Book Title: Parambika Stotravali
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // श्रीः॥ श्रीमती समस्तजगदीश्वरी पराशक्ति विजयते तराम -~-~श्री पराम्बिका स्वोत्रावली / / श्रीगणेशायनमः // श्रीमद्गुरुश्रीपादुकाभ्यो नमः // ॐ श्रीमत्परांबिकाप्रकाशविमर्शसामरस्य निर्वाणाख्यचरणचतुष्टयेभ्यो नमः // ॐ श्री सरस्वतीश्रीपादुकाभ्यो नमः // ॐ श्री श्री नागणेचीनाम्नीकुलदेवी श्री पादुकाभ्यो नमः॥ ॐ श्रीचामुण्डाश्रीपादुकाभ्यो नमः॥ उश्रीहिंगुलाम्बा श्रीपादु काभ्यो नमः ॐ श्रीजलन्धरनाथ श्री पादुकाभ्यो नमः / ॐ श्री दुर्गाम्बा श्री पादुकाभ्यो नमः // ॐ श्री बालात्रिपुरसु. न्दरी श्रीपादुकाभ्यो नमः // श्री समस्तजगदीश्वरी श्री मन्महात्रिपुरसुन्दरी श्री पादुकाभ्यो नमः // श्री मदस्मपितचरणकमलेभ्यो नमः // श्रीमन् मरुदेशाधीश योधपुर नाथ हंसवंशावतंस राठोड़कुलशिरोमणि निखिल भूपोतंर मणिमालामरीचिनीराजित पादपङ्कजस्य राजराले हाराजाधिराज महाराजाऽष्टोत्तरशत श्रीयत' जेन पूज्यपादाराध्य श्रीमदानन्द For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्येण झोपेंद्ररुद्रमहेंद्रप्रभृत्यशेषलेखमुकुटमालामाणिनीराजि तपादपीठिकायाश्चतुर्दशभुवनाधीश्वर्या श्रीमन्महा त्रिपुरसु. न्दर्याश्चरणपङ्जचिन्मकरन्दमधुलिहा सर्बोपमाविराजमान राजराजेश्वर महाराजाधिराज महाराजाऽष्टोत्तरशत श्रीयुत श्रीजसवन्तसिंह शासनस्थितेन श्रीशिवराष्ट्राधीश चतुर्यामा धिपतिना रावराजेन श्रीशोभनसिंहेन स्वर्णसिंहोपनाम्ना विरचिता श्रीहैयङ्गवीन हृदयायाः सर्वादिमायाः॥ श्रीपरदेवतायाः स्तोत्रावली योधपुर यन्त्रालये मुद्रापयित्वा प्रकाशिता // For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगणेशायनमः॥ श्रीपरदेवतायाः स्तोत्ररत्नावली लिख्यते / श्रीमद्गुरुपादुकाभ्यो नमः // सर्वेशे सर्वरूपेम्ब सर्वशक्तिधरे शिवे / दासस्य ते महे शानि दुःखं दूरतरं कुरु // 1 // भ्राभ्यमाणं स्वकौघैः पुर। चीर्णैर्दयानिधे / तमाश्वासय मां देवि दुःखं० // 2 // अहं तु दुःखयोग्योस्मिानाचाररतः परे तथापि शरणापन्नो दुःखं० // 3 // दयाचित्नासदृशी तव नास्त्यन्यदेवता। दुःखदारियूहरणी दुःखं० // 4 // विकर्माकर्मरुद् दुःखी जातोनामजपात्तव / प्रायश्चित्तकदेवाऽहं दुःखं० // 5 // दयानिधिरितिख्याता शरणागतवत्सला / अधमोडारिणीनाम्ना दुःखं० // 6 // दुर्गाणिच तरत्याशुभद्रनामजपात्तव / इति सत्येनदेवोशि दुःखं० // 7 // तवनामप्रभावेण सकलाहि मनो रथाः। ममसन्तुमहेशानि दुःखं० // 8 महादुःखौघदली महापातकनाशिनि / महादेवि नमस्तेऽस्तु दुःखं . नामनावंसमारूढस्तरेत्संसारसागरम् / ॐ दुःखं० // 10 // कल्याणि कालि कलि For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 2 ) शि कामशिवशोभितदक्षभागे। कल्याणकारिणि कलाहरे परेशि मांत्राहि पाहि परमेशि नमोनमस्ते // 11 // सर्वदुः खहरं स्तोत्रं घोरदुःखेपठेन्नरः। दुःखौघात्संप्रमुच्येत महादेव्याः प्रसादतः // 12 // इतिश्रीसर्वदुःखहरं स्तोत्रं संपूर्णम् // श्रीनाथकृपयालभ्यः सामरस्यविलासिनि / तेस्वरूपप्रका शोमे हदिभूयादहनिशम् // 1 // कोट्यग्नीन्दिनसंप्रख्यो व्याप्यव्याप्पकतांगतः तेस्व०॥ 2 // पूर्णःसृष्टिस्थितिलयकर्ता कर्तावबोधकः / तेस्व० // 3 // अबोधनिविडध्वान्तध्वंसकोऽत्यन्तहर्षदः / तेस्व० // 4 // भवसर्पभयत्रासहरण ताक्ष्यसन्निभः। तेस्व० // 5 // अन्तर्मुखैनित्यलभ्यो बलभ्य स्तद्वहिर्मुखैः। तेस्व०॥३॥ अनेकजन्मसंसिद्ध योगाभ्यास प्रकाशितः / तेस्व० // 7 // ऐश्वर्यज्ञानवैराज्ञ धर्मश्रीयशसां प्रदः / तेस्व० // 8 // एकोनानाभासकारी ह्यनेकैकप्रकाशकः तेस्व० // 9 // स्वरूपप्रकाशाष्ठकं श्रीपरायाः कृपासागरायाः पठेद्यः प्रभाते // प्रकाशाभिलाषी परप्रेमयुक्तो भवेत्तस्यचित्ते स्वरूपप्रकाशः // 10 // श्रीप्रकाशाष्ठकं संपूर्णम् // . ॐ श्री अन्तेस्मृतिदायिनी विजयतेतराम पम्पे शरण्ये महेशि प्रपन्नातिहन्त्रि प्रभावैः काले पदाजं त्वदीयं मनोमेनजह्यात For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 2 ) शि कामशिवशोभितदक्षभागे। कल्याणकारिणि कलङ्कहरे परेशि मांत्राहि पाहि परमेशि नमोनमस्ते // 11 // सर्बदुः खहरं स्तोत्रं घोरदुःखेपठेन्नरः / दुःखौघात्संप्रमुच्येत महादेव्याः प्रसादतः // 12 // इतिश्रीसर्वदुःखहरं स्तोत्रं संपूर्णम् // श्रीनाथरुपयालभ्यः सामरस्यविलासिनि / तेस्वरूपप्रका शोमे हृदिभूयादहनिशम् // 1 // कोट्यग्नीन्दिनसंप्रख्यो व्याप्यव्याप्पकतांगतः तेस्व०॥ 2 // पूर्णःसृष्टिस्थितिलयकर्ता कर्तावबोधकः / तेस्व० // 3 // अबोधनिविडध्वान्तध्वंसकोऽत्यन्तहर्षदः / तेस्व० // // भवसर्पभयत्रासहरणे ताक्ष्यसन्निभः। तेस्व० // 5 // अन्तर्मुखैनित्यलभ्यो घलभ्य स्तद्वहिर्मुखैः। तेस्व०॥३॥ अनेकजन्मसंसिद्ध योगाभ्यास प्रकाशितः / तेस्व० // 7 // ऐश्वर्यज्ञानवैराज्ञ धर्मश्रीयशसा प्रदः। तेस्व०॥८॥ एकोनानाभासकारी ह्यने कैकप्रकाशकः तेस्व० // 9 // स्वरूपप्रकाशाष्ठकं श्रीपरायाः कपासागरायाः पठेद्यः प्रभाते // प्रकाशाभिलाषी परप्रेमयुक्तो भवेत्तस्यचित्ते स्वरूपप्रकाशः / / 10 // श्रीप्रकाशाष्टकं संपूर्णम् / / ॐ श्री अन्तेस्मृतिदायिनी विजयतेतराम पम्पे शरण्ये महेशि प्रपन्नातिहन्त्रि प्रभावैः काले पदाब्जं त्वदीयं मनोमेनजह्यात For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir थात्वं प्रसीद // 1 // निरस्यैवदेहादिसर्व स्वभावं सहस्रार्कतुल्ये सदानन्द पूर्णे / विशेतावके देवि रूपे मनोमे तथा त्वं प्रसीद प्रपन्ने परेशि // 2 // श्रुतीनां शिरोभिः स्तुते साररूपे परे सामरस्य स्व रूपे त्वदीये रहस्यशिव प्रोक्तशास्त्रस्य मातर्मनोधारणा निश्चला मे सदास्यात् // 3 // इदंताय सर्वमम्ब प्रसादात्तव श्रीगुरोश्चस्वरूपं यथाहं // निजानंदरूपे तथादेवि विद्यां कृपाः कटाक्षैः शिवे त्वं प्रसीद // 4 ॥प्रविष्ठं कृपातः प्रकाशात्मके ते पदाब्जे मनोनापसत् कदाचित् ततः कापिकारुण्यलिलाविलासे तथा स्वानुभावेन मह्यं प्रसीद // 5 // प्रबद्धोमनोलिर्मदी यस्त्वदीय पदाब्जे यदिस्यात्स्वभावातिरम्ये // तदान्यैरशेषैः शिवे मुक्त्युपायै रलंयोगयागादिकैर्भक्तिगम्ये // 6 // कर्तु ह्यकतु तथाचान्यथैव मातः प्रकर्तुच शक्तात्वमेका // इत्येव मत्वाशरणंगतस्ते मांत्राहि मांत्राहि कृपाईचित्ते // 7 // यद्य प्यहं त्रिपुरसुन्दरि कामयुक्तः क्रोधी खलः कपटयुग्विषयानुरक्तः // पापी तथापि शरणागतवत्सले त्वत्पादारविन्दयुगलं शरणं प्रपये // 8 // कृपाब्धिगुणाब्धिः सुखाब्धिः पराम्बा परप्रेमपाथोनिधिश्चन्द्रवका // महाविश्वसिन्धोः सदादीर्घ नौका // पुनमें पुनर्जल्पतोयांन्तु घस्राः // 9 // इमां श्रीजग जीवनिस्तारकौस्तुतिं यः पठेद्ध्यान सद्भावनिष्टः // सदाश्री पराम्बाप्रसादान्मनुष्यः पदं यात्यनौपम्यरम्यंतदीयम् // 10 For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // इतिश्रीजगजीवनिस्तारकीस्तुतिः समाप्ता // अलौकि ककलानिधिर्वदनरूपईशे तव सदोदययुतोन्वहं प्रकटतापहा री नृणाम् // सतांहृदयपङ्कजप्रमुदितःस्वंयपूर्णितो जयत्य विरतं शिव भवसमुद्रहारिप्रभः // 1 // चकास्त्पतितरां मुखं हरिणलक्ष्महीनःशशी // निजस्मरणरागिणां जननि जाज्य हारीवरः // अपूर्वइहतावकं सुखसमाजसंवर्द्धकः किरत् स्मितसुधारसं जगति पापतापापनुत् // 2 // विरंच्यघटितो द्रुतस्सकलकालशोभाऽन्वित स्तवाननसुधाकरोविषयभावदरं गमः॥ अकामिजनभावितोऽप्यखिलकामसंदोहनो जयत्य धिकरोचिषां पटलमण्डलोऽखण्डलः // 3 // अयं समुदयी सदा वदनचन्द्र ईध्ये शिवे // नितांतमुदयंकरः सकललोक नामः प्रभुः // गुणाकरविभाकरोनिखिलदोषहारी नृणा मना दिनिधनोभवत्ववितापशान्त्यमम // 4 // तवाननसुधानिधिर्हसति विश्ववारां निधि प्रफुल्लति शिवाननं कमलमम्ब कालाम्बुदे ॥प्रकाशति रूपापगामवति दासतापापहा महो स्मितसुचन्द्रिका कडति नीलकण्टं वरा // 5 // तवाननसुधानि धि स्तुतिमिमां त्रितापापहां चकोरनर आलपेन्मुखसुधाकर चिन्तयन् // मुखेन्दुविनिवर्धिते विलसिते रुपासागरे रसं हनुभवत्यसौ सकलकामतृप्तिप्रदम् // 6 // इतिश्रीअलौकि कमुखन्दुचन्द्रिकास्तुतिः समाप्ता // श्रीमहाग्वैभवविधायिनी विजयतेतराम् // करुणायमाननयनां निजमुखकान्तिपराक For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेन्दुशाभाम् ललिता सुमन्दहसितामम्बामखिलेश्वरी वन्दे // 1 // ऐक्षवचाएं बाणान पुष्पमयाजातरूपमया॥पाशसृणी संदधतीं सुदती स्वानन्दसुन्दरीं वन्दे // 2 // करुणाकलिता पाङ्गी चार्वङ्गी सकललोकनिर्मात्रीम् // धात्री समस्तजगतां चञ्चच्चन्द्राईशेखरांवन्दे // 3 // स्मेराधिकशोभिमुखीं मा. णिक्याभरणशोभिताङ्गलताम् / / मृगनाभिविन्दुनिटिलोचित्रा रुणचैलशोभिनीं वन्दे // 1 // निजमुखनिःसृतवाणीविजि तसुधासारसर्वसौभाग्याम् // आज्ञाधीनचतुर्दशभुवनां कामे श्वराङ्गनां वन्दे // 5 // हर्षितभक्तमयूरां चिद्घनरूपां सना तनींत्रिपुराम् // करुणारसपरिपूर्णा मद्वैतानन्दिनीं वन्दे // 6 // काश्मीरकान्तिवर्णी तरणींमवसिन्धुखेदयुक्तानाम् // कु कुमचर्चितदेहां शोभागुणरूपवारिधिं वन्दे // 7 // धामत्रय लिंगत्रयपुरत्रयत्रिगुणिदेवपुरा // वर्तनशीला तुर्या तुर्याऽतीत स्वरूपिणी वन्दे // 8 // भक्तस्यकल्पलतिका कामदुधां चिन्तितार्थदायिमणिम् // अक्षयनिधिमनोज्ञां स्वामृतसंजीवनी षधि वन्दे // 9 // श्यामा तारा त्रिपुरा भुवनेशी भैरवी छिना धूमा सुपीतवसना सुमुखी कमलामयीं वन्दे // 10 // एतद्दशकं मातुः श्रीललितायाः समस्तरूपायाः // प्रातःपठति सयायाद्भक्तोभास्वन्मणिद्वीपम् // 11 // श्रीगुरुदर्शितव मनि तिष्ठनध्यायन् पराम्बिकारूपम् // निश्चलबुड्या नित्यं For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पठन् पराम्बापदं याति // 12 // इति श्रीआसिौभाग्य दशकसमाप्तिमफाणीत् // श्रीमती वाङ्मनोतीतस्वरूपसौंदर्यां विजयतेतराम् // श्रीगणेशायनमः॥ उकल्याणि कालि कमलासनिकाम रूपे कृष्णार्चितांधिं कमले कमलायताक्षि // कामाक्षि काल भयकर्तिनि कोमलागि संसारजालपतितं जगदम्बरक्ष // 1 // एणाङ्कभानुहुतभुङ्नयने त्रिशक्ते हेरुद्रपूजितपदे प्रणतार्ति हन्त्रि एकाकिनि प्रणतपालिनि विश्वरूपे संसारजालपतितं जगदम्ब रक्ष // 2 // ईशेश्वरि प्रलयसंस्थितिसृष्टिकर्षि स्वा स्मैक्यभावनपरायण बोधदात्रि एकाग्रचित्तनिजभक्तरतास्पदे मां संसारजालपतितं जगदम्ब रक्ष // 3 // लजाभयादिपशु पाशविनाशकत्रि वाणीलमुद्र तनयापरिवीजितानि // उद्यत्स हस्रकरवर्णसमानकान्ते संसारजालपतितं जगदम्ब रक्ष // ४॥हींभावनाप्रकटितस्वपदारविन्दे हेकल्पवाटिमणिमण्ड पमध्यसंस्थे // हेशम्भुवमविचरजनशीघूलभ्ये संसारजालप तितं जगदम्ब रक्ष // 5 // हर्षप्रफुल्लनयने हरिकेशयोने हा लामदप्रमुदिते हरिणाङ्कमौले // हैयङ्गवीनहृदये हयमेधतुष्टे For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संसारजालपतितं जगदम्ब रक्ष // 3 // सर्वात्मिके सकललो कनिवासभूमे संध्यारुणाम्बरधरेऽरुणपुष्पपूज्ये / सन्मानशा लिपरिषेवितपादपने सं० // 7 // कल्याणवृष्टिकरुणाकटा क्षपाते कामप्रसादिनि कलंकहरे कुलेशि // मुक्तासुहारकुचभारनताङ्गयष्टे सं० // 8 // हर्षप्रदे हरिणशावकनेत्रयुग्मे हेलोड़तागणितपापजने गणेशि // गायत्रि गानरसिके गज. वक्रमातः सं० // 9 // लब्धस्वरूपपरमेखिलभावविज्ञे हेपु. पवाणपरिशोभितहस्तपझे // आदानदानरहिते हिमशैलकन्ये सं० // 10 ॥हींकारमन्त्रजपतत्परसंतुष्ट नहीश्रीगिरादिकसमस्तकलत्ररूपे // नासाग्रमौक्तिकलसदनारविन्दे सं० // 11 // सर्वोत्तमासनगते परमात्मरूपे बाहयादिका टकसमर्चनसुप्रसन्ने // श्रुत्यन्तर्गतचरणे करुणाकरे मांसं. // 12 // कल्पान्तशम्भुकृतताण्डवसाक्षिणि त्वं सत्यस्वरूपिणि सनातनि सर्वमन्त्रि / भक्तनिवेपरममङ्गलदिव्यमर्ने सं० // 13 // लक्ष्मीश्वरप्रभृतिदेववरप्रपूज्ये स्वाहास्वधास्तनयुगे प्रियकप्रियेशि // दुर्गे शिवे परमहंसपदप्रदे मां सं० // 14 // नहींकारनामजपभोगविमुक्तिदात्रि भण्डप्रचण्डदलिनि प्रकटप्रभावे // हेदण्डनाथनमिताधूियुगे शरण्ये सं० // 15 // श्रीमंत्रराजयुतमेतदलक्ष्यरूपं स्तोत्रंपठेद्भुविजनः परदेवतायाः मूर्तिनिधाय हृदये सहिविश्वजालंसछिद्ययातिसुखमातुलिकंप रंयः॥९॥ननोयंस्वर्णाख्यस्तव जननिपादेकारण पादृष्ट्य तस्य स्वरूतपरितापंपरिहर // मदर्थेमातति प्रकटय रूपान्ते स्तु नमनं कुरु त्वं विज्ञप्ति त्रिभुवनमहाराजमहिषीम् // 17 // For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इतिश्रीपरदेवतालक्ष्यवह्मविद्याजगजालनाशनस्तोत्रं संपूर्णम्। __ श्रीमती संविद्रूपिणी विजयतेतराम् // सर्वावस्थास्वपि तथा सर्वदेशेषु वै पुनः॥ सर्वकालेषु सैवैका शरणं परमं मम // 1 // त्रिपुरा वृह्मसंविछीः परा सच्चि सनातनी // ईश्वरी परमेशानी शरणं परमं मम // 2 // सामरस्य स्वरूपा च चिद्धनानन्ददायिनी नित्या शुद्धा च बुद्धा च श० // 3 // पूर्णाहन्तात्मिका पूर्णा परमा परमोत्तमा परवात्मिका देवी श०॥४॥ चितिश्चिल्लक्षणाचारा चै तन्याचिन्त्यरूपिणी // चराचरस्वरूपाच श० // 5 // सकृद्धा ता भासमाना भास्वती वरदायिनी // विमाना विमला वि. श्वा श० // 6 // अनिर्देश्याद्वितीया च साक्षिणी चाक्षरा शिवा अनन्तानन्तरूपा च श० // 7 // ऊहापोहविनिर्मुक्ता हेयोपादेयवर्जिता // अस्टश्या स्वात्मरूपासा श० // 8 // यद्भासा भाषितं सर्वं जगदेतचराचरम् // परं ज्योतिःस्वरूपा सा श. // 9 // अलक्ष्या लक्षिता सर्वैः स्वात्मीकृत्य च सर्वदा // अनुभूतिस्वरूपा या श० // 10 // अन्तर्लक्ष्या योगिजनैर्ब हिर्लक्ष्याऽल्पबुद्धिभिः // अन्तर्बहिश्च सर्वज्ञैः श० // 11 // निजानन्दात्मिका नित्या नवीनानन्ददायिनी // निरंजना नित्यलाभा श० // 12 // निष्कलङ्का निराभासा नित्योत्कृष्टा निराकुला // निर्मानमोहा नित्यश्रीः श० // 13 // लोकोत्तरानुत्तरा च ह्यलौकिकगतिः सती // अनन्तरा सारतरा श० // 14 // शून्या शून्यालया शान्ता शन्त्यतीताखिलेश्वरी // ल.अतासर्वसिद्धान्ता श० // 15 // स्वतन्त्रा कालकलना For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होना विछिन्नरूपिणी // अनन्यभाता विरजा श० // 16 // तत्त्वं चासि पदव्यक्ताऽयमात्मा ब्रह्मविश्रुता // ब्रह्मास्म्यहं तथारूपा श० // 17 // अहं ब्रह्मास्यहं ब्रह्मास्म्यहं ब्रह्म विमर्शिता // गुरुवक्तोदिता या सा श० // 18 // सर्वखल्वि दमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्॥श्रीमद्भागवतं रूपं श० 19 // चराचराखिलाधारात्रिंशत्तत्वरूपिणी // तत्वातीता परात्मा सा श०॥ 20 // इतिस्तोत्रं महापुण्यं परा ध्यात्वा पठेन्नरः॥ स्तोत्रार्थमानसोनित्यं सोभीष्टफलमानयात्॥ 