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ऋषिमंगलवति - पूर्वा ६.
अने तेनुं प्रमिततेज नाम पाम पढी अर्ककीर्तिना पिता ज्वलनजटी धरे अभिनंदन सुनि पासे दीक्षा लीधी. त्यार पछी कपिल ब्राह्मणनी स्त्री सत्यनामानो जीव पहेला देवलोकथी चवीने ज्योतिर्मालाना नदरने विषे प्रक कीर्तिनी पुत्रीपणे उत्पन्न ययो. माताये स्वप्नामां तारानथी सुशोभित रात्री दीवी हती, तेथी ते पुत्रीनुं सुतारा नाम पामधुं अनुक्रमे ते पुंत्री युवावस्था पामी. दवे श्रीपेराजानी स्त्री अभिनंदितानो जीव पहेला देवलोकश्री चवीने त्रिपृष्टनी स्त्री स्वयंप्रना के जे ज्वलनटी विद्याधरनी पुत्री हती तेना नदरने विषे पुत्रपणे अवतस्यो. माताये स्वप्नामां महालक्ष्मीनो अभिषेकोत्सव दीगे हतो; तेथी ते पुत्रनुं 'विजय' एवं नाम पामयुं. स्वयंप्रनाये बीजापण एक पुत्रने जन्म आप्यो. तेनुं नाम विजयन पामयुं, बेवट सिंहनंदितानो जीव स्वर्गश्री चवी त्रिपुष्टनी ज्योतिप्रज्ञा नामनी पुत्रीपणे उत्पन्न थयो. पनी ते पुत्री ज्यारे अनुक्रमे म्होटी यइ त्यारे तेनो स्वयंवर मंरुप करी त्रिपृष्ट वासुदेवे दूत मोकली अनेक राजानने तेमाव्या.
श्रवखते
कीर्तिये कां कार्यमाटे पोताना प्रधानने त्रिपृष्ट वासुदे
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व पासे मोकल्यो. ते प्रधान त्रिपृष्ट पासे यावी हाथ जोमीने कहेवा लाग्यो के, 'हे देव ! जो आप आज्ञा आपो तो अमारा राजा प्रर्ककीर्तिनी पुत्री सुतारा पण या तमे रचेला स्वयंवरमां एकठा ययेला राजानमांथी पोताने इछित वर वरे. " प्रधाननां यावां वचन सांजली हर्ष पामेला त्रिपृष्ट वासुदेवे कह्युं. “हे प्रधान! तमारे अर्ककीर्ति राजाने कहेवुं के म्हारे तेमना अने म्हारा घरमांकां अंतर नथी. " पवी पुत्रीने साथे लइ प्रमिततेज पुत्र सहित - र्ककीर्ति राजा त्रिपृष्ट बासुदेवना पोतनपुर श्राव्यो. त्यां तेनो त्रिपृष्टे बहु श्रादर सत्कार कस्यो. पवी त्रिपृष्टे स्वयंवर मंरुप रचावी तेमां जूदा जूदा नामवाला सिंहासनो मूकाव्यां. तेमां सर्व राजान पोतपोताने सिंहासने वेग अने त्रिपृष्ट तथा चल ए वन्ने जाइयो स्वयंवरना मध्यमागे रहेला पोतानां सिंहासन नपर वेग.
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या वखते स्नान करी श्वेत वस्त्रने धारण करवाथी सुशोभित बनेली, - ज्वल अंगराग ने पुष्पमालाथी मनोहर देखाती, म्होटी पालखी म्ां वेठेली, बन्ने त्राजुये चामरोश्री विंजाती, ज्योतिः प्रन्ना ने सुतारा वन्ने कुमारीयो स्वच उतरेली देवकन्यानी पेठे स्वयंवर मंरुपमां ग्रावीने पालखीमांथी नीचे