानी नगरी तरफ चाल्या. रस्तामां कनकाचल पर्वत श्राव्यो तेने जो विद्याधरोए तेमने कां के, "हे महाराज! पापागे या पर्वत पर रहेला जिनेश्वरोना चैत्योने वंदन करता जश्ये.” पठी वैमानमांयी नीच उतरी जिनचेन्योने वंदन कर एटलामां तेलए त्यां जेमने एक वर्षना नपवानना तपश्री कवल झान उत्पन्न प्रयु हतुं एवा कीर्तिधर ना Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. ( १०३ ) •मारे। मुनिने जोइ हर्षथी तेमने वंदना करी. पवी ही रोमांचित शरीरया ते बन्ने माइयो मुनिनी सन्मुख बेसीने पवित्र एवी धर्म देशना सांजबुवा लाग्या. पी अवसरे कनकश्रीये मुनिने पूग्धुं के, "म्हारे बंधुनो वियोग ने पितानुं मृत्यु शा कारणथी धर्यु ?” कीर्तिधर मुनिये क. "हे जड़े ! तेनुं कारण सांगल. " धातकी खंरुना भरत क्षेत्रने विषे धन धान्यथी जरपूर एवं शंखपुर नामनुं नगरवे. त्यां दरिडी एवी श्रीदत्ता नामे स्त्री रहेती हती. कोइ वखते ते at चालत चालती श्रीपर्वत उपर गई. त्यां तेथे सप्तयश नामना साधुने ats deer करीने मनो धर्मोपदेश सांजली पोते गीतार्थ थहने श्रीधर्मचक्रवाल नामनुं तप करयुं. ले तपना प्रारं अने ते मकराय के अने मध्ये सामत्री चोध कराय वे शक्ति प्रमाणे देव गुरुनी प्रक्ति करवी. श्रीदत्ताये ए प्रमाणे सर्व कर एटले पारणाने दिवसे सर्वे माणसोए एकठा थइ ते श्रीदताने मनोहर जोजन वस्त्रादि प्राप्यां वली ते जेना घरले विषे काम करती हती तेन तेने वधारे जोजन वस्त्रादि प्राप्यां; तेथी ते कांइक धनवाली थइ. एक दिवस तेना घरनी जीत पसी गइ तेमांथी बहु धन निकल्युं एटले ते श्रीदत्ताये करेला व्रतनुं उद्यापन करवानो प्रारंभ कश्यो. तेमज जिनमंदिरोमां विशेषे पूजा रचावी. त्यार पछी तेणे साधर्मीवात्सल्य करयुं. ते वखते तेना घरने विषे एक मासना उपवासी सुव्रत नामना मुनि गोचरी माटे याव्या. श्रीदत्ताये तेमने बहु ही शुद्ध प्रहारवमे प्रतिलाभ्या अने धर्मना फलने जोइ हर्षित थयेली तेरो धर्म पूग्यो एटले सुनिये कह्युं के, “प्रत्यारे धर्मोपदेशनो अवसर नथी. जो धर्म सांजलवो होय तो अवसरे उपाश्रये प्राचीने सांजलवो.” एम कही मुनिये उपाश्रये जड़ पार करयुं. पबी अवसरे श्रीदत्ता विगेरे नगरवासी लोकोए - पाश्रये यावी धर्म सांजल्यो, तेथी सरल मनवाली श्रीदत्ताये समकीतमूल धर्म arrer को पी मुनि विहार करी गया ने श्रीदत्ता पण घेर जश्ने पोते अंगीकार करेला धर्मने विधि प्रमाणे पालवा लागी. ( श्री कीर्तिधर मुनि कनकश्रीने कहे वे के) हे राजकन्या ! एक दिवस तेथे कर्मना aayera धर्मने विषे मनमा डुगंचा करी के, " हुं या जिनधर्मने नतम प्रकारे पालुं हुं, पण तेनुं फल मने श्रशे के नहि ? प्रावी रीते धर्मनी 5 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. गंधा करीने आयुष्यनो कय थये मृत्यु पामेली ते ज्यां नत्पन्न या ते हैं कहुं . आ विजयमां वैताढ्य पर्वत नपर सुरमंदिर नामना नगरने विषेनकपूज्य नामनो राजा हतो. तेने वायुवेगा नामनी स्त्री अने कीर्तिधर नाम हुँ पोतेज पुत्र हतो. म्हारे अनिलवेगा नामनी स्त्री हती. एक दिवस ते अनि. लवेगाये गज, कुंन अने वृषन्नना स्वप्नथी सूचवेला एक पुत्रने जन्म आप्यो के, जे प्रतिवासुदेव एवो दमितारि राजा पोतेज म्हारा पुत्ररूपे हतो. पठी युवावस्थामां आवेला ते पुत्रने बहु कन्यायो परणावीने राज्यासन नपर बेसारी में चारित्र लीधुं. ए दमितारि राजानी मदिरा नामनी स्त्रीना नदरथी नत्पन्न श्रयेली कनकश्री नामनी पुत्री ते तुं पोते .तें पूर्वन्तवने विषे धर्मनिंदा करी तेषीज तने आ बंधुवियोगादि दुःख प्राप्त प्रयु ." आ प्रमाणे कीर्तिधर मुनिरूप पोताना पितामहना मुखथी पोतानो पूर्वन्नव सांजली कनकश्री अत्यंत वैराग्यवासीन थ; तेथी तेणे हाथ जोमी अनंतवीर्य तथा अपराजितने का के, “जो लो मने अाहा आपो तो हुँ दीका ललं.” पठी ते वने जगाए कां के, “ एक खत आपणे नगरीये जइये. त्यां स्वयंप्रतमन्नुनी पाले तुं चारित्र धारण करजे." पठी ते कीर्तिधर जुलिले नमस्कार की अने वैमानमां वेसी अपराजित अने अनंतवीर्य बन्ने जणा कनकभी सहित घतानी नगरीये आव्या. ____हवे कोइ बखते देव, असुर अने मनुष्योए पूजेला श्री स्वयंप्रनप्रन्नु ते सुलगा नगरीने विपे समवसस्या एटले कनकश्री सहित अनंतवीर्य अने अपराजित वन्ने जणा त्यां ज प्रनुने वंदना करीने धर्म मान्नलवा लाग्या. कनकश्री पहेला पण विरक्त बुध्विाली हती, ते हवे आ जिनेश्वरनी वाणी सांजली विशेषे वैराग्यवासीत अइ, तेथी अपराजिते अने अनंतवीर्ये करेला महोत्सव पूर्वक तेणे प्रन्नु पासे दीका लग्ने एकावल्यादि म्होटां तप कस्यां. अनुक्रमे शुक्लध्यानरूप अग्निश्री चार घातीकर्मनो कय करीने केवलज्ञान मेलवी ते कनकधी मोकपद पामी. हवे अपराजितनी हिरता नामनी स्त्रीने उमति नामनी पुत्री हती. जी- । वाजीवादिक तत्त्वनी जाग अने तपना कार्यमां नद्यमवती एवी ते पुत्री वाल । यापनापाप Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'श्री शांतिनाथ चरित्र. (१५) अवस्थाश्रीज जिनशासनने विषे कुशल हती. एक दिवस तेना घरने विषे शांत, कमावंत अने नम्र एवा को वरदत्त नामनामुनि गोचरीने अर्थे आव्या.आ वखते पोताना पारणाने माटे पीरसेला थालमां सुमति नोजन करवा बेसती हती एवामां ते मुनिने जो तेणे तेज थालमां पीरसेली नत्तम रसवतीश्री साधुने प्रतिलान्या, तेथी मुनिना प्रत्नावने लीधे सुमतिनी नक्तिश्री प्रसन्न अयेला देवताए तुरत पंच दिव्य प्रगट कस्यां. पठी साधु पोताने स्थाने गया अने पुत्रीनो आवो प्रन्नाव जो अपराजित अने अनंतवीर्य विचार करवा लाग्या के, “निश्चे आ पुत्री पुण्यवंती ." पठी तेमणे प्रधाननी साये विचार करीने म्होटा नुत्साहथी पुत्रीनो मनोहर स्वयंवर मंझप रच्यो, पनी नत्तम शृंगार धारण करी अने हाथमां वरमाला लई राजकुमारी जेटलामां सखीयोना परिवार सहित स्वयंवर मंझपमा आवी तेटलामां सं. केतने लीधे पूर्वनवनी व्हेन देवीये आवीने तेने व्रत लेवानो प्रतिबोध आप्यो. पठी स्वयंवरमां आवेला सर्वे राजाननी अने अपराजित तथा अनंतवीर्यनी रजा लश् पांचसे कन्या सहित सुमति राजकन्या सुव्रता साध्वी पासे चारित्र लर निर्मल तप करवा लागी. अनुक्रमे रुपक श्रेणी नुपर चमी केवलज्ञान मेलवनारी ते साध्वी अनेक नव्यजीवोने प्रतिबोध करी मोद पामी. अनंतवीर्य पण पोतानुं चोराशी लाख पूर्वनुं आयुष्य पूर्ण करी मृत्यु पामीने पहेली नरकने विषे बेतालीस हजार वर्षना आयुष्यवालो नारकी अयो. पनी अपराजित पण बंधुना वियोगश्री बहु शोक करवा लाग्यो एटले नीति अने धर्मना जाण एवा मंत्रीये तेने कर्वा के, “दे राजन् ! ज्यारे तमारा सरखा धीर पुरुषो मोह पीशाचधी व्याकुल थाय त्यारे पठी वीजा पुरुषो शी रीते धीरपणुं धारण करी सकशे ?” मंत्रीनां आवां वचन सांगली जित कांक शोक रहित अयो. पळी ते यशोधर गणधर पासे चारित्र लई बहु प्र. कारनां तप करी मृत्यु पामीने अव्युत देवलोकने विषे इंइ अयो. हवे आ जंबूछीपना नरतकेत्रने विषे वैताढ्य पर्वतनी दकिण श्रेणी नुपर गगनवल्लन नामना नगरने विषे मेघवाहन नामनो विद्याधर राजा राज्य करतो हतो. तेने अनेक प्रकारना गुणने धारण करनारी अने नत्तम रूपवाली मेघमालिनी नामनी स्त्री हती. अनंतवीर्यनो जीव नरकमांधी निक Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. ली तेमनो मेघनाद नामनो पुत्र थयो त्यारे तेने बहु कन्या परणाववा पूर्वकराज्याभिषेक करी मेघवाहन राजाए चारित्र लीधुं. पठी बन्ने श्रेणीना अधिपति मेघनाद राजाए पोताना पुत्रोने एकसोने दश देशो -हेची आप्या. कोइ दिवसे ते मेरुपर्वत नपर शाश्वता जिनेश्वरोने अने प्रज्ञप्ति विद्याने नक्तिपूर्वक वंदना करतो हतो एवामां त्यां अच्युत देवलोकना सर्वे देवता आव्या. तेमां तेनो पूर्वनवनो बंधु अच्युते पण आव्यो हतो. अच्युतेथे पोताना पूर्वनवना बंधु मेघनादने जो स्नेहथी तेने पूर्वन्नवर्नु स्वरूप धर्म सहित संन्नलाव्यु तेश्री ते मेघनाद हर्पित थयो तो अनेक विद्याधरो सहित पोताना नगर प्रत्ये गयो. त्यां ते अमरसूरि गुरु पाले चारित्र लइ नंदन पर्वत नपर ज तप करवा लाग्यो. आ वखते हयग्रीव राजाना पुत्रनो जीव के जे, असुरकुमारपणे नुत्पन्न भयो हतो तेणे ते एक रात्रीये कायोत्सर्ग करी रहेला मेघनाद मुनिने वहु नपसर्गों कस्या. परी कायोत्सर्गने पारी पृथ्वी नपर विहार करता ते मुनिये अनुक्रमे समाधिश्री कालधर्म पामी अच्युत देवलोकने विषे इंस्पद मेलव्यु. कषायनो नाश करनारी कानुथी विचित्र एवो श्री शांतिनाथनो बने अने सातमो नव श्री चतुर्विध संघर्नु कल्याण करो. (छठो तथा सातमो भव). हवे जंवूछीपना महाविदेहदेवनी मध्यमां सीता नदीने कांठे मंगलावती नामनी विजयमां तीर्थकरादि पुरुषरत्नने जन्म आपनारी तेमज सिहतमा वखणायली रत्नसंचया नामनी शाश्वती नगरी . त्यां उष्ट नीतिने दूर करवात्री प्रजा, कुशल करनारो केमंकर तीर्थंकर नामे राजा राज्य करतो हनो, त राजाने रत्नमाला नामनी स्त्री हती. अपराजितनो जीव बाबीटा लागरोपम सुधी अच्युत देवलोकमां सुख लोगवीने पळी त्यांधी चवी त्नमालाँनेर नदरने विषे अवतस्यो. ते वखते रात्रीये चक्रवर्तीना जन्मने सूचनारा हाथी विगेरे चौद स्वप्नो रत्नमालाये दीग. अनुक्रमे तेणे पूर्ण समये पुत्रो जन्म प्राप्यो एटले पिताये महोत्सवपूर्वक तेनुं वजायुध नाम पामयं. पठी कलानो अभ्यास करतो ते यौवनावस्था पाम्यो एटले पिताए तेने सदमावती नामनी राजकन्या परणावी. पठी अनंतवीर्यनो जीव पण अच्युत देवताकत्री च! तेमना पुत्रपणे तपन यो. पिताए तेनुं सदम्बायुष नाम पा... ना. न ज्यान युवावस्या पाम्यो न्यारे पिताए तेने कनकभी नामनी राजक Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. ( १०७ ) न्या साधे पराव्या. प्रियानी साधे विषयसुख भोगवतां तेने पण शतबज़ नामनो पुत्र थयो. एक दिवस केमंकर राजा पाताना पुत्र पौत्रादि परिवार सहित सजा - मांगे तो, एवामां त्यां ईशान देवलोकनो चित्रचूल नामनो कोइ मिथ्यावी देवता आव्यो, तेने वजायुधकुमारे हेतु युक्तिथी जीतीने प्रतिबोध पसारूयो; तेथे ते देवताए सम्यक्त्व धारण करयुं अने " या वज्रायुध शोलमो तीर्थकर ने पांचमो चक्रवर्ती थशे. " एम कहीने ते पोताने स्थानके गयो. कोइ वखते वसंत समयमां मुझ नामनी दासीये कामदेवना सरखा रूपवंत वज्रायुध कुमारने पुष्पोनी बावमी अर्पण करीने विनंती करी के, “दे देव! लक्ष्मीवती राणी आपनी साथै सूरिनिपात उद्यानमां क्रीमा करवानी } इच्छा करे बे.” पनी वज्जायुध कुमार पोतानी सातसें राणीयो सहित मुख्य पटराणी लक्ष्मीवतीने साधे लइ ते उद्यानमां गयो. त्यां सौ नाना प्रकारनी क्रीमा करवा लाग्या एटले वज्रायुध कुमार लक्ष्मीवती सहित उत्तम वाव्य पासे गयो, त्यां ते वाव्यने कांठे क्रीमा करीने केटलीक स्त्रीयो सहित जलक्रीका करवा माटे वाव्यमां परयो. या वखते दमितारि प्रतिवासुदेवनो जीव केटलाक नवमी ने 'बेवटना नवे कां अनुष्टान करी विद्युष्ट्र नामनो देवता थयो हतो; तेणे जलक्रीमा करता एवा वज्जायुध कुमारने जोइ पूर्वजवना द्वेषथी तेनो नाश करवामाटे म्होटो पर्वत उपामी वाव्य उपर परुतो मूक्यो. वली ते दुष्टे निचे वज्रायुधने नागपाशथी बांधी लीधो हतो; परंतु महा बल. वंत ने वे हजार यहोये आश्रय करायेला वज्रायुधे नागपाशने तोमी नाखी नंचेथीज पर्वतने नेदी नाख्यो. पक्षी वाव्यमांथी बहार निकली अमित शरीरवालो कुमार सर्व स्त्रीयो सहित क्रीमा करीने नगरमा गयो. वे स्थितिने जागनारा लोकांतिक देवताए “हे प्रभु ! तीर्थ प्रवर्तावो. " एम विनंती करी एटले केमंकर राजाए वजायुधने राज्य सोंपी पोते वार्षिक दान आपीने चारित्र लीधुं पढी अनुक्रमे वातिकर्मनो कय करी जेदलामां म केवल ज्ञान मेलव्यं तेटलामां वज्जायुधनी शस्त्रशालामां चक्ररत्न उत्पन्न अयुं. प्रथम केवल महोत्सव करीने पछी चक्ररत्ननो उत्सव करवापूर्वक वज्जाविद्युष्ट्र भवना पेहेला सवे Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " (१७) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. युध मंगलावती विजयने साधीने पोते चक्रवर्तीना लोगो नोगववा लाग्यो अने सहस्त्रायुधने युवराजपही नपर स्थाप्यो. एक दिवस वजायुध चकी बत्रीश हजार राजा अने मत्स महामत्स विगेरे परिवारथी विंटलायो उतो सन्नामां सुवर्णना सिंहासन पर बेगे हतो एवामां नयटी कंपता शरीरवालो कोइ एक विद्याधर आकाशमांथी नीचे नतरी तेना शरणे आव्यो. ते विद्याधरनी पाउल को रूपवंती तेमज हाथमां खड्ड धारण करी रहेली विद्याधरी अने गदाधारी एवो को विद्याधर एम वे जणा आवी पहोच्या. पठी ते गदाधारी विद्याधरे सर्व सन्ना सांजलतां उतां चक्रवर्तीने कह्यं के, “ हे महाराज ? ए पापीनो अपराध सोनलो. हुं सुकच विजयनी शुक्ल नगरीना शुक्लदत्त राजानो पवनवेग नामनो पुत्र .. म्हारे सुकांता नामनी स्त्री . तेना नदरथी नत्पन्न थयेली आशांतिमति नामनी म्हारी नुत्तम रूपवंती पुत्री के. एक दिवस में तेने प्रज्ञप्ति विद्यापी ; तेथी ते, ते विद्याने साधवामाटे मणिसागर नामना पर्वत उपर गइ. त्यां ते विद्या साधती एवी म्हारी पुत्रीने आ पापीये हरण करी. एवामां तेने नक्तिथी प्रसन्न थयेली प्रज्ञप्ति विद्या सिइ प्रश्तेथी ते आ पापीनय पामतो तो तमारी शरणे श्राव्यो . हं पण त्यां म्हारी पुत्रीने नजोवाश्री तेनी पाग्ल आव्यो बुं; माटे हे राजन् ! म्हारी पुत्रीना शीलने खंमन करवानी इछावाला तेऽष्टने त्यजी द्यो के, जेयी हुं तेने आ गदाना प्रहारथी मारी ना." पठी अवधिज्ञानथी तेन्ना पूर्वनवने जाणी तेमना प्रतिबोधने अर्थे व. जायुध चक्रवर्तीये कडं के, “ हे पवनवेग ? आ विद्याधरे त्हारी पुत्रीनु हरण कांड कारणथी करडु ले ते हुं तने कहुं ." पठी सर्वे सन्नासदो पोताना राजानुं ज्ञान महात्म्य जाणवाने सावधान थया एटले वजायुधे का. जंबूहीपना या पवित्र नरतक्षेत्रने विषे विंध्यपुर नामना नगरमां विंध्यदत्त नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने सुलक्षणा नामनी स्त्री हती. ते स्वीना नदरणी नत्पन्न थयेलो ते राजाने नलिनकेतु नामनो प्रन्निा पुत्र हतो. वली ते नगरमां धर्ममित्र नामना सार्थपतिने श्रीदत्ता नागनी स्त्रीश्री उत्पन्न श्रयेलो दत्त नामनो पुत्र दतो. ते दत्तने रतिना मरग्बी रूपवाली अने चंज्योत्स्नाना सरखी कांतीवाली प्रनंकरा नामनी स्त्री Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. दंती. कोइ वखते वसंत समयमां सार्थपति पुत्र दत्त पोतानी प्रजंकरा प्रियानी साथे बगीचामां क्रमा करतो हतो. एवामां नलिनकेतु ते सुंदर रूपवाली स्त्रीने जोइ कामदेवथी मोह पाम्यो; तेथी तेथे राज्य अने यौवनना गर्वश्री पोताना कुलशीलने लागता कलंकने नहि गाकारता ते स्त्रीनुं हरण करयुं. पबी ते राजकुमार प्रकराने घरमा राखी तेनी साथे विषयसुख जोगववा लाग्यो अने दत्त ते स्त्रीना वियोगी पीमा पामवा लाग्यो. पी कोइ वखते दत्त तेज बगीचामां गयो तो त्यां ते जेमने तेज वखते केवलज्ञान उत्पन्न थवाने लीधे देवतान जेमनो केवल महोत्सव करता हता एवा कोई मुनिने दीग, दत्त ते मुनिने वंदना करीने तेमनी गल वेगे अने तेमनी धर्मदेशनाथी प्रतिबोध पाम्यो. पीते दानादि धर्मकार्य करीने मृत्यु पाम्यो अने वैताढ्य पर्वत पर सुक विजयने विषे विद्याधरपति मदैविक्रमना अजितसेन नामना पुत्रपणे नृत्पन्न थयो. त्यां तेने कमला नामनी स्त्री इती. (2010) हवे नलिनकेतु पितानुं राज्य पामी मनंकरानी साथे गृहस्थावास जोगवतो तो. एवामां एक दिवस ते पोताना महेलना सातमे माले गयो तो त्यां ते आकाशमां पांच वर्णनां वादलां दीगं. वली तेना जोतां जोतामां ते वांद - aid in are in खं य अदृश्य श्रइ गयां. ते जोइ जेने संवेग प्राप्त raat aaaaaतु विचार करवा लाग्यो के, "अहो ! आ वादलानी पेठे संसारनी यादि सर्व वस्तु अनित्य देखाय डे. वली अज्ञानथी मूढ एवा में क्षणमात्रना सुखने माटे परस्त्रीनुं दरण करी बहु पाप बांध्युं बे, माटे चारित्र लइ तप नियम रूप जलथी पापने धोइ नांखीने हुं निर्मल थानं." आ प्रमाणे विचार क ते पुत्रने राज्य सोंपीने क्षेमंकर प्रजुनी पासे चारित्र लीधुं. अनुक्रमे शुद्ध चारित्र पालवाथी केवलज्ञान मेलवीने कर्मना मेलने धोइ नाखी ते पवित्र बुद्धिवालो नलिन केतु मोक्ष पाम्यो. प्रजंकरा पण सुत्रता नामनी साध्वी पासे चांदायण नामनुं पवित्र तप करी अने अनुक्रमे आयुष्यनो कय प्रये मृत्यु पामीने या त्हारी शांतिमती नामनी पुत्री थइ बे. श्री अजितसेन वि द्यावर दारी पुत्रीनो पूर्व जवनो पति बे. पूर्व जवना स्नेदथी मोद पामेलो हारी पुत्रीने विद्या साधती जो आकाशमां लइ गयो हतो. हे पवनवेग ! हे शांतिमती ! तमे बने जया एना नपर निरर्थक कोप न करो. "वज्रा Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. युनां आवां वचन सांजली बन्ने विद्याधरो अने शांतिमती एम त्र जणां एक बीजानी क्षमा मागीने प्रसन्न चित्तवालां थयां. हवे सहस्त्रायुध कुमारने जवना नामनी स्त्रीथी नत्पन्न श्रयेलो कनकशक्ति नामनो पुत्र हतो. तेने समानकुलमा नुत्पन्न थयेली कनकमाला अने वसंतसेना नामनी बे स्त्रीयो इती. को वखते कनकशक्ति क्रीमा करवा माटे वनमा गयो. त्यां तेणे नंचे नमता अने नीचे पमता एवा कोई पुरुषने जो ते. नुं कारण पूठ्युं एटले ते पुरुषे कडं के, "हे मित्र! हुं वैताढ्य पर्वत नपर रहे. नारो विद्याधर तुं. हुं अहिं आवीने बहु वखत रह्या पठी म्हारे स्थानके जतो हतो एवामां आकाशगामिनी विद्यार्नु एक पद नूली जवाथी म्हारे स्थानके जवा समर्थ न थवाने सीधे प्राप्रमाणे करुं बु.” कनकशक्ति कुमारे कडं. "दे ना! त्यारे तुं त्हारी विद्या म्हारी आगल नगी जा.” ते पुरुष पोतानी विद्या नणी गयो एटले कनकशक्ति कुमारे पदानुसारी लब्धीथी ते पद पूर्ण करी दी. धुं. पठी प्रसन्न श्रयेला विद्याधरे हर्षथी पोतानी विद्या कुमारने आपी अने विधि बतावी. कुमारे पण विधि प्रमाणे ते विद्याने साधी. को वखते कनकशक्ति कुमार बन्ने स्त्रीयो सहित फरतो फरतो हिमालय पर्वत पर गयो. त्यां तेणे विपुलमति नामना चारण मुनिने जोश न. क्तिथी वंदना करीने तेमनो अमृतना सरखो धर्मोपदेश सांनख्यो. पठी प्र. तिबोध पामेला तेणे बन्ने स्त्रीयो सहित ते मुनि पाले चारित्र लीधुं. को वखते ते कनकाक्ति मुनि विहार करता करता सिह पर्वत पर गया. त्यांतेमणे एक रात्रीये कायोत्सर्गे निवास कस्यो एटले तेमना पूर्व नवनो शत्रु के,जे देवता श्रयो हतो ते तेमने नपलो करवा लाग्यो; पण ते नपसर्गो विद्याधरोए दूर कस्या. पठी प्रत्लाते कायोत्सर्ग पारी कनकशक्तिमुनि रत्नसंचया नगरीये श्राव्या, त्यां पण तेमणे सूरनिपात नद्यानमां कायोत्सर्ग कस्यो. शुक्लध्यान ध्यातां चार घातीकर्मनो कय वायी तेमने केवलज्ञान नत्पन्न अयुं. ते वखते देवता, विद्याधर, नुवनपति, वजायुध चक्रवर्ती अने वीजा सामान्य माणसोए नेमनो केवल महोत्सव कस्यो. को अवसरे रत्नसंचया नगरीनी पासे ईशान ग्गामां केमंकर जिनेश्वर समवसस्या. ते वात सेवक लोकोए वजायुधने करी, नम्री ने परिवार मदित तेमने वंदना करवा गयो. त्यां ते त्रण प्रदक्षिणा पूर्वव Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (१११ ) जिनेश्वरने प्रणाम करी योग्य स्थानके बेसीने धर्म देशना सांजलवा लाग्यो. धर्म सांजलीने प्रतिबोध पामेला तेणे सहस्त्रायुधने राज्य सोपी चौदहजार राजा, चौद हजार राणीयो अने सातसो पुत्रो सहित चारित्र लीधुं. विविध प्रकारनी शिक्षा पामी गीतार्य थयेला ते मुनि पृथ्वी नपर विहार करता करता सिपिर्वत नपर गया. त्यांते वैरोचन स्तंन्नने विषे रमणीय शीलातल नपर एक वर्षनी पमिमा लश्ने निश्चलपणे रहा. एवामां हयग्रीव राजाना मणिकुंन अने मणिध्वज नामना बे पुत्रो अनेक नव नमीने असुर कुमारपणे नुत्पन्न श्रया हता. तेन फरता फरता सिहि पर्वत पर गया. त्यां तेमणे वजायुध मुनिने जोइ क्रोध पामीने ते महामुनिने बहु नपसर्गो करया. तेमां प्रथम तीक्ष्ण दाढोथी विकराल मुखवाटुं, लांबा पुंजमावालु, सिंद अने वाघy रूप करीने नयंकर शब्दो करया. पठी हाथीनां रूप करीने क्रोध करता उता दांतोना प्रहार विगेरे नपश्व करया. मेवट फणाथीनयंकर साप अने सापणनां रूप करीने तथा पिशाच अने राक्षणीनां रूप करीने मुनिने बहु वखत नपश्च करया. ते वखते इंनी मुख्य वारांगना रंना भने तिलोत्तमा वजायुध मुनिने वंदना करवा प्रावी. बन्ने वारांगनानएनयंकर वचनबी तेमनो तिरस्कार करयो एटले तेन बन्ने जणा तुरत नासी गया. पनी मुनिनी आगल रंनाये अंगहार विलास तथा हावन्नावश्री नत्तम नृत्य आरंन्यु. ते वखते परिवार सहित तिलो. तमाये सात स्वरथी युक्त अनेत्रण ग्रामथी पवित्र एवं गायन शरुं करयु. आ प्रमाणे नक्ति करी अने मुनिने प्रणाम करी बन्ने देवांगनान पोताना स्थाने गश्. पठी दुष्कर एवी वर्षनी पमिमा पूर्ण थइ एटले तेने पारीने वजायुधमुनि पृथ्वी नपर विहार करवा लाग्या. हवे केमंकर प्रन्नु मोक्ष पाम्या पठी तेमना गणधर पिहिताश्रव पृथ्वी नपर विहार करता करता को वखते ते रत्नसंचया नगरीने विषे आव्या. स. इस्त्रायुध राजा तेमनी पासे धर्म सांजलीने प्रतिबोध पाम्यो; तेथी तेणे पोताना पुत्रने राज्य सोपी तेमनी पासे चारित्र लीधुं.पठी गीतार्थ यश् पृथ्वी उपर विहार करता ते सहस्त्रायुध मुनि पोताना पिता वजायुध मुनिने मख्या एटले ते बन्ने मुनि साथे विविध प्रकारनां तप करता पृथ्वी नपर विहार करवा लाग्या.पठी तेढ सत्याग्मार नामना पर्वत नपर जश् पादपोपगमन अनशनश्री Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. देह त्याग करी नवमा ग्रैवेयकने विषे देवपणे नत्पन्न श्रया.(आठमो तथा नवमो भव.) हवे आ जंबूहीपना पूर्व महाविदेहकेत्रनी आजूषणरूप विष्कलावती विजयमा पुमरी किणी नामनी नगरी ने. त्यां नीति, कीर्ति अने विजयलक्ष्मीना संकेतस्थान रूप धनरथ नामना तीर्थंकर राजा राज्य करता हता. तेने रूप अने लावण्यश्री मनोहर एवी प्रीतिमती अने मनोहरा ए नामनी बे स्त्रीयो हती. वजायुधनो जीव नवमा ग्रैवेयकने विषे त्रीश सागरोपम सुधी सुख नोगवीने पठी आयुष्यनो कय श्रये त्यांची चवीने मेघस्वप्नने सूचवतो तो धनरथ तीर्थकरनी पहेली राणीना नदरने विषे पुत्रपणे नत्पन्न थयो. सहस्त्रायुधनो जीव पण त्यांथी चवी उत्तम रथना स्वप्नने सूचवतो तो तेज राजानी वीजी स्त्री मनोहराना नदरने विषे पुत्रपणे अवतस्यो. पनी पूर्ण अवसरे बन्ने स्त्रीयोए पुत्रोने जन्म आप्या अने राजाए महोत्सव करीने तेमनां मेघरथ अने दृढरय नाम पामयां, अनुक्रमे ते बन्ने पुत्रो कलाचार्य पासे अभ्यास करता करता युवावस्था पाम्या एटले घनरथ राजाए सुमंदिरपुरना निहतारि राजानी प्रिय मित्रा अने मनोरमा बे पुत्रीयो मेघरथने परणावी तथा तेज राजानी त्रीजी न्हानी पुत्री सुमती दृढरथने परणावी. मेघरथथी प्रिय मित्राने नंदीषण अने मनोरमाने मेघसेन नामना पुत्रो श्रया अने सुमतीने दृढरथथी रथसेन नामनो पुत्र थयो. अनुक्रमे ते. त्रणे पुत्रो कलाचार्य पासे कलाननो अभ्यास करवा लाग्या. एक दिवस धनरथ राजा अंतःपुरमा रत्नजमित्र सिंहासन नपर पुत्र पौत्रादि परिवार सहित वेगे हतो. एवामां त्यां सुसेना नामनी वेश्या आवीने रा. जाने कहेवा लागी के, “हे देव ! आ म्हारो कुकमो कोश्ना कुकमाथी जीती शकाय तेवो नथी, उतां जो कोश्ने पोताना कुकमानो गर्व होय तो पोतानो कुकमो श्रापनी समक्ष लावे अने जो तेना ते कुकमाश्री म्हारो कुकमो जीताय तो हुं तेने एक लाख च्य ापीश, परंतु म्हारो कुकमो तेना कुकमाने जीतशे तो हुँ तनी पासेश्री एक लाख घ्य लश्श.” वेश्यानां आवां वचन सांजलीने मनोरमा राणीये राजानी रजा लश् दासी पासे पोतानो कुकमो मगाव्यो. पठ बने कुकमा क्रोधश्री लाल अांखो करीने परस्पर एकवीजाने चांचोना प्रहार करना गु: करवा लाग्या. चांच अने पगना प्रहार करता बन्ने कुकमाननी राज Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (११३ ) सताना माणसोए सरखीज प्रशंसा करी. पनी तीर्थंकरपणाने लीधे गर्नवासबीज आरंनीने त्र ज्ञानवाला घनरथ राजाए मेघरथने कह्यु के, “हे वत्स ! घणो वखत युछ करवायी पण आ बन्नेमांथी एके विजयी निवमशे नहि." पठी मेघर तेनुं कारण पूब्युं एटले घनरथ राजाए कह्यु के आ जंबूदीपना औरव्रत केत्रमा रत्नपुर नगरने विषे धनदत्त अने वसुदत्त नामना बे वणिकमित्रो इता. तेनूख्या अने तरस्या बलदोने बहु नार नरेली गामीमां जोमी परगाम जश् वेपार करता हता. मिथ्यात्वथी मोह पामेला अने खोटा तोल तथा खोटा मापथी वेपार करता एवा तेनए कांश योइंधन मेलव्युं हतुं. पनी को वखते क्लेश करता ते बन्ने जया परस्पर एक बीजाने प्रहार करी मृत्यु पामीने तेज क्षेत्रमा हाथी श्रया. त्यां तेन सुवर्णकुला नदीने क्रांठे वृद्धि पामता उता कांचन अने ताम्रकलश नामना युथपति थया. पनी युथना लोन्नथी ते बन्ने जया परस्पर युः६ करीने मृत्यु पाम्या अने जंबूद्वीपना नरतदेवनी अयोध्या नगरीमां नंदिमित्रना घरे पामारूपे नत्पन्न थया. पी राजपुत्रे ते बन्नेने लश्ने लमाव्या. तेमां तेन बन्ने जणा मृत्यु पामीने तेज न.. गरीमां घेटा रूपे नत्पन्न श्रया.त्यां पण तेन युह करवायी लोहीवमे खरमायला कपालवाला थइ अंते मृत्यु पामीने आ कुकमा थया , माटे तेन मध्ये कोई विजयी नीवमशे नहि." घनरथ राजानां आवां वचन सांजली अवधिज्ञानी एवा मेघरथे का के, “हे तात! एन फक्त षटीज युः करे , एम नबी. परंतु बीजें एक कारण ते हुं आपने कहुं बुं. आनरतक्षेत्रमा वैताह्य पर्वतनी नत्तर श्रेणीना आनूषणरूप सुवर्णनान्न नामर्नु नगर . ते नगरमा गरुमवेग नामनो विद्याधर राजा राज्य करतो हतो. तेने चंतिलक अने सूरतिलक नामना के पुत्रो हता. एक दिवस ते बन्ने जणान शाश्वति प्रतिमानने बंदना करवा माटे जिनेश्वरोनां स्नात्रथी पवित्र एवा मेरुपर्वतना शिखर नपर गया. त्यां तेनए सुवर्ण शिला नपर बेठेला सागरचं नामना चारण मुनिने हर्षथी वंदना करीने पोताना पूर्वनव पूग्या एटले मुनिए तेन्ना पूर्वन्नवनी स्थिति जाणीने तेमने कथु के____ धातकीखंगना ऐरव्रत क्षेत्रने विषे वजपुर नगरमां अन्नयघोप नामनो Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११४) ऋषिमंमलदत्ति-पूर्वाई. राजा राज्य करतो हतो. तेने सुवर्णतिलका नामनी स्त्रीना नदरथी नत्पन थ. येला जय विजय नामना बे पुत्रो हता. हवे सुवर्णनगरना शंख राजाने पृथ्वी राणीना नदरथी उत्पन्न अयेली पृथ्वीसेना नामनी पुत्री हती. ते पुत्रीये पो. ताना पति तरीके अन्नयघोष राजाने पसंद कस्यो हतो, तेथी ते राजपुत्री च. जपुर नगरमां अन्नयघोषने सामी परणवा आवी हती. अन्नयघोष राजा पण ते मृगना सरखां नेत्रवाली राजकन्याने हर्षथी परण्यो. एक दिवस ते अन्नय. घोष राजा सेंकमो सणीयोने साये लश् वसंत समयमां पुष्पोथी मनोहर एवा वगीचामां क्रीमा करवा माटे गयो. त्यां बगीचामां फरती एवी पृथ्वीसेना रा. पीये दांतमदन नामना श्रेष्ट मुनिने दीग. पठी मुनि पासेथी धर्म सांजली प्र. तिवोध पामेली राणीये राजानी रजा खश्ने मुनि पासे दीक्षा लीधी. राजा अ. नयघोष पण वसंतलदमीने सफल करी नगरमां आव्यो. एक दिवस अन्नयघोष राजाने घेर उद्मस्थावस्थावाला श्री अनंतनाथ ती'थैकर गोचरीने अर्थे आव्या. राजाए तेमने प्रासुक अन्न पाणीपी प्रतिलाच्या एटले तेना घरने विषे देवतानए पंच दिव्य प्रगट कस्वां, पगरी अनंतनाथने केक्लज्ञान नत्पन्न अयुं एटले अन्नयघोष राजाए पोताना जय विजय नामना बन्ने पुत्रो सहित चारित्र लीधुं. पठी वीश स्थानकने आराधवाश्री तीर्थकरगोत्र कर्म वांधी ते राजा पुत्रो सहित मृत्यु पामीने अच्युत देवलोकने विषे देवता अयो. आयुष्य कय श्रयं एटले त्यांची चवीने अन्नयघोषनो जीव हेमांगद राजानो घ. नरथ नामे पुत्र श्रयो अने जय विजयना जीवो तमे (चंतिलक अने सूरतिलक) अया गे." (मेघरथ पोताना पिता धनरथ राजाने कहे डे के,) हे तात ! सागरचं मुनिनां एवां वचन सांजली बन्ने विद्याधर कुमारो तमास दर्शन करवा माटे अहिं आव्या , परंतु तेन अहिं आपणी पासे कुकमाना युझ्ने द. णमात्र जोड्ने परी विद्याना वलयी कुकमाना शरीरमा प्रवेश करीने रहेला. आवां मेघरगनां वचन सांजली ते प्रसन्न श्रयेला ते वन्ने विद्याधरो प्रगट । अ पोताना पूर्वन्नवना पिता धनरण राजाना पगमां प्रणाम करी अने कण-/ मात्र रद्री पोताने स्यानके बाख्या गया. पठी ते चंतिलक अने सुरतिलक दोका ला दीर्घकाल तप करी केवलकान मेलवी मोक्षपद पाम्या. Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (११५ ) - हवे बन्ने कुकमान पण पोताना पूर्वना नवनी स्थिति जाणीने पोताना महापापनो मनमां पस्तावो करवा लाग्या. पी तेमणे राजाना पगमा प्रणाम करीने पोतानी नाषामां कडं के, “हे प्रन्नु! हवे अमे शुंकरीये?" पठी राजाए तेमने सम्यक्त्वमूल अहिंसा लक्षणकालो धर्म कहो. ते धर्म तेमणे । श्रेष्ट लावधी स्वीकास्यो. पडी तेन मृत्यु पामीने देवयोनीमां ताम्रचूल अने तुवर्णचूल नामना नूतदेवता अया. पबी तेन वैमानमां बेसी घनरथ राजा गसे श्रावी तेमने हाथ जोमीने प्रणाम करी तेमनी प्रशंसा करवापूर्वक कमा मागी पोताने स्थानके गया. राजा घनरथे पण बहु कालसुधी राज्यसक्ष्मीनुं पालन करयु. को वखते लोकांतिक देवताए आवीने “हे नाथ! तीर्थप्रवर्त्तावो.” एम कही दीक्षा अवसर जयाव्यो एटले धनरथ राजाए मेघरय कुमारने राज्यासन नपर बेसारवापूर्वक सांवत्सरिक दान आपी दीक्षा लीधी. पठी अनुक्रमे केवलझान मेलवी अनेक नव्यजीवोने प्रतिबोध पमामी मेघरथ जिनेश्वर पृथ्ची नपर विहार करवा लाग्या. एक दिवस मेघरय राजा दृढरथने साये लश प्रिया सहित देवरमण उद्यानने विषे गयो. त्यांते जेटलामा अशोकवृतनी नीचेवेगे तेटलामा केटलाक नूतोए आवीने तेनी आगल नृत्य दारु करयुं. नाना प्रकारना शस्त्रने धारण करनारा,वस्त्र सहित आजूषणोथी सुशोन्नित बनेला ते नूतोए राजानी पासे कणमात्र अत्यंत आश्चर्यकारी नृत्य करयुं. एटलामां तो घुघरीयोथी तेमज ध्वजानथी सुशोलित एवं एक वैमान आकाश मार्गेथी राजानी पासे आव्यु.ते वैमानमां सुंदर रूपवालां स्त्री पुरुषने जो प्रिय मित्रा राणीये मेघरथने पूज्यु के, “हे स्वामिन् ! श्रा कोण ?" मेघरथे कडं “हे प्रिया सांजल. वैताढ्य पर्वतनी नचरश्रेणी नपर अलका नामनी नगरीना राजा वियुश्यनो पुत्र प्रा सिंहरथ बे. तेनी साथे रदेली ते तेनी वेगवती नामनी स्त्री ३. ए सिंहरथ पोतानी स्त्री सहित धातकीखंमने विषे जिनेश्वरोने वंदन करवा गयो हतो. ते त्यांथी पागे फरी जेटलामां अहिं आव्यो तेटलामां तेनुं वैमान आकाशमां तुरत अटकी पम्यु. पनी मने जोक्ने ते विचार करवा लाग्यो के, “आ सामान्य राजा नथी. कारणके, जेना प्रनावथी आ म्हारुं वैमान पण अटकी पमयु.” आम धारीने पनी तेणे अनेक तू रूपो बनावी Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. म्हारी आगल नृत्य करयुं. " पतिनां आवां वचन सांजली प्रियमित्राये फरी पूग्यं के, " ए पूर्वनवे एवं शुं पुण्य करयुं हर्तुं के, जेथी ते आवो समृद्धिवं"त देवता थयो ?” मेघरथे कयुं. " हे प्रिया ! पुष्करद्दीपना पूर्व जरत क्षेत्रने विषे संघपुर नगरमा कोइ राजगुप्त नामनो कणबी रहेतो हतो. तेने शंखिका "नामनी स्त्री हती. निर्धनपणाथी पीमा पामता ते बन्ने जगा कोइने घेर काम करीने आजीविका करता हता. कोइ वखते ते बन्ने स्त्री पुरुष लाकमां लेवा वनमां गयां हतां; एवामां तेमले त्यां कोइ मुनिने जोइ भक्तिथी वंदना करी. पी. मु. निये तेमने धर्म उपदेश्यो ते तेमले विधिश्री श्राराध्यो. वली पूर्व जन्मे मेलवेलां पापकर्मने नाश करनारुं बत्रीश कल्याणक नामनुं तप कर. तेमां वत्री श चो ने वेब कराय वे पारणाने दिवसे तेमना घरने विषे कोइ मुनि याव्या; तेमने तेमले प्रासुक अन्न पाणीथी प्रतिलाभ्या पी अवसरे ते बन्ने जलाये चारित्र लीधुं. ते वखते पण ते श्राम्लवर्धमान नामनुं तप करधुं पठी आयुष्यनो कय यये ते राजगुप्त मृत्यु पामीने ब्रह्मलोकने विषे देषत थयो. त्यांथी चवीने या सिंहस्थ नामनो राजा थयो छे. तेनी स्त्री शंखिक पण तप करी पांचमा देवलोकमां गइ हती. त्यांथी चवीने ते या तेनी वेगव ती नामनी स्त्री इ बे. "" " यावां मेघरथ राजानां वचनश्री पोताना पूर्वभव जाली प्रतिबोध पामले सिंहस्थ घरे गयो. त्यां तेणे पोताना पुत्रने राज्य सोंपी प्रिया सहित श्री घ नरथ तीर्थपति पासे चारित्र लीधुं पढी घोर तप करीने उत्तम एवं केवलज्ञा नमेव कर्मना मेलने धोइ नाखी सिंहरथ मुनि मोक्षपद पाम्या. मेघरथ राजा पण वगीचामांथी घेर याव्या पटी को वखते आ भूपणादिक आरंभ त्यजी दइ पौपधवत लइ पौपधशालाना मध्ये योगासने वेसी सर्व राजाने धर्मदेशना आपवा लाग्या. एवामां कंपता शरीरवालो हरलीनी पेठे चंचल नेत्रवालो, अने "हे राजन् ! हुंन्हारा शरणे श्राव्यो वृं. एम वारंवार वोलतो को पारेवो राजाना खोलामां परुयो. नयनीत पारे वाने जो दयालु राजा तेने कह्युं के, “दे जड़ ! तुं जय न पाम्य, म्हारे पासे तने कोइथी जय नश्री. " राजानां आवां वचनश्री पारेवो जेटलामां नि जय यया तेलामां त्यां तेनी पाठल कोइ सिंचालो आवीने राजाने कड़ेवा Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. श्री शांतिनाथ चरित्र. (११७ ) लाग्यों के, "हे राजें! तमारा खोलामा रहेलो पारेवो म्हारुं नक्ष्य , माटे तेने तमे डोमी द्यो. कारण हुं बहु नूख्यो अयो बुं. एना विना म्हारं जीवित टकी शकशे नहि." ते सिंचाणानां आवां वचन सांजली राजाए कह्यु. "म्हारे शरणे आवेलानी सर्व प्रकारे रक्षा करवी जोश्ये. वली जेवी रीते त्हारो विनाश वाथी तेने दुःख थाय तेवी रीते वीजानने पण निश्चे थाय ने. वली जेवू जीवित तने वहावं ले. तेवू बीजाने पण होय . जीव हत्याथी निश्चे नरकादि उर्गति प्राप्त घाय , माटे ते त्हारे निश्च त्यजी देवी जोश्ये.” सिंचाणे कद्यं, "हे राजन् ! तमे पोते सुखी गे, माटे धर्म अधर्मनो विचार करोगे. आ पारे । वो म्हाराथी नय पामीने तमारे शरणे आवेलो ने, परंतु नूखरूप राक्षसीथी गलायेलो हुं कोने शरणे जाउं ? हे राजन् ! तमे सत्पुरुष गे, माटे कोश्ने कुख बता नथी तो जेवी रीते तमे पारेवाने रक्षण कस्यो तेवी रीते मने पण रक्षण करो.” राजाए कडं. “जो तुंनूख्यो तो हुँ तने सरस अन मगावी आपुं तेनुंतुं नोजन कर." सिंचाणे कडं. "अमने मांस इष्ट , अन्न श्ष्ट नथी.”राजाए कडं. "तो हुँ तने तेटलुं मांस मगावी आपुं.” सिंचाणे कडं. "ए मांसनुं अमारे काम नथी, कारण बीजाश्री हणायेला जीव, मांस.अमे नहण करता नथी, परंतु पोतेज हणेला जीवोना मांसनुं नदण करीये जीये.” मेघरथे कडं. “जो एम ने तो हुँ तने तेटढं म्हारं पोतानुं मांसापुं."सिंचाणे ते वात कबुल करी एटले राजाए त्राजवां मंगावी एक वाजुए पारेवाने मूक्यो अने बीजी बाजुए पोतार्नु मांस कापी कापीने मूकवा मांमयु. जेम जेम मांस मूकवा मामयं तेम तेम पा. रेवानुं वजन नारे अवाथी ते त्राजवू नीचे बेसवा लाग्यु एटले साहसीक एवो राजा पोतेज त्राजवामां बेसी गयो. ते जो बीजा राजान हाहा शब्द करवा लाग्या. आ वखते कोश्नत्तमानूषणोथी देदीप्यमान देवता प्रगट श्र राजाने कहेवा लाग्यो के, “हे राजन् ! त्हारा धीरपणाने धन्य. त्हारुंजीवित सफल . ईशाने त्हारा चंना किरणो सरखा निर्मल गुणोने पोतानी सन्नामां वखाणतो हतो.तेने सत्य लहि मानतो हुँ त्हारी परीक्षा करवा माटे आ पूर्वना छेषी एचा 'बे पदीनना शरीरमा प्रवेश करी अहिं आव्यो हतो.” पी राजाए पूज्यु के, "हे देव! ते बन्ने पकीनने शाश्री वैर हतुं ते अमने कहो. कारण ते अमने बहु कौतुक ने." देवताए का. “आज नगरमा पूर्वे सागरचं नाभनो वणिक् रहेतो हतो, तेने । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९७) ऋषिममलत्ति-पूर्वाई. जयसेना नामनी स्त्री हती. तेनने सायेज नत्पन्न श्रयेला नंद अने नंदन नामना वे पुत्रो हता. कोइ दिवस ते बन्ने जगान पितानी रजा ला सार्थवाहनी साथे नागपुर नगरमा वेपार करवा माटे गया. त्यां वेपार करता एवा तेनए दैवयोगथी एक महामूल्यवालुं रत्न मेलव्युं. पठी ते बन्ने जा रत्ननी श्चाश्री एक बी. . जाने मारवानी श्छा करता उता नदीमां गया. त्यां एके कह्यु. “ए रत्न में मेल व्यु ते." बीजाए कडं के, "अरे ए तो म्हारं .तुं खोटो लोन करे .” पनी तेन क्रोधथी राता नेत्रवाला बनी परस्पर एक बीजाने मार मारता बता नदीने कांठे आध्यानश्री पृथ्वी नपर पमया. त्यां तेन मृत्यु पामीने हवणां वनमा पदी श्रयाने. तेन परस्पर एका थर क्लेश करता हता एवामां तेननां शरीरमा में प्रवेश कस्यो हतो.” आ प्रमाणे कही देवता पोताने स्थानके गयो एटले विस्मय पामेला स. नाना लोकोए मेघरथ राजाने पूज्यु के, “हे राजन् ! ए देवता कोण हतो के. जेणे भावी माया करीने निरपराधी एवा आपने आवा महा प्राणसंकटने विषे नाख्या ?" मेघरथ राजाए कहूं. “जो तमने ते वातनुं आश्चर्य होय तो सावधान प्रश्ने म्हारुं वचन सांजलो. आ नवश्री पांचमे नवे अनंतवीर्य वासुदेवनो म्होटो नाइ अपराजित नामनो वलदेव हुं पोते हतो. ते वखते दमितारि नामनो राजा अमारो शत्रु प्रतिवासुदेव हतो. अमे तेनी पुत्रीनु हरण करीने तेने मारी नांख्यो. त्यांची ते संसाररूप अटवीमालमतो नमतो अष्टापद पर्वतना मूलनागमां को तापसनो पुत्र थयो. ते त्यां वाल तप करी मृत्यु पामीने ईशान देवलोकमां देवता थयो. को वखते ते ईशान लोकनो इंश म्हारी प्रशंसा करतोहशे ते सांजली श्रा देवता तेने असदहतो तो अहिं आव्यो अने तेणे अहिं जे कां करयुं ते तो तमे प्रत्यक्ष जोयुं .” हवे पारेवो अने सिंचालो ए वने जणा पोतानुं अने देवतार्नु वृत्तांत जागी जातिस्मरण झान पाम्या; तेथी तेन पोतानी वाणीमां राजाने कहेवा लाग्या के, “हे स्वामिन् ! अमे या अमाझं पोतानुं चरित्र सांजली वैराग्य पाम्या वीये, माटे हवे अमार जे कांड करवू योग्य होय ते कहो." राजा मंग्य कह्यु. तमे सम्यक टिपगुं धारण करी पापने नाश करनारुं अन. Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (११५) शन ल्यो.” बन्ने पक्षीयो ते प्रमाणे करी पंच नवकारनु स्मरण करी मृत्यु "पामीने नुवनवासी देवता थया. पनी विधिधी पौषधने पारी अने पारणं करी राजा मेघरथ फरी लोगोने लोगववा लाग्यो. एक दिवस परिसहोथी नय नहि पामता अने वैराग्यवंत एवा मेघरय राजा अहम करीने कायोत्सर्गे रह्या हता. एवामा अावीश लाख वैमानना अधिपति एवा ईशाने पोतानी सन्नामा रह्ये ते नक्तिना वशथी का के, "महात्म्यथी त्रलोकने जीतनारा, पापरहित अने नविष्यकाले अरिहंत श्रनारा हे महासत्वधारि ! तमने हुं नमस्कार करुं बुं." इं आ प्रमाणे नमस्कार कस्यो, ते सांजली तेनी पासे बेठेली तेनी अतिरूपा अने सुरूपा नामनी स्त्री. योए पूज्युं के, “हे स्वामिन् ! तमे हवणां कोने नमस्कार कस्यो ?" श्शाने३ कडं. “सांनलो. पृथ्वी नपर पुमरीकिणी नगरीमा मेघरथ नामनो राजा राज्य करे . ते हवणां अम्म तप करी कायोत्सर्गे रहेल . शुन्न ध्यानथी रहेला ते राजाने में नक्तिथी नमस्कार कस्यो बे. वली ते एवी रीते शुन्न ध्यानथी धर्मने विषे स्थिर मन करीने रह्यो डे के, जेने इंसहित देवतान पण चलाववाने समर्थ नथी." इंश्नां आवां वचन सांजली तेनी बे स्त्रीयो नत्तम रूप धारण करी मेघरथ राजाने दोन पमामवा माटे तेनी पासे गइ. नत्कृष्ट रूप, लावण्य अने कांतिथी मनोहर, हावन्नाव करती तेमज नत्तम शंगारने धारण करी रहेली ते बन्ने देवांगनान राजानी आगल आवीने आ प्रमाणे कहेचा लागी. “हे स्वामिन् ! अमे बन्ने देवांगनान तमारा नपर स्नेहथी मोद पामीने अहिं आवीयो तीये, माटे तमे अमारी श्छा पूर्ण करो, अमे अमारा स्वाधिन पति इंश्ने त्यजी दर तमारा रूप, गुण अने यौवनमा लोन पामीने अहिं आवीयो बीये." देवांगनाननां आ प्रकारनां राग नत्पन्न करनारां मनोहर वचनश्री तेमज विविध प्रकारना हावन्नावथी राजानुं चित्त जरा पण दोन्न पाम्युं नहि. पठी सघली रात्री अनुकुल. नपसर्ग करीने शांत बयेली ते बने देवीयो सवारे मेघरथ राजानी स्तुति करवा लागी.."हे सुंदर ! अहो ! रागरहित एवा तमे अमाझं चित्त रागसहित बनावी दी, अने तमे अमाराधी रागवाला थया नहि. हे धीर! लोहमय पुरुष होय तोपण अमारी चेष्टाथी पींगली जाय , उतां तमाझं मन जरापण पींगलायुं नहि.” पठी ते बन्ने देवांग- .. Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. नान पोताना अपराधनी क्षमा मागी अने नमस्कार करीतेना गुगनुं गान करती करती स्वर्ग प्रत्ये गइ. राजा मेघरले परा सवारे विधि प्रमाणे कायोत्सर्ग पारीने पारणुं करयु. एक दिवस मेघरथ राजा सामंतो सहित सन्नामां बेगे हतो एवामां बागना रक्षक मालीये त्यां आवी नक्तिपूर्वक विनंती करी के, “हे स्वामिन् ! आजनो दिवस धन्य ठे जे, आजे तमारा पिता श्रीधनरथ जिनेश्वर वागमां समवसस्या ." मालीनां आवां वचन सांजली हर्ष पामेलो मेघरथ राजा ते मा. लीने झ्यादिक आपी संतोष पमामीने अनेक राजकुमारो सहित जिनेश्वरने नमन करवा गयो. त्यां ते धर्मोपदेश सांजली चारित्र लेवानी ना करतो तो जिनेश्वरने वेदना करी घरे गयो. पठी तेणे दृढरथने कह्यु के, “हे बंधु ! तुं राज्य गृहण कर. कारण हुं चारित्र लेवानी श्चा करुं बु.” दृढरथे कडं. “हुं पण तमारी साये चारित्र लश्श. पठी मेघरथे पोताना पुत्र मेघसनने राज्यासने बेसारी दृढरथना पुत्रने युवराज.पही आपी पोते चार हजार राजा, सातसो पुत्र तेमज पोताना बंधु दृढसेन सहित घनरथ जिनेश्वर पासे चारित्र लीधुं. पठी पोताना देहने विपे स्पृहा रहित, परीषहोने सहन करनारा, हमेशां पांच समिति अने त्रण गुप्तियुक्त एवा ते घनरय मुनि पृथ्वी नपर विहार करता उता बहु नव्य जीवोने वोध पमामी अने कर्मना मलने धोइ नाखी मोक्षपद पान्या. मेघरय मुनिये पण प्रधान एवा वीश स्थानक, आराधन करी तीर्थकर नाम गोत्रकर्म मेलव्युं. वली तेमरो अरिहंत, सिः६, प्रवचन, गुरु, स्थविर साधु, बहुश्रुत अने तपस्वीननुं हमेशां वात्सल्य करयु. कणे करो शाननो नपयोग, तेमज दर्शन, विनय, आवश्यक तथा शीलव्रतने विषे अतिचार रहि-, तपणुं धारण करयु. वली ते कण कण तप, त्याग, वैयावञ्च अने समाधीश्री अपूर्व झानने मेलववामां तत्पर श्रया. ठेवट प्रवचननी प्रज्ञावना अने सिंहनि कीमित तप पण तेमणे करयु. श्रीमेघरथ मुनि एक लाख वर्ष चारित्र पाली अने अंते न्हाना बंधु नदित तिलकाचल पर्वत नपर अनशन लइ समाधिश्री मलमय ददनो त्याग करीने सर्वार्थसिह नामना पांचमा अनुत्तर वैमानने विषे तत्रौटा मागरोपमना अायुप्यवाला देवता श्रया. (दशमो तथा अगीयारमो भव.) जंबहीपना या लरतकेत्रमा कुरुदेशने विपे हस्तिनापुर नामर्नु नगर ठे Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. (१५१) यां नदारतादि नत्तम गुणोथी विख्यात एवो विश्वसेन नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने अचिरा नामनी स्त्री हती. हवे मेघरथनो जीव सर्वार्थसिध्यी चवीने नादरवा मासनी अंधारी सातमने दिवसे रात्रीये अचिरा देवीना नदररूप मानसरोवरमा राजहंसनी पेठे अवंतस्यो. ते वखते देवीये निशमां चौद महास्वप्न जोयां. पनी जागी नठीने तेणे स्वप्नानी वात विश्वसेन राजाने कही, तेश्री राजाये हर्ष पामी स्वप्नपा कोने बोलावी स्वप्नानी वात पूठी एटले तेनुए कह्यु के, “देवीये चौद स्वप्न जोयां बे, माटे तेमनो पुत्र चौदराज लोकनो अधिपति थशे. वली चौदपूर्वने प्रकाश करनार तेमज अगीयार अंगनो जाण थशे." स्वप्नपाठकोनां आवां वचन सांजली हर्ष पामेला विश्वसेन राजाए सत्कार करेला स्वप्नपाठको पोतपोताने स्थानके गया. पठी गर्जने धारण करती एवी अचिरा देवीने नत्पन्न थयेला शुन्न होला राजाए पूर्ण कस्या. विश्वसेन राजाना देशमांप्रथम म्होटो नपश्व नत्पन्न भयो हतो तेना लोकोये बहु उपायो कस्या, पण ते शांत अतो नहोतो, परंतु प्रनु गर्नमां आव्या त्यारथी ते शांत अश् गयो; तेथी प्रजा गर्ननी प्रशंसा करती हती. अनुक्रमे नव मास अने सात दिवस गये बते जेठ मासनी अंधारी तेरसने दिवसे नरणी नक्षत्रमां चंनो योग तेमज सूपर्यादि ग्रहो नक्षस्थानमा रह्ये उते शुन्न मुहूर्त्तमां अचिरा देवीये अर्धी रात्रीपे पुत्रने जन्म प्राप्यो. ते वखते नारकी जीवोने पण कणमात्र सुख नत्पन्न प्रयुं तेमज त्रलोकमा सूर्यकांतिथी अधिक प्रकाश अयो. आ वखते उपन्न: दिग् कुमारीकानये अवधिज्ञानथी जिनेश्वरनो जन्म जागी त्यां आवीने संवर्त वायुयी वालवू, जल सिंचवू, आनूषण, दर्पण, कारी, विकणा, चामर विगेरेने धारण करवापूर्वक रकाविधि विगेरे सूतिकानां कार्यो कस्यां. पी आसनकंपथी इथे जिनेश्वरनो जन्म जाण्यो; तेथी तेणे प्रजुने मेरुपर्वत नपर लइ जवादिक सर्व अनिषेक क्रिया करीने मातानी शय्यामां मूक्या. पी विश्वसेन राजाना घरने विषे सुवर्णवृष्टि करी सर्वे देवता पोतपोताने स्थानके गया एटले अचिरा देवी जागी नव्या अने ते पोतानी पासे रहेला पुत्रने जो बहु हर्ष पाम्या. विश्वसेन राजाए परा पुत्र जन्मनी वधामणि आपनाराने च्यादिकथी संतोष पमामी महोत्सव करवा पूर्वक बारमे दिवसे अरिष्टनी शांती Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२ ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वाई. करवायी पुत्रनुं 'शांति' एवं नाम पारुयुं पठी अनुक्रमे वृद्धि पामता ते गो शिर्ष चंदनना सरखा सुगंधित शरीरवाला, चंदना सरखी कांतिवाला, स्वयंभू रमण समुना सरखा गंजीर, परसेवादि मलरहित शरीरवाला, एक हजार श्रने श्राव लक्षणवाला, शांतिना करनारा अने मृगना लंबनवाला शांति जि. नेश्वरने पच्चीस हजार वर्ष गये बत्ते विश्वसेन राजाए मंगलीकपदे स्थाप्या: विश्वसेन राजाए शांतिनाथने बहु स्त्रीयो परणावी इती, परंतु यशोमति ते. मनी मुख्य पटराणी इती. · वे दृढरथनो जीव सर्वार्थसिद्ध विमानश्री चवीने चक्र स्वप्न सूचवतों उतो यशोमतिना नदरने विषे श्रवतस्यो. पूर्ण अवसरे माताए पुत्रने जन्म प्राप्यो. पिता पण महोत्सव करीने तेनुं चक्रायुध नाम पमचं अने अनुक्रमे वृद्धि पामेला ते पुत्रने राजकन्या साधे परणावीने युवराज पछी पी पी शांतिनाथनी श्रायुधशालामां चक्ररत्न उत्पन्न थयुं; तेथी तेनो भाइ महोत्सव करीने शांतिनाथ भरतत्रने साधवा माटे तैयारी करवा लाग्या. चक्ररत्ननी पाउल प्रया करनारा शांतिनाथे मागध, वरदाम थने प्रनासक्षेत्रने साधी सिंधु नदीने कांठे पकाव करो. त्यां पण सिंधुदेवीये तेमनो बहु प्रादर सत्कार कस्यो. पी वैताढ्य पर्वते गया. त्यां वैताढ्य कुमार तेमनी आज्ञा पालनारो थयो . पटी शांतिनाथनी श्राज्ञा पालवा तैयार घयेला कृतमाल देवताए प्रपता गुफाना वारने नृघामयुं. त्यां जन्मना श्रने निर्मग्ना नामनी वे नदी दोवाथी वार्धिक रने तुरत ते नपर पुल बांधी प्राप्यो. पठी प्रत्तु सैन्य सहित गुफामां पेठा, पण त्यां धारं होवाथी का किसी रत्नवमे अंधकारने दूर करवा माटे मंगल करयां. एप्रमाणे अंधकार दूर करी सामी बाजुए जर त्यांना आपात चिलात नामना म्लेछोने पोताने वश करया. सिंधुनदीना वीजा कांगने साधी हिमालय प चेतना अधिष्ठायक देवने पोताना स्वाधिन करचो. ऋषनकुट नपर पोतानुं नाम लखीने पती सेनापतिये गंगानदीनो उत्तरतट साध्यो. त्यां गंगाना कांठे निवास करी रहेला शांतिनाथ चक्रवत्तींनी समीपे वार योजन लांवां श्रने नव योजन यहोलां पेटीना श्राकारवालां नव निधान निकल्यां पठी शांतिनाथ दस्निनापुर नगरे गया. त्यां तेमने मुकुटवध वत्रीश हजार राजानए बार वर्ष सुधी चक्रवतींनो अभिषेक कस्यो पनी श्रीशांतिनाथे पच्चीस हजार वर्ष सुधी Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री शांतिनाथ चरित्र. -- ( १५३ ) चक्रवर्त्तीना जोगी जोगव्या एटले लोकांतिक देवताए प्रवीने तेमनी विनंती करी के "दे स्वामिन् ! तीर्थ प्रवर्त्तावो.” पछी सांवत्सरी दान श्रापी अने चक्रायुध नामना पुत्रने राज्य सौंपी सर्व देव, दानव अने राजानए वह नक्तिश्री पूजेला श्री शांतिनाथ सर्वार्थ नामनी पालखी मां बेसी सहस्त्राम्र वनमां ज‍ त्यां पालखीमांथी नीचे उतरी सर्व आभूषणने व्यजी दइ पंचमुष्टि लोच करो. प्रजुनां वस्त्रोने लइ डे की रसमुड्मां नाख्यां पढी जेठ मासनी अंधारी चौदशने दिवसे भरणी नक्षत्रमां चंड्नो योग बते मनुए बघतप करीने एक ह'जार राजान सहित सिने नमस्कार करी सामायिक चारित्र लइ पृथ्वी उपर विहार करने कोइ सन्निवेशमां सुमित्र नामना ग्रहस्थने घेर खीरथी पारणुं करधुं चार ज्ञानना धारणहार अने सर्वे प्राणीयोमां शिरोमणि एवा प्रभु उग्रस्थावस्थामां गाम, नगर विगेरे जूदा जूदा स्थानके श्राव मास विहार करीने फरी दस्तिनापुर नगरे सहस्त्राम्र वनमां आवीने पत्र तथा फुल विगेरेनी समृदिवाला ने विस्तारवंत एवा नंदिवृकनी नीचे वेग. त्यां शुक्ल ध्यान ध्यातां प्रभुने पोष मासनी शुक्ल नवमीने दिवसे भरणी नक्षत्रमां चंश्नो योग ते चार घाती कर्मनो कय श्रवाथी नज्वल एवं केवलज्ञान उत्पन्न ययुं. ते वखते चार प्रकारना देवतानए त्यां आवी समवसरण रचवा मांचं. तेमां प्रथम वायुए योजन मात्र भूमीना अशुभ पुलो दूर करयां. मेघे सुगंधिवाला पाथी तेटली भूमीने सींचन करी. वैमानिक, ज्योती श्रने भुवनपति देवताए अनुक्रमे रत्नना, सोनाना अने रुपाना एम त्रण गढो कांगरा सहित बनाव्या. दरेक गढमां तोरणवाला चार चार दरवाजा मूकी मध्यमां प्रभुना अंगथी बारगणुं नं अशोकवृक्ष बनायुं तेनी नीचे चार तरफ चार सिंहासन ने तेना उपर त्रण ऋण उत्र तथा बबे चामर बनाव्यां पढी पूर्व तरफ - ना दरवाजेथी समवसरणमां प्रवेश करी प्रभु तीर्थने नमस्कार करवापूर्वक पूर्वाभिमुखे बेठा एटले देवतानए बाकीना ऋण सिंहासन्नो उपर त्रण प्रति(मान स्थापन करी. प्रभुनी पावल नामंगल स्थापन करी देवतानुए ढींचण प्रमाण पुष्पवृष्टि करी. उंचे आकाशमां देवडुंडुनि वागवा लाग्युं. समवसरण - ज्ञा पहेला गढ़मां अग्निखूणाने विषे साधु, साध्वी अने देवांगना वेठी, नैरुत्य वामां ज्योतिष्क देवांगनान, भुवनपति देवांगना अने व्यंतर देवांगनान Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३४ ) ऋषिमंगलवत्ति - पूर्वा है. बेठी. वाव्य खूणामां ज्योतिष्क, जुवनपति ने व्यंतर देवता बेग. ईशानखणामां वैमानीक देवता, मनुष्य अने मनुष्य स्त्रीयो ए सर्वे बेगं. बीजा गढना सर्व नागमां मत्सर रहित एवा सर्वे तिर्यचो बेगं अने त्रीजा गढ़मां सर्व स्थानके सर्वे वाहनो वेगं. हवे कल्याण नामना पुरुषे चक्रायुध राजानी पासे श्रावीने प्रजुने केवलज्ञान उत्पन्न थयानी वधामणी आपी. राजा चक्रायुध पण परिवार सहित समवसरणमां जड़ जिनेश्वरने स्तुति करवापूर्वक नमस्कार करी हाथ जोमी - · मना सन्मुख वेो. पबी जगवाने मधुकीराश्रव लब्धिश्री युक्त अतिशयचाली वाणीथी धर्मदेशना आपी के, "हे राजन् ! तें महाराजपणाना तेजथी लोकमां रहेला शत्रुने जित्या े, परंतु पोताना देदने विषे रहेला इंडियरूप शत्रुन जित्या नथी. वली ज्यां सुधी ते शत्रु जिताला नथी त्यां सुधी शब्द, रूप, रस, गंध ने स्पर्शरूप विषयो वहु अनर्थ करनारा थाय बे. जेवा के, श्रोत्रेयिने वश थयेलां दरिलो कान लांबा करी पारधीनां गीतने सांजलवा - मां तत्पर या वतां मृत्यु पामे वे चकुरिंडियने बश थयेलो पतंग सुवर्ण समान देदीप्यमान दीवानी शिखाने जोतो तो तेमां पापात करी परलोक जाय वे वली रसना इंडियथी जितायला मांग्लान अगाध जलमा रह्या बतां पण मांसपेशीना रसना स्वादने विषे लालचु बनीने मृत्यु पामे बे. घ्राण इंयिने वश थयेलो मर पण हाथीना मदने संघवानी इवा करतो तो महा दुःख पामे वे अथवा मरण पण पामे वे तेमज हायणीना अंगने स्पर्श कर वानी इवावालो गजराज आलान स्तंन साथे वंधाइने तीक्ष्ण अंकुशनो मार सहन करे वे. आवा तु विषयोने उत्तम पुरुषो क्षण मात्रमां त्यजी दे बे." प्रजुनो वो धर्मोपदेश सांजली जेम दरिशी माणस जंकार जोइ दर्ष पामे ते सर्वे मासो दर्प पाम्या ने तेमांयी केटलाके वैराग्यवंत थश्ने - संख्य दुःखनो नाश करनारी दीक्षा लीधी. केटलाके श्रावक धर्म आदरघो अने केटलाके सम्यक्त्व धारण करयुं. वली तीर्थपति एवा पिताना वचन सांजली चक्रायुध पण तुरत वैराग्यवंत थयो, तेथी तेथे वापरवाथी करमाइ गयेली पुष्पमालानी पेठे राज्य लक्ष्मीने त्यजी दर बहु राजान सहित पितानी पासे चारित्र लीधुं. श्रीशांतिनाये पण तेने प्रथम गणधर पद प्राप्यं. पटी Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री शांतिनाथ चरित्र. . (१२५) सर्वे देवतान प्रन्नुने वंदना करी पोतपोताने स्थानके गया. . श्री शांतिनाथ प्रन्नुने श्रुतसमुनो पार पामेला, सर्व प्रकारनी लब्धिवासा अने चार झानना धारणहार एवा चक्रायुध विगेरे उनीश गणधरो हता. पवित्रमनवाला बासठ हजार साधुन तेमज एकसठ हजार अने सोथी कांश्क अधिक साध्वीयो हती. वली बे लाख नेQ हजार श्रावक तथा त्रणलाख प्राणुं हजार श्राविका हती. आठ हजार चौद पूर्वधारी, त्रण हजार अवधि शानि, चार हजार मनःपर्यवज्ञानी अने चार हजार नपर त्रासो एटला के. वलज्ञानि तेमज उ हजार वैक्रियलब्धिवाला मुनि अने बे हजार चारसो वादी साधु ए प्रमाणे प्रनुनो परिवार हतो. चालीश धनुष्य नंचा शरीरवाला श्री शांतिनाथ प्रनुए नव्यजनरूप कमलने एक वर्ष नग एवा पञ्चीस हजार वर्ष सुधी प्रतिबोध पमामयु. ज्यां ज्यां प्रन्नु विहार करता त्यां त्यां योजन प्र. माणनूमि सुगंधमय अती. सर्व ऋतुना फुल फलोश्री वृदो सुशोनित यता तेमज सर्वे प्राणीयो स्वान्नाविक वैर त्यजी दपोतपोतानां कार्य करवामां तत्पर अता. वली उर्मिद,मरकी, वैर, स्वचक्रलय, परचकनय, नपश्व, रोग,शोक अने विघ्नना समूह विगेरे सर्व नाश पामतुं हतुं. वली जिनेश्वरनां वचनथी दान अने दयामां तत्पर श्रयेला सर्वे राजान सर्वेमाणसोने सेवा करवा योग्य श्रया एटलुंज नहि पण केटलाक प्रतिबोध पामेला राजानए दीक्षा लीधी अने केटलाके परिग्रह परिमाण लीधुं. वली ब्राह्मण, कत्रीय, वैश्य अने शुज्ञेए प्रतिबोध पामीने विषयनी श्वा नहि करता उता संग त्यजी दा दीक्षा लीधी. जेन साधुपगुं पालवा समर्थ नहोता तेमणे श्रावक धर्म आदरयो. - ा प्रमाणे सोलमा श्रीशांतिनाथ जिनेश्वर पृथ्वी पर विहार करता करता संमेतशिखर पर्वत नपर गया. त्यां तेमणे नवसो साधु सहित विधियी एक मासर्नु अनशन लइ जेठ मासनी अंधारी तेरसने दिवसे नरणी नक्षत्रमा चंनो योग बते मोक्षपद मेलव्युं. ते वखते देवतानए त्यां आवी तेमनो मोकोत्सव करी नंदीश्वरहीपे नत्सव कस्यो. पळी चक्रायुध गणधर पण अनेक साधुन सहित पृथ्वी नपर विहार करता उता बहु नव्यजनोने प्रबोध करवा लाग्या. तेमणे पण घाती कर्मनो नाश करी केवलज्ञान मेलव्युं. त्यारपछी देवतानए पूजन करेला ते केवली पृथ्वी नपर विहार करता करता कोटिशिला Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. नामना पवित्र तीर्थने विषे गया. त्यां ते पण बहु मुनियो सहित अनशन तर मोक्ष पाम्या. ते कोटिशिला नामना पवित्र तीर्थने विषे कोटीगमे मुनियो सिदि पाम्या , ते नपरथी ते तीर्थनुं नाम कोटिशिला पम्युं . संक्षेपमां कदेखें शांतिनाथ, पवित्र चरित्र सांगली अनेक नव्य प्राणीयो पाप रहित थइ नपशमने विषे तत्पर थाय . ॥इति श्री शांतिनाथ चरित्रम् ॥ ॥श्री कुंथुनाथ चरित्रम् ॥ श्री जंवूछिपना महाविदेह क्षेत्रने विषे पुष्कलावती नामे विजय ने. त्यां पुमरीकिणी नगरीमा जितशत्रु नामे राजा राज्य करतो हतो. एक दिवस ते राजा गुरुनी पासेथी जिनेश्वर प्रणित धर्म सांजली वैराग्य पाम्यो, तेथी तेणे सनय नामना पुत्रने महोत्सवपूर्वक राज्यासने स्थापी अनेक राजान सहित अत्यंत दर्षथी चारित्र गृहण करयु. अनुक्रमे ते जितशत्रु मुनि अगीयार अंगना धारक थया. पठी दीर्घकालपर्यंत वीश स्थानक तप करी अने तीर्थंकर नामगोत्र कर्म मेलवी सर्वार्थसिह देवलोके तेत्रीश सगारोपमना आयुष्यवाला देवतापणे नत्पन्न अया. त्यां महासुखनो अनुन्नव करीने पठी ते जितशत्रु रा. जानो जीव आनरतकेत्रने विषे लदमीथी नरपूर एवा गजपुर नगरमां सूर नूपतिनी श्रीदेवी राणीना नदरने विषे चौद महास्वप्ने सूचित पुत्रपणे नत्पन्न थयो. जन्म अवसरे उपन्न कुमारीका अने चोसठ इंशेए मली प्रन्नुनो शांतिनायनी पेठे मेरु पर्वत पर पामुकवनमां सिंहासन नपर जन्म महोत्सव कस्यो, त्यांश्री ३३ प्रनुने लावीने माताना प्रसूतिगृहमां मूक्या, ज्यारे प्रन्नु माताना गर्नने विपे आव्या हता त्यारे श्रीदेवीये स्वप्नामां नूमि नपर रदेलो तेमज आकाश पर्यंत चंचो एवो रत्नपी विचित्र एक स्तूप दीवो दतो. ते नपरश्री मातापिताए प्रनु, 'कुंथु' एवं नाम पाम्यु. पी देव समूग्री विंटाएला प्रन्नु अनेक गुणो सहित वृद्धि पामवा लाग्या, जेमना मु ग्वनी स्पर्धा करतो एवो चंमा कलावान् उतां पण प्रन्नुना मुखनी समानपणुं __पामतो नहोतो. श्री कुंथुनाथनां नेत्रनी शोनाश्री जिताएला कमलो पण - Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री कुंथुनाथ चरित्र. ( १७ ) जाने सीधे निरंतर रात्रिने विषे ग्लानी पामता हता. वली लक्ष्मी पण श्रीवच - ना चिन्दथी जेना हृदयनो आश्रय करीने रही बे एवा कृष्ण पण ते लक्ष्मीना वियोगीज समुमां परया बे, एम हुं जाणुं हुं. ढींचराथी पण नीचे सुधी लांबा एवा प्रजुना बन्ने हाथ दुर्गतिरूप नगरना हारना कमारुनी जाणे जोगलो होय नहि शुं ? एम हुं जाएं बुं. प्रभुना हायनी प्रांगली यो पण अशोकवृक्षना पल्लवनो तिरस्कार करती हती. श्रा प्रमाणे जिनेश्वर प्रजुना समग्र देहनी लक्ष्मी पूर्ण रीते शोनि रही हती. प्रजुए त्रेवीश हजार प्रने सामासातसो वर्ष सुधी कुमार वस्था घणा सुखथी जोगवी. त्यार पी वैराग्यवंत प्रयेला श्री सूरनूपतिये महोत्सव पूर्वक प्रजुने राज्यासने बेसारखा. पी इंशे स्तुति करेला, करुणाना समुइ अने तपायमान सुवर्ण समान | कांतिवाला प्रजुए इंनी पेठे राज्य करवा मांग. तेवीश हजार अने सामा सातसो वर्ष प्रभु मंगलीकपदे राज्य करयुं. एटलामां मनुना शस्त्रगृहने विषे चक्ररत्न उत्पन्न युं. पी प्रभु म्होटा उत्सवश्री चक्ररत्ननी पूजा करी शांतिनाथनी पेठे सर्व भरतक्षेत्रने साधी बत्रीश हजार राजान सहित दर्षथी गजपुर नगर प्रत्ये व्या. त्यां तेमनो बार वर्षपर्यंत चक्रवर्तीपणानो अभिषेक प्रयो. पी प्रजुए वीश हजार अने सामासातसो वर्ष सुधी चक्रवर्ती राज्य करयुं. त्यार पी प्रभु प्रदर्शनुवनमां रही संपत्चिना अनित्यपणानो विचार करता हता ते वखते लोकांतिक देवतान्ये श्रावीने प्रञ्जुनी विनंती करी के, “दे जगवन् ! निश्वे आपे जव अने मोक ए बन्नेनी गति जाणी बे, माटे हे प्रभु! नव्य जीवोना बोधने माटे चारित्र अंगीकार करो अने चार घातिकर्मनो नाश करी केवलज्ञानने मेलवो. वली हे नाथ! धर्म देशनावमे भव्य जीवोने तारो." इत्यादि नक्तियुक्त वचनश्री जिनेश्वरनी स्तुति करीने लोकांतिक देवतान पोताने धन्य मानता बता अंतर्ध्यान थया. - पी जगवाने दाना फलने नहि बता बतां पण 'अरिहंतोनी आवीज रीती " एम धारी पृथ्वीने विषे वर्षादनी पेठे वार्षिक दान प्राप्युं. पबी विजय नामनी पालखी मां बेसीने सर्वे इंशे अने बत्रिश हजार भूपतिनथी विंटलायेला, राजा ने देवतान ए स्तुति करेला, मागध जनोए उत्कृष्ट नतिथी वारंवार स्तवन करेला, कुलवधुनए अत्यंत मंगल करेला, जृंभक देवतानए इ ८८ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. पेयी पुष्पवके वधावेला, किंनरोए गायन करेला प्रत्तुना गुणथी आनंदित श्रयेला लोकोवमे जोवाएला, वली “अहो! आ असंग एवा प्रन्नु आवी समृदिने त्यजी दे " एम चारण लोकोए वारंवार स्तुति करेला लगवान् सहस्त्रान व. नने विषे अाव्या. त्यां कृतिका नक्षत्रमा सर्व सिशेने नमस्कार करीने तेमणे व्रत ग्रहण करयुं. ते वखते प्रत्लुने चोयूं मनःपर्यवज्ञान नत्पन्न प्रयु. पठी प्रनु पृथ्वी नपर विहार करवा लाग्या. आ प्रमाणे तेमणे बद्मस्थावस्थाए सोल मास विहार कस्यो. फरी सहस्त्राम्र वनमां आव्या. त्यां आत्माने नावतां एवा प्रन्नुने तिलक वृक्षनी नीचे तत्काल केवल ज्ञान प्राप्त एटले चोसठ शेए मलीने नक्तिपूर्वक समवसरण रब्यु. अनुए सिंहासन पर विराजमान थ अमृतवाणीवमे एवी धर्मदेशना आपी के, जेथी मनुष्योर्नु मिथ्यात्वरूप विष गली गयुं. ते आप्रमाणे-बहु नोगमांआसक्त बनेला जे मूढ पुरुषो निरंतर पापकर्म करे , ते परतंत्र श्रयेला एवा प्राणीयो नरकरूप खाश्मां पमेने अने अरिहंत प्रन्नुए देखामेला मार्गने जागनारा, धर्मने विषे नद्यम करनारा, त्रण तत्त्वने विषे नुत्साह धरनारा, अक्षयुक्त मनवाला जे प्राणीयो निरंतर गुरुनतिने विषे आसक्त अश् वे प्रकारना तपने विषे तत्पर रहे ले तेन थोमा कालमां मुक्ति नगरी प्रत्ये जनारा थाय ठे अरिहंत प्रन्नुनो आवो धर्मोपदेश सांजली सर्व सन्ना नुत्तम संवेगवाली थर गश्; जेथी केटलाके चारित्र अने केटलाके श्रावक धर्म अंगीकार कस्यो. शंख राजा पोतानुं सर्व राज्य तृणनी पेठे त्यजी दर प्रनुनी पाले तेमनो प्रथम गणधर अयो. प्रन्नुने शंखादिक साठ हजार शिष्यो (साधुन), साठ हजार अने आठसो साध्वीयो, एक लाख अने नव्यासी हजार श्रावको तथा त्रण लाख अने एकाशी हजार श्राविकान हती. श्री कुंथुनाथ मनु तेवीश हजार अने सामासातसो वर्ष पृथ्वी नपर विहार करीने पठी सम्मेतशिखर पर्वत उपर एक मासना अनशनथी कृतिका नक्षत्रमा चंनो योग उते मुक्तिरमणीने वस्या. पठी देवतानए त्यां यावी हर्ष सहित प्रनुनो निर्वाण महोत्सव कस्यो. घणा साधुन प्रनुनी साये सिहिपुरी प्रत्ये गया. पी कोटी शीलाने विपे श्री कुंथुनाथ जिनेश्वरनी पाठल कोटी साधुन सहित अहवीश. युगपुरुषो मुक्ति पाम्या. ॥ इति कुंथुनाथ चरित्रम् ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अरनाथ चरित्र. (१२५) ॥श्री अरनाथ चरित्रम् ॥ पूर्व विदेददेवना विनूषणरूप मंगलावती विजयने विषे अमरावतीथी पण अधिक समृध्विंत रत्नसंचया नामनी नगरी मे. त्यां इंनी पेठे न्यायमार्गे प्रजानुं पालन करनार अने असंख्य नोग संपत्तिना धणी एवा महीपास नामना नूपतिये दीर्घकाल पर्यंत राज्य करयु. पी गुरुना मुखपी धर्म सांजली वैराग्यवंत श्रयेला ते नूपतिये पोताना म्होटा समृध्विंत राज्यने त्यजी दर चारित्र लीधुं. अनुक्रमे अगीयार अंगनो अभ्यास करी अने गीतार्थपणुं पामी तेमज नत्कृष्ट तप अने संयममां नद्यमवंत प्रश्ने पृथ्वी नपर विहार करता ते मुनि बहु वर्ष पर्यंत शुइ संयमर्नु आराधन करीने तथा विश स्थानक तपथी अरिहंत गोत्रकर्म बांधीने परी मृत्यु पामी सर्वार्थसिह देवलोकने विषे सुखकारीतेत्रीश सागरोपमना आयुष्यवंत एदादेवतापणे नत्पन्न थया. त्यांची चवीने ते महिपालनो जीव आ नरतक्षेत्रना हस्तिनापुर नगरना सम्यक् दर्शनथी अति निर्मल एवा सुदर्शन राजानी श्रेष्ठ रूपवाली देवी नासनी राणीना नदरने विषे चौद स्वप्नने सूचवीने अवतस्यो, अढारमा जिनेश्वर श्री अरनाथ प्रन्नुना जन्म समये रेवती नक्षत्र हतुं, माटे ते जिनेश्वरनो जन्म रेवति नक्षत्रमा अयो. पली उपन्न दिग्कुमारीकाये मली प्रनुनो जन्म महोत्सव कस्यो. चोसठ इंशेए पण प्रनुने मेरुपर्वत नपर लइ जर हर्षथी अनिषेक करो. पनी इं३ तेमने पोतानी माता पासे मूक्या. सुदर्शन महाराजाए पण हर्षथी सनुष्योने आश्चर्यकारी एवो पुत्रनो जन्म महोत्सव कस्यो. ज्यारे प्रत्नु माताना गर्नने विषे श्राव्या दता त्यारे माता श्रीदेवीये स्वप्नामां रत्ननिर्मित आरो (पैमानो वचलो नाग) दीगे हतो, ते उपरथी पिताए पुत्रनुं नाम 'अर' पामयु. निरंतर देवतानश्री विंटलायला तथा नत्तम मुखवाला प्रन्नु वय अने गुणोथी चंनी पेठे अधिक वृद्धि पामवा लाग्या. अनुक्रमे अदृश्य आहार अने नीहारवाला, नज्वल अंग, रुधिर अने मांसवाला, प्रफुल्लित कमलना समान श्वासवाला, वजना समान कटिन्नागवाला, वैमुर्यमणिना समान राता हाय अने प्रसंशा करवा योग्य नख तथा होठवाला, गुप्त सांधायुक्त ढींचण वाला, हाथीनी सुंढ समान साथलवाला, गोलाकार जांघवाला, सुवर्णना कु. ." Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. म समान सुशोनित बन्ने चरणवाला अने भेघना समान गंनिर शब्दवाला श्री अरनाथ प्रन्नु सर्वे माणसोने प्रियकारी थया. पठी एकवीश हजार वर्ष कुमार अवस्थामां गये उते पिता सुदर्शन नूपतिये तेमने हर्षथी राज्यानिषेक कस्यो. राज्य नोगवतां जेटलामा एकवीश हजार वर्ष श्रयां तेटलामां तेमनां शस्त्रमंदिरने विषे चक्ररत्न नत्पन्न थयुं एटले अनुक्रमे मागधादिक सर्व नरतक्षेत्रने साधी प्रनुए बीजा तेटलाज वर्ष चक्रवर्तीनुं सुख नोगव्यु. पठी लोकांतिक देवतानए प्रतिबोध करेला अने चोसठ इंशेये सेवन करेला स्वयंबुझ ते अरनाथ प्रन्नु वार्षिक दान आपी सुवर्ण अने रत्नथी निर्माण करेली, स्वर्गना पुष्पोनी मालावाली, वैमुर्यमणि तथा स्फाटिकमणिना नन्ना करेला स्तंनवाली, अति सुशोनित, गोशीर्षचंदनथी घणा सुगंधवान ली, ध्वजादिकनी शोनावाली अने मनुष्य तथा देवतानए नपामेली वैजयंती नामनी पालखीमां बेसी हजारो नूपतियोथी परवस्या का सहस्त्राम्र वनमा आव्या. त्यां दीक्षा धारण करीने पनी चतुर्सानी एवा ते अरनाथ प्रनु त्रण वर्ष पर्यंत उद्मस्थावस्थाए विहार करी फरी सहस्त्राम्र वनमां आव्या. त्यां पुप्पना परागरूप समृक्ष्मिां लब्ध अयेला अमरनी मालावाला अने कोकिलाना मधुर स्वरथी मनोहर एवा आम्र वृक्षनी नीचे शुक्लध्यानरूप अग्निथी दग्ध य गयो घातिकर्मरूप काटसमूह जेमनो एवा ते अरनाथ प्रन्नुने लोकालोक, प्रकाश करनार केवलज्ञान प्राप्त थयु. ते वखते गाढ मेघनी पंक्तिश्री प्रगट श्रयेला चंनी पेठे सुरेशेए पूजन करेला प्रन्नु अत्यंत मनोहर कांतिवंत या. पठी देवताए रचेला समवसरणने विषे प्रन्नुए योजनगामिनी वाणीवमे त्रण जगत्ने हर्प पमामनारी देशना आपी. ते आ प्रमाणे. हेलव्य प्राणीयो! जम मनुष्यो काचना ककमाने वैकुर्यमणिनी पेठे आ असार संसारने अधिक साररूप माने वे. वली वर्षादथी जेम वृदो वृद्धि पामे ठे तम प्राणीयोना विविध प्रकारना कर्म करीने नव नव प्रत्ये संसार वृद्धि पामे ठे. तमज “हुं म्हारा स्वार्थने श्रोमा कालमा साधीश." एम विचार करतो प्राणी अगायमां चोरवमे बंधाता धनवंत पुरुपनी पेठे तत्काल मृत्युरूप दूतथी बंधाय . वली मिथ्यावुद्धि प्राणी " आ म्हारी माता, आ म्हारो पिता, श्रा म्दाग बंधुन " एम माने ते, परंतु एम नश्री जाणतो के, आ शरीर पण म्हा Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महापद्म चरित्र. (१३१) रु नयी. नाना प्रकारना रूपथी निरंतर संसारने विषे नमता एवा सर्वे प्राणीयोने कोण पोता, अने कोण पारकुंडे ? अर्थात् को नथी. वली जेम घी गयेला प्राणीयोनी रात्री सर्वथा वृया जाय ले तेमज मोहथी घेरायला मूढ प्राणीनो जन्म पण वृथा जाय , तेथी आ संसारने धिक्कार ! धिक्कार !! हे नव्य प्राणीयो ! एटला माटे संसारना स्वरूपने जागनारा विवेकि घुरुषोए प्रमादनो नाश करी धर्मने आचरण करवो.” प्रतुनी आवी धर्मदेशना सांजली सना आनंदयुक्त थइ. पडी केटलाके श्रावकधर्म अंगीकार कस्यो अने केटलाके चारित्र लीधुं. कुंन राजाए वैराग्यने लीधे राज्यनो तृरानी पेठे त्याग करी दीक्षा लश् श्री अरनाथ जिनेश्वरना प्रथम गणधरपदने धारण करचुं. ,परी देवतान प्रन्नुनो महिमा करीने नंदीश्वरहीपे गया. श्री अरनाथ प्रन्नुने ‘साठ हजार साधुन, तेटलीज गुणवंत साध्वीयो, एक लाख अने अंशी हजार 'श्रावको, ता त्रण लाख अने चोराशी हजार गुणवंत श्राविका हती.पनी नगवाने समेतशैल शिखर पर एक मासने अनशने निवृत्तिपद धारण करयु. ते वखते देवतानए श्रावीने प्रन्नुनो मोद महोत्सव कखो. आ अरनाथ जिनेश्वरना तीर्थने विषे चोविश युगवमे कोटिशिला नामना पर्वत पर बारक्रोम साधुन सिक्षिपद पाम्या ने. मल्लिनाथना तीर्थने विषे वीश युगवमेब क्रोम साधुन सिस्पिद पाम्या जे. मुनि सुव्रतना तीर्थने विषेत्रण क्रोम साधुन सिइिपद पाम्या ने अने श्री नमिनाथना तीर्थने विषे एकक्रोम साधुन सिक्षिपद पाम्या . एज कारण माटे कोटिशिला तीर्थ सर्व तीर्थोमांउत्तम कहेवाय ने. ॥ इति श्री अरनाथ चरित्रम् ।। ॥अथ श्री महापद्म चरित्रम् ॥ श्रा नरतवर्षना कुरुक्षेत्रने विषे गजपुर नामे नगर ने. त्यांश्क्ष्वाकुकुलमा नुत्पन्न श्रयेलो पद्मोत्तर राजा राज्य करतो हतो. तेने श्रावक धर्ममांतत्पर एवी ज्वाला नामे मुख्य पहराणी हती. तेने एक सिंदस्वप्नसूचित विष्णुकुमार नामनो अने बीजो चौद महास्वप्ने सूचित चक्रीपदने धारण करनारो मदापद्म नामनो एम बे पुत्रो इता. अनुक्रमे ते बन्ने पुत्रो सर्व कलामां प्रविण ध Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. या. पद्मोत्तर राजाए विष्णुकुमारने राज्यसंपत्ति प्रापवा मांमी, पण तेणे ते न लीधायी महापद्मने युवराज पछी आपी. हवे या वखते अवंती नगरीमा श्रीधर्म नामे राजा राज्य करतो इतो तेने बुझिनो समुनमुचि नामे महामंत्री हतो. एक दिवस श्री मुनिसुव्र त स्वामिना शिष्य सुव्रत नामना आचार्य त्यां आव्या एटले नगरवासी जनो तेमने वंदना करवा जवा लाग्या. ते जो राजाए पोताना प्रधान नमुचिने पू. व्यु के, “हे प्रधान! आ म्हारी नगरीना लोको क्यां जाय ?" प्रधाने उत्तर प्राप्यो के, " हे नाथ! नद्यानने विषे जैन साधुन आवेला, तेमने वंदना करवा माटे ए लोको जाय .” भूपतिये कडं. “आपणे पण निश्चे त्यां जाए." मंत्रीये कडं. " आपे त्यां मौन धारण करवं. कारण के, हुं तेननी साथे वाद करीने तेमने जीतीश.” राजा ते वात अंगीकार करी मंत्री सहित मुनि पा. से गयो. पगी मंत्रीये सूरीने पूज्यु. “ हे सूरि ! पशुमान कांतिवाला तमे शृं शुं जाणो गे?" सूरिये नत्तर आप्यो के, “हे मंत्रि! आप जे पूरशो ते अ. मे कहीशं." एवामां एक बाल शिष्ये सूरिने कमु. “हे नगवन् ! मने प्राज्ञा आपो; हुंज एने जीती तत्काल जैनधर्मनी प्रत्नावना करूं." पठी गुरुनी प्राझापी वालमुनिये नमुचि प्रधानने वोलतो बंध करी दीघों; तेथी राजादि सवलोको तेनी निंदा करवा लाग्या. ते नपरथी अत्यंत षयुक्त श्रयेलो नमुचि रात्रीने विपे मुनिना समूहनो घात करवा चाल्यो. ते वात राजाए जाणी, तेथी तेने पोताना देशमाथी काढी मूक्यो एटले नमुचि हस्तिनापुर प्रत्ये गयो. त्यां पण ते पूर्वना पुण्यने लीधे महापद्म राजानो मंत्री थयो. का के, प्राणीयोने पुण्यने लिधे आ लोकमां अने परलोकमां शुं शुं नयी मलतुं? अ. र्थात सर्व मले ठे. एक दिवस पद्मोत्तर नूपतिना देशने प्रत्यंतपल्लीपति सिंहबल सैन्य सः दित लुटवा लाग्यो. ते नपरथी राजाए नमुचिने तेना सामो युः करवा भो कल्यो. नमुचिये पण शत्रुना सर्व सैन्यनो नाश करी सिंहवलनोऽर्ग (किल्लो) पोताने स्वाधिन कस्यो. तेथी महापद्म कुमार प्रसन्न थइ कहेवा लाग्यो के, " दे महामंत्रि ! वरदान माग.” नमुचिये कह्यु के, “हे राजकुमार ! प्रा प ए वरदानने दवणां नंमारमा राखो, हुं ते अवसरे मागीश." राजकुमार - Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महापद्म चरित्र. (१३३) महापद्मे ते वात कबुल करी. कोइ वखते जैन शासनने विषे अनुरक्त एवी श्री ज्वाला राणीये अरिहंत अनुना मंदिरने विषे सुशोनित जैनरथ कराव्यो. ते वखते ज्वालादेवीनी बीजी मिथ्यात्वी एवी लक्ष्मी नामनी शोक्ये ब्रह्मानो रथ कराव्यो. पत्री लक्ष्मीये राजाने कर्यु. “हे नूपति! न्हारो रथ नगरने विषे आगल चाले एटले ज्वालाये पण राजाने कडं के, “हे महाराज! जो म्हारो रथ आगल नहि चलावो तो हुं अनशन लश्शा.” पनी महापद्म राजाए बन्ने रथोने नगरमांसाधे चलाव्या ते उपरथी खेद पामेलो महापद्म कुमार नगरथी चाली नीकल्यो. अनुक्रमे ए. कलो जतो एवो ते महापन एक तापसना आश्रममां जा पहोच्यो. इवे एम बन्युं के, ते वखते चंपानगरीने विषजन्मेजय नामे राजा रा- ज्य करतो हतो. त्यां काल नूपतिये आवीने ते नगरीने घेरो घाल्यो; तेश्री ते बन्ने राजानने म्होटुं युः धयु, तेमां जन्मेजय राजा नाशी गयो; तेथीतेनुं सर्व अंतःपुर पण नाशी गपुं. नागश्री राणी पोतानी पुत्री मदनावली सहित तापसोना आश्रममा जश्ने त्यां तेमना शरणे रही, महापद्मकुमार पण अदिंज रदेतो हतो, तेथी तेने अने मदनावलीने परस्पर अत्यंत प्रेम थयो ए. टले नागश्रीये मदनावलीने कडं के, "हे राजपुत्री ! तुं नैमितिके कहेला व, चनने नथी संन्नारती? तुं चक्रवर्तीनी स्त्री श्रवानी , माटे त्हारे जेना तेना उपर आसक्त प्रवु नहि." तापसोना अधिपतिये पण कुमारने कडं के, “हे वत्स! तुं हवे पोताने स्थानके जा." ते नपरथी कुमार विचार करवा लाग्यो के, “हुँ श्रा मदनावलीनी साथे लग्न करी, भरत क्षेत्रने साधी, जिन नुवनथी पृथ्वी मंमलने सुशोनित करी अने पठी रथ महोत्सव कराववाथी म्हारी मातानी प्रतिज्ञा पूर्ण करीश." __पनी सिंदनी पेठे महानुजबलवालो ते महापद्म कुमार पृथ्वी नपर जमतो नमतो श्री सिंधुनंदनपुर प्रत्ये गयो, त्यां ते दिवस कौमुदि महोत्सव होवाथी नगरनी व्हार हर्षित चित्तवाली स्त्रीयो विविध प्रकारनी क्रीमाथी र. मती हती. ते वखते महासेन रानानो हाथी स्त्रीयोना कलकलाटने सांजली, मालान स्तंनने नखेमी अने मावतने मारी दोमतो दोमतो ज्या स्त्रीयो रमती हती त्यां आवी पहोच्यो. स्त्रीयो पण अत्यंत जय पामती ती " हे न. Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. रोतम! अमारुं रक्षण करो ! रक्षण करो!!” एम पोकार करवा लागी, पठी दया धारी महापद्मकुमार ते स्त्रीयोनां आवां करुस्वर सांजली तत्काल दोमी करामात्रमा ते हाथीने हंकारी काढवा लाग्यो एटले तो ते हाथी पण स्त्रीयोने त्यजी दश कुमार सामो दोमयो. स्त्रीयो पण “हवे आ कुमार निश्चे मृत्यु पामशे.” एम धारी पोकार करवा लागी. पड़ी कुमारे तत्काल पोतार्नु पासे राखवान वस्त्र हाथीनी आगल फेंकयुं एटले अष्ट चित्तवालो ते हाथी वस्त्रने कुमार जागी तेने पोताना दांतोथी प्रहार करवा लाग्यो. आ वखते महासेन नूपति तत्काल त्यां आवी कुमारने कहेवा लाग्यो के, “तुं ए जुष्ट हाथीना सन्मुख थ पोतानी आत्महत्या न कर.” कुमारे कां. “हे नरेश्वर! आप क्षण मात्र स्वस्थ श्रश्ने जून के, हुं पोतानी कलावमे ए इष्ट हाथीने पण केवी रीते.. वश करूं." पठी चारे तरफ फरतो एवो कुमार ते हाथीने शास्त्रमा कदेली विधिप्रमाणे खेलावीने तेनी पीठ नपर चमी गयो. कुमारनी भावी जगत्ने वि. स्मय करनारी कला जोश हर्षित श्रयेलो महेशसिंह राजा तेने सर्व प्रकारना आदरणी पोताने घेर तेकी गयो अने त्यां तेणे तेने महोत्सव पूर्वक पोतानी एक सो कन्या परणावी. पठी कुमार महापद्म एक दिव्यन्नुवनने विषे ते पोतानी एकलो प्रियानी साथे क्रीमा करवा लाग्यो, परंतु मदनावलीने तो ते कंगना दारनी पेठे निरंतर हृदयने विषेज धारण करतो हतो. को वखते रात्रीने विषे कोशएक वेगवती नामनी विद्याधरीये महापन कुमारनुं हरण करयुं. कुमार जागी नव्यो एटले तेणे विद्याधरीने जोश मूठी नपामीने कह्यु के, “अरे ! तुं कोण वे अने म्हारुं केम हरण करे ? तेणे नत्तर प्राप्यो के, “हे राजकुमार ! आप तेनुं कारण सांजलो. वैताढ्य पर्वतने विषे सूरोदय नामे नगर . त्यां विद्याधरोनो अधिपति इंश्चनु नामे प्रसिह राजा राज्य करे . तेने मनोहर श्रीकांता नामे स्त्री के. तेनने एक जयचंश नामनी पुत्री . ते पुत्रीने इंधनु नपतिये नरतक्षेत्रना संवें गजान पट्टने विपे आलेखीने वताव्या, परंतु कोइ पण राजा तेने प्रीतिकारी श्रयो नहि, तेथी ते कोश्ने पोतानो पति करवाने श्चति नश्री. पी प.. टंन विषे तमाळं स्वरूप पालेखीने वताव्यु एटले तो ते तत्काल मोह पामी Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महापद्म चरित्र. (१३५) अनेकदेवा लागी के, “निश्चे आ जवने विषे तो म्हारे आज पति यान. नहितो अवश्य मरण एजश्रेयकारी ,म्हारे श्रा विना बीजा पुरुषो बंधु समान." (वेगवती विद्याधरी महापद्म कुमारने कहे जे के,)“हे कुमारें!पी में जयचंशनो मनोरथ तेना मातपिताने कह्यो. ते नपरथी तेनए मने तत्काल तमने त्यां लश्व वानी आझा करी. वली में पण अहिं आवतां जयचंश पाले एवी प्रतिज्ञा करी ने के, हे कन्या ! जो हुं महापद्म कुमारने अहिं नहि लावू तो अग्निमां प्रवेश करीश, माटे आपना प्रसादथी जेम म्हारं मृत्यु न थाय तेम आपे करवू. वली आपे चित्तने विषे बीजुं कंश पण लावतुं नहि." वेगवतीनां आवां वचन सांजली, पद्मोत्तर नूपतिनो पुत्र (महापद्म कुमार) हर्ष पाम्यो. वेगवती पण कुमारने सूरोदय नगरे लइ ज पोताना राजा इंद. धनुने सर्व वात निवेदन करी. पली इंधनुए महोत्सवपूर्वक कुमारनो पोता. नी पुत्री साथे पाणी ग्रहण कराव्यो. जयचंज्ञये पण वेगवतीनो घणोज सत्कार कस्यो. हवे जयचंज्ञना मामाना पुत्रो गंगाधर अने महिधर के, जे महाबल. वंत हता, तेन आ वात सांजलीने अत्यंत क्रोधातुर श्रइ हाथी, घोमा, रथ अने सुन्नटो सहित आकाश मार्गे अश्ने त्यां आव्या अने कहेवा लाग्या के, “जे अमारे विद्याधरोने परगवा योग्य कन्या , ते आ साधारण माणस केम परणी जाय ?" पठी ते विद्याधरोने आवेला सांजली कुमार तेना लामो श्रयो, जेथी तेनुं विद्याधरोना सुन्नटोनी साये महा घोर यु६ थ्ययु. ज्यारे कु. मार महापद्म अने ते विद्याधरोनुं युः चाल्युं ते वखते एवो कोई हाथी, घोमो के सुन्नट नहोतो के, जे कुमारना शस्त्रधी घायल श्रया विनानो रह्यो होय. वट विद्याधरो पोताना सैन्यने नाश पामेलुं जागी जयथी नाती गया. पठी प्राप्त थयो ने विजय जेनो एवा महापद्म कुमारनो वैताढ्य पर्वतना सर्वे विद्याधरोए सत्कार कस्यो. त्यां कुमारने स्त्री रत्न बिना बीजा तेर रत्नोनी प्राप्ति श्र, तेथी तेणे बलवमे सर्व नरतक्षेत्रने साध्यु, पली नव विधानवालो, बत्रीश हजार राजान्थी सेवायलो अने एके नगी एवी चोसठ हजार स्त्रीयोनी साथे क्रीमादि आनंद करनारो ते महापद्म कुमार उ खंडवाला नरतदेत्रनुं राज्य लोगवतो उतो पण मदनावली विना Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३६) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वार्ध. ते सर्वेने निरंतर निरसनी पेठे मानवा लाग्यो. पगी को वखते तापसोनां आश्रम प्रत्ये गयेला श्री महापद्म चक्रवर्तीने जन्मेजय राजाए पातानी पु. त्री मदनावली तत्काल परणावी. तेथी ते तेनी स्त्रीरत्न इ. पठी महापद्म चक्रवर्तीये दस्तिनापुरमा प्रावी स्नेह सहित माता पिताना चरणने विषे प्रणाम कस्यो एटले पुत्रनी प्रावी विस्मय करनारी चक्रवर्तीपणानी संपत्ति जोश मा. ता पितादि नगरवासी जनो तेना वखाण करवा लाग्या. आ वखते श्री मुनिसुव्रत स्वामीना शिष्य श्री सुव्रत सूरि हस्तिनापु रमां आव्या एटले पझोत्तर राजा त्यां जश तेमनुं वंदन करी धर्मोपदेश श्रवण करवा वेगे. गुरुए तत्काल संसारनो नाश करनारी सरस अमृत समान दे शना आरंनी. राजा पद्मोतर ते धर्मदेशनाने सांजली परम वैराग्यवासी थयो तो गुरुने कहेवा लाग्यो के, “ हुं म्हारा राज्यने विषे पुत्रने स्थापन करी चारित्र अंगीकार करीश.” गुरुए “दे नूप ! धारेला कार्यमां विलंब न क. रो." एम कर्वा एटले राजा तत्काल नगरमा श्रावी प्रधानोने कहेवा लाग्यो के, " तमे विविध प्रकारना महोत्सवपूर्वक म्हारा म्होटा पुत्र विष्णुकुमार ने राज्याभिषेक करो." पठी विष्णुकुमारे नूपतिने कडं के, “ हे तात! म्हारे राज्यर्नु कांइ प्रयोजन नथी, कारण राज्यथी तो नरकनी प्राप्ति अने जव नव प्रत्ये निरंतर ब्रमण करईं पके . वली हे तात! फक्त आरंजमां मधुर प. . रंतु परिणामे अत्यंत कमवा एवा विषफल समान नोगर्नु म्हारे कांश पस प्रयोजन नथी. हुं तो आपनी साज नवनोच्छेद करवा माटे चारित्र ग्रहण करीश." पठी पद्मोतर राजाए महापद्मने बोलावीने कां के, “हे पुत्रोत्तम ! तुं म्हारा संतोषने माटे राज्यनो स्वीकार कर.” सुविनीत एवा महापद्मे पिताने कडं. "आपने पदे विष्णुकुमारने स्थापो; हुं तेमनी निरंतर पूर्ण प्रेग्ने सेवा करीश." राजाए का. सुपुत्र ! ए राज्यना नारने अंगीकार करतो नथी.” पठी महापझे पिताने हर्ष करवा माटे तत्काल राज्यने स्वीकारयु अने विष्णुकुमारे वैराग्यश्री पद्मोत्तर नूपतिनी साये श्री सुव्रत गुरुनी पासे महोत्सव पूर्वक दीक्षा लीधी. आ महापद्म पण जरतक्षेत्रने विषे प्रसिइएवो नवमो चक्रवर्ती भयो. श्राटला कालसुधी तेनी वन्ने मातानना रथ तेवीज स्थितिमां ग्हा दता, पती चक्रवर्ती महापने पोतानी माताना संतोषने माटे जिनेश्वः Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महापद्म चरित्र. (१३७) रनो रथ सर्व नगरमां विस्मय करनारा महोत्सव पूर्वक फेरव्यो, ते नुपरथी ते बहु प्रसन्न श्रइ. लोकमां जिन शासननी म्होटी नन्नति भइ अने ते दिवसथी आरंजीने बहु लोको जैनधर्मने विषे अनुरागवाला थया. नरतक्षेत्रने विषे निरंतर अरिहंत धर्मनी प्रत्नावना करता एवा महापद्म चक्रवर्तीये पृथ्वीने विषे जिनेश्वराना लाखो मंदिरो कराव्यां. पद्मोतर राजर्षि पण दीर्धकाल सुधी अत्यंत निर्मल एवा चारित्रने पाली समय कर्ममलने खपावी अनुक्रमे ज्ञान पामी अंते मोक्ष पाल्या. वली विविध प्रकारना तप, कर्म, चारित्र विगेरेना कार्यमां तत्पर एवा विष्णुकुमार महर्षिने पण तत्काल सर्वे लब्धियो उत्पन्न था, तेथी ते को वखते आकाशमा गरुमनी पेठे मेरुपर्वत समान म्होटो देह करीने विचरवा लाग्या, वली क्यारेक कामदेवनी पेठे दिव्यरूप धारण करी अने क्यारेक सुरेंनी पेठे बहुरूपी श्रइ फरवा लाग्या. हवे एवामां श्री सुव्रतसूरि अनेक साधुन सहित चोमातुं रहेवाने माटे हस्तिनापुर नगर्ना उद्यानने विषे आव्या. ते वखते पूर्वे वादथी जिताएला अने एज कारणथी गुरु नपर प राखनारा नमुचि प्रधाने महापद्म नूपति पाले पूर्वे नमारमा राखी सूकेला वरदानने माग्यो. महापने की. “हुं तने शुं आपुं ? ” नमुचि प्रधाने कडं. “हे नाथ! प्रापर्नु राज्य आपो." पठी महापन नूपति नमुचिने राज्याभिषेक करी पोते अंतःपुरमा रह्यो. पठी माणलोनी मध्ये चंद समान नमुचि तत्काल यज्ञस्थान प्रत्ये आवीने यज्ञना मीषयी अनेक जीवोनो वध करवा लाग्यो. नमुचिने राज्य प्राप्त प्रयु, तेथी सर्व प्रजा नत्साहवंत श्रश्ने हर्षथी वधामणी माटे आववा लागी. पी नमुचि विचारवा लाग्यो जे, “ म्हारा राज्यने नहि सहन करी शकनारा श्वेतावर साधुन आव्या नहि.” आबु बि शोधी काढी तेणे सूरिने बोलावीने का के, “जे वखते जे ब्राह्मण, क्षत्रीय अथवा बीजो को नवो राजा प्राय ले वखते सर्वे पाखंझियोए आवीने वधामणी आपवी जोइए. कारण सर्वे तपना । कार्यो राजाश्रीज रक्षण कराय ने, परंतु अहो ! पुष्ट आचारवाला, मर्यादा रहित अने उष्ट हृदयवाला तमे पोताना धर्मथी गर्ववत श्रया बता अने सर्व प्रकारना पाखंझवझे बहु लोकोने ऽषित करता का म्हारा राज्यनी निंदा करो गे; माटे हवे तमारे म्हारा राज्यने त्यजी द बीजे चाल्या जवं. वली तमा- . Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वार्ध. 'रा मध्ये जे को साधु आ म्हारी आझाने नल्लंघन करशे ते निश्चे म्हारे वध करवा योग्य ते." नचिनां आवां वचन सांजली गुरुए कह्यु. “अमारे राजा पासे जq कल्पतुं नयी, माटे अमे नहोता आव्या. वली अमे कोश्नी निंदा पण करता नथी. कारणके, अरिहंत प्रनुना धर्मने जागनारा अने समतापरिणामयी नावित आत्मावाला मनुष्यो क्यारे पण कोइ नपर रागष करता नश्री." सूरिये आ प्रमाणे कयुं तोपण इष्ट हृदयवालो ते नमुचि कहेवा लाग्यो के, “हे सूरि ! जो तमारामांथी एक पण साधुने सात दिवस नपरांत म्हारा नगरने विषे अथवा म्हारा राज्यने विषे देखीश तो तेने म्हारा सेवको पासे मजबुत बंधनश्री बंधावी तत्काल मारी नंखावीश, माटे हे मुनीशे!तमारे निःशंसय म्हारो देश त्यजी द बीजे चाव्युं जq." पठी सूरिये नद्यानमां आवी ते वात पोताना गणने कही के, "हवे आपणे शुं करवू ?" एटलामां ते साधुने विषे एक मुनि बोली नग्या के, “उ हजार वर्ष सुधी नग्र तप करीने हमणां विष्णुकुमार मुनि मेरुपर्वतनी चुलिकाने विषे चोमासुं रह्या . त्यां तेमनी पासे जो कोश विद्यालब्धिवाला जाय तो ते आपणुं कार्य करे." एटलामां एक वीजा साधुए कह्यु. “ म्हारी त्यां जवामां शक्ति ने, परंतु पाएं श्राववानी शक्ति नथी.” गुरुए कह्यु. “ हे साधु ! तमने अहिं पाग तो विपणुकुमार लावशे." पठी ते मुनि तत्काल मेरुपर्वतनी चूलिका प्रत्ये गया. विष्णुकुमार तेमने आवता जोश पोताना मनमां विचार करवा लाग्या के, " निश्चे संघटी पण नहि बनी शके एवं मोटुं कार्य प्रावी पम्युं देखाय छे. कारण एम न होय तो आ वशतुमा अहिं साधुनु आवदूं क्याथी होय ? पठी ते मुनिये विष्णुकुमारने वंदना करी गुरुए कहेली सर्व वात निवेदन करी.पठी विष्णुकुमार ते मुनिने साधे लश् गजपुर प्रत्ये गया. त्यांतेमणे गुरुने नमस्कार करीने की. “हे मुनीश्वर ! श्रापने जे कार्य होय ते ऊट कहो ? गुरुए कडं. “हे वत्स ! साधुनने प्राप्त श्रयेला नयंकर नपश्चने नाश करो. कारणके, शक्तिवंत पुरुपे संघना कार्यने विपे पोतानी शक्ति गोपववी नहि." पठी साधुन सहित विष्णुकुमार नमुचिपासे गया, त्यां नूपति विना वीजा लघलाए तमने वंदना करी. विष्णुकुमारे नमुचिने कडं. " हे नमुचि ! ज्यां मुधी चोमासु ले त्यां सुवी साधुनने न्हारा नगरने विषे रदेवा दे." नमु. Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महापद्म चरित्र. (१३ए) चिये कहूं " हे विष्णुकुमार ! तमे एम शा माटे बालो को ? साधुनए पांच दिवस रही परी चाल्या जq.” विष्णुकुमारे कडं. “ त्यार पठी साधुन व्हारना नद्यानने विषे रहेशे.” विष्णुकुमारनां आवां वचन सांजली क्रोधातुर थयेला नमुचिये तत्काल कडं के, "अरे! पोताना माता पिताने दूषित करनारा, निर्लज, मलिन अने सर्व पाखंमियोमा अधम एवा तमारे अहियां थोमीवार पण न रहे,. वली जो तमारे जीवित, कार्य होय तो सर्वथा म्हारा राज्यने स्यजी देवु. नहि तो हुं तमारो नाश करीश.” तेनां आवां वचन सांजली अत्यंत क्रोधातुर श्रयेला विष्णुकुमारे फरीश्री कर्वा के, “हे नूपति ! त्रण पगला पृथ्वी तो आप.” मंत्री नमुचिये कह्यु. “हुं तमने त्रण पगलां पृथ्वी आपुं बुं; परंतु तेनी व्हार कोश पण साधुने देखीश तो तेने निश्चे मारी नाखीश. 1 पठी मुनिनना वधनी वार्ताथी नत्पन्न श्रयेला क्रोधरूप अग्नि जलित हृदयवाला विष्णुकुमार, पोते राजाननां जोता उता वधारवा लाग्यो नाना प्रकारना रूपने धारण करनार अने गर्जना करता उतां भी शके खपामता ते एक लाख योजन प्रमाण देहवाला श्रया. चरणला प्रतीज आ म्होनगर, खाण, पर्वत अने समुयी व्याप्त एवा पृथ्वीनां पीठने ऐयने आदरूं." हामुनि पर्वतोना शिखरोने पामवा लाग्या. महासमु कोनन हृदयवाला हज्योतिश्चक्र दूर नासवा लाग्युं अने सर्वे देवतान “आ कोश्रो राजान सहित नत्पन्न भयो .” एम शंसय करवा लाग्या. आ प्रमाणे त्रमये दीर्घकाल तीव्र इं३ ते मुनिने अत्यंत कोप पामेला जागी तेमने शांत मक्तिपद प्राप्त करयं. देवांगनानने अने गंधर्वोने मोकल्या. पठी ते देवांगनहजार वर्ष प्रमाण श्राविष्णुकुमारना काननी पासे जर नंचे स्वरे एम गाय सिडिपदने पाम्या. प प्रबोध पामो अर्थात् शांत थान. कारण के, आपेर रत्रम् ॥ स्वजन अने परजन ए बन्नेने ताप पमामनारो अयोजन क्रोधने संसारमा गाढ खुर्गतिनुं कारण म धारण करो. कारण के, मुनियो तोवक्रवर्ती चरित्रम् ॥ - धुनने क्रोध करवो ए चारित्र तथा रने विषे समुविजय नामे राजा राज्य क ने, माटे हे मुनिश्वर ! संसारना। हती. तेनने सौन्नाग्यरूप नाग्यनी नूमी एवो .. विष्णुकुमार वृधि अये नामे पुत्र अयो. अनुक्रमे ते युवावस्था पाम्यो Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. एटले नत्पन्न श्रयेला वैराग्यवाला पिता समुविजय राजाए तेने पोताने पदे स्थाप्यो. पठी जय नूपति अनुक्रमे चक्रवर्तीप' पाम्यो एटले तेणे सर्व लरतत्रने साधी चीरकाल पर्यंत चक्रवर्तीना नोगो नोगव्या. .। एक दिवस जय चक्रवर्ती विचार करवा लाग्यो के, “आवी चक्रवर्तीमी संपत्ति शी रीते प्राप्त पती हशे?" आम विचार करतो ते गुरु पासे गयो: त्यां गुरुने वंदना करी तेणे पूग्यु के, “आवी चक्रवर्तीनी लक्ष्मी कया पुएयथी प्राप्त थाय ले ? गुरुए अमृत समान मधुर वाणीथी नत्तर आप्यो के, "जे कांश नव्यपणुं प्राप्त पाय , ते सर्व धर्मनोज प्रन्नाव . तेमज हे रा. जन् ! आ लोकमां हाथी घोमा अने पायदलना समूहथी विस्तारवंत मनोहर राज्य, गाढ स्नेहथी अनूत रूपवाली अत्यंत मनोहर स्त्री, स्लेहवंत बंधुन अने, निरंतर निरोगी शरीर ए सर्व धर्मश्रीज प्राप्त थाय बे. वली नव्य पुरुषोने धर्मश्रीज कुवेर समान समृद्धि, निर्मल बुद्धि, कीर्ति, विनीत पुत्रो अने घरने विषे पूर्ण संपत्ति ए सर्व प्राप्त थाय ने. पूर्वे पुण्य करनारा प्राणीयोना मनोरश्रो सिह प्राय ठे अने पुण्य रहित प्राणीयोना मनोरथो तो वायुथी मेघपं. क्तिनी पेठे नाश पामे .” गुरुनां आवां वचन सांजली वैराग्य पामेला पुण्यवंत जय चक्रवर्तीये पोतानी समृद्धि त्याग करी प्रव्रज्या अंगीकार करी. पी शुन्न ध्यान अने तपरूप अग्निवमे वाली नाख्यो सर्व कर्मरूप काष्ट समूह जेणे एवा तथा बार धनुष्य प्रमाणे नंचा शरीरवाला अने त्रण हजार वर्षनी आयुष्यवाला ते जय• चक्रवर्ती मुनि मोद पाम्या. . ॥इति जय चक्रवर्ती चरित्रम् ॥ Acronommeविमल जिणेसरतिबे, थेराणं अंतिअंमि पवन॥ चन्दसपुदी पत्तो, महब्बलो पंचमे कप्पे ॥१॥ ततो चईत्तु जान, वाणिप्रगामे सुदंसणो सिलि॥ वीरमगासे पुणरवि, चन्दसपुच्ची ग सिद्धिं ॥३॥ अर्य-तेरमा विमलनाथ जिनेश्वरना तीर्थने विषे स्थविर आचार्यनी पासे Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महाबल चरित्र. (१४३ ) प्रव्रज्या ग्रहण करीने चौद पूर्व धारी श्रयेला महाबल पांचमा देवलोक प्रत्ये गया. १ अहिं महाबलनुं पांचमा ब्रह्मलोकने विषे जवू कद्यं तेनुं कारण ते को पण पूर्व विसरी जवाना हेतुथी संन्नवाय जे. कारणके, एम नहि तो चौद पूर्वधारीननु जर्बु जघन्यश्री पण बघा लांतक देवलोक सुधी होय . त्यां दश सागरोपमनुं आयुष्य नोगवीने पी चवीने वणिक् गाममां सुदर्शनामा शेरपणे नत्पन्न श्रया. त्यां पण ते फरीश्री वीरप्रन्नु पासे चारित्र लश् चौद पू. र्वधारी सिहि पाम्या. ॥२॥ ..... ॥श्री महाबल चरित्रम् ॥ हस्तिनापुर नगरने विषे बलि राजाना समान निर्मल एवो महाबलवंत बल नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने प्रत्नावती नामे पट्टराणी हती. कोइ वखते ते प्रत्नावतीये अर्ध रात्रे स्वप्नामां सिंह जोयो. परी जागी नवेली तेणे ते वात पोताना पति बलिराजाने कही एटले बलनूपतिये कडं. “हे प्रिया! ते स्वप्नाने विष सिंह दीगे ले ते नपरथी तने पूर्ण दिवसे सिंहसमान पराक्रमी पुत्र थशे. वली ते ज्यारे वृदिपामशे त्यारे आपणा कुलनो आधार अने कुलरुप समुने नक्षास पमामवाने चंद समान अशे. देवट ते युवावस्था पामशे त्यारे सर्व पृथ्वीनो राजा थशे.” राजानां आवां वचन सनिली प्रसन्न - श्रयेली राणी पोताना मंदीरे गश् अने सुखथी गनने पोषण करवा लागी. पनी नूपतिये जेना नत्पन्न श्रयेला दहोला पूर्ण कस्या के एवी ते प्रन्नावती राणीये सामानव मासे एक उत्तम पुत्रने जन्म आप्यो. अंगरक्षक दासीयोए हर्षित भइ तत्काल पुत्र जन्मनी वधामणी राजाने आपी एटले राजाए पण प्रसन्न थइ पोताना एक मुकुट विना बाकीना सर्व अंगना आनुषणो ते दासी. योने आप्यां. त्यार पीनूपतिये सेवकोने वोलावीने कडं के, “तमे बंदिजनोने गेमी देवापूर्वक मानने वृदिपमामनारी वधाश्नो नगरमां पट्टह वजमावो." सेवकोए राजानी आझा प्रमाणे ते सर्व करयुं. बारमा दिवसे राजाए सर्व पोताना स्वजनोने संतोष पमामी महोत्सव पूर्वक पुत्रनुं महाबल एवं नाम पामयुं. पनी पांच धावमातानथी पालन करतो अने सर्व कलाननो अभ्यास करतो ते महाबल कुमार अनुक्रमे यौवनावस्था पाम्यो एटले पिताए तेने समान लावण्यरूप अने यौवनवाली आठ राजकन्यान परणावी. वली पत्रने Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. माटे तेणे प्रेमथी पाठ मालनो एक मेहेल बनावी प्राप्यो अने पुष्कल व्य श्राप्युं तेमज आये स्त्रियोने पांचमा अंगमां कद्या प्रमाणे सुवर्णना आन्नरणो अने आठक्रोम सोनाम्होरो आपी. पठी महावल कुमार ते मेहेल नपर रह्यो उतो पाठ स्त्रियोनी साथे नोग संबंधी महा सुखने लोगववा लाग्यो... एक दिवस श्री विमलनाथ तीर्थकरनी परंपराना श्रुतकेवली श्री धर्मघोष सूरि ते नगरने विषे आव्या. तेमने वंदन करवा माटे सर्व प्रकारनी समृहि सहित एवो अभावंत बलराजा पोताना परिवारे परवख्यो बतो बहारना नद्यानमां गयो. महावल कुमार पण पोताना झारपालना मुखथी गुरुने आवेला सांनली उद्यानने विषे गयो. ते वखते गुरुए धर्मोपदेश आप्यो के धर्म, अर्थ अने कामरूप पुरुषार्थो श्रेष्ठ धर्मना प्रन्नावश्रीज मले , माटे मोदनी श्चावाला तत्त्वज्ञ पुरुषोए धर्मने विषेज उद्यम करवो. लक्ष्मी हाथीना कान समान चपल, शरीर नाशवंत स्वन्नाववालुं अने जीवित दलना अग्र नाग नपर रहेला पाणीना विंऽ समान नाशवंत . जेम चंचें प्रतिबिंव ज. सने विपे अनेक रूपे मिथ्या देखाय ने तेमज स्त्री विगेरे समस्त जगत् पण मिथ्यानूतज . वली जेम दश दिशामां गयेलां पदीयो सायंकाले एकगं श्र हर्पित श्रया उतां परस्पर वार्तालाप करीने सवारे पोतपोतानी जीविकाने माटे जूदा जूदा चाल्या जाय रे तेमज स्वजन संयोग समजवो, वली राज्यादिक । कुगतिने आपनासं वे, माटे हे नव्यजनो! आ असार एवा संसारना-स्वरूपनो चित्तने विषे विचार करी मोक्षदायक धर्मने विषे यत्न करो." गुरुनी यावी वाणी सांतली प्रसन्न श्रयेलो महावल कुमार तेमने कदेवा लाग्यो के, “दे नगवन् ! अरिहंत प्रन्नुए कहेला मार्गने हुं हर्षश्री सद्दहु ९. माटे हे मुनीश्वर ! हवे हुं माता पितानी अाझा लश् तमारी पाले श्रावी दीका ग्रहण करुं त्यां सुधी तमे अहिंयांज रहो.” सूरिये का. “हे वत्स ! अमने प्रतिबंध न कर." पठी महावल कुमार सूरिने वंदना करी पोताना मंदिरे गयो, त्यां माता पिताने प्रणाम करी ते वोल्यो के, “हे माता पिता ! में धर्मघोष गम पाले धर्म सांजल्यो अने ते मने रुन्यो ." माता पिताए कह्यु. “ हे वत्स ! तुं धन्य अने कृतपुण्य के, जे तें गुरुना मुखश्री धर्म सान्नट्यो अने ते तन रुच्यो." कुमारे कडं. “हे माता पिता ! हुं तमारी याज्ञाश्री श्री ध. Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महाबल चरित्रः (१४५) मघोष सूरीश्वर पासे संयम गृहण करवानी श्छा करुं बु.” पूर्वे क्यारे पण नदि सांजलेला पुत्रनां आवां अनिष्ट वचनने सांजली तत्काल करतां नेवाली, परसेवाश्री निंजा गयेली, गाढ शोकरूप अग्निथी तपी गयेली, पोताना पुत्रना वियोगयी पीमा पामेली अने अस्वस्थ थ गयेला वस्त्रवाली प्रनावती देवी मूर्ग पामी. पनी दासीयोए करेला नाना प्रकारना शीतवातादि नपचारोथी चेतनाने पामेली ते विविध प्रकारना विलाप करती करती महाबलकुमारने कदेवा लागी के, “हे वत्स ! तुं अमोने घणो वहालो पुत्र बे, अमे हारा वियोगने श्चता ननी, माटे हवे फरीथी आq न बोलीश. वली अमेज्यां सुधी जीविये त्यां सुधी तुं पोताना घरने विषेज रहे अने अमारा मृत्यु पाम्या पठी तुं व्रत अंगीकार करजे." पठी महाबल पोतानी माता 'प्रत्ये कहेवा लाग्यो के, “हे अंब! आपे कडं ते सत्य बे; परंतु इंजाल समान, विविध प्रकारनां दुःख आपनारा, वली जन्म, मृत्यु, जरा, रोग, शोक अने नय विगेरेथी व्याप्त एवा, तेमज अशाश्वत, अध्रुव तथा नाशवंत स्वन्नाववाला आ मनुष्य नवने विषे कोइ माणस एम नयी जाणतो के, हुं प्रथम मृत्यु पामीश के, परी मृत्यु पामीश; माटे हे मात ! हुँतो प्रवृज्याज अंगीकार करीश, माटे मने आज्ञा आपो." माताए कह्यु. " हे वत्स ! त्हारं स्वरुप सुवर्ण समान कांतिवालुं अने यौवन विश्वने विस्मय पमामनालं. तो दीर्घकाल सुधी नोगने नोगववाथी तेने सफल करीने पठी निश्चे तुं व्रत ग्रहण कर.” महाबले कडं.. “हे मात ! आ मनुष्य शरीर दुःखना घररूप तेमज बहु व्याधि शोकादिकथी गलायतुं . वली ते अस्थि, मांस, वसा, रुधिर, मुत्रअने विष्टानुं मंदिर, निरंतर असुचिनुं स्थान तथा नाशवंत स्वन्नाववालुं ने, माटे बुध्विंत प्राणीयोए ज्यां सुधी इंडियोनी कीणता न य होय, ज्यां सुधी निरोगीपणुं विद्यमान होय अने ज्यां सुधी जरावस्था न आवी होय त्यां सुधी धर्म करी लेवो जोश्ये; ए कारणथी हुँतो चारित्र लश्शा.” माताए कह्यु. “हे पुत्र ! त्हारे कलामां कुशल, रूपवती, शुशीलवाली, त्हारा समान वय अने गुणवाली तथा अनुरक्त एवी आठ बाल्यावस्थावाली स्त्रीयो ने. तो तुं तेननी साथे हर्षथी नोग नोगव्य." महाबले कडं. “ हे मात ! मनुष्याने लोग सुख फक्त आरनमांज कांश्क सुखआपनालं, परंतु परिणामे बहु दारुण जे. तेमज स्त्रीयोनुं शरीर विष्टा, मूत्र Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४६) ऋषिमंमलति-पूर्वाई. अंने पाच विगेरे अपवित्र वस्तुन्थी नरपुर ले तो पठी तेठनी साथे प्रीतिशा कामनी ने ? वली स्त्रीयो तीक्ष्ण एवा संसार नावना वासने नन्नो करवामां स्तंन्न समान ठे अने लिहि पदने विघ्न करनारी , माटे मोदना अ. लिलाषी पुरुषोए तो तेवी स्त्रीयोने त्याग करवा योग्य कही ने, तो हे अंब! हवणां हुं चारित्र ग्रहण करीश." माताए कह्यं “हे पुत्र! आपणे त्यां अनुक्रमे प्राप्त अयेली असंख्य लक्ष्मी २ ते तुं नोगव.” कुमारे कडं. "ते तो राजा, चोर, अग्नि अने मृत्युने स्वाधिन रहेली ने, माटे अशाश्वत एवी ते ल. दमीने तो हुं त्यजी दनं बुंज." श्रावी रीते माता ज्यारे पुत्रने संयमनी आशायी गमाववा समर्थ न थर अने पुत्र लोन्नमां आसक्त न थयो त्यारे माता तेने नय देखामती ती कहेवा लागी के, “हे वत्स! खधारा नपर चालवू अने बन्ने दायथी समुश्तरवो ए जेम पुष्कर ले तेम चारित्र पालवु ए पण निश्चे अत्यंत दुष्कर ने. वली नूमि नपर शयन करवू, केशनो लोच करवो, नि क्षाचर्या करवी तथा ब्रह्मचर्य पालवू ए नत्तरोत्तर पुष्कर . तेमां पण सुधा अने तृषाने सहन करवू तेतो अत्यंत पुष्कर ने. तेम तुं अत्यंत सुकुमार ने माटे दवणां घरमां रहे.” कुमारे माताने फरीथी का. “हे मात ! नपुंसक प्राणीयोने व्रत पुष्कर ठे, परंतु धीर पुरुषोने तो पुष्कर पण साध्यज है." या प्रमाणे ज्यारे मातापिता पुत्रनी संयमनी हा गेमाववाने समर्थश्रयां त्यारे तो तेन तत्काल नदास नावने पाम्या, पगरी बलराजाए आज्ञाकार। सेवकोने बोलावीने आदरथी कां के, “गजपुर नगरनी अंदरनी तथा व्हारने। नमी साफ करी, जल विगेरेनो उँटकाव करीअने चारे तरफ ध्वजापताकानन्ना करो तथा ठेकाणे ठेकाणे कौतुकनी साये नाच करवो.” नूपतिनी आज्ञा प्र. माणे सेवकोए ते सर्व तयार करघु एटले राजाए महावलने हर्षथी तत्काल सिंहासन नपर वेसारी सोनाना अने माटीना एक सो आठ कलशथी अनिषक करीने पोते का के,"अमे तमारी आज्ञा प्रमाणे चालनाराठीये,"कुमारे का "देतात! म्हारे माटेनंमारमांथी निश्चेत्रण लाख सोनाम्होर मंगांवो, तेमाथ। एक लाखनी कातर, एक लाखनां पात्रां अने एक लाखनु रजोदरण तत्काल मंगाव श्रापो." नूपतिये ते प्रमाणे सर्वश्राणी श्राप्यु. पीते महावले पोताना आगला केशने कापी मुवे मुहपत्ति वांधी, माता प्रनावतीये रुदन करता कर Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री महाबल चरित्र. (१४७) तां ते पुत्रना केशने पोताना वस्त्रमा लश्लीधा. पनी महाबल दिव्य चंदनी शरीरे लेप करी, सर्व अलंकारोथी नूषित श्रइ, हजारो मनुष्योए नपामेली पालखीमां बेठगे. वली मस्तके बत्र धारण कराएलो, चामरोश्री विजाएलो, अत्यंत म्होटी सेना सहित परिवारथी विटाएलो अने मनुष्योए स्तुति करेलो ते महाबल रजोहरणने ग्रहण करी नगरीथी निकलीने हर्षवमे श्री धर्मघोष सूरीश्वर पासे आव्यो. त्यां माता पिताए ते महाबल कुमारने आगल करी, गुरुना चरणकमलने नमस्कार करीने कडं के “हे नगवन ! आ अमारो अत्यंत प्रिय एवो एक महाबल नामनो पुत्र संसारना नयथी तमारी पासे चारित्र लेवानी ना करे , माटे हे प्रनु! आपना इस्तथी एने तत्काल दीक्षा पापी संसारना ज़य रहित करो,” गुरुए ते वात अंगीकार करी एटले कृतार्थ एवा मदाबले ईशान दिशामां जा पोतानी मेले देहथी सर्व आनूषणोने त्यजी दीघां. पठी प्रत्नावती माताए रुदन करता उतां ते सर्व लइ पुत्रने कयु के, “हे वत्स ! त्हारे निरंतर पा चारित्रने विषे अत्यंत यत्न करवो. नवना हेतुरुप प्रमाद न करवो अने विशेष धीरज धारण करवी.” पुत्रने ा प्रमाणे शीदा पापी माता पिता सूरीश्वरने वंदना करी पोताना नगरे गया, , अहिं पागल कुमारे पंचमुष्ठी लोच करीने पती श्री धर्मघोष सूरि पासे आवी नमस्कार करीने कडं के, “हे विन्तु ! हुं जन्मादि उःखथी अत्यंत नय पाम्यो बु. वली आ लोक पण जन्ममरणादि अग्निथी लीपा रहेलो डे, माटे मने दिवारूप अमृतनुं दान पापीने तत्काल शीतल करो." तेनां आवां वचनयी गुरुए तेने पोताना हाथी दिवा आपी सर्व प्राचारमा प्रविण बनाव्यो.. मदाबल मुनि पण त्रण गुप्तिअने पांच समितिथी युक्त बतां विनयादिक गुणोथी चौद पूर्व नण्या. पनी उहअध्मादिक विविध प्रकारना तपवमे श्रात्मानेन्नावती ते मुनि बारवर्ष पर्यंत अतिचारना लेश विना मारित्रने पाली अंते आलोचनालश् एक मासना अनशनश्री मृत्यु पामी ब्रह्मदेवलोकने विषे दश सागरोपमनी स्थितिवाला देवता अया. त्यांची चवीने ते महाबल मुनिनो जीव वाणिज नामना नगरने विषे संपत्तिथी म्होटा शेग्ना कुलने विषे नत्पन्न अयो. त्यां तेमन सुदर्शन नाम पम्यु. अनुक्रमे ते बाल्यावस्था त्यजी नगरमां श्रेष्ठ एवी सुदर्शन शेग्नी पछि पाम्पो. एवामां त्यां नगवान् श्री महावीर स्वामी समवसवा. Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४८ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्ध. उद्यानपालके नगरमां वीरप्रजुना आगमननी वधामणी श्रापी; तेथी नगरना सर्व लोक तेमने वंदन करवा चाल्या. सुदर्शन शेठ पण गया. ते अवसरे प्रजुए संनामां सर्व लोकना हितने माटे एक समयथी आरंभीने दश सागरोपम सुधीना कालना प्रमाणनुं वर्णन करयुं. ते सांगली विस्मयवंत थयेला सुदर्शन शेठे पूवयं के, " हे स्वामिन् ! जेनने या सागरोपम काल को गतिमां व्यो होय तो ते शी रीते कय थाय ? " प्रनुए कयुं. “ पूर्वे तें एटलो काल अनुभव्यो बे. तुं पूर्व जवने विषे ब्रह्म देवलोकमां दश सागरोपमना श्रायुष्यवालो महावलनो आत्मा देवता हतो. " प्रजुना आवां वचन सांजली तत्काल पूर्वभवना जातिस्मरणने लीधे वैराग्यवंत थयेला सुदर्शन शेठे प्रभु पासे चारित्र लीधुं. पठी पोताना कार्यने जागनारा सुदर्शन मुनिये अनुक्रमे चौदपूर्वनो अभ्यास, 'करी केवलज्ञान मेलवी मुक्तिपद अंगीकार करयुं. ( या ग्रंथकर्ता श्री शुभवर्द्धन गणी कहे बे के) दे' नव्यजनो ! में पापने नाश करनारुं या महाबलनुं चरित्र पोताना अने परना उपकारने माटे संदेपे कह्युं बे; परंतु विस्तारे जागवानी इवावाला विद्वान् पुरुषोए तें चरित्र पांचमा अंगी (जगवती सूत्रयी) जाणी लेवुं. ॥ इति श्री महाबल चरित्रम् ॥ ॥ प्रथ प्रष्ट बलदेव चरित्राणि ॥ पयरय मित्ररऊसिरिं; उनि गहिवर प्रयतपमुहे ॥ छवि बलदेव रिसी, नमामि निवाणमपत्ते ॥१२॥ अर्थ-पगने विषे चोटेली रजनी पेठे राज्यलक्ष्मीने त्यजी दइ चारित्र अंगीकार करी मोक्षपद प्राप्त करनारा अचल विगेरे (अचल, विजय, जई, सुन, सुदर्शन, आनंद, नंदन, अने पद्म) आठ बलदेव मुनियोने नमस्कार करूं बुं. १२ ए गायानो विशेषार्थ तो चरित्रोश्री जाली लेवो. वली अचल चरित्र श्री शांतिनाथना चरित्रमां श्रावी गयुं वे, माटे ते त्यांथी जाली लेवें अने विजय चरित्र अड़ियां संक्षेप मात्रश्री कहे ठे. ॥ श्री विजय बलदेव चरित्रम् ॥ आ जरतक्षेत्रना पश्चिम महासमुडने कांठे लक्ष्मीने क्रीमा करवानांम Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बलदेव चरित्र. ( १४९५ ) नोहर कमल सरखी द्वारका नामनी नगरी बे. त्यां रामना समान कां तिवालो ने जेनो यशसमूह विश्वमां प्रसरी रहेलो हतो एवो ब्रह्म नामे रा• जा राज्य करतो हतो. तेने गुणोये करीने म्होटी तथा प्रिय प्रने श्रेष्ट एवी सुन राजानी पुत्री सुना नामनी स्त्री इती. तेनने बलवंत एवो विजय नामे बलदेव पुत्र दतो. वली ते ब्रह्मराजाने उत्कृष्ट नाग्यनी भूमीरूप बीजी माना स्त्री इती. तेने वासुदेवना पदने योग्य एवो छिपष्टक नामे पुत्र इतो. ज्यारे या बन्ने पुत्रो युवावस्था पाम्या त्यारे ब्रह्म भूपतिये तेनने राज्य आप पोते सत्य एवा ब्रह्मज्ञानने माटे चारित्र लीधुं पढी सर्व कलामां कु शल एवा महाबलवंत हिपृष्टे तारक नामना प्रतिवासुदेवने युद्धमां जीत्यो. व ली तेथे जमला दाय वमे कोटिशिला नामनी महाशिलाने उपामी दमानी माफक पोताना मस्तक सुधी उंची करी. ते उपरथी अर्धा भरत क्षेत्रनां सोल इजार राजानए एकाता था महोत्सवपूर्वक छिपृष्टने वासुदेवनो अभिषेक कa. श्वेत कृष्ण के शरीरनी कांति जेमनी एवा अने सीतेर धनुना देवाला ते पृष्ट अने विजय बने जाइयोए दीर्घकाल सुधी राज्य नोगव्युं. बोंतेर लाख वर्ष पर्यंत पोताना प्रायुष्यने पूर्ण करी घोर पापना नद हिपृष्ट मृत्यु पामीने बडी नरके गयो. पढी पोताना बंधुना वियोगथी दुःखी यता विजय बलदेवे सर्वथा राज्यने विषे स्पृहारहित यह वैराग्यथी दी - कालीधी. राज्यलक्ष्मीने त्यजी दइ चारित्र अंगीकार करनार ते श्री विजय नामना बलदेव पोतानुं पंचोतेर लाख वर्षनुं सर्व आयुष्य पूर्ण करी चारित्र पालवावमे केवलज्ञानने प्राप्त करी अंते कर्मकयथी संसारना जयने भेदी नाखनारा परमानंद रूप निर्वाण पदने पाम्या. J ॥ इति श्री विजय बलदेव चरित्रम् ॥ ॥ अथ श्री बलदेव चरित्रम् ॥ श्रा जरतक्षेत्रनी द्वारका नगरीने विषे क्रूर एवा शत्रु भूपतियोनो नादा करवाने प्रगट पराक्रमवालो रुप नामे राजा राज्य करतो दतो. तेने अत्यंत रूपवती एवी सुप्रजा नामनी पट्टराणी हती. तेने महाबलवंत एवो नइ ना Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५० ) ऋषिमंगलवति - पूर्वी ६. मनो बलदेव पुत्र इतो. रुइ राजाने बीजी लोकमां विख्यात एवी पृथिवी ना-: मेस्त्री दती तेने स्वयंभू नामनो प्रसिद्ध वासुदेव पुत्र इतो. पी पिताए राज्यासने स्थापन करेला स्वयंभूए युद्धमां मेरक नामना प्रतिवासुदेवने नई बंधु सहित मा पोते कंठ सुधी कोटिसीला नपामी. ते उपरथी सोल हजार रा जानए तेने बंधू सहित चक्रवर्त्तीनो अभिषेक कस्बो पी साठ धनुष्यना शरीरवालो ते स्वयंभू वासुदेव साठ लाख वर्ष पर्यंत आयुष्य जोगवी अंते मृत्यु पामीने अशुभ कर्मश्री डी नरके गयो. जर बलदेवे सर्व सावद्यनो त्याग करी श्रेष्ठ संवर युक्त थर चारित्र लीधुं. बेवटे साठ धनुष्यना शरीरवाला मुनि पांस लाख वर्ष पर्यंत आयुष्य पूर्ण करी मोक्षपद पाया.. ॥ इति श्री जड़ बलदेव चरित्रम् ॥ ॥ अथ श्री सुमन बलदेव चरित्रम् ॥ पृथ्वी पर प्रसिद्ध एवी द्वारका नगरीने विषे चंद समान मनोदर मुखवालो श्रीमान् सोम नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेन सुदर्शना नामनी पट्टराणीश्री नृत्पन्न थयेलो मनुष्योमां उत्तम एवो सुमन नामे बलदेव पुत्रं हतो एने वीजी शीलवती शीतल एवी बहाली सीता नामनी स्त्रीथी उत्पन्न थ येलो पुरुषोतम नामनो वासुदेव पुत्र हतो. पचास धनुष्यना प्रमाण देहवाला श्वेत तथा कृष्ण एवी शरीरनी कांतिवाला ते बन्ने बंधन पिताथी राज्य पामीने शोजता इता. अनुक्रमे सुप्रन बंधुनी सहायताने लीधे पुरुषोतम वासुदेवे पोताना पुरुषार्थी प्रतिवासुदेव एवा मधुकैटनने मारयो भने वने जाश्री वाती सुवी कोटि झीला नपामी. ते नपरश्री सोल हजार राजानंए तेने चक्रवर्त्तीनो अभिषेक करयो. उत्तम वैभववालुं साम्राज्यपद जोगवीने पीते पुरुषोतम पोतानुं त्रीस लाख वर्षनुं श्रायुष्य पूर्ण करी बढी नरकने विषे नारकी श्रयो ने सुमन वैराग्यनी उत्कृष्टताश्री चारित्र लइ पोतानुं पं चावन लाख वर्षनुं आयुष्य पूर्ण करी मोक्षपद पाम्या. ॥ इति श्री सुमन बलदेव चरित्रम् ॥ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आनंद बलदेव चरित्र. (१५१) ॥अथ श्री सुदर्शन बलदेव चरित्रम्॥ सर्व संपतिना मंदिर रूप स्वपुर नामना नगरने विषे प्रजाने कल्याणकारी एवो श्रीमान् शिव नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने विजया नामनी पट्टराणी इती. तेने सुदर्शन नामे बलदेव पुत्र थयो. बीजी अंबीकाना समान गुणवाली अंबीका नामनी राणी इती. तेने महाबलवंत एवो पुरुषसिंह नामे वासुदेव पुत्र हतो. अनुक्रमे श्वेत तथा कृष्ण कांतिवाला अने पीस्तालिश धनुष्य प्रमाण शरीरवाला ते बन्ने नाश्यो अनुत एवा पिताना राज्यने पाम्या. पठी वासुदेव एवा पुरुषसिंहे युःक्ष्मां निशुन्न नामना प्रतिवासुदेवने मारी नदर सुधी कोटिशिलाने नपामी. परीत्रणखंमनुं राज्य नोगवतो एवो पुरुषसिंह पोतार्नु दश लाख वर्षनुं आयुष्य पूर्ण करीबही नरके गयो. सुदर्शन पपा दीका लश पोतानुं सत्तर लाख वर्षनुं आयुष्य पूर्ण करी मोद पाम्यो. ॥ इति श्री सुदर्शन बलदेव चरित्रम् ॥ ॥अथ श्री आनंद बलदेव चरित्रम् ॥ परचकना नयरहित चक्रपुर नामर्नु नगर . त्यां पुत्रनी पेठे प्रजार्नु पालन करनार महाशिव नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने कांतिये करीने वैजयंती देवी समान वैजयंती नामनी पट्टराणी हती. तेने आनंदकारी आनंद नामे बलदेव पुत्र दतो अने बीजी साक्षात् लक्ष्मीना समान लक्ष्मी नामे स्त्री हती. तेने नत्तम बुध्विालो पुमरिक नामे वासुदेव पुत्र हतो. अनुक्रमे नगणत्रीश धनुष्य प्रमाण शरीरवाला ते बन्ने नाश्यो पिता पासेथी राज्यपद पामी दिवस दिवसने विषे सर्व समृध्थिी अधिक शोनवा लाग्या. पठी पुमरिक वासुदेवे युःक्ष्मां बलीष्ट एवा प्रतिवासुदेव बलि राजाने मारी उर्वलपणाथी कोटीशिलाने केम सुधी नपामी. ते नपरथी सोल हजार राजानए महोत्सवपूर्वक तेने अाई चक्रवतीनो अनिषेक कस्यो; तेथी ते पोताना बंधुसहित अर्धा नरतक्षेत्रनुं राज्य लोगववा लाग्यो. अनुक्रमे पांसठ हजार वर्ष पर्यंत पोतार्नु आयुष्य नोगवी क्लिष्ट हृदयवालो ते पुमरिक उडी नरके गयो. आनंद बलदेव पण पोतानुं पंचा| हजार वर्षनुं आयुष्य जोगवी चारित्र पाली केवलज्ञान पामी मोकपद पाम्यो.. ॥ इति श्री आनंद बलदेव चरित्रम् ॥ . Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. ॥ अथ श्री नंदन बलदेव चरित्रम् ॥ कल्याणकारी लक्ष्मीवमे वखाणवा योग्य वाराणसी नगरीने विषे बलवंत अग्निसिंह नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने जयंती नामे पट्टराणी. इती. तेने जगत्ने आनंदकारी नंदन नामे बलदेव पुत्र हतो अने बीजी स मग्र नज्वल गुणोश्री प्रिय एवी शेषवती नामे स्त्री हती. तेने दत्त नामे वासु देव पुत्र इतो. अनुक्रमे श्वेत कृष्णकांतिवाला अने बीश धंनुष्य प्रमाण शरीरवाला ते बन्ने नाश्यो पिताना राज्यने पाम्या. पली वासुदेव एवा दत्ते यु मां प्रतिवासुदेव एवा प्रल्हादने हणी साथल पर्यंत कोटिशीला नपामी. ते नुपरथी अनेक राजानए तेने अर्श चक्रवर्तीपणानो अनिषेक कस्यो. पठी ते वासुदेव पोतार्नु उप्पन्न हजार वर्ष, आयुष्य नोगवी पांचमी नरके गयो. दन बलदेव पण चारित्र लश्पांसठ हजार वर्षनुं पोता, आयुष पूर्ण करी अंते मोद पद पाम्यो. ॥ इति श्री नंदन बलदेव चरित्रम् ॥ ॥ अथ श्री पन बलदेव चरित्रम् ॥ जेमणे दयाने लीधे दूरथी श्रावी अश्व नूपतिने प्रतिबोध पमामयो ठे ते जगत्ना पति एवा श्री मुनिसुव्रत तीर्थकर जयवंता वर्तो. ते तीर्थकरना तीर्थने विषे श्रयेला अने मोद पामेला गुणवंत आठमा श्री पद्मबलदेवतुं चरित्र हुं कहुं हुं. श्रा नरतकेत्रमा नत्तम वैन्नववाली, पुरातन अने इंनी आज्ञाथी कुबेरे स्थापन करेली अयोध्या नामनी नगरी ठे. त्यां श्री झषन्नदेव प्रचना संताननी परंपरामां नत्पन्न श्रयेलो, महा तेजवंत अने *महारथ एवो दशरथ राजा राज्य करतो इतो. जे राजा युझरूप नदयाचलने विषे सूर्यनी पेठे नदय पाम्ये ग्ते तकाल सैन्य सदित शत्रु राजान घुमनी पेठे आचरण करता. अर्थात् आंधला पर जता. महाराजा दशरथने जाणे लक्ष्मीनी वृद्धि करनारीत्रण शक्ती होपनी ? एबी तया गुणोए करीने अत्यंत वहाली त्रण स्त्रीयो हती. तेमां पहेली • गुरूपनामा प्रयोण पलो जे पुगए दश हजार सुभटोनी साये युद्ध कर ते महारथ कहेयाय छे.. Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १५३ ) पोतानी अद्भुत शोभाथी बीजी श्रेष्ट स्त्रीयोनां रूपने पण तीरस्कार करनारी शुद्ध शीलवती कौशल्या नामनी स्त्री दती. बीजी पोताना शीलव्रतना तेजथी सूर्यनी कांतिने पण मलीन करनारी सुमित्रा नामनी स्त्री दती. त्रीजी धर्म विषे बुद्धिवाली, सौभाग्यवती ने पतिने घणीज वहाली एवी सुप्रना नामनी स्त्री दती. W दवे ते वखते मदा समुना मध्य जागने विषे मनुष्योने स्वर्गनी विश्रम करावनारी लंका नगरीने विषे, रत्नश्रव विद्याधरना कुलरूप वनमां केसरीसिंह समान, कैकसी विद्याधरीना नदररूप तलावने विषे दंस समान, विश्वने जयंकर, प्रौढ विद्यामां पंचम पराक्रमवालो, महा तेजवंत, राक्षसोनो अमेश्वर, श्री जिनेश्वरना चरणकमलनी सेवामां तत्पर अने विभीषण तथा कुनकर्णनो जाइ एवो प्रतापवान् प्रतिवासुदेव रावण राजा राज्य करतो दतो. एक दिवस सजाने विषे सिंहनी पेठे सिंहासन उपर बेठेला, पराक्रमथी सर्व राजानुनो पराजव करनारा, तेजस्वीनमां श्रेष्ट, कोटी सुजट एवा रक्षकोए तथा विद्याधरोए निरंतर सेवा करेला, इंना समान कांतिवाला, देव, दानव ने मनुष्योथी नाश नदि करी शकाय तेवा, मृत्युथी पण जय नहि पामनारा, विश्वने आक्रमण करवामां लंपट अने जीवित वे प्रीय जेने एवा ते रावणे कोई एक अष्टांगनिमित्तना जाए एवा श्रेष्ट नैमित्तिकने बोलावीने पू के, " म्हारुं मृत्यु कोनाथी यवानुं बे. रोगथी के बीजा को थी ते कहो ? रावसे आम प्रश्न करयुं एटले नैमितिके क्षणमात्र विचार करीने कर्तुं के, “हे रावण महाराजा ! सांजलो. कोशला नगरीना अधिपति अने इक्ष्वाकुवंशना शिरोमणिरूप श्री दशरथ राजाना पुत्र राम लक्ष्मणश्री मिथिला नगरीना पति जनकनी पुत्री सीताना कारणे तमारुं मृत्यु थवानुं बे. " नैमितिकनां आवां वचन सांजली रावण शंकायुक्त थयो एटले पासे बेठेला विभीषणे गाढ स्नेहना वशी तेने कहां के, " हे नाथ ! जो था नैमितिक सत्यवादी "" } दशे, तोपण हुं बलात्कारे तेनां वचन मिथ्या करीश. हुं दशरथ राजाने अने जनकनूप तिने ए वन्नेने मारी नाखीश तो पढी तमारा वध करनारानी नस्पतिज शी रीते थशे ? " तेनां आवां वचन सांजली रावण "लोकमां दारु सहोदरपणुं श्रेष्ट वे." एम वखारा करतो तो अत्यंत संतोष पाम्यो. २० 1 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५४ ) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. श्रा वखते नारद मुनि रावणनी सन्नामां बेग हता, ते विनीषणना. आवां वचन सांजली तत्काल आकाशमार्गे श्र कोशलापुरीमा आव्या, त्यां दशरथ राजाए तेमनो अत्यंत आदर सत्कार कस्यो, पठी नारदे का, “हे नृ. . पति ! तुं स्वस्थ प्रश्ने म्हारा आववानुं कारण सांजल, हुं हिंथी प्र.गविदेहकेत्रमा पुमरीकिणी नगरी प्रत्ये गयो हतो. त्यां श्री विश्वपति सीमंधर जिनेश्वरे गृहस्थावासमां व्यासी लाख पूर्व निर्गमन कस्वा पठी चोसठ देवेंशेए ते प्रन्नुना करेला दीदा कल्याणकना नत्सवने जो मेरु पर्वत नपर शास्वता चैत्यने नमस्कार करवा गयो हतो. त्यांथी अत्यंत मनोहर एवी लंका नगरी प्रत्ये गयो. त्यां प्रथम नद्यानने विषे श्री शांतिनाथनी प्रतिमाने हर्षथी प्रणाम करीने पठी हुं रावनी सन्नामां गयो, त्यां नैमितिकनां वचन सानली अत्यंत खेदातुर थयेलो हुँ अहिं आव्यो वं. हे दशरथ ! नैमितिकनां बचनश्री विन्नीपरा तमने तत्काल मारवा आवशे, माटे पोतानुं रक्षण करवामां यत्न करो." नारद मुनिया प्रमाणे दशरथने कही आकाशमार्गे चाली निकल्या. पठी दशरथ राजाए सर्व मंत्रीवर्गने बोलावीने कडं. “हे मंत्रीयो! सांजलो. तमारे सर्वेए आ म्हारा राज्यनुं रक्षण करवं. कारण हुं जीवित रहाने माटे वीजा देशमा जान .” दशरथ राजा आ प्रमाणे मंत्रीयोने ललामण करी अने विदेशीवेश धारण करी गुप्त रीते पोताना नगरपी चाली निकल्यो. जनक राजाए पण नारदनां हित वचनयी तेमज करयु. कां वे के-सर्व प्राणीयोने निश्चय पोतानुं रक्षण करवामां एक सरखी बुद्धि होय : पनी क्रोधश्री कंपतो एवो विन्नीपण पोतानी प्रतिज्ञा पालवाने माटे अखंमित प्रयाणधी अयोध्याना राजमंदिर प्रत्ये आव्यो. त्यां अत्यंत क्रोधश्री अंध श्रयेला चिनवाला तेणे रात्रीने विपे तिहण खजश्री दशरथ राजानी बनावी राखेली लेपमर्तिना मस्तकनो वेद कस्यो. ते वखते “ हाय दाय! अमारो पति हणाया. "एम कोलाहल श्रयो अने कोटिसुन्नटश्री नरपुर एवो राजमहेल दोन पान्यो. अंतःपुर पण रुदन करवा लाग्यु अने अत्यंत शोकातुर एवा बुध्विंत प्रधानादि राजपुरुषोए ते लपमूर्तिने अग्निसंस्कार कस्यो. दवे दहारण नुपतिन मारी प्रमन्न अयेला विन्नीपणे " ननक एकलो झुं कन्टो ? "एम धारी मिश्रिता नगरी प्रन्ये नदि जतां तुरत संकामा जर Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री फ्य बलदेव चरित्र. (१५५) रावणने सर्व वात निवेदन करी.शुं देव विमुख थयो होय त्यारे प्राणीयोना. नपायो फलीत थाय खरा ? अर्थात् नज पाय, हवे दशरथ अने जनक ए बने राजा पृथ्वी नपर सर्व स्थानके नमता नमता को एक दिवसे एकग घर गया. अनुक्रमे निर्नय अने परस्पर प्रीतिवंत थयेला ते बन्ने नूपतियोए साथे फरतां केटलोक काल निगमन कस्यो पी तेन उत्तरापथ देशमां सर्व प्रकारे लक्ष्मीना समुरूप अने समस्त प्रकारे मांगलिक एवा श्री मंगलपुर नगर प्रत्ये आव्या. त्यां विजय लक्ष्मीना स्थान समान शुन्नमति नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने चोसठ कलामां प्रवीण कैकेयी नामे पुत्री हती. नूपतिये ते पोतानी पुत्रीना विवाहने माटे स्वयंवर मंझप रची अनेक नूपालोने आमंत्रण करेलु होवाथी म्होटा आमंबरने धारण करनारा दरिवाहन विगेरे अनेक राजानं त्यां आववा लाग्या हता. पठी नंची बेठको नपर रहेला सुवर्णना मणि जमित्र सिंहासनोने विषे बेठेला अने मनोहर प्राकृतिवाला ते नूपतियो उत्तम आनूषणने धारण करनारा देवतानी पेठे शोन्नता हता. कापमीना सरखा वेषवाला राजा दशरथ अने जनक पण ते राजाननी मध्ये जाणे गुप्त आकृतिवाला श्रेष्ट देवताज होयनी? एम बेसी गया. । पठी मंगलस्नान करी दिव्य वस्तथी सुशोनित बनेली तेमज मनोहर प्राकृतिवाली कैकेयी तत्काल पालखीमां बेसी त्यां आवीने प्रतिहारीणीनो हाथ काली राजहंसथी सरस्वतीनी पेठे तत्काल पालखीमांथो नीचे उतरी.. पी जमणा हाथमां वरमालाने धारण करी रहेली तेमज प्रतिहारीये करेला राजानना वर्णनने हर्षथी सान्नलती अने पोताना नत्कृष्ट रूपथी राजानने विस्मित मुखवाला करती ते बालाए को सिंहासन नपर बेठेला कापमिना समान प्राकृतिवाला दशरथ राजाने दीगे. पनी विस्मित नेत्रवाली अने गुपनी जाण एवी कैकेयीये दशरथ नूपतिना कंठने विषे तुरत वरमाला पहे.. ' रावी. ते वखते अत्यंत दोन पामेलुं राजमंगल परस्पर कदेवा लाग्यु के, "अहो ! ए राजकन्याए राजाने निर्गुणी करी को वैदेशिक वस्यो. जोके कन्या मुग्ध होय, परंतु बलहिन एवो कापनि मुग्ध शामाटे थाय के, जे राजमंगल बतां कन्याने वरे ? निश्चय राजाननेज योग्य एवी ए कन्याने अमे बलवमे ग्रहण करशं. कारण के, कागमाना कंठने विषे रहेली मणिनी माला कोने Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. रुचिकर थाय ?" ग्राम कहीने सर्वे राजा पोताना विकट आयुधवाला कोटि सुन्नटोनी साथे दशरथ राजाने मारवा नव्या. ते वखते शुन्नमति नूपाल वि. चार करवा लाग्यो के, “कन्याये गमे तेवो जे वर वस्यो होय ते म्होटानने पण प्रमाण होय .” आ प्रमाणे पोताना हृदयमा विचार करी तेणे तुरत सऊ श्रयेली पोतानी सेना सहित सर्व आयुधथी पूर्ण एवो पोतानो रथ दशरथने आप्यो. ते समये दशरथ राजाए कैकेयीने कडं के, " तु म्हारा सारथीपपाने अंगीकार कर के, जेथी करीने हुं शत्रुना सैन्यने जीतुं." पठी बाल्यावस्थाश्री अन्यास करेली कलामा प्रवीण एवी कैकेयीये बीकण उतां पण निनय थ पोताना हाथी घोमानी राशने पकमी सारथी थ रथने शत्रुना सैन्य तरफ चलाव्यो एटले दशरथ राजाए लीला मात्रमा तीक्ष्ण बाणनो व; पदि वरसावता उतां सिंह जेम शियालना समूहने त्रास पमा तेम शत्रुना सैन्यने त्रास पमामयु. आ वखते युःक्ष्मां कैकेयीये पतिनी श्राझाथी रथने वाम, दक्षिण, आगल अने पाउल एम चारे तरफ आश्चर्यकारी रीते चलाव्यो. ते नपरथी प्रसन्न श्रयेला दशरथ राजाए प्रिया कैकेयीने का के, “दे न ! हुँ त्हारी सारथीनी कलाश्री प्रसन्न अयो, माटे वरदान माग." कैकेयीये कझुं. “ हे प्रिय ! हवणां ए वरदानने नत्तम आन्नूषणनी पेठे नमारमा राखो, हुं तेने अवसरे मागीश. पठी राजा दशरथे असंख्य शत्रुरूप अंधकारना समदने नाश करी सूर्य जेम दिनश्रीनो अंगीकार करे तेम कैकेयीनो अंगीकार कस्यो. पठी शुल्लमति राजा दशरथने नलखी पोतानी नाग्यवती कन्या कैकेयीनां अने वलवंत एवा दशरथ राजाना वखाण करवा लाग्यो. शुन्नमति सहित दशरथ राजा वलीष्ठ सेन्यथी शत्रुन्ने जीतीने पठी राजगृह नगर प्र. त्ये गयो. त्यां तेणे ते नगरना नूपतिने जीतीने त्यांज निवास कस्यो, कडं ठे के-विश्वमां बलवंत पुरुषोनुं स्थान सर्व ठेकाणे होय . पग जनक राजा पण पोतानी मिथिला नगरी प्रत्ये गयो. कारण कालदेपयी विघ्नो कुकोपनी पेठे तत्काल नाठा पामे ठे. पठी वाग्य गजा राजगृह नगर प्रत्ये रहो तो लक्ष्मीनी साथे पुरुपोत्तमनी पेठ पोतानी स्वीनी माये अखंमित नोगोने लोगववा लाग्यो.वली त्यां तेणे अयोध्यायी पोनानी त्रण स्त्रीयाने तेमावी.कारण के, पुरुपने स्वस्थपणामां सर्वस्मृति Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'श्री पनि बलदेव चरित्र. ( १५७ ) आवे बे. ते त्रण प्रियानुनी साथे विषय सुख भोगवता एवा दशरथ राजा विविध बुद्धिधी शोजता एवा बुद्धिमान पुरुषनी पेठे अत्यंत शोनवा लाग्यो: ed as एक देवता ब्रह्मलोकधी चवीने रात्रीना शुभ अवसरे कौश ब्याना नदररूप सरोवर विषे राज हंसनी पेठे अवतस्यो. ते वखते चतुर बुदिवाली कौशल्याये पूर्व पुण्यना प्रभावथी चंड किरण समान नज्वल चार स्वप्न जोयां पठी पूर्ण समये तेणे गायना दुध अने दीराना समान गौर अंगवाला तथा सर्व प्रकारनां उत्तम लक्ष्णवाला पुत्रने जन्म आप्यो एटले पुत्र जन्मश्री नृत्पन्न थयेला मद्दा हर्षवंत दशरथ नूपतिये नाना प्रकारना दानथी म्दोटा उत्सवो कस्या. अनुक्रमे मातापिताए तेनुं पद्म एवं नाम पामघुं; परं तु उत्तम प्रकृतिने लीधे लोकमां राम नाम प्रसिद्ध युं पी आकाशमां चंद्रबिंबनी पेठे सर्व राजलोकना नेत्रने आनंद पमारुनारो ते कुमार त्यांज वृद्धि पामवा लाग्यो. · > दवे स्वर्गथी बीजो को पुण्यवान् जीव चवीने रात्रीना शुभ अवसरे सुमित्राना नदरने विषे श्रवतस्यो. ते वखते तेणे उत्तम फल सूघवनारा सात् मदा स्वप्न जोयां. पी पूर्ण समय यये सुमित्राये अंजन समान श्याम कांतिवाला, श्रीवत्सलांबित वक्षस्थलवाला अने वासुदेवना पढ़ने योग्य एवा एक पुत्र जन्म आप्यो. ते वखते राजा दशरथे ते पुत्रनी प्रशंसा करता जन्म महोत्सव करया. अनुक्रमे पिताए ते पुत्रनुं नारायण नाम पारुयुं, परंतु मांग्य लक्ष्मीना चिन्हना दर्शनथी लोकमां तेनुं लक्ष्मण नाम प्रसिद्ध ययुं. पटीं बलदेव ने वासुदेव एवा ते राम लक्ष्मण बन्ने जाइयो नरमान माताना पुत्र ari पूर्ववना संबंध सीधे परस्पर अत्यंत स्नेहवाला थया. í कोइ वखते कैकेयी राणीये पण अवसरे शुभ स्वप्न सूचवीने नदरमां प्रावेला भरत नामना पुत्रने जन्म प्राप्यो अने सुप्रजाये पण श्रेष्टकांतिथी सूर्यनेतिरस्कार करनारा तथा शत्रुने विनाश करनारा शत्रुघ्न (नामना पुत्रने जन्म श्राप्यो. पी ते जरत अने शत्रुघ्न नरमान मातानना पुत्र बता परस्पर अत्यंत स्नेहवाला था. अनुक्रमे दशरथ भूपतिना ते चारे पुत्र कोटि शत्रुरूप हाथीयोने दलन करवामां सिंह समान, राज्यश्री रूप हायणीने विलास कराववामां Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५७) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. हाथी समान, सौलाग्यवंत पुरुषोमां अग्रेसर, सर्वकलानना समूहने विषेप त्यंत चतुर तथा संपत्तियोने क्रीमा करवाना मंदिर रूप यया. ॥इति श्री पद्म बलदेव चरित्रे प्रथम प्रस्तावः ॥ ... हवे जंबधीपना नरतदेत्रने विषे दारु नामनुं म्होटुं गाम ने. त्यां वसुनूति नामनो नत्तम ब्राह्मण रहेतो हतो. तेने कोशा नामनी स्त्री हती. तेनने . अतिनूति नामे पुत्र हतो अने ते अतिनूतिने सुरसा नामनी स्त्री हती.. तेन सर्वे परस्पर अत्यंत स्नेहवाला हता. को वखते कयान नामना कोई कामी ब्राह्मणे ते सुरसाने जो कामथी अत्यंत पीमा पामता उतां तेनु हरण करयु. कां वे के-कामीयोना चेष्टितने तो धिक्कार . पठी अतिनूति ब्राह्मण पोतानी प्रियाने न देखी वियोगथी आकुल व्याकुल मनवालो.थश्ने पृथ्वी नपर नमवा लाग्यो. कोशा अने वसुनूति पण मोहना वश की पुत्र अने तेनी प्रियानी शोधने माटे नमवा लाग्या. कह्यु के के-निश्चय ःखना वासरूप गृहस्थाश्रमने धिक्कार . पी पृथ्वी नपर नमतां एवां ते कोशा अने वसुलूतिये कोई एक वनने विषे चारणमुनिने जो तेमने वंदना करीने तेमनी श्रेष्ट धर्मदेशना सांजली. अनुक्रमे ते वन्ने जलानए प्रतिबोध पामी तेमनी पासे व्रत अंगीकार करयु. पठी मुनिये कोशाने कमल लक्ष्मीनी समीपे राखी. अनुक्रमे शुक्ष एवा चारित्रने पाली ते वन्ने जवान पहेलादेवलोकं प्रत्ये गया. त्यांथी वसुन्नतिनो जीव चवीने वैताढ्य पर्वतने विषे रणनपुर नगरमां चंगति नामे विद्याधर अयो. कोशा पण त्यांची चवीने पुष्पवती नामे तेनी स्त्री अश्. हवे कयाने जेनुं हरण करयुं हतुं ते सुरसाए पण गुरु पासेश्री धर्म सांजली प्रबोध पामीने व्रत लीधुं. पठी ते व्रतनुं पालन करी ईशानेश्नी देवी श्र. प्रियाना वियोगश्री गांमो वनेलो अतिनूति पण बहु काल सुधी संसाररुप अरण्यमां नमी अने पठी मृत्यु पामी कोइ एक राजहंसना पुत्रपणे नत्पन्न अयो. को वखते याकाशने विये नमता' एवा ते राजहंसना वालने निंचागे पकमचो, परंतु ते तेना मुखश्री निकली जश्ने को एक कपाना समुः एवा मुनीश्वग्नी पासे पमयो. पठी मुनिये सिंचागाना घातथी पीमायुक. देवाला अने जेनुं मृत्यु पासे यात्री रह्यं व एवा ते राजहंसना बालने पंच नवकार मनलाव्यो एटले परमेष्टि नमस्कारना ध्यानश्री ते परी मृत्यु Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१५) पामी दश हजार वर्षनां आयुष्यवालो किंनर देव थयो, त्यांथी चवीने ते वि दग्ध नगरने विषे प्रकाशसिंह नूपतिनी प्रवरावली राणीने विष कुंमलमंमि. त नामना पुत्रपणे नत्पन्न अयो. . हवे पेलो दूरात्मा कयानो पण सुरसाना वियोगटी पीमा पामतो तो अनेक नवोने नमीने देवट चक्रपुर नगरने विषे श्रीचक्रध्वज नूपतिनी स्वा. दा नामनी स्त्रीना धूमकेश नामना पुरोहितनो बुमिहिन अने जम हृदयवालो पिंगल नामे पुत्र थयो. ते चक्रध्वज नूपतिने एक अतिसुंदरी नामे पुत्री हती. तेनी साथे पेलो पिंगलक गुरुनी पासे पाठशालामा रह्यो तो अन्यास करतो हतो. एक दिवस रागने लीधे जम बुध्विाला पिंगलके अवसर मलवाथी गुप्तरीते अतिसुंदरीनुं हरण करयुं. कर्वा डे के-घ[करीने प्राणीयोनो स्वन्नाव अनेक नवोने विषे एकज रीतनो होय . पठी ते पिंगलक ते राजकन्याने साये लश पोताना नगरथी नासी गयो अने ज्यां प्रकाशसिंह नूपति राज्य करतो हतो ते विदग्धपुर प्रत्ये आवी पहोच्यो. त्यां परा ज्ञान रहित एवो ते पिंगलक घास अने लाकमाना नारा वेचीने पोतानी आजीविका करवा लाग्यो. एक दिवस राजपुत्र कुंझलमंमिते रति अने प्रीतिने धिक्कार करवामां अति रूपवंती एवी अतिसुंदरीने दीठी; तेश्री अनुरागवाला श्रयेला तेणे पिंगलक पासेश्री ते कन्यागें हरण करयुं अने पनी पिताना नयथीते एक पल्लीमां जश् अतिसुं. दरीनी साथे रहेवा लाग्यो. पठी अतिसुंदरीना वियोगथी निरंतर आकमाना रुनी पेठे पृथ्वी नपर नमता एवा विप्र पिंगलके कोइ स्थानकने विषे आर्यगुप्त नामना साधुने जो. इतेमने वंदना करी. पड़ी तेमनी देशना सांजली नत्पन्न श्रयेला वैराग्यवाला तेणे चारित्र लीधुं; परंतु ते मुनिये अतिसुंदरीने विषे श्रयेलोराग त्यजीदीधो नहि. . हवे पेलो पल्लीमा रहेलो राजपुत्र कुंमलमंमित दशरथ राजाना देश प्रत्ये आवीने खुंट करवा लाग्यो. ते वखते दशरथ महाराजानी आझादी क्रोधातुर एवा बालचंड नामना सामंते तेने पकमीने बंधीखाने नाख्यो. पी दशरथ नूंपतिये केटलोक काल बंधीखाने राखी तेने प्रकाशसिंह नूपतिनो पुत्र जाणी दयाने लीधे गेमी दीधो एटले तो पृथ्वी नपर ब्रमण करता ते कुंमलमंमिते को दिवसे मुनिचं नामना साधुने वंदना करीने तेमना उपदेशश्री Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६० ) ऋषिमंमलबत्ति-पूर्वाई. श्रावक धर्म आदस्यो, परंतु तेणे मनमांथी क्यारे पण पिताना राज्यनी स्पहार ने त्यजी दीधी नहि. पठी ते अवसरे काल करी जनक नूपतिनी विदेहा राणीना नदरने विषे पुत्रपणे नुत्पन्न भयो. देवांगना सुरसा पण ईशान देवलोकधी, चवीने फरीथी धूमकेश पुरोहितनी वेगवती नामनी पुत्रीपणे नत्पन्न थइ.त्यां - ते व्रत अंगीकार करी अनुक्रमे मृत्यु पामी ब्रह्मदेवलोक प्रत्ये गइ. त्यांथी चवीने जनक नूपतिनी विदेदा राणीना नदरने विषे पुत्रीपणे नत्पन्न थ३. अनुक्रमे विदेहाये ते पुत्र पुत्रीना जोमलांने साथे जन्म आप्यो. हवे पिंगलक मुनि मृत्यु पामीने सौधर्म देव लोकने विषे देवतापणे न. त्पन्न थया. त्यां तेमणे अवधिज्ञानथी पोताना शत्रु कुंमलमंमितने जनक राजाना घरे पुत्रपणे नत्पन्न श्रयेलो जोयो, पठी पूर्वनवना वैररूप दावानली तप्त श्रयेला अंगवाला ते देवताए ते बालकनुं हरण करी तत्काल आकाशमार्गे प्रयाण करयु. त्यांथी वैताढ्य पर्वत नपर जता एवा ते देवताए मनमां विचार कस्यो के, “आ बालकने शिला नपर पगमीने तुरत मारी ना." आ प्रमाशे ते विचार करतो हतो एवामां तेने विवेक प्राप्त भयो; तेथी ते वली विचारवा लाग्यो के, " अरे ! पूर्वनवने विषे करेला पापोथी संसारमा जमण करतो ए. वो हुँ देवयोगथी देवपणुं पाम्यो . तो वली बालहत्याथी नत्पन्न श्रयेलापुःखोनो पात्र शा माटे थानं ?" आ प्रमाणे विचार करीने ते देवता नत्तम एवापा. नूपणथी बालकने विनूषित करी रथनूपुर नगरना नद्यानने विषे पुष्पथी सुशोनित एवी पृथ्वी नपर मूकीने पोताने स्थानके चाल्यो गयो. एवामां त्यां चंगति विद्याधर आव्यो; ते बालकने जोश चित्तमां घणो हर्ष पाम्यो. पड़ी चिंतामणि रत्ननी पेठे ते वालकने ग्रहण करी विद्याधराधिप चंगतिये पोताने घरे आवी पोतानी प्रियाने ते वालक पुत्रपणे सोप्यो अने नाना प्रकारना दान यापीने विविध प्रकारना महोत्सवो कस्या. अहो ! सर्व स्थानके पूण्यथीज कब्याणकारी सुख प्राप्त प्राय टे.पठी चंगति विद्याधरे ते वालकनुं शरीर तेजमय जो तेनुं महोत्सव पूर्वक नासंमल नाम पाम्यु. हवे अदि फक्त जन्म अवसरेज देखाइने तत्काल अदृश्य थ गयेला पुत्रने जाणी विदेड़ा अत्यंत रुदन करवा लागी. अने राजा जनक पण तेनी माग्रे रुदन करवा लाग्यो. पठी तेणे सर्व स्थानके दृतोने मोकली गाम, नगर Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १६१ ) श्रने खारा विगेरे पृथ्वी मंगलनो शोध कराव्या, पण क्यांश्थी पुत्रनी जाल मली नहि एटले सर्व दुःखनी शांति करनारी पुत्रीनुं नाम सीता पारुयुं. पटी जनक राजाना कुलने विषे सौभाग्यथी विशाल अने सर्व प्रकारना गुएानी गजशालारूप ते बाला रसाल एवी स्वर्गवेलनी पेठे वृद्धि पामवा लागी. अनुक्रमे सर्व कलानो प्रयास करती यौवनावस्थाने प्राप्त थयेली ते कुमारीका विवाह योग्य शरीर संपत्तिने धारण करवा लागी एटले जनक भूपति पोताना प्रधानोनी साधे तेना वरनो विचार करवा लाग्यो. पी अनेक नूपतियोए पोताना चित्रपट्ट त्यां मोकलाव्या. सीताये ते सर्वेंना रूपाने जोयां, पण तेमांथी कोइ तेने रुचिकर थयो नहि - कर्तुं वे के- सुवर्णनी वींटीमां जेवो वो हीरो योग्य होय नहि. " asaad र देशमां रहेला तरंगतम प्रमुख अनेक क्रूर राजानए सैन्यं सहित प्रावीने जनक भूपतिना देशने नपश्व करवा मांगचो. ते वखते पोताना वली तेजने दूर करवाने असमर्थ एवा जनक राजाए पोतानी सहायने माटे दशरथ राजाने तेमावा माटे तेनी पासे दूत मोकल्यो. दूत दशरथ भूपतिनी सामां श्राव्यो एटले तेमणे जनक राजाना सर्व कुशल समाचार पूया. दूते कहुँ. " हे महाराज ! आप सरखा मित्र बतां मिथिला नगरीना अधिपति जनक राजाने जय क्यांथी होय ? तो पण हे नाथ ! एक वात निवेदन करवानी वे अने ते ए बे के, वैताढ्य पर्वतना दक्षिण नागमां ने कैलाश पर्वतना उत्तर जागमां रहेला घणा अनार्य देशोमां बहु क्रूर माणसो रहे वे. तेमां पण सर्व संपत्तिना स्थानरूप प्रईबर्बर नामना देशने विषे मयुरमाला नामना प्रति म्होटा नगरमां नाना प्रकारना पापकर्मने विषे तत्पर एवा सर्वे लोको वसे बे. वली ते मयुरशाला नगरमां म्लेछनो प्रधिपति तरंगमत नामनो प्रति बलवान् राजा राज्य करे ठे के, जेणे पोताना शौर्यश्री कंबोजादि देशोने तत्काल पोताने स्वाधिन करया बे. दवणां पोताना बली स्फुरायमान थयेला ते राजाए घणा धान्यथी पूर्ण एवा क्षेत्रने जेम सुंरु विनाश पमाने तेम मिथिलादेशने विनाश पमावा मांगचो a. हाथी जेम जामोने नखेमी नाखे तेम धर्मस्थानोने नखेमी नाखवा मांमित्रे, वे अने पाषाण जेम केलना कामने पीमा उपजावे तेम साधु लोकना, ر Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. समूहने पीमा उपजाववा मांगी वे. यावा कारणथी जनक राजाए ते शत्रुने जीतवा माटे आपनी सहाय मागी े. कयुं वे के, गांगो माणस पण मित्रना तेजने पामी पोतानी गांमाशने त्यजी दे बे. पठी शत्रुरूप वनने दग्ध करवामां दावानल समान दशरथ राजाए दूतनां एवां वचन सांजली अत्यंत क्रोध पामता बतां शत्रुनो विनाश करवा माटे प्रयाणनो पट्टह वगमाव्यो. ते वखते पुत्रोमां मुख्य एवा श्री राम पिताने प्रयास करवामां सऊ थयेला जोइ तत्काल प्रणाम करी प्रिय वचनथी विनंती करी के, “दे तात ! बंधुनवाला म्हारा सरखा पुत्र बतां अतुल पराक्रमवाला आप पोतेज शा माटे युने अर्थे प्रयाण करो बो ? हे पिता ! कृपा करी मनेज प्रज्ञा प्रापो. कारण के, काकुस्थ कुलमां उत्पन्न थयेलो बालक पण शत्रुचना समूहनो विनाश करे बे. " था प्रमाणे विनंती करी बलात्कारथी पितानी थाज्ञा लड़ कृतार्थ एवा श्री रामे जाइयोने साधे लइ म्होटी सेना सहित प्रयास कर. पवी शत्रुनो नाश करवामां उत्पन्न थयेला रसवाला अने उत्तम बुद्धिवाला श्री राम, अनुक्रमे बंधुन सहित मिथिलदेशनी समीपे श्राव्या. त्यां तो तेमले इष्टिवेध करनारा, अत्यंत बलवंत ने चारे तरफ प्रसरी रहेला असंख्य कोटि म्लेच्छ सुनटोने दीग. लेखना सुनटो पणग्रकत्मात् पोतानी समीपे श्रावेला रामना नृत्कट सैन्यने जोइ तत्काल बहु क्रोध करवा लाग्या. पती सा कस्या वे ग्रायुध जेसले एवा ते म्लेछना कोटि सुनटो उत्कट एवा रामना सैन्य सामे युद्ध करवा दोऊया. ते वखते तेमणे तीक्ष्ण युवा वर्षाव जेम मेघ दावानलनो विनाश करे तेम रामना सैन्यनो विनाश कस्यो. पोताना सैन्यनो विनाश यतो जोइ क्रोधातुर थयेला म्होटा बलवंत राम पोते युद्ध करवाने बठ्या. तेमणे पोताना वाणोथी प्रबल एवाय पण शत्रुने सिंह जेम पोतानी गर्जनाश्री हाथीयोने त्रास पमामे तेम तत्काल त्रास पमाझ्या, पठी म्लेच्छ भूपति पोतानी सेनाने चारे तरफ नासी जती जो पोते नत्कट वलश्री युद्ध करवा लाग्यो, पण ते राम तरफयी यावतां संख्या यत्रोने जो पोतानुं जीवित ग्रापवाने समर्थ न थवाथी तुरत सर्व परिवारने त्यजी कागमानी पेठे नासी गयो. ते वखते मिश्रिला नगरीना.. लोक अत्यंत आनंद पाम्या. जनक राजाए पण रामने जेटी गौरवपणाने नर 1 Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १६३ ) ग्य एवा सऊंनाना आनंदने माटे तेमने महोत्सव पूर्वक पोतानी मिथिला नगरीमा प्रवेश कराव्या. पबी तेथे गुणोथी मनोहर एवा श्री रामनी साये पोतानी पुत्री सीतानो विवाह कस्यो. कां वे के - पोताने घेर आवेला उत्तम वरने कोण न बरे ? पी नारदमुनि जगत्ने आनंदकारी सीतानी रूप संपत्ति सांजली ग्राश्वर्यने धरता बता तत्काल जनक पुत्रीने जोवा माटे त्यां प्राव्या ने जेटलामां तेमणे कन्याना अंतःपुरने विषे प्रवेश कस्यो तेटलामां लांबी जटावाला, पिंगलवर्णा केशवाला ने जयंकर आकृतीवाला ते नारदने जोइ प्रत्यंत जय पामेली सीता तत्काल " हे मात ! हे मात !! " एस कहती कहती घरनी अंदर पेसी गई. एटलामां कन्यानुं रक्षण करवा माटे सखियाए त्यां श्रावीने नासी जता ते जटावंत नारदमुनिने रोकी दीधा अने सोर कस्यो के.. "अरे सुन्नटो ! आ पापी एवा तापसने मारो ! मारो. ! !” सखियोनां प्रावां वचन सांजली, शस्त्रधारी अनेक सुनटो तैयार थर गया. नारदमुनि तेन पाथी महाकष्टे बूटीने नासी गया अने अपमान माटे सीताने विषे अत्यंत मत्सर धरवा लाग्या वली क्लेश करावनारा ते नारदे विचार के, "वैताढ्य पर्वत पर जर त्यां चंदगति विद्याधरनो नामंगल नामे पुत्र के, जे हवणां युवावस्थाने पाम्यो उतो पाणिग्रहण करवाने योग्य थयो बे, तेने सीतानुं प्रीतिकारी रूप देखाऊं. " या प्रमाणे विचार करी नारदे चित्रकार पासे सीतानुं श्रेष्ठ रूप पटमां प्रालेखावी जामंगल कुमारने देखामयुं; तेथी चिपट्टने जो प्रसन्न श्रयेला उत्तम बुद्धिवाला नामंगल कुमारे कर्तुं के, “हे नारदमुनि ! मनुष्यामां अद्भुत एवं प्रा कोनुं रूप वे ?” नारदे कहां. “ मिथिला नगरीना जनक राजानी पुत्री सीतानुं ए रूप बे. " एम कहीं नारदमुनि आकाश मार्गे चाल्या गया. नामंगल कुमार पण सीतानी प्राप्तिने माटे व्याकुल मनवालो यो. पी चित्रपटने जोवाथी दुःखरूप महा समुमां बूमी गयेला पुत्रने जाली चंदगति विद्याधरे तेने कह्युं. " हे पुत्र ! शुं व्हारा शरी " विषे कोई रोग यो बे के मन संबंधि कांइ पीमा उत्पन्न थर बे ? अथवा अष्ट वस्तुने मेलववामां चिंतातुर थयो देखाय बे ? " ते वखते कुमारना मित्रोए चंगति राजाने कह्युं के, “हे विभु ! मालतीमां भ्रमरम पेठे जन Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . स्पा लाग्था. (१६४) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वार्ध. क राजानी पुत्री सीता के, जे रूप संपत्तिथी प्रसिद्धि पामेली अने गुमवाली वे, तेने विषे श्रा कुमारनुं मन आसक्त यश् गयुं . तो तेने सीतानी साथे परणावीने तेनी चिंता दूर करो.” चंगतिये आ प्रमाणे पुत्रनो मनोरथ जागीतेने कर्वा के, “हे वत्स ! तुं जरा पण खेद न कर. हुं थोमाज वखतमां. जानकीनी साथे त्हारो विवाह करावीश, माटे शांत था.” पितानां आवां वचन सांजली अत्यंत हर्षित श्रयेलो नाममल कुमार स्वेचाथी पोताना मित्रोनी साथे सुखे क्रीमा करवा लाग्यो. पठी चंगति विद्याधरे पोताना चपलगति नामना सेवकने मिथिलाना अधिपति जनकने वोलाववा आज्ञा करी, ते नपरथी ते विद्याधर मिथिला नगरी प्रत्ये आवी रात्रीये जनक राजानुं हरण करी तेने वैताढ्य पर्वत पर । लश् गयो. त्यां चंगति विद्याधरे तेमने नेटी नत्तम सिंहासने बेसारी अने पोते न्हाना सिंहासन उपर बेसी आ प्रमाणे जनक राजाने कदेवा लाग्यो. “हे राजन् ! यापनी पुत्री सीता के, जे नुत्तम रूपवाली अने गुणवाली ले ते म्हारा पुत्र नाममलने आपो अने ए संबंधथी विद्याधरना अधिपति अने माएसोना अधिपति एवा आपणी प्रीति दीर्घकाल सुधी स्थिर अने कुशलकारी श्राय." जनक राजाए कह्यु. “ हे विद्याधरें ! अमारा सरखा माणसोने विषे नत्कृष्ट स्नेहने धारण करता एवा आपे योग्य कडं, परंतु ए पुत्रीने में द- (शरम्यना पुत्र रामने प्रश्रमश्री आपी दीधी ; कारण कन्यानुं दान एकवारज था शके . पठी चंगति विद्याधरे क्रोधातुर या पोतानी शक्तिने देखामनारं वचन कह्यु के, “हे राजन् ! हुं पोतानी विद्यावले तमने आकाश मागे करी अदि लाव्यो , तो पठी सीतार्नु हरण करवामां केटलोक वखत श्रवानो ते कहो ? माटे हुं प्रीतिनो संबंध मागुं वं ते अंगीकार करो. वली हे राजन् ! अमारा सरखा महा शत्रु नत्पन्न अये उते राम अथवा वीजा कोश गजानो पुत्र सीतानुं पाणीग्रहण करी शकशे खरो?" विद्याधर चंगतिये या प्रमाणे का एटले जनक राजा मोन रह्यो, तेथी तेणे जनक राजाने फरी विचार करीने कहां. "द राजन् ! वली म्हारं एक वचन सोललो. ___ म्हार' घग्ने बिषे म्हारा पूर्वजोनी परंपरायी चालता श्रावेला अने वा. मुदयना बसायोग्य एवा वजावर्न अने अगवावर्त नामना वे धनुष्य . जूदा Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६६) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. (१६७ ) आगलज रामने पोतानो पति श्चती ती उन्नी रही. जनकना न्हाना सीतार्नु स्वरूप जोश कमलीनीने विषे अमरनी पेठे अत्यंन्न श्रयेली नश यो. आ वखते जनक नूपतिनी आझायी हारपाले पोतानो पुत्रना विवाह तत्काल कयुं के, “हे नूपालो अने विद्याधरो! म्हारं वचन बनी स्त्रीयो मारा मध्येथी जे को पुरुष आ बन्ने धनुष्यमांथी एकनी नपगने पामीआरोपण करशे. तेज आ सीता नामनी कन्यानो पाणीगृहण कर रपालनां आवां वचन सांजली सर्व विद्याधरो अने राजकुमारो धन्झावः॥ वानी श्चाथी तेनी पासे गया; परंतु त्यां तो नंची,करेली फणावादारथ राना दृष्टिरूप विषना नारथी व्याप्त थयेला तथा यमनी जिह्वाना सम म्नात्र अग्नि ज्वालारूप ते बन्ने धनुष्योने जोश जयश्री खेदयुक्त श्रयेला ते तत्काल पागावी पोतपोताने आसने वेग. पी नुजा बलथी शत्रुना वर्गने तिर,स्कार करनारा अने सिंहना समान पराक्रमवाला श्री राम पोताना आसनश्री नठी धनुष्य पासे आव्या. ते वखते वीजा सनाजनोए“जेम पूर्वे आवेला राजकुमारोए धनुष्य चमाव्युं तेम आ पण चमावशे" एम कही रामने हसी काढ्या; । परंतु श्री रामे तो चंगत्यादि विद्याधर पतियोए रोष सहित जोता उतां नाश पामेलासर्पना समूहरूप अने शांत अयेली ज्वालावाला अग्निरूप तेवजावर्त नामना धनुष्यने लीला मात्रमा कमलना नालनी पेठे नपाकी ते नपर बाण ते वखते "श्वाक कुटुम्हरूपाकने प्रकाशं करवामां सूर्य समान, को · वीर पुरुवामी होरा समान ! महा बलवंत हे राम! राजा आ तो. 'आम अनेक विद्याधरो, देव अने दानवो श्री रामनी स्तुति करवा लाग्या एटले सीताये पोताना हायमा रहेली वरमाला श्री रामना कंठने विषे हर्ष सहित आरोपण करी. पठी रामनी आज्ञाश्री लक्ष्मणे पण सर्व राजलोक जोता उतां तत्काल अर्णवावर्त्त नामना धनुष्यने चमाव्यु. लक्ष्मणर्नु आवं अनुत पराक्रम जो प्रसन्न श्रयेला विद्याधरोए पोतानी अढार कन्या सदमएपने आपी. पी खेदयुक्त मनवालो चंगति विद्याधर पोताना नामंमल पुत्र सहित वैमानमां बेसी परिवारे परवस्यो को पोताना नगर प्रत्ये आव्यो, जनक राजाए पण पोतानी पुत्री सीताना विवाह महोत्सव निमित्ने दशरथ नूपतिने पोताना नगर प्रत्ये बोलाव्या. दशरथ राजा त्यां प्राव्या एटले ज Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प गार परिवार सहित प्रावी सर्वे वृत्तांत मह रुदन के वचन (१६४) आश्रित करायेला ते बन्नेमांथी एक धनुष्यने पण राम कमला राजपुत्र पोताना नुजवलथी चमावशे तेज राजपुत्रनुजब जीसीताने परणशे. बीजो कोइसमर्थ एवोय पण नूपतिनहि परणावीरज जनके परवश्यपणाने लीधे विद्याधरनां आ वचन अंगीकार क गतिये तेने वन्ने धनुष्यो आपी मिथिला नगरी प्रत्ये पहोचापाते पुत्र परिवार सहित पोताना घरने विषे रह्यो. अहिं जनक रानी मिथिला नगरी प्रत्ये आवी सर्वे वृत्तांत पोतानी प्रियाने कह्यो ए जीना मोहथी अत्यंत पीमा पामती उती बहु रुदन करवा लागी वको आपीने कहेवा लागी के, " अरे दैव ! तेंज म्हारा तुरंतना जन्मेला पुत्रनुंहरण करी मने दुःख आप्यु ठे अने वली हवाणां आ पुत्री- हरण करीने शा माटे दुःख आपीश ? निश्चय हुं नयी जागती के, देवतानए आश्रित करेलां आ वन्ने धनुष्यने राम के बीजो को राजपुत्र चमावे, एम्हारा हृदयने विषे म्होटुं शल्य नत्पन्न अयुं ते." आ प्रमाणे शोक करती एवी प्रियाने जनके कडं. " हे प्रीया ? परवश्यपणाश्री जे अंगीकार करयु ने तेनो हवेशोक शो करवो? वली में रामनुं पराकम जोयु . हुं धारुंके, ते एकवार वजने पण नागी नाखे तेवा ठे तो परी ते आ बन्ने धनुष्यने चमावे एमां तो शंका शी राखवी, माटे हे प्रिया! शांत था अने शोक त्यजी दे.” श्रा प्रमाणे प्रियाने शांत करी जनक राजाए सर्व कारनी होगी। स्वर्गलस्मीने जीतनार म्होटा स्वयंवर मंझपने रची तथा वा धनुष्योने जूदा जदा सिंहासनो नपर मूकीने पठी ते चंगति विद्याधरने अने बीजा वह राजपुत्राने तेमाव्या. पठी चंगति विगेरे विद्याधर अने राजकुमारो पोतपोताना सिंहासन नपर विराज्ये ग्ते महा तेजवंत सिंहासन पर बेठेला श्री राम लक्ष्मण महा कांतिवंत एवा पुष्पदंतनी पेठे शोन्नवा लाग्या. पी जनकनी श्राशायी नत्तम शृंगारवमे सुशोनित एवी सीता पोताना हाथने विषे वरमालाने धारण करती उती दर्पथी स्वयंवर मंझपमां आवीने पालग्वीमांयी नीचे नतरी सिंहासन नपर मुकेतां बने धनुष्योनुं आदरथी पुष्पवमे पूजन करवा लागी. त्यारपठी पण दिव्य वेशने धारण करनारी सीता जाणे ते धनुष्योनी अधिटायक देवीज होयनी ? एम ते धनुष्योनी मुदेवना बायायोग्य एवा बजावन अन अपाचायत नामना १ पनु प ७, जूध Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री पद्म वलदेव चरित्र. (१६७) नके पोतानी पुत्री जानकीनो लग्न विधि महोत्सव कस्यो. जनकना न्हाना ना जटके पण कैकेयी नामनी पोतानी पत्नीना नदरथी नत्पन्न ययेली नश पुत्री नरतने परणावी. आ प्रमाणे सर्व राजानने विस्मयकारी पुत्रना विवाह नत्सवने करी प्रसन्न अयेला मनवालो दशरथ राजा पुत्र अने पुत्रनी स्त्रीयो सहित जनक राजाथी सङनोने प्रशंसवा योग्य एवा श्रेष्ट गौरवपणाने पामीने निर्जय थयो तो फरी पोतानी अयोध्या नगरी प्रत्ये आव्यो. ॥इति श्री पद्म बलदेव चरित्रे सीता विवाहो नाम हितीयः प्रस्तावः॥ पठी प्रशंसा करवा योग्य साम्राज्य पदने नोगवता एवा दशरथ राजाए को वखते शांति निमित्ते म्होटि समृद्धि पूर्वक श्री जिनेश्वरनो स्नात्र महोत्सव कस्यो.पी तेमणे एक दिव्य कचोलामां ते स्नात्रनुं पवित्र जल नरी कौशल्याने आपवा माटे वृक्ष झारपालने मोकल्यो अने बीजां सारां पात्रमा जरी बीजी स्त्रीयोने आपवा माटे पोतानी दासीयोने मोकली. हवे कौशल्या विनानी बीजी सर्वे स्त्रीयोए पोतपोताने प्रथम प्राप्त अयेला ते स्लाव जलने मस्तकवझे वंदन करी अमृत रसनी पेठे सुवर्ण पात्रमांजरी राख्यु अने कोशल्या तो पोताने स्नात्र जल नहि मलवाश्री शोकाकुल प्रश्ने विचार करवा लागी के, “ मान रहित जीवितने धिक्कार ले के, जे पतिये बीजी स्त्रीयोने विघ्ननी निवृति माटे नात्र जल मोकल्यु अने मने मोकल्यु नहि, माटे निश्वय हुं मंद जाग्यवाली बु. हवे पतिना सन्मान रहित एवी म्हारे मरण पामयूँ एज श्रेयकारी . " आम धारीने दशरथ प्रिया कौशल्याए जेटलामां पोताना कंउने विषे पाश नाख्यो तेटलामां दैवयोगथी त्यां दशरथ राजा आवी चम्या. तेमणे कौशल्यानी आवी अवस्था जो हृदयमा विस्मय पामी तत्काल गरीवके ते कंठ पासने दी नाख्यो अने पठी पोताना खोलामा वेसारीने प्रेमश्री तेने कडं के, “हे प्रिया ! त्हारो आवो म्होटो अपराध कोणे कस्यो ने ? निश्चय त्हारो अपराध करनार माणस म्हारे सन्मान करवा योग्य हशे । तो पण तेणे पोतानुं मृत्यु इच्छेखें देखाय ये." कौशल्याए का " हे नाथ ! आपे वीजी स्त्रीयोने त्यां स्नात्र जल मोकलाव्युं अने मने न मोकल्यु, एथीज आ म्होटुं दुःख नत्पन्न श्रयेलुं .” कौशल्या आप्रमाणे जेटलामां पोताना पतिने कहे ठे, तेटलामां वृक्ष वारपाले आ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६७) ऋषिमंमलयत्ति-पूर्वाई. वी ने कां के, “हे मात? महाराजाए मोकलावेलं आ स्नात्र जल ग्रहण करो,” कौशल्याए अत्यंत हर्ष पामी ते स्नात्र जलने स्वीकारयु.पठी दशरथ नूपतिये धारपालने पूग्युं के, “हे ना! तने पुःखदार आटली वार क्या था। s?" तेणे कडु “ हे महाराज ! मने बहु वृक्षावस्था प्राप्त ; तेथी हुँ' नतावलग्री चालवाने असमर्थ ." पठी दशरण महाराजा पण वलीयांथी व्याप्त शरीरवाला, धोला केशवाला, अमनोहर शरीरवाला, वली गयेली केमवाला, गलतां नेत्रवाला, कणे कणे मुखमांधी पमती लालना समूहवाला; सुकाइ गयेला मांस अने चाममीथी अत्यंत धुर्बल देखाता, बल रहित श्रयेला, श्वासोश्वास चमवाने लीधे ठेकाणे ठेकाणे नन्ना रहेता अने जरावस्थाथी जर्ज रीनूत थ गयेला ते हारपालने जो विचार करवा लाग्यो के, "अहो ! देव . अने दानवोयी पण न निवारी शकाय एवी आ जरावस्था बलात्कारथी शरीरने जर्जरीत न करी नाखे त्यां सुधी माणसोए परलोकना हितने माटे यत्न करवो. " आम विचार करता ते नूपति केटलोक काल त्यांज रद्या. को वखते चारज्ञानना धारणहार सत्यनूति सूरि अनेक साधुनना समूह सहित ते नगरीना नद्यानने विषे आव्या एटले दशरथ राजा पोताना पुत्र अने स्त्रीयोना परिवार सहित हर्षथी तेमनी धर्म देशना सांजलवाने नद्यानमा गयो. त्यां ते आचार्यने योग्य रीते प्रदक्षिणा करी अने परम नक्तिश्री वंदना करी योग्य स्थानके वेगे. हवे ते अवसरे विद्याधरनो अधिपति चंगति के,जे पोताना पुत्र नामंगल सहित वैमानमां वेसी रथावर्त पर्वत नपर गयो हतो तेणे त्यांना चैत्योने वंदना करी पाग आवता आकाश मार्गथी आ सूरीश्वरने जोया; तेश्री ते पण आकाश मार्गश्री नीचे नतरी मुनीश्वरने वंदना करी धर्म सांजलवा वेठगे. पठी आचार्ये ते सर्वेने प्रतिवोध करवा सारु अमृत समान वाएणीवो पापनो नाश करनारी देशनानो आरंन कस्यो, तेमां पण विशेषे तो जानकीनी स्पृहायी नत्पन्न श्रयेलां पापश्री गेमाववाने अर्थे अने नामंगल कु.. माग्ना चित्तना संतोपने अर्ये तेना पूर्व जन्मना माता पिता, पुष्पवती ने चंगतिना पूर्व नबो कड़ी संन्नलाव्या. पठी नामंगल कुमार ने सीताना जोमलानी नुत्पनि तथा नाममलनु नत्पत्ति वखतेज शत्रुए करेलु हरण पण कदी वनाव्यु. विद्याधर कुमार नामंगल श्रा सर्व हकीकत सांजली पोताना Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्मं बलदेव चरित्र. (१६५ ) पूर्व नवन यथार्थ स्मरण करतो तो तत्काल मूळ पामी गयो. योमीवारे मर्जा वली एटले नुत्तम बुध्विंत एवा तेणे सीताने पोतानी बेन मानता उता अने 'पोताना आत्मानी निंदा करता उता सीतानी साथे विवाह करवानीश्या त्यजी दीधी; एटलुंज नहि पण तेणे सीताने पोतानी व्हेन जाणीने वंदना करी.सीताए पण तेने पोतानो साथे जन्मेलो बंधु जाणी आशिष आपी. पनी चंदगति विद्याधरे नामंगल कुमारने मिथिलापुरीने विषे ज्यां जनक नूपति अने विदेहा हतां त्यां पहोचामयो अने तेनने जोमलामां नत्पन्न अयेला नाममल कुमारनी वात अने तेनुं पूर्व जन्मना वैरीये करेलु हरण ते सर्व कही संन्नलाव्युं. जामंमल कुमारे पण प्रेमयुक्त यश् हर्षनां आंसुने वरसावतां पोताना खरा माता पिताना चरणमां प्रणाम कस्यो. माता पिताए दिव्यरूपनी संपत्तिवाला पुत्रने प्रेम दृष्टिथी जोश्ने हर्षयी पोताना खोलामां बेसास्यो. वली नामंमल कुमारे सीताना आवरणधी नत्पन्न श्रयेला क्रोधनी शांतिथी प्रसन्न यश रामने पण नमस्कार कस्यो. पी चंगति विद्याधरे प्रबोध पामी जासंमल कुमारने पोतानुं साम्राज्यपद आपी तेज सत्यनूति सूरि पासे चारित्र अंगी. कार करयु. कडुं ले के महात्मानने पुण्यकार्यमा विलंब होतो नथी. पठी नामंगल कुमार चंगति राजर्षिने, विदेहाने, जनक नूपतिने, दशरथ नृपने, व्हेन सीताने अने रामने नमस्कार करी वैताढ्य पर्वत नपर गयो. व्रत ग्रहण करवाने अनिलाषवंत थयेला दशरथ नूपति पण नद्यानथी नगरीने विषे आवी कौशल्यादि सर्व प्रियाउने तथा श्री रामप्रमुख पुत्रोने तत्काल बोलावी कहेवा लाग्या के, “ हे वत्सलो! तमे सौ मने दीदा लेवानी आझा आपो.. कारण के, पूर्वजोनो एज क्रम चाले .” पीनक्तिवंत नरते कj. “हे तात ! हुं पण आपनी साथे नाना प्रकारना नवनो नाश करवा माटे व्रत अं-' गीकार करीश.” आ वखते कैकेयी विचार करवा लागी के, “ हाय हाय ! हणायेली श्राशावाली हुं पति अने पुत्र विना एकली घरने विषे केम रही सकीश?" आम धारी ते बोली के, “हे नाथ ! पूर्वे आपे मने वरदान आप्यो ने ते हवणां म्हारा उपर कृपा करी मने आपो.” दशरथे कयु. “हे प्रिया! मरजी प्रमाणे ते वरदानने तुं तत्काल मागी ले. कारण इक्ष्वाकु वंशमां न. पत्र श्रयेला राजान्नु वचन क्यारे पण फोगट जतु नथी.. Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०) .ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई, __ . पठी कैकेयीए कां. “हे नाथ ! ज्यारे आप दीक्षा लेवाना गे त्यारे नरतने राज्यासन आपो अने लक्ष्मण सहित रामने वनवास जवानी आज्ञा आपो.” दशरथ राजाए " एम थान.” एम कही प्रियानां वचन अंगीकार कस्वां. पठी पुत्र नपर प्रीतिवंत एवा दशरथ नूपतिये राम तथा लक्ष्मणना सामुं जोश्ने स्नेह सहित कडं के, “नुजाबलथी श्रेष्ठपणुं मेलवनार हे ज्ये. ए पुत्र! तुं आदरणी सांजल. पूर्वे विवाह अवसरे पा रहारी उरमान माता कैकेयीना शक्तियोगयो में रणसंग्राममां शत्रुनो नाश कस्यो हतो अने एज कारणथी जयवंत श्रयेला में तेने तत्काल वरदान आप्यो हतो. परंतु ते अवसरे तेणे ए वरदान न ग्रहण करतां नंमारमां रखाव्यो हतो, परंतु हवणां ते पोताना पुत्र नरतने राज्यपद अपाववारूप ते आपेला वरदाननी मागणी करे ." पठी श्री रामे हाथ जोमी पिताने कडं. “हे तात ! पोताना अ. वसरनी जाण एवी कैकेयीए पोतानो वरदान सारो माग्यो , माटे जरतने मरजी प्रमाणे राज्य आपो अने आपनी आज्ञा मने निश्चय श्रेयकारी थशे." दशरथे कद्यु. “हे वत्स ! तें पोताना कुलने योग्य एवं बहु सारं कह्यु. में प्रथमश्रीज सोनल्युं वे के, राम अत्यंत विनयी .” दशरथ राजा श्राम क. देता हता एटलामां विनयवंत एवा नरते नूपतिने फरीथी कडं. “हे तात! में आपनी प्रथमश्रीज विनंती करी ठे के, “निश्चय आपनी साथे म्हारे पण दीक्षा लेवी के. वली सर्व गुणोना समुप अने राज्यपदने योग्य एवा म्हो. टा ना रामने मूकी म्हारे विषे राज्यनो नार मूकवो ते योग्य नथी, माटे हे पिता! गुण समूहना स्थानरूप रामने पोताने पदे स्थापी म्हारा सहित आप दिवा स्वीकारो." पठी रामे राज्य संपनिथी विरक्त श्रयेला अने गुणसंपतिथ। श्रेष्ट एवा पोताना न्हाना ना लरतने का. “विनीत पुरुपोमां मुख्य अन मर्यादा रसना समुरूप दे बंधु ! तुं पितानी आझाने उल्लंघन करवा योग्य नथी.तुं राज्य ग्रहण कर एटले पिताझणमुक्त श्राय,माता पोताना हृदयने विष प्रसन्न थाय अने हुँ वनमां जानं.पठी तुं दीर्घकाल पर्यंत राज्यलक्ष्मीनेनोगव." बिनयवंत नरते रामना चरणनो स्पर्श करीने का के, “हे बंधु ! विजयव त पवा आप पृज्य म्होटा बंधु विद्यमान उतां जो हुं राज्यने अंगीकार कर तो निश्चे ऽविनीतना शिरोमणि थानं." जस्तनां पावां वचन नपरश्री राम Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१७१) निश्चय कस्यो के, “हुं ज्यां सुधी अहिं रहिश त्यां सुंधी नरत राज्यने अंगीकार करशे नहि अने तेथी पितानां वचननी हानी थशे.” आम धारी नि'कपट चित्तवाला रामे दशरथ नूपतिने कडं. “हे पिता ! ज्यां सुधी हुँ अहि रहीश त्यां सुधी नरत राज्यने गृहण करशे नहि;माटे हुँ आपना चरणने नम स्कार करी हवणांज वनवास जानं के, जेथी पबीनरत सुखे राज्य नोगवे." आ प्रमाणे कही प्रौढ पराक्रमवंत राम पोताना धनुष्य बाण लश पितानी पासेथी चाली निकल्या. ज्यारे कुलरूप आकाशने प्रकाश करवामां सूर्य स-- मान राम पोतानी नजरेथी दूर गया एटले. तो शोकथी विह्वल श्रयेला दशरथ राजा मूळ पाम्या. राम पण पिताने विषे नक्ति धारण करता अने न-- रतने विषे प्रेम संपत्ति धारण करता कौशल्या माता पासे आवीने आ प्रमा-. ये कहेवा लाग्या. “हे मात ! पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करवाने माटे म्हारा पिता नरतने राज्य आपे बे; परंतु ज्यां सुधी हुँ अहि बुं त्यां सुधी ते राज्यनो स्वीकार करता नथी, माटे हुँ हवणां एकलोज वनमा जानें बुं. तमारे म्हारा संबंधी कांश ख धरवु नहि." पठी कौशल्या पण दीर्घकाल सुधी पुत्र विरद थतो जाणी तत्काल रुदन करता बता मूळ पाम्या. वली ते विलाप करवा लाग्या के, “ हे पुत्र! दवणां तुं मने दुःखना पात्ररूप वनावे जे तो पनी हु शोक्योने विषे दुःसह एवा परानवने शीरीते सहन करी सकीश.'' पठी जानकीपति श्री राम रुदन करती एवी माताने महाकष्टश्री शांत करी पोतानी प्रतिज्ञा पालवाने नत्साहवंत अया श्रका नगरनी बहार उद्यानने विषे आव्या. आ वखते पतिना प्रवासने जाणी सीता विचार करवा लागी के " हाय हाय ! म्हारा पूर्वे करेला कमने धिक्कार के. वली कुलवंत एवी सती स्त्रीयोने तो संपत्तिने विषे, विपत्तिने विषे, सुखने विषे अथवा कुखने विषे पतिनी पागल जवं एज वखागवा योग्य .” आम निश्चय करी जानकी कौशल्या पासे आवीने कहेवा लागी. “हे मात ! हुं नक्तिने लीधे पतिनी पाउल जश्श." प्रशंसा करवा योग्य गुगनी पंक्तिश्री आनंदित अयेला अने वियोगथी आकुलव्याकुल थता एवा कौशल्याए सीताने कह्यु. “केलना स्तंन्न समान अत्यंत कोमल देहवाली अने मनोहर नेत्रवाली हे पुत्री! तुं प्रवासयी नत्पन्न श्रयेला महाखने शीरीते सदन करी सकीश?" वीरपत्नी सी. Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७‍ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. ता क. " हे मात ! पोताना पतिनी सेवाथी तो मने वनवास पण अत्यंत सुखकारी थशे. " या प्रमाणे कहीने नित्य शीलरूप अलंकारने धारण कर नारी सीता निर्मल चित्तश्री रामनी पाउल गइ. त्यां कवि नत्प्रेक्षा करे बे के, जेम दातारनी पावल कीर्त्ति, धर्मी पुरुषनी पावल श्रद्धा अने वीर पुरुषंनी पावल जयश्री जती शोने बे तेम रामनी पाबल जती सीता शोभती इती. 66 सर्व स्त्रीने विषे मुकुट समान आ सीताने धन्य बे के, जे पतिनी नक्तिश्री राज्यने त्यजी दइ वनने विषे जाय बे." आम पुरनी स्त्रीयोनां मुखथी पगले पगले पोतानी प्रशंसा सांजलती ते शीलरूप आभूषणवाली सीता प्रेमपूर्वक पतिनी साथे चाली. दवे अहिं रामनीज साथे रात्री दिवस निवास करनारा श्रने प्रेमना ऊ रारूप लक्ष्मण पोताना मनमां विचार करवा लाग्या के, “ अहो ! कैकेयीनी कपट चातुरीने धिक्कार बे के, जेणे राज्यने योग्य एवा श्री रामने वनवास पाववाने अने पोताना पुत्र भरतने राज्य अपाववाने माटे राजा पासेश्री आवो वरदान माग्यो. हुं करामात्रमां जरतने राज्यश्री दूर करी श्री रामने राज्यासने स्थापुं, परंतु एम करवाथी पितानी आज्ञानो नंग शुं न श्राय ? अर्थात् श्राय. अरे ! जनकसुता सहित श्री रामना चरण तो वनमां पण पहोच्यां ने दवे जो हुं श्रहिं रहुं तो म्हारा बंधुपणाना प्रेमने धिक्कार वे ! धिकार वे ! !” आम विचार करी जाइना स्नेहथी याकुल थयेला लक्ष्मण, पोतानी माता सुमित्रानी, पिता दशरथनी अने कौशल्यानी आज्ञा लइ बालश्री पूर्ण एवा जाथा सहित पोताना अर्णवावर्त्त धनुष्यने हाथमां लइ गुफामांश्री निकलेला केसरीसिंहनी पेठे पोताना भुवनश्री निकली जेम संसारना पारने पामेला उत्तम मुनिने वैराग्यवंत पुरुष मले तेम बहु दूर गयेला रामने मल्या. या वखते जेम बिजली ने मेघथी मंदराचल पर्वत शोने तेम लक्ष्मण अने जानकीव श्री राम अत्यंत शोजवा लाग्या. या पाउल जानकी, राम श्रने लक्ष्मण विनानुं दारण राजानुं घर, नेत्र ने नासिका विनानां मुखनी पैठे देखावा लाग्ं. दशरथ भूपति पल राम, जानकी अने लक्ष्मणना वियोगथी पोताना घरने स्मशान तुख्य मानवा लाग्यो. पठी ते वेगवाला घोमा नपर कान ने मंत्री सामंतोने साथे लइ रामनी पाउल गयो. Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१७३ ) , त्या तेणे रामने “हे वत्स ! सीता अने लक्ष्मण सहित पाग वलो.” एम बहु आग्रहथी कह्यु; परंतु ते बन्ने नाश्योए पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करवामां उ! त्साहवंत यश् सध्चनथी समजावीने पिताने पाग वाल्या. ज्यारे वियोगयी गांमा सरखा श्रयेला दशरथ विगेरे माणसो पाग वल्या त्यारे सीता अने लक्ष्मण सहित राम आगल चालवा लाग्या. रस्ते ठेकाणे ठेकाणे अनेक राजान तेमनुं गौरव करता हता; परंतु प्रतिज्ञा पालवामां तत्पर एवा ते बन्ने नाश्यो को ठेकाणे रद्या नहि. . हवे अहिं दीक्षा लेवामां नत्साहवंत श्रयेला नत्तम बुध्विाला दशरथ राजाए नरतने राज्य अंगीकार माटे बहु समजाव्या; परंतु तेमणे तो रामना प्रवासना मूल कारणरूप पोताना आत्माने अने पोतानी माता कैकेयीने वारंवार निंदता उता कोश्पण नपाये राज्यपद अंगीकार करयु नहि एटले तो फरी तेमणे व्रतनी चाशी रामने पाग वालवा सेना सहित सर्व सामंतोने मोकल्या. सामंतोए नूपतिनी आज्ञायी तत्काल रामने मली तेमने पाग वालवा बहु विनंती करी, पण चारे दिशानने जोवामां नत्साहवंत अने प्रतिज्ञा पूर्ण करवामां तत्पर एवा श्री रामे ते सामंतोना आग्रहने कोश्पण रीते स्वीकास्यो नहि. सामंतो पण श्रीमान् रामचं पाग वलवायूँ कह्या उतां ते. मने पाग लश जवानी श्वापीको वात तेमणे कबुल करी नहि. - पनी ते सर्वे सामंतो सहितश्वीन नल्लंघन करता राम एक म्होटा घोर अरण्यमां आवी पहोच्या अने तेमां पर पोतानुं प्रयाण शरु राखवाथी तेन एक म्होटी गंजीर अने नदि तरी शकाय एवी विषम नदीना तीरे आव्या. त्यां तेमणे निवास करी सर्वे सामंतोने या प्रमाणे कडं के, “ हे सामंतो ! श्रा आगल रदेली नदी बहु विषम . वली हुं पण पितानी प्रतिज्ञा पूर्ण करवानी बाथी हवणां पाबो वलीश नहि; माटे तमारे पालुं जवू, एमां जरा पण विचार करवो नहि. तमारे पिताश्री दशरथ नूपतिने अने माता श्री को'शल्याने म्हारा प्रणाम कहेवा तथा राज्यपद धारण करी रहेला नरतने विषे , नक्तिवंत अq.” पनी राम ते सर्वे सामंतोने ते नदीने तीरे राखी लक्ष्मण अने सीता सहित पोते ए नदीने तत्काल नतस्या. सामंतो पण नदीने तीरे दूर रह्या बता नदीने उतरी सामे तीरे जर त्यांथी पागल चालवाने लीधे पोतानी Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७४) ____ ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. दृष्टिश्री अदृश्य श्रयेला रामने जो पाग वल्या. त्यांथी तेमणे विनीता नगरी प्रत्ये आवी दशरय नूपतिने प्रणाम करीने रामर्नु अरण्यमा प्रयाण, कुशल अने प्रणाम विगैरे कही संनलाव्यु. पठी दशरथ राजाए लरतने कडं. “हे व. त्स ! हवणां तुं राज्यने गृहण करी म्हारी वृक्ष्नी व्रतेचा पूर्ण कर.” रामनी नक्तिथी सर्व नगरवासी जनाने प्रसन्न करनार नरते पण का के, "हे तात! आप गमे तेम करशो तो पण हुं वमी काढेला अननी पेठे राज्यने तो नहिज लोगQ. वली हुं आपनी आज्ञाथी रामनी पाउल जर तेमने अति आदर पूर्वक अहिं तमारी पासे तेमी लावीश. आ वखते कैकेयीये आवीने दशरथने कहूं. " हे नाथ! आपे म्हारा पुत्रने राज्य आपवानी श्वाथी मने सत्य वचनवमे वरदान प्राप्यो ठे; परंतु रामनी नक्तिने विषे नावित मनवालो ते कुलीन म्हारो पुत्र अनुक्रमना लोपथी साम्राज्यपदने गृहण करतो नथी. वली हे दे. व! रामादिना प्रवासथी नत्पन्न थयेला दारुण पुःखने जो अपवादना जयथी मने अत्यंत खेद थाय , माटे हुं पण आपनी आझाथी म्हारा पुत्रनी सान त्यां जश् सीता अने लक्ष्मण सहित श्री रामने तत्काल पाग वालीश." पळी रामने पाग वालवा माटे कस्यो ठे नद्यम जेणे एवी कैकेयी पोताना पुत्र सहित दशरथनी आज्ञा लश्ने चाली अने वेगवाला धोमाना अखंक प्रयाणे करीने उ दिवसमां जे वनने विषे राम हता त्यांबावी पहोची. प्रौढ रथमां बेठेली पोतानी नरमान माताने तथा नत्तमनना सहित नरतने दूरथी आवता जो सीता अने लक्ष्मण सहित प्रसन्न, मुखवाला रामे तेमनी सामा जश् रथथी नतरेली कैकेयीने प्रणाम कस्वा. ते वखते हे राम! नत्तम लक्षणधारी हे लक्ष्मण ! दीर्घायु धान.” एम राम लक्ष्मणने आशिष आपती कैकेयी वारंवार राम अने लक्ष्मणना मस्तकने सुघवा लागी. पठी तेणे प्रणाम करती एवी जानकीने पण गाढ आलिंगन करीने मधुर वचनश्री आशिष आपी के, “दे पुत्री ! तुं वीरपुत्रने जन्म अापनारी था." लगत पग दीर्घकाल पर्यंत विरदयी नत्पन्न अयेला दुःखने जाणे दर्षना आंसुना ममूदना मीपणी खेंची काढतो दोयनी ! एम प्रेमपूर्वक रामने प्रणाम करवा लाग्यो. परी श्री रामे मृटम्म वस्त्रग्री नांखेला पवने करी धीमे धीमे जग्नने नया कैकयीने शांत कस्यां एटले ककेयीए रामने का. "लक्ष्मीना Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( ११५ ) मंदीररूप गुणोने शोभावनार ने सूर्यवंशरूप समुइने उल्लास पमानवाने चंडरूप हे राम ! लक्ष्मण ने सीता सहित तमे वनप्रत्ये व् बते राज्य देश विगेरे सर्व अत्यंत निस्तेज बनी गयुं बे. वली तमने राज्य आपवाने अवसरे मूढबुद्धिवाली ने हुइ चित्तवाली में तमारा पिता पासे जरतने राज्य आपवानो वरदान माग्यो, परंतु ते जरत तो पूज्य एवा तमारे विषे म्हो टी नक्किने धारण करतो बतो तेने आपवा मांगेलुं राज्य अंगीकार करतो नथी, माटे हवे या अरण्यथी पाठा फरी राज्यने अंगीकार करो. कारण तमा पिता संवेगने लीधे तत्काल दीक्षा लेवानी इच्छा करे बे. हुं वधारे शुं कहुँ, पा तमे पिताना नक्त ने विनीत बो, माटे राज्यने अंगीकार करी मने प्राप्त येलो अपवाद टालो. " जरत पण श्री रामना चरणने विषे पोतानुं मस्तक मूकी एमज कवा लाग्यो के, “हे बंधु ! तमारुं पूर्वना सरखं बंधुवात्सल्यपक्यां जतुं रघुंके, जेथी स्नेह रहित एवा यतिनी पेठे माता पिता अने नाइयो त्यजी यावा घोर वनमां निवास करवा श्राव्या बो ? हवे पाळा वली अमारा उपर दया करो. हे जाइ ! मातानी अने म्हारी प्रार्थनानो जंग न करो. कारण तमे सर्वं चित कार्य पूर्ण करवाने कल्पवृक्षरूप बो. " कैकेयीनां घने रतनां वां वचन सांजलीने पी रामे कह्युं. " हे मात ! हे बंधो ! तमे मने पाठा वालवाने पूर्ण याग्रह करो बो; परंतु पिताश्री दशरथ महाराजाए पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करवाने माटे तथा में पण पितृनक्तिने ली. राज्य तो भरतनेज अर्पण करयुं बे. वली दे बंधु ! हुं क्षत्रिय पुत्र थइ श्रा अंगीकार करेला वनवासने त्यजी दइ पिताना अने म्हारा नामने शी रीते लोपी दनं ! ! माटे जाइ भरत ! हवणां पिताने सिंहासने विराजीत यश प्रापज राजा था. दवणां तमारे पितानी आज्ञा नल्लंघन करवी जोड़ती नथी." आम कहने पी पतिनी प्रज्ञाथी सीताये आलेला निर्मल नदीना जलथी रामे था लक्ष्मणे दर्पपूर्वक भरतने त्यांज राज्याभिषेक करयो पछी विनयश्री कै) केयीने तथा जरतने संतोष पमामी रामे तेनने शीखामण प्रापी कौशल्या (नगरी प्रत्ये विदाय करया ने लक्ष्मण तथा सीता सहित पोते स्वस्थ चित्तवाला यश कौतुक जोवाने उत्साह धरता थका दक्षिण दिशाप्रत्ये चाल्या. दशर पता दिवसनी अंदर माता सहित पाठा आवेला भरत 笑 X Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स (१७६) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. पुत्रने महोत्सवपूर्वक पोताने पदे स्थापी अनेक सामंत अने पतियो सहित विधिपूर्वक श्री सत्यनूति गुरु पासे दीर्घकालथी इष्ट एवी चारित्र लक्ष्मीने अंगीकार करी. ॥ इति श्री पद्म चरित्रे भरत राज्याभिषेको नाम तृतीयः प्रस्तावः । पी श्री रामना प्रवासने लीधे अत्यंत मुख धरता एवा.जरत विन!! नगरीने विषे राज्य करवा लाग्या. राम पण लक्ष्मण अने सीतानी साथे .चि. त्रकुट नामना महा पर्वत नल्लंघी मनोहर वैनववाला अवंती नामना देशप्रत्ये आव्या. त्यां बहु श्रमने लीधे सीता एक वमवृकनी नीचे सूझ गया एटले चारे । तरफ दिशान्मा जोता एवा रामे पोताना न्हाना ना लक्ष्मणने कह्यु. “नाs! हवणां आ तरफनो देश नमती धूलश्री व्याप्त अयेलो देखाय ने ते शुं कांइ निमित्तश्री के ए देशज एवो ठे?" आम बन्ने नाश्यो वात करेले एवामांको नत्साह धरतो मुसाफर त्यां आवी चमयो. रामे तेने पेली नमती धूलन का-" रण पूठयु एटले तेणे कडं. " हे श्रेष्ट ! सांजलो. अहि अवंती नामे नगरी . त्यां सिंदना सरखो पराक्रमी सिंहोदर नामे राजा राज्य करे . ए सिंहोदर रोजाना मालव देशमा पुरदेश नामना नगरने विषे तेनो वजकर्ण नामे सामंत (खंमियो राजा) राज्य करे . एक दिवस ते वजकर्ण सामंत राजा मृगया रमवाने वनमां गयो हतो; त्यां तेणे कायोत्सर्गने विषे रदेला को ध्यान धरता मुनिने जोया; तेथी तेणे तेमने प्रणाम करी हर्षश्री पूज्यु के, “हे मुनि ! श्राप या अरण्यने विषे स्थिर वृक्षनी पेठे शा माटे नन्ना ठो ते कहो ? ” मुनिये कायोत्सर्ग पारीने कडं के, “हे ना ! हुं म्हारा पोताना हितने माटे अदि नन्नो रह्यो वु.” राजाए फरी प्रश्न कस्यो के, “तमारे अहिं कंश खावा पीवानुं तो ठे नदि तो पठी हित शानुं ?" पठी ते प्रीतिवईन मु.। निये राजाने योग्य जागी तेने वन्ने लोकने विपे हितकारी धर्म संन्नलाव्यो. राजाए पण धर्म सांजलवाथी प्रवोध पामी शाह सम्यक्त्व प्रर्वक श्री जिने-1 श्वरे प्ररूपेला श्रावक धर्मने अंगीकार करीने धारयु के, " म्हारे देव, दान मागन अने राजानने विषे फक्त अरिदंन देव अने शुरू कीयावान गुरु विना; वीजा कोड्ने पण वंदन करवू नदि." आवो अन्निग्रह लश् माननो समुड़ते' गजा पोनान घरे श्रावी फरी मनमा विचार करवा लाग्यो के, " म्हाराथी Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पन बलदेव चरित्र. (१७७) सिंहोदर नूपतिने प्रणाम कस्या शिवाय तेमनी सेवा शी रीते करी सकाशे? अने में कोइने प्रणाम नहि करवा संबंधी लीधेलो अनिग्रह केटलोक काल रहेशे?" आम विचार करता तत्काल नुत्पन्न श्रयेली बुध्थिी तेणे पोताना हाधनी वीटीमां श्री मुनिसुव्रत प्रनुनी मणिमय मूर्ति जमावी. पनी बहुगुगोजी सुशोनित एवो ते वजकर्ण अवसरे पोताना हाथनी वीटीमा रहेला प्रन्नुना प्रतिबिंबने प्रणाम करतो तो देशाधिपतिने प्रणाम देखामतो खुशी करे. आ प्रमाणे तेरो केटलाक समय चलाव्यु,परंतु आतेना कपटनी वात को चामियाए सिंहोदर नूपतिने कही दीधी. पनी सिंहोदर नूपति ते वात जाणी अत्यंत क्रोधातुर अयो उतो वज- कर्णने मारवा सङ थयो. तेना आवा उष्ट विचारने जाणी को राज पुरुषे ते वात वजकर्णने कही; तेथी तेणे ते पुरुषने पूज्यु के, “हे श्रेष्ट पुरुष ! तें ए गुप्त वात शी रीते जाणी?" तेणे कडं. “हे नूपति ! सांनलो. ... स्कंधदेशने विषे सराम नामनो नत्तम शेठ वसतो हतो. तेने यमुना 'नामे स्त्री इती. तेनने विधुदंग नामे हुं पुण्यवान पुत्र हतो. को वखते हुँ वेचवानी वस्तुनने लश् वेपार निमित्ने अवंती नगरी प्रत्ये जश्ने रह्यो अने कामलता नामनी वेश्यानी साथे अनुरागवंत पण अयो. एक दिवसे वश्य करी लीधेला मने ते वेश्याये आ प्रमाणे कडं. "सिंहोदर नूपतिनी राणी श्रीधराने जेवां बे कुंझलो तेवां मने करावी आपो.” में तेनां आ वचन कबुल कस्वां, परंतु म्हारी पासे धन न होवाने लीधे हुँ रात्रीने विषे श्रीधरा देवीनांज कुंमलो चोरी लेवा सिंहोदर नूपतिना मेहेलमां पेगे. ते वखते राजा पोतानी पट्टराणीनी साथे सूतो हतो, पण कंश विचारने लीधे निज्ञ पाम्यो नहोतो. पठी राणीये नूपतिने पूब्युं के, “हे नाथ ! आजे आपने निशकेम नथी आवती ?" राजाए कडं. "हे मानिनि ! हुं वजकर्णने मास्वा विना शी रीते निश लनं ? निश्चय काले हुं तेने सहकुटुंब मारीने पठी निशसुख 'कोकार करीश." सिंहोदर नूपतिनां आवां वचन सान्नली चोरीने त्यजी । तमने साधर्मिक जागी हुँ खबर आपवाने माटे अहिं आव्यो ढुं, माटे हे बंधु ! सिंहोदर नूपति अहिं आवे एटलामां तमे अहिंथी बीजे नासी जान." दूतनां एवां वचन सांजली वजकर्ण जेटलामां धनधान्यनो संग्रह करी स । २३ । Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७८ ) ऋषिमंगलवत्ति-पूर्वाई. ॐ श्रयो तेटलामां वीजे दिवसे सिंहोदर नूपति त्यां प्रावी पहोच्यो. तेले सीमामा नपर पफाव न्दाखी दूत मोकली वज्रकर्णने कहेवराव्यं के, " हे अधम! तें आटलो काल वींटीमां मूर्ति राखी कपट करीने मने बेतस्यो बे, पण.. हवां ते वींटीने त्यजी दइ मने प्रणाम कर नहितो बंधुन सहित व्हारो त त्काल नाश करीश. " सिंहोदर नूपतिये कहेलां दूतनां श्रावां वचन सांगली स्थीर चित्तवाला वज्रकर्णे तेज दूतनी साधे विशालेश्वरने विनंतीपूर्वक करे वराव्यं के, " हुं श्रहंकारने सीधे अथवा शौर्यने लीधे आपने प्रणाम करवामां विमुख यो नयी, परंतु श्री सर्वज्ञ विना बीजा कोइने प्रणाम न कर वाना निश्चयथी में एम करेल बे, माटे हे नूपति ! एक प्रणाम करवानी वातत्यजी दइ वीजी जे श्राज्ञा करशो ते हुं करवा तैयार हूं. या में धर्मारने माटेज गृहण करेलुं वे हवे आप म्हारुं सर्व लइ ब्यो अथवा मने बोमी यो. " दूते श्रावीने या सर्व वात सिंहोदर नूपतिने निवेदन करी एटले तो ते घी विगेरे पदार्थो नाखवाथी ज्वाजलीत श्रयेला अमिनी पेठे अत्यंत कोपाकुल थयो. पवी ते दहापुर नगरने घेरो घाली वज्रकना देशने पोताना सैन्यश्री लुंटवा मांमयो. · ( मुसाफर रामने कहे वे के) हे जाइ ! एज काराथी या देश नुकती धूलश्री भरपूर देखाय ठे वली ते वैरीयोए श्रीमंतोनां घरोने वाली नाखवा - नी साथे म्हारी धन रहितनी कुंपकी पण वाली नाखी ठे. पबी म्हारी स्त्रीये पोकार करतां मने घरमांश्री वासलो काढवा मोकल्यो, परंतु तेम करवाने हुँ विमुख इ चाली निकल्यो. हे श्रेष्ट ! म्हारा श्रा प्रवासनुं मने उत्तम फल मख्युं के, जे हवणां मने यापनुं दर्शन श्रयुं. " पी रामे ते मुसाफरने पो तानो मजिमित्र सोनानो कंदोरो थाप्यो. कर्तुं वे के - उत्तम पुरुषोनुं दर्शन करीने कल्याणकारीज होय ठे. पठी सीता अने लक्ष्मण सहित श्रीराम परोपकारने माटे दशपुर नगर प्रत्यं वज्रकर्ण राजा पासे जवा निकल्या. त्यां नगरनी बहार उद्यानमा रहे ला चैत्यने विषे श्री चंप्रभु जिनेश्वरने नमस्कार करी राम त्यांज रह्या चरमण तेमनी श्राज्ञा व भोजननी सामग्रीने माटे नगरमां गया. त्यां राजनदि रोकना लक्ष्मण वज्रकर्ण नृपतिना घरने विषे थावी पोच्या ए Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (११ए) टले तो नूपतिये पोते आवी तेमने अचुत आकृतीवंत जो लोजनने माटे आमंत्रण करयु. पी लक्ष्मणे ते वजकर्णने का के, “म्हारा अधिपति पोतानी प्रिया सहित कुधातुर थवाने लीधे नगरीनी वहार बेग ये." ते उपरथी राजाए लक्ष्मणनीज साधे नाना प्रकारना शाक सहित. घणां घीश्री बनावेलु नत्तम भोजन रामने माटे मोकल्यु. रामे पण लक्ष्मण अने जानकी सहित ते नत्तम रसवालांनोजनने जमीने पठी रामे लक्ष्मणने सिंहोदर राजा पासे मोकल्या. लक्ष्मणे सिंहोदर नूपतिनी पासे आवीले कडं के, “हे राजन् ! तमने कोशलानो अधिपति महाराजा नरत कहेवरावे ने के, तमारे वजकर्ण नृपतिनी साथे आरंन्नेलो विग्रह त्यजी देवो अने तेनी पासे तमारे प्रणाम पण न कराववो. कारण धर्मी पुरुषने पीमा करवी ते योग्य नश्री. वली ए वजकर्ण पोताना अन्निग्रहने लीधेज नथी नमतो, कारण जैनधर्मना जाण एवा ए राजाने विषे निश्चे गर्व तो नथीज.” पठी महा गर्वधारी एवा सिंहोदर राजाए कद्यु. “अहो ! पोताना देशनोज अधिपति एवो ए नरत कोण ? हुं म्हारा नुजबलने लीधे तेनी आझाने अंगीकार करतो नश्री. शुं शियालनी आझाने केसरी सिंह क्यारे पण कबुल करे खरो ? मने नहि नमन करता ते दूराशय वजकर्ण सामंतने हुं लरतनी आशाथी त्यजी देवानो नश्री." लक्ष्मणे पण गर्व सहित की. “अरे ! तुं पोताना वृथा नुज वलना गर्वथी नरत नूपतिने अत्यंत अपमान आपे ले ? तुं नरतनी आज्ञा लोपे , माटे हुंज तने प्राजे शिक्षा करीश. अरे नूप! जो हारामां पुरुषार्थ होय तो शस्त्र प्रहण कर.” लक्ष्मणनां आवां वचन सांजली अत्यंत कोपातुर श्रयेलो सिंहोदर राजा सङ भयो अने तेना विकट सुन्नटो पण जेटलामां लक्ष्मणने मारवा माटे तैयार थया तेटलामां लक्ष्मण पण हाश्रीना एक म्होटा आलान स्तंनने नखमी तेने हाथमां लइ बलवंत कोटि सुन्नटोना सैन्य सन्मुख आवीने न ना रह्या. पगे लक्ष्मणे ते चारे तरफ जमावेला आलानस्तंन्नथीत्रास पामेला “सर्वे विकट सुन्नटो नासी गया एटले तेमणे बलथी सिंहनी पेठे नग्लीने हाथी . नपर बेठेला सिंहोदर नूपतिने त्रास पमामी तेना धनुष्यवाण खेंची लश्ने पकमी लीधो, तेथी शत्रुनुं सर्व सैन्य नयनांत थ आश्चर्य पामी गयु. लक्ष्मणे पण नगरवासी जनो सहित रामचं पासे जश्ने अपूर्व वस्तु पेठे सिं Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. होदर जूपतिने नन्नो कस्यो. आ वखते आवंतीनो पति सिंहोदर आश्चर्ययुक्त भइ रामने नमस्कार करी हाथ जोमीने कहेवा लाग्यो के, “ में श्राः पने नलख्या नहोता, तेथीज लक्ष्मणनो अपराध कस्यो . वली ते अपराधश्री केवल अग्मिने विष पमता एवा पतंगनी पेठे हुं फोकट अपराधमां श्रावी पमयो ढुं. हे महाबल ! आ म्हारा सर्व अपराधने क्षमा करो अने हे विश्वपति ! हुं आपनो सेवक , माटे मने कार्य फरमावो.” श्री. रामे कां. " हे नूपति ! आ वजकर्ण राजा तमारी सेवा अथवा तमने न. मस्कार न करे तोपण तेना नपर तमारे मनमां प्रीति राखवी.” सिंहोदर नूपतिये का. “हे नाथ! जेनुं रक्षण करनार आप गे तेनी साथे कोण वृथा - ष करे ?" वजकर्ण महिपति पण रामनी आझाथी त्यां आव्यो, पठी राम अने लक्ष्मणे "तुं अमारो साधर्मीक " एम कहीने तेनो आदर कस्यो एटले सिंहोदर नूपति श्री रामने कहेवा लाग्यो के, “ युगादि जिनेश्वरना वंशरूप तलावने विषे राजहंस समान तमोने में पूर्वे गुणोथी सांजलेला हता ते तमोने में श्राजे प्रत्यक्ष रीते जोया ने. हुं अने बीजा सर्वे राजान तमारा सेवक उशए, माटे आप आ म्हारा राजाने बंधनधी मुक्त करो." पठी लक्ष्मण सिंहोदर नुपतिने कडं. “आ वजकर्ण सामंत तमने प्रणाम न करे तो पण तमारे तेना नपर लक्ष्मीनो नाश करनारो कोप करवो नहि." लक्ष्मणनां श्रा वचन सिंहोदर नूपतिये श्री रामनी पासेज अंगीकार कस्यां एटले लक्ष्मणे तेने बंधनश्री तत्काल मुक्त कस्यो. पठी विशालेश्वर निंदोदरे बजकर्ण नूपतिने प्रीतिपूर्वक नेटीने पोता- अर्धं राज्य आप्यु, कडं ठे के-सत्पुरुपोना प्रसादथी झुं प्राप्त अतुं नथी ? अर्थात् सर्व वांछित वस्तु प्राप्त थाय ठे. पठी वजकर्ण नूपतिये पोतानी पाठ पुत्रीयो अने सिंहोदर नपतिये मामंतो सहित पोतानी त्रगलें पुत्रीयो लक्ष्मणने आपी. लक्ष्मए पण गमनी आझादी ते सर्वे कन्यानी साये पाणीग्रहण करयु. पठी राम ने वन नुपतियोंने कह्यु के, "हे नूपालो ! म्हारुं वचन सान्नलो. हवणां पि तान। श्राडात्री अयोध्याने विषे नरत राज्य करे ठे अने अमो वनवास कबु ल करी अदि याच्या गए, माटे दवगां तमारी पुत्रीयो तमारे घेर राखो प्रमे ग्यारे . यलो त्यारे नमने साये ला ज[." श्राम समजावीने रार Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (११) तथा लक्ष्मणे ते बन्ने राजानने विदाय कस्या, तेथी तेन हर्ष पामता उता पोताने स्थानके गया. प्रताप अने कीर्तिने वृद्धि पमामनारा रामे पण त्यां ते रात्री रही बीजे दिवसे सीता अने लक्ष्मण सहित आगल प्रयाण करयु. अनुक्रमे तेन को महा अरण्यमां आवी पहोच्या. त्यां महा वर्षाद वरसवा लाग्यो; तेथी तेमणे एक वमवृतनी नीचे निवास कस्यो. पली रामे ते वमवृक्षने महा विस्तारवंत जोश्ने जानकी तथा लक्ष्मणने कह्यं के, “आपणे वर्षाकाल पुरो श्राय त्यां सुधी आ वमवृतनी नीचेज निवास करिशं." हवे ते वमवृक्षनो अधिष्टायक को अश्वकर्ण नामे यह हतो ते श्रीरामना तेजने न सहन करी शकवायी पोताना गोकर्ण नामना अधिपति पासे जश्ने कदेवा लाग्यो के, “हे नाय ! म्हारा वझवृदनी नीचे कोइ असह्य तेजवंत पुरुष आवेल . तेमनी दृष्टि आगल हुं कणमात्र पण रहेवाने समर्थ नथी. वली ते वर्षाकाल त्यांज रहेवाना , माटे हे विन्नु ! तमे म्हारं तेमनाथी रक्षण करो." पठी गोकर्ण अवधिज्ञानश्री तेमने वासुदेव तथा बलदेव जाणीने अश्वकर्ण यकने कहेवा लाग्यो के, “हे अश्वकर्ण! त्हारा नाग्यने लीधेज दशरथ राजाना पुत्रो ते महा बलवंत राम लक्ष्मण हारा श्राश्रमे अतिथीरूप श्रया . निश्चे तुं एमनी सेवा नक्ति कर.” पनी अश्वकर्णे" हुँ एमनी सेवा नक्ति करूं.” एम विचारी पोतानी देवशक्तिश्री नव योजन पहोली, बार योजन लांबी, सोनाना किल्लावाली अने सोनाना, रूपाना अने मणिना महेलवाली रामनामनी प्रख्यात पुरी वसावी दीधी. प्रनाते मांगलिक वाजींत्रोना शब्दोश्री राम लक्ष्मण जागी नव्या एटसे तो तेमणे गीत गानमां आसक्त थयेला तथा अति प्रेमवाला ते यहने दी. गे. पनी यह त्नक्तिपूर्वक राम लक्ष्मणने कह्यु. “ में आपने माटेज आ पुरी बनावी , माटे तेमां सुखेधी रहो." पठी यके निरंतर सेवा करेला सीता अने लक्ष्मण सहित राम त्यांज वर्षाकाल रह्या. यह हमेशां कल्पवृक्षनां पुष्प, दिव्यहार अने विविध प्रकारना फूलोश्री राम लक्ष्मणने नक्तिपूर्वक संतोष पमामवा लाग्यो. लक्ष्मण अने सिता सहित राम पण दुःखी, अनाथ अने दीन लोकोनो यदानथी नक्षर करता उता त्यांज रह्या. हवे ज्यारे वर्षाकाल निवृत्त अयो त्यारे आगल प्रयाण करवाने नत्साहवं. Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. त श्रयेला रामने ते यदे चं समान कांतिवालो हार आप्यो. लक्ष्मणने बे. दिव्य निर्मल कुंमल अने सीताने नाना प्रकारना मणिजमित्र चूमारत्न आप्युं. पठी रामे ते यदनी रजा लइ जेटलामा आगल प्रयाण करयुं तेटलामा यो ते पुरीने अंतर्ध्यान करी दीधी.अनुक्रमे अरण्यने विषे जता एवा रामे सीता अने लक्ष्मण सहित विजयपुरना नद्यानने विषे वमवृदनी नीचे निवास कस्यो. त्यां महिधर नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने चंपकमाला नामे सौन्नाग्यवती राणी हती. तेनने वनमाला नामनी पुत्री हती. महिधर नूपतिये पोतानीआ वनमाला पुत्रीनो संबंध प्रथम लक्ष्मणनी साथे कस्यो हतो. पण पाउलश्री तेणे दशरथ महाराजाए अंगीकार करेला चारित्रने तथा रामादिकना वनवासने सांजली ए संबंध गेमी दश्ने फरी महेशपुरना राजा वृषनना पुत्र । मदंपनी साथे कस्यो. या वात वनमालाए सांजली, तेथी तो ते लक्ष्मणने विषे अत्यंत प्रेम धारण करती उती दुःखरूप समुन्ने तरवाना हेतुथी पोताना नगरश्री चाली निकलीने तेज रात्रीने विषे दैवयोगथी ज्यां रामे निवास' कस्यो हतो ते वमवृदनी समीपे आवी पहोची. आ वखते सीता अने राम वने निशवश या हता अने लक्ष्मण जागता हता, तेथी तेमणे ते आवती. एवी स्त्रीने जो विचारयुं के, "शुं आ कोइ पुरनी अधिष्टायक देवी आवे ठे के कोई वनदेवता आवे ? ए शुं करशे ? ” एम धारी लक्ष्मण मौन राखी गप्तरीते नन्ना रहा. एवामां ते स्त्रीये “ हाय हाय ! म्हारा अन्नाग्यने लीधे । ज लक्ष्मण आ नवना पति न थया तो हवे पठी आवता जवने विषे तो एज म्हारा पति थजो.” एम कहीने पोताना गलाने विषे पाश नाख्यो. पठी "हे न! तुं आ प्रकारचें साहस न कर.” एम बोलता एवा लक्ष्मणे तत्काल त्यां जा पोताना खडुवती पाशने दी नाखीने का के, “ त्हारो अनीतृ पति लक्ष्मण हुं पोतेज आ रह्यो." पठी लक्ष्मणे तेने शांत करीने पोतानी पाने वेसारी अने ज्यारे म्होटा ना३ श्री राम जाग्या त्यारे तेमने सर्व वाते. निवेदन करी. वे बीजे दिवने पुत्रीने न देवी मदिधर जूपति सुन्नटो सहित तेनी दावन मोट निकली पमयो. अनुक्रमे फरतो फरतो ते वमवृक्षनी पासे प्राठगा ना त्या तेण पोतानी पुत्रीने राम लक्ष्मणनी पास बरेली जोश अत्यंत Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१७३) कोधातुर यश्ने कई के, “अरे ! सुन्नटो! पुत्रीनुं हरण करनार आ चोरोने तुरत मारो ! मारो!!” पी जेटलामा एक लाख योशन राम लक्ष्मणने मारवा माटे तैयार या तेटलामां लक्ष्मणे पोताना धनुष्यने चमावी तत्काव विश्वने पुरो देनारो टंकार शब्द कस्यो, धनुष्यना आवा नयंकर शब्दथी सर्वे शत्रु नाशी गया. महिधर नूपति पण पोते लक्ष्मणनी पासे आवी अने तेमने नलखीने हर्ष पामतो तो कहेवा लाग्यो. "हे कुमार लक्ष्मण! धनुष्य नपरथी बाणने नीचे उतारो. तमे म्हारी कन्याना अगण्य पुण्यने लीधेज आ वननां आवी चम्या गे." पी लक्ष्मणे धनुष्य उपरथी वाण नीचे नतारयु एटले प्रसन्न मुखवालो राजा महिधर रामनी पासे आवी हाथ जोमीने आ प्रमाणे विनंती करवा लाग्यो, “हे राम ! पूर्वे आ कन्या में लक्ष्मपने आपी हती अने अनुकुल दैवयोगने लीधे तेननो आजे मेलाप थयो ये." 'एम कहीने तेणे महोत्सव पूर्वक सीता अने लक्ष्मण सहित रामने पोताना पुरमा प्रवेश कराव्यो. . एक दिवस राम अने लक्ष्मण राजसन्नामां बेग हता एवामां को दूते प्रा. वीने महिधर नूपतिने कडं के," हे पृथिवीपाल? आप सान्नलो. नंद्यावर्त पुरना महाराजा अनंतविर्य पोतानी सहाय्यने माटे आपने बोलावे . कारण ए राजा दशरथना पुत्र नरत नामनाबीजा नूपतिनी साथेयुःकरवाने नत्साहवंत थया ने तेमांन्नरतनी तरफ घणांनूपतियो एकगथयारे,माटे अमारा राजाए आपने बलवान् जाणी तेमावेल .” दूते आ प्रमाणे कर्वा एटले लक्ष्मणे ते दूतने पूज्यु. "त्हारा राजाने नरतनी सारे युः करवानुं कारण शुं ?" तेणे नत्तर आयो के, “अमारो राजा नरतनी पासे पोतानी सेवा कराववानी चा करे ने अने गर्वधारी नरत तेनी आज्ञाने जरा पण मानता नथी. एज ए बन्ने बलवंत नूपतियोने युः करवानुं कारण ने.” परी राम लक्ष्मणना दाक्षिण्यपणाने लीघे महिधर नूपतिये दूतने कद्यु. “हे दूत ! दवणां तुं जा, हुं पण आयु वं." महिधर राजा पा प्रमाणे कही दूतने विदाय करीने पठी रामने कहेवा लाग्यो ते, “ नंद्यावर्तनो अधिपति अनंतवीर्य अमने वृथा युः करावे .” पठी गुप्त क्रोधथी व्याप्त श्रयेला रामे महिधरने कयुं के, “ हुँ सेनानी साथे जश् ए अनंतविर्यने मारीश, वली हे नराधिप ! तमे अहिंज रहो. हुं सैन्य सहित त्यां Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८४ ) ऋषिमंगलवत्ति-पूर्वाई. / · ज तेनो योग्य घाट घमीश. " पी सीता अने लक्ष्मण सहित राम महि धरना पुत्रनी साधे वहु सैन्य लइ नंद्यावर्त नगर तरफ चाल्या अने अनुक्रमे जे | लामां परिवार सहित ते नगरना उद्यानमां श्रावी पहोच्या तेटलामां ते नद्याननी अधिष्टायक देवीये तेमने कह्युं के, " हुं तमारा जाग्य गुणोथी अत्यंत प्र सन्न इवु, माटे तमारुं शुं प्रिय करूं ?” रामे कयुं. "हे देवी! कयो पुरुष बीजा माणसनी वृथा प्रार्थना करे ? सवारे स्त्रीयोथी जीतायलो या अनंतवीर्य मकरी करवा योग्यपणुं पामे एवी रीते आ अमारुं सर्व सैन्य स्त्रीरूप नावी आप " पठी वनाधिष्ठायक देवीये तेज प्रमाणे सर्व सैन्य स्त्रीरूप पनी नावी प्युं. राम अने लक्ष्मण पण तत्काल स्त्रीरूप थइ गया. ते स्त्रीरूप सैन्य राजद्वारे गयुं. त्यां मुख्य स्त्रीरूप रामे द्वारपालनी साथेराजाने कदेवरायुं के, " हवणां महिधर नूपतिये तमारी सहायने माटे मोकलावेलुं सैन्य हारने विषे ननुं वे " द्वारपाले ते वात राजाने जणावी एटले ते क्रोध करीने कां के, " जो महिधर भूपति पोते आव्यो नथी तो पती म्हारे तेना सैन्यनो पण खप नथी. ” एटलामां वीजा माणसे कां के, " अरे ? जो के ते पोते एकलो श्राव्यो नथी, पण तेथे स्त्री सैन्य मोकली आपी मकरी करी वे.” राजाए तेनां आवां वचनथी अत्यंत क्रोध करी सुनटोने श्राज्ञा करी के, "ए सर्वे स्त्रीयोने गले पकमीने नगर बहार काढी मूको." पबी जेटलामां सर्वे सामंतो एकता श्रइ ज्यां हारने विषे सर्व स्त्री सैन्य श्रव्यं हतुं त्यां श्राव्या ते टलामां तो पद्मना समान नेत्रवाला श्री रामे हाथीना एक आलान स्तंभने नखेमी पोतानुं भुजबल देखायुं, जेश्री ते सर्वे सामंतो नाशी गया. सामंतोना नासी जयश्री अत्यंत क्रोधातुर श्रयेलो अनंतविर्य म्यानश्री पोताना नम्र खरुने खेंची तत्काल स्त्रीसैन्य तरफ दोमचो; परंतु एटलामां तो महा भुज वलवंत लक्ष्म तत्काल नवली ने तेना तेज सहित खरुने वेदी नाख्यं पठी ते अनंतवीयेने वांधी arcaria जनोने अर्य सहित जोये ते लक्ष्मण पोतानी स्त्रीनी लीलाश्री- १ चाली निकल्या. ते वखते जानकीये दयाश्री लक्ष्मणने कहां के, “ एने मूकी यो ! मूकी यो !!" पवी लक्ष्मणे ते अनंतवीर्य राजा पासे सामी भरतनी आका मनावनेनेने मी दीघो. एवामां पुरदेवताये ते सर्वनां स्त्रीरूप हरण कली तो गमादि सर्वे पोतपोताना प्रकाशवंत मूलरूपने पाग्या. श्र Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१७५) नंतवीर्य राजा राम लक्ष्मणने नलखी तत्काल पोताना घेर तेमी जर दर्षपूर्वक नक्ति करवा लाग्यो, पनी ते “ हवे हुं बीजा कोश्नी सेवा नहि करूं." एम धारी जेटलामा पोताना पुत्र विजयरथने राज्यासने स्थापी पोते संयम ग्रहण करे ये तेटलामां श्री रामे तेने कडं के, “तुं म्हारा नाइ नरत समान , माटे सर्वदा राज्यश्रीने नोगव्य." रामे आम दीक्षा लेवानी ना कही तो पण ते अनंतवीर्ये तो चारित्र अंगीकार करयु. कर्वा डे के-धीर पुरुषो आदरेला पोताना कार्यथी क्यारे पण चलता नथी. पी राजा विजयरथे पोतानी व्हेन रतिमाला लक्ष्मणने आपी. कां के लाग्यवंत पुरुषाने सर्व संपतियो सन्मुखज आवी मले . - पठी राम पोताना परिवार सहित विजयपुर प्रत्ये आव्या अने विजयरथ पण त्नरतने नमन करवा माटे कोशलापुरी प्रत्ये गयो. त्यां रामनी सर्व वात सांनली अत्यंत प्रसन्न अयेला नरते तेनो सत्कार करीने पोतानी रतिमाला नामनी व्हेन ते विजयरथने आपी अने विजयरथे पण परस्पर स्नेहनी वृध्नेि माटे पोतानी व्हेन विजयसुंदरी नरतने आपी. आ वखते अनंतवीर्य मुनि विहार करता करता अयोध्यामां आव्या एटले नरते ते मुनिनी पासे जश् प्रपाम पूर्वक पोतानो अपराध खमाव्यो. परी नरत राजाए विजयरथने सन्मान आपी प्रीतिपूर्वक तेना नगरे जवा विदाय कस्यो. • हवे अहिं रामे पण महिधर नूपतिना विजयपुर नगरथी आगल जवा तैयारी करी. ते वखते लक्ष्मणे तेमनी साये जवा पोतानी वनमाला कन्या पासे रजा मागी एटले तेणे स्नेहश्री एम कर्दा के, “ जो तमे वियोगथी व्याकुल बनेली मने त्यजी दक्ष जवानी का करोगे तो पनी हे नाथ! मृत्यु पामवाने तैयार थ रहेली मने तमे शुं रक्षण करी शकशो? माटे हे वल्लन्न! आप प्रसन्न थइ मने साथे लइ जान." पठी लक्ष्मणे तेनी प्रसन्नताने माटे मधुर वचनथी कह्यु. “ हे प्रिया! नाश्नी सेवा करवामां नद्यमवंत श्रयेला मने तुं नक्तिमां विघ्न करनारी न था. कारण के, पतिनी साथे जनारी स्त्रीयो तो पुरुषने मार्गमां बेमीरूप धाय छे. हे न ! हुं म्होटा नाश्ने श्ष्टस्याने पहोचामीने पनी तने तेमवा माटे आवीश अने ते बावत हुं त्हारा कहेवा प्रमाणे सोगन खाउं दु. पठी लदमणे बालहत्या, स्त्रीहत्या अने ब्रह्महत्यादि २४ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८६ ) ऋपिमंगल त्ति-पूर्वार्ध. बहु सोगन खाधा. स्त्रीये पण लक्ष्मणने ते वखते रात्री भोजननो निषेध कराव्या. पी जानकी अने लक्ष्मण सहित पृथ्वीना ग्राभूषणरूप श्री राम त्यांथी चालीने कुशलपणे मांजलि नगरी प्रत्ये श्रावी पहोच्या. त्यां नद्यानने विषे लक्ष्मणे तेमने प्रीतिपूर्वक भोजन कराव्यं अने पक्षी पोते नगरी जोवानी इच्छायी रामनी आज्ञा लइ तत्काल पुरी प्रत्ये गया. त्यां नगरीमां तेमणे पट्टह वागतो सांजली तेनुं कारण कोइ माणसने पूछ एटले तेणे क के, " श्र नगरीनो शत्रुदमन नामे राजा बे. तेने कनकदेवी नामनी पहरा श्री नृत्पन्न थयेली जनपद्मा नामे पुत्री बे. ते पुत्रीना वरनी परीक्षा माटे भूपति या पट्टह वगमावे वे अने ते एम कहेवरावे बे के, जे कोइ म्हारा खरु प्रहारने सहन करशे, तेने हुं म्हारी पुत्री ग्रापीश. " लक्ष्मणे तेनां प्रावां वचन सांजली तत्काल पट्टहने स्पर्श कस्यो एटले राजपुरुषो, शत्रुरूप तृणने जस्म करवामां अग्निरूप लक्ष्मणने राजा पासे लइ गया. त्यां राजा तेमने सत्कार करीने पूग्युं के, " हे पुरुषरत्न ! तमे कोण बो? ". लक्ष्मणे नत्तर आप्यो के, " हुं भरत राजानो दूत बुं. अहिंथी आगल जतो हतो; परतुं पट्टहने वागतो सांजली में तेनो स्पर्श कस्यो बे. " राजाए कहुँ. “शुं तमे म्हारा खकु प्रहारने सदन करी सकशो ?” लक्ष्मणे कह्युं. “एक तो शुं, परंतु एकी साना पांच खकु प्रहार सहन करी सकवाने हुं समर्थ हुं." लक्ष्मणना आवा उत्तरश्री अत्यंत क्रोधातुर थयेला भूपतिये तत्काल पोताना अत्यंत जुजवली पांच खरु लक्ष्मण सामां फेंक्यां. लक्ष्मणे पण एकने दांतवती, वेने वगली ने वीजा वेने वे हाथश्री एम पांचे प्रहार कीली लीधां. कर्तुं बे के-धीर पुरुषोनुं धैर्य लोकने विषे जयवंतु होय वे. - पती जिनपद्माये प्रीतिश्री लक्ष्मणना कंठे वरमाला नाखी एटले नूपतिये तेमनी विवाहने माटे विनंती करी. लक्ष्मणे कां. " आ नगरीना नंयानने विषे प्रिया सहित म्हारा म्होटा बंधु श्री राम रहेला वे अने हुं हमे - शां तेमनी श्राज्ञामांज रहेलो कुं. " शत्रुदमन राजाए उत्तम एवा राम लक्ष्म गने श्रावेला जाली पोते उद्यानमां जइ तेमने पोताना नगरमां तेमी लाग्यो. पीले विवाह कराववामां नयमवंत थयेला ते राजाने कधुं. “दे नरेड ! हुँ क्यारे बनयी पात्रो फरीदा त्यारे तमारी पुत्रीनी साधे लग्न करीश.” Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चस्त्रिः (१७) पठी लक्ष्मण अने सीता सहित राम त्यांथी चाली निकल्या श्री लोकने विषे ने नल्लंघन करता करता बीजे दिवस सांजे वंशस्थलपुर प्रत्लाश्चर्य पामेला च्या. ते वखते त्यांनो राजा सर्व प्रजा सहित नगरनी बहार अने क्रूर दृष्टि रामे तेने नयनीत थयेलो जाणी कारण पूज्यु एटले तेणे कां के” सुगुप्त रुष श्रेष्ट ! सानलो. आ देशने विषे वंशतट नामे म्होटो पर्वत , तेना अति नयंकर शब्द थाय ने जेने आज त्रण दिवस थया . तेना जयश्री हरानगरवासी जनो रात्रीये बहार भावी प्रनाते पाग नगर प्रत्ये जाय ." राजानां आवां वचन सांजली प्रिया अने बंधु सहित राम ते पर्वत नपर गया. त्यां तेमणे नमतां नमतां को कायोत्सर्गे रहेला अने ध्यानमां लीन श्रयेला बे महामुनियोने जोश तत्काल नक्तिपूर्वक वंदना करी. परी राम गोकर्य देवताए आपेली विणाने वगामवा लाग्या, लक्ष्मण गायन करवा लाग्या अने सीता दिव्य हावनावश्री नृत्य करवा लाग्या. एवामां सूर्यास्त श्रवाने लीधे रात्री महा अंधकारमय श्रइ गइ एटले त्यां को अत्यंत नयकारी वैताल आव्यो अने मुखश्री विकट अट्टाटहासने करतो तो ते बन्ने साधुनने नपसर्ग करवा लाग्यो. पठी क्रोधातुर श्रयेला राम लक्ष्मण जेटलामां मुनिनी पासे सीताने मूकी अने हथीयार लश् तेनी साथे युद्ध करवा तैयार श्रया तेटलामा पेलो अधम वैताल पोताना मनमा तेमना बलने सहन करवा समर्थ न थवाथी नासी गयो. आ वखते बन्ने मुनियोने तत्काल कर्मकीण या जवाश्री विश्वने प्रकाश करनारुं केवलज्ञान प्रगट अयु. देवताए त्यां आवी तेमनो केवल महोत्सव कस्यो. पनी रामे ते बन्ने केवलीयोने नमस्कार करीने पूज्यु के, “पुष्ट कर्मने लीधे मलिन एवो आ वैताल कोण ले के, जे तमने घोर नपसर्ग करतो हतो?" मुख्य केवलिये कडं. “हे राम ! ए कुलनुषक नामनो महा मिथ्यादृष्टि ज्योतिष्क देव . ए अमने पूर्व जन्मना वैरथीज नपसर्ग करवा आवतो हतो, परंतु ते आजे तमारा तेजश्री परानव पामी (नासी गयो . वली अमारा प्रा नवना पिता के, जे श्रीगरुमेश नामना देवरूपे थया ले. ते पोताना आसन कंपथी अमारो नपसर्ग दूर करवाने अहिं आव्या ." श्रा वखते वैतालनी वात सांजलीने वंशस्थलपुरनो अधिपति पण परिवार सहित बन्ने केवलीयोने वंदन करवा त्यां आव्यो, सर्वक वा Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) --. ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. वहु सोगन "निये धर्मोपदेश आप्या पठी गरमेश देवे प्रीतिपूर्वक रामनेकराव्यो. पठी नहानाग ! तमे आ बन्ने मुनियोना नपसर्गने दूर करवाथी पो- . त्यांथी चालीवफल कस्यो ए बहु सारं करयुं वे अने एथी हुं प्रसन्न थयो ,. नने विषे इचित वरदान मागो.” रामे कडं. “हे देव ! हवणां म्हारे कांश : जोवान्न प्रयोजन नथी." देवताए रामना सत्वयी आश्चर्य पामीने फरीथी गे. "त्यारे हुँ तमारो अवसरे कांश नपकार करीश." आम कही ते देवता वन्ने मुनियोने नमस्कार करी तत्काल आकाश मार्गे श्रश् पोताने स्थाने गयो. पठी वंशस्थल नगरना अधिपति सुरप्रन नूपतिये लक्ष्मण सहित रामने आदरपूर्वक पोताना नगरमां तेमी जर तेमनो बहु सत्कार कस्यो. वली तेणे रामनी आझाश्री ते पर्वत नपर एक म्होटुं चैत्य बंधाव्यु. ते नपरथी ते पर्वत रामगिरि एवा नामथी प्रसिह अयो. त्यार पठी राम, लक्ष्मण अने सीता सुरमन्न राजानी रजा लश् स्थाने स्थाने पोतानी कीर्तिरूप स्तंनोने , स्थापन करता अने लोकोना कौतुकोने जोवाथी प्रसन्न यता बहु पृथ्वीनुं नलंघन करी दंमकारण्य प्रत्ये आवी पहोच्या. ॥इति पद्म बलदेव चरित्रेराम दंगकारण्यागमो नाम चतुर्थःप्रस्तावः॥ पठी दंमकारण्यने विषेमहागिरि नामना पर्वतनी गुफामां रामे पोताना घरनी पेठे निवास कस्यो. को वखते तेमना आश्रमे वे चारणमुनि वे मासना पारणे आकाश मार्गेयी आव्या. तेनने सीताये नावथी श६ अन्न वहोराव्यु. का ठे के-विवेकी माणसो संपत्तिमां अश्रवा आपत्तिमां विवेकीज रहे ठे. या वखते सुगंधी जल, पुष्प अने सुवर्णनी वृष्टि श्रइ तेमज देवतानए थाकाठाने विषे इंजनि वगामया. पठी रत्नजटी नामना को शंखदीपना अधिपति विद्याधर नूपतिये अने वे देवताए त्यां आवी रामने घोमान सहित एक ग्यनेट तरीके याप्यो, प्रा अवसरेकामनपर वेठेलो अने सुगंधवाला पागिना सरखा गंधने लीधे को गंध नामे पति मुनिना दर्शनश्री मूळ पामी नीचे पमयो. सीताये तने पाणीश्री अने पोतानां वस्त्रना पवनधी सचेत कस्यो ।। एटले ते महागेगवालो पलीत्नक्तिपूर्वक साधुनाचगणने विषेपमयो.मुनिनांचर- । गनाम्पर्शमात्रयी ते पति निगेगी, दिव्य अंगवालो, सुवर्णनासरखी पांखोवालो यने प्रवाल नुख्य राती चांचवालो अयो. जाणे दिव्य रन्नानो ढगलो होयनी? एवी Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. शोभावाला ते पक्षीनुं मुनियोए पोषण करयुं. ए उपरथी ते पक्षी लोकने विषे जटायु एवा नामथी प्रसिद्धि पाम्यो. पी पहिने जोवाथी श्राश्वर्य पामेला रामे ते मुनियोने थुंके, " हे मुनीश्वरो ! श्र महा रोगवालो ने क्रूर इष्टि पक्षि तमारा दर्शनथी नीरोगी यह अद्भूत रूपवंत शी रीते थयो ? " सुगुप्त नामना साधुए उत्तर प्राप्यो के, " हे महामति ! सांनलो. पूर्वे पृथ्वी पर कुंनकारकट नामनुं नगर हतुं. त्यां रुक नामनो राजा राज्य करतो हतो. कोइ वखते ते राजाना पुष्ट पुरोहिते बहु शिष्य सहित स्कंदक सूरिने घाणीसां पीली नाख्या. शिष्यो उत्तम पदने पाम्या अने स्कंदक मुनि कोपने लीधे अग्निकुमार देवताने विषे महा देदीप्यमान देवपणे उत्पन्न या. तेमले उत्पन्न थवा मात्रमांज क्रोधथी या देशने बाली नाख्यो. ते दिवसथी आरंभीने या अरण्यनुं महा जयंकर एवं दंमकारण्य नाम पa. दंक भूपति पण दीर्घकाल सुधी संसारने विषे नमी कंद बाकी रहेलां पोतानां कुष्ट कर्मने सीधे था नवमां अत्यंत रोगथी पीमाता शरीरवालो श्रा पक्षिराज यो. एणे श्रमारा दर्शनथी उत्पन्न श्रयंला जातिस्मरणने लीधेज अमारा पगनो स्पर्श करी श्रमषैौषधि लब्धिश्री निरोगीपणुं अंगीकार करयुं छे. " मुनिनां वां वचन सांजली प्रसन्न श्रयेला ते पहिये मुनिना चरणनो स्पर्श करी उत्तम धर्म सांगलवाथी शुद्ध सम्यक्त्व अंगीकार करयुं. वली तेणे वृद्धि पामती एवी श्रद्धाबमे ते बन्ने सुनियो पासे प्राणी हिंसादि पाप न करवानो नियम करो. मुनियोए कझुं. "हे राघव ! ए पक्षी हवणां साधार्मिकपणाने लीधे तमारी भक्ति करवाने योग्य उत्तम श्रावकपणुं पाम्यो बे." पी रामे " बहु सारु.” एम कहीने नमस्कार करेला ते बन्ने सुनियो तत्काल आकाश मार्गे चाल्या गया. कह्युं वे के-तेवा पुरुषोने प्रतिबंध होतो नथी. पी जटायु सहित रामादि ते त्रणे जगान देवे आपेला रथमां बेसी मरजी प्रमाणे फरवा लाग्या. ( १८५ ) दवे पाताल लंकामां खर नामनो राक्षस राजा राज्य करतो इतो. तेने चंदनखा नामनी स्त्री हती. तेने शंबूक अने सुंदर नामना अति बलवान् बे पुत्रो दता. अनुक्रमे शंबूक युवावस्था पामी महा बलवान् थयो. एक दिवस ते पिताए ना कह्या तां पण सूर्यहास नामना खऊनुं साधन करवा माटे दं Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) . ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. मकारण्यमां आव्यो.त्यां क्रौवरीवा नदीने कांठे वांसना नयंकर वनमा रहीने ते. एम कहेवा लाग्यो के, “जे अहिं आवशे ते मारे वध करवा योग्य .” पठी ते पवित्र अंगवालो अइ, ब्रह्मचर्यव्रत पाली, पूर्णमाने दिवसेज नोजन करतो वमवृदनी शाखाने विषे पग बांधी नीचे माथे सूर्यहासविद्यानुं साधन करवा लाग्यो. आ प्रमाणे वमवृक्षनी शाखा साथे बंधा एकाग्र चित्तथी विद्या साधन करता ते शंबूकने बार वर्ष अने चार दिवस पूरा प्रया एटले देवताए . ज्यां शंबूक तप करतो हतो ते महावंश वनना झार पासे म्यान सहित सूर्य- . हास नामर्नु खम् मूक्यु. एवामां दैवयोगथी फरता फरता लक्ष्मण त्यां प्रावी. चम्या अने तेमणे ते सूर्यकांति समान सूर्यहास खा जोयुं. पठी लक्ष्मणे कुतुहलने लीधे म्यानमांधी कल्पांतकालना सूर्य समान : अत्यंत दारुण ते खाने बहार खेंच्यु एटले तो ते तेना तेजयी विश्मय पामी गया. पठी तेमणे जेटलामांपोताना हाथवतीतेने कंपावीने पासे रहेली वंशजाल कापवा मांमी तेटलामां तो ते वंशजालनी साथे कोनुं मनोहर आकृतिवाटुं मायुं पोतानी पागल पमेद्धं दी. लक्ष्मण ते जोइ खेद पामता बहु विचार करवा लाग्या के, " निश्चे में हवणां अज्ञानने लीधे को माणसने मारी नाख्यो.” आम विचार करी दयाधारी ते जेटलामां वंशजालना युथमां पेग तेटलामां तो तेमणे वमवृक्षनी शाखाने विषे लटका रहेला अने कंपता एवा को पुरुषना धमने दी. ते जो अत्यंत खेद धरता लक्ष्मणे तत्काल त्यांथी वहार नीकली ते सर्व वात श्री रामने कही अने ते दिव्य खम् पण देखामयु. रामे कडं. " या सूर्यदास नामर्नु खम् अने तमे ते खाना साधक एवा को पुरुपने मारी नाख्यो ठे." हवे श्रा अवसरे शंबूकनी माता चंलखा “ आजे म्हारा पुत्रने खा विद्या सिह श्रो." एम धारी जेटलामां सर्व प्रकारनी पूजानो सामान लर त्या श्रावी तो ते वंशजालमा पोताना पुत्रने मृत्यु पामेलो जो अत्यंत दुःख घनी मर्ग पामी. पठी ज्यारे ते संझा पामी त्यारे विलाप करती रुदन कग्वा लागी के, " हे वन्स बूक ! तुं कया देरीथी यावी दशाने पाम्यो ? ते - कटत्री विद्यान माधन करयुं तेनुं तने शुं श्राज फल मयुं !!!" या प्रमाणे तेणे बट काल मुबी विलाप कस्यो. पठी ते " या म्दाग पुत्रने कोणे मारयो ?" Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र... एम विचारी शोकथी व्याप्त श्रश्ने नमवा लागी एटलामां ते चंझनखाये वज ध्वजादि लक्षण सहित लदमणनां पगला दीठां, " निश्चे आज म्हारा पुत्रने मारनारनां पगलांडे." एम धारी ते जेटलामां पगलां जोती जोती केटलेक दूर गश्तेटलामां तेणे वम वृकनी नीचे सीता अने लक्ष्मण सहित बेठेला अने वैरीरूप वनने बालवामां दावानल समान रामने जोया. पीते कोप सहित रामने जोवा लागी; परंतु कामश्री विह्वल बनी गइ. कां ले के-स्त्रीयोने सर्व अवस्थामा कामना विकारो स्फुरायमान थाय . पीते चंझनखा पोतानी विद्याबलथी नाजुक अने सुंदर प्राकृतिवावं रूप धारण करी रामनी पासे आवी. रामे तेने “हे न! तुं कोण ठे?" एम पूग्युं एटले तेणे उत्तर आप्यो के, “हुं अवंतीना राजानी पुत्री . रात्रिये मे . हेलमा सूति हती त्यांथी को विद्याधर म्हारूं हरण करी आकाश मार्गे जवा लाग्यो. एटलामां बीजो को विद्याधर दायमां खा ल तेने रोकीने कहेवा लाग्यो के, “अरे तुं चोरनी पेठे ए कन्यानुं हरण करीने क्यां जाय ?" आम कही ते युः करवा तैयार अयो. पळी म्हारु हरण करनार विद्याधर पण मने मूकी दश युः६ करवा लाग्यो, म ते बन्ने परस्पर बहु वखत सुधी युः करीने मृत्यु पाम्या. पली दैवयोगयी एकली रहेली हुं नमती नमती अहिं आवी चमी बुं. हे विन्नु ! आपना दर्शनथी मने घणो संतोष भयो , माटे मने अंगीकार करो. कारण नत्तम पुरुषो बीजाननी प्रार्थनानो नंग क्यारे पण करता नश्री.” पठी रामे “निश्चे आ को मायावी स्त्री मने बेतरवा आवी जे." एम धारी कडं के, “हे न? म्दारे स्त्री होवाथी हुँ त्हारा नपर निस्पृह वं, माटे तुं स्त्री रहित एवा म्हारा न्हाना नाश् पासे जा; ते त्हारी याचना स्वी. कारशे." पड़ी ते चंनखा लदमनी पासे जश्ने पूर्वनी पेठे कहेवा लागी. लक्ष्मणे कडं. "हे सुंदरी! तुं म्हारा म्होटा बंधुने अंगीकार कर अने तेमनी पासे जा. कारण तुं तेमनेज योग्य ते.” आ प्रमाणे बन्ने नाश्योए जनी प्रा. र्थना व्यर्थ करी एवी ते सुर्पनखा अत्यंत क्रोध धरती बती पोताना पति खरदानव पासे जर पुत्रना मृत्युरूप उखनां वचन कदेवा लागी. पठी अत्यंत कोधातुर श्रयेलो खरदैत्य चौद हजार विद्याधरोने साथे लइ रामलक्ष्मणने मारवा माटे आव्यो, लक्ष्मणे आवता एवा शत्रुना समूहने जो रामने का Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५५) ऋषिममलरत्ति-पूर्वार्ध. के, "हे बंधु ! तमे सीता सहित अहिंज रहो. हुं ए सर्व शत्रुनने जीतीश.”. कडं. “हे सहोदर ! तमारो विजय थान अने शत्रुना समूहने विषे सिंहनादकरो." पठी उईर एवा लक्ष्मणे पोताना धनुष्य बाण धारण करी तुरत सामा जश्ने शत्रुना सैन्यने रोकी दीधुं. चंइनखा पण पतिनी सहाय माटे आ सर्व वात लंकामां पोताना ना रावणने जणावीने कहेवा लागी के, "हे बंधु ? राम अने लक्ष्मण सीता सहित दंमकारण्यने विषे प्रावी, पोताना घरनी पेनिश्चितपणे रहेला. तेमां लक्ष्मणे तमारा नाणेज शंबूकने सूर्यदास खानुं साधन करतां मास्यो . आ वात सांजलीने तमारा बनेवी पोताना न्हाना पुत्र सहित म्होटी सेनाने साथे लइ महा बलवंतपणाने सीधे लक्ष्मणनी साथे यु करवा गया . वली दे ना ! बीजुं पण ए के, जे रूप जानकीन ले तेवू रूप वीजी को विद्याधरी के देवांगनानुं पण नथी. हे बधु ! त्दारी देदीप्यमान एवी विद्या अने दिव्य शस्त्रो विगेरेनो संग्रह त्यारेज सफल अवानो ठे के, ज्यारे तुं राम पासेथी सीताने ग्रहण करीश. बेवट एटलुंज कहुं हुं के, अनिरतक्षेत्रने विषेश्रतुल आकृतिवालुं स्त्री रत्न तो त्हारेज नोगववा योग्य वे. वीजा कोइने जरा पण नथी.” व्हेननां आवां वचन सांजली दशमुखवालो रावण सीता नपर अनुराग अने राम लक्ष्मण नपर क्रोध धारण करतो तो एकी वखते दीवानी पेठे प्रकाश अने श्यामपणुं बन्ने पाम्यो. पठी रावण पुष्पक नामना वैमानमा वेसीने वोटयो के, "हे विमानें! ज्यां राम त्यां जा." पठी वैमान आकाश मार्गथी समुनु नखंघन करी ज्यां दंगकारण्यने विपे राम हता त्यां कणमात्रमा प्राव्यु. त्यां रावण सीता सहित रामने जोइ अत्यंत कंपवा लाग्यो. कडं ले के-पापी पुरुषोने सामर्थ्य उतां पण सर्व स्थानके नयज थाय रे. पठी रावणे रामथी बहु दूर रही अतुस शक्ति प्रापनारी अवलोकिनी विद्यानुं स्मरण करयु. स्मरण करवा मात्रमांज नत्पन्न ययेली विद्याये रावराने कां के, “दे राक्षसनपति ! म्हारा योग्य जे कार्य होय ते कदे." रावणे कडं. “ हवणां सीताना हरणने विषे म्हा सानिध्य कर के, जेबी हुं महा बलवंत श्रावं." विद्याये कां.” देन- . पाल ! मानल. रामनी पासे रदेली जानकीनुंदरण करवा कोइ देव के दानव ममत्र नत्री. परंतु जो गम, मीनाने मूकी बीजे जाय तोतुं तेणीनुं तत्काल हरण Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १९०३ ) , करजे. वली तेनो नपाय कहुं ते पण सांगल. ज्यारे लक्ष्मण शत्रुनी साथे युद्ध ( करवा गया बे त्यारे रामे तेमने कह्युं बे के, ज्यारे तमने शत्रु तरफथी संकट थाय त्यारे तमारे सिंहनाद करवो के, जेथी करीने हुं पण त्यां युद्ध करवाने प्रावी पहोचुं. " रावणे पोतानी विद्यादेवीनां मुखयी आवां वचन सांगली दूर जइ मायाना वशश्री तत्काल त्रासकारी सिंहनाद करो. राम ते सिंहनादने सांगली पोताना मनमां विचार करवा लाग्या के, “ अहो ! पूर्वे क्यारे पण पराजव नहि पामेला एवा लक्ष्मणनो शत्रुनंए शुं जंग कस्यो ? " राम आ प्रमाणे विघ्नना संकेतकारी सिंह शब्द सांजली विचार करता हता एवामां दियरने विषे दित नारा सीताये रामने कह्युं के, " हे प्राणनाथ ! सिंहनादने सांभळ्या बता पण केम विलंब करो हो ? निश्वे ए घोर शब्द लक्ष्मणेज को देखाय बे, माटे शत्रुथी घेराइ गयेला न्हाना बंधुनुं रक्षण करो! रक्षण करो !! " श्रा प्रमाणे सीताये करूं एटले प्रेमना ऊरारूप रामे पोतानुं वज्रावर्त धनुष्य लइ सीताने त्यां एकलां मूकी पक्षीनए ना कह्या बतां पण चाली निकल्या. पी ते श्रवसरे रावण, धणी रहित रत्नमाला समान सीतानुं हरण क रवा माटे तत्काल त्यां श्राव्यो अने तेथे " हे प्राणनाथ ! हे पद्म ! हे सौमित्रे ! हे महानट ! हे पिता जनक ! हे बंधु नामंगल ! तमे सौ आपत्तिरूप समुने विषे पती एवी मने या अधम राक्षसश्री रक्षण करो. " आम रुदन करती एवी सीताने वैमानमां बेसारी. सीतानुं आवुं दुःखदाइ रुदन सांजली रामने विषे अनुरक्त एवो जटायुपक्षी त्यां आवी पहोच्यो अनेकदेवा लाग्यो के, "हे देवी! जय पामशो नहि. " पछी तेथे पासे रहेला रावणने कह्युं. “ अरे ! राक्षसाधम ! जो रहे. तुं सीतानुं हरण करीने क्यां जाय ?” आम तिरस्कार करता जटायुए पोतानी चांच ने पंजावती रावणनी विषे बहु प्रहार करुया. पबी क्रोध पामेला रावणे खरुवती तेनी बन्ने 'पांखो घासनी पेठे कापी नाखी, जेथी ते पक्षीराज पृथ्वी उपर पयो. ; दवे निर्भय अने निर्दय एवो रावण पोतानी इच्छा पूर्ण थइ, एम मानतो युनो रुदन करती एवी सीताने लइ लंका तरफ चाल्यो. एवामां राम विक्ष्म बोलावारूप सीताना रुदनने दूरथी सांगली श्रने समुह उपर पुष्प Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९४) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई.. वैमानमांवेसी जता एवा रावणने जो रत्नदीपनो अधिपति रत्नजटी विद्याधर तत्काल पोताना चित्तने विषे विचार करवा लाग्यो के, “निश्चे पोतानी विद्याश्री राम लक्ष्मणने मोह पमामी अने सीतार्नु हरण करी आ रावण कामी पुरुषनी पेठे नासी जाय . पूर्वे नामंगले म्हारा नपर बहु नपकारो करेला , माटे हवे आ वखते सीताने वाली हुं तेमना झणयी मुक्त थालं.” आ प्रमाणे विचार करीने तेरो रावराने उर्जय मानता उता केवल पोताना सत्वना आश्रयश्री तत्काल म्यानमांथी खम् काढी अने पुष्पक वैमाननी नत्कट गतिने रोकीने कडं के, "अरे दशानन ! मने जीत्या विना सीतार्नु हरण करीने तुं क्यां जाय ? पनी रावणे हास्य पूर्वक तेना सामु जोता उतां “ओम कालज्वर प्राणोनुं हरण करे तेम" तेनी सर्व विद्यार्नु हरण करी ली, एटले विद्याघ्रष्ट थयेलो ते रत्नजटी रणसंग्रामथी पागे फस्यो, कडं ठे के-कयो मागस पोतानी मेले कालना मुखने विषे प्रवेश करे ? अर्थात को न करे. पठी प्रसन्न मुखवालो रावण, रस्तामां सीताने शांत करवा माटे आ प्रमाणे सुकुमाल वचन कहेवा लाग्यो. "म्हारा मनरूप आम्रवदनी कोयल ! कमल समान मुखवाली हे सीता! तुं मने तत्काल प्रियकारी एवं आलिंगन आप. हे सुंदरी ! तुं म्हारी सर्व स्त्रीयोने विषे उत्तमरूपरेखा पामेली ने, जेथी म्हारा मुकुटो त्हारा चरणनी सेवा करवानी चा करे .” कामदेवथी पीमा पामे लो रावण या प्रमाणे कहेतो तो सीताना चरण कमलने विषे पम्यो. धि. ठे ! धिक्कार ठे!! कामातुर माणसने !!! परी अन्य पुरुषना स्पर्शथी नुत्पन्न श्रयेला जयवाली सीताये धीरज राखी रावणने कां. "अरे दुराचार ! कुशील! कुलिनोमां पापरुप! निर्दय ! तुं मृत्युरूप विपतिना कगेर नपदासने विषे प्राप्त श्रयेलो ते." एम कहीने तेणे एवो अन्निग्रह लीधो के, " म्हारे पति अने दि. पर ए यत्रेनी सुखवार्ता सांतल्या पठी नोजन कर.” रावणना प्रांद शा. क्तिवाला सोरणादिक मदा प्रधानो पोताना स्वामीना पराक्रमश्री संतोष पामी लंकामांयी तैना सन्मुख श्राववा लाग्या. पठी माननो पर्वत एवो रावणलंकाश्री प्र विद्यामां देना देवग्माण उद्यानने विये सीता सदित नतस्यो. त्यां विजा "कलीनी नमीपे जानकीने मृकी अनेक जागता बलवंत मुन्नटोने रकरण Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१५) रचानी आज्ञा करी सीतानी प्राप्तिश्री नत्पन्न श्रयेला कठोर गर्वनो समुरूप ते रावण संपतिना स्थानरूप पोताना मेहेल प्रत्ये आव्यो. ..; हवे बाणथी पूर्ण एवा नावाने तथा धनुष्यने धारण करी राम यु कस्वाने माटे लक्ष्मणनी पासे गया. रामने अकस्मात् आवेला जो लदमणे कj. " हे ना! तमे सोताने एकलां मूकी अहिं केम आव्या ? " रामे कयुं. “उर्वार एवा शत्रुथी विमंबित एवा सिंहनादने सांजली तमने क्रोधाकुल श्रयेला जाणी हुं अहिं आव्यो बु.” लदमणे कडं. “ में सिंहनाद कस्यो नश्री, परंतु ते वैरीयोएज माया करीने तेवो शब्द कस्यो देखाय , माटे हे ना! तमे झट सीतानी पासे जान अने हुं पण आ शत्रुनना समूहने जीती तमारी पागल आq बु.” आम कही लक्ष्मणे पाग वालेला राम फरी पोताने आश्रमे आव्या, पण त्यां सीताने नहि देखीने बहु आकुल व्याकुल अ घाढ मूळ पाम्या. पठी ज्यारे वनना शीतल पवनथी ते सचेत थया त्यारे शोक करता विलाप करवा लाग्या के, “ हे प्रिया ! तुं अमने वियोगीने त्यजी दर क्या जती रही ? अथवा शुं वनवासना उखणी हारुं कोइए हरण करयु ? अरे नाशवंत प्राणो! तमे पण जानकीनी साथे चाल्या जान." आ प्रमाणे विलाप करीने पठी धैर्यवंत श्रयेला राम, सीताने शोधवा माटे त्यांथी नठी वनमां नमवा लाग्या. एवामां शत्रुरूप रावणे कापी नाखेली बन्ने पांखोने लीधे अत्यंत पीमा पामता जटायु पक्षीने जोश ते पोताना मनमा विचार करवा लाग्या के, “निश्चे सीतार्नु हरण करता एवा कोई पापी युरात्माए पोताने विघ्न करता एवा आ पहीनी पांखो बेदी नाखी ." पठी सीताना विरहथी पीमा पामेला रामे ते साधर्मिक एवा जटायुने पापनो नाश करनार पंच नवकार संन्नलाव्यो. जटायु पण ते नवकारने विषे लागेला पो. ताना चित्तथी पापने धोइ नाखी आर्तध्यानने त्यजी दक्ष महेंदेव लोकने विषे श्रेष्ट देवपणे नत्पन्न भयो. पी जेम विवेकी माणस नत्तमकलानो शोध फरे तेम राम दमकारण्यने विष सीताने शोधवा लाग्या. - हवे अहिं रणसंग्राममां पण जेम युथवाला बलवंत हाथीयोनी साथ युः करवा सिंह नन्नो थाय तेम सैन्य सहित आवेला खरदानवनी साये लंक्ष्मण युश् करवा उन्ना श्रया. ते 'वखते खरनो न्हानो नाश त्रिशिरा नामे Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१ए६) ऋषिमंमलदत्ति-पूर्वाई. दैत्य पोताना ना खरने पाठो वाली पोते लक्ष्मणनी साये युद्ध करवा पाव्यो.. लक्ष्मणे युद करतां ते त्रिशिराने कणमात्रमा खमुवमे मारी नाख्यो, एवामा विराध नामनो को राजपुत्र सैन्य सहित त्यां आवी लक्ष्मणने नमस्कार करीने कहेवा लाग्यो के, "आप मने अंगीकार करो. हुं तमारी आज्ञानो व. शवर्ती भइ तमारेज पदे रहीश. आ खरदानव, रावणनी सहायथी पाताल. लंकाना अधिपति म्हारा पिता चंशेदरने काढी मूकी पोते त्यां रहे . तमे एकला गे उतां शत्रुनो नाश करवामां सिंहसमान गे. तो पण हे प्रसन्न मुखवाला! शत्रुने जीती लेवानी मने आज्ञा आपो." लदमणे कडं "दे राजपुत्र! शत्रुना वधने विषे म्हारे त्हारी सहायथी सरयु. कारण हायपगवालाने वीजा. नी सहाय लेवी ए लड़ा पामवा जेवू दे. जो पोताना सेवकने विषे स्नेहवाला रामने तुं पोताना स्वामी मानतो इश्श तो म्हारे तने पाताल संकाना राज्यने विषे स्थापवो." पठी पुत्रना वधथी अत्यंत क्रोधातुर थयेलो तेमज कगेर चित्तवालो खर दानव विरोधने सहाय प्रापवानां वचन कहेता एवा खक्ष्मणनी पासे आवीने कहेवा लाग्यो के, "अरे लक्ष्मण ! विद्यानुं साधन करता एवा पुत्र शंबूकने हणी म्हारो अपराधी अतुं शं जीवतो जश्श ?" लक्ष्मणे कां. “हे राजन् ! में त्हारा पुत्रने विद्यानुं साधन करता मारेलो होवाश्री म्हारुं पुरुषार्थ प्रगट प्रयु नश्री; परंतु विकट वैरी एवा तने पण ते. नी पाठलं विदाय करी हुँ म्हारा पुरुषार्थने तत्काल प्रगट करीश." सदमणनां आवां वचनयी अत्यंत क्रोघातुर श्रयेलो अने युझना मर्मने जागनारो ते खर दैत्य सऊ अश् आकाशमां मेघनी पेठे तिदश वाणोनो वरसाद वरसाववा लाग्यो. पठी लक्ष्मण पण नग्र एवा वाणोथी तुरत शत्रु तरफथी आवता संख्याबंध वाणोना वरसादने बंध करवा माटे आकाशने विये सुर्यमंझलने ढांकी देनारा शरमंझपने वनावीदीधो. या प्रमाणे अनेक विधाधरोनी समद दीर्घकाल सुवी तेने युड़ करावी लदमणे पोताना तिक्ष्ण शस्त्रथी ते खर दानवर्नु मस्तक वेदी नाख्यु. ठेवटे सुन्नटोमा मुकुटरूप लक्ष्मणे नग्रसना सहित दयण नामना दैत्यने पण मारी तत्काल देव अने दानवोने विषे विजय लक्ष्मी प्राप्त करी. ॥ इति श्री पद्मचरित्रे खरषण विनाशो नाम पंचमः प्रस्तावः॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १०१ ) ए प्रमाणे शत्रुने कय करवाश्री वृद्धि पाम्युं बे बल जेमनुं एवा महा तेजवंत लक्ष्मण सेनावंत एवा विराध सहित जेटलामां राम तरफ जवा ला-' या तेलामां मार्गने विषे तेमनुं वामनेत्र फरकवा लाग्युं; तेथी ते सीता अने रामनुं अकुशल मानता खेद करवा लाग्या. पनी त्यां श्राश्रमे आवीने जोयुं तो तेमले वनमां वृकोनी घटामां सीताना वियोगथी शून्य चित्तवाला रामने जोया. त्यां राम सीताना वियोगथी वारंवार विलाप करता हता के, " हे वनदेवीयो ! तमे ऊट प्रसन्न यइ मने सीतानी वात कढो. हे पक्षीयो ! तमे परा दूर विहार करवा जान बो, माटे जो म्हारी हरण थयेली प्रियाने कोइ स्थानके दीवी दोय तो मने कहो. " वली सीताना वियोगथी अत्यंत पीमित थयेला राम दीर्घकाल पर्यंत निश्वास नाखीने वारंवार कदेता हता के, “ अरे निर्ल प्राणो ! तमे तुरत केम चाल्या जता नथी ? मने एक तरफथी सीताना वियोगरूप सिंताप करे छे अने बीजी तरफथी वैरीयोना संकटथी मुक्त यता लक्ष्मण दजु सुधी श्राव्या नदि ए पीमा करे बे. मने जेमने लीधे गृदवासी वनवास सुखकारी हतो; ते जानकी ने बंधु लक्ष्मण बन्ने जया प्रजेन दर्शनवाला थइ परचा बे. " श्रम राम विलाप करता हता एवामां “हे बंधो ! हुं आ रह्यो तमारी आगलज. तमारी आवी अवस्था केम थइ ? " एम कहीने प्रांसुश्री व्याप्त नेत्रवाला लक्ष्मणे रामने नमस्कार करो. पी दुःखरूप महा समुमां प्राप्त श्रयेला सुखरूप बेटने पामी रामे लदमलने क. "दे वत्स लक्ष्मण ! तमे शत्रुनने जीती सुखथी श्राव्या बोकनी ?” पी जानकीना वियोगने जागता एवा लक्ष्मणे रामनें कह्युं. “ हुं धारुं हुं के, जेणे सिंहनो शब्द कस्यो हतो तेथेज सीतानुं हरण करधुं बे; परंतु ते दर करनार विद्याधर, माणस, राक्षस, सुर के असुर गमे ते हो, परंतु हुं तेनुं मस्तक आम्दारा खरुवती बेदी नाखीश. " पती विराधनां वचनश्री सीताने शोधवा माटे अनेक विद्याधरो चारे दिशामां दोघा. तेनुए सर्व स्थानके सीतानी बहु शोध करी; परंतु कोइ ठेकालेश्री जनकपुत्री मल्यां नदिः 'तेथी तेन जन चित्तवाला थर पाठा श्राव्या. लक्ष्मणे रामने क. "दे नाइ ! में एवी प्रतिज्ञा लीधी बे के, "या विराधने पाताललंकाना राज्यने विषे स्था-पवो.” विराधे पण ते बन्ने जानने क. " हे मनो ! प्राप त्यां आवी मने ' Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. दैत्य पोताना ना खरने पाठो वाली पोते लक्ष्मणनी साये युः करवा आव्यो. लक्ष्मणे युद्ध करतां ते त्रिशिराने क्षणमात्रमा खावमे मारी नाख्यो, एवामां विराध नामनो को राजपुत्र सैन्य सहित त्यां प्रावी लक्ष्मणने नमस्कार करीने कहेवा लाग्यो के, “आप मने अंगीकार करो. हुं तमारी आज्ञानो व. शवर्ती थइ तमारेज पदे रहीश. आ खरदानव, रावनी सहायश्री पातालसंकाना अधिपति म्हारा पिता चंशेदरने काढी मूकी पोते त्यां रहे . तमे एकला गे उतां शत्रुनो नाश करवामां सिंहसमान गे. तो पण हे प्रसन्न मुखवा. ला! शत्रुने जीती लेवानी मने आज्ञा आपो." लक्ष्मण का “हे राजपुत्र! शत्रुना वधने विषे म्हारे त्हारी सहायश्री सरयुं. कारण हायपगवालाने वीजानी सहाय लेवी ए लड़ा पामवा जेवू ठे. जो पोताना सेवकने विषे स्नेहवाला रामने तुं पोताना स्वामी मानतो हश्श तो म्हारे तने पाताल लंकाना रा. ज्यने विषे स्थापवो.” पठी पुत्रना वधथी अत्यंत क्रोधातुर श्रयेलो तेमज कगेर चित्तवालो खर दानव विरोधने सहाय आपवानां वचन कहेता एवा ल. दमनी पासे आवीने कहेवा लाग्यो के, " अरे लक्ष्मण ! विद्यानुं साधन करता एवा पुत्र शंबूकने हणी म्हारो अपराधी यश तुं शं जीवतो जश्श ?" लक्ष्मणे कां. “हे राजन् ! में हारा पुत्रने विद्यानुं साधन करता मारेलो होवाश्री म्हारं पुरुषार्थ प्रगट अयु नश्री; परंतु विकट वैरी एवा तने पण तेनी पागल विदाय करी हुं म्हारा पुरुषार्थने तत्काल प्रगट करीश." सदमणनां आवां वचनश्री अत्यंत क्रोधातुर अयेलो अने युझना मर्मने जागनारो ते खर दैत्य सऊ श्रश् आकाशमां मेघनी पेठे तिक्ष्ण वाणोनो वरसाद वरसाव: वा लाग्यो. पठी लक्ष्मण पग नग्र एवा वाणोश्री तुरत शत्रु तरफथी आवता संख्यावंध वाशोना वरसादने बंध करवा माटे आकाशने विषे सुर्यमंमलने ढांकी देनारा शरमंझपने वनावी दीधो. या प्रमाणे अनेक विधाधरोनी समक्ष दीर्घकाल सुधी तेने युःइ करावी लदमणे पोताना तिक्ष्ण शस्त्रथी ते खर दानवर्नु मस्तक वेदी नाल्यु. ठेवटे सुन्नटोमां मुकुटरूप लक्ष्मणे नग्रसेना सहित दूपण नामना दैत्यने पण मारी तत्काल देव अने दानवोने विषे विजय लक्ष्मी प्राप्त करी. ॥इति श्री पद्मचरित्रे खरषण विनाशो नाम पंचमः प्रस्तावः॥ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१७) .. ए प्रमाणे शत्रुनने कय करवाश्री वृद्धि पाम्युं ने बल जेमनुं एवा महा तेजवंत लक्ष्मण सेनावंत एवा विराध सहित जेटलामां राम तरफ जवा ला: म्या तेटलामां मार्गने विषे तेमनुं वामनेत्र फरकवा लाग्युं; तेथी ते सीता अने रामर्नु अकुशल मानता खेद करवा लाग्या. परी त्यां आश्रमे आवीने जोयु तो तेमणे वनमा वृक्षोनी घटामां सीताना वियोगटी शून्य चित्तवाला रामने जोया. त्यां राम सीताना वियोगथी वारंवार विलाप करता इता के, “हे व. नदेवीयो ! तमे झट प्रसन्न थइ मने सीतानी वात कहो. हे पदीयो ! तमे पण दूर विहार करवा जान गे, माटे जो म्हारी हरण अयेली प्रियाने कोइ स्थानके दीठी होय तो मने कहो.” वली सीताना वियोगथी अत्यंत पीमित थयेला राम दीर्घकाल पर्यंत निश्वास नाखीने वारंवार कहेता हता के, "अरे निखऊ प्राणो! तमे तुरत केम चाल्या जता नथी ? मने एक तरफथी सीताना | वियोगरूप अग्नि संताप करे अने बीजी तरफथी वैरीयोना संकटथी मुक्त 'अयेला लक्ष्मण दजु सुधी आव्या नहि ए पीमा करे . मने जेमने लीधे गृ. हवासयी आ वनवास सुखकारी हतो; ते जानकी अने बंधु लक्ष्मण बन्ने जणा प्राजे उर्जन दर्शनवाला अ पमया ." श्राम राम विलाप करता हता एवामां "हे बंधो ! हुं आ रह्यो तमारी आगलज. तमारी आवी अवस्था केम थ? " एम कहीने आंसुथी व्याप्त नेत्रवाला लक्ष्मणे रामने नमस्कार कस्यो. परी दुःखरूप महा समुश्मां प्राप्त श्रयेला सुखरूप बेटने पामी रामे लक्ष्मराने कj. “हे वत्स लक्ष्मण ! तमे शत्रुनने जीती सुखथी आव्या गेकनी?" पनी जानकीना वियोगने जाणता एवा लक्ष्मणे रामने कडं. "हुं धारुं बुं के, जेणे सिंहनो शब्द कस्यो हतो तेणेज सीतार्नु हरण कर ले; परंतु ते हरण करनार विद्याधर, माणस, राक्षस, सुर के असुर गमे ते हो, परंतु हुँ तेनुं मस्तक आ म्हारा खमुवती बेदी नाखीश.” पठी विराधनां वचनयी सीताने शोधवा माटे अनेक विद्याधरो चारे दिशामां दोमया. तेनए सर्व स्थानके सीतानी बहु शोध करी; परंतु को ठेकाणेथी जनकपुत्री मल्यां नदि; तेथी ते नग्न चित्तवाला था पाग आव्या. लक्ष्मणे रामने कह्यं."देना! - में एवी प्रतिज्ञा लीधी ने के, “आ विराधने पाताललंकाना राज्यने विषे स्था पवो." विराधे पण ते बन्ने नानने कबु. “हे प्रन्नो ! आप त्यां आवी मने Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. म्हारा पूर्वना राज्यने विषे स्थापो के, जेथी करीने निश्चिंत थेयेलो हुं पठी योमा कालमां तमारा प्रसादथी सीतानी शोध लावीश." पठी "तथास्तु" एम कहीने लक्ष्मण तथा विराध सहित राम त्यांथी प्रयाण करी पाताललंकाना नद्यानने विषे आवी पहोच्या एटले खरदैत्यनो पुत्र सुंद पोताना पिता अने काका विगेरेनो क्षय करनारा शत्रुने आव्या धारी तत्काल युः करवा आव्यो; परंतु ते पोतानी सामे अति उर्जय एवा राम लक्ष्मणने युः६ करवा आवता जोश चंनखा मातानां वचनथी तत्काल नासी जश्ने लंकामां गयो, त्यां तेने विश्वमा कंटपरूप अने महाबलवंत एवा रावणे क्रोध धरता उता पोतानी पासे राख्यो. पली राम लक्ष्मणे पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करवा माटे विराधने महोत्सवपूर्वक तेना राज्यने विषे स्थाप्यो. कृतज्ञमां शिरोमणिरूप वि. राध पण ते बन्ने नाश्योनेपोताने घेर राखी निरंतर सेवा करवामां तत्पर रह्यो. आ वखते किष्किंधा नगरीने विषे सुग्रीव नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने देवांगना समान कांतिवाली तारा नामे स्त्री हती. वली पोताना म्होटा, नाश् वालीनो पुत्र चंऽस्मि युवराज पछि नोगवतो हतो. सुग्रीवने तारादेवीश्री नत्पन्न श्रयेला अंगद अने जयानंद नामना बे पुत्रो हता. हवे साहसगति नामनो को विद्याधर पुत्र बहु दिवसथी तारानी साधे कीमा करवानी श्छा करतो हतो; तेथी ते हिमालय पर्वतने विष ज प्रतारणी विद्यार्नु साधन । करीने सुग्रीवर्नु रूप धारण करीने किष्किंधा नगरी प्रत्ये आव्यो. आ वखते सुग्रीव पोताना अनेक सुन्नटोनी साये क्रीमा करवा माटे नद्यानमां गयो ह. तो, तेथी पेलो साहसगति के, जेणे मिथ्या सुग्रीवर्नु रूप धारण करयुं हतुं ते आकाश मार्गश्री सुग्रीवना घरमां पेशी गयो. पठी ज्यारे साचो सुग्रीव क्रीमा वनश्री पागे प्राव्यो त्यारे तेने सुन्नट पुरुषोए वलात्कारे राजघारने विषे रोक्यो.पा अवसरे प्रधान प्रमुख पुरुषोए वे सुग्रीवने जोश्ने अंतःपुरना रक्षणने माटे प्रयत्न करवा मांझयो. मिथ्या सुग्रीव पण ताराने विषे अनिलाष वालो होवाश्री तुरत अंतःपुरमा पेसवा लाग्यो; तेने पण सचिवादिकोए रोक्यो. या वखत चौद अदोहिणी सैन्य एक थयुं अने वन्ने सुग्रीव तरफ अ श्राई वेहेंचाइ गयु. वली शठ सुन्नटो तो पोत पोताना सुग्रीचने राज्यासने । स्थापन करवा नद्यमवंत यश् परस्पर यु करवा लाग्या. तारादेवीरूप राज्य Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्त , जेणे श को समर्थ त्याग करी दी . श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१एए) लक्ष्मीने माटे वृद्धि पाम्यो ने मत्सर जेमने एवा ते सत्य अने मिथ्या बन्ने सुग्रीवो घोर युः करवा लाग्या; परंतु समान पराक्रमवाला ते बन्नेमांथी ए. केने विजयलक्ष्मी वरी नहि. पठी तो ते बन्ने जणा थाकी युःक्ष्थी निवृत्ति पा. मीने नन्ना रह्या. आ वखते सत्य सुग्रीव पोताना मनमां विचार करवा ला. ग्यो के, “ हुं म्हारी सहायने माटे को बलवंत एवा राजानी सेवा करूं. हा म्हारो सेवक हनूमान बहु बलवान ने, परंतु ते हवां सत्य असत्यनो अजाण दोवाश्री म्हारे विषे नदासीपणुं पाम्यो .आ को धूर्तथी सर्व लोक एने विषे मोद पामी गया ने अने बलीष्ट विद्याबल तेनेज विषे आसक्त श्रया . धन्य तो रावणना शत्रु ते आ वालीनेज ले के, जेणे शत्रुथी व्याकुल थया विना राज्यलक्ष्मीनो त्याग करी दीक्षा लीधी. हवे शत्रुने नाश करवामां जे को समर्थ राजा होय तेनी हु सेवा करूँ के, जेथी थोमा कालमा पूर्ण फल प्राप्त श्राय. त्रिखंम नोक्ता बलवंत रावणने कार्य निमित्ते से, परंतु ते बहु अनुरागी , तेथी मने अने आ शत्रुने मारी पोते तारादेवीने लश् जाय. खर दानव म्हारो मित्र अने सिंहना सरखो पराक्रमी हतो; पण तेने तो लक्ष्मणे युक्ष्मां मास्यो, एम में सांतल्युं ने, माटे हवे शत्रुरूप वादलाने नरामी नाखवाने पवन समान दशरथ पुत्रने से के, जेश्री ते मने विराधनी पेठे योमा कालमा निश्चे फरी मारा राज्यासने स्थापे.” आ प्रमाणे चिंतातुर श्रयेला सुग्रीवे एक चतुर दूतने विराध पासेमोकल्यो.उते विराधपासे जइने कह्यु. “ हे राजन् ! सुग्रीव राजा तमने कहेवरावे ले के, जो तमारी आज्ञा होय तो हूं म्हारा पोताना स्वार्थने माटे हर्ष पूर्वक श्रीरामनी सेवा करूं.” विराधे कडं. "ह दूत ! सुग्रीवराजा तुरत अहिं आवो अने आ रामनी सेवाथी एनुं पण मांगलिक थशे." पठी दूते पाग आदी ते समाचार पोताना स्वामी सुग्रीवने कद्या. ते नपरथी सुग्रीव सैन्य सहित विराधनी पुरी पाताल खंका प्रत्ये गयो. विराधे पोतानी नगरीप्रत्ये आवेला सुग्रीवनो बहु सत्कार कस्यो. पठी सुग्रीवे शिलातल नपर बेठेला श्री रामलक्ष्मणने प्रणाम कस्या अने पोतार्नु दुःख महा शक्तिवंत एवा रामने कही देखामयु. आवटे का के, हे जगत् नियंता! हुं तमारे शरणे आवेलो बु.” सीताना वियोगथी पीमित एवा रामे तेनुं दुःख दूर करवाने तेने बहु धीरज आपी.कडं के-संत पुरु. Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५००) ऋषिममलयत्ति-पूर्वाई, षो निश्चे परपुःखने नाश करवाना स्वन्नाववाला होय . पी विराधे समका वेलो सुग्रीव हाय जोमीवियोगथीःखी एवा रामने कहेवा लाग्यो के,"हे विनो! जगत्मा श्राप एकज सर्व अर्थने विषे समर्थ बो, माटे मने तत्काल म्हारा । . राज्यने विषे स्थापो. हुं सैन्य सहित आपनो सेवक , माटे जेवी दशे तेवी सीतानी वार्ताने श्रोमा कालमां लावी आपीश." राम आवी सुग्रीवनी वाणीथी प्रसन्न पश् सेनासहित विराधने पोतानी साथे श्रावताअटकावी पोते एकलाजसु. ग्रीवनी साथे किष्किंधा नगरी प्रत्ये गया. ज्यारे राम लक्ष्मण किष्किंधा नगरीना नद्यानने विषे श्राव्या त्यारे सुग्रीवे पोताना वैरीने युद्ध करवा बोलाव्यो. विद्या अने बलथी गर्जना करतो ते साहस गति पण तत्काल युद्ध करवा श्राव्यो. कडं ने के-क्षत्रियोने रणसंग्राममां शौर्य नत्पन्न थाय . पठी समान आकृतिवा. ला अने समान बलवाला ते बन्ने सुग्रीवोए सह एवा हाथीयोनी पेठे दीर्घ काल पर्यंत युः६ करयुं; परंतु राम समान आकतिपणाने लीधे ते बन्नेमांथी पो. तानी पकना खरा सुग्रीवने उलखी शक्या नहि, तेथी कणमात्र उदासी बनी गया. पनी रामे पोताना वजावर्त नामना धनुष्यने दायमां लक्ष विजलीना निर्घात जेवो टंकार शब्द कस्यो एटले ते शब्दने नहि सहन करती एवी प्रता. रणी विद्या तुरत नासी गइ. कयुंडे के-तेवा सामर्थ्यवंत पुरुषांनी पागल कोण टकी शके ? विद्या नासी जवाने लीधे साहसगति पोताना खरा रूपमा आवी गयो अने सुग्रीव जूदो देखाइ आव्यो. कां ने के-देन घणो वखत केम रही शके ? पठी सर्वे लोको क्रोधथी कदेवा लाग्या के, “अरे ! परस्त्रीने विषे आसक्त एवा एणे लोकने मोह पमामी सुग्रीवने दुःखी कस्यो ने.पी रामे ते साहसगतिने मारी बाजींत्रोना शब्दपूर्वक सुग्रीवने हर्षपूर्वक तेना राज्यने विषे पूर्वनी पेठे स्थापन कस्यो. सुग्रीव पण रामना समान आकृतिवाली पोतानी तेर कन्या रामने विवाद माटे प्रापवा लाग्यो; परंतु सीताना वियोगथी असंतोषी हदयवाला रामे तेने कडं के, "हे राजन् ! म्हारे बीजा विवादनुं कंश प्रयोजन नश्री." पठी राम ते नद्यानने विषेज रह्या अने सुग्रीव महोत्सवपू. र्वक नगरी प्रत्ये गयो. को दवे ज्यारे सुंद पुत्र सहित खर दानव दणायो त्यारे चनखा तत्काल स्तकापुरीने विषे रावनी सन्नामां गड. त्यां ते रावणना कंग्ने वलगी पमी Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (०१) अत्यंत रुंदन करवापूर्वक कहेवा लागी के, “हे बंधो ! तमे जयवंता उताहा! हताशा एवी हुँ हणा बु. तमारा बनेवीने युहमां मारी नाखी लक्ष्मण सहित रामे विराधने तेना राज्यासने स्थाप्यो . हे प्रन्नो ! हुं त्यांथी जीव लश्ने नासीने तमारी शरणे आवी बु, माटे पुत्र सहित एवी मने तमे रहण कर्ता थान. रावणे कडं. “ हे व्हेन ! तुं बहु रुदन न कर ! हुं योमा वखतमां त्हारा पति पुत्रादिकने मारनारा शत्रुने मारीश." आम पोतानी व्हेनने धीरज आपी रावण पोताना मंदीरने विषे शयामां सूतो; परंतु सीतानी साथे की. मा करवामां नत्साहवंत एवा तेने निज्ञ आवी नहि. वली एटलुंज नहि, परंतु आज सुधी जानकीनो समागम न श्रवाश्री शयामां सूतेला रावणने स्थलमा रहेला मांडलानी पेठे अत्यंत परिताप थतो हतो. परी दुःखने विषे पमेला पतिने जो मंदोदरी राणीये तेने कर्तुं. "स्वामिन् ! आपने एवं शुं सुख ने ?” रावणे कडं. “हे प्रिया ! सीताना विरहरूप कामानि मने कमलनालनी पेठे बाले माटे तुं मान मूकी दर मारे अर्थे सीताने प्रसन्न कर. नहितो स्थलमां पमेला मांग्लानी पेठे म्हारा प्राण जशे. वली म्हारे गुरुए आ. पेलो एवो नियम के, नहि इचा करती एवी स्त्री नपर बलात्कार करवो नहि." पनी मंदोदरी पोताना स्वामीनी तुष्टीने माटे नद्यानमां सीतानी पासे जर प्रीतिपूर्वक वारंवार कहेवा लागी के, “हे सीता ! हुं अने बीजी आ सर्वे विद्याधर स्त्रीयो त्हारी किंकरीयो बीए, तेमज विश्वनो पति श्री रावण पण दारा दाश्यपणाने मजे , माटे अरण्यमां वास करनारा, सुख रहित अने संपत्ति विनाना एवा पति रामनो तो त्हारे त्यागज करवो जोइए.तुस्वप्न समान संकाने पामी.वली मनुतानो पालक अने त्रिखंमनोनोक्ता तेमज विख्यात पराक्रमवालो रावण त्दारा पूर्वनवना पुण्यथी तने पोताना हृदयरूप कमलने विषे हंसीनी पेठे धारण करवानी श्छा करे जे; माटे तुं संपत्ति रहित एवा 'रामनेत्यजीदश्में लोगवेला एवारावणने नज.कारण विकट संकटने विषेव्रतलो प पापने माटे यतो नथी."मंदोदरीनांआवां वचनसांन्नलीमहासती सीतापाताना बन्ने हाथथी बन्ने कानने ढांकी दश्याप्रमाणे कहेवा लागी."अरे मुग्धा! तु कुली न उतांअकुलीन सरखां वचन केमबोले ? शुंकुलीन स्त्रीयो प्राणांते पण बीजा Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई, पतिनी श्छा करे खरी? वनवासने अंगीकार करीने पण नत्तम नीति तथा' धर्म साम्राज्यनुं रक्षण करनार वली पोतानी प्रतिज्ञारूप समुनो पार पामनार ए म्हारा प्राणप्रिय क्यां ? अने सर्व कुशीलवंतोमा रेखारूप तथा परस्त्रीनी चाथी नत्पन्न श्रयेला पाप समूहना नाररूप व्हारो पति क्या? जे ' कुलमां पति परस्त्री लंपट होय अने स्त्री दूतीना कार्यने करनारी होय ते कु ल अंते लोकमां धिक्कारपणाने पामे . प्रौढ साम्राज्य संपत्तिथी इंश समान, तथा धनथी कुबेर समान होय तो पण ए दश कंठ (रावण) मने प्राणांतने विपे पण नश्री रुचतो.” आम सीता मंदोदरीने कहे ने एटलामां कामज्वरथी अत्यंत पीमा पामेलो रावण पोते वायुश्री नरामेला रुनी माफक त्यां श्राव्यो अने सुप्रसन्न दृष्टिथी सीताना सामु जोतो तो कहेवा लाग्यो के, “हे वैदेहि ! हुं त्हारो दास बुं अने आ मंदोदरी त्हारी आज्ञाकारी दासी ने. हे नई! म्हारे विषे कृपा करी तुं मरजी प्रमाणे मने नज अने मने अंगीकार करी विद्याधरीयोमां ईश्वरीरूप था.” पली “आ रावण परस्त्रीयोना गमनथी अत्यंत पापी थयो ." एम धारी सीताये अवटुं मुख राखीने तेने कडं. "अरे राक्षसाधम ! तने निश्चे काले कोलीयारूप करेलो देखाय . कारणके, तें कपट करी दशरथना पुत्रनी प्रिया एवी म्हारं हरण करयुं . ते पोतार्नु कुल कलंकित करयुं अने पोतानो आचार पण ऽषित कस्यो ने. हे पापीष्ट ! हवे थोमा वखतमां लदमण त्हारा प्राणोनुं हरण करशे." सीताये आ-प्रमाणे अपमान कस्वा उतां पण रावण तो तेनी प्रार्थना करवा लाग्यो, धिकार ठे कामदेवने के, जे बलवंत पुरुषोना वलने पण हरण करी ले छे. आ वखते जाणे रावणना कुविकल्पथीज पातालमा पेसी जतो होयनी? एम सूर्य अस्त पाम्यो, जेधी सर्व स्थानके अंधकार फेलाइ गयो. पठी रावणे सीताने नय पमामवा माटे घुत्कार शब्द करनारा घुवमनां, फेत्कार शब्द करनारा शीयालनां, चंची फगवाला सर्पनां, सिंह शब्द करनारा सिंहनां, गर्जारा करनारा हाथीनां, अहाटहास करनारा पुष्ट वैतालनांअने वीजा नयंकर रूपो बनाव्यां; परंतु ते सर्व ने जोइ निलय तथा परमे, टी मंत्रनुं ध्यान करती सीता पोतानुं शील राखवामांज तत्पर रही. पीरात्रीने सर्व वृत्तांत जाणीने नीतिमान् एवा- विन्नीपणे त्यां रावणे रोकेली सी Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १०३ ) तानी पासे जश्ने कां. "हे शुने ! तमे कोण हो ? कोनी पुत्री बो ? अने कोनी प्राणप्रिया बो. ? हुं परस्त्रीयोने जाइ समान हुं, माटे तमारे जे दुःख होय ते मने ऊढ़ कहो. ? " विजीषणनां प्रवां कार समुना मध्यमां रहेली मिठी वीरमीनां समान वचन सांजली लका सहित जानकीये करूं. " हे सौम्य ! सावधानपणाथी सांभलो हुं जनकराजानी पुत्री अने दशरथपुत्र श्री रामनी प्राणप्रीया बुं. पिंतानी प्रतिज्ञा पालवाने माटे लक्ष्मण सहित वनमां निवास करनारा म्हारी पतिनी साधे हुं पण दंमकारण्यमां आवी हती. एक दिवस वनने विषे पितानी मरजी प्रमाणे भ्रमण करता म्हारा दियर लक्ष्मणे दिवस विषे वैशनी जालीमां रहेलुं एक महा अद्भुत खऊ जोयुं. पढी तेमणे म्यानमांथी खमने खेंची तत्काल सर्व वंशजाली बेदी नाखी एटले तो कोइ स्वविद्यानुं साधन करता पुरुषने हलायेलो दीगे. पबी पोताना चित्तने विषे खेद पामता लक्ष्मणे दयाने लीर्घे ऊट रामनी पासे आवी ते सघली वा(त कही. त्यार पढी विद्या साधन करनारनी माता पुत्रवधने लीधे क्रोधातुर as लक्ष्मणनी पाउल गइ; परंतु ते श्री रामने जोड़ने कामातुर थइ. श्रेष्ठ शीलधारी राम लक्ष्मणे तेनो आदर न कस्यो. ते नृपरथी तेणे पोताना पुत्र वनी वार्ता पोताना पतिने अने जाइने कही. पबी आकाशमार्गे अनेक दि द्याधरोनी सेना श्रावी; तेनी साधे जेटलामां निर्भय एवा लक्ष्मण युद्ध करवा गया तेटलामां पाल सिंहनादनो संकेत करी जेनुं मृत्यु पासे श्राव्यं बे एवा राव कपट करी पतिने बेतरीने म्हारुं हरण करयुं छे. हे जाइ ! हुं प्राणनो नाश ये पण शील रक्षण करीश. " " सीतानां श्रवां वचन सांभली नीतिमार्गे रहेलो विभीषण पोताना बंधु रावण पासे जने तेने कदेवा लाग्यो के, “दे बंधो ! तँ पोताना कुलनो अंत करनारुं शुं आरंभ्युं ? ए महासती कल्पांते पण हा वाक्य अंगीकार करशे नहि. वली तुं राम लक्ष्मणवने थोमा कामां कुलनो नाश करीश, माटे न्यायधर्मन विचारी जानकी पाठी रामने सपने स्नेहवंत बंधुननी साधे पोतानुं साम्राज्य पद दीर्घकाल सुधी नोगव." आम विभीषणे हित वचन कह्यां बतां पण रावणे पोतानी कुमतीनो त्याग कस्बो नदि. कांबे के - नसीब वाकुं दोय त्यारे शुं नयी श्रतुं ? बलग Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०४) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. वित रावणे विनीषणने कां. "हे बंधो ! ए बे वनचरोधी तुं केम नय पामे ? में अहि आणेली ए सीता निश्चे मने अंगीकार करशे अने राम लक्ष्मण अहिं आवशे तो तेनने हुँ निश्चे मारी नाखीश. कहे, विद्याधर अने मनुष्यना युट्ने विषे को बलवंत पुरुषे मने क्यारे पण जीत्यो ?” विनीषणे फरी श्री कां. “नाइ! पण ते ज्ञानिनुं वचन तो सत्यज के, स्त्रीना हेतुश्री तमारा कुलनो क्षय रामथी थवानो के. में तमारी नक्तिने लीधे दैवझर्नु वचन मिथ्या करवाने दशरथ नूपने माखो हतो, बतां ते. एम न होय तो पोतानी नगरी प्रत्ये पागेक्यांधीआवे? माटे हुं विज्ञापना करूँ के, “निश्चे नावीप: न्यथा अवार्नु नथी.” एम पोताना मनमां विचारी जानकी पाली रामने अर्पण करो.” पठी रावण वित्नीषणनां वचनने नहिं गणकारतो तत्काल सीताने पु-: प्पक वैमानने विषे बेसारी आकाशमार्गे चाल्यो अने कहेवा लाग्यो के, “हे। नई! कदलीगृहथी मनोहर एवा आ बगीचान, क्रीमा शैलने विषे नाना प्रकारनी मणिमय म्होटी गुफा अने राजहंसादि मिथुनोए सेवन करेलां जलवाली क्रीमा करवानी वाव्यो, सरोवर विगेरे जे आ मुख्य जलाशयो देखाय तेनने विषे हे सुंदरी ! म्हारी साथे निरंतर क्रीमा कर. कारण हुं तने इचित वस्तु आपवाने कल्यवृतरूप बु.” आ प्रमाणे रावणे मधुर वचनश्री सीताने वहु लोनावी; परंतु ते तो पोताना पति श्रीराम नामनो जप करती मौन धारण करीनेज रही. आम रामने विषे स्थीर चित्तवाली सीताने जाणी रावण तेने फरी तेज स्थानके (पोताना नद्यानमां) मूकी पोताने घेर गयो. हवे अहिं विन्नीषण, मुख्य प्रधानोनी साथे एकांतमां विचार करता क. हेवा लाग्यो के, “ हे प्रधानो ! तमे म्हारुं हितकारी वचन सांजलो. पूर्वे आ पणो स्वामी रावण पोताना नुजवलने लीधे सैन्यथी पण वधारे बलवान् ह. तो; परंतु ते हवणां श्री रघुपतिनी प्राण प्रियानां हरगयी बहु अल्प बलवालो श्रइ गयो , मनुष्योने एक पण कामासक्ति अनर्थतुं कारण थाय , तो पठी नरक श्रापनारी परस्त्रीयोमा आसक्ति करवी तेनुं तो शंज कहेवं ? माटे हे मंत्रियो ! तमे रावण पासे जर तेने कहो के, तुं निश्चे श्री रामनी स्त्रीना हरणदी पोताना कुलनो अने पोतानो नाश न कर. कुलनो वय करनारी ए जानकीने त्यजी दा पोताना वंधुपुत्रादि युक्त आ अमित एवी राज्य लक्ष्मी Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( पूण्य ) जोगव्य. " मंत्रियोए कहुँ. “ अमे राजा रावणने कुव्यसनथी दूर करवा तथा श्रेष्ठ रस्ते स्थापन करवा समर्थ नथी; परंतु जेम हाथीने श्रेष्ठ रस्ते चलाववा एक अंकुश समर्थ तेम ए राजा रावणने पण कुव्यसनथी दूर करवा तथा न्याय रस्ते स्थापन करवा आप एकज समर्थ बो. " पबी विनीषले तेन क. " दे सचिवो ! शुं करीए ? कारण म्हारुं गुणकारी हित वचन रावण मानतो नथी. निश्वे कोइनी भवितव्यता अन्यथा थती नथी, तो पण म्होटा पुरुषोए क्यारे पण पोतानो नद्यम बोरुवो नहि. " श्रम कही ते विभीषणे प्रथम लंकाना बहु जंचा एवा किल्ला उपर यंत्रो गोव्या अने त्यां चारे बाजुए कांगरा उपर बलवान् राक्षसो राख्या. वली पोताना जाइना रha माटे ठेका ठेकाले अनेक योग्य विचक्षण चर पुरुषो स्थाप्या. ና दवे अहिं किष्किंधा नगरीने विषे सीताना समाचार न मलवाथी राम कृष्णपकना चंदनी पेठे अत्यंत दूर्बल यवा लाग्या. एक दिवस तेवी अवस्थावाला श्री रामना कहेवा उपरथी लक्ष्मण अत्यंत क्रोध धरता बता पोताना धनुष्य बारा लइ सुग्रीवनां घरे गया. 'आ लक्ष्मण प्रत्यारे क्रोध पाम्या बेः " एम धारी द्वारपालकोए पण तेमने रोक्या नहि; तेथी ते तत्काल सुग्रीवा अंतःपुर प्रत्ये गया. लक्ष्मणने आव्या सांजली जय पामता सुग्रीवे सन्मुख श्रावी हाथ जोमीने प्रणाम करवा. लक्ष्मणे क्रोध करीने कां. “ अरे कपीश्वर सुग्रीव !तुं तो निःशंक थइने जोगो जोगवे बे अने राम तो सीताना विरहनी व्यथा सहन करे वे. तें कह्युं हतुं के, हुं थोमा दिवसमां जानकीनी शोध लावी आपीश; पण दवे तो तने राज्य मलवायी टाढ वाती हशे. शुं आ योग्य बे ? हवणां ऊट सीतानी शुद्धिने माटे नव श्रने प्रतिज्ञाना जंगथी साहसगतिना मार्गने न पाम. अर्थात् मृत्युनी इच्छा न कर." लक्ष्मणनां श्रावां वचन सांजली जय पामतो सुग्रीव तेमना चरणने नमस्कार करीने कहेवा लाग्यो h, "देवि ! प्राप म्हारा अपराधनी क्षमा करो.” आम लक्ष्मणनी विनैती करी कपीश्वर सुग्रीवे अनेक सुनटो सहित श्री रामनी पासे जइ तेमने 'प्रणाम कस्या. पबी तेथे पोताना सेवकाने आज्ञा करी के, " हे सुनटो ! तमे सर्व पृथ्वीने विषे जानकीनी शोध करो.” आ प्रमाणे पोताना पतिये श्राज्ञा करेला सुनटो गाम, खाए अने पुरादिकने विषे जानकीनी शोध करवा चाल्या. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेवे . पारदली सुरसंगातला जो विचार (२०६) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. आ अवसरे नामंगल पण सीताना हरणने सांजली अत्यंत दुःख धरतो तो रामनी पाले आव्यो. कडं ले के-प्रेमनो समय तो तेज कहेवाय . विराध पण सेना सहित रामनी सेवा करवा माटे तत्काल आवी प. होच्यो. का के-नक्तिना फरारूप नक्त जनो पोताना स्वामीने अवसरे सेवे . पी सुग्रीव पोते पण सीतानी शोध करवा माटे आकाश मार्गे थर कंवुदीपमा रहेली सुरसंगीतार्थ नामनी पुरीप्रत्ये गयो. त्यां ते दीपनो अधिपति रत्नजटी सुग्रीवने आवेलो जो विचार' करवा लाग्यो के, “शुं म्हारी विद्याना हरणथी पण असंतोषी रहेलो रावण हवे म्हारा प्राणनेज हरण करवा आव्यो ले के, तेणे अहिं सुग्रीवने मोकल्यो ?” आम विचारी जेटलामां ते नगरीमां नासी जवानुं धारे तेटलामां ते रत्नजटीने सुग्रीवे कडं. “अरे ! आकाश प्रत्ये चालवाने तैयार थयेलो तुं केम निरुद्यमी थइ गयो ? अर्थात् हवे तुं केम आकाश मार्गे चाली शकतो नथी ? " पनी शांत श्रयेला रत्नजटीये सुग्रीवने कह्यु. "हे सुग्रीव ! सांगल. वैदेहीजें हरण करीने तुरत नासी जता रावणे म्हारी विद्यार्नु हरण करी लीधुं ने तेथी म्हारी श्राकाश गति स्खलित थ .” पठी सुग्रीवे सीतानी शुदिना बीजरूप रत्नजटीने तत्काल रामनी पासे आएयो. त्यां रत्नजटीये वियोगधी दुःखी एवा रामने प्रणाम करीने कडं के, “पुष्पक वैमानमां बेठेला रावण सीतार्नु हरण करघु . ते वखते “हे दाशरथे ! हे लक्ष्मण बंधो ! हे नामंगल ! या अधमे बलात्कारे हरण करेली मने झट रक्षण करो!!” आम विलाप करती सीताने म्हारा नगरने विषे सांजलीने हुं खा लइ तत्काल रावणनी पाले गयो; परंतु तेणे क्रोध करी म्हारी सर्व विद्यार्नु हरण करी लीधुं एटले तो दिन एवो हुँ तने जोश रह्यो अने ते लंकाने विषे चाल्यो गयो." राम या प्रमाणे सीतानी नत्तम शुदिपामी वहु हर्ष पाम्या अने र नजटीने आलिंगन करी तेनी वारंवार प्रशंसा करवा लाग्या. पठी तेमण सुग्रीव प्रमुख वलवंत योहाने पूठ्यु के, “हे सुन्नटो! कहो. ते लंका आहे. यी केटले दूर ठे?" रामना आवा पूवा नपरथी नहंग पामेलाना समान देखाता तेनए कह्यु के, " रावण राजा शत्रु उतां ते न प्रवेश कराश् शकाय एवी लंकाप्रत्ये जवू मरयुं. कारण युहमा विजयी एवो ते पोताना बंधुरूप Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. 66 (209) जुजथी, दुर्गथी, पुत्रोषी अने सेना विगेरेना बलयी अत्यंत गर्वधारी थइ समग्र शत्रुने पण तृण समान गणतो नथी. " रामे फरीबी कघुं. “हे भूपो ! आपले जय पराजयनी वार्तायी शरयुं; पण ते परस्त्रीनो चोर रावण मने देखाको पछी ते लक्ष्मणनां शस्त्र समूहना प्रहारथी व्यथित श्रात्मावाला रावना विद्याबलने जाराशुं. " लक्ष्मणे क्रोध करीने कां. “ अरे ! तमे रावम खाबो ? जे सीतानुं हरण करीने चोरनी पेठे नासी गयो ते शुं बलवंत कदेवाय खरो ! हुं राक्षसो, विद्याधरो अने भूपतिननां जोतां वतां रणांगणने विषे ते रावणना मौलिमंगलने पामी नाखीश. " जांबुवाने कह्युं. " जो श्रापनी शत्रुने मर्दन करनारी शक्ति वे तो ते सत्य; परंतु पूर्वे अनंतवीर्य नामना सुनिये कह्युं वे के, जे पोताना बलथी कोटिशिलाने नपामशे तेज थुने विषे प्रबल एवा रावणने हली सकशे. ' "" जांबुवाननां वां वचन सांजली लक्ष्मणे करूं. "ते पण कौतुक जोइ - ए.” पी रामनी प्राज्ञायी अनेक विद्याधरोए ते कोटि शिलाने त्यां आणी एटले शत्रुनुं मर्दन करनारा लक्ष्मणे ते योजनप्रमाण शिलाने पोताना दक्षिण दावीं पर्यंत उंची करी. ते वखते श्राकाशमां देवतानए जयजय शब्द कस्यो अने " आ वासुदेव चिरकाल पर्यंत जीवो.” एम कही पुष्पनो वर्षा वरसाव्यो. पी श्रयो वे निश्चय जेमने एवा ते सुग्रीवादिक राम पासे प्रवीने तेमनी पासे विचार करवा बेठा सुग्रीवे क. " निश्वे तमाराश्री रावण हणाशे, तो पण त्यां कोइ चतुर दूतने मोकलवो जोइये. ते दूत लंका प्रत्ये जर सीताने मुक्त करवानुं विभीषणने कदेशे. कारण ते नीतिवान अने चतुर बे. जो नीति वचनना बोधथी रावण सीता आपणने अर्पण करशे तो कार्य सिद्धि सुखी थइ जो; परंतु गर्वधारी रावण ने न्यायवंत विभीषण तमारुं कहेवुं नहि माने तो पढी अमे तमारा पक्षमां रहीशुं, माटे प्रथम कोइ समर्थ श्रेष्ट इतने त्यां मोकलो. वली श्रमे दवणां एम पण सांजल्युं वे के, लं"काने सारी रीते रक्षण करी लीघी बे." पढी सुग्रीव विश्वभूतिने मोकली वज्रना कबोटावाला. इनूमानने बोलावी तेनी साथे राम पासे प्रवीने कड़ेवा लाग्यो के, " हे स्वामिन् ! सर्व कपिनटोने विषे या हनूमान बहु बलवान् बे, माटे एने दूतकार्य करवा मोकलो.” हनूमाने रामने प्रणाम करीने करूं. " प्रा कपि Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. नने विषे अनेक सुन्नटो ठे उतां पण सुग्रीवम्हारूं वखाण करे . हे स्वामिन्! हु जनकसुता सहित लंकाने नुखामी अहिं लावु के, पुत्रादि परिवार सहित रावणने बांधी अहिं लावू ? अथवा रावराने त्यांज मारी फक्त सीताने अदि. , लावू ? आपनी जेम मरजी होय तेम ाझा करो.” रामे हर्षित थश्ने कडं. " तमारे विषे सर्व संन्नवे ; परंतु इवणां लंका प्रत्ये जश् सीताने मलो अने एक बीजानी जागने माटे आम्हारी मुश्किा तेमने आपी तेमनुं शिखामणि अहिं तत्काल ल आवो, वली तमारे सीताने कहेवू के, हे न ! तमारा विरहानलश्री राम पुष्पनी शयाने अंगारानी गामीरूप माने.हे प्रिया! तुम्हारा वियोगयी पोताना जीवितने त्यजीश नहि. कारण के, लक्ष्मण युध्ने विषयोमा वखतमांरावणने मारशे."आम सीताना समाचार कही राम फरी हनूमानने कई ने के, “हेना! कार्यसिदिने माटे तत्काल त्हारो मार्ग कल्याणकारी पान." हनूमाने हाथ जोमी रामने कडं. "हे प्रन्नो ! हुं ज्यां सुधीमां लंका प्रत्ये जर अहिं पागे आवुप्यां सुधीमां आपे अहिंथी बीजे क्यांश जq नहि.” हनूमानए वचन रामे कबुल करयु. पठी सुन्नटोपी विंटलायेलो हनूमान पोताना वैमानमां बेसी तेजयी वि. राजित एवा सूर्यनी पेठे आकाश मार्गे चाल्यो. रस्तामां तेणे महेंद पर्वत नपर माहेश नामना नगरने जो विचारयुं के, “आ म्हारा मातामह (मानाबाप) महें। लूपतिनुं नगर के. एरो पूर्वे म्हारी माताने घरमांधी काढी मूकी ने, माटे प्रश्रम एनी साथे युद्ध करूं.” एम धारी हनूमाने नंना वगामी. आम अकस्मात् रणसंग्रामनी नानो शब्द सांजली बलवंत विद्याधराधिपति महें सऊ अश् नगरनी वहार आव्यो. युः६ चाब्यु तेमां हनूमाने महेंने जीत्यो, ते उपरथी तेनो पुत्र प्रसन्नकीर्ति युद्ध करवा लाग्यो. हनूमाने तेने पोतानो मामो धारीमास्यो नदि; परंतु फक्त कौतुकने माटे पोतानुं बल देखामथु अने तेने रथमां बेठा उतां पकमी लीधो. यु६ करता एवा वलवंत महेश्ने पण तेणे पकमयो.. पठी हनूमाने प्रणाम करीने कर्यु. के, “हे मातामह ! हुँ तमारी अंजनानो पुत्र हनूमान हुँ. में म्हारूं वल तेमने देखामवा माटे आम करयुं . रामनी आझादी लंकाप्रत्ये जावं तुं.रस्ते अहिंाव्यो एटलामांतमे म्हारी माताने काढ। मूकी इती ते वात याद आववाने लीधे में आ तमारी साधे वृथा मदा युइ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( ए) करथु . हे तात ! तमे म्हारो अपराध कमा करो अने श्री राम पासे जान." आवां हनुमाननां वचन सांजली प्रसन्न थयेला महेंइ नूपतिये हनूमानने कयु. "हे वत्स ! में तने पूर्वे नामथी तो श्रवण कस्यो हतो, पण आजे त्हारं लोकोत्तर शौर्य जोयु, ए म्हारां म्होटा नाग्य. तुं पराक्रमथी प्रसिह थयो . जा तुं हारा पतिनुं कार्य निर्विघ्नपणे पूर्ण कर.” महेंआ प्रमाणे पोताना नाणेज हनूमानने विदाय करी पोते सैन्य सहित रामनी पासे गयो. हवे वैमानमां बेठेला हनूमाने पण आगल जतां दधिमुख दीपने विषे कायोत्सर्गे रदेला कोबे मुनियोने दीग. वली ते मुनियोनी पासेना नागमां तेणे कोश्त्रण कन्याउने पण जोइ. ए सर्वेने दावानल फरी वलेलो होवाधी तेन बली जवानी तैयारीमा हता. आम दावामिना संकटमा पमेला ते सर्वेने जो हनमाने कृपाश्री मेघनी पेठे समुइनुं पाणी लावी ते दावामिने सिंचन करी दीधो. परी तेणे ते बन्ने मुनियोने प्रणाम कस्या. कन्यानए पण मुनियोने वांद्या. पी कन्यानए हनूमानने कडं के, “तमे आ बन्ने साधुन्नु तथा अमारुं दुःख क्षणमात्रमा नाश करयु जे.” हनमाने पूज्यु. “ तमे कोण गे?" तेनए कह्यु. “हे बलवंत ! अमे दधिमुख नामना पर्वतने विषे रहेला गंधर्वराज नामना नूपतिनी वनमाला पत्नीथी उत्पन्न अयेली कन्या जीए. अमने परणवाना हेतुधी अनेक विद्याधरो अमारा पितानी प्रार्थना करे . वली अं. गारक नामनो विद्याधर तो अमारे विषे बहु अनुरागी भइ गयो; परंतु अमारा पिताने को रुचिकर न होवाथी अमारो को साथे पाणीग्रहण कराव्यो नहि. कारण पूर्वे अमारा पिताए कोई नैमितिकने अमारा पति संबंधी पूग्यु इतुं तो तेणे का हतुं के, जे साहसगतिने हणशे ते तमारी पुत्रीयोनो नार थशे. अमारा पिताए नैमित्तिके कहेलो वर न दीगे एटले अमारा पतिनी जाण श्रवाने माटे तेणे अमारा सहित विद्यार्नु साधन आरन्युं. तेमां वैरने सीधे अंगारके विघ्न करवा माटे दावानल सलगाव्यो; परंतु ते तो अमारा उपर नपकार करनारा तमाए तत्काल शमावी दीधो. जे मनोगामिनी विद्या मासे सिह थाय , ते पण अमने आजे तमारा प्रत्नावथी सिह य .एपी अमे बंधुनी स्थिति सहित रामना चित्तनो सर्व वृत्तांत जाणीए वीए. तेमज साहसगतीना मृत्युने पण जाणी लीधुं ." पठी ते त्रणे कन्यानए हर्ष पा२७ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. मता बता पितानी पासे जइ पोतानो वृत्तांत कही संजलाग्यो ते उपरथी ते श्री राम पासे गयो. ते पी हनूमान आकाशमार्गे प्रयास करी लंकाना उद्यान प्रत्ये आव्या, त्कट एवं राक्षसीनुं रूप जोयुं. राक्षसीये " अरे कपि ! तुं क्यां जाय बे ? निश्चेतुं दवणां म्हारा जणरूप थयेलो बे. " एम कही तत्काल पोतानुं विकराल मुख पहोलुं करयुं हनूमाने पण हायमां गदा लइ तेनां मुख मां प्रवेश करो ने पढी कण मात्रमां जीर्ण वस्त्रनी पेठे तेना नदरने चीरी बहार निकल्या. राकसीये रचेलो कोट पण तेमले पाद प्रहारथी तुरत तोमी नाख्यो. ते जोइ कोटनो रक्षक वज्रमुख युद्ध करवा श्राव्यो; तेने पण हनूमाने emaात्रमां मायो. आथी अत्यंत क्रोधाकुल थयेली तेनी महाबलवंत लंका सुंदरी नामे स्त्री हनूमानने बोलावीने तेमनी साथे युद्द करवा लागी. हनूमाने पण तेने युरूप रंगरुपमां नर्तकीनी पेठे बहु नचावी. बेवट शस्त्र कय थवाने लीधे श्री निवृत्तेली ते कामदेव समान आकृतिवाला हनूमानने जोइ कामथी विह्वल बती हाय जोमीने कहेवा लागी " हे नरोत्तम ! पिताना घातथी नृत्पन्न थयेला कोपने लीवेज में आपनी साथे युद्ध करयुं वे; परंतु पूर्वे नेमित्तिके आपने म्हारा जर्तार थवानुं कह्युं बे, माटे हवे आप पूर्वपुण्यना योगधी म्हारो पाली ग्रहण करो.” पी हनूमाने तेनो गांधर्व विवाहथी पाणीग्रहण करो. पीतेनी साथे ते रात्री क्रीमा करवामां निर्गमन करीने सवारे अनेक सुनटोथी रक्षण करायेली लंकापुरीप्रत्ये गया. त्यां तेमले सत्कार पूर्वक विपना घरप्रत्ये प्रवेश कस्बो विभीषणे हनुमानने आववानुं कार ल पूग्युं. ते नपरश्री हनूमाने कह्युं के, "हे विनो ! हुँ श्री रामनो दूत बुं अ नेता राक्षसोना कुलमां उत्तम बो, माटे म्हारुं कहेवुं सांजलो. तमे रा- | ad रोकेली सीताने बोमावो, नहिं तो ए लक्ष्मणश्री नाशज पामशे. हे म हामति ! बलवान् पण लोक विरुद्ध आचरण करवाथी नाराज पामे बे. तो.. तमे तमारा बंधुने तत्काल बोध पमाको ” विभीषणे कयुं. “ आपे तेना संबंधमां वहु सारुं कर्तुं वे. में पण एने पूर्वे सीताने त्यजी देवानुं कर्तुं तु; परंतु ने महारुं कर्तुं मानतो नथी. हे वंधो ! जो आप या बात नहि मानना हो तो हुँ ने आपने क्यारेक देखामी श्रापीश. 33 1 Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (११) . पली हनूमान त्यांथी नगीने देवरमण नद्यानमां गया. त्यां तेमणे त्रिजटा राक्षसीधी रक्षण करायेली, अशोक वृक्षनी नीचे बेठेली, अखंमित आंसुनी धाराथी विरहरूप वृदने सिंचन करती, वर्षाकालने विष ग्लानी पामी गये ली कमलीनी पेठे म्लान शरीरवाली, विरह अग्निना तिखारा समान निश्वासने मूकती, नूतमंत्रनी पेठे राम नामनो जप करती, कीण अंगीवाली, कोण पर गयेला लावण्यवाली अने पोताना कपालने विषे हाथ मूकीने श्रत्यंत दुःखी अवस्थामां बेठेली सीताने दी. सीताने आवी अवस्थामां जो मनमां बहु खेदातुर थयेला हनूमान विचार करवा लाग्या. “ हा! आ सती. आवी घोर अवस्थामां पझ्या ? में आजे पूर्वना पूण्यने लीधेज पोताना शीलथी पवित्र अंगवाली अने लावण्यथी मनोहर आकृतिवाली तेमज स्त्री. योमा मुकुटरूप आ सीताने दीठी . आ महा सतीना वियोगथी राम खेद करे ले ते योग्य . कारण निश्चे रति अने प्रीति, पण आq रूप नथी. आ रावणनेज धिक्कार छे! कारण आ पवित्र अंगवाली महा सतीनीश्चा करी एणे' नरकगति आपनारो पोतानो नाश वहोरी लीधो बे." आम विचार करीने ते. मणे हर्षने माटे रामना नामवाली तथा देदीप्यकांतिवाली मुश्किा सीताना खोलामां नांखी. सीता ते मुश्किाने जोश अत्यंत प्रफुल्लित मुखवाला थया. आम सीताने प्रसन्नमुखवाला जो त्रिजटा राक्षसी, रावणनी पासे श्रावी. कदेवा लागी. “हे विनो! आजे हवणा सीता हर्षित देखाय .” तेनां आवां वचन सांजली रावरा मंदोदरीने कहेवा लाग्यो के, “हे देवी! आजे पतिने त्याग करनारी सीता म्हारे विषे स्नेहवाली थने, माटे तुं त्यां जश् तेने अहिं म्हारी पासे लाव. कारण एम करवानेत्हारो अवसर आव्यो रे." पठी पतिनी आशाथी देवी मंदोदरी सीतानी पासे आवीने प्रसन्नमुखवाली सीता प्रत्ये स• त्वर कहेवा लागी. “हे सीता! वनेचर एवा रामने त्यजी दक्ष रावणरूप पर देवरे नज के, जेथी करीनेसमर्थ एवी हुँ विद्याधरी पण त्हारं दासपणुं अंगीकार नागपा, दारा स्वरूपने लीधे रावण विस्मृतिथी पोताना योगने अने विधिने पण 'बंधनने नथी. वली ते हवणां हारा संगनी श्छा करे , माटे राम पतिने देखामवज हृदयमां रावण पतिने धारण कर." एवा मेधावां मंदोदरीनां वचन सांजलीने क्रोधथी आक्रोश करती एवी सीताये Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ऋषिमंगलवत्ति-पूर्वार्द्ध. 1 क. " अरे मिंदित झीलवाली ! कुमुखवाली ! अने लगा विनानी ! तुं मनेआ अश्राव्य वचन केम संजलावे बे ? तुं राक्षसनी पत्नी हुँ, माटे व्हारामां धर्मगुण नथी. जेनी समीपे विपत्ती यावी पहोंची बे एवो दारो दीन जर्ता मने शुं करवाना बे ? ते तो निश्चे लक्ष्मणना शस्त्ररूप निवाला रणसंग्राममां पतंगपणुं पामशे. तुं मने व्दारुं मुख नहि बताव त्हारा श्री कुवचनी म्हारा कर्णोने न विंध. " या प्रमाणे सीताये धिक्कारेली मंदोदरी पोताने घरे पाटी गई. सीतानुं सतीपयुं प्रत्यक्ष जोइ हर्षवंत थयेला दनूमाने प्रगट थइ ने हाथ जोगीने तेने स्पृष्ट या प्रमाणे कां. " हे देवी ! चिरकाल पर्यंत विजयवंता वर्तो. आजे तमारा दर्शनथी म्हारा म्होटा भाग्य खरादि दूश्मनोने हणी हवणां श्रीराम अने लक्ष्मण किष्किंधा नगरी प्रत्ये रहेला बे. त्यां सुग्रीव ने महेंशदि वानर तथा विद्याधरो, उत्तम महिमावाला दशरना पुत्रने कुल दैवतनी पेठे निरंतर सेवे बे. रामना हृदयने विषे दाह करनारो तमारा वियोगरूप अग्नि एवो स्कुरायमान थयो छे के, ते सुहृदोनां वचनरूप अमृतथी पण शांत श्रतो नथी. वली सारा कुलमां उत्पन्न श्रयेलो. जेम प्रीतिने माटे पोतानी माताना दर्शननी इच्छा करे तेम लक्ष्मण परा रात्री अने दिवस अत्यंत तमारीज स्पृहा करे बे. हे मात ! मने सुग्रीवे बोलावीने रामे तमारी संजाल लेवाने माटे यदि मोकल्यो वे. म्हारुं नाम हनूमान वे. आ मुश्किा रामे तमने वालीने माटे मोकली के अने तमारो चुकाम लि तेमले मंगाच्या वे. हुं त्यां जश्श पठी वलवंत सेना सहित राम ने लक्ष्मण पोताना शत्रु रावणने मारवा माटे अहिं आवशे." सीताये हनूमानना सामुं जोइने कह्युं. " हे नरोतम ! तमे कोण हो के, जे मने जर्तानी कल्याशकारी वार्ताश्री प्रसन्न करो वो ?” हनूमाने कयुं. “दे देवी ! पवनंजय रा- ( जानो पुत्र हनूमान ते थ हुं पोते के, जे दवणां रामनो दूत श्रयो बुं." श्रावा रामना कुशल समाचार सांगल्या पवी हनूमानना आग्रहने सीधे सीत'तो. वीश ददामे पार करचं. 9 पुत्र का ११५ ) - संव पी सीताये हनुमानने कयुं. “हे वत्स ! तुं हवे श्रहिंथी ऊट ; परंतु जा, नहिं तो तने अहिं रहेवाथी रावण विघ्न करशे." अंजनापुत्रे दाश हो तो क. " हे मात ! प्राप म्हारा नपर वात्सल्यपणाने लीधे कहो तो; प Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१३) करवाने तैयार अयेला म्हारी आगल ए रावण कोण मात्र . जो आप आज्ञा आपो तो तमने म्हारा स्कंध नपर बेसारी युःक्ष्मां रावणने सैन्य सहित हणी श्रीरामनी पासे तत्काल चाल्यो जावं.” जानकीये विस्मयपामीले का."निश्वे तुंसत्य कहे . अहो ! शुं तें पराक्रमवमे पोताना प्रत्जुश्रीरामने तृप्ति नथी पमाझ्या ? परंतु म्हारे परपुरुषनो स्पर्श करवो योग्य नथी. वली ते नर्ता रामनुं कुशल कहीने म्हारं पूर्ण हित करयु जे.” हनूमाने कयु. “एम हो, परंतु ए उरात्मा रावणने कांश्क चमत्कार तो बतावीश. कारण एने पण जाण पाय है, रामना सैनीको पण आवा बलवंत उता युः६ करवा तैयार रहेला.” ए. २. कही सीताये आपेला चूमारत्नने लइ अने तेमने प्रणाम करीले पनी हनूमाने देवरमण नद्यानना सर्वे वृदोने वायुनी पेठे नखेमी नाखवानो आरन कस्यो. आम देवरमण नद्याननो नाश यतो जो चारे दिशाना रक्षक राक्षसो क्रोधथी हनुमानने मारवा दोमया; परंतु हनूमाने वृदनी पेठे तेनने एवा मा. स्वा के, जेथी तेन कागमानी पेठे तुरत नाशी गया. पनी नद्यानना रककोनो नाश सांजली क्रोधातुर श्रयेला रावणे एक हजार सुन्नट सहित अद नामना पोताना पुत्रने मोकल्यो. श्रद हजार योहाननी साथे परवस्यो श्रको हनूमाननी साथे युः करवा लाग्यो, युद्ध करवामां कुशल एवा हनूमानने एक बता पण ते समरांगणमां जाणे हजाररूपवाला होयनी ! एम राक्षसो देखता हता. “ हनूमाने अदने अनेक राक्षसो सहित मारयो." ए वात सांन्नली रावणपुत्र मेघनाद बहु क्रोधाकुल थयो, ज्यारे हनूमाने सर्वे सुन्नटोने तत्काल जीती लीधा त्यारे मेघनादपोते युः६ करवानग्यो, पी रणकर्मने विषे कुशल एवा ते बन्ने सुन्नटो उर्जय एवा हाथीयोनी पेठे युद्ध करवा लाग्या.तेमां रणना मर्मने जाणनारा तथा श्रमने जीतनारा तेन बन्ने जणा परस्पर एक बीजाना शस्त्रोनो रस्तामांज बेद करता उता शस्त्ररहित अइ गया. डेवट पोताना सर्व शस्त्रो नाश अवाथी कोधातुर श्रयेला वीर मेघनादे नागपासवझे हनूमानने गाढ बांधी लीधा. जो के हनूमान ते नागपासना बंधनने त्रोमवामां समर्थ हता तो पण रावणनी सन्नामां पोतानं पराक्रम देखामवाना देतुथी तेमणे ते पाशो तोमया नहि. पनी जेनो विजय थयो । एवा मेघनादे बंधन करेला हनूमानने सुन्नटोनी पासे रावणनी सन्नामां बो Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. लाव्या. त्यां रावणे तिरस्कार सहित हनुमानने का. " अरे कपि ! तें आ शुं करयु के, जे मने त्यजी दश्ने वनेचर एवा रामनो आश्रय कस्यो ? ए राम तो राज्यथी नष्ट श्रयेलो . तो पड़ी तेने राज्य शी रीते आपशे? कारण जे पोते मूंगो होय ते बीजाने शी रीते बोलता शीखवे ? तुं पोते दूत कार्य करवा माटे आव्यो ने, तेथी तुं पोताना तेजने नाश करे . कारण कयो पुरुष सुतेला सिंहनी केशवाली खेंचे?" हनूमाने कडं. “अरे ऽव॒हि दशानन ! में क्यारे त्हारा चरणनी सेवा करवानी प्रतिज्ञा करी हती ते तो कहे? पूर्वे तुं न्यायवंत हतो; तेयी शत्रुना संकटमा पमेला त्हारूं में रक्षण करेलु बे; परंतु हवणां तुं ब्रष्ट प्रतिज्ञावालो अयेलो होवाथी सहाय करवाने योग्य नथी. वनेचर एवाय पणनीतिमार्गने विषे रहेता दशरथ पुत्र सेवा करवा योग्य ने अने परस्त्रीनुं दरण करवामां चित्तवाला त्हारी सानाषण करवू पण योग्य नथी.तें सीतार्नु हरण करयु ए बहु मूर्खपणुं करचुं , जेथी तुं सर्व प्रकारे पोताना प्राणथी पण रुष्ट श्रयेलो २. अरे ! राम तो दूर रह्या; परंतु रुष्ट थयेला लक्ष्मणे प्रहार करवा आरंनेला तने बचाववा कयो मूर्ख आवी शके तेम . हजु पण रामने जानकी अर्पण कर तो त्हारो अर्थ नाश श्रशे नहि. कारण एमणे गेमी दीधेलोज तुं केटलोक काल जीवी शकीश." आवा हनूमाननां वचन सानली क्रोधथी कुटीने चमावी नेत्रने पहोला करता रावणे हुंकार शब्द पूर्वक हनूमानने कडं. "अरे अधम वानर ! निश्चे तुं मरवानी श्चाथीज अहिं आव्यो देखाय . इष्ट नाषण करनारा एवा त्हारं मस्तक हवणां आ म्हारा खम्वती छेदी नाखू; परंतु तुं दूत ठस्यो . नीतिमां दूतने हणवानी ना कहेली ने, एथीज हे शठ ! हुं तने जीवतो मूकुंq."आम हनूमानने कही वली तेणे पोताना सेवकोने कहूं के,“हे रकको! आने मायुं मुंगवा पूर्वक गधेमा नपर वेसारी लंकानी अंदर फेरवी अने लोकोनी समक रामना पतनुं फल देखामी म्हारी नगरीश्री बहार काढी मूको. " रावणनां यावां वचनथी अत्यंत क्रोधातुर थयेला पवनंजय राजपुत्र हनमाने वलथी पोतानुं शरीर कंपावता तत्काल नागपासना वंधनोने तोमी नाख्या अने "अरे! तुम्हारी या प्रमाणे विझवना करे ठे?” एम कही विजलीना गर्जारवनी पेठे आकाशमां नठली महा तेजवाला तेमणे वजसमान पोताना पादप्रहारथी गवण मस्तक पर रहेला मणिवाला मुकुटोने तेना पराक्रमनी साथेज Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पन बलदेव चरित्र. (१५) कुंजारना वासणनी पेठे चूर्ण करी नाख्या. “अरे सुन्नटो! पकमो! पकमो !! एने मारो! मारो!! " एम रावण कहेवा लाग्यो एटलामां तो हनूमाने पाग आकाशमां नग्ली पाटुथी लंकाना किल्लाने, मंदिरोने अने सुन्नटो समूहोने खंग खंग करी नाख्या. पनी तेजना समुप अने अखंमीत गतिवाला हनुमान तत्काल रामादिकना जोता बतां तुरत रामना सैन्यप्रत्ये आव्या. त्यां तेमणे सीतानो चूमामणि रामना हस्तने विषे मूकी प्रणाम करया. रामेतेने हर्षथी पूज्युं, “हे हनूमान ? तमे नले आव्या देवी कुशल ? तमने मार्गने विषे कोइए रोक्या तो नथी ? आम रामना पूबवा नपरथी हनमाने हर्ष पूर्वक तेमने कह्यु. हे नाथ ! हुं आपना चरणने नमस्कार करी अहिंधी चाल्यो अने अनुक्रमे लंकामां ज्यां देवरमण नद्यानने विषे सीता हता त्यां.गयो. में तेमने आपनी मुश्किा आपीने कुशल वार्ता कही; तेथी ते जानकी बहु आनंद पाम्या. तमारा नाम मंत्रना जापश्री पवित्र एवा सीताने में ते दिवसे बहु आग्रहथी विश दहामे पारकराव्यु. हे स्वामिन् ! त्यारं परी तमारा प्रसादथी चूमामणिने लश्, अनेक राक्षसो सहित अक्षपुत्रने हणी, संकाना किल्लाने तोमी सर्वने अत्यंत दोन्न नपजावी हुँ अहिं आपना चरणकमलनी पासे कुशलपणे आव्यो .” हनमंत वीरनां आवां चमत्कारी चरित्रने सांनली हर्षित श्रयेला लक्ष्मण विगेरे तेनी बहु प्रशंसा करवा लाग्या. म्होटी विरह व्यथारूप सर्पणना क्लेशने नाश करवामां समर्थ ते राम जाणे निश्चे पोतानी प्रियना संयोगनी शुझिने अर्थे सत्यकारपणुंज होयनी ! एवा जनक राजपुत्रीये मोकलेला चूमामणि रत्नने पोताना हृदयमां धारण करीने दीर्घकाल सुधी बहु आनंद पाम्या. इति श्री पद्म चरित्रे विरोधादिसंबंधेहनूमतवादानुवर्णनो नाम षष्टः प्रस्तावः ॥६॥ . पढी रावणनो घात करवाने प्रतिज्ञा करनारा लक्ष्मणे श्री राम सहित तारा दिवसे शुन्न मुहूर्तमां प्रयाण करचुं. ते वखते रामना सैन्यने विषे विराध सहित सुग्रीव, नामंगल, नील, जांबुवान हनूमान अने महेंविगेरे महा बसवंत विद्याधरो एकग यया हता. बलवंत खेचरोना वाहन हाथीयो, घोमान तेमज पालानथी पूर्ण एवा असंख्य सैन्यथी अमे तेनना वैमानना समूहथी Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. आकाश तथा सूर्यनुं निर्मल प्रतिबिंब आचादित थ गयु. शीघ्र प्रयाणथी नू... मीने नल्लंघन करी महा समुनी नपर विचरता विद्याधरो अनुक्रमे असंख्य सैन्य सहित वेलंधर नामना नगरप्रत्ये आवी पहोच्या. आ नगरमां त्यांना ब-, सवंत समुअने सेन नामना बे राजान रामनी साथे युद्ध करवा आव्या; प. रंतु तेमने तो विद्याधरोना अधिपति एवा नलनीले तत्काल बांधी लीधा. पली रामनी आज्ञा पालवामां तत्पर श्रयेला ते नम्र एवा बन्ने राजानने श्री रामे तेमनां राज्यने विषे स्थाप्या. कहुं ले के-सत् पुरुषोनो म्होटो प्रसाद तत्काल सफल पाय ठे. समुश् नूपतिये पोतानी उत्तम रूपवती त्रण पुत्रीयो हर्षपूर्वक लक्ष्मणने आपी. का ले के-सजुगथी शोन्नता पुरुषनुं गौरव कोण नथी करतुं ? अर्थात् सर्व करे . परी ते बन्ने राजानना अति आग्रहने लीधे अति । गौरवश्री राम आगल प्रयाण करवामां नत्सुक बतां एक रात्री त्यां रह्या. प्रनाते सकल विश्वने पूरी देनारा प्रयागना वाजींत्रोना शब्दपूर्वक तेनए प्रयाण, करयुं अने अनुक्रमे सुवेल पर्वत पासे आवी पहोच्या. त्यां श्री रामे सुवेलनाअने पण पोताने स्वाधिन कस्बो. त्यां पण तेना आग्रहथी एक रात्री रही सेना सहित राम आगल चाल्या अने लंकाहीपनीपासेना सहीपनी पासे आवी पहोच्या. त्यांना राजा हंसरथने जीती सर्व विद्याधरोथी सेवन करायला अनेशत्रुरूप अंधकारने नाश करवामां सूर्यरूप श्रीराम निर्भयपणे त्यां रहा. वखते लंका-- नारहीशो पण पोताना नपर चमाइ करीआवेला दशरथ पुत्र रामने सैन्य सहित जो कोन पाम्या तेमज अति बलिष्टताने लीधे गर्व धारण करनारो अने दूर्गमा रहेलो रावण पण दोन पाम्यो. पठी रावणनी सेवा करवामां तत्पर एवा प्रहस्त, हस्त, मारीचि अने सारण प्रमुख अनेक विद्याधर पतियो युद्ध करवाने तैयार अया. महा प्रचंम क्रोधथी सिंहासनने कंपावता एवा अने युः क्रीमामां चपल एवा रावणे पण तत्काल संग्रामनो पट्टह वगमाव्यो. आ वखते विचकण अने विवेकवान् विन्नीषणे आवीने आदरपूर्वक रावणने कटु. "हे ना! फरीश्री स्थीर मनवालो श्रइ पोताना हितने माटे म्हारुं एकवार । वचन सनिल. ते प्रथमधीज विचार कस्या विना परस्त्री हरणरूप पापकर्म । करघु ने एजे पोताना वंशने मलीन करनारूं, पोतानो अंत करनारुं अने नवांतेरे निश्चे दूर्गति प्रापनारुं छे. बलवंत राम पोतानी प्राणप्रिया सीताने पाठी Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. वालवाने अहिं आव्या . ते तने थोमा कालमांगरुक जेम सर्पनो नाश करे तेम नाश पमामशे. जो के देवादिकभी न जीताय एवा अने रघुवंशमां नत्पन्न थयेला ते राम लक्ष्मण वीर तो दूर रह्या; परंतु त्दाराथी तेमनो एक सेवक हनूमान पण जीतावो अशक्य अयो.हे बंधो ! ते पोताना वंशना विनाशने माटे ते जनक राज्यपुत्रीने अहिं लावेली देखाय . तुं पोतानी कुबुझ्यिी स्वर्ग समान पृथ्वीनां आनूषणरूप पोताना राज्यने वृथा न हारी जा." ते वखते महा मेघना समान शब्दवालो अने मंदराचलना समान धैर्यवालो मेघनाद बोल्यो. “अरे विनीषण ! तुं शत्रुना समूहने देखवा मात्रश्रीज शा माटे बीकरापणुं धारे ? कारण तुं देव, दानव अने मनुष्योथी निरंतरन जीतीशकाय एवा पिताश्री रावण राजाने जाणता उतां पण नपुंसकपणाथी अमारा सर्वेनुं वृथा जमपणुं देखामी आपे . वली हे मूढ ! अमारा पराक्रमोने जा. पता बतां तुं सर्व प्रकारना विद्याबलथी रहित अने वनेचर एवा ए राम लक्ष्मणने वृथा वखाणतो तो शुलजा नथी पामतो ? निश्चे हारा आवा वि. चारथी धीरजतानो लोप करनारो तुंज प्रथम शत्रुरूप .” आवांरावणपुत्र मेघनादनां वचन सानली अत्यंत क्रोध पामेला विन्नीषणे कडं. । “अरे ऽर्मुख ! तुंज शत्रुरूप ने अने पोताना वंशने विषे विनाशनु का. रण यो ले. कारण जे तुं पोताना बंधुनए कदेलु हिताहित जाणी शकतो नथी. वली कामातुर एवो त्हारो पिता अने तुं बन्ने जगा मंद हो, माटे मूखेना शिरोमणि एवा तमे बन्ने जा ऽऊय एवा शत्रुरूप समुझ्ने विषे पमशो.” विन्नीषणनां ावां वचन सांजली तीव्रकोपरुप अग्मियी तप्त श्रयेला आत्मावालो रावण सिंहासनथी उठी नीतिना वनरूप विन्नीषराने मारवा माटे दोमयो. पठी क्रोधथी विकराल श्रयेलो विन्नीषण पण एक म्होटा स्तंनने उपामी तत्काल रावणने मारवा माटे सामो दोमयो. कयु के-जे पोताना बंधुने मारवानुं धारे ते बंधु बतां शत्रुज समजवो. आ वखते-तत्काल (कुलकर्णे श्रावीने ते बनेने निवास्या. पनी रावणे कठोर वचनश्री जयंकर कोपवाला विन्नीषणने कहुं. “अरे शत्रुना पक्षपाति ! तुं म्हारा राज्यपी कट 'चाल्यो जा! चाल्यो जा!!” आम रावणे तिरस्कार करेलो विन्तीपण तत्काल रामना सैन्यप्रत्ये गयो, ज्यारे विनीषण रामना सैन्यप्रत्ये गयो त्यारे लेनी पा.. २८ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१८ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. बल एवा विद्याधरोनी ने राक्षसोनी प्रदोहिणी प्रमाण बहु सेना जेमन हाथीनी पाबल उत्तम दाथणीयो जाय तेम गइ. आवता एवा विभीषणने जोइ रामना सेवको प्रथम तो कोनं पामी गया; परंतु एटलामां तो विनीष - ये पोतानुं श्रववानुं रामने जणाववा माटे सेवक भोकल्यो. सेवके श्री रामने aalveer श्रववानी खबर आपी. या वखते ते सेवकने जोइ विश्वासपात्र थइ गयेलुं सर्व वानरोनुं सैन्य रामने कहेवा लाग्युं. "6 या क्रूर हृदयवाला राक्षसो दंजयुक्त होय बे, माटे प्रथम तेनी जाबविगेरे चिन्दोथी परीक्षा करीने पर्वी तेने आपनी पासे बेसारवो.” सेवकोनां आवां वचन सांगली दूते कां. "ए विभीषण महा विद्याने धारण करनारो, उत्तम धर्मवान्, नीतिमां कुशल अने विनीत बे. एसे सीताने बोमाववा माटे ( रावणने बहु बहु कह्युं . ए उपरथी रावणे क्रोध पामी तेने काढी मूक्यो बे, माटे आपना शरणे आवेलो बे." आवां सेवकनां वचन सांजली रामे तेने द्वारपाल मारफते पोतानी सनामां बोलाव्यो विभीषणे सन्नामां प्रावी रामना चरणने विषे नमस्कार करवा एटले रामे तेने तत्काल बन्ने जुजाथी थालिंगन करयुं. आ वखते रामना वक्षस्थलने विषे जाणे सुंदर नीति अने तaat her at sोयनी ! एम तेन बन्ने जसा शोनवा लाग्या. पनी विनीपणे हा जोमी श्री रामने कह्युं. " हे प्रनो ! अन्यायमार्गे रदेला बंधु राव - 1 साने त्यजी दइ न्यायमार्गे रहेला थप महाराजानी सेवा करवाने हुं श्रावेलो त; माटे पोताना सेवकरूप मने अंगीकार करो.” विभीषणनां श्रावां वचन - श्री अति प्रसन्न श्रयेला रामे कयुं. " हुं तने लंकानुं अधिपतिप पी. कह्युं ठेके - तत्काल प्रसन्न श्रयेला चित्तवाला म्होटा पुरुषो शुं नथी आपता ? अर्थात् सर्व वस्तु पेठे. 35 · पी राम ते हंसदीपमां आठ दिवस रही बहु धूलथी प्रकाशने ढांकी देता सैन्य सहित आगल चाल्या. अनुक्रमे तेमले लंकापुरीना सीमामे आवी विश योजन प्रमाण भूमीने रोकी अगएय एवा सैन्यना हाथी, घोमा अने पायदलना कोटि शब्दयी दिशानने पूर्ण करता पकाव कस्यो. या वखते रावगना सैन्यने विषे पण रोमांचित श्रयेला हस्त, प्रहस्त, शुक अने सारण विगेरे अनेक मुख्य राजानं शत्रु भूपतियोनी साधे युद्ध करवा तैयार था. रावण Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१५) पण अति घाढ अंतबर्लथी वज समान कवचने धारण करतो दिव्य शस्त्रथी पूर्ण एवा रथ नपर बेगे. महा श्रेष्ट वीर्यना कुंन समान अने शत्रुनी सेनारूप लतावनने नखेमी नाखवाने कुवामारूप कुंनकर्ण पण पोताना नाश्नी पाउखतैयार थयो. रणसंग्रामरूप महासमुन्ने मथन करवाने मंदराचल समान प. राक्रमवालो मेघनाद पोताना न्हानान्नाइ मेघवाहन सहित निरंतर रावणना बन्ने पमखाने सेववा लाग्यो. वली सुकुमार देहवाला अने पवित्र एवा रावणना बीजा हजारो पुत्रो युःक्ष्मां पाषाणनी पेठे अति कठोर अंगवाला घर तत्काल पितानी पाउल चाल्या. जाणे हालता चालता एवा पर्वतोज होयनी ! एवा बखतरवाला हाथी, घोमान, शस्त्रधी नरपुर एवा रथो अने सर्व प्रकारनां अस्त्रोने धारण करनारा पालान तैयार थया. वृद्धि पामेला शौर्यवालो सेनापति या प्रमाणे सेना तैयार करी रावणनी पाउल चाल्यो. कांबे के-उत्तम सेवको धणीनी आज्ञानी वाट जोइ रहेता नथी. . पनी विद्याधरोनी अने राक्षसोनी चार हजार प्रदौहिणी सेना सहित युझना अर्थी एवा रावणे पोताना नगरथी निकली पच्चास योजन नूमी नपर पमाव कस्यो. वन्ने सैन्यने विषे निर्जय एवा वाजींनोना कोटी शब्दो विश्वने पूरीदेवा लाग्या. पनी प्रनाते नदयाचल पर्वतना शिखर नपर ए बन्ने सैन्यना म्होटा रणसंग्रामने जोवा माटेज होयनी ! एम सुन्नटरूप नटोने नचाववा माटे पोताना किरणरूप हायने विस्तार करतो शिघ्रगतिवालो सूर्य नदय पाम्यो. ते वखते बन्ने सैन्यो पोत पोताना नूपतिनी आसाथी परस्पर सन्मुख नन्ना रही जेम लोकने विषे मेघो जल वर्षावे तेम बागोनो वर्षाद वरसाववा लाग्या. बन्ने सेनाना अग्रजागने विषे रहेला अने जेमने चोमांच वृदिपाम्यो हतो एवा वीर पुरुषोनो समूह, जेम सूक्ष्म बूधिवाला नविन अभ्यास कोनोसमूह स्वर अने व्यंजनने नवा तैयार थाय तेम युःकरवाने तैयार थयो. तेमां सर्व प्रकारना संग्रामथी विजय मेलवनारा अने न जिती शकाय एवा कपिराजवीरोधी विषम एवं पण राक्षसोनुं सैन्य जेम वायुथी मेघनी पंक्तिनो नाश थाय एम नाशी गयु. आम पोताना सैन्यनो परानव जो प्रहस्त अने _.१ अक्षोहिणी प्रमाण. २१८७० हाथी, २१८७० रथ, ६५६१० घोडा, १०९३५० पुरुष, ए एक मोहिणी कहेवाय छे. Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२०) . ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. हस्त विगेरे नइत पराक्रमवाला राक्षसोना अधिपतियो क्रोधथी तत्काल वानरोना सुन्नटोने मारवा माटे दोमया; परंतु नलवानरे हस्तने अने नी. प्रहस्तने रोकी राख्या, जेथी शत्रुननो नाश करवामां सक्ष राखनारा वन्ने त. रफना सुन्नटो एकबीजाने प्रहार देवा लाग्या. घणो वखत रणनूमिमां युद्ध कस्या पठी नलवानरे दस्तने अने नीलवानरे प्रहस्तने मारी नाख्या. कारण विजयलक्ष्मी तो पूर्वना पुण्ययोगे मले . आ अवसरे देवतानए नलनील न. पर दिव्य एवां पुष्पोनी वृष्टी करी ते जाणे सबल एवा शत्रुनना घातथी तेम ना नपर प्रसादरूप प्रनुनी दृष्टिज पमी न होय ? एम देखावा लागी. परी दस्त अने प्रहस्तना नाशथी क्रोधाकुल ययेला बीनत्स, मारीच, शुक, अर्क, सारण अने सिंहस्थ प्रमुख विद्याधरो तुरत वानरना सुन्नटोने मारवा । दोमया. तेमने जोश्ने सर्व प्रकारनां दिव्य श्रायुधवाला रथमां बेठेला, संताप अने विघ्नादि महा बलवंत वानर योक्षान ते राक्षसोनी साधे युः करवा आव्या. तेननु परस्पर यु६ चाब्युं तेमां वानर सुन्नटोए केटलाक राक्षसोना सुजटोने जीत्या अने राक्षसोना सुन्नटोए केटलाक वानरोना सुन्नटोने जीत्या. : श्रावा तेमना घोर युझ्ने जोवा असमर्थ एवो सूर्य ा वखते अस्त पामी गयो; तेश्री बन्ने सेना वेला विनाना समुनी पेठे पोते पोताने स्थानके गइ. वीरपुरुषो रणनूमिमां दणायला पोताना अथवा शत्रुना सुन्नटोनी शोध करवा लाग्या. फरी वीजे दिवस अति नन एवा अंधकारना समूहने नाश करवा माटे नुदय पामेला प्रतापवान् सूर्यनी पेठे रणसंग्रामनी क्रीमामां कौतुकी , एवो रावण पोते युझ करवाने तैयार थयो अने असंख्य सैन्यथी व्याप्त एवो ते क्रोध करी शत्रुना लक जीवोनो घात करवा माटे पोताना महावेगवाला रथमां वेसी तत्काल रणनूमीमां आव्यो. आ वखते कल्पांत कालना समुनी पेठे पोताना सर्व सैन्यपी पृथ्वीने पूरीदेता अने शत्रुना सैन्यनो नाश करवानी श्वावाला मदा वलवंत राम पण रणन मीमां श्राव्या. सवारमा प्रथम बन्ने तरफना योहान- खरु युव चाल्यु.कारण वादियोने सयुक्तिनी श्रेणीरूप वाणनावरसादशी वाद श्यो ? आ वखते रावणे कल्पांतकालना अग्नि स.': मान पोतोनी दृष्टियी अने हुंकार शब्दश्री शत्रुना सैन्यने मारवा माटे पोता. ना मरटोने वा प्रेरणा के, नेए रामना सैन्यने करामात्रमा मान विनांना Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्रः (२१) नसहा यंत्रथी म्होटा किल्लानी पेठे नाश करी नाख्यु. आम पोतानी रे सेनानो परानव जोश कोपथी कराल नेत्रवालो सुग्रीव जेटलामा पोताना शस्त्रधी पूर्ण एवा रथ नपर बेसी तत्काल जवानी तैयारी करे ले तेटलामां "हे महानग्र शौर्यवाला कपीश्वर सुग्रीव! हुं विद्यमान उतां आप अहिंजरदो" एम कहीने महा सह प्रराक्रमवाला अने बुध्विान हनूमान राक्षसनी सेना तरफ चाल्या एटले तेमने अनेक शस्त्रधारी एवा माल नामना दैत्यै रोक्या. ते उपरथी ते बनेनुं शस्त्र समूहना वर्षादयी विजलीनी पेठे नद्योत करनारं घोर युद्ध भयु. अंते हनूमाने ते माल दानवने युइमां शस्त्र रहित करीने कडं के, " हे राक्षसपति ! तुं आ रणयुःश्यी चाल्यो जा. कारण फक्त तने इणवायी म्हारी बदाउरी शी? अने म्हारा नुजनुं बल शुं ?" आम हनूमान कहेता हता एटलामां तो तेमना सामो वीरमानी एवो वजोदर नामे राक्षस आवीने कड़वा लाग्यो. “अरे! जो त्हारी शक्ति होय तो हवणांम्हारी साये युः कर; विलंब जवा दे.” वजोदरनां वां वचन सांजली अंजनीपुत्र हनूमान तत्काल युःइ करवा लाग्या. कारण के, निर्भय एवो सिंह शुं हाथीना तिरस्कारने सहन करे खरो ? पी हनूमाने बहु वखत तेनी साथे युःक्ष्क्रीमा करीने ठेवट तेने शस्त्र विनानो करीने मारी नाख्यो. कारण तेवा हनूमान समान सुन्नटनी आगल बीजो कयो टकी शके ? वजोदरनां मृत्युने सानली क्रोध पामेला अने मदयी अंध श्रयेला जांबुमाली विगेरे रावणना पुत्रोए कोपांध एवा इनूमानने घेरो घाल्यो. ते वखते हनूमाने नोगलवमे जांबुमालीने एवो मास्यो के, जेथी ते तेवा प्रहारने लीधे व्याकुल बन्यो बतो मूायी तत्काल वृक्षनी पेठे पृथ्वी पर पमयो. तेने पमयो जोश महोदरादि अनेक राकसो आवी पहोच्या, पण यमना समान प्राकृतिवाला हनूमाने तेमने हत प्रहत करी नाख्या. अहो! पवनंजयपुत्र समानको बलोत्कट सुन्नट नयी. कारण जे महा बलवंत हनूमान रावणना असंख्य सैन्यने विषे एकलोज युःह करवाने समर्थ थयो. श्राम हनूमाने निर्दयपणे अनेक मानवत राक्षसोना सुन्नटोने हणेला जोइ क्रोधथी श्राकुल व्याकुल श्रयेलो कुंनकर्ण स्थूल रूपने धारण करी वानरोने त्रास पमामतो रणनूमि तरफ दोमयो. कुंभकर्ण रणनूमिमां आव्यो तेने जोर वानरो "आ जीतवाने अशक्य ठे." ‘एम जाणी रणनूमि मूकी ग Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. रुमग्री त्रास पामी नासी जता सोनी पेठे नासी जवा लाग्या. कुंजकर्ण पण, केटलाकने वन्ने दायथी, केटलाकने वन्ने पगथी, केटलाकने ढींचण अने को, पीवती तत्काल मारवा लाग्यो,श्रा वखते तेनुं बल सहन करवाने कोइ समर्थ श्रयु नहि. पठी युध्ने विष कुंनकर्ण गाढ क्रोधथी पोतानी सेनारूप समुने मथन करतो जो मुत्पन्न श्रयेला महा कोपवालो सुग्रीव तुरत सर्व शत्रुननो नाश करवा माटे तैयार थयो. महें अने नाममल विगेरे अनेक नूपतियोत था वहु वानराधिपतियो कुलकर्णनी साये यु करवा लाग्या; परंतु ते कोश्थी जीतावाने शक्य भयो नहि. हवे कुंनकर्णे पोताना शस्त्रधी शत्रुनने अजय्य मानी अवस्वापिनी विद्या मूकी, तेथी वानरोनी सेना दिवसे पण नियुक्त श्रा गइ, आम पोतानी सेनाने निशयुक्त जो सुग्रीवे तत्काल अववोधिनी विद्यार्नु स्मरण करयु; तेथी ते सेना तुरत जागती इ. “पठी अरे निर्लज कुलकर्ण! तुं क्यां जाय ?" एम कहेता अने अवस्वापिनी निशथी नत्पन्न श्रयेला क्रोधवाला वानरो कुंनकर्णनी साये युः करवा लाग्या. सुन्नटोमां मुख्य एवा सु: ग्रीवे गदावती कुंनकर्णना रणने पापमनी पेठे कणमात्रमा नागी नाख्यो अने तेना घोमानने तथा सारथीने मारी नाख्या. आम अवाश्री तो अत्यंत कोधाकुल श्रयेलो कुंनकर्ण दाथमां उसद एवी नोगल ल तुरत सुग्रीवने मारवा माटे दोमयो; परंतु रस्तामां ते वहु वायुथी जेम मेघ रोका जाय एम बहु विद्याधरोपी रोका गयो. अनेक वानरो तेने रोकवा माटे म्होटी शीलानफेंकदा लाग्या; पण तेने तो ते कुंनकर्ण पोतानी जोगलवती चूर्ण करीनाखवा लाग्यो. फरी मुग्रीवे विद्युदंम नामे महा शस्त्र फेंक्यु, ते कुलकर्णना मस्तक नपर घोर एवी विजलीनी पेठे पमयु. या शस्त्रना प्रहारथी मूर्छने वक्ष्य थवान लीवे लोपाठ गयेला चैतन्यवाला अने क्रोधश्री रक्त श्रइ गयेला यमरूप तेणे सुग्रीवना रथनो नाश करवा माटे पोतानी सेनाने आगल चलावी. हवे अहिं लंकामां कुनकर्णने मूछी पामेलो सांजली अने रावणने युद्ध करवा जतो जो पुत्र इंजित रावणने कड़वा लाग्यो के, “हे तात ! वानरोने विपे अतुल नुजवलवाला तमारे ग्रा प्रयास शो ? हे पिता! आप अहिंज रहो. हुँ ए सर्वे शत्रुननो नाश करूं." ग्राम कड़ी मेघनाद सहित ते इंजित कोषधी कंपले. ग्तो तत्काल शत्रुना सैन्य प्रत्ये गयो, संहार करता अने यम Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (५२३) समान कांतिवाला उर्जय रावणपुत्रने जो वानरो युझने त्यजी दक्ष बन्ने जुए नाशी जवा लाग्या. पी रावणपुत्र इंजित नासी जता एवा वानरोने कहेवा लाग्यो के, “अहो ! तमे केम नासी जान गे? हुं युःह नहि करनारा एवा तमोने मारीश नहि. कारण तमने मारवाथी म्हारो पुरुषार्थ श्यो?" जमणे पोताना तुजबलथी सर्व योहाननो नाश करी नाख्यो अने जेमणे प्रगण्य एवा म्हारा पिताना सैन्यने जेम सिंह हाथीना समूहनो नाश करे तेम क्षणमात्रमा नाश करयो ने ते सुग्रीव अने हनूमान विगेरे श्रेष्ट कपीश्वरो क्यां गया ? " आम बोलता अने सेनानी अंदर प्रवेश करता तेने प्रबल पराक्रमी सुग्रीवे तत्काल आवीने घेरी लीधो तथा नाममले तेना न्हाना लाइने घेरी लीधो. पठी चारे महा योहानए परस्पर महा दारुण युः कस्यो, तेमां खमुथी अने बाणोथी युक्ष्मा अनेक शत्रुन माया गया. आ वखते तेउनु अनर्गल शौर्य तथा तुजवल जो विजय लक्ष्मीने पण “हवे मारे कोने वरबु?" एवो शंसय थर पस्यो. डेवट दीर्घकाल पर्यंत युद्ध करीने पनी इंजिते सुग्रीवने नागपासवमे बांधी लीधो तेमज महाबलवंत एवा मेघनादे नामंमल ने पण बंधन कस्यो. वली तेनने पाशथी एवा बंधन करया के, तेन बलवंत उतां पण श्वास लेवाने समर्थ थया नहि. अरे ! हाय पगने फेरवq तो दूर रमु, पण नेत्रनुं फरकवू पण बंध करयु. आ वखते कुंनकर्णने मूळ वली; ते. थी ते कोपथी व्याकुल थयो बतो रणनूमिमां प्राव्यो. पठी तेणे गदावमे ह. नूमानने एवं तामन करयु के, जेथी पवनंजयपुत्र हनूमान तत्काल मूळ पा. यो. पठी कुंन्नकणे महा लोगल समान पोताना बन्ने हाथथी तुरत मुर्चित एवा महावीर हनूमानने नपामी पोतानी बगलमा राख्यो. आम पोताना सुन्नटोने शत्रुना हाथमां गयेला जो विन्नीषणे रामने कडं. "हे नाथ ! आ तमारा सुग्रीव, हनूमान अने नामंगल त्रणे समर्थ सु. नटोने शत्रुनए पकाया , माटे ज्यांसुधीमां तेन तेमने लंकाप्रत्ये न ला जाय त्यांसुधीमा हुँ आपनी आज्ञाथी तेनने बोमाq.” एम कहीने विन्नीषण दुरत कुंजकर्णनी पासे गयो. पठी ज्यारे कुंन्नकणे युः करवा पोताना हाथ चा कस्या, तें वखते चैतन्यवंत एवा हनूमान जेम सिंचाणाना मुखथीचकली प्रमी जाय तेम नीचे नीकली पमया. पनी विनीषणे सुग्रीव तथा नामंत्र वा महावीर हनूमा मुलटोने शत्रुना हनूमान अने लामान लंकाप्रत Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२४ ) ऋषिमंगलवत्ति - पूर्वाई. बोकावा माटे रावणना पुत्र तरफ प्रयाण करयुं. ते वखते पोतानी तर तावले आता विभीषणने जोइ रावणपुत्रो विचारवा लाग्या. “जो के ना पक्षमां गयेलो विभीषण प्रमारी साथे युद्ध करवा आवे बे, तो पण टाकुलीन एवा श्रमारे ते पूज्यनी साथे शी रीते युद्ध कर ? माटे दवणा आपणे युद्ध मार्गश्री निवृत्ति पामवुं अने या शत्रुन पण मृत्यु पामशे. वली अत्यारे काको अत्यंत रुष्ट थयेला बे, माटे आपले जता रहीए. " आम विचार क| जेटलामां ते बन्ने जणा युद्धश्री निवृत्ति पाम्या तेटलामां विभीषण, जामंगल तथा सुग्रीवनी पासे श्रावी पहोच्यो. राम पण तुरत त्यां श्रव्या. नागपासना बंधनथी पीमा पामता ते बन्नेने जोइ राम लक्ष्मण बहु खेद पाम्या. पी जेणे पूर्वे वरदान आप्युं हतुं ते त्रण नेत्रवाला सुपर्ण (गरुम) देवनुं रामे स्मरण करयुं; तेथी ते देवताए तत्काल त्यां श्रावीने शत्रुने त्रास करनारी मृगैइनाद नामनी अपूर्व विद्या तथा दलमुशल रामने प्यां वली तेणे लक्ष्म विद्युन्मुख नामनी म्होटी गदा, गरुमयुक्त ध्वजावालो शस्त्रथी पूर्ण एवो दिव्यरथ, गारुमी विद्या अने देदिप्यमान एवां दिव्य शस्त्रो आप्यां पी ते देव राम लक्ष्मणनां चित्तने प्रसन्न करी पोते संतुष्ट थयो बतो पोताने स्थानके गयो. वली लक्ष्मणने देवताए, आपेला रथनी ध्वजा नपर रहेला गरुरुनी दृष्टि मात्रथी क्षणमात्रमां सुग्रीव तथा नामंकलना तुटी गयेला नागपास arat श्री रामनी सेनाने विषे जय जय शब्द थवा लाग्यो. पटी जाणे बन्ने सैन्यना सुनटोने विश्रांती आपवा माटेज होयनी ! एम सूर्य अस्त थयो एटले बने सैन्य पोतपोताने स्थाने जड़ पोतपोताना सुनटोने उपचार करवा लाग्या. पढी प्रजाते फरी जाणे वन्ने सेन्यनी युद्धक्रीमा जोवाने माटेज होयनी एम सूर्य उदय पाम्यो एटले वली बन्ने सैन्यनुं दारुण युद्ध चाल्युं श्रा वखते ते महा रणसंग्राममां अग्रेसर एवा सुग्रीव अने नामंगल विगेरे मुख्य जुपतियोथी राक्षसोनुं सर्व सैन्य क्षणमात्रमां नाशी गयुं. कारण के, विजय तो पुण्यवाननोज दोय ठे. पोतानी सेनानी जंग जोइ अत्यंत आकुल धयेलो, सक क रेला दिव्य आयु वालो ने शत्रुनो वध करवा माटे बहु स्पृहा करनारो रावण रणभूमिमाँ आव्यो. ते वखते काल समान प्रकृतिवाला रावणना सन्मुख न जो रही युद्ध करे एवो कोइ समर्थ सुनट रामना सैन्यने विषे नहोतो. पोतान. ३ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( श्श्य ) नानो, वध करता एवा रावणने जोइ राम तेना सन्मुख चाल्या. ते वखते तेमने पाar वाली विजीषण रावणना सामो थयो . सन्मुख श्रावता विभीषणने जोइ राव क्रोध करी तेने कह्युं. “अरे मूढ ! तुं शत्रुनो आश्रय करी पोतानुं सुख शा माटे देखावा वे बे ? हे विभीषण ! पोताना जीवितनुं रक्षण करनारा जे राम लक्ष्मण यमराजना मुखसमान म्हारा मुखनी प्रागल तने हणीने पोताना सेन्यने विषे रहेला बे, तेनो तुं शा माटे आश्रय करे बे ? हे अधमबंधु ! हजु पण ज्यां सुधी म्हारुं मन त्हारे विषे स्नेहवालुं बे, त्यां सुधी तुं श्रा वध करवा योग्य रामने त्यजी द शीघ्र रणभूमिमांधी नासी जा.” पबी विभीषणे निर्भयश्री कयुं. " हे दशमुख ! राम लक्ष्मण बन्ने जाइयो पोतेज हा साधे संग्राम करवा तैयार यया हता; परंतु व्हारा हितने माटे तेमने पाव वाली हुं आव्यो बुं. जो के में राज्यपदवीनी इच्छाथी तेमजं मृत्युना नयथी तेमनो आश्रय कस्यो नथी; परंतु आजवनो अने परभवनो नाश करनारा हारा अन्यायने जोइ तेमनो आश्रय करेलो बे. हजु पण जो तुं सती सीताने त्यजी दे तो हुं व्हारो आश्रय करूँ. नहि तो था राम लक्ष्मण तने पुत्र अने बांधवो सहित नाश करशे." विभीषणनां आवां वचन सांगली नृकुटी चावीने जयंकर बनेला राव तेने कयुं. " अरे वराक ! तुं शुं मने ए राम लक्ष्मणथी जय बतावे बे ? रणसंग्राममां म्हारी आागल तेन बीचारा कोण ! अने तुं प कोण ! ! ! जो हुं ते बन्ने नाइयोने युद्धमां न मारुं तो हुं व्हारो जाइ नहि. अरे विभीषण! तुं पण दवणां म्हारी पासेथी चाल्यो जा. नहि तो तने पण यमनो `श्रुतिश्री करीश. " आवुं रावणनुं कहेतुं सांजली कोपथी विकराल मुखवाला "विभीषणे तत्काल तेनी साथे युद्ध चलाव्यं. जेमले धनुष्यनी दोरीना घातश्री 1. ताने गजावी मूक्या हता एवा ते महा पराक्रमवाला बन्ने नाइयो क्रोधवमे रेस्पर विषम युथी हाथी योनी पेठे युद्ध करवा लाग्या. कुंभकर्ण रावसनी साथी रामने मारवा माटे दोमयो ने बीजा राक्षसो रामना सैन्यने मारवा या; परंतु रामे कुंभकर्णने, लक्ष्मणे मेघनादने, हनूमाने कुंन समान पचाला कुंज दानवने अने सुग्रीवे विरोधी एवा सारणने स्तंभावी राख्या. पर नामंगल विगेरे बीजा विद्याधराधिपतिथोए रावणना दुर्मुखादिक राक्ष'नीलाटोने मेघवृष्टि समान शस्त्र घातश्री स्खलना पसारुया. Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११६ ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वाई. मेघनादे क्रोध करी लक्ष्मण नपर तामस नामनुं शस्त्र फेंक्यूँ; परंतु ते शस्त्रने लक्ष्मणे तापन नामना शस्त्रथी व्यर्थ करी नाख्युं. बेवटे क्रोधाकुल थयेला लक्ष्मणे रावणपुत्र मेघनादने महापासथी हाथीनी पेठे बांध्यो, जेथी ते वीर मेघनाद तत्काल पृथ्वी उपर पी गयो. वली रामे कुंभकर्णने, हनूमाने कौंनने, सुग्रीवे विरोधि एवा सारणने अने नामंगलादिके बीजा दुर्मुखादिकने बंधन करा. पी राम अने लक्ष्मणनी प्रज्ञाथी हनुमंत विगेरे योग्दान इढबंधन बांधेला ते कुंजकर्णादि राक्षसोने पोतानी सेनाने विषे लइ गया. आम पोताना नाइने, पुत्रने ने बीजा योहानने बंधनमां पमेला जोइ अत्यंत कोप पामेला रावसे रामनो वध करवा माटे तुरत त्रिशुल फेंक्युं; पण ते त्रिशुलने तो रामे पोताना उत्कृट बागथी रस्तामांज नष्ट करयुं. ग्राम पोताना त्रिशुलनो नाश जोइ रावणे अमोघ एवी विजया शक्ति लीधी. ज्यारे रावणे पोताना हायने विषे शक्ति लीधी त्यारे रामे लक्ष्मणने कहां के, “हे लक्ष्मण ! विभीषणे पोताना जाइ रावणनो श्राश्रय न कस्यो, एज हेतुश्री या रावण दवणां नृपामेली शक्तिवती विभीषणने मारशे. " रामनां आवां वचन सांगली महा बलवंत एवा लक्ष्मण विभीषणना आमा बना रह्या अने रावण तरफ अस्त्र फेंकवा लाग्या एटले रावणे कोप करीने लक्ष्मण प्रत्ये कयुं. “ हे लक्ष्मण ! में शक्ति तने मारवा माटे लीधी नयी, बतां तुं शा माटे मरवा तैयार थायबे ? वध करवा योग्य म्हारो बंधु बे, माटे तुं म्हारा बंधुना पदने विषे याजे जीवतो रहे. " प्रमोघ शक्तिवाला रावणे ग्राम तिरस्कार करी अने चारे तरफ ते. शक्तिने नमावी लक्ष्मण नपर फेंकी, ते जाणे इंडे, पर्वत उपर वज्र फेंक्यू होयनी ! एवी देखावा लागी. शक्ति लक्ष्मणनी गतीने विषे वजनी पेठे वागी तेथी ते तेना प्रहारथी अत्यंत पीमा पामता बता मूर्छाने लीधे पृथ्वी उपर प की गया. ग्राम लक्ष्मणने चेतना रहित श्रइ पृथ्वी नपर पकता जोइ क्रोध राता नेत्रवाला राम, रावणने मारवा माटे तत्काल पंचानन नामना रथ न वेग. पठी बंधुना घातथी उत्पन्न थयेला कोपरूप श्रग्निथी ज्वाजल्यमान चाला रामे, रावानी साथे देव धने दानवोने कोन करनारुं युद्ध चलाव्यं. पण तत्काल बीजा रथ नपर बेसी युद्ध करवा लाग्यो; परंतु महा प मवाना गमे मात्रयां तेनो रथ चूर्ण करी नाख्यो. या प्रमाणे रामे t देश / Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( 299 ) 66 ना पांच रथो जागी नाख्या एटले तेथे एक युक्त युक्ति शोधी कहामी के, म्हारी शक्तिना प्रहारथी मूर्छा पामेलो लक्ष्मण सवारे मृत्यु पामशे अने तेना वियोगधी राम पण निश्चे तेज अवस्था अंगीकार करो. तो पछी हवे म्हारे रामनी साधे मीच्या युद्ध शा माटे करवुं जोइए ? " आम धारी ते युनिवृत्त लंकाप्रत्ये जतो रह्यो राम पण बंधुना दुःखथी आकुल थया ता तत्काल लक्ष्मण पासे आव्या. हवे पोताना बंधुने मूर्छाथी पृथ्वी उपर पमेला जोइने बहु शोकथी थाकुल व्याकुल थयेला मनवाला राम पण मूर्छायी पृथ्वी उपर पी गया. पबी प्यारे सुग्रीव विगेरे नरेंशेए करेला शीतल जल अने चंदनादिकना उपचारथी तेमनी मूर्छा वली त्यारे ते आदरपूर्वक पोताना बंधुनुं मुख जोता बता विलाप करवा लाग्या. " हे लघुबंधव लक्ष्मण ! तुं पोतानी स्निग्ध दृष्टिपी प्रागल बेठेला पोताना म्होटा नाइने केम नथी जोतो ? अथवा केम नथी बोलावतो ? हे वत्स ! तुं कोइ काराथी म्हारा उपर रुष्ट थयो बे ? जे होय ते मने कहे. अहो ! तैं म्हारे माटे वर्णवी न शकाय एवा वनवासना कष्टने मिझ्या सहन करयुं. अत्यारे घोर कष्टथी मूर्छा पामेला तने जोइ हुं श्वासोश्वास ज़न बुं, ए म्हारी बातिनी कठोरताने धिक्कार बे. हे सुबंधो ! हुं रावणना युद्धरूप समुझ्ने त्हारा जुजबलरूप वहावमे तरवाने समर्थ हतो, तो हवे तुं न विजयवंत एवा थइने श्रापले बन्ने जया ते समुइने लीला मात्रमां तरी जए. अरे निर्दय ने कठोर हृदयवाला ष्ट रावण ! तुं म्हारा बंधुने दलीने श्वांक्यां नासी जाय बे ? तुं क्षणमात्र रणांगणमां ननो रहे. हुं तने मारा बाणवती यमराजनो परुणो करूं." ग्राम विलाप करता अने वाणीथी शनो तिरस्कार करता राम धनुष्यनो टंकार शब्द करी तत्काल युद्ध करवाने भाटे ना थया. पी सुग्रीवे रामनी विनंती करी के, “हे नाथ! हवणां रात्रीनो वखत बे; रावण पोतानी नगरी प्रत्ये जतो रह्यो बे अने लक्ष्मण प्रहारने लीधे मूर्च्छित श्रयेला बे, माटे हवणां तमे धिरज धरो अने न्हाना बंधुने तत्काल नपचार करो.” सुग्रीवनां आवां वचन सांजली राम पोतानुं धनुष्य पृथ्वी नपर मूकी - खेद करता बता फरी विलाप करवा लाग्या. “ अरे हनूमान, नल, नील सुग्रीव विगेरे कपीश्वरो ! तमे सौ म्हारा उपर कृपा करी पोतपोताने' ? Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) ऋषिमंगलवत्ति - पूर्वा६. स्थानके चाल्या जा. हुं तो पोताना प्राणश्री पण अधिक इष्ट एवा आ लघु बांधवने त्यजी जरा पण दूर जवाने समर्थ नथी. " वली पण रामे पोतानी प्रियाना हरण अने बंधुना कष्टथी विभीषणने कर्तुं के, “हे जाइ ! हुं आपनुं कृत्य करी शक्यो नथी, एनी थापे म्हारा उपर क्षमा करवी. में जगत्नी समक्ष आपने लंकानुं राज्य आपवानी प्रतिज्ञा करी बे, पण ते या म्हारा जीवितरूप लक्ष्मणना घातथी पूर्ण थइ नथी. हा ! म्हारे नथी काम चक्रवर्त्ती राज्यनुं के, नश्री काम प्रियाना मुखने जोवानुं ! ! ! परंतु म्हारे सहचारी एवा पोताना बंधु विना एक कण सो वर्ष समान थाय बे, " ग्राम वियोगनी पीकाने लीधे विलाप करता रामने जोइ विजीषणे कां . " हे विजो ! उपचार करा विना केवल विलापथी शुं वलवानुं बे ? शक्तिना प्रहारथी पीमा पामेलो मनुष्य जे औषधादिकथी फरी जीवतो थाय बे ते मंत्र तंत्र विगेरे मुख्य नपायो लक्ष्मणने माटे करो. " विभीषणनुं कहेतुं प्रमाण करी रामे, सुग्रीव विगेरे योहानने लक्ष्मणनी चारे बाजुए बेसारी तेनुनी साथे पोते पण नाना प्रकारना नपचारो करवा लाग्या. हवे अवसरे को मारास सीतानी पासे जश्ने कहेवा लाग्यो के, "हाहाय! रावणनी शक्तिना प्रहारथी लक्ष्मण मृत्यु पाम्यो अने राम पण लक्ष्मएना वियोगधी श्रोमा दिवसमां मृत्यु पामशे !! ” ते माणसनां आवां वचन सांगली अत्यंत दुःखश्री तप्त थयेली सीता गाढ मूर्छाने लीघे तुरत पृथ्वी नपर पी गई. तेने राक्षसनी स्त्रीयोए शीतल जलना सिंचनथी थोमी वारे मूरति करी. पठी ते महा दुःखने लीधे विलाप करवा लागी के, " हे गंजि बुद्धिवाला लक्ष्मण ! हे धीर ! हे वीरमणि ! शुं तमे नस्म थयेला वृक्षनी उपमा जेवा संचलान वो ? अहो ! तमे पोताना म्होटा बंधुने त्यजी दइ शुं एकलाज परलोक गामी थया ? तसे पासे हता त्यारे वनवास पण राज्य समान देखा तो हतो. हा विदेहराजपुत्री ! तुंज मंदपुण्यवाली वे के, जे दीयरने पण कष्टदायी र पमी. हवे प्रयाण करवामां तत्पर एवा म्हारा प्राण ऊट नाठा पामो ! नावा पामो !! " ग्राम दुःखने सीधे विलाप करती सीताने जो कोइ दयालु बलाकिनी नामनी विद्याधरीये सीताने प्रसन्न करवा माटे पानी विद्याना वली कहां. " हे जनकसुता ! तुं स्वस्थ था. व्दारा - दीयर Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IPAT श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( ए) सवारे जीवता अशे अने वली मध्यान्हे तारा पति तने हर्ष आपनारा पण श्रशे. लक्ष्मणना घातथी क्षणमात्र हर्ष पामेलो रावण लंकामां गयो , पण ते त्यां पोताना पुत्रने अने बंधुने श्रयेला नागपासना बंधन संन्नारी वारंवार आ प्रमाणे विलाप करे ने के, “हे बंधो कुंन्नकर्ण! हे सुपुत्र मेघनाद ! अने कुलने विषे आन्नरणरूप हे बीजा पवित्र पुत्रो ! तमे सौ नागपासना बंधननी पीमाने शीरीते सहन करी लकशो ?” आम वारंवार बहु विलाप करतो रावण तत्काल मूर्चा पाम्यो . कर्वा के के-निरंतर अनितिमार्गे चालनारा मासोने सुख क्याथी होय ?" हवे आ अवसरे को स्वरूपवान् माणस नामंगल पासे आवीने कहेवा लाग्यो. "तुं मने रामनुं दर्शन कराव्य के, जेथी हुँ लक्ष्मणने जीवामवानो नपाय बतावं." पीनामंगल तेने हाथ पकमी राम पाले लाग्यो अने रामने प्रणाम करीने कहेवा लाग्यो. “ हे नाय ! आ पुरुष जे कहे ते सान्नलो.” पी पेलो पुरुष कहेवा लाग्यो. संगीतक देशना राजा शशीममलनी सुप्रन्ना प्रियाथी नत्पन्न अयेलो • महा कीर्तिवंत चं नामनो हुँ विद्याधराधिपति बु. एक दिवस हुँ प्रिया सहित पृथ्वी नपर कीमा करतो हतो एवामां शस्त्रना समूहने धारण करनारा सहस्त्राधिज्य नामना विद्याधरे मने मार्गमां दीगे. पी पूर्वना वैरने लीधे ते णे म्हारी साथे बहु यु करीने मने सुद्दढनामनी शक्तिवझे एवो प्रहार कस्यो , के, जेथी हुं आकाशथी नीचे पृथ्वी नपर पमी गयो. त्यांथी साकेत नामना नगरना महेशेदय नामना नद्याननी पासे पालोटता एवा मने दयावंत एवा तमारा नाइश्री लरतराजाए दीगे. पगे परोपकारी एवा तेमणे क्यांश्श्री सुगंधी जल लावी तेनुंम्हारा नपर सिंचन करी तत्काल म्हारा शरीरमांथी शक्ति दूर करी, आम ते जलथी जेनुं शरीर स्वस्थ बनी गयु ले एवो हुं ते महाराजाने जलनुं स्वरूप पूवा लाग्यो एटले तेमणे कडं के, को वखते वंध्य नामनो सार्थपति हस्तिनापुर पासेथी जतो हतो. तेनो एक वृषन्न बहु नारने लीधे आज नगरमां तुटी पमयो. पठी सार्थपतिये ते वृषननी सारसंन्नाल माटे घणुं क्ष्य प्रापी तेने गामना माणसोने सोंप्यो अने पोते पोतानी नगरी प्रत्ये गयो. नगरवासी जनोए सार्थपतीनुं व्य लीधुं; पण वृषन्ननी जरापण सारसंन्नाल करीना Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. तेश्री ते वीचारो लोकोनी सारसंन्नाल विना दुःखथी अकाम निर्जरावो मृत्यु पामीने देवता अयो. पठी ते देवताए पूर्व जन्मना वैरथी म्हारा देशने विषे रोग विकुयो. हवे म्हारी पालेना म्हारा मामाना देशमां निरोगीपणुं जोश में तेमने पूज्यु के, “ तमारा देशमां निरोगतानुं हुं कारण ?” (चं विद्याधर श्री रामने कहे जे के,) पली शेणघन राजाए पोताना नाणेज नरत नूपतिने कडं के, “ म्हारी प्रियंकरा नामनी जे पत्नी ने ते पूर्वे बहु रोगवाली हती, परंतु तेना गर्नने विषे कोइ पुण्यवान जीव नुत्पन्न भयो; तेना अनुन्नावथी ते रोग रहित थइ. पठी अनुक्रमे तेणे एक पुत्रीने जन्म आप्यो. में तेनुं विशख्या एवं नाम पामयु. हे नागिनेय ! पूर्वे म्हारो देश पण त्हारा देशनी पेठे बहु रोगवालो हतो; परंतु ए पुत्रीना स्नानजलनुं सींचन करवाश्री तत्काल निरोगी थयो . ___ एक दिवस म्हारे त्यां सत्यनू ति मुनि आव्या. तेमने में ए विशल्याना अतिशयनुं कारण पूज्युं एटले तेमणे कडं के, “एणे पूर्व नवने विषे अति घोर तप करेल , माटे तेना स्नानजलना सिंचन करवाथी अतिःसह एवा उष्ट वनी शांति, महारोगनो नाश अने शल्यनो कय श्राय . तो लक्षमणने पण एश्रीज शांति श्रवानी .” (नरत राजा चंद विद्याधरने कहे जे के,) मामानां आवां वचन सांजली में विशल्याना स्नान जलने लावी म्हारा देशने विषे गंटयुं, एश्री म्हारा देशनो रोग नाश पामी गयो. (चं विद्याधर श्री रामने कहे के,) नरत नूपतिनी एवी वाणी सनिली स्वस्थ थयेला शरीरवालो हुँ पिताए करेला नत्सव पूर्वक म्हारा घरने विषे गयो. ते हुं आजे या लक्ष्मणने प्रवल एवी शक्तिना प्रहारने श्रवण करी तत्काल तेनो नपाय कदेवाने माटे अहिं आव्यो ढुं. " हे नरोतम राम! तमे विशल्याना स्नानजलने शीघ्र अहिं मंगावो अने तेनुं लक्ष्मण नुपर सिंचन करो के, जेधी शक्तिनो प्रहार वृथा याय." चंड विद्यादरनां आवां वचन सांजलवाश्री राम विगरे सर्वे वहु हर्षित थया. पठी विचार करी रामनी अनुमति लश् नामंगल, हनुमान यने अंगद ए त्रणे जणा शीघ्र गतिवाला विमान नपर बेसी अयोध्यापुगे प्रत्ये आव्या. त्यां तेमणे नरत राजाने पोताना घरनी अंदर सुतेला Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( २३१ ) जोया एटले तो तेन गाढ चिंताथी पीमा पामता बता जेटलामां कृणवार नना रह्या तेलामां पासे रहेला प्रस्तावनी जारा करनारा पुरुषोए तुरी वाजीना शब्दयी तेमने जगाया. पढी साकेतन भूपति एवा भरत राजाए ते नामंगलादिक त्रणेने जोइ तत्काल आदरथी पूब्धुं के, " तमे शा कारण माटे अहिं आव्या बो ?” नामंकले सर्व वात निवेदन करी एटले फरी नरतनूपतिये तेमने करूं के, “हे विद्याधरो ! तमे मने म्हारा मामानी पासे लइ जान." ते नृपरथी ते त्रणे जपान ए भरतने विमानमां बेसारी क्षणमात्रमां कौतुकी मंगल एवा तेना पुरप्रत्ये पहोचामया. त्यां साकेतन नूपतिये पोताना मामा शेणघनने करूं के, “आपनी महा जाग्यवती पुत्री विशब्याने लक्ष्मणने वाली शक्तिना प्रहारना नाशने माटे ऊट मोकलो. " पी ते वखते महा हर्षवान् एवा शेणघने पोतानी पुत्री विशल्याने हजारो सखीयो सहित तुरत लक्ष्मणनो पाणीग्रहण करवा माटे मोकली. पठी भरत सहित नामंगल विगेरे सौ हजारो सखीयोवाली विशल्याने लइ चाल्या. रस्ते साकेतन पुर श्राव्यं त्यां भारतने मूकी बाकीना सौ रामनी पासे गया. अत्यंत | रूपवती एवी कन्या विशल्याने जोई शोक रहित श्रयेला राम, वानरोना समूद सहित पोतानुं कार्य सिद्ध करवाने उत्साहवंत थया. पढी रामनी श्राज्ञाथी विशल्याये कमल समान पोताना कोमल हस्तथी शक्तिना प्रदारवमे व्यथित 'श्रयेला लक्ष्मणना शरीरे स्पर्श कस्यो. आ वखते देवीना रूपने धारण करनारी तथा अत्यंत कृष्णवर्णवाली शक्ति लक्ष्मणना शरीरनो त्याग करी तत्काल - काश मार्गे जवा लागी ; परंतु पवनंजय कुमार एवा हनूमाने तेने पोताना बलथी ऊट पकमी लीधी अनेकां के, “अरे निर्दय महाकुष्ठ हृदयवाली रंगे ! तें म्हारा स्वामीने बहु पीमा थापी े तो हवे तने हुं गएात्रीमां नहि यावी शके एवी अर्थात् बहु म्होटी शिक्षा आपीश. " पढी जय पामती एवी ते शक्तिये हनूमानने कां. “ श्री धरण भूपतिये मने रावणने आपली बे. प्रज्ञप्ति विद्या म्हारी व्हेन a. म्हारो कांई दोष नथी. बलीष्ट रावणे लक्ष्मणने हावा माटे मने मूकी हती; परंतु पूर्व जवने विषे आचरेला घोर तप वाली विशल्याना अमिततेजथी हुँ हतप्रभाववाली यह बुं; जेथी हवे या लक्ष्मण पासे कृणमात्र रहेवाने हुं समर्थ नथी. हे सुनट ! हवे मने बोमी दे के, जेथी हुं चाली जानं ' "" Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३५ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. शक्तिनां यावां वचन सांगली दयावंत एवा हनूमाने तेनेत्यजी दीधी; तेश्री शक्ति पोताने इष्ट स्थाने चाली गइ अने लक्ष्मणने चैतन्य आव्युं पढी विशख्याये पोताना हाथश्री लक्ष्मणनां सर्व अंगने विषे गोशीर्ष चंदननो विलेपकस्यो; जेथी तेमनुं सर्व शरीर तदन घा विनानुं थइ गयं. पढी पूर्वभवना पुण्यश्री पुष्ट एवा लक्ष्मण तत्काल नेत्रने उघामी राम ने नामंगल विगेरे मुख्य अधिपतिना हर्ष सहित उज्जा थया. ते वखते पोताना नेत्रमांथी हर्षनां सुना समूहने वर्षावता एवा ने हर्षथी पूर्ण अंतरात्मावाला राम पोताना ' ने हाथी ऊट लक्ष्मणने जेटी परुया. सुनटो पण नोबत विगेरेना शब्दपूबैंक " हे प्रनो ! आप जयवंता वर्तो !! " एम आशीष श्रापवा लाग्या. वली रामनी आज्ञाथी सुग्रीव विगेरे बहु राजानए एकटा थर दिव्य एवी हजारो कन्यान सहित विशल्यानुं लग्न लक्ष्मणनी साथे करचं. वे आकाशने विषे ठेकाले ठेकाणे रहेली राक्षसोनी परंपराधी लक्ष्मणने जीवता श्रयेला जाणी खेदातुर थयेलो रावण विचार करतो बतो पोताना मंत्रीने कहेवा लाग्यो. “ अरेरे! में एम जाएयुं हतुं के, शक्तिना प्रहारथी लक्ष्मण तकाल मृत्यु पामशे अने तेना वियोगथी दुःख पामेला रामनी पण एज अवस्था घो. त्यारवाद म्हारुं सारुं यशे. वली सुग्रीव विगेरे पायदल नासी जशे, ती कुंक ने इंजित विगेरे म्हारा सुनटो बंधनश्री मुक्त थइ पोतानी मेले पावा श्रवशे. हे सचिव ! लक्ष्मण कया उपायथी जीव्या ? अने हवे रामनुं सेन्य देदिप्यमान थयुं तो म्हारा नाइ, पुत्र विगेरेना बंधनो शी रीते वुटशे ? " आम वारंवार पूठता एवा रावणने तेना मंत्रीयोए स्पृष्ट कह्युं के, 66 सीता पाठी सोंपी रामने प्रसन्न करो के, जेथी तमारा बंधु पुत्रादि मुक्त थाय. " मंत्रीयोना कहेवा नपरथी क्रोधातुर थयेला रावणे कोई एक चतुर गुप्त पुरुपने बोलावी तेने संदेशो कही तत्काल रामनी पासे मोकल्यो. दूत पण त त्काल रामनी पासे श्रावी कहेवा लाग्यो के, “हे राघव ! तमे म्हारुं कपटरहित वचन सांजलो. रावण आपने कदेवरावे वे के, तमे म्हारा जाइ अने पुत्रोने बोमी को तथा यापनी प्रिया जानकी मने अर्पण करो के, जेथी हुं तमने म्हारुं अर्ध राज्य तथा सीताश्री अधिक रूपवंती एवी त्रा हजार कन्यान आपुं. " पर्व रामे कहो. " म्हारे रावणनां राज्यनुं कांड प्रयोजन नथी तेमज सीता विन · Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्मं बलदेव चरित्र. (२३३) बीजी रूपवंती हजारो कन्यावझे मने प्रीति थाय तेम नश्री, माटे हे दूत ! तुं रावनी पासे जश्ने म्हाळं वचन कहे के, सीताने मूकी दीधा विना राम त्हारा ला तथा पुत्रोने गेमशे नहि." दूते ते वात रावणने कही एटले रावणे | फरी कांइ समाचार कही तेने पागे राम पासे मोकटयो. साहसीक दूत फरी रामनी पासे आवी कहेवा लाग्यो के, “हे राम ! समृध्विंत एवा राज्यश्री शामाटे नृष्ट थान गे, विश्वविजयी एवो रावण फक्त स्त्रीना माटे । निश्चे क्रोध करतो नश्री. हे राम ! वली जून के, आ तमारो नाइ लक्ष्मण ते रावनी शक्तिना प्रहारथी एकवार जीवतो थयो , पण हवे बीजीवार ते जीवी सकशे नहि, माटे महाराजा रावणने प्रसन्न करो." दूतनां आवां वचन सांजली क्रोधथी व्याप्त श्रयेला लदमणे कडं. " अरे मूढ दूत ! रणनूमिमांधी नासी गयेला ते रावणना उग्र एवा नुज बलने तुं शुं जाणे ठे ? तेना केटलाक पुत्रो तो रणनू मिमां हवाइ गया , केटलाकने बांधी राख्याने अने केटलाकने तो घायल करेला ले तो हवे सीताना हरणथी नत्पन्न ययेलो कोपरूप अग्नि रावणना मृत्यु विना शांति पामशे नहि." पनी दूते पोतानी लंका नगरी प्रत्ये आवीने सर्व वात राजा रावणने कही. रावणे पण पोताना सर्व प्रधान मंमलने बोलावीने पूज्यु के, “हे बुध्विंत सचिवो! हवे शुं करवू ?" नत्तम प्रधानोए तेने नत्तर आप्यो के, " हे नाथ! सीताले अपण करी रामनी साथे संधि करो अने पनी पोताना बंधु पुत्र विगेरेने गेभावी पोताना कुलनुं अने शीलनुं रक्षण करो." नत्तम प्रधानोनी आवी वाणी सनिलीने रावणर्नु चित्त जरापण सीताने त्यजी देवा नत्साहवंत थयुं नहि. अहो ! प्राणीयोना पापीष्ट कगेर चित्तने धिक्कार ! धिक्कार !! पठी रावण पोताना हृदयमा विचार करीने सघली तरफथी शत्रुनने ' जीतनारी तथा बहु रुपवाली विद्यानुं अराधन करवा माटे सन्नामांधी नठी नीकल्यो. स्नान करी पवित्र वस्त्रधी सुशोनित देहवालो ते तत्काल श्री शांतिनाथना मंदिर प्रत्ये गयो, त्यां तेणे हरिणना लांचनवाला श्री शांतिनाथ प्रनुनो चंदनथी मिश्रित एवां सुगंधी जलना पूर्ण कलशोवमे स्नात्र महोत्सव कस्यो. कपुरथी मिश्र एवा घणां चंदनथी प्रनुना शरीरने लेपन करीने न"क्ति पूर्वक प्रफुल्लित पुष्पोथी पूजन करयुं. अहो ! रावणनी अरिहंत प्रनुने Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५३४ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. विषेति तात्विकी भक्ति हती !!! पढी रावणे श्री शांतिनाथ प्रजुनी स्तुति करीने पोताना सुनटोनी पांसे नगरीमां पट्टह वगमाच्यो के, " हे नगरवासी जनो ! तमे आजी आठ दिवस पर्यंत उत्तम रीते श्री जिनेश्वर प्रभुनुं जन करवामां ने व्यानमां तत्पर थान. जे कोइ या म्हारी आज्ञाने निष्फ ल करशे ते चोरतुल्य शिक्षाने पात्र थशे. " ग्राम पट्टद वगरुावीने रावण विद्यानुं आराधन करवा तत्पर थयो. "" हवे रावल विद्यानुं साधन करवा वेगे बे, ते वात सुग्रीव विगेरे सुनटोएजाणी; तेी तेम श्री रामने कह्युं के, " हे नाथ ! हवणां रावण महा ध्यानमां लीन थइ गयो बे, माटे आप जेम योग्य होय तेम करो. सुग्रीव विगेरे सुनोनां आवां वचन सांजली रामे हलिने उत्तर थप्यो के, “हुं क्यारे पण दंग करनारो नथी. वली आयुधने त्याग कर। जिनमंदिरमां रहेला, ध्यानमां तत्पर अने शांत एवा रावणने जो हुं लंकापुरीनो जंग करी पीमा करूं तो पृथ्वीमां वीर पुरुषोना मध्ये म्हारी उत्तम प्रतिष्ठा शी ?” पढी जेम प्रचम वायु म्होटा पर्वतने दोन पमावा तैयार थाय एम महा पराक्रमवंत एवा अंगद विगेरे सुनटो रावणने कोन पमानवा दोमचा. तेनए विविध प्र कारना नृपसर्ग कस्या, परंतु तेथी रावण जरा पण दोन पाम्यो नहि. वली टंकार शब्द अने हाहहासश्री परा ते जरा जय पाम्यो नहि. ग्राम कोन र-हित अने निर्भय एवा रावणने जोइ अंगद विगेरे सुनटो फरी तेनी पासे आवीने कवा लाग्या के, " हे राक्षस ! तें रामना जयश्री या पाखंग श्यो प्रारं यो ? जो हारुं प्रतुल वल होय तो युद्ध कर." यावी रीते कोन पमामघो तो पण रावण तेनां वचनने सांगतो नहोतो; तेथी तेनए कठोर वचन कदेवा सांख्या के, " हे दशकंठ ! त्हारी परोकमांज राम, सीताने पावा ल गया मे पण द्वारा भुवनमां पेसीने बहु विलाप करती एवी न्हा प्रिया मंदोदरीनुं हरण करीए बीए, माटे हवे तुं तेनुं रक्षण कर रक्षण कर. एकाग्र चित्तवालो ने स्थिर ध्यानवालो रावण आवी रीते पोतानो तिरस्कार करता एवा अंगद विगेरे सुनटोने गणकारतो नहोतो; तेथी शीघ्र आसुरी वि द्या प्रगट धड़ के, जेना प्रभावी सर्वे कपीयो तत्काल नासी गया. पठी "हुं ममन्न ग्रह बुं! प्रसन्न यइ हुँ !! तुं व्दारा शत्रुचना घातादिष्ट अर्थरूप वरदान - " Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( २३५ ) माग. हुं- हारुं शुं इष्ट करूं ?" एम देवी आसुरी विद्याना कहेवा उपरथी रावयुंके, "हे देवी! तुं म्हारुं कार्य साध." पबी रावणनुं कहेतुं सर्व अंगी - कार करी आसुरी विद्यादेवी क्षणमात्रमां पोताने स्थानके गई. पी जेनी मरण दशा नजीक प्राप्त थर बे एवो रावण पण अंगद विगेरे सुन्नटोए कहेलां वचनने सांजलीने फरी बहु क्रोधने धारण करतो बतो क्रीमा करवानी इच्छापी सीतानी पासे गयो. ते वखते ते जाये मरण पामवाने उत्साहवंत थयेलो पतंग ज्वालाथी विकराल एवा महा मिने विषे पमतो होयनी ? एवो देखायो. पी रावण सीताने कहेवा लाग्यो के, "अहो ! में व्हारा उपर घणावखती बहु प्रसाद कस्यो बे, बतां तु म्हारुं वचन अंगीकार करती नथी तो श्राजे युद्धमा राम लक्ष्मणने दलीने हुं व्हारी साथे क्रीमा करीश, माटे हवे तुं व्दारा पोताना अनीष्ट अभिग्रहने ऊट मूकी दे." रावणनां श्रावां वचन सांजली शरण रहित जय पामेली सीता दुःखश्री मूर्छा पामी गइ. पी-रावनी प्रज्ञाथी दासीयोए सीताने शीतल उपचारथी तुरत सचेत वनावी एटले गइ वे कामदेवनी पीमा जेने एवो रावण, पोताना मनमां विवेकदृष्टिथी विचार करवा लाग्यो के, “ श्रहो ! पोताना प्रियपति रामने विषे निःकृत्रिम स्नेहवाली या सीता मने इछती नथी तो में बलवमे एनुं वृथा हरण करचुं. वली में म्हारा जाइयो तथा मंत्रियोनुं कहेतुं पण स्वीकारयुं नहि. हवे जो हुं हवां सीतारामने स्वाधिन करूं तो सर्व सुन्नटोमां व्दारी अपकीर्तिनो फेलावो याय, माटे ते करवुं तो योग्य नथी; पण जो युद्धमां रामने बंधन क नेप] तेमने सीता अर्पण करूं तो लोकमां म्हारुं अद्भुत पुरुषातन कहेवाय, ते न्याय ने धर्म पण निर्मल थाय. आम विचार करी सीताने त्यां मूकी बलीष्ट एवो रावण पोतानी सर्व सेना सहित सर्व प्रकारना शकुनोए निषेध करो तो दैवना वशी तुरत युद्धने विषे गयो. ते वखते कोपरूप श्री प्रज्वलित हृदयवाला, मदा पराक्रमवंत ने महा बलवंत एग हनुमान विगेरे सुनोथी चारे तरफ विंटलाइ रहेला राम लक्ष्मण पण तुरत रणनुमिमां व्या. "" पी बन्ने सैन्यमां घोर युद्ध चाल्युं एटले रावण पोतेज क्रोधने लीधे जेम .. जुख्यो माणस जोजन करवाने प्रवृत्त थाय तेम श्री रामनी सेनाने म Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६ ) ऋषिमंगलवत्ति - पूर्वा ६. माटे प्रव. आम यमराजनी पेठे पोतानी सेनानो संहार करता रावणने जोइ तुरत लक्ष्मणे पोताना महादारुण शस्त्रोवमे जेम गरुम पोतानी पांख व सर्पने प्रहार करे तेम प्रहार कस्यो. पबी रावणे पोताना शत्रुरूप लक्ष्मनेति दुर्जय मानीने विद्याना बलथी बहु जयंकर अनेक रूपो धारण क स्व. लक्ष्मणे रावणनां सर्व रूपाने विषे अनेक तिक्ष्ण शस्त्रोनो प्रहार करयो के, जेथी तेना मुख्य रूपने विषे चारे तरफथी अति नय पीमा श्रवा लागी. पठी रावणे पोताना सर्वे रूपोने संहरी लइ चक्रनुं स्मरण करयुं, जेथी तेज वखते ज्वाजल्यमान सूर्यना प्रतिबंव समान चक्र तेना हस्तने विषे प्राप्त थयुं. पी सुर असुरने पण जय आपनारा ते चक्रने जमावीने रावणे राम विगेरे वह शोक करता बता लक्ष्मण उपर फेंक्युं चक्र पण लक्ष्मणनी पासे यावी तेमनी प्रदक्षिणा करवा पूर्वक तेमनी बातीमां प्रहार करी तत्काल बहु पुण्यना योगथी तेमना जमला हस्त कमलनी नपर बेकुं. ग्राम पोतानुं चक्र पण लक्ष्मणना हाथने विषे प्राप्त थयेलुं जोइ अत्यंत खेद पामता रावणे विचारयुं के, " हा हा ! बहु कष्टथी मेलवलुं म्हारुं चक्रपण निष्फल गर्छु. पी निस्तेज बनी गयेला रावणने जोइ तुरत विभीषण तेने कहेवा लाग्यो के, " दे जाइ ! तुं सीताने त्यजी दइ पोताना बंधुन सहित सुखेथी राज्य कर. " रावणे धैर्यनो आश्रयकरी फरी उत्तर आप्यो के, "म्हारा जुजने विषे बहु बल वे, तेथी हुं चक्रसहित ए शत्रुने मुष्टी प्रहारथी इसी नाखीशे, ते तुंजो जे. " आम रावण कहेतो हतो एटलामां लक्ष्मणे चक्र फेंकीने तेनुं मस्तक वेदी नाख्यं धिक्कार वे रावणना दुष्ट अजिमानने !!! पछी रौध्यानमां पराया एवो प्रतिवासुदेव रावण मृत्यु पामीने अनेक दुःखोथी व्याप्त एवी चोश्री नरक प्रत्ये गयो बने श्राकाशमार्गमां जय जय शब्द करता ने हर्षय व्याप्त श्रयेला देवतानए लमलना मस्तक नपर उत्तम सुगंधवालां पुष्पो नी वृष्टि करी. 35 ॥ इति पद्मचरित्रे रावण निग्रहो नाम सप्तमः प्रस्तावः ॥ पती श्री रामना जयश्री नासी जता अने नायक विनाना ते राक्षसोने (वीप कहां के, " हे निशाचरो ! तमे उतावलश्री श्री रामना चरणकमलनो आश्रय करो. कारण के, वां था जारत भूमिने विषे श्रावमा बलदेव श्र Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (239) ने वासुदेवरूप दशरथ राजाना बलवंत श्री पद्म अने नारायण ( राम लक्ष्मए) नामना पुत्रो सेवा करवा योग्य बे. " विभीषणनुं आवुं परिणामसुंदर वचन सांजलीने निर्भय बनेला तथा निश्चल भक्तिथी व्याप्त थयेला महा सुनट एवा राक्षसो रामना चरणनो आश्रय करवा लाग्या. पबी पृथ्वीने विषे मेला रावणने जोइ बंधुना स्नेहना वश्यने लीधे मरवाने तैयार श्रयेला विभिषणे पोतानुं नदर चीरी नाखवा माटे क्षणमात्रमां शस्त्र लीधुं. या प्रमाणे मृत्यु पामवाने तैयार थयेला ते विभीषणने रामे नीवारीने कर्तुं के, "अरे बंधो ! या सर्व सुनने विषे निरंतर लकाकारी एवं शुं कृत्य करे बे ? पढी बंघीखानाथ बोला कुंभकर्ण मेघनाद विगेरे अनेक सुनो अने मंदोदरी विगेरे अनेक उत्तम स्त्रीयोनी साथे ते विभीषण रावरानी पासे प्रवीने रुदन करवा लाग्यो. ग्राम तारस्वरश्री रुदन करता अने महाशोकथी पूर्ण श्रइ गयेला विभीषणने लक्ष्मण सहित श्री राम तुरत मधुरवाणीश्री बोध करवा लाग्या. " हे विभीषण! आ पृथ्वी उपर पूर्वे रावण समान कोइ सुनट यइ गयेलो अथवा वे पढी थाय एम अत्यारे देखातुं नथी. कारण के, जेनुं आजसुधी प्रबल पराक्रम देव ने दानवोथी निरंतर अस्खलित हतुं वली जेणे - जसुधी वीर वृत्तिये करीने निश्वे श्रखं एवं त्रण खंमनुं साम्राज्य जोगव्यं वे ते सुनटोमां मुकुटरूप रावण तमारे शुं शोक करवा योग्य बे ? शुं कालने लीधे कया कया पुरुषो विनाश नथी पाम्या ? " या प्रमाणे अवसरना जाए एवा रामे ते विभीषणने कुटुंब सहित प्रवोध पमामीने तुरत तेज वखते रा-arer शरीरने अनि संस्कार कराव्या. पढी प्रसन्न मुखकमलवाला रामे लकमल सहित स्नान करी रावणना वंशनेविषे मुकुटरूप कुंभकर्ण ने इंजीत विगेरे वीर पुरुषाने कां. " हे कुंभकर्णादि सुन्नटो ! तमे सौ म्हारुं वचन सांगलो . हवे तमे निर्भय यज्ञ पूर्वनी पेठे पोतपोतानी राज्य स्थितिने पालो. " रामनां आवां वचन सांजली तेनए कयुं. "हे राम ! अमारे नाशवंत स्वभाववाला उत्तम राज्यनुं कांइ प्रयोजन नथी. हवे तो असे तुरत शाश्वत एवा मोक्ष सुखने मेलववा माटे गुरुनी पासे चारित्र अंगीकार करिशुं . पी तेज रात्रीने विषे. कुसुमायुध नामना नृपवनमां वल नामना मु 33 1 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३०) ऋषिमंमलबत्ति-पूर्वाई. ने केवल ज्ञान नत्पन्न थयु, तेथी तेज अवसरे देवतानए तेमनो केवल महोत्सव कस्यो. प्रनाते हर्षथी व्याप्त अंगवाला राम, लक्ष्मण, सुग्रीव अने वित्नीषण विगेरे अनेक पुरुषो,परिवार सहित ते केवती मुनीश्वरने वंदना करवा गया. त्यां केवलीये तेमने वैराग्यश्री सुशोनित एवी हाथीने बांधवानीशालारूप तथा पुण्यरूप अमृतने करवानी विशाल शालारूप पापने विनाश करनारी नत्तम धर्मदेशना आपी; तेथी रावणना न्हाना नाश कुंभकर्ण सहित मेघनाद विगेरे अनेक वीर पुरुषोए तथा रावणनी स्त्री मंदोदरी विगेरे अनेक स्त्रीयोए तुरत सर्व संगनो त्याग करी दीक्षा लीधी. पठी संतुष्ट चित्तवाला, महोत्सवने नत्पन्न करनारा तथा सर्व प्रकारे सुशोनित अंगवाला रामे पण ते केवलीने तथा नव दीक्षित मुनींशेने प्रणाम करी लक्ष्मण, हनुमान, सुग्रीव अने नामंगल विगेरे अनेक विद्याधरो सहित विनीषणादि बहु राक्षसोए अलंकृत काल बहु . कापुरी प्रत्ये प्रवेश कस्यो. लंकामा प्रवेश कस्या पठी गरीष्ट एवा रामे पुष्पशैल पर्वतना शिखर नपर हनुमंते वर्णवेला शुशीलगुणवाली सती सीताने दीठी एटले तेमणे तपना आचरणथी उर्बल श्रश् गयेली, लळाथी नम्र अश गयेलां मुखकमलवाली अने पोताना पतिना आववाश्री संतुष्ट श्रयेला चित्तवाली सीताने पोताना खोलाने विपे बेसारी. आ वखते आकाशमां सुर, अ. सुर अने सिह नरोए दीर्घकाल पर्यंत चारे तरफथी एवी नदद्योषणा करी के, "पृथ्वीने विषे विशुशीलवाली, कलंक रहित तथा निष्पाप एवी आ जनकराजपुत्री सीता जयवंती वर्तो." राम पण पोताना चित्तरूप चकोरने आनंदित करवामां चंप सीताने बहु दिवसे जोता बता ते वखते आरंन्न करेला समग्र रणसंग्रामने सफल तथा मननी तुष्टीना कारणरूप मानवा लाग्या. पठी वासुदेव एवा लक्ष्मणे जनकराजपुत्री सीताना चरणकमलने हर्पथी प्रणाम कस्यो एटले सीताये तेमने हर्षश्री एवी आशिष आपी के, “हे वीर ! तमे दीर्घकाल पर्यंत जीवो अने आनंद पामो.” हर्षना आंसुश्री पूर्ण नेत्रवालानाममले पोतानी व्हेन सीताने प्रणाम कस्या एटले जनकराजसुताये तेने पाशीवचनयी बहु संतोष पमामयो. हर्पना वशथी सुग्रीव, हनुमान अने विन्नीषण विगरे मुख्य नूपतियोए पण पोतपोताना नामना नच्चार पूर्वक सीतानाचरणने विचे प्रणाम कस्या, तेश्री ते सर्वेने पण तेणे वारंवार आशियो पापी, Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १३७ ) पी लक्ष्मण सहित राम तुरत पर्वत समान जुवनालंकार नामना arit aपर बेसीने परिवारे विंटलाया बता विभीषणदि राक्षसोए करेला विविध प्रकारना नृत्सव पूर्वक रावणना मंदीर प्रत्ये गया. त्यां माणिक्य अने सुवर्णमय एवा म्होटा जिनमंदिरमां प्रवेश करीने तेमणे लक्ष्मण सहित श्री शांतिनाथनी प्रतिमाने नक्तिपूर्वक वंदना करी. पबी विभीषणे आलेलां सुगंधी पुष्पी रामे श्री शांतिनाथनी पूजा करीने बहु थी गर्जित एवा पवित्र स्त्रोत्रव स्तुति करी अने नमस्कार कस्यो. पी विजीपले बहु प्राग्रह पूर्वक सुग्रीव नामंगल विगेरे अनेक सेवको सहित राम लक्ष्मणने पोताना घर प्रत्ये ते जइहर्षी गौरव पूर्वक जोजन कराव्युं. त्यार बाद विशेषे जाण विणे रामने होटा सिंहासन उपर बेसारीने करूं. “ दे नाथ ! निरवा ला हाथी रथ विगेरे श्रापनुंज के अने हुं आपनो सेवक हुं, एम जाणो. वली जो श्राप म्हारा उपर क्रपा करीने मने आज्ञा प्रपता हो तो हुं आपने या सर्वे राक्षसोनी समक्ष लंकापुरीना राज्यनो महाभिषेक करूं. " पी संतो षित चित्तवाला रामे कह्युं के, “हे बंधो ! तें कह्युं ते ठीक, परंतु में तने लंकानुं राज्य आपवानुं कर्तुं बे, ते तुं शुं जूली गयो ? " पी रामे अत्यंत विनयवंत एवा विभीषणने राक्षसोनी समक लंकाना राज्यने विषे अभिषेक करयो. पी सिंहोदरादि राजानं सेवकोने मोकलीने तेमावेली पोतपोतानी प्रति रूपवाली कन्या पोतपोताना बंधुन सहित त्यां आवी. राम अने लक्ष्मण पण ते उत्तम रूपवाली कन्या ने महोत्सव पूर्वक परण्या पबी विभिषण अने सुग्रीव विगेरे अनेक नूपतियोए सेवन करेला अने तेथीज उत्तम सुखने लीधे दर्षवंत एवा राम लक्ष्मण, रावणनी राजधानी (लंका) मां व वर्ष पर्यंत रह्या. श्रा अवसरे विंध्याचल पर्वतनी उपर तपधारीमां श्रेष्ट एवो मेघनाद पोताना नाइ मेघवाहन सहित सिद्धि पाम्यो. ते उपर त्यां मेघरथ नामनुं तीर्थं लोक प्रसीद्ध j. hara सर्व कर्म जेणे एवो कुंजकर्ण पण नर्मदाने विषे सिद्धि पाम्यो, तेी त्यां आज पर्यंत लोकने विषे “रक्षित” नामनुं लोक प्रसिद्ध तीर्थ थयुं. हवे ते अवसर विषे अहिं अयोध्यामां उत्तम शीलधारी एवा रामनी माता कौशल्या तथा कल्याणनां पात्ररूप साध्वी अने विख्यात एवा लक्ष्मसनी माता सुमित्रा ए बन्ने पोतपोताना पुत्र शोकथी आकुल व्याकुल थता 1 1 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५४०) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. हता. वली तेन पोतपोताना पुत्रना कुशल समाचार न मलवाने लीधे अत्यं. " त दुःखित श्रया बता “ अमारा पुत्रना कुशल समाचार आजे अथवा काले आवशे." एवी आशाश्री निरंतर पोतानुं जीवित धारण करता हता. पनी । एक दिवस अधिक महिमावाला नारदरुषि बीजा दीपथी आ हीपमा श्रावी चम्या हता, तेमणे ग्लानी पामी गयेली मुखकांतिवाली ते बन्ने राणीयोने तेमना दुःखनुं कारण पूज्युं एटले तेनए कडं के, “हे नारद ! रामलक्ष्मण नामना अमारा पवित्र पुत्रो वनवास गया हता; त्यांथी तेन रावणे हरण करेली महासती सीताने पानी वालवा माटे लंकापुरी प्रत्ये गया . रावनी शक्तिना प्रहारथी लक्ष्मण मूळ पाम्या हता; तेथी नरत राजाए तुरत पो. ताना मामानी न्हानी पुत्री विशल्याने त्यां मोकली . हवे आगल शं थयुं. हशे ? ते अमे नथी जाणता; तेथी अमे बन्ने जणीयो शोकाकुल जीए." श्राम नारदने कहीने पुत्रवियोगथी विह्वल बनेली कौशल्या अने सुमित्रा ए वने जणीयो बहु रुदन करवा लागी. नारदे कह्यु. “हे सौजाग्यवंत मुखवालीयो ! तमे चित्तने विषे खेद न करो, हुं महा नाग्यकलाना निवासरूप तमारा बन्नेना पुत्रोने थोमा समयमां अहिं लावीश.” आम नारदरुषिये मधुर वचनश्री ते वन्ने जणीयोने शांत चित्तवाली करी पोते लंकापुरीमां रावणना निवास घरने विषे आव्या. त्यां तेमणे रामलक्ष्मणने दीग. पी रामे सत्कार पूर्वक नारदने पूज्यु के, “हे मुनि ! हवणां नवीन शुंठे ? अहिं आगमनजे कारण होय ते पण कहो ? " नारदे कडं. “ तमे नाग्यवझे नोगसमृध्निा स्थानने पाम्या गे तो हवे माताननी तुष्टीने माटे अयोध्यापुरी प्रत्ये जवान प्रयाण करो. हुं तमने एज कहेवाने माटे अहिं श्राव्यो बु.” नारदनां आवां वचन सांजली पोतानी माताने मलवाने वृदिपामेली नत्कंठावाला लक्ष्मण सहित रामे पोताना सेवक अने विशेष नक्तिवंत एवा वित्नीषणने क ा के, "हे बुद्धिवंत ! त्हारा गौरवपणाथी संतुष्ट चित्तवाला अमे आटला वर्षी अहिं सुग्वेयी रह्या जीए. दवे जो तुं आशा श्रापे तो अमे अमारी माताने मलवा माटे जडए.” वित्तीपणे कडं " हे नाय ! आप अहिं सोल दिवस रहो के, जयी हुँ म्हारा सेवकोनी पासे श्रापना प्रवेशने माटे अयोध्यापुरीने सुशोजित कगवू." रामे “ एम थान." एम कडं एटले विन्नीपणे तेज वखते पोताना Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (५४१) माणसोनी पासे अयोध्यापुरीने लक्ष्मीवमे इंऽपुरी समान सुशोनित बनावी दीधी. रामे आशा करी एटले तुरत नारदे अयोध्यामां आवीने पुत्रोनुं आग' मन कौशल्या तथा सुमित्राने कडं; तेथी ते बन्ने जणीयो बहु हर्ष पामी. पठी नविन प्रियानने साथे लश् लक्ष्मण अने सीता सहित राम तत्काल पुष्पक वैमानमां बेसी सुग्रीवादि नुपतियोनी साथे चाल्या अने श्रोमा वखतमां चारे तरफथी अनेक वैमाने करी व्याप्त एवं ते पुष्पक वैमान महासमुश्ने नखंधी अयोध्यानी समीपे आवी पहोच्यु. श्री रामने आव्या जाणी नद्यानमा रहेला नम्र नरत नूपतिये मंत्री, सामंत अने नागरीक लोको सहित म्होटा नत्सवथी सामैयुं करयु. नरतने सामा आव्या जोश राम पुष्पक वैमानथी नीचे नतस्या एटले विनयथी नम्र एवा नरते हाथीथी नीचे उतरी हपथी रामने प्रणाम कस्यो. नक्तिथी पोताना चरणने विषे पमेला नरतने रामे पोताना बन्ने दस्त कमलश्री आलिंगन करयुं अने जाणे हर्षना आंसुना मीषयी पूर्वना दुःखने खेंची काढता होयनी ? एम मोहने लीधे नेत्रजलयी सिंचन कस्वा. वली चरण कमलने विषे वंदन करता एवा शत्रुघ्न बंधुने पण . रामे आलिंगन करयुं. कारण के, इष्ट मनुष्यने मलवाने अवसरे परस्पर आलिंगन करवू एज मुख्य गरिष्ट फल . लदमणे पण नरत अने शत्रुघ्न ए बन्ने नाश्योने प्रणाम कस्यो. पी नरतनी विनंतीथी रामे ते पोताना बंधुन सहित वैमानमां बेसी नत्सवोश्री प्रसन्न मनवाला थया बता अयोध्या नगरीप्रत्ये प्रवेश कस्यो. त्यां प्रेमना आंसुने वरसावनारा रामे लदमण सहित पोतानी मातानना चरणकमलने नमस्कार कश्यो. विनीत एवी सीता अने विशल्या विगेरे वधुनए पण सासुनना चरणनी उत्तम नक्ति करी. हर्षथी विस्मित मनवाली मातानए पण तेमने आशिर्वचन दीधां. ज्यारे रामे अयोध्यामा प्रवेश कस्खो ते वखते सर्वे नगरवासी जनो हर्षथी व्याप्त थइ गया. पनी श्री रामना प्रवेशोत्सवथी हर्षित चित्तवाला विलीत जरते हाथ जोमी रामनी विनंती करी के, " हे विनो ! हवणां म्हारा उपर कृपा करी मने वृत लेवानी आज्ञा आपो. हुं आटला दिवस आपनी आझाश्रीज पिताना आचरणने अनुसरतो तो रह्यो बु.” रामे कडं. "कुलमा मुकुटरुप हे नरत बंधो ! तुं दीर्घकाल पर्यंत राज्य कर.अमे तो फक्त सलवाने माटे, Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. आव्या बीए पण राज्यने अर्थे आव्या नयी.” लरते फरीथी कां. "देई. श! में आपनी आज्ञाथीज आ राज्यनुं चीरकाल पर्यंत पालन करयुं गे, पण हवे तो हे नाइ ! नुज्वल एवां पुण्यने खीलारूप आ राज्य लीलाथी म्हारे शरयु; राम लक्ष्मणे बहु प्रेमथी विनीतापुरीना साम्राज्य पदने धारण करवानो आग्रह कस्खो तो पण नूपतियोने विषे चूमामणिरूप नरते तुरत अनेक नूपालोनी साथे विधिपूर्वक चारित्रने अंगीकार करी तपथी समग्र एवा आटे कर्मोनो कय करी अनंत सुखने आपनारा मोक्षपदने स्वीकारयुं. पली हर्षित एवा वित्नीषण विगेरे सर्व राजानए रामने कडं के, "हे प्रनो !जो आप आशा आपो तो अमे म्होटा नत्सवपूर्वक आपने राज्याभिषेक करी. ए.” रामे कडं. “हे नूमिपालो ! तमे सारा दिवसने विषे अनेक एका म्होटा नत्सवोथी रावणने जीतनारा लक्ष्मणने वासुदेव पदनो अनिषेक करो." रा. मनी प्रावी आझायी राक्षस, विद्याधर अने नूमिपालोए हर्षवमे पाजींत्रोन नाद पूर्वक म्होटा नत्सवथी प्रतिवासुदेव एवा रावणने मारनार लक्ष्मणने वा सुदेव पदनो अनिषेक कस्यो अने रामने बलदेव पदनो अनिषेक कस्यो त्यार पठी तेनए रामलक्ष्मणनी आगल मुक्ताफलादि अनेकवस्तुमनेट तरी के मूकी. आ वखते रामे विन्नीषणने लंकापुरीना हीपर्नु अधिपतिपणु आप्ट अने कपीश्वर एवा सुग्रीवने कपिछीपर्नु समस्त राज्य सोप्यु. वली नदार चि त्तवाला रामे आश्रितो नपर प्रेमने लीधे नामंगल विगेरे बहु नूपतियोने जूद जूदा इष्टदेशो आप्या. पी नग्रतेजवाला शत्रुघ्न वीरे पोताना र बलर्थ युहमां मधुदेशना राजाने जीती मथुरा नगरीना साम्राज्यपदने ग्रहण करयु श्राम शोल हजार नूपतियोए सेवन कस्यां चरण कमल जेमना एवा राग लक्ष्मणे निष्कंटक एवं पूर्ण अर्धा नरतखमनुं राज्य दीर्घकाल पर्यंत करयं सभित्राना पुत्र लक्ष्मराने शोल हजार स्त्रीयो श्रइ. तेमां विशल्या विगेरे आ पटराणीयो हती.अनुक्रमे तेनने लक्ष्मण समान आकृतीवाला, शत्रुन्थी - जय अने साम्राज्यलक्ष्मीने वरवामां नचित अंगवाला श्रीधर विगेरे वसोने पचास पुत्रो थया. श्रीरामने पण नत्तम रूपवाली आठ हजार स्त्रीयो हती; तेमां उत्तम रुपवाली सीता विगेरे चार पटराणीयो इती. कोड वग्वते सीताये रात्रीने विषे स्वप्नामां वैमानयी चवेला बे देव. Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (२४) तानने पोतानां मुखमां प्रवेश करता जोया. पगी जागीने तेणे ते स्वप्न फो. ताना पति रामने कडुं. राम पण विचार करीने प्रसन्न या प्रियानी आगल ते स्वप्ननुं फल कदेवा लाग्या के, “हे मनोहरमुखवाली!तने पवित्र एवा उत्तम प्रतापवाला बे पुत्रो थशे.” रामनां आवां वचनथी संतुष्ट प्रयेली सीता पोताना मंदीरप्रत्ये गइ. त्यारपती तेणे जेम रोहणाचल पर्वतनी नूमी निर्मल महामु. व्यवाला माणिक्यने धारण करे तेम गर्नने धारण करुयो. जेम निश्चे शरझतुनी चंज्यात्स्नाने विषे कोइ किंचितमात्र नष्पगुं देखी शकतो नथी तेम रामनी बीजी स्त्रीयो सीताने विषे क्यारे पण पापरूप दोष देखती नहोती. एक दिवस ते शोक्योए जनकराजपुत्रीने माथे मिथ्या दोष आरोपण करवा ना हेतुथी एम कडं के, “तुं जगत्ने आश्चर्यकारी अने जोवा योग्य एवा राव__णनां रूपने आलेखी अमने देखाम." सीताये मुग्ध नावथी उत्तर प्राप्यो. ___ "हे व्हेनो! में क्यारे पण रावणर्नु संपूर्ण अवयव जोयुं नधी, फक्त में एना पग दीग." सपत्नीयोए कह्यु. “ त्यारे तेना बन्ने पगालेखीने अमने बताव.” सरल स्वन्नाववाली सीताये ते वखते दिव्य एवा रावणना बन्ने पग आलेख्या. श्राम सीताना कलंकनुं मूल पोताने प्राप्त अयु; तेथी हर्ष पामेली तथा नत्पन्न श्रयेला कषायना पूरवाली सर्वे शोक्योए एकांतमां रामनी पासे जश्ने कयुं. “हे प्रिय ! आपने सीता बहु व्हाली डे, तोपण ते निरंतर रावगर्नुज ध्यान करे ले. कारण जो एम न दोय तो ते सीता रावणना बन्ने पगने आलेखी पोतानी पासे शा माटे राखे ?” आम कहीने तेनए रावराना चरणनी ग्बी रामने देखामी; परंतु रामे सीता नपर पूर्ण प्यारने लीधे ते स्त्रीयोचें कहे, चित्तने विषे मान्यु नहि. कारण संत पुरुषो क्यारे पण तुब प्रकृतीवाला यता नथी. पठी ते शोक्योए इर्ष्याने सीधे सीताना अपवादने तुरत लोकमां प्रसि६ करवा मांमयो. कडं ले के-अत्यंत कुश् अंतःकरणवाला पापीयो शुं शुं वृथा एबुंय पण अवलु आचरण नथी करता? पनी सीताये रामने कहूं. “हे पूएयवंत ! आपणां नद्याननां अति सुगंधवाला पुष्पोवमे नगरीमा रहेली अरिइंत प्रनुनी प्रतिमाने पूजन करवानो मने दहोलो उत्पन्न थयो." पगे त्यां वसंततुना उत्सवने विषे अयोध्या नगरनी कीमाने जोती एवी सीताये महोत्स.. Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४४ ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वाई. " वपूर्वक जैनमंदिराने विषे अरिहंत प्रजुनी नद्याननां पुष्पवमे पूजा करी. वखते जनकराजपुत्री सीतानुं दक्षिणनेत्र बहु फरकवा लाग्युं; तेथी कांइक खेद पामेली तेथे ए वात श्रीरामने कही. रामे कह्युं. " हे प्रिया ! ए सारुं नथी. ” सीताये कह्युं. “ म्हारुं रावणे हरण करयुं, एथी पण बीजुं मने शुं म्हो कष्ट प्राप्त श्रवानुं हशे ? हे नाथ ! हवणां मने आपनो वियोग न थान. " खेदश्रीपूर्ण बयेली सीता श्रावी रीते वारंवार कहेवा लागी एटले रामे कह्युं. "दे देवी ! धीरा थान ! बहु खेद करवाथी शुं ! पूर्वे करेलुं शुभाशुभ कर्म कोइनुं वृथा यतुं नथी, माटे घरप्रत्ये जान, देवपूजा करो ने श्रेष्ट सुनियोने दान आ पो. " पोताना प्रियनां श्रावां वचन सांजली धैर्यने धारण करती एवी सीता, पोताना मंदिरप्रत्ये जइने जिनेश्वरनी पूजा, मुनीश्वरोने दान अने तपनुं आचरण करवामां तत्पर थइ. कोइ वखते अयोध्या नगरीना महाजन लोको एकता थइ रामनी पासें । आव्या एटले रामे संतुष्ट चित्तथी तेमने सत्कार पूर्वक कहां के, “दे नत्तम पुरुषो! तमारे जे कां कदेवानुं होय ते कहो. " महाजन लोकोए क. " हे विनो! मे प्रापनी आागल श्रमारी विनंती कही शकता नथी. " रामे फरी श्री कह्यं. " तमे निर्भय अने निःशंक चित्तवाला थर जे कहेवानुं होय ते कहो. " पवी से नए स्वस्थ चित्तवाला थइने कर्तुं के, " हे नृपति ! लोको एम कहे वे के, अत्यंत कामातुर चितवाला रावणे सीतानुं हरण करयुं अने ते सीता रावणना घरप्रत्ये दीर्घकाल पर्यंत रही, तो ते शुद्ध शीलवाली केस रही हो ? ग्राम वे बतां प्रौढ अने बुद्धिमान् एवा श्री रामे पूर्वना प्रेमने लीचे निःशक इ सीताने सती मानी पोतानी सर्व स्त्रीयोने विषे मुख्य बनावी. हे नाथ ! श्रावो लोकापवाद तमारी नज्वल कीर्तिरूप वस्त्रने मशना समूनी पेठे मलिन करे . तो हे नरेंइ ! याप ए लोकापवादने महावृद्धि पामेलो न करो. वली " राम परीक्षा कस्या विना सीताने पोताना घरने विषे लाव्या. ए महा श्रपवाद समस्त राक्षसोना कुलमां उत्पन्न थयेला तमारा यशनो बहु नाश करे वे." यावां महाजनलोकोनां वचन सांजली रामे म क. " तमे श्रादित वचन म्हारी ग्रागल कह्युं; तेग्री निवे तमे म्हारा जक्तजनो. हे सुजनो ! हुं पोनाना जीवितथी पण अधिक एवी सीताने माटे' 33 Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (४५) आवा लोकोपवादने सहन करीश नहि. कारण के, लत् पुरुषाने या एज सर्द व्य कहेवाय .” रामे आवो पोतानो अन्तिप्राय विचारपूर्वक ते सर्वमहाजन लोकने जणावी सत्कारथी विदायकस्या; तेश्री तेन सर्व पोतपोताने स्थानकेगया. . पी राम रात्रीने विषे पण ते अपवादश्री शंकित मनवाला था पोते न. गरीने विषे नमता उता ए अपवादने सांजलवा लाग्या. वली तेमणे ए अपवादन सनिलवा माटे नगरनी बादार मोकलेला पोताना गुप्त सेवको जे जे सां. नसता ते ते सर्व रामनी पासे आवीने निवेदन करता.एक दीवस सुग्रीव, हनुमान अने विनोषण विगेरे अनेक सुन्नटो सहित सन्नामां बेठेला रामे को एक पोतानी पासे आवेला सेवकने पूज्यु एटले तेणे पगले पगले संन्नलातो ते अपवाद रामने कही संनलाव्यो के, “ रावणे पोताना घरने विषे राखेली सीताने नहि नोगवी होय एम केम घटे? पता रामे निःशंक थइ तेने सती मानी पो. ताना घरने विषे राखी!!!" सेवकना आवां वचन सांजली क्रोधथी कंपित अयेला लदमणे कयु. “ अरे लोको ! महासती एवी सीताने विषे जे को माणस दोगनुं आरोपण करशे, तेने हुं तुरत यमराजनो परुणो बनावीश. " रामे कां. “हे सुकतवंतबंघो! पूर्वे में आ प्रमाणे अधिकारीयोनां मुखथी सांनब्यु ने, वलो एटलुंज नहि पण में पोतानी जाते सांजल्यु ने अने रात्रीने । विषे मोकलेला चर लोकोनां मुखथी पण एमज सांनब्यु गे; माटे रावणे इ. रण करेली सीताने वनमा त्यजी दश के, जेथी विचित्र बुध्विालो लोक म्हारो अपवाद न बोले." आवां वजपातसमान रामनां वचन सांजली वा. सुदेवरूप लक्ष्मणे कडं. “हे बंधो ! आ महा मुर्ख एवा नागरीक लोकनां कड़वाथी महासती सीताने न त्यजो न त्यजो!! अहो ! अत्यंत श्रेष्ट एवां रा. ज्य सुखमां आसक्त थयेला ा नगरवासी लोको बीजा माणसना अपवादने त्यजी द राजाना अपवाद बोले , माटे दंग करवा योग्य एवा ते नागरीक खाकोने धिक्कार !" लक्ष्मणे आम कहा उतां पण रामे तो कृतांत नामना सेनापतिने आज्ञा करी के, “ तुं घोर एवा वनमां सीताने मूकी तुरत अहि पालो आव्य, विलंब करीश नहि.” कानने पीमा नपजावनारा रामना आवा हुकमने सांजली लक्ष्मणे पगमा पमीने कां." हे बंधो ! म्हारा नपर प्रसन्न थान ! प्रसन्न प्रान!! अने अपराध विनानी आ महासती सीताने बनमां न Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४६ ) ऋषिमंगलवत्ति-पूर्वा ६. त्यजी द्यो ! न त्यजी द्यो!!” रामे " तमारे श्रावुं फरीथी नदि बोलवु " एम कही लक्ष्मणने जवानी प्राज्ञा करी, तेथी अत्यंत खेदातुर थयेला लक्ष्मण पोताना घर प्रत्ये गया. पी इर्ष्यावंत एवा रामे कृतांत सेनापतिने फरीथी श्राज्ञा करी के, "व्हारे संमेतशिखर तीर्थनी यात्राना मीषथी सीताने महा प्ररण्यमां त्यजी देवी. " पी सारथी ये पोतानो रथ तैयार करी सीतानी पासे प्रवीने श्राप्रमाणे कयुं. " तमने अयोध्यापतिये उत्तम अने मनने इष्ट एवी संमेत शिखर तीर्थनी यात्रा करवा जवानी आज्ञा आपी बे." पटी अनेक आभुषणोने धारण करी नि. कपट चित्तवाली सीता र नपर बेटी एटले अनेक अपशुकन थया बतां पण सेनापतिये रथने ग्रागल चलाग्यो. अनुक्रमे ते गंगासागरना संगमरूप तीर्थने उतरी ज्यां अनेक सिंहो गर्जना करी रह्या दता एवा सिंहनाद नामना महा अरण्यमां श्रावी पहोच्या. पठी “ श्रा अरण्यमां सीताने केम त्यजी देवाय ? ' एवा वीचारथी अत्यंत खेद पामेला अने हृदयमां दुःखथी श्राकुल व्याकुल थयेला ते सेनापतिये थने ननो राख्यो एटले सरल स्वभाववाली सीताये तेनं कर्तुं के, “ अरे सारथी ! तुं रथने श्रगल केम नथी चलावतो ? " सीतानां प्रावां वचन सांजली जेनां नेत्रमांथी प्रांसुनी धारान वहेवा लागी हती एवा सारथीये नत्तर आप्यो के, “दे मात ! हुं महाराजा रामने वश बुं, तेथी गुं. करुं. सांजलो. रामे नगरवासी जनो पासेश्री तमारो अपवाद सांजल्यो; तेथी प्रांसुथी व्याप्त नेत्रवाला लक्ष्मणे ना कह्या बतां पण तेमले तमने त्यजी दीधांवे . हे स्वामिनी ! अने तेश्रीज निर्दय चित्तवालो हुं तमने तीर्थयात्राना मी महान् अरण्यमां तेमी लाग्यो बुं. हे मात ! वाघ विगेरे हिंसक पशुनी घोर एवा या वनमां पोताना शीलवृत्तथी रक्षण करायला तमे पोताना पति रामनी विषम यज्ञाथी रहो. " सारथीनां श्रावां वचन सांजली सीता मूर्छा पामी एटले कृतांत सारथीये तेने जाणे तुरत मृत्यु पामी गइ होयनी ? एम जाली श्रुधाराने वर्षावता बता वहु रुदन करवा मां, पी शीतल पवनवमे मूत्र रहित थयेली सीताये पण धैर्य त्यजी रुदनपूर्वक वि लाप करवा मांगो के, " हे करुणाना समुड़ ! तमे अपराध विना म्हारो सहसा त्याग केस कस्यो ? श्राम कहोंने फरी ते मूर्छा पामी, वली सचेत थड़ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव च ४५) त्यारे वनवासथी लय पामती सीता पोताना पुण्यरहितपणानहारा पूर्वनवना ना समूहने आपनारा दैवने निंदवा लागी. बेवट खेदातुर अयेक परीक्षा कस्या पुत्रीये बहु काल धीरपणुं धारण करीने सारथीने पूग्यु. “हे नाजी दीधी." हिंथी साकेतपुर केटले दर के अने राम क्या वे ? सारीये नत्तसा फरी मूर्चा "हे सुशीले ! सचेत श्रया एटले वली कहेवा लाग्या के, “ हाय हाय ! शरय. कारण के खेिद पामता राम शी रीते पोताना प्राणने धारण करी सनां प्रावां वचन्ये कहेला संदेशारूप कृतांत सारथीनां आवां वचन सांगली तेने कां. “हेवियोगरूप तिव्ररोगथी अत्यंत पीमा पामेला राम मूळ पाम्या. कडेवो. “में जल विगेरेना नपचारथी सचेत थया एटले गाढ विलाप करवा नदय थयो. सीताना वियोगथी पीमा पामेला रामने जो लक्ष्मणे का, नत्पन्न भयेला तमारी प्रिया वनने विषे पोताना शीलथी विघ्नोने दूर करती तेनी निश्चे हिसिन्नवे , माटे ज्यां सुधीमां ते तमारा वियोगयी मृत्यु न पामे मनेशा माटे अहिं तेमी लावो.” लक्ष्मण आ प्रमाणे रामने कही पोतेज परीक्षा करीप तिनी साथे वैमानमां बेसी तुरत ते सिंहनाद वनमां आव्या. त्यां नहि. फक्त यत्नथी सीतानी शोध करी, पण ते जमी नहि तेथी ते पोताने नो संगो नल्या. पठी “निश्चे ते वनमां सीतार्नु कोइ वाघ अथवा सिंह नरगी के यो हशे." एम धारी राम लक्ष्मणे सीतानी प्रेत क्रीया (उत्तर क्रीया केसी.नामंगल विगेरे सर्व बंधुवर्ग पण सीताना मृत्युना समाचार सांनली बह रुदन करवा लाग्या. रामे पण पोताना चिनने विषे पोताना अविचारी कार्यनी बहु निंदा करी. हवे अहिं पुमरीक नगरने विषे सुखेथी रहेला सीताये शुन्न दिवसे नचम समयमां श्रेष्ट लग्नने वखते वाव्य दिशाना गजराज पुष्पदंतना सरखा कांतिथी देदीप्यमान एवा बे पुत्रोने जन्म आप्यो. वज्रजंघ राजाए ते पुत्रोनो जन्मोत्सव करी पहेलानुं अनंगलवण अने बीजार्नु मदनांकुश एवां नाम पामयां. पनी धावमातानथी लालन पालन कराता ते बन्ने पुत्रो पोतानी मेले श्री रामना वंशरूप कल्पवृदनी नत्तम फल संपत्तिने धारण करता उता अनुक्रमे वृदिपामवा लाग्या. एक दिवस प्रसिह गुणवालो, बहु शास्त्रनो जास, समकीतथी सुशोलित, नत्तम नपासकोना सर्व व्रतने धारण करनारो. Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५०) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. रात्री दिवस सर्व तीर्थयात्रा करवायी पवित्र आकृतिवालो, शील वृत्तथी सु-", शोनित अने नाग्यने जाणनारो कोइ सिक्षार्थ नामनो विधान नीका नि. मित्ने सीताना घरे आव्यो. सीताये हर्ष पामी ते अतिथिने विविध प्रकारना नोजनधी जमामयो अने आदरथी तेना आववानुं स्वरूप पूज्यु, अतिथिये तुरत पोतानी सर्व वात खरेखरी कहीने पनी सीताने तेनी वात पूजी एटले सीताये पण पोतानुं सर्व वृत्तांत तेने कही संजलाव्यु. पीत्रीकालवेत्ता एवा ते नैमितिकरूप अतिथिये तेनी आगल प्रगटपणे कडं के, “हे सीता! तुं फोगट शा माटे खेद करे ले ? आ यौवनावस्थाने पामेला हा रा पुत्रो पराक्रमवमे इंश समान अने सर्व नुपतियोना मुकुटरूप थशे." पी सीताये हर्ष-' श्री ते अतिथिने पोताना घरने विषे राखी बुध्विंत एवा पोताना बन्ने पुत्रोने सर्व नत्तम कलाननो अन्यास करावा मांमयो. अनुक्रमे पुण्यांना अर्थी एवा ते अतिथि पासे अभ्यास करता बन्ने पुत्रो पोतानी रूपकांतिकी कामदेवनो. तिरस्कार करनारी युवावस्थाने प्राप्त थया उत्ता सर्व कलामां निपुण थया. पठी वनजंघ राजाए अनंगलवणकुमारने नत्तमरूपवाली बत्री राजकन्यान परणावी अने पोतानी लक्ष्मीवती राणीना नदरथी नत्पन्न बायेली शशिचु-' लिका नामनी पुत्री पण आपी. वली तेणे सीताना न्हाना पुत्र मदनांकशना' पाणिग्रहणने माटे पृथ्वीपुरना अधिपति एवा पृथुराजानी श्रेष्ठ पुण्यवंत कनकमालानी याचना करी. ते वखते पृथुराजाए दूत मुखथी कहेवराव्यु, के, “हुँ एवा अजाएया कुलरूपवालाने म्हारी पुत्री शी रीते आप? ” पृथु-'राजानां आवां वचन सांजली अत्यंत कोपायमान श्रयेलो वनजंघ पोताना सैन्यने तैयार करी अनंगलवण तथा मदनांकुश सहित पृथुराजा तरफ चाल्यो. पृथुराजा पण पोतानी सहाय्यने माटे पोतनपुरना नूपतिने वोलावी महावलवंत एवा वनजंघना सैन्य तरफ चाल्यो. पठी वन्ने सैन्यनु युइचाव्यं,तेमां पृथुराजाना सेन्यश्री पोतानुं सैन्य नाश पामेलु जागी अनंगलवण तथा मदनांकुश ए वन्ने महा बलवंत वीरो युह करवाने नव्या. पठी ज्यारे, ते बन्ने नाश्यो युः करवा लाग्या त्यारे को महा सुलट तेमनी आगल टंकी शक्यो नदि. ठेवट नासी जता पृथुराजाने जोश महा नुजाक्सवाला ते मागे मटा " हे नमिपाल पय ! अमने अजाएया वंदमां नत्पन्न Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. 6 ( २५१ ) येला जाणीने प्रख्यात वंशमां उत्पन्न श्रयेलो तुं आ रणसंग्रामयी स्त्रीनी पेठे केम नासी जावे ?” पढी पृथुराजाए पाठा वली सर्व राजाननी समक्ष कह्यं के, "हे कुमारो ! निश्वे तमारा या जुजाना पराक्रमग्री में तमारो वंश जाएयो वे." पढी पृथुराजा पूर्वे याचना करेली पोतानी पुत्रीनो मदनांकुझनी साधे संबंध करी तथा वज्रजंघनी साधे संघी करी ते पोताना नगर तरफ गयो. वज्रजंध पण पोताना सर्व सैन्यने त्यांज पमाव करावीने रह्यो, एवामां नारद ऋषि त्यां श्राव्या. वजंघे तेमने बहु आदर सत्कार पूर्वक श्री रामना बन्ने पुत्रो सांवतां तां सर्वे राजाननी समक्ष कयुं. “हे मुनि ! पराक्रमथी जाएयो बे विशालवंश जेनो एवा मदनांकुशने पृथुराजा दर्षपूर्वक पोतानी पुत्री आपशे, माटे एमनो समग्रशमने कही सजलावो.” नारदे कर्छु. "अहो ! विश्वमां प्रसि६ एवा श्री कुमारोनो वंश कोण नदि जाणतो होय ? के, जेने पूर्वे स्थापन करनार (वेश्वा अधिपति श्री रुषनदेव मनु हता. वली जेमना वंशने: विषे तीर्थकर, चक्रवर्ती ने बलदेव तथा वासुदेव थया बे एवा श्री कुमारोना पिता राम के जेमना न्हाना नाइ लक्ष्मण बे, तेमने कोण नहिं जाणतो होय ? अर्थात् सर्वे मंगल तुरत पाता रणसंग्राममां रावणने मारी अयोध्यामां श्राव्या त्यारे तेयोच्यो. सेनाना अधिपति एवी राप्वाद सांजलीने अपयशना जयश्री सीताने जो; तेथी कोन पामेला अंतःकरते कयुं. " हे मुनीश्वर ! रामे ते सारं खकमल वाला तेनए ते सीता माताने नस्वाथी उत्तम शीलवती. पोतानी प्रिय अत्यंत नम्र एवा अनंगलवण अने मदनांक हे मुनि ! जो के थ पवादने दूर थे पोतानो मामो जाली तेने पण नमस्का ! दयालु एवा ते रामे, नीच माणसम्मले तेननुं धैर्य जोइने कयुं. " हे वत्सो ! युं दशे ? " अनंग - लव कुमायंत दुर्जय एवाय पण शत्रुनने जीतवा समर्थ बो दूर बे ? मुनिये उत्तर प्राप्ताना पूज्य पितानी साधे युद्ध कर योग्य नथी. जिन बे. 99 एवा रावणने पण जीत्यो बे तो पनी तेमनी आगल " दे प्रनो ! भाप जो श्वा समर्थ थाय. " अनंगलवण अने मदनांकुशे कां ने विषे राम - लक्ष्मणने गल को टकी सकवाने समर्थ नयी ए आपे सत्य पृथुराजानी पुत्रीने ममेदवणां युश्री पाना फरीये तो ते अमारा पिता एक म्होटा नसव पश्रमारे बन्ने नाइयोने तेमनी साथे युद्ध कर पाना सैन्यने लह Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५५) ऋषिममलवृत्ति-पूर्वाई. अनेक देशोना बहु राजानने जीती गंगानदीने नतरी अने नत्तर दिशामां कै. लाश पर्वतनी पासे आव्या. त्यां तेमणे सिंहल विगेरे बहु समृध्विंत देशोने पोताना स्वाधिन कस्या. पठी सिंधुनदीना सामे तीर जर त्यांना बहु राजानने जीती अने पठी तेननीज साथे महा हर्षवंत एवा ते बने नाश्यो पाग पुमरीक नगर प्रत्ये श्राव्या. त्यां वजजंघ राजाए तेमनो प्रवेश महोत्सव करयो, बन्ने वीरोए पोताना घरने विषे आवी बहु प्रेमथी सीताने प्रणाम कस्या. महासती सी. ताये पण प्रसन्न मनश्री अनेक देशना अधिपतिपणानी विजय लक्ष्मीने मेलवनारा ते पोताना बन्ने पुत्रोने “ श्री रामलक्ष्मणना समान पराक्रमवाला तथा दीर्घ आयुष्यवाला थान.” एम आशीष आपी. पठी कोइ दिवसे बन्ने नाश्योए हाथ जोमीने वजजंघ राजाने कडुं. हे विनो! आपे प्रश्रम अमने कोशला नगरीप्रत्ये जवानुं कां हतुं, माटे । नरेंश्चं! आपणी सेना तुरत तैयार करो.” वनजंघ राजाए तुरत पोतानी सैना तैयार करी एटले विनयथी नम्र एवा रामपुत्रोए पोत्पती माता सीताने प्रणाम करीने कडं. “हे मात ! जो आप नदेरथी नत्पन्न भयो अमे कोशलापुरी प्रत्ये जश्ये अने अपा. वली तेणे सीताना न्हाना पुत्र अमारं नुजावल देखामीये.” सीवीपुरना अधिपति एवा पृथुराजानी वा काकानी । साये नन युः करवू ते करी. ते वखते पृथुराजाए दूत मुखरज वखारावा . योग्य रे.” पुत्रोए कहुंया कुलरूपवालाने म्हारी पुत्री शी रीते वचन तेमनी पासे शी रीते कहीए ? सांजली अत्यंत कोपायमान श्रयेलो वजवामां लगा पामे ते. तो हे मात्र अनंगलवण तथा मदनांकुश सहित पृथुराखामीने पड़ी पोताना कुलने पण पोतानी सहाय्यने माटे पोतनपुरना नूपयापी एटले असंख्य सेना ची वनजंघना सैन्य तरफ चाल्यो. पठी बन्ने सैन्सी रस्तामा अनेक वलीट युराजाना सैन्यश्री पोतानुं सैन्य नाश पामेलुं जाहिरी तरफ चाल्या.अनुकुश ए वन्ने महा बलवंत वीरो यु करवाने नग्या! अखामत पराकमवायो यु करवा लाग्या त्यारे कोई महा सुन्नट तेमनी पहोच्या. दवे अाहि. ठेवट नासी जता पृथुराजाने जो महा नुजा तथा नाकाग्ना बाकडं." हे नूमिपाल पृथु ! अमने अजाएया वनाउने । नाप्रकार Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (२५३) म लक्ष्मण क्रोध करी कहेवा लाग्या के, “अरे ! पतंग समान मरवानी श्या करनारो आ कयो शत्रु अस्मात् अहिं आवे ?” एम कहीने क्रोधथी प्रजात ना सूर्य समान लाल नेत्रवाला ते राम लक्ष्मण तुरत युहनूमीमां आव्या. - हवे एम बन्यु के ए वखते विद्याधरोनो अधिपति नामंगल नारद - पिना कहेवाथी पोतानी व्हेन सीताना समाचार सांजली हर्षयी तुरत घुमरीक नगरप्रत्ये आव्यो. त्यां ते ज्यारे सीतानी पासे आव्यो त्यारे जनकराजपुत्रीये तेनी आगल रुदन करतां कडं के, “हे बंधो ! रामे म्हारा अपराधनी तपास कस्या विना मने घोर वनने विषे तुरत त्यजी दीधी दे. मने वनवासरूप एक दुःख तो . तेमां बीजु ए थयु के, आजे श्रोमा दिवस या त्हारा नाणेजो में ना कह्या उतां पण पोताना पितानी साथे युः करवा माटे कोशला नगरीप्रत्ये गया ." नामंगले कडूं. “हे व्हेन ! एक तो रामे मूर्खलोकोना कहेवाथी तने सहसा वनमां त्यजीदीधी जे. बीजु युइरसमां आकुल श्रयेला तेन शत्रुबुझ्यिी त्हारा पुत्रोने हणी नाखशे. तो एम न थवा माटे हुं कट त्यां जावं . अहिं विलंब करवो ते योग्य नथी.” पठी सीताने वैमानमां बेसारी नामंगल तुरत पोताना नाणेजना बलने जोवा माटे तेमना सैन्यप्रत्ये आवी पहोच्यो. सेनाना अधिपति एवा रामना पुत्रोए अकस्मात् पोतानी माता सीताने जोश; तेथी दोन्न पामेला अंतःकरणवाला तथा प्रफुल्लित थयेला नेत्र अनेमुख कमलवाला तेनए ते सीता माताने नमस्कार कस्यो.परी सीताना कहेवाथी अत्यंत नम्र एवा अनंगलवण अने मदनांकुश एवा ते बन्ने नाश्योए नाममलने पोतानो मामो जागी तेने परा नमस्कार कस्यो, पगी प्रसन्न मनवाला नाममले तेननुं धैर्य जोश्ने कद्यु. “हे वत्सो ! जो के तमे आ समरांगसमां अत्यंत उर्जय एवाय पण शत्रुनने जीतवा समर्थ गे, तथापी नत्तम एवा तमारे पोताना पूज्य पितानी साथे युः करवू योग्य नथी. कारण जेमणे महा बलवंत एवा रावणने पण जीत्यो ले तो पड़ी तेमनी आगल बीजो कयो पुरुष युह करवा समर्थ थाय." अनंगलवण अने मदनांकुशे कह्यु. “ हे मामा ! ए मनी आगल को टकी सकवाने समर्थ नथी ए आपे सत्य कयुं तथापी जो अमे हवणां युझ्थी पाग फरीये तो ते अमारा पिता लगा पामे, माटे इवणां अमारे बन्ने नाइयोने तेमनी साये युद्ध करवू एज योग्य ." प्राम । Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५४) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. तेन परस्पर वात करे ने तेटलामां तो बन्ने सैन्यने विषे युः चाल्यु. पी-रा: मलक्ष्मणना सैन्य प्रत्ये कालरूप एवा ते बन्ने वीरो पोताना मामानी पासे युद्ध करवानी रजा मागी पोताना सर्व सैन्यनी साथे तैयार थया.आ वखते रामना सैन्यने विष एवो कोइ पालो, रथी, अश्वार के हाथी नपर बेसनारो नहोतो के, जे आ बन्ने महारथीयोना सन्मुख युद्ध करवाने तैयार थयो न होय, डेवट पोताना समग्र बलश्री रामना सैन्यने मथन करी अनंगलवण कुमार रामनी साये अने मदनांकुश वासुदेव एवा लक्ष्मणनी साथे युः करवा लाग्या. आ वखते अनंगलवणे रामने तथा मदनांकुशे लक्ष्मणने जू जू कडु के, “तमे पोतानुं जे वल रावणने देखामयुं होय ते हवणां अमने देखामो.” रामे पण अत्यंत घोर एवी युःक्रीमा करता एवा महा उर्जय अनंगलवण कुमारने जोइ पोताना सेनापति कृतांत मुखने कडं. “हे सारथी ! तु आम्हारा रथने झट ए शत्रुनी पासे लइ जा के, जेथी हुं तेने तुरत जीती लवं.” सारथीये कयुं. "हे नाथ! थाकी गयेलाआ घोमान अहिंथी आगल चालता नथी तेम रथ पण शस्त्रोना प्रहारथी जर्जरीत थइ गयो.वली म्हारा बन्ने हाथो धनुष्य खेंचवाथी बहु थाकी गया , तो हवे हुँ वारंवार अत्यंत तीव्र एवा प्रहारनी वेदनाने, सहन करी शकतो नथी.” रामे कां. “ हवणां म्हारूं अंग पण एवं शिथिल थइ जाय ठे के, तेवू पूर्वे रावणना घोर युध्ने विषे पण थयुं नहोतुं. म्हारां इल मुशलादि दिव्य आयुधो पण आ. शत्रुनी आगल वृथा श्रइ पमे . पूर्वे में जगतूना मध्ये जे विजयलदमी मेलवी हती तेनुं शुं हवणां स्थापन करी शकाशे ? " राम या प्रमाणे पोताना सारथीने कहे ने एटलामा युद्ध करता एवा मदनांकुशे लक्ष्मणना वक्षस्थलने विषे वाणनो एवो प्रहार कस्यो के, जेश्री लक्ष्मण रखना नपर तुरत मूळ पाम्या. पठी वारंवार चंदननां शीतल जलनु सिंचन करवायी सचेत थयेला लक्ष्मणे क्रोधश्री विकराल मुख करी शत्रुनना समूहने नाश करनारा चक्रनुं स्मरण करयुं. चक्र तुरत ल, इमरानी पासे आव्यु एटले तेमणे तेने क्रोध करीने तत्काल मदनांकुश तरफ फेंक्यु; परंतु ते चक्र तो मदनांकुशनी प्रदक्षिणा करीने फरी लक्ष्मणना हस्त --- नपर बे. लक्ष्मणे श्रावी गते चक्रने वे वार मूक्यु. चक्र पण मदनांकुशनी प्रदक्षिणा करी लक्ष्मणनाज दस्तने विये प्राप्त प्रयु. श्राम चक्र वारंवार पार्नु Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (२५५) फरयुं, तेथी नाश पाम्युं के मान जेमनुं एवा राम लक्ष्मण खेद करता उता पोतानामनमां विचार करवा लाग्या. “हा! आनरतक्षेत्रने विषे निश्चे नवीन एवा आ बलदेव तथा वासुदेव नत्पन्न थया के शुं ? जे एमना नपर वारंवार फेंकेतुं चक्र पण निष्फल गयु.!!! त्रण लोकमां वीररूप रावणने जीतेते पण 'आ बनेथी पराजय श्रयो ए महा समुज्ने तस्या उतां पण खाश्मां बुमी गयेला वहागनी पेठे थयेटु ." आवी रीते खेदथी पीमा पामेला राम लक्ष्मणने जो नारदशषिये तेमने कडं. “हे राघवो! तमे हर्षने स्थानके आवो महान् खेद शा माटे करो गे? कारण के, अत्यंत नत्कृष्ट एवा नुजमंझलना पराक्रमवाला पुत्रोथी बलीष्ट एवा तमारो पराजय पण लोकने विषे सर्वस्थानके श्रेयकारी . सीता सतीना नदररूप गुफाने विषे निवास करनारा अने वीर पुरुषोना मध्ये मुकुटमणि समान. अनंगलवण अने मदनांकुश नामना श्रा बन्ने पुत्रो तमारा . एन तमारा दर्शनने माटे हर्षथी अहिं आव्या . तमारे एमने पोताना उर्धर वैरने पोषण करनारा शत्रु मानवा नहि." पठी नारदे राम लक्ष्मणनी आगल सीताने वनमां त्यजी दीधी त्यारथी प्रारंजी पुत्रना जन्मपर्यंतनी सर्व वात कही संनलावी, तेथी दशरथ पुत्रो हर्ष अने लजाथी महा विस्मय पाम्या. पती रामरयश्री नीचे नतरी अने हर्षथी बन्ने दा. यने पहोला करी पुत्रोने आलिंगन करवा माटे तेमना सामा दोमया. अनंगलवणे अने मदनांकुशे पण पिताने प्रावता जो पोतपोताना रथमांथी तुरत नीचे नतरी तेमना चरणकमलने विषे नमस्कार कस्यो. रामे तेमने महा हर्षथी आलिंगन करयु. पनी हर्षित चित्तवाला बन्ने नाश्योए लक्ष्मणना चरणमां नमस्कार कस्यो. लक्ष्मणे पण तेनने आलिंगनपूर्वक बहु प्रीति नपजावी. शत्रुघ्न नूपतिये पण पोतानां चरणने विषे हर्षथी नमन करता अने सर्वे ज्ञातिवर्गने आनंद नपजावता ते पोताना बंधुना पुत्रोने प्रेमश्री आलिंगन करथु. तारुण्य लक्ष्मीश्री व्याप्त, सौनाग्य गुणोथी गरीष्ट अने रूपश्रीथी कामदेवने पण जीतनारा ते बन्ने पुत्रोने जोक्ने राम विगेरे सर्व मनुष्यो अत्यंत संतोष पाम्या. वैमानमां बेठेला सीता सती पण रामादिकने उर्जय एवं पोताना पुत्रोनुं शौर्य जोश्ने हर्ष पामता उता फरी पुंगरीक नगरप्रत्ये श्राव्या. पली लक्ष्मणादि स्वजनो सहित रामे म्होटा महिमायी मणिना तोर. Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५६) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. गोए करीने सुशोजित एवी विनीता नगरीप्रत्ये पोताना बन्ने पुत्रोने प्रवेश कराव्यो. आ वखते केटलाक नागरीक लोको रामने, केटलाक सीताने, केटलाक ते बन्ने पुत्रोने अने केटलाक तेमना श्रेष्ट वंशने एम जूदा जूदा वखाण- , ता हता. पठी रामे वनजंघ राजाने सत्कार पूर्वक कर्वा के, “हे महानुन्नाव ! तमे म्हारी नन्नति करनारूं ए बहु सारं करयु ने के, “जे म्हारा पुत्रोने अहिं लाव्या." आ अवसरे विन्नीषण, सुग्रीव, हनुमान विगेरे मुख्य नूपतियोथी युक्त एवा लक्ष्मणे हाथ जोमीने हर्षथी तुरत श्री रामनी विनंती करी के, “हे बांधव ! एक तो आपना वियोगथी अत्यंत तप्त श्रयेली सीता बहु दूर रही . हे विवेकी! तेमां पण बीजुं एबे के,हवणां ते महा सती पोताना पुत्ररत्नना वियोग उःखधी बहु आकुलव्याकुल श्रइ होय एम देखाय , माटे. हे अधीश ! जो आप आझा करो तो हुँ ए महा सतीने अहिं तेमी लाववा माटे जान.” लक्ष्मणनां आवां वचन सांजली रामे पोताना मनमां विचार करीने लक्ष्मणने योग्य उत्तर आप्यो के, "हे बांधव! जो के लोकापवाद तद्दन असत्य तो पण मूर्ख लोकोनाअप्रमाणिक तथा साररहित वचनोथी त्याग करेली सीताने म्हाराधी पोताना घरने विषे केम लावी शकाय ? हुं सीताने शुशीलवाली जाए॒तुं तो पण ते प्राणप्रियाने अपवादश्री निवृत्त करवाने दि. व्यपण करावीने पठी घरने विषे लावीश." __ पठी "एम थान.” एम कहीने हनुमान विगेरे नूपतियोए विनीता नगरीनी बहार कणमात्रमा नत्तम सिंहासनोथी सुशोनित एवा म्होटा वैमान । तुल्य अनेक श्रेष्ट मंझपो तैयार कराव्या. पी श्री रामनीआशाथी देदीप्यमान . वैमानमां वेसी सुग्रीव नूपतिये पुंमरीक नगर प्रत्ये जइने सीताने प्रणामपूर्वक विनयश्री कडं के, “ हे मात ! निश्चे रामे तमने तेमवा माटे मने अहिं मोकख्यो , माटे पोताना प्रिय प्राणनाथना आ पुष्पक वैमानने विषे आप शीघ्र बेसो." सुग्रीवनां यावां वचन सांजली पूर्वना स्पृष्ट परान्नवना स्मरणथी खेद पामती सीताये कडं. “अहो ! एक तो आज सुधी पण म्हारा मननी अंदर ' मने वनमां त्यजी दीघा, कुःख स्फुरायमान वे तेमां वली वीजा कुःखने आप- . नाग ते रामनी पासे हुं शी रीते यावं ? में एमना हृदयनो स्नेद जाण्यो .” सुत्रीवे परीनी कां. "हे स्वामिनी ! क्रोध त्यजी द्यो, कारण हवरगां सुमित्रा.. Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ,, ( श्५७ ) ना पुत्रसहित श्री राम अनेक नगरवासी जनो अने भूपालोनी साथे तमारी शुद्ध माटे विनीता नगरीनी बहार तैयार करेला मंरुपोमां सिंहासननी उपर बेठेला बे. " सीता प्रथमथीज पोतानी शुद्धिनी स्पृहावाली हती, तेथी सुग्रीवai संतोषकारी aarथी ते वैमानमां बेटी वैमान पण क्षणमात्रमां आकाशमार्गे विनीता नगरीनी समीपे आवी पहोच्युं. पनी जनकराजपुत्री सीता महेंशेदय नामना उद्यानमां वैमानथी नीचे नतस्यां एटले लक्ष्मणादि समस्त नरेंशे तेमने सन्मानपूर्वक हर्षथी प्रणाम करुया. लक्ष्मणे विनीनादिकनी साधे सीताने फरीथी प्रणाम करीने कयुं. “हे निर्मल हृदयवालां जनकराजपुत्री ! तमे तुरत पोताना मेहेल प्रत्ये पधारीने श्रमने पवित्र करो. सीताये क. " हे वत्स ! हुं पोतानी शुद्धि कस्या विना क्यारे पण अयोध्या नगरीमां आववानी नथी. " पबी लक्ष्मणे ए सर्व वात तुरत रामने निवेदन करी एटले रामे पोते त्यां श्रावी सीताने कयुं. “हे देवी! तमे रावणना घरने विषे दीर्घकालपर्यंत ह्या बतां अत्यंत शुद्ध शीलवाला हो तो हे प्रिया ! तमे सर्व नगरवासी माणसो अने भूपालोनी समक्ष नवीन एवा दीव्यथी सर्व अ पवादने नाश करवाना कारणरूप श्रात्मशुद्धि करी बतावो . " सीताये हास्य करीने कझुं. " हे राम ! तमारुं विचक्षणपणुं कंइ अलौकिक देखाय वे के, जे त गर्भवती एवी मने परीक्षा कस्या विना वृथा वनने विषे त्यजी दीधी. दे प्राणनाथ ! प्रथम मने तीव्र दंक तो आापी चूक्या अने हवे पावली परीक्षा करवानुं को बोए तमे कांइ अलौकिक नीति प्रगट करी होय एम देखाय d. " रामे विलक्ष बनीने करूं. “देवी ! हुं तने विशुद्ध शीलवाली जाएं हुँ, तथापी नगरवासी जनोना विश्वासने माटे एम कहुं बुं. " सीताये क.पुं. " हे स्वामिन् ! सांनलो. में दुःसह एवां पांच दिव्य अंगीकार करयां बे. तेमां १ ज्वाला विकराल एवा अग्निमां प्रवेश करूँ, २ अत्यंत तपावेला कोशने जीजवती चाटु, ३ वाजवामां तोलानं, ४ मंत्रेला चोखा चावुं अथवा ए हलनी लोहमय फालने जीवती गृहण करूं. या पांच दिव्यमांथी जेनी आज्ञा करो ते करूं." आ वखते नारदशषि अने सर्वे नगरवासी लोको श्री रामने कहेवा लाग्या के, " हे रघुराज ! आ सीता सतीज बे; एमां तमारे जरापण शंका करवी नहि. " रामे पण सर्वे लोकोने क. " तमारो विचार श्रेष्ट थे परंतु 7 ३३ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वार्ध. हा! पूर्वे तमोएज पुष्ट संकल्पना समूहथी आ महासतीने दूषित करेली , . तो हवे ते दिव्य विना हवणां शुक्ष शीलवाली शी रीते थाय ? हे नागरिको! हवे तमारी चपल एवी जीवा इंडि जेमतेम बोले नहि एटला माटे सीता । पण तमारा विश्वासने माटे म्होर्दै दिव्य धारण करो.” एम कहीने रामे त्रयसो हाथ लांवी अने वे मायोमा उंमी एक खाइ खोदावी. तेमां पोताना सेवको पाले सूकां चंदननां काष्टो नराव्यां. मेवट तेमां अग्नि मूकीने ते खाश्ने चारे तरफभी ज्वाजल्यमान करी, हवे आ अवसरे वैताढय पर्वतनी उत्तर श्रेणी उपर रहेनारो अने आग्लो स्त्रीयोनो पति श्री जयन्नूषण नामनो विद्याधर राज्य करतो हतो. एक दिवसे तेणे पोताना मामाना पुत्र हेमशिख साथे पोतानी करमंमल नामनी प्रियाने सूतेली जोड्ने क्रोधने लीधे तेने पोताना घरमांधी काढी मूकी अने पोते पण वैराग्यना आवेशथी सर्व संगने त्यजी दा दीक्षा लीधी. पठी धीर एवा ते जयनूषण मुनि पृथ्वी नपर विहार करता हता. एक दिवस ते महात्मा विनीत नामना नद्यानने विषे कायोत्सर्गे नन्ना हता. हवे जे करमंमल स्त्रीने पोते काढी मूकी हती,ते स्त्री पोतानुं बाकीनुं आयुष्य बहु कष्टथी पूर्ण करी बहु पापने लीधे विद्युदंष्ट्रा नामनी एक राक्षसीपणे नत्पन्न थइ. आ स्त्री पूर्वना वैरने लीधे पेला कायोत्सर्गे नन्नेला मुनिने घोर नपसर्ग करती हती; परंतु मु. निये तो तेणे करेला बहु घोर नपसर्गने सहन करी अनंत सुखकारी एवा एक केवलज्ञानने प्राप्त करयु: मुनिने केवलज्ञान नत्पन्न अयु, तेथी ६६ अनेक देवताननी साये त्यां ते मुनिनो केवलज्ञाननो महोत्सव करवाने आव्यो. ते वखते देवतानए इंश्ने सीताना दिव्यकृत्यनी वात कही संन्नलावी. पठी इं५ जनकराजपुत्रीने सहाय्य करवा माटे पोताना हरिणेगमेषी देवताने आशा करी पोते पेला केवलझानी महात्मा पासे गयो. ___ हवे अहिं श्री रामनी आझाथी पवित्र देहवाली, परमेष्टी मंत्रना ध्यानश्री निप्पाप अने सर्व प्रकारना नय रहित एवी सीता खाइनी समीपे आनी. राम ज्वालायी विकराल एवा अग्मिने जो खेद पामता उता तुरत पोता. ना मनमा विचार करवा लाग्या के, “ हाय हाय ! में या जनकराजपुत्रीने गोर अवमा या पान . अहो नेवY केg कुचेष्टित !" श्रावी रीते राम, Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (यए) विचार करे ने एटलामां सीता अनिनी नजीक आवीने श्री वीतरागर्नु स्मरण करती उती कहेवा लागी. "हे जिनेंझनक्तो, देवता अने सत्पुरुषो! तमे सौ सोनलो. में क्यारे पण आ राम विना बीजा को पुरुषने चित्तमां पण धास्यो होय तो आ अग्नि म्हारा शरीरने सहसा नस्मरूप करी नाखजो अने जो हुं सती हो तो आ अग्नि शीतल थइ जजो." आम कहीने ते मदा स. ती सीताये अग्मिने विषे ऊंपापात दीधो. “अहो ! सीता महासतीनुं आ विशाल सत्व डे !!!" एम देवता, विद्याधर, राजा अने बीजा सर्वलोको नंचा स्वरथी कहेवा लाग्या. आ वखते अग्नि बुझाइ गयो अने खा तो पगथीयां सुधी उत्तम जलवमे पूर्ण जाणे अनुत रत्नरूप वाव्य होयनी ? एवी श्रइ गइ. अहो! निश्चे शीलवतीनां शीलनो को अपूर्व उत्तम प्रनाव विजयवंतो वर्ने !! सीता पण वाव्यनां जलना मध्यन्नागने विषे श्रेष्ट कमलोनां उपर रहेला सिंहासनमां नत्तम वस्त्रान्तरणने धारण करी जाणे सौधर्म देवलोकनीअधिष्टायक देवीज होयनी ? एम बेग. वाव्यनी अंदर रहेलो जलसमूह पोताना म्होटा तरंगोथी आसपास रहेला सिंहासनाने नींजववा लाग्यो. विद्याधरो नीजावाना जयथी तुरत आकाशमार्गे नंचा जवा लाग्या. पनी ते जलना कलोलथी अत्यंत व्याकुल श्रयेला राजादि सर्वे लोको कहेवा लाग्या के, “हे महासती ! । तुंज अमाझं रक्षण कर ! रक्षण कर!!” आम तेमणे बहु पोकार कस्यो ए. टले सीताये ते बोली देता एवा जलना समूहने पोताना बन्ने हाथथी स्पर्श कस्यो एटले ते जलसमूह तुरत वाव्य प्रमाण थ गयो. पी स्वस्थ थयेला रा. जादि सर्व लोकोए सीताना शीलवृत्तनी प्रशंसा करी. देवताए पण प्रसन्न थश्ते महासती नपर पुष्पवृष्टी करी. माताना आवा अनुत महिमाने जोश अनंगलवण अने मदनांकुश ए बन्ने नाइयो जाणे वाव्यनां जलना हंसो होयनी ! एम जलने विषे तरता तरता तुरत सीतानी पासे गया. पोतानां चरणकमलने विषे प्रणाम करता ते महा नाग्यवंत बने पु. त्रोने आलिंगन करी महासती सीताये जाणे निश्चे मूर्तिमंत न्याय अने धर्म होयनी ! एम पोतानी बन्ने बाजुए बेसाख्या. पनी सुग्रीव, नामंगल विगेरे अनेक नूपालो सहित वासुदेव एवा लक्ष्मणे प्रेमपूर्वक सीतानां चरणने विधे प्रणाम कस्खा. रामे पण सीतानी पासे आवी हाथ-जोमीने कां."हे सुशी Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६०) ऋषिममलत्ति-पूर्वाई. ले! लोक वाक्यथी में करेला अपराधनी आप कमा करो. हे देवी ! प्रथम तो गर्जना करता सिंह अने हाथीयोना समूहथी अत्यंत घोर एवा नयंकर वनने विवे जे तमे जीवतां रह्या एज तमारं मुख्य दिव्य शुं अमे नथी जाणता ? हे विदेहराजपुत्री ! तमे म्हारा सर्व अपराधोनी क्षमा करीने घर प्रत्ये चालो अने हे प्रिया ! स्वस्थ मनवाला थइ पूर्वनी पेठे म्हारी साथे अखंमित लोगोने लोगवो.” सीताये कडं. “हे नाथ! एमां कांइ आपनो अथवा नगरवासी लोकोने दोष नथी; एतो में पूर्व नपार्जन करेला अति घोर उष्ट कर्मनुं फल आवी पझ्यु हतुं. हे विनो! हवे म्हारे आ लोकने विषे तेमज परलोकने विषे बहु पुःख आपनारा विनश्वर एवा संसारना नोगश्री शरयु. हवे तो हुँ संसारवासथी मेलवेलां पापने नाश करवामां समर्थ एवा कल्याणकारी महाव्रतने अंगीकार करीश." आ प्रमाणे कहीने एज वखते महा सत्ववाली सीताये पोताना हायवती पोताना मस्तक नपर रहेला केशनो लोच कस्यो. पठी जेटलामा “अरे प्रिया! तमे आ शुं करोगे?" एम कहीने राम मूछी पाम्या तेटलामां सीताये जयनूषण केवलीनी पासे जश्ने तपस्या लीधी. पळी ज्यारे चंदननां जल विगेरे शीतल नपचारश्री सिंचन करेला राम सचेत थया त्यारे ते विलाप करवा लाग्या के, “हे प्रिया !तुं क्यां ? अने हवणां क्यां गई ?" वली पोतानी चारे वाजुए विंटलाश्ने वेठेला नामंगल. विगेरेने पण रामे कडं के, " अरे धिक्कार दे धिक्कार !! तमे मने पोताना केशनो लोच करनारी एवी जनकराज पुत्री सीताने हवणां देखामता नथी.” रामे आ प्रमाणे कडं, उतां सर्वे नूपतियो मौन धारण करीने वेसी रह्या; तेथी वधारे क्रोधातुर थयेला रामे कां. " अरे ! मरवानी चा करता एवा तमे मने आq बुःख प्राप्त थये उते पण केम नदासीपणुं धारण करो गे?” लक्ष्मणे प्रणाम करीने का. "हे विलो! या सर्वे नूपतियो आपना आज्ञाकारी सेवको ठे तेमज दे करुणासागर! या सर्व लोको पण आपनाज नक्तो ठे. सीता सतीये पोतेज मस्तक नपर लोच करी जयन्नूपण केवलीनी पासे विधिपूर्वक दिक्षा लीधी. जेम. पूर्व ! प्रापे लोकना उट वचनश्री गर्भवती ते सीताने त्यजी हती तेमज प्राप्त थ्यता सत्ववाली ए मदासतीये दवणां नत्तम व्रत धारण करी आपने त्यजी दीघा . ए महर्षि ने चार कर्मनो नाटा वायी दवणां केवलज्ञान नत्पन्न श्रयं Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (२६१) बे, माटे श्राप सरखाने पण नत्कृष्ठ एवा पुण्यने माटे तेमनो केवलमहिमा करवो निचे योग्य ने. वली व्रतने धारण करनारी सीता पण त्यां साध्वीयोनी पासे " लक्ष्मणनां आवां वचन सांजली पुण्य बुध्विाला रामे तुरत सी. तानी प्रशंसा करता कां. “अहो ! नत्कृष्ट पुण्यवाली ते म्हारी प्रियाने धन्य के, जेणे ते केवली मुनिनी पासे विधिपूर्वक व्रत आदरयु." आम कहीने राम पोताना परिवार सहित ते केवलीमुनिने वंदना करवा गया. त्यां राम के. वलीने वंदना करी तेमनी आगल बेग एटले हितना अन्निलाषी तथा तपोधन एवा ते महामुनिये पापनो नाश करनारी अमृत समान धर्म देशनाापी: व्याख्यान पूर्ण श्रया पी रामे तेमने पूज्यु के, “हे मुनि ! हुं नव्य बुं के अ. नव्य बुं ? आ म्हारा शंसयने बेदी मने शंका रहित करो." केवलीये कयु "हे नरेंचं! तमे नव्य गे अने वली तमे आज नवने विषे म्होटा नदयने पामशो.” नत्तम आचरणथी वखागवा योग्य एवा रामे फरीथी पूज्यु. "हे मुनीश्वर! म्हारे लक्ष्मणने विषे आवो पुःस्त्यज प्रेम शाथी ?" मुनिये कां " हे बलदेव! तमेनोगोने नोगवीने अंते शुक्ष एवा चारित्रने अंगीकार करशो." आवखते जेने अत्यंत बोध प्राप्त भयो एवा रामना सेनापति कृतांते संसारवासश्री बहु नय पामता उतां अनेक नव्य पुरुषोसहित दीक्षा लीधी. पीते केवलीमुनिये राम, लक्ष्मण, विन्नीषण अने सुग्रीव विगेरे अनेक पुरुषोना पूर्वनवो विस्तारथी कहीने तेमने जिनराजना धर्मने विषे दृढ कस्या. पनी विनीषणे केवलीने पूज्यु. “हे मुनीश्वर! विशेषे जिनेना धर्मने विषे स्थिर मनवाला रावणे कया उष्ट कर्मने लीधे सीतार्नु हरण करयुं ? वली लक्ष्मणे रावणने मास्यो ए पूर्वनवना वैरथी के नविन नपार्जन करेला वैरथी? तेमज मूखलोकोए मिथ्या कलंकथी सीताने शा माटे दूषित करी?" . केवलीये कयुं. "हे राजन् ! दक्षिण जरतदेत्रमा कमावती नामनीन. गरीने विषे नयदत्त नामे वणिक रहेतो हतो. तेने सुनंदा नामनी स्त्री हती. तेनने श्रीदत्त अने धनदत्त नामना बे पुत्रो हता. अनुक्रमे युवावस्थाने प्राप्त थयेला ते बन्ने पुत्रोने याज्ञवल्क्य नामना कोइ ब्राह्मणनी साथे मीत्राइ था. हवे एज नगरमा सागरदत्त नामनो को धनवंत वणिक् वसतो हतो, तेने · रत्नप्रना नामनी स्त्री हती. तेनने एक अनुत्तमा नामनी पुत्री हती. ज्यारे श्रा Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६५) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. पुत्री युवावस्था पामी त्यारे पिताए तेनो संबंध नयदतना म्होटा पुत्र श्रीदत्त साथे कस्यो. पडी माताए पण पोताना लोन्नथी एज पुत्रीनो संबंध पतिथी गनी रीते को महा धनवंत श्रीकांत नामना वणिक्नी साथे कस्यो, आ वा-" तनी याज्ञवल्क्यने खबर पमवाथी तेणे ते वात श्रीदत्त तथा धनदत्तने कही. पठी श्रीदत्ते रात्रीने विषे क्रोधथी शस्त्रवमे श्रीकांतने मास्यो. श्रीकांते पण तेने तेवोज प्रहार कस्यो. बने जणान मृत्यु पाम्या अने विंध्याचल पर्वतनी नूमिने विषे हरणरूपे नत्पन्न थया. पेली अनुत्तमा कन्या पण तेमनेज माटे होयनी ? एम परण्या विना मृत्यु पामीने तेज वनमां मृगी रूपे नत्पन्न थइ. पठी ते वन्ने हरणो मृगलीने माटे महा घोर युद्ध करीने मृत्यु पाम्या. आम वैरने विषे तत्पर एवा ते वन्ने जगाए बहु नव ब्रमण कस्वा. हवे अहिं धनदत्त बंधुरहित थवाथी अत्यंत दुःख पामतो रात्रीने विषे वनमां लटकतो हतो. त्यां तेने नुख लागी एवामां देव श्चाथी केटलाक साधुन तेनी नजरे पम्या. धनदत्ते तेनुनी पासे जश् खावानुं माग्युं एटले ते साधुनमांथी एक जणे कडं."अरे ! साधुन दिवसने विषेपण क्यारे गृहस्थियो ने अन्न आपता नथी तो पी रात्रीने विषे तो आपेज केम ? वली साधुनए तो सर्व प्रकारे रात्रीनोजन त्याग करयुं ." प्रमाणे मुनियोए प्रतिबोध पमामेलो ते धनदत्त धर्म पामी अंते काल करी सौधर्म देवलोके देवतापणे नत्पन्न भयो, त्यां देवतानुं आयुष्य पूर्ण करीने ते कोइ नगरमां मेरुनंदन नामना श्रावकनी स्त्री धारणीने नदरे पद्मरूचि नामनो पुत्र अयो, अनुक्रमे युवावस्था पाम्यो एटले तेणे श्रावकधर्म आदस्यो, एक दिवस घोमा उपर बेसीने बहार जता एवा तेणे रस्तामां को वृक्ष वृपन्नने मरवानी तैयारीमां दीगे. दयावंत पद्मरूचिये तुरत घोमा नपरश्री नीचे उतरी ते वृयन्नना कानमां पांच परमष्टिनो नवकार मंत्र संनलाव्यो. पठी ते वृषन्न मृत्यु पामीने नवकार मंत्रना प्रत्नावश्री तेज नगरीना नृपतिनी स्त्री श्रीदत्ताने नदरे वृषन्नध्वज नामना पुत्रपगे नत्पन्न अयो. अनुक्रमे ते युवावस्था पाम्यो. एक दिवस ते राजकुमार नगरने विपे फरतो फरतो पेला वृषन्ननां मृ. न्युम्यान यावी पदोग्यो. त्यां तेने ते स्थानने जोवायी जाति स्मरण झान प्राप्त अयं. पन तेणे त जग्या नपर एक जिनालय करावी तेनी नीत नपर मृत्यु Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १६३ ) पामवाने तैयार थयेलो एक वृषन चितराव्यो. वली तेणे वृषनना कानमां नः वकारमंत्र संजलावनार पुरुषनुं चित्र पण जिनेंइनी मूर्ति सहित कराव्यं. पी ते त्यां रहेला पूजारीने कह्युं के, “जे माणस या चित्राने यथार्थपणे जोवे तेनी खात्री कर मने तुरत खबर प्रापवा." वृषभध्वजकुमार या प्रमाणे योग्य बंदोबस्त करी पोताने घेर गयो. sa केटलाक दिवस पी पेलो पद्मरूचि शेठ त्यां चैत्यवंदन करवा आव्यो. ते अरिहंत प्रजुने नमस्कार करीने जीते चितरेलां चित्रो एकी नजरथी जोइने दाइय करयुं एटले पूजारीये तेने कारण पूर्वयुं पद्मरूचिये कं. " में पूर्व अश्व उपरथी नीचे उतरी वृद्ध वृषनना कानमां परमेष्टी मंत्र संभाव्य तेनो था चितार बे. ए कारणथी में हाश्य करयुं बे. " पूजारीये श्रावात राजपुत्र वृषभध्वजने कही, तेथी ते त्यां प्रावी पद्मरूचिने प्रणाम करीने कवा लाग्यो के, " हे सुश्रावक ! ते वृद्ध वृषन हुंज हतो. आपे मने अंत वखते नवकारमंत्र संनलाग्यो; तेथी हुं राजपुत्र थयो बुं. हे महा उपकार करनारा ! हवे तमे म्हारा गुरू, देव ने प्राणरूप बो." वृषभध्वज राज़कुमारे, या प्रमाणे पद्मरूचिना वखाण करी तेने लक्ष्मीश्री समृद्धिवान् एवा पोताना घर प्रत्ये मी जइ तेनीज साथे उत्तम श्रावकधर्म आदरयो. पवी ते बन्ने जान कालधर्म पामी ईशान देवलोके महा समृद्धिवंत देवता श्रया. त्यां तेन दीर्घकालपर्यंत सुख जोगवी तेमांनो पद्मरूचि त्यांथी व्यवीने वैताढ्य पdaar नंदावर्त नगरना नंदीश्वर राजानो नयतप्रिय नामना पुत्रपणे उत्पन्न यो. त्यां ते बहु काल पर्यंत राज्य जोगवी अंते दीक्षा लइ कालधर्म पामी माइ देवलोकमां देवता थयो. त्यांथी चवी महाविदेह क्षेत्रमां केमा नगरीना राजा विपुल वाहननी स्त्री पद्मावती ना नदरे श्रीचंद नामना पुत्रपणे उत्पन्न थयो. अनुक्रमे युवावस्था पाम्यो एटले बहु काल पर्यंत राज्य सुख भोगवी अंते समाधी गुप्त मुनी पासे चारित्र लइने काल करी ब्रह्मदेवलोकनो देवेंड थयो. त्यां ते ब्रह्मलोकनां बहु सुखो जोगव्यां. पबी त्यांथी चवीने आ पद्म नामे नृत्पन्न यो वृषध्वज पण ईशांन देवलोकमां नाना प्रकारनां सुखोने जोगवी ते त्यांथी चवी बहुप्रकारना जवोवमे मेलवेलां पुण्ययी था सुग्रीव बयो बे. sa श्रीकांतनो जीव के, जे मृग थयो हतो ते बहु नवो भ्रमण करें। 1 Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६४) ऋषिममलरत्ति-पूर्वाई, मृणालकंद नगरमां वजकंद राजानी हेमवती.प्रियाना नदरथी महा बलवान् । शंन्नु नामे पुत्र थयो. नयदत्तनो जीव घणां नवो ब्रमण करी शंतू नूपतिना नपाध्याय विजयनी स्त्री रत्नचुमाने नदरे श्रीनूति नामनो पुत्र थयो. अनुक्रमे ते पुरोहित पद पाम्यो. अनुत्तमा पण अनेक नवो नमीने श्रीनूतिनी स्त्री सरस्वतीने पेटे वेगवती नामे कन्या इ. अनुक्रमे ते युवावस्था पामी. एक दिवस मनुष्योने नक्तिथी स्तुति करवा योग्य सुदर्शन नामना साधुने कायोत्सर्गे न. नेला जो वेगवतीये हाश्य करीने सर्वे लोको सांजलता उतां का के, "अरे लोको ! पूर्वे या साधुने में कोई स्त्रीनी साथे क्रीमा करतो जोयो . तो हवे तमे ए साधुनो वेप धारण करनार दंनीने शा माटे वंदना करोगे?" वेगवती. नुं आईं वचन सांजली मूर्ख पुरुपो अरिहंत धर्ममां तत्पर रहेला ते साधुनी निंदा करवा लाग्या एटले मुनिये एवो घोर अन्निग्रह लीधो के, “ज्यां सुधी हुँ कलंकथी निर्मुक्त अश्श नहि त्यां सुधी कायोत्सर्गेज रहीश.” पठी जैनधर्मवंत पुरुषोए वेगवतीनो बहु तिरस्कार कस्यो. वेगवती पण बहु नग पामीने फरीथी साधु पासे जश् सर्वे लोको सांजलतां बतां कहेवा लागी. “हे यती! आप निरंतर निष्कलंक गे.में ए सर्व कपटथी कह्यु हतुं, तो आप कमा करो." श्राम कहीने तेणे फरीथी मुनिने नमस्कार कस्यो. सर्वे लोको पण स्वस्थ मनवाला थया. पठी ते दिवसयी वेगवतीये श्रावकधर्म अंगीकार कस्यो. एक दिवस शंन्नू राजाए नत्तम रूपवाली वेगवतीने दीठी; तेथी तेणे धेगवतीना पिता पासे तेनी याचना करी. वेगवतीना पिता श्रीनुतिये कडं. “ हुं ए कन्या आपने आपनार नथी. पठी राजाए श्रीनूतिने मारी बलात्कारे वेगवतीने नोगवी एटले तेणे नृपतिने क्रोधथी श्राप आप्यो के, “नवांतरे हुँ त्हारा वधने अर्थे नत्पन्न अश्श." पठो शंनू राजाए वेगवतीने गेमी दीधी एटले ते कन्याये हरिगंता नामनी साध्वी पासे दीक्षा लश् नग्र तप यादरयु. केटलोक काल पांच महाव्रत पालीने वेगवती अंते काल करी ब्रह्म देवलोकमां देवतापणे नत्पन्न था. त्यांयी चवीने ते पूर्व करेला नियाणाना वलथी जनकरात्री सीता था. तेणे , पूर्व नवने विषे साधुने मिथ्या कलंकीत कस्या हता, तेथीज तेने माथे लोकोए कलंक चमाव्युं इतुं. शंनगजा पण मृत्यु पाम्या पठी अनेक नव जमण करी कुश नामना Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (२६५) ब्राह्मणनी स्त्री सावित्रीने नदरे प्रनास नामे पुत्र थयो. अनुक्रमे युवावस्या पाम्यो एटले तेणे विजयसेन आचार्य पासे दीक्षा लश् उग्र तप करवा ममियो. एक दिवस महा समृध्धिी संमेतशिखरे यात्रा करवा जता विद्याधरोना अधिपति कनकप्रनने जो ते प्रजास नामना साधुए निया| करयुं के, "श्रा में नत्तम रीते करेलां तीव्र तपना समूह, जे कांश फल होय तेथी हुँ आवता नवने विषे आवा वैनववालो अने बहु नूजाबलवालो श्रानं." पनी ते पन्नास मुनि काल करी त्रीजा देवलोकमां देवता अया. त्यां बहु सुख जोगव्या पी चवीने त्हारा बंधुरुप रावण थयो. (श्री जयन्नूषण केवली विनीषणने कहे ? के) हे राजन् ! श्रीदत्त अने धनदत्तनो मित्र जे याज्ञवल्क्य ब्राह्मण हतो ते घणा नवो ब्रमण करीने आ तुं विन्नीषण श्रयो ढुं. हवे वेगवतीनो पिता जे श्रीनूति हतो ते मृत्यु पामी स्वर्गमां गयो. त्यांची चवीने ते सुप्रतिष्ट नगरमा पुनर्वसु नामे विद्याधर अयो. एक दिवस कामधी पीमित श्रयेला तेरो पुमरिक नगरना जगनंदन चक्रवर्तीनी पुत्री अनंगसुंदरीनुं हरण करयु. कर्वा केकामातुर पुरुषोने चतुराश (विवेकीपणुं) क्याथी होय ? पठी जगनंदन चक्रवर्ती ये पोतानी पुत्रीनी शोधने माटे मोकलेला अनेक विद्याधरोनी साथे युद्ध करता ते पुनर्वसुना वैमानथी अनंगसुंदरीये कोई महा कामीमां पातुं मूल्यु. पुनर्वसुए पण पोतानुं बल हीण अवाने लीधे नय पामतां बतां दीका लइ तपस्या करवा मांमी. पी मरगना अवसरे अनंगसुंदरीने मलवानुं नियाj करी ते पुनर्वसु मुनि कालधर्म पामी देवलोके गया. त्यांची आयुष्य यूर्ण थये चवीने आ लक्ष्मण थया . हवे कामीमां पमेली अनंगसुंदरी त्यांज तपर्नु आचरण करी अंते अनशन लइ कालधर्म पामीने बीजा देवलोकमां देवी थर. त्यांथी देव सुख नोगवीने पनी चवी आ लदमरानी स्त्री विशल्या थइ . (केवली कहे जे के,) अहो ! परस्पर प्रेम अने षने धारण करनारा सर्वे जीवो राग अने रोषथी जगत्ने हितकारी एवा अरिहंत धर्मने नहि जा__णीने आ संसाररुप महा अरण्यमां ब्रमण करे ." ___-पठी राम, जयनूषणकेवलीने नमस्कार करी सीता साध्वीनी पासे आव्या. त्यां ते अत्यंत कोमल अंगवाली सीता साध्वीने जोइ पोताना चित्तमां विचार करवा लाग्या के, "अहो ! आ महामतीनुं शरीर माग्वणना नरखं. ३४ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६६ ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वा६. बहु कोमल बे. तो ए कठोर देहवाला धीर पुरुषोथीज पाली शकाय एवा व्रतने शीरीते धारण करी सकशे ? दा ! सर्व जगत्ना जनाने क्षोनकारी एवो रावण पण जेना चित्तने कंपावी शक्यो नथी, ते महासतीने तपश्या शुं दुःकर/ थवानी बे ? कारण निश्चे तपश्याने विषे कठोर थनारा पुरुषो मुक्ति पामनारा थाय छे." या प्रमाणे महासती सीताना धैर्य विगेरे उत्कृष्ट गुणोनो पोताना चित्तमां विचार करता राम ते शांत मनवाली अने महाव्रतने धारण करनारी महा साध्वी सीताने नमस्कार करी लक्ष्मण विगेरे पोताना परिवार सहित तेना ते ते गुणोथी दर्षित यया बतां विनीता नगरी प्रत्ये आव्या. अहो ! मनुष्याने विषे सीता समान बीजी कोइ स्त्री सती ने पतिव्रता नथी. कारण के, जेना शीलवतना प्रभावथी ज्वाजल्यमान एवो विकराल अनि प जलरूप as गयो. इति श्री पद्म चरित्रे सीता प्रवास दिव्यदीक्षावर्णनो नाम अष्टम प्रस्तावः पक्षी लक्ष्मण पोतानां हृदयमां श्री रामनी नक्ति करता बता राज्यनुं पालन करवा लाग्या. या प्रमाणे राम लक्ष्मण बन्ने जाइयो पूर्वना पुण्य योगथी पुत्रपौत्रादिनी परंपराथी वृद्धि पाम्या. महासती जनकराज पुत्री सीता पण घोर एवा तपने श्राचरी तेत्री दीवस अनशन व्रत धारण करी अंते मृत्यु पामीने अच्युत देवलामां वाविश सागरोपमना आयुष्यवाला देवेंडपणे नत्पन्न इ. कृतांत मुनि परा तीव्र तप करी पोताना पुण्ययोगथी ब्रह्मदेवलोकने विषे गया. श्रा वखते वैताढ्य पर्वत उपर कनकपुर नगरने विषे कनकरथ नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने चश्मुखी अने मंदाकिनी नामनी बे पुत्रीयो हती. राजाए तमना विवाहने माटे स्वयंवर मंरुप रची राम विगेरे अनेक वि द्याधरोने पुत्र सहित त्यां प्राववानुं ग्रामंत्रण करयुं. पठी स्वयंवर मंरुपमां अनेक राजा श्राव्ये ते कनकर भूपतिनी वन्ने पुत्रीयोए पोतानी इच्छा प्रमाणे सुवर्णसमान कांतिवाला रामना वन्ने पुत्रोना कंग्मां वरमाला आरोपी. तमां मंदाकिनीपे श्रनंगलवणनो पाणी ग्रहण कस्यो ने चंड्मुखीये मदनांकुने यो पनी बलीष्ट एवा श्रीधरादि दोढसो लक्ष्मणना पुत्रो मदथी रानानीमा शुरू करवाने तैयार थया, महा पराक्रमवंत एवा रामना Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चारित्र. (३६७) पुत्रो पण विवेकयी पोताना चित्तने विषे विचार करवा लाग्या के, “आ प्रा. पणा पित्राश्योना पुत्रोनी साथे कोण यु६ करशे ? कारण बंधुननो वध निश्चे न करवो जोइए." रामना पुत्रोनो आवो विचार जाणी बहु लायुक्त थयेला तेल पोतानी युद्ध तैयारीने निंदता उता अल्प कर्मताने लीधे वैराग्य पाम्या. बेवट तेमणे पितानीआज्ञा लश महाबल मुनिपाले चारित्रलीधुं. राम लक्ष्मण पण बन्ने पुत्रोनो विवाह करी कणमात्रमा पोतानी राजधानी प्रत्ये गया. को वखते विद्याधराधिपति नामंमल पोताना नुजाबलथी वैताढ्य पर्वतमा समस्त विद्याधरोने जीतीने पोताना नगरने विषे महा समृद्धियी र. ह्यो उतो विचार करतो हतो के, " हुं म्हारी सर्व इछानने पूर्ण करीने पनी अवसरे परलोकनां सुख आपनारी संयमलक्ष्मीने अंगीकार करतेश." श्राम ते विचार करतो हतो एटलामां आकाशथी अकाले नत्पन्न थयेली विजलीना । पमवाथी ते मृत्यु पाम्यो.अंजनापुत्र (हनुमान ) पण सुमेरु पर्वतने विषे जि नवंदन करी बीजे दिवस आकाशमार्गेथी पावतो इतो, एवामां तेणे आकाशमां चंना अस्तने जोइ विचारयु के, “अहो ! सर्वे वस्तु नश्वर देखाय .” श्रावी रीते विचार करता तेणेपोताना नगरने विषे प्रावीने अने पोताना पुत्रने राज्याभिषेक करीने पोते सातसे मनुष्योनी साथे दीक्षा लीधी. हनुमं. तनी स्त्री लक्ष्मीवतीये पण साध्वीयोनी पासे चारित्र ली. अनुक्रमे महा. - मुनि हनुमंत सर्व कर्मनो क्षय करी अनंत सुखवा मोक्षपद पाम्या. हवे अयोध्या नगरीने विषे रदेला रामः, हनुमाननी दीवानी वात सांजलीने मनमां विचार करवा लाग्या. “अहो ! हनुमाने रम्य एवा विषयोने त्याग करी झं कष्टकारी एवा चारित्रने अंगीकार करयुं ? " आ प्रमाणे राम विचार करे ने एटलामा अवधि ज्ञानवाला इं२ तेमना मननो नाव जाणीने तत्काल पोतानी सन्नामां सर्व देवताननी समक्ष कहुं के, “अहो ! विशेष जाण, विवेक. वान, समकितधारी अने आज नवमां मोक जनारा राम अज्ञाननी पेठे विष- योने केम वखाणे अने चारित्रने कुखदायी केम कहे ? हा अथवा में एम. नु कारण जाएयु.ए पोताना बंधु लक्ष्मणनी साये वहु गाढ स्नेह राखे,तेथीज तेमणे लक्ष्मणने वैराग्य पमामता उता एम कडं हशे !! योग्य ले के, म्होटा पुरुषोने पण स्नेह बहु उस्त्यज होय हे," सौधर्मेनां आवां वचन सांजली Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६० ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. तेनी सजानां बेठेला कोइ वे देवतान रामलक्ष्मणना स्परस्पर स्नेहने जोवा माटे पृथ्वी पर कोशला नगरीमां प्राव्या. पढ़ी तेनुए मायावमे रामना - तःपुरनी सर्व स्त्रीयोने " हे नाथ! तमे अमने सर्वने त्यजी दइ एकला क्यां जता रह्या वो ?” एम विलाप पूर्वक रुदन करती लक्ष्मणने देखामी. आ प्रमाणे बंधुनी प्रियाजने तार स्वरथी पोतानी आगल रुदन करती जोइ तुरत उत्पन्न श्रयेला महा शोकथी तप्त थयेला लक्ष्मण मनमां विचार करवा लाग्या के, ५ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (२६५ ) तुरत . प्रणाम करीने कहेवा लाग्या." हे पिता ! सुमित्राना पुत्रनुं मृत्यु संसार थकी अत्यंत नय पामता एवा अमे बन्ने नाइयो हवणां आपनी . ल सुगुरु पासे दीक्षा अंगीकार करीशुं." आ प्रमाणे पितानी रजा सर्वनो संग त्यजी दइ बन्ने नाइयोए वनमा आवी सुधाघोष मुनि पासे दीक्षा लीधी. अनुक्रमे नग्रनाववाला ते बन्ने बंधु मोक्षपदने पाम्या. पठी बंधुना मृत्युना अने पुत्रोनी दीवाना शोकथी विमंबित मनवाला राम, वारंवार मूळ पामवा पूर्वक विलाप करवा लाग्या. “हे बंधु ! में त्हारो कांश पण अपराइ कस्यो नथी, माटे प्रसन्न थइ म्हारा सामु जो. हे प्रिय ! मने नतर आप के, जेथी हुं क्षणमात्र जीवं. म्हारा कोरपणानो तुं जरापण विचार करीश नहि. वली हे ना! तुं मौन धारण करीने रहेलो होवायी अने प्रेमना स्थानरुप पुत्रोए त्यजी दीधेलो होवाली हुं निश्चे पांखो विनाना पतीनी पेठे मृत्यु पामीश." या प्रमाणे विलाप करता, अत्यंत विह्वल थयेला, पोताना बंधु सामे एक दृष्टीथी जोइ रहला, दीन बनेला अने शोकथी पीमा पामेला रामने विन्नीषणादि सर्वे जूपतियो सध्चनथी प्रतिबोध देवा लाग्या. “हे प्रत्नो! आप सर्वे धीर पुरुषोने विषे धुरंधर अने नत्तम विवेकवंत पुरुषोना मुकुटरुप बो, माटे स्वनावधीज नत्पन्न श्रयेला शौर्य गुणने धारण करो अने अन्य प्रकृतिनो आश्रय त्यजी द्यो. हे प्रनो! तमे वृथा खेद शा माटे करो गे? ा परलोक प्रत्ये गयेला पोताना बंधुनुं नर्वदेहिक करो." तेजनां श्रा वां वचनथी कोपव्याप्त नेत्रवाला रामे तेमने कडं. “अहो! आ म्हारो वंधु जीवतां उतां मृत्यु केम पाम्यो कदेवाय ? निश्चे खल एवा तमे जुटुं बोलो गे.अरे ! तमे अग्निमां पेसीने मृत्यु पामो अने श्रा म्हारा बंधु तो दीर्घायुव्यवाला थान." रामे फरीश्री लक्ष्मणने कां. “हे बंधो! चालो आपणे अन्यदेश प्रत्ये जश्ए. धीर पुरुषोना मध्ये वीररुप हे लक्ष्मण ! हवे हुँ खल मनुष्योना जेवा तेवा शब्दोने श्रवण करी शकतो नश्री." श्राम विलाप करता राम, लद मणने पोताना स्कंध उपर बेसारी अन्यस्थले चाल्या गया. राम क्यारेक लक्ष्मणने सूदम वस्त्रथी आबादित करेली शय्यामां सुवारता, क्यारेक चंदनथी सुवासीत करता, क्यारेक सुगंधी पुष्पोथी सुशोभित करता अने क्यारेक तो मोहथी श्राकुल व्याकुल थयेला ते सरस एवा स्तोत्रपाठथी स्त Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७०) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. वन करता. वली क्यारेक राम, लक्ष्मणने बोलावीने पोतेज नत्तर प्रापवानी पेठे हुंकारो आपता. क्यारेक प्रेमपूर्वक आलिंगन करी वारंवार चुंबन करता अने क्यारेक पोताना खोलाने विषे बेसारता. आ प्रमाणे राज्यने अपने सर्व प्रकारना कर्मने त्यजी दर मूढ थयेला रामने, लक्ष्मणना मृतक (शाब )नी सेवा करता मास निर्गमन थया. अहो धिक्कार ने रागी पुरुषोनी प्रावी मोह विटंबनाने !!! पठी महेंजित् अने स्कंदना नहत पुत्रोए रामने गांमा थ गयेला जागी अवसर जो वहु म्होटी सेनावमे अयोध्या नगरीने घेरो घाल्योगे. श्रा वात रामे सांनली, तेथी ते लक्ष्मणने पोताना खोलाने विषे धारण करो तुर- . त शत्रुनना प्राणोनो संहार करवामां श्रेष्ट एवा धनुष्यनो टंकार शब्द करता । त्यां जवा निकटया. आ अवसरे जटायु नामनो देव अवधिज्ञानश्री रामनापावा स्वरुपने जागी तेमने प्रतिबोध देवा माटे माहें देवलोकथी म्होटा वैमानमां वेसी त्यां आव्यो. अहिं अयोध्या नगरीने घेरो घाली रहेला पुरुषो आकाश मार्गे जटायुना आगमनने जो विचार करवा लाग्या के, "अहो, निरंतर मोहथी व्याकुल चित्तवाला रामना पक्षपाति देवता अद्यापी पर्यंत वि. द्यमान देखाय ठे. राम पोतानी देवसेनाथी आपणने हणशे, लंकामां गयेलो विन्तीषण पण आपणी एज अवस्था करशे." आम धारी तेनए वैराग्य पामी दीर्घदृष्टि नामना सशुरु पाले दीक्षा लीधी. जटायु देव पण ते अवसरे रामने प्रतिबोध करवा माटे मनुष्यरूप धारण करी तेमनी आगल आव्यो. पठी ते महा कोर एवा पथ्थरने विये सुकां लाकमां वावी जलनु सिंचन करवा लाग्यो पथ्वी उपर ठगण नांखी तेमां कमल वाववा लाग्यो; मृत्यु पामेला वृषनोयो अकाले धान्यने दाववा लाग्यो अने घाणीने विषे रेतीने पोलवा लाग्यो. देवनां यावां कार्ययी विस्मय पामेला रामे तेने कह्यु. “अरे मूढमति ! ते श्रा पण्यर नपर शुष्क काटने वावq ए विगरे निरर्थक शं कृत्य आरच्यु ? निश्वे यावा कार्यश्री निरंतर सर्व माणसोनी मध्ये त्हारी हांसी अशे ” जटायु देवे हमीने का. " जो श्राप एवं जागो गे तो या मृतक (शव)ने शामाटे याप गृहरा करी राख्यु ठे? वली तेने स्नान, लेपन, पुष्प अने अलारोथी आ मार्ट मुगोनित करोगे ? पठी क्रोधथी विकराल मुखवाला रामे लक्ष्म Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. 66 "3 ( 1७१ ) एमना शरीरने आलिंगन करी देवताने कहां. “ अरे वाचाल ! तुं आवुं अमंगलिक केम बोले बे ? म्हारी दृष्टिथी दूर जा. " देव त्यांथी चाल्यो गयो अने फरी बीजुं रूप धारण करी त्यां व्यो. कांबे के जो कदापी संत पुरुषो शीतल थ जाय तो तेनुने प्रतिबोध पमामवाना थोमा कृत्यो नथी. देवता पोताना स्कंधने विषे स्त्रीना मृतकने नृपामी फरीथी रामनी पासे आव्यो एटले गांमा ययेला रामेतेने कह्युं. “ अरे ! तुं या अपवित्र एवा शबने शामाटे धारण करे बे ?” देवताए कह्युं. “ तमे श्रावुं अमंगलिक केम बोलो बो ? निवे श्र म्हारी प्रिया तो जीवती बे. वाह ! में नपामेला शबने याप सहन क री शकता नथी ने तमे पोते तो शवने वहन करता बता जरा ला पण पामता नथी. आवा aar स्पष्ट विविध नपायोश्री प्रबोध पामेला राम विचारवा लाग्या. “ अरे ! आ म्हारो न्हानो नाइ लक्ष्मण शुं मृत्यु पाम्यो ? के एनी कायचेष्टा विकल देखाय बे ? " पी जटायुदेव, रामने प्रबोध पामेला जी प्रगट यो सूर्य समान देदीप्यमान पोतानुं स्वरुप बतावी कांइ बात कही देवलोकप्रत्ये गयो बी पोताना अनेक स्वजनो सहित रामे चित्तमां संसारिक सर्व पदार्थोंना नावने अस्थिर जाणतां लक्ष्मणना शरीरने सुगंधी कष्टो दहन कर. पी चारित्रने अंगीकार करवा उत्साहवंत थयेला रामे अयोध्या नगरीप्रत्ये यावी पोताना बंधु शत्रुघ्नने बोलावीने कयुं. " हे वत्स ! तुं राज्यने अंगीकार कर अने हुं अनुक्रमे प्राप्त थयेला चारित्रव्रतने गृहण करी - श. " शत्रुघ्ने कयुं. " हे बंधो ! म्हारे राज्यनुं प्रयोजन नथी. हुं पण निश्वे चारित्र लश. पनी स्थिर चित्तवाला रामे, पोताना राज्यने विषे अनंगलवणना पुत्र अनंगदेवने स्थापन करी पोते श्री मुनिसुव्रत स्वामीना शासनना आनूपारूप जिनदास नामना श्रावके प्रशंसा करेला श्री सुव्रताचार्य गुरुनी पासे सुग्रीव, शत्रुघ्न ने विभीषण विगेरे अनेक भूपतियो सहित तथा बीजी हजारो अंतःपुरनी स्त्रीयो सहित चारित्र अंगीकार करयुं. अनुक्रमे पूर्ण जक्तिथी गुरुनी सेवा करता राम साठ वर्ष पर्यंत पवित्रकारी एवा जिनागमोनो अन्या`स करी पोताना आठ कर्मनोद करवा माटे तीव्र तप करवा लाग्या. पी मोहनी इवावाला तेमणे गुरुनी आज्ञा लइ एकाकीपणे विहार करता कोइ प्रत्ये जर त्यां पर्वतना शिखर पर कायोत्सर्गे निवास करचो. या वखते Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७५) ऋषिममलरत्ति-पूर्वाई. तेमने मननी शुद्धियी लोकमां प्रमाणरूप एq अवधि ज्ञान नत्पन्न थयु: पलीतेमणे नुपयोग दइने जोयुं तो लक्ष्मणर्नु मृत्यु कोश बे देवतानथी थयेटुं जाएयु. वली असंख्य एवी गाढ वेदनानथी पूर्ण चोथी नरकने विषे पोताना प्रति-, कुल कर्मश्री लक्ष्मणने पमेला जाणी राम पोताना मनमां विचार करवा ला. ग्या. " हा लक्ष्मण ! सो वर्ष बाल्यपणामां, त्रणसें वर्ष मंमलिकपणामां, चालीश वर्ष दिग्विजयमां तथा अगीयार हजार पांचसो ने साठ वर्ष राज्य करवा-'मां एम सघर्बु मली बार हजार वर्षरुप आपनुं सर्व आयुष्य निष्फल गयुं ? अहो ! तमे निर्दय मनवाला यश् नत्कृष्ट संग्राम करवावमे संसारना थोमा सु. खने माटे असंख्य कुःखोने एकगं कस्यां ." आवी रीते विचार करता राम सर्व जीवोने विष समत्व नाव धारण करीने संवर नावधी पूर्ण थई अखंमित वैराग्यश्री शांत चित्तवाला थया. पठी एक दिवस राम, रथस्थल नामना पुरप्रत्ये गया, त्यां त्रण गुप्ति तथा पांच समिति युक्त निष्क्रोधी एवा ते, उन्ना पारणे आहारने माटे गृहस्थोनां घरने विषे फरता हता. आवा रूपलावण्यना महा समुझ मुनीश्वरने आवेला जो अत्यंत हर्ष पामेला स्त्री पुरुषो हाथमां अनेक प्रकारनां दिव्य लोजनो लय तेमने वहोराववा दोमया; परंतु ते वखते तेमणे “ हुँ त्याग कस्या विनानी निदा नहि गृहण करूं." एवो अन्निग्रह सीधेलो हतो. पठी लोकोए मिष्टान्नना ढगलान तेमने अर्पण कस्या; परंतु तेमांथी तेमणे थोडं पण ली) नहि. अनुक्रमे महामुनि राम, पृथ्वी नपर विहार करता करता पोताना घरप्रत्ये आव्या. त्यां तेमणे हर्षित थयेला प्रतिनंदी राजाए त्यजी दिधेला आहारवमें प्रतिलाच्या. ते वखते देवतानए दिव्य वाजींत्रोना शब्दपूर्वक सुवर्णवृष्टि विगेरे पंच दिव्यो प्रगट कस्यां. मुनि पण महा ध्यान करवा माटे फरीथी मनुष्य रहित वनने विपे चाल्या गया. अहिं तेमणे एवो निश्चय कस्यो के, "हुँ। नगरमा जानं, तेथी लोकोने क्लेश थाय ; माटे हवे म्हारे नगरमां जq नदिश्रने तप पूर्ण श्रये अहिं आवेला कोइ पण मनुष्यो पासेथी निदोष आदार ग्रहण करवो." श्राम धारी अत्यंत जितेंख्यि अने शांत मनवाला रामे बनने विषे निवास कस्यो तया पर अश्रवा मासने यंते पारपुं करवा मांमचं. एक दिवम अश्थे हरण करेलो प्रतिनंदि राजा नचिंतो ने वनमा प्रावी Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. ( १७३) चो. त्यां तृषाथी आकुल ययेलो ते अश्व पाणी पीवा माटे सहसा कादवथी नरेला तलावमां पेो अने तेमां खूच्यो. ज्यारे अश्व कादवमां खूची गयो त्यारे प्रतिनंदि राजा तेना उपरथी नीचे उतरी तटे आव्यो, एटलामां तेनी सेना पाल प्रावी पहोची. पी सौए नोजननी तैयारी करी. आ वखते ते श्री राम मुनि पारणाने अर्थे त्यां श्राव्या. प्रतिनंदि भूपतिय तेमने दर्षथी प्रतिलाच्या, तेथी तेने वन पण नगर समान जलायुं देवतान्ये ते वखते यतिदाननां पुण्यश्री सुवर्णवृष्टी करी. कांबे के - घरने विषे, वनने विषे, व्हार अथवा अंदर सर्व स्थानके पुण्यनुं फल तो निश्वे मले बे. पढी पारणुं करीने निर्मिमानी महामुनिये संसारनो नाश करनारी धर्म देशना श्रापी, राजा श्रावकधर्म - गीकार करी पोताना पुण्यने वखाणतो बतो नगरमत्ये श्राव्यो. पी महामुनि राम, कोटि जुपतियोने श्रेष्ठ सिद्धि श्रापनारी कोटिशिलाप्रत्ये गया. त्यां ते तुरत मन, वचन अने कायाने रोकी शुद्ध जावश्री ध्यान करवा लाग्या. आ - वसरे सीता सुरें श्रवधिज्ञानथी रामने केवलज्ञान आपनारा ध्यानने विषे तत्पर थयेला जाली पोताना मनमां विचार के, "आ राम म्हारा पूर्व नवने विषे प्राणनाथ दता, माटे हवे पती जो ए संसारी थाय तो हुं पण तेम साधे रहूँ. ari पण कामदेवना म्होटा विकारथी एमना उत्कृष्ट ध्याननो नाश करूँ. " ग्राम धारी सीतें अनेक देवांगनान सहित त्यां आव्यो. पती तेले दिव्य विकार उत्पन्न करनारी सीतानी आकृति धारण करीने रामने क. " हे प्रिय ! हुं प्रपनी प्रिया सीता हुँ. में ते वखते सहसात्कारे दीक्षा लीधी दती, परंतु आपनो वियोग सहन न करी शकवाथी दीक्षानो त्याग करी फरीबी आपनी पासे आवी कुं. " आम सीतारूप इंडे, महामुनि रामने ते ते असंख्य विकारोधी कोन, पमानवा मांगचा; परंतु मेरु पर्वतनी पेठे ध्यानमां लीन थयेला ते मुनिनी प्रागल ए सर्व कृत्य निष्फल ययुं. एटलुंज नदि पण बन्ने घातिकर्मनो कय यवाथी ते महामुनिने केवलज्ञान प्रगट श्रयुं. सीतारूप इंडे ते वखते नृपसर्गने त्यजी दइ पोतानुं खरं स्वरुप धारण करी सुवर्णना कमल पर विराजित थयेला महामुनि केवलीने वारंवार पोतानो अपराध खमावता बता शक्तिपूर्वक वंदना करी. पी सीतें देवतान स हित तेनो केवल महोत्सव करीने धर्मोपदेश श्रवण करवा बेठो, मुनिये धर्म ३५ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७४ ) कपिलवति - पूर्वार्ध. देशना आपी. धर्मदेशनाने ते सीतें मुनिने नमस्कारपूर्वक पूयुं के, " हे मुनि ! आप म्हारा उपर क्रपा करीने कहो के, रावण तथा लक्ष्मण कर ग तिमां गया बे ?” सुनिये कधुं. "शंबूक सहित लक्ष्मण ने रावण ए बन्ने जणाहाल चोथी नरकने विषे गया बे. पण त्यां तेन पोतानुं श्रायुष्य पूर्ण करीने म हा विदेह क्षेत्रमां विजयावती नगरीने विषे सुनंद श्रावकनी स्त्री रोहिणीना नदरे जिनदास ने सुदर्शन नामना बे पुत्रो थशे. त्यांथी तेन मृत्यु पामीने सौधर्म देवलोकमां देवता थशे. त्यांथी चवीने फरी तेन विजया नगरीमां श्रा-वकपणे नृत्पन्न थशे. त्यांथी मृत्यु पामीने तेन हरिवर्ष क्षेत्रने विषे युगलिया रूपे थशे. त्यांथी मृत्यु पामी तेन देवता थशे. बेवढे ए विजया नगरीना राजा कुमारवार्तनी स्त्री श्रीलक्ष्मीना नदरश्री जयप्रन ने जयकांत नामना बे पुत्र शे. त्यांते दीर्घकालपर्यंत चारित्र पालीने मृत्यु पाम्या पबी लांतक देवलोके देवतारूपे उत्पन्न यो. - 7 ( श्री राममुनि सीतेंने कहे बे के, ) ते वखते तुं प्रच्युत देवलोकमांथी चवीने या भरतक्षेत्रमां महायशवंत रत्नमति नामे चक्रवर्ती थइश अने लांतक देवलोकमांथी वन्ने देवतान चवीने युद्ध तथा मेघरथ नामना हारा पुत्रो थशे. पी तुं दीक्षा लइ कालधर्म पामीने वैजयंत देवलोकमां बत्रीश सागरोपमनी श्रायुष्यवालो महान् देवता थईश. रावणना जीव इंशयुध पण त्रण नव भ्रमण करीने तीर्थंकर गोत्रकर्म उपार्जन करी 'अर' नामना जिनेश्वर प्रो. ते वखते तुं वैजयंत देवलोकश्री चवीने तेमनो गणधर यश. पठी तमे बने जानु उत्तम धर्मनुं निरुपण करी मोक्षे जशो हवे लक्ष्मणनो जीव के, जे व्हारो मेघरथ नामनो पुत्र थशे, ते पण मृत्यु पामीने शुभगति पाम्या पठी पुष्करद्वीपमां पूर्व विदेदे चित्रा नगरीने विषे चक्रवर्त्ती मो. अनुहमे ते राज्यसंपत्ति भोगवीने अंते चारित्र लइ तीर्थंकर नाम गोत्र बांधी वीजा मां तीर्थंकर rs थोमा वखतमां मोक्ष पामशे. श्राप्रमाणे रावानी तथा लक्ष्मणनी सर्व वात सांगली हर्पित थयेलो सीतं, त्यांची नवीने गाढ अनुरागणी महा दुःखित एवा लक्ष्मणने जोवा माटे क्षणमात्रमां चोथी नरकप्रत्ये श्राव्यो. त्यां तेणे क्रोधाग्निथी ज्वाजल्यमान एक नया रावणने सिंहादिरूपो करी लक्ष्मणनी माथे युद्ध करता टी 35 Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (७५) ग. परस्पर एक बीजानां तीक्ष्ण आयुधोथी नेदाइ गयेला देहवाला, सेंकमो अने हजारो ककमारुप अफरी मली जता, वारंवार विलाप करता अने अत्यंत नग्र ताप, टाढ तथा ते पृथ्वी संबंधी अनेक वेदनानश्री पीका पामता तेनने जोश्ने दयावंत थ गयेला तथा तेनना दुःखने न जो शकता ते सीतें तेमने कां. “हे बदमण ! आजपर्यंत नरक नूमीमां रहेलो सूढबुदिबालो तुं हजी क्रोधने शामाटे धारण करे जे ? अरे रावण तथा शंबूक ! तमे पण नरक नूमिमां रद्या उतां शामाटे क्षमा गुणने नथी धारण करता! आम सीतेथे तेमने युझ्थकी निवृत्त करीने पछी राम मुनि पालेथी सानलेला तेनना नव तेमने कही संन्नलाव्या. सीतेंना आवां वचनरूप अमृतनुं पान करता रावण, लक्ष्मण अने शंबूक ए त्रणे जणाए तेने कयु. “हे दयावंत ! ते बहु सारं करयु. ते अमारा नपरपोतानो प्रेम देखामी अमारुं परस्परनुं वैरत्यजावी दीधुं, परंतु अमने अहिं बहु :ख , तेथी असंख्य वर्षानो काल अहिं शी रीते जशे? हे ना ! जो त्हारामां शक्ति होय तो अमने अहिंथी दूर लइ जा." दयात्रु मनवाला सीतें कडं. “हुं म्हारी दिव्य शक्तिथी तमने स्वर्गप्रत्ये ला जा." पी तेथे ते त्रणे जगाने जेटलामां नरकना एक एक कूवाथी पोताना हाथमां लीधा, तेटलामां तेननां शरीर गली जवाने लीधे ते पाग नरकमां पमया. नरकमां पम्या पली तेननां शरीर पाठा पारानी पेठे एका प्रश्ने हाथीना सरखा थया एटले देवताए फरी पोताना हायमां लीधा. वली पण तेल गली पमया. आवी रीते पूर्वे करेलां टकर्मनां फलरुप तेमने वारंवार नरकमां गली पमबुं पमयु. कर्यु के-पूर्वे संपादन करेलु कर्म इंज्ञदिकश्री परा निवारी शकातुं नथी. पठी रावण विगेरे त्रणे जगाए इंने कहुं. “ हे इंइ ! पोताना कुष्ट कर्मथी बंधनमा पमेला अमोने तुं मूकी दे, सूकी दे. त्हारा नपामवाथी अमने बहु पुःख थाय बे, माटे हे कपालु ! तुं त्दारा स्वर्गप्रत्ये जा." तेनां आवां वचन सांजली सीतें३ तेमने त्यां रदेवा दक्ष, समकितनी शुद्धीने अर्थे जिनपूजनादिनो नपदेश दश पोते नंदीश्वरादि छीपोमां यात्रा करी पोताने 'स्थानके (अच्युत देवलोके) गयो. . पठी केवलज्ञानी एवा राममुनिये पचीश वर्ष पर्यंत शुभ विहार अने. कर्मथी अनेक नव्य पुरुषोने प्रतिबोध पमाझ्या. पा प्रमाणे पोतातुं यचास Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७६) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. हजार वर्षतुं आयुष्य नोगवी महामुनि राम सुखना स्थान एवा मोक्षपदने पाम्या. हे नव्य पुरुषो ! तमे पण या संपूर्ण एवा राम चरित्रने सांजली परस्त्रीनी स्पृहा त्यजी द कल्याण लक्ष्मीना स्थानरुप मुक्ति पदने पामो. में आ रामचरित्र फक्त पोताना नपकारने माटे संदेपथी रचेलु ने, माटे तेमां कां नूल आवे तो म्होटा पुरुषोए म्हारा नपर दया करी सुधारी ले. ॥इति पद्म चरित्रं संपूर्णम् ॥ जेणुगातवं तत्तं, अवराहं दछु निप्रयरूवस्स ॥ तुंगिअगिरिवर सिहरे, सो राममुहामणी जयन ॥१४॥ शब्दार्थ-जेमणे सौजाग्यवंत एवा पोताना स्वरूपना अपराध रूप स्त्रीना व्यामोहने जोइने नंचा श्रेष्ट पर्वतना शिखर नपर जश् नग्र तप करयु, ते श्री बलन वलदेव महामुनि जयवंता वर्तो. १४ रामो तवप्पनावा, सुपत्तदाणान कत्ति रहकारो॥ अणुमोषणा हरिणो, संपत्ता बनलोगम्मि ॥ १५॥ शब्दार्थ-तपना प्रत्नावश्री वलन्नर बलदेव, सुपात्रदानथी सुतार अने । तपनी तथा सुपात्र दाननी अनुमोदनाथी हरिण, एम ए त्र जणा तुरत ब्रह्म । देवलोकने पाम्या ते. १५ ॥श्री बलन बलदेव चरित्रम् ॥ जेमना तपरुप ज्वाजल्यमान अग्निने विषे कामदेवरुप वृक्ष लस्मीनुत यश गयो ठे एवा मोक्षमार्गना देखामनार श्री शिवा माताना पुत्र श्री नेमिनाथ अमने कल्याणकारी यान. जेणे कृष्ण नामना नव्यपतिने पामी वीजा कोइ नृपतिने विषे क्षणमात्र परा विलाल कस्यो नहोतो एवी सौंदर्य लक्ष्मीये करीने म्होटा पुरुषोने पपा यानंद करनारी जाणे को लती स्त्री होयनी ? एवी धारका नामे नगरी . ने नगरीमा नवमा चक्रवर्ती कृष्ण पोताना बंधु सहित राज्य करता इता. एक दिवस ते नगरीना रैवत नामना नद्यानने विये श्री नेमिनाय नामना. Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बलन बलदेव चरित्र. (२७७) जिनेश्वर समवसस्या. पापनो नाश करनारा प्रनुना आगमनने जाणी अत्यंत हर्षित श्रयेला कृष्ण परिवार सहित त्यां जश् प्रन्नुने नमस्कार करी योग्य आसने बेग एटले प्रन्नुए विशेषयी धर्मनुं रहस्य अने वैनव यौवनादि संसारिकपणानुं नश्वरपणुं ए विगेरे धर्म देशना आपी. धर्मोपदेश श्रवण कस्या पजी कृष्णे श्री जिनेश्वरने पूज्यु. “ हे प्रनो ! स्वर्ग समान आ म्हारी द्वारका नगरी अचल रहेशे के नाश पामशे ? अने म्हारं मरण कोनाथी यशे ?" त्रीकालज्ञानी एवा जगशुरु प्रन्नुए का. “हे नत्तम ! सांजल. मदिराना मदश्री प्रांधला श्रयेला त्हारा पुत्रोए क्रोध पभामेला दैपायन ऋषियी आधारकानो नाश थशे. वली त्हारा म्होटाना एवा जरा कुमारथी थोमा वखतमां हारु मृत्यु पण थशे. हे मुकुंद ! विकट स्वरुपवाली अने अंते महा पुःखका. रीश्रा नवनी स्थितिज एवी ." प्रन्नु पासथी आवा नविश्यमा थनारा नुपवने जाणी कृष्ण धारकामां आवीने केटलाक दिवस गया पठी ते उपवने नाश करवा माटे नगरीमा पट्टह वगमाव्यो के, "हे कुमारो अने बीजा लोको! तमे सौ साललो. तमने महाराजा कृष्ण एम आज्ञा करे ले के, तमारे मदिरानी श्छा त्यजी देवी. कारण के, मदिराना पानथी श्री नेमिनाथ जिनेश्वरे कहेलो म्होटो अनर्थ नत्पन्न थशे." श्री कृष्णनी आवी आझाथी सर्वे कुमारोए पोते पोतानां मदिरानां पात्रो द्वारका नगरीनी ब्दार श्री रैवताचल पर्वतनी गुफामां नांख्या. योग्यज ने राजानी आज्ञा कोश्थी नखंघी सकाती नथी. पठी जराकुमार “आ यादववंश रूप समुझे नल्लास पमामवामां चंड समान श्री कृष्ण, मृत्यु म्हाराथी न थान.” एम कहीने. हारका नगरी त्यजी दश तुरत को एक पल्लीमां जश्ने रह्यो, बलदेवना न्हाना ना लिहार्थे पण व्रत लेवानी श्वाथी पोताना म्होटा बंधु पासे आज्ञा मागी. कडुंडे के-विधान पुरुषो धर्मकार्य करवामां विलंब करता नथी. पठी बलदेवे सिक्षार्थने कह्यु. “ जो तुं देवता यई मने बोध पमामे तो हुँ तने दीक्षा लेवानी रजा आपुं.” सिक्षार्थ ए वात कबुल करी अने पगी ते श्री नेमिनाथ पासे चारित्र स मास पर्यंत चारित्रने श्रेष्ट रीते पाली स्वर्गे गयो. कयु के-श्रेष्ट पुरुषो पोताना हितकारी अर्थने योमा दिवसमा साधी ले ये.' . . . हवेज्यां रेवताचलनी गुफामां कुमारोए मद्यनां पात्रो नाख्यां दता, त्यां Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. ते एकग थयेला मद्यना म्होटा धरान यश् गया. वली ते पमता एवा फलादि कना रसथी अति श्रेष्ट रसवाला श्रया. एक दिवस शांबकुमारनो को सेक्क फरतो फरतो त्यां जश् चमयो. तेणे गुफानी अंदर प्रसरी रहेला मद्यना बहु गंधथी आगल जइने जोयुं तो उत्तम एवा धरान दीग. पठी तेणे हारकामां आवीने ते वात शांव विगेरे कुमारोनी आगल कही एटले मद्यने विषे अति लुब्ध थयेला यादवना हजारो कुमारो दोमता दोमता तुरत त्यां आव्या. पड़ी जेम मरुस्थलना तरश्या वटेमाणु लोको शीतल जलनुं वारंवार पान करे ते. म ते कुमारोए अति स्वादिष्ठ रसवाली मदिरानुं पान करयु. आवी रीते न. त्साहथी कंठपर्यंत मदीरानुं पान करीने विकल बनेला ते कुमारो गीतनृत्यादि करता उता पर्वतनी गुफामां पातानी मरजी प्रमाणे फरवा लाग्या. एवामां त्यां तेमणे अति शांत अने तप करता एवा पायन नामना तापसने दी. ग. पठी मदिराने लीधे अति मूढ बनेला ते कुमारो, निवारी सकाय नहि एवा नुतना वालकोनी पेठे जेम तेम बोलता दोमया अने तापसनी पासे जश "अरे तापस ! तुंज अमारी नगरीनो नाश करनार ? आजे महा कगेर अने पापी एवा तने अमेज हणशं.?” एम कहीने तेनए तेमने मुठी लाकमी विगेरे विविध प्रहारथी माया. अहो ! मद्यादिने विषे आसक्त थयेला पुरुषो को पण अनर्थने गणता नश्री. “अरे इष्टबुध्विालान! तमे निरपराधी एवा मने तपस्वीने शा माटे मारोगे? जो म्हारं कांइ पण तप तो तेथी हुँ तमारी नगरीने दहन करनारो थइश." आम नियागु करता ते मुनिने प्रहारथी मृत्यु पामेलाना समान करी सर्वे कुमारो धारकामा जता रहा. आ वात कृष्णवलदेवे सांजली, तेथी तेन अत्यंत आकुलव्याकुल थया उता तापस्वीयोमा मुख्य एवा हैपायनने अमृत समान वचनदमे शांत करवा माटे त्यां याव्या अने कहवा लाग्या. " उग्रतपना समुप हे मुनि! पूजन करवा योग्य प्रापने अमारा नत एवा क्रोधी पुत्रोए दण्या के; पण आपे प्रसन्न घ एकवार ते अमारा अपराधने दमा करवो जोइए." वी रीते कृष्णवलेदेव मुनिने बहु शांत करवा मांमया; परंतु तेमणे पूर्वना क्रोधने त्यजी दीघो नहि. कां ठेके-तुरत सलगी नठेलो दावानल शू कोऽयी शांत करीशकाय बगे ? ज्यारे अत्यंत क्रोधातुर श्रयेला मुनिये को परा रीते श्रामनो Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बलज बलदेव चरित्र. ( ए) .(नियाणानो) अनुग्रह करयो नहि त्यारे स्वन्नावीक गंन्नीरगुणे करीने मनोहर एवा रामे कृष्णने कडं. “हे जनार्दन ! तुं मोहने लीधे वृया प्रयत्न शामाटे करे ? जरा विचार तो खरो, के जगत्मां क्यारे पण जिनराजनी वाणी शुं फोगट थाय खरी?" दैपायने का. “ हे कृष्णबलदेव ! में क्रोधयी हा. रकापुरोने नाश पमामवानु नियागुं करयुं . वधारे शुं कहुं, पण हुं तमारा बन्नेजणाना विना बीजा कोश्ने गेमी देनार नथी." पठी बलन्नइ सहित कृष्णे झारका नगरीमा जश्ने तुरत पोताना सेवको पासे पट्टह वगमाव्यो के, “हे नगरवासी जनो ! क्रोधातुर श्रयेला पायन ऋषिये हवणां धारकानो प्रलय करवानू कडु ने, माटे तमे सौ निरंतर प. रमेष्टी मंत्रना ध्यानने विषे एक चित्तवाला पान अने घरने विषे अथवा नद्या नने विषेत्रणे काल जिनराजनुं पूजन करो. वली पुष्कर एवा वह विगेरे तप करवामां अने नाना प्रकारना नियम धारवामां नद्यमवंत थइ व्यसन, वैर, विलास, निज्ञ अने विकथा विगेरे दुर्गुणोने त्यजी द्यो. तेमज बालथी मामीने वृक्ष्पर्यंत सर्वे नगरवासी जनो आदरथी श्रेष्ट एवा जिनराजना धर्मनी सेवा करो के, जेना अतुल्य एवा पुण्य प्रन्नावथी ए दैपायन म्हारी नगरीनो नाश करवा समर्थ थाय नहि.” कृष्णनी आवी आझाथी सर्वे लोको, ते दिवसभी प्रारंजीने जिनेश्नी पूजा तथा परमेष्टी मंत्रनुं ध्यान ए विगेरे धर्म कार्य करवा लाग्या. हवे श्री नेमिनाथ प्रन्नु पृथ्वी उपर विहार करता करता फरी रैवताचल पर्वत नपर आव्या. कृष्ण विगेरे यादवो पण पोताना परिवार सहित वर्ष पामता उता तेमने वंदना करवा गया. ते वखते नगवाने संध्याना वादलाना रंग समान, हाथीना कान समान, दनना अग्र नाग नपर रहेला जलना वि. 5 समान, जलना कल्लोल समान अने इंना धनुष्य समान लक्ष्मीनु, यौवननु अने राज्य- अस्थिरपणुं दर्शावि धर्मदेशना आपी. प्रनुनी धर्मोपदेशना सांनलीने संसारमां निवास करवाशी अने विलासथी खिन्न श्रयेला पद्युम्न, शांव, निषध, ननट अने नारण विगेरे यादवना कुमारोए कृष्ण बलन्ननी आज्ञा लश्ने प्रस्तुनी पासे दीक्षा लीधी. रुक्मिणीये पण पोताना पति श्री कृ. ष्णने का. “हे प्रनो ! मने व्रत लेवानी आज्ञा आपो के, जेश्रीकरीने हे पण इवणां श्री नेमिनाथ प्रन्नु पाले मोक्षने माटे चारित्र अंगीकार करूं." कृष्यो Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८० ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वा है. वह शोकश्री रुदन करवापूर्वक आज्ञा प्रापी; तेथी तेले बीजी अनेक राणीयोनी साधे संसार समुमां वहाणरूप चारित्र लीधुं. पी श्री नेमिनाथ प्रजुए बीजे स्थानके विहार कस्यो एटले कृष्णे पण द्वारका नगरीमां चावीने पट्टद arrot के, "हे नगरवासीजनो ! तमारे सर्व प्रकारे पोताना हितने माटे निरंतर धर्मने विषे यत्न करवो. दवे द्वैपायन नामनो तापस मृत्यु पामीने श्रमिकुमार देवतानुना मध्ये नृत्पन्न थयो, ते पूर्वना कोवथी द्वारका नगरीनो नाश करवाने तुरत त्यां प्राव्यो. वली पर्वतना उपर मृगोने इरावा माटे जेम सिंह तैयार थाय तेम ते धर्म ध्यानमां तत्पर एवा मनुष्योने मारवा तैयार थयो; पण केटलाक मनुष्यो नयी ने केटलाक स्वनावधी एम सर्वे लोको जिनराजना पवित्र धर्मनुं सेवन करता हता; तेथी जेम पर्वतने विषे खाली गयेली फालवालो सिंह दुष्ट वि चारवालो वतां मनुष्योने उपश्व करी शकतो नथी तेम डुष्ट चित्तवालो ते देव, 'वर्मनुं उत्कृष्ट ध्यान करवामां चतुर एवा नगरवासीजनाने नपश्व करवा स यो नहि. जो के ते महा विरोधी देव द्वारका नगरीमा रहेनारा मनु. प्योने उपपत्र करवा माटे वारंवार श्रावतो, पण तेम करवाने श्रसमर्थ होवाथी पाठो चाल्यो जतो. ग्रावी रीते बार वर्ष वीती गया. एवामां दुष्ट कर्मना फ लोदी धर्मने विषे सीथिल श्रयेला मनवाला सर्वे माणसो विचार करव। लाग्या के, " हवे ते इष्ट देव क्यांइ जतो रह्यो दशे. " आम धारी प्रमादी थ येला सर्वे मनुष्यो धर्मने विषे अत्यंत मंद श्रादरवाला यया पढी डुरात्मा अने चलने शोधता एवा ते देवताने अवसर मल्यो एटले तेसे मनुष्योने प्रति जयकारी एवा दिग्दाह, भूमीकंप ने धुलवृष्टि विगेरे अनेक दिव्य उत्पात प्रगट कस्या, तथा मनुष्योमां परस्पर क्लेश कराव्या. वली तेरो बहु क्रोधने सीधे संवर्त्तक वायुने विकर्वी नगरीमां घास काष्टनो समूह एको करीने सलगाव्यो. पठी यी वीजा देशप्रत्ये नासी जता एवा सर्व लोकोने पण ते देवताए संवर्त्तक वायुश्री उपामी उपामीने पाना नगरीमां नाख्या. लोको बहु आकुल व्याकुल थया; तेश्री तेन घणां जलश्री अग्निंने सिंचन करवा लाग्या; परंतु तेम करवाथी अग्नि शांत वा वटले नलटो वहु वधवा लाग्यो. अग्निश्री त्रण मालनां सात मानां घरी सलगवां लाग्या. अनेक शीलानु फाटवालागी, शिखरो Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बल बलदेव चरित्र. ( २८१ ) तुटी परुवा लाग्या. मुक्ताफल भने मणियोथी जमित्र एवा चंडुवान तथा शाल विगेरे दिव्य वस्तु सलगवा लागी. कपूर तथा अगुरुचंदन विगेरे उत्तम वस्तुठनी कानोनी पण तेज दशा थवा लागी. वली ते वखते मनुष्योने प्रांधला करवावो धूमाको सर्व दिशानुमां प्रसरी जवाथी हाथी, घोमा अने बलद विगेरे मुख्य पशु तथा स्त्री पुरुष ने बालको पण बलवा लाग्या. ते वखते प्र 66 हा कृष्ण ! हा राम ! या महा प्रमिश्री पीमा पामेला अने प्रतिदीन चित्रवाला अमने रक्षण करो ! रक्षण करो !!" एवो महा भयंकर शब्द चारे बा - जुए संजलावा लाग्यो. ते वखते कृष्ण जेटलामां पोताना दिव्य शस्त्र, मंत्र अने मणि विगेरेथी निशांत करवा लाग्या तेटलामां तेमना अल्पपुण्यने सीधे चक्र, गदा, शं1 ख, बाण, हल अने मुशल विगेरे सर्व अस्त्रो अदृश्य थइ गयां पबी माताने विषे उत्कृष्ट जक्तिवाला कृष्ण बलजरे, देवकी तथा रोहिणी सहित वसुदेवने द्वारका नगरीथी व्हार लइ जवाने रथमां बेसाखा, परंतु ते वखते रथमां जोमेला घोमान, प्रनिश्री अत्यंत बलता बता जरा पण आगल चाल्या नहि. पबी कृष्ण बलज्जर पोतेज मातृभक्तिने लीधे रथने वलगी खेंचवा लाग्या जेटलामां तेन पोताना विशाल मंदिरना दरवाजा पासे आवी पहोच्या तेटलामां दरवाजाना बारणां बंध थयां जो के बल बहार निकलवा माटे से बंध थयेला कमाने नागी नाख्यां, तो पण ते क्षणमात्रमां पाठां एकगं थइ गयां. आ वखते आकाशमां ननेला अने जयंकर प्रकृतिवाला हैपायन देवे कृष्ण बलजश्ने क. " हे वीर पुरुषो ! तमे पोताना बलने फोगट शामाटे गुमावो वो? हुँ फक्त तमारा बन्ने जण विना बीजा कोइ बाल के वृदने बोमी देनार नथी. 1 पूर्वेकai करेल सर्व तपने पण निश्वे तेज माटे मूढ नावथी गुमावी दधुं बे. " पी माता पिताए कृष्ण बलनने कां. “दे पुत्रो ! तसे या स्थानथी दूर जता रहो. जो तमे जीवता रहेशो तो तमाराधी फरी वंश वृद्धि थशे. तमे माता पितानी शक्तिने लीधे पोतानी पूर्ण शक्ति प्रगट करी; परंतु पूर्व जवमां मेलवेला प्रमारां दुष्ट कर्मणी ते सफल यह नहि. जो के पुरुषार्थरहित एवा प्रमोए श्री नेमिनाथ प्रभु पासे दीक्षा न लीधी तो पी. संसारवासने अनुसरी रहेली या विटंबना अमने केस सुलन न घाय ? ३६ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८२ ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्ध. हवे श्रम श्री जिनेश्वरोनुं शरण यान, सिद्ध, साधु अने केवली प्रणित धर्म पण अमारा शरणरूप थान. वली या नवने विषे अमने चार प्रकारना आहारना त्यागरूप अनशन व्रत पण हो. सर्व प्रकारना प्राणीयोना हितकर्ता, राग द्वेषादिको संग त्यजी देनारा अने सर्व जगत्ना मित्र श्री नेमिनाथ प्रभु अमारा शरण थान. " आ प्रमाणे परमेष्टी मंत्रना ध्यानमां तत्पर श्रयेला ते त्रजणा (देवकी रोहिणी ने वसुदेव) हैपायन देवे प्रगट करेला जस्मीभूत थइ पुण्यने सीधे स्वर्गमां गया. आवी रीते सर्वे नगरवासी जनो जस्मीनूत था. कृष्ण बलन पण निश्वे जस्मीभूत थती पोतानी समग्र नगरीने जोता बता बहारना जीर्णोद्यानने विषे गया . त्यां बलता सुवर्णना किल्ला ने महेलोना थता खडखडाट शब्दोथी, नस्मरूप यता मनुष्योना तिर्यंचोना कोलाहलथी तथा अमिनी ज्वालाना तीखारामां पकता प की योना शब्दोथी कोन पामेला कृष्णे दीन वचनथी पोताना नाइ बलनने कह्युं. “हे बंधो ! हुं म्हारी पोतानी दृष्टिथी या नगरीना दाहने जोइ शकतो नथी, तो हवे क्यां जानं ? कारण के, राजाननुं महा पराक्रमवंत सर्व मंगल यापणाश्री विरुद्ध वे.” वलन कयुं. " हवणां आपने श्रेष्ठ बुद्धिवाला अने संबंधि एवा पांगवानी नगरी प्रत्ये जनुं योग्य बे; पण बीजा कोई दुश्मनने घरे जवुं योग्य नथी.” कृष्णे कह्युं. " ठीक बे, पण पूर्वे में महा क्रोधथी अने ही ते पांगवाने वहु पीमा आपी बे; तेथी हवणां तेमनी नगरी प्रत्ये जतां आपणा मनमां शुं बहु लका नहिं थाय ?" वलजड़े फरीश्री कह्युं . " हे मुकुंद ! निवे तें जेवी रीते एकवार पांरुवानो अपकार कस्यो वे. तेवीज रीते बहुवार उपकार पण कस्यो ठे. खरेखर ए पांवो उत्तम गुणवान् ने कृतज्ञ (करेला गुणने जागनारा) वे; तेथी तेन पूर्वे तमे करेला नपकारना स्मरणथी हति चित्तवाला ने तमारुं वहु गौरव करशे. " या प्रमाणे निश्चय करीने पगमे चालता ते बन्ने जाग्यो पांचोनी नगरी तरफ चाल्या. ग्रहो ! अति म्होटा पुरुषोने पण दैवश्री पुष्ट कर्मना फलरूप आवी दुर्दशा प्राप्त थाय वे !!! वे या द्वारका नगरीमां श्री कुब्जवारक नामनो वलनश्नो पुत्र पोतानी नगरीने दुग्ध श्रती जो अत्यंत जय पामतो बतो पोताना महेल उपर चमने कहना लाग्यो के. "हे देवतान ! हुं श्री नेमिनाथ प्रजुनो शिष्य कुं Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ श्री बलन बलदेव चरित्र. (२७३) अने तेथीज श्री जिनेश्वर नगवाने मने आझा करी , तो हवे तमे मने आ अग्निवमे शामाटे बालो गे? आम कहेता एवा ते कुब्जवारकने जुनक नामना देवताए तुरत त्यांथी नपामी श्री नेमिनाथ प्रन्नु पासे मूक्यो. योग्यज डे के, तेज नवमां सिक्षिपदने पामनारा पुरुषोने आवी अनर्थनी घटना केम थाय ? अर्थात् नज थाय. आ वखते श्री नेमिनाथ प्रनु दूर रहेला पल्हकिनामना देशमा विहार करता हता, त्यां कुब्जवारक कुमारे आधीने तेमनी पासे दीक्षा लीधी. अनुक्रमे नत्कृष्ट तपस्या करतो ते कुमार मुक्ति पदने पाम्यो. कृष्ण बलननी बीजी पण हजारो स्त्रीयो आ अति घोर एवा अग्निना संकटने विषे अनशन व्रत धारण करी मृत्यु पामीने नव्य गति पामी. दुःसह अग्निथी दग्ध थयेली केटलीक माता तो तुरत नत्पन्न थयेला सुन्नन्नावयुक्त थश्ने तेज वखते घणुं करीने देवतारुपे अथवा म्होटा प्रनाववाला व्यंतररुपे प्रगट था. आवी रीते ते वैपायनरुप अग्नि कुमार देवताए धारका नगरीने छ मास पर्यंत दग्ध करी. पळी जाणे संकेतज आप्यो होयनी ? एम समु३ पोताना नचलता तरंगोथी ए नगरीने चारे तरफथी बोली दीधी. धिक्कार ने आ वा पुष्ट कृत्यने !!! हवे कृष्ण बलन बन्ने नाश्यो हस्ति समान हस्तिनापुरप्रत्ये जवा माटे प्रति दिवस आगल आगल प्रयाण करता हता, एवामां एक दिवस कृष्ण बलनने कयुं के, “हे बंधो ! मने नुख लागवाथी बहु पीमा थाय ने.” बलन्नई कहूं. "जो तुं अहिं सावधानपणे उन्नो रहे तो हुं आ पासेना नगरमांजावं." कृष्णे कडं. " परंतु त्यां तमने उपश्व थाय तेनी खबर अहिं मने कोण कहेशे?" बलन कह्यु. “हे राक्षसोना शत्रु ! जो त्यां तेम अशे तो हुं सिंहनाद करीश; एथी तमने तुरत जाण थशे. पनी तमारे तत्काल त्यां आवq." आवो संकेत करीने बलदेव तुरत नगरमां गया. श्रेष्ठरुपवाला बलन्नने नगरमां प्रवेश करता जोइ नगरवासी जनो परस्पर कहेवा लाग्या के, "अहो! आ बखदेव दग्ध थती हारका नगरीथी निकली याव्या ले के झुं ?” आम नगरना सर्वे मनुष्यो विचार करता हता एटलामां बलदेवे मूल्य आपीने वजारमांधी मद्य सहित नत्तम रसवाला नोजनने खरिद्यु. पी ते जेटलामां ए सर्व वस्तुनने लश् नगरना दरवाजा पासे याव्या तेटलामां आकुलव्याकुल मनवाला , Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०४) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. रक्षक पुरुष पांमुना पुत्र उदंतक नूपतिने खबर आपी के, “हे महाराजा! दिव्य रुपवंत कोइ पुरुष हवणां नगरीमा आवीने बहु मूल्यथी मदिरा तथा नोजन खरीद करी चाल्यो जाय . हुं आपने खबर कहेवा ऊट अहि आ-। व्यो वं, तो हवे म्हारो दोष नथी.” रककनां आवां वचन सांजली तुरत सेना सहित तैयार श्रयेला उदंतक नूपतिये नगरीनो दरवाजो बंध कराव्यो. आम पोताले हावा माटे तैयार अयेला उदंतक नूपतिने जाणी बलदेवे तुरत सिंहनाद करीने एक म्होटा आलान स्तंनने नखेमी पोताना हाथमां लीधो. सिंहना समान पराक्रमवाला अने महा वलवंत एवा कृष्ण पण सिंहनादने सांन्नली तुरत फाल मारता त्यां आव्या अने नगरीना दरवाजाना बन्ने कमामने पाटुना प्रहारथी तोमी नांख्या. पी कृष्णे तुरत उदंतक लूपतिने वांधीने कडं. “अरे मूर्ख ! मरवानी चा करता तें धारकानी लायमां शुं अमारा नुजाना वलने पण दग्ध थर गयुं जाएयु ? धिक्कार ठे तने !!! निश्चे हुं रांक एवा तने हणीने शं करुं !" कृष्णे आ प्रमाणे उदंतक राजाने तिरस्कार करी गेमी मूक्यो. पठी कृष्णे वलन्नइ सहित मद्यपान पूर्वक नोजन करयु. त्यार बाद तेनए पूर्व दिशामां पर्याल करयु. अनुक्रमे पूर्व नपार्जन करेला कर्मना नदयथी ते बन्ने नाइयो, प्रसन्न एवा असंख्य जंतुनथी पूर्ण एवा कौशांव नामना अरण्यप्रत्ये आवी पदोच्या. ते वनने विषे चालता एवा कृप्णने मदिराना पानथी, लसणना न. कणथी, मार्गना श्रमश्री, नग्र तापश्री अने पूर्व जन्मना पुण्यना कयथी वगवी सकाय नदि एवी बहु तरश लागी. कृष्ण तरशने लीधे एक पगलुं पण पागल चालवाने समर्थ श्रया नदि; तेश्री तेमणे पोताना नाइने का के, “हे चयो ! तरशने लीधे म्हारुं तालबुं सूका जाय ठे.” विशाल बुध्विाला बलनडे मदा प्रेमश्री कां. " दे मुकुंद ! तुं स्वस्थपणे था वृदनी नीचे वेस. हुँ जल लग्ने प्रावु वं." पठी मार्गे चालवाने लीधे वहु खिन्न श्रयेला कृष्ण दाटा वमवृकनी नीचे पोतानुं वस्त्र मुखपद्म नपर नढी तथा ढींचण नपर जोजो पग मुकीने नंघी गया अने वलदेव तेमना माटे जल लेवा वहु दूर गया.' पाउत नज बनमा र नाग, वाघना चाममाने नटनारो, निरंतर धनुष्य नपर नागने रमाबी गग्वनागे, पाप संपनि मेलववामां हांका वगरनो अने दूररहेली Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ श्री बलन बलदेव चरित्र. (ज्य ) मीणी वस्तुने पण विंधी नांखवामां चतुर एवो जराकुमार, दैवयोगश्री फरतो फरतोत्यांावीचमयो. त्यांतेणे वझवृदनीनीचे सूई गयेलाकृष्णना देदीप्यमान कमलना चिन्हवाला चरण कमलने जोइ मृगनी ब्रांतिथी तुरत यमराजना दूतरुप बागमारयु.पठी बाणथी पगना मर्मस्थानने विषेविंधायेला अनेतेजप्रहारथीपीमित थयेला मनवाला वली सूकाइ गर्यु ले तालवू जेमनुं एवा कृष्णे नठीने कडं. "अरे! पोतानुं नाम अने वैरनुं कारण दर्शाव्या विना मने बागथी कोणे विंध्यो ने ? कारण के, क्षत्रीय पुरुषो तो प्रबल वैर बतां पण सूतेला माणस नपर प्रहार करता नथी.” कृष्णनां आवां वचन सनिली जराकुमारे अति खेद पामीने कडं. “अहो ! में कोई पुरुषने प्रहार कस्यो!!” पी कृष्णे "तुं कोण बु?" एम पूबवाथी तेणे उत्तर आप्यो के, “ राज्यने त्यजी दश् आ वनमा निवास करवा आवेलो हुं जराकुमार नामे वसुदेवनो पुत्र बु. दयावंत चित्तवाला श्री नेमिनाथ प्रन्नुए मने श्रीकृष्णनो घात करनार कह्यो हतो, तेथी हुँ कृष्णर्नु रक्षण करवा माटे अर्थात् म्हारा हाथथी एवं बंधुवधरुप कुकृत्य न याय एवा हेतुथी हारका नगरी त्यजी दश् अहि रह्यो . केवल पापसंपत्तिने एकटी करनारा मने अहिं निवास करता बार वर्ष बीती गया ले.अहो ! तेमां में आजे मनुष्यरुप तमने दीग . हे नाइ ! तमे कोण गे? तेमने झट निवेदन करो.” कृष्णे कडं. “जेना माटे तमे स्वर्ग समान धारका नगरीने त्यजी द आ वनमां निवास करो गे तेज हुँ तमारो न्हानो नाइ कृष्ण बुं. हुं अहिंयां आ वमवृक्षनी नीचे सूतो हतो एटला तमारा वाणथी विधाणो बुं." कृष्णनां आवां वचन सांजली दूर नन्नेलो जराकुमार व्याकुल मनवालो अइने तत्काल तेमनी पासे आव्यो अने पोताना बाणथी विधायेला पोताना बंधुश्री कृष्णने जाणीने ते तुरत मूळ पाम्यो. पनी ज्यारे मूळ निवृत्त थइ त्यारे ते उखथी बहु विलाप करवा लाग्यो. तेणे गद्गद् स्वरथी कृष्णने कह्यु. “ हे बंधो! मने श्री नेमिनाथ प्रनुए कह्यु हतुं ते प्रमाणे दैपायन नामना तापसे आपणी झारका नगरीने अने यादवोना समग्र वंशने शुं दग्ध करया ? हेना अर्शनरतखंमनी राज्य लक्ष्मीनेनोगवनारा तमारी आजे आशी दशा !!!" पी अत्यंतपीमायुक्त श्रयेला कृष्णे जराकुमारनी आगल सर्व वात कही.पोताना कुकृत्यथी खेद पामेला जराकुमारे पण फरीश्री कृष्णने का. “ धिक्कार ठे, Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७६) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई.. मने के, जे हुं वधुन्नो घात करनार पुरुषोना मध्ये आ प्रथम रेखा पाम्यो .!! अहो ! वसुदेवनो पुत्र थर अने संसार समुने तारनारा श्री नेमिनाथनी निरंतर सेवा करीने में आवं कुकर्म करयुं तो निश्चे हुं धिक्कारवा योग्य बु, श्रा अरण्य क्या, म्हारो निवास क्यां, तमारा सरखा अतिथियो, आवq क्यां अने म्हारा वाणथी तमाळं विधावq क्या ? श्री नेमिनाथ प्रन्नुनुं कहेवू सर्व सत्य अयुं .पाहा! बलवंत पुरुषोने पण दैवयोग क्यारेबीजीरीतेथतो नथी." आम वारंवार शोक करता जराकुमारने कृष्णे कडं. “हे बंधो ! तुं वृथा खेद शा माटे करे , ? हे विवेकी ! कोर्नुनावी मिथ्या थतुं नथी. ज्यारे मनुष्योनो पूर्वे संपादन करेलो पूण्यसमूह क्षय पामे अने पापसमूह नदय आवे त्यारे महात्मा पुरुषोए करेली ःसह विघ्नोनी रक्षा पण निष्फल थाय बे. हे बंधो! श्रा एक नावीज ठे एमां त्हारो अथवा बीजा कोश्नो दोष नथी; परंतु में पूर्वे करेलां नग्र उष्ट कर्मर्नु ए पाप मनेज अति पीकाकारी थइ पम्थु बे, माटे हे बंधो ! तुं शोकने त्यजी दर अने म्हारी आ अवस्था अश् एवी पांडवोने खबर कहेवा माटे आ म्हारा हृदयना कौस्तुन्न रत्नने लश पांमवोना राज्यमां जा, यादवकुलमा फक्त एक वाकी रहेला अने पांवो थकी प्राप्त श्रयेला सुराज्य पदने सेवन करनारा तने पांमवो वृदिपमामो, तेमज त्हाराथी फरी वंशनी वृ हि पण थान. वली हे वंधो !त्हारे पांमवोनी आगल आ सर्व वात निवेदन करीने पठी में अति क्रोधने लीधे ते महा नक्तिवालानने देशमाथी काढी मूक्या हता तेनी मधुर वाणीथी दमा मागवी. अरे ना! हवे तुं अहिंथी न अने ऊट चाल्यो जा, कारण के, म्हारे माटे जल लेवा गयेला बलन्नावशेअने ते त्हाराथी थयेला म्हारा वधने जागशे तो निश्चे पोताना चित्तमां गोत्रदयने नहिं गणता त्हारो वध करशे. वली त्हारे अहिंथी अवला पगथी अर्थात् म्हारा सामं मुख राखीने चाल्युं जयूँ के, जेथी म्हारे विषे अति प्रेम नक्तिवाला व. लन्नइत्दारो वध करवा माटे त्हारी पाठल न यावी शके." अति स्नेहने धागग करनारा कृष्णे यावी रीते वहु बहु वार कडं एटले दीन थयेलो जराकुमार , कृपानी पामयी कौस्तुन्नमणिने लइ चाल्यो गयो. __ हवे अदि कृप्रा पोतानो मृत्युकाल पासे श्राव्यो जाणी सुखश्री अति पीका पामता उता पण उत्तम धर्मवालना गखीने तेमज शुन्न चिनवाला थ Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बलन बलदेव चरित्र. ( ७) इने दर्जना आसन नपर बेसी कणमात्र या प्रमाणे आराधना करवा लाग्या, __“अरिहंत सिह, आचार्य, नपाध्याय अने साधुनने हुं प्रणाम करूं . निश्चे पोताना शरण प्राप्त अयेला मने तेन सर्व काल रक्षण करनारा थान. देवाधिदेव, महोदय लक्ष्मीना आपनारा, विश्वना आजूषण अने केवलज्ञानथी सर्व प्राणीयोना नावने जाणनाराश्री नेमिनाथ प्रलुने हुँ निरंतर नमस्कार करुं बु. में आ नवमां महा कषायना योगथी चतुर्गतिने विषे रहेला सर्व जंतुननी जे कांइ विराधना करी होय अथवा बीजा नवोमां जे कांश विराधना करी होय ते सर्वनी क्षमा मागुं बु. में बाल्यावस्थाथी मांझीने आज पर्यंत दिव्य आयुधोधी कत्रियरसवझे (शूररसवमे) कंस मैद विगेरे शत्रुनो जे वध कस्यो ने ते सर्व पापने धिक्कारवापूर्वक कमा मागुं बुं. म्हारुं को नथी तेम हुं पण कोइनोनथी. में सर्व संग त्यजी दीधो ले. तेमज मने आ नवमां कायक समकितरूप रत्न प्राप्त थान. वली समुविजय विगेरे दशा), त्रण जगतना प्राणीयोने पूजन करवा योग्य गजसुकुमाल विगेरे म्हारा बंधुन अने शांबादि म्हारा पुत्रो ए सर्वे निश्चे पुण्यवंता ने. कारण के, जेन दुःखनां स्थानरुप गृहवासने त्यजी दइ श्री नेमिनाथ प्रन्नु पासे दीक्षा ल अने तीव्र तपस्या करीमुक्तिपदने पामशे. खरेखर नत्तम शीलवाली रुक्मिणी विगेरे म्हारी स्त्रीयो पण प्रशंसा करवा' योग्यज ने. केमके तेन पण प्राप्त थयेला अवसरे श्री नेमिनाथ जिनेश्वर पासे दीक्षा लइने पोताना म्होटा नदयवाला अर्थ- साधन करे ." आ प्रमाणे चमता नावथी शुइ ध्यानने विषे प्रवृत्त थयेला कृष्णना नावने विषे, पूर्वे बंधायेला नरक आयुष्यने लीधे आवी रीते फेरफार थयो. “हा! पूर्वे अति बलवंत शत्रुनथी पण म्हारो परान्नव थयो नथी, ते आजे म्हारा जोता उता उष्ट चित्तवाला हैपायने म्हारी नगरी, प्रजा, माता, पिता, बंधु, वधु अने व्हेनो विगेरे सर्वने दग्ध करी मने आवी विषम दशाने पहोचामयो . बलन्नइ सहित बलवंत एवा मने धिक्कार !!! जो दवणां ए म्हारा माता पितादिनो नाश करनार शत्रुने हुँ जाणुं अथवा दे तो निश्चे ते ऽष्ट हृदयवालाने म्हारा पोताना हाथवती शीक्षा करूं." आवी रीते वृद्धि पामेला गाढ रौ ध्यानमांज आयुष्य पूर्ण थवाने लीधे मृत्यु पामेला कृष्ण महा दुःसह क्लेशना स्थानरुप त्रीजी नरकने विषे नत्पन्न थया. Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (200) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्ध. - 66 पठी वनने विषे जमीने कमलपत्रमां जल लइ पोताना बंधु कृष्णने जोवा माटे पोलां करेलां नेत्रवाला बलन्नड़ ते वरुनी पासे श्राव्या, तो त्यां तेमले प्रफुल्लीत पण वस्त्रथी ढांकी राखेला मुखवाला अने सूइ रहेला कृष्णने जोइ विचारयुं के, " बहु श्रमश्री थाकी गयेलो या म्हारो बंधु सुखे सूइ रह्यो बे. " श्राम धारी ते वमवृकनी नीचे कृष्णनी पासे बना रह्या वली “ था म्हारो नाइ पोतानुं शरीर केम नथी हलावतो अथवा तेनां मुख उपर मांखीयो शा माटे जमे बे ? ” एवी शंकाथी तेमणे कृष्णानां मुख उपरनुं वस्त्र दूर क रथं एटले मृत्यु पामवाने लीधे चेष्टा रहित ययेला शरीरवाला पोताना बंधुने जोइ वलन तुरत मूर्छा पाम्या पढी शीतल पवनयी सचेत थया एटले बंधु वियोग ने लीधे प्रति प्राकुलव्याकुल थयेला तेमणे पोताना नाइना चरणने विषे थयेलो वाणप्रहार जोइ तुरत वनना जीवोने त्रास करनारो तथा नयंकर एवो सिंहनाद करघो. वली ते वलन तारस्वर करीने कर्तुं के, “ अरे ! मृत्यु पामवाने इच्चता कया दुष्ट पुरुषे या सुखे सूइ रहेला म्हारा बधुने हयो ? जे या कुकृत्य करयुं होय ते ऊट म्हारी पासे प्रवीने कही द्यो. जे पुरुष पोताना सर्व वलथी बालकने, स्त्रीने, गांगाने, मंदने, मूर्छा पामेलाने, सूइ गयेलाने, रोगीने नेत्र विनाने हो बे तेने सर्व माणसो अधममां पण अधम कडे वे.” पी विह्वल थयेला वलनड़, कोप अने शोकथी ते महा अरण्यमां सर्व: ठेकाले जम्या पण कोइ स्थानके पोताना बंधुनो घात करनार पुरुषने दीठो नहि. पती मननी अंदर थयेला वहु शोकने लीधे बहु वखत सुधी शोक करीने वलनइ पोताना खंजा उपर कृष्णना शरीरने धारण करी ते वननी अंदर फरवा ला-ग्या. जो के बल पोते जाएा तथा वखाणवा योग्य गुणवाला हता, तो पण ते क्यारेक कृष्णना शरीरने पुष्प तथा फलवमे वहु सुशोभित करता. क्यारेक शय्यामां सूवारता ने क्यारेक पोते जलवमे स्नान करावता. आ प्रमाणे कृप्यना शरीरने पोताना खंभा नपर उचकी प्रतिदिवस विविध प्रकारनी चेष्टा. करता वलड़ने व मास श्रया. हाहा! महात्मानं ने पण श्रावी मोहविटंबना थाय बे, वे बलन न्हानो भाइ सिद्धार्थ के, जे चारित्र लइने देवता थयों दतो, तेथे अवविज्ञानची वलनी आवी अत्यंत दुर्दशा दीवी, तेथी ते पोनानी प्रतिज्ञा पालवाने माटे मोहवी अत्यंत मृढ बनी गयेला पोताना बंधुने Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बलन बलदेव चरित्र. बोध पमामवाने माटे तुरत त्यां आव्यो. पठी ते देवताए बलन्नइ जोता बंता पर्वतना विषम प्रदेश नपरथी साजा नतारेला अने पृथ्वीना सरल रस्ता नपर नागी गयेला रथने फरीथी साजो करवा मांमयो. तेनी आवी चेष्टा जोईने बलन कj. “अरे मूर्ख ! विषम मार्गेथी सुखे उतारेला अने सरल रस्ते नागी गयेला रथने हवे शा माटे साजो करवा बेगे ?" देवताए कडं." हे बलदेव ! युः धिना मृत्यु पामेलो आ त्हारो बंधु ज्यारे जीवतो श्रशे त्यारे आ नागी गयेलो म्हारो रथ पण साजो अशे, एम धारी हुं तेने सांधु बु.” देवतानां आवां वचन सांजली विशेष पुःख पामेला बलदेव तत्काल आगल चाल्या. देवता पण तेमने प्रतिबोध पमामवा माटे खेमुतनुं रूप धारण करी पथ्यर नपर कमल वाववा लाग्यो, बलन तेनुं आवं कृत्य जो हसीने पूज्यु. “अरे ! आ त्हारां कमलो क्यारे नगशे?" देवताए उत्तर आप्यो. “ त्हारा खंना नपर रहेढुं शब ज्यारे जीवतुं श्रशे त्यारे ए कमलो नगशे.” बलदेव फरीथी आगल चाल्या एटले देवता पण मनुष्यन रूप धारण करीने तेज मार्गमां एक बली गयेला वृदने जलसिंचन करवा लाग्यो. बलदेवे तेने हास्यपूर्वक कयुं. “हे मूढ ! आ बली गयेखें वृक्ष त्हारा सिंचन करवाश्री क्यारे पल्लवित अशे ?" देवताए कां. “ ज्यारे आ त्हारा खन्ना नपर रहेढुं शब जीवतुं श्रशे । त्यारे आ वृक्ष पण पल्लवित अशे.” देवतानां आवां वचनश्री बलन्न आगल चाल्या. देवता पण तुरत गोवाल, रूप धारण करी तेज मार्गमा एक मृत्यु पामेली गायना मुखमां लीला घासना कोलीया प्रयत्नश्री देवा लाग्यो. बलदेवे तेने कडं. “अहो ! आ मृत्यु पामेली गाय शुं घासने खाशे?" देवताए कडं, “हे मूढ ! त्यारे श्राशब पण शुं जीवतुं श्राशे?" देवतानी आवी समान प्रत्युतरवाली वाणी सनिलीने श्री बलदेव विचार करवा लाग्या. “शुं म्हारो बंधु निश्चे मृत्यु पान्यो बे के, जेयी सर्वे माणसो आवी रीते कहे ?” आम बलदेव पोताना चित्तमा विचार करे एटलामां सिद्धार्थदेवे पोतार्नु खलं स्वरुप धारण करीने तेमने कह्यु. “हे बलदेव ! आप बंधुना नेहथी केम मोह पामो गे? हुं तमारो नाई सिद्धार्थ .आपे मने प्रतिज्ञा करावी हती के, त्हारे अवसरे आवीने मने प्रतिवोध पमाझवो.” एज कारणथी हुँ स्वर्गर्नु सुख गेमी दंश तमने प्रतिबोध करवा अहिं आव्यो , हे वलनs! सांजलो. Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०० ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. तमे ज्यारे कृष्णना माटे जल लेवा दूर गया त्यारे कृष्ण मार्गना श्रमश्री पीमा पामवाने लीधे वमवृक्षनी नीचे महा निशश्री नंघी गया. पाबल एज श्ररएयमां जमतो जराकुमार त्यां श्राव्यो अने तेथे मृगनी ब्रांतिथी कृष्णना च / रकमलने विषे बाण मारयुं. पी कृष्णे पोतानो कौस्तुभमणि प्रापीने तेने पांमवोनी राजधानी प्रत्ये मोकल्यो. प्रथम शुभ ध्यानमां तत्पर रही अने पाबली पोताना पूर्व जवना निकाचित कर्मश्री अत्यंत रौड़ ध्यानमां तत्पर - येला कृष्ण मृत्यु पामीने त्रीजी नरकप्रत्ये गया. ” बलन कघुं. “हे बांधव ! तें बहु सारुं करयुं ! वहु सारुं करयुं ! ! जे प्रवसरे यावीने मने प्रतिबोध पाचो. हे नृपकारी बंधो ! हवे म्हारे शुं करवुं ते तुं मने ऊट कहे.” देवताए कयुं. " हे पुण्यवंत ! हवे तुं श्री नेमिनाथ प्रभु पासे दीक्षा ग्रहण कर. पठी विवेकी वा बलन तुरत चंदनना काष्टथी कृष्णना शरीरने अनि सं स्कार कस्यो; एटलामां श्री नेमिनाथ प्रभु चारण सुनिने त्यां मोकल्या; तेथी वलन अवसर जालीने कृष्णनो शोक त्यजी दइ स्नेहपूर्वक तेमनी पासे दीक्षा अंगीकार करी. पी सिद्धार्थ देवता अने चारणमुनि पोतपोताना स्थानके गये ते श्री वलनर मुनि विहार करता करता तुंगिक नामना पर्वतने विषे गया. त्यां तेमणे शांत चित्तश्री तपश्या करवा मांगी. "" एक दिवस मासखमलने पारणे वलदेव मुनि, ते पर्वतनी पासेना गा. मां जिका माटे जता हता एवामां बालकने साथे लइ जल नरवा आवेली कोइ स्त्रीये कूवाना कांठा नपर नजा नन्ना तेमने दीग. बलदेवना रूपथी मोड़ पामेली ते स्त्रीये जल भरवा माटे घमाने बदले पोताना पुत्रना कंठे दो. ररुं वांची कूवामां सिंचवा मांगचो. तेनां प्रावां विलोम कृत्यने जोइ पोतानी रुपलक्ष्मीनी निंदा करता वलदेव मुनिये ते स्त्रीने कां. “दादा ! तुं आ अ नायलोने पण निंदा करवा योग्य, शोक तथा आपत्तिने आपनारुं अने मह दुःखना कारणरूप झुं कृत्य करे वे ? " यावी रीते ते स्त्रीने प्रबोध पमामी व न मुनि पोताना चितमां विचार करवा लाग्या. " निश्वे में आ वालकने मृत्युश्री मृकाव्यो. दवे पठी म्हारां रूपश्री श्रावुं कुकृत्य न श्राय एटला माटे योग नगरी विंगरेमा क्यारे पण जिका लेवा जनुं नहि. फक्त या पर्वत नपरजरही रे काष्ट विगेग्नोज आहार करतो. या प्रमाणे घोर अनिग्रह "> Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बलन बलदेव चरित्र. ( ए?) , सइ विधिने जाणनारा मुनि बलन्न त्यां रह्या. त्रण रत्ननुं आराधन करवा. मां सावधान, त्रण गुप्ति अने चार समितीनुं रक्षण करनार, शमन्नावना समुअने मोक्ष सुखना अनिलाषी ते महामुनि, पददमण अने मासक्षमणना पारणाने विष काष्ट जल विगेरेनुं नक्षण करता तप करवा लाग्या. पनी एक दिवसे ते पर्वत नपर काष्ट लेवा आवनारा माणसे पोताना राजानी पासे प्रावीने का के, “आ पर्वतना शिखर नपर कोइ तपस्वी अति घोर एवं तप करे . सर्वे राजा पण ए वात सांजलीने दोन पामता बता विचार करवा लाग्या के, " निश्चे ए आपणुं राज्य लेवाने अर्थेज घोर तप करे , माटे एनो ह. वणां वध करवो योग्य ." आम धारी सर्वे नूपतियो बखतर पहेरीने बल:देव मुनिने दणवा माटे त्यां अाव्या. धिक्कार ने धिक्कार ने महामोहने सेवन करनारा मनुष्योनां श्रावां अयोग्य स्थानने विष प्रारंन्नेला युःक्ष्नां कृत्यने !!! सिक्षार्य देव परा आ वखते पोतानी नत्कृष्ट नक्तिने लीधे पुंच अने केशवाली. श्री पृथ्वीना नागने कंपावता एवा विकराल मूर्तिवाला सिंहो श्री बलदेव मुनिनी पासे विकूा. देवतानां आवां कृत्यश्री जय पामेला सर्वे राजाल श्री बलदेव मुनिने प्रणाम करी पोतपोताने स्थानके जता रहा. कडं ठे के-लोकने विषे तीन तपस्वी लोकोनां तपनो प्रनाव अचिंत्य होय . ए महा मुनिना } मधुर स्वरवाला स्वाध्यायने सांजलीने व्याघ्रादि हिंसक जीवो पण परस्पर } वैर त्यजीने नपशम नावने पाम्या हता. हवे श्री बलन्न मुनिनो को पूर्व जन्मनो मित्र लघुकर्मी जीव, उत्पन्न ययेला जाति स्मरण ज्ञानवालो अने विशुः अक्षरुपी गुणवालो ते वनमां मृग थयो हतो. ते ज्यारे बलदेव मुनि बेसता त्यारे वेसतो, नन्नारदेता त्यारे उन्नो रहेतो अने को स्थानके जता त्यारे तेमनी पाउल जतो. परंतु शुभ चित्तवालो ते मृग क्यारे पण तेमनुं पम मूकतो नहि. विवेकवंत एवा ते हरिणे “श्रा वनमा सार्थ विगेरेनो योग होय रे त्यारे तेमनी पासेयी आहार पाणी लावीने आ मुनि नोजन करे . नहितो नश्री करता.” एवा मुनिनो घोर अन्निग्रहने जाण्यो. पठी ते मृग हमेशां सवारे मुनिनी सेवा करी अने तेमने नमस्कार करी पर्वतना वननी अंदर सार्य विगेरेना आश्रमने शोधतो शोधतो दूर नमे अने ज्यारे ते को सार्थ. विगेरेने देखे त्यारे ते मुनिने Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ILL PEESTLE पिममलवृत्ति-पूर्वाई. . शु आहार वहारवा माटे उगमवाने पोताना शींगमा वमे मुनिने खजवाले. अनुक्रमे बलदेव मुनि तेनो संकेत जाणे एटले पोताना स्थिर ध्यानने मूकी आगल चालतां हरिणे बतावेला मार्गने विषे दातारना आश्रमे जाय, पनी शुनावथी वहोरावेला निर्दोष आहारथी पार' करी ते महामुनि फरी पोताना आश्रमे जइ अति नग्र तप करे. श्राप्रमाणे ए महामुनिने व्रत, पा. लन करता एकसो वर्ष वीती गयां. __ एक दिवस ते अरण्यने विपे केटलाक सुतारो लाकमां कापवा आव्या अने पोताना तीक्ष्ण कुवामावती पांशरा अने गांगे विनाना म्होटा वृक्षाने कापवा लाग्या. मध्यान्हनो वखत अयो एटले तेन अ कापी नाखेलां मूलवाला ते म्होटा वृदनी नीचे नोजन करवा वेग एटलामां पेलो हरिण फर-. तो फरतो त्यां आवी पहोच्यो. त्यां तेमने नोजन करता जोश तुरत संकेत करवा माटे मुनिनी पासे गयो, बलदेवमुनि पण ध्यानने त्यजी दइ इर्यापथिकीतुं स्मरण करता संतुष्ट चित्तवाला मृगे बतावेला मार्गेथी त्यां आवी प. होच्या. जाणे हालतुं चालतुं कल्पवृक्षज होयनी ? अथवा तो जाणे मूर्तिमंत पूण्यनो प्रकाशज होयनी ? एवा अने चिंता आवेला ते जोवा योग्य मुखवाला अतिथिने जोइने विवेकी एवो मुख्य सुतार विचार करला लाग्यो. "अाजे म्हारा प्रांगणामां अमृतवृष्टि श्रश् अश्वा तो कल्पवृक्ष प्रगट थयो !" यावी ते हर्पश्री अनुमोदना करतो सुतार नत्तम नक्तिथी मानरहित एवा वलन्नमुनिने दोपरहित एवं पोतानुं नातु वहोराववा लाग्यो. पासे नन्नेलो मृग पण या प्रमाणे शुरू नावना नाववा लाग्यो के, “निश्चे दातार एवो आ सुतार जगत्मां धन्य, कृतार्थ, पुण्यवान् अने त्रलोकमां मान्य ने.