21 // वेदवेदा न्तवाक्यार्थमन्त्रतन्त्रार्थसंयुतम् // स्तोत्रं पुनः पुनर्जप्त्वा सदाभ्यासी सुखीभवेत् // 22 // इति श्रीचरणशरणदस्तोत्रं समाप्तम् // ॐ अत्यन्तसुन्दराकारे सुकुमारे मनोहरे // वाङ्मनातीत रूपे मे वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 1 // कोटिसूर्यसमप्रख्ये को टिशीतांशुशीतले // प्रेमाम्बुधौ गुणनिधौ वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 2 // आभिषेचनिके नित्यमङ्गले नित्यशोभने // दयाभू तहृदये वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 3 // कमलाकिङ्करीकोटिषेविते नित्यभास्करे // भक्तमानसगे नित्यं वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 4 // चतुर्दोर्लतिके पाशगृणिबाणधनुर्धर ॥कस्मिंश्चिदरुणे धान्नि वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 5 // परमेश्वरानुभवे परमे शैकताइते श्रुतिशेखरसंगीते वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 6 // दयाहगन्तपातनदलिताशेषकश्मले॥ परप्रेमास्पदीभूते वर्धतां प्रेमवर्धताम् // 7 // भक्तसंजीवने स्वछे सर्वानुल्लयशासने / स्मरणाच्छीघवरदे वर्धतां प्रेमवर्धताम् // ८॥प्रेमाष्टकमि For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दं प्रोक्तं प्रेमास्यदप्रसादतः / यः पठेन्मनुजः प्रेम्णा सहिने मनिधिर्भवेत् // 9 // इतिश्रीप्रेमाष्टकस्तोत्रं संपूर्णम् // मातृकाप्रपंचरूपनादविन्दुमयी विजयतेतराम् / / है अखण्डानन्दिनी चाया इन्दुबिन्दमुखीश्वरी // उमोहा पोहनिर्मुक्ता ऋरूपा ऋस्वरूपिणा // 1 // लूरूपालस्वरूपा च एकानेकस्वरूपिणी // ऐन्द्रीसुपूजिता उमित्यक्षरार्थस्वरू पिणी // 2 // औद्धत्यदैत्यदलिनी ह्यम्बिका अःस्वरूपिणी // कमलानाथसंपूज्या खड्खेटकधारिणी // 3 // गणेशजननी घण्टानादत्रासितशात्रवा // डकराचरणापन्नविश्ववासविना शिनी // 4 // छत्रचामरशोभाया जलजन्मनिभेक्षणा // झङ्कारनपुरारावशोभनीयपदाम्बुजा // 5 ॥त्रकाराक्षररूपा च टकाराक्षररूपिणी // ठस्वरूपा डस्वरूपा ढाकतिर्णरूपि णी // 6 // तत्सद्रूपस्वरूपाच थरूपा दण्डिनीश्वरी // धननाथसदासव्या नरनारायणस्तुता // 7 // पद्मावाणीच लञ्चारुचामराबीजिताङ्गिका।फटकारमन्त्रमहात्म्यनाशितस्वी यशात्रवा // 8 // बलभद्रसमाराध्या भवभाग्या मदिष्टदा / / यमपाशभयत्रासनाशिनी रणशोभिनी // 9 // ललितालापलीलादया वरदानधुरंधरा // शरदिन्दुनखज्योत्स्नाहृतहार्दत मोगुणा // 10 // षडध्वातीतपादाब्जा सदा सर्वेष्टरूपिणी // हंसमन्त्रमयी ल्ला क्षकारान्त्यसुरूपिणी // ११॥क्षरूपा ल्लस्वरूपा च सदासर्वेश्वरप्रिया // षटत्रिंशत्तत्वरूपाच शरचापकराम्बुजा / / 12 / वरुणोपासितालक्ष्मीलालितां. निसरोरुहा // रमणीयपदाम्भोजा यज्ञरूपा महामभा। 13 // For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भव्यभावजनस्वान्त मणिद्वीपकृतास्पदा // बलरामानुजाच्या घिः फलद्भक्तिसुखप्रदा // 14 // परमेश्वराभेददात्री नमन्मु क्तिविधायिनी // धर्माधर्महवितृप्रसन्नमुखपङ्कजा // 15 // दण्डनाथस्वरूपाच तत्स्वरूपाणकारिणी // ढरूपिणी डरूपा च ठरूपा टस्वरूपिणी // 16 // ञकाराणस्वरूपा च झल्ल. रीनादतोषिता // जन्ममृत्यु जराव्याधिनाशिनी छलवर्जिता // 17 // चलन्मीनभयत्रस्तसारङ्गकमलेक्षणा // उकारवर्ण रूपा च घटाकारवरस्तनी // 18 // गंगाधरसुखाधाररमणीय. वपुष्पती // खलदैत्यकृताहारा कलिकर्तव्यनाशिनी // 19 // अःस्वरूपा चान्नपूर्णा औन्नत्यपददायिनी।। ॐकारसर्वमन्त्रा ग्या ऐं काराचिन्त्यवैभवा // 20 // एकाकारस्वरूपाच लुका रा लस्वरूपिणी // ऋकारार्णा स्वरूपा अम्निायस्वरूपि णी // 29 // उवाच्यदेवतारूपा ईरहस्यार्थरूपिणी // इन्द्र ज्यपदा राध्यरूपा द्वैतस्वरूपिणी // 22 // अखण्डानन्दिनी कल्पा चण्डिकाटस्वरूपिणी // तारिणी पार्बती यज्ञस्वरूपा समरूपिणी // 23 // अकारादिक्षरान्त क्षकाराद्यान्तनामक म् // अष्टोत्तरशतंश्रेष्टं सर्वेशाया:पठेन्नरः // 24 // नित्यंध्या वापरांदेवीं सदातद्गतमानसः // विश्वासेनत्यरासिद्धि महि की चापरांलभेत् // 25 // इतिश्रीसर्ववेदशास्त्रमयी मातृकाऽ क्षमालाऽष्टोत्तरशतनामावली समाप्ता // उहरिविरचिनुतं शिवपूजितं परममङ्गलदायकमव्ययम् // निखिललोकनिवासपदं परं स्मरमनस्त्रिपुरापदपङ्कजम् 1 // भुवनभीतिहरं सुरभूरुहं त्रिविधतापहरं ममतापहम् // For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (12) त्रिसुरशक्तिसदासुखलालितं स्मर०॥ 2 // मुनिमनोमयकोशधनंशिवं सकलसेव्यमलौकिकमद्भुतम् // सकलतीर्थमयंसु मनोहरं स्मर० // 3 // श्रुतिशिरोधृतमीप्सितमामशरणदं शरणागतवत्सलम् // सकलशास्त्ररहस्यमनन्तकं स्मर० // 4 // गणिपविध्वजकासुलंकृतं नखमणिप्रभवाहप्ततामसम्॥मम तुभाग्यमहोद्भुतमक्षयं स्मर० ॥५॥गुरुरूपाजनमानसमावित क्वणितनूपुरहंसकसंयुतम् // चरणपत्रयुतरसमण्डितं स्मर० // 6 ॥निजजनेप्सितकामदमक्षर युगलमदयमीशशिरःकृतम्॥ प्रणतपालकपावनमच्युतं स्मर० // 7 // विलसिताष्टविभू तिकरंनृणां जनिजरामरणाहिरंहितम् // निगमसारतरं गुरु पूजितं स्मर० // 8 // गृहकलत्रसुताःकिलबन्धनं तदनुरक्ति रनन्तभयावहा // त्यजविषं विषयं परमामृतं स्मर० // 9 // सकलहत्सरसीरुहसंस्थितं ह्यपिजना नावदुः सुखदायकम् // गुरुवरोक्षितहृद्यवभासकं स्मर० // 10 // निजजनैकशरण्य महर्निशंकणितनूपुरभक्तसुखावहम् // निजकृपासुखसेव्यमना मयं स्मर० // 11 // समुदयद्रविकोटिसमप्रभं भवभयस्थि तिसंहरणक्षमम् // सकलदेवशिरस्कृतशासनं स्मर० // 92 // सकलवोधकरंजड़तापहं भुवनभासकभक्तवरप्रदम् // विगतरा गजनैकमनोहरं स्मर० // 13 // सकलयोगफलंगुणगौरवं गु णविहीनविलक्षितवैभवम् // गुणसुसृष्टहरादिकदैवतं स्मर० // 14 गुणहरंगुणकारकमन्वहं गुणविहीनमशेषगुणाकरम् // गुरुगरिष्टतरं गुणपूजितं स्मर० // 15 // परमशङ्करवल्लभसि द्विदं निजरूपानिजभक्तिसुखप्रदम् // परतरंनिजभक्तमनोगतं म र 0 // 16 // अलमलं चूतयागसुकर्मभि रधिकखेदधनक्षय For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारकैः // मम तुसम्मतमेकमिदं सदा स्मर० // 17 // स्तु तिमिमामुपदेशवरां पठेत् चरणकंजपरायणमानसः॥ भव. ति वाञ्छितभाग्नरपूजितः सकलमातुरियात्पदमुत्तमम् // 1 // इति श्रीउपदेशषोड़शीसप्तदशीस्तोत्रं संपूर्णम् // ॐ अखिलसिद्धिकारिण्यैनमः॥ ॐ यामाश्रिताभुविजना भवसिन्धुनौकामुल्लंघ्य विश्वजल धि पदमक्षयंतत् // गच्छन्त्यगाधमवबाधमखण्डरूपं तामीश्व रीमखिलसिद्विकरी नमामि॥ 1 // यन्नामकल्पतरुतोप्यधिक प्रभावमप्रार्थितं त्रिदिवमोक्षफलं ददाति // जिहानगं भवतु सन्ततमेतदर्थं तामी० // 2 // यत्पादपङ्कजमनोहरभक्तियो गो योगेषु संशयहरेष्वखिलेषु मुख्यः॥ यंप्राप्यकेवलपदंमनुजः प्रयाति तामी० // 3 // यत्पादसंश्रितजनः खलुदीनहीनो लोकत्रितापरहितो भूवि चक्रवर्ती // स्यादन्जसाखिलगुणाकर शुद्धभावस्तामी० // 4 // जानन्ति यां पशुजनाजगदेकरूपां सच्चितस्वरूपपरमां जगदादिभूताम्॥येज्ञानवन्तइहते सकले ष्ठदांबां तामी० // 5 // यत्पादपङ्कजमरन्दरसानुभावि सन्मानसभ्रमरमत्तसमीहितं नः स्यादन्यदत्रपरितिष्टतिनिष्क्रियस्सं स्तामी० // 6 // यत्पादपद्मरजसां कणमुत्तमाङ्गे येधारयन्ति खलुतेचधृतातपत्राः // अन्तेस्मृतिं परिलभन्त इहैवधन्या स्तामी० // ७॥दासोऽस्मिते जननिजातभयंब्रुवन्तमेवं हि सा भगवती करुणासमुद्रासद्योभयंदिशतिविनमपास्यदूरं तामी० // 8 // नीराजयन्ति चरणौ मुकुटप्रभौधैर्यस्यास्त्रितापहरणो द्रुहिणादिदेवाः // श्रीशम्भुमानससरोवरराजहंसौ तामी० For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - ( 14 ) // 9 // यस्याःपदाब्जयुगलं सुरसिद्धसंधैः संसेवितंमुनिगणैश्च समाधिनिष्टैः // तन्मानसे ममसरोवर एवभूयात् तामी // 10 // एतत्तिापहरणं दशकं पठेद्यो नित्यंप्रभातसमये हदि चिन्तयित्वा // कारुण्यमूर्तिमभिषेचनिकां पराम्बां प्राप्नोत्य भीष्टमतुलं यदि भावयुक्तः // 11 // इति श्रीसकलसिद्धि करी स्तोत्रं समाप्तम् / अथापराधक्षमापनस्तोत्रम् // ॐ नदाराः कुमारांः सुहद्वन्धुगशे तथाभृत्यवर्गश्वमन्त्री न दासः भटोभव्यहेतुर्नजानेनृणान्ते पदंचारुप्सर्वेष्ट भीतिह न्तृ // 1 // प्रातः कति शौचविधि नजाने दक्षिाविधि स्नान विधि तथाहि / सन्ध्यांत्रिकालेष्वपि तर्पणंचतुर्येत्वदीयं शर णं गतोऽस्मि / 2 / सूयार्घ्यदानं नशिवार्चनं च पूजाधिकारार्थ मवश्यमम्ब // द्वारार्चनं विधन विनाशनं च परंत्वदीयं शरणं गतोऽस्मि // 3 ॥वास्तोःपूजांविधिना श्रीभैरवशासनग्रहणम्।। भशदिनहिकुर्वेत्रिपुरे शरणंगतस्तेऽहम् // 4 // आसनशुद्धि पूजां नहिजाने श्रीगुरोःपूजाम् / / श्रीगुरुरूपिणिजाने त्वत्स्मर णकेवलं शरणम् / / 5 // कुंडलिनीशिवमेलनपरमानन्दप्रदं च नहिजाने // भूतानांच विशोधनमनघे शरणंगतस्तेहम् // 6 / धातुप्राणस्थापन मीशे दशघाहिमातृकान्यासम् ॥तद्वन्म लन्यासं नचकुत्वंहिमेशरणम् // 7 // मूलस्यजपविधान मन्त्रिण्याचंगदेवताजपनम् // मातश्चरणंशरणं मेमूढस्यकेव लंपरमम् // 8 // श्रीपादार्चनपात्रविधानं नहिकुर्वेजगदीश्व For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 15 ) रिमातः // अन्तर्यजनंस्वात्मीकरणम् जानेतेपदपंकजशरणम् // 9 // पीठार्चनं देवियथाविधान नावाहनतेजगदम्बमुद्रा // संदर्शनंषोड़शधोपचारान कुर्वे सदा ते शरणांगतोऽस्मि // 10 // आवृतिपूजां नाहं कुर्वेतेपञ्चपञ्चिकापूजाम् // आम्नायानांपू जा मुम्निायस्य केवलं शरणम् // 11 // उत्तरपूजांबहुलां नोकर्वे होमबलिदाने // नवदीपैरारार्तिकमीशे रण हिमेशरणम् // 12 ॥मातस्तेवैपादयोः पुष्पवर्षा पूजांत तेराजसानौ पचारान् // श्रीमच्छक्तेः पूजनचेष्टते कुर्वेनोमेकेवलं त्वं शरण्या // 13 // श्रीमद्गुरूणां परिपूजनं च पुष्पाञ्जलिंतर्पणमे वमम्घ // कर्वेतथानोजगदम्बिकेते पादारबिन्दशरणंगतोऽस्मि // 14 // पूजान्ते ते मूलमन्त्रस्य जापं वर्मस्तोत्रं नामसाह स्त्रच // नानास्तोत्रप्रसादैकहे नुम् कुर्वनो मे केवलं त्वं शरण्या // 15 // प्रदक्षिणान्तेपदयोनमस्कृति साष्ठाङ्गरूपां बहु धामहेश्वरि // क्षमापनं चैव पुनःपुनर्नाहकरोमिमातः शरणंग तोऽस्म्यहम् // 16 // स्वान्तमं शाक्तिकैःसाकमम्ब प्रौढो लासंसर्वकर्मापणते // स्वात्मोडासंतेज सस्तेशरण्ये श्रीमातंगी पूजनं न क्षमस्व // 17 // श्रीभैरवस्यैव बलि चशान्ति हत् स्तबंपटन्साधकप्रोक्षणंचते // करोमिनाहंपरमात्मरूपिणि यथातथा ते शरणंगतास्म्यहम् // 18 // विलोकनं स्वस्यदशा विशेषं यथाविधानं विनियोजनंच // पात्रस्य पूर्णाहुतिमम्ब नित्यं कुर्वेनमातः शरणंगतोऽस्मि // 19 // त्रिदेवरूपस्य तु भास्करस्य ह्यय॑नकुर्वेखिलपूजनान्ते // त्वदीयनाम्नैवचसर्वपूजा कृतिप्रपूर्णी विदधेशरण्ये // २०॥प्राणायामंविधिनानो For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुकामकूटेन // पुष्पंतवनिर्माल्यं शिरसिशरण्यात्वमेवैका ॥२७॥कामकला तव रूपं स्वात्माभिन्न विभावयन्विहरे // नेवच नित्यं मातर्यथासुखंचरणशरणंमे // 22 // मातश्चे श्वरमूर्तरोविधिमुखा देवास्त्रयस्तेऽपिहि रुत्वाभारसमर्पणं स मभवन्सौभाग्यभाजोऽचिरात् // ज्ञात्वेत्थमनसाबलेनववसा कायेनतेकर्मणा दोस्तंभषुचतुष्टयेषु सततं मद्गेहभारोर्पितः // 23 // इति क्षमापनस्तोत्रं सदापठतियोनरः // स्वीयानु भावनपरा प्रसन्नास्यात्कृपानिधिः / / 21 // इतिश्रीअपराध समापनस्ते.त्रं संपूर्णम् // श्रीमतीसकलमनोरथातिशयचरणदर्शनमनोरथप्रपूरि णीविजियतेतरम् // द्रक्ष्येकदानुमातत्सिल्येनैव सम्मुखेतिष्टन् // इष्टांविदद्र क्ति तंचरणहिसर्वसामान्ते // 1 // तवपदयुगनी संमुखमायां तीमम्बकथयन्तीम् // नूपुरनादमिषेणहि कामाक्ष्यभयंकद द्र क्ष्ये // 2 // वाणीमानसदूरां पददीभक्तकामनापूराम् ॥इ स्याद्यागमगीतां नेदिष्टांमातरपिकदाद्रक्ष्ये // 3 // युगलंतेपद कमलं समलं मामम्बमलंविनाकुर्वत्॥प्रभयास्पया वितिमिरं रुपांबुनोधारया कदा द्रक्ष्ये // 4 // केवलरुपावशेनहि न तुमे कृत्येन कामाक्षि // मधुरं रणयन्नपुरमम्ब पदंते कदा द्रक्ष्ये // 5 // येन विना न भवन्ति हि साकं ब्रह्माविभिलोकाः // तत्पदयुगलं मातर्ब्रह्मादिविधानकत्कदा द्रक्ष्ये For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (17) // 6 // पदुपासनाविहीनादेवावृह्मादिकाःसर्वे // कार्य कर्जुमशक्तास्तत्पदयुगलं कदा द्रक्ष्ये // 7 // शिशवेक्षुधादिताय प्रसूस्तनं राति रुदिताय // तद्वत्ते पदयुगलं हम्ब कदा दर्शयिष्यसि मे // 8 // भी स्वधर्मनिरतां सुखयत्यागत्य दूरस्थाम् // धर्मज्ञोहि तथा मां दर्शनदानेन ते पदाम्बुजयोः // 9 // विरहातुराहि कांता निजेप्सितं प्राप्य मुदं भर्तारम् / मातः प्रयाति तहद् द्रष्ट्रवाशु पदं मुदं कदा लप्स्ये // 10 // सुतृड्व्यसनितबालो निजजननी स्तन्यपानेन ।सुखमनुभव तितथाऽहं तवपददी सुखीकदाम्बस्याम् // 11 // मृर्दानमलं कर्तुं चाधाद्यद्वेदपुरुषोऽपि // पदयुगलं ते मातर्मुकुट तयाहं कदाद्रशे // 12 // विरचति पाति च हरतिहि वि. धिर्हरियम्बकोम्बैतत् // विश्वं यत्सेवनया पदयुगलं तत्क दाहि ते द्रक्ष्ये // 13 // अज्ञानावत हृदये नखभंडलचंद्रमः खंडैः ॥ज्योत्स्नावद्भिर्मातः पदकमलं ते कदाद्रक्ष्ये // 14 // यदुपासकाभवाद्याःसंत्यखिलेशास्त्रिदेवताजगति / तत्पदयुग. संरूपयो विनिमिषदृष्ट्या कदाद्रक्ष्ये।१५।वांछाधिकप्रदानात् खर्वीरुतकल्परक्षं यत् // कान्त्योद्यन्तं भानु स्वकरं ते पदं कदाद्रक्ष्ये // 16 // नखकान्त्यंतर्नि तमोहरं चाभिषेचनिकम कामशतादधिकं में प्रेयोमातः पदं कदा द्रक्ष्ये // 17 // यदुपासना जनानां भाति समस्तं तवैव रूपं तत् चिन्मात्र स्वानन्यं तत्पदयुगलं कदाद्रक्ष्ये // 18 // मूकः कवयति रंकोभूपति वृद्धोह्यनंगइवाचरति // यत्पदयुगलरूपातस्तद्पं ते कदा द्रक्ष्ये // 19 // सर्वेश्वरसामाज्ञि जातिविभिन्नं पर For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 18 ) न दर्शयसि // मामम्ब निरंतरं हि बुद्धिकुमारी तु सहचरी कुरुते // 20 // संविन्मात्रमनन्यं चैकमनंतं गृहीतगुणरूपम् // भूरिकपं पदयुगलं दृक्पथिकृत्वा मुदं कदा लप्स्ये // 21 // दृश्यस्तथापि साक्षी शनैश्चरोभानुरिवाभाति // आरक्तोऽपि हि शुक्रांघ्रिस्ते दृक्चरोभूयात् // 22 // रक्तविरक्तिदाता ह्यदयरूपो.पि युगलात्मा // चित्रं कुर्वश्चरणो दृङ्मा र्गे स्मात्सदैवसुखदाता // 23 // यच्चरणांबुजमधुना मनाविस्मृत्य देहगेहादीन् // लीनास्तस्मिन्नेवहि सन्तिशिवायाः पदं कदाद्रक्ष्ये // 24 // कुवलयबंधुमुखेनहि स्मितचंद्रिकया प्रतोषितं कुर्वत् // स्वान्तत्र्ति स्वान्तं रूपं शश्वत्कदांवि के द्रक्ष्ये // 25 // वरदानायायान्ती कणयंती नूपुरे पदयोः।। स्थान्तं शीतलयन्ती माध्च्या गिरया कदा द्रक्ष्ये / / 26 // सुनो गृहाण भक्तिं मद्विषयामिष्टरूपान्ते // इति मां पदयोः पतितं भाषन्तीं त्वां कदा द्रक्ष्ये // 27 // श्राव्यं यदेवभाव्यं भुक्तिं मुक्ति समीहद्भिः // दृश्यं मृग्यं गेयं ते पदयुगलं कदा म्ब संद्रक्ष्ये // 28 // हरिहरगणेशदुर्गाभास्करभक्ताः समारा ध्य // स्वेष्टत्वेन यदेवहि यान्ति पदं तत्कदा द्रक्ष्ये // 29 // दृक्पथि कदानु कुर्वे अम्बैकत्वेन पृथक्त्त्वेन // जगतोयत्वच्च रणं तिष्ठति मेनौमि सदा मनसि // 30 // यस्याश्चरणाप्त रोजदयपूजनतोनृणां हि हृदयेया // शीघ्रस्फुरति सतांतांद्रक्ष्ये. नुकदाशीवोक्तमार्गेण // 31 // यस्मिन्नुदयति भाति त्रि यामिनीपंचपर्वानो // रविसमरोचिषि चरणे तमहंमातः कदा द्रक्ष्य।।