SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __ श्री शांतिनाथ चरित्र. . (१२५) सर्वे देवतान प्रन्नुने वंदना करी पोतपोताने स्थानके गया. . श्री शांतिनाथ प्रन्नुने श्रुतसमुनो पार पामेला, सर्व प्रकारनी लब्धिवासा अने चार झानना धारणहार एवा चक्रायुध विगेरे उनीश गणधरो हता. पवित्रमनवाला बासठ हजार साधुन तेमज एकसठ हजार अने सोथी कांश्क अधिक साध्वीयो हती. वली बे लाख नेQ हजार श्रावक तथा त्रणलाख प्राणुं हजार श्राविका हती. आठ हजार चौद पूर्वधारी, त्रण हजार अवधि शानि, चार हजार मनःपर्यवज्ञानी अने चार हजार नपर त्रासो एटला के. वलज्ञानि तेमज उ हजार वैक्रियलब्धिवाला मुनि अने बे हजार चारसो वादी साधु ए प्रमाणे प्रनुनो परिवार हतो. चालीश धनुष्य नंचा शरीरवाला श्री शांतिनाथ प्रनुए नव्यजनरूप कमलने एक वर्ष नग एवा पञ्चीस हजार वर्ष सुधी प्रतिबोध पमामयु. ज्यां ज्यां प्रन्नु विहार करता त्यां त्यां योजन प्र. माणनूमि सुगंधमय अती. सर्व ऋतुना फुल फलोश्री वृदो सुशोनित यता तेमज सर्वे प्राणीयो स्वान्नाविक वैर त्यजी दपोतपोतानां कार्य करवामां तत्पर अता. वली उर्मिद,मरकी, वैर, स्वचक्रलय, परचकनय, नपश्व, रोग,शोक अने विघ्नना समूह विगेरे सर्व नाश पामतुं हतुं. वली जिनेश्वरनां वचनथी दान अने दयामां तत्पर श्रयेला सर्वे राजान सर्वेमाणसोने सेवा करवा योग्य श्रया एटलुंज नहि पण केटलाक प्रतिबोध पामेला राजानए दीक्षा लीधी अने केटलाके परिग्रह परिमाण लीधुं. वली ब्राह्मण, कत्रीय, वैश्य अने शुज्ञेए प्रतिबोध पामीने विषयनी श्वा नहि करता उता संग त्यजी दा दीक्षा लीधी. जेन साधुपगुं पालवा समर्थ नहोता तेमणे श्रावक धर्म आदरयो. - ा प्रमाणे सोलमा श्रीशांतिनाथ जिनेश्वर पृथ्वी पर विहार करता करता संमेतशिखर पर्वत नपर गया. त्यां तेमणे नवसो साधु सहित विधियी एक मासर्नु अनशन लइ जेठ मासनी अंधारी तेरसने दिवसे नरणी नक्षत्रमा चंनो योग बते मोक्षपद मेलव्युं. ते वखते देवतानए त्यां आवी तेमनो मोकोत्सव करी नंदीश्वरहीपे नत्सव कस्यो. पळी चक्रायुध गणधर पण अनेक साधुन सहित पृथ्वी नपर विहार करता उता बहु नव्यजनोने प्रबोध करवा लाग्या. तेमणे पण घाती कर्मनो नाश करी केवलज्ञान मेलव्युं. त्यारपछी देवतानए पूजन करेला ते केवली पृथ्वी नपर विहार करता करता कोटिशिला
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy