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________________ (४५०) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वार्ध. नीमसेने " हुं त्हारो दास अने म्हारी सर्व संपत्ति तने आपीश.” एम् नचार करता एवा सुशर्माने बलात्कारे बांध्यो. पली बहु हर्ष पामेला विराटराजाए युधिष्ठिरनी साथे पांमवोनी कथा करता उता सैन्य सहित महोत्सवपूर्वक ते रात्री त्यांज निर्गमन करी. हवे अहिं बीजे दिवस सवारे गोवालो सर्व गायोने नत्तर दिशामां च. रावा माटे ल गया. त्यां पण विराटनगरनी नजीकमां पमाव करीने रहेला, विचार विनाना जुर्योधने ते गायो, हरण करयु. गोवाले तुरत अंतःपुरमांत्रावीने नत्तराकुमारने गायोना हरणनी वात कही. पी कुमार पोतानी माता अने स्त्रीनी आगल कहेवा लाग्यो के, " हे मात ! हवणां हुं शीरीते युः६ करवा जावं ? कारण मारे तेवो को सारथी नथी के, जेथी हुँ एकलो पण सिंहनी पेठे ते कौरवोना सैन्यने मारी ना.” उत्तराकुमारनां आवां बलातिशयनां वचन सानली तुरत पदीये इर्ष्या सहित कयु के, “ हे कुमार! हारी व्हेनने कलाननो अन्न्यास करावनारो जे वृहन्नट नामे पावश्न ले ते त्हारो सारथी श्रवाने योग्य ." पनी कुमारे पोतानी व्हेनने मोकली वृहनटने तेमाव्यो अने तेनी पासे बहु प्रयासथी पोता, सारथीपणुं कबुल कराव्यु. जो के पोते बहु जाग बतां प्रथम अवलु कवच धारण करी स्त्रीयोना स: मूहने हसावतो तेअर्जुन पाठलथी तुरत सवली रीते पहेरी कुमार सहित रथमार बेगे. अर्जुन पूर्वे अन्न्यास करेली कलानवमे पोताना रथने कौरवोनां सैन्य पाले लइ गयो. त्यां नयंकर सैन्यने जोश उत्तराकुमार बहु जय पाम्यो सेथी ते पोताना सारथी वृहन्नटने कहेवा लाग्यो के, “हे महानुन्नाव ! तुं म्हारा रथने ऊट पाठो वाल! पागे वाल!! कारण के, हं आ महा समुन्ना सरखा नचलता नयंकर सैन्यने जोवा समर्थ नथी." अर्जुने हसीने कपु. " अरे कुमारवीर ! तुं म्होटा राजवंशमां नत्पन्न भयो बं. वली पोतानी माता अने स्त्रीनी पासे एवा शूरवीरपणानां वचन कहेतो हतो अने हवणां आबुं दी. नवचन केम वोले ठे ? साम्राज्यपदना लानने अर्थे महा घोर युः करनारा सुचटोनुं जीवित आलाकमां यशने अर्थे अने मृत्यु परलोकमां देवांगनाना सत्कारने अर्थे श्राय ." पठी “ वीरपुरुषोने मृत्युन फल कीर्ति ने, बीजाने नहि.” एम कहीने नासी जवानी श्चावालो नत्तराकुमार रथ नुपर
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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