३॥त्वविरहितं हि मोक्षं स्वाराज्यं किमुत सामाज्यम् // For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 19 ) रविसमरोचिषि चरणे तमहं मातः कदा द्रक्ष्ये // 32 // वद्विरहितं हि मोक्षं स्वाराज्यं किमुत सामाज्यम् ॥नेछंति त्वद्भक्तास्तां त्वां मनसि हि कदा द्रक्ष्ये // 33 // यद्विहितं प्रतिकतुं प्रभवोनो वै विधात्राद्याः इत्यध्यवसाय्यम्ब त्व. त्पदयुगलं कदा द्रक्ष्ये // 34 // विषमे शत्रुत्रस्तैः स्मृता भयध्वंसकरी भवति // यस्याःपदयुगलं तत् दृङमार्गे मे कदा भवतु // 35 // चरणनखंदुज्योत्स्नासंहृतवत्यंतरीयतमः // शीतलयंती हृदयं यातामीशां कदा द्रक्ष्ये // 36 // भन्ने जलधौ पोते महाभये तारिणि त्राहि // वदति स्वीये लोके रक्षति या तां कदा हि संद्रक्ष्ये // 37 // जनयति रागं शंभोर्मनसि मुनीनां स्वरूपसंपदया // वैराग्यमाशुचित्रं तां त्वामम्बां कदा द्रक्ष्ये // 38 // शंभोरीक्षणकुवलयचंद्रसमानां शिवांकगृपदीपाम् // मानसमीनपयोनिधिरूपांतां त्वां कदा द्रक्ष्ये // 39 // असमशरागमसारं सिद्धांतं सकलनिगमानाम् / / भक्तमनोरथमेकं सुरुतफलं चेशितुः कदा द्रक्ष्ये // 40 // प्रसन्नशीतलसलिले सरसि सरवीभिश्चे खेलंती // पद्माकरे ज्वरघ्नी भवति ध्याता कदा हि तां द्रक्ष्ये // 41 // या भरणवसनमाल्यैः कुंकुमकस्तूरिकादिकरंकः // कृष्णावतंससुषमां भजति भवानी कदा द्रक्ष्ये 12 // शारदचंद्रसवर्णा हस्तैः स्फटिकाक्षमालिकां दधती // पुस्तकमभीतिदाने विद्यादां तां कदा द्रक्ष्ये // 43 // याखिलमाता गिरिजा ह्यनाद्यनंता वियोगसंयोगा शंभोः पाणिगृहीता चित्रचरित्रां कदा द्रक्ष्ये // 44 // याविष्करो यागे For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 20 ) लुप्तानंद स्वरूपसंभूतम् // साक्षात्शक्तिसुरूपा शिवसुखदां तां कदा द्रक्ष्ये // 45 // परमामृतस्वरूपां समये संसेवितां शुध्या॥ वृत्यानंदभुवं तां स्वात्मनि नित्यं कदा कुर्वे // 16 // श्रीमत्पादतलादिहि मुखचंद्रांतं सदाभजताम् // पुंसां स्वरूपमतुलं यास्त्याविस्तां कदा द्रक्ष्ये // 17 // धत्ते वदने शशिनः सौमाग्यं शंभुसद्भाग्यम् // चातुर्य भौध कुचयोर्यत्तत्कदा द्रक्ष्ये // 48 // कुचयोः क्षीरनिधित्वं करकंजेषु च निलिंपविटपित्वम् // येन धृतं तद्रूपं नाथरूपातः कदा द्रक्ष्ये // 49 // मन्ये यत्तद्रूपं हृदि विन्यस्तं शिवेतिसौंदर्यम् विस्मारयति हि विश्वं मादकमीशे कदा द्रक्ष्ये // 50 / / दीनं दयादृष्ट्या स्वाभाविकया विलोक्य निजभृत्यम् // कल्याणाय जनस्यहि कुर्वतीत्वां कदा द्रक्ष्ये // 51 // अंधेतमासामणि पूर्णेचंद्रप्रफुलितं कमलम् // तस्मिन्नम्यं रावं विरचतियातांकदाद्रक्ष्ये // 52 // सूर्यस्तमसिशशांकस्तस्मिन्नुच्चलितमीनयुगलं या // तत्ररसंतेनैवहि स्थाj फुल्लयतिदृश्यास्यात् // 53 // विश्वजयोमदनोसौविजतःप्रभुणाशिवनयेनचसः // भ्रूभंगेणहिविजितो ययाकयाचित् कदा द्रक्ष्ये // 54 // यदनुग्रहरससिक्ता फलतिमदीयेहितालतिका तन्माहेश्वरभाग्यं संवीक्ष्याहंनुकदा तृप्तःस्याम् // 55 // यामाश्रित्यहिष्णो रंतुषाण्णमासिकी रात्रीम् // शुक्लांचकारतां स्वामघटनघटनांकदाद्रक्ष्ये // 56 // नृपतिकुद्धेर्दस्युत्रस्तैः दावाग्निसंवीतैः॥ रक्षतिरोगग्रस्तः स्मृतासतीतांकदाद्रक्ष्ये 57 रूपांतरत्वदीयं सिंहगतंखङ्गचक्रशूलधरम् // प्राथमिकंमदुपा For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 21 ) स्यं पात्रधरंतत्कदाद्रक्ष्ये // 50 // रूपंतवातिवल्लभमस्मदुपा. स्यंसाकुमार्यम् // पुस्तकमालाभयवरधारि कदाहंसदाद्रक्ष्ये // 59 // अतिवल्लभातिवल्लभरूपं शृणिपाशचापकरम् // द्रक्ष्ये कदासदाहंकारुण्यं सौकमार्यतारुण्यम् // 60 // त्रिभुवन मगिगृहधामां निरवधिकश्वर्यरूपगुणानामाम् // 61 // तां सुरक्षारामां कांचनवामाकदाद्रक्ष्ये // 61 विषयैषिणांच विषयं त्रिपुरेहृदयेसदावसति // तद्वत्तेपदयुगलं हृदयेमेनुदिनं कदानिवत्स्यति // 62 // सच्चिद्रूपमनंतं चैकमखंडेहि ज्ञा निनांभाति // यत्पादार्चनतोया तामंबांत्वांकदाद्रक्ष्ये 63 // विष्णुर्लक्ष्मीरस्तिहि याब्रह्माचैवसावित्री // रुद्रोरुद्राणीतां सुरमणशीलां कदाद्रक्ष्ये // 34 // सौंदर्यमकरंदवदनांभोज स्ययस्यास्ताम् // मायंतिनयन,गाः पीत्वाशंभो कदाद्रक्ष्ये // 65 // पीत्वापिनैतितृप्तिं मदनारेनेत्र गाली // वदनाम्बुजस्ययस्यामधुसौंदर्य कदाद्रक्ष्ये // 66 // अनुपमशीतलसुभगछाये पादाम्बुजेशीर्षे // यस्याःसुरुतेकिमपिहि सुखमातुलि. कंकदैतितांद्रक्ष्ये // 67 // यस्यागंतरात्रौ संविन्नारीसुख प्रदाभवति // तरुणविरागिनरस्यहि भवनौचरणांकदाद्रक्ष्ये // 68 // सफलनयनंजनुरपि सुरुतं सफलंहिममभाग्यम् // अभिषेचनिकरूपं दृष्ट्वांबाया कदाकुर्वे // 69 // यस्यांमनोनु बद्धं ब्रह्मोपेन्द्रादिकान्देवान् // हित्वाममपदयुगले त्वामखिले श्यम्बकदाद्रक्ष्ये // 70 // पुरतःकदानुकुर्वे योगीश्वरलभ्यमविशेषम् // नीचस्तकृपयाहं निरवधिकैश्वर्ययावस्तु // 72 // सच्चिन्मात्रमनन्यं विश्वाधारंसमस्तविश्वमयम् // निर्गुणमम्ब For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 22 ) तदेवहिसगुणरूपं कदाद्रक्ष्ये // 72 // यस्या रुपामहिना मूकःकश्चिद्धि कविसमाट // जातःकांचिनगर्या मदतचरितां कदाद्रक्ष्ये // 73 // कल्पलतांकामरेः कुचफलफलितां सुहस्त पल्लविताम् // सुरभिमुखाब्जसुफुल्लां द्रक्ष्ये करुणारसोपेताम् // 74 // अंतःसौषुम्णांत श्चामूलाह्यरंधांतम् // ज्योतिले खेवसतां यातांभातिहि कदाद्रक्ष्ये // 75 // भंडासुरमहि षासुर शुंभनिशंभादिसंहंत्री // याश्रीललितामाता हृत्कमले तांकदाद्रक्ष्ये // 76 // पुंभावेदंभावं विरचतियातां वलादेव // दिव्येमव्येसव्ये प्रणयेनमुदाकदाद्रक्ष्ये // 77 // प्रलयेयाहरि माह श्लोकार्द्धनौपनिषदात्म्यम् / सकलंभागवतार्थ तांग्रेम्णा हकदाद्रक्ष्ये // 78 // मंदस्मितेनयस्याः समतांज्योत्स्नासुधा नसंयाति // प्राकाश्येमाधुर्येशैत्ये गंगाकदाहितांद्रक्ष्ये 79 // स्वजनंरक्षणकामा स्मेरविभूतिहि दिक्षुविक्षिपति // शिवा यहाशयासास्याद्गस्तं तृष्णापिशाचिन्या // 80 // स्वाभाविकाभिरामा त्रिभुवनधामांशिवांकमणिधामाम् // श्यामां कांचनरामां सुललितनामांकदाद्रक्ष्ये // 81 // स्वचरणशरण जनानां त्वरितंकायंकरोत्यस्मात् / / त्वरितानित्यं नाना ख्यातायातांकदाद्रक्ष्ये // 82 // नित्यंतिनंहदयं यस्यारुपयाच भक्तेषु // नित्यंक्लिन्नास्तीति ख्याताहंतांकदाद्रक्ष्ये // 23 // नीवुद्धिविहीनं कृपणंचापल्यसंयुक्तम् // यद्यप्यवगुणसिंधुंया मांपुष्यतिकदाहितांद्रक्ष्ये // 84 // पीयूषार्णवमध्ये हेमगिरौ कल्पभूरुहारामे // चिंतामणिगृहवसतिर्यस्यास्तांत्वांकदाद्रक्ष्ये // 85 // तल्पेपरमशिवाख्ये मञ्चेयाब्रह्मपञ्चके / मुदिताद्र For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 23 ) क्ष्येकदास्थिता तां कामेश्वरयंत्रितासुतराम् // 86 // पुरट मयांकुशपाशौ सुमनोवाणैक्षवंचापम् // कराम्बुजैः संदधती स्मेरमुखीं त्वांकदाद्रक्ष्ये // 87 // नानागुणावतारां नानानंद विधायिनीमवाम् // नानाचित्रचरित्रां भवभयनाशांकदाद्रक्ष्ये // 88 // यत्पादोद्भवपांशु शिरसिचधृत्वाविधिर्विष्णुः॥ रुद्रः स्रष्टापाता संहातांकदाद्रक्ष्ये // 89 // मनभुवनानुल्लंघ्य हि प्रकारकैःशोभतेसर्वैः ।ललिताख्यातातस्त्वां यातामम्बांकदा द्रक्ष्ये // 90 // स्वात्मस्वरूपिणीया संवित्कामेश्वराभिन्ना // प्रेष्ठास्टहणीयाता मरुणामीशांकदाद्रक्ष्ये // 92 // यदैरुपि गीतं भेदविहीनंपरंतत्वम् // तदहंजानेशोणं धामकदाहंसदा द्रक्ष्ये // 92 // यत्संतुष्ट्येहरिरपि मात्स्यरूपंचकारासौ // नृत्यतिहरःपुरस्तात् तामखिलेशीकदाद्रक्ष्ये // 93 // यस्याः रुपाकटाक्षात् विषमप्यमृतायतेतस्याः // द्रक्ष्येकदानुपादो योगोभोगायतेपुंसाम् // 94 // रक्षाविधौहिसत्यपि विमुखा यस्यानरक्षिताःसंति // सुखिनोभवंतिपुरुषाः शरणगतास्तां कदाद्रक्ष्ये // 95 // ऊोलोकोवदनं मध्यांगंमध्यलोकश्च // यस्याजघन्यमंगं यतलादिस्तांकदाद्रक्ष्ये // 96 // नयने के चिद्यस्यास्ताटंकावृषिजनाःपरेचाहुः // सूर्याचंद्रमसौतां वमोजावपरेचकदाद्रक्ष्ये // 97 // कापुरुषोपिदरिद्री सदग्रणी विश्वविख्यातः // यस्याःकटाक्षपूतो भवतिकदाहंचतांद्रक्ष्ये // 95 // यस्याअरुणिमतेजो विनिमग्नानसाकमात्मनासाध्यान् // ध्यायन्तियहितेषां वश्यास्तेतांकदाद्रक्ष्ये // 99 // सुख्यतिचरित्रमस्याः कर्णौ रूपंचनेत्रेच // निरतिशयंहदयंता For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 24 ) मानंदांबांकदाद्रक्ष्ये // 100 // अग्नावौष्णंपुरुष चेतनता स्वादुतासलिले // यास्तिज्योत्स्नाचंद्रे भवसारांतांकदाद्रक्ष्ये // 101 // विश्वातंकत्रस्ते यस्यानामामृतौषधंदत्वा // सद् गुरुभिषग्वरस्तां सुखयतिनितरांकदाद्रक्ष्ये // 102 // कामक. लोईगविन्दु वदनंलिपिगौतुवक्षोजौ // तस्यायस्याहा जधनायंगंकदाहितांद्रक्ष्ये // 103 // अंजनवतीहियातां रागवतीनिरजनीश्वेता // हंसीरुतनिजदासा नवगतचारांकदाद्रक्ष्ये // 104 // भवभयभंगव्यसनां हीरकदशनांप्रकाशमद्ध सनाम् // तारुण्येनोल्लसनां वाणीरसनांकदाद्रक्ष्ये // 105 // नेत्रेभूयान्मनसिच रूपयन्निर्गुणसगुणम् // चरणौशिवादिवंद्यौ शीर्षेमेतेसदास्याताम् / / 106 / / व्योमादिमनोभवादि विद्या रूपांशिवैकसंवद्याम् / / पूर्णपिरांपरेशी निजरूपयात्वांकदाद्रक्ष्ये // 107 // एकावर्णमयूखैस्संसाराभिन्नचक्रेस्वे // व्याप्यसदायातिष्ठति चक्रमयीतांकदाद्रक्ष्ये // 108 // यस्या भजनमहिम्ना वाणीकांतश्चकमलापः॥ रतियोपिज्ञानी भवतिकदातांसदाद्रक्ष्ये / / 109 // ऋग्यजुरादिकवेदा स्तेऽपि विदन्तिप्रसोनयत्तत्त्वम् // हरिहरविरंचयोपिहि तामलमंबां कदाद्रक्ष्ये // 110 // प्लवंसंसाराब्धेः स्वजनतरणायातिसु दृढम् महामोहघ्वांतव्ययविधिविभास्वविनिभम् // त्वदीया नांतापप्रशमनधुरीणशिवनुते कदाद्रक्ष्ये मातस्तवचरणपकेरुहयुगम् // 111 // यस्यांस्थापितमम्बत्वयिकामक्रोधतम्क रत्रस्तैः // मानसरत्नसमूहम्मुनिवरसंधैर्मयाऽपितत्रैव 113 // इतिश्री आर्याभिलाषाष्टोत्तरशतकं समाप्तम् // For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 25 ) श्रीमत्यै त्रिपुरसुन्दर्यै नमः // भूतापराधसमनैकशुभस्वभावस्वाभिख्यजापकजनस्वपदप्रदायाः। संसारजाड्यगरिम. प्रसरातुल्य पादारविन्दुयुगलंमृदुलंनतोस्मि // 1 // भक्तातिभंजन करैकविचक्षणाया लीलालसल्ललितनूपुरलक्षितायाः आनन्दसिन्धु गरिमन्नसुप्ताधकाया चैत्यंपदाब्जयुगलंदृशिमे सदास्यात् // 2 // पादारविन्दनख चंद्रमसःप्रभाभि तिंधुनोतुधरणीधरराजकन्या / स्वीयाभिरंतरलमिक्षशरासनांस्वां मूर्तिपरामृतमयींप्रकटीकरोतु // 3 // वाटीवसंतस्यनभो घटाली शरत्प्रभेदोःपरिपूर्णकस्य / लोकोत्तराकापिमदीयनेत्रात् कदापिमासर्पतुदैवयोगात् // 4 // भालस्थलेचरणकंज परागमस्तु शीर्षचतेचरणपंकजयोर्ममास्तु / श्रीमच्छशांकव. दनेत्रिपुरेत्वदीया मूर्तिःसदावसतुहृत्कमलेमदीये // ५॥धाम्ने त्रिलोकधाम्ने परिमितनानेऽतिचैत्याय / प्रस्फुटललितानाने कारुण्यायलभ्यते मेचेतः ॥६॥इतिश्रीललिताचरणारविन्दस्तुतिषट्पदीसभाप्ता॥ __ श्रीमतीस्वमहिम्नारुपाम्बधारावर्षिणीमेशविदधातु // स्त्रीणांकामस्तवचरणयोर्चित्तहारीव मात मध्यान्हाऊयइव भवतिध्यानरूद्दीप्तिमान्सः // वाणीस्फूत्तौंधनविलसने ज्ञान विज्ञानयो / ब्रह्माविष्णुःशिवइवनरः सर्वदेवाग्रगण्यः 1 // नृणामीशेजगतिपरमाल्हादकारीपदार्थः सौर्यवीर्यबहुधनगृहं सुन्दरस्त्रीसुविद्या // पादाम्भोजेभवतिसकलो भक्तिभाजांतवैव श्यामेमातस्तवकरुणया यस्तुनस्यात्सनस्यात् // 2 // माता त्वंमेसकलजननित्वंसुहृद्विश्वमित्रे नाथात्मेत्रिभुवनभरे वि. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 26 ) श्वशिष्ये गरुस्त्वम् // काचिंतामेस्मरणसुखदेचैहिकीपारलोकी चिंतारत्नेनिजकरकते चिंतनंकिंधनस्य // 3 // रत्नत्रयमिदं स्त्रोत्रं पठेद्तयैकमानसः / ध्यात्वाम्बांकपणस्तस्या स्स्तोत्रोतष्टमवाप्नुयात् // 4 // इतिश्रीरत्नत्रयस्तोत्रं समाप्तम् // श्रीमतीदयाहृदयाविजयतेतराम् // नत्वापरात्परतरेपदपङ्कजंते याचेमनोरथशताधिकमेकमेव // प्राणप्रयाणसमयभमचित्तवृत्तिः पादाब्जयोश्चनितरां स्थिरतांविधत्ताम् // 1 // नत्वाम्बिकाचरणकल्पतरू सदाहं छायाभरणजनतापहरौशरण्यौ // प्रेमोरुमिष्ठरसमक्तिफलाय याचे संसारतापपरितप्ततनुःसुखार्थी // 2 // जगत्समुद्रेपरि मज्जतःपरे नौकाद्भुताविश्वसमुद्रतारिणी // कामादिनक्रादिभयापहारिणी प्रतिक्षणंमेस्मृतिरस्तुतावकी // 3 // शिवाय विघ्नौघविनाशकारिणी भक्तस्यतेज्ञानतमोपहारिणी // कुबुद्विमार्गेपतितांसुयष्टिका प्रति० // 4 // विश्वाटवीखिन्नपद प्रदायनि दैन्यछिदेकल्पलतासुखावहा // गंगासमानामलनाशकारिणी प्रति० // 5 // यामीयताऽभयकारिणीया सा युज्यमुक्तयेकनिमित्तभूता // परामृतासारसुखैककी भूयात् स्मृतिस्तेपदकायोर्मे // 6 // अनेकजन्मार्जितपुण्यसंचयैर्लभ्यारूपातेजगदम्बसत्फला // तयामनःसंस्मरणावलम्बिमे प्रतिक्षणंस्याचरणारविंदयोः // 7 // श्रीचरणस्मृतिदायकसतकमेतत्पराम्बायाः // प्रेमीपदपङ्कजयो रलिर्नरःस्वेष्टमाप्नो ति // 8 // इतिश्रीलदान्तकालेचस्मृतिदायकस्तोत्रं समाप्तम् For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 27 ) श्रीमतीनिजरूपानिजस्मतिदायिनी विजयतेतराम् // मातः शिवे सकललोकनिवासभूमे शंभोः परात्परतरस्य मनोविहारे ॥भक्तानुकंपिनि कलानिधिशखरे मे ह्यते स्मृति. र्भवतु ते पदपङ्कजस्य // 1 // कल्पानुजीविनिजभक्त मृकण्डसनुगीतप्रभावबहुलश्रवणे रतानाम् // काम प्रपूरिणि नृणां शिवकामधेनो ह्यन्ते स्मृतिर्भवतु ते पदपङ्कजस्य // 2 श्रीचिद्धने गुरुतमे गिरिराजबोधसन्मानदानकुशले निजलाभपणे // आनन्ददायिनि दयादलिताउघराशेह्यन्तेस्मृतिभवतु ते पदपङ्कजस्य // 3 // लीलाहताऽखिलसुरेन्द्रमहारिन्देलीलेछया कृतसमस्तजगद्विधाने // भक्तप्रसादपर तंत्रतमात्ममूर्ते ह्यन्तस्मृति भवतु ते पदपङ्कजस्य // 4 // श्रीमत्सुधाब्धिविलसदगृह राजनाथे कोटीन्दुसूर्यसमशोभितदेहकान्ते // पाशाङ्कशैक्षवशरासनबाणहस्तेह्यन्ते स्मृतिर्भवतु ते पदपङ्कजस्य // 5 // भक्तातिहन्त्रि भवरोगविनाशकत्रि ज्ञानप्रकाशमाय मालिनि मंत्रमूले कामेश्वरि त्रिदशनायकनायकेशि घन्ते स्मृतिर्भवतु ते पदपङ्कजस्य // 6 // स्मेरानने स्मरजये जगतां निदाने शीतांशसुन्दरमुखि स्मरशम्भुरूपे // पातालमूलचरणेऽव्ययशीर्षरूपे ह्यन्तस्मृतिभवतु ते पदपङ्कजस्य // 7 // वैश्वानरेन्दुरविलोचनिविश्वरूपे बलप्रपंचमयि तारिणि ताररूपे // साम्राज्यमुक्तिमयि मंगलमंगले मे ह्यन्ते स्मृतिभवतु ते पदपङ्कजस्य // 8 // क्षिप्रप्रसादिनि वरासनि सौम्यरूपे सारंगरागसुखदे शरणाथदात्रि // गंगाधराचितपददयि विष्णज्ये मन्ते स्मृतिभ For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 28 ) वतु ते पदपङ्कजस्य // 9 // पद्मप्रभूतसनकादिकयोगिवर्यस्वान्ते विराजित पदे प्रण तातिनाशे // भीतातिभाञ्जिनि विभासिनि विश्वमातन्तेि स्मृतिर्भवतु ते पदपङ्कजस्य 11 // अन्ते स्मृतिप्रदमिमं स्तवराजम्ब यत्तेपठेत् प्रयतमानस एव भृत्वा // तस्येश्वरि प्रपदपङ्कजयोः प्रसादादन्ते स्मृतिर्भवत मङ्गलदेवतायाः // 11 // इति श्रीपराम्बायाश्चरणपङ्कजस्मरणदायकस्तवराजः समाप्तः॥ ॐ अज्ञानं निविडं तमोभगवति श्यामत्विषोऽपिक्षणात् क्षिन्ति क्षण दा विचित्रमहिमा मायामविद्यामयीम् // कुर्वाणा हि विचित्रचित्रचरितं स्वानां जनानां मदे भूयासुम ये दीनवत्सलतरा हक्कोणपातास्तव // 1 // श्रीमत्पदा बजमकरन्दजयां जनाना माकांक्षितोरुमधुरद्रवसंप्रपूर्णम् // नानाफलं ददति देवि दृगन्तपाताः कारुण्यवारिपरिपष्टसुरद्रु मास्ते // 2 // शौर्य बलं वपुषि सुन्दरतां ददाति विद्या सुकिर्तिमतजा कवितां प्रभूताम् // लक्षमी सुलक्षणयुतां तरुणी जनाय दीनाय देवि नमते करुणाकटाक्षः // 3 // कामाक्षि चंद्राव हर्षकरोजनानां ज्ञानं दिन विशदयंस्तव सर्यतल्यः॥ उन्मूलयनशुभकर्ममहीरुहं मे हस्तीव राजति शिवे करुणाकटाक्षः // 4 // इतिकरुणाकटाक्षमहिम्नःस्त्रोत्रं समाप्तम् // ॐ गुरुस्त्वं महातत्वबोधप्रदाता // मुमुक्षोरुपास्यः सदा For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 29 ) शद्धभावैः // परवह्मविद्ये तदाराधकं त्वं निजानन्दबोधे नि. मग्नंकरोषि // 1 // हरत्यन्तरायंयतोविघ्नहर्ता / शिवेतेपदं भास्करीभास्करत्वात् / श्रियःसंनिवासाद्धरिः शंकरत्वाछिवः पंचदेव त्मकं संनतो स्मि // 2 // शत्फल्लपंकेरुहश्रीसमान त्वदीयाननस्वछलक्ष्म्याऽनिशंमे // यदानन्दितं मानसं वद्धम. स्ति तदागाढमेवाऽस्तबद्धमहेशि // 3 // त्वया सच्चिदानन्द यामे कयाचित्मनोग्रंथिमन्मुक्तिमतीतिचित्रम् / तवप्रेमसिं. न्धौनिमग्नतत्तत् विमविश्वसिंधुं तदेवातिचित्रम् // 4 // नदाराकुमारःसुहृद्वन्धुरीशे तथा भृत्यवर्गश्चमंत्रीनदासः। भटो भव्य हेतुर्नजानेनृणांते पदंचारुसर्वेष्टदंभीतिहत // 5 ॥न नित्यननैमित्तिक कृत्यमीशे जपध्यानपूजादिरूपमहेशि / कृतं मानसेनैवशुद्धेनमातः कुपुत्रंकुदासंक्षमस्वाऽनुभावात् // 6 // इतनैवदत्रुतंनैवकर्म त्वदर्चाविधंदविपाठंजपंच // अत: श्रेयसेमेनपश्यामिकिंचित् त्वदेकांरूपामन्तरासारभूताम् 7 // गृहंदेववासोजनश्चक्रवर्ती ग्रहस्थोपिमुक्तीभवेत्वरूपातः // परंपातकंपुण्यरूपंपरेशि नतोऽहंसदासारभूतां रूपांताम् // 8 // नपुण्यनशीलंशिवतोषकारि ममप्राणनाथे त वैवाऽनुभावात् / विधेह्यम्बपादारबिन्दद्वयंते हृदिहादशाभिमाशेमृडानि 9 // मातर्मातःधंगुरोनाथशंभो शंभोबालेकालिकेतारिकेच / भी. तंभीतंसंसृतेर्मोहजालात् त्राहित्राहित्वत्पदाब्जप्रपन्नम् 10 // कृपाब्धिर्गुणाब्धिःसुखाब्धिःपराम्बा महाप्रेमपाथोनिधिश्चंद्रवक्त्रा / महाविश्वसिंधोः सदादीर्घनौका मुहुर्मेम्बिके जल्पते For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 30 ) यान्तुघस्राः // 11 // इतिश्रीगुरुरूपिण्याः पञ्चदेवात्मकचरणा रविन्दायाः रूपानुभावापराधक्षमापन भक्तरक्षाविधायक सर्वे ष्टप्रदचरणारविन्दप्राप्तिफलदायकनामस्मरणप्राथर्ना स्तोत्रं संपूर्णम् // मन्दस्मितमहिमा // ॐ / मन्दस्मितेन करुणारसपरितेन श्रीमन्मखेन्दुजनिते. न जगन्निवासे / गांगेयवारिविमलेन मदीयतापं पापोत्थमम्ब परिणाशयतावकेन // 1 // आरक्ताऽधरमाश्रितापिजननि त्वन्मन्दहासप्रभा स्वाभाव्याद्भजतांसदासुक्रतिना मुच्चैर्ददाना गतिम् // चेतांस्युज्ज्वलयन्त्यहोवतशरत्पूर्णेदुशोभांपरां // कल्माषीकुरुतेतरामितिमयाऽयुक्तंचयुक्तंमतम् // 2 // मुक्ताहार कलानिधानरुचिरा स्त्वन्मन्दहासप्रभाः भूयासुर्भवतापपापं शमनाःकामाक्षिमेभूतये / शोभा श्रीमखपंकजस्यसहजा लं. कारभूताःपरा नैजोत्कर्षतया सदासुरणदी सौभाग्यजैत्र्यस्त्व रा // 3 // स्वभावेनसदारम्योमुखचन्द्रस्तवाम्बिके तदाकिम तवक्ष्येहं स्मितचन्द्रिकयाऽन्वितः // 4 // ममत्वहीना निरहं कृताये स्वानन्दपूर्णानिजलाभतुष्टाः जगत्स्वरूपंपरिपश्यमाना विद्याविदस्तत्वविदोजनास्ते // 5 // इतिश्री नर्मल्यकरी मन्दस्मितचन्द्रिकास्ततिः समाप्ता॥ श्रीमती स्वचरणपङ्कजं मे शिरसिरूपयाविदधातुतराम् // For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (31) ॐ। स्मितमुखोज्ज्वला सूर्यशोभिनी कुवलयेक्षणा चंद्रशेखरा / कुसुमबाणिनी चेनुचापिनी कुचभरैर्नता स्थीयतां हृ. दि // 1 // सकलदृङ्मनोहारि ते वपुः निखिलवाङ्मनोऽतीतवैभवम् // सकलभुक्तिदं मुक्तिदं शिवे मममनः सदा तेन यु. ज्यताम् // 2 // शरणमीयुषां शर्मदं नृणां ध्वजसरोरुहाद्यङ्कितं तव / करुणयाहि मे दीनपालिके चरणपङ्कजं मस्तके कुरु // 3 // जननि तेकृपा किं न साधयेत् विषममीश्वरि प्रणतपालिके // सममिदंकरोत्यल्पबोधकं निखिलबोधिनं सर्वभूषणम् // 4 // जननिते जनोवीजमद्भुतं स्मरति वाग्भ. वं चन्द्रनिर्मलम् / वदनकञ्जतोवैखरी सुधा / मधुझरी समु. त्पद्यतेऽचिरात् // 5 // जननिपुण्यकृद्दीजमध्यमंतवभजेज. नोबिम्बकान्तिमत् / भजति तं बधर्मुक्तिरीश्वरि / बुधमनोहरा ते प्रसादतः // 6 // तव शिवन्तिमं सायमग्निभं जपति योनरोबीजमम्बिके / सकलसिद्धिभाक् जायते स वै चरणचिन्तकः पूज्यतेजनैः // 7 // परमवैभवात् ते कृपाबलात्तव मनोर्जपात् शात्रवं मनः। जननि भेदकृत् हृत्यमूलतोनिजपदं जनोयाति सौरव्यतः // 8 जननि ते कृपापारगौरवैरमृतशीतलैः शोभनैरसैः॥ तव दृगंचलैः कामवर्षणैः स्नपयमां शिवे विश्वतापितम् // 6 // तव कृपारसैहर्षवर्षणैः सुकृतपाकजैस्तुष्टिदायकैः / शशिकलोज्ज्वलैः शीतलैः स्मितैरुचिकरैर्नृणां स्नापयाऽधुना // 10 // अकृतसौहृदं स्वाम्बिकासुतं ह्यपिपरंपरेत्यस्ति पातिया // भुवनपालिके विश्वसूर्जनं कुकृतिनं परंपाहि मामपि // 11 // मधुकरोयथा पद्ममीहते मम मन For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (32) स्तथा तेऽघिमीहते / कुरुकृपांशिवे पूरथाशुमे मम मनोरथं तेऽस्तुमे नमः // 12 // दनुजनिजिनिजरः स्मृता झटिति दानवान् हंसि लीलया // स्वजनपालिका स्वं समाऽपिहि पदमखण्डितं रासि तानपि // 13 // तव शिवे कृपालोकिताजनाः करधनाभवत्येवसद्गुणैः / ग्रथितबुद्धयोलोकरञ्जना श्चरणमानसास्त्वां भजन्त्यपि // 14 // गुणनिबन्धनैर्नामरत्नकै प्रथितकण्ठलः सद्गुणः सभाम् / मतिमतामलं भूषयत्य हो डुगणाङ्गणं चन्द्रमा यथा॥१५॥ परमरम्यकैस्तेम्बिकेगुणैयथितमानसोमुक्तिमेत्यहो // तव गुणार्णवे मग्नमानसस्तरति ना जगत्सागरं तु सः॥ 16 // स्मितयुतं मुखं शङ्कते हि किं रूचिकरंशिव पार्वणः शशी // इति यतोजनोध्याय, तोमुदा हिमयते मनस्तापहारकम् // 17 // दिवसहीनतां कालिमामपि रजनिनायकोनोमजेद्यदा // सुकृतशात्रवं भाव मीश्वरि तव मुखेन सः साम्यतामीयात् // 18 // तव मुखेन ते साम्यमम्बिके भजतु श्रीमुखं नैवचन्द्रमाः // दिनविलास कृन्निष्कलङ्कितं रजनिभास्करं धर्मरक्षकम् // 16 // जठररक्षितः पालितस्त्वया जननि जन्मतोऽद्यावधिः प्रभो // अव तथैवमामग्रतोऽपि हि करुणया जनं तेविसंगतम् // 20 // तावकेन जगदम्बभुज्यते सेवकेन सुखमक्षयं हि तत् // नैव लेखपतिनेशमानिना सार्वभौमपदवीस्थितेन च // 21 // इति श्री आनन्दगीतं समाप्तम् // उँ स्वर्णपाशाङ्कुशामिक्षुधनुः पुष्पशिलीमुखाम् // उद्यद्भा For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (33) नुसवर्णाङ्गी पूर्णाहन्तांप्रणोमि ताम् // 1 // भूतेऽभूद्वर्त्तमानेऽस्ति भविष्ये च भविष्यात // अखण्डोल्लसनां साक्षात् . पू.॥ 2 // ब्रह्मादिस्तम्बपर्यन्त स्वरूपणावभासिनीम् // चिद्विलाससमुल्लासां पू ॥३॥शिवादिक्षितिपर्यन्त षटाशत्तत्वविग्रहाम् // तत्वातीतांशान्त्यतीताम् पू० // 4 // कत्त्री भोक्री तथा कीमभोक्री विश्वचिन्मयींम् // एका मनन्यरूपाम्बाम् पू 0 // 5 // विन्दुनादकलातीतां स्वाश्रयां स्वप्रकाशिनीम् // पूर्णकामांपरांकाष्टां पू * // 6 // स्वमाधुर्य रसोल्लासतुलीकृतसुधापृथांम् // प्रेष्टां प्रेष्टतरादाद्यां पू०॥७॥ स्वात्मज्ञां स्वानुभावज्ञां सर्वज्ञां भक्तचित्तगाम् // सर्वगामम. लामिष्टां पू 0 // 8 // पूर्णाहन्ताष्टकमिदं पूर्णाहन्ताप्रसादतः॥ पूर्णाहन्तां पठन् ध्यायन् पूर्णाहन्तामवाप्नुयात् // 6 // इति श्रीपूर्णाहन्ताष्टकंसम्पूर्णम् // श्रीवाग्वैभवविधायिनी विजयतेतराम् // ॐ नेत्रेशिशिरीकुरुते हृद्तकजविकाशयते // अमृतमयं भानुमयं भास्वास्त्वन्मुखमहोचन्द्रः // 1 // वितयतिधिषणा सिंधुं विश्वसमुद्रंविशोषयति / भास्करउतमुखमिदुहृदयेखेमातरुदयकारि // 2 // विशदयतिसतांमनांसि क्षपयत्यज्ञानशर्वरीसूर्यः // मातस्तमुखमिन्दुःकुर्वन्मोदं सदास्विदास्तेहि // 3 // भजतेऽनृजवे वासः शिरसिचगिरिजे त्वयादत्तः॥ चंद्रश्चाभजमानः सोपित्यक्तःसुवृत्तसंपन्नः // 4 // चरणंशर For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 34 ) णकरणं चानन्दस्यान्वहंहरणम् // विपदांशोभाधरणं ममचिछक्तेहिविश्वसंतरणम् // 5 // करुणादृष्टापतितो जगदीशेश्वरि प्रबलपुण्योधैः // कामाक्षितेहिभक्तः पुरुषःस्याद्भोगयोगसंयुक्तः // 6 // स्वीयहेतिहित्वा भ्रूधनुषामोहनास्त्रदृग्बाणान् // तवहियुवाश्रितस्त्वां कामोजितवाञ्छिवे शम्भुम् // 7 ॥करुणारसंप्रवर्षति भक्तासितकण्ठमधहर्षती॥मंजुकटाक्षघटालीतव कामाक्षि हि शिवाय मे भूयात् ॥८॥प्रावृण्मेघालीवहि रसंप्रवर्षत्यहोहिपल्लवितंम् ॥स्थाणुं तमेवदृष्टया स्मितको मुद्याचकोरशीलधरम् // 6 // इत्यहोचित्रमितिभावः // द्विविधंरसंप्रवर्षति / ललिताकादम्बिनीचैका // कामेशेमायदीने शाारसैवकारुण्यम् // 10 // इत्यहोचित्रचमत्कार इति भावः // अधररसामृततृषितं स्मितगंगावारिवितरंती // प्रा. णप्रियतमाशं ह्यधिकंकुरुतेमहच्चित्रम् // 11 // इत्यहोघटनघटनापटीयसीत्वंतस्याः // क्षणचलिताधूलतिका / जगदु दयं करोति विकरोति ॥पालनमपिसाकुरुते किंतेकामाक्षि वि. श्वनाथाऽसौ // 12 // एषातेभ्रूलतिका ख्यातासंख्येयविश्वेषाम् // जनिपोषणलयकारक की कामाक्षिजीयात्सा // 13 // एषाक्षणेनविश्वं जनयतिहरते सुपुष्णाति॥भ्रूवल्लीतेमातः का जेशा केवलंहिशोभार्थम् // 14 // चंपकवाटीसदने चंपकपुष्पाभनासिकेललिते॥चंपकपूजितचरणे चंपकहारशोभितेनमः॥ 15 // चैतन्यात्रयलिंगे भवमानाप्यलिंगिनीध्रुवरूपा। विश्वसमुद्रं दृष्टाकाप्पद्भुतानीका // 16 // सर्वाङ्गैरनुरक्ता भवतीरक्तासतीहिसर्वाङ्गे // मन्येहिमगिरिकन्ये कामेशेप्रिय For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 35 ) तमेसततम् // 17 // त्रिपुरेऽतुलितोमहिमा विराजते भुञ्जतोभोगान् // विगताहन्ता ममता त्वद्भक्तस्यैवनान्यस्य // 18 // पल्लवसुरतरुरूपा लोकोत्तरदुग्धपूर्णघटफाला॥ जयति हि का चिदपूर्वा संसृतिरोगापनोदिनीलतिका // 16 // अद्वयरसपरिपूर्णोहिमगिरिलतिकासमाश्लिषः / स्थाणुरपूर्वोजयति हि चैतन्यानन्दसद्रूपः // 20 // हिमगिरिजातापूर्वा लतिकाकापिचमत्कारिणीजयति // भवतिहितदर्शनतःस्थाणुःसद्यश्चपल्लवितः॥२१॥भक्तिददातिमुक्तिंसुक्क्यानहिदायतेभक्तिः॥ नृपपरिचारकयोरिव शिवेऽनयोगरीयसीतेभक्तिः // 22 // भक्तिस्तत्रहिमुक्तिःसहचर्यम्ब हिकथंनकामाक्षि / राज्ञींविहायचेटींसेवेतकोवैविचारसंपन्नः // 23 // चक्षुर्युगलेतरलां सरलां चित्ते शिवस्यकरुणांताम् / विरला भजन्त्यराला केशे कुचयोः कठोरतापन्नाम् // 24 // श्रुतिपथचार्यपि नयनं साजनमिव भात्यनञ्जनं ललिते // सत्संगत्या मुञ्चति कोपि न धम्म स्वभावसंभूतम् // 25 // श्रुतिपथचार्यपि नयनं चपलतरं वामगतिकमरिवलेशि / स्वस्मै नापेक्षितमाप कल्याणं दिशति कथं न दासाय // 26 // श्रुतिपथचार्य्यपि नयनं कारुण्यं यच्चशुद्धतां धत्ते ॥युक्तं परमंजनतां एगं कामाक्षि कथमरालत्वम् // 27 // अद्वैतश्रुतिचारे चारुाण नयनेतिशोभना करुणा / काचित्कामशिवस्य त्रातुं विश्व चमांजयति // 28 // कृपाम्बुधाराक्षालित सुजनस्वान्ता घपङ्कबाहुल्याम् // परचित्कलास्वरूपां शिवादिवंद्यां समाश्रयगंगाम् // 26 // यद्यपिनद्योवह्वयः सन्तिमहत्योभुविख्या For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताः // ईशशिरोधिनिवासा गंगादेवि त्वमेवैका ॥३०॥करुणा यं तेवृणुतेतमेव मुक्तिस्तदैवकामानि // मन्येऽखिलादिगण्ये त्युभयोरनयोर्मतं चैकम् // 31 // कुटिला शरला भूयान्मूलाधारावलंबिनी काऽपि // भुजगी त्रिधामरूपा शिरसि शिवन समरसीभवतु // 32 // स्वात्मतया स्पृहणीया मनुभुबनानां यतोहि शोणासा / अथवाशुद्वारक्ता भक्तस्योद्धरणरागणी यस्मात् // 33 // श्रीशंभुनाऽनुभूतंपितुः स्वभाव हि कठिनयोः कुचयोः॥ तापघ्नं गिरिजेते सद्भक्तैर्दृगंचले सततम् वै // 34 // नीरागाऽपिसरागा शरणागतरक्षणे त्रिपुरा // निष्कामापि सकामा तस्यैवोद्धारणाय सा भवति ॥२५॥सवेषां स्पृहणीया ह्यन्तर्याम्यात्मरूपिणी हियतः। सत्यपि शुद्धा शोणा स्वानामुद्धाररागिणी यद्वा // 36 // शंभोर्भाग्यवशेन हि नीरागापि च सरागरूपवती / जाता हिमगिरिकन्या निरंजनापि साञ्जना भवति // 37 // नखमणिकान्त्याकृपया तमसांस्तोमं सतां हि हृद्भुबनात् // दूरीकुर्वन्त्याम्ब प्रकाशते वस्तुचरणंते // 38 // शरणागत संरक्षण पोषणकरणे विचक्षणं चरणम् // सत्सेव्याया गाढ़श्रेयस्करणं गृहीतमस्तीह // 39 // अतोमे निर्वाहमुक्तो च का चिन्ता न कापीति भावः॥ रजसा रजस्तमस्को योनायुक्तोहिविवृद्धशुक्ल गुणः। मातः पदपङ्कजयोः संस्तेसोऽभ्येति निर्वाणम् // 40 // चरणं चिन्तयतो मेचतो भ्रमरायते मातः // मुखचन्द्रं चतदेव हि तव दवि चकोरवदाभाति // 41 // मृगमदविलसितभाला करधृतमाला मुखाब्जमधुहाला // मानसमणिमयशाला नि For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (37) वासशीला शिवाऽस्तु मे बाला॥ 42 // त्रिभुवन जनप्रतिपाला सद्यः संत्रोटिताऽहिताजाला / वरदायिन्यस्तु वाला चन्द्र मुखी हंससंचाला // 43 // ललिते लीलालसिते वसिते सन्मानसे मणिद्वीपे / असितेक्षणे कृपातो वसहृदयेमन्दहसि तेमे // 44 // दमनी दुष्टजनानांशमनी संसार मोहतापानाम्॥ जननी काजेशानां क्षमनी भक्तापराधानाम् // 45 // यस्या येन हृतं वा यस्य ययांगं हि संप्रेम्णा सा सोवतु मामर्द्ध कस्याः केन च कया कस्य // 46 // दुष्कृतनिदाघभानो प्रतपति यस्मिन् क्षणे झटिति / सुखयति मां हि महेश्वरि तव स्मृतिर्दाक्षिणः पवनः // 47 // दुष्कृतनिदाघरवि णा प्रतापितं चास्वभावगतम् // सुखयतु हिमगिरिकन्ये तव स्मृतिमलयजः पवनः॥४८॥ उजसि कस्मिंश्चिदपि ब्रह्मादितृणान्तविधाननिपुणे हि / लग्नं मनोनिरंतरमग्निशिखा वर्णवर्णे मे // 46 // वितरदयावतिदृष्टिं तेनस्यामद्वयी लोके // मय्यधमेऽल्पमनीषे त्वत्पदशरणागते कृपया // 50 // त्रिपुराचरणं शरणं यस्य नमरणं जनिर्भवति / तस्य हि स च ज्ञानामृतभोक्ताभोक्तापि विषयाणाम् // 51 // विश्वविलक्ष. णरक्षणचरणसरोजौ सतां सदा ध्येयो। स्थेयौ हृदि मे स्यातां श्रीमातुस्त्रिपुरसुन्दयोः // 52 // चरणं कमलं मन्ये लक्ष्मीरुत्यद्यते हि यतः // अथवेष्टवानदचं कल्पतरं चरणमम्बायाः / / 53 // विधिलिखितं दुर्वर्णं भालस्थं मेऽयविलुं. पामि / अम्बाचरणसरोज द्वयमधुनासह परागेण // 54 // परमामृतमयचरणं ह्यकरणकरणं मदीयशरणं तत् / भूयादे. For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (38) नोहरणं ह्यजरामरणं पराम्बायाः // 55 // कर्माधीनोऽहंते कर्माधीनं तथैव जगदीश्वरि वारय कर्मविपाकं स्वरूपभूतं प्रदेहि मे प्रपदम् ॥५६॥अमलं तव पदकमलं समलं शुद्धं सुवित नोति // मामखिलेशि शिवेशि हि मम हृत्कमलेऽस्तुवासोऽस्य // 57 // जयति त्रिपुरात्रिपदं प्रकाशविमर्शसामरस्याख्यं हि // तुर्यं निर्वाणाख्यं वेदशिरोऽलंकृतीभूतम् // 58 // सं. मृतिसमुद्रपोतं नानानन्दैकदायकं पुंसाम् / श्रीत्रिपुरापदयुगलं श्रीगुरुकृपया मया लब्धम् // 56 // द्रढतरगुणैर्निववा ललिते मां तावकैः परमैः / पशुपतिभावं नीत्वा पशुता प्रोत्सारणीया मे // 60 // चरणे भवभयहरणे रम्यरणन्नू पुराभरणे / अरबिन्दश्रीहरणे स्वान्तस्यादम्बते हि शिवकरणे // 61 // कमनीयं चरणयुगंसत्पुरुषाणां सदैव शरणीयम्। भजनीयं ते शोभन ब्रह्मादीनां सुनमनीयम् // 62 // धाम्ने त्रिलोकधाम्ने परिमितनाम्नेऽतिचैत्याव / प्रस्फुटललितानाम्ने कारुण्याय लुभ्यते मे चेतः // 63 // श्रीसर्वान्तर्यामिणि जानासि त्वं मनोगतं सर्वम् // एवंकुरु मा चैवं कथयामि तवाग्रतः किमतः // 64 // हरिणाङ्काङ्कितभालं करिणामीश्वर इवास्यसंचालम् // कुचकलशभारखिन्नं ब्रह्माभिन्नं तवेशि रूपमलम् // 65 // नलिनीदलगतजलवत् स्पृशति न यं देवि कर्मलेशोऽपि / वन्दे तं तवभक्तं अन्तरशक्तं हि कर्मकुर्वाणम् ॥६६॥अलकावल्यलिमाला शोभितपङ्केरुहाननं यस्याः / चित्रं स्मितकौमुद्या स्तमोन्तरीयं हरत्याशु // 67 // कामशिलीमुखन यनं तच्चापभ्रूयुतंकृत्वा // दृक्चाराक्षेपेण हि For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (36) चित्रं निष्काममानसं कुरुते // 68 मजुदृगञ्चलमालां स्वरूपशोभाधिराजसत्कन्या श्यामसरोजोद्भूतां कामेश्वरवरोरसि क्षिपति // 66 // भ्रूयुगलाकृतिधनुषः कोटिविस्तृष्टं कटाक्षविशिखं ते / धैर्य कवचं शंभोः शतधा कुरुते परं चित्रम् // 70 // गंगां स्मितमिति मत्वा महेश्वरेणाम्बते शीर्षे // स्वे किंधृतासुघटते विष्णुपदी ह्यन्यथा तत्र // 71 // स्वजनं रक्षणकामा स्मेरविभूति हि दिक्षु विक्षिपति // तन्मुक्त्यर्थं प. रितो ग्रस्तं तृष्णापिशाचिन्या॥ 72 // संजीवित स्तव दृशा सहभू स्त्वदीयभ्रूचापसुन्दरदृगञ्चलबाणधारी कामेश्वरि त्व. दुपसंश्रितईशदग्ध ईशं विजित्य तव दास्यकरं कृतज्ञः॥ चकार इतिशेषः // 73 // एकानन्तानंदा शुद्धा बुद्धा हि चिद्रूपा // पूर्णा विश्वसिस्मृक्षोरिछाभिन्ना परेशस्य // 74 // सुकृतवृक्षफलं फलदं नृणां श्रुतिपयोनिधिरत्नमलौकिकम् // मम मनोरथसिद्धिसुरूपकं सकलमातुरिदं हि पदाब्जकम् // 75 // इतिश्री सौभाग्यरसमाधुरीस्तोत्रम् समाप्तम् // श्रीमछिवशक्तिस्वरूपिणी विजयतेतराम् // एकैवकाचिदमला निजलील यैव भक्तेष्वनुग्रहवशात्परमं स्वरूपम् शाक्तं च शैवमिति यद्विविधं सुधृत्वा रूपेण चोभयकयोस्त्रिशती जगाद ॥१॥श्रेयस्करी सकलतापहरीजनानां वांछार्थदा निगमसारवती प्रसिद्धा / नाम्नां शतत्रयवती त्रिशतीशिवायाः / जिह्वाग्रगा भवतु मे परदेवतायाः // 2 // For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (40) वाग्देवताष्टकमुखाब्जविनिर्गताया आन्दसिन्धुलहरी ललिताक्षरालिः॥ धर्मार्थकामपरमार्थपदप्रदा मे नामालिरस्तुरसनाग्रगता शिवायाः // 3 // इतिश्रीत्रिशतीरत्नत्रयं समाप्तम् // ॐ एकमद्वयमनन्तमीप्सितं मामकं परमसौरव्यदायकम्॥ व्यापकं सकललोकपावनं दर्शयाम्बपदमक्षयं तव // 1 // संसारतापपरिदग्धकलेवरस्य दुःखछिदे जननि तावकपादकञ्ज. म्॥ सिद्धौषधं गुरुभिषग्वरसंप्रदिष्टं भूयाद्भवानि मम मस्तक एव नित्यम् // 2 // तप्तानामातपत्रं भवदिवसपते रश्मिजालाज्जनानां भक्तनां कामरत्नान्यविरतमखिलान्याकिरत्स्वच्छभासम् // मातः पादाब्जयुग्मं नखशशिदशकं सन्निधानं श्रियस्ते सान्निध्यं स्वस्य देयान्निजनहिमतया मह्यमाखण्डलेशि // 3 // धन्यास्त एव सुखिन स्त्रिपुरे भवत्याः पादारविन्दयुगलं हि विचिन्तयन्ति // मान्याः सतां समधियो भुवनैकवन्द्या भूमौ भवानि भवतापहरा जयन्ति // 4 // यथा विहंगा झटिति प्रयान्ति श्रीमद्गुरोलब्धशरण्यदीक्षाः॥ तवेह मातः स्वपदं महान्त स्तथापदाब्जार्चनयाऽव्ययं तत् // 5 // परिहृतपाथोजश्रीः किसलयरुचिहारको हि चरणस्ते शोणिम्ना च मृदिम्ना प्रभया मेऽज्ञानतमोहरतु // 6 // इति श्रीचरणारविन्दस्तुतिः समाप्ता // श्रीअम्बादर्शनलालसापरिपूरिणी अम्बाज नभक्तिर्विजयतेतराम् // For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम्बादर्शनलालसाभरमहो तस्याः प्रसादादहं साफल्यं विदधे ह्यतश्च सदृशः कोऽनेन भूयान्नृणाम् // एतादृक् फलसिद्धये न हि यथा मोक्षस्य भक्तिं विना हेतुर्भक्तिविलब्धयेऽत्र जगति स्याद्भक्तसंग विना // 1 // नामश्रवणं जातं सफलं श्रवणं तदेव संजातम् // अधुना नयनं सफलं करोमि ते देवि दर्शनतः // 2 // चरणं कमलं मन्ये लक्ष्मीः संपद्यते हि यतः अथवेष्टदानदक्ष कल्पतरं चरणमम्बायाः // 3 // विधिलिखितं दुर्वर्ण भालस्थं मेऽयविलुम्पामि ॥अम्बा चरणसरोजद्वयमधुना सह परागण // 4 // यस्याः प्रसादात् खलु मानवानां स्वर्गापवर्गों सुलभौ भवेताम् // अतोहमम्बां प्रणिपत्य सादरं संप्रार्थयामीह कृपां तदीयाम् // 5 // इतिश्री श्लोकपञ्चकमेतदम्बिकायाः परमपावनगुर्जर प्रांतदेशस्थायाः समाप्तम् / / उँ'अज्ञानतामिश्रदिवाकराभं प्रपन्नचित्ताब्जरविप्रकाशम्॥ दैन्यगुमछेदन सत्कुठारं ह्याराध्य पादाज्वमहं नतोऽस्मि 1 // आनन्दकन्दमसुरामर वृन्दवन्धं श्रीवारणेन्द्रमुखमीप्सितदानदक्षम् // आमोद मोदक सुभाजन पाणिपद्मं विघ्नापहं वरदराजमहं नमामि // 2 // प्रकाशसूर्याविव संप्रयुक्तौ लीलासमाश्लेषित दिव्यरूपौ // परस्परावासित मानसौ तो वन्दे शिवौ वाङ्मनसोविशुद्धये // 3 // विश्वेषां रक्षणाय त्रिदशवरनुतः कालकूटं पपो यः ख्यातः कालान्तकोऽसौ पुनरपि हि सदा मीलिताक्षः स्मरारिः // नागास्तृप्ति For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (42) रिरंसुः स्वयमपि चरमन्देवदेव्या भवान्या देव्यैक्यं संगतोयोऽखिलगुरुरवतु श्रीमहेशः कृपालुः // 4 // चन्द्राननाचन्द्रसमानवर्णा चन्द्राभभूषाम्बरमादधाना // लालित्यचित्रस्तवनप्रसन्ना वाणी प्रदेयादमला गिरोमे // 5 // घनश्यामला दोभिरम्बा चतुर्भिः दरं सेषुचापं च चक्रं वहन्ती // ललाटार्द्धचन्द्रा त्रिनेत्रा हरिस्था निजानन्दिनी स्वामिनी मे सदाऽव्यात् // 6 // सेवायां स्थिता सिंहवाहिनी मूर्ति स्तस्याध्यानम् // चक्रं श्रुलं कराब्जैः कनकमणिमयं सर्वकामप्रपूर्ण पात्रं खड़े दधाना प्रणतजनमनोऽभीष्टदानेकदक्षा। दुर्गा स्मेराम्बुजास्या हरिविधिगिरिजा नाथसंसेव्यपादा॥सिंहासीना भवानी मम हरतु भयं द्राग्दयादृष्टिपातैः // 7 // अजातपुंस्पर्शरतिं कुमारिणीं कन्यां सदा विश्वमनोविहारिणीम् // ब्रह्मेन्द्रविष्णवीशनताधिकामहं नतोऽस्मि दुर्गामखिलार्थदायिनीम् // 8 // नतोऽस्मि नवयौवनां धनसमानकान्ति शिवां मतङ्गकुलमण्डिनी प्रचुरपुण्यचित्ते भवाम् // सुरामुदितमानसां सकलकामसंदोहिनी विनम्रवरदायिनी त्रिभुवनेश्वरीमत्रिणीम् // 6 इतिश्री गुर्वादिनामरूपधारिणी स्तोत्रं समाप्तम् // हरत्यन्तरायं यतो विघ्नहर्ता शिवे ते पदं भास्करो भास्करत्वात् / श्रियःसंनिवासाद्धरिः शङ्करत्वाछिवः पञ्च देवात्मकं सन्नतोऽस्मि // 1 // कृपा तव तरंगिणी। विमल भावपाथो निधे स्त्वरा भवतु संगिनी विषयिकस्य मे सर्वदा॥ समस्त भुवनेश्वरि त्रिविधतापविध्वंसिनी। प्रमोदपददायिनी। जनमलापसंहारिणी // 2 // अज्ञाजना For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (43) जननि विष्णुहरादिदेवान् विश्वस्थितिप्रलयसृष्टिकरान्वदति। स्वस्वाधिकार्यकरणे च तएव सृष्टादेवि त्वया कथमतः प्रभव स्तदाते॥४॥तावकेन जगदम्ब भुज्यते सेवन सुखमक्षयं हि तत्॥नैव लेखपतिनेशमानिना सार्वभौमपदवींस्थितेन च // 5 // गतकलङ्कशशाङ्कसमछवि समुदयत् प्रतिवासरमम्बिके // सु. खकरं दुरितोघहरं परं ह्यवतु मां ललितं वदनं तव // 6 // जननि मोदयतु प्रणमामि तद्यदुदये हृदयेऽवयुनं तमः // गमयति प्रलयंवदनं तव प्रबलपुण्यचयैर्मनुजस्य माम् // 7 // श्रीमद्गुरोः सेवितपादपद्मा स्तदाशिषा शुक्लहृदो जनाये। अनेकजन्मार्जितपुण्यभाजो ध्याने समागछति देवि तेषाम् // 8 // ब्रह्मत्वं तदभिन्नशक्तिरचलाऽ नन्तागुणा निर्मला / त्वं विद्या ज्ञानरूपा त्रिगुणमयतनुर्ब्रह्मविष्ण्वीशयोनिः / को टिब्रह्माण्डमाता त्वमसि च परमाऽधारभूताऽखिलानां विश्वे षां पालयित्री भगवति शरणं घारदुःखे त्वमेका // 9 // मा तः श्रीमूलमन्त्रं तव जपति जनो भोगमोक्षकमूलम् संप्राप्तं नाथवक्राद्विकसितवनजात् प्रत्यहं ध्याननिष्ठः // हृत्वाशु द्वैतजालं स भवति च महामोक्षभागत्र नुनं ह्यद्वैतानन्दपूर्णो विमलतरमना स्त्वत्कृपापात्र एव // 10 // धर्मादर्थात्कामना तो विवेकात् सेव्या चैका तत्वविद्भिः परैव / यस्याः सेव्यं पादपद्मविधत्ते दासस्यार्थे भूरिभोगं च मोक्षम् // 11 // भूतोद्धारपरायणासु कृतिभिध्ये याजनैमक्तये यद्यहाच्छित लब्धये सुमनसां चिन्मात्ररूपा परा / ब्रह्माद्याः प्रभवंति नैव सदया दाने वरस्य क्षमा स्तस्यास्तंत्रतया प्रवर्तनपराः For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (44) शास्त्रेषु निश्चीयते // 12 // ममत्वहीना निरहंकता ये स्वा नंदपूर्णा निजलाभतुष्ठाः // जगत्स्वरूपं परिपश्यमाना विद्याविद स्तत्वविदो जनाये // 13 // विलोकिता स्ते करुणादृष्ट्यात्वामेव जानन्ति जगत्समग्रम् // अहंममत्वेन विभि तं ये भेदेन हीना परमात्मरूपाम्॥ 14 // जितामरजितेजिते जननि मुक्तमालावृते सुरासुरनमस्कृते वृजिनदुःखदूरीकते // सुधाम्बुधिविहारिणि स्मरणरागिसंतोषणि / परामृतविधायिनि प्रणतपालिनि त्राहि माम् // 15 // दोषाकरं कुटिल भेवकलङ्किन त्वमम्बाश्रितं न च जहासि महानुभावात् - चन्द्रं शिरःकृतपदं क्षमतांवरिष्टे मांतत्समं त्यजसि किं तव पादलग्नम् // 16 कर्तृप्रपालकहरा जगतां त्रिदेवाः ज्ञात्वा प्रभावमतुलं परदेवतायाः / ईशः सदाशिव इमावपि संप्रलक्ष्य मंचत्वमापु रपि यच्चरणाम्बजस्य // 17 // भूमौ गतायां धरणी न वेति भुवं विजानाति विभनि यावै एवं च नत्वेषु गतापरेषु ज्ञाता मयातरूपया शिवास्तु॥१८॥रजस्तमः सत्वमिति स्वनेत्रयो विभर्षिशोणासितशुक्लवर्णतः। शिवेऽवसा ने हि लयंगताः पुनः त्रिदेवताः संरचितुं हरादिकाः // 16 // प्रणयकलहान्नमीभूतः पदाजशिरोधृतो मदनदहन श्रीशम्भू स्ते पदेन तिरस्कृतः // कुसुमधनुषा चेत्थंभूतोविलोकित एषतत् हसित इव ते पादाभूषारवस्य मिषेणहि // 22 // मुखेन चन्द्रस्य सुरदुमाणां करैश्चपद्भ्यां कमलस्यलक्ष्मीः समस्तलक्ष्म्मांतव चेटिकायां सत्याहृताम्बात्रन वेद्मि बीजम // 23 // इतिश्री पराम्बिकानानारूपगुणरत्नमंजुषारूप स्तुतिः समाप्ता // For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (45) ॐ श्री उद्यत्सहस्ररविधाम समानकान्ति मन्दस्मितेक्षण युतांकुचभारशोभा पाशांकुशैक्षवाराशन वाणहस्तां ध्याये सदा परशिवाङ्कगतां पराम्बाम् // 1 // कामेश्वराङ्कमणिगेह निवासशीला तुल्यस्वरूपगुणवेषवयोभिराम कामेशवाहु परिरम्भणमोदपूर्णी ध्याये मुखेन्दुविलसस्मित चन्द्रिकान्ताम् / 2 // कारुण्यपूर्णनयनां स्मितवक्रशोभातुछीकता मृतकलानिधिपूर्णलक्ष्मीम् // भक्तेप्सितार्थपरिपूर्णधृतस्वरूपां लालित्यचित्र गुणरूपधरां भजेऽहम् // 3 // इलोकत्रयं पठति यः परदेवतायाः श्लोकार्थमानसविवृद्धसुभक्तिपूर्णः // संयाति सौख्य मखिलं भवपाशमुक्तो निर्वाणनामकपदं लभते मनुष्यः // इतिश्रीमन्महात्रिपुरसुन्दरी त्रिरत्नस्तोत्रं समाप्तम् // श्रीगणेशाय नमः // नन्दा नन्दत मांनाना स्वकीयेन सनातनी / रक्तदन्ती स्वरागण मनोमेरज्यतां शिवा // 1 // शाकम्भरी स्वरुपयासुधारूपानपानकैः // नित्यं पुष्णातु मां देवी स्वकीय ध्यान हेतवे // 2 // दुर्गादुर्गमसंसार शत्रुभीति विनाशिनी भूयात् सा वरदा मां सती मे चित्तगा सदा // 3 // शताक्षी शरणापन्नं शतनेत्रै विलोक्यमाम् / संसारज्वरनाशाय दद्यात्से. वारसामृतम् // 4 // यद्याद्वाति पवनो यद्यात्तपते रविः / पातु मां सर्वभयतः सा भीमा भीमशासना // 5 // निजभूत्यमनोभग करे कृत्वा रुपावती / कन्जे नि तिमधुनि भ्रामरी हरतु भ्रमम् // 6 // अपूर्वा षट्पदी देव्या भक्तकाम For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (46) खेवसेत् / अहो मधुमहच्चैषा ददाति परमाद्भुतम् इतिश्री देव्याषटपदी स्तोत्रम् समाप्तम् // जितामरजितेजिते जननिमुक्तमालाहते सुरासुरनम स्कृते जगति दुःख दूरीरुते // मुखेन्दुवचानामृते स्वजन काम पूरीकते दिगादिभि रनाते करुणया हि चित्तेभव // 1 // स्मरामिपरदेवता निखिलदेवसंसेवितां / घनछविविलासिनी कुरुततापसंछेदिनीम् // कृपामृतसुवर्षिणी स्वजन मानसाल्हादिनीं वरं वरय नादिनी मवयुनान्तसंदर्शिनी // 2 // करे कृतकपालिनी स्वजन पालिनी शलिनी गजेन्द्रगतिगामिनी गिरिशकामिनी शोभिनीम् // परामृतविधायि. नीं भवभयापसंचारिणी महामहिमशालिनी शरणदायिनी नौमि ताम् // 3 // श्लोकत्रयं पठेद्भक्त्या श्रीमातुर्नित्यदा नरः एकाग्रमनसा ध्यात्वा शरणी सुखमानुयात् // 4 // इतिश्री. शरणदायिनीरत्नत्रयंस्तोत्रम् // उँश्रीअजातपुंस्पर्शरत्यै कुमारिण्ये श्रीदुर्गायनमः // हयारिप्रधाना:शिवे दानवा येजितार्यायुधाद्यामरा एकयैव त्वया लीलया संगरे संहतास्ते रणे क्रीडयन्त्यापवर्गप्रदात्र्या // 1 // गता उत्तमान्ते गतिं यत्र यान्ति परे निर्मलप्रज्ञलोका हि दुष्टाः // तवाम्भोजशोभा हरकोधनेत्रप्रभालोकिताः पूतभावा भवानि // 2 // तवाङ्गप्रसंग्यस्त्रसंस्यर्शिनो वै निरक्ष्यिन्त आस्येन्दुशोभा महेशि // अनेके हता दुष्टार्दै For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 47) त्या अवापुः पदन्ते ह्यवन्त्याः पदाब्जप्रपन्नान् // 3 // इतिश्रीरत्नत्रयंस्तोत्रम् // ॐअजातपुंस्पर्शरति कुमारिणी कन्यां सदाविश्वमनोविहारिणीम् // ब्रह्मेन्द्रविष्णवीशनतांत्रिकामहं नतोऽस्मि दुर्गा मनसेप्सितार्थदाम् // 1 // पूर्णशून्यस्वरूपत्वात् पुरुषत्वाल्लिङ्गमस्तका // शक्तिस्वरूपभूतत्वात्मस्तके योनिधारणी // 2 // ज्ञानप्रकाशरूपत्वादुद्यत्सूर्यसमप्रभा // सर्वेषां स्वात्मरूपत्वात् प्रेष्टत्वादरुणप्रभा // 3 // आद्यत्वा त्सर्वशो. भात्वादाद्यलक्ष्मीरितीरिता // पायान्मां सर्वदारिद्राच्छिवशक्तिस्वरूपिणी // 4 // ब्रह्मविष्ण्वीशजननी काली लक्ष्मीः सरस्वती // अम्बिका जगदम्बासा पायान्मां सर्वतोभयात् // 5 // सैव काली सैव लक्ष्मीः सैववाणी पराम्बिका // ब्र. ह्मविष्णुशिवाः सैव सैव मां सर्वतोऽवतु // 6 // स्थीयते च जगद्यस्यां सृष्टिस्थित्यन्तकारिणी // या ब्रह्मचिद्घनाकारा भासते वस्तुरूपिणी // 7 // अवियोगससंयोगा ब्रह्मणः पर मात्मनः // शक्तिस्वरूपस्फुरणा तद्रूपा जगदारिमका // 8 // सर्वनामा सर्वरूपा देशिकेन्द्रकृपावताम् ॥आत्मभूताराध्यरूपा मंत्रयंत्रस्वरूपिणी // 6 // अनेकजन्मतपसः फलरूपपदाम्बुजौ॥ प्राप्येते कृतिभिर्यस्याः सानुगृह्णातु मां सदा // 10 // काली तस्यास्तमोरूपा रुद्रवाणी विधायिनी // करालापि दयारूपा कान्तिसौभाग्यधारिणी // 11 // शत्रुसंहरणे क्रोधं काल रात्री विधीयताम // महामाया योगनिद्रा मम रतां For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (48) करोतु सा // 12 // तमोपहंत्री भक्तानां तमोवत्यापि साऽचि. रात् // स्वीयैः संसविता स्वानां विश्वत्रासविनाशिनी॥१३॥ ब्रह्माणं या श्रियं देवी जनयामास निर्गुणा सगुणा सा सृष्टिकाले नतोऽहं तां तडित्प्रभाम् // 14 // वीजपूरं गदां चर्मपानपात्रं च विभ्रती // नागं लिङ्गं चयोनि च मस्तकेऽवतुसाम्बिका // 15 // कोट्युद्यद्रविसंप्रख्या त्रिनेत्रा चंद्रभूषणा / पद्मासना भगवती स्वेछाविश्वविनोदिनी // 16 // अस्या रजोगुणवती संपद्रूपस्वरूपिणी // कुर्यान्मनोरथं पूर्ण देवी श्रीविष्णुना सह // 17 // आद्यलक्ष्म्याः सत्ववती वाणी परमनिर्मला // तत्वप्रकाशिनी विष्णुगौरी धात्री पुनातुमाम् // 18 // यस्यामुदयमानायां विश्वं भवति नान्यथा // पंचाशद्वर्णरूपां तां धर्मादिपुरुषार्थदाम् // 16 // चन्द्राननां चन्द्र वर्णा चन्द्रभूषणभूषिताम् // चन्द्राभभूषणां चन्द्रमाल्याम्बरविलेपनाम् // 20 // नौमि तां परमानन्द सर्वज्ञत्वविधायिनी म् // वाचां वैभववृद्ध्यर्थं सर्वकामदुघेश्वरीम् // 21 // कालीजातः शिवो वाणीजनिका पार्बती शिवा // कुर्वातां मङ्गलं मह्य मुभौ जगदधीश्वरौ // 22 // काली वाणी स्वरूपी तावाद्यलक्ष्मीमयौ परौ ब्रह्माण्डभेदको स्यातां दारिद्र्यहरणे परौ // 23 // आद्यलक्ष्मीजन्मभूमिर्लक्ष्मीविष्णुस्त्रयीजनिः॥ ब्रहमाण्डपालकावेतौ मम धर्मस्य पालकौ // 24 // भवेतामनिशं लक्ष्मीवाणी रूपौ महाबलौ // आद्यलक्ष्मीस्वरूपौ मां पुष्पेतां करुणार्णवौ // 25 // ब्रह्माद्यलक्ष्मीजनका कालीजन्मा सरस्वती // मम मोदं विधीयतांब्रह्माण्डोत्पत्ति For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 49 ) कारको // 26 // कालिकादिरमात्मानौ जगतां पितरौ वरौ श्रेयोविधाने भास्तां जगतां परमेष्ठिनौ // 27 // वाग्भवाधीश्वरीश्यामा मायेशी कमलालया॥ कामेश्वरी शारदाख्या तत्समष्ठीश्वरो परा // 28 // आद्यलक्ष्मीरितिख्याता नववर्णात्मिका शिवा // नवदुर्गात्मिका चण्डी साक्षाद्ब्रह्मस्वरूपिणी // 29 // पराम्बिका तुरीया सा त्रिपुरा परमेश्वरी॥ ललिता लक्षलिलाव्या लालतां कृपया हि माम् // 30 // नन्दा नन्दतुमा नाम्ना स्वकीयेन सनातनी // रक्तदन्ती स्वरागण मनोमे रज्यतांशिवा // 31 // शाकम्भरी स्वरुपया सुधारूपानपानकैः // नित्यं पुष्णातु मां देवी स्वकीयध्यान हेतवे // 32 // दुर्गा दुर्गमसंसारशत्रुभीतिविनाशिनी // भूयात्सा वरदा मा सती मे चित्तगा सदा // 33 // शता. क्षी शरणापन्नं शतनेत्रैर्विलोक्य माम् // विश्वज्वरविनाशाय दद्यात्से परामृतम् // 34 // यद्याद्वाति पवनोयद्यात्तपते रविः // पातु मां सर्वभयतः सा भीमा भीमशासना // 35 // निजभत्यमनोभङ्ग करे कृत्वा रुपावती // कम्जे निर्भीतिम. धुनि // भामरी हरतु भूमम् // 36 // इतिश्रीपराम्बास्तुतिः समाप्ता॥ श्रीः के ते वर्मनि नोमूढा जाता ब्रह्मादयः सुराः // अत्यन्ताज्ञस्तदाहं कः क्षम्यता जगदम्बिके // 1 // क्षम्यतां क्षम्यतामम्ब शरणागतरक्षिणि जननी नैव गृह्णाति दोषान् स्वकलभस्य च // 2 // यथा प्रकाशः सूर्यस्य इन्दग्न्योस्ताह For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शो न हि कपाकरा त्वमेकाम्बिके रक्ष क्षमस्व में॥ // इतिश्री क्षमाकरारत्नत्रयंस्तोत्रं समाप्तम् // श्रीः॥ नमत्सुरेन्द्रनायिकालिकावलिहिरोफिकावलिप्रपूजितं मुदा मुनीन्द्रमानसालयम् मृदुप्रमोद्यलौकिकं पदाब्जमम्बिकेतव प्रणौमिविश्वतारकं सदा भयापहारकम् // 1 // विरंचिवाहनाङ्गनाप्रयाणशिक्षणेचणम् / / नखेन्दुकौमुदी स्फुरविभूतिशङ्करं वरम् // तवांघ्रिमीश्वरिप्रभाकरसदा विलोकदम् भवांधकारहारकं सतांमनोजमोदकम् // 2 // दरारिपङ्क. जाश्रयं श्रियोनिधानमन्वहं धनछवि जगत्रयप्रपोषकं गुणाकरम् // तवांधिमम्बिके सदा प्रणौमि विश्वरूपिणम् विपत्र. मानदायकं सुरासुरैर्नस्कृतम् // 3 // पदाब्जधूलिनिर्मले गु. रोजनस्य मानसे सुदर्पणे शिवे स्वरूपमम्बिकेफलत्यदः // निसर्गसुन्दराकृति त्वदीच्या सुभास्वरं ह्यनेकजन्मसाधितान्यदेवपूजनस्य ते // 4 // कराञ्चितप्रफुल्लपुष्पशायकं धनुर्धरंरुपाकदम्बवीक्षणैर्मनोहरैर्विलोक्यमाम् // हृदि स्वरूपमम्बिके शिवाख्यमुज्ज्वलं कुरु क्षणं फलन्मनोरथं निधायमस्त के पदम् // 5 // शिशुशशाङ्ककिरीटसमुज्ज्वला शरदिपार्वणचन्द्रसमानना // हिमकरातपहासमनोहरा स्फुरतुसाहदिमेपरदेवता // 6 // विश्ववने मेभूमतश्चेतःपुरुषस्य पावनंचरणम् // शरणं भवतु भवान्याः संविद्रमणीसुखंयत्र // 7 // श्रीमत्पदाब्जमम्बाया ध्यात्वापादाब्जसंस्तुतिम् // पठते हि नरोभक्त्या सर्वसौख्यमवाप्नुयात् // 8 // इति श्रीपादारविन्दस्तुतिः समाप्ता॥ For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatit.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (51) उश्रीगुरुपादुकाभ्योनमः // उश्रीगणेशायनमः॥ उँ श्रीमतीसकलान्तर्यामिणी विजयतेतराम् // उँ // श्रखण्डानन्दचिन्मात्रा खण्डचन्द्रवरानना ॥अख. ण्डगुणशोभाढ्या खण्डचन्द्रवरासना // // 1 // अखण्डैश्वर्यसंयुक्ताऽखण्डचक्रनिवासिनी // // अखण्डपति सौभाग्याऽखण्डज्ञानविलासिनी // 2 अखण्डविलसद्पा खण्ड राज्यसुखप्रदा // अखण्डवरदाऽखण्डभोगमोक्षवरप्रदा // 3 // अखण्डभक्तिरसदाऽखण्डप्रेमकृपानिधिः // अखण्डरसरूपा ढ्याऽखण्डसौन्दर्यशालिनी॥४॥अखण्डसुखशोभाढ्याऽभीष्टसौख्यविधायिनी॥ अनन्ता 5 नन्तविजयाऽतुल्याऽतुल्यगुणान्विता // 5 // अर्केन्दग्निसहस्राभाऽलक्ष्याऽलंकारशोभिता // अनर्घ्यमणिमञ्जीरा ऽसंख्यशत्यधिनायिका॥६॥असंख्या तसमुद्धाराऽसंख्यरूपावतारिणी ॥असंख्यदुःखनिर्माशा चार्बु दाचलवासिनी // 7 // अनेनचित्तगाऽचिन्त्य महिमाऽचपलप्रिया // अलौकिकातिसुभग स्वरूपाद्वयरूपिणी // 8 // अहन्ताममताहन्त्री ह्यखण्डाऽहंस्वरूपिणी // अलिप्तद्वैतमालिन्याऽद्वितीयाकारकारिणी // 9 // अछेद्याभेदसुखदानिवद्याऽखिलरूपिणी // अल्पकालेष्ठदाऽनल्पधनधान्यसुखप्रदा // 10 // अत्यन्तपुण्यसंप्राप्तपादभक्तिरहोगुणा // अहोरूपाऽहोचरित्राऽहोबलाऽहोप्रभावती // 11 // अहोस्वज For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (52) नवात्सल्याऽधिकसौन्दर्यसद्गुणा // अधिकाधिकसत्कीर्ति रधिकाधिकशोभिनी ॥१२॥अधिकाधिकसंदात्री ह्यखिलान्तविहारिणी अन्तर्बहिःपूर्णरूपाऽलसदृष्टिलसन्मुखी // 13 // अकारादिक्षकारान्तमातृकाक्षररूपिणी // अक्षरक्षरविभ्राज. रूपा ऽतीतगुणप्रिया॥१४॥ अलकालिमुखाम्भोजाऽरविन्दाक्ष्यऽपिङ्कजा // अरविन्दकराम्भोजाऽरविन्दाक्षसुपूजिता // 15 // अवदातगुणोदाराऽवदातमणिभूषणा अवश्यभक्तोद्धरणाऽवश्यभक्तसुखप्रदा // 16 // अवश्यभक्तवरदाऽवश्यभक्तजयप्रदा // अनिमित्ताऽविनाभावसंयोगाऽसङ्गसंस्थितिः // 17 // अनुभूतिस्वरूपाम्बाऽवनिपालस्वरूपिणी // अवनी वल्लभाऽवश्या ऽवश्यभाव्यविभाविनी // 18 // अनन्यमानसाराध्याऽनन्यज्ञानविधायिनी // अनन्याधारगाऽनन्यदर्शना ऽनन्यभाषिणी // 16 // अनवद्यलसद्रूपा चानवद्यगुणाकरा॥ अनवद्यसुधापूर्णाऽनवद्यानन्ददायिनी // 20 // अमाना मानज्ञानाढ्याऽरुणचैलवरागिणी // अवन्त्यनलसाऽवन्तीपुरीपीठकृतालया // 21 // अहोरात्रीजागरूका निमेषा ऽनल्पराज्यदा // अविचारविचाराढ्याऽभिचारभयनाशिनी // 22 // अश्वारोहविलासाढ्याऽश्वग्रीवस्तुतपादुका // अश्वारूढाऽभिवन्याधिरश्विनीवैद्यवन्दिता // 23 ॥अजन्माऽजातपुंस्पर्शा ऽखिलसाराऽखिलर्द्धिदा॥अर्हािपाङ्गसम्पाताऽभिषिक्तवरसाधका // 24 // अप्रमाणयशोधामा ऽधर्मपृष्टाङ्गधारिणी // अविद्यारजनीसूर्याऽभ्यासाधिकविभासिनी // 25 // अकाण्ड काण्डसद्भावा ऽकिश्चना ऽकिञ्चनप्रिया // अवितळविलासा For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (53) ढ्याऽवर्णाश्रमसुपूजिता // 26 // अगस्त्यपूज्यपादाब्जा ऽगस्त्यविद्यास्वरूपिणी // अग्निहव्यप्रदाजादिसुरवृन्दसुपोष णा // 27 // असंख्यातजनोद्धारा ऽसंख्यपापनिपातना असंख्यचरितोपेताऽसंख्यशक्तिसमन्विता // 28 // अकलङ्ककलानाथवदनस्मितचन्द्रिका // अगुप्तगुप्तवृत्तान्ताऽन्तरीयतम नाशिनी // 26 // अजादिकसमाराध्यपदाब्जाराध्यपादुका॥ अखर्वगर्वशुम्भादिदानवान्तविधायिनी // 30 // अलभ्यलाभसंप्राप्या ऽपवर्गसुखदायिनी॥अगराजसुतामूर्तिरखिलेप्सितदायिनी॥३१॥अकृत्रिमवचोवेद्याऽकृत्रिमज्ञानरूपिणी॥अवश्यभाव्य दुःखघ्नी चान्तकान्तकराऽभला ॥३२॥अमूर्धाऽमुखवृत्ताचालस्यनेत्रसुपङ्कजा ॥आहार्यदुःखदुर्बोधाऽविष्कृतानेकविग्रहा॥३३॥आवितासंख्यसद्भक्ता समुद्रक्षितिराज्यदा॥ आलयास्याब्जमधुरास्मितरूपमरन्दिनी॥ 34 // आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तकल्पनत्राणतत्परा // आरोहितशिवारावाऽकर्णतीक्ष्णबिलोचना // 35 // श्रानन्दघनसंन्दोहाऽराध्यसेवास्वरूपदा // आराध्यसत्कृपाप्राप्यादिनाथाकाररूपिणी // 36 // आवर्णरहिताऽभासाऽभरणाभरणाङ्गिनी // आनन्दाम्बुधिनिमग्नाऽ नन्दानुभवकारिणी // 37 // आखुवाहनसत्पुत्राखुयानक्षवेलिहर्षिणी // पाखुपत्रात्मरूपाखुनाशिन्याखुगवत्सला // 38 // आगमोक्तविधानार्चा शीघ्रसिद्धिविधायिनी // आगामिदुःखनिर्माशा गन्तुकज्वरनाशिनी // 39 // आकाशयुद्धकृन्नाशा काशसंस्पर्शिमस्तका // आकाष्टाव्यापिसद्वाहुलतिका काशवासिनी // 40 // आनमद्भूमिचरणानने For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (54) न्दुवचनामृता ॥आकीर्णकेशाख्याताख्या नन्दसंफुल्लितानना // 41 // आधाराधेयभावाट्या चार्यभक्तकृपावती // आसवामृतपानोत्थमदपूर्णितलोचना॥ 42 // आगमापायरहिताश्रितानन्दविधायिनी ॥आम्नायसारसर्वस्वा नन्दाम्भोधिस्वरूपिणी // 43 // आधीनपतिकाधीनविश्वत्रयविलाशिनी॥ आरातिदुःखहरणा रातिदैत्यविनाशिनी // 44 // आपीनदीर्घकठिनस्तनभारनताङ्गिका // आपीनदीर्घबाह्वस्वाधरात्मा नन्ददायिनी // 45 // आविष्कृतारातिदया विष्कृतानेकचित्रका // आब्रह्मकीटपर्यन्तजगज्जननतत्परा // 46 // आसवामृतसंपूर्ण पानपात्रकराम्बुजा॥आभ्यन्तरीयान्धकारद्वादशार्क प्रकाशिनी // 47 // आशापूर्णकरायाससंलभ्याशुकृपावती॥ आज्ञासिद्धिकराज्ञप्तशिवदौत्या भवाकरा // 48 // आमलबह्मरन्ध्रान्त कोटिसूर्यसमप्रभा // इतेतरान्तसंदात्रीदक्षनेत्रे नरूपिणी ॥४६॥ईश्वरा ङ्गसंस्थाने श्वरीवामविलोचना॥ ईश्वरेशेश्वरान्तस्थेशमूर्त्यष्ठकरूपिणी // 50 // ईशिताद्यष्टसिद्धीशेलोद्धृतेऽलास्वरूपिणी // ईश्वरप्रेमट्टपातोदक्षकर्णमनोहरा // 51 // उमोवाच्योपमाहीनोपमितात्मात्मरूपिणी // उग्रप्रभोग्रताराख्या चोग्रचण्डप्रचण्डिका // 52 // उग्रसेनोच्छृङ्खलितभक्तोज्ज्वलशुभानना // उल्लसत्करुणापूर्णनेत्रकअमनोरमा // 53 // उल्लसत्करपुष्पेषुधरोदधिसुतेश्वरी // उत्तप्तकनकप्रख्योदधिबद्धस्वरूपिणी // 54 // ऊर्मिहीनोर्द्धलोकस्थोहापतर्कविवर्जिता // ऊरुस्तम्भारुरू‘लिलोकनिवासिनी // 55 // ऊर्द्धमार्गोर्द्धसञ्चारोवामकर्णोद्धभक्तिदा For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (55.) // अक्षराजकृतोत्तंसरक्षरासव्यनासिका // 56 // ऋज्वाशयार्जुमार्गस्था चाशियप्रसन्नता // ऋवर्णसव्यनासाठ्या लर्णरूपसुभास्वरा // 57 // लवर्ण दक्षगल्लाढ्या लर्णवामकपोलिनी // एवर्णोझैष्ठसंयुक्ता चैकचक्रप्रवर्तिनी // 58 // एकातपत्रराज्येशा चैकभावविभाविता // एकादशीस्वरूपैक. छत्रराज्यप्रदायिनी // 56 // एकाकारसमस्तकाग्रचित्तकतालया // एकभूम्येकजननी चैकदन्तस्वरूपिणी // 60 // एधत्प्रभैकगुर्वेजदनेजद्विश्वनायिका // एकाकारसुसङ्केता चै. कतत्वप्रदर्शिनी // 61 // एकान्तपदसन्ध्येया चैकत्वसुखदायिनी // एकवीरैषणाशुन्यैषणाशुन्यातकधीः॥ 62 // ए कानेकाकृतिश्चैकादशरुद्रस्वरूपिणी // एकादशस्वराकारा राध्यैकान्तिकभक्तिदा // 63 // एकान्तपूजनोत्सुक्ययुक्तेप्सि तविधायिनी // ऐश्वर्यदायिन्येश्वर्यरूपा चैरावतस्थिता // 64 // ऐकारार्णाधरोष्ठाढ्या चन्द्रयाखण्डलयोगदा // ऐश्वरीयजनप्रीताचौंकारमनुरूपिणी // 65 // ॐकारजपसन्तुष्टा वृद्धदन्तालिसंयुता // ॐकाराधिष्टितोंकाराधरदन्तसुशोभना // 66 // औचित्योदार्यसंयुक्तोदरदुःख विघातिनी // औपस गिकतापनी चौन्नत्यपददायिनी // ६७॥और्वाग्निकरणाभर. णस्थापितौवस्वरूपधृक् // औद्दालकस्त्रीभावन्नी चौग्रवाहनवाहिनी // 68 // अम्बिकांवर्णरसनाञ्जनशून्यांशुमालिनी // अङ्करूपाङ्गनारूपाञ्जनरेखाविलोचना // 66 // अम्बुध्यगाधबोधाख्या चांहोराशिविनाशिनी // अंओमत्रमयीमूर्तिरःकएठा कमलालया // 70 // कर्मबन्धहराकल्पा कल्याणाकु For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 56 ) लचेतसा॥ कमनीयपदाम्भोजा कल्पपर्यन्तसिद्धिदा॥ 71 // कवर्णदक्षस्कन्धाढ्या कादिविद्या कलेश्वरी // कमलाभारती रौद्रीमस्तकानतपादुका // 72 // कमलाभारतीरौद्री रूपिणी कलभाषिणी ॥कवाद्यष्ठवर्गस्था कविलोकसुखप्रदा॥ 73 // कराञ्चिताम्बुजस्वर्णसुधापात्रसुशोभना ।कवितारससन्तुष्टाक वितारसदायिनी // 74 // काव्यारसज्ञतामूर्द्धकम्पिनी कलहंसगी // करुणारसपीयूषकटाक्षेक्षणपाविता // 75 // कादिदेवकिरीटाग्रसंस्पृष्टपदपङ्कजा // कवितारसचातुर्यदायिनी कादिकादिका // 76 // कमलापशिरोभूषामणिनीराजिताळू का // कर्मकालुष्यसंहन्त्री कर्माकर्मविलुम्यिता // 77 ॥कटाक्षकामजननी कटाक्षशिवमोहिनी॥ कटाक्षदुःखदारियसंहीकञ्जहर्षदा // 78 // कवर्णसर्ववाच्यार्थरूपा कञ्ज करस्थिता॥ कापूजनसन्तुष्टा कलाटविविहारिणी // 76 ॥खड़खेटकरा खस्था खरूपा खगगा खगा।। खड्गसिद्धिकरी खड्गपाणिमाता खलक्षया // 80 ॥खप्रकाशा खलाहारा खर्पराढ्य कराम्बुजा // खट्वाङ्गयुधहस्तस्था खञ्जखेलविलोचना // 1 // खदाकारस्थिताजादिदेवपञ्चकसंस्थिता // खण्डखण्डीकृतादेवा खवर्णकृपराङ्गिका ॥२॥खर्जुरीकुम्भविलसत्करदेवी खगे श्वरी // खड्गधारासमाकारमार्गरक्षणकारिणी ॥३॥गङ्गाधौतपदीगङ्गारूपिणी गणपार्चिता // गणेशार्चनसन्तुष्टा गणेशाङ्कप्रमोदिता // 84 // गणेशशोभनाङ्कस्था गणराजातिवत्सला। गदक्षमणिबन्धाढ्या गङ्गाधरमहोत्सवा॥८५॥ गजकन्या गण्यरूपा गण्यनामा गणेश्वरी घटस्तनी घटारूपा घनश्याम For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (57) स्वरूपिणी // 86 // घनाघनकृपादृष्टिरसतृप्तिविधायिनी घ. नाघनकृपावृष्टिरससंतापनाशिनी // 87 // घटीप्रहरघत्रादि कालरूपा धनप्रभा // घदक्षाङ्गुलिमूलाढ्या घण्टाघोषारिभीतिदा॥८८॥