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पांमव चरित्र. (३एए) द्याथी सिः थयेला आ गृहने विषे निर्नयपणे रहेती, नवकार मंत्रनुं ध्यान क'रती, गुरुनी नक्ति तेमज जिनेश्वरनी पूजामां आसक्त एवी आ राजपुत्री निरंतर जिनेश्वर प्रन्नुना धर्मने सेवे . वली निश्चे बाजे प्रनुनी सेवा फलीनूत अ. कारण आज सवारे को श्रेष्ठ नैमित्तिकनी साथे जन्हु राजाए अहिं श्रावीने हर्षथी आ कन्याने आ प्रमाणे कडं इतुं. “हे वत्से ! निश्चे मृगयामां आसक्त थयेलो महा तेजवंत शांतनु राजा आजे अहिं आवशे अने ते त्हारा पूर्व नवना पुण्ययोगयी खरेखर त्हारो पति अशे." आ प्रमाणे इष्ट वचन कहीने पिता जन्हु महाराजा गया पठी तुरत आ विवेकवाली राजपुत्री गंगा, विविध प्रकारना नपचारथी विशेषे श्री जिनराजनी पूजा करवा लागी. सौ. नाग्य गुणना समुप हे महाराजा ! तमे आ पुण्यना समूहथी प्रेरायला ताज अहिं प्राप्त श्रया बो.” परी हर्ष पामेला शांतनु राजाए कहूं. “म्हारे पण एनाथीज इचित कार्यनी लिहिले; माटे अद्भुत रूपनी खाण समान ए कन्या- वचन हुं क्यारे पण नल्लंघन करीश नहि. कारण एवो कयो पुरुष होय के, पोताने घरे आवेली लक्ष्मीनो वाणीवमे तिरस्कार करे ? अर्थात् को न करे, वली हे शुन्न मनवाली ! ज्यारे हुं अजाणपणाथी को वखत ए राजकन्यानुं वचन न मानें त्यारे तेणे मने निश्चे त्यजी देवो. एज म्हारो दंग हो." आ प्रमाणे ते परस्पर बहु हर्षथी वात करे ले एटलामां शांतनुं राजानुं सर्व सैन्य तेनी पाउल आवी पहोज्यु. पी पोतानी पुत्रीनी सखीनी विनंती उपरथी तुरत जन्हुराजा त्यां आवीने आदर पूर्वक बहु दर्षथी शांतनु राजाने मल्यो. त्यारबाद ए नूपतिये, तेज वखते कामदेवने निवास करवाना मंदिररूप शृंगारने धारण करनारी अने बहु पुण्यथी महा देहकांतिवाली पोतानी पुत्री गंगाने महा उत्सव पूर्वक शांतनुं राजानी साथे परणावी. त्यार पनी ते नूपाल पोताना सासराश्रकी वैताट्य पर्वतनी संपत्तिने तेमज गौरवपणाने पामी गंगाने साथे लश्ने महोत्सव पूर्वक सेना सहित लक्ष्मीथी श्रेष्ठ एवा पोताना नगर प्रत्ये आव्यो. त्यां गंगानी साथे बहु प्रेमथी नोग नोगवता ए राजानो शंकरनी पेठे केटलोक सुखमयकाल निर्गमन थयो. अवसर प्राप्त अये गंगाये नत्तम बीपनी पेठे पूर्व पूण्यथी पवित्र एवा श्रेष्ठ गर्नने धारण करयो अने दश मास पूर्ण श्रये नत्तम दिवसे श्रेष्ठ लक्षणोश्री शोन्नता एक पूत्रने जन्म