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ऋषिमंगलवत्ति - पूर्वा है.
बेठी. वाव्य खूणामां ज्योतिष्क, जुवनपति ने व्यंतर देवता बेग. ईशानखणामां वैमानीक देवता, मनुष्य अने मनुष्य स्त्रीयो ए सर्वे बेगं. बीजा गढना सर्व नागमां मत्सर रहित एवा सर्वे तिर्यचो बेगं अने त्रीजा गढ़मां सर्व स्थानके सर्वे वाहनो वेगं.
हवे कल्याण नामना पुरुषे चक्रायुध राजानी पासे श्रावीने प्रजुने केवलज्ञान उत्पन्न थयानी वधामणी आपी. राजा चक्रायुध पण परिवार सहित समवसरणमां जड़ जिनेश्वरने स्तुति करवापूर्वक नमस्कार करी हाथ जोमी -
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मना सन्मुख वेो. पबी जगवाने मधुकीराश्रव लब्धिश्री युक्त अतिशयचाली वाणीथी धर्मदेशना आपी के, "हे राजन् ! तें महाराजपणाना तेजथी लोकमां रहेला शत्रुने जित्या े, परंतु पोताना देदने विषे रहेला इंडियरूप शत्रुन जित्या नथी. वली ज्यां सुधी ते शत्रु जिताला नथी त्यां सुधी शब्द, रूप, रस, गंध ने स्पर्शरूप विषयो वहु अनर्थ करनारा थाय बे. जेवा के, श्रोत्रेयिने वश थयेलां दरिलो कान लांबा करी पारधीनां गीतने सांजलवा - मां तत्पर या वतां मृत्यु पामे वे चकुरिंडियने बश थयेलो पतंग सुवर्ण समान देदीप्यमान दीवानी शिखाने जोतो तो तेमां पापात करी परलोक जाय वे वली रसना इंडियथी जितायला मांग्लान अगाध जलमा रह्या बतां पण मांसपेशीना रसना स्वादने विषे लालचु बनीने मृत्यु पामे बे. घ्राण इंयिने वश थयेलो मर पण हाथीना मदने संघवानी इवा करतो तो महा दुःख पामे वे अथवा मरण पण पामे वे तेमज हायणीना अंगने स्पर्श कर वानी इवावालो गजराज आलान स्तंन साथे वंधाइने तीक्ष्ण अंकुशनो मार सहन करे वे. आवा तु विषयोने उत्तम पुरुषो क्षण मात्रमां त्यजी दे बे."
प्रजुनो वो धर्मोपदेश सांजली जेम दरिशी माणस जंकार जोइ दर्ष पामे ते सर्वे मासो दर्प पाम्या ने तेमांयी केटलाके वैराग्यवंत थश्ने - संख्य दुःखनो नाश करनारी दीक्षा लीधी. केटलाके श्रावक धर्म आदरघो अने केटलाके सम्यक्त्व धारण करयुं. वली तीर्थपति एवा पिताना वचन सांजली चक्रायुध पण तुरत वैराग्यवंत थयो, तेथी तेथे वापरवाथी करमाइ गयेली पुष्पमालानी पेठे राज्य लक्ष्मीने त्यजी दर बहु राजान सहित पितानी पासे चारित्र लीधुं. श्रीशांतिनाये पण तेने प्रथम गणधर पद प्राप्यं. पटी