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ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई.
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नेमिनाथ प्रभु
ज संख्यावाली स्त्रीयोनी साथे विलास करता हता. आ अवसरने विषे श्री ते नगरीना नद्यानने विषे समवसस्या जितशत्रु राजा परिवार सहित तेमने वंदन करवा गयो. तिलकयशादि व पुत्रो पण श्रीजिनेवरना आगमनाने सांगली बांधवोनी साथे हर्षित थया बतां पोतपोतानी म्होटी संपत्तिश्री नयानने विषे समवरणमां गया. त्यां शुरू जाववाला तेन पवित्र विधिश्री जिनेश्वरने प्रणाम करीने प्रभुना सन्मुख दृष्टि राखी योग्य आसने बेवा. प्रभु पर्षदामां अमृत समान वाणीवमे धर्मोपदेश प्राप्यो पी लोको धर्मने अंगीकार करी पोतपोताने घरे गया. तिलकयशादि व कुमारो पण जिनेश्वरनी देशनाथी वैराग्यने पाम्या बता प्रजुने नमस्कार करी चारित्र लेवानी बुद्धिश्री पोताने घेर गया. पी पोतानो संकल्प पार पारुवामां तत्पर एवा ते बए पुत्रो विषयसुख, लक्ष्मी, स्त्री ने प्रेमादि सर्वने अति कष्टकारी जीने महा आग्रहथी मातापिताने प्रबोध पमामी ने पोताना पगनां रजनी पेठे कोटि व्यने पण क्रीमामात्रमां त्यजी दइ श्री नेमिनाथ प्रभु पासे नावधी दीक्षा लीघी. वली तेनए तेज दिवसे प्रभु पासे एवो घोर अनिग्रह लीधो के, "मारे जीवित पर्यंत अखंमितरीते बनो तप करवो.” पबी उपशम रसथी पूर्ण हृदयवाला ते व मुनियो अनुक्रमे बार पूर्वनो अभ्यास करी निरंतर श्री नेमिनाथ प्रभु साधे विहार करवा लाग्या.
कोइ वखते कोटि देवतान जेमनां चरणकमलने वंदना करी रह्या बे एवा श्री नेमिनाथ जिनेश्वर तिलकयशादि ब मुनियोनी साथे विहार करता करता श्री गिरनार पर्वतना म्होटा उद्यानमां समवसस्या, वनपालनां मुखश्री श्री नेमिनाथनां श्रागमनने सांगली वलन सहित कृष्ण श्रानंदथी त्यां समवसरणमां श्राव्या. कृष्ण जिनेश्वरनां मुखश्री संसारना जयने नाश करनारी देशना सांजलीने धर्ममां अधिक श्रद्धावंत या वतां फरी पोतानी नगरी - रका प्रत्ये गया. पठी बहाना पारणे तिलकयशादि व मुनियो, वे पोरसी पूर्ण थया पठी पहिलेहल करेलां वस्त्र पात्रने लS हाथ जोमी ने श्री नमिनाथने नमस्कार करने कहेवा लाग्या. “हे प्रभो ! श्रमेव ज एकता ने हारका नगरीमां गोचरी माटे जए वीए. " पठी " तमारे सावधानपणाश्री जवुं.” एवां प्रजुनां वचनमंत्रने अंगीकार करी तेन विधिपूर्वक