घस्रेशदक्षताटंका घण्टाशब्दहतासुरा // घनाघनेश्वरीरूपमणिपूरसमाश्रिता // 86 // घनवल्लीसमानामा घनात्ययमहोत्सवा // घनसाराभवर्णाढ्या घनगंभीरनादिनी॥ // 10 // घण्टिकारम्यशब्दाढ्या घटस्था घटरूपिणी // ङव दक्षांगुल्यमा चण्डिका चपलेक्षणा // 11 // चपलेन्द्रिय दोषघ्नी चपलारूपधारिणी // चलदैन्द्रयल कश्रेणिशोभिता सरोरुहा // 62 // चलत्पादरणत्पादभूषा चण्डार्तिहारिणी // चवर्णवामस्कन्धाढ्या चलन्मीनविलोचना // 13 // चराचरेश्वरी चन्द्ररूपा चन्द्रार्द्धशेखरा // छत्रचामरसंयुक्ता छत्रचामरदायिनी // 64 // छलहीनःसदापूज्या छलच्छलननाशिनी // छलज्ञानप्रदाछन्दोविद्यारूपा छलापहृत् / / 65 // छन्दोमाता छलकरा छन्दोगानसुतोषिता / छवर्णवामकूर्पाट्या छन्दःस्था छन्दरूपिणी // 66 // छन्दश्चारीजरामृत्युनाशिनीजलजस्तुता // जवाममणिबन्धाढ्या जन्ममृत्युजराऽतिगा॥ 7 // जन्ममृत्युक्षयकरी जलजातसुतोज्ज्वला // ज. गत्संजीविनी जल्प्पा जगदुद्धारकारिणी // 68 // जलन्धरा. दियोगीशरूपिणी जगदात्मिका // जलन्धरादियोगीशमान सालयसंस्थिता // 6 // जगत्स्टष्टिर्जगञ्चक्रसन्निविष्टा जग द्गुरुः // जगद्रक्षा जगन्नाट्या जगत्संहारकारिणी // 100 // जगजननहर्षाढ्या जघन्यजनपाविनी // जलमग्नोडुपत्राणा For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (58) जङ्गलवाणकारिणी // 101 // जटाजूटा जगत्पूज्या जठरा. नलरूपिणी // जपत्सिद्विप्रदा जप्या जनितानङ्गलोचना // 102 // झङ्कारनूपुरारावयुक्तपादविहारिणी // झङ्कारनूपुरा रावमनोहरपदाम्बुजा // 103 // झङ्कारनूपुरारावहंसमौनप्रसाधिनी // झङ्कारहंसकारावमुषितप्रियमानसा // 104 // झषध्वजारिमहिषी झषध्वजनमस्कृता॥ झवामागुलिमूलाढ्या झषरूपसुतर्पिता // 105 // झषकाद्यङ्कसंयुक्तध्येयपादाम्बुजद्वयी झषध्वजशिवाङ्कस्था झषकेतुजयप्रदा // 106 // झल्लरीनादसन्तुष्पा झझरीनादतोषिता // झषकेतुचलन्मी. नहानिकारिविलोचना // 107 // झषध्वजधनुस्तुल्यसुन्दरभ्रविलासिनी // रुषध्वजशरमातगर्वमोचनलोचना // 108 // अवर्णवामामुल्यमा टदक्षोर्वङ्गसलिनी // उदक्षजानुरूपाट्या ठद्वयाग्निप्रियङ्करी // 106 // डकारदक्षगुल्फाट्या डम. वारावसाक्षिणी ढदक्षाङ्गुलिमूला च ढकारावसुतोषणा // 110 // णकारदक्षपादाढ्याणवाच्यार्थस्वरूपिणी // तार्णवामोरुमूलाढ्या तथ्पभाषणतत्परा // 111 // तडिदम्बरसं. युक्ता तडिद्धाङ्गिनी तडित् // तडिदम्बरवस्त्रागातच्छीला तत्परायणा // 112 // तरलायतदीर्घाक्षी तनुश्रोणिस्तटस्थिता॥ तडागारामकूपादिसुकर्मसुफलप्रदा // 113 // तत्वा. त्मिका तत्पदस्था तल्लक्षणविलक्षणा // तत्वमार्गप्रदा तत्वदृष्टिस्तत्वविनाशिनी // 114 // तत्वसंपत्प्रदा तत्वाती तरूपस्वरूपिणी तरण्यर्बुदतेजःस्था तरणीरूपपादुका॥११५॥ तमःसूर्यप्रभा तत्वज्ञानारामविहारिणी॥ तत्वाऽमृतकृतस्नाना For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 59 ) तत्वानन्दसुत्टप्तिदा // 117 // तत्वानन्दाहारतृप्ता तत्वान. न्दप्रवर्तिनी॥ तत्रावतारणी तत्रमार्गशीघ्रप्रसादिनी // 118 // तत्रवेदपथारूढा तब्रवेदप्रतारिणी तत्रवेदसदाचारा तत्रिणीतन्त्रबोधिनी // 116 // थकारवामजान्वाव्या ददक्षतरगु. ल्फिनी // दण्डनीदण्डनीतिस्था दण्डदड्यनिपातना // 120 // दण्डनाथार्यपादाब्जा दक्षाङ्गशिवरूपिणी दक्षिणा दक्षपुत्री च दरस्मेरास्बुजानना // 121 // दया भूतहृदयादयापीयूषवर्षिणी // दयादीनार्तिसंहन्त्री दयादीनाश्रयप्रदा // 122 // दयादानतपःशौचशुद्धलोकप्रसादकृत् // दयारसापूर्णदृष्टि दयनीयदयाकरा // 123 // दण्ड्यादुष्टा दयामूर्ति दरान्दोलितलोचना // दक्षवामायना दक्षहस्तदर्वीसुशोभिता // 124 दमनोत्सवसन्तुष्टा दलितासंख्यदानवा॥ दक्षिणारूपिणी दम्भशोकमोहविनाशिनी // 125 // दक्षिणामूर्तिसंपूज्या दग्धकामसुजीविनी // दण्डाद्यस्त्रधरा द. म्भाचारनाशनकारिणी // 126 // दत्तात्रेयसमाराध्या दत्तात्रेयस्वरूपिणी // दत्तेष्टा दत्तसन्तुष्टा दरहासोज्ज्वलन्मुखी // 127 // दत्तात्मज्ञानभक्ता च दहराकाशसंस्थिता॥ दयितादम्पतीरूपा दर्शनीयस्वरूपिणी // 128 // दर्शयित्री दर्शनस्था दर्शनीयपदाम्बुजा // दहनप्रियाशब्दमोदा दशवियास्वरूपिणी // 126 // दन्ताबलारावजागृद्भक्ता दनुजनाशिनी // दयालुप्रकृतिर्दम्यासुरदुष्टप्रपातका // 130 // धवामांगलिमूलाच्या घराधरतपःफळा // धराधरेशविज्ञान दाननाशिततामसा // 131 // घराधरैकवात्सल्या घराधर For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (60) सुपूजिता // धराधरेशवराजरूपा दर्शनकारिणी // 132 // धराधरेशवंशोचपददात्री धरोद्धृता // धराधरेशसंतान कल्पवल्लीस्वरूपिणी // 133 // धराधरेशसंतानदीपिका धर्मरूपिणी // धर्माधर्मविहीनात्मा धर्मध्वविदूरगा // 134 // धर्मप्रवर्तिनी धन्या धर्मादित्रयरूपिणी धर्माश्रया धर्मजनिर्धमैश्वर्यविधायिनी // 135 // धर्मावतारा धम्मिल्लशोभनीयाननाम्बुजा // धर्मधीराधर्मबुद्धि धर्मकामार्थ मोक्षदा // 136 // धर्माधर्महवि:मकर्तृलोकस्वरूपदा // धनवृष्टिकरी धा धननाथप्रपूजिता // 137 // धरणी नाशसंपूज्या धरणीनाथरूपिणी // धर्मराजशिरोधार्यशासना धर्मवल्लभा // 138 // धर्ममार्गसमारूढा धर्मध्वेष्यापहारका // धर्मराज्येतिसंहन्त्री धरणीनाथवल्लभा // 139 // धर्म पादपतच्छाया दुःखसन्तापनाशिनी // धन्यनामा धन्यगुणा धन्यचित्रचरित्रिणी॥ 140 // धन्यभक्ता धन्यमाता धन्य पुत्रा धरावती // धन्यप्रिया धन्यलोका धन्यपादाब्जपूजिता // 111 ॥धन्यमानससंयोगा धन्यहमूर्तिदर्शना // धन्य जिव्हा गुणगणा धन्यमस्तफवन्दना // 142 // धन्यपाद प्रक्रमणः धध्याहस्तार्चन क्रिया // धन्यकर्णगतागीता धन्यत्वक्पादरेणुका // 143 // धन्यनासापादगंधा धन्यान्तस्करणस्थिता // धन्योदरप्रसादाना धन्यसर्बसमर्पिता 111 // धन्येष्टदेवता धन्यवंशप्रपदपूजिता // नकारवामागुल्यमा नवदुर्गास्वरूपिणी // 145 // नवीनानन्दसंदोग्नि नवावर णरूपीणी // नवीनयौवनारूढा नवीनोदयकारिणी 146 // For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (61) नवीनाबादसद्भक्ता नवीनाबादसत्प्रिया // नवीनाबादसन्दानप्रियप्रीतिविवर्धिनी 147 // नवचक्रेश्वरीरूपानवनाथ स्वरूपिणी // नवचक्रसमारूढा नवीनरसदायिनी॥१८॥ नवीननवनीतांगी नवीनरसरजिता // नवरात्रसमाराध्यानवरात्रमहोत्सवा 116 // नवरूपधरा नन्दा नकुलेशीविभूतिका नरनारायणाराध्या नरनारायणाकृतिः // 150 // नवग्रह स्वरूपाच नवधाभिन्नरूपिणी // नवाङ्करूपिणी नव्यवेषा कृतिमनोहरा // 151 // नवीननीरदश्यामा नरमुण्डविभूषणा // नक्तवृतानम्यपादा नक्तपूज्या नराकृतिः॥ 152 // नरसिंहाकतिर्नक्तवीरमण्डलचिन्तिता // नवरत्नेश्वरीरूपा नवरत्नप्रपूजना // 153 // नवपल्लवहस्तान्या नवरत्नसुपूजिता // नक्षत्रमालिका नक्रकेतुपक्षप्रवर्तिनी // 154 // नग भिन्नमनीयांनि नगभिद्राज्यदायिनी नवीनकुन्दकलिका दन्तपंक्तिसुशोभना // 155 // नवीनमल्लिकाफुल्लगुछहासावभासिनी // पकारदक्षपार्श्वस्था पक्वबिम्बफलाधरा // 156 // पशुपाशहरा पर्णाहारवय॑तपस्करी // पद्महस्ता पद्ममाला पद्मोदयकरी परा // 157 // परानन्दकलापूर्णा परप्रेमपयोनिधीः // परमेशीपरावाणी पराशक्तिस्वरूपिणी // 158 // पराक्षरमयी पक्वयोगिमानससंस्थिता // परात्परतरा पद्मा परमात्मस्वरूपिणी // 159 // पश्यन्तिवैख रीभाषारूपा पद्मासनस्थिता // पद्मावती पराख्याता परार्दनपरायणा // 16. // परमन्त्रभेदनीपर्वपूजकानन्द दायिनी // पन्नगारिभुजाकारकर्णरत्नविभूषणा // 161 // For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (62) पवित्रपरमज्ञाना पदभूषणराविणी // परशुरामसमाराध्या परशुरामस्वरूपिणी // 162 // पवित्रमानसाराध्या पवित्रद्रव्य पूजना // परस्वभेदरहिता परमापरसद्गतिः // 163 // पर निन्दापरद्रोहिविमुखापरमोज्ज्वला // पन्नगेशागण्यगुणा पन्नगेशाधिभूषणा // 164 // पवित्रात्रु डुपत्रातासंख्यभक्तयशस्विनी। फकारवामपावस्था फलद्भक्तिःफलप्रदा 165 फटुपल्लवसंयुक्ता मन्त्रजापारिनाशिनी // फणीश्वरकलाफल्गुदन्ता फलवती फला // 166 // फल्गुप्रिया फलनामा बन्धुजीवारुणाघरा // बंहिष्टेष्टप्रदाबन्धनाशिनी बर्वरालका // 967 // बलदेवोपास्यदेवी वलिबन्धनकारिणी // बहुमाग कसंगम्या बहुरूपावलप्रदा // 168 // बहुशास्त्रैकसिद्धान्ता बहुनाट्यसुनर्तिनी // बकासुरारिभगिनी बकहन्तस्वरूपिणी // 169 // बकारप्रष्टभागाव्या बन्धु ककुसुमप्रभा॥ बवितंस भषामा बहिवाहनलालना // 170 // बलिराज्यार्चनप्रीता बहिरंतस्तमोहरा // बहिःष्ठान्तःस्थिताबद्ध दुष्टदैत्यारिवृन्दका / / 171 // भण्डपुत्रासुविरहः प्रकत्रिककुमारिका // भक्तवात्सल्यसंयुक्ता भक्तभीतिविनाशिनी // 172 // भकारनाभिभागाब्याभव्यमानससंस्थिता // भव्यभावाभक्तिनिधिर्भक्तसर्व स्वरूपिणी // 173 // भक्तिप्राबल्यपापिष्ठजनोद्धरणतत्परा भक्तविद्याभगवति भवपापविमोचिनी // 174 / / भगवत्कामराजाकसमारूढा भवप्रिया // भवान्तरमणी भव्या भगव. कामपूजिता // 175 // महामहीषसंहारा महामहिमशालिनी महामहानिधिमन्त्रतन्त्रयन्त्रस्वरूपिणी // 176 // For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (63 ) मत्स्यध्वजादिरेखाङ्कस्वलतपदाम्बुजा // मरणत्राससन्दा. त्री मरणत्रासनाशिनी // 177 // मधुपानसमुल्लासा मार्णरूपामहोदरा // मधुपानकचित्तान्तस्थिता मधुमतीमही 178 मनोवचःकायकर्म तसर्वसमर्पण प्रत्यर्पितात्ममन्त्रेशी मन्त्रशिद्धिविधायिनी // 179 // महाप्रलयसंस्थात्री महन्मा न्या महद्गतिः // महेश्वरमहानृत्यसाक्षिणी मानदायिनी // 180 // यज्ञप्रिया मज्ञरूपलोकलीलाविलासिनी // यज्ञभागहरा यज्ञनाथायशःप्रवर्तिनी ॥१८॥मज्ञनी यज्ञफलभुक् यज्ञपा. कस्वरूपिणी // यज्ञभागप्रदा यज्ञफलदानपरायणा // 172 // यज्ञपूर्णकराभिख्या यमराजभयापलत् // यशस्तीर्था यशोलभ्या यशोभूषणभूषिता // 183 // यशःपवित्रजगती यशो धवलितप्रिया // यत्वचायज्ञसंहारप्रादुर्भूता यशोऽमला 184 रसरूपा रसप्रीता रसमूर्तीरसप्रिया // रसालया रसझरी रसपूर्णा रतिप्रिया // 185 // रणप्रियारणोत्साहा रणजैत्री रणारिहत् // रणाचलाचलपदा रणभूमिसुशोभिता 186 // रणाहतासङ्ख्यदैत्या रम्यारणजयप्रदा // रमावाणीसहचरी रमणीयगुणार्णवा // 187 // रकाररुधिरारक्ताम्बरभूषणधारिणी // रक्तवर्णारक्तदन्ती रमणीयासुधासुवाक् // 18 // लवादिकल्पपर्यंत कालरूपा लयातिगा // लक्ष्मणाग्रजरूपाख्या लक्ष्मणाग्रजसौख्यदा // 189 // लक्ष्मणाग्रजसंपूज्य पादपद्मा लसत्पदा // लकारपलला लक्ष्मीलास्यलीलाविनो दिनी // 190 // लक्ष्मीवाणीप्रदा लब्धरूपसौभाग्यसत्पतिः लक्ष्मीवाणीस्वरूपाख्या ललन्तीशोभितानना // 191 // For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (64) ललितालव्धविज्ञाना लब्धाहंकृतिदूरगा // लसद्रूपा लसनेजा लसच्छासनशासना // 192 // लसल्लक्ष्मीनाथरूपपालनीय जगत्रयी // लक्ष्मीनाथशिरोधार्यस्वलतपदाम्बुजा 193 लक्ष्मीनाथसुपोषाख्य कर्मदत्तस्वशक्तिका॥ लसत्संसारश्रीचक्रनगरश्रीमहेश्वरी // 194 // लयहीना लयकरी लसत्कीर्तिमनोहरा // वमेदोधातुसंयुक्ता बीजाक्षररूपिणी 195 // वह्निप्रियावह्निमुखा वह्निरूपा वरप्रदा // वह्निसंजीवनीवह्नि वाशिनी वसुरूपिणी // 196 // वजूदन्तावजूनखा वति ज्वालासुमालिनी // वजूकान्तिर्वजूधरा वरदानधुरन्धरा 197 वरुणानधरा वर्मरूपा वर्षीयसीवरा // वनमालाधरा वन्यभीतिनी वरुणात्मजा // 198 // वनदुर्गवरान्तःस्था वरवाहन संस्थिता // वरविद्या वरनिधिर्वरागि स्वरूपिणी 199 // वररूपा वसुमती वरवीणाविराविणी // वचोतीता वर्णमूर्ति वर्गाद्यष्टकसंस्थिता // 200 // वक्रनेत्रा वक्रमार्गा वक्रवर्वक्रवीक्षणा // वसन्तत्वाकतिर्वन्द्या वन्दनीयपदाम्बुजा 201 शर्बध्येयपदाम्भोजा शर्बप्रोक्तार्चनक्रमा॥ शरत्पूर्णेन्दुशोभाच्या शरच्चन्द्रप्रभाहरा // 20 // शरदर्चनसन्तुष्टा शरणागतवत्स ला // शस्त्रानन्तानन्तभुजा शरदभ्रस्मितानना // 203 // शबवडेजतापघ्नो शर्बप्रियजनप्रिया // शवर्णास्थिस्वरूपाच्या शक्तिसृष्टिविनोदिनी // 204 // शक्तिग्राहकसत्पुत्र चरित्राहादसंयुता // शकराज्यप्रदा शक्रवधूटीसुविभूतिका 205 // शकवाहनहस्तोरुयुगला शक्रजिज्जया॥शङ्खपद्मनिधिद्वारपार्श्वस्था शक्तिरूपिणी // 206 // शक्रगोपप्रभा शक्रपदभुक्तिप्रदा For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यिनी // शङ्कातङ्कहरा शभ्यस्तभक्ता शतेक्षणा // 207 // शतसाहस्रचित्रायस्वरूपा शम्भुमोहिनी // शनैश्चरपदाशब्द बृह्मरूपाचशर्मदा // 208 // शरदाद्यर्चनप्रीता शम्भुमानस हंसिका // शङ्करीशङ्करोरस्था शबरीरूपधारिणी // 209 // शम्पालतासवर्णाङ्गी शरभीरूपधारिणी ॥शतसाहस्रचित्राच्य मणिदीपनिवासिनी // 210 // शबरीनाथसंसेव्या शशिभालसुशोभिता // षडाननादिधालीशरूपा षड्पधारिणी 211 षडूमिरहिताकारा षमजा षष्टिरूपिणी // षधाविन्याससं. युक्त देहन्यस्तस्वकालया // 212 // षड्तुस्थितिसंयुक्त सर्व कालस्वलोकिनी // षडचक्रभेदनप्राप्त सप्तमस्थशिवामृता // 213 // षड्जादिस्वरसंयुक्त गानविद्याममोहरा ॥षड्जादि स्वरसङ्गेयातिपवित्र चरित्रका // 214 // षडंगदेवताकारा षडाधारस्वरूपिणी // षडजादिस्वरसंगानरसज्ञानाषडूमिहत् // 215 // षविकारविहीनात्मभक्ताषडभाववर्जिता॥ षड्प्रकारभगाभातिः षड्प्रकारभगप्रदा // 216 // सतीसमासाग शुक्रा सच्चिदानन्दरूपिणी // सन्मानदानसन्तुष्टा सत्सु संपत्प्रदायिनी // 217 // सञ्चित्तत्वमसीत्यादिवाक्यबोधस्वरूपिणी // सञ्चित्तत्वमसीत्यादीवाक्यबोधप्रदायिनी // 218 // सत्यसौचादिसंयुक्त स्वकीयजनचित्तगा // संयुक्तायुक्तताीय बीजजप्यासिद्धिदा // 219 // सत्यादिपतिदैवत्य कला सत्यप्रियंवदा // सत्यारुतिः सत्यसन्धा सत्यमार्गप्रवर्तिनी // 220 / सद्यस्त्राणकरीसन्ध्या ध्येयसत्यपदाम्बुजा // सर्वदा ध्येयसत्पादा सचराचररूपिणी // 221 // सङ्कष्टतारिणीसभ्य For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 66 ) गुणस्तोमप्रदायिनी // सङ्करोद्धारकन्मार्गा सङगेयगुणगौरवा // 222 // सङ्गीतयोगिनीगेयचित्रनामावलीशुभा // संगी तविद्याधिष्ठात्री सङ्केतार्थप्रकाशिनी // 223 // सङ्कोचसुविकाशाच्या संकर्षणसहायिनी // सङ्गीतविद्यासन्दात्री सर्वभूतदयाकरी // 224 // संजीवनी सदाचारा सम्मेलन सुकारिणी // संकल्पकरुणाक्रिडा सम्मनोल्यध्रिपङ्कजा 225 हंसस्वरूपा हंप्राणा हनुमत्प्रीतमानसा // हरिणाक्षीहरिदश्व. दक्षलोचनसंस्थिता // 226 // हरिन्मुखी हरावास गिर्यावासहलायुधा // हर्यासना हरत्पापा हरिदक्षस्थळाश्रया // 227 // लंजीवात्माल्लंस्वरूपा क्षवर्णपरमात्मिका // क्षत्रिय क्षयकृत्गर्वमोचना क्षत्रपार्चिता // 228 // क्षत्रियस्वभुजा क्षत्रीश्वरपूज्यपदाम्बुजा क्षमेरुमालिकामन्त्र जपबहिष्टदायिनी // 226 // क्षणभङ्गुरसंप्राप्यसत्प्रसादा क्षमावती // क्षणप्रभाचलाभासा दंतव्यात्मा क्षमाम्बुधिः // 230 // इतिश्री परम्बाया अकारादिसहस्रनाम समाप्तम् // श्रीसर्वेश्वरीविजयतेतराम् // ॐ ब्रह्मरन्धस्थितादेवी गुरुरूपापरात्परा // श्रीचक्रमध्य विन्दुस्था मस्तकं मे सदावतु // 1 // निटिलस्था ललाटं मे ध्रुवौ भ्रस्थावतात्सदा // नेत्रस्थाव्यान्नेत्रायुग्मं रविचन्द्रस्वरूपिणी // 2 // नासास्थितानासिकांमे दस्रदेवस्वरूपिणी // गण्डस्था गएण्डयोर्युग्मं करें मेदिकस्वरूपिणी // कर्णस्था For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (67) पातुमेनित्यं मुखं मुखगतावतु // ओष्टस्थिता मेऽव्यादोष्ठौ बिम्बोष्ठाभा सनातनी // 4 // दन्तान्दन्तस्थिता मेव्याद्रक्त दन्तसुशोभना // जिव्हां जिव्हालया देवी वाणी वाणीगता वतात् // 5 // दंष्ट्रागा मेऽवताईटाः कालरूपकरालिनी // तालुगाऽव्यात्तालुदेशं कण्ठान्तःकण्ठगाऽवतु ॥