कारण के, जे एणे नत्तम, एपणीय अने अगएय एवा पोताना नातायी या मुनिने प्रतिलाच्या. खरेखर अत्नागी तो हुंज उस्यो के,या उष्ट पशुजातिपणाथी पात्रदान रक्षित रह्यो. बलदेव मुनिये पण तुरत पोतानी तपोवृद्धीने माटे लोलुपीपणुं दूर करी मुतार वदोरावेलो एपणीय आहार गृहण करयो. या वखते प्रचंवायु उत्पन्न भयो; नयी पलु मूलमांधी अंकापी नाखेवं वृत्त ते त्रणेजण नपर पम्यु, जेत्री तेन तुरत मृत्यु पाम्या. महातप, अतुल्य पात्रदान अने अनुमो. दनाचा श्रीगना-गापरिपवित्रधियेला अंगवाला श्री बलदेवमुनि, सुतार अने Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री बल बलदेव चरित्र. ( १५३ ) मृग ए त्रजला ब्रह्म देवलोकने विषे महा समृद्धिवंत देवता यया. मो प्रपवायोग्य एवा ब्रह्मचर्य व्रतने धारण करनारा धने तीव्र तप करनारा श्री बलदेव मुनि स्वर्गमां गया ए एक व्हारा चित्तमां आश्चर्यरुप जलाय . तेमज मोक्ष लक्ष्मीना एक मुख्य कारणरूप सुपात्रदान आपतो एवो सुतार ब्रह्मदेवलोक प्रत्ये गयो ए पण आश्चर्यरूप ठे वली तिर्यंच जातिवालो मृग पण दान, शील अने तपक्रिया रहित बतां केवल नचलता नावयोगथी ब्रह्मदेवलोकमां देवता यो ए पण म्हारा चित्तने विषे श्राश्वर्य वे. - ear देवलोक विषे नृत्पन्न थेयेला बलन देवताने त्यां तुरत प्रवविज्ञान उत्पन्न श्रयुं; तेथी तेमले प्रेमना स्थानरूप पोताना पूर्वजवना बंधु कृष्णने दुःसह वेदनाथी पीमा पामता त्रीजी नरकने विषे दीवा पढी नरकश्री कृष्णनो नार करवाने इवतो ते देव तुरत स्वर्ग की त्यां गयो भने कृ ने प्रेमपूर्वक आलिंगन करी कहेवा लाग्यो के, “हे बंधो ! हुं हारा पूर्व - जन्मनो राम ( बलन ) नामनो बंधु बुं. हुं दीक्षा लइ पांचमा देवलोकमां देवतापणे नृत्पन्न यो ढुं; परंतु प्रेमने लीधे यहिं हारी पासे श्राव्यो बुं. श्राम कहने बलन देवताए पोतानी अप्रमाण एवी दिव्य शक्तिथी कृष्णना जीवन नरकमांथी नार करवा मांगचो; परंतु ते सूर्यश्री गली पकता बरफनी पेठे तुरत गलीने पाठो नरकमांज परुवा लाग्यो. कृष्णे कयुं. “हे बंधो ! दवे तुं मने मूकी दे. कारण एम करवायी मने बहु पीमा थाय बे. " पवी खेयुक्त चित्तवाला देवताए महा वेदनाथी पीमा पामता कृष्णने मूकी दइने कह्युं. " हे जाइ ! त्हारा घोर कर्मने लीवेज हुं तने बीजे स्थानके लइ जवा समर्थ यो नहि; परंतु जो तुं कहे तो हुं व्हारी प्रसन्नताने अर्थे निरंतर हिं रहुं. " कृष्णे कां. " म्हारा दुष्ट कर्मने लीधे प्राप्त थयेली या नरकपीमा तुं म्हारी पासे रहीश, तेथी क्यारे पण दूर थवानी नथी, माटे हे जाइ ! बीजी एक बात कहुं ते सांजल अने ते म्हारा चित्तनी प्रसन्नताने माटे ऊट कर. थापण घोर अवस्थाने सांजली तथा अमिश्री द्वारकाना नाशने सांजली सर्व स्थानके सर्वे खल पुरुषो दर्ष पाम्या बे. परंतु श्रेष्ठ पुरुषाने तो दुःख नृत्पन्न युंबे, माटे तुं श्रेष्ठ पुरुत्राने हर्ष करवा माटे ने खल पुरुषोने खेद करवा ܕܪ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. माटे चक्र गदा विगेरे शस्त्रयुक्त हाथवालु, गतिमां लक्ष्मीना चिन्हवालु, गरुः । मनपर विराजीत श्रयेवं, पीला वस्त्रवालुं म्हारं स्वरुप तेमज वैमान नपर बेठेखें, श्याम वस्त्रवालु, हल मुशल विगेरे शस्त्रथी सुशोनित हाथवालुं त्हारुस्वरुप पण आकाशमां राखी आ सर्व नरतक्षेत्रने विषे देखाम के, जेथी करीने सअनोने विषे आपणो अपवाद नाश पामे. वली लोकने विषे एवो पण नद्घोष करवो के, “देवरुपने धारण करनारा, निरंतर स्थितिवाला, नित्य सुखवाला अने पोतानी श्या प्रमाणे विहार करनारा श्री रामकृष्ण निरंतर जयवंता वर्ने ठे.” आ सर्व वात अंगीकार करी बलन देवे तुरत दक्षिण जरतक्षेत्रमा श्रावीने कृष्णना कहेवा प्रमाणे वैमानमां वेठेला बन्ने स्वरुपो आकाशमां राखी . सर्व लोकने देखामया. वली दिव्य देहकांतिवाला तेणे स्पष्ट एवो उद्घोष क.. यो के, “हे प्राणीयो ! तमे सौ सान्नलो. आ विश्वनी नत्पति अने संहार करनारा अमे वीए. अमे सुखने माटे आ चारका नगरीने क्षणमात्रमा नत्पन्न करी हती, पण हवे अमारी वीजे स्थानके जवानी चाथी अमे ते हारका नगरीनु हरण करयुं ." वलन्न देवनी प्रावी वाणी सांजली दर्ष पामेला सर्वे मारणसो आ लोक संबंधी अनेक प्रकारना सुखनी चाथी ठेकाणे ठेकाणे म्होटा देवालयोने विषे एवाज स्वरुपवाली रामकृष्णनी मूर्त्तिनुं स्थापन करी तेमना नक्त प्रया. आ प्रमाणे नद्यानोने विपे अने गृहोने विषे रामकृष्णनी महा मूल्यवाली अनेक मूर्तियोर्नु महोत्सवपूर्वक स्थापन करीने आ लोक संबंधी अनेक नोग संगना अनिलाषी एवा अर्धा नरतखंझना मनुष्यो तेमनुं पूजन करवा लाग्या. वलन्न देव पण ते मूर्तियोर्नु पूजन करनारने हर्षपूर्वक सर्व प्रकारनी संपत्ति आपवा लाग्यो. अहो ! शुभ सम्यक्त्वधारी एवा वलन देवताए केवल बंधुना प्रेमश्री मिथ्यात्वपणुं विस्तारयुं. अनुक्रमे ते देव स्वर्गलोकना सुखोने नोगवी आयुष्य पूर्ण श्रये त्यांश्री चवी आवती अवसर्पिणीमां सारा विशाल कुलमा अवतरशे. पठी कृप्यनो जीव के, जे श्रीमम नामना तीकर अवाना ठे तेमना वारामां ए वतन्ननो जीव महोदयवाली दीक्षा ला अनुक्रमे अंते अनंत सुख पामो. हे मोक्षार्थी नव्यजनो! तमे सर्व प्रकारना पापने नाश करनारा, काम, क्रोध, मद विगरेनो नच्छेद करनारा अने गयनी वृहित करनाग या बलदेव मुनिना चरित्रने मानलीने वैराग्यश्री नत्कृ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (ए) ट एवा पोताना बंधुसंबंधी मोहने त्यजी दर केवल सुखकारी एवा जैनध_ मनुं सेवन करो. ॥इति नवमबलदेवमुनिसंबंधकथनरूपो हितीयः प्रस्तावः ॥ श्कागरायवसहो, पमिबुद्धीनाम कोसलासामी॥ तह नेा अंगाए, चंदबाए निरुवमाए ॥१६॥ संखेवकासिराया, कुणालदेसाहिवो तहा रूप्पी॥ कुरुवश् अदीणसत्तु, पंचालपहु अजीअसत्तू ॥१७॥ संजायजाइसरणा, पवश्या प्पि मल्लिजिणपासे ॥ चनदसपुवी एए, जयंतु अपुणप्लवं पत्ता ॥१७॥ अर्थ-श्क्ष्वाकुवंशना राजानमा श्रेष्ठ एवो कोशलादेशनो अधिपति प्रतिबुद्धि, निरुपम एवी अंगा नगरीनो महाराजा चंचाय, काशीनो नृपति शंख, कुणालदेशनो अधिपति रुक्मी, कुरुदेशनो नूपाल अदीनशत्रु अने कांपिढ्यपुरनो नूपति जितशत्रु. ए नत्पन्न श्रयेला जातिस्मरण ज्ञानने लीधे श्री मल्लिनाथ प्रन्नु पासे दीक्षा लश् अने चौद पूर्वना धारणहार अइ मोक्षपदने प्राप्त करनारा (नपर कहेला) गए महाराजा जयवंता वर्तो. ॥श्री मल्लिनाथ चरित्रम् ॥ पूर्व विदेहक्षेत्रने विषे सलिलावती नामनी महा विजयमां लोकोने आश्चर्य करनारी वीतशोका नामे नगरी बे. त्यां शत्रुना सैन्यने मर्दन करवामां समर्थ नुजा दमवालो महा बलवंत बल नामनो राजा राज्य करतो हतो. तेने मनोदर स्वरुपवाली धारणी विगेरे एक हजार स्त्रीयो हती, एक दीवस ए धारणीये सिंह स्वप्नसूचित एवा एक पुत्रने जन्म प्राप्यो. राजाए हर्षपूर्वक ते पोताना पुत्रनो जन्म महोत्सव कस्यो. बारमे दिवसे विविध प्रकारनामहोत्सवधी स्वजनोने संतोष पमामी बल राजाए पोताना पुत्रनुं “महावल" नाम पामयु. पठी पांच धावमातामयी वृद्धि पामतो ते कुमार अनुक्रमे सर्व कलामनो अन्न्यास करतो स्त्रीयोनां चित्तने संतोष करनारी यौवनावस्था पाम्यो Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०६ ) ऋप्रिमंगलवत्ति - पूर्वार्ध. एटले बलराजाए तेने कमलश्री प्रमुख पांचसो राजकन्यान परणावी अने तेनुंने रहेवा माटे व्यश्री पूर्ण एवां मंदिशे प्राप्यां महाबलकुमार ते पोतानी पांचसो स्त्रीयोनी साथे अनेक प्रकारनी जोगसंपत्तिने जोगवतो तो पिता-. एपेला मंदिरप्रत्ये रहेवा लाग्यो. कोइ वखते उत्तम चारित्रने धारण करनारा केटलाक स्थविर साधुन ते नगरीना इंकुंज नामना उद्यानमां श्राव्या एटले वलनूपतिये ते उद्यानमां जर ने गुरुना चरणने विषे प्रणाम करीने मोक्षसुख आपनारी निर्मल ध मोंपदेशना सांजली. पबी वैराग्यथी नावित चित्तवालो बलराजा, गुरुने प्रणा मकरी नगरी प्रत्येगयो. त्यां तेथे मदाबस कुमारने राज्याभिषेक करयो. पटी बलपतिये ते स्थविर साधुननी पासे दीक्षा लं अनुक्रमे एकादशांगीनो अन्यास करो. अनुक्रमे दीर्घकाल पर्यंत पवित्र एवा चारित्रने पाली ने चारु नामना पर्वतने विषे एक मासना उपवासथी संलेखना करीने ते म दामुनि मोक्षपद पाम्या पबी पोताना राज्यपदने जोगवता श्रीमान् महाबल भूपतिने, कमली पट्टराणीथी एक सिंहस्वप्नसूचित पुत्र घयो महाबले तेनुं बलनड् ” नाम पामयुं. अनुक्रमे ते कुमार यौवनावस्था पाम्यो. हवे महावल राजाने वाल्यावस्थाथीज अचल, धरण, पूरण, वसु, अ निचंद ने वैश्रमण नामना महा संपत्तिवाला व मित्रो इता. जाणे पोतानो एक प्रात्माज होयनी ? एम ए व मित्रोनी साथे महाराजा महाबल, निरंतर स्नान, विविध प्रकारना जोजन अने क्रीमा विगेरे करतो. आम ते राजानो सकाल सुखमांज निर्गमन थतो. एवामां केटलाक उत्तम स्थविर साधुन विहार करता करता ते नगरीमां थाव्या. महावल पोताना व मित्रो सहित धर्म श्रवए करवा गयो. त्यां सुनियोए थापेला धर्मोपदेशरूप अमृतरसनुं कंठपर्यंत पान करी उत्कृष्ट जाववलवाला महावल राजाए दीक्षा लेवानी इच्छा करी. पठी ते माधुने प्रणाम करी पोतानी नगरी प्रत्ये श्रावीने मित्रोने कड़ेवा लाग्यो. "दे मित्रो ! हुं म्हारा पूर्वजोना अनुक्रमश्री प्राप्त थयेली दीक्षा लईश, तमे तपध्यानो अंगीकार करो ? तमे तमारो जे विचार होय ते कहो. " मित्रोए कधुं. “ श्रमे पण तमारीज साधे दीका लर्डझुं. " पढी राजाए कहां. “हे मित्रो ! नये श्राप सौ यशस्वी श्रने पुण्यवन बीए. दवे नमे मौ पोतपो 66 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मलिनाथ चरित्र. ( 0) ताने घरे जई पोतपोताना बंधुनने तथा कुटुंबने आ वात निवेदन करी अने पोता. , ना म्होटा पुत्रने घरबार सोपीने पछी चारित्र लेवा माटे पालखीमां बेसीने 'अहिं आवो.” आम पोताना मित्रोने प्राज्ञा करी अने गुणोए करीने उत्तम एवा पोताना पुत्र बलन्नने राज्याभिषेक करी महाबल राजा पोते चारित्र लेवाने तैयार अयो. उए मित्रो पण त्यां श्राव्या एटले पनी हजारो मनुष्योए उपामेली पालखीमां बेसी वाजींत्रोना शब्दोथी दिशाडने गजावी देतो महाबल राजा हर्षदी पोताना मित्रो सहित नगरीथी बहार नीकली नद्यानमा स्थविर साधुननी पासे आव्यो, त्यां ते सर्वे जगाये तपस्या लीधी. पनी परस्पर धर्मरागने धारण करनारा ते सर्वे साधुन, विधि सहित एकादशांगीनो थ न्यास करी बहुश्रुत थया. वली तेनए “जे साधु छ, अध्म, दशम विगेरे | घोर एवा तपy आचरण करे ते बीजाए पण कर." एवी परस्पर प्रतीज्ञा 'करी. ते सर्वेमां म्होटा अने नपशमना समुप महावल मुनि पोताना चिसमां विचार करवा लाग्या के, “तपमा समान रीते रहेनारा एवा श्रमारी कीर्ति पण लोकमां सरखी रीतेज थशे. वली अमारामां कोइ पण मुख्य अमुख्यनुं ज्ञान धरावतो नथी, माटे आ सर्वे साधुनश्री हुं वधारे तप करूँ के, जेथी लोकमां ते सर्वे करतां म्हारी प्रशंसा वधारे थाय.” आवी रीते वीचार करीने इंश्योने वश्य राखवामां तत्पर एवा ए महाबल मुनिये अधिक अधिक तपश्चर्या करवा मांमी. अहो ! धिक्कार ले के, जे म्होटा पुरुषोने पण निश्चे मोह याय !! निरंतर उत्तम रीते मोक्ष सुखना साधनरूप अति निर्मल चारित्रने विषे पण ए शमन्नाववाला महाबल मुनिने मायाकलंक प्रयु. जो के सर्व आगमने जाणनारा अने ममता रहित ए महाबल राजर्षिये तीर्थंकर नक्ति विगेरे विश स्थानकथी प्रकट जिन नाम कर्म नपार्जन करा, तो पण तेमणे ते वखते मायातप करवाथी स्त्रीनामकर्म बांध्यु. साधुनने अनुक्रमे बार पमिमा आराधन करवानुं कर्तुं ने ते पण त्रण गुप्ति अने चार समितिमां - सक्त चित्तवाला ते साते मुनीश्वरोए प्राराधी. तेमज लघुवृत्ति अने सिंहनिक्रीमित नामर्नु तीव्र तप करयुं. वली तेनए बीजा पण तीव्र तप कत्यां. पठी उर्बल प्रश् गयेला अंगवाला ते साते साधुन पोताना आयुष्यना अंतने जाणी तथा न पाली शकाय तेवा चारित्रने जाणी शमनावने धारण करवा पूर्वक Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (QUE) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. 1 परिवार सहित सर्वे स्थविर साधुउने वंदना करी चारु नामना पर्वत नपर गया, त्यां नत्कृष्ट एवा चारित्रने पालवामां तत्पर एवा ते साते साधुन भूमीनुं शोधन करी संलेखनामां तत्पर पर शिलातल नपर बेग, पबी ते सर्वे मु नीश्वरो वे मास पर्यंत अनशन व्रत पाली मृत्यु पामीने जयंत नामना अनुत्तर देवलाकमां देवताप उत्पन्न थया. त्यां महाबल देवतानुं बत्रीस सागरोपमनुं पूर्ण प्रायुष्य दतुं श्रने बाकीना व देवतानुं वत्रीश सागरोपमधी कांइक आयुष्य हतुं; तेथी ते बए देवतान, पोतानुं श्रायुष्य पूर्ण श्रये महाबल देवने त्यांज मूकी जंबुद्दीपना प्रा भरत क्षेत्रने विषे राजपुत्र तरिके जूदा जूदा नत्पन्न या. अनुक्रमे तेन साम्राज्य लक्ष्मीने योग्य एवी यौवनावस्था पाम्या. तेनुमां एक कोशला नगरीनो राजा प्रतिबुद्धि नामे यो दतो, बीजो श्रंगापुरीनो महाराजा चंवाय थयो, त्रीजो काशीनो भूपाल शंख थयो हतो, चोश्रो शंखना सरखी नज्वल कीर्त्तिवालो कुणाल देशनो अधिपति रुक्मी थयो दतो. पांचमो कुशदेशनो अदीनशत्रु नामे नृपति यो हतो ने बठो पंचालदेशनो महाराजा यथार्थ नामवालो जितशत्रु थयो दतो. श्रा प्रमाणे एबए राजानु, विशाल संपत्तिथी समृद्धिवंत एवां पोताना विस्तारवंत राज्योनुं पालन करता बता पूर्वना पुण्ययी स्वर्ग समान सुख जोगवता हता. ॥ इति श्री मल्लिचरित्रे पूर्वजवस्वरूपवर्णनोनाम प्रथमः सर्गः ॥ पूर्व जवना व मित्रारुप नृपतियोना किल्लामां रहेला कामदेवरुप सिंहने जेसे एकज बागथी जीत्यो बे, ते व्याधोमां सुनटरूप श्री मल्लिनाथ जिनेश्वर जयवंता वर्तो. था जंबूड़ीपना दक्षिण भरत क्षेत्रने विषे समृद्धिश्री स्वर्गपुरी समान मि. थिला नामनी नगरी वे. त्यां त्रानुवनमां प्रसिद्ध यशवालो तथा शंकरना समान पराक्रमवालो कुंभ राजा राज्य करतो हतो. तेने उत्तम शीलवाली, दयावन अने यथार्थ नामने धारण करनारी प्रभावती नामनी स्त्री हती. दवे जयंत नामना देवलोकमां महासुखनो अनुभव करतो महाबल देवता अवधिकानथी पोतानुं श्रायुष्य पूर्ण श्रयं जाएगी चैत्र मासनी शुकल चोथनी रात्री ये योग प्राप्त यये ते ते पांचमा देवलोकी चवीने प्र मिनी नत्रमां Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (एए) नावतीना नदरने विषे प्रातस्यो. ते वखते प्रत्नावती राणीये स्पृष्ट एवां चौ.. । द स्वप्न जोयां. पी जाग्रत थइने तेणे ते स्वप्नोने अनुक्रमे स्मरण कस्यां. त्यार पठी ए राणी स्वप्नोनुं फल पूग्वा माटे हंसीनी पेटे तुरत त्यांथी छीने पोताना पतिनी पासे गइ. त्यां “हे महाराज! आप विजयवंत्ता वर्तो, विजयवंता वर्तो," एम प्रबोध पमामीने ते महाराणी नासन उपर बेठी. जा पण एवा सेवको पण तेनी आझायो त्यां वेम. पठी नूपतिये तेने पोतानी पासे आववानुं कारण पूज्युं एटले ते पट्टराणीये अनुक्रमे चौद महास्वप्न कहां. वली तेरो दाय जोमीने पोताना पतिने विनंती पूर्वक कई के; “दे ना ! आ स्वप्नोनुं सारं नरसुं जे फल होय ते मने कहो ?” राजाए ते सर्व स्वप्नानो पोताना मनमां विचार करीने कर्वा के, “ हे प्रिये ! वखाणवा योग्य श्रा स्वप्नो महाफलने आपनारां. सामान्य रीते तो एन्नु फल अमितन्नोग भने राज्यसुखादि के; परंतु हे नई ! विशेषे ए स्वप्नोनुं जे फल के ते कहुं बुं. सांनल. प्राजयी नवमास अने सामासात दिवस गये ते तुं पोताना कुलमा उत्तम प्रानररुप पुत्ररत्नने जन्म आपीश. वली बाल्यावस्याने त्यजी यौवनास्थावस्थाने प्राप्त अयेलो ते त्दारो पुत्र अनुत बलवान्, गुणवान् भने पृथ्वीने विषे चक्रवर्ती थशे." राजानां आवां वचन सनिलीने अत्यंत दर्ष पामेली चंइ समान मुखवाली राणीये का. “हे प्राणप्रिय! निश्चे श्रापर्नु कहे, सत्य सफल पान." पठी राजानी सा नोगसुख नोगवी अने तेनी आझा खाने पोताना मंदीर प्रत्ये गयेलो ते प्रत्नावतीये धर्मजागरणा करी. - पटी प्रनाते कुंजराजा, मनातसंबंधी धर्मक्रीया करीने अनेक सामंतोनी साये सन्नामां पाव्या. त्यां सेवकोनी पाले स्वप्न पाठकोने बोलावी तेमणे दायमां फल राखी तेमने स्वप्नानुं फन पूग्यु. स्वप्नपाठकोए परा हृदयमा विचार करोने पळो अनुक्रमे पूर्वराजाने कयु. “ हे महाराज! निश्चे सर्व प्रकारे आवां स्वप्नो नाग्ययोज प्राप्त श्राय . खरेखर स्वजनाप्रनावयी प्रत्नावती राणी पूर्णमासे तीर्थकर अग्रवा तो चक्रवर्ती एवा पुत्रने जन्म प्रापशे.” राजाए ते सर्व कात सत्य मानीने स्वप्न पाठकोने आनूषण क्ल, फल भने पुष्पथी सत्कार करीने तथा उदार मनथी बहु श्यं पापोने विदाय कस्या. पठी राणी प्रनावतीने त्रोजे मासे सुखकारी अने सर्व संप Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३००) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. तिना कारणरुप एवो दोहद नत्पन्न थयो के, “जाणे हुं जल अने स्थलमांनत्पन्नः ययेलां तेमज सुगंधिवालां पुष्पोथी आचादित करेली, महा मूल्यवाली तेमज जाइ, चंपक, पाटल, पुनाग, अशोक अने मल्लिका विगेरे दश वर्णनां पुष्पोना: हारोवाली शय्यामां ते ते पुष्पोनी सुगंध लेती उती नत्तम लावण्यवाली लक्ष्मीनी पेठे पोतानी सखीयोनी साये पोताना नुवनमा हर्षथी विलास करूं." प्रत्नावती राणीने आवो दोहद नुत्पन्न थयो तेज वखते व्यंतर देवतानए त-- त्काल श्री कुंजराजाना मंदिर नपर पोताना सुगंधयी क्षणमात्रमा सर्व दिशानने सुगंधमय करनारां पुष्पोनो वरसाद वरसाव्यो. वली अखंमित एवी पुष्पोनी मालानथी प्रत्नावती राणीनी शय्याने आबादित करी, जेथी ते महाराणीये पुप्पोनी सुगंधी लेता शय्यामां बेसी पोताना पवित्र दोहदने पूर्ण कस्यो. योग्यज , पुण्यवंत जीव गर्नमां श्राव्ये ते मनुष्योने. शं असाध्य होय ठे? अर्थात् कांइ होतु नयी. पी पूर्ण प्रश्ने आशा जेनी एवी ते महाराणी प्रत्नावतीये मागशर सुदी अगीयारसने दिवसे अश्विनी नकत्रमा चश्नो योग उते निर्मल दिशान, सुन्निदथी सुंदर एवं पृथ्वीतल ते. मज सुखकारी वायु अने सर्व ग्रहोर्नु नच्चस्थानके रहेवू इत्यादि नत्तम जन्मकाल प्राप्त धये उते देहनी कांतिना समूहश्री सूतिकागृहने प्रकाश करनारा भने कर्मथी आश्चर्यकारी रूपवाला श्रीजिनेश्वरने जन्म आप्यो. ते वखते गलोकमां तुरत म्होटो नद्योत थयो. नारकी जीवोने पण ते वखते कणमात्र सुख नपन्यु. आसन कंपने लीधे नपयोगथी श्री जिनराजना जन्मने जाणी उम्पन्न दिगकन्यानए वहु हर्षयी त्यां यावीने पुत्री सहित श्री प्रत्नावती दे. वी मुखकारी सुतिका कर्म करयु.शेए पण तीर्थकरनो जन्म महोत्सव करयो. पीतेन श्री जिनराजने माता प्रत्नावतीनी पासे मूकी नंदीश्वर दीपमां अ. हा महोत्सव करीने स्वर्गे गया. वली ते वखते कुवेरना आज्ञाकारी देवाए, कलराजाना मंदिर पर सुवर्ण रत्नादिकनी वहु वृष्टि करी. तेमज ते हर्षित चिनवाला देवताना पुप्प, वस्त्र, चूर्ण, पत्र, भानूपण अने विविध प्रकारना पलानो बांद पण कम्यो. कुंनगजाए परा दर्षथी पोताने पुत्रीना जन्मनी ववामगी यापनागने चायी अधिक अधिक सुवर्ग रत्नादिकनुं दान प्राप्यु, नती गरे नुनम पुत्र माना पिनाने महादर्य उत्पन करे ते तेयी पण अधि: Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३०१) क एवो दर्ष आ पुत्रीये पोताना माता पिताने नत्पन्न कस्यो. कुंनराजाए पु। त्रीना जन्म महोत्सव वखते कोटवाल विगेरे पुरुषोने आज्ञा करीने बंधीवान पुरुषोने लगेमावी मूक्या. दरवाजे दरवाजे विविध प्रकारनां मणिमय तोरणोनी रचना करावी. निर्मल अने विशाल एवा नंचे बांधेला चंडुवानथी जाणे अत्यंत मनोहर विलाशवाली स्त्री होयनी? एवी बजार शणगारी. ठेकाणे - काणे संगीत, गीत, वाद्य अने विविध प्रकारना मनोहर नाटकथी राजमार्गने पण बहु सुशोजित कस्यो,आम नत्तर उत्तर म्होटा दानवाला महोत्सवनी वृद्धि करतां उत्तम एवो नाम पामवानो दशमो दिवस आव्यो. ते दिवसे हर्षित मनवाला कुंनराजाए पोताना बंधुननी साथे प्रथम नोजन लइ पनी वस्त्रोना दानपूर्वक तेमने कडं के, “हे स्वजनो! ज्यारे आ कन्या पोतानी माताना नदरने विषे आवी हती ते वखते तेनी माताने पुष्पश्री सुशोनित एवी शय्यामां शयन करवानो शुन्न दोहद नत्पन्न भयो हतो, तेथी धन्य मनुष्योमां पण उत्तम एवी आ कन्या- 'मल्लि' एवं नाम पाउँ." पी निरंतर स्वर्गमांथीयावती इंज्ञणीयोए पोताना खोलामां धारण करीने लाम लमावेली अने सौनाग्यना पात्ररुप ते कन्या, शुक्लपक्षना चंनी कलानी पेठे वृद्धि पामवा लागी. जाणे मूर्तिमति लक्ष्मीज दोयनी ? अयवा तो अमृत समान मधुर वाणीवाली सरस्वतीज होयनी ? एवी ते महा नाग्यवाली मल्लिकुमारीने जो सर्वे लोको तेनी प्रशंसा करता हता. विश्वना सामान्य बालकनी पेठे क्रीमा करवामां तत्पर एवो ते कुमारी अनुक्रमे बाल्यावस्थाने नलंबन करी यौवनावस्या पामी. देदीप्यमान मरकतमलो, प्रियंगु अने नीलोत्पल समान अंगनी कांतिवाली ए मल्लिकुमारीये पोताने जोनारा कया मनुष्यनी दृष्टीने निर्मल नयी करी ? पचविश धनुष्य प्रणाम देहवाली अने कामदेवने जीतनारी ए कुमारीये विश्वने जीतनारी रूपसंपत्तिने धारण करी. त्रण झानयी सर्व शास्त्रार्यने जागनारी अनेकुशास्त्रने तिरस्कार करनारी ए मल्लिकुमारीये सरस्वतीनी पेठे सर्व कलाननो अभ्यास कस्यो. वली तेणे अवधिकानश्री पोताना पूर्व नवना उ भित्रोने ते ते देशने विषे इंनी पेठे राज्यपद नोगवता जोया एटले ते कुमारीये तेनने प्रतिबोध प्रापवाने माटे का उपायनो विचार करीने पनी सुताराने प्राप्रमाणे आज्ञा कर के, "हे सुत्रधारो ! तमे Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०५ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. या म्हारा निवासगृहना अशोकवननी मध्ये पुतली योथी सुशोजित एवा मणिम न्यस्तंजोयी देदीप्यमान, नाना प्रकारना रत्नोथी जमित्र नूपी वालु अने जाये गाठ चंद्रोदयश्री मनोहर एवं वैमानज होयनी ? एवो अद्भुत एक रुप करो. तेना मध्ये व दिशानुमां विविध प्रकारनी रचनाथी चित्तने श्राश्वर्य क रनारा अने मनोहर मध्यभागवाला व घरो बनावो अने ते व घरोना मध्य जा गमां मणिमय जालीयोथी सुंदर एक देदीप्यमान मंदिर तैयार करो. वली ते मंदिरनी अंदर मध्य जागमां किरलोना समूहरूप एक छोटी अने निर्मल एवं मणिपीठिका करो. " श्री मल्लिकुमारीये श्राज्ञा करेला प्रतिगरिष्ट शिल्प शास्त्रीयोए ते सर्व थोमा दिवसनी अंदर तैयार करयुं. पबी मल्लिकुमारी रे पोताना समान प्राकृतीवाली, मस्तक नपर सुवर्णनां पद्मश्री ढांकी दीधेल विश्वाली ने सत्पुरुषाने पण भ्रम करनारी पोतानी सुवर्णनी पोली मूर्ति करावीने ते मंरुपमध्येनी मणिपीठिका नपर मूकी वली दमेशां पोतान श्राहारमांथी गलता रसवालो कोलीयो ते सुवर्णनी मूर्त्तिना मस्तकना बिम नाखवा लागी. अनुक्रमे ए गलता रसवाला एकटा थयेला प्रहारनो महा :सह एवो नासी काने भेदी नाखनारो गंध जाये मरी गयेला कुतरा, सर्व अने वलदना चुंग्रायेला शरीरयीज नीकलतो होयनी ? एम पुतलीना मस्तक नपर रहेला सुवर्णपद्मना ढांकणाने नधामी नाखवाथी निकलवा लाग्यो यौवनावस्था प्राप्त यया वतां परा निरंतर संसारना जोगनी इच्छा रहित एवी तया चारित्रमां केवी रीते वर्तं तेनो प्रथमश्री अभ्यास करती वली पोताना दर्शनी माता, पिता, जाइ विगेरे सर्व स्वजन मनुष्योने अधिक अधिक प्रमन्न करती ए मल्लिकुमारी प्रतिदिन श्रसंख्य एवां सुखने जोगवती हती. हवे सर्व संपत्तिना निवास स्थानरूप कोशल नामना देशने विषे पुसमान सांकेतपुर नामे नगर ठे. त्यां इक्ष्वाकुवंशना आनूपलरूप, वैरीयो ना समूहने दावानल समान प्रतिबुद्धि नामे राजा लक्ष्मीश्री उत्कृष्ट एवां राज्यनुं पालन करतो इतो. तेने रूपसंपतिये करीने लक्ष्मीना सरखी पद्मावनीनामनी सती स्त्री डती. ते नगरमां एक म्होतुं श्रतिशयवालुं नागमंदिर द नं. एक दिवस पद्मावती देवीये मढा दर्प प्रगट करनारा श्री नागदेवनी पूजाजता एवा लोकांना समूहने जो दर्पश्री विनयपूर्वक प्र Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३७३) तिबुहिनूपतिने कां. "हे प्रजानाथ ! आजे श्री नागदेवनी पूजानो म्होटो नत्सव ; तेथी जो आप रजा आपो तो हुं त्यां जालं. आपे पण म्हारा नपर प्रसन्न श्रश्ने त्यां आवq.” राजाए ते वात कबुल करी एटले हर्षयुक्त चित्तवाली पद्मावती राणीये मधुर वचनधी आज्ञाकारी सेवकोने का के, "हे सेवकजनो! तमे आजे नागमंदिर प्रत्ये जश विविध प्रकारना अति सुगंधवाला पुष्पोथी एक म्होटो पुष्पनो विशाल मंझप तैयार करो अने तेना मध्ये फुलती विचित्र पुष्पोनी मालाउथी गुंथेलुं जाणे नत्कृष्ट एवी शोना, निधान होयनी? एवं सुगंधीनी संपत्तिवालुं " श्री दाम" नामनुं मंदिर बनावो. वली वाजींत्र, गीत, धूप, वासकेप विगेरे विविध प्रकारनो पूजानो सामान प्रयत्नश्री तैयार करीने म्हारी वाट जोता नन्ना रहो." या प्रमाणे महाराणीये आझा करेला सेवको ते सर्व तैयार करी पद्मावती राणीनी राद जोता नन्ना रहा. . पद्मावती राणी पण स्नान करी, सर्व प्रकारनां अलंकारोने धारण करी अने पोताना समान सखीयोनी साथे श्रेष्ठ एवा रथमां बेसीने बहु वाजीत्रोना तथा धवलगीतना मधुर शब्दश्री व्याप्त अने देशांतरोधी आवेला अनेक. लोकोथी नरपूर एवा ते महोत्सववाला नागमंदिर प्रत्ये आवी. त्यां ते महाराणी पुष्प विगेरेथी नागदेव- पूजन करी दिव्य महोत्सवने वृद्धि पमामती नूपालना प्राववानी वाट जोती बेठी. महाराजा प्रतिबुद्धि पण राणीना स्नेहने लीधे नत्तम शृंगारने धारण करी, पट्ट हस्ति नपर बेसीने असंख्य सेना सहित त्यां आव्यो. त्यां ते गंध, पुष्प, नैवेद्य विगेरे सामग्रीथी नागदेवतुं वि. धिपूर्वक पूजन करीने श्रेष्ठ एवां पुष्पोना मंझपमां रदेला सिंहासन नपरबेगे. क्षणमात्र मंझपनी शोनाने जोश्ने पी ए राजानी दृष्टिरुप मयुरीये जाणे बाकी जवाने लीधेज होयनी ? एम मंझपनी अंदर रहेला फुलती पुप्पोनी मालाना मंदिरने विषे (श्री दामने विषे) निवास कस्यो. पठी आश्चर्य पामेला नूपाले, पोतानी आगल बेठेला, वृक्ष, बुदिना निधान अने सुबु नामना पोताना मंत्रीने पूज्यु. “ हे मंत्री ! तमे म्हारी श्राशायी निरंतर घणा राजन्नुवनो प्रत्ये गया गे. त्यां तमे कोई स्थानके आवं श्रीदाम जोयु हो, य तो, कहो.” मंत्रीये काश्क हास्य करीने कह्यु.." महाराज ! स्थिर चित्त . करीने सांजलो." Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०ष्ठ) ऋषिममलवृत्ति-पूर्वार्ड एक दिवल हुँापनी याज्ञायी मिथिला नगरी प्रत्ये गयो हतो,त्यां ते दिवमे कुंजराजानी महेलपताशा समान, धन्य अने पुण्यवंत एवी मल्लिकुमारीनो प्रति जन्म दिवस हतो. ए मनोहर उत्सवमां नूपतिये मंदार पुप्पोनी ; मालाथी एक म्होटो पुष्पमंझप तैयार कराव्यो हतो, तेनी अंदर दिव्यसुगंधी वाटुं एक श्रीदाम वांव्यु ब्रतुं. महाराज ! ए श्रीदामनी में जे झोन्ना जोश ह. ती नेनी पागल बा झोला नि कांइ नयी.” मंत्रीनां आवां वचन सांजली प्रतिवुहितुपतिने श्रीदामने वि जे आश्चर्य अयु इतुं ने नतरी गयु; परंतु ए नूपालन चित्त, कानने सुखकारी एवां श्री मल्लिकुमारीनां नामने सांजलतां मात्रमांज तेने विरे पालत अयु; तेत्री तेणे पूर्वना मोहने लीधेज मंत्रीने फ श्री आदरपूर्वक पूज्यु के, “दे मंत्री! ए मल्लिकुमारीनु के रूप ठे ते मने कहो ? " प्रधाने कj. " हे नूपाल ! जेनां स्वरुपर्नु वर्णन करवाने सर्व वि. श्वने जागनाग पुरुषो पण समर्थ यता नयी, तो पठी हुँ ते राजकुमारीनां स्वल्पने शीरीते वर्णवी शकुं ? महाराज! ववारे कहेवाथी झुं ? परंतु त्रण जगन्नी अंदर बीजा कोग्ने एनी नुपमा आपी शकाय तेम नश्री. फक्त मोक्ष सुखनी पेठे ए निरूपमज ." प्रधाननां आवां वचनश्री तो नूपतिनुं चित्त, मल्लिकुमारीने वि बहुजयालक्त थयु. एटझुंज नदि, पण तुरत ते नूपति मविकुमारीना पाणीग्रहण करवाने बहुज नत्लाइवंत अयो. पठी प्रतिबुद्धि राजाए पोना- स्टकार्य साववाने माटे एक जाण दूतने कुंजराजाने अर्थे योग्य लेटारीने मल्लिकुमारीको विवाह पोनानी साथे कराववानी नलामण करी मिथिला नगरी प्रत्ये कुंनगजा पासे मोकटयो. दूत पण पोताना राजानी थाझा अंगीकार कर। पोताने घेर गयो. पठी ते रत्रमा वेसी केटलाक माणमोनी माये शीघ्र मिथिला नगरी प्रत्ये जवा निकल्यो,' हवे अंगदेशमां जाणे पूर्ण लटमीना निवास स्थानरूप कीरसागरज हो. यनी? एवं श्रने बहु शत्रुनधी पण निष्कंप रहेली चंपा नगरी नामे प्रख्यात पुरी के. न्यां चंञ्चाय नामना गजा, पोनाना कुलक्रमग्री प्राप्त अयला नत्कृष्ट नांग नमडिवाला नानाम्य पदने नोगवतो इतो. ते नगरीमां श्रीझपन्न प्र. तुना ना बने जेननो वेपार नमुः रस्ते अनेक देशोमां चालतो इतो. का अईवक विगरे अनेक अवको बमना हता, मर्व श्रावकोमांप्रहनक प्रा. Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३५) वक जिनधर्मने विषे वधारे प्रीतिवालो हतो. ए श्रावक दृढ समकितवालो होवाश्री सुर अने असुरोथी पण दोन पामतो नहि. एक दिवस अर्हनक विगेरे केटलाक श्रावकोए समुह रस्ते पर बीजा देशमा वेपार करवा जवानो विचार करीने विविध प्रकारनी बहु वस्तुनना वहाणो नरी प्रयाण करयु. अनुक्रमे केटलाक दिवस सुधी समुनी मध्ये जता एवा तेनने एक दिवस नाना प्रकारना क्लेशने नत्पन्न करनारा वायु विगेरे बहु पुष्ट चिन्हो देखावा लाग्या. ते वखते सर्व लोकोनां हृदयने विषे खरुप अंधकारने बहु वृद्धि पमामतुं अने सूर्यना किरणोने ढांकी देतुं घोर अंधकार प्रगट थयु. चारे तरफ विजलीना :बकाराअने अतिनयानक मेघना कमाका थवा लाग्या. वली वहागना सर्व मा सोने बहु दुःखकारी एवी घाढ काजलना समूह समान अंधकारनी जाल । सर्व दिशामा फेलाइ गइ. आ वखते राता नेत्रवाला, चूलाना समान आकृति। वाली नासिकावाला, लांबा हाथवाला, वांकी मोकवाला, जामा नंचा करेला बे हायश्री विकराल मूर्त्तिवाला, अंधारा कुवाना समान नान्निवाला, बहु न्हाना पेटवाला, इष्ट खन्नावाला, शुष्क वृक्ष समान गतिवाला, जामनी शाखानी पेठे नंचा करेला हाथवाला अने जाणे सादात् यमराजनो सगोनाइ होयनी? एवा स्वरूपवाला कोश पोतानी पासे आवता एवा वैतालने जो वहाना सर्वे माणसो आकुलव्याकुल अवा लाग्या. एक अर्हन्नक श्रावक विना बीजा सर्वे वणिको दुःखथी अति विह्वल प्रया उता पोतपोताना गोत्रदेवतुं स्मरण करीने तुरत आपत्तिनी निवृत्तिने माटे पोतपोताना इष्टदेवतानी यात्रा, पूजा, नैवेद्य विगेरेनी मानता करवा लाग्या.केटलाक नवीन परणेली स्त्रीना अनुरागथी मोह पामता बतातेनुं ध्यान करवा लाग्या.केटलाक पुत्रना,केटलाक बंधुजनोना, केटलाक व्यना अने केटलाक पोताना वृक्ष माता पितानो निर्वाह चलाववाना ध्यानमां तत्पर अया. वली केटलाक तो मृत्युश्री जय पामीने पोताना नवा बनावेला घरोनोज विचार करवा लाग्या. आम निरंतर महारौ ध्यानने वश ययेला ते सर्वे वणिको "हवे शुं करवू?" तेनो का विचार न सुझवाथी मूढनी पेठे पोतपोताने स्थाने बेसी रह्या. फक्त अरिहंतना धर्मने जागनारा श्रावक शिरोमणि अर्हन्नके, लोकमां आवा कालना समान विन्न करनारा वैलालने । जाएयो; तेश्री ते." श्रावी पुःखी अवस्थामा श्री अरिहंत प्रनुनो धर्म एकज. Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०६ ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वाई. आधाररूप वे." एवो पोताना चित्तमां निश्चय करीने वहाना एकांत प्रदेशमां गयो, त्यां ते विधिश्री ढींचणवमे बना रहीने मस्तक नपर हाथ जोमी श्री अरिहंत प्रजुने स्तुतिपूर्वक नमस्कार कस्यो. पबी ते अर्हन्त्रक श्रावके श्राराधना करीने विधिथी सागारीक अनशन कर के, " जो था उपसर्गथी नियमे करीने म्हारुं मरण थाय तो में वाह्य श्रने अंतरंगरुप सर्वे संग त्यजी दीधा तथा म्हारो कायोत्सर्ग विशेष जावथी या जन्मपर्यंत यान में धन कुटुं वादिकने विषे सर्व प्रासक्ति त्यजी दीधी बे, वली म्हारे श्र जन्मने विषे सर्वे जीवने विषे मैत्रीभाव हो. 33 पची कालना समान कोपथी जयंकर प्राकृतिवाला वैताले अर्हन्नक श्रा चक पासे प्रवीने भृकुटी चावीनें कां. “ अरे दुष्ट श्रात्मावाला कुमति ! तुं श्रा वृथा पाखं शामाटे करे वे ? जैनधर्म त्यजी दे अने प्रयत्नश्री मिथ्यावने अंगीकार कर. अरे ! जो तुं म्हारुं कर्तुं नहि करे तो आ त्हारा वहाणने म्हारी यांगलीना तीव्र प्रहारथी समुइमां फेंकी पापमनी पेठे चूर्ण करी नाखीश. हे जम ! तुं खरेखर पोताना जीवितथी अने थावा वैजवथी भ्रष्ट थवाने लीधे प्रति दुःखी थइ अकाले आा समुझमांज मृत्यु पामीश, माटे जम वालपोताना हितने माटे म्हारुं कहेवुं कबुल कर के, जेथी तने आ समुदमां पण जरा जय न थाय. " अईनक श्रावके मौन धारण करयुं हतुं; तेथी ते पोतानां मनश्रीज तेने कहेवा लाग्यो के, “हे देव! तुं मने श्रहिं जय देखामे वे; परंतु तेथी हुं गरी जवानो नथी. म्हारुं धनधान्यादि सर्व ज ले नाड़ा पामो, पण हुं जैनधर्म त्यजनार नथी. " अनक श्रावके या प्रमाणे कह्ये ते अत्यंत कोपायमान श्रयेला ते वैताले पोतानी वे आंगलीना प्रहारथी ते वडाराने करामात्रमां जलने विषे फेंकी दीधुं. जो के वैतालना प्रहारथी ए वहाण बहु कंपवा लाग्युं. तोपण अन्नक शेवनुं मन जैनधर्मश्री मेरुपर्वतनी पेठे जरा पण चलायमान श्रयुं नहि. वली कल्लोलना श्रनागथी वहाणने - चालता थने नीचे पाकता ते वैताले थईनक शेठने वीकएण पुरुषोना प्राणने नाटा करनारी बहु जीति देखामी. या प्रमाणे बहु जय देखामाथी पण में पर्वतनी पेठे ते नक शेठना धर्म ध्यानने निश्चल जोइ देवताए वैतालनुं यंकर रूप त्यी पोतानुं स्वाभाविक स्वरूप धारण करचं. पठी असि Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (309) 1 मान देदीप्यमान श्रानूषलोने धारण करनारो, कल्पवृक्षना पुष्पोथी गुंथेला 1 चोटलावालो, नत्तम वेशने धारण करनारो, डुजिना दिव्य शब्दथी दिशानने बेदेरी करी नाखतो, चंचल कुंमलथी सुशोजित श्राकृतिवालो, विश्वने श्राश्वकारी रुपलक्ष्मीवाल अने सर्व लोकने विस्मय पमागनारो ते देव जयजय शब्दपूर्वक चारे तरफ पुष्पवृष्टि करतो बतो प्रगट थयो, क्षणमात्रमां सर्व 5निमित्त शांत प ग ने "हवे वहाणोने जरा पण जय नथी." एम धारीने सर्वे माणसो पण स्वस्थ था. पवी देवताए गंभीर एवी मधुर वाणीथी कह्युं " हे श्रारुप अमृतना समुइ अर्हन्नक श्रावक ! तुं जयवंतो वर्ते बे. त्हारो प्रवतरकारी बे ने दारुं श्रा मनुष्यनवमां जीवित पण वखारावा योग्य बे. कारण के, मेरुपर्वतनी चूलिकानी पेठे जिनधर्मने विषे त्हारी दृढ श्रावे. हे • श्रर्हन्नक! सांजल. सौधर्म देवलोकना इंड् सुविक्रमे हर्षथी पोतानी सनामां व्हारी प्रशंसा करी इती ने एम कर्तुं हतुं के, " हे देवतान ! सांजलो. जंबुद्दीपना भरत क्षेत्रने विषे चंपानगरीमां अर्हन्त्रक नामनो श्रावक श्री अरिहंत धर्मरूप संपत्तिनुं स्थान बे. जेम वायुश्री मेरुपर्वत कंपायमान थतो नथी तेम कोइ पण सुर, असुर, रक्ष के यह पोतानी दिव्य शक्तिवमे ए श्रावकने जैनधर्मथी कोन पमावा समर्थ नथी. " ( देवता अर्हनक श्रावकने कहे बे के.) हे श्रावक ! नांवां वचन सर्वे सभासदोए प्रमाण मान्यां; परंतु में ते न स्वीकारता विचार जे, जो या परम ऐश्वर्यने धारण करनारो इंड् जे जे असत्य, 'बोले बे ते ते मीठं मीटुं बोलनारा तेना सेवको देवता प्रमाण करे बे. अहो ! देवतानी प्रागल होटा शक्तिवालानी पण गणत्री यती नयी तो पढी फक्त दृढताना वर्णनने विषे या मनुष्यमात्रनी प्रशंसा शा दिशाबमां ठे. बहु दृढ़ एवा मनुष्यनी पण धर्मने विषे स्थिरना त्यांज सुधी रहे बेके, ज्यां सुधी, कोर देवता तेने चलावनार मब्यो न होय ? माटे चाल, हुं त्यां जश्ने ते जैन धर्मीनी परीक्षा करूं." आम धारीने में प्रहिं प्रावीने बहु माया प्रगट करी. परंतु दे महाभाग ! इंदे पोतानी सज़ामां जेवी व्दारी धर्मस्थिरता वखाली, तेथील अधिक में त्हारी धर्मने विषे स्थिरता जोइ बे. हे महाजागे ! मैं जे जे व्दारा अपराधो करया होय ते ते क्षमा कर. एम कहने देंबताए अर्दनक श्रावकने वे जोम कुंकलो आप्यां पबी ते विजलीनी पेठे अंत 95 Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ऋषिममलत्ति-पूर्वाई. ान थ३ गयो एटले अर्हनके पोतार्नु पञ्चखाण पुरूं करयु. वहाणमां बेठेला सर्वे माणसो पण अर्हनक श्रावकना आवा अद्भुत महिमाने जोइ जैनधर्मने विघे दृढ आदरवाला श्रया. ठीकज ने प्रत्यक्ष देखेला गुणने कयो पुरुष न माने! अर्थात् सबै माने. पी अनुकुल पवनना योगथी सर्वे वहाणो कुशलपणे गन्नीरपोतपुर प्रत्ये आवी पहोच्या. त्यां अईनक विगेरे सर्वे वेपारीयो पोतानां करीयाण वहाराश्री गामामां नरी श्रोमा दिवसमा मिथिला नगरी प्रत्ये श्राव्या. त्यां वहारना नखानने विषे सर्व वस्तुना गामाने राखी राजाने योग्य एवी कुंभल विगेरे नत्तम वस्तुननी नेट लइ अर्हन्नक विगैरे सर्व श्रावको कुंजराजा पासे गया. त्यां राजानी आगल नेटनी वस्तुन मूकीने सर्वे शेगेए प्रणाम कस्या कुंदराजाए पण बहुमान आपवा पूर्वक स्नेह दृष्टिश्री तेमना सामुं जोश कु. शल समाचार अने लानादिकनी वात पूर्वी संतोष पमामया. पठी कुंजरा जाए साम्राज्यपदश्री पण अधिक स्नेहवाली अने महा सौन्लाग्यवाली मल्लि कुमारीने कन्याना अंतःपुरथी पोतानी पासे सन्नामां वोलावी. स्वनावधीज मनोहर कांतिवाली अने दिव्य अलंकारोने धारण करनारी मल्लिकुमारी पण पोतानी अनेक सखीयोनी साथे सन्नामां आवी. पनी कुंन्नराजाए पोताना हायश्री नम्र एवी मल्लिकुमारीने कुंमलो पहेराव्यां. ते वखते ए राजकुमारीना कानने विषे पहेरावेलां ते बंने कुंमलो पोतानी दिव्य कांतिथी जाण जंवधीपनी अंदर रहेला वे सूर्यज होयनी ? एवा शोन्नवां लाग्यां. अर्हनव विगरे श्रावको पण मल्लिकुमारीनां स्वरुपने जो पोतानी सुसाफरी सफल मा नवा लाग्या. पठी नूपतिये रजा आपेली मल्लिकुमारी पोताना अंतःपुर प्रत्य गइ.कुंजराजाए बेपारीयोना संतोषने माटे ते वखते पोताना देशमां तेमनुं दा ल माफ करयुं. पठी सर्वे वेपारीयोए पोतानुं करीया' बहु लाजयी वेची द६ तुरत परदेशानुं योग्य करीागुं खरीद करयु. जूदी जूदी जातनी वस्तुन्थ अने वासपोथी गामान नरी तेयो समझने कांठे आव्या. त्यां इष्टलानया हर्ष पामेला तेन सर्व माल वहाणमां नरीने अनुकुल पवनश्री पोतानी नगरी तरफ जवाने विदाय श्रया. अनुक्रमे ते वणिक पुत्रो शोमा वखतमां चंपानगर। प्रन्ये याव्या. त्यां तेमणे दर्यत्री पोतानी सर्व वस्तुन वदाणमांधी नतारी नाः Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३०) खी. पठी अर्हन्नक विगेरे मुख्य श्रावको कुंमलादि योग्य नेट लश्ने राजानी सन्नामां गया. त्यां तेमणे चंञ्चाय नूपतिने प्रणाम करी सर्व मनोहर वस्तुन ' अर्पण करी. पठी संतोष पामेला चंञ्चाय नूपाले कुशल समाचार पूरीने क ह्यु के, " हे शेगे! तमे कोइ स्थानके कांश अपूर्व आश्चर्य जोयुं होय तो ते मने कहो ? ” राजाना आवा प्रश्नधी तेनए कां. " स्वामिन् ! आपनी आज्ञाथी अमे दीर्घकाल पर्यंत वहाणो वो समुनु नलंघन करता अनुक्रमे -मिथिला नगरीये पहोच्या. त्यां कुंजराजाने मलवा माटे सन्नामां गयेला अमोए तेमनी रत्नरुप मल्लिकुमारी पुत्रीने दीठो. महाराज! तेना समान त्रण जगत्ने विषे बीजा कोनुं स्वरुप नथी एज असे म्होटुं अपूर्व कौतुक दी ." एगी पूर्वनवना संबंधथी नत्पन्न श्रयेला प्रेमथी नबलता स्नेहवाला चंछाय राजाए मल्लिकुमारीनु स्वरुप पूज्युं, ते नपरथी तेमणे मल्लिकुमारीनुं यथार्थ स्वरुप वर्णव्यु. पनी हर्ष पामेला विवेकी राजाए गौरवतायी तेमनुं दाए माफ करी सर्वे शेगेने रजा आपीने ए चंञ्चाय राजाए पण पोतानुं पाणी ग्रहण मल्लिकुमारीनी साथे करवानी बाथी एक चतुर दूतने नेट पीने मिथिला नगरी प्रत्ये कुंलराजा पासे मोकल्यो.२ दवे निरंतर महालक्ष्मीना निरवद्य स्थानरुप वाणारसी नगरीने विषे शंखना सरखी नज्वल कीर्तिवालो श्री शंखराजा राज्य करतो हतो. हवे ए कदा मिथिला नगरीमां श्री मल्लिकुमारीनां पेला अन्नक श्रावके आपेलां बे दिव्य कुंमलो नागी गयां; तेथी कुलराजाए चतुर सोनीयोने बोलावी ते बन्ने कुंमलो तेमने सांधवा माटे आप्यां. सोनीयोए बहु नपायथी ते बन्ने कुंमलोने सांधवा मामया; परंतु ते देवताए आपेला (दिव्य) होवाथी संधाणां नहि. मेवट तेन शाक्या; तेथी ते सर्वे सोनीयो कुंजराजा पाते जश्ने विनंती करवा लाग्या के, “हे नरेश्वर ! अमे बहु यत्न कस्यो, पण आ कुंमलो संधातां नश्री. जो आपनी आशा होय तो एमे तेनाज सरखां बीजां नवां कुंमलो बनावी आपीये." सोनी लोकनां आवां वचन सांजली अग्निनी पेठे अत्यंत क्रोधातुर थयेला कुंजराजाए का. “अरे जमो ! पोताना कार्यमां पण अकुशल एवा तमे सोनी शेना ? के, जे एक सांधो करवाने पण समर्थ प्रया नहि. अरे सूर्यो ! माटे तमे म्हारो देश त्यजी वीजा दूर देशमां जान." शंखराजानी आवी Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१० ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. श्राज्ञाथी सर्वे सोनीयो पोतपोताना घरना सार सार उपकरणथी गामान न री जयने लीघे तुरत मिथिला नगरीनी बहार निकली गया. अनुक्रमे तेन मिथिलापतिना देशने उल्लंघन करी केमकुशलथी वाणारसी नगरीना नृपव: नने विषे यावी पहोच्या. पबी सर्वे सोनीयो पोतपोताना कुटुंब सहित गामाजुने ते उद्यानमांज राखी भूपालने योग्य एवी नेटो साथे लइ दर्वपूर्वक शं खराजानी सज्जामां गया. त्यां तेनुए सर्व जेट शंखनूप तिनी आगल मूकीने तेने प्रणाम करा. शंखराजाए पण प्रसन्न दृष्टिथी तेनुना सामुं जोइ तेमने पो तानी नगरी प्रत्येवानुं, निवास स्थाननुं घने या जीविका विगेरेनुं कारए पू. पढी हर्षित मनवाला सोनीयोए, पोतानुं काशी नगरीमां श्राववुं ययुं त्यां सुधीनी सर्व वात निवेदन करी. ए उपरथी शंखनूपाल मल्लिकुमारी ने विषे बहुत थयो. पठी नदार मनवाला ए राजाए हर्षथी सर्वे सोनी योने रहेवा माटे पोतानी नगरीमां मनोहर घरो करावी याप्यां. त्यारबाद मल्लिकुमानी साधे लग्न करवाने उत्साहवंत थयेला ते अचल धैर्यवाला शंखनूपाले कोई एक चतुर दूतने मिथिला नगरी प्रत्ये कुंजराजा पासे मल्लिकुमारीनुं मागुं करवा मोकल्यो. ३ जाणे पोताना देदीप्यमान स्थानोनी कांतिना मी थी अमरावतीनी लक्ष्मीने पण इसती होयनी ? एवी नत्तम गुणवाली कुणाल नामे नगरी बे. त्यां सुवर्ण समान देदीप्यमान कांतिवालो रुक्मी नामे राजा राज्य करतो इतो. तेने शीलरुप सौभाग्यने धारण करनारी धारिणो नामे स्त्री इती. तेनने पोताना माता पिताना चित्तरूप सरोवरने विषे राजहंसी समान, नज्वल गु वाली ने उत्तम रूपवाली सुबहुला नामे पुत्री हती. एक दिवस ते कन्यानो चार्तुमासिक नामे स्नानोत्सव (न्हावण करवाना नुत्सवनो दिवस) श्राव्यो. ते दिवसे राजानी प्रज्ञाश्री मालीये राजमार्गमां पंचवर्णनां मनोहर सुगंधीवालां पुष्पोथी स्वर्गना उद्यान समान एक म्होटो मंरुप बनाव्यो. तेनां मध्य जागने विषे सोनी लोकोए भूपतिना हुकमश्री पंचरंगी चोखाव नगरी. थालेखीने तेनी मध्यमां सुवर्णनो एक अद्भुत वाजो मूक्यो. त्यार पठी अलंका रोधी सुशोभित अंगवाली रुक्मीराजा, पद्दहस्ति नपर वेसीने ते मंरुपमां आव्यो अने तेणे ते बखते पोतानी सुबहुला कन्याने त्यां बोलाववा माटे Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३११) . सेवकोने आज्ञा करी. लोकोने जोवा योग्य शोनावाली सुवहुला पण सुखासनमां बेसी अनेक सखीयोनी साथे त्यां प्रावी. पी ते राजकुमारीने मंझपनी अंदर रहेला सुवर्णना बाजोट पर बेसारीने रुक्मी राजाना अंतःपुरनी स्त्रीयोए मांगलिक घमाना मंत्रित जलवमे अनिषेक कस्यो. ते वखते कुलस्त्री. यो मांगलिक धवलगीत गावा लागी वाजींत्रो वागवा लाग्यां. वृक्ष पुरुषो आशिष आपवा लाग्या अने ब्राह्मणो हर्षश्री वेदोच्चार करवा लाग्या. वली ते व. खते बीजा आश्चर्यकारी बहु नत्सवो श्रवा लाग्या. परी दिव्य वस्त्र तथा दिव्य आनूषणोने धारण करी दूषणरहित अने पोताना चरणमां प्रणाम करती एवी ते राजकुमारीने रुक्मी राजाए पोताना खोलामा बेसारी. आ वखते सुबहुला कन्याना औदार्यश्री सुशोनित एवा तथा नत्तम पुरुषोने वखाणवा योग्य रम्यपणावाला निरुपम रुपे करीने वली मंझपनी अति मनोहर एवी विचित्र रचनावमे करीने चारे तरफथी नत्सवसहित पावेला मनुष्योनां जोवाथी तथा अत्यंत आनंद पामेला बंधुन्नी बहु शोनाए करीने अने वागतां एवा महा वाजीत्रोना शब्दे करीने आकाशमां बहु गर्जना श्रवा लागी हती. . पठी हर्षश्री नत्साहवंत हृदयवाला अने अत्यंत प्रसन्न थयेला रुक्मिराजाए पोतानी आगल बेठेला मुख्य कंचुकीने कंश्क हास्ययुक्त मुख करीने पुग्यु के, " तुं निरंतर दूतसंबंधी कार्यने माटे अनेक राज्योने विषे गयो तो ते को स्थानके आवो मजनोत्सव दीगे होय तो कहे ?" राजाना आवा' आदेशश्री कंचुकीये पोताना मस्तकने विषे हाथ जोमीने कहूं. “हे नाथ !; एक दिवस हुं आपनी आज्ञाथी मिथिला नगरीप्रत्ये गयो हतो. त्यां में कुंन. राजाना घरने विषे तेमनी पुत्री श्रीमल्लिकुमारीनो आथी सोगुणो मऊनात्सव जोयो हतो.” कंचुकीनां मुखथी श्रीमल्लिकुमारीनुं नाम सांजलतांज रु-: क्मीराजा तेने विषे श्रासक्त थयो, तेथी तेणे कंचुकीने श्रीमल्लिकुमारीना गुणोनुं वर्णन करवानें कह्यु. कंचुकीये तेम करवाथी तो ते रुक्मीराजा मलिकुमारीने विषे बहु आसक्त अयो. पनी श्रीमल्लिकुमारीनो पाणीग्रहण क-. स्वाने माटे बहु रागवंत श्रश्ने तेणे पण एक वाचाल दूतने मिथिला नगरी, प्रत्ये कुंन्नराजा पाले मल्लिकुमारीनुं मागुं करवा माटे मोकल्यो.४ . . हवे कुरुदेशने विषे लक्ष्मीने कीमा करवाना कमलरुप, वेपारीजनोथी: Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१२ ) ऋषिमंगलवत्ति-पूर्वा ६. पूर्ण नेऊरता मदवाला हाथीनी पेठे दान प्रापवामां प्रवीण एवं गजपुर नामे नगर बे. ते नगरमां शत्रुने अति दीन बनावनारो श्रदीनशत्रु नामनो राजा बलिराजाने बंधन करवामां प्रविण एवा कृष्णनी पेठे उत्कृष्ट संपत्तिवालुं राज्य करतो इतो. आ वखते श्रेष्ठ एवी मिथिला नगरीने विषे श्री कुंभराजानो पुत्र जे म लिकुमारीनो न्हानो जाइ यतो हतो ते मल दिन्नवरकुमार नत्कृष्टपणे वर्ततो हतो. एक दिवस ते राजकुमारे चित्रशाला बनाववा माटे अद्भुत चिताराने पोताना सेवको मोकलीने बोलाव्या. पबी तुरत आवेला ए चितारानने मल्ल दिन्नवर कुमारे चित्रशालाना जूदा जूदा जागो चितरवा माटे सोंप्या. सर्वे चितारान, पोतपोताने सौपेला चित्रशालाना जागोने सुवर्णनी सूक्ष्म रेखावाला मनोहर स्वरूपथी चितरवा लाग्या. तेनुमां को एक चितारानो युवान पुत्र देवताश्री प्राप्त थयेला वरदानने लीधे चित्रकलामां एवो प्रवीण हतो के, ते कोइ पण स्त्री विगेरेना थोमा अंगने जोइने सर्व मूर्त्ति चितरी शकतो हतो. एक दिवस ते चिताराना पुत्रे, पमदानी अंदर रहेली श्री मल्लिकुमारीनो मासिक्य रत्नना सरखो सुशोभित एवो पगनो अंगुठो दीगे. पठी तेणे पगना अंगुठाने जोवा नपरथी तुरत श्री मल्लिकुमारीनुं अद्भुत रूप यथार्थपणे उत्तम रंगोश्री चित्तर. पी चितारानुए सर्व चित्रशालाने चितरीने हर्षथी मल्लदिन्नवर कुमारने जाहेर करयुं. राजकुमारे पण ते जोवाथी प्रसन्न यइने तेनने वहु यापी संतोष पमाया. एक दिवस मल्लदिनवर कुमार प्रातः कृत्य करी वस्त्राभूषणने धारण करवा पूर्वक पोतानी धावमाता ने प्राणप्रियानी साधे चित्रशालामां श्राव्यो. त्यां तेले वाव्य, कूवा, सरोवर, समुझ, पर्वत, नगर, हाथी, घोमा, वन, म्होटी सेना, रथ, पद्म, ने स्त्री पुरुषानां जोडलां, इत्यादि नेत्रने आश्चर्य करनारां श्रनेक चित्रो जोतां जोतां दूरथी श्री मल्लिकुमारीना चित्ररूपने जोयुं. ते ते रंगना यो श्री खरखर मल्लिकुमारीना समान ते चित्रने जोइने मल्लदिनवर कुमारने ते वखते " या मल्लिकुमारी पोते भी वे " एम चांति थइ. राजकुमार ल डाने सीधे तुरत पाठो वल्यो एटले प्रेमपूर्वक धावमाताये मधुर वचनथी क. " हे वत्स! जेम कायर सारास जयने लीधे रणनमिने जो दूरथी नासी Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. ( ३१३ ) जायते तुं पण या चित्रशालाने परिपूर्ण जोया विना केम पाटो वली जाय वे ?” राजकुमारे कां. " हे मात ! देव अने गुरुनी पेठे पूजवा योग्य श्री मल्लिकुमारी नामनी म्हारी म्होटी व्हेन पोते प्रागल उनी बे, तो हुं निर्व्व थइ तेमनी आागल या म्हारी प्राणप्रिया सहित शी रीते जर शकुं ?" म राजकुमारे कं एटले धावमाताये हसीने तेने क. " हे निर्मल बुदिवाला पुत्र ! ए श्री मल्लिकुमारी पोते नथी; परंतु चित्रकारोए चितरेलुं तेनुं पूर्व रूप बे. " धावमातानां प्रावां वचन सांजली कोपथी आकुल व्याकुल श्रयेला राजकुमारे करूं. “जे जमपुरुषे प्रा ठेकाणे देव तथा गुरुरूप म्हारी म्होटी व्हेननुं प्रावुं सुरतलीलानी प्रकृती योग्य स्वरूप चितरयुं बे ते पुष्ट बुवाला चित्रकार पर निश्वे यमराजाए पोतेज कटाक्ष कस्बो बे. " पी क्रोधातुर थयेला ते राजपुत्रे पोताना सेवकोने प्राज्ञा करी के, “ जेणे आवु रूप चितरथं वे ते चिताराने तुरत मारी नाखो." राजकुमारनी प्रावी थाझाथी राजसेवको तत्काल ते चिताराना पुत्रने पकयो ने कंपता शरीरवाला तेने वध करवा माटे तेन वधस्थानके लइ गया था वात सर्वे चितारानए सांजली; तेथी तेन एकता यह वधस्थानके गया. त्यां तेडए राजसेवकोने बहु व्यापी करामात्र अटकाव्या. पवी तेनुए तुरत राजकुमारनी पासेवी श्रेष्ठ नजराणा मूकी, उत्तम आशिषोश्री वृद्धि पमामी अने हाथ जोमीने मधुर वाणीथी कां. " हे नाथ ! जे चिताराए श्री मल्लिकुमारीनुं स्वरूप चितरयुं बे, तेने देवताए वरदान आपेलुं बे, जेथी ए चितारो जेनुं थोरुं पण रूप देखे तेनुं चिन्ह अने लक्षणयुक्त सर्व रूप चितरी शके बे. महाराज ! ए चिताराए पकदानी अंदर नजेला श्री मल्लिकुमारीना पगनो अंगुठगे दीगे हतो, माटे तेणे स्वभावथीज तेमनुं यथार्थ स्वरूप चितरेलुं बे. हे देव !आपे तेने वध करवानो दंक आपेलो बे ते मूकी दइ बीजो दंग करवो जोइए. कारण मे आपना प्रसादथी तेनी चित्रकलाथीज जीविए बीए. " चिताराजुनां श्रावां कोमल वचनथी कांइक शांत थयेला राजकुमारे मल्लिकुमारीनुं स्वरूप चितरनार चिताराना फक्त जमला हाथनो अंगुगे कपावीने तेने पोताना देशमांथी काढी मुक्यो, तेथी ते चितारानो पुत्र पण पोतानो नवीन जन्म मानतो तो घरनी सार सार वस्तुने लs कुटुंब सहित तुरत चाली ४० Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१४) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. निकल्यो, अनुक्रमे थोमा दिवसमां ते श्री गजपुर प्रत्ये आवी पहोच्यो. पड़ी, 'फलनी श्छावाला ते चिताराए पोताना मावा हायना अंगुगथी श्री मल्लिकुमारीना नत्तम स्वरुपवालो चित्रपट चितस्यो, त्यारबाद ते चित्रपट्टने लई चित्रकार गुप्त रीते राजसन्नामां गयो. त्यां तेणे योग्य नेट मूकी नूपतिने प्रणाम कस्यो, अंदीनशत्रु राजाए पण तेने जन्मस्थान अने प्राववा विगेरेनुं कारण पूज्युं, ते नपरथी ए चिताराए मूलथी आरंनीने पोतानुं सर्व वृत्तांत कडं. आ वखते मल्लिकुमारीनु सुखकारी नाम सनिलवाथी अदीनशत्रु राजा, ते राजपुत्री नपर अति राग धारण करवा लाग्यो; तेथी तेणे चिताराने श्री मल्लिकुमारीनी रूप गुण विगेरेनी सर्व वात पूी. श्रा अवसरे चिताराये श्री मल्लिकुमारीनो पट प्रगट करीने नूपतिनां हाथमां प्राप्यो; तेथी अदीनशत्रु महाराजा श्री मल्लिकुमारीनां रूपने जो विस्मय पामीने कहेवा ला. ग्यो के, “हे महानाग! तें आ शुं विद्याधरीन स्वरूप चितरथु ले के किंनरीनुं ? अथवा तो कोई देवीन ? खरे लोकमां आईं स्वरूप को मनुष्यस्त्रीनुं तो नथीज!!!” राजानां आवां वचनथी चिताराए कहूं. “हे राजन् ! में श्री श्री मल्लिकुमारीनी फक्त आकृति चितरेली . कारण तेनुं खलं स्वरूपतो कोथी चितरी शकाय तेम नथी." चित्रकारनां आवां वचनथी अत्यंत प्रसन्न श्रयेला अदीनशत्रु राजाए पोताना मनमां वारंवार प्रशंसा करता मल्लिकुमारीनुं स्वरुप वहुवार जोयु. पगी तेणे चित्रकारने प्रीतिदानथी संतोष पमामी अने र. देवा माटे योग्य घर करावी आपीने पोताना नगरमा राख्यो. त्यार पनी ते राजाए पण मल्लिकुमारीनी साधे पाणीगृहण करवानी श्वाथी एक चतुर दूतने ऊट मिथिला नगरी प्रत्ये कुंनराजा पासे मल्लिकुमारीनुं मागु करवा मोकल्यो.' दवे पंचाल देशमां कांपील्यपुर नगरने विष जितशत्रु नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने बहु सौलाग्यश्री देदीप्यमान अने श्रेष्ठ गुणवाली धार णी विगेरे हजारो स्त्रीयो हती. आ वखते दिव्य संपत्तिथी श्रेष्ठ एवी मिथिला नगरीने विषे मनुष्योने वहाली को एक परिव्राजिका रहेती हती. ते हमेशां मनुष्योनी श्रागल पोताना पवित्र धर्मर्नु स्थापन करती राजाना अने . प्रधान विगेरेनां मुख्य घरोने विपे फरती हती. एक दिवस दमकममलने धारण करनारी ते पग्विाजिका, ज्यां पोतानी सखियोनी साये श्रीमल्लिकुमारी Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३१५) सुखे बेगे हती त्यां तेना घरप्रत्ये आवी अने त्यां ते कममलमा रहेलां जलश्री पृथ्वीने गंटी ते नपर पोतानु दासन नाखीने तत्काल बेठी अने जेम लोकोनी पागल पोताना-धर्मने निवेदन करती हती तेम श्रीमल्लिकुमारीनी आगल पण ते परित्राजिका आदरपूर्वक पोतानो धर्मोपदेश कहेवा लागी. श्रा वखते त्रण ज्ञानने धारण करनारी मलिकुमारीये तेने पूज्यु. "हे सुन्ना: गे.! तुं कहे जोश, स्वर्गादि सुखआपनारो कयो धर्म लोकमां कहेवाय ?" मूढात्मा परिव्राजिकाए कहूं. “ पवित्रतारूप मूलवालो, श्रेष्ठ युक्तिवालो, दानादिगुणोने शोना आपनारो अने स्थापनाने योग्य एवो अमारोज धर्म स्व दि सुख आपनारो . जेम को मलिन वस्तुने मृतिकानुं लेपन करीने प. जी घोर नाखीये तो ते निर्मल थाय ने तेम स्नानादि शौचथी पापरूप का दवनो समूह धोवाइ जवाने लीधे जीव निर्मल थाय .” मल्लिकुमारये कहूं. __"हे शुन्ने ! कांश म्हारं वचन सांजल. रुधीरथी खरमायेला मलिन वस्त्रने फ री रुधीरथीज धोइये तो ते शीरीते नज्वल थाय ? एम हिंसादिकृत्यथी मलि: न येलो जीव, जल विगेरेना स्नानथी शीरीते पवित्र थाय ? उलटो ते सावद्य योगग्री वधारे मलीन थाय .” श्रीमल्लिकुमारीनां आवां युक्तिवालां वचन सांजलीने परिव्राजिका तुरत मौन अश् गइ, तेथी ते कांड पण बोलवाने समर्थ श्रइ नहि. पनी मल्लिकुमारीनी चतुर सखीयोए परस्पर मुखमरमीने पेली नीचं मुखघालीने रहेली परिव्राजिकाने धिक्कार करता कां. “अरे. जम ! मूर्तिवंत सरस्वतीना सरखी अमारी स्वामिनीनी साथे वाद करवामां तुं केम समर्थ था ? आम राजकुमारीनी सखीयोए परस्पर बहु हास्य करयु; तेथी लजावंत थयेली परिव्राजिका तुरत त्यांश्री बहार चाली गइ. वली ते जमहृदयवाली परिव्राजिका, श्रीमल्लिकुमारी नपर व धारण करती ती पोताना मनमा विचार करवा लागी के, “पोताना ज्ञानयी बहु गर्व धारती ए. राजकुमारीये म्हारी मश्करी करी . तो हवे हुं तेनो शीरोते बदलो वालं?" श्राम ते विचार करती पोताना चित्तमां बहु खेद पामी. पठी ते परिवाजिका पोताना परिवार सहित मिथिलानगरीश्री चाली नीकली अने पृथ्वी नपरनमती नमती कांपील्यपुर नगरे आवी पहोची. पापमां प्रीतिवाली अने वीजा मनुप्योने श्रानंद पमामवामां तत्पर एवी ते केटलेक दिवसे जितशत्रु राजाना Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१६) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. मंदीरप्रत्ये गइ. त्यां पोतानी हजारो स्त्रीयो सहित नूपतिये तेनो सत्कार करयो एटले ते हर्षथी विधिपूर्वक पोताना आसन्न नपर बेठी, पनी जितशत्रुराजाएतेने मधुर वचनथी संतोष पमामीने पूज्युं के, “ हे आर्ये ! तमे निरंतर राजकुल प्रत्ये फरोटो, तो आजे म्हारी आगल सत्य कहो के, आवी रूपसंपतिथी वखाणवा योग कया कया राजानां अंतःपुरो ?” राजानां आवां वचन सांजलीने काश्क हास्य करी गर्व सहीत परिव्राजिकाए कां. “हे नृ. पति ! खरेखर तमे कूवाना देमका समान देखान गे, सोनलो. को एक कूवामां रहेनारो देमको पोताना स्थानने अगाधपणाथी निरं. तर बहु म्होटुं मानतो हतो. एवामां को एक समुनो देमको ते कूवान कांग नपर आव्यो एटले कूवाना देमके तेने हर्षथी छट पूज्यु के, “हे मित्र तुं क्यांची आव्यो ?" तेणे उत्तर आप्यो. “महासमुश्यी.” कूवाने देमवे फरी पूग्युं “हे ना ! ते समुश्केटलो म्होटो , ते तुं मने ऊट कहे ?' समुश्ता देमकाए “ए वहु म्होटो .” एम कर्दा एटले कूवाना देमकार पोताना पगवती पाणीमां एक लीटी दोरीने कडं. “हे ना! ते महासमु शुं श्रावसो म्होटो ?" समुना देसकाए कां. “ एथी पण बहु म्होटो. समुन्ना देमकानां आवां वचन सांजली कूवानो देमको बहु क्रोध करीने। कूवाना एक कांग नपरथी वीजा कांग नपर जश्ने वोल्यो. “हे दुर्दर! कहे शुं ए आवमो म्होटो वे ?” समुना देमकाए फरी का. “अरे ! तरंगोन मालावालो, वाणीश्री न वर्णवि शकाय तेवो अने आ त्हारा कूवायी पण . हज म्होटो ठे.” कूवाना देमकाए वहु क्रोध करीने का. "अरे पुष्ट निर्लज तुं मिथ्या शा माटे बोले ठे? या म्हारा कूवाथी बीजं कांइपण म्होटुं नश्री. (परिव्राजिका जितशत्रुराजाने कहे के,) हे राजन् ! एम तमे पा वीजा राजाननी अत्यंत रूपवाली अने प्रेमवाली व्हेन पुत्रीयोने जोया विना फन अन्तिमानने लीधेज पोतानासामान्य रूपवाला अंतःपुरनेज वखाएया करो तो हे महाराज! सांतलो. हवणां मिथिलानगरीने विपे श्री कंनराजानी प्रख्या त एवी मल्लिकुमारी नामे पुत्री के. हे पृथ्वीनाथ ! एनां अंगनी मनोहरत पागल या तमारी सेंकमो स्त्रीयोनी रम्यता केवल सुवर्ण पागल माटीना ढे फानी समान देग्वाय ये." बली ने परिवाजिकाए पोताना मनमा “ एमल्लि Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३१७) कुमारीने शोक्यना कुःखमां ना.” एवो विचार करीने pथी जितशत्रुराजा पासे तेना बहु वखाण कस्यां. पी नूपतिये सत्कार करीने ते परिव्राजिकाने रजा आपी; तेथी ते पोतानी कार्यसिदिमानती ती त्यांथी चाली गश्. जितशत्रुराजाए पण मल्लिकुमारीनी साथे पाणीगृहण करवानी श्चाथी एक चतुर दूतने श्री मिथिला नगरी प्रत्ये कुंजराजा पासे मल्लिकुमारीनुं मागुं करवा मोकल्यो.६ जेम तीर्थंकरना समवसरवाथी दैवी प्रत्नावने लीधे नद्यानमा एकज दिवसे अत्यंत प्रीय एवी शतुनां फलादिकनी संपत्ति प्राप्त थाय ने तेम पोताना स्वजनानी साथे ते गए दूतो रथमा बेसीने दैवना योगयी एकज दिवसे श्री मिथिला नगरीना नद्यानने विषे आवी पहोच्या. ॥इति श्री मल्लिनाथज्ञाने षट्दूतागमो नाम द्वितीयः सर्गः ॥ पली नद्यानने विषे पोतपोताना रथ विगेरे परिवारने मूकी गए दूतो मिथिला नगरीमा आवीने एकीज वखते श्री कुंन्नराजाना चार पासे नन्ना रह्या. नूपतिनी आशाथी प्रतिहारी तेनने सन्नामा लाग्यो एटले ते गए दूतोए हाथ जोमीने राजतेजश्री देदीप्यमान एवा कुंजराजाने प्रणाम कस्या अने मल्लिकुमारीनी याचनारूप पोतपोताना राजाना संदेशा श्री कुंनराजाने एकीज वखते कह्या. पी कुंनराजाए "या म्हारी कन्या कोनेआपुं अने कोने न आपुं?" एवा विचारथी क्रोधातुर श्रश्ने ते सर्वे दूतोने कडं के, “विवेकरूप रत्न विनाना तमारा गए राजाननी याचना केवल हास्यरुप ने, माटे हुँ म्हारी पुत्री मल्लिकुमारीने तेनमांना कोश्नी साये परणाववानो नश्री." आ प्रमाणे कुंन्नराजाए ते सर्वे दूतोने अपमान पमामी पोतानी नगरीथी काढी मूक्या; तेथी ते सर्वे नत्साद रहित श्रश्ने तुरत पोतपोताने नतारे आव्या. त्यांची तेनए श्रोमा दिवसमां पाग पोतपोताना राजाननी पासे प्राचीने पोतानुं अपमान तथा मल्लिकुमारीना विवाहनी कहेली ना ए सर्व समाचार तेमने कद्या. पठी क्रोधातुर श्रयेला ते उए राजानए परस्पर एक वीजाने दूत मोकलोने कहेवराव्यु के, “देनूपतियो! साम्राज्यपदने नोगवनारो अने बलीष्ठ एवो कुंजराजा आपणी मश्करी करे , तो आपणा वलीष्टपणाने धिक्कार , निश्चे आपणे Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१७ ) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. सर्वे एका प्रश्न तेने आपणा स्वाधिन करवो जाइए, माटे सौ एका थइ कुंजराजा नपर चमा करो." आ प्रमाणे सर्वे राजान निश्चय करीने पोतपोजाना सैन्यनी तैयारी करवा लाग्या. पी घोर वाजींत्रोना शब्दथी आकाशने सर्जरीत करता बताते उ राजानए पट्टहस्ति नपर बेसी पोतपोताना नगरथी शुन्न दिवसे प्रयाण करयु. पी ठरावेला संकेत स्थले ते गए राजान जाणे लगानाइज होयनी ? एम एकग श्रश्ने परस्पर एक बीजा नपर निःकृत्रिम स्वा स्नेहनी वृद्धि करवा लाग्या. पली सर्व सैन्यने एक करी उए राजानए अति वेगथी मिथिलादेश प्रत्ये प्रयाण करयु. . . हवे मिश्रिला देशनी अंदर फरता एवा कुंनराजाना अनुचरोए राज्यन्नक्तिश्री पोताना नूपतिनीपासे आवीने विनंती करी के,“हे स्वामिन् ! सांजलो. जाणे समुना कल्लोल होयनी ? एवा पोताना म्होटा सैन्यथी पृथ्वीने चारे तरफथी आक्रमण करता उ देशना महा बलवंत राजान दवणां तमारी साये युह करवाने अहिं आवे .” सेवकोनां आवां वचन सांजलीने पोताना नुजवलथी गर्वित अने मननी अंदर अत्यंत कोप पामेला कुंन्नराजाए तुरत पोताना मेवकोनी पासे युझ्नो पट्टह वगमाव्यो. पठी महाशक्तिवालो कुन्नराजा युनी सर्व सामग्री तैयार करीने चाल्यो अने मिथिला नगरीना सिमामे प्रावीने नन्नो रह्यो. राजानन सैन्य पण तुरत कुन्नराजाना सैन्यनी पासे आवीने नतुं रां. त्यां ते राजानए पोतपोतानी म्होटाश्थी को पण रीते संधी करी नहि तेथी धीर पुरुषो तुरत तैयार श्रश्ने रणनूमिमां आवीने नन्ना रह्या.क. वचधारी बुर एवा सर्वे राजान पण सवारमा म्होटा सैन्यनीसाये युनूमि• मां अाव्या. पठी जेम नूख्यो माणस नोजन करवामां प्रवृत्त थाय तेम सेनानी अग्रतागमा रहेला सूरवीर पुरुषोए खड्ग अने बाणोथी युः चलाव्यु. आ वग्वते अल्पसैन्यने लीधे रणसंग्राममां टकी शकवाने असमर्थ तथा अवसरनो जाग कुंनराजा पागे वलीने तुरत पोतानी नगरी प्रत्ये आवतो रह्यो:आ. म कुंलराजा नासी आवीने मिथिला नगरीना किल्लामा नराश् पेठगे एटखे पला गए गजानए तेनी पाठल आवीने मिथिलानगरीने घेरो घाल्यो. बहु शे त्रुन्नी सेनावमे चारे तरफश्री घेरायली मिथिलानगरीने जो नगरवासीजन बद याकुलव्याकुल श्रवा लाग्या.तेमज वहु शत्रुनश्री घेरायला कुंनराजए पर Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. ( ३१५ ) पोतानी नगरीना रक्षण माटे बहु दुःसह नपायो रच्या. पढी किल्लाना कांगराने विषे बहु सुनटोने राखी चिंताथी प्राकुलव्याकुल थयेलो कुंजराजा सनामां प्रवीने बेंगे. श्रा अवसरे सखियोनी साथे मल्लिकुमारी, पोताना पिताना चरणने नमन करवा माटे सन्नामां आवी. त्यां तेथे पिताना चरणमां प्रणाम करया; परंतु व्याकुल चित्तवाला पिताए तेने प्रेमदृष्टियी जोइ नहि तेम मधुarrat बोलावी पण नदि पढी ज्ञानातिशयने लीधे पिताना मनना संतापने जाल मल्लिकुमारी ये गौरवपूर्वक कोमल वचनथी पिताने कां. “दे तात ! तमारे एवी कांइ चिंता नथी, बता तमारुं चित्त ग्राम केम बहु संताप पामे बे जे तमे पूर्वनी पेठे स्नेहदृष्टिथी म्हारा सामुं जोता नथी तेम मौननी पेठे प्रेम वचनथी बोलावता पण नथी ? तमारा मनमां शी चींता बे, जे होय ते मने कहो ?” कुंजराजाए प्रावां वचन सांजली नेत्र नधामीने जोयुं तो पोतानी आगल नली श्री मल्लिकुमारीने दीवी. पी तेमणे बहु स्नेहश्री सकार करीने कं. " पोताना वंशरूप समुने नल्लास श्रापवामां चंड्ज्योत्स्ना समान प्रदर्ष प्रापनारी हे वत्से ! ब शत्रुनना सैन्यथी घेराइ रहेली आपमिथिलापुरीने तुं शुं नथी जाणती ? हे वत्से ! प्रबल शत्रुनए म्हारी सर्व harat नाश करी नाख्यो बे; माटे हवे म्हारे शुं करवं ? तेनी मने बहु चिंता read तेज चिंताना कारणथी अहिं आवेली तने हुं जाली शक्यो नहि. " | पितानां प्रवां वचन सांगली विश्वमां विख्यात गुणवाली मल्लिकुमारीचे क. " दे तात ! तमे बीका पुरुषनो योग्य एवी चितारूप चिंता त्यजी द्यो शत्रुनी साथै संघी करनारी म्हारी वाणी सांजलो. हे तात! तमे श्रकेका राजा पासे गुप्त दूत मोकलावीने मधुर वचनथी एम कदेवरावो के, “हे नृप ! रात्रीने वखते तमारे एकलाएज कोइने कह्या विना किल्लाना नालाने रस्ते थइने नगरीमां प्रववुं. कारण तमे गुणोए करीने मल्लिकुमारीने योग्य बो, माटे हुं तमारीज साथे तेनो विवाह करीश. ” (श्री मल्लिकुमारी पोताना विज्ञाने कड़े वे के, ) हे तात! यावा समाचारथी ते बए राजान्ने अहिं बोलावीने तेमने श्रापणा अशोकवननां देदीप्यमान मोहगृहना मध्यभागना व गृहोने विषे एक बीजा न जाणे तेवी रीते राखो. हे तात ! वली आपे नगरीना दरवाजा बंध राखीने सऊ श्रइने रहेवुं. पठी जे थवानुं दो ते थशे. " 1 Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५०) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वार्ध. पठी कुंनराजाए पुत्रीनां वचनरुप अमृतथी संतोष पामीने तुरत सर्व ते प्रमाणे करा. कारण एवो कयो पुरुष होय के, पोताना हितने विषे विलंब करे ? अर्थात् कोइ न करे. पठी जाणे साक्षात् सरस्वतीज होयनी? एम लोकोने ब्रांति पमामती श्री मल्लिकुमारी, सखीयो सहित पितानी आझाथी पोताना मंदिरप्रत्ये गश्. पेला गए राजान पण दूतनां वचनथी रात्रीये अशोकवननी अंदरनां दिव्य मोहगृहप्रत्ये आवीने " निश्चे अमे सवारे मल्लिकुमारीने परणिशं.” एवा वीचारथी पोतपोताना गृहोने विषे पलंगमां सूता. अहो ! रागी पुरुषोनी स्थिति आवीज होय . “ ज्यारे मंगलमय एवो दिनमणि (सूर्य) नुदय पामशे त्यारे अमे पूर्वना पुण्यथी सुखकारी एवो मल्लिकुमारीनो पाणिग्रहण करीने सर्व नूपतियोथी अधिक गुणवाला श्रश्शं.” एम ते गए राजानए पोतपोताना चित्तनी अंदर विचार करता ते रात्री महा कष्टथी निवृत करी. ॥इति श्री मल्लिज्ञानाधिकारे षट्पूर्व मित्रनृपागमोनाम तृतीयसर्गः॥ पठी देदीप्यमान कांतिवालो सूर्य, नदयाचल प्रर्वत नपर नदय पाम्यो एटले ते सर्वे राजाननी आशानुनी साथे दशे दिशान प्रफुल्लित श्रवा लागी. श्रा वखते एक तरफ मिथिला नगरीनी बहार रहेलुं राजमंगल पोतपोताना राजाने न जोवाश्री निस्तेज वनवा लाग्युं तो बीजी तरफ श्री मल्लिकुमारी ना मोहगृहमा रहेढुं ते उए राजानतुं मंगल, पोताना नत्कृष्ट नत्साहथी दे दीप्यमान देखावा लाग्यु. जो के ते गए राजानना गृहोना बारणां बंध हत तो पण सूर्यनी कांति रत्ननी जालीयोना विना समूहने लीधे ते गृहोर्न अंदर बहु प्रकाश करती हती. पठी ते उ राजा पोतपोतानी शय्यामाथ नगी मणिमित्र नूमि नपर धीमे धीमे चालता हता एवामां तेनुए जालिनी अंदरथी आवता दिव्य तेजना समूहथी सुशोनित अने मध्यगृहनी वचमा रदेली श्री मल्लिकुमारीनी पेली सुवर्णप्रतिमा दीठी. पुण्यरुप लावण्यथीपरिपूर्ण देवांगनानना समान सौन्नाग्यवाली अने देदीप्यमान कांतिवाली मुवर्णमय प्रतिमाने प्रफुल्लित नेत्रश्री जोता एवा ते सर्वे जम राजान खरेख' री मल्लिकुमारीज मानवा लाग्या. वली तेन सुवर्णनी प्रतिमारुप मल्लिकु. मारीनी अनुत आश्चर्यकारी कांति, रूप अने सोनाग्यश्री मनमां वहु संतोष Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. ( ३५१ ) पामता बता तेना वारंवार वखाण करवा लाग्या. या प्रवसरे त्रण ज्ञानने धारण करनारी ने बहु आभूषणोथी सुशोजित एवी मल्लिकुमारीये पोतानी सेंको सखी योनी साथे त्यां प्रवीने सुवर्णनी प्रतिमाना मस्तकना बीड़ नपर ढांकी राखेलुं कमल नपामी लीधुं एटले तेमांथी बहु दुर्गंध निकलवा लाग्यो. पी सर्वे राजान, ते महा दुर्गधी प्राकुलव्याकुल थने वारंवार पोतपोतानी नासिकाने ढांकवा लाग्या एटले श्री मल्लिकुमारीये नीचुं मुख राखीने बेसी रहेला ते बए राजान्ने बोध पमारुवा माटे निर्मल प्रेमने लीघे कहां. " हे भूपतियो ! प्रेमवशथी या प्रतिमाने जोता एवा तमे, निश्वे विरक्त बुद्धिवाला ने जनोत्साहवाला केम देखानु हो ?” राजानंए कहुँ. " हे सुजगे ! खरेखर एनोडुर्गंध मे सहन करी सकता नथी, माटे मे मुख तथा नासिकाने ढांकीने बेटा बीए. " मल्लिकुमारीये कां. “ अरे भूपालो ! जरा तत्त्वबुद्धिश्री हृदयमां विचार करो तो खरा के, या सुवर्णमय प्रतिमामां श्रावो दुर्गंध क्यांथी होय ? परंतु हे हितशे ! में दररोज भोजन करती वखते बहुज रसवालो श्रन्ननो एक एक कोलीयो ए प्रतिमाना मुखमां नाख्यो बे. अहो ! ए एकटा थयेला अन्नना कोलीयानो महा दुःसह गंध उत्पन्न यो के, जे तमाराथी सहन करायो नहि तो पढी केवल अन्नना आहारथीज वृद्धि पामेला रुधिर, मका अने अस्थिने धारण करनारा, अशुन पुनलोथी निरंतर अपवित्रतानां स्थानरूप, जीर्णवृनां पत्र समान नाशवंत ने शाश्वत सुखश्री भृष्ट करनारां स्त्रीयोनां शरीर नपर अनंत सुखनी इच्छा करनारो कयो पुरुष राग करे ? अहो नूपालो ! माटे तत्त्वबुद्दिश्री विचार करीने नाशवंत स्वभाववाला काम जोगने विषे वृथा मोह न पामो तेमज प्रासक्ति पण न करो. सांजलो हुं थी वीजा जवने विषे महाविदेहमां महावल नामे राजा दतो ने तबए जणा म्हारा मित्रो हता. श्राप्रमाणे निरुपम बुदिवाली श्री मल्लिकुमारीये ते सर्वे राजान पासे पूर्वना बे नवनुं यथार्थ वृतांत तेज वखते कह | संभलाव्यं. वली ते राजपुत्रीये कह्युं के, " हे मित्रो ! जयंत नामना वैमानने विषे तमे देवभवमां असंख्य सुखो भोगव्यां वे, ते सुखो शुं या मनुष्यजन्मने विषे तमे विसरी गया ? तेमज कल्याणना स्थानरूप पूर्वी देवजाति पण तमने नयी सांभरती ? " श्री मल्लिकुमारीनी ४१ 35 " Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५५) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. आवी संसार समुने तारवामां नाव समान अमृतमय वाणीथी प्रतिबुझिवि. गेरे ए राजान प्रतिबोध पाम्या. पनी श्रेष्ठ परिणामथी अने शुइ लेश्याथी क्षणमात्र इहापोह करतां ते सर्व राजानने पूर्वनो नव सांजस्यो. मल्लिकुमारीये पण अवधिज्ञानथी ते सर्व राजानने नुत्पन्न श्रयेलु जातिस्मरण ज्ञान जाणीने तेमना निवासगृहो नघमाव्यां. पठी सर्वे राजान पूर्वना बन्ने नवना नुत्पन्न श्रयेला बहु स्नेहने धारण बता हर्षथी श्रीमल्लिकुमारीनी पासे आवीने तेने प्रणाम करवा लाग्या. श्री मल्लिकुमारीये पण कोमल वचनधी तेमने का के, “हे पूर्वजन्मना मित्र नूपालो ! तमे दर्षथी सोनलो. संसारवासश्री नवेग पामेली हुं महाव्रतने अंगीकार करीश, तमे शुं करशो? पोतानां राज्यने विषे रहेशो के व्रत गृहण करशो ? जे मरजी होय ते कहो." . श्री मल्लिकुमारीनां आवां वचन सांजली सर्वे राजानए स्पष्ट कडं. "हे मल्लि! सान्नलो.तमे जेवी रीते पूर्वनवने विषे श्री महाबल नामे अमारा खामी हता तेवी रीते आनवने विषे पण अमारा अधिपति तमेज थान.जो तमे संसार समुश्ने तारनार दीक्षा गृहण करशो तो अमे पण निश्चे साम्राज्यपदने त्यजी दर संयम लेशं.” सर्वे नूपतियोए निर्मल चित्तथी या प्रमाणे उत्तर आप्यो एटले तेनुनां सत्वश्री हर्षित थयेली मल्लिकुमारीये तुरत तेनने कां." हे नरेश्वरो!जो तमे म्हारीज साधे व्रत गृहण करवाना हो तो तमे सौ पोतपोतानां राज्यने विषे पोतपोताना पुत्रोने स्थापन करी तुरत अहिं श्रावो.” श्रा वात सर्वे राजानुए अंगीकार करी एटले मनुष्योनां कर्मने नेदनारी श्री मल्लिकुमारी, ते सर्वे नूपालोने पोताना पितानी पासे सन्नामा तेमी लावी.त्यां “मल्लिकुमारीये श्रा सर्वे राजानने प्रतिबोध पमाझ्या.” एवी वात सांजलीने अत्यंत हर्ष पामेला कुंजराजाए ते सर्वे राजानने स्नेहपूर्वक आलिंगन करीने आनूपण तथा नत्तम नोजनवमे विवेकथी संतोष पमामया. पठी ते सर्वे राजान पोतपोताना देशप्रत्ये चाल्या. या वखते जेम इष्ट रोगथी निर्मुक्त प्रयेला मनुष्यनुं शरीर शोने तेम शत्रुनना रोधयी मुक्त थयेली मिथिला नगरी अत्यंत शोन्नवा लागी. पठी ब्रह्मदेवलोकधी लोकांतिक देवतानए तुरत त्यां प्रावीने नक्तिथी श्री मधिनाय जिनेश्वरने दीवानो काल निवेदन कस्यो. श्री मल्लिनाथे पण Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३५३ ) अवधिज्ञानथी दीक्षाकालने एक वर्षनुं अंतर जाणी मानसिक सांवत्सरीकदान आपवा मांमयु. सौधर्म३ पण ज्ञानोपयोगी श्री अरिहंत प्रनुने दाननो अवसर 'जाणीने यकेश्वर (कुबेर )ने आज्ञा करी एटले तेणे पोताना, अनुचर जूंनक. देवतानने नूमिमां रहेला असंख्य निधि श्री मलिनाथना घरे लाववानुं कडं. देवतानए ते प्रमाणे असंख्य निधि श्री मल्लिनाथना घरे आएया. त्यार पनी श्री मलिनाथ प्रन्नुए, जेम अशाढ मासमां श्राकाश जलवृष्टि करे तेम स:वारने विषे सांवत्सरीक दान आपवा मांमयु. वली तेमणे गाम, पुर, बजार अने नगरने विषे तेमज मिथिला नगरीमा पमह वगमाव्यो के, “नुख्या, दरिडी, देवाथीपीमायला तथा रोगी एवा सर्वे पुरुषोए जेने जेवी हा होय तेवी वस्तु अमारी पासेथी मागी लेवी.” श्रा प्रमाणे श्रीमल्लिनाथे दररोज एक पोरसीमां एक करोम अनेआठ लाख• थी कंश्क बुंएटलुंध्यापवामांमथु.तेमज दीन, दुखी, निकुक अनेयाचकोने ठेकाणे ठेकणेचित नोजन कराववा मांमयु.आ वखतेश्रीमल्लिनाथप्रन्नुदान कमैने विषे कल्पवृक्षथी पण अधिक अया. कारण के, जगत्मां कल्पवृक्ष तो याचकजनोने श्छा प्रमाणे आपे अने श्री मल्लिनाथ प्रन्नु तोयाचकजनोनीश्चाथी पण अधिक अधिक आपता हता.ावी रीतेदानकर्मथी एक वर्ष पूर्ण आयुं अने ., जीवलोक संतोष पाम्यो एटले श्री मल्लिनाथे प्रणामपूर्वक पोताना मातापिताने कडं. “दे मातपिता ! हुं तमारी आझाथी संसार समुज्ने तारनारी दीका गृहण करीश." पुत्रीनां आवां वचन सांजली प्रेमाश्रुश्री व्याप्त थयेलां नेत्रवाला मातापिताए प्रीतिथी तेमने युक्तिवाटु वचन कह्यु. “देदीप्यमान गुणमणिनी खारुप दे पुत्री! तमे जेवी रीते दानकर्मथी विश्वनो न. शर कस्यो तेवी रीते तुरत चारित्रवमे पोताना आत्मानो नार करो." पली कुंजराजाए पोताना चतुर सेवकोने आज्ञा करी के, “अहो अनुचरो ! श्री मल्लिकुमारीने दीक्षानो अनिषेक करवा माटे माटीना, रुपाना, सोनाना अने रत्नोना अनेक कुंनो तैयार करी तेमां कट सुगंधिवातुं जल नरो." राजाना आदेश सेवकोए हर्षपूर्वक तुरत ते सर्व तैयार करयुं एटलामां इंर्नु आसन कंपायमान थयु. तेणे अवधिज्ञानथी जोयुं तो श्री मल्लिनाथना चारित्रनो अवसर जाएयो. पली सर्वे देवेंशे, पोतपोताना वैमानमां बेसीने को दीका गृहण करीमातापिता ! हुं तमारी मात्र प्रणामपूर्वक Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२४ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. टिदेवतानुनी साथे त्यां श्राव्या. जेटलामां कुंभराजादि श्रनेक मनुष्यो श्री म विनायना दीक्षाभिषेकनी सुवर्णकुंनादि सर्व सामग्री तैयार करे बे तेटलामां देवेंझेए, पोतानी शक्तिश्री ते सर्व सामग्री तैयार करी. पबी कुंभराजा श्री / मलिनाने बोलावीने एक म्होटा रत्नना मंरुपमां सुशोजित सिंहासन नपर हर्षथी बेसारखा. त्यारबाद कुंजराजानी साथे सर्वे इंझेए ते कुंजोना जलवमे श्री मल्लिनाथ नपर जक्तिपूर्वक अभिषेक कस्यो. या वखते केटलाक प्रजुनी आगल नाटक करता इता, केटलाक मधुर स्वरश्री गायन करता दता, केटखाक आकाशने गजाववा पूर्वक श्रेष्ठ वाजत्रो वगामता दता ने केटलाक तो बहु भक्तिश्री पुष्पवृष्टि करता हता. पबी श्री मल्लिनाथने उत्तराभिमुखे बेसारीने दिव्य वस्त्रालंकारो पड़ेराव्यां. श्रा प्रमाणे अभिषेकनं कृत्य पूर्ण थया पी कुंजराजाए पोताना निपुण कारीगरोने आज्ञा करी के, “दे शिल्पियो ! तमे श्री मल्लिनाथने बेसवा योग्य एवी पालखी तैयार करो.” पबी शिल्पज्ञानमां चतुर एवा ते कारीगरोऐ मणिमय स्तंनोवाली, अनेक प्रकारना रत्न जमित्र जुतलवाली, पेमली योवाली, प्रानंदयुक्त नृत्य करती एवी सुवर्णनी पुतलीयोवाली, मंगपना मध्य भागमां सुशोभित तोरणोथी मनोहर बनावेली, धजान तथा कलशोथी वैमानोनी शोनाने तिरस्कार करनारी, सूर्य समान कांतिवाला मणिजमीत्र पगश्रियावाली, अतिपवित्र अने मनोहर एवी पालखी तैयार कर इंनी प्रज्ञाश्री देवतानए पण एक बीजी पालखी तैयार करी देवता तैयार करेली ते पालखी बीजी पालखी योनी अंदर प्रतिमनोहरपणाने लीधे तेल पूरवाथी दीवानी कलानी पेठे वहु शोजती हती. पठी लक्ष्मीश्री सुशोभित एवा श्री मल्लिनाथ प्रभु, पितानी प्रज्ञाथी तुरत प्रदक्षिणा करीने पालखीने विषे आसन उपर पूर्वाभिमुखे बेटा. ते व खते इंझेए वत्र चामरादिक सर्व वैभव प्रगट करचो. पठी कुंभराजाए महा समृद्धिवाला, दिव्य अलंकारोने धारण करनारा अने संतुष्ट मनवाला पोताना से - वकोने आज्ञा करी के, “हे सौम्य प्राकृतिवंत पुरुषो ! पुण्यना अर्थी एवा तो.. पापने दूरं करवामाटे या पालखीने नपाको. " कुंभराजानी आवी प्रज्ञाथी दर्पित मुग्ववाला, उत्तम वेशने धारण करनारा श्रने प्रसन्न श्रयेला ते सर्वे से - वको, " हुं पेलो, हुं पेलो" एम नचार करवापूर्वक ते पालखीने नपावाला 1 Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मल्लिनाथ चरित्र. (३५) - ग्या.आ अवसरे देवमनुष्योनां अखंमित वाजींत्रो वागवा लाग्या, रंनादि देवांग'नान नृत्य करवा लागी, देवतानना बंदिजनो गायन करवा लाग्या अने सर्वे मनुष्यो अष्टप्रकारना स्पष्ट मंगलिक शब्द करवा पूर्वक मंगलिक गीतो गावा लाग्या. पी हाथी नपर बेठेला कुंनराजाए, स्वजनोए अने परिवारसहित पालखीमां बेठेली प्रत्नावती माताए आनंदपूर्वक जोयेली ते प्रनुनी पालखीजेटलामां पोताना महेलथी विस्तारवंत एवा राजमार्गने विषे आवी प. होची तेटलामा देदीप्यमान आनूषणोवाला तथा अति आदरवंत एवा सुरेंशेए अने असुरेशेए हर्षथी ते पालखीने उपामवा मांमी. वली ते वखते पुप्पनो वर्षाद करता अने नाना प्रकारनी नाट्य क्रीया करता एवा ते देवतानए पोतानां तेजश्री मिथिलापुरी अने स्वर्गपुरी एकज करी दीधी. अति संतुष्ट श्रयेला लोकोए पण पोताना प्रफुल्लित एवां नेत्रोथी जेनुं लावण्य पान करातुं हतुं एवा श्री मल्लिनाथ प्रन्नु मिथिला नगरीने त्यजी अनुक्रमे सहस्त्राम्रवनमां अशोकवृदनी नीचे आव्या. त्यां शीलरुप आनूषणोयी सुशोनित एवा तेमणे पालखीमांथी नीचे नतरी प्रयत्न वमे सर्व बाह्य आनूषणो त्यागकस्यां. परी ज्यारे प्रन्नुए लोच कस्यो त्यारे तेमना सर्व केशने ६३ पोताना वस्त्रमा लइ कीरसमुश्मा नाख्या. इंनी आज्ञाश्री देव अने मनुष्योए करेलो वाजीत्रोनो शब्द शांत अयो एटले प्रनुए सिोने नमस्कार करीने सर्व सावद्ययोगना त्यागपूर्वक जैनी दीक्षा लीधी. आ वखते जाणे आगमने विषे श्रीमान् केवलज्ञानरुप नूपतिनो प्रतिहारज होयनी ? एम श्री मल्लिनाथ प्रन्नुने चोयं ज्ञान प्रगट यु. श्री मल्लिनाथे ज्यारे पोश सुदी अगीयारसने दिवसे अश्विनी नक्षत्रमा चश्मानो योग प्राप्त अये ते अठम तप करीने दीक्षा लीधी त्यारे व्रतने धारण करनारी त्रसो स्त्रीयोनी अंतःपर्षदा अने व्रत अंगीकार करनारा त्रणसो पुरुषोनी बाह्य पर्षदा अइ. वली बलिमित्र, सुमित्र, नंदमित्र, नंदक, अंमरपति, नानुमित्र, अमरसेनिक अने महासेन ए आठ प्रसिह राजपुत्रोए तेमनी साथे तेज वखते चारित्र अंगीकार करयु. श्री मल्लिनाथ जगवाने, जे दिवसे चारित्र अंगीकार करयुं तेज दिवसे सांजे तेमने विशुछ एवा ध्यानना योगयी निर्मल एवं केवलज्ञान नुत्पन्न थयु. श्रा अवसरे चार निकायना देवतानए, बहु नक्तिथी तुरत रुपाना सोनाना अने मणिना किल्लान बनावीने Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्ध. ( ३५६ ) समवसरणनी रचना करी. पीईनी विनंती उपरथी श्री मल्लिनाथ मञ्जु अनेक देवतानबी परवस्या बता पूर्वारे प्रश्ने समवसरणमां श्राव्या. त्यां परिवार सहित इंझेए सेवन करेला प्रभु, नाना प्रकारनां रत्नोथी निर्माण करेलां सिंहा सन उपर विराज्या. उद्यानपालके तुरत मिथिला नगरीमां प्रवीने प्रजुना केवलज्ञाननी वधामणि कुंभराजाने आपी. कुंभराजा पण तेने प्रीतिदामां बहु लक्ष सुवर्ण श्रापीने दर्षपूर्वक परिवार सहित समवसरणमां श्राव्या. त्यां विधिश्री मल्लिनाथ प्रजुने प्रक्तिवमे नमस्कार करीने ते श्री जिनेश्वरना सन्मुख योग्य आसने बेग. संसारथी नद्वेग पामेला प्रतिबुद्धि विगेरे बराजानुं पण चारित्र लेवानी इन्वाथी त्यां श्राव्या ने व्याख्याना स्थानप्रत्ये दाखल ने विधि प्रभुने नमस्कार करी दर्ष पामता बता श्री कुंजराजा पासे वेठा. पछी सर्व पर्वदा नराइ एटले ऋण जगत्ना प्रभु एवा श्री मल्लिनाथे, परोपकारने माटेज पुण्यरुप अमृतने वर्षावनारी देशनानो आरंभ करयो. जेम मेघवृष्टिश्री भूमिमां रहेला अंकुरा वृद्धि पामे तेम श्री मल्लिनाथ प्रभुनी ते देशनाथी जव्यपुरुषोने संसारनो वैराग्य वृद्धि पाम्यो शुद्ध श्रावाला कुंजराजा पण ते धर्मदेशना सांजलीने प्रभावती सहित श्रावकधर्म आदस्यो. श्रवखते प्रतिबुद्धि विगेरे व राजानए हाथ जोमीने ज्ञानि पुरुषोने पण स्त वन करवा योग्य एवा श्री जिनेश्वरनी आदर सहित विनंती करी के, " हे प्र. जो ! संसार समुने तारवामां वहाल समान दीक्षा आपीने श्रमने तुरत ता. रो. " तेनुनी प्रावी विनंतीश्री " हे भूपालो ! तेमने जेम सुख थाय तेम क रो. " एवी प्रजुए आज्ञा करी एटले ते बए राजानए पोताना अंगना अनू पण त्यजी दइने तुरत लोच कस्यो पढी साधुनो वेष धारण करी अने श्री मल्लिनाथ प्रभुनां मुखश्री महाव्रत नचरी ते बए साधुन ए बीजा साधु पासे. श्री विविध प्रकारनी शिक्षा उत्तमरीते जाली. ते वखते मोहना अर्थी एवा बीजा मनुष्योए पण लघुकर्मीपणाने लीधे वैराग्यवंत पर श्री जिनेश्वर पासे महाव्रत अंगीकार करधुं पठी बुद्धिवंत पुरुषोनी रेखाने प्राप्त थयेला, सर्व ल नेपामेला, निर्मल बुद्धिवाला प्राविश श्रेष्ठ साधुन, श्री जिनेश्नां मुग्वी केवल त्रिपदीने पामीने ते महाशयोए एक मुहूर्त्तनी अंदर द्वादशांगीनी, Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मलिनाथ चरित्र. (३२७) रचना करी. ज्ञानवंत एवा प्रनुए हादशांगीने निर्दूषण जागी तेनने नत्सव पूर्वक गणधरोनां पदे स्थाप्या, श्री जिनेश्वर त्यां चार प्रकारना संघनी रचना करीने पनी परिवार सहित पृथ्वी नपर विहार करवा लाग्या. पी ते महाराजर्षियो, पोतानी बुदिना योगथी संसारनो अंत करनारी हादशांगीनो अभ्यास करवा लाग्या. पवित्र चारित्रनुं पालन करनारा,श्राश्रवोने कय करनारा तथा सर्व दुःखनो नछेद करनारा ते महामुनियो, तीव्र तपथी सर्व प्रकारनां कर्मनो क्ष्य करीने अनुक्रमे केवलज्ञान पामीने सिद्धिपुरप्रत्ये गया. श्री मल्लिनाथ प्रनुने गृहावासमां एक सो वर्ष तथा केवलीपणा. मां पंचावन हजार वर्ष निर्गमन श्रया. त्यारपठी पोतानो निर्वाण समय नजीक आव्यो जाणी प्रन्नु, उत्तम तीर्थरुप संमेत शिखर नपर गया. त्यां तेमणे पांचसो साधु अने पांचसो साध्वीयोनी साथे एक मासन अनशन ली). चैत्रमासनी शुक्ल चोयने दिवसे नरणी नक्षत्रनो चश्मा बते स्थिरशरीरवाला जगत्गुरुए कार्योत्सर्ग कस्यो. पठी ते शैलेशी करवापूर्वक सर्व कर्मने संदारीने अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत आनंद अने अनंत वीर्यवाला मोक्ष प्रत्ये गया. शुइ चारित्रथी पवित्र एवा श्री मल्लिनाथना सर्वमलीने साधुन नी चालीश हजारनी संख्या हती. ए जिनेश्वरनी संयमर्नु आराधन करवामां । नद्यमवंत तथा क्रीयामां तत्पर एवी बंधुमती विगेरे पंचावन हजार साध्वीयो हती, जिनेश्वरनी आज्ञानुं आराधन करनार एक लाख ने चोराशी हजार श्रावको तथा त्रण लाख पांसठ हजार श्राविकान हती. वली उसो चोदपूर्वधारीयो, बे हजार अवधिज्ञानीयो, त्रण हजार ने उसो केवलज्ञानीयो, त्रण हजार ने पांचसो वैक्रीयलब्धिवाला, आठसो मनःपर्यवज्ञानवाला, एक ह. जार ने चारसो वादलब्धिवाला अने बे हजार अनुत्तरलब्धिवाला या प्रमाणे ए श्री मल्लिनाथप्रनुनो परिवार हतो. श्री मल्लिनाथ प्रनुनी वे प्रकारनी अं. तकृत नूमि हती के, जेमा एक युगांतकृत् नूमि अने बीजी पर्यायांकृत् नूमि हत्ती. देहान्नाना मंमले करीने इंग्नील मणिनी कांतिने जीतनार अने कामरूप दावानलने समन करवामां मेघ समान एवा नगणीशमा तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ प्रन्नु, तमारी मोक्ष संपनिने अर्थे थान. जेम श्री मल्लिनाथ अन्ननां मुखश्री निकलेला वचनरुप अमृतनुं पान करीने अत्यंत प्रसन्न अयेला, नज्वल Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२०) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. गुणवाला, गणधरपदने पामेला, वैराग्यवंत श्रयेला अने श्रुतधर कहेवायेला प्रतिबुद्धि विगेरे राजा श्रेष्ठ मुक्तिमार्गने पाम्या तेम संसारनो पार पामवानी श्छा करनारा श्रेष्ठ बुध्विंत पुरुषोए आ दिदारुप मार्गने सेववो. ॥ इति श्री मल्लिनाथ चरित्रम् ॥ सहिं वाससयाई, जेणं हेण नाविन अप्पा ॥ बहुविहलसिमिधं, विडं वंदामि अणगारं ॥१५॥ अर्थ-जेमणे उ हजार वर्षपर्यंत बहना तपथी पोताना आत्माने तपोम कस्यो ते बहु प्रकारनी समृध्थिी प्रधानरुप एवा यतीश्वर श्री विष्णुकुमारने हुं वंदना करूं . ॥ १७॥ जो तिनस्सपन्नावणमकासि वेनविदेहलधीए॥ तं विडं गयतिरं, नमामि पत्तं सिवपुरमि ॥२०॥ अर्थ-जेमणे वैक्रियदेहलब्धिथी तीर्थ प्रस्तावना करी ते निर्लोनि अने मोदपुरने पामेला श्री विष्णुकुमारने हुं नमस्कार करुं बु.॥३०॥ श्रा विष्णुकुमारनो संबंध महापद्म चक्रवर्तीनां चरित्रमा कह्यो , माटे त्यांथी जाणी लेवो. एगणे पंचसए, खंदगसीसाण कुंजकारकमे॥ पालयकयनवसग्गे, पत्ते पणमामि अपवग्गे ॥२१॥ अर्थ-कुंनकार नगरने विषे पालक पुरोहिते,जेमने प्राणांत नपसर्ग कस्यो इतो, ते श्री स्कंदकाचार्यना मोद पामेला चारसो ने नवाणुं शिष्योने हुं प्रपाम करुं दु. ॥ १ ॥ ॥श्री स्कंदकसू रिनी कथा॥ जमां मणिमय अनेक प्रासादो फलहली रह्या हता एवी श्रावस्ती नाम नगरी ठे, त्यां प्रख्यात यशवालो जितशत्रु नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने शीलव्रत धारण करनारी यथार्थ नामवाली धारिणी नामे स्त्री हती. तः नने मदा पराक्रमवंत स्कंदक नामनो चतुर कुमार दतो. ते युवराजपद ला Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री स्कंदकसूरिनी कथा. (३५) , गवतो तो जैनधर्मने विषे बहु प्रीतिवालो थयो हतो. स्कंदकने चोसठ गुण- वाली अने रूपसौन्नाग्यश्री सुशोनित पुरंदरयशा नामे नानी व्हेन हती. तेने 'कुंनकार नगरना राजा दंमकामि वेरे परणावी हती. त्यां ते सोनाग्यनी नाग्यनी नूमि बती पट्टराणी पदने पामी हती.दंमकामि राजाने मिथ्याष्टि, जैनधर्मनोषी अने विद्याना अनिमानने धारण करनारोपालक नामे पुरोहित हतो. एक दिवस दंमकानि नूपाले को राजकार्यने माटे ते पुरोहितने श्रावस्ती नगरी प्रत्ये मोकल्यो. त्यां ते राजसलामा गयो. बीजे दिवस ते मलीन बुध्विाला पुरोहिते स्कंदकराजकुमार सान्नलतां उतां राजानी आगल जिनधर्मनी निंदा करी एटले स्कंदककुमारे कुतीर्थ मनुष्यनां वचनरूप वहा ने तोमी पामवामां महा वायुसमान युक्तिवचनोवमे ते पुरोहितना पढ़ने बेदी नाख्यो. पठी अंदरथी क्रोधातुर श्रयेलो, परंतु उत्तर आपवाने असमर्थ • होवाने लीधे, नपरथी हास्य करतो ते पुरोहित कुमारनां वचनने वखावा लाग्यो. पन ते पालक पुरोहित राज्यकार्य करीने पोताने नगरे गयो एटले पाउलश्री तत्त्वने जाणनार स्कंदककुमारे विचार कस्यो के, “ हा ! दक्षिणव शंखनी पेठे इष्टफल आपनारो आ पुर्खन मनुष्यजन्म म्हाराथी फक्त प्रमादने लीधेज हारी जवाय जे. वली आरंनमां फक्त अल्प सुख आपनारा परंतु । पालथी महापुःखदायी आ नोगो किंपाक फलनी पेठे साररहितज देखाय . निश्चे आ संसार असार , माटे तेने त्याग करीने हुं श्रीसुव्रतस्वामीपासे अनंत सुख आपनारांचारित्रने गृहण करीश." स्कंदककुमार आ प्रमाणे पवित्र मनोरथ धारतो हतो तेवामां श्री मुनिसुव्रतस्वामी पृथ्वी नपर विहार करता करता सवारे श्रावस्ती नगरी प्रत्ये आव्या. त्यां महा हर्षवंत देवतानए क्रीमा नद्यानमांमुक्तिगामी प्रतुना माटे समवसरणनी रचनाकरी.आ वखते वनपालके तुरत जितशत्रु राजाने प्रन्नुना आगमननी वधामणी आपी. नक्तिमान् एवो ते नुपति पण वधामणी सांजलीने अत्यंत हर्ष पामतो तो पुत्र परिवारने १ साये लश् क्रीमोद्यानमा प्रनुने वंदना करवा माटे गयो. स्कंदककुमार सहित जितशत्रु राजाए त्यां विधियी प्रनुने वंदना करीने तेमनी मोह सुख आपनारी देशना सांजली. प्रन्नुनी देशना सांजलीने नत्पन्न श्रयेला वैराग्यवालो स्कंदककुमार ते दिवसथी व्रत लेवा माटे वधारे स्पृहावंत अयो. एती श्रीजि Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३० ) ऋषिमंगलवत्ति - पूर्वार्ध. नेश्वर भगवानने नमस्कार करी पितानी साधे पोताना घेर जर व्रत लेवाने उत्साहवंत थयेला स्कंदके मातापिताने पूठ्युं, ते उपरथी तेनए कहां के, " हे वत्स ! हवणां तुं युवावस्थावालो बे, माटे प्रमारां राज्यने गृहण कर अने - / त लेबुं तो अमने योग्य वे " माता पिताए आम कह्या बतां पण संसारना जयी प्रति नग पामेला, मोहना अर्थी अने चारित्रने विषे स्थिरवासवाला स्कंदककुमारे, पितानी आज्ञा मानी नहि. बेवट तेथे पितानी श्राज्ञा ल पांचो मित्रोनी साथे श्रीसुव्रतस्वामी पासे चारित्र लीधुं. सर्व सिद्धांतना अभ्यास करी अने जिनेश्वर प्रभु पाथी आचार्यपद पामी स्कंदकमुनिये केटलाक वर्ष सुधी प्रजुनी सायेज विहार कस्यो. कोइ वखते पूर्वना कर्मे प्रेरेला स्कंदक मुनि, पोतानी व्हेनना पति दककानिने वंदन कराववा माटे कुंजकार नगरप्रत्ये जवानी इच्छाथी प्रभुनी आज्ञा मागवा लाग्या. ते वखते त्रिकालना जाए एवा प्रनुए तेमने कां. “हे सौम्य ! त्यां तमने प्राणांत उपसर्ग थवानो बे, माटे ते क्लेशकारी स्थानके जवानुं त्यजी यो. " प्रजुए ग्राम कर्तुं तो पण तेमणे फरीश्री पूग्धुं " हे विनो! श्रमे ते नृपसर्ग प्राप्त श्रये बते आराधक रहीशुं के विराधक ? " प्रजुए कघुं. "तमे सौ आराधक बो; परंतु त्यां जनुं मूकी द्यो." जिनेश्वरे आवी रीते बहु क तोपण ते पोतानो कदाग्रह बगेरुचो नहि. पती "जो आ अमे सौ आराधक वीए तो श्रम विरतिनुं फल ययुं. ” एम कहीने तथा जिनेश्वरने वंदना करीने स्कंदकर वीजा अनेक साधुन सहित चाल्या. ज्यारे स्कंदकसूरि कुंभकार नगरनी पासेना गाममां श्राव्या त्यारे ते कुंनकार नगरमां पण सूरिना आव वानी वात फेलाइ गइ. स्कंदकसूरिनुं श्रववुं पालक पुरोहिते सांभख्यं; तेथी ते मिना गोलानी पेठे हृदयमां पूर्वनो तिरस्कार संचारतो बतो विचारबा लाग्यो. " ते वखते पोताना स्थानवलने पामीने एणे मने बहु विगोव्यो रे, ते हुं जूली गयो नथी; जेथी तेने हुं ते पोतानां कृत्यनुं फल देखामीश. " पी जाले कालेज थाकर्षण कस्या होयनी ! एम सृरि ते नगरना उद्यानने विषे श्राव्या एटले " हवे हुं एनो कं नाशकारी अनर्थ करीश. " एवो विचार करीने ते दुष्टात्मा पुरोहिते पोताना पुरुषो पासे, जे उद्यानने स्कंदकसूरिये पोताना निवासी मुझो जित कस्यो हतो ते उद्यानने विषे गुप्तरीते अनेक शस्त्रो दटा 1 Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री स्कंदकसूरिनी कथा. (३३१) व्यां. सवारे सूरिना आगमनने सांजली नगरवासी सर्वे जनो बहु नक्तिथी तेमने वंदन करवा माटे नेद्यानमां जवा लाग्या. नद्यान पालकधी सूरिनुं श्रागमन जाणी दंमकानि राजा पण स्त्री सहित गुरुने वंदन करवा माटे नद्यानमां गयो, त्यां सूरिये तेमने मधुर वचनथी तेवी रीते जिनोक्त धर्म संन्नलाव्यो के, जेधी तेन सर्वे बहु संतोष पाम्या, देशना पूर्ण श्रया पढ़ी राजा पोताना मंदिर प्रत्ये जश्ने हर्ष पामतो तो स्कंदक गुरुनी वारंवार प्रशंसा करवालाग्यो. अवसर मलवाथी इष्ट बुझिनो पात्र अने उरात्मा पालक पुरोहित रात्रीने वखते नूपतिने एकांतमां लइ जश्ने कहेवा लाग्यो. “हे राजन् ! आ कु. साधुन . हुं तेननु वारंवार शुं वर्णन करूं? महाराज! आप तेन्ना इष्ट हाने नयी जाणता. सांत्नलो. घोर एवा कष्टकारी व्रतने पालवामां असमर्थ एवो ए सूरि को राजा , ते तमारां राज्यने गृहण करवानी श्वाथी अहिं आवेलो. वली तेनी पासे रहेला शिष्यो रात्रीये एकांतमा उत्रिश प्रकारनां आयुधने धारण करनारा अने हजारो पुरुषोनी साये युः करनारा महासुन्जट . ज्यारे त्यारे अवकाश मलशे ते वखते गुणोश्री विश्वास पामेला तमने मारीने तेन तमारां राज्यने लश लेवानो निश्चय करी रह्या .” राजाए पुरोहितेने कां. “ ए केवल धर्मनो म्होटो आबर देखाय बे; परंतु अस्त्रनो परिग्रहे तो लागतो नथी.” पुरोहिते कडं. “ स्वामिन् ! जो आपने म्हारां वचननो विश्वास न होय तो त्यां आपनांज माणसोने मोकलीने तुरत तपास करावो.” राजाए मनमां कंश्क आश्चर्य पामीने पुरोहितनां वचननी प्रतीतिने माटे पोताना केटलाक सेवकोने एकांतमां शिखामण आपीने तुरत त्यां मोकल्या. साधुन अाईपोरसी करीने निश लेता हता एटलासां ते राजपुरुषो श्राम तेम शस्त्रनी खोल करवा लाग्या. पठी पृथ्वीने खोदीने नाना प्रकारनां शस्त्रोने लश् तेनए पुरोहितनी सारे राजसत्नामां आवी राजानी आगल सर्व शस्त्रो मूक्यां. नूपति शस्त्रोने जो पुरोहितनां वचनने विषे विश्वास पाम्यो अने कणमात्रमा अति क्रोधश्री राता नेत्रवालो बनी गयो. "हे ! ए कर पाखंझियो मने मारशे अने म्हारां राज्यने लश्लेशे ? अहो ! आ एमनी कांच म्होटी वात देखाय !” दावानल अग्मिनी पेठे बलता दंमकानिये आम बोलता बता विचार कस्या विनाज दुरात्मा पुरोहितने आदेश कस्यो के, "श्रा Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३५) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. रात्मा मुनियो हवणां में तनेज सोप्या ने, माटे ए इष्टोने तुं त्हारी मरजीमु. जब शिक्षा कर.” पठी “पूर्वे म्हारां हृदयने फेमी नाखनारा मुनियोनो हुँ नाश करी ना." एम विचार करतो ते इष्ट भनवालो अने परम अधर्मी पालक पुरोहित, त्रण जगतने पूज्य एवा निरपराधी सर्वे मुनियोने वध स्थानके लाव्यो. वली विपरीत आत्मावालो ते त्रण जगतना सुहृद् एवा मुनियोने शत्रु मानतो तो जेम जेम तेन पीमा पामे तेम तेम नपायो करवा लाग्यो. ' , अधम एवा पालक पुरोहिते स्कंदकाचार्यने कां. “ ते अवसरे जे ते पोतानी सन्नामां म्हारो तिरस्कार कस्यो हतो तो आजे हुं त्हारो नाश करीश." पालके आवां कठोर वचन कह्यां तो पण सूरितो कमा धारण करी बेसी रह्या. पनी पापी पुरुषोमां अग्रेसर एवा पालके अनुक्रमे ते सर्वेमुनियोने घोर एवा तिलयंत्र (घाणी )मां नाख्या. अरे! प्रावी घोर निर्दयताने धिक्कार थान धिक्कार थान !! पठी “जिनेश्वरनुं वचन मिथ्या न होय." एम विचार करता एवा स्कंदकाचार्ये पोताना सर्वे शिष्योने आ प्रमाणे कमानो प्रतिबोध कस्यो के, " अहो ! धीर तपस्वीयो ! तमे सौ श्रेष्ठ एवा क्षत्रिय कुलमां नत्पन्न थया ठो, माटे आज तमे नावशत्रुनी साधे युद्ध करो. आ इष्ट पालके करेली बहु घोर वेदनाने खमावो. कारण के, नरक नवने विषे आधी अनंतगणी वेदनान सहन करी ठे, अहो ! तमे एक मुहूर्त मात्रना कष्टथी अनंत सुख संपत्तिमय सर्वोत्कृष्ट मुक्तिने मेलवो.” गुरुनी प्रावी शिक्षा सांनलीने अधिक मनोवलवाला सर्वे मुनियो यंत्रमा पीलावाथी श्रयेली पीमाने सहन करवा समर्थ श्रया. अनुकमे मुक्तिरूप मंदिरनी निसरणीरूप कपकश्रेगणी प्रत्ये आरुढ श्रयेला ते सर्वे मुनियो अंतकर केवली श्रया. आम सर्वे मुनी शे जावधी सिक्षिपद पाम्ये ते फक्त एक कुल्लक शिष्य अने स्कंदकसूरि पोते ए वे जरा वाकी रह्या. पठी पुरोहिते ते कुल्लक शिष्यने यंत्रमा पीलवा माटे लीधा एटले कुल्लकना मोहश्री खेचायेला सूरिये पालक पुरोहितने कहूं."तुं पदेलो मने पील. कारण के, हुं तेनी पीकाने म्हारी दृष्टीथी जोवा समान श्री."मुनिनांयावां वचन सान्नलीने पठी "एनी आगल या वालकनो घात कवाश्री तेने बहुःख श्रो.” एम धारी पालक पुरोहित ते कुल्लकने प्रश्रमजीताना मां नाग्वीने पोल्यो एटले नत्पन्न अवेली यात्मधैर्यनेलीधे जेणे पोतानासो दटा. Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री स्कंदकसूरिनी कथा. (३३३ ) ; नो कय कस्यो हतो एवो ते बालमुनि केवल ज्ञान पामीने तत्काल मोझपदने पाम्यो. अहो ! लोकमां जेमना अर्यो सिह थया ने एवा पुरुषो पीमा पामी. ने खलरूप बनी जाय डे अने पीमा पामेला ते म्होटा सिह अर्थवाला पुरुषो आश्चर्य नत्पन्न करे . " अहो ! आ दूरात्मा ते केवो ? के, जेणे एक बालमुनिने पण गेमी दीधो नहि." आवा कोपथी ते महान् आचार्यने अशुन परिणाम नपन्यो. पली पीमा पामेला ते सूरीश्वरे बहु कोपथी देश, पुर अने नूपति सहित पालक पुरोहितने बाली नाखवानुं नियागु करो. कुंनकार नगरमां आवं उष्टकर्म अवाथी सवारे जाणे जगत्ना स्वामी एवा सूर्ये ते न. गरने न जोवानी श्वाथी पोतानां नेत्रने बंध कस्या होयनी ? एम सर्वे दिशान रजयी बहुज मलीन अइ गइ अने मांसनो आहार करनारा पदियो आका शमां नमवा लाग्या. . हवे आकाशमां नमती को एक समलीये, पृथ्वी नपर पमेलाअने रुधिर थी खरमायेला श्री स्कंदकसूरिना रजोदरणने मनुष्यना हस्तनी ब्रांतिथी श्रादरपूर्वक नपामयो. अनुक्रमे ते समली नमती नमती जेटलामां दंमकाग्नि राजानी स्त्री पुरंदरयशा के, जे स्कंदकसूरिनी व्हेन यती हती तेना मंदिर नपर गश्तेटलामां तेनां मुखथी ते रजोहरण पमी गयो. प्रथमधीज नहेग पामेला । मनवाली ते पुरंदरयशा पोतानी आगलज पमेला वजसमान रजोहरणने तु। रत हाथमां लश्ने बोली के, “अहो ! मेंज आपेला रत्नकंवलथी विंटालेलोया म्हारा नाश्नो रजोहरण अहिं क्यांची आव्यो ? अरे ! ते लोहिथी खरमाएलो केम ? अने वली आकाशमांथी क्याथी पस्यो ?" पी पुरंदरयशाए सूरिनी शोध करावी तो तेणे दूतनां मुखथी तुरत सर्व वात जाणी एटले तो ते. खने लीधे पोतानी गतिने कूटती मूळ पामी गइ. मूर्चा निवृत्त थइ त्यारे पृथ्वी नपर आलोटती, रुदन करती अने वारंवार निशासा मूकती गदगद् वचनवमें राजाने कड़वा लागी. “अरे ! तमे आवं घोर पापकर्म शा माटे आचरयुं के जे पवित्र एवा साधुन पुरोहितने मारवा माटे सोप्या.” राजाए रात्रीन पाखं(वृत्तांत कडं एटले पुरंदरयशाए का के, " हा हा नरें ! जिनधर्मना है. म्होटीग पुरोहिते तमने तस्या ठे. निरंतर नत्तम साधुनने विषे व राखनाताल पुरोहितेज आ सर्व कपट करघु ने एम जाणो. हे नूपति ! पिताए प्रा Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३४ ) ऋपिमंगलवृत्ति - पूर्वार्द्ध. पेलुं पोतानुं राज्य पण त्यजी दइ जेणे शीघ्र चारित्र अंगीकार कर बे, ते तमारां राज्यने शा माटे लेशे ? धिक्कार वे धिक्कार वे तमारा शून्य चित्तपणाने ! ! अने धिक्कार बे धिक्कार बे तमारा दुर्बल एवा कानने ! ! ! जे तमे क्रूरं / देशी ए पुरोहितनी पासे साधुनने मराव्या. अरे ! जेणे अग्निहोत्रनी पेठे 'दयारूपी गुणाने अग्निमां वाली नाख्या बे ते पापी पुरोहितनुं नाम पण केम लेवाय ? हे नृप ! वधारे शुं कहुं जे थवानुं दतुं ते ययुं; परंतु निश्वे देश सहित तमारो थोमा वखतमां नाश थशे. अरे ! पोताना बंधु स्कंदकनो व्यर्थ वध सांजलीने पोताना मंदिरमां जीवती रहेली पुरंदरयशाने ( मने ) धिक्कार 1 धिक्कार वे !! " आ प्रमाणे शोक करती एवी ते राणीने श्री अरिहंत प्र जुनी मान्यकारी एवी साशनदेवीये त्यांथी नृपामीने तुरत श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनेश्वर पासे मूकी. त्यां ते विरक्त चित्तवाली राणीये अरिहंत प्रभु पासे व्रत अंगीकार कर. योग्यज बे, सत्पुरुषोने केवल संसांरना त्यागने माटेज वैराग्य उत्पन्न थाय बे. दवे स्कंदक मुनि, पोते करेला नियाणाथी अग्निकुमार देवतांने विषे संपूर्ण पर्याप्तिवालो एक मूहुर्त्तने अंतरे देवता थयो. दिव्य पलंगथी उठेला ते देवता अवधिज्ञानी पोतानो पूर्वजव जोयो, तेथी ते बहु क्रोधातुर थयो. पठी क्रोधरूप अग्निश्री प्रलयकालना अमिनी पेठे प्रति ज्वाजल्यमान एवा ते देवताए तुरत कुंभकार नगरप्रत्ये श्रावीने मेघनी पेठे खेरना अंगारानी वृष्टि करी, जेश्री देश तथा नगर सहित दंरुकानि राजा स्मरूप थयो. अहो ! अ 'वर्सी पुरुषांना कुसंगथी म्होटा पुरुषोनो पण नाश थाय बे. वराक एवो पालक पुरोहित अभिवमे जस्मीभूत यज्ञ नरके गयो. आहा ! पाप वृत्तिवाला जीवो पोताना अने परना मृत्युने थें थाय वे. अहो ! जेम स्कंदकसूरि आपत्तिने विषे पण पोताना शिष्यो सहित कमाधारी यया, तेम उत्कृष्ट मोक्ष सुखनी स्पृहा करनारा वीजा श्रेष्ठ साधुनए पण तेवाज (कमाधारी) वुं. ॥ इति स्कंदकसूरिनी कथा ॥ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्तिक शेनी कथा. (३३५) दछुण अन्नतिनिय-पराजवं जवजयान नविग्गो ॥. नेगमअठसहस्से-ण पमिवुमो कित्तिनसिही ॥३॥ . पवन मुणिसुवय-सामिसगास म्मि बारसंगविक ॥ . बारससमपरिआनं, सोहम्मे सुरवई जान ॥२३॥ अर्थ-अन्यतीनियोथी श्रयेला पोताना परान्नवने जोइ संसारना जयश्री नग पामेलो, एक हजारने आठ वणिक पुत्रो सहित श्रीमुनिसुव्रत स्वामी पासे दीक्षा लेनारो, हादशांगीनो अभ्यास करनारो अने बारवर्ष पर्यंत दीक्षा पर्यायवालो कार्तिक शेठ, सौधर्म देवलोकने विषे सुरपति (इं)थयो. २२-२३. पृश्न-चौदपूर्वधारीनो जघन्यथी पण लांतक देवलोकने विषे अवतार श्रवो जोइए-जेने माटे “ तमिव चनदपुविस्स" एवं प्रमाण आपेलुं ने उता आ कार्तिक शेठ, सौ धर्म देवलोकने विषे इंश केम थयो ? उत्तर-चौद पूर्वीना अभ्यासीनने पण प्रमादधी काश्क विसरी जवायी परिकर्म, सूत्र, पूर्वानुयोग, पूर्वगत अने चूलिका ए पांच दृष्टिवादना नेदो तो दोयज़ ने. कारण पूर्वगतमां चौद पूर्व रहेला ले माटे, एम बन्ने स्थाननां अध्ययनने विषे पण दृष्टिवादना पाग्थी दश पूर्वना अध्ययनने विषे पण चौद पूर्वीपणानो संन्नव श्राय जे. एमां का विरोध नथी. ॥कार्तिक शेठनी कथा ॥ पुण्ये करीने पवित्र तथा कल्याणकारी हस्तिना पुरी नामे नगरी, त्यां श्रेष्ठ समकितनां पात्ररुप, एक हजार अने पाठ श्रावक पुत्रोए सेवन करेलो, राजाने तथा बीजा वेपारीने बहु मान्य एवो कार्तिक शेठ नामे वेपारी वसतो इतो. वली ते नगरमांबीजोको गंगदत्त नामे महा धनवान् शेठ रदेतो हतो. तेणे अवसर मलवायी श्री मुनिसुव्रतस्वामी पासे दीक्षा लीधी इती. हवे ते नगरमां गैरिक नामे को तपस्वी आव्यो. ते निरंतर मासक्षपगने अंते पारणुं करतो इतो. नगरवासी लोको पण नक्तिपूर्वक पोताना घेरथी आवीने मासकमाना पारणाने अवसरे “ हुं पेलो हुं पेलो" एवा आमदयी तेनुं निमंत्रण करता. पारणाने वखते नगरमा आवेला ते तापसने Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३६ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्ध. जोsने नगरवासी लोको तेने आदरथी बहु बखाएणता. लोको तेनी श्रा प्रमाणे. करता; परंतु कार्त्तिक शेठ तो ते मिथ्यादृष्टि अज्ञान तपवालो दोवाश्री तेना सामुं पण जोतो नहि. पबी ते तापस, पोताने नहि नमता एवा / कार्त्तिक शेठने जाणीने बहु क्रोध पाम्यो. कह्युं वे के - जैनसाधुन विना बीजाने विषे क्षमा गुण क्यांथी होय ? एक दिवस ते तपस्वीये पोतानी तपोशक्तिश्री त्यांना राजाने वश कस्यो; तेथी ते पोते पारणाने अवसरे तपस्वीने नोजनने वास्ते आमंत्रण करवा आव्यो. तपस्वये कह्युं " हे पृथ्वीनाथ ! हुं त्यारेज तमारा घरने विषे पारणुं करीश के, ज्यारे कार्त्तिक शेठ मने पीरसवा आवे. " राजाए ते वात कबुल करी तत्काल कार्त्तिक शेठना घरने विषे श्राबीने तापसनो निग्रह तेने कही बताव्यो. पी तत्त्वने जाणनार ने विशेष बुद्धिवंत एवा शेठे भूपतिने कधुं. " हे स्वामिन् ! अन्यतीर्थियोने विषे सत्क्रिया करवी योग्य नथी, तोपण दे राजन् ! हुं थापना नगरने विषे रहुं हुं, माटे आप जे श्राज्ञा करो ते म्हारे करवीज जोइए. कारण के, राजानो प्रदेश बलवान् होय बे." शेठे राजानुं वचन मान्य करधुं एटले प्रसन्न येलो भूपति सेनासहित तुरत पोताने घेर आव्यो. पती मध्यान्हने वखते तपस्वी, राजाना घरे पारणुं करवा ग्राव्यो त्यारे समयनो जाए एवो शेठ प त्यां श्राव्यो. राजाए मूकेला प्रासन उपर तापस बेगे एटले राजानी प्रज्ञाश्री शेठे तेने मिष्ट भोजन पीरस्यां ज्यारे श्रा शेठ पीरसतो इतो त्यारे ते तापसे " में तने नमाव्यो वे. " एम उंची आंगली करीने तेनो तिरस्कार करयो एटले शेठ विचारवा लाग्यो. " धिक्कार वे धिक्कार बे म्हारा जन्मने तथा जीतिने के, जे में या कुलिंगिनो सत्कार करीने म्हारा सम कितने मलिन करयुं. एले जे म्हारो पराभव कस्यो ते मने दुःखकारी नथी; परंतु ए जे अरिहंत धर्मनी निंदा करे वे ते मने बहु साले वे. अहो ! धन्य अने पुण्यवंत तो गंगदत्त शेग्ज वे के, जेणे गृहस्थधर्म त्यजीने श्रवसरे दीक्षा ग्रहण करी बे. जो में पण संसार जयने नाश करनारी दीक्षा ग्रागलश्री लीघी होत तो हुं आ प्रथम तापसी पराभव पामत नहि. दवे म्हारे या परस्वाधिन ने पवित्र एवा गृहवासश्री सरयुं.” या प्रमाणे कार्त्तिक शेठ बहु वैराग्य पाम्यो. पठी नाम जमीने गयो एटले होते राजानी विनंती करी के, “हे स्वामिन्! मने L, Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्तिक शेरनी कथा. (३३७) आशा आपो के, जेथी करीने हुं संयम लनं." बहु आग्रहथी राजानी आझा ल संसारथी निस्पृह थयेला ते कार्तिक शेठे जैनमंदिरोने विषे अहा महो. त्सव कराव्या. चार प्रकारना संघने नाना प्रकारनां दानथी सर्व प्रकारे संतोष पमामी दीनजनाने पण कृतार्थ करवा. वली सातत्रने दिपे पण पुष्कल व्य वापरयु. एवामां तेना नाग्ययोगयी त्यां श्री मुनिसुव्रतस्वामी समवसस्वा एटले एक हजारने आठ वणिक्पुत्रोनी साये तेणे प्रत्नु पासे चारित्र अंगीकार करयु. अनुक्रमे ते स्थविरसाधुन पासे हादशांगीनो अभ्यास करतो गीतार्थ थ अने बार वर्ष पर्यंत उत्तरगुण चारित्रने पाली सौधर्म देवलोकने विषे ऐश्वर्यनां पात्र रुप इंश् अयो. हवे पेलो तापस पण क्षणी आनियोगिक कर्मने नपार्जन करी तेज सौधर्म देवलोकमां ऐरावत नामे आन्नियोगिक देव अयो. कोई एक दिवसे इं३ " हे देव ! तुं म्हारे बेसवा योग्य अति श्वेत कांतिवाटुं हाथीनुं रूप कर.” एम ते ऐरावतने आज्ञा करी; परंतु ते देवताए अवधिज्ञानश्री पोतानो तापसरुप पूर्वनव तथा इंश्नो शेठरूप पूर्वन्नव जाण्यो; तेथी तेणे गर्वने लीधे हाथीनुरूप न करयु. इंडे वारंवार कर्वा एटले ते देवताए इंश्ना पराक्रमने न जाणता हाथीनां बे रूप विकुव्या. पठी इंश पण तुरत पोतानां वे मनोहर रूप करी तेना नपर बेगे. वली ते देवताए इंश्ने ले. । तरवा माटे पोतानां चार रूप कस्वां. तो इं६ पण नत्तम एवां तेटलांज रूपो करीने तेना नपर बेगे. देवताए वारंवार पोतानां रूपो वधारवा मांड्या एटले इंद, क्रोधथी विचारवा लाग्यो के, “ मृत्यु पामवाने श्चतो आ हाथी शुं मने बेतरे ? " पठी अवधिज्ञानना नपयोगथी जोयुं तो इं हाथीने पूर्वन्नवनो तापस जाण्यो एटले तेणे पोताने बेतरवानी इछा करता ते हाथीने हावा माटेहाथमां वज्र लीधुं."तुंबल करे , माटे हवणां आ वजथी तने मारूं." एम इंडेकडं एटले ते ऐरावत देवताए पोतानी कपट क्रीया त्यजी दीधी. पही ते ऐरावत महा हाथी सरलगतिवमे निरंतर इंना क्रीमाविहारना कौ__तुकने पूर्ण करवा लाग्यो. प्रथम गृहवासमां सम्यक्त्वपूर्वक देशचारित्रने सारी रीतेपाली अने पनी हर्षपूर्वक चारित्रने पालतोते कार्तिक शेठ इंश पदने पाम्यो. ॥ इतिश्री कार्तिक शेठनी कथा ॥ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. मग्गिनगिरि मि सुको-सलेण वग्घीकनवसग्गेण ॥ पत्तं परमं ठाणं, कित्तिधरेण वि वरं नाणं ॥ २४ ॥ . अर्थ-मौजिल पर्वतने विषे सुकोशल नामना मुनि, वाघेणे करेला नपसर्गथी मोक्षपद पाम्या अने तेमना पिता कीर्तिधरे पण श्रेष्ठ एवा केवल झानने नपार्जन करयु.॥ २४ ॥ ॥ अथ कीर्तिधर तथा सुकोशल मुनिनी कथा॥ आ नरतक्षेत्रने विषे लक्ष्मीना निवास स्थानरुप साकेतपुर नगरमां सर्व स्थानके विजय मेलवनारो विजय नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने मेरु पर्वतनी चूलिका समान स्थिर बुध्विाली, निर्मल शीलरुप गुणलक्ष्मी श्री मनोहर तथा प्रेमनां पात्ररुप हिमचूला नामे स्त्री हती. तेनने काले करीने वजवाहु अने पुरंदर नामना श्रेष्ठ कांतीवाला अनुक्रमे बे पुत्रो थया. . आ वखते नागपुरमा प्रतापथी विख्यात एवोदधिवाहन नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने चूमामणि नामे प्रिया हती. तेनने रूपलदमीये करीने मनोहर एवी मनोरमा नामे पुत्री हती. मातापिताए ते कुमारिकानो संबंध साकेतपुरना महाराजा विजयना पुत्र वज्जबाहुनी साथे कस्खो हतो. पितानी आज्ञाथी कुमार वजवाहु, म्होटी सैना सहित नागपुर प्रत्ये जश्ने म्होटा नत्सवपूर्वक मनोरमाने परण्यो. त्यां सासराना आग्रहथी केटलाक दिवस रहिने. पठी ते कुमार प्रिया सहित पोताना नगर तरफ चाल्यो. दधिवाहन नूपाले पोताना नदयसुंदर कुमारने परिवार सहित मनोरमानी साथे मोकल्यो. पठी आनंदी तथा गुणी एवा सालानी, पोताना मंत्री तथा मित्रोनी तेमज मनोहर एवी प्रियानी साथे पोताना नगर प्रत्ये जतो एवो वजबाहु कुमार वसंत ऋतुना अवसरे कोश्क पर्वतना नद्यान प्रत्ये श्रावी पहोच्यो. त्यां ते पोतानी सेनाने पमाव करावी पोते सालानी तथा प्रियानी साथे वसंत क्रीमा . करवाने वनमा गयो. मधुरस्वरे स्पष्ट गीतगान करवायी, अखंमित वेणुवाद्य वागवायी, यति रूपवंत गणिकान विनयवमे नाचवाश्री, स्त्री मंगलाकारे गीन गावामां यासक्त श्रवाश्री वाव्यत्रीमा, जलकीमा अने पुष्पादिकनी Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीर्तिधर तथा सुकोसल मुनिनी कथा. (३३ए ) क्रीमाथी अत्यंत रमतो एवो वजबाहु कुमार बहु रागवंत थयो. आ प्रमाणे वनमा पोतानी मरजी मुजब क्रीमा करता एवा वजकुमारे अशोक वृदनी नीचे कायोत्सर्गे रहेला एक जीतेंश्यि मुनिने दीग. आम मुनिने देखवाथी वसंत क्रीमाने नुली गयेलो ते राजकुमार खरेखर मुनिनी ध्यानमुशनेज जोवा लाग्यो. निर्भय एवो नदयसुंदर कुमार मरजी प्रमाणे दीर्घकाल पर्यंत वनमां कीमा करी अने मुनिने वंदना करी पोताना आश्रम प्रत्ये जवाने पागे वल्यो; परंतु ते मुनिनी सामुं जोश रहेला वजबाहु कुमारने आ प्रमाणे कहेवा लाग्यो. “हे कुमार ! चालो. स्थिरनेत्र करी ए मुनिसामुंशुं जोश रद्या गे? तमे पण मुनीश्वर थवाना गे के शुं? अहो! तमे चारित्र लेवाना हो तो मने पण कहेजो के, जेथी हुँ पोताना पराक्रमथीज तमारो सहाय्यकारी (तमारी साथे व्रत लेनारो) थानं." नदयसुंदरनां आवां वचन सांजली तत्त्वनो जाण वजबाहु कुमार " अरे जम ! व्रत विना बीजुं शुं रम्य ?” एम कहीने परिवार सहित मुनिने नमस्कार करी त्यां बेगे. मुनिये पण तेमना नपर अनुग्रह करवाने माटेज कायोत्सर्गने पूर्ण करीने क्लेशनो नाश करनारी ‘धर्म देशना आपी. “हे मनुष्यो ! जन्ममरणादि क्लेशे करीने पूर्ण एवा आ संसाररुप समुश्मां वसता उतां तमे वसंतकीमा करवामां केम प्रीति पामो गे? जे मनुष्यो आ उर्खन एवा मनुष्यन्नवने पामीने धर्मने विषे प्रीति राखता नश्री अने केवल क्रीमा करवामांज तत्पर रहे डे तेन निश्चे नरकने विषेज जाय . अरे नव्यजनो ! तमे मनुष्यत्नव न हारी जान अने फट बोध पामो. वली सर्व विकाराने त्यजी द फक्त मुक्तिने माटेज नत्तम एवा व्रतने ग्रहण करो.” मुनिनी आवी धर्मोपदेशना सांजली अति वैराग्यवंत श्रयेला वजबाहु कुमारे पोताना शालाने कडं. “हे नदयसुंदर! हुं प्रव्रज्या लइश, माटे तुं फट म्हारो सहाय्यकारी प्रा.” नदयसुंदर कुमारे कडं. “ में तो हास्य करयु , माटे तमे हवणां चारित्र लेशो नहि." आम शालाए का एटले वजबाहु कुमारे फरीश्री का के, " जेम खाधेलु औषध रोगनो नाश करना थाय ने तेम हास्ययी अंगीकार करेलु अने नत्तम रीते पालेलुं व्रत पण मुक्तिने अर्थेज थाय ." नवोढा एवी मनोरमाए पण तपस्यानो निषेध करवारुप बहु वचन कह्यां; परंतु नत्तम एवा वजकुमारनी पेठे वजवाहुनुं मन Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४० ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. जरा पण जे पायुं नहि. पी उदयसुंदर विगेरे बत्रीश श्रेष्ठ पुरुषोना समूदनी साधे नवी स्त्री सहित वज्रबाहु कुमारे दीक्षा लीधी. पनी मंत्रीयोए साकेतनपुरमां प्रावीने कुमारनी दीक्षागृहण संबंधी सर्व वात विजयनूप तिने " कही, तेी ते भूपाल पोताना चित्तमां विचारवा लाग्यो के, “ धन्य वे ते व जवाहुकुमारने के, जेणे युवावस्थामां पण व्रत अंगीकार करयुं. अमेज मूर्ख वस्या के, प्रति वृद्धावस्था प्राप्त यया वतां पण जोगने विषे स्थिर रह्या. विजयनूपतिये मनमां आवो विचार करीने अने पछी पोतानां राज्यने विषे पुरंदर पुत्रने स्थापीने पोते संसार समुइने तारवामां नाव समान चारित्र अंगीकार कर. 35 दवे पुरंदर राजाने पृथिवी नामे अति मनोहर स्त्री हती. तेनने काले करीने एक कीर्तिधर नामे पुत्र थयो. अनुक्रमे ते पुत्र यौवनावस्था पाम्यो एटले ते पुरंदर पितानी प्राज्ञाथी हर्षपूर्वक कुन्नादेशना राजानी सहदेवी नामे युवान पुत्रीने परएयो. पुरंदर भूपतिये पण कीर्तिधर पुत्रने राज्य सोंपी दीक्षा लीधी. कर्तुं वे के-कल्याणनी इच्छा करनारा पुरुषोने तो पूर्वना पुरुषाए प्राचरेलो मार्ग श्रेयकारी बे. कोइ वखते राज्यनुं पालन करता एवा यशवंत की - तिघर राजा दिवसने विषे सूर्यनुं ग्रहण दीवं; तेथी ते नृपतिये पोताना सर्व मित्र, सामंत श्रने मंत्री योनी पासे " निचे या सर्व संसारिक वस्तु नाशवंत a. " एम क. पी नित्य सुख थापनाएं चारित्रने गृहण करवाने तैयार थ येला ते राजाने सामंत तथा मंत्री विगेरे मुख्य माणसो एकटा थइने कहेवा लाग्या के. " हे नरेश्वर ! हवणां तमारे व्रत लेवानो विचार करवो ते योग्य नयी. कारण के, राजा विना आ विशाल एवो देश तथा राज्य कलमात्रमां नाश पामशे. वली राज्यना नाशश्री लोकमां म्होटा अनर्थो पण बहु श्राय के, माटे हे नाथ ! तमारे पुत्र विना दवणां व्रत लेवं योग्य नथी. " पठी जोगथकी प्रति वैराग्यवंत येलो ते कीर्तिघर राजा, "हुं क्यारे चारित्र लइश. एम चितवन करतो तो राज्यनुं पालन करवा लाग्यो, अवसरे सहदेवी स पीये एक पुत्रने जन्म प्राप्यो; परंतु मंत्रीयोए ते गोपवी राखवाश्री राजाए पुत्रजन्म जाग्यो नहि. पी को वखते को पुरुषे राजाने पुत्रजन्मनी वात' की। एक पखवामीयं पूर्ण श्रये गजाए तेने दर्पश्री बहु प्रीतिदान श्र " Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीर्तिधर तथा सुकोसल मुनिनी कथा. (३४१) । प्यु. पगी पंदर दिवसना श्रयेला ते पोताना पुत्रने सन्नामां लावी राजाए "सु. कोशल" एवं नाम पामवा पूर्वक तेने पोतानुं राज्य आप्युं अने लघुकर्मी एवा पोते बहु नारे एवा आश्चर्यकारी चारित्रने अंगीकार करयु. पी सहदेवी राणी पोताना सुकोशल पुत्रने प्रेमपूर्वक पालवा लागी अने नगरवासी जनों पण तेने (सुकोशलने) राजा मानीने नमवा लाग्या. ज्यारे सुकोशल कुमार बाल अवस्थाने उलंघन करी युवावस्था पाम्योत्यारे ते गुणे करीने सुशोनित एवी को महाराजानी पुत्रीने परण्यो. पी सहदेवी विचार करवा लागी के, “आ म्हारा पुत्रना वमवानए युवावस्थामांज राज्यने त्यजी दइ दीकालीधी ने तो आ म्हारो पुत्र पण मालाधर्मनी पेठे युवावस्थामांज संयम लदमीने अंगीकार करशे. कारण अक्षा जोवाथी वधे . हवे हुँ निश्चे लिंगधारी मुनियोने तथा बीजा साधुनने पण नगरमां आववानुं बंध करुं के, जेथी करी म्हारो पुत्र कांपण धर्म न सांनले.” आ प्रमाणे विचार करीने सहदेवी राणीये नगर रक्कोनी पासे प्रथमज नगरमा रहेला धर्म कहेनारा सर्व साधुन काढी मूक्या तेमज बीजा नवा आवनारानने पग नगरमां आववानुं बंध करयु. कडंडे के-मोहरुप मदिरा मनुष्यनी पासे शुंशु नश्री करावती? अर्थात् बहु खराब कामो पण करावे . हवे को वखते पृथ्वी नपर विहार करता करता कीर्तिधर मुनि (सं. हदेवीना पति अने सुकोशलनो पिता) साकेत नगरप्रत्ये आव्या. त्यां नगरीमां प्रवेश करी मध्यान्हने वखते पारणाने माटे मार्गमां जता एवा ते मुनिने गोखमां बेठेली सहदेवीये दीगएटले तो ते राणी सगोत्री सुशोनित अने विश्वना प्राणीयो नपर दया राखनार ते मुनि नपर मत्सर धरवा लागी. वली " म्हारो पुत्र एने न मलो" एवा विचारथी ते राणीये पोताना सेवको पासे ते मुनिने प्रहार करावी तुरत नगरमाथी काढी मूक्या. “आ विटंबना सहदेवीये करावी ." एम जाणता उता पण मुनि कमाथी ते सर्व सहन करीने वनमा जश रहा. हवे अहिं सहदेवीये पोताना सेवको पासे मुनिने प्रहार देवराव्यो ते सुकोशलनी धावमाताए दी; तेथी ते कीर्तिधर राजर्षिना पूर्वना नपकारने स्मरण करती बहु रोवा लागी. स्नेहवंत सुकोशले ते धावमाताने रोवानुं कारण पूज्युं एटले धावमाताए तेने कj. “हे वत्स ! कीर्ति Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४५) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. धर मुनीश्वर त्हारा वहाला पिता श्राय .ते मासदमणने पारणे नगरमां निदा लेवा आव्या हता. तुं तेमनी साथे न जतो रहे एवी वायी आ त्हारी माता सहदेवीये ते महामुनिने मारी काढी मूक्या . हे वत्स ! हुं तेमना गुणोनु स्मरण करती उती रुदन करूं . हे कुमार ! ज्यारे तमे पंदर दिवसना हता त्यारेजतेमणेतमने राज्यासन नपर बेसारी दीक्षा लीधी अने ते दिवसथी ते मुनीश्वर आजेज आ नगरमां आव्या हता.” लघुकर्मी अने विवेकमान सुकोशल नूपति धावमातानां आवां वचन सान्नलीने तुरत पोताना श्रेष्ठ प. रिवार सहित वनप्रत्ये गयो. त्यां जेना शरीरे पुलकावली अश् हती एवो ते नूपति पोताना पितारुप साधुने प्रदक्षिणापूर्वक नतिथी नमस्कार करी तेमनी आगल वेगे. पी कीर्तिधर राजर्षिये आदरथी धर्मनो नल्लास करनारी वाणी कही. “हे नव्यपुरुषो! जन्म मरणादि कल्लोले करीने नरपुर एवा या संसाररुप समुश्मा असार एवा लोगोए करीने माणस जरापण तृप्ति पामता नश्री; तेमां पण दक्षिणावर्चशंखनी पेठे मनुष्य जन्म उर्खन डे अने तेमां विषयसुख विजलीना समान चंचल ले. आ संसारमा प्राणीयोने जन्ममरणादि घोर दुःखो प्राप्त श्राय ; माटे तत्त्वने जाणनारा पुरुषोए सर्व प्रकारे संसारनो त्याग करवो.” मुनिनी आवी धर्मोपदेशना सांजलीने प्रसन्न थयेला सुकोशल नूपतिये कडं. “हे तात! तमारा दर्शनथी आजे म्हारो जन्म सफल अयो. मने बालकने संसार संबंधी दुःख आपनारां साम्राज्यपदने विष मूकी शुं तमे पोतेज हितकारी एवा व्रतने अंगीकार करयुं ? हे पिता ! हुं बहु तरल्यो टुं, माटे हवणांज मने पोताना चारित्ररुप अमृतनुं पान करावो." या वखते दोदा लेवाने तैयार श्रयेला सुकोशल पुत्रने जाणी सहदेवी तुरत त्यां आवीने तेने कदाग्रह करी ना पामवा लागी; परंतु सुकोशल नूपातय कडं. “ जो हुं त्हारो वहालो पुत्र यूँ तो तु मने पवित्र एवा चारित्र लेवा माटे ऊट रजा आप." वली ते पोतानी स्त्रीने कहेवा लाग्यो. "हे कृशोदरी !तने गर्न , माटे पुत्र थाय त्यारे तेने मारांराज्यने विये स्थापन करजे.अत्यारे तुमन विघ्नकारी श्रशनहि."या प्रमाणे मातानी, स्त्रीनी, सामंतोनी अने मंत्रीयोनी सुग्वे करीने रजा लs तत्त्वने जागनार ए सुकोशल राजाए तेज वखते नत्सवधी चारित्र ली . पठी मोहरूप निजाए त्यजी दीधेला ते पिता पुत्ररूप बने मुनी Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीर्तिधर तथा सुकोसल मुनिनी कथा. (३४३ ) श्वरो निरंतर शुन्न ध्यान अने क्रीया करवामां नद्यमवंत श्रया. को वखते श्रेष्ठ एवा ते बने मुनीश्वरो, वर्षाकालने विषे मौजिल्य पर्वतना शिखर नपर का नकावली विगेरे बहु तप अने यवमध्यादि पमिमा करता उता चातुर्मास रह्या. पी कार्तिक मासनी पूनमना पारणाने विषे चातुमासिक व्रत पूर्ण करी गुपोथी गरिष्ट एवा ते बन्ने साधुन ते महा पर्वतथी नीचे नतरवा लाग्या. हवे आ वखते सुकोशल पुत्रना वियोगनी पीमाने नहि सहन करवाश्री तेनी माता सहदेवी मृत्यु पामीने वाघेण श्रश् हती. वली इष्ट चित्तवाली, नयंकर मुखवाली अने अनेक जीवोनो संहार करती ते, आ मौजिल्य पर्वतने विषेज रहेती हती. पर्वतना शिखरथी नतरता ते दयावंत बन्ने मुनीशेने पर्वतनी मेखलामा मध्यमां नमती एवी वाघेणे दूरथी दीग, पीपहोलुं करयुं जे म्हाद्वं जेणे एवी ते वाघेश नूखने लीधे बने मुनियोने लक्षण करवा दोमी. आ वखते तत्त्वनो जाण अने गुणी एवो सुकोशल मुनि सुन्नटनी पेठे कीर्तिधर पिताए वारंवार ना कह्या उतां पण वाघेणना परीसहने सहन करवा माटे पोतानी मेलेज आगल अयो. पठी रातानेत्रे करीने अति नयंकर वाघेण फाल देती त्यां आवीने मुनिने पामी नाखी तेना नपर चमी बेठी. वली ते मुनिना साथलना अतिकोमल मांसने खावा लागी. अहो ! (अज्ञानथी मूढ आत्मावालो जीव शुं पाप नथी करतो ? धिक्कार ले आवा क्रूर कार्यने !!! पली पासे नन्नेला कीर्तिधर मुनिये आवां अति मधुर वचनथी सुकोशल पुत्रने नत्साहवंत कस्यो. “हे वत्स! पूर्वकर्मना योगथीज आ तने दुःसह विपत्ति प्राप्त थ ले. तो हवे तुं ए विपत्तिने सहन करवामां पोतानुं सर्व पराक्रम फोरव.” धीरजवान सुकोशल मुनिये पण पोताना दृढ एवां अंतरमां प्रीयकारी ते नावनाने वजनी पेठे स्थापन करी, वली की निधर मुनि कहेवा लाग्या के, “ अनेक नवने विषे नमता स्नहवंत एवा तें बहु एकेदिजीवोना समूहने नदण कस्या . वली तें नरकने विषे एवां घोर दुःखोने सहन कस्या के के, जेनी आगल आ कुःख कोण मात्र ?”: महा मुनीश्वर सुकोशल आपतिमां पण एज प्रकारनी नावनाने नावतो तो अज्ञाननो नाश करनारी पकश्रेणी प्रत्ये चड्यो. अनुक्रमे ते तुरत निर्मल एवा केवलज्ञानने पामी अने जगतमा नुत्तम एवी मुक्तिरमणीने पाम्यो, वा Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. ► ( ३४४ ) घे " पण सुकोशल मुनिना साथलनुं मांस जक्षण करी ने पी पेटनुं, हा धनुं, खंजानुं अने मस्तक विगेरेनुं एम सर्व अंगोनां मांसनुं नक्षण करयुं. त्यार पढी ते वाघेणे, म्होढुं पहोलुं करीने बगासुं खाता सुवर्णथी जमित्र पोताना दांतनी पंक्ति दीवी. मांस भक्षणथी निवृत्त श्रयेली वाघेरा, सुवर्णजमि 25 दंत पंक्तिने जोती " निश्वे में कांइक दीतुं. " एम वारंवार पोताना चित्तमां विचार करवा लागी. नहापोह करता तेने पूर्वनो नव सांनस्यो एटले कीर्तिधरमुनि, तेने आदरश्री कहेवा लाग्या के, " हा सहदेवी ! तुं वाघेण यश न पशमवाला ने इष्ट एवा पोताना पुत्रना मांसने नक्षण करती बती शुं दर्ष पामे वे ? कीर्त्तिधरमुनिनां श्रावां वचन सांजली वाघेरा, सुकोशल पुत्रनो जाणे अत्यंत शोक करती होयनी ? एम पृथ्वी नपर, आलोटवा लागी." हा ! आ पुत्रने लालन पालन करी मेंज म्होटो कस्यो बे. वली निश्वे तेनाज वियोगथी हुं मृत्यु पामीने वाघे इ टुं. आ पवित्र बुद्धिवाला प्राणप्रिय पुत्रनुं में जक्षण करयुं. धिक्कार बे धिक्कार वे वे जवना विनाशकारी या दुष्टजातिना कर्मने !!! जो के हिंसक जीवो निरंतर वीजानने नकल करे बे; परंतु पोतेज पुनो नाश करनारी म्हारा समान वीजी पापीणी जगत्मां कोण दशे ? या प्रमाणे वाघेण पोताना मनमां खेद करती हती. एवामां कीर्त्तिधरमुनिये तेने कह्युं के, " हे जड़े ! या व्हारो जवज विषम बे के, जेमां पोतानुं होय ते पण शत्रुरूप समजाय बे. अखंकित एवा धर्मथे । मनुष्यपणुं मले बे. तुं धर्मविना यावी नीच गति पामी बुं. वली नाना प्रकारना जीवोना घातथी खट्टेखर तुं नरकगतिनेज पामीश. दवणां तुं सर्व जीवो उपर दया करवारुप धर्म अंगीकार कर के, जेथी अरिहंतधर्म ने स्वर्ग ए बन्ने वस्तुन तने प्राप्त थशे. " मुनिनां यावां वचन सांजली वाघेण वोध पामी, तेथी तेथे निर्मल बुद्धिश्री स्वर्गसंपत्ति आपनारुं अनशन लीधुं. आ वखते सुकोशलमुनिनुं सत्त्व बहुज रह्युं दतुं के, जेनी मोक्षप्राप्तिनी परा की र्त्तिधरमु निये अनुमोदना करी के, “अहो जव्य पुरुषो ! ए सुकोशलमुनिनुं न वर्णवी सकाय तेवुं आराधकपणुं जून के जे प्रथम दीक्षा लेनारा पितानी पण पहेलां मोक्ष पाम्यो " कीर्त्तिधर मुनीश्वर या प्रमाणे मनमां शुद्ध जावना जावतां वतां मोहपुरना मार्गरूप केवलज्ञान पाया. ते वखते देवतानए तेमनी पाने यावीने हर्पश्री लोकने प्रावर्यकारी Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंधकर ष्णि राजाना आठ पुत्रोनी कथा. (३४५) म्होटो केवल महोत्सव कस्बो. त्यां कीर्तिधरमुनिये नत्तम धर्मदेशना आपीने । पठी बहु कालपर्यंत पृथ्वी नपर विहार कस्यो. नाना प्रकारना उपदेश समू हथी अनेक नव्यजीवोने प्रबोध पमामी आयुष्यनो कय श्रये ते विशु आत्मावाला कीर्तिधर मुनि मोक्षपदने पाम्या. जेवी रीते सुकोशल राजर्षिसहित कीर्तिधर महामुनिये म्होटो उपसर्ग सहन कस्यो तेवी रीते बीजा श्रेष्ठ साधुनए पण पोताना देहश्रीज म्होटा नपसर्गो सहन करवा. ॥इति कीर्तिधर तथा सुकोशल मुनीश्वरनी कथा ॥ PAN का गुणरयणतवं, अन्न अकोहसागरप्पमुहा॥ वएिहसुआ संपत्ता, सिद्धं इक्कारसंगधरा ॥श्य॥ अर्थ-अंधकवृष्णि राजाना अगीयार अंगने धारण करनारा अक्षोन्य । सागर विगेरे आठ पुत्रोगुणरत्नसंवत्सर नामर्नुतप करीने सिपिदपाम्या.॥श्या अंधकवृष्णि राजाना आठ पुत्रोनी कथा. शौर्यपुरमा हरिवंशना मुकुटमणिरुप अंधकवृष्णि नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने धारिणी नामे स्त्री हती. तेन्ने विश्वमा प्रख्यात यशवाला श्रेष्ठ दश पुत्रो हतो. ते आ प्रमाणे ? समुविजय, २ अहोन्य, ३ स्तिमित, ४ हिमवान् , ए सागर, ६ अचल, उ धरण, पूरण, ए चंद, १७ वसुदेव. अंधकवृष्णि राजाना आ दशे पुत्रो पोताना कुलने आनंद करनारा, जगत्मां विख्यात पुरुषार्थवाला अने दर्शाह एवा नामथी प्रसिह हता. एक दिवस श्री नेमिनाथ पन्नु पृथ्वी पर विहार करता करता धारका नगरी प्रत्ये आव्या. त्यां तेमनी देशना सांजलीने बोध पामेला अहोभ्यादि आठ दशाोए दीक्षा लीधी. पठी ते गुणवंत मुनियो आदरणी अगीयार अंगनो अभ्यास करवा लाग्या. अनुक्रमे तेन गुणरत्न संवत्सर महा तप अने बीजां पण तप मोदने माटे करवा लाग्या. शोल वर्ष पर्यंत दीदा पर्याय पाली कपटरहित मनवाला ते मुनीश्वरो शत्रुजय पर्वत नपर जर, त्यां मासपर्यंत अनशन व्रत लइ, केवल ज्ञान पामी अने सर्व कर्मनो कय करी मोक्ष पाम्या, ॥इति दशाई कथा॥ Naram Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वाई. तं वंदे रहनेमिं, चनरोवरसया जस्स गिहे ॥ जो वरिसं बनो, पंचसए केवलीजान ॥ ५६ ॥ ( ३४६ ) अर्थ- जे चारसो वर्ष गृहस्थावासमां ने एक वर्ष बद्मस्थपणे रह्या तेमज जेम पांचसो वर्ष केवलपर्याय पाल्यो ते श्री रथनेमीने हुं वंदना करुं बुं. २६ श्री रथनेमिनी कथा. पश्चिम समुड़ना तीरे द्वारका नगरीमां बलन सहित कृष्ण राज्य करता हता. त्यां दशार्होमां मुख्य श्री समुविजय राजा रहेता हता. तेमने मोलक्ष्मी के हस्तकमलमां जेने एवी शीलने धारण करनारी शिवादेवी नामे स्त्री हती. तेने विश्वने आनंद करनारा, कुलने वंदन करवा योग्य, संसार समुना जयने दूर करनारा अरिष्टनेमि नामना महा जाग्यवंत पुत्र दता. शंखना लांचनवाला, त्रण ज्ञानने धारण करनारा स्नेहवंत अने गाढ मे - घना समान अथवा तो अंजनना समान कांतिवाला ए बाविशमा जिनेश्वर हता. बाल अवस्थामां पण क्रीमा मात्रवमे वृद्धावस्थाना जयंकर जयने जीती यादवकुमारोनी साधे प्रभु पोतानी मरजी प्रमाणे रमता हता. एक दिवस महा तेजवंत एवा प्रभु यादवना कुमारोनी साथे द्वारकामां क्रीमा करता बता कृष्णनी आयुधशालाप्रत्ये गया. त्यां द्वारपालोए सत्कार करेला ते अंदर जश्ने सिंहासन उपर गोठवी राखेलां कृष्णनां सर्व आयुधो जोयां पठी जिनेश्वर प्रजुए, ते शस्त्रो मांदेश्री त्रण खंगमां न वारी शकाय एवा म्होटा शत्रुनना समूहना मदने नाश करनारा सुदर्शन नामनां चक्रने पोताना हाथमां लीधुं अने तेने कुंभारना चाकनी पेठे लीलामात्रमां फेरव्यं. कौमोदकी गढ़ाने पण सामान्य लाकमीनी पेठे नपामी. जाणे महा मंत्रशक्तिवाला वादीये राफमामांथी सर्पनेज खेंची काढ्यो होयनी ? एम प्रजुए नंदक नामना खकुने म्यानमांथी वहार खेंची काढ्यो. त्यारपठी कमलनालःनी पेठे शार्ङ्गधनुष्यना दंमने स करी ब्रह्मांकने फोमी नाखनारो प्रत्यंचानो शब्द कस्यो, ठेवट जिनेश्वरे लीलाश्री पांचजन्य नामना शंखने पोतानां मुखने विषे धारण करी गाउ स्वस्त्री वगामचो. या वखते शंखना जयंकर शब्दश्री Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रथनेमिनी कथा. (३४७) समुझे मर्यादा त्यजी दीधी; नत्पन्न श्रयेला नयथी आकुलव्याकुल बनेला दिशानना हाथीयो त्रास पामवा लाग्या; शेषनाग कंपवा लाग्यो; सकल ब्रह्मांक शब्दमय थइ गयुं अने ब्रह्मा पोतानी ध्यानकलाने त्यजी दा "आ शुं प्रयु?" एम कहीने विस्मयथी विचारवा लाग्या. वली त्रास पामेला मदांध हाथीयो तुरत वेगथी आलान स्तंनोने नखेमी नाखी आम तेम नासवा लाग्या अने जय पामेला नत्तम घोमान पण पक्षीयोनी पेठे चारे तरफ फालो देवा लाग्या. कृष्ण अने बलन्नइ विना बीजा सर्वे राजान, शंखनाशब्दयी अत्यंत नयन्नीतथइने महामूर्चा पाम्या.नय पामेला कृष्ण पण पोताना बंधु एवाबलन्ननेकहेवा लाग्या के, “हे बंधो ! देवतानथी पण अस्पृश्य एवा आ म्हारा शंखने सहसा कोणे वगामयो?" बलन कह्यु. “ए शंख श्री नेमिकुमारे वगाड्यो .” पनी शंका पामेला कृष्णे फरीश्री कj. “ए शिवामातानो पुत्र खरेखर चक्रवर्ती अथवा तो अईचक्रवर्ती देखाय ने तो आपणे महा कष्टथी मेलवेलु राज्य ए लश् लेशे!” बलन कडं. “हे कृष्ण ! तुं जरा पण एवी शंका न कर. कारण ए चक्रवर्ती तेम अर्थचक्रवर्ती नथी; परंतु ते धर्मचक्रवर्ती बे. हे बंधो ! शुं ए नेमिनाथनु आवं अल्प पराक्रम डे ? ना ना कारण के, एतो कणमात्रमा पृथ्वीने त्ररुप अने मेरुपर्वतने दंगरुप बनावी दे तेवा बलवंत . अरे ! ए एवा बलवान् ने बतां निस्पृहीपणाए करीने कोश्नां राज्यने लश लेवानी श्वा करता नथी. एटलुज नहि पण ए एक स्त्रीना पण परिग्रहने स्वीकारता नथी." परी काश्क स्वस्थ श्रयेला कृष्णे नेमिनाथने आदरपूर्वक पोतानी पासे बोलावीने कडं के, “हवणां आपणे बन्ने जगा पोतपोतानान्नजबलनी परीक्षा करीए." नेमिनाथे कांश्क हसीने कडं. “हे कृष्ण ! कि ले चालो तेम करीए." पगी बन्ने जणा मल्लयुः करवाना स्थानके गया. आ अवसरे श्री नेमिनाथ प्रन्नुए मनमां विचारयुं जे, “आ कृष्ण म्हारा हायना प्रहारने शी रीते सहन करी सकशे ? आम धारीने तेमणे कृष्णने कह्यु के, “ मल्लयुइ करवाश्री सारुं न याय, माटे आपणे बन्ने जणा एकवीजाना हा. यने वालवाथी बालपरीक्षा करीए.” कृष्णे ए वात कबुल करीने पठी नोगलना समान पोताना जमणा दायने लांवो कस्यो एटले विश्वना नाथ एवा श्री नेमिनाये ते हायने लोलामात्रमा वाली दीधो. ठीकज . अनंत नुजव Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) ऋषिमंमलयत्ति-पूर्वाई. लवाला अरिहंतोनुं एवं बल होय तेमांशु आश्चर्य ? पी कृष्णे पोताना हाथने श्री नेमिनाथे वालेलो जोइने कह्यु, “हे बंधो ! हवे तमे पोताना हायने लांबो करो.” कृष्णनां आवां वचन सांजली जिनेश्वरे वत्र समान उर्नेद्य अने स्वर्गदंम समान विस्तारवंत पोतानो हाथ लांबो कस्यो. पठी कृष्णे श्री नेमिनाथना हायने नमावा माटे एक हाथ लगामयो; पण तेथी प्रन्नुनो हाथ जरा पण नम्यो नहि एटले तेमणे बन्ने हाथ तेज काममा लगाया. तो पण प्रन्नुनो हाथ किंचितूमात्र नम्यो नहि. पठी श्री नेमिनाथ प्रन्नुए कुतुहलथी तमालनां सरखी कांतिवालो पोतानो हाथ जरा उचो कस्यो एटले चपल अंगवाला कृष्ण, वृक्ष नपर वांदरानी पेठे नेमिनाथना हाथ नपर लटक्या. श्री नेमिनाथ प्रतुना हायर्नु आq बल जो संतोष पामेला देवतानए प्रसन्न श्रश्ने तुरत तेमना नपर पुष्पवृष्टि करी. पती श्री नेमिनायना आवा नुजबलनो अनुन्नव करीने मनमां अत्यंत आश्चर्य पामेला बुध्विंत कृष्णे विचारयुं जे, "अहो ! त्रण जगतना मदने नाश करनालं आवू नुजाबल बतां श्री नेमिकुमारनुं निस्पृहपणुं पण तेवूज ने के, जे ए एक स्त्रीने पण मनथी श्चता न• श्री तो पठी तेमनुं तुजवीर्य वनना फुलनी पेठे निष्फल जाणवू. जो के ए सर्व प्रकारे निस्पृह ये तो पण हुं उलथी अथवा तो बलथी तेमने एक श्रेष्ठ कन्या साधे पाणीग्रहण करावीश." आवो विचार करीने पठी कृष्णे नेमिनापने का. “हे वत्स ! तमे म्हारी साथे जलक्रीमानो नत्सव करो.” जि. नेश्वरे ते वात अंगीकार करी एटले हर्ष पामेला कृष्णे पोताना माणसो पासे नत्तम एक क्रीमावाव्य करावी. पठी अंतःपुरसहित श्री कृष्ण नेमिकुमारनी सारे दर्षपूर्वक जलक्रीमा करवा लाग्या. दीर्घकालपर्यंत जलक्रीमा करीने पठी अंतःपुरनी मध्ये आसन नपर वेठेला कृष्णे पवित्र चंदनश्री पोतानां शरीरने विलेपन करयु. पठी कृप्णना अन्निप्रायने जाणी सत्यन्नामादि आठ पट्टराणीयो मधुर वचनयी श्री नेमिनापने वारंवार कहेवा लागी." हे दियर! गुणोन। खाणरूप तमे समर्थ उतां असमर्थ देखा तो के, जे तमे एक एवी पण को मारी कन्याने परणता नश्री. या निर्वाण एवं तमाळं रूप अने मनोहर नामाय स्त्री विना खरेखर बनना कमलनी पेठे निष्फल जाय रे. झपन्नादि जिनश्वरोग पण प्रयम लोगोने लोगवी चारित्र लीधु ठे. तो दे नेमिनाथः । Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रथने मिनी कथा. (३४५) । तमे पण मट तेमनी पेठेज आचरो. अरे दियर! तमे युवान उतां आजसुधी मातानी पासेथी मागी खानारा गे कारण तमे कांश पण वस्तु जोश्ती होय तो शिवामातांनां मुख सामुं जून गे. तमे असाध्य एवा अमारा संकटने विषे पमेला गे, माटे पाणीग्रहण कस्या विना बुटवाना नश्री. नाग्य अने सौनाग्यवालो म्होटो श्रीमान् माणस पण श्रेष्ठ गुणवाली स्त्री विना प्रतिष्ठाने पामतो नथी. सर्व लक्षणथी पूर्ण कलावंत, स्त्री प्रिय अने गुणवंत बतां हे दियर! तमे लोगश्री केम अवला मुखवाला श्रया गे? तमे नगरीमा हमेशां स्याशादी कहेवान को उतां हवणां आ एकांतमा स्त्रीना हस्तने ग्रहण केम करो गे? अने प्रसिध्मिां एक कन्याना हस्तने शा माटे आदरपूर्वक ग्रहण करता नयी ? हे म्होटा मनवाला ! तमे एक श्रेष्ठ रुपवंती कन्यानो पाणीग्रहण करीने वृक्ष एवा मातापिताने शा माटे आनंद नथी उपजावता?" श्रा प्रमाणे कहेतीयो अने जेमना केश पृथ्वी नपर पथराइ रहेला ह. ता एवी ते श्रीकृष्णनी पट्टराणीयो श्री नेमिनाथना चरणकमलने विषे पमी. आ अवसरे कृष्णे आदरपूर्वक कयु. “हे बंधो ! हवे तमारे कदाग्रह करवो योग्य नथी." पठी बलन कहेवा लाग्या के, “नाइ! जून तो खरा आ तमारा म्होटा नाश कृष्ण, बीजी हजारो स्त्रीयोनी साथे क्रीमा करे ने अने तमे तो स्त्रीश्री अवला मुखवाला श्रयो ठो. पूर्वे अनंत एवा तीर्थकरो पण प्रथम स्त्री, पाणीग्रहण करीने परी चारित्रलदमीने अंगीकार करनाराश्रयाने. हे वत्स! बीजा कुमारोने पाणिग्रहणथी प्रतिष्ठा पामेला जो तमारा मातापिताने तेमना मनमा बहु खेद थाय ले माटे विश्वने वहाला! तमे एक वखते स्त्रीना पाणिग्रहणनो म्होटो नत्सव करी पोताना मातापिताने श्रानंद पमामो.” बलन कही रह्या एटले कृष्णे पण फरी तेमज कहूं. आम कृष्ण अने बलन बन्ने जणा श्रीनेमिनाथने बहु आग्रहथी कहेवा लाग्या एटले दाहिएयरुप रथना समु अने इबित सुख आपनारा श्री अरिहंतःप्रन्नुये, कृष्ण बलनना वचनने अंगीकार करयु. पी आनंद पामेला कृष्ण परिवार सहित श्री नेमिनाथने साथे लश् हारका नगरी प्रत्ये आव्या. त्यां तेमणे पोताना पित्रा समुविजय राजाने “नेमिनाये विवाह करवानुं कबुल करयु ." ते सर्व निवेदन करयु. कृष्णनां आवां वचनथी समुविजय राजा म Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५०) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. नोहर एवी पोतानी स्त्री सहित बहु हर्ष पामीने कृष्णने या प्रमाणे कहेवा लाग्या. “ते अमारो सर्व मनोरथ पूर्ण करयो मे जेथी तुं अमारा कुलनो आधाररुप . तुं पोतेज विष्णु ने तो हवे अमे त्हासै केटलुंक गुणवर्णन क-/ रीए. पी समुविजय राजाए रजा आपवाश्री कृष्ण परिवार सहित पोताना घर प्रत्ये गया. त्यां ते अंतःपुरमा जश्ने सर्व स्त्रीयोने पूछवा लाग्या के, " श्री नेमिनाथने योग्य एवी कोश्ने कन्या होय तो कहो?" सत्यनामाए कां. “ हवणां रम्यगुणवाली, सती अने राजीमती नामनी नग्रसेन राजानी पुत्री श्री नेमिनाथने योग्य बे. कारण ए सर्व लक्षणयुक्त, सुंदर सर्व अंग. वाली अने सती होवाथी नेमिकुमारनेज योग्य ; परंतु बीजा कोइने योग्य होय एम नथी." पठी कृष्ण "आ योग्य संबंध मे." एम जाणीने हर्ष पा. मता परिवारने साथे लश् नग्रसेनना घर प्रत्ये गया. पी पोताने घेर आवेला कृष्णने सुवर्णना सिंहासन नपर बेसारी बहु प्रसन्न श्रयेला नग्रसेन नूपतिये तेमने मणि मुक्ताफलनी बहु नेटोआपीने संतोष पमामवापूर्वक हाथ जोमीने स्नेहयी विनंती करी के,“हे नाथ!आजे म्हारोमंगलकारी दिवस थयो तेम प्राजे हुं कृतार्थ थयो कारण के, जे आप पोतेज प्रसन्न अश्ने म्हारा घेर पधारया डो. हे देव ! कांश कार्य होय तो मने आशा आपो." नग्रसेननां आवां वचन। संतोप पामेला कृष्णे कडुं. “अहो ! नेमिकुमारने माटे तमारी अति मनोहर राजीमती पुत्रीनी याचना करवा हुं अहिं आव्यो . हे नूप ! आ योग्य संबंध तमे कवुल करो. वली तेम करवाथी विधात्रानो तेमने (नेमिकु. मार तथा राजीमतीने) वनाववारुप श्रयेलो श्रम सफल थशे." कृष्णनां आवां वचन सांजली अति प्रसन्न श्रयेला नग्रसेन नूपतिये निर्मल विवेकने प्रगट करता उता कृष्ण प्रत्ये कडं. "हे यानायक ! तमे आम मध्यस्थनी पेठे केम कहो गे? म्हारा संतान (पुत्रपौत्रादि ) अनेझ्यादि तमारुं न कहेवाय ? पोतानी वस्तु स्वीकार ता तमारे म्हारी प्रार्थना शी करवी होय ? हे नाथ ! जेम आपनी मरजी होय ते प्रमाणे शीघ्र करो. एक तो लोकोत्तर गुणवाला श्री नेमिनाथ म्हारी पुत्रीना पति अशे अने वीजु श्राप म्हारा घर प्रत्ये पाव्या तेथी हुँ जाणु के, निश्च म्हार। पुत्रीतुं पूर्वना शुन पुण्योयी नाग्य जागतुं प्रयु." आम विज्ञानया Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रथने मिनी कथा. (३५१) सुशोनित वचन कहेतां एवा नग्रसेन नूपतिने संतोष पमामीने कृष्ण समुविजय राजाना घर प्रत्ये आव्या. त्यां अति प्रसन्न एवा कृष्णे श्री नेमिनाथना विवाहने माटे राजीमतीनुं मागुंकस्यानीसर्व वात समुविजय राजाने कही. पठी हर्ष पामेला समुविजय राजाए कृष्णने कह्यु के, “हे वत्स ! निरंतर अमारी चिंता तने देखाय . हुं हमेशा स्वजनोमां जेवू त्हारं सौजन्यपणुं देखुं बुं तेवं बीजान्नु खरेखर स्वप्नामां पण देखतो नथी. मने श्री नेभिकुमार ना विवाह संबंधि जे मनोरथ हतो ते आजे तेंज सफल कस्यो डे." पठी कृ. __ण ते कार्य निवेदन करीने पोताने मंदिरे गया एटले समुविजय नूपतिये दैवज्ञ एवा कोष्टुकी निमित्तियाने बोलावीने लग्न पूज्यु. कोष्टुकिये कहूं. “हे राजन् ! हवणां सर्वदा श्रेष्ठ एवा लग्नोज . कारण के, विवाहादि लग्न कार्य फक्त चोमासामा यता नथी. पुण्यवंत म्होटा पुरुषोए पोताना कल्यापने माटे फक्त चोमासामा विवाहादि महोत्सवो न आरंनवा. वर्षातु वित्यां पी लग्न उत्कृष्ट गणाय ने, माटे तेमां (शियालामा) करेलुं विवाहादि कार्य सुख आपनारूं थाय जे.” समुविजय राजाए कडं."हे कोष्टुकि! तमे कहोगे ते सत्य , परंतु अमारुं नतावलनुं कारण सांनलो. श्री नेमिकुमारे विवाह न करवा संबंधि लीधेलो कदाग्रह हवणां कृष्णे स्नेहने लीधे गेमावी दीधो बे; परंतु जो ते योगीनी पेठे विरक्त प्रश्ने ब्रह्मचर्यादि क्रियानो आश्रय करशे तो पठी कोण गेमावशे ? माटे हे क्रौष्टुकि ! विलंब न करतां हवणांज लग्न जून. वली विधान पुरुषोए पण सारा काममां बहु विघ्नो कह्यां .” परी कोष्टुकिये तुरत राजाना आ देशनुं कारण ध्यानमालश्वर्षाऋतुमां लग्न मात्ररुप दिनशुहिने जोश कडं के, “श्रावण मासनी अजवाली बहने दिवसे सूयोदय वखते सुखकारी श्री नेमिनाथनुं विवाहकार्य करो.” समुविजय राजाए नैमित्तिक कहेळु लग्न प्रमाण करीने पनी ते कोष्टुकिनो वस्त्राभूषण फलादिक करीने बहु सत्कार कस्यो. पठी तेमणे नग्रसेन राजाने पण लग्नना खबर आप्या. त्यारवाद ते बन्ने घरोने विषे विवाहना नत्सवो चालवा लाग्या. मांमवान, स्वर्गनी देवांगना समान नृत्यो, मणिमय नूमियो, स्तनना अग्रन्नागमां सुशोजित पुतलीयो, चंवान अने आनंद आपनारा विचित्र दर्पणोथी दे. दीप्यमान तोरणो इत्यादि अनेक प्रकारनी रचनाश्री मनुष्योए ए बन्ने राजाना Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५२) ऋषिममलत्ति-पूर्वाई. घरोने शणगास्यां. नूपतियो आदरथी चित्तने प्रियकारी साकरना लामु तेमज सरस रसोइ तथा शाक विगेरे अनेक नोजनना पदार्थो बनावी कुटुंबना मा सोने जमामवा लाग्या. विविध प्रकारना वाजींत्रो पण प्रियकारी मधुर स्वरथी वागवा लाग्या, आ वखते चित्रवालां सर्वे घरो चारे तरफथी अनेक प्र-'। कारना अतुल मंगलोने विस्तारता हता. दशाई, दाशार्ह, बलनशदि यादवोना घरोने विषे अतिआनंदमय धवल शब्दो संन्नलाता हता.रात्रि दिवस पगले पगले नाटको यता हता. मधुर शब्दवाला गंधर्वलोको पण नत्तम गायनो करता हता. तेमज स्वान्नाविक रीते नगरीने बहु मनोहर बनावी हती. सर्वे दर. वाजानने पण जूदी जूदी जातना रंगोथी अने सुशोनित आन्नूषणोथी देदीप्यमान बनाव्या हता.. पठी नेमिनाथनो लग्न दिवस पासे आव्यो एटले महादर्षना नारथी सुशोजित श्री शिवादिमातान, देवकी विगेरे दाशार्होनी हजारो स्त्रीयो, हर्षित चित्तवाली रेवती विगेरे बलन्नानी स्त्रीयो, बहु प्रेमयी सुशोनित अने, जगत्मां नत्तम एवी रुक्मिणी तथा सत्यन्नामादि कृष्णनी स्त्रीयो, धावमातान अने वीजी अनेक स्त्रीयो, महा मुख्यवाला आजूषणोने धारण करी मंगलगीतोने गाती उती श्री नेमिनाथने पूर्वानिमुखे बाजोठ नपर बेसारीने पवित्र जलथी अनिषेक करवा लागी. पडी बलन्न, कृष्ण अने पांडवो श्री नेमिनाथना हस्त कमलने विषे नत्तम बाणो आपता उता आ प्रमाणे कहेवा लाग्या के, “हे विन्नो ! खरेखर तमेज पुष्परुप आयुधवाला अने रूपलावण्यना सौन्नाग्यनी संपत्तिथी त्रण जगत्मां विजय मेलवनार पंचबाण' कामदेव गे." पठी कृष्ण पोतेज श्री नेमिनाथना कंठने विषे हस्त वांध्यो ते एम सूचववाने के, राग रहित पुरुषने विषे शुं मूर्तिमंत एवो संसारनो राग प्रवेश करे खरो? अर्थात् नज करे. तेवीज रीते कृष्णे नग्रसेनना घरे जश्न' राजीमतिने पण स्पष्ट निमित्तनो अर्थ कही संन्नलाव्यो. पठी लगने दिवस चंदननां लेपथी श्रेष्ठ शरीरवाला, कल्पवृदनां, पु. प्पोयी मनोहर, दिव्य आनूपगोश्री सुशोनित अने उत्तम कोमल वस्त्रोने धा. गण करनारा श्री नेमिनायने समुविजय राजाए पोताना पट्टहस्ति नपर - पाटन. गोएन. श्राफर्षण. बसिकरण शने स्तंभन ए पांच कामदेवनां याणी छे. Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रथनेमिनी कथा. (३५३) बेसास्या. पठी पृथ्वी नपर चालता परिवार सहित दाशार्हनी, बलन्नर त| था कृष्णनी, कोटी कुमारोनी अने बीजा अनेक राजाननी साथे तथा आका शमां चालता देवताननी साथे श्री नेमिनाथ नग्रसेन राजाना घर तरफ चाख्या. पाउल दशाई, बलन अने कृष्णनी उत्तम सुशोनित आनूषणोने धारण करनारी तथा सुखासनमां बेठेली लाखो स्त्रीयो मधुर शब्दथी धवलमंगल गीतोने गाती ती चालवा लागी. श्रीजिनेश्वरनां मस्तक नपर स्पष्ट मुक्ताफलोथी सुशोनित नविन बत्र धारण करयु. जाणे श्री नेमिनाथना शरीरनी अंदरथीज साक्षात् गुणोनी पंक्ति निकली होयनी ? एम प्रन्नुना बन्ने पासे चंचल चामरोनी पंक्ति शोलती हती. प्रनुनी आगल सुखकारी वाजीशे वागता हता.तेमज गंधर्व अने मागध लोको दिव्य गायन करवामां तत्पर थया हता. वली “अखंमित सौन्नाग्यरूप अमृतना समुह, त्र जगतूनां नेत्रने आनंद पमामवामां चंप अने नज्वल एवा आ श्री नेमिनाथरूप चश्मा हवणां जेनो पति थशे, ते कन्या सर्व स्त्रीयोनी मध्ये धन्य अने त्र जगत्ने मान्य . वली निश्चे आथी तेनां पूर्वनां तपनुं फल प्रगट यु एम जाणवू." आम नगरवासी लोको वातो करताहता. आ वखते पृथ्वी नपर माणसो अने आकाशमां देवता माता नहोता. आ प्रमाणे म्होटी समृद्धियी हाथी उपर । बेठेला श्री नेमिनाथ प्रन्नु, नत्तम तोरणोधी सुशोनित एवा नग्रसेन नूपतिना घरप्रत्ये आव्या. पली जेटलामां पूर्वना आठ नवना मोहश्री श्री नेमिनाथने जोवा माटे नत्साहवंत श्रयेली, शृंगारथी सुशोनित आकृतिवाली, नत्तम आनूषणोने धारण करनारी वली प्रन्नुने आववाना रस्तामा वारंवार दृष्टि फेंकती अने हृदयमां वारंवार "श्री नेमि श्री नेमि" एम स्मरण करती राजीमती पोतानी सखीयोनी साथे गोखमां नन्नी हती तेटलामां म्होटा हाथी नपर बेठेला, पृथ्वी नपर कोटि यादवोथी अने आकाशमां कोटि देवताउथी विंटलायला श्री नेमिनाथ प्रन्नु तोरणे आव्या. श्री नेमिनाथ मनुने वारंवार जो ने राजीमतीने नत्कृष्ट आनंदनी संपत्तिथी रोमांच श्रवा लाग्यो, उग्रसेन पुत्री बहु कालपर्यंत रूपसंपत्तिथी अधिक एवा पोताना नविष्यना पतिने जोश्ने बहु हर्ष पामती ती मनमां विचारवा लागी. “नत्तम आचरणश्रीप- - , वित्र एवा अने जगत्मा श्रेष्ठ कहेवाता आ पति पोते आनंदणी लधु एवी मने Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वली रुवाणु जोशी हे शुल, ( ३५४) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. परणवा माटे अहिं आवे; परंतु म्हारूंपूर्वनुं पुण्य एवं नयी के,जे एनाग्यवंत पुरुष मने परणीने तत्काल देमकुशल पोताने घरे जाय. देव दानवोए प्रशंस करेला अने स्वर्गाधिपतियोए पूजेला आ वर क्या ? अने धान्यना क्रीमारुप अल्पगुणवाली तथा हीनलकणवाली हुं क्या?" आ प्रमाणे उग्रसेन पुत्र राजीमती जेटलामा विचार करे , तेटलामां तेनुं मार्बु अंग अने जमणुं ने फरक्यु. पठी ते राजकुमारीने पोताना शरीरने विषे क्रोध अने नगि नुत्पत्र थयो. वली रुवामे रुंवामे परशेवो पण तेवोज अयो. राजीमतीनी आवी अव स्था अने निरुत्साहपणुं जो तेनी सखीयो कहेवा लागी के, “ हे सखी अमंगल शांत शांत थक गयु, वली हे शुन्ने! बहु उष्ट विकल्पोथी तुं आर्व कम देखाय ?" राजीमतीये कां. “हे सखीयो! म्हारं माबु अंग अने जा मगुं नेत्र फरक्युं बे; तेथी हुँ जाणुं बुं के, मने आ शुन्न अवसरे कांश म्हो? अमंगल श्रो.हे स्नेहवंत सखीयो! एज कारणथी हुंआवी अवस्थावाली था ढुं." हवे आ वखते धर्मचक्रवर्ती एवा श्री नेमिनाथ्य जिनेश्वरे रस्तामांअनेक पशुनने जोक्ने तुरत सारथीने पूज्युं के, " अरे ! रस्तामां आ पशुनने शा माटे बांध्या ठे? के, जेन दया नपजे एवा दीन अने अदीन एवा शब्दो करे .” सारथीये नत्तर प्राप्यो के, “ए पशुननां मांसथी तमारुं गौरव करशे, एटलाज माटे ते शशलां विगेरे पशुनने अहिं एकगं कस्यां ने.” सारथीनां आवां वचन सांजलीने दयामय नेत्रवाला प्रन्नुए, करुणारसने सूचवनारी पो. तानी दृष्टि फेंकीने सारथीने कर्वा के, “अरे ! कयो उष्टबुध्विालो पापीमाणस, प्राणीयोने पीमा नपजाववारुप पाणीग्रहण करे ?" पठी दयाना समुह रुप जिनेश्वरे, ते मार्गमां बांधेलां जीवोने गेमी मूकीने अने आषाढ मासना मेघनी पेठे सांवत्सरी दान आपीने कृष्णे तथा इंशेए करेला महोत्सवपूर्वक त्रणलो राजकुमारो सहित चारित्र लीधुं. प्रतनी चारित्र लीधानी वात साज ली नत्पन्न थयेला हृदयःखथी पीमा पामेली सती राजीमती मूर्बाथी पृथ्व। नपर पमी गइ. पठी शीतल नपचारथी सचेत थ एटले ते राजपुत्री, महा दुःखयी पूर्ण थर ठती करुणस्वरथी विलाप करवा लागी, पोताना आत्मान। नींदा करती, आनंदरहित अने प्रनुना वियोगथी आकुलव्याकुल थयेली ते म डाननी " नेमि नेमि,"एम बोलती वारंवार मूळ पामवा लागी. पी उप्र: Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रथने मिनी कथा. (३५५) सेन नूपतिये त्यां आवीने मधुर वाणीथी कां के, “हे पुत्री ! तुं नेमिनाथनी दीदाथी शामाटे खेद करे ले ? हुं यादवोना बीजा राजानी साथे महोत्सवपूर्वक त्हारो पाणिग्रहण करावीश.” राजीमतीये कह्यु. “हे तात! हवे फरीथी तमे मने एवं कहेशो नहि. म्होटो अथवा न्हानो नूपति श्री नेमिनाथ समान क्याथी होय ? हे पिता ! जे त्रलोकना पति ने अने जेमने देव, दानव तथा मनुष्यो पूजे ने तेमनी तुल्यता बीजो म्होटो पण कयो नूपति पामी शके तेम ? जो के हवणां नेमिनाथेपोतानो जमणो हाथ मने आप्यो नथी, तो पण ते हुं ज्यारे व्रत अंगीकार करीश त्यारे खरेखर तेज पोतानो हाथ मने आपशे. सती राजीमतीनां आवां व्रतने योग्य वचन सांजली नग्रसेन राजा पोताना चित्तमां बहु हर्ष पाम्यो. पनी संसारना नोगथी विरक्त श्रयेली, खेदने नहि करती अने प्रन्नुना नामनो जप करती ते शुशीलवाली राजीमती पोताना घरने विषे रहेवा लागी. हवे नेमिनाथनो न्हानो नाइ रणनेमि के, जे युवराज हतो ते राजीमती सुपर स्पृष्ट बहु राग धरतो हतो, तेथी ते निरंतर वस्त्र, आभूषण अने पुष्पादि मनोहर नेट तेने मोकलतो हतो. राजीमती पण दियरबुझ्थिी रयनेमिये मोकलेली वस्तुने हर्षथी स्वीकारती हती. आयी तो ए रथनेमिकुमार राजीमती नपर वृथा बहु राग धरवा लाग्यो. एक दिवस नेमिनाथनो नाश रथनेमि राजीमतीने घेर गयो; त्यां ते हाश्य वचन बोलवा लाग्यो; परंतुतेरो राजीमतीनी कांश रुचि जाणी नहि. वली ते फरीथी पण हर्षथी राजीमतीना घरे आव्यो. आ वखते तेना विना बीजुं को घरमां न होवाथी ते, राजीमतीने कहेवा लाग्यो. “हे सुंदरी ! त्हारा अति सौनाग्यपणाना गुणथी वश्य श्रयेलो हुँ खरेखर त्हारा नपर बहु प्रीतिवालो थयो बु; माटे साक्षात्कपवेल समान तुं शीघ्र प्रसन्न श्रश्ने पाणिग्रहण कार्यथी म्हारी आशा पूर्ण कर. भावी समृद्धि, नविन यौवन, इष्टरूप अने सर्व गुणवाली तथा प्रेमवाली त्हारा समान प्रिया ए सर्व त्यजी देनारो म्हारो बंधु निश्चे अवलि बुध्विालो श्रयेलो देखाय जे. कारण बहु पुण्योथी नोगादि मले . हे राजपुत्री! हुं ते श्री नेथिनायनो बंधु अने गुणना समुप बुं, माटे प्रेमनां पात्ररुप म्हारे विषे त्दालं मन ऊट स्थापन कर." रयनेमिनी आवी वाणी सांजलीने सती रा. वस्तुने हर्षलताहतो. राहा राजीमती Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५६) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. जीमतीये, तेनुं कामदेवना हेतुरुप पूर्व- सर्व गौरवपणुं.जाण्यु. पी मेरुपर तनी चूलिकानी पेठे व्रतने विषे निश्चल एवी ते राजीमती जाणे सादात्र रस्वतीज होयनी ? एम कहेवा लागी." हे कपटि ! तुं विधान् पुरुषोम निश्चे नेतराएलो देखाय ? हे अज्ञानि ! कारण के, हुं प्रथमश्रीज धारेट पतिने वरी चूकी बुं ते तुं शुं नश्री जाणतो? आ नवमां तो म्हारे हार म्होटो बंधुज पतिरुप . माटे हे महाशय ! तुं आ सर्व दुष्ट विकल्पोने त्यज दे ! त्यजीदे !!” राजीमतीये आ प्रमाणे बहु कां; पण कामयी पीमा पामत ते रथनेमीये पूर्वना पापकर्मनी पेठे तेने विषे राग त्यजी दीधो नहि. वर राजीमतीये मदनफलना नदणश्री सुवर्णना पात्रमा नलटी करीने कयु के "हे रथनेमि ! तुं फट हर्षथी आ वस्तुने नक्षण कर.” तेणे कडं. “ हे सुं दर मुखवाली ! तुं आ शोक करवा योग्य शुं बोले ले ?” राजीमतीये कां श्क हसीने ते रथनेमिने का. " अरे राजपुत्र ! जे तुं पोताना बंधुए त्यर्ज दीधेली नीरस एवी मने श्छे ले तो तुं शुं वमेली वस्तुने इचनारो नथी?" राजीमतीनां आवां वचनथी बोध पामेलो रयनेमि, तुरत तेनी साथे पाणिग्र इणनी श्चाने त्यजी दर पोताने घरे चाल्यो गयो. " दवे वीजा दिवसे वरदत्तना घरने विषे श्री नेमिनाथे पारणुं करयु. ते वखते त्यां आकाशमां दिव्य वाजींत्रोना शब्दपूर्वक देवतानए सामावार क्रोम सोनैयानी वृष्टि करी. त्यार पठी प्रमाद रहित एवा प्रन्नु चोपन दिवस सुधी विहार करीने रेवताचलना नद्यानने विषे गया. त्यां तेमने आसो मासनी अमासने दिवसे सवारमां चित्रा नक्षत्रना चं ते अहम तपना अवसरे वेतसवृदनी नीचे शुक्ल ध्यान ध्यातां त्रण जगत्ना मनुष्यना नावानावने प्रकाश करनालं केवलज्ञान नत्पन्न थयु. प्रन्नुना सर्वे कल्याणकोने विषेख। वली रहेला नारकी जीवोने पण कणमात्र लोकोत्तर सुख प्राप्त थाय . पठी पोतपोताना आसन कंपवानी चोसठ इंशेए त्यां प्रावीने जिनेश्वर प्रन्नुर्नु समवरण रज्यु. सौधर्मेऽ पण त्यां प्रावी जगत्गुरुने नमस्कार करवा पूर्वक प्रा. दरटी आ प्रमाणे विनंती करवा लाग्यो. “हे नाय! आप आ समवसरणेने सुग्वे करीने पवित्र करो के, जेमां नव्यजनो तमारां मुखथी धर्मरूप अमृतनुं पान करे. " मोधमनी विनंतीनो स्वीकार करीने नविन एवा सुवर्णनां क.. Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रथने मिनी कथा. मलने विषे चरणकमलने मूकता तथा देवेंशेए “हुँ पेलो हुँ पेलो," एवा आग्रहथी आगल तथा पागल सेवन करेला प्रन्नुपूर्वधारे प्रश्ने समवसरणमांआव्या, त्यांतेत्रण प्रदक्षिणा करी तथा तीर्थपतिने नमस्कार करी सिंहासन नपर वेग.ते वखते आश्चर्यकारी रीतेप्रन्नुनुं मुख्य रूप पूर्व दिशा तरफ अने बीजा त्रण अहश्य रूपबीजी दिशामांप्रनुना प्रन्नावधी आश्चर्यकारीपणे शोलतांहता.परीरेवताचलना नद्यानपालके तुरत धारकामांधावीने प्रन्नुने केवलज्ञान नत्पन्नथयानी वधामणीकृष्णने आपी.कृष्ण वधामणीमांतेने सामाबार क्रोम रुपाम्होरापी. योग्यज. बीजानने तुष्टिदान प्रापवामांकृष्णनी रीत एवीज. पठी कृष्ण, बलन्ननी,दशा)नी, बीजा हजारो राजाननी अने कोटिकुमारोनी साये समवसरण प्रत्ये गया. त्यांकृष्णादि ते सर्वे, जगत्गुरुने प्रणाम करीने पोतपोताना योग्य आसने बेग. पठी श्री नेमिनाथ प्रन्नुए एवी रीते धर्मदेशना आपी के, जेयी अनेक नव्यजनो धर्मकार्यमां तत्पर अया. वली तेनमां वरदत्त नूपतिये तो बहु वैराग्यने लीधे बीजा अनेक राजान सहित श्री जिनेश्वर पासे दीक्षा सीधी. नग्रसेनादि दाशाहोंए तथा बीजा नूपतियोए श्रावकधर्म आदस्यो अने कृष्ण विगेरे आदरथी समकित पालवा लाग्या. राजपुत्री दक्षिणाये बीजी बहु स्त्रीयो सहित निर्मल लावधी श्री तीर्थकर प्रन्नु पासे चारित्र लीधुं. अदीन / वाणिवाला अने शुइ आत्मावाला वरदत्त मुनीश्वरे दश साधुन सहित प्रन्नुनां मुखकमलथी त्रिपदीने पामी बहु अर्थवाली झादशांगी रची. पी वरदत्तनी विनंती नपरथी प्रन्नुए ते हादशांगीने शुक्ष मानीने सूत्र तथा अर्थथी शुक्ष एवी ते झादशांगीने प्रमाण करी. पी देवेंशेए करेला महोत्सवपूर्वक मनुए वरदत्तादि अग्यार मुनीश्वरोने गणधर पछी पी.त्यारवाद अवसर मलवायी कृष्णे, त्रण जगत्ना गुरु एवाश्री नेमिनाथ प्रनुने पूज्युं के, “हे प्रनो! राजीमती तमारे विषे बहु राग शा माटे धारण करे ?" पग प्रन्नुए धन अने धनवतीथी आरंजीने पोताना पूर्वना आठ नवनुं वृत्तांत कहीने कृष्णनो सं. देह दूर कस्यो. पठी चार प्रकारना संघनी स्थापना करी धर्ममय जलवृष्टि करता उता जिनेश्वर प्रन्नु बीजा देशमा विहार करवा लाग्या, केटला वर्षों सुधी पृथ्वी नपर विहार करीने फरी प्रन्नु देवतानए परवस्वा उता फरी हारका नगरी प्रत्ये आव्या. प्रजुनु आगमन सांजली कृष्ण Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५८ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. विगेरे सर्वे यादवो जिनेश्वर प्रजुनी पासे श्रावी आदरथी देशनारूप अमृतनुं पान करवा लाग्या. या वखते एक फक्त वासुदेव विना सर्वे दाशार्दोए, रथम विगेरे समुद विजय राजाना पुत्रोए, बहु एवी कृष्णनी स्त्रीयोए अने कोटि कुमारोए वैराग्यश्री प्रभु पासे चारित्र लीधुं. संसारथी वैराग्य पामेली राजीमतीये पण पोताना बंधुवर्गनी रजा लइ अनेक स्त्रीयोनी साधे हर्षथी दीक्षा अंगीकार करी. पी रथनेमि मुनीश्वर पण वृद्धि पामती श्रावने स्थविर मुनिनी पासे सर्व क्रिया करवा लाग्या. तेमज सिद्धांत नलवामां आसक्त थ येली साध्वी राजीमती पण प्रवर्त्तिनी योनी पासे शुक्रिया करवा लागी. दवे को वखते रथनेमि मुनि, कांइ कार्य प्रसंगे बहार जता इता एवामां रस्ते वर्षाद वरसवा लाग्यो एटले सचित्त जलना जयश्री ते महा मुनीश्वर एक गुफामां पेठा था वखते राजीमती पण केटलीक साध्वीयो सहित श्री नेमिनाथ प्रभुने वांदवा माटे आवती हती. पोताना शरीर नपर वर्षादना बांटा परुवा लाग्याथी सर्वे साध्वीयो अपकाय जीवोनुं रक्षण करवा माटे जूदी जूदी गुफानुमां जा रही. राजीमती पण बहु अंधाराने लीधे गुफानी प्रत्ये अंदर रहेला रथनेमिने नहि जाणती बती दैवयोगथी तेज मदा गुफा ग. गुफा अंदर बहु विस्तारवाली होवाथी तेमां पोतानां जीनां थयेलां वस्त्रोने सुकवती तथा सुवर्ण समान नज्वल देहकांतिने विस्तारती राजीमतीने जोइ गुफानी अंदर रहेला, शरीरनी अंदर स्फुरी रहेला पूर्वना रागवाला ने का माथी पीमा पामेला रथनेमि बहु निर्लऊ बनी गया. अनुक्रमे त्यां गुफामां प्रकाश यो एटले राजीमतीये चारित्रने नाश करवामां उत्साहवंत श्रये - ला ते श्रेष्ठ मुनिने दीग एटले लकार्थी नम्र मुखंवाली ते महासती ऊट वस्त्र पहेरी तथा सर्व अंगने संवरी बहार वरसाद वर्षतो होवाथी त्यां गुफामांजनी रही. पठी वृद्धिपामती कला क्रिमाथी व्याकुल थयेला रथनेमि मुनि, पोतानी चतुराइने जस्मीभूत करता बता राजीमतीने या प्रमाणे कहेवा लाग्या. “सौभाग्यना साररूप, सफल अवतारवाली अने श्रेष्ठ मुखवाली हे राजीमती ! त्हारे विषे प्रेम धारण करनारो ते हुं रथनेमि बुं. हे जड़े ! मने जज, पूर्वनी पेठे म्हारी याचनाने वृथा न कर. संतुष्ट मनवाला आपले बन्ने जणा प्रथम मड़ा जोगश्री या युवावस्थाने कृतार्थ करीए अने पती वृक्षवः 1 " L Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री रथनेमिनी कथा. (३थए ) स्थामां जिनेश्वरे कहेला धर्मने शुभ नावथी पालिशं.” रयनेमिनां आवां कानने विषे शूल समान वचन सांजलीने पण मेरुपर्वतना शिखरनी पेठे स्थिर रदेली राजीमतीये कडं. “अरे मूढ ! तुं श्री अरिष्टनेमिनो बंधु तेमज शिध्य अश्ने निर्लऊनी पेठे म्हारी आगल सर्व प्रकारे कुल, शील तथा व्रतने विरोध करनारूं, मुक्तिमार्गने रोकनारूं तथा नरकमार्गने देखामनारुं आ शं बोले ? नोगो फक्त आरंन्नमांज मधुर, परंतु अंते तो बहुज कमवा लागे बे; माटे जो तुं आत्माने विषे स्पृहा राखतो होय तो तेथी विराम पाम. जो के तुं रूपथी कामने जीतनारो , यौवनथी पण तेवोज . वली त्हारी क्रीमा कृष्णथी अधिक ले तो पण हुं त्हारे विषे रुचि करती नथी. आ जीव नाशवंत स्वन्नाववाला, अति तुब अने अंते महा उःखकारी एवा असंख्य लोगोने जोगवीने पण तृप्ति पाम्यो नथी. जन्म जरा अने मृत्य रहित एवा शाश्वत सुख श्छनारा संत पुरुषो तो निरंतर पोताना आत्माने विषे शीलवतने पाले ने.हे साधो ! जरा विचार तो कर के, पूर्वे बे प्रकारना विषम रागाने त्यजी देनारा पुरुषो शीलवत लोपवाथी आ संसारने विषे नम्या . अरे सौम्य ! तुं पोताने स्वाधिन एवा जे जे नोगो जूए ने तेने तेने विषे जो आवी रीते हठथी प्रीति करीश तो तने धीरज क्याथी अशे, माटे एक एकांत सुखना स्थानरुप मोकनेज स्वीकारी बीजा कोश्ने विषे अनुरागवालुं मन न कर," राजीमतीनां आवां अमृतमय हितकारी वचन सान्नलीने रयनेमिये पोतानुं मन नूमिनी पेठे चारित्रने विषे स्थिर करयुं. पठी कामक्लेशने नाश करता बता ते महामुनि, पोताना शीलमय तेजश्री सूर्यनी पेठे शोनवा लाग्या. वली ते रथनेमिये “ मने मिथ्या दुष्कृत हो.” एम राजीमतीनी क्षमा मागीने चारित्रने विषे धीरजपणुं धारण करयु. पठी वैराग्यने पामेला ते बन्ने जणा नत्तमन्नावने लीधे एक वर्षमां केवलझान पाम्या. अनुक्रमे गुणना समुरुप ते बन्ने जणा पांचसो वर्ष सुधी केवलझान संपत्तिने नोगवी कर्मकयथी मोरुपद पाम्या. राजीमती अने रथनेमिये चारसो वर्ष ग्रहावास, एक वर्ष चारित्र अने पांचसो वर्ष केवलीपणे निर्गमन कस्या. हे नव्यजनो! त्रण जगत्ने विषे ब्रह्मचर्य व्रतने प्रसि: करनालं अने श्री नेमिनाथ तथा राजीमतीना संबंधथी पवित्र श्रयेद्धं रश्रनेमि मुनिनु चरित्र सांजली तमे विषया Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६० ) ऋपिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. शक्ति त्यज दइ निरंतर मोक्ष लक्ष्मीना कारणरूप अने संसारने नाश करनारा ब्रह्मचर्य व्रतने विषे आदर करो. ॥ इति श्री नेमिचरित्रगर्जित राजिमती तथा रथनेमिनी कथा || वारिसेोय ॥ जा लिमया लिनवयालि, पुरिससेणे पद्युन्न संबप्रनिरुद्ध, सच्चनेमि प्र दढने मि ॥ २८ ॥ पन्नासंपन्ना सं-जका चइत्तु बारसंगधरा ॥ सोलससमपरिप्राया, सिद्धा सेत्तुए दस वि ॥ २७ ॥ अर्थ - जालि, मयालि, उपजालि, पुरुषसेन, वारिषेण, प्रद्युम्न, शांब, अनिरुद्ध सत्यनेमि श्रने दृढने म ए दशे यडुकुमारो, पोतपोतानी पांचसो पांचसो स्त्रीयोनेत्यजी दइने दीक्षा लइ अनुक्रमे द्वादशांगीने धारण करनारा rs शोल वर्ष पर्यंत दीक्षा पर्याय पालता बता श्री शत्रुंजय पर्वत उपर सिद्ध यया ॥ २८-२‍ ॥ • जालि विगेरे कुमारोनी कथा. द्वारका नगरीमां वसुदेव भूपतिनी स्त्री धारिणीने जालि, मयालि, नपजालि, पुरुषसेन ने वारिषेण नामना पांच पुत्रो हता. कृष्णने रुक्मिणी थकी नृत्पन्न थयेलो, शांत ने सर्व पुत्रोमां मुख्य एवो प्रद्युम्न नामे पुत्र हतो. तेमने वीजो जांबुवतीथी जन्मेलो महापराक्रमी शांव पुत्र पण हतो. प्रद्युम्नने वैदर्भीय उत्पन्न ययेलो अनिरुद्ध नामे पुत्र हतो, समुविजय राजाने सत्यनेमि श्रने दृढनेमि नामे पुत्रो हता. या सर्व पुत्रोने पितानए आदरथी महोत्सव पूर्वक यौवनावस्थामां पांचसो पांचसो स्त्रीयो परणावी हती. वली ते कुमारो हस्तमेलाप वखते कोटी प्रमाण धन ने दासीयो पाम्या दता. तेमज तेन पोतपोताना पराक्रमश्री बीजी अनेक स्त्रीयो परएया हता. तेमां सांव riterरसो कन्या परण्यो हतो. एक दिवस श्री नेमिनाथ प्रभुनो अखंकित नपदेश सांजली ते दशे पुजो जोगनो योगवतां पण चारित्रवासना पाया, पवी मातापितानी तेमज Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकीना ब पुत्रोनी कथा. ( ३६१ ) स्त्रीयोनी रजा लड़ते दो पुत्रो श्री जिनेश्वर पासे व्रत अंगीकार करी अनुक्रमे द्वादशांगीना जाण श्रया. शोल वर्ष पर्यंत निर्दूषण एवां चारित्रने पाली शत्रुंजय नामना तीर्थने विषे तेन सिद्धिसुख पाम्या. अहो ! युद्धमां सुरवीर, क्रीममां प्रीतिवाला, महाबलवंत ने की थयां बे कर्म जेमना एवा ते सर्वे कुमारो कोने प्रशंसा करवा योग्य न थया ? अर्थात् सर्वने वखारावा योग्य थयावे. ॥ इति जालि प्रमुख कुमारोनी कथा ॥ बत्तीसपुरं धिवई, देवइत्ता इसपमुहा || बप्पा ने मिस्सीसा, चउदसपूवी गया सिद्धिं ॥ १ ॥ अर्थ- गृहावासमा बत्रीश बत्रीश स्त्रीयोना पति एवा अनीकयश विगेरे देवकीना बए पुत्रो, श्री नेमिनाथ प्रभुना शिष्य यश चौद पूर्वधारी श्रया बता मोक्षगति पाम्या | २‍ ॥ देवकीना व पुत्रोनी कथा. अमरावती नगरीनी समृद्धिरूप लक्ष्मीनुं स्थान, जरतक्षेत्रनी भूमिनुं आमरण अने उत्तम धर्मनुं मंदिर एवं जद्दिलपुरनामे नगर बे. त्यां जेनी कीर्तिरुप हंस जगत्रूप कमलमां क्रीमा करी रह्यो बे एवो जितशत्रु नामे राजा श्रखंकित साम्राज्यने जोगवतो हतो. ते नगरमां गुएालक्ष्मीये करीने श्रेष्ठ एवो पुंनाग नामे शेठ वसतो हतो. तेने निर्मल शीलरुप गुणवाली अने स्त्रीयोमां मुख्य एवी सुलसा नामे प्रिया दती. तेनने चंइसमान नज्वल कीर्तिने धारण करनारा, न्याय विनय युक्त श्रने भूपतिनां लक्षणोवाला तिलकयश, श्री श्रजितसेन, प्रजितसेन, अनिहतरिपु, सुदेवसेन ने शत्रुसेन एवा नामना अनुक्रमे पुत्रो थया. पबी जेटलामां तेन स्त्रीयोनां मनने विनोदकारी यौवनावस्था पाम्या तेटलामां मातापिताए तेमने एक एकने वत्रीश वत्रीश कन्यान परणावी. दस्तमेलाप वखते ते गए कुमारो, पोतपोताना सासरान पाथी वत्रीश वत्रीश क्रोम रुपाम्होर ने सोना म्होर पाम्या. उत्तम बुद्धिवाला ते दरेक कुमार, वैमानने पण जीतनारा एवा वत्रीश वत्रीश मंदिरोमां तेटली ४६ · Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६५ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. " नेमिनाथ प्रभु ज संख्यावाली स्त्रीयोनी साथे विलास करता हता. आ अवसरने विषे श्री ते नगरीना नद्यानने विषे समवसस्या जितशत्रु राजा परिवार सहित तेमने वंदन करवा गयो. तिलकयशादि व पुत्रो पण श्रीजिनेवरना आगमनाने सांगली बांधवोनी साथे हर्षित थया बतां पोतपोतानी म्होटी संपत्तिश्री नयानने विषे समवरणमां गया. त्यां शुरू जाववाला तेन पवित्र विधिश्री जिनेश्वरने प्रणाम करीने प्रभुना सन्मुख दृष्टि राखी योग्य आसने बेवा. प्रभु पर्षदामां अमृत समान वाणीवमे धर्मोपदेश प्राप्यो पी लोको धर्मने अंगीकार करी पोतपोताने घरे गया. तिलकयशादि व कुमारो पण जिनेश्वरनी देशनाथी वैराग्यने पाम्या बता प्रजुने नमस्कार करी चारित्र लेवानी बुद्धिश्री पोताने घेर गया. पी पोतानो संकल्प पार पारुवामां तत्पर एवा ते बए पुत्रो विषयसुख, लक्ष्मी, स्त्री ने प्रेमादि सर्वने अति कष्टकारी जीने महा आग्रहथी मातापिताने प्रबोध पमामी ने पोताना पगनां रजनी पेठे कोटि व्यने पण क्रीमामात्रमां त्यजी दइ श्री नेमिनाथ प्रभु पासे नावधी दीक्षा लीघी. वली तेनए तेज दिवसे प्रभु पासे एवो घोर अनिग्रह लीधो के, "मारे जीवित पर्यंत अखंमितरीते बनो तप करवो.” पबी उपशम रसथी पूर्ण हृदयवाला ते व मुनियो अनुक्रमे बार पूर्वनो अभ्यास करी निरंतर श्री नेमिनाथ प्रभु साधे विहार करवा लाग्या. कोइ वखते कोटि देवतान जेमनां चरणकमलने वंदना करी रह्या बे एवा श्री नेमिनाथ जिनेश्वर तिलकयशादि ब मुनियोनी साथे विहार करता करता श्री गिरनार पर्वतना म्होटा उद्यानमां समवसस्या, वनपालनां मुखश्री श्री नेमिनाथनां श्रागमनने सांगली वलन सहित कृष्ण श्रानंदथी त्यां समवसरणमां श्राव्या. कृष्ण जिनेश्वरनां मुखश्री संसारना जयने नाश करनारी देशना सांजलीने धर्ममां अधिक श्रद्धावंत या वतां फरी पोतानी नगरी - रका प्रत्ये गया. पठी बहाना पारणे तिलकयशादि व मुनियो, वे पोरसी पूर्ण थया पठी पहिलेहल करेलां वस्त्र पात्रने लS हाथ जोमी ने श्री नमिनाथने नमस्कार करने कहेवा लाग्या. “हे प्रभो ! श्रमेव ज एकता ने हारका नगरीमां गोचरी माटे जए वीए. " पठी " तमारे सावधानपणाश्री जवुं.” एवां प्रजुनां वचनमंत्रने अंगीकार करी तेन विधिपूर्वक Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकीना उ पुत्रोनी कथा. (३६३ ) नाना प्रकारनां कुलोथी नरपूर एवी हारका प्रत्ये चाल्या. हवे ते उ मुनियो | मांहेना बे मुनियो नावथी नंचनीच घरो प्रत्ये फरता फरता नाग्यवशथी त'त्काल देवकीनां घरनां आंगणामां आवी पहोच्या. विवेकना जाग, नासन नपर बेठेला अने पोतानी सखीयोथी परवरेला देवकी ते बे मुनियोने जो तुरतनक्तिथी तेमनी पासे गयाअने प्रदक्षिणापूर्वक वंदना करी तेमणे हर्षी तेमने स्निग्ध मोदको वहोराव्या. पठी ते मुनियो गया अने तेमना समान आकृतिवाला बीजा बे मुनियो तेज वखते देवकीनां आंगणामां आव्या. तेमने पण कृष्णमाताए नावथी मनोहर मोदकनां नोजनवमे प्रतिलान्या. तेन गया अने पली त्रीजा बे मुनियो पण फरता फरता त्यां आवी चम्या. तेमने पण नावथी तेवाज नोजनवमे प्रतिलालीने शंकायुक्त श्रयेला देवकीये पूज्यु. “हे नगवंतो! आ अमरावती समान धारका नगरीमा श्रेष्ठ मुनियो, शुं तेना तेज घरो प्रत्ये वारंवार फरता हशे ? अर्थात् तमे एकना एक वारंवार म्हारे घेर केम आवो गे?" मुनियो देवकीना जावने जाणीने कहेवा लाग्या. “हे कृष्णमाता ? श्रेष्ठ साधुन निर्दोष आहारने माटे मधुकर (भ्रमर) वृत्तिये करीने नाना प्रकारनां घरो प्रत्ये फरे . महा मुनियो क्यारे पण एक गृहस्थनां घरप्रत्ये वारंवार जता नथी. हे शुन्ने! तमने अमारा विषे जे प्रांति श्र, तेनुं कारण सांजलो. नदिलपुरमा महा धनवंत एवा पुंनाग अने सुलसाना अमे उ पुत्रो गए. यौवनावस्थाने पामेला, विवाह करेला अने नत्तम नोगलक्ष्मीना बहु विलासने नोगवता अमे गए नाश्यो श्री नेमिनाथ जिनेश्वरना नपदेशथी प्रतिबोध पामीने दीक्षा लश् तेमनीज साथे विहार करीए गए. आजे उन्ना पारणे आहारका नगरीमां आव्या बीए. अमे गए साधुन बबे बबेना जयाथी तमारा घरने विषे आव्या हश्शं; परंतु एकना एकज बे साधुन त्रण वखत आवीए एम बने नहि.” आप्रमाणे ते बन्ने साधुन देवकीनी ब्रांति निवृत्त करी चाल्या गया. पनी देवकी पोताना मनमा विचार करवा लागी के, “ ते सुलसा लोकने विषे शाश्री पुत्रवाली कहेवाणी ? निश्चे हुंज पुत्रवाली , एवो जे हु बहु गर्व धारती हती तेतो वृथा देखाय . सुलसाना उए पुत्रो रूपादिगुणे करीने जेवा देखाय ने तेवा लोकने विषे वीजी को स्त्रीना देखाता नश्री, माटे चाल प्रन्नु पासे जश्ने हुं म्हारो पोतानो संदेह टावं." Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६४ ) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. आ प्रमाणे विचार करीने सखीयो सहित देवकी तुरत पोताना सजाकरेला रथ नपर बेसीने समवसरणमां आवी. त्यां ते जिनेश्वरने वंदना करी वारंवार कहेवा लागी के, “हे स्वामिन् ! म्हारो संशय टालो." या प्रमाणे, देवकीना वारंवार पूवा नपरथी प्रनुए साक्षात् दराखना समान मधुर वाणीश्री कयु. “ नदिलपुरमां नागशेग्नी सुलसा नामे स्त्रीने. ते हमेशां नावथी हरिनैगमेषि देवतार्नुाराधन करती हती. जो के एक चित्तथी आराधन करती सुलसा नपर ते देवता बहु प्रसन्न हतो; परंतु ते तेना पूर्वन्नवना पापथी मृत्यु पामता पुत्रोने जीवामी सकवाने समर्थ थतो नहि. आ वखते एम बन्युं हतुं के, मथुरा नगरीमां क्रूर अने अति उष्ट चित्तवाला कंसे त्हारा सात गोंने नाश करवानो निश्चय कस्यो हतो, देवताना प्रन्नावने लीधेज तुं अने सुलसा साथेज गर्नवती थइ हती. कडं ले के-देवतानी कां पण शक्ति को नाश करवा समर्थ नश्री. पठी ते अने सुलसाए साज पुत्रने जन्म आप्यो एटले ते दरिनैगमेषि देवताए त्हारा तुरतनां जन्मेला बालकने सुलसानी पासे मूक्यो अने तेनो मृत्यु पामेलो पुत्र त्हारा घरने विषे आएयो. आ फेरफार कोइए क्यारे पण जाण्यो नहोतो. हे देवकी ! मेघ समान कांतिवाला अने दिव्य रूपवाला ते त्हारा ठए पुत्रो सुलसाना घरने विषे वृद्धि पाम्या. पठी युवाव स्था पाम्या एटले मातापिताए ते एक एकने बत्रीश बत्रीश कन्यान परणाव।' तथा तेटलीज कोटि सुवर्ण आप्यु. पठी म्हारी देशनाथी अधिक विवेकवंत श्रयेला अने संसारथी वैराग्य पामेला ते ठए पुत्रोए तृणनी पेठे विषय तृष्णाने त्यजी दइ दीक्षा लीधी. हे कृष्णमाता ! निरंतर हर्षथी बहना अन्निग्रहने धारण करनारा, चादशांगीना जाण अने निर्मल चरण करणना धारणहार श्रा ठए मुनियो त्हारा पुत्रो ." जिनेश्वरनां आवां वचन सांजलीने देवकी, समवसरणने विपे साधुननी पंक्तिमां वेठेला अने महा तीव्र तपवाला ते पोताना पुत्रोने जोवा लागी. पठी नुत्पन्न अयेला महा स्नेहथी करता स्तनवाली तथा अत्यंत संतोपित मनवाली देवकी, तुरत ते पोताना पु... वरूप मुनियोनी पासे यावी. त्यां ते वहु वखत सुधी एक दृष्टिश्री तेमने . नीदाली तया जिनेश्वर प्रनुने नमस्कार करीने तुरत रथमां वेसी जेटला. मां पाताना घर प्रत्ये गड तेटलामां तेना चिनने विषे अति दुःखकारी चिं: Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकीना उ पुत्रोनी कथा. (३६५ ) , ता नत्पन्न भइ के, " हा ! में उ पुत्रोने जन्म प्राप्यो; परंतु एकेने लालन | पालन कस्यो नहि. ए ब पुत्रोना नपर आ अर्शनरतक्षेत्रनो अधिपति कृष्ण श्रयो ते पण यसोदाना घरने विषे वृद्धि पाम्यो. हा धिक्कार ने मने!!! सर्व स्त्रीयोमां तेनेज धन्य ले के, जे पोताथी नत्पन्न श्रयेला पुत्रोने हर्षथी पोतेज लाम समावे. खरेखर स्त्रीयोमा नाग्यहिन हुंज बुंके, जे में एके पुत्रने लामलमाव्यो नहि.” आ प्रमाणे खेदयुक्त चित्तवाली अने करतां नेत्रवाली देवकी, शोक करती हती ते वखते परिवारश्री विंटलायेला कृष्ण, पोतानी माताने वंदन करवा माटे नत्साही त्यां आव्या. ज्यारे अनरतक्षेत्रना अधिपति एवा कृष्णे, पोतानी मातानां चरणमां नमस्कार कस्यो ते वखते तेमणे देवकीने बहु दुःखथी पीमा पामेला जाण्या, तेथी तेमणे हाथ जो| मीने कडु के, "हे माता ! हुं राज्य नोगवताउतां तमने कोणे दुःख दीधुं ?" - कृष्णे बहु आग्रह कस्यो एटले देवकीये पोतानां उखनुं कारण कही संन्न लाव्यु. ते नपरथी सर्व अर्थने विषे सामर्थ्यपणुं धारण करनारा कृष्ण कडं. “हे मात ! तमे हृदयमां बहु उःख न पामो. हुं तेवू करीश के, जेधी म्हारो न्हानो बंधु तमारा हर्षने पूर्ण करनारो शे.” आवां प्रिय वचनयी पोतानी माताने हर्ष पमामीने कार्यसिदिनो विचार करता एवा यशधारी कृ. ष्ण पोताना मंदिर प्रत्ये आव्या. पनी प्रातःस्नान करीने पोताना मध्य गृहमा दर्जना पवित्र आसन नपर बेसी हरिनैगमेषी देवताने उद्देशी अध्मनो तप करता उता ब्रह्मचर्यने विषे चित्तने धारण करनारा अने पद्मासने बेग्ला कष्णे अखंमित एवा ध्याननो आरंज कस्यो. पी कृष्णना तपोन्नाग्यथी खेंचायेलो हरिनैगमेषी देव, त्रीजा दिवसनी रात्रीये प्रगट श्रश्ने कृष्णने कहेवा लाग्यो. “हे विष्णो ! तमे मने केम संन्नास्यो ? अने तमारे म्हारुं शं काम ने ? हे जनार्दन ! जे होय ते झट कहो के, जेथी हुँ ते शीघ्र करी आपुं." पठी कृष्णे ध्यान मूकी दर विधियी सत्कार करीने तेने कडं. “मने न्हानो बंधव आप." देवताए ज्ञानोपयोगयी विचारीने कयु. “ हे शौरी ! तमने श्रोमा वखतमा एक न्हानो बंधव प्राप्त श्रशे; परंतु ते युवावस्थामां वैराग्यवंत अश्ने तत्काल दीक्षा लेशे." देवतानां ावां मधुर वचनश्री कृष्ण बहु संतोष पाम्या. पर कृष्णे, बहु मान पूर्वक देवनाने रजा आपी अने देवतानां वचन Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६६) ऋपिमंमलरात्ति-पूर्वाई. पोतानी माता देवकीने कहीने तेमने परिवार सहित बहु संतोष पमाझ्या. पठी जेम सिंह पोताना निवासथी पर्वतनी गुफाने सुशोनित बनावे तेम तेज दिवसे स्वर्गश्री चवेलो कोइ पुण्यवान् जीव, देवकीना नदररुप गुफाने) शोन्नाववा लाग्यो. देवकीये स्वप्नमां सिंह दीगे ते वात तेणे पोताना पति वसुदेवने कही एटले तेमणे पण कडं के, “ हे देवी! निश्चे तने सर्व गुणवालो एक पुत्र थशे." पडी पूर्ण अवसरे शुन्न लग्नमां देवकीये हाथीना तालवा समान अति कोमल अने श्रेष्ठ लावण्यथी रसाल एवा एक पुत्रने जन्म आप्यो. आ वखते कृष्ण तथा वसुदेवे बहु मणि अने कोटि सुवर्णना दानथी धारका नगरीमा म्होटो जन्म महोत्सव कस्यो. अगीयारमे दिवसे सूतक निवृत्त करीने वारमे दिवसे हर्षित एवा मातापिताए तथा कृष्णे, सर्व बंधुजनोने संतोष पमामीने हस्तिना तालवानी पेठे अति कोमलपणाने लीधे ते पुत्रनुं विविध प्रकारना महोत्सव पूर्वक “ गजसुकुमाल" एवं यथार्थ नाम पामयु. वालक अवस्थामां पांच धाव मातानथी पालन करातो अने नत्कृष्ट वृद्धि पामतो ते कुमार मातापिताने बहु हर्ष पमामवा लाग्यो. अनुक्रमे कमल समान देहवाला ते कुमारे सशुरु पालेश्री सर्व कलानो अभ्यास कस्यो. ां अवसरे रेवताचल (गिरनार) पर्वत नपर श्री नेमिनाथ समवसस्वा. नद्यानपालके कृष्णने वधामणि आपी एटले बहु हर्ष पामेला कृष्ण पण पोताना लघु नाश्नी साथे स्नानश्री शरीर पवित्र करी अने सुशोनित अानूपणो धारण करी श्रेष्ठ पट्टहस्ति नपर वेवा. पठी श्री नेमिनाथने वंदना करवाने नत्साहवंत श्रयेला कृष्ण म्होटी सेनाथी परवस्या उता महा समृश्रिी राजमार्गे श्रावी पहोच्या, । दवे घारकामा सर्व वेदनो जाण सोमिल नामे ब्राह्मण वसतो हतो. तेने सोमा नामनी स्त्रीश्री उत्पन्न श्रयेली सोमश्री नामनी एक पुत्री इती. जगातमताना त्कृष्ट रूपने धारण करती यौवनावस्थाने पामेली अने शृंगार धारण करवापूर्वक सखीयोनी सारे क्रीमा करती ते महा रूपवती सोमश्रीने जोर बंधुना दितत्रु एवा कृष्ण विचार करवा लाग्या. “निश्चे गजसुकुमाल बंधुने रुपगुरो समान आज स्त्री योग्य वे." पी कृष्णे नोमश्रीना मातापिता जाति विगेरे जाणी लग्ने पठी पोताना सेवळ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकीना ब पुत्रोनी कथा. (३६७) ने कह्यं के, “हे नशे! तमे सोमिल ब्राह्मण पासे ज तेने कोटि व्यथी संतोष पमामीने आ म्हारा बंधुना विवाहने माटे तेनी पुत्री सोमश्रीन माणु 'करो अने ते विप्रनी आज्ञाथी नत्तम आनूषणोने धारण करनारी ते कन्याने विश्वास पमामीने सखीयोनी साकन्यानना अंतःपुरमा राखो.” कृष्ण आवीरीते कन्या संबंधि पोताना सेवकोने शीखामण आपीने पनी समवसरणमां जय श्री जिनेश्वरे कहेलो धर्मोपदेश आ प्रमाणे सांनलवा लाग्या. “हे नव्यजनो! कमवा फले करीने नरकगति आपनारा, विषयरूप खारा जलवाला, मोहरूप महा कादवथी परिपूर्ण, संकटपरूप म्होटा नचलता कल्लोलवाला आ संसाररूप समुश्मा पमता एवा मनुष्योने चारित्ररूप वहाण विना रक्षण नथी श्रतुं. विषयो किंपालफलनी नपमावाला बे, शरीरकांति नाशवंत. स्वन्नाववाली अने लक्ष्मी चपल ठे. वली स्वजनोनो समागम तथा वियोग पण हमेशां मल्या करे . अहो ! संसारने विषे बहु विषम ब्रांतियो ने, माटे हे नव्यजनो! तमे मोदसुखने माटे प्रकट नद्यम आचरो.” जिनेश्वर प्रन्नुना आवा श्रेष्ठ नपदेशथी नावित चित्तवाला सर्वे सन्नाजनो संसार नपर विरागपगुं देखामता बता पोतपोताने घेर गया. पड़ी चारित्रमोहनी कर्मनो कय थवाथी विशेष प्रबोध पामेला गजसुकुमाले अरिहंत प्रन्नुने नमस्कार करीने विनंती करी के, “ हे स्वामिन् ! हुं म्हारा मातापिता अने कृष्ण विगेरे स्वजनोनी रजा लश् जेटलामा व्रत अंगीकार करवा अहिं श्रा, त्यां सुधी आप अहिंज रहेजो.” आ प्रमाणे गजसुकुमार प्रन्नुने विनंतीपूर्वक नमस्कार करी घेर आव्यो. त्यां ते हाथ जोमीने वंदनपूर्वक पोताना मातापिताने कहे. वा लाग्यो के, “हे मातापिता! तमे म्हारा नपर प्रसन्न थर फट आज्ञा आपो के, जेथी हुँ नेमिनाथ प्रन्नु पासे चारित्र लनं.” आवां वियोग वनने वृद्धि पमामवामां मेघ समान पुत्रनां वचनने सांजली मनमां बहु खेद पामती देवकीये कह्यु. “ गुणना समुप, पोताना कुलरूप कमलने प्रफुल्लित करवामां सूर्य समान अने श्रेष्ठ रूपना समूहवाला हे पुत्र ! तुं मातापितानो नक्त उतां आवां कगेर वचन शा माटे कहे ? हे पुत्र ! तुं खरेखर म्हारुं जीवित, प्रा. मरण तथा जीवरूप , वली वधारे शुं कहुं, परंतु प्रेमनो समुह अने तीर्थ पारा तुज .पोतानां घरनां श्रेष्ठ आनूषणरूप तुं नोगोने नोगवते ग्ते पुत्रवाली Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६७) ऋषिमंमलबत्ति-पूर्वाई. स्त्रीयो मध्ये हुं पोताने धन्य तथा कृतकृत्य मानुं बु, माटे हे सुत ! तुं पोतानी माता नपर कृपा करीने युवावस्थापर्यंत विषयसुख नोगव अने वृक्षवस्था प्राप्त श्रये तुं निश्चे चारित्र अंगीकार करजे." आ प्रमाणे आकुलव्याकुल चि. त्तवाली मातानां वचन सांजलीने स्थिर बुध्विाला गजसुकुमाल कुमारे तुरत मधुर वचनथी कडं." हे मात ! सांनलो, आयुष्य शरदशतुनामेघ समान चपल ने. लक्ष्मी पण तेवाज स्वन्नाववाली . वली यौवन पण मदोन्मत्त हाथीना वे कान जेवूज चपल ने तो हे मात ! हितेषु एवा महर्षि पुरुषोए केवल :खना मंदिररूप आ संसारमा सुखना अर्थियोने रहेवू अयोग्य कहेलु ." आ प्रमाणे माताने समजावी अने पी व्रतना अर्थी एवा गजसुकुमाले कृष्णनी पासे जश्ने तेमने पोतानी चारित्र अंगीकार करवानी वात जणावी. एटले कृष्ण प्रेमपूर्वक आलिंगन करी नंचा आसने बेसारीने पोताना न्हानानाइने तुरत कर्वा के, “ त्हारी व्रतनी वार्ताथी स्वजनादि सर्वे बहु दुःखी थशे, माटे हे वत्स ! तुं हवणां व्रतनी वात त्यजी दर आ युवावस्थाने विषे श्रेष्ठ एवां राज्यने अंगीकार करी उत्तम नोगाने नोगव.” आम स्नेहथी कुप्णे बहु कडं; परंतु दृढचित्तवाला तेणे व्रतनो नाव त्यजी दीधो नहि. पठी करतां नेत्रवाला कृपणे फरीथी कह्यु: " हे वत्स ! अमे त्हारा एक दिवसना राज्यन्नोगने जोवा इचिए बीए, माटे तुं एक वखत फट राज्यने. अंगीकार कर." पठी गजसुकुमाल “ मने थोमा विलंवधी सरयु; अर्थात् म्हारे थोमा विलंवथी कांश हरकत नथी; परंतु आ सौ प्रसन्न थान.” एम धारी मौन रहा एटले प्रसन्न थयेला कृष्णे तुरत स्वजनोने बोलावी अनिषेकविधि करीने वाजीत्रोना नाद पूर्वक म्होटा नत्सवथी पोताना न्हाना बंधुने राज्यासने बेसाख्या. पी वीजे दिवस सवारे गजसुकुमाल सर्व बंधुजनोने संतोष पमामी कृपणे करेला महोत्सवपूर्वक श्रीनेमिनाथप्रन्नु पासे गया. त्यां तेमणे पंचमुष्टी लोच करीने विधियी व्रत लीधु. पठी कृष्ण अनुमोदना करता उता पोताना घर प्रत्ये गया तेमज वसुदेवपिता विगेरे वीजा सर्वे मनुष्यो पण श्रीनेमिनायने तथा गजसुकुमालने नमस्कार करी दर्ष पामता उता पोतपोताने स्याने गया. पठी गजमुकुमाल. चारित्र लीधुं तेज दिवसे श्रीनेमिनाथने नमस्कार Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकीना व पुत्रोनी कथा. (३६५) करी हाथ जोमीने आ प्रमाणे विनंती करवा लाग्यो. “ हे प्रन्नो! हुं आपनी आझाश्री पूर्वजन्मना कर्मने क्षय करवा माटे इमप्तानमां जश शुन्न नावधी कार्योत्सर्ग करीश." प्रन्नुए “ हे साधो ! मरजी प्रमाणे आचरण कर." एम आज्ञा करी एटले ते महामुनि तुरत प्रनुने नमस्कार करी समवसरणश्री चाली निकल्या. अनुक्रमे ते पगले पगले बलती चीतानना समूहवाला, क्रीमा करी रहेला नुत प्रेतवाला अने बहु शबवाला श्मसानमा आवी पहोच्या. त्यां कमाना धारणहार ते सहामुनि, नुमीने पमिलेही तुरत मेरु पर्वतना शिखरनी पेठे स्थिरचित्त करीने कायोत्सर्गे रह्या. जेटलामां ते मुनिराज, पोतानी नासिका सन्मुख नेत्र राखीने, ढींचनी जोममां वे लांबा हाथ राखीने अने आत्माने विषे स्थिर मन राखीने नन्ना रह्या तेटलामां प्रथमश्री तेज मार्गे अकाले उर्चा तथा दल लेवा माटे गयेला महाकोधी सोमिल नट्टे ते गजसुकुमाल मुनिने तेवी रीते कार्योत्सर्गे नन्नेला दूरथी दीग. पी मनमां बहु क्रोध पामीने ते विचारवा लाग्यो के, " हा ! आ उष्टे नवी परणेली म्हारी निर्दोष पुत्रीने त्यजी दीधी ने, माटे ए उष्टर्नु मस्तक हवणां पामी नाखुं !” आम विचार करीने पठी चारे तरफ जो कोश्ने न देखवाथी ए विप्रे तलावमांथी लीली भाटी लश् गजसुकुमालना मस्तक नपर गोलाकार पाल करी अने परी तेमां खेरना अंगारा नस्या. परी ते कूर महा नये पामतो तो त्यांची नाशी गयो. कडं बे के-महापापी पुरुषो पोतानाश्रीज सर्व स्थानके त्रास पामे . पनी खेरना अंगारावमे जगसुकुमालतुं मस्तक सलगवा लाग्युं एटले स्थिर संवेगवाला ते महामुनि श्रा प्रमाणे विचारवा लाग्या. “हे जीव ! तें पूर्वे करेलां इष्ट कर्मथी आवी महा कायाना संयोगने लीधे नरक गतिमां बहु अग्निना संतापो सहन कस्या ने. हे जीव ! तपावेला कथीररूप जलपानथी तथा अग्निमय पुतलीयोना आलिंगनश्री तुं बहु तपेलो यूँ के, जेनी आगल श्रा कांश हिसाबमां नथी. जो के पाउलथी मलमूत्रे करीने मलीन तथा दाहने योग्य एवा आ देहे करीने कर्मना समूहथी संसारचं कारण थq पमे ते करतां प्रत्यारे नरमीनूत थर्बु ते वधारे वखाणवा जेवू दे. हे जीव ! तुं श्रा शरीरने विषे ममतापणुं त्यजी दे, पोताना हृदयमा नपशम धारण कर अने ४७ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७०) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई, कायोत्सर्गे रह्यो उतो धर्मध्यानमां नत्कृष्ट दृढता पाम." आ प्रमाणे वृदिपामता धर्मध्यानयी नाश पामी गयो ने पोताना कर्ममलनो समूह जेमनो एवा ते गजसुकुमालमुनि केवलज्ञान पामीने मोक्षस्थान प्रत्ये गया. देवताना समूहे त्यां तेमनो पूष्पना वर्षाद अने वाजींत्रोना नादथी महोत्सव कस्यो. . हवे वीजे दिवस सवारे गजसुकुमाल मुनीश्वरने वंदन करवा माटे बहु नत्साहवंत श्रयेला कृष्ण हर्षथी परिवार सहित समवसरण प्रत्ये चाल्या. रस्तामां तेमणे जरावस्थाथी जीर्ण श्रयेला, अति र्बल शरीरवाला अने म्होटी इंटोना नारथी श्वासोश्वास लेता को वृक्ष पुरुषने दीगे. ते पुरुष एक एक इंट लश्ने महा कष्टथी कोश्ना चणाता माल नपर मूकतो हतो, कृष्णने तेना उपर दया आवी, तेथी तेमणे पोताना हाथथी एक इंट लश्ने तुरत ते माल नपरथी मूकी. पठी हर्ष पामेला सर्वे राजानए पण एक एक इंट लश्ने माल नपर मूकी. आम एक एक इंट मूकी तो पण माल नपर वहु इंटोनो जयो एकगे थइ गयो. पठी हर्ष पाम्यो ने आत्मा जेमनो एवा श्रीकृष्ण समवसरणमां आवीने श्री जिनेश्वर प्रन्नुने नमस्कार करी श्रेष्ठ साधुननी पंक्तिमां जोवा लाग्या; परंतु पोताना बंधु एवा श्री गजसुकुमाल मुनीश्वरने न दीग; तेथी ते चित्तमां कांइक आश्चर्य पामीने हाथ जोमी श्री जिनेश्वर प्रन्नुने पूठवा लाग्या. “हे स्वामिन् ! जेणे कालेज दीका सीधी रे एवा तथा सर्व साधुनमा मुकुटमणि समान म्हारो नाइ क्या ?" कृष्णे आम पूग्युं एटले संदेहरूप वनने नस्मीनूत करवामां अग्नि समान एवा श्री नेमिनाथ प्रनुए कह्यु. “ हे कृष्ण ! सान्नलो. ए साधु म्हारी आझायी काले सांजे महा घोर एवा श्मसानमां जर कायोत्सर्गे रह्यो हतो. त्यां तेने जोश्ने कोइ पुरुप बहु कोप पाम्यो हतो." जिनेश्वर प्रन्नुए या प्रमाणे गज. सुकुमाल मुनीश्वरनी प्रथमश्री पारंनीने मोक्ष पर्यंत सुधीनी वात कही. वली तेमणे एम पण जणाव्यु के, “नावशत्रुन्नी साये युः६ करता ए महामुनिये शुलावधी श्रोमा वखतमां पोतानो अर्थ साध्यो ." अनुनां आवां बने कानने विषे कमवां वचन सोनली कृष्ण ललाटमा विकराल नकुटि चमावीन प्रन्नुने पूच्यु. “ हे अरिहंत प्रन्नो ! पापी पुरुषोनी मध्ये अधम एवो ते कयो माणन हतो के, जेणे म्हाराबंधुरुप मुनीने हाएया.खरेखर ए पण श्रोमा वखतमा Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवकीना व पुत्रनी कथा. ( ३७१ ) यमराजानो अतिथि थशे. " प्रजुए कह्युं. " हे कृष्ण ! दयालु एवा ते पुरुष नपर क्रोध न कर. कारण के, मुक्तिपद प्रत्ये जता एवा व्दारा बंधुने एणे ऊट सहाय्य करी बे. अनेक नवोमां संपादन करेलां जे कर्मों महा नग्रतपथी पण बहु काले कप थाय तेवा कर्मोने तमारा बंधुए ते पुरुषना समीपपणाथी एक मूहूर्तमां कय करी नाख्यां बे. " कृष्णे कयुं. “ अहो ! जिनेश्वरो तो अपराधीयोना पण गुणोनेज ग्रहण करता देखाय बे. वीकज बे. साकर पोतानो विनाश यता पण सर्व जलने मधुर करे बे. " वली कृष्णे " हे जगन्नाथ ! म्हारे ते पापीनेशी रीते नलखवो ? " एम पूब्युं एटले जिनेश्वरे स्पृष्ट कह्युं के, “दे विष्णु ! सांजल. तने नगरी मां पेसता जोइने जे जयने लीधे मुस्तक फाटी जवाथी बन्ना बनाज मृत्यु पामे तेने व्हारे पोताना बंधुने नपत्र करनारो जाणवो; परंतु तेना उपर त्हारे क्रोध करवो नहि. " प्रजुनां प्रवां वचन सांजली ते खरेखर मानता बतां कृष्णे प्रभुने नमस्कार करी तुरत पोतानी नगरी तरफ जवाने प्रयास करयुं. ፡፡ वे हिं सोमिलन पोताने घेर प्रवीने विचार करवा लाग्यो के, हा ! कृष्ण श्री नेमिनाथने वंदन करवा गया वे, त्यां ते केवलज्ञानी प्रभुए कहेतुं आम्हा निंद्यकर्म जाणो, तो हुं नथी जाणतो के, कोप पामेला कृष्ण मने केवो प्रहार करशे ? माटे चाल दीन एवो हुं अहिंथी ऊट नाशी जानं हा हा! परंतु हुँ क्यां नाशी जश ?" या प्रमाणे मनमां खेद करतो ते सोमिलन पोताना पापकर्मश्री क्यांs पण धीरज पाम्यो नहि. पवी ते मूढ जेटलामा पोताना घरथी निकली चोरनी पेठे चंचल दृष्टिवमे आमी नजरथी लोकोने जोतो तो बहु नय पामी राजमार्गमां चालवा लाग्यो तेटलामां सामेथी सेना सहित कृष्ण आवता हता. विप्र कृष्णने देखवामात्रश्री बहु यत्रांत बनी गयो. पठी जाणे पोतानुं चेष्टीतज होयनी ? एम क्रोध पामेला सुनटोने मानता बता ते ब्राह्मण तुरत मस्तक फाटी जवाथी मृत्यु पाम्यो. पृथ्वी पर पकता एवा ते विप्रने दूरखी जोइ कृष्णे तुरत निश्वय कस्यो के, " निश्वे मुनीश्वरनो घात करनारो आज पापी छे. " पठी " श्रेष्ठ पुरुपए था प्रतिघोर पापीनुं मुख पण न जोवुं जोइए. " एम कही कृष्ण तुरंत बीजा रस्तेश्री पोताना घर प्रत्ये याव्या अने " या रुपिहत्या करनारो Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७५) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वार्ध. ." एवी नद्घोषणा पूर्वक तेने नीचलोक पासे केशथी पकमावी मरी गये. ला कुतरानी पेठे नगरीनी बहार घसमावी काढयो. त्यारवाद " गजसुकुमाल महर्नुि उपसर्गने सहन करवामां आ म्होटुं धैर्य ? " एम निरंतर अनुमोदना करता कृष्णे निर्मल पुण्यरुप बहु धन नपार्जन करयु. कषाय रहित एवा तिलकयशादि मुनीश्वरो पण वीश वर्ष पर्यंत शुइ चारित्र पाली अंते विमलाचल महातीर्थ नपर एक मासनुं अनशन लश केवलज्ञान प्राप्त करीने सिध्विधुना पति श्रया. जेवी रीते महाशय एवा कृष्णना म्होटा बंधुए तथा न्हाना गजसुकुमाल मुनिये महासत्वथी निश्चे पोतानो अर्थ साध्यो तेवी रीते मुनीश्वरोए खरेखर पोतानो अर्थ साधवो जोश्ये. ॥ इति देवकीना पुत्रनी कथा ॥ वंदामि नेमिसीसं, वयदिनगहिएगरायवरपमिमं ॥ सो मिलकयनवसग्गं, पत्तं पणमामि अपवग्गं॥ २५॥ अर्थ-व्रत लेवाने दिवसेज एक रात्री संबंधी पमिमानेधारण करनारा अने सोमिल ब्राह्मणे करेला नपसर्गश्री मोद पामेला श्री नेमिनाथना शिष्य (गजसुकुमाल ) ने हुं वंदना करुं ॥ ॥ जो गेविधान चुन, आया तह कुले विसालंमि ॥ तं देवप्रवचं, गयसुकुमालं नमसामि ॥३०॥ अर्थ-जे ग्रेवयकश्री चवीने यादवोना विशाल कुलमां नुत्पन्न श्रया ठे,त देवकीपुत्र गजमुकुमाल मुनिने हुं नमस्कार करुं . ॥ ॥ ॥ जो वासुदेवपुरन, पसं सिन उकरकरेनत्ति॥ सिग्नेि मिजिनवगणं, तं ढंढणामहारिसिं वंदे ॥३१॥ अर्थ-श्री नेमिनाथ जिनेश्वरे कृप्यनी पासे जेमनी “श्रा कर करे " गम कह ने प्रशंसा करी दती, ने श्रीढंटग महामुनिने हुँ वंदना करूं . ॥३१॥ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१३ ) ढंढा मुनिनी कथा. ॥ श्री ढंढा मुनिनी कथा ॥ द्वारका नगरीमां श्री कृष्णने ढंढला नामनी स्त्रीथी श्रेष्ठ राजलकरांवा'लो एक ढंढा नाम कुमार थयो दतो. अनुक्रमे युवावस्था पामेला ते कृष्ण1. पुत्रे, श्री नेमिनाथ जिनेश्वरनी पासे नावथी दीक्षा लीधी. कर्मनो विनाश करवा माटे विविध प्रकारनां तप करता अने द्वादशांगी विगेरे सिद्धांतोनो श्र ज्यास करता ते मुनीश्वर, हमेशां श्री नेमिनाथ प्रजुनी पासे रहेता हता. . कोड वखते निक्षा माटे नाना प्रकारना नगर तथा ग्रामादिकने विषे नंच्चनीच श्रावकना कुलमां फरता एवा ते मुनिने लानांतराय दुष्टकर्मना नarat न प्राप्त युं नहि. वली ते महासत्ववान् मुनि, बीजानी लब्धिथी प्राप्त थयेलुं अन्न लेता पण नहि. ज्यारे कृष्णना पुत्रपणाथी प्रसिद्ध एवाय प ते मुनिने न प्राप्त युं नहि त्यारे तो ते विचारवा लाग्या के, " द्वारका नगमां हजारो मुनीश्वरो निर्दोष तथा एषणा समितियुक्त शिक्षा पामे वे अने हुँ नथी पामतो, तेनुं शुं कारण हशे ! चाल, ए संदेह श्री जिनेश्वरने पूर्वं. ग्राम धारी ते मुनिये प्रभु पासे जइ तेमने नमस्कार करी पोतानो संशय पूबोटले प्रक. " "" " पूर्वे पारासर गाममां कोइ कणबी रहेतो हतो. त्यां बीजा पण घणां कवीयो वसता हता. खेतिना काममां आ करावी सर्वश्री अधिक हतो; तेथी ते पारासर एवा नामश्री गाममां प्रसिद्ध प्रयो. पठी खेतिना कामनो उपरी एवो ते कसबी हंमेशां बसो दलोथी राजाना खेतरमां ववरावतो एटले इंमेशां बारसे बलदो ते काममां रोकाता. जात आव्ये बते पण ते कलवी बलदोनेोमतो नहि ने खेतोने कहेतो के, “ म्हारा खेतरमां एक हल दीघा . विना सुख्या एवाय पण तमने हुं बोरुवानो नथी. " कुधायी प्राकुल प्रयेला चित्तवाला बलदोने तथा खेकुतोने बलात्कारे एक हल पोताना खेतरमां देवरायुं. या उपरथी तेणें बहु दुःखकारी लानांतराकर्म नपार्जन करयुं. पटी अनेक जवने मण करता पूर्वनां करेलां कोई कर्मश्री कृष्णनी ढंढा नामे -राणीश्री गुणवान् पुत्रपणे उत्पन्न थयो तेज तुं. ( श्री नेमिनाथ प्रभु, ढंढा कुमारने कड़े वे के, ) ए पूर्वे करेलां कर्मश्री तने निर्दोष आहार मल्यो नहि. " पटी, ढणकुमार मुनिये, प्रभुने नमस्कार करीने एवो निग्रह लीधो के, हुं << Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७४) ऋषिमंमलर तिपूर्वाई. म्हारी पोतानी लब्धिये करीनेज शुक्ष्अन्नपाणी ग्रहण करीश." पठी दररोज निकाना काले धारका नगरीमा नमता एवा ते मुनि, नगरवासीजनो नक्तिवंत उता निर्दोष आहार पाम्या नहि. आम निर्दोष आहार नहि मलतां उतां पण खेद रहित, नपवासवाला अने धीरजवंततेमुनिनो बहु काल निर्गमन थयो. को वखते श्री नेमिनाथ प्रनुनी प्रौढ पर्षदामां श्रेष्ठ गुणवाला नत्तम साधुननी पंक्ति जोक्ने कृष्णे जगन्नाथने पूज्यु के, " हे नगवन् ! आ साधुननी पंक्तिमा विशेष तप क्रियावमे कया साधु 5:करकारक ?" प्रन्नुए कह्यु. “ ढंढणा राणीना नदरथी नुत्पन्न श्रयेलो ढंढण कुमार नामे साधु के, जे तमारो पुत्र थाय ने ते बहु उत्करकारक .कारण जे परीषहने विषे अलान्न नामना परीषहने बहु सहन करे ." कृष्णे कडं. “गुणोना मंदिररूप ते अणगार क्यां ठे?" जिनेश्वरे कडं. "हे सौम्य ! हवणां नगरीमां जतां तमने एन्नीकाने अर्थे नमता मुनि मलशे." पठी श्री नेमिनाथने नमस्कार करी श्रीकृष्ण पोतानी नगरी तरफ पाग फरया एवामां तेमणे महेलोनी पंक्तिने विषे फरता, फक्त हामकां अने चाममामय शरीरवाला, लावण्यना समूह विनाना, देखाती नामियोना समूहवाला अने अति उर्बल एवा ढंढण कुमार मुनिने पोतानी आ- | गल जता जो श्री नेमिनाथनां वचनश्री तेमने नलख्या; परंतु तेमना उपर , पुत्रन्नाव लाव्या नहि. पठी हर्षथी पूर्ण नेत्रवाला कृष्ण, तुरत हाथी नपरथी नीचे नतरी त्रण प्रदक्षिणा करी, पोताना मस्तकथी तेमनां चरणमां नमस्कार करी अने हाय जोमीने सामा नन्ना रही प्रसन्न चित्तथी आ प्रमाणे कहेवा लाग्या. दे मुनि! संवरश्री व्याप्त मनवाला तमने धन्य ते. कारण श्रीनेमिनाथ प्रनुए पण कर क्रियावालातमने वखाण्या . श्रेष्ठ गुणोना समरूप हे मुनि! तमेज म्हारुं कुल सफल करयुं के, जे तमने साक्षात् जिनेश्वर पण बहु वखायेते." या प्रमाणे मुनिनी वहु नक्तियी स्तुति करता एवा कृष्णने जोई गोखमा बेठेला को ोठे विचारयु जे, निश्चे आ महात्मा वहु गुणवाला देखाय ठे के, जेमनी श्रीमान् कृष्ण पोते परा ग्रानंदनी स्तुति करे ." पठी कृष्ण तेमने , नमस्कार करी पोताने घेर गया एटले ते मुनि निकाने अर्थे फरता फरता दैवयो. गी पेला शेठना घर प्रन्ये यावी पहोच्या.कृष्णने पण पूज्यपणाथी ते मुनिनेजक्तियोग्य मानी शेप तुरत गोग्वश्री नीचे नतग्यो अने पादरी नमस्कार करा Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थावच्चा पुत्रनी कथा. (३७५) पोताना घर प्रत्ये तेकी गयो, त्यां महा स्नेहवालो ते, मुनिने लामवा वहोराववा तैयार अयो. पठी संतोषना समुप ढंढण मुनि विचार करवा लाग्या के, “पूर्वे में उपार्जन करेलुं अंतराय कर्म शुं कय थर गयुं ?" पी निकादोषश्री रहित एवा ते लामवाने लइने ढंढण मुनि श्रीजिनेश्वर प्रनुनी पासे आव्या. त्यां ते लगवानने पूबवा लाग्या के, "हे प्रन्नो! आजे म्हाळं सर्व लानांतराय कर्म शुं कय पामी गयुं के, जे मने पोतानी लब्धिथीज निर्दूषण एवं मोदकान मव्यु?" अरिहंते कह्यं. “हे मुनि! हजुं तमारुं अंतराय कर्म बाकी , माटे आ पोतानी लब्धिथी श्रयेलो लान नथी; परंतु कृष्णनी लब्धिथी . कारण कृष्णे तमने नक्तिथी वंदना करी ते ए शेठे दीठी, ए नपरथी तेणे तमने मोदकवसे प्रतिलान्या .” प्रनुनां आवां वचन सांजली ढंढण मुनि विचारवा लाग्या के, “बीजानी लब्धिधी प्राप्त प्रयेला मोदको मने निश्चे कस्पता नथी." पठी प्रन्नुने नमस्कार करी शुरु नूमि प्रत्ये गयेला ते मुनि, त्यागनी श्चाधी ते मोदकोने चूर्ण करवा लाग्या. एकज नपवासना पारणाने दिवसे जे कांश प्राप्त श्रयेला अनने तुरत लक्षण करवामां नत्साहवंत श्रयेला बीजा बहु माणसो होय छे; परंतु घणा कालना तपने अंते आवा मोदकोने त्यजी देवामां ते एक ढंढण कुमारज समर्थ , बीजा नथी.पी विधिपूर्वक बन्ने । हायवमे मोदकानो चूर्ण करता ए मुनिये तत्काल पोताना सर्व घाति कर्मोने पण चूर्ण करी नाख्यां. आज वखते ते महामुनिने केवलझान नत्पन्न अयु; तेथी संतोष पामेला देवतानए तेमनो केवल महोत्सव करयो. जेवी रीते ढंढण मुनिये बहु धीरजथी पोतार्नु तप निर्वहन करी नत्तम केवलज्ञान प्राप्त करयुं तेवी रीते बीजा साधुनए पण पापनो बेद करवा माटे तप करवं. ॥इति ढंढण मुनिनी कथा.॥ इनकुलबालियान, सुपरिचतान जण बत्तीसं॥ जस्स य निरकमणमहं, दसारकुलनंदणोकासी ॥३३॥ जो पुरिससहस्संजुन, पवइन नेमिपायमूल म्मि ॥ सो यावच्चापुत्तो, चनदसपुवी सिवं पत्तो ॥३३ ॥ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७६) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. अर्थ-जेमणे महासमृध्विंत एवा व्यवहारियानी वत्रीश पुत्रीयोने परणीने त्यजी दीधी अने जेमनो दीक्षामहोत्सव श्रीकृष्ण वासुदेवे करयो. वली जेमणे एक हजार पुरुषोनी साथे श्री नेमिनाथनी पासे दीक्षा लीधी; एवा, चौद पूर्वना धारणहार ते यावच्चा पुत्र मुलि मोद प्रत्ये प्राप्त श्रया. ॥३२, ३३॥ सहसजुन तस्सीसो, चनदसवी सुट गसिद्धिं ॥ इक्वारसंगिसुयसीस, सेलन तसहपंचन ॥३४॥ __ अर्ध-ते श्रावचा पुत्रनो शिष्य अने चौद पूर्वधारी एवो शुक, एक ह. जार शिष्यनी साये मोद पान्यो . वली एकादशांगीलो जाण एवो शुकशिष्य सैलक पण पांचसो शिष्यो सहित सिदिपाम्यो . ॥ ३४ ॥ यावच्चा पुत्रनी कथा. सौराष्ट्र देशना आपणरूप धारका नगरीमा नवमा वासुदेव कृष्ण राज्य करता हता. त्यां यावच्चा नामनी कोई प्रसिह व्यवहारीनी स्त्री वसती हती. तेने श्रावच्चा पुत्र नामे पवित्र अंगवालो पुत्र हतो. ए कुमारे बाल्य अवस्थामांज कलाधर नामना गुरुनी पासे कलाधरनी निर्मल एवी सर्व कलान क्रीमा मात्रमा ग्रहण करी लोधी हती. युवावस्था पामेला ते पुत्रने मा- .. ताए, म्होटाआमंबर पूर्वक मंगल आचारथी म्होटाशेठीयानुनी वत्रीश कन्यान परणावी. पुण्यवान् श्रावचा पुत्रे, हस्त मेलापनने वखते कन्यानना पिता पालेश्री तेटलीज कोटी प्रमाण (वत्रीह क्रोम) सोनाम्होर प्राप्त करी. पठी असंख्य दिव्य वस्तुनश्री नरपुर अने देवगृह समान पोताना निवास नुवनमा ते श्रावचा पुत्र हर्षश्री पोतानी वत्रीश कन्याननी साये लोग नोगववा लाग्यो. हवे को वखते अनेक देवतानए सेवन करेला श्री नेमिनाथ जिनेश्वर गिरनार पर्वतना नंदनवनमा समवसरया. प्रन्नुर्नु आगमन सांजली तत्काल हर्पना समूहश्री पूर्ण एबा कृप्यादि नगरवासी जनो पोताने धन्य मानता. उता तेमने वंदन करवा चाल्या. पोताना मित्रमंमलथी शोन्नता अने राजमार्ग जता एवा श्रेष्ठ अलंकारवाला लोकोने जोड्ने यावच्चापुत्रे, पोताना मि. जान के, "याजे सर्व नगरवासी उत्साहवंत प्रश्ने आम केम जाय Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यावच्चा पुत्रनी कथा. (३७७) ले? शुं नगरीमा ३६ अग्रवा कार्तिक स्वामी विगेरे को देवतानो महोत्सव ने ? जेथी आ असंख्य माणसो नत्तम वस्त्रालंकारने धारण करता उता उतावला चालता गामीघोमा विगेरे वाहनोथी रेवताचल पर्वतना शिखर नुपर जाय ." मित्रोए संतोषधी का. “हे मित्र ! कानने सुखकारी वचन सांनल. मनुष्योने नत्साहवंत श्रश्ने जवाना कारणरुप श्री नेमिनाथ प्रत्नु अहिं समवसस्या.” मित्रोनां आवां वचन सांजली अति निर्मल नाववालो श्रावचा पुत्र, पोतानी समान वयवाला मित्रोनी साये म्होटी समृझ्यिी श्री जिनेश्वर पासेगयो. त्यां तेणे विधिथी नेमिनायने प्रदक्षिणापूर्वक नमस्कार करी योग्य आसने बेसीने धर्मोपदेश सांनल्यो. ते आ प्रमाणे. “निश्चे आ संसार जन्ममरणादिकनुं कारणज ने, ए खरेखर लोकरुढी . कारण जे संसारमा सुखनी नत्पत्तिने नाश करनारा असंख्य नवो थाय ने. अनंत कुःखश्री नरपुर एवा आ संसारमा परिणामे सुंदर मतिवालो सुखार्थी पुरुषज बहु श्रेयने श्छे , माटे हे नव्यजनो ! तमे नावथी फट जैन दीक्षारूप वहाण उपर चमी संसारनो निस्तार करवामां नद्यम करो.” जिनेश्वरनां मुखथी आवो सत्य धर्मोपदेश सांजली यावच्चा पुत्र पोताना मनमां व्रतनी नत्कंग धारवा लाग्यो. सन्ना नव्या पनी तेणे पोतानो चारित्र लेवानो निर्मल परिणाम श्री जिनेश्वरनी आगल कही संचलाव्यो. वली तेणे कयुं के, “त्रण लोकना हितकारी हे प्रत्तु! हुं ज्यां सुधीमां म्हारी मातानी रजा लइ अहिं आवं त्यांसुधी आपे अहिंज रहेवू.” प्रन्नुए कह्यु." हे पुण्यवंत! विलंब करीश नहि. कारण के, पोतानुं कल्याण करनारा पुरुषो, धर्मकार्यमां विलंब करता नथी." आवी जिनेश्वरना मुखरूप धराथी शिक्षारूप अमृतनुं पान करीने थावचा पुत्र तुरत अरिहंत प्रनुने नमस्कार करी रथमां बेसीने पोताना घरप्रत्ये गयो. त्यां ते मधुर वचनथी पोतानी माताने एवी रीते प्रबोध पमामवा लाग्यो के, तेणे तुरत पोताना पुत्रने दीदा लेवानी रजा आपी. पनी पोताना पुत्रने म्होटा नत्सवयी दिदा अपाववाने नुत्साहवंत श्रयेली थावञ्चा, श्री कृष्णनी पासे जश्ने सन्ना समक्ष आ प्रमाणे कहेवा लागी. "हे स्वामिन ! अति श्रेष्ठ ऐश्वर्य लक्ष्मीवालो म्हारो श्रावच्चा पुत्र नामनो पुत्र महोत्सवश्री वत्रीश दिव्य कन्यानने परण्यो , ते हवणां सान्नलवा योग्य श्री नेमिनान प्रानुना धर्मोपदे ४८ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. शने सांजली व्रत लेवानी चा करे . में वहु आग्रह कस्यो तोपण ते पोता ना घरने विषे रहेतो नथी; तो हवे हुं पण ते म्हारा पुत्रने दीक्षा अपाववानी श्या करूं; जेश्री हे देव ! आप म्हारा नपर प्रसन्न श्रश् मने बत्र, चामर अने) मुकुट ए त्रण वस्तु आपो.” श्रावच्चानां आवां वचन सांतली क्षायक समकितने धारण करनारा अने हर्षमां व्याप्त श्रयेला कृष्ण पोताना प्रफुल्लित नेत्रश्री श्रावचाने जोता उता कहेवा लाग्यो के, “हे मात ! हुं पोतेज तमारा घरने विपे आवीने म्हारा बंधुरूप तमारा पुत्रनो स्नेहपूर्वक म्होटो दीक्षा म. होत्सव करीश." कृष्णनां या प्रकारनां वचनश्री न वर्णवी शकाय एवा संतोषने पोताना हृदयमां धारण करती तेमज कृष्णथी सत्कार पामेली अने लोकोए वखाणेली ते धावचा पोताना घरप्रत्ये आवी. पठी योमा परीवार स.. हित श्रीमान् कृष्ण तुरत थावचा पुत्रना घरे आव्या. श्रावचा पण पोताना घरने विषे चारे वाजुए तोरणो बंधावीने तेजवंत मुक्ताफलोथी साथियाननी हारोने रचाववा लागी. तेमज कुसुंवी दिव्य वस्त्रोथी युक्त एवा जल नरेला घमानने पण महा राजज्ञड़ियी वारणानी पेमलीयो नपर मूकाववा लागी. वली हाश्रमां कारीयोवाली कुमारीकान पासे गीत गवराववापूर्वक माण मुक्ताफलश्री श्री कृष्णने वधाववा लागी. पठी कुलवालानुए वधावेला कृष्ण परिवार सहित आनंदपूर्वक श्रावञ्चा: ना घरनी अंदर गया. त्यां ते मणिजभित्र सुवर्णना सिंहासन पर बेसी प्र. सन्न नेत्रश्री तेनां सर्व घरने जोवा लाग्या, आ वखते पोताना पुत्रनी वत्रीश स्त्रीयोने आगल करी थावचाये तुरत कृष्णने हर्पश्री नमस्कार कस्यो. पठे। नमस्कार करता एवा यावच्चा पुत्रने कृप्णे पोताना हाथथी पकमीने सुमित्रनी पेठे पोताना सिंहासन पर वेलायोअने सौन्नाग्यनी समृदियी कामदेव. समान तेने स्नेह दृष्टिश्री जोता उता अमृत वचनवमे कहेवा लाग्या के, "ह बन्स ! म्हाळं हितकारी वचन सांजल.आ पृथ्वीने विपे रूप संपत्तिये करान निम्पम अति कोश्नी नपमा न पापी सकाय तेवं, लोगोने योग्य-अनेस हमीने पण प्रार्थना करवा जेवू या न्हालं नव योवन . माता सर्व प्रकार दिनकारी अने स्त्रीयो पाग नत्तम गुणोयी अति मनोदर ठे. हे विशेष जाण: मो. याचो स्याम नां नेने तुं शा माटे न्यजी दे वे ? तने जे वस्तु ३४ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थावच्चा पुत्रनी कथा. (३७) होय ते आपीने हुं त्हारो मनोरथ पूर्ण करूं; परंतु म्हारां वचनथी हवणां तुं देवतानी पेठे लोगोने नोगव, वली म्हारा हस्तनी गयामां निवास करता एवा तने दीर्घकाल पर्यंत कोइ पण नय अवानो नथी तेमज त्हारी माता अने स्त्रीयो पण तेथी हर्ष पामशे, माटे हे महानाग ! हवणां तुं व्रत कष्टनी वात त्यजी दइ निःशंकपणे पोतानी स्त्रीयोनी साथे लोगोने नोगव." श्री कृष्णनां आवां वचन सांजली थावचा पुत्रे का. “हे नरें ! जो आप म्हारी जरावस्थारूप पिचाशणीने गली जवामां मंत्रवादी हो अने सन्मुख आवती एवी मृत्युरूप महाघाटीने नलंगाववाने समर्थ हो तो हुं तमारा हस्तनी गयामां सुखेकरीने निवास करूं." श्रावचा पुत्रनां आवां वचनथी विस्मय पामेलां चित्तवाला कघणे का. “हे वत्स ! त्रण जगत्मां देव, दैत्य, इं, महा चक्रवर्ती अथवा तो बीजो कोश पण ते बन्नेयी (जरावस्था अने मरणथी ) रक्षण करवाने समर्थ नमी. फक्त ए बन्नेने दलन करवामां स्वकर्मना नाशथी आत्मा एकज समर्थ ." कृष्णनां आवां तत्त्व वचन सांजली यावच्चा पुत्रे फरीथी कडं. “ जो एम ने तो हुं व्रत लश् निश्चे जरावस्थाने तथा मृत्युने नाश करीश." परी चारित्र अंगीकार करवामां दृढ इचावाला श्रावच्चापुत्रने जाणीने अति हर्ष पामेला कृष्णे पोताना सेवकोने कह्यु. “हे अनुचरो ! तमे धारका नगरीमा चारेतरफ स्पृष्ट पमह वगमावो के, यावच्चापुत्र व्रत अंगीकार करे ; तेनी साथे महासत्ववाला बीजा जे पुरुषो वैराग्यश्री दीक्षा लेशे, तेमना घरनो सर्व नार कृष्ण पोते चलावशे अने तेनो बहु विधिधी दीक्षा महोत्सव पण कृष्ण पोतेज करशे." कृष्णे आ प्रमाणे आज्ञा करेला सेवकोए तेज प्रमाणे पट्टह वगाड्यो एटले विशालकुलमां नत्पन्न अयेला एक सहस्त्र पुरूषो बहु वैराग्यथी दीक्षा लेवाने तैयार प्रया. पठी अनुत महोत्सवमा मंगलाचार पूर्वक दीका अनिषेकने अंगीकार करी नत्तम चंदनथी लिंयाएला शरीरवालो अने सर्व प्रकारनां आलूषणोने धारनारो पावचा पुत्र पोतानी मातो अने धावमातानी साथे तुरत हजारो पुरुषोए नपामेली उत्तम पालखीमां बेगे. आ वखते पेला सहस्त्र पुरुषो पण झट पोताना बंधुननी रजा लश् चंइनी पाउल नवोनी पेठे यावच्चा पुत्रनी पाठल चाट्या. कृष्णे पोतानो मुकुट थावच्चापुत्रना मस्तक नपर वांधी चामरो सहित उत्र तेना उपर धारण Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७७) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. करयु. पी हृदयने हर्षकारी गाढ वागतां एवां वाजींत्रोना शब्दोथी दिशान ने व्हेरी करी देतो, नत्तम स्वरवाला श्रेष्ठ गंधर्वोना समूहोए गायन करायेला गुणवालो, कृष्णे हर्षथी स्थाने स्थाने करावेला प्रस्ताविक नाटकोमां याचक, जनोने हर्षथी मणि, मुक्ताफल, सोनाम्होर रुपाम्होर अने वस्त्रना समूहोने आपतो, पालखीमां बेठेलो, हजारो राजानना परिवारथी वृदिपामेला नत्साहवालो, सुवासिनी स्त्रीयोनां नत्तम धवलगीतथी अनुत शोनावालो अने समृध्येि करीने लोकमां प्रत्यक्ष पुण्यना फलने स्थापन करतो पुण्यवान् थावच्चापुत्र श्री नेमिनाथ प्रन्नुना समवसरणमां आव्यो. त्यां पालखीमाथी नी. चे नतरेला, कृष्णादि मुख्य पुरुषोए प्रवेश करावेला अने पालखीमांथी नत. रेला हजार पुरुषोए बन्ने बाजुए सेवन करेला ते थावच्चापुत्रे श्री नेमिनाथ जिनेश्वरने त्रण प्रदक्षिणा करीने नमस्कार कस्या. आ अवसरे थावञ्चाये, पो ताना पुत्रने दीक्षा अपाववा माटे प्रनुनी विनंती करी के, “हे स्वामिन् पोताना कुलनो आधार, सर्वने प्रिय अने नाशवंत एवा आ लोकना बहु सुरु समूहना नोगमा नहेग बुध्विालो आ म्हारो एकनो एक पुत्र, अविनाश सुखनी श्चाथी तमारी पासे चारित्र लेवानी इबा करे , माटे हे स्वामीन म्हारा नपर प्रसन्न श्रइ ए कुमारने झट संसार समुश्थी तारो. पठी श्रावचा पुत्रे, पोताना मुकुट कुंमलादि सर्व आन्नरणो तुरत माता काली राखेला वस्त्रमा मूक्यां अने अधिकन्नावधी एक हजार पुरुषो सहित पंचमुष्टी लोच करीने श्री नेमिनाथ प्रन्नु पासे दीक्षा लीधी. त्यार पठी नग्र बुविाला ए श्रावच्चा पुत्र प्रनुनी आज्ञाश्री स्थविर साधु पासे चौद पूर्वनो अभ्यास करयो. जिनेश्वरे तेने योग्य जागी श्रेष्ठ एवा सूरिपदे स्थाप्यो अने तेने एक ह. जार साधु सोप्या एटले ते पोताना परिवार सहित श्री जिनेश्वरनी आझार्थी पृथ्वी नपर विहार करवा लाग्या. अनुक्रमे पोताना परिवार सहित ते सूरि चंपकादि श्रेष्ठ वृहोना समूदश्री रमणीय एवा गणी नामना नद्यानने विष प्रा. व्या. ए नद्याननी पाले चारे तरफ पर्वतथी विंटालाये सेलक नामनुं नगर हतं. त्यां सलक नामे राजा राज्य करतो हतो, तेने पद्मावती अने सुन्नगा। नाम वे स्त्रीयो हती. तेमां पद्मावती राजाने प्रिय हती. ए राजाने नक प्र. कृतिवालो मा नामे महातेजवंत पुत्र दतो. वली नत्तम बुध्विाला पत्रक Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थावच्चा पुत्रनी कथा. (३१) विगेरे पांचसो प्रधान हता. थावचा सूरि अनुक्रमे विहार करता ते नगरमा श्राव्या; वनपालकनां वचनश्री गुरुना आगमनने जाणीने सेलक नूपति पोताना स्त्री, पुत्र, मंत्री विगेरे परिवार सहित सुगुरु पासे आव्यो. त्यां तेणे श्रहाथी साकरना रस समान मधुर देशनानुं पान करी साधुनी सेवारूप श्रेष्ठ धर्मने अंगीकार करयो, गुगनी खाणरूप थावञ्चासूरि पण ते नूपतिने केटलाक दिवसमां धर्माधर्मनो जाग करी अन्यस्थले विहार करी गया. अनुक्रमे ते महामुनि सौगंधिका नामनी नगरी प्रत्ये आवी पहोच्या. त्यां तेमणे परिवार सहित नीलअशोक नामना नद्यानमां निवास करयो. पगी नगरवासी सर्वे लोको सूरिनी धर्मोपदेशनाने सांगली जिनेश्ना धर्मने विषे गाढ वासनावाला थया. आ वखते चार वेदरूप समुश्ने मधन करवामां प्रविण, विशेषे सांख्य मतनां सर्व शास्त्रनो जाण, सर्व संन्यासीयोमां मुख्य अने मनुष्योने मान्य एवो शुक नामे प्रसिध्द संन्यासी एक हजार शीष्यना परीवारथी सर्व पृथ्वी नपर फरतो हतो. सौगंधिका नगरीमा ते संन्यासीनो नक्त सुदर्शन नामे एक शेठ रहेतो इतो. तेणे थावच्चा पुत्र मुनिना सत्य गुणो सानटया, तेथी ते विचार करवा लाग्यो. "जो के हुं गुणना समुप शुक गुरुनो निरंतर नक्त । बु. तो पण म्हारे म्होटा अतिथियो, दर्शन करवू जोइए." आम विचार क रीने पोताना परिवार सहित ते सुदर्शन शेठे परिणामे सुंदर बुध्विमे नद्यानमा थावचा पुत्र सूरि पासे जश्तेमने नमस्कार करया, पठी देशनाने अंते शेठे विनयथी सूरिने पूज्यु के, “ हे नगवंतो! तमे कया धर्मने सुखदातार कहो गे?" सूरिये कहूं. "हे महाशय! अमे तो सर्व लोकमां अति शुरु एवो विनय मूल धर्म सर्व प्रकारनां सुखनो दातार मानीए बीए. हे बुध्विंत! ते विनय श्रावक विनय अने साधु विनय एवा नेदश्री मुख्य बे प्रकारनो ने. तेमां पहेला विनयमां निर्मल एवां पांच अणुव्रत, त्रण गुणवत, चार शिक्षाबत अने अगीयार पमिमा कदेली . आ प्रमाणेना पहेला विनयने नत्कृष्ट रीते पालनारो पुरुष अच्युत देवलोक प्रत्ये जाय . वली श्री जिनेश्वर एवा नेमिनाथ प्रन्नुए कहेला पंच म'हाव्रतरूप बीजा विनयने पालनारा पुरुषो श्रोमा कालमां सिदिपामे ." पली सूरिये ते सुदर्शन शेग्ने पूग्युं. " हे शेठ! तमने कयो धर्म इष्ट दे, ते Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. कहो.? " शेठे का. “आप बोल्या विना सांनलो. शुक गुरुए अमने सांख्यमत जागनारानने पवित्रतारूप मूलवालो धर्म करवो कह्यो . कुंक, नदी, धरा, तलाव अने परवने विषे वली समुन्ना तीरने विषे जे बहु जलथी स्नान कराय तेज गुरुनए पवित्रता कही जे.” श्रावच्चा पुत्र सूरिये कह्यु. “सान्नल, जो एम तो रुधिरथी खरमाएलु नुत्तम वस्त्र रुधिरथीज पवित्र केम थाय, हे महालाग! एज प्रमाणे प्राणीयोना विनाशादि आरंनोथी पापी बनेलो प्राणी फरी शास्त्रमा कडेलां पाप आरंनयी निश्चे पवित्र केम थाय ? जो जीवमय जलश्री वहु स्नान करवाने लीधे पवित्र श्रयेला आत्मान स्वर्ग प्रत्ये जाय तो मांछला विगेरेने तो स्वर्गमां गयेलाज समजवा. जेम रुधिरथी खरमाएलुं वस्त्र, प्रथम खाराथी लीपीने पनी नना शुछ जलवमे धोवाथी स्वच थाय ठे तेमज सावद्य प्रारंनोमी कलुषित (पापी) थयेलो जीव, नपशम अने अहिंसादिक शुः हेतुश्री पवित्र श्राय छे." सुगुरुना धावा श्रेष्ठ नुपदेशरूप अमृतना पानथी सुदर्शन शेग्नां चित्तने मोहकारी अखंमित मिथ्यात्वरूप विप नाश पाम्यु. पठी हर्षित आत्मावाला तेणे श्री श्रावचा पुत्र मुनिने नमस्कार करी समकित मूलरूप श्रावक धर्म अंगीकार कस्यो अने दररोज अति आदरथी सूरिनी सेवा करवायी शुक्ष जिनशासनतुं सर्व जाणपणुं प्राप्त करयुं. हवे पोताना नक्त एवा सुदर्शन शेठे जिनमतनो अंगीकार कस्यानी अने सांख्यमत त्यजी दीधानी वात शुक गुरुए सांगली, तेश्री ते पोतानां मनमां विचार करवा लाग्यो के, “हुं सौगंधिक नगरीमा जइ म्हारा जक्त सुदर्शनने जैनमत त्यजी देवरावी फरी म्हारा मतमा स्थापन करूं." आम धारी ते पोताना परिवार सहित त्रण दंम तथा कमंमलादि चिन्होने धारण करें। लोगंधिक नगरी प्रत्ये गयो. त्यां ते संन्यासीयोना मठमां नतरी अने दंग कमंगल विगरे मकी पोते श्रोमा परिवार सहित सुदर्शन शेग्ने घेर गयो. सुदर्शन शेठ पण सम्यक्त्वनां अतिचार अने अन्य तीथिना स्तवनश्री नयनांत श्रयो तो शुक गुरुने प्रावता जो दृष्टिश्री तेमने निरखवापूर्वक नन्नो पण या नहि. ज्यारे दीर्घकाल पर्यंत पूर्वना परिचयवाला ते शुक गुरुने शेठे वंदना पण की नहि त्याग तो निर्मल बुध्विाला शुक गुरुए पोतज तेने का के, “दे मु Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थावच्चा पुत्रनी कथा. ( ३८३ ) दर्शन ! पूर्वे तुं बहु विनयवालो म्हारो जक्त हतो तो हवणां मने देखीने तुं केम जो यतो नथी तेम वंदना पण करतो नथी ? वली आसन पण आपतो नी, तो हे महाभाग ! तें वो कया गुरु पासेश्री श्रविनय मूलरूप धर्म - गीकार को बे ? " आ प्रमाणे शुक गुरु कहता हता एटलामां श्रवसरनो जाण सुदर्शन शेव आसनथी जो यह आदरसत्कार करी तेमने श्रासने बेसारीने आनंदी कदेवा लाग्यो के, " हे गुणइ ! मने धर्मप्राप्तिनुं स्वरुप सांनलो. दवणां इछित फल आपवामां कल्पवृक्ष समान श्री नेमिनाथ जिनेश्वर जयवंता वर्ते बे. तेमना श्रावचा पुत्र नामे विनयवंत शिष्य, पृथ्वी नपर विहार करता करता अहिं नीलोद्यानसां समवसस्या बे, तेमनी पाथी हुं आ विनयधर्म पाम्यो बुं. " नावि विवेकवाला अने परिणामे सुंदर मतिवाला शुक गुरु क. " हे शेव ! आजे व्हारा गुरु पासे जइए ते जो म्हारा प्रश्नना उत्तर प्रापे तो हुं निश्वे तेने जक्तिथी वंदना करीश तेम तेनुं वचन पण मान्य राखीश. नहिं तो हुंज तेने प्रश्नश्री निरुत्तर करी नाखीश. " ग्राम कहीने शुक गुरु सुदर्शन शेठ सहित यावच्चा पुत्र सूरिनी पासे जवा निकल्या. नीलोद्यानमा गुरुनी पासे जर तेमने नमस्कार करया विनाज ग्रासन पर बेसी शुक गुरु ते महासूरिने या प्रमाणे पूग्धुं. " हे पूज्यो ! तमारी / यात्रा सुखे निर्वहन थाय बे ? यापनिय पण तेमज बे ? वली अव्याबाधपणुं तेमज प्राशुक विहार तेवोज बे.?" यावच्चा पुत्र सूरिये कह्युं. “हे महाशय ! मने ए चारे वस्तु बाघ करती नथी." शुक गुरुए " ए कइ ? " एम फरी पूठ्यं एटले यावच्चा पुत्रसूरिये या प्रमाणे विस्तारथी कयुं. " ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप ने संयमादिके करीने जे यतनारूप प्रवृत्ति कराय बे तेने जिनेश्वरोए या - त्रा मानी बे. वली इंडिय ने नोइंडिय एवा भेदथी यापनीय वे प्रकारे मा " वे. वली ते पांच प्रकारे पण कल बे. तेमां इंडिय यापनीय या प्रकारे. म्हारी नेत्रादि वाह्य इंदियो कोइथी नहिं हसाएली तेमज वश्य वर्ते वे, ते ss यापनीय कहेवाय बे की अने शांत थयेला क्रोधादिके करीने जे चित्त तपीजतुं नथी तेमज प्रति निवृत्तिवालुं रहे बे, ते नोइंडिय यापनीय कहेवाय बे. तमे म्हारा शरीरने विषे अव्यावाध - कुशलपणुं, पूढचुं तेना उत्तरमां कहुं हुं के म्हारा शरीरने विषे वायु संबंधि, पीत संबंधी ने कफ सं Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८४ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. "; बंधी सर्वे प्रकारना रोगो उदय आवता नथी. वली हुं, स्त्री पशु पिंरुकादिश्री रहित एवा गाम, नगर, खाण, देवालय, वन श्रने पर्वतनी गुफा विगेरे स्थानोमां वसु ढुं. जेथी म्हारो विहार पण तमारा कहेवा प्रमाणे प्राशुक बे. तमे साधुनो जे प्राशुक विहार कह्यो, ते या में कही बताव्यो तेज बे. आवा श्रवच्चा पुत्र सूरिये आपेला प्रश्नोतरथी शुक गुरु बहु आनंद पाम्यो. व. ली ते शुक गुरू बघा अंगना मध्यमां रहेला सेलक अध्ययनना प्रसिद्ध प्रश्नो पूग्या, ते पण ते महासूरिये क्षणमात्रमां कही बताव्या. पी मोहनीय कर्मन क्षयश्री प्रबोध पामेला शुक संन्यासी ये नक्तिश्री श्री थावच्चा पुत्रने नमस्कार करी बन्ने हाय जोमीने कह्युं के, “हे जगवन् ! म्हारा उपर प्रसन्न यइने आप मने संसार समुने तारवामां वहा समान जैनधर्मनो उपदेश करो. "पढी यावच्चा पुत्र सूरिये, संसारना जयश्री वैराग्य प्रगट करनारी नव तत्त्वमय उत्तम धर्मदेशना आपी अने संसार समुझमां वहाए समान यति धर्मनुं संदेपथी निरुपण करयुं. तेने सांजलीने गलि गयो वे मोह जेनो एवा शुक संन्यासीये यावच्चा पुत्र गुरुने कयुं. " मने उत्तम ज्ञान विना आवा संन्यासि थवाना कष्टथी सिद्धि यह नहि. खरं बे, जेवा तेवा रसश्री सुवर्ण सिद्धि क्यांथी होय ? अर्थात् नज होय. हे गुरो ! प्रापनीज पासे जैनत्रत आदरवानी इच्छा करूं कुं. कारण पूण्यना समूदी प्राप्त थयेला उत्तम मार्गने कयो पुरुष न अंगीकार करे ? " गुरुए कहूं. तपस्वी ! जेम सुख नपजे तेम कर." पठी पुण्यात्मा शुक गुरुए पोताना दजार शिष्य सहित ईशान दिशामां जइ गेरुथी रंगेला राता वस्त्रने त्यजी द‍ शीखा विगेरे कढावी नाखी. पठी शासन देवीये श्रापेला वेशने धारण करनारा तथा परिवार सहित एवा ते शुक गुरुने श्री थावच्चा पुत्र सूरिये दीक्षा श्रापी ने साधुनने योग्य एवो आचार शिखव्यो. शुक मुनि पण दर्जना अग्रज्ञागधी पण सुक्ष्म बुद्धिवमे महा स्मृतिने लीधे दृष्टिवादमय सर्वसिद्धांत थोमा वखतमां जणी गया. पी श्रावचा पुत्र सूरिये सद्गुणोश्री शुकमुनिने योग्य जाण। तेमने श्राचार्यपदे स्थाप्या. शुकमुनिना पूर्वना हजार शिष्योए पण दीक्षा लीधी; तेश्री शुक मुनि पोताना पूर्वना परिवार सहित श्री थावच्चा पुत्र मरिनी साधे विहार करवा लाग्या. } ये व्यजनोना समूहने प्रबोध करवामां तत्पर एवा शुक मुनि ५ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थावच्चा पुत्रनी कथा... (३५) . पृथ्वी उपर विहार करता करता सेलकपुरना नद्यानमां आव्या. सूरिना श्रा। गमनने जाणी उत्तम साधुना गुणमां आसक्त श्रयेला सेलक राजाए परिवार सहित त्यां जर तेमने वंदना करी. पठी सुगुरुना नपदेशरूप अमृतनुं पान करीने वैराग्यना रंगथी पूर्ण श्रयेला ए राजाए मंगलकारी दीक्षानी श्छा करी, पठी नगरमां आवी नत्तम स्वन्नाववाला ते नूपतिये तुरत पोताना पांचसो प्रधानोने बोलावीने आ प्रमाणे कडं. “हे सचिवो ! तमे सौ आदरथी म्हारां वचनने सांजलो. “हुं दवणां शुक गुरु पासे चारित्र लेवानी का करुं बु, कहो, तमारो शुं विचार बे?" आम राजाए पूज्युं एटले ते प्रधानए तेने प्रणाम करीने हितकारी आवी वाणी कही. "हे स्वामिन् ! अमने गृहावासमां तमज कल्पवृदनी पेठे इष्ट फल आपनारा लगे तो दिक्षाग्रहणमां पण तमेज अमाझं इष्ट करनारा थान. हे नराधिश ! निश्चे तमाराथी अमारो जूदो विचार शो होय ? अमे पण आपनीज साथे संसार समुन्ने तारनारी दीक्षा लश्शं.” तेनुए या प्रमाणे कडं एटले नूपतिये फरीथी कडं. “हे महाप्रधानो ! जो तमारो एवोज विचार होय तो हवणां तमे सौ पोतपोताना घरे जर म्होटा पुत्रने घरनो नार सोपी सर्व सामग्रीथी अहिं आवो के, जेथी आपणे चारित्र लश्ए.” या प्रमाणे मंत्रीयोने कही संसारथी विरक्त मनवाला सेलक नूपतिये पोताना मंमुक नामना पुत्रने विविध प्रकारना महोत्सवयी आनंदपूर्वक राज्यासने बेसास्यो अने पोते पांचसो प्रधानोनी साये तैयार थइ उद्यानमां भावी महोत्सवथी शुकसूरि पासे दीक्षा लीधी. पी सेलक राजर्षिये नत्तम बुश्विमेनक्तिश्री शुक गुरुनी पासे एकादशांगीनो अन्यास कस्यो. शुकाचार्ये तेमने योग्य जागी पोताना मूरिपदे स्थाप्या अने पांचसो साधुन सोप्या. परी पृथ्वी नपर बहु कालपर्यंत विधियी विहार करता अने पुण्यथी मनोहर एवी धर्मदेशनावमे अनेक नव्यजीवाने प्रतिबोध पमामता शुक गुरु पोतार्नु आयुष्य पूर्ण प्रयुं जागी विमलाचल नपर गया. त्यां पोताना परिवार सहित ए महामुनि एक मासना अनशनयी सर्व कर्मनो कय करी मोक्ष पाम्या. ' इवे सिझतना समुप श्री सेलक महासूरि पोताना पांचसो साधुन सहित निरंतर निर्मल चारित्रने पालता बता पृथ्वी नपर विहार करवा लाग्या. खुखा आहारथी, इस्तपना आचरणयी, महा विहारथी तेमज नत्पन्न अयेला Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७६) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वार्ध. अति विषम पित्तज्वरादि रोगथ्री पोताना शरीरने बहु पीमा पामतुं जाणता उता ए महामुनि विहार करता करता परिवार सहित सेलकपुरना नद्यानमा आवी पहोच्या. मंमुक नूपति पोताना पितारूप सेलकसूरिने नपवनमां आवे. ला जाणीने बहु नतिथी सामंत तथा प्रधानोने साथे लश् तेमने वंदना करवा माटे गयो. त्यां ते पोताना पिता सेलकसूरिने वंदना करी धर्मदेशना सानली अने पठी तेमने रोगथी पीमा पामेला जाणी विनंती करवा लाग्यो के, "हे जगवन् ! तमे आ नगरमा एक निवास स्थानने पमिलेही तेमां आवतुं चोमासु रहो. अमे श्रेष्ठ वैद्योए बतावेल निपुर्षण औषधोथी तमारी सेवा करीशु के, जेथी तमारे स्वस्थ श्रया पठी पोतानुं चारित्र पाली शकाय.” राजाना वहु आग्रहथी सूरिये तेमनुं कहेवू मान्य करयु. पली मंमुक नूपति पोताना घरे गयो अने गुरु पण म्होटी यानशालाप्रत्ये आव्या. त्यां पांचसो श्रेष्ठ मुनियोए पमिलेहन करेला पाट पाटलावाला स्थानमा सूरिये निवास कस्यो. नूपति पण तेमनी विवेकवमे सेवा करवा लाग्यो. वली राजानी आझाथी वैद्यो पण निर्डषण औषधोवमेनक्तिथी सेलक गुरुनी सेवा करवा लाग्या. एकदा वैद्योए गुरुने कयु के, “हे नगवन् ! आवा महा रोगोने अमोए मदीरापानरूप अमृतथी दूर कस्या .” वैद्यो- आq वचन सनिली सेलक सृरिये पोतानां शास्त्रनी विस्मृतिनां मुख्य कारणरूप मदीरापानने रोगोनी' निवृत्तिनुं अवलंवन धारी गीतार्थपणाथी कबुल करयं. ए प्रमाणे केटला दिव. से विविध प्रकारनी चिकित्साथी सेलक गुरुना शरीरने विषे सर्वे विषम रोगो शांति पामी गया. निश्चे सर्वे इंघियोमा रसना इंश्यना उर्जय एवा वलीटपपाथी तेमज सर्व कर्ममां मोहनीय कर्मना तेमज प्रमादना अति गहनपणा. श्री गीतार्थपति अने संविग्नमनवाला सेलकाचार्ये निरंतर नक्तपानमां बहुआ. सक्ति धारण करी, तेश्री ए महामुनि सूत्रार्थना नगवा नगाववामां, विचार करवामां, शुक्रियादिक कार्यमां अनेपट्यावश्यकमां हमेशां शिथिल वनी गया. को वखत एक पंथक विना तपमांयासक्त थयेला चारसोनवाणुं शिष्यान तर्क भयो के, “आपणा सेलकगुरु चतुर ने उतां सरस नक्तपानमां अति प्रासक्त श्रयेला ए प्रमादश्री वीजे विहार करवानी चाकरता नथी, माटेमा न धिकार ! ! चारित्र पालवामां तत्पर अने त्यजी दीधो वे ममतानो Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थावच्चा पुत्रनी कथा. (३७) नार जेमणे एवा आपणे सौ फक्त गुरुना दृढ नक्त एवा एक पंथकने अहिं गुरु पाले राखी बीजे विहार करीए." आम विचार करीने तेमज पंथकनी रजा लइने ते चारसोने नवाणुं साधुन बीजे दिवस सवारमा पाट पाटलादि पाईं सोपीने सेलकसूरिथी जूदा विहार करवा लाग्या. पाउल विनीत अने शुभ परिणामवालो पंश्रक मुनि पोताना चित्तमा विचार करवा लाग्यो के, “जो के सेलकगुरु पोताना कर्म वशथी शिथिल आत्मावाला थया ने, तो पण जेमनी पासे आलोक तथा परलोकनुं हितकारी व्रत अंगीकार करयुं ते गुरुने सुशिष्योए त्यजी देवा जोशए नहि. सर्व शास्त्र समूहने जागनारा तथा वखाणवा योग्य गुणवाला ए महात्मा गुरु पोतेज चारित्रना आचरणनो नाश श्रये ते चेती जशे." आ प्रमाणे साधुनने हितकारी तथा अति श्रेष्ठ एवो विचार करीने ते विनीत एवो पंथक, नक्तिश्री. तेवा गुरुनी पण सेवा करवा लाग्यो. वली एकलो उता आलस त्यजी अवसर प्रमाणे सर्व की या ते पोतेज करतो अने चंनी पेठे निर्मल चारित्रने पालतो हतो. चारित्रनुं आचरण करता एवा सेलक गुरु पण लोढानी सांकलोना समूहथी हाथीनी पेठे प्रमादादि शत्रुनना समूहोयी बहु बाधा पाम्या, ते एटले सुधी के, कार्तिक चातुमासनी पर्वणीने दिवसे पण ए महामुनि मीष्ठ एवा नक्तपानने मरजी मुजब जमी अने सुश् रह्या. शुः क्रियामां तत्पर अने चारित्र पालवामां निपुण बुध्विालो पंथकमुनि पण ते दिवस नपवास करी अने गुरुनी नक्ति करी, पतिक्रमण करवा लाग्यो. पनी दमासण करती वखते स्वन्नावथी सरल बुदिवाला ए पंथक यतीश्वरे पोताना मस्तकथी गुरुना चरणने विषे स्पर्श कस्यो. आ वखते तेमना मस्तकना संघटायी जागी गयेला गुरु क्रोधथी आ प्रमाणे कहेवा लाग्या के,“अरे! कया जमपुरुषे अवसर विना म्हारी निशनो नंग कस्यो ? ” परी शंकायुक्त चित्तवाला अने पोताना आत्माने गुरुना अपराधयी मलिन श्रयेला जागता उता पंथक मुनिये सरलगुगोवमे पोताना गुरुने मधुर वचनथी आ प्रमाणे कडूं. “हे प्रतो! हुं आपनो पंथक नामनो आज्ञाकारी शिष्य, आजे कार्तिकीनो दिवस होवाथी हवणां चातुर्मासिक कमासमण करुं बु. म्हारा पोतानां मस्तकना स्पर्शथी आपनी निशनो नंग थयो . आ अपराधनी हुं आपनी पासे कमा मागु दु अने हवे फरीश्री एवो Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. अपराध नहि करूं." अतिविनयवंत पंथक शिष्यनां आवां वचन सांजलीने. अति गाढ मोह निशनो नाश थवाथी ते सेलक गुरु बोध पाम्या, तेथी ते वि. चार करवा लाग्या. “ हा हा ! नत एवा मोहरूप नुतपतिने वश्य श्रयेला) मने धिक्कार ! धिक्कार !! जे में संसारना नयने दूर करनाकं चारित्र दा. री दीधुं. अहो ? में म्होटां राज्यने त्यजी दक्ष निर्मल चारित्र आदरयुं इतुं अने वहु प्रयासथी सर्व शास्त्रनो अभ्यास कस्यो हतो तां लोनथी लोपाइ गयेला बोधवालो हुं कांश करी शक्यो नहि. हा! इंश्योनो मार्ग नाश पामवाथी हवे ते सामर्थ्य क्याथी होय ? साधुन एक अतिचारनी आलोचना न ले तो निश्चे बोधीवीज उर्लन थाय एटलं नहि; परंतु बहुकाल पर्यंत संसारमा न. मवु पर्छ. में रसना इंश्यिना लोनथी बहु काल पर्यंत निश्चे असंख्य अतिचारो सेवन कस्या . तो हुं तेमनाथी शीरीते बूटीश.? दा मने धिक्कार थान! धिक्कार थान !! हवणां हुं पोतेज म्हारा आत्माने संसारनां मूल रूप पापोना समूहयी नारं अने शास्त्रमा कहेली युक्तिश्री आलोचना ला फट आवा पुराचारश्री निवृत्ती पामुं." अहो ! बहु विनीत एवा सर्वे शिष्योमां पण आ पंथक मुनिने धन्य , कारण के, अति प्रमत एवा मने ते बहु नक्तिथी सेवे वे. वली चारित्र पालवानी बुध्विालो अने सावधान एवो ते पंथकमुनि निरंतर व्रत पालतो तो म्हारी पासे रहे ." आम विचार करीने सेलक गुरुए पंकने कां. "हे सुसाधु पंथक ! महा मोदनिशने नाश करनारा त्हारा वचनश्री हुं प्रबोध पाम्यो ." पठी सेलक सूरि सर्व क्रीया करीनूपतिनी रजा लइ वीजे स्थानके वि. हार करी गया, त्यां वीजा वहुश्रुत साधु पासे पोताना सर्व दोषनी आलोचना ला ते महामुनि, पंथक साधुनी साये व्रत पालवा लाग्या. विशुइ चारित्रवाला सेलक सूरिने मोदनिशथी निर्मुक्त अयेला जागी सर्वे विनीत शिष्यो तु. रत तेमनी सेवा करवा लाग्या. परस्पर धर्मानुरागमां प्रीतिवाला ए मुनीश्वरोनी माथे सेलकमृरिये प्रमाद त्यजी दर वहुकाल विहार कस्यो. पठी अंत स. मये गुणोथी गरीष्ट एवा ते गुरु, मोक सुखनी चा करता उता पोताना स. परिवार सदित शत्रुजय पर्वत नपर गया. त्यां एक मासर्नु अनशन कर। श्री मलक महामुनि. सर्व माधुन महित निरंतर आनंदमय एवा मोदसुखः । Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारद ऋपिनी कथा. ( ३८५ ) ने पाया. हे जव्यजनो ! तमे एकाग्रचित्तवाला थइने आत्म बोधरूप कमल - ना समूहने प्रकाश करवामां सूर्यबिंब समान ने पुण्यरूप अमृतनां पात्र रूपा यावच्चा पुत्र मुनिनां उत्तम चरित्रने सांजलीने कामक्रोधादि शत्रु - नो य करनार ने कल्याणकारी एवा शुक तथा सेलक मुनीश्वरोनां श्रेष्ठ व्रतनो आश्रय करो. ॥ इति यावच्चा पुत्रनी कथा ॥ सुच्ची जिणंदवणं, सच्चं सोपंति पनि हरिणा ॥ किंसञ्चति पत्ता, चिंतंतो जाइसरणा ॥ ३५ ॥ संबुद्धो जो पढमं, नयां सच्चमेव पन्नवइ ॥ कचुलनारयरिसिं, तं वंदे सुगमणुपत्तं ॥ ३६ ॥ श्री कृष्णना पूब्वा नपरथी ' सत्य एज शोच' ए जिनेश्वरनुं वचन सत्य बे, परंतु सत्य शुं ? एम विचार करवाथी जेमने जाति स्मरण ज्ञान प्राप्त युं ने जेम केवलज्ञान मेलवी सत्य ए नामनुं प्रथम अध्ययन रच्चुं. वली जे मोकगति पाया, ते कबुल (नारद) रुषिने हुं नमस्कार करूं हुँ. ।। ३५-३६ ।। नारद ऋषिनी कथा. कुशाग्र देशमां शौर्यपुर नामे म्होढुं नगर बे त्यां धनंजय नामनो शेव वसतो हतो, तेने सुना नामे स्त्री हती. पुत्र रहित अने मिथ्या दृष्टि एवा नेजा देव देवी योनी पासे पुत्रनी याचना करता बता निरंतर व्यग्र मनवाला रहेता हता. ते नगरमा लोकने विषे प्रत्यक्ष महिमावालो सुरंबर नामे यक्ष वसतो हतो, तेथी या स्त्री पुरुषे, तेने सो पामा चमाववानी मानता करी. कोइ वखते अनंत महिमाना स्थानरूप श्री महावीर स्वामी परिवार सहित जन्यजीवोने प्रबोध पमागता बता त्यां समवसस्या. पबी श्रक्षवंत धनंजय शेठे नगरवासी जनानी साये समवसरणमां जड़ जिनेश्वरने वंदना करीने अमृतरस समान धर्म देशना सांजली. त्यार पढी तेथे तुरत त्यांज हर्ष देश विरति अंगीकार करी. Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 ( ३०० ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. पी कोइ वखते ते शेवनी स्त्री सुनाए पवित्र कांतिवाला पुत्रने जन्म प्यो. अहो ! पूर्वे करेलां पोतानां कर्मों निश्वे अवसरे फले बे पढी तो पेलो यक, आनंदयी धनंजय शेटनीपासे पोतानां बलिदान ( पूर्वे मानेला सो पामा ) ने मागवा लाग्यो. अहो ! देवतान पण कारणविना हिंसामां श्रासक्त येला देखाय बेपी पर प्राणी उपर दयालु एवा धनंजय शेठे यक्षपासे जश्ने पोतानाज शरीरने केटलाक नागमां बेदी सो ककमा करीने तेने निवेदन करुया. शेग्नां आवां सत्वश्री प्रसन्न श्रयेलो यकेंड तेने कहवा लाग्यो के. " हे धनंजय ! तुं सर्व शेगेमां मुख्य बे, माटे वरदान माग ! वरदान माग ! !” धनंजये तेनी पासे हिंसा न करवारूप वरदान माग्यो यके वरदान प्राप्यो एटले प्रसिद्ध यशवाला ने साजा थइ गयेला अंगवाला धनंजये श्री जिनेश्वर प्रभुनी प्राज्ञायी बहुकाल पर्यंत श्रावकधर्म पाल्यो . हवे कोइ वखते श्री ईमान स्वामी त्यां समवसस्या. ते वखत प्रतुना धर्मघोष ने धर्मयश नामना वे विनीत शिष्यो, शोक वृक्षनी नीचे सजाय करवा लाग्या. बहु वखत थयो; परंतु वृकनी वाया दूर गइ नहि एटले विनीत एवा ते बन्ने साधुन परस्पर कहेवा लाग्या के, " हे महामुनि ! निश्वे तमारा प्रजावथी या वृक्षनी बाया स्थिर थर वे. " वन्नेमांश्री एक साधु दूर गया तो पण वृहनी बाया बीजानजेला साधु नपर स्थिर रही. ज्यारे ते दूर गया; तो पण बाया तो तेमनी ते- ' मज स्थिर रही. पठी ते आश्चर्यने जोइ बन्ने मुनियोए श्री वीरप्रभु पासे जइने हितनी इच्छार्थी वृक्ष गयाना स्तंभननुं कारण पूग्युं. मनुए कह्यं. “पूर्वे था नगरमां राजानना मुकुटमलिरूप समुविजय नामनो भूपति राज्य करतो हतो. तेने सोममित्रा नामनी प्रियावालो यज्ञयश नामनो पुरोहित हतो. तेने यज्ञदत्त नामे पुत्र हतो. तेने सोमयशा नामे स्त्री हती. a ने सोमयज्ञाने लोकमां प्रसिद्ध कीर्तिवालो नारद नामे पुत्र इतो. उपर कहेला चारे स्त्री पुरुषो निरंतर तप करवामां कुशल हता. तेथी ते नारदने अशोकवृक्षनी नीचे मूकी दंमेशां पोतानी श्राजीविका माटे खेतरमांश्री दाणा विणी लावता हता. को वखते जृनक देवतान त्यां ते बालकने जो मसन प्रया. पनी तेन उत्पन्न ययेली दयाने लीधे तुरत ते वृक्षनी द्यायाने तंजावी बालकने वैताढ्य पर्वत उपर लग गया. त्यां तेनुए तेने प्रकृति Pos Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___: नारद ऋषिनी कथा. (३१) आदि बहु विद्यान शिखवी. अनुक्रमे ते महा सत्ववान नारद नामनो तापस थयो. हवे को एक दिवस सन्नाने विष बलन्नइ सहित श्री कृष्ण, तत्त्वज्ञ पुरुषोनी साथे तत्त्व संबंधी विचार करता हता. तेवामां त्यां नारद गया. कुष्णे तेमने सामा नगी आसन नपर बेसारीने स्पष्ट पूज्यु के, “हे नारद !जलस्नानादिके करीने पोताना पापरूप कादवनो नाश श्रतो नथी, तो तेने तात्त्वीक शौच (पवित्रपणुं) शी रीते कहेवाय ?" कृष्णनां आ प्रश्ननो नारदज्ञषि बहु बहु विचार करवा लाग्या, परंतु तेनो खरेखरो अर्थ जाणी शक्या नहि, तेथी ते तुरत आकाश मार्गे अपने पूर्व विदेहक्षेत्रमा श्री सीमंधरस्वामी पासे गया. त्यां तेमणे जिनेश्वरने पूग्युंके, “हे नाथ!शौच (पवित्रपणुं)शुं कहेवाय? प्रन्नुए नत्तर आप्यो के, सत्य एज शौच कहेवाय जे." पनी नारदशषि त्यांथी नगीने अपर महाविदेहक्षेत्रमा श्री युगंधर जिनेश्वरनी मनोहरपणाथी हर्षकारी सनामां गया. त्यां पण तेमणे प्रत्नुने हर्षथी शौच शब्दनो अर्थ पूग्यो. प्रनुए पण निश्चे पूर्वना जिनेश्वरनी पेठे शौचनो अर्थ सत्य कह्यो. पठी नारदशषि बन्ने जिनेश्वरोए कहेला शौचना अर्थने जाणी तुरत बहु नत्साह धरता धारका नगरीमा आवीने श्री कृष्णप्रत्ये कहेवा लाग्या. “हे कृष्ण ! सानलो. निश्चे शौचनो अर्थ सत्य जे.” कृष्णे फरी पूग्युं "हे साधु ! सत्य कोने कहेवू ते कहो ?” वली कृष्णे हसीने कडं. “हे मुनि! आपे कहेलो शौचनो अर्थ खरो नथी उतां तमे जेने शौचनो अर्थ पूग्यो होय तेने सत्यनो अर्थ पण पूगे." नारदज्ञषि “ए ज्ञान विना जाणी शकातुं नश्री.” एम विचार करता हता एवामां तेमने कर्मना क्षयथी जातिस्मरण झान श्रयु. अनुक्रमे नज्वल एवा संवरखें ध्यान करता ए महामुनिने केवलज्ञान नत्पन्न भयु. पती देवताए आपेला साधु वेशने धारण करी सुवर्णना कमल उपर बेठेला ते केवलीये कृष्णादिकनी आगल धर्मदेशना आपता प्रथम सत्य अर्थने प्रगट करनारुं सत्य नामर्नु अध्ययन कही बताव्यु.सर्व प्राणियोने हितकारी अनेमहाव्रतश्रीनरपुर एवासत्य अध्ययनने तथा बीजीनत्तम धर्मदेशनाने सांजली बहु नव्यजनो प्रबोध पाम्या. पठी ते कबुल नारदशषि, केवलीपणामां बहु कालपर्यंत पृथ्वी पर विहार करी अनुक्रमे मोक्षपद पाम्या." श्री महावीर प्रन्नुए पोताना धर्मघोष अने धर्मयश नामना वन्ने शिष्यो Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) ऋषिममलत्ति-पूर्वाई. ने आ नारद, वृत्तांत कहीने पनी कडं के,"ते दिवसथी ए वृक्षनी गया क्यारे । पण नमती नथी. हे नव्यजनो! तमे पूर्व जन्मने विषे संपादन करेलां कर्मरूप पापना समूहनो नाश करवा माटे आ पवित्र अने तत्त्वार्य प्रगट करनारा नारदशषिना चारित्रने सांजली निरंतर अक्षायी पवित्र मनवाला अने झट संयमरूपन्नाव शौचने करवामां बांधेला आदरवाला थान. ॥ इति नारदशषिनी कथा ॥ जो अपरमक तवं, निन्नं लहं च कायमगणितो ॥ सिद्ध विहुअरयमलं, सेलगपुत्तं तयं वंदे ॥३७॥ अर्थ-कोइए दीनाखेला अने मलिनपणाथी रुक्ष एवा पोताना देहने । नहि गणता उतां जेमणे बार प्रकारनो तप कस्यो ने एवा ते कर्मना मलने धोइ नाखनारा सेलक पुत्र (मंसुकराजशषि) ने हुं वंदना करुं बु.॥ ३७ ॥ असुरसुरपन्नगिंदा, जंतं पमिमागयं नमसंति ॥ नजितसेलासहरे, तं सिरसा सारणं वंदे ॥॥३०॥ अर्थ-गिरनार पर्वतना शिखर नपर कायोत्सर्गे रहेला जे मुनिने देव, दानव अने नुवनपतियो नमस्कार करे ते सारणमुनिने हुँ मस्तकवमे वंदना करूं तुं. ॥ ३ ॥ वली पण ग्रंथकार वे गायाए करीने सारणमुनिनी स्तुति करे .॥ वारसजिस्कूपमिमा, जेणणु चिन्ना महाणुनावण ।। वाससया निअमेणं, अम्माणि जो कासी ॥३॥ तं खविअपेमदोसं, वैदे जरमरणरोगमुत्तिनं ॥ अनलसुहसागरगयं, निवाणमनुत्तरं पत्तं ॥ ४०॥ अर्थ-जे महानुन्नावे, वार निकुपमिमा करी अने सो वर्षना अनिय. स्त्री यम्मादि तपो कस्यां ते रागपने खपावनारा, जरामरणना रोगग्री Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दमदंत महामुनिनी कथा. (३५३ ) निर्मुक्त श्रयेला, अतुल्य सुखसमुझ्ने पामेला अने नत्कृष्ट एवा मोक्षपदने अं. गीकार करेला सारणमुनिने हुं वंदना करुं बु.॥ ३५-४० ॥ नारय रिसिपामुके, वीसं सिरिनेमिनाहतिबंमि ॥ पन्नरस पासतिबे, दश सिरिवीरस्स तिबंमि॥४१॥ पत्तेअबुधसाहू, नमिमो जे भासिन सिवं पत्ता ॥ पणयालीसं रिसिना-सि आई अनयण पवराई॥४२॥ अर्थ-श्री नेमिनाथना तीर्थमां वीश, पार्श्वनाथना तीर्थमां पंदर अने वीर प्रन्नुना तीर्थमा दश एम नारद रुषि विगेरे पीशतालीश प्रत्येक बुद्ध . साधुन के, जे पीस्तालीश रुषियोए कहेला श्रेष्ठ अध्ययनो प्रकाशीने मोद पाम्या . तेमने हुं नमस्कार करुं बुं. ते पीस्तालीश रुषियोनां नाम आ प्रमाणे १ नारद, २ वर्जित, ३ पुण्यासीत, ४ अंगरुषि, ५ पुष्पशाल,६ वटकली, ७ कुंकुम, केतली ए कास्यप, १० तेतलीश्रुत, ११ मंखली, १२ जगन्नपाली, १३ मयाली, १५ बहुमधु, १५ सौरिय, १६ विंड, १७ नतरशैल, १७ कृष्ण, १ए आर, २० नटकलवादी, १ शरणकर, २२ गर्दन, २३ राम, ‘श्व हिमगिरि, २५ अखंम, २६ मयंग, श्व रक्त, श् आई, एए वईमान, ३० वायु, ३१ शश, ३२ पींग, ३३ अरुण, ३४ श्रीगिरि, ३५ अदाल, ३६ चित्रक, ३७ श्रीगिरि, ३० सति, ३ए पुत्रन्नाज, दीपायन, १ इंश्नाग, ध२ सोम, ४३ सोमयश, ४४ वसान, धए वैश्रमण. पहरियंतो उद्यो-हणेण तह पंमवेहिं थुवंतो॥ समसत्तु मित्तनावो, दमदंतमहारिसी जयन ॥४४॥ अर्थ-र्योधने प्रहार करेला तेमज पांमवोए स्तुति करेला बता शत्रुमित्रने विषे समान नाववाला दमदंत महामुनि जयवंता वर्तो. ॥दमदंत महामुनिनी कथा ॥ __ • आ.नरत क्षेत्रमा कल्याणना स्थानरूप हस्तिशीर्ष नामे महानगर के. Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए४) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. त्यां निर्दूषण एवो दमदंत नामे राजा राज्य करतो हतो. आ वखते हस्तिना. पुर नगरमां शत्रुन्ना नुजबलने नाश करनारा पांच पांमवो, कौरव सहित राज्य करता हता. केटलोक काल गया पठी को कारणथी दमदंत नूपतिनी साथे पांडवोने वैर वधी पम्युं; ते एटले सुधी के, बहु शत्रुनना समूहने त्रास पमामवामां निपुण एवा पामवो कौरवोए नत्साह पमाझ्या पता बहु सैन्य लइ दमदंत नूपतिनी साथे प्रतिवर्षे महा जयंकर युह करता, जो के कौरवो. ना पक्षश्री पांमवो बहु बलवंत हता तो पण सिंहनी पेठे यु६ करता ते महा वलवंत दमदंत नूपतिथी तेन हार पामता. कल्पांतकालना समान महानयंकर एवो ते राजा ज्यारे युझ्नुमि प्रत्ये आवतो त्यारे कौरवो सहित बलवंत एवाय पण पांडवो दीन वनी जता. जो के विजय लक्ष्मीने मेलववामा आश्चर्यकारी एवो ते दमदंत नुपाल थोमा सैन्यवालो हतो तो पण पोतानाज नुजवलथी उर्जय एवा ते राजाए बहुवार पांमवोने जीत्या हता. को वखते प्रतिवासुदेव जरासंधनी सेवा करवा माटे दमदंत नुपति राजगृह नगर प्रत्ये गयो. पाउल उल जोश रहेला पांमवोने अवसर मल्यो तेथी तेन सेना लइ तुरत दमदंत राजाना देशनो नाश करवा त्यां गया. त्यां तेन गाम, नगर, श्राकर विगेरेने लुंटता लुंटता राजधानीमां आवी बुंट करवा लाग्या अने पोतानी मरजी मुजव बहु सुवर्ण रत्न विगेरे लश तथा घ.' णा एवा गायोना धणोने वाली संपूर्ण मनोरथवाला पांमवो कौरवो सहित पाठा वल्या. अदि तुरत नपरानपर आवेला बहु उतोथी पांमवोनां श्रागमनने सांन्नलवा मात्रयी बहु कोपायमान श्रयेलो दमदंत राजा पोताने तराएलो मानी तुरत जरासंधनी अाझा लइ पागे वख्यो. राजधानी अने देशनंगना :खने मनमा लावी पोतानुं सैन्य सऊ करीने महा कोपथी पुर तथा घारण करेला खायी नयंकर प्राकृतिवालो ए राजा जेम सींचालो चकलीने मारवा तैयार प्राय तेम शत्रुना सैन्यने मारवानी चाथी जेटलामां पांमवो ग्राम प्रयाणश्री पोताने सीमामे प्रावी पहोच्या तेटलामां ते तेमनी पाठल श्रावी पहोच्यो. पठी पांमनोनुं सैन्य पुरुषार्थ त्यजी दा कष्टयी जीव लेश्न ना थने हस्तिनापुरमा पेसी गयुं. पाठल पानी पेठे पांमवोना सैन्यने दो. मायनो मदानुलट दमदत नुपनि हस्तिनापुरने घेरो घालीने रहो, पांडवो Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ दमदंत महामुनिनी कथा. (३५) पण कील्लाने सऊ करी अने दरवाजा बंध करी शीयालनी पेठे रहा. पी दमदंत राजाए दूतनां मुखश्री पांडवोने कहेवराव्यु के, “अरे जमो ! तमे शंशलानी पेठे किल्लामा पेसीने केम रह्या गे? बीलामानी पेठे तमे म्हारा निर्धणीया देशने तथा राजधानीने लुटी शुं पौरषार्थपणुं मेलव्यु ? जो तमारूं कुल क्षत्रिय, होय, तमे क्षत्रिय हो, तमारा पूर्वजो पण क्षत्रिय होय तेमजतमारी माता वीरपुत्रने जन्म आपनारी होय तो हवणां तमे मारी साथे युकरो.अरे बीकणो ! जो तमे युध्ने माटे नहि आवो तो हवे पठी जीवता उतां पण मूवानी पेठे आ नगरमांज बहुकाल पर्यंत रहो.” राजतेजश्री प्रगब्न एवा दूते तुरत सन्नामां आवीने ते सर्व पांमवोनी आगल का; परंतु कत्रिय कुलमां नत्पन्न श्रयेला बलवंत अने कौरवो सहित एवा पांमवो वाणीने नियममा राखनारा मुनिनी पेठे मौनज रहा. वली दमदंत नूपतिना पौरुषार्थने सहन करवा असमर्थ एवा पांडवो ते वखते दूतने उत्तर आपवाने पण समर्थ श्रया नहि. दूत पागे आव्यो एटले बलवंत एवा दमदंत नूपतिये तुरत सर्व स्थानके पोताना विजयनो पट्टह वगमाव्यो के, “ हे नगरवासी लोको ! तमे सौ सांनलो. में आ प्रचंम एवाय पण पांमवोने जीत्या ." पी सर्व राजमंमलमां पांडवोनी लड़ाने वृद्धि पमामतो ते राजमुकुटमणिरूप दमदंत नूप- ति पोतानी राजधानी प्रत्ये गयो. त्यां ते पोतानां तेजश्री पूर्वे नाश थइ गये ली सर्व लक्ष्मी पुण्य प्रनावने लीधे पाम्यो. दीर्घकाल पर्यंत पोतानां राज्यने पालीने अवसरे नत्पन्न थयेला वैराग्यवाला ए दमदंत नूपतिये चारित्र लीधुं. कषायना उद्म रहित एवा ए राजर्षि पोतानी पूर्व कर्मनी क्रूर घाटीने जीतवा माटे बहु तप करवा लाग्या. हवे कोश् वखते परिगृह रहित अने पंच समिति तथा त्रण गुप्ति युक्त एवा ए मुनिये पृथ्वी पर विहार करता करता हस्तिनापुरना नद्यानने विषे कायोत्सर्ग कस्बो. या वखते परिवार सहित महाबलवंत एवा पांझवो कौरवोनी साथे क्रीमा करवाने नगरनी बहार गया. त्यां पुण्यश्री पवित्र आत्मावाला युधिष्टिर राजाए, शांत तथा इंडियोने जीतनाराए महामुनिने दीग. तुरतज जेमना शरीरने विषे पुलकावली नत्पन्न अश् डे एवा महाराजा युधिष्टिरे पोताना चारे बंधुन सहित हस्ति नपरग्री नीचे नतरी त्रण प्रदक्षिणा पूर्वक नमस्कार करी Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०६ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. आनंदधी ए महामुनिनी बहु स्तुति करी. ते श्रा प्रमाणे. “ धन्य पुरुषोमां मुकुटरूप, सत्वगुणना समुरूप अने पराक्रमश्री बाह्यनावरूप शत्रुने जीतनारा हे साधो ! तमे जयवंता वर्तो. तमे प्रथम अमारा सरखा बाह्य शत्रुनने जीतीनेपवी अंतरंग शत्रुने जीतवा माटे सऊ थयेला बो. जावशत्रुने जीतवाश्री त्रण जगत्ना प्राणीयो जेमना सकुलोनी स्तुति करे बे तथा ऋण जगत्मां पूज्य पाया एवा हे मुनिराज ! तमे जयवंता वर्तो. " या प्रमाणे मुनिना चरानी रजने वारंवार स्पर्श करीने स्तुति करता एवा युधिष्टिर नूपति अत्यंत प्रसन्न as पोताना बंधुन सहित चाल्या गया. पी पुष्ट बुद्धिवालो दुर्योधन त्यां व्यो. तेने पोताना क्रूर सेवकोए पेला मुनीश्वरने नामश्री नलखाव्या एटले तो ते कहेवा लाग्यो के, " अरे ! अमारा देशनो जंग करी अने वली पाखरु करी तुं अहिं आव्यो बे ? ठीकज श्रयुं जे आज तुं म्हारा हाथे चमचो. " वीर पुरुषोमां अधम अने क्रोधथी प्राकुल एवा दुर्योधने 1 वी रीते मुनिने तिरस्कार करी ए मुनिराजने एक बीजोराना फलश्री प्रहार करो. दुर्योधननी यावी चेष्टा जोइ परस्पर स्पर्धाविंत एवा बीजा दोनता याला सेवकोए तुरत उपरानपर पथ्थरना वर्षादथी मुनिने रुधिरमय बनावी दीधा. जोके पांवोए स्तुति करी ने कौरवोए प्रहार कस्यो तोपल ए मुनी एके उपर जरा पण संतोष तेम क्रोध दर्शाव्यो नहि. आ प्रमाणे उत्कृष्ट रीते शमताने नावता ए मुनि अनुक्रमे महा उदयवाला केवलज्ञानने पाम्या. मोक्षसुखना स्वादना अर्थी एवा हे श्रेष्ठ साधुन ! जेवीरीते शरीर बलवाला दमवंत राजयेि जाए तथा अजाण पुरुषोए करेला मान अपमानने चिपे समताप धारण करयुं तेवी रीते तमे पण निरंतर संसाररसना जोगने नाश करवामां समर्थ एवा समतारसने सेवो. ॥ इति दमदंत राजर्षि कथा ॥ जलपान नेमिसमुत्ति जाणतो जंनगेहिं रिक्तो ॥ सिग्कृिवारकमु। रामसुन जयन सिद्धिगन ॥ ४५ ॥ अर्थ - ठारका नगरी चलवाथी " हुं श्री नेमिनाथनो शिष्य चुं. " एम Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (३७) कहेता एवा जे पुरुषने जूंनक देवताए आकाशमांनगल्यो, पी जे श्री नेमिनाथ प्रन्नु पासे दीदा लश् मोक्षपद पाम्यो, ते श्री नवमा बलदेवना पुत्र श्री कुब्जवारक मुनि जयवंता व” ॥ ॥ आ कुब्जवारक मुनिनो अधिकार रामना अधिकारमां कहेलो . त्यांथी जाणी लेवो. पंचविनिवपंमुसुआ, चनदशपुवी जुहिष्लप्पमुहा॥ दोमासी संलेहणपछि सत्तजये सिधा ॥४६॥ अर्थ-चौद पूर्वना धारणहार युधिष्टिरादि पांच पामवो शत्रुजय तीर्थने विषे बे मासनी संलेखना करीने मोक्षगति पाम्या . ॥ ६ ॥ प्रकरणने विषे पांमवचरित्र बहु म्होटुंगे; परंतु आ ठेकाणे तो कांक रहस्य युक्त संकेपथीज कहीए बीए. ॥पांमव चरित्र.॥ जेमणे यौवनावस्थामा रहीने पण त्रण जगतने जीतवामां मलरूपकलाक्रीमाना सुन्नट एवा कामदेवने जीत्यो बे; ते त्रण लोकना जनोए पूजेला चरणकमलवाला श्री नेमिनाथ प्रन्नु तमारा कल्याणोने वृदिपमामो. त्रण जगत्मा प्रसिध्यशना समूहवाला अने एज नवमां दीक्षाश्री प्राप्त श्रयेला महोदयवाला श्री पांमवानुं पवित्र चरित्र फक्त पोताना बोधने अर्ये करूं . ज्यां श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ अने अजितनाथ ए त्रणे जिनेश्वरोनां म्होटां श्रेष्ठ चैत्यो निरंतर शोन्नी रह्यां ने एवं कुरुदेशना आनुषणरूप अने सर्व वस्तुसमूहना निवास स्थानरूप हस्तिनापुर नामे नगर ये. त्यां श्रीषनदेव प्रनुना पुत्र कुरुराजाना असंख्य पूर्वजोश्री सुशोनित एवा वंशने विषे नत्पन्न श्रयेलो, शांत आकृतिवालो अने चंइसमान यशना समूहवालो श्रीशांतनु नामे राजा राज्य करतो हतो. संपूर्ण मंझलवाला चंनी पेठे कलानथी पूर्ण एवा ते राजामां निश्चे चंमां कलंकनी पेठे मृगयाना व्यसनरूप एक म्होटो दोष हतो. एक दिवस चपल एवा म्होटा अश्व उपर बेठेलो अने हाथमां धनुष्य बाण धारण करवायी अनेक जीवोने त्रास पमामतो ए राजा हरिगादि अनेक जीवोथी नरपुर एवा वनमां मृगया करवाने माटे गयो, त्यां अत्यंत मृगयाना-विनोदमा प्रवृत्त अयेला नूपतिये चारे तरफ अनेक वाणो Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए७) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. फेंक्यां, जेश्री श्रेष्ठ मृगोनां टोलान नासवा लाग्या; शशलान बहु नयथीत्रास पामवा लाग्या, सुवरो (नूंमो) घुघुर् शब्द करवा लाग्या; शबरो नासी जवा लाग्या, हाथीयो कामीमां पेसवा लाग्या अने चित्रको (एक जातना मृगो) पण आम तेम दूर जवा लाग्या. पडी हरिणीने आगल करीने कामीमां नासी जता एवा कोइहरणने जोनूपति तुरत तेनी पाउल चाल्यो.त्यां कामीनी अंदर वेगथी जता एवा तेणे स्वर्गथी पण अधिक शोनावालो एक महेल दोगे. पी आश्चर्य पामेलो ते महाराजा, तुरत अश्व नपरथी नीचे नतरी पगले पगले विविध प्रकारना कौतुकोने प्रफुल्लित दृष्टीथी जोतो तो ते सात मालना महेल नपर चमयो. जेटलामां ते लक्ष्मीना निवास स्थानरूप सातमा माल नपर आवी पदोच्यो तेटलामां तेणे त्यां नत्तमरूपथी शोन्नती, प्रफुल्लित मुखवाली अने जाणे लक्ष्मीनी न्हानी खाज होयनी? एवी एक कन्याने दीठी. कन्याए पण राजाने तुरत पोतानी सखी पासे आदरसत्कार करावी तेने आसन नपर वेसामयो. पठी प्रसन्न श्रयेला अने आश्चर्य पामेला राजाए ते कन्याने पूज्यु के, “ हे कल्याणि! तुं कोण दुं ? अने आ महावनमां सुखकारी महेलने विषे शा कारणथी रहे .” राजाना आवा पृभश्री प्रफुल्लित श्रयेला अंगवाली कन्याये कटाक्थी नूपतिने नत्तर प्रापवानुं पोतानी सखीने सूचव्यु एटले सखीये कडं. “हे राजन् ! आप सांनलो. वैताढ्य पर्वत नपर रत्नपुर नगरमां सर्व विद्याधरोना मुकुटमणिरूप जन्हु नामे राजा राज्य करे ये. तेने गुणोए करीने श्रेष्ठ अने सर्व कलामां प्र. वीण गंगा नामनी पुत्री के. अनुक्रमे तप्त सुवर्णना सरखा देहवाली ए पुत्रं मनोदर एवी यौवनावस्थामां आवी पहोची. एक दिवस पोताना खोलाम वठेली ते पुत्रीने पिताए पूठ्यु के, “ हे निर्मल मनवाली पुत्री ! तने कप वर रुचे ते ते तुं दवणां मने कहे ?" पुत्रीये कडं." हे तात ! जे पुरुः म्हारां बचनने जग पण नलंघन नहि करे तेज म्हारे वरवा योग्य ठे, बीजे गुगवान होय तो पण नहि." पठी जन्हु राजाए पोतानी पुत्रीने वरवा मार अनेक युवान राजपुत्रोने बोलाव्या; परंतु पुत्रीनी प्रतिका कड़वाथीस्त्रीनी प ग्वनाने लीधे जय पामेला ते राजपुत्रोमांथी को गुण समूहधी प्रसिः एवी त कन्याने पसायो नदि. हे गजन् ! ते दिवसभी प्राग्नीने पोतानी वि Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (३एए) द्याथी सिः थयेला आ गृहने विषे निर्नयपणे रहेती, नवकार मंत्रनुं ध्यान क'रती, गुरुनी नक्ति तेमज जिनेश्वरनी पूजामां आसक्त एवी आ राजपुत्री निरंतर जिनेश्वर प्रन्नुना धर्मने सेवे . वली निश्चे बाजे प्रनुनी सेवा फलीनूत अ. कारण आज सवारे को श्रेष्ठ नैमित्तिकनी साथे जन्हु राजाए अहिं श्रावीने हर्षथी आ कन्याने आ प्रमाणे कडं इतुं. “हे वत्से ! निश्चे मृगयामां आसक्त थयेलो महा तेजवंत शांतनु राजा आजे अहिं आवशे अने ते त्हारा पूर्व नवना पुण्ययोगयी खरेखर त्हारो पति अशे." आ प्रमाणे इष्ट वचन कहीने पिता जन्हु महाराजा गया पठी तुरत आ विवेकवाली राजपुत्री गंगा, विविध प्रकारना नपचारथी विशेषे श्री जिनराजनी पूजा करवा लागी. सौ. नाग्य गुणना समुप हे महाराजा ! तमे आ पुण्यना समूहथी प्रेरायला ताज अहिं प्राप्त श्रया बो.” परी हर्ष पामेला शांतनु राजाए कहूं. “म्हारे पण एनाथीज इचित कार्यनी लिहिले; माटे अद्भुत रूपनी खाण समान ए कन्या- वचन हुं क्यारे पण नल्लंघन करीश नहि. कारण एवो कयो पुरुष होय के, पोताने घरे आवेली लक्ष्मीनो वाणीवमे तिरस्कार करे ? अर्थात् को न करे, वली हे शुन्न मनवाली ! ज्यारे हुं अजाणपणाथी को वखत ए राजकन्यानुं वचन न मानें त्यारे तेणे मने निश्चे त्यजी देवो. एज म्हारो दंग हो." आ प्रमाणे ते परस्पर बहु हर्षथी वात करे ले एटलामां शांतनुं राजानुं सर्व सैन्य तेनी पाउल आवी पहोज्यु. पी पोतानी पुत्रीनी सखीनी विनंती उपरथी तुरत जन्हुराजा त्यां आवीने आदर पूर्वक बहु दर्षथी शांतनु राजाने मल्यो. त्यारबाद ए नूपतिये, तेज वखते कामदेवने निवास करवाना मंदिररूप शृंगारने धारण करनारी अने बहु पुण्यथी महा देहकांतिवाली पोतानी पुत्री गंगाने महा उत्सव पूर्वक शांतनुं राजानी साथे परणावी. त्यार पनी ते नूपाल पोताना सासराश्रकी वैताट्य पर्वतनी संपत्तिने तेमज गौरवपणाने पामी गंगाने साथे लश्ने महोत्सव पूर्वक सेना सहित लक्ष्मीथी श्रेष्ठ एवा पोताना नगर प्रत्ये आव्यो. त्यां गंगानी साथे बहु प्रेमथी नोग नोगवता ए राजानो शंकरनी पेठे केटलोक सुखमयकाल निर्गमन थयो. अवसर प्राप्त अये गंगाये नत्तम बीपनी पेठे पूर्व पूण्यथी पवित्र एवा श्रेष्ठ गर्नने धारण करयो अने दश मास पूर्ण श्रये नत्तम दिवसे श्रेष्ठ लक्षणोश्री शोन्नता एक पूत्रने जन्म Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (800) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. आप्यो, पी शांतनु राजाए विविध प्रकारना महोत्सवो करावी अने सर्व नगरवासी जनोने संतोष्य पमामी तुरत बहु हर्षथी पोताना पुत्रनुं “ गांगेय" एवं नाम पाम्यु. जेम मन, सर्व इंद्रियो अने बुद्धि अनेक श्रेष्ठ नावोथी आत्माने लालन पालन करे तेम नाग्यकलाश्री मनोहर एवा ते बालकने चतुर एवी पांच धावमातान लालन पालन करवा लागी. एकदा मृगया रमवाने तैयार श्रयेला शांतनु राजाने जो दयालु चित्तवाली गंगाये तेने पोतानी पासे वोलावीने आ प्रमाणे कां. “हे नाथ ! तमे नीतिवंत पुरुषोमांअने शौर्यवंत पुरुपोमां अग्रेसर गणानगे उतां मृगयाना विनोदश्री मृगादि जीवोने हणता तमे उत्तम पुरुषोना कया निर्मल गुणने प्राप्त कस्यो ? हे राजन् ! प्राणीयोनो नाश करनारी मृगया मनुष्योने बीजा नवमां निश्चे नरक आपनारी पाय ठे, एम विचार करीने हे आर्य ! तमारे तेनो त्याग करवो जोइए.” राणी आ प्रमाणे विनंती करीने पठी मौन रही एटले नूपतिये कह्यं. “हे प्रिये ! सोनल, जोके सत्य.अने हितकारी एवं त्हारं व. चन शीघ्र नीतिमार्ग प्रत्येज गति करे . वली हुं पण दयारूप एक मूलवाला धर्मने जाणुं , तोपण मृगयानी श्चाने त्यजी देवा समर्थ थतो नथी, माटे हुँ पोतेज हृदयमां विचार करीने तेने त्यजी दन त्यां पर्यंत तुं मने ना नहि पाम. वली हे मृगादी ! आ व्यसनो महा दोषने लीधे आ लोकमां तेमज परलोकमां वहु दुःखकारीज श्राय ठे, एम हुं जाणुं बु. तथापी खरजनी पेठे तेने त्यजी देवाने हुं असमर्थ दूं. हे नई ! निश्चे हमेशा हिंसारूप अधर्मने सारी रीते जाणतो तथा ते अहिंसारूप (दयामय) आश्रवने स्मरण करतो हुं मृगयाने अयें जानं . कारण ते विना हुँ रहि शकतो नथी. हाहा !! हवे शुं करूं?" या प्रमाणे शांतनुराजा पोतानी प्रियाने कहीने अनेक सुलटो सदित मृगया करवा गयो. पाउल पोतानां वचनना अपमानथी खेद पामत। गंगा पण पुत्र सहित वैताढ्य पर्वत नपर पोताना पिताने घेर गइ. बहु काले शांतनु नृपति मृगया करीने पोताना घर प्रत्ये प्राव्यो.त्यां ते पुत्र सहित रा. गीन पोताना पिताने घेर गयेली सांजली वहु खेद पाम्यो. वली वारंवार गं. गाना गुणसमूहने हदयमा संन्नारतो तेमज पोताना पुत्रने पण फरी फरी याद लावता ने मदागजा, स्मरण करवा योग्य नोगयी नत्पन्न श्रयेली काम Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४०१) सुख संपत्तिने क्यारे पण नहि पामतो तो बहु शोक करवा लाग्यो. पठी स्त्री पुत्रना बहु वियोग दुःखथी शांतनु राजाए मृगयानुं व्यसन त्यजी दश् चोविश वर्ष पर्यंत घरने विषेज निवास कस्खो. त्यारबाद स्वनावधीज नस्केरायेला ते महिपतिये स्त्री पुत्रना वियोगने नुली जइ तुरत पूर्वनी पेठे रसथी मृगया विनोद करवानो आरंज कस्यो. एक वखते मृगया करवाने वनमां गयेला ते नूपतिने हाथमां धनुष्यबाप धारण करनारा, शरणे आवेलानुं रक्षण करनारा, आनूषणोयी सुशोनित अंगवाला अने श्रेष्ठ आकृतिवाला को युवान् कुमारे आ प्रमाणे स्पष्ट कडं. “अरे ! अहिं सर्व जीवोनुं रक्षण करनार हुँ विद्यमान ता तुं पारधिनी पेठे निर्दयमनश्री मृगादि जीवोने नाश करनारी मृगया केम करे ले ? आस्थानके संसारना मूलरूप अने अपवित्र एवी मृगया त्यजी दे, नहि तो हुँ तने तुरत आ । बाणवझे मारी नाखीश."कुमारनां आवां वचनश्री शांतनु राजाए हसीने कडं. "हे बाल ! हुं त्हारां आवां वचनयी नय पामुं तेवो नश्री, अहो ! मृगना वालकनो शब्द सांजलीने | केशरीसिंह नाशी जाय खरो ? पगी बन्ने जणानुं बाणादि शस्त्रोवमे महा घोर युः चाब्युं, तेमां नूपतिनां सर्व बाणो कुमारे बेदी नाख्यां; परंतु दयाने लीधे तेणे राजाने मास्यो नहि. नूपतिये क्रोध क रीने कुमारनो नाश करवा माटे बहु बाणो मूक्यां, पण जेम वायुनी आगल । बीजा साधारण शब्दो निष्फल थाय तेम कुमारनी विद्याना बलथी निष्फल श्रेया. पनी पोताना सर्व सैन्यसहित शांतनु राजा कुमारनी संगाथे युःकरतो उतो विचारवा लाग्यो के, “आ कोई देवता म्हारी परीक्षा करवा आव्यो ने के शुं?" आ अवसरे युक्ष्ना नयंकर शब्द सांगली रणनूमिमां आवेली गंगाए पोताना पतिने तथा पुत्रने जोश बहु हर्ष पामता बता आ प्रमाणे कडं. "पोताना वंशमां मुक्ताफलरूप अने सगुणोथी मनोहर एवा हे पुत्र गांगेय ! हारा सरखाने क्यारे पण पोताना पितानी संगाचे युद्ध करवू योग्य नथी, : माटे तुं फट युध्ने त्यजी दइ नक्तिथी पोताना पितानां चरणकमलने प्रणाम । कर. कारण के, कुलीन पवित्र पुत्रो क्यारेय पितानुं मनवमे करीने पण अ। पमान करता नथी." पोतानी मातानां आवां वचन सनिली प्रबोध पामेला ९ श्रेष्ठ गांगेय कुमारे, युः त्यजी दर नक्तिथी पोताना पितानां चरणकमलने Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. विषे प्रणाम कस्या. शांतनु राजाए पण ते पोताना पुत्रने मूकी दइ अने ते पोतानी माणनिया गंगाने जो मनमा बहु आनंदथी विचार करता तेने नलखी. पठी तेणे गाढ स्नेहथी ते पोताना पुत्रने आलिंगन करी प्रेमपूर्वक अतिसारवालां मधुर वचनथी प्रियाने कडं. “हे प्रिये ! तुं वेगथी पोताना पिताने घेर गश्; तेथी जेम कमल विनानुं म्होटुं तलाव शोनारहित देखाय तेम म्हासं सर्व घर पण तेवूज मालम पमेने. हे कमलादी ! जेम प्रद्युम्नयुक्त लक्ष्मी विना कृष्ण क्यारे पण प्रीति न पामे तेम पुत्रयुक्त हारा विना म्हारं मन क्यारे पण धीरज नश्री पामतुं, माटे हे प्रिये ! कुलमां आन्नूषणरूप पुत्रसदित तुं पोताना मंदिरने सुशोनित कर. कारण हे मृगादी ! कुलकन्यान निश्चे पोताना घरने विषेशोन्ना पामे ." पतिनां आवां वचन सांजलीने तेज वखते चंसमान मनोहर मुखवाली गंगाए का. “हे प्रिय ! संसाररूप वनने वृदिपमामवामां मेघसमान आ नोगो मने प्रीति करता नथी, माटे हुँ तो अहिंज रहिने श्री जिनेश्वर प्रन्नुए कहेला निर्मल धर्मर्नु आचरण करें। श. हे नूपति ! आपनुं कल्याण थान अने तमे पुत्रसहित पोताना नगरमा जश्ने दीर्घकालपर्यंत राज्य करो.” पठी प्रियाना महा घोर कदाग्रहने जाण। खेद पामेलो राजा तेजश्री देदीप्यमान एवा पोताना पुत्र गांगेयने साये लह। पोताना नगर प्रत्ये गयो. पठी कोइ वखते वनमां क्रीमा करवाने गयेला शांतनु राजाए कोश् . काणे नदीना काठे नुन्नेली कोइ महारूपवती कन्याने दीठी. “तुं कोण , कोनी पुत्री कुं अने अहिं केम नन्नी ?" एम नूपतिथे पूज्यु एटले कन्याय कडं के, “ मनुष्योमा रत्नरूप हे महाराजा ! हुं नावीकनी पुत्री कुं अने श्रा नदीना कांठे नावने चलाववा माटे नन्नी वु.वली लोकोमा सत्यवती नामश्री हु प्रतिवं." कन्यानां वां वचन सान्नलीने तेनां रूपथी नुत्पन्न श्रयेला गाळ अनरागना समहाश्री शांतनुराजा तेना पिता पासे जश्ने या प्रमाणे कहवा ला ग्यो. “दे नाविक ! रुपपात्र पोतानी पुत्री मने राजाने यापीने अने म्हारा पानेत्री अनंख्य लदमी पामीने तुं पोताना स्वजनोनी साये दीर्घकाल पयत अनंख्य सुग्वोंने लोगव. नृपतिनां यावां वचनश्री अति प्रसन्न श्रयेला नाविक को." हे नृमिपति ! ९ म्हारी पुत्री आपने नहि श्रापुं. कारण के, तमार Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र. ( ४०३ ) गांगेय नामनो महा बलवंत पुत्र बे, तेथी राज्यभारने धारण करवामां समर्थ } एवा ते पुत्र बता म्हारी पुत्रीना पुत्रने राज्य क्यांश्री मले ? माटे खरेखर नतम रूपवाली म्हारी पुत्री हुं आपने नहिज प्रापुं. " पछी इच्छित कार्यनी सि नहि थवा लीधे प्रति खेद पामेलो शांतनुराजा पोताना घर प्रत्ये आव्यो. त्यां या सर्व वात जाणीने मनमां अत्यंत खेद पामेलो गांगेय कुमार विचार करवा लाग्यो. " निश्वे जेनए प्रतिपूज्य अने देवरूप पोताना मातापितानी आशा पूर्ण करी नथी ते प्रथम पुरुषोना जीवितने धिक्कार थान अने तेमनुं जुज विर्य पण वृथा बे, माटे ज्यारे हुं साध्य अथवा असाध्य विविध प्रकारना नपायी ते कन्या म्हारा पिताने अपावुं त्यारे हुं निरंतर मनुष्योमां उत्तमपपासुं." या प्रमाणे विचार करीने गुणोथी गरीष्ट एवो गांगेय कुमार पोताना स्वजनाने साथै लइ नाविक पासे प्रवीने अमृतथी पण अधिक रसवा - ली वाली करीने कहेवा लाग्यो. " हे नाविक ! अनुरक्त चित्तवाला अने योग्य एवा श्री शांतनु राजाने तुं पोतानी पुत्री शा कारणथी नयी प्रापतो ? हवां कहे ? " नाविके कां. " हे कुमार ! हुं म्हारी पुत्री तमारा पिताने शीरीते ? कारण तमे तेमनां राज्यने धारण करो तेवा पुत्र हो तो पी म्हारी पुत्रीना पुत्रोए करीने शुं ? अर्थात् तमे बता म्हारी पुत्रीना पुत्रोने राज्य 'मले नहि. एज कारणथी हुं म्हारी पुत्री तेमने प्रापतो नथी. 4 "" गांगेये कह्युं. “आजी म्हारे या नवमां राज्यासने बेसवानो नियम बे; माटे हुं हारी पासे याचना करूं बुं के, तुं पोतानी पुत्री ऊट म्हारा पिताने आप, कारण शीघ्र आवी पमेला हितकार्यमां कयो पुरुष विलंब करे ? अर्थात् कोइ न करे. " पी नाविके कांइक हसीने कां. " राजकुमार ! तमे राज्यनो निषेध कस्यो, परंतु तमने तमारा जेवा बलवंत पुत्रो थाय तो तेन राज्यना अधिकारी कहेवाय माटे हुं म्हारी पुत्री तो नहिज आपुं.” पबी पितानी नक्तिने विषे आसक्त चित्तवाला कुमारे नाविकने कघुं. “जो व्दारां चित्तने विषे एम वे तो मने जवने विषे महाघोर एवं ब्रह्मचर्य व्रत हो. " गांगेयनां आवां वचनी अति हर्षित थयेला नाविके कह्युं. " हे उत्तम राजपुत्र ! त्यारे तो वे या म्हारी पुत्रीने लइ जश्ने तमे ऊट पोताना पितानी साथे परसावो.” पठी पोतानी कार्यसिद्धिश्री अति दर्पित चितवाला गांगेय कुमारे ते कन्याने Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. साथे लइ जर तुरत पोताना पिता शांतनु राजानो मनोरथ पूर्ण कर्यो. पठी नत्तम लोकोत्तर गुणवाला अने महानक्त एवा गांगेय कुमारने विषे पोताना सर्व राज्यनो नार मूकीने शांतुनु राजा सत्यवतीनी साथे नोगनोगववा ला.. ग्यो. अनुक्रमे नूपत्तिनी साथे श्या प्रमाणे लोग जोगवता सत्यवतीने महानुजवलवाला चित्रवीर्य अने विचित्रवीर्य एवा नामना बे पुत्रो श्रया. केटलोक काल गया पठी शांतनु राजा काल धर्म पाम्यो एटले गांगेय तुरत राज्यने विषे चित्रवीर्यने वेसारयो अने विचित्रवीर्यने युवराज पही आपी. ___ को वखत गांगेय को महायुधमां गया हता, एवामां पाउलथी शत्रुनए आवीने विचित्रवीर्यने मारी नाख्यो. ते वातनी खबर सेवकोए गांगेयने कही; तेश्री तेमणे ते पोताना बंधुने मारनार शत्रुने मारी नाख्यो. पनी गांगेये हर्पथी विचित्रवीर्यने राज्यसन नपर वेसारी अने तेने अंवा, अंबामा अने अंवीका नामनी त्रण उत्तम राज्य कन्या परणावी. विचित्रवीर्य पण बहु कामासक्तिने लीधे थयेला वयथी मृत्यु पाम्यो अने तेनी त्रण स्त्रीयोने अनुक्रमे जाणे सऊन पुरुषोने मान्य एवा साक्षात् पुरुषार्थज होयनी ? एवा सुझुणोथी शोन्नता धृतराष्ट्र पांकु अने विधुर एवा नामना त्रण पुत्रो थया. प. टी दृढ ब्रह्मचर्य व्रतवाला गांगेये, धृतराष्ट्र पुत्रने नत्तम रूपवती गांधारी विगेरे, श्रेष्ठ पाठ राजकन्यान म्होटा नत्सवथी परणावी.अनुक्रमे ते स्त्रीयोने न्याय ना जाण एवा योधनादि सो पुत्रो थया के, जेन कुरुराजाना वंशने विषे नत्पन्न श्रवानी कौरवो कहेवाया. ऽर्योधनना जन्मना त्रीशमे मासे एवी श्राकाश वाणी पक्ष के, “ मद्यना समान पीलां नेत्रवालो आ र्योधन, फक्त पोता. ना कुलनो नदि पण सर्व कृत्रियोनो नाश करनारो शे." एक दिवस सुरपुरना अंधकवृष्णि राजानी पुत्री कुंतीनी को पुरुष वर्णन करेली रूपलक्ष्मीने सांतली पांमुकुमार तेने विषे वहु अनुराग धरवा । लाग्यो. सन्नामां वठेला अंधक वृष्णिराजाना खोलामां वेठेली कुंतीये पण कोइ पुरुषे वर्णन करेला पांमु कुमारना गुणो सान्नल्या, ते नपरश्री पासुन विष बहु अनुगग धरती ते कुंतीये एवी प्रतिज्ञा करी के, “श्रा नवने ५ म्हांग ना पांमुगजा दो, नदि तो म्हारे संयम लेबो योग्य वे." त्यारपर्व जेम मुनियो पातानुं मन यात्माने विज यारोपण करे तेम कुंतीये । Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४० ) क्रीमावन, पोतानी सखीयोनी वार्ता अने कुतुहल इत्यादि अनेक स्थानोथी पोतानां मनने खेंची लक्ष फक्त पांमुराजाने विषेज धारण करयु. कांबे केपूर्वनवमां जे माणसने जेनी साथे शुन्न अथवा अशुन्न जेवो मेलाप थयो होय ते माणसने आ नवमां तेना दर्शनथी अथवा तो तेने सांजलवाथी वहु प्रीति थाय जे. हवे पांमुकुमार कुंतीना वियोगथी पोताने घरने विषे सुख न परवाने सीधे वनमा फरतो हतो, एवामां तेणे लोहमयबाणथी विधायेला अने मूळ पामेला को पुरुषने दीगे. वली तेणे ते पुरुषनी पासे पमेनुं एक खम् दी. पछी तो दयाथी नींजा गयेला चित्तवाला अने कुंतीना वियोगःखने नूली गयेला पांमुकुमारे ते पुरुषने देखवा मात्रथीज पोताना चित्तमां “आ कोण ?" एम विचार करवा मांझयो. वली ते खमुनी उपर पमेली बे औषधोनने जो अने तेना महिमाने जागी दयावंत पांमुकुमारे ते पुरुषने एक औषधीवमे शयरहित अने बीजीवमे घा रहित कस्यो. पठी "तुं कोण ने अने हारी श्रावी अवस्था केम थर ?” एम पांमुकुमारे पुग्युएटले ते पुरुषे कडं के, “हे सुन्नग! हुं अनिलगति नामे विद्याधरोनो प्रौढ समृध्विालो तथा महा प्रतापवालो राजा ई. कामदेवने वश श्रयेला अशनीवत विद्याधरे बलथी म्हारी प्रा. । णप्रियाहरण करयु. हुं तेनी पाउल जवा लाग्यो एटले महाकोपथी नरपुर थयेला ए विद्याधरे तुरत मने आवी अवस्था प्रत्ये पहोचाभ्यो. हे महानाग! एज वखते निष्कारण नपकारी एवा तमे म्हारा नाग्ययोगथी अहिं आवी पहोच्या. जे दयाश्री जीजायेला चित्तवाला तमोए मने आ मरणांत सुःखकारी कष्टथी मूकाव्यो. हे नाइ ! जीवितदान आपनारा तमोने हुं शुं झट प्रत्युपकार करूं ? हे राजन् ! आबे औषधी अने आ मुश ए बने वस्तुनने गृहण करो. हे बंधो ! तमे आ मुशना योगथी इष्टस्थाने शीघ्र पहोची शकशो. वली तमे ज्यारे मने संन्नारशो त्यारे हुं आपनी पासे हाजर यश.” आ प्रमाणे ते विद्याधर पांसुकुमारने कहीने पोताने स्थानके गयो अने विद्याधरना गुणथी हर्ष पामेलो पांमुकुमार पण ते विद्याधरने तथा कुंतीने पोतानां चि___ 'तमा वारंवार स्मरण करतो तुरत पोताना नगरप्रत्ये आव्यो. . हवे को एक दिवस पांमुना वियोगःखथी आकुलव्याकुल थयेली .... Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७६) ऋषिममलयत्ति-पूर्वाई. ते राजकुमारली प्राप्तिने फुर्खन मानवाशी अति खेद पामेली कुंती मृत्यु पाम.. वानी श्चाथी फट क्रीलावनमां गइ. त्यां ते राजकुमारी हाथ जोमीने “हे कुलदेवता! उलन पतिवाली अने शरणरहित एवी हुं तमारी प्रार्थना करीने अाजे मरण पामुं.” एम कहीने तेणे पोताना कंग्ने विषे पास बांध्यो.पठी जेटलामां ब्रमश्री पीमा पामती कुंती पोतानां चित्तमां पांमुराजानुं स्मरण करती उती लटकी तेटलामां मुशना प्रत्नावश्री पांसुकुमार “हे प्रिये ! तुं वलात्कार न कर ! न कर !! त्हारा पुण्यने लीधे हुं पांमुकुमार पोतेज अहिं श्रावी पहोच्यो ." आ प्रमाणे कतो एवो पांमु त्यां आवी पहोच्यो अने तत्काल तेणे पोताना हाथी कुंतीना कंठपाशने दी नाख्यो. पोताने वहालो पति पांसुकुमार प्राप्त थयेलो जागी परसेवा अने रोमांचादिकथी पोताना शरीरने विपे वहु नावने वृदिपमारुती कुंती अत्यंत हर्ष पामी. पनी सतीपणाने चती एवी हर्पवंती कुंतीये सखीयोए आणेला योग्य नपचारथी गांधर्वविवाहवझे पांमुराजानो पाणीग्रहण कस्यो. पठी तेज वखते त्यां संनोग करवाश्री ऋतुस्नानवाली कुंतीये दैवयोगटी गर्न धारण कस्यो अने ते वात अवतंसिकानामनी दासीये पांमुराजाने कही. पठी पोतार्नु कार्य सिह अयुं एटले पांमुकुमार मुज्ञना योगयी पोताना देशमा गयो अने गर्न धारण करती एवी कुंतीने तेनी सखीयोए गुप्तरीते राखी. जेम रोहणाचल पर्वतनी नूमि गोपवी राखेला रत्नने वेगश्री प्रगट करे तेम निरंतर धावमाता अने सखीयोए गोपवी राखेली कुंतीये अवसरे एक पुत्रने जन्म आप्यो. लजायी मन विना ते पुत्रने कुंतीये एक कांसानी पेटीमां मूकीने पोतानी सखीयोनी पासे ते पेटीने गंगाना महा प्रवाहमा तणाती मूकावी. अनुक्रमे गंगाना महा प्रवादमां तणाती ते पेटी दस्तिनापुरनी पासे आवी पहोची. त्यां सवारे स्नान करखा गयेला नागसारधीये ते पेटी ल लीधी. पठी जेम वादलाश्री निर्मुक्त श्रयेला मृर्यने जो चकलो दर्प पामे तेम पेटी नघामवाथी वालकने जो दर्प पामेला सारथीये ते कुमारने पोताना पुत्रनी पेठे मानी पोतानी स्त्री रा. घान सांप्यो. मातापिताए तेनुं "कर्ण" नाम पामयं. अनुक्रमे वृद्धि पामेलो ने गुणाना स्थानरूप ए नागसारणीनो पुत्र [कर्ण] वृतराष्ट्र नूपतिने बहु मालो पमची, Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४०७) पी अंधकवृष्णि नूपतिये, धावमाता पासेथी कुंतीना चित्तना अन्निप्रायने जाणी जेम रात्रीने चंनी साधे परणावे तेम तेने म्होटा नत्सवयी । पांमु कुमारनी साये परणावी. मक राजानी पवित्र पुत्री माकी पण गु गोथी आसक्त श्रवाने लीधे स्वयंवरमां पांमुने परणी; तेथी पांमुने कुंती अने माकी एवी वे स्त्रीयो श्रइ. जेम कामदेव रति अने प्रीतिनी साथे क्रीमा करे तेम महा शक्तिवंत अने प्रसरता प्रतापवालो पांमुराजा पण ते पोतानी बन्ने स्त्रीयो साथे नोगोने नोगवतो हतो. पठी कोइ एक दिवसे रात्रीना वखते बहु नाग्यवाली कुंतीये स्वप्नामां मेरु पर्वत, कीर समुह, सूर्य चंचें प्रतिबिंब अने लक्ष्मी एटली वस्तु दीठी. स्वप्नप्रन्नावथी रत्नगर्ला (पृथ्वी) नी पेठे नत्तम गर्नने धारण करती कुंती निरंतर दिवस दिवसने विषे श्रेष्ठ धर्मकार्यरूप मनोरथोनो विचार करती हती. पनी जेटलामां शुन्न लग्ने सारा दिवसे अने सूर्यादि पांच ग्रहो नच्चस्थाने रह्ये उते कुंतीये पुत्रीने जन्म आप्यो तेटलामां आकाशथी पांसुराजाना घरने विषे पुष्पवृष्टि श्रइ. “ उचलता दया दान दमादि सर्व गुणोए करीने शोनतो आ राजकुमार निश्चे धर्मपुत्र ." एम नचार करता देवतान ते वखते महा हर्षथी पांमुना घरने विषे आव्या. सारो दिवस, देववाणी अने महोत्सवोए करीने युधिष्टिर एवा नामश्री प्रसीद अये7 लो ते कुमार प्रशंसा करता एवा मनुष्योनी मध्ये सत्य गुणोथी वखाणवा योग्य अने कलाधारी अयो. कुंतीये बीजी वखत रात्रीने विषे स्वप्नामां पोताना आंगणे वायु देवताए वावेला कल्पवृदने फलीभूत अयेखें जोश्ने पठी जागी गयेली ते बहु हर्ष पामी. जेम बीप मोतीने धारण करे तेम कुंतीये स्वप्नना प्रन्नावश्री जगतने विषे नत्तम एवा गर्नने धारण कस्यो. आ वात पांसुराजाए जाणी; तेथी ते विश्वमां बहु दर्ष अने संतोष पाम्यो. परी ज्यारे गांधारीये अयोधनने जन्म आप्यो, तेनी पाबल त्रण पहोरे कुंतीये बीजा पुत्रने जन्म आप्यो. ते वखते आकाशमां "आ पुत्र वन समान शरीरवालो, श्रेष्ट धर्मने विषे धीरजवंत अने म्होटा बंधुनी सेवा करवा तत्पर अने नीम (नयंकर) बलवालो थशे." एम आकाशवाणी इ. आ नपरथी लोकमां ए पुत्रनीम नाम पम्यु. को वखत पांमुराजा, पोतानी प्रियान सहित कोइ पर्वतने विषे क्रीमा Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. करवा गयो हतो, एवामां त्यां कुंतीना हस्तकमलथी महा वज समान देह.. वालो नीमसेन बालक, पृथ्वी नपर पमी गयो. जाणे ईवज मुक्युं होयनी? एवा नीमसेनना पम्वाथी नीचे रहेली सर्व शिलान घंटीना योगथी कोम। ल चोखानी पेठे तत्काल चूर्णरूप श्रश् गइ. “आ कुमार महावज्रकाय ." एम कहेता एवा देवतानए, अक्षतांग (जेना शरीरने विषे जरा पण नथी वाग्यु.) एवा ते बालकने लश्ने कुंतीने आप्यो; जथी ते अंधकवृष्णिराजानी पुत्री कुंती, पांमुराजा सहित बहु हर्ष पामी. पठी कुंतीये महा पुण्ययोगयी अवसरे त्रीजा गर्नने धारण करयो. आ वखते तेणे स्वप्नामां ऐरावतहस्ति नपर वेठेला इंश्ने जोयो. "शुं हुं ते हायमां धनुष्य धारण करीने अनेक दैत्यने दली नांदुं अथवा तो शत्रुनना वक्षस्थलने चूर्ण करी ना" या प्रमा तेणे दोहन उत्पन्न अयो हतो. पठी पूर्ण अवसरे कुंतीये, विश्वमां नत्कृष्ट अने सूर्य समान देदिव्य अंगवाला एक पुत्रने जन्म आप्यो. आ वखते आकाशमां देवतानए “ आ इंपुत्र अर्जुन " एम म्होटो ध्वनी करीने अप्सरानना नाच अने वाजींत्रोना शब्द पूर्वक पुष्पनो वर्षाद वरसाव्यो. पांमुराजाए पण पुत्र जन्मनो म्होटो नत्सव कस्बो, माकीने पण कुलरूप समुख्ने नल्लास पमामवामां चंप नकुल अने सहदेव नामनां बे पुत्रो श्रया. महाराजा पांमु या पांच पुत्रोए करीने पृथ्वीने विषे वहु शोन्नतो हतो. धृतराष्ट्र राजाने पण अनुक्रमे शत्रुनो नाश करवानी छावाला सो पुत्रो थया. ते सर्वे शास्त्रमा कहेली कलानना समूहना जाण अने कुलने आनंद आपवामां चंदनवृत समान श्रया. सो पुत्रोए करीने धृतराष्ट्र राजा संपूर्णपणाने पामेला कौरवपकीने प्रवोध पमामनारा अने तारानथी विंटलाएला चंनी पेठे बहु शोन्नतो हतो. हवे एक दिवस पांमुराजासहित कुंती यात्राने माटे नासीकपुरप्रत्ये गइ. त्यां तेणे चंप्रल तीर्थकरनुं म्होटुं नवीन चैत्य कराव्युं. जिनेश्वरनी पूजा, भारती, नृत्य, दानादि सर्व क्रीया करीने पुण्यधी पवित्र अंगवाली ते पोता. ना पतिनी साथे पोताना नगर प्रत्ये श्रावी. जे मनुष्य था नासीक नगरने वि. प रहेता श्री चंपन्न तीर्थकरने नक्तिथी प्रणाम करे ठे, ते श्रावता जवने । विष बोधी बीजने पामी अंत उत्तमगतिने पामे . सत्यवाणीवालो अने पो Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. ( एं). तानी मेले प्रसिद्धि पामेलो श्री धर्मपुत्र युधिष्ठिर, पवनना सरखा महानुजबलवालो पवन पुत्र नीम, त्रलोकमां विजय मेलवनार इं६ पुत्र अर्जुन अने महानुज पराक्रमवाला सहदेव तथा नकुल ए पांच पांमवो कहेवाय ने. ॥इति पांमवचरित्रे पांमवोत्पतिनामा प्रथमोधिकारः॥१॥ त्रण जगत्तुं रक्षण करनारा बे चरणकमलवाला, सत्पुरुषोने स्मरण करवा योग्य के नाम जेमनुं एवा, इंशदि देवतानए नमस्कार करेला अने श्रेष्ठ मुक्तिरूप स्त्रीना पति एवाश्रीनेमिनाथ नामना अरिहंत प्रनुने हुं नमस्कार करूं. हवे धृतराष्ट्रना कुर्योधनादि सो पुत्रो, पांमुराजाना युधिष्टिरादि पांच पुत्रो अने नागसारथीनो पुत्र कर्ण ए सर्वे निरंतर एकग मलीने क्रीमा करता हता. तेमां कुश् बुध्विालो अने बल करवामां तत्पर एवो बंधुसहित दुर्योधन पोतानी क्रीमाथी सरल स्वनाववाला पांगवाने निरंतर बहु तरतो हतो. हमेशां स्वन्नावश्रीज नहत आत्मावालो नीम, सो कौरवानी मायाने जाणीने तुरत तेनने पोताना बलवमे कुटतो अने नुज पराक्रमथी काढी पण मूकतो. एक दिवस नंघी गयेला नीमसेनने पुष्ट बुध्विाला कौरवोए उलथी बांधीने पाणीमां फेंकी दीधो. त्यां कणमात्रमा जागी गयेला तेणेपोताना पराक्रमश्री बांधेली दोरीने त्रोमी नाखी. आ प्रमाणे हमेशां धृतराष्ट्रना पुत्रो [कौरवो] ' वायुकुमार [नीमसेन] ने तिरस्कार करता. नीमसेन पण ते सर्वेने जेम विष्णु, दैत्योने परानव पमा तेम परान्नव पमामतो. उष्ट बुध्विाला जुर्योधने नीमसेनने नोजनमा विष आप्यु; परंतु ते तो तेने पुर्वपूण्यना योगथी अमृतरूपे परिणम्यु. प्रा एक अमने म्होटुं आश्चर्यकारी पयु. ए ड्र्योधन क्रोधथी नीमसेनने मारवा माटे जेजे प्रयत्न करतो, ते ते अपात्रने विषेआपेला दाननी पेठे निष्फल थता, पगी धृतराष्ट्रना र्योधनादि पुत्रो, पांमुना युधिष्टिरादि पुत्रो अने नागसारथीनो पुत्र कर्ण ए सर्वे कृपाचार्य गुरुनी पासे अभ्यास करवा लाग्या, अनुक्रमे अन्न्यास करता ए सर्वे कुमारोमां बुदिना गुणश्री कर्ण अने अर्जुन ए बन्नेजणा अधिकपणुं पाम्या. ते नपरश्री कपट चित्तवालो र्योधन, , ते बन्ने उपर निशंकपणे निरंतर शेष राखवा लाग्यो. को वन्नते.अनाध्यायना दिवसे क्रीमा करता ते कुमारोनो दमो कूवामी Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१०) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. पनि गयो. पठी तेने काढवा माटे बहु महेनत करी; परंतु प्रयास निष्फलथयो, तेथी ते सर्वे कुमारो कूवाना कांठे जमवा लाग्या. एवामां अश्वस्थामा नामना पुत्रसहित शेण नामे कोइ सर्व धनुर्वेदने जाणनारोब्राह्मण त्यांावी पहोज्यो. तेणे सर्वे कुमारोने कह्यु के, “अरे कुमारो! पिताना धनमांथी नाग नदि पामेलानी पेठे खेद पामेला तमे आ कूवाने कांठे निरुद्यमी था केम नन्जा गे?" कुमारोए “अमारो दमोआ कूवामा पनि गयो ले." एम तेनी आगल का एटले ते ब्राह्मणे परस्पर संधामेला बाणोथी ते दमाने ब. हार काढी दीधो. पठी गांगेये लोकमां आश्चर्यकारी शेषनी आवी धनुर्वेदनी कला जाणीने श्री कृपाचार्य गुरुनी आज्ञाथी ते सर्वे कुमारोने धनुर्वेदनो अज्यास कराववा माटे ते शेण विप्रने सोप्या. पठी जेम ताराने विषे चश्मा. शोने तेम सर्वे कुमारोमां निरंतर कांतिणी कर्ण शोनवा लाग्यो अने अर्जुन तो तेथी पण अधिक एटले जाणे साक्षात् सूर्यज होयनी एम देखावा लाग्यो. . पी सर्वे कुमारोमां झट वाणने धनुष्य नपर चमाव, धारी राखवू, पातुं खेंची लेवू, दूर फेंकवु अने दृढ प्रहार करवो. ए सर्व कलानने विषे अ. र्जुन अधिक गायो. जो के शेण गुरु पोतानी दृष्टी बलवंत एवा सर्वे कुमारोने विषे सरखी राखता हता तो पण ते, नम्रपणामां, तुज पराक्रममा अने शोर्यमा अर्जुनने बहु वखाणता. एक दिवस शेणगुरु, सर्व शिष्योनी साथै यमुना नदीमां क्रीमा करता हता एवामां को जलचर जीव, तेमनो एक पग पकमीने खेंचवा लाग्यो. जो के गुरु पोतेज पोतानो पग गेमाववाने समर्थ इता तो पण तेमणे शिष्योनुं विनयपणुं जोवाने माटे म्होटो पोकार कस्तो एटले सर्व शिप्यो त्यां आव्या; परंतु को तेमने गमाववाने समर्थ श्रयो न. दि. पठी अर्जुने तुरत पोतानां धनुष्यना रणत्कार शब्दवमे करीने ए कुश्ज. तुत्री गुरुने कणमात्रमा गेमाव्या. अर्जुननी प्रावी गुरुन्नक्ति अने आ प्रकार रनुं बल जो गुणज्ञ गुरु बहु हर्प पाम्या; परंतु “जो हुँ तेनी प्रशंसा करीश तो श्रावीजा सर्वे शिप्यो तेनानपर हेप करशे अने तेअर्जुनने पोताने पण मद श्रो." एम धारी गुरुए तेने वखाण्यो नहि. को वखते एकांते अर्जुननीपास शेण गुगए एवी प्रतिज्ञा करी के, " हे श्रेष्ठ ! हं त्दारा विना वीजा कोश्न क्यारे पाग धनुवंदनी सर्व कलान नदि शीखवू." पठी को टिनस एक सव्य Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. . ( ४११ ) कमनो जील्ल, शेण गुरु पासे धनुर्वेदकलान शिखवा आव्यो; परंतु झेले तो ते एम कह्युं के, " नीच कुलमां नृत्पन्न श्रयेला तने हुं धनुर्वेद नहि शिखवुं.” पीते जी वनमां जइ गुरुना अजावथी एक वृक्षनी नीचे शेणगुरुनी मृचिकामय मूर्त्ति बनावीने अतिथी तेमनुं पूजन करतो तो निरंतर तेमने साक्षी राखीने धनुर्कलानो अभ्यास करवा लाग्यो. या प्रमाणे गुरु भक्तिथी निरंतर अभ्यास करता ते जील्लने बाणोए करीने सूक्ष्म पांदाने पण बेदी नाखवामां विश्वने आश्चर्यकारी अति तीव्रपणुं प्राप्त ययुं पनी एक दिवस शेणगुरु सहित कलावंत अर्जुन फरता फरता जे वनमां जील्ल रहतो हतो त्यां प्रावी पहोच्या. · त्यां ते निल्ले करेला पत्र बेदादि जोइने अर्जुन पोताना गुरु प्रत्ये कड़ेवा लाग्यो. " हे गुरु! आपे म्हारा विना बीजा कोइने धनुर्वेद नहि शीखववा माटे जे प्रतिज्ञा करी दती, ते या पदमां विगेरेना बेदावा नपरथी निश्वे फोगट या होय एम देखाय बे. " गुरुए आश्चर्य पामीने करूं. " हे पार्थ ! म्हारुं वचन क्यारे पए वृथा न होय. हुं जाएंणुं हुं के, मनुष्य अथवा देवताने विषे या कोइ नवीन धनुष्यधारी थयो दोय ? के, जेणे श्रावो श्रावनमां रहीने अभ्यास कस्बो वे." एम कहने वली तेमसे कहीं के, “श्रा वनमां जे कोइ धनुर्कलाना जाए देव, दानव, विद्याधर के मनुष्य होय ते तुरत प्रगट थइने पोतानुं चातुर्य पणुं देखामो, " शेणनां आवां वचन सांजलीने धनुष्य वाणने धारण करनारा ए लव्य जील्ले वनमांथी तुरत त्यां प्रावीने पोतानुं नाम प्रगट बतां शेागुरुने प्रणाम करचो. “ तने या कला को शीखवी ?” एम शेलगुरुए पूबचं एटले जीले कह्युं के, " म्हारा गुरु शेा बे. कारण तेमना विना वीजो कयो पुरुष मने व श्रेष्ठ कलान शीखवे ? " एम कहीने ते नीले पोतानुं पूर्वनुं सर्व वृत्तांत की संभाव्यं श्रने पोते अखंमित पुष्पोथी पूजन करेली शेागुरुन मृत्तिकामय मूर्त्ति पण ते बन्ने जलाने देखामी उत्तम रीते पूजन करेली पोतानी मृत्तिकामय मूर्ति जोड़ने शेणगुरुए " या धनुर्वेद कलामां अर्जुन समान न थान. " एम धारीने ते जीलने कर्तुं के, “तुं पोताना जमणा हायनो अंगुठो गुरुने अर्पण कर.” गुरुनां आवां वचनश्री जीले तुरत पोतानो अंगुगे कापीने गुरुने अर्पण करवापूर्वक नतिथी प्रणाम करुया. पठी केवल अंगुलीश्रीज क्तिव अभ्यास करता एवा ते जील्लने धनुर्कलान प्राप्त इ. Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१५) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. चतुर बुध्विाला गुग शेणगुरूए हर्षथी अर्जुनने राधावेध शीखव्योअने जीत तथा दुर्योधनने गदाभ्यास कराव्यो. युधिष्टिर, नकुल अने सहेदव ए त्रण वीर पुरुषो पण शस्त्र विद्यामां प्रवीण थया. अश्वत्थामा (शेणना पुत्र ) पण प्रलावधी अने नुजवलथी कर्ण तथा अर्जुन समानं थया. एक दिवस शेणगुरुनी आज्ञाथी गांगेये पोताना महा सुन्नट पुत्रोनो युःशान जोवानी इलाश्री दर्पवमे रंगमंझप रचाव्यो. तेमां शेण, पांमु, धृतराष्ट्र,अने समर्थ एवा गंगापुत्र (गांगेय)हर्षश्री बेठे उते सर्व प्रकारनां शस्त्रोने धारण करनारा अने महापराक्रमवंत एवा युधिष्ठिरादि सर्वे कुमारोपाव्या.तुरतसन्नामांयुहरंगने धारण करता अने पोताना शस्त्राच्यासने देखामता ते सर्वे कुमारोए सर्वे नूपतिनां चित्तमां एवो विस्मय नत्पन्न कस्यो के, जेने सर्वज्ञ पुरुषज जाणीशके.अवसर मलवाश्री वीरपुरुषोमां श्रेष्ठ एवा नीम अने र्योधन परस्पर यु६ करवा लाग्या; परंतु पोताना गुरुनी आज्ञाश्री वलवंत अश्वस्थामाए तेमने निवृत्त करुया. पनी पोताना गुरुनी व्रकुटीनी संज्ञाश्री आशा करायला अर्जुने नन्ना श्रइ पोतानी नुः जाना तामननाशब्दश्री सर्वे राजानना मनने बहु दोन्नपमामयु.अर्जुने गेमेला वाणना समूहनां पींगना वायुथी कंपता पर्वतोए करीने नाश पामी गया के ग्रह अने तारान जेमां तथा त्रास पाम्या वे सूर्यना रथना चंचल अश्वो जेमा, एवं आकाश श्रइ गयु. अर्जुननी आश्चर्यकारी कला अने राधावेधने जोश ते वखते कया कया नूपतिये नत्पन्न श्रयेला हर्षश्री मस्तक नथी धुणाव्यु? अर्थातु सर्वे राजा हर्ष पामीने पोतपोतानुं मस्तकधुणाववा लाग्या.पठी उर्योधने याझा करेला कर्णे पोताना सिंहासन नपरथी कोपवमे नीचे नुतरीने खन्नाने श्रास्फोटन करता उन्नत मेघनी पेठे महा गर्जना करी, तेनुं तेवं धनुर्धारिपणु अन तुजावत जो संतोप पामेला अयोधने कर्णने स्वर्गपुरी समान चंपापुरी इनाम तरीके पापी. या वखते सूतसारथी त्यां याव्यो. कर्णे ते आवेला पोताना पिताने प्रणाम करीने वहु मानपूर्वक सर्वे राजाननी पागल वेसावो. पठी महा ठर एवा नीम सहित कोप पामेला अर्जुने दुर्योधनने कर्वा के, श्र! नीच कुलमां उत्पन्न अयता कार्गने चंपापुरी गा माटे यापी दीघा? अंग कुलाचाररहित ! हुँदाग आवा अन्यायने मदन नहि करूं." या प्रमा नकलीन पनी त बने जग्गा पोलपोताना धनप्यनो टंकार करीने तत्काल यु Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र. ( ४१३ ) करवाने तैयार था. चलता वीर रसवालो क अने बीजा महा बलवंत नूपालो पण युद्ध करवाने माटे पोतपोताना सिंहासन नपरथी नतरीने तैयार श्रया. श्रवखते तेना जुना प्रस्फोटनथी अने चारे तरफ यता एवा महाजयंकर सिंहनादोथी त्रास पाम्या वे श्रश्व जेना एवो सूर्य जाणे पर्वतोना शिखरोनी पटवाने संता पेठो होयनी ? एम अस्त पाम्यो पछी महा रणारंजयी ए ण जगत्ने को पमानवाने तैयार श्रयेला ए सर्वे सुनटोने गुरुए पोते नबीने गरिष्टपणा निवृत्ती पमाया. या अवसरे धृतराष्ट्रना पूब्वा नपरथी सूतसारथी हर्षथी कर्णनुं कुलादिक कदेवा लाग्यो के, “ स्नान निमित्ते गंगा प्रत्ये गयेला मने प्रवाहमां तपाती प्रावती पेटीमांथी या पुत्र मल्यो बे. वली अद्भुत देहांती ने मुझमां रहेला रत्नाकरथी में तेने कुंतीनो पुत्र जाण्यो बे. मने संबंधी सूर्ये स्वप्न प्राप्यं हतुं, माटे में ए महा पराक्रमवंत पुत्रने ग्रहण को बे.” पबी अति हर्ष पामेलो धृतराष्ट्र राजा पोताना पुत्रोसहित कर्णने साथे लइ पांना पुत्रो नपर चित्तमां बहु मत्सर धरतो बतो पोताना घरप्रत्ये गयो, जेवी रीते लोको उत्पन्न थयेला गुणोथी पांरुवो नपर प्रीति राखवा लाग्या तेवीज रीते तेन श्रन्यायादि दोषथी दुर्योधनादिकने विषे निस्पृह था. स्पष्ट धर्मवंत एवा पांकुराजाए पोताना बंधु धृतराष्ट्रना पुत्रोने जूदा रहेवा माटे देशरहित कुशस्थल नामनुं नगर प्राप्युं. या प्रमाणे जाण एवा पांशु, धृतराष्ट्र, जीष्म ने शेण गुरु तेमज बीजा सभासदो पांसुपुत्रोना तथा धृतराष्ट्रपुत्राना जवलनी विविध प्रकारे परीक्षा करीने बहु दर्ष पामताः बता तत्काल पोतपोताना घरप्रत्ये गया. इति ऋषिमंगलवृतौ पांवचरित्रे विद्याभ्यासबलपरीक्षा वर्णाख्यो द्वितीयधिकारः कोइ वखते डुपद राजाना प्रसन्न मनवाला प्रतिहारी दूते दिव्य सनामां वेळेला पांकुराजाने प्रणाम करीने कह्युं के, " हे महाराजा ! श्री डुपराजाने चुलनी स्त्रीना नदरथी नृत्पन्न थयेली, विश्वना मनुष्योने आश्चर्यकारी ने म नोहर रूपवाली शेपदी नामे पुत्री बे. डुपद नूपाले ते पोतानी पुत्रीनो स्वias inप रच्यो वे, तेमां तेमले कृष्ण तथा वलनसहित सर्वे दशाहने, - Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१४ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. रुक्मीने, शिशुपालने, करीने, सुयोधनने, दमदंतने अने बीजा महा तेजवंत राजपुत्रोने दूत मोकलीने तेमाव्या वे; तेथी तेन सर्वे तत्काल श्रावी पहोच्या d. प प पुत्रो सहित स्वयंवर मंरुपमां ऊट पधारी तेने सुशोभित करो. " दूतनां आवां वचन सांजली पांकुराजा, पोताना पांच पुत्रो सहित श्र संख्य सैन्यश्री परवस्यो तो वहु वाजत्रोना नादपूर्वक कांपीलपुरप्रत्ये गयो. पांकुराजाने प्रावेला सांगली पोतानां चित्तमां बहु दर्ष पामेला अने स्थिर मनवाला डुपद भूपतिये तेमने महोत्सवथी नगरप्रवेश कराव्यो. त्यार पठी डुपद राजाए तुरत अगुरु चंदननां काष्ट, रत्न, माणिक्य, सुवर्ण अने वीजी अनेक मनोहर धातुथी तैयार करावेला सिंहासनोना समूहवालो ने पोतानी दिव्य कांतिथी वैमानोना श्रनिमानने जीतनारो स्वयंवर मंगव रचाव्यो. तेमां जूदा जूदा रोमां सुशोभित एवा सिंहासनो नपर शोजतां सुंदर तोरणो जाणे त्रण जगत्ने जीतवा माटे कामदेवे सऊ करेलां धनुष्यो होयनी एवा शोभतां हतां. त्यां सुवर्णना सिंहासनो नपर बेठेला राजपुत्रो जाये "वैमानमां वेळेला देवी व्यमान कांतिवाला इंझेज होयनी ? एम शोनवा लाग्या. सर्वे राजकुमारोमां पोताना उत्तम एवा पांच पुत्रोसहित पांफुराजा, जाणे पांच वालोए युक्त एवो साक्षात् कामदेवज होयनी शुं ? एम बहु शोजवा, लाग्यो. या अवसरे स्नान करेली, कीर समुना जल समान वस्त्र धारण करनारी, उत्तम ग्रानूपणोश्री सुशोभित अंगवाली, पूर्ण चंद समान मुखवाली, हस्तिना लरखी गतिवाली थाने रूपसर्पतिये करीने रतिने पण जीतनारी - पदी हाथमां वरमाला लइ अनेक सखीयोनी साथे त्यां स्वयंवर मंरुममां थावीने पोताना पितानी ग्रागल राधावेधना स्तंभनी पासे वेठी. पठी डुपद भूपतिनी ग्राझावी प्रतिहारीये वेगवमे एक धनुष्य लावी ने राधावेधना स्तंभनी पाने नजा रहोने सर्वे राजान प्रत्ये था प्रमाणे कां. “हे भूपतियो ! सांजलो. या स्तंभनी उपर जे वार आरावालुं चक्र फरे वे, तेना उपर कावी बाजुए हेली राधा [पुतली ]ने जे कोइ वलवंत धनुर्धारि राजपुत्र था नीचे देसी घीनी कमाइमां जोडने पोताना वासवमे करीने विंधशे ते वीरपुरुष सर्व राजकन्यामां मुकुटमणिरूप, महासती श्रने राधावेवना पण वाली श्रा नाम है. Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४१५) पदीने परणशे." प्रतिहारीनां आवां वचन सांजली राधावेध करवाने तैयार श्रयेला राजपुत्रोमांहेना केटलाक तो धनुष्यने धारण करवाज समर्थ थया नहि केटलाक धनुष्य नपर बाण चमाववा समर्थ श्रया नहि अने केटलाक तो पोतार्नु बल मनमां समजीने सिंहासन नपरथी नव्या पण नहि. पठी सर्व धनुर्धारिमां मुख्य एवा अर्जुने, सिंहनी पेठे नुज पराक्रमवाला नीमसेनसहित पोताना सिंहासनश्री नीचे उतरी हर्षवमे सर्व क्षत्रीयोने नमस्कार कस्यो. त्यार बाद तेणे लढाथी सर्वे नूपालोना जोता बतां पोताना वजसमान हाथ वमे ते राजानना मानसहित धनुष्य गृहण करयु. आ वखत नीमसेन, नंचा हाथ करीने सर्व दिशानना अधिपतियोने कहेवा लाग्यो के, “हे शेषनाग! तमे समस्त पृथ्वीनो नार धारण करवामां अति निश्चल थ रहो. सर्व विश्वने पालन करवामां तत्पर एवा इंद, अमि, यम, वायु अने बह्मा विगेरे हे लोकपालो ! तमे पण सर्वे स्थिर अश् जुन के, आ म्हारो न्हानो बंधु, उत्कृष्ट एवा धनुर्धारिनना पादन्यासे करीने सर्व नूपतियोना गर्वसहित आ दृढ धनुष्यने निश्चे नमावशे.” परी नीचे ले दृष्टि जेनी एवा अर्जुने, बलवमे धनुष्य चमावीने सर्व राजानना जोता उताअतिलाघवपणाथीपोतानुंबाण नंचुं खेंच्यु. बन्ने कानने बहेरा करी देनारा, तत्काल कायर पुरुषोने पृथ्वी नपर सुवारी देनारा अने बीकण जनोने त्रास पमामनारा धनुष्यना अति कगेर शब्दवमे करीने नना घीनी कमामां दृष्टि राखनारा अर्जुने, वेगयी फरतां चक्र नपर देखाती राधा (पुतली)ने जोश्ने तुरत पोताना गेमेला बागवमे सन्नासमक ते पुतलीने वींधी नाखी. आ वखते आकाशमां जयजय शब्दपूर्वक देव उंछन्नी वागवा लाग्या अने देवतानए करेली चारे तरफ पुष्पवृष्टि श्रइ. जो के आ वखते नत्पन्न श्रयेला अनुरागवाली क्षेपदीये क्यारे पण निःपुण्य पुरुषोए नहि मेलवी शकाय एवी पोताना हाथमा रहेली वरमाला अति वेगथी अर्जुनना कंठने विषे आरोपण करी; परंतु ते वरमाला तो तुरत पांच रूपे श्रश्ने जेम मनशक्ति पांच इंनिने विषे आरोपण पाय तेम पांचे पांवोना कंठने विषे आरोपीत था. जेम पांच विषयो आदरथी नत्तम बुझिनो आश्रय करे तेम पांमु राजाना पांच पुत्रोए सर्वे राजा जोता उतां प्रिय एवी क्षेपदीनो आश्रय कस्यो, आवा आश्चर्यथी गांगेय पोतानां चित्तमां बहु लजा पाम्या, Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१६) ऋपिममलत्ति-पूर्वाई. हुपदराजा निस्तेज वनी गया अने बीजा लोको पण विस्मय पाम्या. एवामां त्यां को झानी मुनि आव्या. पठी "हे नगवन् ! आ झैपदीना मुख्य पांच पतियो केम श्रया ? " एम कृष्णादि नूपालोए ते चारण सुनिने वेगधी पूज्यु । एटले ते महात्माए केवल परोपकारने माटे आ प्रमाणे का. “हे नूपालो! पूर्व जन्मने विषे वांधेला कुकर्मथी श्री पदी पांच नतारवाली थशे, एमां तमने अति आश्चर्य केम थाय ? कारण कुकर्मोनी तो विषमगति होय . चंपानगरीने विषे सागरदत्त शेठने सुन्नश नामनी स्त्रीथी नत्पन्न थयेली सुकुमारीका नामे एक कन्या इ. परंतु ते निरंतर दो ग्यना स्यानरूप हती. ज्यारे पुत्री यौवनावस्था पामी त्यारे पिताए तेने हर्पश्री जिनदत्त नामना शेठना पुत्र सागरनी साथे परणावी. पली बहु शोनावाली शय्यामां सूतेली ते कन्यानो स्पर्श करवाथी जिनदत्तने तेनुं शरीर पूर्वकर्मना वशश्री अंगारा सर लाग्युं. जो के ते सागर क्षणमात्र तो पोतानुं शरीर वलता उता पण तेनी साथे क्षणमात्र रह्यो; परंतु ज्यारे ते सुकुमारीका निज्ञवश प्रश् त्यारे तो ते तेने त्यांज मूकी पोताने घेर नाशी गयो. पठी निशयी जागी गयेली सुकुमारीकाए पोताना पतिने दीगे नहि त्यारे ते वहु रुदन करवा लागी. पोतानी दुर्गंध देहवाली पुत्रीने त्यजी दइ सागर पोताने घेर चाल्यो गयो, ए वात जाणीने सागरदत्तशेठे ते सुकुमारीकाने पोताने घेर दानशाला मंझावीने राखी.अनुक्रमे तेणे वहु वैराग्यश्री गोपालिका साध्वी पासे दीक्षा लीधी. त्यारपठी ते निरंतर अम्मादि तप करवा लागी. को वखते ननालानी झतुमा प्रवर्तिनीयोए निवास्या उता पण ते सु. कुमारीका साध्वी परीपहने सहन करवा माटे नद्यानमां जश्ने वैराग्यथी (न. त्य आतापना करवा लागी. एक दिवस आतापना करती एवी ते सुकुमारीका साध्वीये कामातुर एवा पांच पुरुपोए नम्रतापूर्वक सेवन करेली अने रूपसंप: लिये करीने रतिने पण जीतनारी देवदत्ता नामनी वेश्याने जोश. पठी को दिवस जेनो पतिसंबंधि मनोरथ पूर्ण नबी थयो एवी ते सुकुमारीये एवं नि: पाणं करयु के, “ में श्रा करेला तपथी हुँ आवता नवने विषे पांच पतिवाल। यानं." पठी पाठ मासपर्यंत अतिचाररहित अने कर्मने नेदी नाखनारी संलेबना करीन आलोचना लीचा विना मृत्यु पामेली ते सुकुमारीका पहेला . Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (१७) वलोकने विषे नवपल्योपमनां आयुष्यवाली देवी श्र. [चारणमुनि, कृष्णा- .. दिनूपालोने कहे ले के,] पनी पहेला देवलोकथी चवीने ते देवी आ डुपदराजानी पुत्री अने. पूर्वनवने विषे करेलां कर्मथी तेने पांच नार श्रया एमां तमे शा माटे विस्मय पामो गे?” मुनिनां आवां वचनथी आकाशने विषे "बहु सारं थयुं, बहु सारं अयु" एम शब्द अयो. कृष्णादिक पण तेननी प्रशंशा करवा लाग्या. पनी स्वयंवरमां आवेला राजा तथा स्वजनोनी समक पांसुराजानी आझायी ते पांचे पांमवो पद राजकन्याने नत्सवपूर्वक परण्या. त्यारबाद डुपद राजाए, स्वयंवरमां आवेला दशाोंने तथा कृष्णादि वीजानुपतियोने गौरवपूर्वक पोतपोताना नगर प्रत्ये विदाय कस्या. पद नरेश्वरे सत्कार करेला पांमुराजा पण पोताना पांच पुत्रो सहित बहु नत्सवोवाला दस्तिनापुर प्रत्ये पाव्या. हवे एक दिवस युधिष्ठिर उपदीना मंदिरमां बेग हता एवामां त्यां विश्वमां मरजी प्रमाणे फरनारा नारद आव्या. युधिष्टिरे तेमनुं पूजन करयु.पी. प्रसन्न श्रयेला नारदे तुरत बीजा नीमसेनादि चारे नानने त्यां वोलावी “तमारे आ पंचाली (शेपदी) ने योग्य अवसरे सेवन करवी.” एम कहीने योग्य व्यवस्था करी आपी. वली तेमणे एवो प्रतिबंध कस्यो के, “आज्ञेपदीना घरने विषे एक ना विद्यमान उतां जो बीजो ना अनुरागथी प्रवेश करशे तो तेने बार वर्षपर्यंत तीर्थयात्रा करवा जQ.” एक दिवस युधिष्ठिरोपदीना घरने विषे हता एवामां अर्जुने त्यां अजाणतां प्रवेश कस्यो. पठी युधिष्ठिरादि बंधुनए ना कह्या उतां पण सत्य प्रतिज्ञावालो अर्जुन तीर्थयात्रा माटे चाली निकल्यो. सर्व तीर्थोने विषे जिनेश्वरोनी प्रतिमाने हर्षधी नमस्कार करतो ते वैताढ्य पर्वत उपर आवी पहोच्यो. त्यां तेणे श्री आदिनाथ प्रन्नुने नमस्कार कस्या. एवामां त्यां नयश्री नासी जता एवा कोई विद्याधरने तेणे पूज्यु के, " हे खेचर ! तुं आवो शोकयुक्त केम देखाय ?” विद्याधरे कडं. “आ वैताढ्य पर्वतनी उत्तरश्रेणीनो राजा हुं मणिचूम बु. हेमांगद नामना वलवंत विद्याधरे म्हारी सर्व लक्ष्मी लइ मने राज्यथी काढी मूल्यो .” विद्याधरना आवां वचन सांजली महा धनुर्धारि अर्जुन, मणिचूम विद्याधरे प्रगट करेला वैमानमां बेसीने त्यां गयो. त्यां तेणे बलश्री हेमांगदने काढी मूकी फरी मणि Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ऋपिममलटत्ति-पूर्वाई. चूमने पोतानां राज्यने विपे स्थापन कस्यो. पठी हेमांगद अने मणिचूम वित गरे अनेक विद्याधरोए सेवा करेलो अर्जुन त्यां केटलोक काल रहीने परी दिव्य विमानमां वेसीने मणिचूम सहित आगल चाल्यो. अष्टापदादि पवित्र ती|ने विषे रहेला जिनेश्वरोने नमस्कार करतो अने संतुष्ट चित्तवालो अर्जुन रेवताचल (गिरनार) पर्वत प्रत्ये आवी पहोच्यो. . हवे एम वन्युं के, श्रीपुर नगरने विषे पृथु नामना कोई दत्रियने स्त्री की एक पुत्री अश्; परंतु ते पुत्रीने पूर्वकर्मना दोषश्री शरीरे ऽगंध थवाने लीधे ते ऽगंधा एवा नामश्रीज लोकमां प्रसिः श्रइ.अनुक्रमे युवावस्था पामेली ते पुत्रीने, पिताए हर्पश्री सोमदेवने आपी; परंतु तेना गंधयी विरक्त बनेलो सोमदेव तो तेने त्यजी दश तत्काल रात्रीने विषे गुप्त रीते नासी गयो, पतिये त्यजी दीधी, तेथी तो ए उगधा पोताना पिताने शेषतुं स्थान अश् पमी अने वंधुनए पण त्याग करी. कडं के-स्त्रीयो, पोताना स्वामीनी प्रीतिवमे सर्व स्थानके पूजाय ठे. पठी सर्व स्थानकेथी परान्नव पामेली ते उगंधा पोतार्नु घर त्यजी दश्ने तुरत रात्रीने विपे नासी गइ. अनुक्रमे नद्यमवाली ते पोता. नां उष्टकर्मनो कय करवा माटे सर्व तीर्थोने विषे नमवा लागी. “ जाणे आ तीयोंने विषे पूर्व नवनुं कर्म कय अशे नहि.” एम धारीनेज होयनी ? एम अत्यंत दुःखथी खेद पामेली ते दीन गंधाए समुश्मा कंपापात करवानो प ण निश्चय कस्यो. शुं प्राणीयो पीमाने लीधे तुरत मृत्यु पामवानी श्छा करता नश्री?" अर्थात् पीमा पामेला मनुष्यो तत्काल मृत्यु पामवाने पण तैयार थाय. पठी एक दिवस वनमां नमती एवी ते उगधाए को जटाधारी अने वल्कल वस्त्रवाली साधुने जोक्ने वहु प्रेमश्री नमस्कार कस्यो; परंतु ते साधुए तो तेनी पुगंधधी तुरत अवलु मुख करयु. मुनिनी आवी चेष्टा जोड्ने धुगंधाए कां. “ दे नगवन् ! परिगृद रहित एवा तमे म्हारो झामाटे तिस्कार करा गे? झुं प्राजे तमाग विना त्रलोकमां वीजु को म्हारुं रक्षण करनार ठे ग्वमं ? " तपस्वीये फरी। कह्यु. “ हे वत्से ! अहिं म्हारा त्रिकालज्ञानी गुरु उ.नेमनी पाले जाने जक्तिश्री तु पातानुं वृत्तांत कहे; जेश्री ते त्दारा दुःखन। नियनिता नपाय बनावो." मुनिनां ावां वचन सांजली साधुननां चरण: नी मेवा करवामां तत्पर पवीत धुगंधाए वननी अंदर श्री झपन्न जिनेश्वरनु . Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४१ए) ध्यान करता एवा ते जटाधर महामुनिने प्रणाम कस्वा. पापनो नाश करनार गुरुए पण तेना उगंधश्री काश्क पोतानुं नाक वांकु करीने दर्जना आसन नपर विनयश्री बेठेली ते उगंधा प्रत्ये आ प्रमाणे कहूं." हे वत्से! उर्ग'धना दोषधी व्याकुल बनेली तुं, आ वनने विषे केम आवी बु ? त्हारा देहथी नुत्पन्न श्रयेलो आ मनुष्योने पुःखकारी उर्गंधनो समूह केम नल्लास पामे?" मुनिनां आवां वचन सांजलीने पुःखश्री पीमा पामेली उर्गंधा रोती उती कहेवा लागी. “हे मुनि ! हुं जा{बु के, पूर्वकर्मने लीधेज आ म्हारा शरीरथी उगंध प्रसरे . हुं बाल्यावस्थाथीज दुःखवमे तपायमान अश् . आ गधने लीधे पतिये पण मने त्यजी दीधी . बहु तीर्थने विषे ब्रमण करता उता पण मारा आ गंधनो कय थयो नहि. हे मुनिश्वर ! तमे धर्मदानथी निश्चे सर्व मनुष्योना निरंतर आधाररूप गे, माटे पूर्वजन्मनां पापथी गेमावीने मने कणमात्रमा आ संसार समुश्थी तारो." मुनिये फरीथी कवू. “ हे वत्से ! मने तेवं ज्ञान तो नथी; परंतु तुं शत्रुजयना मध्यप्रदेशने विषे रहेला श्रीरैवताचल पर्वत नपर जा. त्यां निरंतर सतीपणाने धारण करती अने जिनेश्वरनी नक्तियुक्त तुं, श्रेष्ट मुनिये बतावेली विधि प्रमाणे गजपदकुंभथी जलला. वीने स्नान करजे के, जेथी तुं रोगरहित यश.” मुनीश्वरना आवां वचन सांन्नलीने उगधा तेमनां चरणने नमस्कार करी हर्षवमे गिरनार पर्वतर्नु मनमा स्मरण करती उती शत्रुजय तरफ चाली. निरंतर प्रयाण करती एवी ते अनुक्रमे केटलाक दिवसे श्रीशजय तीर्थ प्रत्ये आवी पहोची. त्यां विश्वे सेवन करेला श्रीआदिनाथने जोश हर्ष पामेली गंधाए लक्तिथी प्रजुने वंदना करी. पली प्रदक्षिणा करीनेते, श्रीनेमिनाथ प्रनुने नमस्कार करवा माटे तथा पोतानां पूर्वकर्मनां पापसमूहोनो नाश करवा माटे श्री गिरनार तरफ जवा निकली. अति पवित्र स्वन्नाववाली सुगंधा अनुक्रमे गिरनार पर्वत नुपर जश् अने गजेंसद कुंमने जोश हर्ष पामी. श्री अरिहंत प्रनुना मंदिरने विषे अने गजपदकुंकने विषे प्रवेश करवाने असमर्थ एवी ते जुर्गंधा प्रथम बहार रहीने गजपदकुंमनुं जल मगावी स्नान करवा लागी. अनुक्रमे सात दिवसमां ते उगधा पोतानां शरीरनो धुगंध नाश पामवाश्री सुगंध देहवाली अइ. पठी हृदयमां नत्पन्न श्रयेली नक्तिवाली ते श्री जिनेश्वर, पूजन करवा माटे जिनमंदि. Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५० ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्ध. रमां गई. प्रभुनुं पूजन करी रह्या पटी तेथे त्यां बेठेला कोइ ज्ञानी गुरुने पोतानो पूर्वभव पूग्यो. या अवसरे त्यां अर्जुन पण बेग हता; तेथी ते पण मुनिये वर्णन करेला दुर्गंधाना पूर्वभवने सांजलवा लाग्या. सुनिये कह्युं के, " हे शुभे ! तुं पूर्वजन्मने विषे कोर श्रेष्ठ ब्राह्मणना कुलने विषे उत्पन्न थ हती. एक दिवस जैनधर्म रहित एवी तें, एक जैन मुनिने उद्देशीने देषथी हास्य पूर्वक सखीनी आगल एम कह्युं के, " हा निरंतर जलस्नान रहित प्र ने केवल वनमा रहेनारो या यतीश्वर, निश्वे पोतानां उज्वल वस्त्रने बहु म लीन करे वे." एम कहीने तें पोतानो हाथ के उपर मूकीने म्हों मचकोमधुं. हे वत्से ! ग्राम करवाथी तें जे कुकर्म उपार्जन करयुं, तेनुं फल सांजल. पठी तुं मृत्यु पासीने नरकने विषे उत्पन्न थइ. त्यांथी चंगालना कुलमां जनमी. त्यांथी जुंरुणी थइ. अनुक्रमे ठेवट या मनुष्य जवने पामी तेमां पनामी ने परिणामथी त्हारुं दुर्गंधवालुं शरीर थयुं, तेथी आ जवमां प तुं त्रिपदीना स्थानरूप दुर्गंधा थइ. कह्युं वे के जीव पूर्वे करेलां कर्मने शुं नवी जोगवतो ? अर्थात् पूर्व कर्मने निचे जोगवे बे. जे जिनेश्वर योगी प्रभु, पुरुषशेने पूज्य वे अने जे त्रा लोकमां निवास करनारा प्राणीयोथी श्रेष्ट वे, तेमनी मुझने धारण करनारा निःपरीग्रही साधुन शुं निंदा करवा योग्य ठे? जेन सहा मिथ्यात्वनो नाश करनारा वे, जेन महाव्रतरूप लक्ष्मीने धारण क वामां समर्थ ने जेन श्री अरिहंत प्रजुना धर्मरूप कसलने प्रफुल्लित क वामां सूर्यरूप वे एवा मुनियो त्रण लोकमां निंदा करवा योग्य केम होय ? तुं तीर्थ प्रभावी सर्व कुकर्मनो नाश करी सौभाग्यवाली थइश वली तुं निरंतर तीर्थ सेवा कर के, जेग्री करीने तुं तत्काल वोधीवीज पामीश. " या प्रमाणे सुनीश्वरे कह्युं एटले दुर्गंधा तथा अर्जुन ए वन्ने जगाए तीर्थ प्रनावने जालीने दर्प पूर्वक श्री तीर्थकर प्रजुने तथा गुरुने प्रणाम करुया. पत्री थोमा कालमा पोताना ग्रात्माने धन्य मानतो अर्जुन, मणिचूरूमित्रसहित तीने विषे ही त्रण दिवस रह्यो, पती श्री कृष्ण अर्जुनने निपुण जागी पोतानी द्वारका नगरी प्रत्ये बोलाव्यो. त्यां तेमले परस्पर एक बीजानी प्रीतिनी वृद्धि मां पोतानी व्देन सुना ही अर्जुनने थापी. अन्य तीथेने वि पवित्र देहवाल अर्जुन, पोतानां कर्मनो नाश करवा माटे Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र, (४१) शत्रुजय तथा अष्टापद तीर्थ नपर बारवर्ष पर्यंत रह्यो. पगे पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करीने अनेक विद्याधरोनी साधे पोताना असंख्य वैमानोश्री श्राकाशने । पूरी देतो तो अर्जुन पोताना हस्तिनापुरनगर प्रत्ये आव्यो, स्त्री सहित आवता एवा अर्जुनने सांजली चार पुत्रो सहित अति नत्साहवंत थयेला पांकु राजाए पोताना नगरने विषे अर्जुननो म्होटो नवीन प्रवेशोत्सव कराव्यो, आ वखते बीजा को विद्याधरे पोतानी व्हेनने हरण करवाना समाचार मणिचम विद्याधर पातेथी अर्जुने सांजल्या. ते नपरथी ते, पोताना मित्र मणिचूम विद्याधरने साथे लश् तत्काल शत्रुनी पाउल ज तेने मारी पोतानी व्हेन प्रनावतीने पाठी वाली लाव्यो. जेवी रीते सूर्यनी कांतिये करीने आकाश शोने अने ध्वजावके करीने श्रेष्ठ देवालय शोले तेवीज रीते यशथी पवित्र एवा महात्मा युधिष्ठिरवमे श्रा सर्व विश्व बहु शोन्नतुं हतुं. युधिष्ठिरनी आज्ञाने अनुसरी रहेला नीमसेनादि बीजा चार बंधुन सैन्य सहित सर्व दिशानने जीती अनेक नूपतिनी साये महोत्सव पूर्वक पोताना नगरमा अाव्या. युधिष्ठिरादि पांच पांडवोश्री शेपदीने विषे अनुक्रमे बले करीने शंकरना समान पवित्र पांच पुत्रो श्रया. जेवी रीते नत्तम बंधु, सेवक, पुत्र, मित्र अने पोतानुं अंग (हाथ पग विगेरे ) । श्राझा प्रमाणे चाले , तेवी रीते नीमसेनादि चारे बंधुन पण युधिष्ठिरनी आज्ञा प्रमाणे चालता हता. श्रा नपरश्री प्रसन्न थयेला विद्याधरोना अधिपति मणिचूमे पोतानी विद्याना बलश्री तेमने तुरत इंश्नी सन्नाना समान एक मनोहर सन्ना बनावी आपी. तेमां अत्यंत निर्मल अने आश्चर्यकारी शोन्ना वाला महा मशिना स्तंनो शोन्नी रह्या हता तया दिव्य स्वरूपवाली पुतलीयो जाणे नत्तम रत्नमय अप्सरान होयनी ? एम दीपी रही हती. मणिचूम विद्याधरे जाणे स्नेहथीज होयनी ? एम ते सन्नामां सुवर्णनां सिंहासन उपर बंधुन सहित युधिष्ठिरने वेसारीने पोतानी मैत्री सफल करी. पठी युधिष्ठिरे पोतानां कल्याण माटे नगरमां श्री शांतिनाय प्रनुर्नु नत्तम नवीन मंदिर करावीने तेमां तेज प्रनुनी महा मूल्यवाली अने मणियोए करीने वखाणवा योग्य सुवर्ण मूर्तिनु स्थापन करयु. कारण के, तेज नगरमां श्री शांतिनाथ प्रनुना त्रण कल्याणको थया हता. वली दिग्विजयथी पोताना बंधुनए सं Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१५ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. पादन करेली बहु लक्ष्मीनुं उत्तम फल मानता एवा तेणे त्यां त्रण विश्वने पुण्यना कारणरूप हस्तिनान नामे तीर्थनुं स्थापन करीने म्होटो महोत्सव कस्यो युधिष्ठिरे प्रनुनी प्रतिष्टाना उत्सवमां बोलावेला दशाई बलदेव कृष्ण अने वीजा पदादि अनेक राजानं धाव्या हता. कोइ वखते मणिमय स्तंनोने विषे प्रसरी रहेला प्रतिबिंबवाला ते सर्व राजान सनामां वेग हता. एवामां भूपतिये बोलावेलो दुर्योधन पोताना बंधुन सहित बहु परिवारथी परवस्त्रो थको त्यां श्राव्यो. बहु देदीप्यमानपणाथी जा प्रकाशमांज स्थिर रह्या होयनी ? एम रत्ननां सिंहासन उपर बेठेला यादवोने तथा पांवाने जोइ ते मनमां बहु आश्चर्य पाम्यो. पठी बंधुन सहित दुर्योधने नीलमणिनी जीतो तथा भूमिवाला स्थानने विषे जलनी शंकाथी पोतानां वस्त्रो उंचां लीधां अने स्काटिकमणिनां स्थानने आकाशनी शंकाथी क कवा लाग्या. तेनी यावी चेष्टा जोइने बीजा राजानने बहु दसवुं श्राव्यं. वली स्फाटिकमणिनी नीतोमां प्रसरी रहेला प्रतिबिंबवाला राजानने जोइ ते तरफ जतो एवो दुर्योधन ते जीतनी साथे अथमालो. था प्रमाणे सनामां प्रवेश करवामां चांति पामेला दुर्योधनने जोइ कया कया भूपतियोए हास्य नहि कर होय ? अर्थात् दुर्योधननां प्रावां चरित्रश्री सर्वे राजानु बहु हास्य करता इता. पठी बहारथी तो सूर्यकांतमणिनी पेठे शीतल पण अंदरथी तो अरणीना काटनी पेठे ज्वाजल्यमान ग्रह रहेला, क्रोधरूप दावानलवाला दुर्योधने त्यां नत्सव कस्यो. या वखते युधिष्ठिर राजाना प्रमाण रहित एवा दानशोयेने जोड़ वहु लज्जा पामेला कल्पवृकादि सर्वे तुरत मेरुपर्वतना शिखर उपर नाशी गयां. “ सर्व धर्मनुं मूल दया वे " एम जाणता एवा युधिष्ठिरे सर्व प्रकारनां दानश्री चारणमुनि विगेरे साधुनने तथा नृपादि अनेक जनाने संतोष मामीने विदाय करया. उत्तम वस्त्र रत्नादिकश्री संतोष पमामेलो बंधु सहित दुयोंधन परा पोताना पिता ( धृतराष्ट्र ) ने मामानी साथे पोताना नगर प्रत्ये यावीने गुप्त रीते या प्रमाणे विचार करवा लाग्यो. "या पांकुरा जाना पुत्रो बाल्यावस्याश्री मांगीने कपट करवामां चतुर, पोतानां घरने वि 학 ये नग, हृदयमां फुट थने उपरथी बहु मीतुं बोलनारा वे, हे पूज्यो ! निश्चे कृष्ण वन्य प्रात वेला साम्राज्यपदे करीने मदोन्मत्त श्रयेला अने गर्व Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र. ( ४२३ ) वाला ए पांवोए, त्यां पोतानी सज्जामां म्हारुं जे हास्युं करयुं बे, ते मने हृदयमां बापानी पेठे साले बे. लोकमां एवो न्याय बे के, बलथी अथवा बलश्री शत्रुने पोताना स्वाधीन करवा; माटे हुं पोताना क्रोधनी शांतिने माटे ए पांवानां सर्व राज्यने हरण करीश.” आम पांरुवोनी स्पर्धामां बांध्यं बे मन ! जेणे एवा गर्वधारी दुर्योधने या प्रमाणे कहीने पढी तुरत अनेक कारीगरो पासे कोटी थी एक मनोहर सज्जा करावी. पबी ते सनाने जोवा माटे ते प्रनेक दूतो मोकलीने दशार्दोने, पांसुपुत्रोने रामकृष्ण ने बीजा अनेक नूपतियाने ते माव्या. विश्वने आश्चर्यकारी तीर्थस्थापना, पानपोषण, उत्सव, दान 1 प्रतिदानादि करीने वली मदा आश्चर्यकारी एवा श्री जिनेश्वरना प्रतिष्ठानत्सवे करीने बहु दर्ष पामेला ने दुर्योधने अनुचरो मोकलीने तेमावेला पांवो म्होटा उत्सवपूर्वक दुर्योधनना नगरने विषे श्राव्या. इति पांवचरित्रे दौपदी स्वयंवरमंमपागमनार्जुनराधावेधसाधनपाणिग्रहणादिवर्णननामा तृतियोधिकारः ॥ ३ ॥ पठी पोताना बंधुन सहित हर्ष पामेला अने कृत्रिम मान आपनारा दुर्योधने चमत्कारी एव बहु दान तथा जक्ति विगेरेथी कृष्णादि सर्वे नूपति/ योने पूर्ण रीते संतोष पमाड्या. त्यारबाद दंजवाला तेथे जोज्यादि उत्तम नक्तिथी, महावननी क्रीमाथी ने बीजा अनेक कुतुहलथी पांवाने पोताना वश करीने पबी द्यूत रमवाने माटे आमंत्रण मोकल्युं. जो के धर्मकार्यमां प्रवीण एवा विदुरे पांवोना गुणना प्रेमश्री पांवाने द्यूत रमवानी ना पाकी; परंतु पोतानां कर्मना दोषथीज अज्ञानि वनी गयेलो धर्मपुत्र युधिष्ठिर द्यूती निवृत्ति पाम्यो नहि. सर्व कलामां प्रवीण अने शुद्ध जाववाला एवाय पण पinate अत्यंत पोताना जाग्यना अवलापणाश्री दुर्योधनने कपटवालो जाणी शक्या नहि. अनुक्रमे युधिष्ठिर पोतानां पूर्व कर्मना योगथीज अश्वोनो समूह, दस्तियोनो समूह, रथनो समूह, सर्व गाम, नगर ने राज्य एम सर्व वस्तु व्यादिकनी पेठे हारी गयो. द्यूतरसमां बुमि गयेला युधिष्ठिरे जयनी थाशाथी जे जे पण करयुं ते ते बहु तराश्री पीकायला पुरुषने जांऊवाना जलनी पेठे. निष्फलज देखायुं. बेवट द्यूतमां वृद्धि पामेली तृष्णावाला तेणे पणमां पोता Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३४) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. नी प्राण प्यारी पदीने मूकी, तेने पण ते सत्य प्रतिज्ञावालो क्षण मात्रमा दारी वेगे. धिक्कार ते दैवना आवा इष्ट विलासने !!! पी बहु पुष्ट स्वन्नाववाला दुर्योधने राज्यादि सर्व पोताने स्वाधिन करी ठेवट झेपदीने तेमवा माटे :शासनने मोकटयो. दुःशासन पण “अरे झैपदी ! तने पांमवो हारी गया बे, माटे दवणां तुं म्हारा खोलामां वेस अने ते विमंबना पामेला पांमवोने त्यजी दे.” एम कतो तो पांमवोनां घर प्रत्ये गयो, तप्त श्रयेला कथीरना समान तेनां आवां वचन सान्नलीने वहु नय पामेली झेपदीने केशे पकमीने मह। दुष्ट शासन सन्नामां लाव्यो. जो के सन्नामां नीम, कर्ण, शेण विगेरे बेठ हता तो पण बहु अपमानधी लजा पामेली महासती पदीये क्रोधथी दु: शासनने आ प्रमाणे कगेर वचन कह्यां. "कुलने विषे अंगारारूप अने नि लज एवा हे पापी दुःशासन ! या प्रमाणे मने अपमान पमामतो तुं निवे निष्फल श्रयेला शस्त्र पराक्रमवालो अश्ने महा घोर एवा :खने पामीश.' पठी इष्ट एवा :शासने जेम जेम पदीनां अंग नपरथी वस्त्रो नतारी लेव मांमयां तेम तेम निर्मल शील लदमीना प्रन्नावथी तेनां शरीरने विषे नव. नयां वस्त्रो श्रवा लाग्या. ठेवट एकसोने आठ वस्त्रो खेंचवायी खेद पामेलो, नील समान अने महा पुष्ट स्वन्नाववालो :शासन ठेवट दारीने सत्नामां पोताने आसने वेगे. जो के या वखते अयोधनना उपर नीमसेन महा कोपाग्निश्री ज्वाजल्यमान श्रइ रह्यो हतो, तो पण ते पोताना म्होटा नाइ युविष्ठिरनां वचनरूप जलश्री शीतलपणुं धारतो तो फक्त वाणीवमे या प्र. माणे कवा लाग्यो. "जो मने या म्हारा म्होटा बंधुनी वाणीये अटकाव्यो नहोत तो हुँ मोववमे आम्हारी गदाग्री ए ऽष्टने बंधु सहित तुरतचूर्णचूर्ण करी नाखत.” या प्रमाग गर्जना करता एवा बलवंत नीमसेनने जागी वहु त्रास पामता केटलाक राजा विधी अवटुं मुख करवा लाग्या, पठी बहु क्रोधश्री जयंकर एवा नीमपिताए गामनना कुकृत्यने जो तेने का. “अरे पापी ! इंशन पण पूजवा योन्य या महानतीन ते या झी विटंबना केम पमामी ? हे दुराग्मन ! जो के नीमसन अन अर्जुनादि बलवंत पुरुषो तने मारवा तैयार श्र गया के परंतु तन श्रीधर्मपुत्र युधिष्ठिरे बारी राख्या ठे, कडं ये के-सन पु. Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र. ( ४श्य ) रुषोनो विनय एज तेमनुं पराक्रम समजवुं. कुलमां अंगारारूप अरे दुर्योधन ! त्हारां कुलने नाश करवामां कालरात्रीरूप या पतिव्रता ौपदीने तुं त्यजीदे. अरे ! प्रात्हारो पिता तो व्हारथी प्रांधलो देखाय बे; परंतु पापी एवोतुं तो व्दार ने अंदर बन्ने रीते आंधलो देखाय बे. " भीष्म पितानां आवां वचन सांगली दुर्योधने तेमने कह्युं. “ श्रा युधिष्ठिरादि पांच पांवो चार वर्ष पर्यंत वनवास जान अने एक वर्ष गुप्त रीते रहो; परंतु तेरमा वर्षने विषे तेन क्यां गुप्त रीते रह्या बे, तेनी शोध करवा माटे अनुचरो मोकलीश. मां जो तेन जलाइ श्रावशे तो तेनने फरीथी बार वर्ष पर्यंत वनवास जवुं परुशे.” युधिष्ठिर या सर्व वात अंगीकार करी तथा गुरुने प्रणाम करी तुरत स्त्री ने बंधुन सहित पोताना हस्तिनापुर प्रत्ये गयेो. त्यां तेणे मनमां जरा पण खेद नहि धरता पोताना पिता पांगु राजानी प्रागल दुर्योधननुं सर्व चरित्र कही बतायुं. जेने हृदयमां बहु पीमा उत्पन्न यह बे एवा पांकुराजा एसर्व सांजलीने मुहूर्तमात्र मौन रह्या एटले सत्य प्रतिज्ञावाला युधिष्ठिरे तेमने फरीथी कह्युं के, " हुं म्हारी प्रतिज्ञा शीघ्र पूर्ण करीश. गमे तो धैर्य - वास सहित साम्राज्य पदनो नाश याय अथवा तो सर्व वस्तुनो नाश श्रवाथी वनवास करवो मे; परंतु निरंतर पोतानुं कहेतुं पालनारा पुरुषोने था लोकमां सर्व प्रकारनी समृद्धि प्राप्त थाय बे. हे पिता ! तमे धिर ने वीर हो, माटे क्षत्रियना कुलने योग्य एवी धीरज धारण करीने पोतानी प्रतिज्ञा पालवाने एकचित्त थयेला अमोने वन प्रत्ये जवानी आज्ञा आपो. " श्रा प्रमाणे युधिष्ठिर बहु प्रग्रहणी पितानी आज्ञा लइ अने मधुर वचनवमे माताने प्रसन्न करी तुरतमाता, बंधु, ौपदी ने सुना सहित वन प्रत्ये जवा निकल्या. पी मार्गने विषे दुर्योधननी प्राज्ञायी क्रूर एवा कर्मीर ने महापलाद ए बन्ने जसा निष्पाप एवी शैपदीने जय पमावा लाग्या, परंतु ते बन्ने जाने भीमसेने प्रहार करीने काढी मूक्या. विदुरे पण पांरुवोनी पाबल जर तेमने सर्वने विद्यादान पूर्वक शीखाम पी. त्या पबी पांवोए सत्कार करेला विदुर पोताना नगर प्रत्ये व्या. पांवो वनमां गया, ए वात शैपदीना बंधु धृष्टद्युम्ने सांगली; तेथी ते त्यां प्रवीने पांचे पांवाने पंचालदेशना श्राभरणरूप पोताना कांपिल्यपुर ५४ 1 Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. नगरमां तेमी गयो. समुपविजय राजानी आझाथी कोटी सुन्नटो सहित सिं. ह समान पराक्रमवाला कृष्ण पण पोतानी फोs कुंताने प्रणाम करवा माटे हर्षपूर्वक त्यां गया. तेमने पांडवोए अर्जुननी विद्याथी संपादन करेला लोजनवमे विस्मय पूर्वक जमाझ्या. पठी कृष्णे पांवोने कां. “अहो! हुं जा वं के, दंनी एवा कौरवोए कपटथीज बेतरीने तमने पोतानां राज्यथी काढी मूक्या ; माटे हवे तमे तमारा राज्य प्रत्ये जान अने हुं तमारा शत्रु एवा ते कौरवोने मारी नाखं. कारण इष्ट चित्तवालाने अकाले नपायवझे मारवाथी नियमनो नंग यतो नथी.” कृष्णनां आवां गर्व वचन सांजलीने हर्ष पामेला युधिष्ठिरे कj. “हे मुकुंद ! सिंहना समान पराक्रमवंत एवा तमारे विपे ा सर्व संन्नवे ठे; परंतु तेर वरस वनमा रहीने पनी अमो आपनी सहायथीज ए शत्रुनने मारीशुं. आपना प्रसादधी अमाझं शुन्न थशे; परंतु हवणां आप पधारो.” युधिष्ठिरे आ प्रमाणे कहीने तुरत कृष्णने रजा आपी; तेथी ते पोतानी सुपुत्रवाली बेन सुन्नशने रथमां वेसारी अनुक्रमे पोतानी नग री प्रत्ये आल्या. पठी माता अने प्रिया सहित पांच पांमवो बीजा देश प्रत्ये जवा ला. ग्या; एवामां र्योधननो पुरोधन नामनो पुरोहित तुरत तेननी पासे आवीने या प्रमाणे करवा लाग्यो. “ हे पांडवो ! बहु नक्तियी नमस्कार करवा पूर्व क महाराजा र्योधन, पोताना बंधुन सहित म्हारी मारफत तमारी आ प्र. माणे विनंती करे वे के, हे धर्मपुत्र ! तमे गुणोए करीने तेमज अवस्थाए करीने पण म्होटा गे तो में अज्ञानथी जे कां विरुआचरण करयुं होयर तसे म्हारा अपराधने क्षमा करजो. वली निरंतर पोतानां हृदयने विपे अनु ताप पामता एवा म्हारा उपर दया करीने तमे इंप्रस्थना राजा तरीके त्य रहो." हृदयमां बहु उष्ट परंतु नपरश्री सौम्य देखाता एवा ते अनुचरन श्राचां वचन सांजलीने सरल बुध्विाला युधिष्ठिर, पोताना बंधुन सहित ३६ प्रस्यपुर प्रत्य गया. अयोधनना या कपटनी विचरने खवर पमी, तेथी पामबोन दित करवामां तत्पर एवा तेमणे तुरत एक गुप्त पत्र लखीने कुलमा मुः कुटमणिकप युधिष्टिरने खबर आपी के, “अयोधने तमारा निवासने मार्ट ma नर्बु लाग्गनुं घर बनावेलु ; माटे तेमा रहेला तमान ए 5ष्ट चित्तवालो Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पांमव चरित्र. - (४७) जलदी अग्निवझे बाली नाखशे. वली उष्ट एवा तेणे फागण मासनी अंधारी चौदसने दिवस तमारा नाश करवानो निश्चय कस्यो .” विधुरना आवा समाचार सांजलीने तेज वखते कोश्थी न निवारी सकाय एवा वीर नीमसेन बहु कोपथी पोताना म्होटा ना युधिष्ठिरने कहेवा लाग्यो के, “हे बं. घो! खरेखर तमारी कमा बहु कष्ट आपनारी . हुं एकलोज तमारी आझाथी ए कुलमा कलंकरूप अने अपराधी एवा पुर्योधनने गदाना वेगथी मारी नाखं." आ वखते युधिष्ठिरे उष्ट पुरोहितने बेतरता बता नीमसेनना कोपानिने पोतानां वचनरूप अमृतश्री शांत कस्यो, पुराहिते पण कृत्रिम नक्तिथी बहु मान दान वझे पांमवोने लाक्षाग्रहमां निवास कराव्यो. हवे एम बन्यु के, कोइ एक दिवस एक वृक्ष स्त्री, पोताना पांच पुत्र अने एक वधु (पुत्र स्त्री) सहित त्यां आवी चमी. कुंताये कृपाश्री तेने ते पोताना लातागृहमां निवास कराव्यो. पठी रात्रीने विषे पेला पुरोहित पुरोधने गुप्तरीते अग्निवमे लाक्षागृहने सलगावीमूक्यु.पा वखते पोताना पूर्वनवनां पुण्यथी पांडवोने हाथ बार| आववाथी तेन, कुंता अने झैपदी सहित नासी गया; परंतु महा प्रतापवालो नीमसेन पाउल रह्यो. तेणे पेला पुरोहितने अनिमां फेंकी दीघो. त्यार बाद ते, तुरत दोमीने पोताना बंधुनने मल्यो. पाउल सवारे पेला सात बली मूवेला माणसोने जो सर्वे लोक शोक करवा पूर्वक महा पापी एवा जुर्योधननी निंदा करवा लाग्या. पडी ते शत्रु (कोरवो )नी शंकायी महा बलवंत एवाय पण पांमवो सर्व प्रकारनां सुखने त्यजी दइ केवल पोतानी सत्य प्रतिज्ञा पालवा माटे चाली निकल्या. हवे रस्तामां बहु श्रमथी श्राकी गयेला अने चालवाने असमर्थ एवा कुंता माताए भीमसेनने कां के, “हे वत्स ! हवे आपणे केटलेक दूर जवानुं ? हुं अने आ ौपदी एक पगलुं पण आगल चालवा समर्थ नथी. वली आ त्हारा न्हाना बे बंधुन पण फक्त लाजश्रीज चाले ने." मातानां आवां वचन सांजलीने नीमसेने माताने तथा झैपदीने पोताना खन्ना नपर बेसावा. नकुल तथा सहदेवने केम नपर बेसास्या अने युधिष्ठिर तथा अर्जुनने बन्ने हाथ नपर सीधा. आ प्रमाणे गए जगने नपामी अति वेगयी जतो एवो ते महाबलवंत नीमसेन, एक रात्रीमां तो बहु दूर कोइ एक महावनमा जतो रह्यो. पठी Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. ते महावनमां बहु श्रम वाथी नंघी गयेला पोताना सर्व परिवारने की जलनी शोधने माटे फरता एवा नीमसेने शीतल जलथी नरपुर एवं एक महा सरोवर दी. स्नानादि करी अने कणमात्र त्यां विश्राम करीने पनी जेटलामां ते, जल लश्ने पागे वल्यो तेटलामां तेणे पावं वली जोयु तो कोई एक मनोहर स्त्री दीठी. आ स्त्री प्रथम तो क्रूर देहवाली अने “अरे ! ननो रहे नन्नो रहे" एम वहु आग्रहथी कहती हती, परंतु ते नीमसेनने जो पाग्लथी दिव्यरूपवाली अने मधुरवाणीवाली बनी गइ. कामदेवथी बहुज याकुल व्याफुल वनी गयेली ते स्त्री, लीलाथी नीमसेननी पासे श्रावी अने जाणे कटाकवळे तेने प्रहार करती होयनी ? एम मधुरवचनथी कहेवा लागी. " रूपलक्ष्मीए करीने पंचवाण (कामदेव ) ने जीतनारा हे उत्तम पुरुष ! सांतलो. श्रा पासेना पर्वतने विपे हिमंव नामनो म्हारो नाइ रहे. हं तेनी व्हेन ढुं. अने म्हारुं नाम हिमिविका . हे दयावंत ! हुं कामदेवरूप महासमुडमां बुझि गयेली , माटे आप म्हारा नपर क्रपा करीने मने आपना पाणिग्रहणरूप वहाणने विषे नहरी जीवितदान आपो. दे विवेकी ! श्रा वनमां निवास करता एवा तमोने हुं नक्तिथी म्होटो नपकार करीश, माटे दया करीने म्हारो नार करो." आ प्रमाणे विनंती करती एवी ते स्त्री प्रत्ये नीमसेने कह्यु के, " हे चपल नेत्रवाली ! हवणां आ वनने विषे निवास करता एवा श्रमोने ए घटे नहि." आवी रीते तेन तत्वथी परस्पर विवाद कर. ता इता एवामां जयंकर अंगवाला अने विकराल नेत्रवाला हिमंव राकसे तुरत मांशावीने पोतानी व्हेनने हाथवती प्रहार कस्यो.आ वखते प्रहार करेल। त स्त्रीने जोड्ने नीमसेने हिमंबने कां के, " अरे राकस ! निर्दय एवो तुं, युद्ध करवाने तैयार श्रइ रहेला अने त्दारी सन्मुख नन्नेला मने जीत्या विना आ चालाने केम प्रहार करे ? "नीमसेननां आवां वचनश्री क्रोध पामेला न. कर रुपधारी अने पीला नेत्रवाला ते राक्षसे एक वृद्ध नपामीने नीमसे मारवा माटे घोर गर्जना पूर्वक फंक्यं.नयंकर एवा नीमसेने परा जाण बन दायनी ? एवा एक म्होटा वृदाने नपामीने सिंहनाद करता उता त दामदत्य तरफ फंकयु, न्यारवाद ते तेना तरफ यु० करवा दोमयो. परस्पर पर. बीजाना नंघनश्री अने पाद प्रदायी म्होटा पर्वतोने बहु कंपायमान Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. . (४ ) करती पृथ्वी पण समुह सहित कंपवा लागी.आ प्रमाणे तेनना नयंकर यु. थी तुरत जागी गयेला युधिष्ठिरादिकने अने कुंतीने प्रणाम करीने हिमंबा कहेवा लागी. “हे मात ! निश्चे तमारा पुत्रने आ दैत्य मारे बे, माटे तेमनी सहायने माटे बीजा कोइने फट मोकलो, मोकलो !! हुं तेमना निर्मल गुण समूहश्री वेचायली दु, जेथी तेमनी दासी अ बु.” पली दैत्यना बहु प्रहारश्री जर्जर अंगवाला नीमसेनने जो युधिष्ठिर तुरत हाथमां खा ल तेनो तिरस्कार करता उता दोमया. आ. वखते फरी नीमसेने सऊ था गदावमे दैत्यने एवो प्रहार कस्यो के, जेथी ते जाणे नयधीज होयनी एम प्राणरहित थश्ने पृथ्वी पर पमयो. हिमंब मराया पनी नीमसेननां रूपथी मोद पामेली दिमंबिका जाणे साधी राखेली देवता होयनी ? एम सेवा करवामांतत्पर थश्ने तेनुनी पाठल पाउल फरवा लागी. हवे को वखते वनने विषे जती एवी झेपदी पांमवोथी जूदी पमी, तेथी ते जाणे यूथथी नूली पमेली मृगली होयनी ? एम नयथी आकुल व्याकुल ती अने नुख तरसथी पीमा पामती जमवा लागी. जो के आ वनने विष सिंह, हाथी, तुंम अने अजगरादिबहु हिंसक जीवो वसता हता. तो पण तेन शीलव्रतरूप बखतरथी रक्षण करायली पदीनो परान्नव करवाने ज- रापण समर्थ थता नहि. चित्तमां बहु खेद पामता एवा पांमवोए पण महावनमां, पर्वतोनी गुफामां अने सरोवरादि बीजा अनेक स्थानोमां झेपदीनी बहु सोध करी; परंतु जेम कल्पवेलीन जमे तेम ते तेनने मली नहि. पांमवो थाकीने बेग, पठी नीमसेननी आज्ञा लश्ने हिमं विका, पदीनी शोध करवा चाली. थोमो वखत श्रया पठी जाणे शक्ति, लक्ष्मीनेज लइ आवती हो. यनी ? एम ते, पदीने लश् आवी. परी हमेंशा कुंतीने अने पदीने पोताना खंना नपर बेसारती तथा सौने इचित वस्त्र अने अन्नपाणी आपती ते हिमबिका मार्गने विष पांडवोनी आगल चालवा लागी. पठी हर्ष पामेला कुंती अने युधिष्ठिरे, सहदेव तथा अर्जुनादि पुरुषोए वृद्धि पमामेला महोत्सव पूर्वक जेम रात्रीनो चंनी साथे विवाह करे तेम हिमंबिकानेन्नीमसेननी साथे परणावी. हवे तो बहु अनुराग धरती हिमंबिका मार्गने विषे विविध प्रकारना महेलनी रचना करती तथा तेनने चित पदार्थो आपती उती अनेक Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३० ) ऋषिमंगल त्ति - पूर्वाई. रूप धारण करीने जीमसेननी साथे बहु प्रकारना जोग जोगववा पूर्वक क्रीका करवा लागी आ प्रमाणे दिविकार प्राप्त करेला अन्न, जल ने वस्त्रे करीने चिंता रहित तथा श्रमरहित ने ब्राह्मणना वेशवाला' ते पांरुवो, अनुक्रमे चक्र नामना रम्य गाममां श्रावी पहोच्या. त्यां तेनए देवशर्म नामना ब्राह्मना घरने विषे निवास करयो. • एक दिवस युधिष्ठिरे बहु प्रिय एवी हिबिकाने बहु मानपूर्वक प्रा प्रमाणे कयुं. “हे वधु ! पोतानी प्रतिज्ञा पालवा माटे श्रमारे बार वर्षपर्यंत बहु दुःख सहन करवानुं वे, माटे तुं पोताना घरप्रत्ये जा. " श्री धर्मपुत्र युधिष्ठिरनी या प्रमाणे आज्ञा मलवाथी हिमिंबिका पोताने भीमसेनथी प्राप्त धयेला गर्जनी वात कुंतीने कहींने तेमज " ज्यारे तमे मने संभारशो त्यारे हुं हाजर था. " एम प्रतिज्ञा पण करीने तुरत अंतर्ध्यान थइ. दवे को वखते त्यां निवास करता एवा सौम्यदृष्टिवाला पांगवाए पोतानी पासेना घरमां माणसाने रोता, कुटता अने "हाय दाय" एवा कठोर शब्द बोलता सांजल्या. पती निश्वे तेनना दुःखथी मदा दुःखी थयेला जी - मसेने तुरत त्यां जश्ने देवशर्मा ब्राह्मणने पूवधुं के, " हे द्विज ! त्हारुं आ कुटुंब शोकरूप समुइमां मुवी गयेलुं केम देखाय बे ?" देवशर्मा ब्राह्मणे ल. म हाथ मूकीने "हे देव ! हे देव !" एम शब्द करीने तथा "हाय हाय एवा उच्चारपूर्वक रुदन करीने कर्तुं के, “ निचे हुं अनाग्यवाननुं कारण बुं, एम जालो. हे निशरण्य ! जो के तमेज दुःखवंत प्राणीन गे, तो पक्षी हुं या नचती प्राप्त थयेली म्हारी विटंबना तमने शी रीते कहुं ? तो पण दे वत्सल ! तमे ऊट सांगतो. ܓ पूर्वे सिद्ध श्रयेली विद्यावालो, मदा जयंकर अंगवालो ने दुष्ट चित्तवालो को वक नामे राक्षसराज ग्राकाशमां म्होटी शीला विकुर्वीने लोकनो मंदार करवा माटे श्रहिं आव्यो. या वखते लोक सहित राजा पण वहु जय पाम्यो: तेी तेणे सर्व प्रजानी साये गाठ एवा परमेष्टी मंत्रनो जप करता ता धर्मकार्यमा तत्पर इने शुद्ध चित्रे कार्योत्सर्ग कस्यो. तेना प्रजावधी मनुष्याने पीमा करवा समर्थ नहि प्रयेला राक्षसे राजाने या प्रमाणे कं के. "हे नृप ! हुँ मनुष्योने मारवा माठे तैयार येलो दतो; परंतु जिनन Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ पांमव चरित्र. (४३१) क्तिथी त्हारा नपर प्रसन्न थयो ढुं, माटे हवे हुं लोकोने मारीश नहि; परंतु तुं । एक म्हारं चितकार्य कर अने ते एज के, तुं हमेशां मने एक एक माणस पापीने परी तुं प्रजासहित दीर्घकालपर्यंत सुखी थयो तो रहे." आ वात राजाए अंगीकार करी एटले ते दैत्य शीलाने संहरी चाल्यो गयो. (देवशर्मा नीमसेनने कहे ने के,) ते दिवसथी मांमीने हमेशां कुनाकुमारीना हाथथी लखायला नामवाला माणसने राक्षस पासे पोतानो वारो आपवा जवू पमे वे. हे नत्तम पुरुष! पूर्वनवना पापयोगथी आजे म्हारा नामनी पत्रीका (चीठी) आवेली अने आ राजपुरुषो पण मने तेमवा माटेज आवेला ने. अरे नाइ ! एक दिवस राजाए को केवलीने ए राक्षसना नाश संबंधी पूज्यु इतुं, ते नपरथी ए महात्माए पांमवोधी ए राक्षसनो नाश अवानुं कडं बे; परंतु ते पांमवो तो हजु अहिं आव्या नहि अने आ म्हारुं मृत्यु तो आवी पहोच्यु." देवशर्मानां आवां वचन सांजली तथा तेने नयातुर जोश्ने तेनां :खथी बहु दुःखी श्रयेला तथा दयावंत चित्तवाला नीमसेने मनमां विचार कस्यो के, धिक्कार ! धिक्कार !! आ म्हारा शरीरने अने पौरुषार्थने के जेना वमे में बीजा जीवोनी रक्षा पण करी नहि.” पनी जीमसेने देवशर्माने कडं के, "अरे ! तुं प्राजे अहिं रहे हुं त्हारा बदले जानं बु.” नीमसेनना आवा सत्वथी हर्ष पामेला विप्रे कां. “ निश्चे तमने आ घटे , कारण परोपकार करवामां प्रीतिवंत पुरुषोने देहादि सर्व तृण समान ; परंतु हे सुंदर! सौने म.. नुष्यंपणु तो सर , तेमां हुं राक्षस पासे तमारुं नक्षण करावं अने म्हारां जीवितर्नु रक्षण करूं तो तेथी करीने पण हुं कांश चीरंजीवी थवानो नथी." श्राम कहेता एवा ब्राह्मणने आग्रहणी घरे राखी विश्वना मनुष्यो नपर नपकार करनारो नीमसेन राजपुरुषोनी साथे राक्षसना घर प्रत्ये गयो भने त्यां शीला उपर सूतो. हवे.पेलो राक्षसराज अनेक दैत्योनी साथे त्यां आव्यो अने शिला नपर सूतेला महाकायवाला नीमसेनने जोश हर्ष पामतो तो पोताना सो बतीयोने कहेवा लाग्यो. “अहो! आजे आ कोइ महा शरीरवालो पुरुष श्राव्यो देखाय . निश्चे दुधातुर एवा आपणने आ एकधीज बहु तृप्ति थशे." आ प्रमाणे कहीने पठी कुधाथी जमी गयां नेत्र जेनां एवो तथा आक. Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३५) ऋषिममलवृत्ति-पूर्वाई. तीश्री महा जयंकर एवो ते दैत्य पोताना करवत समान दांतोने वारंवार पी सतो, मुखमां जीनने फेरवतो, वीजा राक्षसोने लोन पमामतो अने नान प्रकारना महा जयंकर अहाटहास करतो जेटलामां नीमसेननी पासे श्रा व्यो. तेटलामां चतुर अने नयंकर आकृतिवालो नीमसेन पण तुरत लोढार्न गदाने हापमा धारण करतो तो कोपथी शेष नागनी पेठे ननो थयो. पी मनुष्योने भक्षण करवाश्री बहु पापवाला ते दैत्यने नीमसेने तिरस्कार पूर्वव कां के, "अरे पुष्ट ! तुं त्हारा देवने स्मरण करय. कारण के, हुं हवणां तने निश्चे मारी नाखीश."नीमसेननां आवां तिरस्कार वचनथी नाश पामेला धैर्यवालो ते दैत्य तुरत क्रोधधी पोतानो दंम उचो करीने बीजा अनेक दैत्यो सहित पुर्जय एवा नीमसेनने मारवा माटे दोमयो.आ अवसरे परस्पर युइ करता एवा नीमसेन अने दैत्यना पग प्रहारथी पृथ्वीने विषे चारे तरफ दोन थवा लाग्यो अने तेथी समुश्री नचलवा लागेला जलो जाणे फुवारा बुटेला दोयनी ? एम देखावा लाग्या. पी युध्ने विषे श्रम जीतनारा नीमसेने यु.६ करतां महा बलवमे गदाना प्रहारथी ते दैत्यर्नु मस्तक जाणे माटीनो घमो होयनी ? एम फोमी नाख्यु. श्रावा महा प्रहारथी ते दैत्याधिपतिये नूमि नपर पमता पमता चारे तरफ अनेक वृदोने पामी नाखवा पूर्वक सर्व पृ. थ्वीने कंपावी. आ वखते देवतानए नीमसेननां मस्तक नपर पुष्पनो वर्षाद वर्षावी जयजय शब्द कस्यो, प्रजा सहित राजाए पण देवतानना शब्द सांनलीने दर्पश्री नीमसेनने वधाव्यो. त्यार पठी तेणे नीमसेनना पुरुषार्थथी अने जानीनी वाणीथी " पांमवो ठे" एम जाणीने पांमवोने प्रगट कस्या अने नाना प्रकारना उत्सवोनी सर्व लोक समक्ष तेमन पूजन करयुं. अत्यंत गरिष्ट एवो ते दैत्य नीमसेनथी नाश पाम्यो एटले नगरवासी सर्वे लोका सर्व जिन मंदिरोमा प्रस्तुनुं पूजन अने स्तवन करवा लाग्या. पठी अति दृढ प्रतिज्ञावाला पांझवो शत्रुना जयश्री रात्रीने विपे ते नगरने तुरत त्यजी दश्ने कैत बनमां गया. त्यां तेन कुंपनी वांधीने गुप्त रीते रद्या. दवे अदि ऽर्योधने नीमसेनश्री राकसनो नाश तथा पांवोनुं तवन अन्य जवान वृत्तांत सांजल्यु, तेथी ते मनमा वहु खेद पामतो तो नपरी ... बाद हर्ष ग्यामना लाग्यो. पठी विरे ज्योधननो पांमवोने नाश करवानो वि. Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र. HTT ( ४३३ ) चार जाणीने तुरत एक प्रियंवद नामना प्रवीण दूतने पांवो पासे मोकल्यो. दूत पण ऊट द्वैतवनमां जश्ने अने पांवाने नमस्कार करीने विदूरना दीर्घकालपर्यंत कुशलका एवा सर्व समाचार कह्या. ते या प्रमाणे. “ तमे हैतवनमां कुपी बांधीने रह्या बो, ते वात दुर्योधने जाली बे. तेथी ते कर्ण सहित तमारी पासे प्रवशे, माटे तमारे सावधानपणे रहेवुं. " दूतनां ग्रावां वचन सांजली जेने मनमां बहु क्रोध उत्पन्न थयो छे एवी शैपदीये पांमवोने क. " अरे ! हजु पण ते पापीयो आपणुं कांइ नवुं अशुभ करशे खरा ? खरे श्रमे सत्यवचनथी देश, धन अने सैन्य सहित राज्य व्यजी दीधुं तो पण ते धरायो नहि, जेथी फरीने श्रमारी पासे शुं लेवा आवे बे ? धिक्कार बे मने ! जे हुं पांसु राजाना न्यायवंत एवा पुत्रोरूप तमने वरी !! धिक्कार बे ! धिक्कार !! तारा त्रियना पराक्रमने ! अने धिक्कार बे ! धिक्कार बे !! तमारा शस्त्रना salmera !!! अरे माता कुंती ! वीर प्रीया एवा तमे था नपुंसक एवा पुत्रोने शामाटे जन्म प्राप्यो ? के, जेनना समक्ष अधम एवा धृतराष्ट्रना पुत्रोए मने नीच जनोने योग्य एवी विटंबना पमामी !!! निर्लज एवा ते डुष्टोना नपसर्गने में सहन करुया. वली राज्य त्यजी दइ आ वनमां श्राव्या तो पण दादा !! एला धृतराष्ट्रना पुत्रो दजु वैरथी विराम पामता नथी." - पदीनां वां वचन सांभली क्रोधथी कंपतो एवो भीमसेन, जाणे ए साक्षात् वीररस होयनी ? एम पृथ्वी नपर बन्ने दाथ पवामतो बतो ऊट ननो थयो . मेघनी पेठे गर्जना करता ने कषायरूप अनिने वृद्धि माता अर्जुने पण कोन पामेला अष्टापद केसरी सिंहनी पेठे नन्ना थइने धनुष्यनो टंकार शब्द कस्यो. शुं प्राते प्रतिबिंबरूप वे के मूर्तिमंत बे ? एम रातां नेत्र अने मुखवाला तथा शत्रुना कालरूप नकुल ने सहदेव पण युद्ध करवाने बहु नल्लासवंत या. वैरीरूप हस्तियोने नाश करवामां सिंह समान कोन पामेला ते सर्व बंधुनने जोइ म्होटा युधिष्ठिरे कह्युं के, “हे वीरो ! तमे दवणां विराम पामो. कारण के, हुं शत्रुननुं हृदय ने तमारूं वल सारी पेठे जाएं बुं. देविनयवंतो ! युद्ध करवा तैयार थयेला तमारा व म्हारी प्रतिज्ञा मिथ्या न धान, माटे पो वखतवे तेटलो काल वाट जुन. " युधिष्ठिरनी श्रावी प्रज्ञाश्री जीमसेनादि चारे बंधुन पोतानी स्वाभाविक प्रकृतिने पामी गया, पत्री ५५ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिर विधुरनाजी दइने वाला इंक (४३४) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. युधिष्ठिरे विचरना समाचारनुं मनमां स्मरण करता उतां तुरत दूतने रजा. आपी. पठी ते देश त्यजी दश्ने पांमवो गंधमादन पर्वत नपर गया. त्यां पण , तेमणे पोतानी नजीकमां अनुत शोनावाला इंश्कील नामना पर्वतने दीगे./ पठी समय मल्यो जाणीने अर्जुन पोताना म्होटा बंधु युधिष्ठिरनी प्राज्ञा ला ते पर्वत नपर विद्या साधवा माटे गयो. त्यां ते श्री रुषन्न देव मनुने नमः स्कार करी कमलासन नपर बेसी अने मेरु पर्वतनी पेठे पोताना ध्यानमा स्थिर अश्ने श्रीमणिचूम विगेरे विद्याधरोए प्रापेली विद्या साधवा लाग्यो.प्रा वखते नूत, सिंद, हस्ति विगेरे बहु जीवो तेने चलाववा प्राव्या; परंतु दृढ चित्तवालो ते जरा पण चलायमान थयो नहि. पी प्रसन्न अयेली विद्यान ते. नी पागल प्रगट यश्ने कड़वा लागी के, " हे वत्स ! अमे प्रसन्न बीए, माटे वरदान माग.” पठी नमन करता एवा अर्जुने तुरत नन्नाथश्ने ते विद्यानने न. क्तिश्री प्रणाम कस्या. विद्यानए अर्जुननां शरीरनुपर हाथ फेरव्या एटले ते सि. ६ विद्यावालो थयो. त्यारबाद दर्ष पामेला अर्जुने ते पर्वतना शिखर नपर जूमने मारता एवा एक पारधीने दीगे. दयायी अर्जुने वारंवार तेने ना पामता उतां कह्यु के, "अहो या तीर्थने विषे नाहत एवो तुम्हारा जोतां गतां नूंमोने केम मारे में? तुं जेनु कोइरहण करनार नयी एवाश्रा निरपराधी जीवोने मारेने; परंतु निर्दय, एवा पुरुपोनु कुल, वल अने नत्कृष्ट जाणपणुंए सर्व वृथा होय ." प्राप्रमाणे तिरस्कार करेला पारधीये अर्जुनने कडं. “अरे वटेमार्ग! पोतानी मरजी प्रमाणे श्रा वनने विष फरता एवा गाढ पराक्रमवाला मने तुं फोगट केम ना पामे ठे? हुं क्रोधना वशश्री प्रवृत्ते उते आ वनवासी जीवोनुं रक्षण करनार कोण ? उतां जो तुं पोतानां क्षत्रिय वलथी समर्थ होय तो आ जीवनुं रक्षरा कर ! रक्षण कर !!" पठी पापीट शत्रुना समूहवाला अर्जुने नग्रएवा धनुप्यने यमदंमनी पेठे हाथमां धारण करी क्रोधथी वाणोवमे सर्व प्राकाशने पूरी दीधुं. पारधीये पण तुरत पोतानुं धनुष्य युःइनिमित्ते दायमां लश्ने ला. घवपणाश्री फल आपनारा वहु वाणो अर्जुन तरफ फेंक्यां. बन्ने सुन्नटोना प्रा. कारामां नचलता वालोए करीने जाणे ऽष्ट राजानना असंख्य अन्यायपीज दोपनी ? एम सूर्य दंकाइ गयो. पठी मायामय पारधीये अर्जुननुं धनुष्य हरे। ली पटले ते क्रोधषी पोतानुं खम् लग्ने पारधी सामो दोम्यो, पारधीय Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४३५) खम् पण हरी लीधुं. पठी तो नयंकर अर्जुन इंच युः करवाने सिंहनाद करतो तो तेना सामो दोमयो. बन्ने जणा बलथी परस्पर अंगपीमन करता उता इंच युः६ करवा लाग्या. तेमां अर्जुने नीलने पग पकमीने बलथी वस्त्र नी पेठे आकाशमां फेंक्यो. आ वखते आकाशथी पुष्पवृष्टि थर अने अर्जुने पोतानी पागल ते पुरुषने बदले को बीजा पुरुषने दीगे. “ आशं !" एम बहु आश्चर्य पामेला अर्जुनने दर्ष पामेला पेला पुरुषे कह्यु. “हे पार्थ ! हुं त्हारा गुणोथी प्रसन्न थयो बुं; माटे तुं इष्ट वरदान माग." अर्जुने कर्तुं. “ हे विद्याधर ! हुं अवसरे ते वरदान मागीश; परंतु आप कोण गे? ते हुँ जाणवानी इला करुं बुं. तो ते मने जट कहो” अर्जुननां आवां वचनथी हर्ष पामेला ते पुरुषे कj. “हे अर्जुन ! सान्नल. . वैताढ्य पर्वतने विषे रथनूपुर नगरमां जाणे दिशाना अधिपतियोए सेवन करेलो इंज दोयनी ? एवो इंश्मानि नामे विद्याधरोनो राजा राज्य करे . तेने विद्युन्माली नामनो बंधु . ए बहु चंचल मनवालो दोवाश्री प्रजावर्गने बहु सुखकारी इतो, तेथी महाराजा इंश्मानीये बहु क्रोध करी तेने पोताना नगरमांधी काढी मूक्यो. विद्युन्माली पण बहु कोप धरतो तो तत्काल राक्षसना नगर प्रत्ये गयो. त्यां तेना संगथी खुंटवामां अने बंधन करवामांचतुर एवातल अने ताल नामनादैत्योनचिंता महेंदेशमांश्रावीनेलोकोने बहु क्लेश करावा लाग्या. पठी इंडे कोइ केवलज्ञानीनां वचनथी तेननो प. रानव तमाराथी जाणीने मने तमारा माटे धनुष्य, कवच, नत्तम रथ अने मुकुट आपीने अहिं तमने तेमवा माटे मोकल्यो , माटे या सर्व वस्तु ग्रहण करो अने त्यां चालो.” महा पराक्रमवालो अर्जुन पण धनुष्य, बाण, मुकुट अने कवच धारण करी तुरत राक्षसना पुर प्रत्ये गयो. कर्वा के-महा पुण्यवंतने शुं उद्धन होय छे ? अर्जुने त्यां महा घोर संग्राम करी अने ते सर्व दैत्योने मारी नाखीने विजय मेलव्यो. पठी विजयश्री देदिप्यमान एवा तेणे वैताढ्य पर्वत पर आवीने हर्षश्री इंश्ना चरण प्रत्ये नमस्कार कस्यो. इथे पण सामा जश् मलीने तेने पोताना अर्दा श्रासन नपर वेसामयो. ई. उनी आज्ञाश्री सर्वे लोकपालोए पण विजयवंत एवा अर्जुनने नमस्कार कस्या. पठी बहु प्रसन्न अयेला ३३ पोताना पुत्ररूप अर्जुनने दिव्य श्रायुधो श्रा Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३६) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. प्यां. अर्जुने पण परस्पर प्रतिनी वृध्नेि माटे पोतानी धनुष्यकला चित्रांगद नामना विद्याधरने आपी, पठी पोतानी माता अने नाश्योने मलवाने उत्साहवंत श्रयेलो अर्जुन, इंश्नी आझाला वैमानमां बेसीने आकाश मार्गे थइ तुरत पोतानां आश्रमप्रत्ये श्राव्यो, त्यां तेणे माताने तथा पोताना बे म्होटा बंधुनने प्रणाम करीने तया न्हाना वे वंधुनने नेटीने तथा झैपदीने दृष्टिश्री मलीने वहु प्रसन्न करुया.चित्रांगद विद्याधर पण युधिष्ठिरादिकनी पासे अर्जुनना पराक्रमनी वात करीने पठी तेनए रजा आपवायी पोताने स्थाने चाल्यो गयो. हवे को वखते वहु हर्षवाला पांमवो बेग हता एवामां तेमनी वञ्चे आकाशमांश्री एक सुवर्ण कमल पमयु. पदीये तेने पोताना हाश्रमां लश सुंघी अने पठी नीमसेनने कडु के, “ हे नाथ! आवां कमलो मने बहु वहालां , माटे तमे कोइ पण म्होटी नदीधी, सरोवरथी अथवा तो धराथी लावीने मने ऊट श्रापो.” जैपदीनां आवां वचन सनिलीनीमसेन, पंचनवकारनुं स्मरण करतो ठतो वनमां कमलोनी शोध करवा गयो. पाउल धर्म पुत्र युधिष्ठिर, विघ्नकारी मार्बु नेत्र फरकवा लाग्यु. तेथी ते मनमां अरिष्टनी शंका लावी पोताना न्हाना बंधुनने कहेवा लाग्या के, “ अहिं एवो कोश नश्री के, जे नीमन्नाइनो परान्नव करवाने पूर्ण समर्थ थाय !!! उतां आम्हारु, मा नेत्र नीमने विषेज खरेखर घोर अने अति नयंकर अमंगल सूचवे ; तो दे बंधुन ! तमें ऊट नठो अने आपण सौतेनी पाउल जइए." पठी तेन मढ़ा वृकोना गाढ प्रदेशने विपे चारे तरफ शोध करवा लाग्या; परंतु जेम लाग्यदिन मागलने निधि प्राप्त न श्राय तेम तेनने कोई स्थानके नी. मन मख्यो नदि. ठेवट तेन मोदवमे म श्री पृथ्वी नपर पमवा लाग्या पटले तेनए तुरत दिविकानां वचनने याद लावी तेनुं स्मरण करयु. फक्त नाम मात्रना स्मरणी तुरत त्यां आवेली दिविकाए कडं के, “हे पूज्यो ! म्दाम शं कार्य , जे होय ते कहो." युधिष्ठिरे नीमसेन संबंधी वात करी। पटले दतकार्य करनारी तेणे सर्वन पोतानां मस्तक नपर वेसारीने नीमसेन पास लावी वह हर्ष पमाम्या, या वखते नीमसेन पद्म सरोवरना काठ नता दना: तवी ते पग पोताना वंचनने मार्गना विषमपणानी बात को न दर्य पान्यो. N Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र. (४३७) . पठी सुवर्ण पद्मोवमे डुपदराजपुत्रीनी चा पूरी करवा माटे जेटलामां नीमसेने सरोवरमा प्रवेश करयो तेटलामां ते तुरत अंतर्ध्यान थइ गयो. अ. र्जुन तेनी पाउल गयो तो ते पण तेनीज पेठे अदृश्य थयो. कज, माणसोना बन्ने नेत्रमांनुं एक नेत्र ज्यारे निशथी बंध थाय त्यारे वीजुं पण तुरतज तेनी पाउल बंध श्राय बे. ज्यारे बन्ने नाश्योनी पाउल युधिष्ठिर अंतर्ध्यान घया त्यारे न्हाना बे बंधुन पण तुरत मोहथी तेमनी पब्वामे तेवीज स्थिति पाम्या, पठी पांमवोने नहि देखवायी ते महा वनमां कुंती अने झेपदी बन्ने बहु नय पामवा लागी, तेथीते बन्ने महासतीयोए पोतानी शांतिने माटे विघ्न नो नाश करवामां निपुण एवा परमेष्टी मंत्रनुं ध्यान करवा पूर्वक एकाग्र चि. __ त्तथी तुरत कायोत्सर्ग कस्यो. परी ध्यानमा रहेली अने स्थिर चित्तवाली ते बन्ने महा सतीयोने आठ प्रहार (एक रात दिवस ) निवृत्त श्रयो एटलामां बीजे दिवसे सवारे पांचे पांमवोए आकाशमांथी नतरीने पोतानी माताने प्रणाम कस्वा. संतुष्ट चित्तवाली कुंतीये पण तुरत कायोत्सर्ग पारी हर्षधी नमन करता एवा पोताना पुत्रोने नेत्रनां कंश्क उनां एवां बहु जलश्री सिंचन कस्या. आ वखते हाथमां सुवर्णदंझने धारण करनारो कोइ पुरुष कुंतीने प्र, गाम करी पांमवोनां ते ते सर्व चरित्रयी तेमने (कुंतीने ) विस्मय पमामतो तो कहेवा लाग्यो के. - "हे मात! तमे सोनलो. हवाणां को मुनिने केवलज्ञान नत्पन्न थयु जे; तेथी तेमनो केवलोत्सव करवा जता एवा इंइनुं वैमान जेटलामां आकाशमार्गे अदि तमारा नपर आव्युं तेटलामां ते तमारा आश्चर्यकारी शीलने लीधे स्तंनित अइ गयु. पनी इंडे तेनुं कारण जाणवा माटे प्रहित नामना मने अहि मोकल्यो. हुं पण तमने बन्ने सतीयोने जो तुरत इंश पासे गयो. २६ पण सह विघ्नने हणनारी तमारी परमेष्टीमंत्रनी ध्यान क्रीयाने जाणीने पोताना वैमानना स्खलननुं कारण मनमां विचारवा लाग्यो. परी तेणे मने कां के, “शेपदीनां वचनथी आ पांचे पांमवो सुवर्णकमल सेवा माटे स्फुरणायमान महासर्पना समूहवाला विशाल सरोवरमां पेग वे; परंतु ते सरोवरनो अधिपति शंखचूम तेनने नाशपाशवमे दृढ बांधीने पोताना नुवन प्रत्ये लश् गयो . धिक्कार ! धिक्कार ठे ! ! के एने एवं कृत्य करता Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३८ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. कोइए निवास्यो नहि. हे सुंदर ! पठी ते बन्ने मदा सतीयोए तेज कारण माटे. श्री परमेष्टीमंत्रनुं ध्यान श्रारभ्युं वे अने तेथीज श्रा म्हारुं वैमान स्खलन पाम्युं वे आज म्हारुं वैमान स्खलन पामवानुं खरं कारण तत्त्वी जाली ले,, माटे हे विधिज्ञ ! दवे तुं शंखचूक पासे जइ श्रने म्हारी प्राज्ञायी पांचे पांवने ठोकावीने तेने ते महासत्यो पासे तेमी जा. पबी तेमनुं ध्यान मूकावीने वहु दर्ष पमान. " इंइनां आवां वचनथी में पाताल लोकप्रत्ये जश्ने इंश्नां वचनथी वहु तिरस्कार करता बता शंखचूमने कह्युं के, “ अरे सर्वाधिप ! था निरपराधी ने श्रायुध रहित एवा पांगवाने शा माटे बांध्या वे ? ” पनी तेले " म्हारा सरोवरनां कमलोने लेवानी इच्छा करवायी में तेजुने बांध्या वे. "एम करूं एटले में ते सर्पाधिराजने श्री इंनी प्रज्ञा कही. इंनी श्रावी श्राज्ञा जाली शंखचूमे ते पांच पांगवाने पोतानां राज्यने विषे स्थापन कस्या. कह्युं ठेके - इंनी श्राज्ञा निरंतर मनुष्य, देवता अने असुरोने मान्य होय े. पती राज्यनां सुखने विषे स्पृहा रहित तथा तमारां चरणकमलने सेवन करवामां भ्रमररूप या पांगवाए तेनां राज्यने अंगीकार करयुं न दि. वली सर्पराजे प्रसन्न थने युद्धना श्रवसरे अर्जुनने सदाय्य करवानुं कथुं बे. भा वचन अंगीकार करीने सर्पराजे अर्जुनने एक श्राश्वर्यकारी दार प्रने वीजा चारेने वाजु, मुकुट, कुंमल ने महाविद्या आपीने पढी हे मात! ते तमारा न्यायवंत पुत्रोने म्हारी साथे श्रहिं मोकल्या बे; माटे दवे तमे मने तुरत इंनुं वैमान चलावानी श्राज्ञा श्रापी त्यां मोकलो. " प्रहितनां भावां वचन सांजली पदी सहित हर्ष पामेली कुंतीये ते देवने श्रानंदकारी वचनथी जवानी श्राज्ञा श्रापी अने पोते पोतानां हस्त कमलश्री युधिष्ठिरादि पुत्रोने स्पर्श करो. युधिष्ठिरादि पुत्रेो पण विनयश्री भक्तिवमे माताना चरणमां नमस्कार करना. इति पांवचरित्रे पांवतकी मावनवासादिवनिनामा चतुर्थोऽधिकारः ॥ ४ ॥ 1 निरंतर लोकमां सुखकारी ने पोताना भक्त जनोना सर्व विघ्नने नाड़ा करनारा चली महोदयरूप लक्ष्मीने माप्त करवामां प्रवीण एवा श्री अजितनाथ जिनेश्वरने हुं दधी नमस्कार करूं हुँ. Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र. ( ४३५ ) हवे उत्तम पराक्रमथी प्रसिद्ध एवा ते पांचे पांवो श्रा प्रमाणे वनवा समां छ वर्ष पूरा करीने पढी न्यायलक्ष्मीश्री शोभता एवा तेन फरी सुखे निवास करवा माटे दैतवनमां गया. अहिं हस्तिनापुरमां दुर्योधने पांवो दैतवतमां श्रव्यानी वात सांगली; तेथी तेणे वेगवमे बहु सैन्यथी त्यां श्रावी द्वैत वनना सरोवरने तीरे पकाव करचो. जो के चित्रांगद विद्याधरे या वखते त्यां श्रावी तेने बहु ना पानी तो पा सेवक समूहथी अनुसरायेला दुर्योधने सहसा ते सरोवरमा प्रवेश करचो. पी कोप पामेला ते विद्याधरे अनुचरो सहित दुर्योधननुं दरण करयुं. प्र वातनी दुर्योधनादिकनी स्त्रीयोने खबर पमी; तेथी तेन तुरत युधिष्ठिरनी पाले आवीके बहु रुदन करती बती कदेवा लागी. “हे जेव ? जो के धृतराष्ट्रना पुत्रोए तमारे विषे बहु अपराध करचो बे, तोपण तमे ज्येष्ट धर्मना उद्भवी अने विशेषे वृद्धि पामेला नावधी श्रमारा उपर क्रपा करो.” "तेजनां भावां वचन सांगली दयाथी निंजाई गयेला चित्तवाला अनेत्यजी दीधो वे क्रोध जेणे एवा युधिष्ठिरे युद्ध कार्यमां समर्थ एवा अर्जुनने ते दुर्योधनने बोमाववाना काममां आज्ञा करी.पी अर्जुने विद्याधरनी पासे जश्ने इग्बी यु.नी याचना करी. विद्याधर पण क्रोधथी रातां नेत्रवालो थयो तो बीजा अनेक विद्याधरोनी साथे त्यां रणभूमिमां आव्यो. अर्जुने पण क्रोधथी मेघनी पेठे गर्जना करीने बा - सोनो एवो वरसाद वरसाव्यो के, जेथी रातां नेत्रवालो चित्रांगद बीजा धनेक विद्याधरो सहित अर्जुननी साथे युद्ध करवा लाग्यो. पटी नाश पाम्युं वे बल जेनुं एवा ते विद्याधरे असमर्थपणाने लीचे उदासपणुं पामता बता बंधु सहित दुर्योधनने बोमी दइ अने तुरत अर्जुननी पासे प्रवीने नमस्कार कस्यो. अर्जुने पण तुरत निर्मल नीतिथी हाथ जोमीने बनेला विद्याधरने कं के, “दे सखे ! फक्त गुरुरूप म्होटा बंधुनां वचनथी बंधायेला में हारी साथै युद्ध करधुं बे, दवे तुं श्रा दुर्योधन सहित सत्य प्रतिज्ञावाला म्हारा म्होटा बंधु पासे प्रवीने तेमने नमस्कार करतो बतो प्रीतिनी वृद्धिने माटे पोतानुं निरपराधीपशुं दर्शावी आप " अर्जुने आ प्रमाणे कां एटले प्रसन्न चित्तवालो ते विद्यावर अर्जुनने प्रगल करी वैमानमां बेसीने म्होटा उत्सवयी युधिष्ठिर पासे प्राव्यो. बंधुन सहित युधिष्ठिरने जोवा मात्रथी जेने मांयामां शूल भने शरीरमां पीमा उत्पन्न थर बे एवो तथा मनमां स्फुरणायमान थयेला क्रोध है Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४०) . ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. समूहवालो कुर्योधन खीलानी पेठे तेमने जरा पण नम्यो नहि. चित्रांगदे जे. मनां चरणने विषे नमन करघु ने एवा धर्मपुत्र युधिष्ठिर पोतानां स्नेहवंत नेत्रयी र्योधनने वारंवार जोवा लाग्या. कारण सत्पुरुषोनुं एवं चरित्र होय . पठी “हे मूढ ! अपराध सहन करनारो जे त्हारो गुरु ने अने जे तने जीवितदान आपवामां समर्थ . तेने तुं नमस्कार कर के, जेथी करीने त्हार कुशल पाय” एम कहेवा पनी नमस्कार करता एवा र्योधनने युधिष्ठिरे आलिंगन करीने सर्व कुटुंबचें कुशल पूज्यु एटले तेणे तुरत प्रसन्न प्रश्ने पो. तानां चित्तमा रहेढुं सर्व युधिष्ठिरने कj. “ हे धर्मपुत्र ! तमने नमन करतां मने जे दुःसह लजा श्राय , ते लज्जा स्वराज्यनो नाश अने वैरीश्री श्रयेली पीमावसे करीने पण मने यती नथी.” र्योधननां ावां वचन सांजली नाश . पाम्यो ने क्रोध जेमनो एवा युधिष्ठिरे तेने तेना नगर प्रत्ये मोकली दीधो. कडं ले के-संत पुरुषो पोता, अहित चितवनारा नपर पण हित चिंतवे ने. पठी गांगेय अने शेण विगैरे उत्तम पुरुषोए जुर्योधनने का के, “तें लेशमा त्र अर्जुननुं बल जोयु ? माटे हे मूर्ख ! हवे तुं मनमां विचार करीने ते म. हात्मा पुरुषोनी साथे झट संधी कर." आ प्रमाणे गांगेये बहु कां; पण जेम त्रिदोष (वात, पित्त अने कफ) श्री नत्पन्न श्रयेलो व्याधी विविध प्रका. रना औषधोने गणे नहि तेम इष्टनावने आश्रय करी रहेला र्योधने गांगेया दिकनां हित वचनने गण्यु नहि. हवे जे ईतवनमां पांमवो रहेता हता त्यां यश्ने दुःशल्यानो पति जय. इथ जतो हतो. तेने कुंतीये पोतानी पुत्रीनो पति जाणीने स्नेहथी आमंत्रण करयु. जयश्य पण हर्ष पामतो तो त्यां रद्यो. पठी अर्जुने पोतानी दि. व्य शक्तिथी अमृत समान नोजन लावीने तेने जमायो. कडुं के-निश्चे नोजन एज प्रीतिनुं प्रथम फल दे. पीपदराज (शेपदी) पुत्रीनां मुखकमलने जोता एवा जयश्य राजानो मनरुपी हंस ते शेपदीना लावणरूप सरोवरने विपे क्रीमा करवाने नत्साहवतं थयो; तेथी ते अवसर जोश पांमवोने ठेतरीने जाणे मूर्तिमान लदमीज होयनी ? एम पदीने रथमां बेसारी तकाल चाल्यो. या वातनी नीम तथा अर्जुनने खबर पमी एटले तेन बहु कोप करता उता तेनी पाठल जवा लाग्या.श्रा वखते कुंतीये तेमने कडं के, Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र: ( ४४१ ) हे पुत्रो ! ए तमारी व्हेननो पति थाय बे, माटे ते महा अपराधीने तमे मारशो नहि. पी अर्जुने धनुष्यनो घोर शब्द करी, असंख्य वाणोथी जयइथनी महासेनाने अवले रस्ते जती करी दीधी. जीमसेने पण नबली नबलीने मुशलनी पेठे गदाना प्रहारथी जयइथनी सेनाना हस्तियोना समूहने रुधिरमय बनावी दीधी. जो के अर्जुन, जयश्थनां जीवितने हरण करवामां समर्थ हतो; परंतु तेथे मातानां वचन स्मरणमां लावीने प्रचंड बासना समूदी तेना ( जयना) रथनी ध्वजा तथा तेनी दाढी मूछ अने केश कापी नाख्या. पी अर्जुन ने भीम ए बन्ने नयबलवाला सुनटोए शेपदीने रथमां बेसरी पाी लावीने हर्षथी मातानां चरणकमलमां प्रणाम करुया. मदावत कुंतीये पण प्रेमवमे पोताना हस्तथी युद्धश्रमना परसेवाथी ऊ रता कोमल अंगवाला जीम तथा अर्जुनने स्पर्श करचो. दवे को वखते महा संतोषवाला ते सर्वे पांवो पोतानी माता अने पदी सहित बेता एवामां नारदरुषि श्राकाशथी उतरीने तेमनी पासे श्राव्या. पांरुवोए बहु जक्तिथी तेमनुं पूजन कर. पी नारदमुनि तेमने ए कांतमां as as हितवचन कदेवा लाग्या के, " हे पांवो ! तमे स्वस्थ चितवाला ग्रइने दुर्योधनना सर्व अभिलाषने सांजलो. तमोए शंखचूमना पासथी मावेलो ष्ट बुद्धिवालो दुर्योधन पोतानी नगरी प्रत्ये प्रवीने तमारो नाश करवा माटे बहु प्रयत्न करवा लाग्यो; परंतु पापने लीघे तेना सर्व प्रयासो निष्फल थया बे. ज्यारे ए पोते नाना प्रकारनां बहु कपटोथी तमने मारवा माटे समर्थ यो नहि, त्यारे तेथे हवणां पोतानां नगरमां एवी नद्घोषणा करावी ठेके, "जे कोइ उत्तम पुरुष, कपटथी अथवा तो बाहुबलथी पांगवाने मारी नाखे तेने हुं म्हारुं अहुँ राज्य आपीश.” दुर्योधननां आवां वचन सांनलीने पोताना पिताना विनाशना वैरथी पुरोधन पुरोहितना पुत्रे विनंती पूर्वक कह्युं के, “दे नरेंइ ! यावा अल्पकार्यमां प्रापे पोते शामाटे प्रयास करवो जोइए. म्हारी पासे सर्वकार्य पूर्ण करवामां समर्थ एवी अने वरदान आपनारी कृत्या नामे विद्या बे, तेना प्रभावथी हुं त्रण जगत्ना जनोने कोज पमाऊं तो पी ए पांवाने दोन पमावा एमां तो शुं वे ? पोतानुं कार्य करवामां यमचं श्रयेला ते जिने जोइ हर्ष पामेला पापबुद्धिवाला दुर्योधने तेने श्रेष्ठ ५६ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. दिव्य वस्त्र तथा आनूषणोथी सत्कार करी बहु वखाण्यो. हवे ते उष्ट बुड़िवाला विप्र निष्कपट बुध्विाला तमारे विष विद्यासाधन करवा बेगे . ए पो. तानी अमोघ विद्याथी सर्व विश्वनो नाश करवा समर्थ . हे पांमवो ! हुं सा., धर्मिक प्रेमवशथी आ वात तमने जगावा माटे आव्यो वं, माटे तमे तेनो कोइ पण रीते उपाय करो." पी युधिष्ठिरे, “अमारा हितने माटे तमे आ सारं क. अमे जो एन जाण्यु होत तो ते अमारो परान्नव करत.” एम कहीने दानमानादिकथी नार• दने विदाय कस्या. पली कृत्याना बलने निवारण करवा माटे तपनुं प्रमाण मानता एवा पांमवोए, कुंती तथा झैपदीनी साथे विचार करीने अत्यंत हर्ष धरता उता कार्योत्सर्ग कस्यो. फक्त सूर्य सामां नेत्र राखीने एक पगे नन्ना रहेला ते धैर्यवंत पांमवो, श्री परमेष्टि मंत्रनुं ध्यान करवा लाग्या. जो के पांडवो ताढ, तमको, वायु विगेरेना क्लेशने सहन करता हता तोपण श्री जिनेश्वर प्रन्नुना ध्यानरूप समाधिमां लीन श्रयेला आत्मावाला तेनए सुखेथी सात दिवस निर्गमन कस्या. पनी आम्मे दिवसे पर्वतोना शिखरोने तोमी पामनारो नयंकर वायु जेम जेम वृहिपामवा लाग्यो तेम तेम पांमवोनोध्यानरूप दिवो स्थिरपणुं पामवा लाग्यो. आ वखते रथना शब्दोथी, गजेंशेना गर्जारवथी, अने अश्वोना खोखाराथी जाणे दश दिशानना पतियोने बोलावतुं होयनी ? एम अकस्मात् कोश म्होटुं सैन्य त्यां आवी पहोच्यु. पी को पुरुष कुंती नपर स्नेह धरतो तो त्यां आवी कुंतीने तथा झैपदीने पोताना . खन्ना नपर बेसारी तुरत मदोन्मत्त एवा हस्तियोना समहथीनयंकर एवा पोताना सैन्यमां चाल्यो गयो. त्यां तेनए बन्ने सतीयोने प्रहार करवा ममियो एटले कुंतीये " महा जयंकर एवा शत्रुनना कालरूप हे अर्जुन ! रणसंग्राम मांडार एवा हे वत्स नीम! तमे माताना नक्त गे.माटे आ पुरुषाधा अ मारुं रक्षण करो! रक्षण करो!!” आ प्रमाणे शत्रुनए चाबकना प्रहारथी तामन करेली शेपट्टी सहित कुंती करुण स्वरे पुत्रोनां नाम लेती उती बहु वि. लाप करवा लागी. पछी पोतानी मातानुं रुदन सांजलीने त्यजी दीधु ने शुरू ध्यान जेमणे एवा पांडवो, दिव्यशस्त्र गृहण करीने प्रलय समुनी पेठे सिंह नादश्री गर्जना करता तुरत सैन्य तरफ दोमया, त्यां अर्जुने असंख्य बाणा Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४४३) थी शत्रुना सैन्यने जिननिन्न करी नाख्यु. नीमसेने गदाना प्रहारथी पमता हस्तियोवालुं अने नासी जता सुलटोवालु करमु. प्रसरी रहेला महा संग्रामना रसवाला युधिष्ठिर पण दायमां खन धारण करीने उंची करेली फणावाला क्रोधवंत काल सर्पनी पेठे देखावा लाग्या.अस्खलित एवा नकुल अने सहदेव पण असंख्य बाणोनो वर्षाद वरसावता अने सैन्यमां क्रोधथी चारे तरफ फरता बहु उःसह देखाता हता. अर्जुनना बाण अने नीमसेननी गदाना प्रहारथी बहु दीन बनेली सेना तुरत चारे तरफ नासी गइ. पी कणदृष्टनावनी पेठे सेना नासी ग एवामां त्यां जाणे बीजी कृत्या होयनी ? एवी तृषा (तरस), तालवाने तथा होग्ने सुकवी देती पांमवोने बहु पीमा करवा लागी. तरसथी आकुल व्याकुल अयेला पांडवो जलनी शोध माटे वनमा फरता हता तेवामां तेमणे कमलोथी सुशोनित मध्यन्नागवालुं एक तलाव दी. जे टलामां पांडवोए ते तलावमांथी पाणी पीधुं तेटलामां तेन जाणे मूळ पा. म्या होयनी ? एम संसारी जीवनी पेठे अकस्मात् पृथ्वी नपर आलोटवा लाग्या. कर्वा डे के, आ लोकमां बलवंत एवाय परा संसारी जीवोर्नु पूर्वनव निर्मित कुकर्म नोगव्या विना क्यारे पण बुटतुं नश्री. शैपदी पण नमती उ. ती त्यां प्रावी पहोची अने ते पोताना पतियोने पुःखथी पृथ्वी नपर आलोटता जोश बहु खेद पामीने चारे तरफ जोवा लागी. आ वखते वननी वेलथी बांध्या के पोतानां मायानां केशे जेणे एवी तथा सुंदर वटकल वस्त्रने धारण करनारी को वनचर स्त्री (नील स्त्री) त्यां नचिंती श्रावी. पठी जरा धिरज पामेली झेपदी जेटलामां ते नील स्त्री पासे आवीने कांइ कहेवा जाय ने तेटलामां जाणे धूमामानो समूह होयनी ? एवी दावानलसमान पीला केश समूहने धारण करनारी, हाश्रमांकपालवाली, नयंकर नेत्र अने मुखवाली, म्होटा ललाटवाली अने महा अट्टाट हास्यश्री अति नयंकर एवी कृत्या नामनी राक्षसी, त्रण लोकने दोन पमामती श्राकाश मार्गेयी त्यां प्रावी प. होची. पोतानुं कार्य करवा माटे के वांधीने तैयार थ रहेली अने मुखकमलमां चारे तरफ चंचल जीनने फेरवती ते कृत्या, पृथ्वी नपर वहु आलोटता एवा पांझवोने जोक्ने तेमनी चारे तरफ नमवा लागी: पठी तेने देखवा मात्रश्री वहु नयने लीधे आकुल व्याकुल श्रयेली शेपदीने तुरत पोतान' ... Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४४) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वार्ध. पासे राखी नीलस्त्रीये अकृत्य करवामां तैयार श्रयेली कृत्याने मधुर वचनथी आ प्रमाणे कडं. “हे देवी! तमारा आववाथी नत्पन्न श्रयेला नत्कट वायुवमे आकुल व्याकुल श्रयेला आ प्राणीयो, जयथी मूळ पाम्या . वली तेनए दवणां प्राणोने पण त्यजी दीधा . हे देवी! त्रण लोकने विषे देव, दैत्य के मनुष्योमां एवो को पुरुष नथी के, जे इंश्ना वज्रनी पेठेत्हारा महाकोपने सहन करी शके ? हे कृत्या देवी ! आ पोतानी मेलेज मृत्यु पामेलाने तुं फ. रीथी शा माटे मारे ले ? कारण एमां त्रय जगत्ने दोनकारी एवं त्दारूं प. राक्रम जरा पण गणाय नहि." आ प्रमाणे नीलस्त्रीये बहु नक्तियुक्त वच नश्री कृत्याने कर्वा एटले ते निष्फल प्रयासवाली कृत्या पोताने बहु कृतकृत्र मानती उती हसीने क्यांश चाली गइ. पी पदी, मृत्यु पामेलाना समान पोताना पतियोने जो मूळ पामी. योमा वखत पठी सावधान थइ एटले ते पोताना पतिना वियोगथी बहु दुःख पामती ती विलाप करवा लागी एटले नीलस्त्रीये तेनां आंसु लुही नाखीने हर्ष पामता बता कयुं के, “हे शुशीलवती बाला! महा अरण्यमा रहेली तुं वृया शा माटे रुवे ? हे सुंदरी! तुं मूळ पामेला तेन पासे न जा. प. रंतु आ मणिकालका नदीना पवित्र जलथी अमृतनी पेठे पोताना पतियोने सिंचिने तेनने कणमात्रमा जीवाम." नीलस्त्रीनां कहेवा नपरथी शैपदीये तेम करयु एटले जाणे सुतेला होयनी ? एम सर्वे पांडवो नव्या. पनी तेन पदीनां वचनथी पोतपोताना चित्तमा विचार करवा लाग्या के, “जे पोताना असंख्य सैन्यथी अहिं आव्यो हतो ते कोण राजा हतो? औपदीन कोणे हरण करयुं हतुं? विषमय जलनुं सरोवर क्यां? अने आपणने मूळ शा माटे थ? वली प्राणप्रिया जैपदीये पोते अहिं आवीने आन्नीलस्त्रीनां वचनथी मणिका लका नदीनां जलवमे सिंचन करीने आपणने जीवामया ए शं !!! शुं आते आपणां चित्तमा खरेखरो विन्रम थयो के, कोइ महा दैवतुं विचेष्टित ? जाणे सारा स्वप्नामां दी ठेला अर्थवालुं अनुत लक्ष्मीन कारणज होयनी? एवं श्राते शंहशे?" या प्रमाणे पांवो विचार करता हता एवामां पोताना तेजश्री दिशानने प्रकाश करतो कोई देवता तेमनी पासे आवीने स्पष्ट वा. नगीश्री या प्रमाणे कद्देवा लाग्यो, Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पांमव चरित्र. (४४५) ___ “हे धर्मपुत्र! तुं आ कार्यने विषे चित्तमां केम आश्चर्य पामेले? कारण के, कृत्याना असंख्य कार्यनो नाश करवामां प्रवीण एवी ए सर्व में माया करी हती. तमारा परमेष्टी मंत्रना ध्यानथी प्रसन्न थयेला में इंना से. नापतिये आ माया प्रगट करीने कृत्याने तरी जे." परी ते महा शध्विालो देवता “ तमे अवसरे म्हारुं स्मरण करजो." एम कहीने तथा बहु आनूषणो आपीने पांवोए रजा आपवाथी देवलोक प्रत्ये गयो, पी पूर्व पुएयना योगथी जेमना सर्व विघ्न नाश पाम्या ने एवा ते पांडवो निरंतर विशेषे श्रीजिनेश्वर प्रन्नुनुं ध्यान करवामां आसक्त चित्तवाला तथा उत्तम समाधिवंत थया, एकदा बपोरने वखते नोजन तैयार थयु एवामां निरंतर पुण्यथी पवित्र शरीरवाला महात्मा साधु तपने अंते त्यां पारणा माटे आव्या. जाणे प्रत्यक्ष धर्मज होयनी ? एवा दमारूप अमृतना स्थान एवा मुनिने जोश हपना नत्कृष्टया विशुः नाववाला पांमवोए तेमने प्रदक्षिणा पूर्वक नमस्कार करचो. पठी पुलकावलीये करीने देदीप्यमान शरीरवाला अने पापना समूहने नाश करवामां नद्यमवंत थयेला पांमवोए नक्ति पूर्वक आनंदे करीने ए महामुनिने शुइ अन्न वहोराव्यु. श्रा वखते आकाशमां वाजींत्रो वागवा लाग्यां तेमज सुवर्णनी अने वस्त्रोनी वृष्टी श्रवा लागी. वली देवतानए पापनो नाश करवामां खमुरूप जयजय वाणीनो अमोघ शब्द करयो. “हे वत्सो ! नत्तम दाननां महात्म्यना वशथी हुँ शासनदेवता तमने प्रसन्न थइ बु. तमारा पूर्वनवनां पुण्य योगथी वनवासना :सह बार वर्ष पुरा थइ रह्या , हवे पनी तमे ऊट मत्स्य देशमां जर त्यां पोतानां कल्याण माटे रूप फरवी नीचे ते. रमुं वर्ष पूर्ण करो.” शासनदेवी आ प्रमाणे कहीने अंतर्ध्यान थइ. पी पोतानी गाढ प्रतिझाने जाणता एवा पांझवो.नेगा था फरी विचार करवा लाग्या. तेमां युधिष्ठिरे पोताना न्हाना नाश्यो पागल कह्यु के, “ हुं कंक नामनो विप्र (गुरु) थश्ने वैराट राजाना घरने विषे रहीश." श्रा प्रमाणे तेमणे पोतानो निश्चय कस्यो. नीमे कह्यु. “हुं पण वल्लव नाम धारी राजानो रसोश्यो पश्ने रहीश." अर्जुने कडं. “ हुं ते राजाने घरे वृहन्नम नामे पावश्न श्रश्ने रहीश." नकुले कयुं. “ हुं पण ग्रंथिक नामनो अश्वाधिप प्रश्श." Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४६ ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वा ६. सहदेवे करूं, " हुँ तंत्रपाल नामे गोवाल थइश. " शैपदीये कयुं. " हुं ते राजानी स्त्रीयोनी दासी अश. " पछी ते सर्वे पांवोए विराट नगरीनी स मीपे स्मशानमां खीजमाना वृक्ष उपर एक म्होटा शवथी ढांकीने पोतानां / सर्व शस्त्रो मूक्यां. त्यार पछी बहु जाल एवा तेन पोत पोतना वेशने अने पकरणने धारण करी विराट राजानी सज्जामां श्राव्या. त्यां विराट राजाए तेनने अनुक्रमे सत्कार करीने सौ सौना काममां राख्या, तेथी गुप्तवेश धारण करनारा ते पांव त्यां सुख करीने रदेवा लाग्या. पांवो हमेशां सवारमा नीने को घरने विषे गुप्तरीते रहेला पोतानी माता कुंतीने प्रणाम करता अने तेमनी हीत शिक्षाने धारण करता. एक दिवस दुर्योधने त्यां मल्लोने मोकल्या हता. तेमने त्यां रहेला पाचकवृत्तिवाला जीमसेने मल्लयुद्धमां मारी नाख्या, तेथी जीमसेन वैराट राजा तरफथी बहु मान पाम्यो. हवे वैराटराजानी स्त्री सुदेष्नाने एकसो बनाइयो दता, तेमां महा भुजपराक्रमथी शोजतो कीचक सौथी मुख्य हतो. या सौ वैराटराजाने त्यांज रहेता हता. कोइ दिवस पोतानी व्हेनने घरे गयेला कीचके त्यां शैपदीने दीवी, तेी ते शैपदीनुं बहु लावण्य जोइ मोह पाम्यो पछी सर्व देहने विषे रोमांचना मीषश्री कामबाणने धारण करतो ते कीचक पोतानुं मस्तक धुणावतो बतो पोताना निवासघरप्रत्ये गयो, पढी कामदेवने उत्पन्न करवामां प्रवीण एवा वचनोव शैपदीने प्रार्थना करतो ते डुपदराजपुत्री श्री बहु धिकार पाम्यो. कर्तुं बे के कयो पुरुष अकार्य करवाथी लघुता नथी पामतो ? अर्थात् सर्वपामेवे, पक्षी कामदेवनी कला केलीरूप महा पिशाचना बलथी नाश पामी वे शरीर चेतना जेनी एवा कीचके पोतानां मननी वात सुदेष्ना ( पोतानी व्हेन ) ने कही. सुदेष्नाए पण कामज्वरथी पीमाता पोताना नाइने कह्युं के, “दे बंधो ! हुं कोइ मीपथी ते म्हारी दासीने व्हारा घरे मोकलीश. त्यां तुं त्हारुं इष्टकार्य करजे. " या प्रमाणे सुदेष्नाए आश्वासन करेलो ते कामज्वरपीति कीचक पोताने घरे गयो. पंठी नूपप्रिया सुदेष्नाए कोइ मीपश्री शैपदीने कीचकना घरे मोकली. पृथ्वी सामा नेत्र राखीने पोताना घरे श्रावती एवी पदीने जोड़ गांमा थयेलानी पेठे कीचके तुरंत नजा थइ लांबा हाथ करीने करूं के, “दारां शरीरनुं रक्षण करनारी हे लोलाकी ! हे दिव्यरूपा ! • Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 1 पांव चरित्र. ( ४४७ ) ऊट अहिं श्राव अहिं श्राव अने कामदेवना तापथी तप्त थयेला मने वेगथी थालिंगन दइने प्रसन्न कर." तेनां आवां कानने दुःख नपजावनाएं वचन सांजलीने शैपदीये करूं. “हे मूढ ! तुं यावुं कुष्ट पुरुषनी पेठे नीच कुलने योग्य मने न क. कारण म्हारा गुप्त पतियो उन्मार्गे जनारा अने नीतिमार्ग त्यजी देनारा तने निश्वे यमलोक प्रत्ये पहोचामशे, माटे तुं मनने विषे तत्त्वने धारण कर. " ८८ प्रमाणे कहती एवी डुपदराजपुत्रीने केशे पकमी कुष्ट कीचके पाटुवमे प्रहार कस्यो, क्षैपदी पण शीलना अतिशयपणाथी बुटीने तुरत राजा पासे आवी. त्यां ते राजसनामां युधिष्ठिरने जोता बतां वीखराइ गयेला केशवाली शैपदी या प्रमाणे पोताना पतिना गुप्त नामनो उच्चार करवा पूर्वक गाढ स्वरथी रोवा लागी. "जेन रणसंग्राममां (युधि) स्थिर रहेनारा बे, (युधिष्ठिर) जेन जयंकर बे, (नीम ) जेन निश्वे विजयना चिन्हवाला बे, (विजय- अर्जुन) ने जेन बलवंत वे दाने धारण करनारा बे. ( नकुल सहदेव) आवा भूपतियो म्हारा प्रिय प्राणनाथो बतां मने कीचके पीमा पमामी. " आ प्रमाणे कूट रोषाक्षरथी रुदन करवा पूर्वक विलाप करती ौपदीने कँक ( युधिष्ठिर) गुरुए कह्युं. " हे चंचल नेत्रवाली ! जो कोइ स्थानके त्हारा महाबलवाला गुप्त पतियो होय, वली तेमां जो व्हारुं नियमयी रक्षण करनारो कोइ जयंकर (जीम) पति होय तो, हे कमलमुखी ! अहिं तने तेनाथी जय नाश पामो. ( अर्थात् भीमसेन पासे तुं एष्ट कीचकने मरावी नाख. ) अने तुं पोताने स्थानके जा. " कंकगुरुनां श्रावां वचन सांगली शैपदीये रात्रीने वखते नीम पासे जश्ने पोतानी सर्व बात कही. जीमसेने पण मोहमां बुमि जश्ने तेने मधुर वचनथी कह्युं के, “ में धर्मपुत्रनी सत्य प्रतिज्ञा पालवा माटे दुर्योधननो अपराध सदन कस्यो बे; परंतु दवसां आ कीचकना आवा अपराधने सदन नहि करूं. हे प्रिया ! आज रात्रीने विषे तुं कपटसंगनां वचनथी तेने यहिं लाव्य के, जेथी करीने व्हारा ए शत्रुने हुं अहिं या रंगमंरुपमांज तुरत मारी नाखुं." जीमे आ प्रमाणे आश्वासन करेली शैपदीये पोताने आश्रमे जता रस्तामां मलेला कीचकने कपटमोद वचनथी रात्रीए रंगमंरुपमां श्राववानुं कहाँ, पी शैपदीनां वचनथी हर्ष पामेलो ते शठ कीचक रात्रीना पहेला पदोरने विषे " हे वा! तुंक्यां वे ? क्यां वे ?” एम उच्चार करतो ऊट रंगमं Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. पमां आव्यो. आ वखते झेपदीनो वेश धारीने त्यां संताइ रहेला नीमे तेने गाढ आलिंगनवमे मारी नाख्यो. पठी ते नत आत्मावालो नीम, तुरत गुप्त रीते पोताना रसोमामां जतो रह्यो. चरपुरुषोथी मृत्यु पामेला कीचकने जाणी बहु शोकमां मग्न अयेला तेना नाश्यो झट तेने पालखीमां बेसारी श्मसान तरफ चाल्या. आ वखते रस्तामां तेनए झैपदीने दीठी; तेथी “श्रा स्त्रीना निमित्ते आपणा बंधुनो घात श्रयो ." एम कहेता एवा तेनए बहु कोपथी ते पदीने चितामिमां फेंकी देवा माटे केश पकमीने नत्साहथी साथे लीधी. जाणे साक्षात् पोतानी लक्ष्मीज होयनी ? एम पोताना पतिने सं. जारती तथा रुदन करती एवी पदीने तेनए तुरत चितानी पासे प्राणी. आ वखते एक महावृक्ने मूलमांथी नपामी त्यां नचिंता वी पहोचेला बलवंत नीमसेने ते सर्वे पुरुषोने (कीचकना नाश्नने) अग्निमां फेंकी दीधा. नीमे अग्निमां कीचकना नाश्योनी पूर्ण आहुति आपीने नाश कस्यो ने वि. ननो समूह जेनो एवी झेपदीने लक्ष्मीनी पेठे शांति पमामी. पठी नीमसेनथी पोताना सर्व बंधुननो नाश सांजली शोकथी आकुल व्याकुल श्रयेली सु. देष्नाने बहु स्नेहवशथी उल्लास पमामतो वैराटराजा कहेवा लाग्यो, “हे सुंदर मुखवाली प्रिये! तुं मने बीजो का दंम आप; परंतु म्हारी प्रतिझानो नंग न कर. वली कोप त्यजी द पोताना मंदीरमां सौरंध्रीने बोलाव्य. “अवसरे पोतानां स्वरूपने अंगीकार करनारा सौरंध्रीना पतियो, पोतानी मेले एने लइ जशे." पठी स्वस्थ श्रयेली सुदेष्ना राणीये तेने पोताना घरमा राखी. हवे ऽर्योधननी आज्ञाश्री बहु देशोने जोतां उतां पण पांमवोने नहि देखवाथी पाग आवेला बहु अनुचरो र्योधनने विनंती पूर्वक कहेवा लाग्या के, "हे महाराजा! तमारा नयरूप समुश्मा काचबानी पेठे ते सर्वे पांडवो वूमी गया . जो के तेन विद्यमान ने उता जाणे न होयनी ? एम पृथ्वी नपर अमोए वहु शोध कस्या उतां पण तेनने दीग नहि " अनुचरोनां आवा वचन सांजली अर्योधने नीष्म तथा विरनां मुख सामुं जोयु. पगी तेनों नाव जाणीने ते वन्ने जणाए कह्यु. “हे पुत्र ! श्री जिनेश्वरना विहारनी पेठे जे देशमां नत्पात, जय, रोग, अने इष्टनाव नथी, ते देशमां पांमवो संजवे के." पठी दूतोए कां. हे पृथ्वीनाथ ! सर्व देशोमां एक मत्स्य देशज Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र.' (४४ ) धन, धान्य, लक्ष्मी अने सुखे करीने तेमज सर्व व्याधि (रोगो) ना रहित पणाए करीने स्वर्गनी पेठे शोने ." र्योधने कह्यु. “मने महाशयनी पेठे मनमां बहु पीमा करनारा अने बाह्य नय रहित ते गुप्त पांवोने शी रीते जाणवा ? " आ वखते सुशर्मा नूपति प्रणाम करीने अर्योधनने कहेवा लाग्यो. "हे नृपति ! खरेखर पांमुराजाना पुत्रो अति समृध्विंत एवा मत्स्य देशने विषे विचरे , माटे आपणे मत्स्य देशना नूपतिना विराटपुरनी गायोगें हरण करीए, जेथी ते पांमवो अकाले पोतानी मेले प्रकट थशे. आपणे एक तरफथी वैरी एवो ते मत्स्यदेशनो राजा निगृह करवा योग्य ने अने बीजी तरफथी गायोना हरणवमे करीने पांमुपुत्राने प्रगट करवानुं कार्य .” सुशानां आवां युक्तिवालां वचन जाणीने र्योधने तेने आज्ञा आपी एटले सुशर्माए बहु सैन्य सहित त्यां जश्ने विराट नगरनी गायो, हरण करयु. आ अवसरे नयनीत आत्मावाला गोवाले तुरत सत्तामां आवीने विराट नूपतिने नमस्कार करता उतां कडं के, “ हे महाराजा ! जेने युःक्ष्मां कीचके जीत्यो हतो ते सुशर्माए हवणां गायो, हरण करयुं ." पनी धनुष्यना टंकारथी त्रलोकने बेरुं करी देता ते विराट नूपतिये कोपथी सैन्य सहित तेनी पाब्ल जश्ने तुरत ते शत्रुना सैन्यने घेरी लीधुं. परस्पर क्रोधवाला अने रणसंग्रामरूप महा समुश्ने मंथन करता एवा ते राजानना शत्रुने नाश करवामां कुशल एवा बाण समुहोए करीने सर्व आकाश ढंका गयु. जेम कणमात्रमा सूर्य अंधकारनो नाश करे तेम विराट राजाए पण लाखो शत्रुनने मारी नाख्या. आ वखते परनां बुख जो पुःखी श्रयेलो सूर्य अस्त पाम्यो. पठी सवारे पोताना तेवा असंख्य सुन्नटोना नाशधी क्रोध पामेलो सुशर्मा नूपति ऊट पोतार्नु धनुष्य चमावी विराट राजा तरफ दोड्यो. सुशर्माए फेंकेला अनेक बाणोथी संग्रामरूप समुश्मां व्याकुल श्रयेलो विराटराजा मत्स्यनी पेठे देखावा लाग्यो. कणमात्रमा शस्त्र रहित अने रथविनाना अयेला मत्स्य देशाधिपने बांधी अने रथमां नाखी सुशर्मा पोताना सैन्य सहित उर्योधन पासे चाल्यो. आ वातनी नगरमां जाण अइ एटले क्रोध पामेला युधिष्ठिर तथा नीमसेनादि अनेक शस्त्रधारी सुन्नटोए तुरत त्यां जश्ने सुशनिी सेनाने घेरी लीधी, परी कणमात्रमा विराट रूपतिने गमावता एवा Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५०) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वार्ध. नीमसेने " हुं त्हारो दास अने म्हारी सर्व संपत्ति तने आपीश.” एम् नचार करता एवा सुशर्माने बलात्कारे बांध्यो. पली बहु हर्ष पामेला विराटराजाए युधिष्ठिरनी साथे पांमवोनी कथा करता उता सैन्य सहित महोत्सवपूर्वक ते रात्री त्यांज निर्गमन करी. हवे अहिं बीजे दिवस सवारे गोवालो सर्व गायोने नत्तर दिशामां च. रावा माटे ल गया. त्यां पण विराटनगरनी नजीकमां पमाव करीने रहेला, विचार विनाना जुर्योधने ते गायो, हरण करयु. गोवाले तुरत अंतःपुरमांत्रावीने नत्तराकुमारने गायोना हरणनी वात कही. पी कुमार पोतानी माता अने स्त्रीनी आगल कहेवा लाग्यो के, " हे मात ! हवणां हुं शीरीते युः६ करवा जावं ? कारण मारे तेवो को सारथी नथी के, जेथी हुँ एकलो पण सिंहनी पेठे ते कौरवोना सैन्यने मारी ना.” उत्तराकुमारनां आवां बलातिशयनां वचन सानली तुरत पदीये इर्ष्या सहित कयु के, “ हे कुमार! हारी व्हेनने कलाननो अन्न्यास करावनारो जे वृहन्नट नामे पावश्न ले ते त्हारो सारथी श्रवाने योग्य ." पनी कुमारे पोतानी व्हेनने मोकली वृहनटने तेमाव्यो अने तेनी पासे बहु प्रयासथी पोता, सारथीपणुं कबुल कराव्यु. जो के पोते बहु जाग बतां प्रथम अवलु कवच धारण करी स्त्रीयोना स: मूहने हसावतो तेअर्जुन पाठलथी तुरत सवली रीते पहेरी कुमार सहित रथमार बेगे. अर्जुन पूर्वे अन्न्यास करेली कलानवमे पोताना रथने कौरवोनां सैन्य पाले लइ गयो. त्यां नयंकर सैन्यने जोश उत्तराकुमार बहु जय पाम्यो सेथी ते पोताना सारथी वृहन्नटने कहेवा लाग्यो के, “हे महानुन्नाव ! तुं म्हारा रथने ऊट पाठो वाल! पागे वाल!! कारण के, हं आ महा समुन्ना सरखा नचलता नयंकर सैन्यने जोवा समर्थ नथी." अर्जुने हसीने कपु. " अरे कुमारवीर ! तुं म्होटा राजवंशमां नत्पन्न भयो बं. वली पोतानी माता अने स्त्रीनी पासे एवा शूरवीरपणानां वचन कहेतो हतो अने हवणां आबुं दी. नवचन केम वोले ठे ? साम्राज्यपदना लानने अर्थे महा घोर युः करनारा सुचटोनुं जीवित आलाकमां यशने अर्थे अने मृत्यु परलोकमां देवांगनाना सत्कारने अर्थे श्राय ." पठी “ वीरपुरुषोने मृत्युन फल कीर्ति ने, बीजाने नहि.” एम कहीने नासी जवानी श्चावालो नत्तराकुमार रथ नुपर Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४१) थी नीचे पमतुं मूकी नासवा लाग्यो. पाग्ल अर्जुन पण तुरत रथथी नीचे नतरी कहेवा लाग्यो. " हे उत्तराकुमार ! तुं धीरज राखी म्हारो सारथी था, के, जेथी करी हुं आ सर्व शत्रुनने जीती त्हारी विस्तारवाली कीर्तिनुं स्थापन करूं. हे राजपुत्र ! तुं नय त्यजी दा श्मसानमां खीजमाना वृक्ष नपर शबथी ढंकायेला अमारां शस्त्रोमांथी म्हारां धनुष्य बागने लावी आप के, हुं जेणे करीने आ त्हारा सर्व शत्रुनने मारी नाखु." पठी नत्तराकुमारे धनुष्यबाण लावी आपे ते अर्जुने पोतानुं अने पोताना नाश्योनुं खलं स्वरूप कही दीधुं. त्यार पठी ते, धनुष्यबाण हाथमां लश् रथनपर बेसी शत्रुनना सन्मुख चाल्यो. हवे अहिं कौरवनी सेनामां रहेला नीष्मे, दिव्य शंखना नयंकर शब्दश्री अर्जुनने जो तुरत र्योधनने कडं के, " निश्चे आ स्त्री वेशधारी अर्जुन देखाय जे. हे धृतराष्टपुत्र ! आ पांमवो अवसरे आवी पहोच्या , माटे तेन, हवणां तने बंधु सहित मारी नाखशे, माटे तुं आ अर्जुननी साथे झट संधी कर. नहिंतो आ म्होटा सैन्यना चोथा नागथी रक्षण करायेलो तुं गायोना धएने साथे लइ नासी जा अने अमे आ सैन्यना मध्य नागने विषे रहीशं. कथु बे के-सर्व प्रकारथी राजानुं रक्षण करवू जोशए.” पितामह (दादा)नां आवां वचन सांजली बीकण र्योधन, गायोना धणने साथे लश् पोतानां सैन्यना चोथा नाग सहित चाली निकटयो. र्योधनने नासी जतो जोइ अर्जुने नत्तराकुमारने कडं. अरे कुमारराज ! आ जुर्योधन म्हास बहु नयथी नाशी जाय , माटे तुं आ तरफ अश्वोने झट वाल” अर्जुननां आवां वचनथी कुमारे सूर्यना रथनी पेठे शीघ्र चलावेलो रथ तुरत शत्रुनां सैन्य पासे आवी पहोच्यो. त्यां अर्जुनना रश्रने देखवा मात्रश्री शत्रुनुं सैन्य बहु दीन बनी गयु. अर्जुने पोतानो शंख वगाड्यो, तेना शब्दथी मोह पामेली सर्व गायो उँचा पूंबमा करीने तुरत पोतानां नगर प्रत्ये नासी गइ. परी अर्जुने र्योधनने कडं. “अरे मूर्ख ! तें प्रथम कुलने कलंक दीधुं ठे अने हवणां पए गायोनुं हरण करी जयथी नासी जवा मांमयु. शत्रु मख्या उतां तुं क्या नासो ब्वानो ने ? हवे तो धनुष्य धारण करीने तैयार था." एम कहीने य. जुने पोतानुं धनुष्य हाथमां लीधुं. इंपुत्र (अर्जुन)नां नचलतां वाणोना समू__ हरूप मेघथी आकाश चारे तरफ ढंका गयु अने सूर्य परा पोतानो परान्नव - Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वार्ध. थवाना नयथी अस्त थ गयो, आ वखते चारे तरफ अंधकार फेलाइ गयु. वट दयाथी निंजा गयेला चित्तवाला अर्जुने, कोटि वीरपुरुषोनो नाश जो सर्व मनुष्योने निज्ञ आपनासं संमोहन नामे अस्त्र फेंक्युं. फक्त नीष्म अने शेण गुरु विना बीजा सर्वे गाढ निज्ञ पामे उते अर्जुने नत्तराकुमारने कयं. “हे राजपुत्र ! अर्योधन राजाना लीलां, कर्णना पीलां अने बीजानां वि. चित्र वस्त्रो लश तुं फट अहिं आव." नत्तराकुमार, ते प्रमाणे सर्वेनां वस्त्र ल आव्यो एटले अर्जुन, ते सर्व वस्त्रोने लइ तथा पितामह (नीष्म)ने प्रणाम पूर्वक शत्रुनना दलने मथन करी पागे नगर प्रत्ये आव्यो. हवे अहिं अर्जुनना पहेलो विजयवंत विराटराजा पोताना नगर प्रत्ये आव्यो हतो! तेथी ते पोताना माणसो पातेथी पोताना पुत्रनुं शत्रुननी पाउल जq सांजली कांक मनमां खेद पामवा लाग्यो. पी जेटलामां ते नूपति पोतानां सैन्य सहित पुत्रनी पाउल जवानी तैयारी करे , तेटलामा कुमारना अनुचरोए तुरत आवीने हर्षथी राजाने कुमारना विजयनी वात निवेदन करी. आवी वधामणीथी बहु संतोष पामेला राजाए कंकगुरु सहित हर्षथी नगरमां नत्सव कराव्यो अने पोते पण सन्नामां कंकगुरु साथे पासावमे क्रीमा करवा लायो. पनी पुत्रना विजयनो प्रशंसा का रता एवा विराट नूपतिने कंकगुरुए (युधिष्ठिरे) कडं के, “हे नरें ! जेना' सारथी वृहन्नट (अर्जुन) थयो तेने शुं विजय सुलन्न नथी ? अर्थात् तेवा पुरुषने विजय मेलववो बहु सुखकारक ." विराटराजा अने कंकगुरु आ प्र: माणे वातो करता हता एवामां पोताना रथथी नीचे नतरी अर्जुन पोताना स्थाने गये उते नत्तराकुमारे सन्नामां वेठेला पोताना पिताने नमस्कार कस्यो. परी तेणे पिताने कडं के, “ में जेनाथी युःक्ष्मां विजय मेलव्यो ने ते महा पराक्रमवंत पुरुष, पोताना बंधुन सहित पोतानी मेले आजथी बीजे दिवस प्रगट थशे.” __ पठी त्रीजे दिवस अनुत वेशधारी धर्मपुत्रे पोताना कल्याण माटे स्नान करी, पूजन करी अने तुरत अनुइ एवा देवतानने बलिदान प्राप्यु, त्यारपना ते जेटलामा पोतानां आसन नपर वेग तेटलामां नीमसेनादि सर्व नाश्याए पोतपोतानुं खरु स्वरूप प्रगट करी तेमने नक्तिश्री प्रणाम कस्या. विराटरा: Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र.. ( ४५३ ) जाए पण नमस्कार करवापूर्वक कह्युं के, " हे महाराज ! श्रा म्हारुं राज्य, विजव ने बीजुं जे कां वे ते सर्व आपनुंज वे." यावी रीते विराटराजाए ' विनंती करेला युधिष्ठिर जोके त्यांथी जवा माटे तैयार यया हता तो पण विराट राजाना प्राग्रही त्यांज रह्या. विराट राजाए हाथ जोकीने अर्जुनना पुत्र श्रभिमन्युने पोताना पुत्री परणाववा माटे हर्षथी युधिष्ठिरनी विनंती करी. श्रावातनी युधिष्ठिरे कृष्णने खबर प्रापी, तेश्री श्री कृष्ण अभिमन्युसहित पोतानी व्हेन सुजाने साधे लइ बहु सेनाथ परवस्था बता विराटपुरे श्राव्या. त्यां तेमले प्रीतिथी उत्तम लग्नवाला शुभ दिवसने विषे विराटराजाने अने पवने हर्षकारी एव अभिमन्युनो अने उत्तरानो लग्नमहोत्सव कस्यो पनी प्रसन्न मनवाला श्री कृष्ण विराटराजानी रजा लइ कुंतीसहित पांगवाने बहु ही नत्सवपूर्वक पोतानी नगरी (द्वारका) प्रत्ये तेमी गया. त्यां यादवोमां श्रेष्ट एवा श्री कृष्ण ने बलजना महा आग्रहथी चार जाइयो चार कन्याने परण्या अने सुखेथी रहेवा लाग्या. हे नव्यजनो ! श्राप्रमाणे पगले पगले लोको उपर बहु उपकार करवाश्री महा यशवाला, महा राक्षसोना जयने दूर करवाथी जीम ने अर्जुनवमे नृत्सलता पराक्रमवाला, द्यूतने लीधे सर्व राज्यनां विजवश्री नृष्ट थयेला, कृत्यादि राहणीयोना विघ्नरहित एवा सर्वे पांवो पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करी मत्स्य देशना अधिपति विराटराजानी नगरीकी द्वारकाप्रत्ये गया. इति पांवचरित्रे जीमबक हिबा दिजय हिम्बापाणिग्रहणार्जुनविद्यासाधन खेचरेंादिजय कृत्यादिविघ्ननिवर्त्तन गोवालनादिवर्णननाम पंचमोऽधिकारः ॥ . गर्भमा रहेला जे प्रजुंना अतिशये करीने जितशत्रुराजा पण विजयाराणीनो पराजव करवा समर्थ थया नहि एवा ते श्री अजितनाथ जिनेश्वर निरंतर नक्तिवंत पुरुषोना अकल्याणोने दूर करो. पी दश दाशार्हो, बीजा राजानु प्रने वलन कृष्णादि म्होटा यादवो नेगामली पांवोनी साथे विचार करता तेनुने या प्रमाणे कड़ेवा लाग्या के, “ श्रहो ! सत्य प्रतिज्ञावाला अने सुकुलमां नृत्पन्न श्रयेला तमोए वह दुःख Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aanand (४५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. थवाना नयथी अस्त थइ गयो, आ वखते चारे तरफ अंधकार फेलाइ ग.. वट दयाथी निंजा गयेला चित्तवाला अर्जुने, कोटि वीरपुरुषोनो नाश जो सर्व मनुष्योने निज्ञ आपनाकं संमोहन नामे अस्त्र फेंक्युं. फक्त नीष्म अने शेण गुरु विना बीजा सर्वे गाढ निज्ञ पामे ते अर्जुने नत्तराकुमारने कह्य. “हे राजपुत्र ! ऽर्योधन राजाना लीलां, कर्णना पीलां अने बीजानां विचित्र वस्त्रो लश् तुं फट अहिं आव." उत्तराकुमार, ते प्रमाणे सर्वेनां वस्त्र ल आव्यो एटले अर्जुन, ते सर्व वस्त्रोने लइ तथा पितामह (नीष्म)ने प्रणाम पूर्वक शत्रुनना दलने मथन करी पागे नगर प्रत्ये आव्यो. - हवे अहिं अर्जुनना पहेलो विजयवंत विराटराजा पोताना नगर प्रत्ये आव्यो हतो! तेथी ते पोताना माणसो पासेथी पोताना पुत्रनुं शत्रुननी पाउल जवं सांजली कांश्क मनमां खेद पामवा लाग्यो. पी जेटलामां ते नूपति पोतानां सैन्य सहित पुत्रनी पाउल जवानी तैयारी करे ने, तेटलामा कुमारना अनुचरोए तुरत आवीने हर्षथी राजाने कुमारना विजयनी वात निवेदन करी. आवी वधामणीथी बहु संतोष पामेला राजाए कंकगुर सहित हर्षथी नगरमां नत्सव कराव्यो अने पोते पण सन्नामां कंकगुरु साथे पासावके क्रीमा करवा लायो. परी पुत्रना विजयनो प्रशंसा कर रता एवा विराट नूपतिने कंकगुरुए (युधिष्ठिरे) कह्यु के, “हे नरें ! जेना" सारथी वृहन्नट (अर्जुन) थयो तेने शुं विजय सुलन्न नथी ? अर्थात् तेवा पुरुषने विजय मेलववो बहु सुखकारक .” विराटराजा अने कंकगुरु श्रा प्र. माणे वातो करता हता एवामां पोताना रथथी नीचे नतरी अर्जुन पोताना स्थाने गये ते नत्तराकुमारे सन्नामां वेठेला पोताना पिताने नमस्कार कस्या. पठी तेणे पिताने कडं के, “में जेनाथी युमा विजय मेलव्यो डे ते महा पराक्रमवंत पुरुष, पोताना बंधुन सहित पोतानी मेले आजथी बीजे दिवस प्रगट थशे.” पठी त्रीजे दिवस अद्भुत वेशधारी धर्मपुत्रे पोताना कल्याण माटे स्नान करी, पूजन करी अने तुरत अनुप एवा देवतानने बलिदान आप्यु. त्यारपत्र। ते जेटलामां पोतानां आसन नपर वेग तेटलामांनीमसेनादि सर्व नाश्याए पोतपोतानुं खरु स्वरूप प्रगट करी तेमने नक्तिश्री प्रणाम कस्या, विराटराः Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र. ( ४५३ ) जाए पण नमस्कार करवापूर्वक कछु के, " हे महाराज ! श्रा म्हारुं राज्य, विजव ने बीजुं जे कां वे ते सर्व आपनुंज बे. " श्रावी रीते विराटराजाए विनंती करेला युधिष्ठिर जोके त्यांथी जवा माटे तैयार थया हता तो पण विराट राजाना आग्रहथी त्यांज रह्या. विराट राजाए हाथ जोगीने अर्जुनना पुत्र अभिमन्युने पोताना पुत्री परणाववा माटे हर्षथी युधिष्ठिरनी विनंती करी. या वातनी युधिष्ठिरे कृष्णने खबर प्रापी, तेथी श्री कृष्ण अभिमन्युसहित पोतानी - व्हेन सुनाने साथे लइ बहु सेनाश्री परवस्था उता विराटपुरे श्राव्या. त्यां तेमणे प्रीतिथी उत्तम लग्नवाला शुभ दिवसने विषे विराटराजाने अने india हर्षकारी एव अभिमन्युनो अने उत्तरानो लयमहोत्सव को पी प्रसन्न मनवाला श्री कृष्ण विराटराजानी रजा लइ कुंतीसहित पांवाने बहु आग्रही नत्सव पूर्वक पोतानी नगरी (द्वारका) प्रत्ये तेमी गया. त्यां यादवोमां श्रेष्ट एवा श्री कृष्ण ने बलजना महा आग्रहश्री चार भाइयो चार कन्याने परण्या अने सुखेथी रहेवा लाग्या. व्यजनो ! श्राप्रमाणे पगले पगले लोको उपर बहु नपकार करवाश्री महा यशवाला, महा राक्षसोना जयने दूर करवाथी नीम अने अर्जुनवमे नृत्सलता पराक्रमवाला, द्यूतने लीघे सर्व राज्यनां विजवथी नृष्ट थयेला, कृत्यादि राहलीयोना विघ्नरहित एवा सर्वे पांवो पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण कर मत्स्य देशना अधिपति विराटराजानी नगरीयकी द्वारकाप्रत्ये गया. इति पांवचरित्रे जीमबक हिम्बा दिजय हिम्बापाणिग्रहणा-र्जुनविद्यासाधन खेचरेंदादिजय कृत्यादिविघ्ननिवर्त्तन गोवालनादिवर्णननाम पंचमोऽधिकारः ॥ 7 गर्भमा रहेला जे प्रजुना अतिशये करीने जितशत्रुराजा पण विजयाराणीनो पराजव करवा समर्थ थया नहि एवा ते श्री अजितनाथ जिनेश्वर निरंतर नक्तिवंत पुरुषोना अकल्याने दूर करो . -पी दश दाशार्हो, बीजा राजान घने वलन कृष्णादि म्होटा यादवो नेगामली पांगवोनी साथे विचार करता तेनने या प्रमाणे कदेवा लाग्या के, “ अहो ! सत्य प्रतिज्ञावाला अने सुकुलमां उत्पन्न श्रयेला तमोए वहु दुःख Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५४) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई वेव्यु बे; परंतु हवणां अवसर भलेलो होवाथी तमारे कट शत्रुरूप वृक्षोनो नाश करवो.” तेननां आवां वचन सांजली धर्मपुत्र युधिष्ठिरे कडं. “निश्चे हुँ राज्य माटे पोताना बंधुननो घात करीश नहि.” युधिष्ठिरनां आवां वचन सांगली नीमसेने कडं. “अरे ! तमे शत्रुन्नी नन्नतिने सहन करशो; परंतु हुं तेमनाथी थता परान्नवने सहन करनारो नथी." युधिष्ठिरे कडं. “ जो के आनीमसेनादि सर्वे युः करवा नत्साहवंत , तेम ए शत्रुन पण वध करवा योग्य ; तो पण प्रथम यशने माटे आपणे तेने सामादि नीतिनां वचनथी समजाववा जोशए. पनी दशाई, बलन्नइ, कृष्ण अने बीजा यादवपतियोनी आझाथी जय नामनो एक वाचाल दूत तुरत रथमां बेसी हस्तिनापुर प्रत्ये गयो. त्यां ते पोताना स्वामीना बलथी निर्नय तोनीष्म अने धृतराष्ठादि अनेक पुरुषोत्री नरपुर एवी सन्नामां आवी र्योधनने आ प्रमाणे कदेवा लाग्यो. “ हुँ धारका नगरीना महाराजा श्री कृष्णनो राजमान्य जय नामनो दूत बु. हे नूमिपति ! कर्ण सहित तुं एमनो संदेशो म्हारां मुखथी सांनल. हे नरें ! सत्य प्रतिज्ञावाला अने न्यायवंत पांमुपुत्रो के, जे त्दारा बंधुन पाय , तेन हवणां पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करीने प्रगट थया जे. जेवी रीते तेन पोताना कालने निर्गमन करता उता निश्चे सत्यन्नावने पाम्या , ते. वी रीते तुं पांमवोने पोतानां राज्यनो नाग आपतो तो वेगथी तेमनो आश्रय कर, वली हे राजन् ! पूर्वना राजाननी पेठे हवणां अहिं तमारो पण परस्पर एक बीजाना पदना घातना कारणरूप महा युझ्नो आरंन न थान. हे जनाधिप ! फक्त वारुणावर्तपुर, तिलपुर, इंशस्थ, कासीपुर अने हस्तिनापुर आ पांच गामो पांडवोने आपीने बाकीनु सघलुं राज्य तुंनोगव.” दूतना श्रावां वचन सांजली क्रोधथी पोताना होग्ने मसता तथा हाथवमे नेत्रनोस्पर्श करता एवा र्योधने गर्वथी कर्वा के, “हे दूत ! महाद्यूतना पणथी हारी गयेला पोतानां राज्यने ए पांडवो शी रीते मेलवी सके ? ए म्हारा बांधवो न. श्री; परंतु प्रथमयीज महा अपराधने लीधे नीमसेनादि सर्वे म्हारा खरेखरा शत्रुन . ए पांमवो म्हारी रक्षण करेली जेटली पृथ्वीमा बलात्कारे प्रवेश करे तेटलो तेमनो पृथ्वीनो नाग ठे. वाकी हु म्हारा हायश्री तेमने जरापण . ... पापीश तो नदिज. हे जय ! गमे तो पांमुपुत्रो म्हारे विषे षन्नाव धरता Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' पांव चरित्र. - ( व्यय ) होय अथवा मीत्र जाव राखतो होय; परंतु द्यूतना पणश्री प्राप्त थयेली पृथ्वीमांथी हुं तेमने जरा पण देवानो नथी. " जयदूते कह्युं. "दे नृप ! जो के तें न्यायमार्गवालुं युक्ति वचन कह्युं बे; परंतु तुं म्हारुं वचन मानीने पोताना - तम गोत्रने पीमा न नपजाव. हे दुर्योधन नरेश्वर ! जे पवनपुत्र भीमसेने फक्त परोपकारने माटेज सर्वलोकने दुःखकारी एवा हिमंब, बक अने कीचकने तत्काल मारी नाख्या ते जीमसेनथी जेम गाढ वनमां रहेला सिंहथी हाथी पोतानुं रक्षण न करी शके तेम तुं पोतानुं रक्षण शीरीते करी शकीस. दे राजन् ! पूर्वे अनेक विद्याधरोने जी तिने अर्जुने निरंतर अपकारी एवा तने रक्षण करेलो बे. तो ते अर्जुन त्हारे शुं पूजवा योग्य नथी ? वली धर्मने विषे एक सारवाला युधिष्ठिर पण निश्वे अपकारी एवा व्हारा उपर प्रेमनावजराखे बे, एटलुंज नदि; परंतु हमेशां त्हारुं हित इबे बे. ठीकज वे उत्तमचंदन वृक्ष पोतानो बेद करनारा कुवामाने पण सुगंधीमान करे बे. जेम अनि वायुवमे करीने काष्टना समूहने नस्मरूप करे बे तेम ते सिंहरूप बलवंत पांचे पांवो, श्री कृष्णनी सहाय्यथी हस्तिरूप तमने नाश करशे. " " श्रवखते शेण भीष्म ने विडुरादि अनेक भूपतियोए पल जयनी पेठे दुर्योधनने बहु सारां वचन कह्यां; परंतु तेथी तो तेना मनमां बहु कोपरूप अनि प्रगट यो पढी दुर्योधने बहु तिरस्कार करेलो होवाथी क्रोधातुर मनवालो श्री कृष्णदूत जय " निचे आजे धृतराष्ट्रना पुत्रो दलाया ! हलाया !!” एम उचार करतो त्यांथी ऊट चाली निकली द्वारकामां श्राव्यो. त्यां तेणे सर्व वात श्री कृष्ण बलनादिकने कही. या वात पोतानी मनगमती थयेली जाणी भीमसेनादि सुनटो बहु दर्ष पामता बता नृत्य करवा लाग्या. पी महा संग्रामने विषे प्रसरता गाढ हर्षवाला पांगवाए श्री कृष्णादि 'यादवेंनी साधे विचार करीने समु विजयराजानी आज्ञाथी शीघ्र महा रसंग्रामनी म्होटी तैयारी करीने पोतानी सेना सऊ करी. तेमां पांगवनी सेनामध्ये यादवो, सत्यकी, विराटराजा, हुपद भूपति, धृष्टद्युम्न श्रने सुनझना पांच पुत्रो विगेरे हता. तेमज अर्जुननो पुत्र अभिमन्यु, श्रीमनो पुत्र घटोत्कच ने बीजा शुद्ध वंशमां नृत्पन्न थयेला बहु राजपुत्रो श्राव्या हता. वली अर्जुनना स्नेही चंड, इंड, मणिचूक, चंडपी ने चित्रांगद विगेरे बहु विद्याधरो पोतपोतानी सेनासहित त्यां प्राव्या. Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कनि, कृपा सौबल, पोताना चारित्रन (४५६) ऋषिममलरत्ति-पूर्वाई. हवे अहिं हस्तिनापुरमा कर्णादि नरेशेए प्रेरेला जुर्योधन राजाए रणसं. ग्रामनी बाथी क्षणमात्रमा दूत मोकलीने पोतानी पढ़ना बहु राजानने बोलाव्या. अर्योधनना सैन्यने विषे पण नूरिश्रवा, नगदत्त, शल्य, अंगदेशनो राजा शकुनि, कृपाचार्य, नीष्मगुरु, तटिनानो पुत्र बाल्हीक, सोमदत्त, वृ.! षासन, कृतवर्मा, धर्म, सौबल, हलपाणी अने नलूकादि अनेक राजान आवी मल्या. महात्मा अने ज्ञानी एवा विधुर पोताना गोत्रनुं कदर्थन जाणीने वैराग्यना रंगश्री श्री जिनेश्वर प्रन्नुए निरुपण करेला चारित्रने अंगीकार करी तुरत वनमां चाटया गया. कुंतीये कर्णने पोताना पुत्रपणानी खबर आपीने पांमवो तरफ आववानुं कर्वा एटले तेणे एम कडं के, “हे मात! में आम्हारा प्राणो प्रश्रमश्रीज र्योधनने आपेला, तो हवे हुँ तेने त्यजी द बीजा राजानो आश्रय करूं तो तेथी आजे आपने लड़ा पामवा जेवू थाय अने लोकमां म्हारो अपवाद थाय." कर्णनां आवां वचन सांजली बहु पीमा पामेली कुंती, कर्णने विषे बहु प्रेम धरती बती तेनो जय इबवा लागी. कर्वा डे केनिरंतर मनुष्योने पोतानी माता खरेखरी हितकारी होय . परी प्रचंम तुज पराक्रमथी नहत एवो दुर्योधन क्रोधथी म्होटी सेना सहित शीघ्र प्रयाणवी महा विस्तारवाला प्रसिः कुरुक्षेत्रमा गयो. हाथीयोरूप पर्वत, पायदलरूप जल अने अन्यमनुष्योरूप तरंगोथी सुशोनित एवो ते । सेनारूप समु अगीयार अदौहिणि सेनारूप नदीयोए करीने बहु शोलतो हतो. पठी सुर्योधने हर्पथी प्रसिह नुजबलवाला श्रीनीष्मपिताने प्रणाम करी तेमने अति आदरपूर्वक कोटिवीरने मथन करनारुं पोतान सेनापति पद आप्यु. गर्ववंत पांमवो पण पोताना सैन्यन्नारथी पृथ्वीने कंपावता उता शीघ्र प्रयागथी सात अक्षौहिणि सेनासहित कुरुक्षेत्रमा गया. त्यां पांमवोए सर्वे वीर पुरुषोने वहाला एवा पदराजाना पुत्र वलिष्ट एवा धृष्टद्युम्नने सेनापतिपणु अने सर्व कार्यमां मुख्यपणुं आप्यु. पीत्रण उपायथी निर्णय कस्यो ने यु. हना दिवसनो जेमणे एवा पांझवनी सेनाना वीर पुरुषोए हर्षपूर्वक पोताना क्षेत्रदेवतानुं अने पोतानां आयुधोनुं पूजन करयु. जाणे पोताना पतियोने महा विजय अने यश प्रापवाने नुद्यमवंत अयेलांज होयनी ? एम सुगंधवाला प्रफुलित पुप्पोन्ग्री पूजन करेलां आयुधो शोन्नतां हता. त्यां वागतां एवा संग्राम Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र. ( ४५७ ) नां वाजत्रो जाणे विजयलक्ष्मीना कांऊरनो शब्द होयनी ? एम तीक्ष्णश( स्वोना समूदे करीने शोभतां हतां. महा दुर्जय शत्रुननी जालरूप अंधकार"ना समूहने नाश करतो एवो ते सुनटोनो समूह जाणे तीक्ष्ण कांतिवालो ने बहु लाल तेजवालो साक्षात् वीररस होयनी ? एम शोभतो हतो. वृकसमूsarsara विषे अने प्रकाशने विषे यता परुदान निश्वे रणानिलाबी सुनटोना सिंहनादने वृद्धि पमागता हता. ते वखते बन्ने सैन्यना चारे तरफश्री युनां महा वाजत्रो वागवा लाग्यां. तेमज जाणे नृदय पामता एवा सूfor tear अश्वनी स्पर्धा श्रीज होयनी ? एम श्रेष्ठ अश्वो खोखारा करवा लाग्या. रणसंग्रामरूप वर्षातुमां शत्रुनना समूहरूप घासने जक्षण करनारा अने करता मदरूप जलना समूहथी कादवरूप बनेली पृथ्वीमां चपल गतिवाला महा दस्तिन गर्जना करता बता शोभता दता. मेरी नोबत थने ढक्कादि वाजींत्रोना शब्दथी, तेमज महा पायदलना, रथना अने हस्तिनुना नादी सर्व जगत् शब्दमय थइ गयं. सुवर्ण अने रत्नोनी अद्भुत कांतिथी शोजता, हाथमां देदीप्यमान खकुने धारण करी रहेला, ढालोने नवालता श्रने मांज प्रवीण एवा योधान सर्व स्थानके फरता हता. हवे प्रथम महा डुईर एवा धनुष्यधारीयो पोतपोतानां धनुष्यनो वारंवार शब्द करता बता आागल चाल्या. तेमनी पाल युद्धमां नत्साहवंत एवा महा बलवाला तोमरधारी सुनटोए चालवा मांयुं. त्यारपवी अश्वोने पोताना कबजामा राखनारा प्रौढ स्फुरतीवाला स्वारो चालवा लाग्या. तेमनी पाबल उंची सुंढवाला, म्होटी सांकलोवाला अने महा जय नपजावनारा हस्तिनो समूह चाल्यो. त्यारबाद बत्रीश प्रकारनां शस्त्रसमूहथी नरपुर, पैमाथी पृथ्वीना तलने पीली नाखनारा ने युद्धमां उत्साहवंत एवा अनेक सुनोथी मनोहर एवा रथोनो समूह चाल्यो. या वखते मदा सैन्यना पाद महारथी होयनी ? एम तुरत महा कंपथी समुना जलो नबलवा लाग्या. पी बीजे दिवस स थ रहेली ते बन्ने सेनाना नचलता वीररसवाला उन्मट शस्त्रधारी सुनटीए युद्धनां वाजींत्रोना शब्दोथी रणसंग्राम आरंम्यो. तेमां ऊधारी योनी साथे खकुधारी योनो, रथीयोनी साथे रथीयोनो ने पायदलनी साथे महा सुनटोनो एम परस्पर संग्रामोत्सव थवा लाग्यो. जेम ज्वाज - Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. ख्यमान एवा सूर्यनां किरणो जो सकातां नथी तेम महा शत्रुन्नी सामा नगामेला आयुधवाला, क्रोधना नारथी पुर्धर एवा बखतरधारी ते महा सुन्नटो जगतने नहि जोवायोग्य रूपवाला थर पमया, बखतरथी ढंकायेला शरी रवाला अश्वो, नयथी चालवमे नबलता होवाथी जाणे तेन पांखोवाला हो। यनी ? एम देखाता हता. आ त्यजी दोधेली मर्यादावाला महा संग्रामरूप समुश्मा मगररूप सर्व प्रकारनां शस्त्रो, पर्वतरूप महा हस्तिन, अश्वरूप महा तरंगो, नत्तम पायदलरूप जल, रथीरूप मगरो अने वहाणरूप आकाशमां र. हेला वैमानो देखाता हता. वली वीरपुरुषोनां हुंकाररूप शब्दथी जाणे पोते सेनारूप समु गर्जना करतो होयनी? एम शोन्नतो हतो. पठी दीपकनी पेठे कणमात्रमा वैरीरूप अंधकारनो नाश करतो, वृद्धि पामेला क्रोधवालो अने रथ नपर बेठेलोअन्तिमन्यु (अर्जुनपुत्र) शत्रुना सैन्यमां पेगे. कोपथी अमोघ वाणना समूहवमे पोतानां सैन्यनो नाश करता एवा अर्जुनपुत्रने जो रथमां बेठेला अने बाण फेंकता एवर वृहद्दल अने कृपाचार्य तेना सामां दोमया. अन्तिमन्यु वृहबलना सामो थयो ते जो बाणोवमे शत्रुना सैन्यने त्रास पमामतो एवो कैकेय अभिमन्युनी सहाय्य करवा माटे कृपाचायेनी सामो अयो. सर्व विश्वना मनुष्योने अति नयकारी एवा ते चारे वीरपुरुषाना परस्पर श्रता युःइने सुनटोना समूहवाली नत्तम सेना जोवा लागी. रयो नागी जवाथी फक्त नन्नारहीने परस्पर युद्ध करता एवा कैकयराजा अने कृपाचार्य बन्नेजणा सर्व सेनाना सुन्नटोने नयंकर देखावा लाग्या. सार तेजवाला वृहबले वायुनी पेठे अनेक बाणो फेंकीने बगांसुखावायी परवश श्रयेला पार्थपुत्र अभिमन्युना रथनी ध्वजाने बेदी नाखी अने सारथीने मारी नाख्यो. पठी महा कोर शब्दथी गर्जना करतो अने पैमाथी पृथ्वीना तलने विदारी नाखतो एवो नीष्म पितानो रन कणमात्रमा पांमवोनी सेना प्रत्ये आव्यो. नीमना कोपश्री वाल्हीके, दिव्यवाणोथी आकाशमां मंझप बनावी दीधो; तेथी शत्रुनी सेना चलाचल पवा लागी. या वखते वेगथी क्रोध पामेला अन्तिमन्युए असंख्य बाणोथी आकाशने ढांकी देता उता उर्मुख रा. जाना मारथीने अने नीमपिताना रथनी ध्वजाने तुरत वेदी नाख्या. नी. र कोप पाम्ये उते अर्जुनपुत्रनुं रक्षण करवा माटे नगामेला आयुधवाला दः र Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (यए) श रथी राजान तुरत अन्तिमन्युने घेरी वल्या.परी जेटलामा पोताना रथना चीत्कार शब्दथी वीर पुरुषोने दोन पमामतो नीमसेन रणांगणमां आव्यो तेटलामां नीष्मे, तेना रथनी ध्वजा बाणवमे तोमी पामवाश्री ते बहु कोप पाम्यो. नीमे पण गदाना प्रहारथी नीष्मना रथने पापमनी पेठे चूर्णरूप करी नाख्यो एटले नीष्मे पण तेने फरीश्री क्षणमात्रमा बागोवमे नत्साहरहित करी मूक्यो. महा पराक्रमवंत नीमसेनने आ प्रमाणे निस्तेज बनेलो जो क्रोधधी कालनी पेठे कौरव सैन्यनो नाश करतो तो अर्जुन तुरत नीष्म सामो अयो. प्रपितामह नीष्म पण नीमने त्यजी दर अर्जुन सामा बहु बाणो फेंकवा लाग्या; परंतु अर्जुने ते सर्व वाणोने आकाशमांज दी नाखीने सामा तेमना रथनी ध्वजाने अने सारश्रीने दी नाख्या. नीष्मपिता अने अर्जुनर्नु महा दारुण यु. असंख्य देवतानने पण आश्चर्यकारी अयु; परंतु आ वखते हृदयमां नत्पन्न श्रयेला संशयवाली विजय लक्ष्मीये ए बन्नेमांथी एकेनो पाणीग्रहण कस्यो नहि. अर्थात् एकेनो विजय अयो नहि. जेना वारंवार बबे रथ नागी नाख्या हता एवा शल्य राजाए तुरत नुत्तराकुमार तरफ सुवर्ण शक्ति फेंकी,जेथी ते शीघ्र नाश पाम्यो.पठी सर्व सेना सहित कोप पामेला सेनापति धृष्ठद्युम्ने, मंथानक (रवैयारूप) मेरुपर्वतनी पेठे कौरवनी महासेनारूप समु. -इने मंथन करी नाख्यो. पळी आठमा दिवसनी सांजे पांमवो पोताना पमावनी अंदर आवीने परस्पर विचार करवा लाग्या के, “शत्रुनी सेनामां अति जयंकर एवा सेनापति नीष्मनो शी रीते वध अशे ? " कृष्णे कडं. " पृथ्वीमां प्रसिह एवी जीष्मनी एवी प्रतिज्ञा के, हुं नपुंसकने विषे, शस्त्र रहितने विषे, अवला मुखवालाने विषे अने स्त्रीने विषे क्यारे पण प्रहार करीश नहि. हे अर्जुन! माटे तुं आ पदराजपुत्रने नपुंसकनो वेश परेरावी पोताना रथमां बेसास्य अने पठी प्रतिज्ञाने लीधे शस्त्र रहित श्रयेला नीष्म नूपतिने निःशंकपणे शस्त्र प्रहार कर.” आ-प्रमाणे सर्व मसलत करीने पठी सवारे तैयार अश्ठे सेना अने सुन्नट जेना एवा ते महा पराक्रमवाला पांमवो अने कौरवो रणांगणमां आव्या. सेनाना अग्रन्नागमां नन्नेला नीष्मपिताए मेघनी पेठे वाणवृष्टिथी मृगनी पेठे पांमुपुत्रोने नपश्व पमामया. अर्जुने पण तुरत पोताना रथमां नपुसकरूप पदराजपुत्रने बेसारीने अने तेने देखवायी पोतानी प्रति- . Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६०) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. झाने लीधे युक्ष्मां आदर रहित थयेला नीष्मपिताने तीक्ष्ण बाणोना समूह. थी जर्जरीत शरीरवाला बनावी दीधा." निश्चे सर्व शरीरनां मर्मने छेदन क__ रनारां आ बाणो अर्जुननां ." एम पोताना सारथी प्रत्ये कहेता एवानी ष्मपिता रथना मध्यन्नागने विषे आलोटवा लाग्या. आ वखते बहु गाढ शोकमां मग्न श्रयेला पांमवो अने कौरवो ननालामां सरोवरनी पेठे तेमनां वचन रूप जलनुं पान करवानी चाथी तुरत तेमने विटलाइ वल्या. पीजीष्मे का के, “ हे पार्थ ! मने तृषारूप राक्षसी बहु पीमा करे , माटे जल ला. वी आप." प्रपितामहनां आवां वचन सांजलीने आश्चर्यकारी अर्जुने सूर्यनी पेठे बागवमे मेघने आकाशमां खेंची आएयो. हितकारीजीष्मपिताए, अर्जु ननु आवं अनुत पराक्रम तुरत पुर्योधनने देखामीने तेने कर्वा के, “ हारार्थी अधिक महा पराक्रमवाला पांमुपुत्रोनी साथे तुं संधी कर." परंतु तेतो सां. नल्यु अणसांनव्युं करीने पोताना बंधुन सहित त्यांची चाली निकल्यो.जी. म पण विशु धर्मनुं आराधन करी अनशन ग्रहण करवा पूर्वक स्वर्ग प्रत्ये गया. या वखते अर्जुने, शेणगुरुने प्रणाम करवा पूर्वक धनुर्वेद त्यजी दीघो. कडं ले के-संत पुरुषो, गुरु दक्षिणाने अर्थे शुं कांश योग्य वस्तु नथी आपता? अर्थात् आपे . पठी ते वन्ने सैन्यना नदंम बागना विस्तारथी अनुक्रमे पो. तानां किरणोने हरण करता एवा सूर्ये चक्रवाक् (चकला)ना कुलने विषे अति विरह कस्यो. अर्थात् सूर्य अस्त पाम्यो. पठी जेम सिंह, हरिणोनी साथे युः करे तेम संसप्तक राजाए आमत्रण करेला अर्जुने सेनानी वहार तेननी साथे महायुः आरज्यु. “अर्जुन बीजा राजाननी साथे यु६ करवा सेनानी बहार गयो." ए वात जाणीने बारमे दिवसे हस्ति नपर बैठेला महा नयंकर नगदत्त राजाए, युधिष्ठिरनी सेनाने पीमा करवा मांमी. अर्जुन पोतानां सैन्यमां कोन्नथी नत्पन्न थयेला कोलाहलने सान्नली तुरत संसप्तक राजानने त्यजी दश्ने नगदत्तनी साथे यु६ करवा लाग्यो. वहुकाल टक्या पठी अर्जुन क्रोधथी नगदत्तने मारी नाखी फरी संसतक राजानने मारवा माटे तुरत त्यां आव्यो. तेनने पण मारी नाखवाथी को रखनी सेना रक्षण रहित थs. पठी विचार करीने कौरवोए रात्रीने विषे नहि नेटी मकाय एवो चक्रव्यूद रज्यो. तेमां उर्योधन, शेणगुरु, कृपाचार्य अने . Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४६१) कर्णनां शस्त्रोने बेतरी नीमपुत्र (घटोत्कच) विगेरे वीर पुरुषोथी विंटलायेला अर्जुनपुत्र अन्तिमन्युए प्रवेश कस्यो. जुर्योधनादिके, नीमादि पुरुषोने व्यूहनी 'बहार रोके ते महा पराक्रमवाला अनिमन्युअने जयश्थ बन्ने सुन्नटो परस्पर युह करवा लाग्या, बहु काल पर्यंत दिव्यलोह शस्त्रवमे यु६ करीने पी श्रर्जुनने दुःख पमामवा माटे जयश्ये सायंकालने विषे अन्तिमन्युने स्वर्ग लोकप्रत्ये मोकल्यो. पुत्र अनिमन्युना मृत्युने सांजली बहु क्रोध पामेला अर्जुने प्रतिज्ञा करी के, “जो हुं आजे जयश्यने नहि मारूं तो हवे पनी आ नवमां नोजन करीश नहि." जो के क्रोधथी जयश्यने मारवा जता एवा अर्जुनने शेणादिके युमा रोकी राख्यो, तोपण तेणे अमोघ बाणो फेंकवाथी शत्रुना स्थानने बहु रुधिरना कादववालुं करी मूक्यु. नीम अने सत्यकी, अर्जुननी सहाय्य माटे जता हता; परंतु ऽर्योधने नीमने अने नूरिश्रवाए सत्यकिने रोकी राख्यो. जाणे बीजा बहु रंगोथी घेरायेलो एक जातनो रंग होयनी ? एम ते अनेक राजानथी रक्षण करायला जयश्य राजाने सांजे अर्जुने दीगे. नीमसेनना अने फुर्योधनना, नूरिश्रवाना अने सत्य किना, अर्जु. नना अने जयश्थनाआड राजानना परस्पर एक बीजा नपर फेंकातां शस्त्रोए करीने विश्वना मनुष्योने प्रलयकालनी 5:सह शंका नत्पन्न अश्. अर्जुने पोता'नी प्रतिज्ञा, स्मरण करता उता सायंकालने वखते जयश्थना रथने अने सारथीने बेदन नेदन करीने तथा तेने शस्त्र रहित करीने बहु क्रोधथी मारी पाख्यो. पांमुपुत्रोए, चौदमा दिवसनी सांज सुधीमा र्योधन नूपतिनी सात अदौहिणी सेनानो नाश करी नाख्यो. पली बहुज थोमा सैन्यवाला कौरवोए रात्रीने विषे युद्ध करवानो विचार करीने पांडवो सूता इता एवामां घुमनी पेठे तेमना नपर तत्काल धसारो कस्यो. श्रा वखते नीमना सरखो महा जयंकर अने मायावि नीम पुत्र घटोत्कच, अनेक शस्त्रोवाला युध्धी शत्रुना पकने आश्चर्य पमामतो तो त्यां युः६ करवा लाग्यो. तेने कर्णे अखंमित शस्त्र समूहथी तिरस्कार करयो. घटोत्कचे पण गदावमे कर्णना शस्त्र समूहने कापी नाख्या. पठी बहु क्रोध पामेला कणे, देदीप्यमान अग्निना कणोथी व्याप्त एवी देवतानए आपेली शक्ति घटोत्कच सामे फेंकी, जेश्री ते नीमपुत्र निश्चे प्राण रहित अयो. बीजे दिवस सवारे काल समान Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. महा तेजवंत शेणगुरुए युः आरंन्यु, तेमां विराट अने पद बन्ने राजान तु. रत मृत्यु पाम्या.आ बने राजाना मृत्युश्री पांमवानुं सैन्य बहु खेद पामवालाग्यु एदले धृष्टद्युम्न ते पोतानी सेनाना वीर पुरुषोने धीरज आपतो तो तुरत क्रोधथी शेण सामे युः करवा आव्यो. पमता दाधीवालुं, त्रास पामता अश्वोवालु, नागी जता रथोवालुं अने मृत्यु पामता सुन्नटोवालुं ते बन्ने वीरपु. रुषोनुं दीर्घकाल पर्यंत श्रयेलुं नयंकर युछ जो आकाशमा रहेला विद्याधरो पण मनमा नय पामवा लाग्या. एवामां युधिष्ठिरे मालवदेशना नूपतिना अश्वस्थामा नामना हाथीने मारी नांख्यो एटले बीजा सैन्यमां चारे तरफ एवी वात फेलाणी के, “अश्वस्थामा मराया." आ वात शेगुरुए सांजली; तेथी ते पोताना पुत्रने मरायो जाणी गाढ चिंताथी पीमा पामता बता अति दुःखी थश्ने संग्रामकार्यमां बहु मंद आदरवाला या. पनी दनवाला ऽपद राजपुत्रे शेगने बाण समूहथी वीधि नाख्या, तेथी बहु पीमा पामेला शेणगुरु अनशन व्रतलश् नमस्कार मंत्र, ध्यान करता उता ब्रह्मदेव लोक प्रत्ये गया. ___. पीतानो नाश सांगली क्रोधातुर बनेला अश्वस्थामाए पोतानी सेना सहित वाणवृष्टीथी जयातुर एवी पांमवोनी सेनाने नाश पमामवा मांझी. पठी तेमणे (अश्वस्थामाए) पांमवोनो वध करवा माटे मेघमां विजलीनी पेठे स्फुरणायमान एवा तिखाराना समूहथी दिशानने पूरी देतुं एवं अमोघ ना.' रायगीय नामे शस्त्र फेंक्यु; परंतु श्रीकृष्णना कदेवा नपरथी विनयवंत एवा । पांडवोए ते 5:सद बाणने शीघ्र निष्फल करी नायुं. कहुं ले के-महात्मानना विनयश्री कयुं कार्य सिहि नयी पामतुं ? अर्थात् सर्व कार्य सिद्धि पामे वे. पठी युज्नी श्चा करता एवा कौरवो महा नत्कट पुरुषार्थवाला कर्णने प्रा. गल करी सर्व प्रकारनां शस्त्रो सजीने आदरथी रणांगणमां आव्या. ते बन्ने उर्जय सैन्यना परस्पर कोटि सुन्नटोनो नाश करनारो, सर्व विश्वना मनुष्याने दुःसह अने ऽर्नेद संग्राम चाल्यो.कांन सुधी खेंचेली धनुष्यनी दोरीवाला अने समुन्नी समान गर्जनावाला कर्णे पदेलाज युध्मां शस्त्र समूहथी सर्व श. त्रुना समूदने पामी दीधो. जेम सूर्य पोतानां किरणोने चारे तरफ प्रसार तेम सूर्य पुत्र कर्ण पण शत्रुननी सेनामा चारे तरफ वाणोरूप किरणो ककनो नो नेना (मर्यना) जेवो देग्वावा लाग्यो, पठी नग्रजवलवाला अजुन Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४६३) अने, कर्ण बन्ने सुन्नटो जाणे प्रलयकाले नत्पन्न श्रयेला सूर्यज होयनी? एम तीक्ष्ण धारोवाला बागोवमे परस्पर युः६ करवा लाग्या. प्रथमथी कोपवमे कंपी 'रदेला पवनपुत्र नीमसेने वीर एवा उःशासनने अटकावी राखीने पृथ्वी नपर पामी नाख्यो. त्यारबाद तेना बन्ने हाथ कापी नाख्या. पोताना देहथी निकलता रुधिरवमे बहु पृथ्वीने राता वर्णनी करता एवा दुःशासनने जो सूर्ये पण आकाशने राता वर्णनुं करता उता पश्चिम दिशानो आश्रय करयो. पगे बीजे दिवस सवारे अर्जुनना वधनी चा करनारो कर्ण, शल्यने पोतानो सारथी बनावी बहु गर्जना पूर्वक शंखनो शब्द करतो तो दन्नथी युनूमि प्रत्ये आव्यो. महा पराक्रमवंत अर्जुन अने कर्णना पृथ्वीने विषे, दिशानमां, आकाशमां अने शत्रुनना समूहने विषे चारे तरफ पमता एवा बाणोना समूहो जाणे वरसादनी धारान होयनी ? एम देखता हता. सर्पास्त्रना बागथी कर्णे मूकेला अनेक सर्पसमूहोने अर्जुने गरुमास्त्र मूकी दूर करचा. आ प्रमाणे सुमंत्रना जाग एवा ते बन्ने वीरो एक वीजा नपर बहु शस्त्रो फेंकता हता. देवट अर्जुने कर्णने सूर्यास्त वखते बोलावीने शेष. राजे आपेली शक्तिवमे प्रहार करयो, तेथी ते मृत्यु पाम्यो. आ अवसरे देवतानए बहु हर्षश्री पुष्पवृष्टी करी. हवे बीजे दिवस सवारे, मृत्यु पामवायी वाकी रहेला - कौरवो नत्साह रहित श्रया उता शटयने सेनापति पद आपी युनूमि प्रत्ये आव्या. शत्रुनना चित्तने विषे शल्य (बाण) रूप शब्य राजाए अनेक बायो - । फेंके बते युःक्ष्मां फक्त पुण्यना समूहयी नत्कृष्ट एवा युधिष्ठिरज स्थिर नन्ना रह्या. कोपाकुल अयेला सहदेव वीरे क्रोधातुर एवा शकुनि राजानी सामा अश् बाणना मंगलथी आकाशने पूरी देता उता तेने रोकी राख्यो. युधिष्ठिरे मनमां नत्तराकुमारना नाशना वैरने स्मरण करता बता सफल कोपथी पोताना सैन्यने शख्यरूप शल्यराजाने अमोघ शक्तिवझे मारी नाख्यो. सूर्य अस्त पाम्ये ते कर्मनी खजाना वशथी अति विकण एवो सेनापति र्योधन पण त्यांथी नासीने तत्काल एक सरोवरमां संता पेगे. पाउल तेने शोधता एवा कृपाचार्य, महाराजा कृतवर्मा अने अश्वस्थामादि पगले पगले त्यां आवीने जेटलामा र्योधनने कांश कहेवा जायठे तेटलामांएक अकौहिणी सैना सहित पाउल आवता एवा पांमवोए ते सरोवरने घेरो घाली र्योधनने कां के, "हे. Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६४ ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वा ६. वीर शिरोमणि दुर्योधन ! तने ग्राम नासी जवुं योग्य नथी. कारण सत्पुरुषो संकट तां पण पोताना कुलने लगा करावनारुं जे कार्य होय ते काम करता नथी. अरे वीर एवो अर्जुन कोप पाम्ये बते तुं या सरोवरमां शुं रहि शके तेम बे ? जे विद्यावा समुने शोषण करवा समर्थ वे, तेनी श्रागल था सरोवर कोण मात्र बे ? जो तुं प्रमारा सर्वनी साथे युद्ध करवा समर्थ न होय तो मारामांथी गमे तेनी साथे व्हारी मरजी होय तेवां शस्त्रथी युद्ध क रवाने तैयार था. "पांमवोनां श्रावां वचन सांगली मनस्वी अने धारण कर महावल जेणे एवा दुर्योधने कधुं के, “हुं, जुजाबलवाला जीमसेन जमनी साथे गदावमे युद्ध करीश. " पांगवाए ते वात कबुल करी एटले दुर्योधन जलमांथी जाणे जलज होयनी ? एम वेगथी निकल्यो. पबी बीजा सर्व सुन्न: टो दूर रह्ये ते महानुज पराक्रमवंत एवा दुर्योधन ने जीमसेन बन्ने जला गदान व करीने युद्ध करवा माटे रणभूमिमां सामसामा दोघा. बन्ने जान चारे तरफथी एक बीजाना गदा प्रहारोने स्खलना पमारुता श्रने श्राकाशमां उचलता बता क्रोधथी राती कांतिवाला बनीने लोकोने बहु दुःमेकरूप देखावा लाग्या. पी जीमसेने क्रोधथी नचलवानी कलामां प्रवीण एवा दुर्योधनने प्रचंम वृक्षनी पेठे वेगथी पृथ्वी उपर पानी दीघो. पछी पृथ्वी नपर पमेला दुर्योधननां मस्तकने जीमसेने पांफुना प्रहारथी चूरूप करी नाख्युं. श्रावा कार्यने जोइ बलनइना मनमां बहु क्रोध ययो. जो के बलन पांकुपुनेहवा समर्थ इता, तोपण ते पितादिकना जयथी तेम न करता पांगवो जीवता मूकीने ने तेमनो तिरस्कार करी मनमां बहु क्रोध पामता ताक्यांश चाया गया. विधिना जाए एवा पांवो पण पोतानी सेनानारका माटे डुपदराजपुत्रने तथा अर्जुनने राखी पोते बलनने शांति पमानवा तेमनी पाबल गया. पावल कृतवर्मा, अश्वस्थामा श्रने क्रपाचार्य ए त्रण जगान, दीनमुख थइ दुर्योधनने जोवा माटे रणभूमि प्रत्ये श्राव्या. त्यां तेd तेवी अवस्थामां पमेला दुर्योधनने जोइ श्रादरथी कहेवा लाग्या के, “दे स्वामी · न् ! प्रसन्न थइ अमने आशा आपो के, जेथी अमे आजेज ते पांरुपुत्राने मा. री नाखीए. "तेजनां आवां वचन सांजली हर्ष पामेला दुर्योधने पोतानां चरणमां नमि रहेला तेनुंने पांरुवोनो वध करवानी आज्ञा श्रापी, पवी ते त्रो Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४६५) जणान, पांमवोनां शून्य सैन्यमां आवी अर्जुन अने पराजपुत्रनी साथे दीघकाल युरू करी अने ब्रमथी तेन्ना (पांमवोना) पांच पुत्रोने मारी तेमनां मस्तको र्योधननी आगल मूकीने प्रणाम करवा लाग्या. जुर्योधन पण पांव पुत्रोनां मस्तकोने जोश बहु खेद पामतो उतो तेमने कहेवा लाग्यो के, अरे धिक्कार ले ! धिक्कार ले !! जे तमे म्हारी आगल आ बालकोनां मस्तको अ आव्या. निश्चे म्हारुं तेवू नाग्य नथी के, हुं पांमवानुं मृत्यु जोQ." महा वेदनाथी पीमा पामेलो दुर्योधन आ प्रमाणे कहेतो तो तुरत मृत्यु पाम्यो, रंग शोकमां बझी गयेला चित्तवाला कृपाचार्यादिक क्यांश चाटया गया. इवे पांमवो अनुकुल नक्तिवालां वचनोए करीने श्रीबलनले पोतानां सैन्य प्रत्ये तेमी लाव्या. त्यां तेन पोताना पुत्रोले मृत्यु पामेला जाणी मनमां बहु शोक करवा लाग्या. पठी ते सरस्वती नदीने कांठे जश् पोताना ते म्यु पामेला पांच पुत्रोनां, कौरवोनां अने बीजा श्रेष्ठ राजानां प्रेत को कत्या. त्यारपली दशा)नी संमतीथी संतुष्ट चित्तवाला रामकृष्णादिके फरीथी महोत्सव पूर्वक श्री युधिष्ठिरने हस्तिनापुरने विषे राज्याभिषेक कल्यो.नूजा बलथी विश्वना शत्रुनने जीती विजय मलेवनारा,श्रीशेण जीष्म अने कर्णादि नूपतियोने युःक्ष्मां परान्नव पमामी, तथा कौरवोना असंख्य सैन्य मदासागरने बलथी मथने करी विजय लक्ष्मीना पतिपणाने पामेला ते पांचे पांमवो पोतानां हस्तिनापुर नगरने विषे राज्य नोगववा लाग्या. इति शषिमंमलत्तौ पांमवचरित्रे श्रीकौरवादिक्षयश्रीपांम्वज यत्तवनपुनःराज्योपविशननाम षष्टोधिकारः समाप्तः पनी शत्रुनना दंनने तोमी नाखनारा अने सर्व साम्राज्यना लान्नने पा. मेला पांमवो निरंतर नचलती नीतिना बलवमे प्रजानुं पुत्रनी पेठे पालन करवा लाग्या. को वखते श्री जिनेश्वरना धर्मना मर्मने जाणनारा, पवित्र शरीरवाला अने हितेच एवा धर्मपुत्र युधिष्ठिरे बहु नय पामता उता पोताना जीमसेनादि बंधुनने कडं के, " आपणा पिता पांमुराजा के, जे मृत्यु पामीने देवलोकमां देवता श्रया , ते आज आवीने मने एम कदेवा लाग्या के, हे वत्सो ! तमे पोताना गोत्रघातादि महा घोर पाप करयुं . ते पाप समूहयी, Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६६ ऋषिमंगलवत्ति - पूर्वार्द्ध. 1 तमारो अनंत दुःखी भरपूर एवा नरकने विषे पात थशे. श्राथी मने मनमां बहु चिंता या बेके, तमे बहु दुःख पामशो. धिक्कार बे तेवा क्रूर कर्मने !!! हे पुत्रो ! माटे हुं तमने खबर कहेवा श्राव्यो हुं के, तमे ते पापनी शीघ्र । 2 ते शांति करो के, जेथी तमारे पापना समूहवमे नरकरूप खामीमां न पaj प. " ( युधिष्ठिर पोताना नाइयोने कहे बे के ) पितानां श्रावां वचन सांजली अत्यंत जय पामेला में तेमने पूठ्धुं के, दे पिता ! एवो कयो शुद्ध धर्म के, जेनुं श्राराधन करवायी श्रमारे नरकने विषे न परुवुं पके ? " प० बी पांकुपिता रूप देवताए कह्युं “हे सुतो ! श्री जिनेश्वर प्रणित अने सर्व जगत्ना प्राणीयोने हितकारी एवो दया प्रधान धर्म सर्व दुःखरूप समुइने पार उतारवामां वदाण समान समर्थ बे. निवे श्री अरिहंत प्रजुए कहेलो सुख देतुरूप ते धर्म, साधु ने श्रावकना नेदथी बे प्रकारनो बे. त्रण गुप्ति अने पांच महाव्रतरूप साधुनो धर्म पांच समितिथी प्रशंसा करवा योग्य बे. - ति शुद्ध क्रियावाला साधुजने ते धर्मनुं सारी रीते आराधन करवायी, उत्कृष्टश्री मोक्ष फल मले ने जघन्यथी सघला स्वर्ग लोकनी लक्ष्मी मले डे. चार शिक्षावत, त्रण गुणव्रत अने पांच अणुव्रत ए रूप बार प्रकारनो अति शुद्ध एव श्रावक धर्म च्युत देवलोकनां सुख प्रापनारो बे; माटे दवणां त मो पाप समूहने नाश करनारो उत्तम श्रावक धर्म श्रादरो अने चारित्रनोसवेब निचे शुद्ध जावयी साधुधर्म पालजो." में प्रावां पितानां वचन अंगीकार करयां एटले प्रसन्न मनवाला ते पिता पांसुदेव पोताने स्थानके गया. ( युधिष्ठिर पोताना बंधु ने कदे वे के, ) हे बंधुन ! माटे तमे पोतानां पापनो नाश करवाने श्रर्थे पिताए कहेला जिनराज धर्मने श्रादरो. " पोताना म्होटा बंधुनां श्रावता कालने विषे लक्ष्मी थापना अने पाप समूहनो नाश करना श्रावां वचन सांजलीने भीमादि सर्व नाइयो, मोक्ष सुख आपनारुं पुण्य करवा लाग्या. बीजानथी कोन पमामी न शकाय तेवा स्वभाववाला ते पांचे पांवो, शुद्ध श्रावक धर्मने विषे तत्पर यह लक्ष्मीने चपल स्वनाववाली जाणता बता दान आपवामांज उत्तम बुद्धि करवा लाग्या. सात क्षेत्रने विषे इव्यनो व्यय करता थने दरेक गामे यति प्रमाणवाला उत्तम जैन देगसरो कगवता एवा ते पांगवाए रूपादि धातुननां एक लाख जिनबिंव क " Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र.. (६७) राव्या. वली तेमणे पोतानां कर्मनी शुध्नेि माटे जिनेश्वर प्रणित शास्त्रना बहु पुस्तको लखाव्यां अने वस्त्र, अन्न, पान विगेरेथी शुक्ष नाववमे चार प्रकारना संघनी बहु नक्ति करी. तेमज शुभ अशनादिकमी पात्रनुं पोषण, अगएय व्यथी दीन पुरुषोना नहार अने घोषणा पूर्वक पोताना देशमां अमारी प्रवर्त्तावी. लोकमां महा ऽर्गति अने दुःखदायी एवा द्यूतादि सात व्यसननो निषेध करवा पूर्वक जिनालयने विषे पूजादि कृत्यो कराव्यां. वली “उत्तम तीर्थोमां मुख्य शत्रुजय पर्वतने विषे नावणी श्रीजिनेश्वरनी यात्रा करवायी मलीन मनुष्योनां हत्यादि सर्वे पापो नाश थाय छे." आबु गुरुनां मुखनुं वचन सांजली पांझवो पोताना श्रात्माने मलीन जाणता - उता विचार पूर्वक त्यां यात्रा जवानो विचार करवा लाग्या. पठी तेनए दशाई, राम कृष्ण विगेरे अनेक राजानने बोलाववा माटे पोताना दूतो मोकख्या; तेथी त्यां तीर्थयात्रा माटे अनेक राजा आव्या. पली बहु नाक्वाला पांचे पांमवो, बहु शोनावाला श्रीसंघने साथे लइ श्री शत्रुजयनी तीर्थ यात्रा - माटे चाख्या. दयाथी निंजाइ गयेलां चित्तवाला पांमवोए मार्गमां पुर पुरने विषे म्होटा जैन प्रासादोनो नहार करवा पूर्वक दीन मनुष्योने नाना प्रकारना वहु दानो श्रापवां मामयां. पांडवो शुनावथी चार प्रकारना संघनी उत्तम नोजनादिवमे नक्ति करता, तेमज रौप्यमय जिनालयोमा स्नात्र पूजा नणावता इता. संघने विषे निरंतर नत्तम नाववाला मनुष्यो जिनेश्वरोना गीतो गाता, पात्रो जिनालयमां नृत्यो करता अने वाद्यक पुरुषो वाजींत्रो वगामता.केटलाक लोको पालखीमां वेसीने, केटलाक दिव्य हाथी नपर बेसीने, केटलाक घोमान नपर स्वार अश्ने अने केटलाक पगे चालीने नत्साह धरता उता जिनेश्वर- पूजनादि करवा जता. अनुक्रमे बहु दिवसे संघ, शत्रुजयनी तलेटीनी बजारमा प्रावी पदोच्यो. त्यां ते शत्रुजय पर्वतने जोश बहु दर्ष पामवा लाग्यो. पठी दशा) सहित कृष्ण बलन सारा लग्नने वखते महोत्सव पूर्वक श्रीधर्मपुत्र युधिष्ठिरने संघना अधिपतिपणानो अनिषेक करयो. सवारे सर्व संघ सहित संघपति [युधिष्ठिर] विमलाचल नपर चमवा लाग्या के, जे विमलाचल पगले पगले खरेखर पूर्व कर्मनो नाश करे . अनुक्रमे श्री संघ हर्षश्री श्री तीर्थराजना वारणामां आवी पहोच्यो. त्यां तो केटलाक श्री Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६७) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. जिनेश्वरने जो पृथ्वी नपर आलोटवा लाग्या, केटलाक नृत्य करवा लाग्या अने केटलाक इव्य नबालवा लाग्या. प्रथम नथी धोया पग जेमणे एवा संघना सर्वे लोकोए, बहु दर्षयी श्रीआदिनाथने नक्तिपूर्वक सुगंधि पुष्पादिके करीने पूज्या. पठी सवारे संघना मनुष्यो सहित संघाधिपे एवो स्नात्र महोत्सव करयो के, जेने जोवा माटे सर्वे देवता जाणे निमेष रहितपणाने पाम्या दोयनी? एम देखाय , आरती, मंगलदीवो अने ध्वजारोप करी तेमज दीन पुरुषोने दान आपी महा दर्ष पामेलो संघ शत्रुजय पर्वत नपरथी नीचे नतस्यो. त्यां श्रीकृष्ण अने बलन मुख्य जेमां एवा सर्व संघने नत्तम प. दार्थथी नोजन करावीने बंधु सहित अति हर्ष पामेला युधिष्ठिरे हाथ जोमी विनंती करी के, “हे पूज्यो ! तमे सौ म्हारुं वचन सोनलो. जो तमे कदेता हो तो तीर्थोमां मुकुटमणिरूप आ विमलाचलने विषे हुँ हवणां नहार कराq.” हर्ष पामेलां चित्तवाला रामकृष्णादि संघना सर्व लोकोए अनुमति प्रापी एटले पोतानां कार्यनी सिहि अवाथी युधिष्ठिर बहु दर्ष पाम्या. पठी तेमणे योमा दिवसमां बहु ब्यनो खर्च करीने जिनप्रासादनो नचार कराव्यो. वली सुगंधनावथी लेप्यमय जिनप्रतिमा करावी. त्यां वरदत्त नामना गणीश्वरे ते जिनप्रतिमानी देव तथा असुरने पण आश्चर्यकारी म्होटी प्रतिष्टा करी. पी. रेवताचल [ गिरिनार ] नपर श्रीनेमिनाथ प्रन्नुने, देवकपुरमा श्रीचंझन स्वामीने, नृगुकचमां (जरुचमां) श्रीसुव्रतनाथने अने सोपारक (सोपारा) मां श्रीआदिनाथ प्रन्नुने पूजनादि पूर्वक प्रणाम करीने संघना सर्वे मनुष्यो सहित युधिष्ठिर महोत्सवयी स्वर्ग समान धारकानगरी प्रत्ये आव्या. त्यां बल. नए अने श्रीकृष्णादि अनेक राजानए संघ सहित पांमवोनी विविध प्रकारना वस्त्र, पानपण अने दिव्य नोजनथी वहु नक्ति करी. पी केटलेक दिवसे, वहु पुण्यथी पवित्र एवा संघ सहित युधिष्ठिर शणगारेलां पोतानां नगरमा मदोटा महोत्सवयी श्राव्या. त्यां तेमणे नाना प्रकारना आहार, सुवर्ण अन रत्नमय अलंकारनां दानश्री संघनी विविध प्रकारे वहु नक्ति करीने तेने अनुः क्रम विदाय कस्यो. पठी यात्रानां कार्यथी सर्व पापने नाश करनारा, प्राप्त बयेला यश अने प्रतापवाला ते पांमवो अति लोगवा योग्य एवा इंधनां राः Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमब चरित्र. (४६ए) ज्यसमान पोतानां बहोला राज्यने नोगववा लाग्या. पांमवो राज्य करता बता निरंतर सर्वे गामो स्वर्गसमान शोनवा लाग्या अने शोकरहित सर्वे लोको सुखी श्रवा लाग्या. पांमवोनां राज्यमा अनिति, पुर्निक, स्वराज्यन्नय, परचक्र नय अने अकाल मृत्यु एमांनु कांइ पण नहोतुं. पांमवोए पोतानां राज्यमांथी अनितिरूप उष्ट स्त्रीने बहु अपमान पहोचामी हती; तेथी ते पांमवोनां शत्रुनना राज्यमां तेमनां नामने सहन करती उती रहेवा लागी. पांमवो राज्य करता उता चोरी तेमना देशमां निवास करता एवा लोकोने त्यजी द बीजा देशना लोकोनो निरंतर आश्रय करवा लागी. असंख्य व्य खर्चथी शत्रुजय तीर्थने विषे कल्याणकारी यात्रा तेमज तीर्थोक्षर करीने वली चार प्रकारना संघनी विविध प्रकारना नत्सवोथी आश्चर्यकारी नक्ति करीने पी पोतानां नगर प्रत्ये आवेला पांमवो पुण्यात्सव करवा लाग्या. इति शषिमंमलत्तौ पांमवचरित्रे श्री शत्रुजययात्रा तीर्थोचारकरणादि पुण्यावधाननाम सप्तमोऽधिकारः ॥ ७॥ पठी एकदा श्रीधर्मपुत्र युधिष्ठिर, पोतानी सन्नामां बेग हता एवामां सर्व पृथ्वी नपर फरता एवा नारद रुषि नचिंता त्यां आव्या, नारदने जो 'बहु दर्ष पामेला पांमावोए, तेमने नाना प्रकारनी नक्तिश्री संतोष पमामीने पूब्युं के, “ मुनीश्वर ! तमे पोतानां चरणरजयी कया कया देशोने पवित्र कस्या ? अने वाणीना विलासथी कया कया राजानने बहु हर्ष पमाड्या ? वली तमोए सर्व देशोमां विचरवावमेशुं शुंआश्चर्य दीतुं ? अने तमे नवी नवी शी शो वार्तान सांजली ?" पांमवोनां आवां वचन सान्नली अत्यंत हर्ष पामेला नारदे का. “हे पांडवो ! में बहु देशो जोया; परंतु या देश समान बीजो एके देश नथी. श्रा देशमां शत्रुनना समूहने नुजा बलथी नाश करना. रा बहु राजान ले. वली धर्म संपनिये करीने तेमज शुरू एवी न्याय संपत्तिये करीने तमारा सरखो बीजो को नृपति नथी. जोके पृथ्वी नपर फरता एवा में सर्व स्थानके नाना प्रकारनां बहु कुतुहलो दीगं ; परंतु मनुष्योने तमारां चरित्रश्री वीजें कां आश्चर्यकारी नथी. हे नूपो ! तमोए जिनोक्त धर्मना .. सेवनथी बाह्यनां अने अंतरंगनां सर्वे विघ्नोने नाश पमामयां ; तो पीत Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. मोने पीमा क्याथी होय ?" नारद श्रा प्रमाणे कहीने पठी तुरत त्यांधी नगी अंतःपुरमां गया. ठीकज -विशुः शीलवत धारण करनारा नारदादिकर्नु शुं क्यांश पण स्खलन होय खरूं ? अर्थात् नज होय. पनी अंतःपुरमा आवता एवा नारदने जो पदी पोतानां मनमां विचार करवा लागी के, "या कुलि. गीनी सेवा नक्ति करवायी स्वधर्मनुं मलीनपणुं थाय ." आम धारी तेणे नारदनो आदर सत्कार कस्यो नहि तेथी नारदने बहु क्रोध चम्यो. कडं ठे के-जैनधर्मरहित मनुष्योने कोप सुलन्न होय . पठी नारद पोतानां चित्तमां विचार करवा लाग्या के, “श्रा झैपदीने चित्तमां बहु लक्ष्मीनो तेमज पोताना पतियोनां महा पराक्रमनो अति अनर्थकारी गर्व थयो , माटे हुं तेना गर्वनो नाश करूं." आम धारीने नारद त्यांश्री निकली धातकीखंझना जरतक्षेत्रनी अमरकंका नगरी प्रत्ये गया. त्यांचपल चित्तवालो अने मदा नुजपराकमवालो पद्मोत्तर नामे राजा राज्य करतो इतो. नारद मुनि तुरत ते नूपतिनी सन्नामां गया. विस्मय पामेला रा. जाए पण हर्षथी नारदशषिने आसन पापी, कुशल समाचार पूर्वी अने फ.. लादिनोजनथी संतोष पमामी पूच्यु के, “हे मुनीश्वर ! आलोकमां ब्रमण करता एवा तमोए राजाननां नाना प्रकारनां अंतःपुरो जोयां वे तो कहो के, कया राजानुं अंतःपुर म्हारां अंतःपुर समान रूपवाटुं ?" नारदे कंश्क' दसीने कडं. “हे नूप ! तुं खरेखर कूवाना देमका जेवो देखाय . कारण ने तने मनमां आवां अल्प रूपवाला अंतःपुरने दीगथी पण अति कठोर गर्व थयो. जंबुद्धीपमा रहेला नरतखंगमा हस्तिनापुर नगरमा प्रचंग पराक्रमवाला पांच पांमवो ठे, तेमनुं अंतःपुर त्दारा समान .ए पांमवाना अंतःपुरने विषे जे शेपदी नामे स्त्री ठे, तेना समानपणाने पामवा त्रलोकनी स्त्रीयो श्चा करे ठे.” जेमने क्लेश कराववोज प्रिय ठे एवा नारद मुनि श्रा प्रमाणे कदीने तुरत मरजी प्रमाणे आकाश मार्गे चाली निकल्या. पद्मोत्तर राजा पण शेपदीनां अनुत रूपने सांजली बहु कामतप्त थवा लाग्यो. पठी तेण पोतानां कार्यनी सिदिमाटे नतिथी को देवता- आराधन करवा मांमयु, केटलाक दिवसे करेली पूजायी प्रसन्न श्रयेला देवताए कह्यु के, “ हे वत्स ! • वरदान माग." देवतानां यावां वचनश्री बहु दर्ष पामेला राजाए तेने दिव्य Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (७१) रूपवाली पदी लावी आपवानी याचना करी. देवे कां. "अरे मूढ ! तुं ए महासतीने अहि म्हारावमेशा माटे तेमावे ? निश्चे देव अने दानवो तेना शीलव्रतने खंमन करवा समर्थ नथी. तो पठी हे नूमीनाथ! एक कीमाना सरखो तुं तोशा लेखामां ? माटे तुं तेनी आशा त्यजी दे.” देवताए आम कह्या उतां पण बहु रागने लीधे मूर्खपणाथी राजाए मान्युं नहि, त्यारे वचनश्री बंधायेला देवताए तत्काल झैपदीने त्यां आएगी. सर्व स्त्रीयोनां रूप गर्वने नाश करवामां समर्थ एवी पदीने जोश पोतानी कार्यसिदिमानतो एवो ते पद्मोत्तर राजा बहु हर्ष पामवा लाग्यो. दवे अहिं सवारे पांमवो पोतानां घरमा क्षेपदीने न देखवायी बहु श्राकुलव्याकुल यया उता देशोमां सर्व स्थानके शोध करवा लाग्या. तेनए गाम, नगर, अरण्य, महोटा वन, पर्वत, नदी अने गुफा-मां शोध करी; परंतु कल्पवेलनी पेठे क्यांश पदीने दीठी नहि. पठी अति दु:खथी आकुलव्याकुल मनवाला ते सौ नेगा थ परस्पर विचार करवा लाग्या के, “आपणे नथी जाणता जे आपणी प्रियाने को देव अथवा विद्याधरे हरण करी ? सर्व शक्तिमंत एवा यादवपति श्री कृष्ण विना झेपदीनी शुहिमलवी मुश्कल , माटे चालो आपणे तेमनी पासे जइए.” आम विचार करीने अत्यंत खेद धरता पांडवो कृष्णनी पासे गया. कृष्णे पण ग्लानि पामेला ते पांमवोने जोक्ने कडं. "लोकोत्तर बलसमूहने धारण करनारा तमने को शत्रु परान्नव पमामी शके तेम तो नयी, उतां तमने आवमी शी चिंता ने के, जेथी तमे आवा निस्तेज देखा गे.?" पली स्त्रीनां दरणथी बहु खळा पामेला अने नम्र मुखवाला पांवोये तेमनी आगल पदीनां दरणनी वात कही. कह्यु के-मननी वात कह्यापी कार्यनी लिहि थाय . पांमवोनां मुखथी झेपदीनुं हरण सांजली अत्यंत खेद पामेला श्री कृष्ण जेटलामां पोतानां मनमां विचार करे नेतेटलामां त्यां नारदमुनि श्रावी पहोच्या. चिंतातुरपणाथी नयी जाण्यु पोतार्नु आगमन जेमणे एवा श्री कृष्णने नारद ऋषिये कह्यु के, “हे पुण्यवंत! तेमने एवीशी महा चिंता ठे?” कृष्णे कडं. “हे मुनीश्वर ! तमे अस्खलित गतिने लीधे विश्वमां चारे तरफ ब्रमण करो गे; माटे तमे को स्थानके पदीने दी। ने?" नारदे कहूं. “ में बीजा हीपना नरतक्षेत्रमा अमरकंका नगरीने विषे Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. पद्मोत्तर राजाना अंतःपुरमा झैपदीना समान को स्त्रीने दीठी . में तेज वखते विचार कस्यो हतो के, “ आ पांमवोनी स्त्री पदी अहिं क्याथी? वली में धारयुं जे, नाना ए झैपदी तो नहि; बीजी को देखाय के; परंतु हे। जनार्दन ! हवे तमारा पूवाश्री मने मनमांखरेखरो निर्णय थाय ने के, निश्चे ते झेपदी ने, माटे तमाराथी ते कार्य पूर्ण थाय एम मने मनमा लागे ." क्लेशप्रिय नारद आ प्रमाणे कहीने तुरत पदीनी पेठे आकाश मार्गे चाल्या गया. पठी श्रीकृष्णे पांमवोमे कडं. “हे बांधवो ! कहो, हवे आपणे केम करिशुं ? ते बीजो हीप बे लाख योजनना लवण समुनी पेली पार ,आपणे लूमिचर (लूमी उपर चालनारा) गीए; माटे आ कार्य असाध्य अइ पम्यु .” पांमवोए कहूं. “हें यादवें ! बीजा समर्थ पुरुषोथी पण तमारा विना श्रा कार्य श्रवु असाध्य रे.” श्री कृष्णे फरी गर्वथी कां. “हे वत्सो ! तमे स्थिरमनवाला प्रश्ने रहो. हुं महा कष्टकारी नपायोथी पण ते म्होटां कार्यने पार पामीश.” आम कहीले पठी कृष्ण श्री जिनेश्वरनी पूजा करवा पूर्वक अनशन करी अने समुशधिष्ट देवनुं मनमां स्मरण करी दर्तासन नपर वेग, पोतानां चित्तनी एकाग्रताश्री अने पूर्वपुण्यना योगयी त्रीजे दिवसे प्रत्यक्षपगाने पामीने समुदेव कृष्णने कह्यु के, “हे वत्स ! वरदान माग.” कृष्ण का. “ मने पांमवो सहित वीजा दीपमां अमरकंका नगरी प्रत्ये लइ जा के, ज्यां हुं पद्मोत्तर राजाने मारी झैपदीने अहिं पाग लावू. “देवताए कडं. " म्हारा अतिशये करीने तमो गए जणा उ रथवमे समुध्ने नलंघन करं ते नगरी प्रत्ये जात अने त्यां कार्य सिद्धि करी तुरत वंधु सहित पागा . वजो." पठी हर्ष पामेला कृष्णे समुशधिदेवने रजा आपी एटले महा बलवाला पोते सवारे पांवो सहित पारणं करीने उ रथोए करीने वीजा हीप प्रत्ये चाल्या. देवना प्रन्नावश्री समुडमां पण जमीननी पेठे चालता एवा पांमुपुत्रो सहित श्री कृष्ण नारदे कहेली अमरकंका नगरी प्रत्ये आवी पहोच्या. त्यां एक नद्यानमा पमाव करीने पठी कृष्णे पांमवोने हर्षयी कह्यु के, “ हुए शत्रुने जीती जैपदोने लश् अदि आq त्यां सुधी तमे अहिं आ उद्यानमा रहो." कृप्णनां आवां बचन सांजली अति हर्ष पामेला पांमवोए कह्यु. “हे बंधो ! श्रापना विद्यमानमां अमारां पुष्कर कार्यों पण सिह अशे. परंतु पो. Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांव चरित्र. ( ४७३ ) तानी कार्यसिद्दिमां अमारे पोतानी शक्ति जोकवी जोइए, बता ते कार्य सिद्धि न थइ तो पी तमे तो बोज. " पठी श्रीकृष्णनी श्राज्ञाथी पांचे पांवो रथ उपर बेसीने चाब्या अने तेम पोतानुं श्रागमन दूत मारफते पद्मोतर राजाने कहेवरायुं. पद्मोत्तर भूपति पण तुरत नगर बहार श्राव्यो. अति क्रोधातुर थयेला पद्मोत्तर भूपतिये पांवाने युद्ध करवा श्रावेला जोइ कांइक पोतानुं बल देखामीने एवी रीते सिंहनाद करचो के, जेथी तेनां तेजने नहि सहन करी शकनारा पांगवो कागमानी पेठे नासी जइ " प्रमारुं रक्षण करो ! रक्षण करो !!" एम कदेता बता बहु जयश्री कृष्णनो प्राश्रय करवा लाग्या . पक्षी " हे पांवो ! तमे चित्तमां जय न पामो ए कीमो म्हारी धागल कोण मात्र बे ?" एम कदीने जयंकर प्रकृतिवाला कृष्ण तुरत पद्मोत्तर राजा सामा थया. " अरे पारकी स्त्रीयोना संगने इवनारा दुराचारी पापी ! तुं क्यां atra ? हुं सर्व पुत्रादि सहित तने हवणां वातरूपे करूं बुं. अर्थात् मारी नांखुं बुं." श्रम कदीने कृष्णे सिंहनाद समान एक म्होटो एवो जयंकर शब्द करघो के, जेथी ते राजानुं सर्व सैन्य सिंहना जयथी हाथीयोनां टोलांनी पेठे नासी गयुं. कल्पांत कालना अमिनी पेठे प्रति क्रोध पामेला कृष्णने प्रावता जोइ बहु जयथी पद्मोत्तर राजा पण नासी गयो. टीकज बे, तेवा पुरुपोना प्रागल रदेवाने कोण समर्थ बे ? पद्मोत्तर राजाए, तुरत पोतानी नगरीमां पेसी दरवाजा बंध कराव्या एटले कृष्ण नरसिंहरूप धारण करी तेनी पाटल चाल्या. पद्मोत्तर भूपतिये दरवाजा बंध करेला जोइ पोतानां क्रोधरूपम आहुति श्रापवानी इच्छावाला कृष्णे पोताना पग प्रहारथी सर्व कील्लो तोमी पायो, पछी नगरीमां पेसी पोतानां प्रति जयकारी रूपथी सर्व जनोने बहु त्रास मारुता कृष्णे राजद्वारमां प्रवेश करचो. मदा जयंकर प्रकृतिने धारण करनारा ते कृष्णने पोताना अंतःपुरमां आवता जोइ बहु जय पामेला राजाए बीजा कोइने पोतानुं रक्षण करवा समर्थ न दीवाथी शैपदीनुं शरण लीधुं. कृष्णे शैपदीनी पासे गयेला पद्मोतर नूप तिने जोड़ क के, " अरे महा अपराधी पद्मोत्तर ! तुं प्रावुं म्होटुं कुकर्म करीने वली तेज ौपदीने शरणे गयो ? अरे अधम राजा ! जो तें या महासतीनुं शरण ६० Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) ऋषिमंमलवृत्ति-पूर्वाई. लीधुं, तो महा अपराधी एवाय पण तने हुं गेमी दनं चं, पण हवेथी आवं पाप करीश नदि." पनी त्यांची शैपदीने लक्ष कृष्णे पांमवोने अर्पण करी. पांमवो पण बहु हर्ष पूर्वक विस्मय पामीने कृष्णने प्रणाम करवा लाग्या. पातानी कार्यसिध्थिी अति प्रसन्न श्रयेला चित्तवाला कृष्ण पांचजन्य शंखनो शब्द करीने जेटलामां पांडवो सहित पाग वल्या तेटलामां तीर्थंकरनी सनामां बेठेला, नयनांत चित्तवाला अने महाशक्तिवाला ते दीपना वासुदेवे श्रीतीर्थकर प्रन्नुने पूब्यु के, "हे प्रत्नो! आवो सर्व बलने हरण करनारो पांचजन्य शंखनो शब्द कोणे करयो ?” वासुदेवनां आवां वचन सांजली तीर्थकर महाराजे कृष्णर्नु आगमन विगेरे सर्व वृत्तांत कही प्राप्यु. वासुदेवे फरीथी पूज्यु. “हे तीर्थनाथ ! हुं त्यां जानं तो मने तेमनुं मल अशे?". तीर्थपतिये कहूं. “तमारा एक बीजाना शंखनादयी शुं साक्षात् मलवू न कदेवाय ? अर्थात् कहेवाय.” पठी वासुदेव त्यांथी झट नमी कृष्णने मलवा माटे जेटलामा समुश्ने कांठे आव्या तेटलामा कृष्ण, समुने विषे बहु दूर जता रहा. धातकी खंमना वासुदेवे, कृष्णना रणनी ध्वजा जो चित्तमां बहु दर्ष पामीने पोताना पांचजन्य शंखनो शब्द कस्यो. कृष्णे पण पोताने मलवा प्रावेला धातकी खंमना वासुदेवने जाणी तेना सामो पोताना पांचजन्य शंखनो शब्द कस्यो: पठी देवना प्रत्नावथी न्दाना तलावनी पेठे समुन्ने नलंघन करी जागीरय। ( गंगा) ने कांठे आवेला कृष्णे पांमवोने तुरत का के, “ हे बांधवो ! प्रा. पणे या उध्य एवा समुज्ने नलंगी अहिं आव्या ते देवताना प्रत्नावर्नु खरु पवित्र कारण जाणो; पण हवे आ नदी आपणे रथोवमे तरवी अशक्य , माटे क्यांश्थी नत्तम होमी लइ आवो.” श्री कृष्णनी आवी आझाथी पा. भवो क्यांश्थी होमी लइ आव्या एटले फरी कृष्णे तेमने का के," तमे प्रघम आ दोमीश्री गंगाने पेले पार जान. पठी ते पानी म्हारे माटे ऊट मा. कलजो के, जेथी हुँ पण तुरत तेमां बेसी त्यां आवं.” पवित्र पत्नी सदित पांचे पांमवो “बहु सारुं” एम कहीने तुरत दोमीमां बेसीने चाल्या अन योमा कालमा दर्पथी गंगाना सामे कांठे गया. दवे अहिं पांमवो परस्पर विचार करवा लाग्या के, “आजे आपणे कृष्णनुं बल जोडए. कारण के, त । Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. (४५) पोताना नुजश्री गंगाने नतरी अहिं आवशे." आम धारी तेनए होमी पाठी मोकली नहि. बहु वखत अयो पण होमी भावी नहि; तेथी "शुं पांमवोने कं विघ्न तो नहि थयुं होय ?" एवा विचारथी आकुलव्याकुल श्रयेला कृष्ण जुजबलथी गंगाने तरता तरता मध्ये पाव्या, तेटलामां तेमना नाग्यश्रीज त्यां एक टेकरी आवी. योमीवार विश्राम लश्पगे गंगाने तरी जेटलामा सामे पार प, होज्या तेटलामांतेमणे पांमबोनेकुशल दीग. पोहर्षपामेला कृष्णे तेमने पूज्यु 'के, हे बांधवो! तमे आ होमी म्हारा माटे केमनमोकली?" पांमवोए हसीने कडं. “ अमे तमारा बलनी परीक्षा करवा माटे ते होमी न मोकली." पांमवानां आवां वचन सांजली बहु क्रोध पामेला कृष्णे कयुं. “अरे ! पद्मोत्तर राजाना नयथी नासी गयेला तमोए शुं त्यांज म्हारी परीक्षा नहोती करी? हवे तमारे म्हारा देशमा रहेवू नहि अने हुं तमारूं मुख नहि जोनं. " एम कही बहु कोपथी पांमवोना रोने नागी नाखी कृष्ण पोतानी धारका नगरीप्रत्ये चाल्या गया. पनी बहु खेद पामेला पांमको परस्पर विचार करवा लाग्या के, “प्रापणने धिक्कार छे ! जे आपणे आq अहित कार्य विचारयु. अत्यंत रोष पामेला कृष्णे आपराने पोतानी आझायी अर्थात् पोतानी आज्ञा वर्त्तती होय टेटला देशमाथी बहार काढ्या . तो दवे श्रापणे क्यां जq ? कारण के, अही (नरत क्षेत्रमा तो तेमनी आज्ञा वर्ने बे. सर्व यादवोने आपणी माता कुंती मान्य ने, माटे कृष्णने शांत करवा माटे तेमने मोकलीए. कडं ले के-पूज्यनु वचन दरिने पण मान्य होय .” पठी त्यां पोतानी माता कुंतीने बोलावी अने पोतानां कार्यनी वात करीने कृष्ण पासे मोकली. कुंती पण थोमा दि वसमां श्री कृष्ण पासे जर पदोची. नमस्कार, आसन नपर बेसार अने दिव्यन्नाव इत्यादिकथी कृष्णे बहु सत्कार करीने पनी पूज्यु के, “हे फो! तमे नचिंतां शा कारणे आव्यां गे?" कुंतीये कह्यु. “हे वत्स गोविंद ? बंधुरूप पांमवोने विषे क्यारे पण अहित नहि श्छनारा तमने तेमना नपर मनुष्योथी असह्य एवो बहु कोप शा माटे थयो ?" कृष्णे कडं. "हे माता ! मने आपना - पुत्रोने विषे शुं अहित होय ? परंतु एमरोज म्हारा नपर वहु यो कस्या ले तेज मने विरुप लागे जे अने तेज कारणथी में तेमने म्हारी आज्ञा वर्तती हो Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७६) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. य त्यां रदेवानी ना कही . हे फोइ ! खरेखर आ अनीतिरूप इष्ट वेलना फलनेज तमे जाणो." कुंतीये कद्यु. “पांमवोए बंधुरूप तमारी साथे दास्य करयुं हतुं, तेमां तमे आवं कृत्य मुग्धपणाथी करयुं . तमो म्होटा गे माये ते ते सर्व सहन करता आव्या गे, तेथी तमारान्हाना-नाश्योनो श्रा अपराध पण सहन करो, हे हरि ! अही नरतखममां सर्व स्थानके तमारी प्राज्ञा वती रही ले तो पनी पांमवो क्यां जशे ? तमे तेमने खरेखर मृत्युकारी आज्ञा करी. पांमवोनां मृत्यु पनी तुरत म्हारुं पण मृत्यु थशे अने तेथी तमने न्होटो पस्तावो अशे, माटे विचार करीने तेवी आज्ञा करवी मूकी द्यो. कडं ठे के-म्होटा पुरुषो विचास्या विना कांश पण कार्य करता नथी.” कुंतीनां आवां वचन सांजली कृष्णे कोप त्यजी दीधो. काने के-लोकमां म्होटा पुरुषो निरंतर गुरुनी आज्ञा माननारा होय . पी कृष्णे कयुं. “ हे मात ! में जे कां रे ते अन्यथी न होय, माटे तमारा पुत्रो त्यांज एक म्होर्दु नगर वसावीने रहो. वली अर्जुननो पौत्र (अन्तिमन्युनो पुत्र) परिक्षित पिताना पदे राज्य करो. हे मात ! आ म्हारी आज्ञा तमारा पुत्रोए क्यारे पण नलंघवी नहि. पनी कुंतीये कृष्णना आवा कदाग्रहने जाणी तुरत पोताना पुत्रो पासे आवीने ते सर्व वात कही. पांमवो पण कृष्णन कहेलुं सांतली बहु हर्ष पाम्या. सरल हृदयवाला पांचे पांमवो श्री कृष्णना बलथी धातकीखंगना अमरकंका नगरीना पद्योत्तर राजाने जीती अने हरण करेली पोतानी प्रिया । झेपदीने पाठी लावीने कृष्णनी झाथी गंगाने तटे नगर वसावी त्यां नरतर सुखेथी रहेवा लाग्या. इतिज्ञपिमफलरत्तो पांमवचरित्रेझपद्यपहारकधातकीखंमस्थामरककापूःपतिपद्मोत्तरजयशैपदीवालनादिवर्णननामाष्टमोऽधिकारः॥॥ पठी त्यां पांमवोए पासेना अनेक राजानने युइमां जीती पोतानां पू. बना सरखं राज्य करवा लाग्या. कांठे के-पुण्यवंत पुरुषोने सुखज मल. को वखते इर्पित चित्रवाला पांमवो सन्नामां वेग इता, एवामां जराकुमार न्यां प्रावीने तेननी पागल कौस्तुन्नमणि मूक्यो. पठी मणि जोवाथी उत्पन्न यली शंकावाला पांचोए तेने पूज्यु. "हे नाई! यऽपति (कृष्ण)नां हृदयस्थः Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांमव चरित्र. लने सुशोनित करनारो अने बीजा अनेक राजानथी पण अलच्य एवो आ मणि त्हारी पासे क्यांथी आव्यो ? कृष्ण, महा सुःखदायी एवं मृत्यु प्रयु के शुं?" जरा कुमारे कडं. “कोप पामेला देवताए नत्तम एवी धारकापुरी दग्ध करी, तेथी व्रष्ट थ ने संपत्ति जेनी एवा कृष्ण अने बलन बन्ने जणा तमने तुरत मालवा माटे आवता हता. रस्ते महावनमां कृष्णने बहु तरस लागी, तेथी ते एक लतावनमां वृदनी नीचे सूता अने बलन्न तेमना माटे जल लेवा गया. में वनमां नमता नमता हरिणना ब्रमथी सूतेला कृष्णने बाण मारयु, तेथी ते मृत्यु पाम्या, पोतानां बागथी विंधायला कृष्णने जाणी बहु खेद करता अने घाढ शोकथी व्याप्त अयेला मने कृष्णे कडं. "तें म्हारा वगने विंध्यो, पण तेथी खेद न कर; कारण जिनेश्वरनुं वचन वृथा थतुं नथी. निश्चे में श्रीजिनेश्वरनां कहेवाश्री जाण्यु डे के, म्हारूं मृत्यु आ बागवे दनायी थवानुं : माटे हवे तुं अहिंथी ऊट नासी जा. कारण जो हवणां, बलदेव पावशे तो तने तुरत मारी नाखशे.” में कडं. "हे बंधो! आQ घोर पाप करीने क्यां नासी जावं? वली म्हारूं नावी स्थान क्यों ?" कृष्णे का. "तुं आ कौस्तुन्नरत्न लश्ने फट पांमवो पासे जा अने तेमने तें आ करेला म्हारा मिथ्या अपराधरूप पापनी खबर केजे. तेन उत्तमपणाश्री तने इष्ट वस्तु आपशे, माटे तुं फट तेमनी पासे जा.(जराकुमार, पांमवोने कहे के,) हे नृपतियो! कृष्णनां जीवितपर्यंत बहु दुःख पामेलो हुं त्यांज रह्यो; परंतु तेमना मरण पनी दणाले आशा जेनी एवो हुं बलनना बहु नयने लीधे त्यांथी कट नासीने अहिं तमारी पासे आवतो रह्यो.” महावज्जपात समान कृष्णन मृत्यु सांजली गाढ शोक समूहथीप्राकुलव्याकुल अयेला पांडवो मूर्चा पाम्या बहु वखते शीतल वायुना योगथी तत्काल सचेत श्रयेला तेन दीर्घकाल पर्यंत खेद करीने पठी चित्तमां गाढ नत्पन्न श्रयेला वैराग्यने लीधे परस्पर कडेवा लाग्या के, “ धिक्कार ! धिक्कार !! आ संसारनी स्थितिने के, जेमां अंत वखते आवा पुरुषोनी पण आवी अशुन्न व्यवस्था थाय . निश्चे आपणे पण सर्व सुखसमूहना एक कारणरूप आ संसार त्यजी देवा योग्य छे.प्रा नवमां आपणने संसाररूप समुन्ने विषे वहाण समान श्री नेमिनाथ प्रन्नुना चरणो 1. पान.” पांमवो आ प्रमाणे विचार करता हता एवामां एम बन्यु Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७०) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. के, आ वखते शरणे आवेलानुं रक्षण करनारा श्री नेमिनाथ अनुए पांमवोने जैन दीक्षानो अवसर जागी तेमने प्रबोध पमामवा माटे पांच से साधुन सहित श्री धर्मघोष मुनिने मोकल्या. पनी मुनिने नद्यानमां आवला जाणीबहु हर्ष पामेला पांमवो परिवार सहित तेमने वंदन करवा गया. त्यां तेनए बहु आदरणी तेमनी मोहविनाशकारी धर्मदेशना सांजली. त्यारबाद प्रबोध पामेला पांडवोए आदरथी मुनिने पोताना नवो पूच्या एटले ते मुनिवरे ज्ञानश्री तेमना नवो जाणीने पनी तुरत मधुर वचनयी आ प्रमाणे केद्यं. “धरणीनूत नगरमां परस्पर प्रीतिवाला सुरति, शांत, सुदेच, सुनक अने संयुत नामना पांच बंधुन रहेताहता. एकदा दारिकरूप कादवमा अति निमग्न श्रयेला तेनए यशोधर सूरिनां मुखथी अतिहितकारी धर्म सन्निब्यो, ते श्री तेज नवमां विरक्त अयेला तेनए आदरथी अरिहंत धर्मर्नु आचरण करयुं. लोतानां शरीरने विषे पण निःस्पृह एवा तेनए अति नयंकर ननालाथी न. त्पन्न अयेला नत्तम तपरूप सूर्यना आकरा तापथी पोताना घाटा कर्मरूप तलावमाने योमा वखतमां सूकवी दीधां; जेथी तेन बहु शांत थया. त्यारपती तेनए पहेलो कनकावली नामनो तप कस्यो.बीजो मुक्तावली नामे,त्रीजो पण मुक्तावली नामनो तप करीने पठी चोयो सिंदनिकेत नामनो. एम अनुक्रमे चार तप कस्या. मेवट आंबिल पूर्वक वईमान नामनो तप करीने सुन्नक एवा नामनो तप कस्यो. आ प्रमाणे तप करता एवा तेन, पांच इंडियोने वश राखी पांच महाव्रतोने पालता इता. येवट पोतानां कर्मरूप देहने तेमज धातु रूप देहने तपरूप अग्निना तापथी शोषण करी अंते अनशनपूर्वक मृत्यु पामीने अनुत्तर वैमानमां श्रेष्ठ देवतान थया. त्यांची चविने महा बलवंत एवा तमो पांमवरूपे नत्पन्न अया गे. हे नरेंज्ञे! आ नवने विषे पण तमने म्होटो मोक्ष लक्ष्मोनो लान्न प्रशे." यशोधर मुनीश्वरना आवां वचन सांजली वैराग्यरसनी पूर्ण धयेला अने मोहलक्ष्मीनी चा करता ते पांमवोए पोताना राज्यने विपे जराकुमारने स्थापन करी पोते गुरुनी पासे चारित्र लीधुं. क. पागनी वात सान्नली जेनो यात्मा तीन तीन थइ गयो हतो एवी कुंतीये पण दीक्षा लीधी. पांच अन्निग्रहश्री सुशोनित एवा पांझवो, नाना प्रकारनां तप करवा लाग्या. चार ममिती, त्रण गुन्ति अने पांच महाव्रतोने धारण करन' Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पामव चरित्र. ( ४७५ ) पवित्र पांचे पांव विविध प्रकारे गुरुए कहेली शिक्षाने धारण करवा पूक प्रति निर्मल एवां चारित्रने पालवा लाग्या. दुर्दम एवा पांच इंडियोरूप श्वाने संवेगरूप दोरीथी बांधी लइ दुःकर्मरूप शत्रुनश्री जय पामता एवा 1 " नवकल्प विहार करवा लाग्या. घोर उपसर्गोने तेमज अत्यंत दुःसद वा परीषहोने सहन करता एवा पांरुवोरुप मुनीश्वरो चार प्रकारना देवता॥ पण अत्यंत श्रोत्र्य यया. नजयंत ( गिरनार ) उपर श्री नेमिनाथने सनवसरेला जाली नक्तिथी नचलती पुलकावलीने धारण करता एवा पांवो तेमने वंदन करवानी इहाथी ते पर्वत तरफ चाल्या. अनुक्रमे पांवो विहार करता जेटलामां हस्तिनापुर प्रत्ये श्राव्या तेटलामां तेमले माणसा पासेश्री श्री नेमिनाथ प्रजुनी गरिष्ट एवी मोक्षगति सांजली. पढी बहु खेद पामेला सांगवी, विचार करवा लाग्या के, " आपणने धिक्कार बे, जे जगत्ने नमकार करवा योग्य श्री नेमिनाथ प्रभुने आपले प्रमादने सीधे वंदना करी क्या नहि. हवे आपले था पाउल रहेला देहवमे शुं कार्य बे ? माटे चार प्र कारना हारने त्याग करी तुरत कुकर्मनो कय करीए. " आम विचार कहरीने पबी पांरुवो, गिरनारने प्रदक्षिणा करी शत्रुंजय तीर्थ प्रत्ये आल्या. त्यां ते कुंती सहित, सर्वकर्मनो कय करी अनंत सुखवाला सिद्धिपदने पाम्या. शैपदी पण शुद्ध एवां चारित्रनुं आचरण करी पांचमा देवलोकनुं दीर्घकाल पर्यंत सुख जोगवीने निश्वे तेज जवमां मनुष्योना महोदयने पामशे. जराकुमारनां मुखश्री श्री कृष्णना मृत्युने सांजली स्पृष्ट उत्पन्न श्रयेला वैराग्यवालापांचे पांवो पोताना पूर्व जवने सांजलीने वैभव त्यजी दइ कुंती सहित शत्रुंजय पर्वत पर सिद्धिपद पाम्या. शैपदी पण पांचमा देवलोक प्रत्ये इ. इति कृषिमंगलवृत्तौ द्वितीयखमे श्रीपांमवचरित्रे पांवमोक्षगमननाम नवमोऽधिकारः ॥ ॥ इतिपांमवचरित्रं समाप्तम् ॥ १ ॥ इति शषिमंगलवृत्तौ पूर्वार्धं समाप्तम् ॥ Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ ग्रंथमा दृष्टिदोषणी थयेली नूट्योशुद्धिपत्र. बैठेला पृष्ट. पंक्ति. अशुद्ध. शुद्ध. 4 6 घनसार्थपतिनो धनसार्थपतिनो 12 25 रत्नकंवनी रत्नकंबलनी 1310 उकृष्ट उत्कृष्ट 15 22 चंक्षुकांता चक्षुकांता 17 15 विगेरना विगेरेना 19 4 विगेरना विगेरेना 21 11 केवलज्ञानं केवलज्ञान 23 5 तप ताप 37 13 पुष्पने 42 5 ध्यानमा ध्यानमा 1925 उपसर्ण उपसर्ग 53 2 तेसने तमने 88 7 ज्वलनटी ज्वलनजटी 135 26 विधानवालो निधानवालो 214 3 तेने तने 231 14 भारतने भरतने 234 19 ते ते 245 1 लोकोपवादने लोकापवादने 245 6 अपवादन अपवादने पुण्यने ___ पृष्टः पंक्ति. अशुद्ध. शुद्ध 245 15 सुकृतवंतवंघो सुकृतवंतबंधो 246 14 तेन तेने 264 25 जनकरात्री जनकपुत्री 278 21 तापस्वीपोमां तपस्वीयोमां 286 1 बधुओनो बंधुओनो 291 12 देव देवे 294 9 वेठेला 301 3 पुरुषोन पुरुषोने 316 17 दुर्दर 319 15 शन्नुओए शत्रुओए 351 23 नैमित्तिक नैमित्तिके 382 28 पोतज पोतेज 404 11 राज्यसन राज्यासन 407 12 पुत्रीने पुत्रने 408 21 कारैवपक्षीने कोरवपक्षीने 418 23 तिस्कार तिरस्कार 441 5 दीघी दीधो 462 14 पीतानो पितानो