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________________ ( ३०६ ) ऋषिमंगलवृत्ति-पूर्वाई. आधाररूप वे." एवो पोताना चित्तमां निश्चय करीने वहाना एकांत प्रदेशमां गयो, त्यां ते विधिश्री ढींचणवमे बना रहीने मस्तक नपर हाथ जोमी श्री अरिहंत प्रजुने स्तुतिपूर्वक नमस्कार कस्यो. पबी ते अर्हन्त्रक श्रावके श्राराधना करीने विधिथी सागारीक अनशन कर के, " जो था उपसर्गथी नियमे करीने म्हारुं मरण थाय तो में वाह्य श्रने अंतरंगरुप सर्वे संग त्यजी दीधा तथा म्हारो कायोत्सर्ग विशेष जावथी या जन्मपर्यंत यान में धन कुटुं वादिकने विषे सर्व प्रासक्ति त्यजी दीधी बे, वली म्हारे श्र जन्मने विषे सर्वे जीवने विषे मैत्रीभाव हो. 33 पची कालना समान कोपथी जयंकर प्राकृतिवाला वैताले अर्हन्नक श्रा चक पासे प्रवीने भृकुटी चावीनें कां. “ अरे दुष्ट श्रात्मावाला कुमति ! तुं श्रा वृथा पाखं शामाटे करे वे ? जैनधर्म त्यजी दे अने प्रयत्नश्री मिथ्यावने अंगीकार कर. अरे ! जो तुं म्हारुं कर्तुं नहि करे तो आ त्हारा वहाणने म्हारी यांगलीना तीव्र प्रहारथी समुइमां फेंकी पापमनी पेठे चूर्ण करी नाखीश. हे जम ! तुं खरेखर पोताना जीवितथी अने थावा वैजवथी भ्रष्ट थवाने लीधे प्रति दुःखी थइ अकाले आा समुझमांज मृत्यु पामीश, माटे जम वालपोताना हितने माटे म्हारुं कहेवुं कबुल कर के, जेथी तने आ समुदमां पण जरा जय न थाय. " अईनक श्रावके मौन धारण करयुं हतुं; तेथी ते पोतानां मनश्रीज तेने कहेवा लाग्यो के, “हे देव! तुं मने श्रहिं जय देखामे वे; परंतु तेथी हुं गरी जवानो नथी. म्हारुं धनधान्यादि सर्व ज ले नाड़ा पामो, पण हुं जैनधर्म त्यजनार नथी. " अनक श्रावके या प्रमाणे कह्ये ते अत्यंत कोपायमान श्रयेला ते वैताले पोतानी वे आंगलीना प्रहारथी ते वडाराने करामात्रमां जलने विषे फेंकी दीधुं. जो के वैतालना प्रहारथी ए वहाण बहु कंपवा लाग्युं. तोपण अन्नक शेवनुं मन जैनधर्मश्री मेरुपर्वतनी पेठे जरा पण चलायमान श्रयुं नहि. वली कल्लोलना श्रनागथी वहाणने - चालता थने नीचे पाकता ते वैताले थईनक शेठने वीकएण पुरुषोना प्राणने नाटा करनारी बहु जीति देखामी. या प्रमाणे बहु जय देखामाथी पण में पर्वतनी पेठे ते नक शेठना धर्म ध्यानने निश्चल जोइ देवताए वैतालनुं यंकर रूप त्यी पोतानुं स्वाभाविक स्वरूप धारण करचं. पठी असि
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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