________________
श्री शांतिनाथ चरित्र.
●
प्रिये
तरी सर्वे राजानने जोवा लागी सर्वे राजानने जोया पनी त्रिपृष्टनी पुत्री कीर्तिना पुत्र प्रमिततेज कुमारना कंठमां वरमाला पहेरावी कीर्तिनी पुत्री सुताराये त्रिपृष्टना पुत्र विजयना कंठमां वरमाला पहेवी. ते श्रवसरे विद्याधरो, राजान ने बीजा माणसो हर्ष पामता वतां "सारुं री ! सारुं वरी !!” एम म्होटा शब्द करवा जाग्या. पी त्रिपृष्टे अने अर्ककीर्तिये जा सर्व राजानने सत्कार करी रजा आपीने पोतपोतानी पुत्रीनो विवाह यो पी कीर्ति ज्योतिमना ( पोताना पुत्र प्रमिततेजनी वहु ) ने साये ने पोतानी पुत्री सुताराने त्यां त्रिपृष्टने घेर मूकी पोताना नगर प्रत्ये प्राव्यो. केटलाक दिवस पक्षी वैराग्यवंत श्रयेला तेथे मुनि पासे चारित्र लीधुं. वे त्रिपृष्ट वासुदेव मृत्यु पाम्या पबी कोइ वखते श्री श्रेयांसनाथना शिष्य सुवर्ण कुंन नामना मुनि परिवार सहित पोतनपुरे ग्राव्या. मुनिने ग्रान्या जाली त्रिपृष्टनो भाइ अचल (बलदेव) तेमने वंदना करवा गयो. यांत प्राचार्यने नमस्कार करी योग्य स्थानके बेसी मोहनिशने नाश करनारी धर्मदेशना सांजली. पबी अवसरे ते मुनिने पूब के, " हे जगवन् ! विमां प्रख्यात गुणोए करीने म्होटो एवो म्हारो न्हानो जाइ त्रिपृष्ट वासुदेव क गति पायो बे ?” मुनिये कां. " हे राजन् ! पंचेंयिनो वध कर मां प्रीतिवाल ने महा आरंभ करवामां सावधान एवो ते क्रूर व्हारो न्दातो जाइ त्रिपृष्ट वासुदेव मृत्यु पामीने सातमी नरके गयो बे.” मुनिनां प्रावां वचन सांजली स्नेही मोद पामेलो प्रचल विलाप करवा लाग्यो के, “विश्वमां वीर एवा हे धैर्यधारी जाइ ! व्हारी या शी गति थइ ! ! ! गुरुए कहूं. “दे राजन् ! तुं शोक न कर. पूर्वना जिनेश्वरोए कांबे, ते सांगल. ए व्हारोजाइ जरतत्रने विषे बेल्लो तीर्थंकर थशे.” मुनिनां आवां वचन सांली चले (बलदेवे ) विजयने राज्यासन उपर बेसारी ने विजयन ने युवराज पी पी पोते तेज सुगुरु पासे दीक्षा लीधी.
पबी एक दिवस सनामां वेठेला विजयराजानी पासे द्वारपाले आवीने विनंती करी के, “हे प्रभो ! थापना मंदिरना बारणा पासे आपने मलवानी ा करतो एवो कोई निमित्तियो नो बे, ते अहिं श्रावे के पाो जाय ? ” राजा तेने प्राववानी रजा आपी एटले निमित्तियो सभामां प्रावी राजाने
१२
(NA)