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श्री
बलदेव चरित्र.
( १४९५ ) नोहर कमल सरखी द्वारका नामनी नगरी बे. त्यां रामना समान कां तिवालो ने जेनो यशसमूह विश्वमां प्रसरी रहेलो हतो एवो ब्रह्म नामे रा• जा राज्य करतो हतो. तेने गुणोये करीने म्होटी तथा प्रिय प्रने श्रेष्ट एवी सुन राजानी पुत्री सुना नामनी स्त्री इती. तेनने बलवंत एवो विजय नामे बलदेव पुत्र दतो. वली ते ब्रह्मराजाने उत्कृष्ट नाग्यनी भूमीरूप बीजी माना स्त्री इती. तेने वासुदेवना पदने योग्य एवो छिपष्टक नामे पुत्र इतो. ज्यारे या बन्ने पुत्रो युवावस्था पाम्या त्यारे ब्रह्म भूपतिये तेनने राज्य आप पोते सत्य एवा ब्रह्मज्ञानने माटे चारित्र लीधुं पढी सर्व कलामां कु शल एवा महाबलवंत हिपृष्टे तारक नामना प्रतिवासुदेवने युद्धमां जीत्यो. व ली तेथे जमला दाय वमे कोटिशिला नामनी महाशिलाने उपामी दमानी माफक पोताना मस्तक सुधी उंची करी. ते उपरथी अर्धा भरत क्षेत्रनां सोल इजार राजानए एकाता था महोत्सवपूर्वक छिपृष्टने वासुदेवनो अभिषेक कa. श्वेत कृष्ण के शरीरनी कांति जेमनी एवा अने सीतेर धनुना देवाला ते पृष्ट अने विजय बने जाइयोए दीर्घकाल सुधी राज्य नोगव्युं. बोंतेर लाख वर्ष पर्यंत पोताना प्रायुष्यने पूर्ण करी घोर पापना नद हिपृष्ट मृत्यु पामीने बडी नरके गयो. पढी पोताना बंधुना वियोगथी दुःखी यता विजय बलदेवे सर्वथा राज्यने विषे स्पृहारहित यह वैराग्यथी दी - कालीधी. राज्यलक्ष्मीने त्यजी दइ चारित्र अंगीकार करनार ते श्री विजय नामना बलदेव पोतानुं पंचोतेर लाख वर्षनुं सर्व आयुष्य पूर्ण करी चारित्र पालवावमे केवलज्ञानने प्राप्त करी अंते कर्मकयथी संसारना जयने भेदी नाखनारा परमानंद रूप निर्वाण पदने पाम्या.
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॥ इति श्री विजय बलदेव चरित्रम् ॥
॥ अथ श्री
बलदेव चरित्रम् ॥
श्रा जरतक्षेत्रनी द्वारका नगरीने विषे क्रूर एवा शत्रु भूपतियोनो नादा करवाने प्रगट पराक्रमवालो रुप नामे राजा राज्य करतो दतो. तेने अत्यंत रूपवती एवी सुप्रजा नामनी पट्टराणी हती. तेने महाबलवंत एवो नइ ना