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ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई.
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परिवार सहित सर्वे स्थविर साधुउने वंदना करी चारु नामना पर्वत नपर गया, त्यां नत्कृष्ट एवा चारित्रने पालवामां तत्पर एवा ते साते साधुन भूमीनुं शोधन करी संलेखनामां तत्पर पर शिलातल नपर बेग, पबी ते सर्वे मु नीश्वरो वे मास पर्यंत अनशन व्रत पाली मृत्यु पामीने जयंत नामना अनुत्तर देवलाकमां देवताप उत्पन्न थया. त्यां महाबल देवतानुं बत्रीस सागरोपमनुं पूर्ण प्रायुष्य दतुं श्रने बाकीना व देवतानुं वत्रीश सागरोपमधी कांइक आयुष्य हतुं; तेथी ते बए देवतान, पोतानुं श्रायुष्य पूर्ण श्रये महाबल देवने त्यांज मूकी जंबुद्दीपना प्रा भरत क्षेत्रने विषे राजपुत्र तरिके जूदा जूदा नत्पन्न या. अनुक्रमे तेन साम्राज्य लक्ष्मीने योग्य एवी यौवनावस्था पाम्या. तेनुमां एक कोशला नगरीनो राजा प्रतिबुद्धि नामे यो दतो, बीजो श्रंगापुरीनो महाराजा चंवाय थयो, त्रीजो काशीनो भूपाल शंख थयो हतो, चोश्रो शंखना सरखी नज्वल कीर्त्तिवालो कुणाल देशनो अधिपति रुक्मी थयो दतो. पांचमो कुशदेशनो अदीनशत्रु नामे नृपति यो हतो ने बठो पंचालदेशनो महाराजा यथार्थ नामवालो जितशत्रु थयो दतो. श्रा प्रमाणे एबए राजानु, विशाल संपत्तिथी समृद्धिवंत एवां पोताना विस्तारवंत राज्योनुं पालन करता बता पूर्वना पुण्ययी स्वर्ग समान सुख जोगवता हता.
॥ इति श्री मल्लिचरित्रे पूर्वजवस्वरूपवर्णनोनाम प्रथमः सर्गः ॥
पूर्व जवना व मित्रारुप नृपतियोना किल्लामां रहेला कामदेवरुप सिंहने जेसे एकज बागथी जीत्यो बे, ते व्याधोमां सुनटरूप श्री मल्लिनाथ जिनेश्वर जयवंता वर्तो.
था जंबूड़ीपना दक्षिण भरत क्षेत्रने विषे समृद्धिश्री स्वर्गपुरी समान मि. थिला नामनी नगरी वे. त्यां त्रानुवनमां प्रसिद्ध यशवालो तथा शंकरना समान पराक्रमवालो कुंभ राजा राज्य करतो हतो. तेने उत्तम शीलवाली, दयावन अने यथार्थ नामने धारण करनारी प्रभावती नामनी स्त्री हती. दवे जयंत नामना देवलोकमां महासुखनो अनुभव करतो महाबल देवता अवधिकानथी पोतानुं श्रायुष्य पूर्ण श्रयं जाएगी चैत्र मासनी शुकल चोथनी रात्री ये योग प्राप्त यये ते ते पांचमा देवलोकी चवीने प्र
मिनी नत्रमां