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ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्ध.
उद्यानपालके नगरमां वीरप्रजुना आगमननी वधामणी श्रापी; तेथी नगरना सर्व लोक तेमने वंदन करवा चाल्या. सुदर्शन शेठ पण गया. ते अवसरे प्रजुए संनामां सर्व लोकना हितने माटे एक समयथी आरंभीने दश सागरोपम सुधीना कालना प्रमाणनुं वर्णन करयुं. ते सांगली विस्मयवंत थयेला सुदर्शन शेठे पूवयं के, " हे स्वामिन् ! जेनने या सागरोपम काल को गतिमां व्यो होय तो ते शी रीते कय थाय ? " प्रनुए कयुं. “ पूर्वे तें एटलो काल अनुभव्यो बे. तुं पूर्व जवने विषे ब्रह्म देवलोकमां दश सागरोपमना श्रायुष्यवालो महावलनो आत्मा देवता हतो. " प्रजुना आवां वचन सांजली तत्काल पूर्वभवना जातिस्मरणने लीधे वैराग्यवंत थयेला सुदर्शन शेठे प्रभु पासे चारित्र लीधुं. पठी पोताना कार्यने जागनारा सुदर्शन मुनिये अनुक्रमे चौदपूर्वनो अभ्यास, 'करी केवलज्ञान मेलवी मुक्तिपद अंगीकार करयुं.
( या ग्रंथकर्ता श्री शुभवर्द्धन गणी कहे बे के) दे' नव्यजनो ! में पापने नाश करनारुं या महाबलनुं चरित्र पोताना अने परना उपकारने माटे संदेपे कह्युं बे; परंतु विस्तारे जागवानी इवावाला विद्वान् पुरुषोए तें चरित्र पांचमा अंगी (जगवती सूत्रयी) जाणी लेवुं.
॥ इति श्री महाबल चरित्रम् ॥
॥ प्रथ प्रष्ट बलदेव चरित्राणि ॥
पयरय मित्ररऊसिरिं; उनि गहिवर प्रयतपमुहे ॥ छवि बलदेव रिसी, नमामि निवाणमपत्ते ॥१२॥
अर्थ-पगने विषे चोटेली रजनी पेठे राज्यलक्ष्मीने त्यजी दइ चारित्र अंगीकार करी मोक्षपद प्राप्त करनारा अचल विगेरे (अचल, विजय, जई, सुन, सुदर्शन, आनंद, नंदन, अने पद्म) आठ बलदेव मुनियोने नमस्कार करूं बुं. १२ ए गायानो विशेषार्थ तो चरित्रोश्री जाली लेवो. वली अचल चरित्र श्री शांतिनाथना चरित्रमां श्रावी गयुं वे, माटे ते त्यांथी जाली लेवें अने विजय चरित्र अड़ियां संक्षेप मात्रश्री कहे ठे.
॥ श्री विजय बलदेव चरित्रम् ॥
आ जरतक्षेत्रना पश्चिम महासमुडने कांठे लक्ष्मीने क्रीमा करवानांम