६॥चबुकादश गाऽव्यान्मे चिबुकंकण्ठगाऽवतु॥ कंठदेशंकालिकाख्या कन्धरां कन्धराश्रया // 7 ॥स्कन्धस्थास्कन्धयोयुग्मं भुजौ वाहुगता वतु // कर्परस्थाकूर्परयोयुग्मं रक्षतुसर्वदा // 8 // मणिबन्धगतादेवी मणिबन्धौचरक्षतु // करपृष्टगतादेवी करपृष्टे च रक्ष तु // 6 // तलं मे हस्तयोदेवी करस्थाऽवतु सर्वदा // अङ्गुष्ठा गुलिगागुष्ठाङगुलीमव्यान्महेश्वरी॥ 10 // नखस्थामेऽवतादेवी नखान् वजूस्वरूपिणी // वक्षस्थलगता वक्षो हृदयं हृद्गताशिवा // 11 // पाश्र्वस्थापावयोमुग्मं मम रक्षतुस वदा // उदरंचोदरस्थामे नाभिस्थानाभिमण्डलम् // 12 // कटिस्था रक्षतुकर्टि पृष्टं रक्षतुपृष्टगा // नितम्बस्था नितम्बो मे गुह्यंगुह्यगताऽवतु // 13 // मेयं मेब्यूगतारक्षेदृषणो वृषणस्थिता / ऊरुष्ठाचोरुयुग्मं मे जानुगाजानुयम्मकम् // 14 // जधेजङ्घगतामेऽव्यात् गुल्फस्थागुल्फयुग्मकम् ॥पादप्टष्टगता पादप्टष्ठयुग्मंसदावतु // 15 // पादाङ्गुष्ठागुलिष्ठावा पादा ङगुष्ठागुलीमम // अयोस्तलयुगरक्षे दथ्योस्तलनिवाशिनी // 16 // शिरोरुहगता रक्षेन्मम केशान्सुरेश्वरी // श्मश्रुष्ठामे सदारक्षेत् श्मश्रुप्रणतपालिनी // 17 // लोमान लोमगतापातु सूक्ष्मान् सुक्ष्मतरापरा // रोमकूपगतादेवी रोम For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (68) कपान सुरक्षतु // 18 // त्वचं त्वग्गामिनी रक्षेद्रक्तं रक्तनिवा सिनी // मांसं मांसगता पायान्मेदोमेदगता सती // 19 // अस्थिष्टाह्यस्थिसंघमे मज्जां मजाश्रयावतु // शुक्र रक्षतुशुक्रस्था प्राणान्प्राणगताऽवतु // 20 // मनोबुद्धिगतारक्षेन्मनोबुद्धी सदाम्बिका / चित्ताहंकृतिगारक्षे चित्ताहंकारकौमम // 21 // आत्मानं सततं रक्षेत्सदाजीवात्मरूपिणी // शरीरान्तर्बहिर्देहान्तर्बहिःष्ठासदावतु // 22 // एकरूपा सदा पूर्णा नानाकृति धरा परा // व्याप्यव्यापकरूपामां लीलया सर्वदाऽवतु 23 // इतीदं कवचं पुण्यं ज्ञानरूपं पठेन्नरः // देहरक्षां ज्ञानवृद्धि शुद्धमा प्रयच्छति // 24 // परात्परतरादेवी पुत्रवत्परिपातिसा // महाभये व्याधिभीतौ पठतां न भयंभवेत् // 25 // इतिश्री न्यासकवचात्मकं स्तोत्रम् समाप्तम् // अथ प्रातःस्मरणम् // ॐ प्रातःस्मरामि शिवविष्णुविरञ्चिवन्यं वज्रध्वजाब्ज गणिचिह्नितमम्बिकायाः // पादाङ्गुलीयमणिनूपुररम्यरावं पादारविन्दयुगलं परदेवतायाः // 1 // वाग्देवता गिरिसुता कमलामहेंद्री वकालकावलिमलिन्दसुशोभिताली // संशोभितं भुवनभासितमादिरूपं प्रातःशिवाचरणकञ्जयुगं नतोऽस्मि // 2 // संसारसिंधुतरणाय तरीस्वरूपं स्वेछानुरूपफलदंभजतां जनानाम् // उद्यत्सहस्ररविरोचिरलंप्रकाशं प्रातर्भजामि For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदकायुगं परायाः // 3 // रत्नत्रयमिदं स्तोत्रं प्रातःप्रात: पठेन्नरः॥ मनोभिलषितंमाता दद्यादन्ते निजंपदम् // 4 // इतिश्री पादारविन्द रत्नत्रयस्तोत्र समाप्तम् // // श्रीः॥ स्रवत्सुकरुणारसो मनसितत्वसंपादक स्तवा तिकरुणार्णवे जनवरस्यभक्तस्यते // गुरुप्रियकरस्य हे जननि दृष्टिपातःशिवे मयि प्रणमति त्वयि प्रकटयैव कारुण्यतः॥ १॥हित्वा स्वकीयं जगदम्बिकेते कृष्णावतारो निजदास दासः // प्रतिश्रुतं भीष्ममहावृतस्य जुगोप यः सोवतु मां महात्मा // 2 // दुर्गेपराते रगुनाथमूर्ति ारागुरोर्वाक्षरिपालनस्य // स्वयं स्वतन्त्रापिवनंजगाम या सावताधर्मसहाय कामाम् // 3 // भूयाच्छिवायाम्बतवाद्भुतारुतिर्नृसिंहनानी खरकोपधारिणी // नखैर्हिरण्योदरदारणी त्वरा सुभक्तप्रक्षा दशिवप्रदायिनी // 4 // अवतार चरित्रम् समाप्तम् // श्रीमच्चरणशरण दायिनी विजयतेतराम् / / श्रीमचन्द्रमरीचिहासवदने प्रोत्फुल्लनेत्रदये भालादेंदुलसतृतीयनयने चंद्राभगल्लस्थले // चंपापुष्पसुनासिका धृतलसन्मुक्ताफलाभूषणे त्वत्पादांकितमम्बिकेस्तुचसदा मे मस्तकं मानसम् // 1 // श्री बिम्बाधरचुम्बिमिष्टहसिते श्रीकल्पवल्ली भुजे हस्ताब्जानधनुः शरांकुशगुणे माणिक्यकुम्भस्तने / रुद्रब्रह्मजनाईनकदशन क्रौंचारिपीतस्तने त्वत्पादांकितमं०॥ For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (70) 2 // चंचकांचन किंकिणी विलसित श्रोणीतटालंकृते भास्वदेवकिरीटरत्न किरणैर्नीराजितांघ्रितये // उद्यद्भास्करकोटि धामविलसत्स्वीयांगशोभाभरे त्वत्पा० // 3 // सूर्यद्वग्निविलोचने परशिवोल्लासेगुणालंकते जाव्यध्वांतरविप्रभे भजनकत् संसारपारप्रदे // दैन्यछेदिसुरद्रुमस्वचरणे ज्ञानामृतस्पंदिनी त्वत्पा० // 4 // पञ्चबूह्मरुतासन प्रभुशिव क्रीडाविलासोदये श्रीवाणीवरवीजिताङ्गलतिके भंडादिदैत्यादिनि // रुद्राणीकम लालयाकमलभूशक्त्यार्चितांघ्रिद्वये त्वत्पा० // 5 // एकानेक गुणावतारचरिताऽभिख्यभयध्वंसिनि श्रीनाथांघ्रिनतिप्रवीण करुणादृष्टेविभूतिप्रदे // भक्ताशासफलेसुभक्तहृदया वासेजगद्भासिके त्वत्पा० // 6 // सद्भक्तव्यवहारपूजनसदा सन्तुष्ट चिनेपरे आधिव्याधिजरामृति प्रदलिते षट्चक्रसंचारिणि कामाक्षित्रिपुरेजगत्रयजनोद्वारेशिवे सद्गते त्वत्पा० // 7 // श्रीवाणी धरणीधनाभिजनता प्राज्ञप्रयत्वप्रदे विद्यासद्रमणी सुवीर्यविलसद्रपप्रदे मुक्तिदे // मानागम्यपदे कृताधिकतपः स्वीयांघ्रिभक्तिप्रदे त्वत्पादांकितमम्बिकेस्तुचसदा मे मस्तकं मानसम् // 7 // दिव्यंश्रीजगदम्बिकाष्टकमिदं यःप्रेमयुक्तः पुमान् // ध्यायंञ्छ्रोपरदेवतांधिकमलं सद्भोगमोक्षप्रदम् // वांछासिद्धिकरंपठेद्यदिसदा प्रीणातितस्याम्धिका यद्यद्भक्त मनोगतं प्रकुरुते सिद्धंचतत्तछिवा // 6 // इतिश्री शैवांधूि कमलमकरंदमधूपरावराज शोभनसिंहेन कृतं सगुणनिर्गुण स्वरूपदर्शनप्रार्थनाष्टकं संपूर्णतामगमत्। शिवमस्तु / For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 71 ) त्वन्नामोच्चारणेनैव जिहावानहमम्बिके पवित्रयेहंतेनैव जिह्वायांतत्सदास्तुमे // 1 // त्वत्पादोत्सृष्टगन्धस्य पुष्पस्य च सुरेश्वरि // आघ्राणाल्लेपनादम्ब त्वचंनासांपवित्रये // 2 // श्रोत्रंचरित्रश्रवणादाणी पाठजपात्तव // करौपादार्चनात्पादौ परिक्रमणतःशिवे // 3 // दृग्दर्शनाचतेमर्त्तनमनात् मस्तकं मम // निर्माल्यधारणात्तीर्थीकुवेतीर्थपदाम्बुजे // 4 // दासोऽ हमित्यहंकारं चित्तंचरणचिंतनात् // मनस्यंध्योरवस्थाने करणान्मानसमम // 5 // बुद्धितेपादपोधान्मे दंडवत्पतनाछिवे॥ अंध्योःप्रणामानिखिलं शरीरंपावयाम्यहम् // 5 // आत्मानमात्मभावाचे स्वरूपस्यपराम्बिके // कोटिसूर्यावभासस्यको. टीशीतांबुशीतलात् 6 // पवित्रयललिते ततोयास्याम्यनुत्तमं तेपदस्वान्मचिगुपे सर्वानंदमयंपरम्॥७॥ इतिश्री भक्तसर्वात्म पवित्रीकरणं स्तोत्रं समाप्तम् // श्रीप्रकाशविमर्शसामरस्य स्वरूपिणी श्रीगुरुपादुका विजयतेतराम् // ॐ / श्रीगुरुर्नाथ आचार्योदीक्षाविद्याप्रदायकः // शरणा गतवात्सल्य कारुण्यरससंयुतः // 1 ॥प्रपन्नपारिजाताङ्घि देवदेवोऽखिलर्द्धिदः // अज्ञानभास्करोऽनन्त महात्म्यगुणरूप धृक् // 2 ॥ब्रह्मविष्णुमहेशादि रूपश्रीमत्परात्मकः॥पादुका दीर्घतरणा जगजलधितारकः॥३॥ महावाक्यार्थ तत्वात्मा सेवानिजपदप्रदः // जीवकीटपरापाद पङ्कजालिकरःशिवः For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 72 ) // 4 // संसारधर्मसंतप्त संश्रितामृतवर्षणः // निजानुभावसंदृष्टि दासदोषापहारकः // 5 // अहेतुकळपापारपारावारोऽभयप्रदः // निजाधिनतिसंयुक्त समुन्नतिविधायकः // 6 // परापादाब्जसंसेवा नानानन्दप्रदाकः // निजप्रसादसंदान शिष्यशुद्धिविधानकत् // 7 // मूर्द्धस्थनाथकंजांघ्रि मकरन्द झरीप्लुतः // स्वशिष्यवृह्मकृद्दीरो मन्त्रतन्त्ररहस्यवित् // 8 // सहस्रदलमूर्धन्य शुक्लपङ्कजमध्यगः // प्रकाशेन्दुसुधापान परायणप्रसन्नधीः // 6 // अज्ञानचर्वणाशक्त स्वरूपोदय दर्शकः // रोगशोकभयक्लेश हारकोभुक्तिमोक्तदः १०॥शाम्भ वीखेचरीमुद्रा दृष्टज्योतिरगादधीः मानागम्यपदःसृष्टिस्थिति संहारकारकः // 11 ॥वराभयकरोहीर मुक्ताफलविभूषितः / ज्ञानमुद्रापुस्तकाच्य करकञ्जविराजितः॥ १२॥ज्ञानानन्दप्रसनात्मा प्रबुद्धमुखपङ्कजः // प्रफुल्लनयनाम्भोजो महानन्दस्वरूपवाक् // 13 // सर्वस्वदातृसच्छिष्यकरुणाषोडशीप्रदः // सङ्केतसूचना तत्वदर्शकोमहिमार्णवः // 14 // वामोत्सङ्गसमारूढ स्वसमानगुणाकरा // रक्तकञ्जधरस्वात्मा शक्तिसंश्लिष्ट देहिकः // 15 // प्रभङ्गोवृतपापिष्ट परापादाब्जपूजकः // आनन्दानन्दनाथाख्यः शिष्योद्धारावतारकः // 13 // शिवशक्ति सदासाम रस्यानन्दसुभुग्विभुः // शिवशक्त्यैक्यभावस्थ पराक्रमपरायणः // 17 // इदन्तामधुशैवाग्नि होमहत्यररू पधृक् // सर्वमङ्गलकन्नामा दुर्ज्ञानेन्धनपावकः // 18 // संकल्पसिद्धिदोजीव सर्वशास्त्रार्थसिद्धिमत् // सर्वरूपोमहाभान रनन्योंदीनवत्सलः // 19 // कृतज्ञकरकृत्यादि शमनःशान्त For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (73 ) विग्रहः // शुक्लवर्णोरक्तवर्णो गौरोद्विभुजधारकः // 20 // शिवदोन्तर्विहारीच द्वैताद्वैतप्रवर्तकः // करुणादृष्टिसंपात प्रपन्नजनतारकः॥ 21 // एकत्रिनवधानन्त रूपविश्वोपकारक: मतान्तरोत्तममतो विषामृतविधायकः // 22 // द्विनेत्रत्र्यम्ब कश्चैव त्रिनेत्रायुगनेत्रधृक् // अनन्तनयनोनन्ता भिख्याकमचरित्रकः // 23 // चतुर्भुजोऽनन्तबाहु नाशस्त्रास्त्रधारकः // स्वात्माभिन्नपराशक्ति समुपासनतत्परः // 24 // पराशक्तिरहोपास्ति क्रियाकलकारकः // परापादाब्जमधुलिट् च्छिष्यःपरपदाप्तिहत् // 25 // विश्वतापार्तिहत्स्वात्म वरहस्तातपत्रकः // पशुपाशहरःसंविदेशकालातिगोभवः // 26 // जितगुर्ज्ञानरूपात्मा हितकज्जगतांप्रियः // स्वीयमानसकञ्जालि तिसूक्ष्मविचारकः // 27 // अनाश्रयाश्रयः स्वस्थो गुणरत्नालयस्वधीः // शिशिरोष्णमहातेजःसमुद्रःसर्व दर्शकः // 28 // गुप्तप्रकटमार्गस्थो गुप्ताचारपरायणः // संसारव्यालसन्दष्ठ गारुत्मगुणरूपधृक् // 29 // स्वाधिप्रणतदेवद्रूस्तिमिरावृतभानुमान् // संसारतापसन्तप्तसुधासाराभि वर्षणः // 30 // अष्टोत्तरशतंश्रीमन्नाम्नां निजगुरोः सदा // पठन्नभीष्ठलभते भोगमोक्षात्मकंफलम् // 31 // पठतोनास्तिदारिद्रं न भीतिः कस्यचिद्भवेत् // प्रसादाच्छ्रीगुरोर्जीवो महानन्दमयोभवेत् // 32 // कविगुणपाठविहीना वाणीरच. ना हिमामकीस्वामिन् // यद्यपितेविषयातो दोषविहीनेवस तांमुदेभवतु // 63 // इतिश्री आनन्दानन्दनाथ पूज्यपाद For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिष्य श्रीप्रतिभानन्दनाथ विरचितं श्रीगुर्वष्टोत्तरशतनाम संपूर्णम् // ॥ॐ॥ ॥श्री॥ ॐ / मूलस्थितां कुण्डलिनी सुषुम्णामार्गेण शुक्लाजसहस्रपत्रे // चिच्चन्द्रबिम्बामृतपानशक्तां तामेवज्वालावदनां नमामि // 1 // श्रुतौविगीताखिलविश्वरूपा ज्ञानप्रकाशा हृदिसंनिविष्टा या ब्रह्मरूपा परमात्मशक्तिर्वालामुखी तां मनसा नमामि // 2 // यस्याःप्रसादाद्विधि विष्णुरुद्राः कुर्वन्ति विश्वस्य विधानत्यम् // कृतान्तवैश्वानर तुल्यदीप्तिं पश्याम्यहन्तां ज्वलनाननाम्बाम् // 3 // धराम्बुतेजो निलखानि यस्याः तत्वानि पंचैव समुद्भवन्ति // रूपाणि यस्याश्च तथेन्द्रियाणी ज्वालामुखी तां० // 4 // मात्रा मनोबुद्धिरहंकृतिया चित्तं च जीवं परमात्मतत्वं // लीलार्थमेकैव बहुस्वरूपा ज्वाला० // 5 // हव्यं च होतारमथानलं च होमंफलं स्वा त्मनि या विभज्य एकैवक्रीडत्यनिशंमहेशी ज्वाला // 3 // या संस्मृताभीतिमपास्य दूरंसुखैकनिष्टं मनुजं करोति सुबुद्धि दात्री भवति प्रसिद्ध ज्वालामुखी० // 7 // यस्यां मनोन्यस्य सुयातियोगी संसारपारं परमं प्रकाशम् // पदंध्रुवनित्यमना मयंतत् ज्यालामुखी तां मनसानमामि ॥८॥इत्यष्टकं श्री ज्वलनाम्बिकायाः भक्तः पठेत् ध्यानकरः सदायःसयातिदिव्यं परदेवतायाः पदंप्रकाशात्मकमात्म शक्तेः॥ 9 // इतिश्री ज्वालामुखीस्तोत्रं सपूर्णम् // श्रीरस्तु // श्रीः // For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 75 ) श्रीगणेशायनमः / येनेदं सकलं जातं वर्तते हरणं भवेत् // आद्यन्तरहितं श्रीमत् सामर्थ्य जयतेतराम् // 1 // सुष्कं चा,तथााष्णं शीतं भवति सर्वतः // यत्प्रसादासदाश्रीमत्सामर्थ्य तत्परंनमः // 2 // जलधिः स्थलतां याति स्थलमम्बु निधिर्भवेत् // ईशाज्ञोऽज्ञश्च सर्वज्ञः सामर्थ्यं शरणं नुम॥ 3 // त्रयाणां जगतामीशः शिवस्तवान् भवेद्यदि // अन्यथा शवइत्येव श्रीसामर्थ्य भजाम्यहम् // 4 // यदुपासनया योगी संगछति परंपदम् // कामी कामं समाप्नोति साम यसंस्मराम्यहम् // 5 // पापंधर्मायते भोगोयोगःस्याद्भजतां नृणाम् // विषं सुधायते श्रीमत्सामर्थ्य मे प्रसीदतु // 6 // यझ्यानाजर्जरीभूतो नरोऽनंगायते निशम् ॥लालित्यं मोहनंश्रीमत् साम) संस्मराम्यहम् // 7 // विधित्वं चैवविष्णत्वं रुद्रत्वं भजते स्वयम् // तत्प्रथक्त्वं च सर्वत्वं सामर्थ्य संभजाम्यहम् // 8 // सामाष्टकमेवेदं नरः पठति भक्ति. मान् // सचालौकिकसामर्थ्य भवते भुविभाग्यवान् // 9 // त्रिकं पंच त्रिकं दिग्वर्णचैकाक्षरंपरम् // द्वाविंशत्यक्षरं माभूत् सामर्थ्य मे पृथक्सदा // 10 // अस्मद्भाग्यं स्वामिनी मातृरूपं भाग्यं शम्भोः श्रीकलत्रस्वरूपम् // भाग्यराज्ञःपर्वतानांहिमस्य वात्सल्यस्यस्थानभूतंनतोऽस्मि // 11 // इति श्री सामर्थ्याष्टकस्तोत्रं समाप्तम् / / श्रीमती सकलान्तर्यामिणी पराम्बा पादारविन्दयोमें सर्वदा For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 76 ) मनोलिश्चिनमकरन्द लेलिहतांतराम् ॥यांयुद्धेऽगणितासुरा. कतिविधाः प्राप्यैवनाकंगता यामाराध्य मुनीश्वराः सुरजनाः सिद्धिंगताः शाश्वतीम् // यां प्राप्यामृतवर्षिणी निजजनाः सद्योगयुक्या मनोयस्यामेव निवेश्यतत्फलभुजो रूपंद्वितीयं जहुः // 1 // एका परा गुणविहीनविलक्षरूपा प्राचीन विश्वरचना विलया त्वमासीः अग्रेस्वधानि सतितेहि रूपावशेन व्यक्तिर्भवानिभजतांचशिवाय लोके 2 व्यक्तिःशिवाय गिरिजे भजतां नराणां इत्यपिपाठःजानेवराभयकरं विलसत् त्रिनेत्रम् श्रीचन्द्रभालरमणीय विभासमानम् शोणंवपुर्धतमनादिसदेक रूपे भक्तस्यरागवशतः स्मितशोभितास्यम् // 3 // एकाद्वयं निजविभासविकाशमानं स्वछछविस्फुरणशालिविबोधरूपम्॥ यत्तेतदेतदितिशोणमहःस्वरूपं मन्येशिवेघन रुपामृतवर्षहर्षि // 4 // तत्वंशिवं त्रिपुटिहीनमनन्तमाद्य मानन्दरूपमवबोध चिदात्मतन्त्रम् यनेस्वरूपमरविन्दविकाशकोटि तेजोह्यह शरणमम्बसदागतोस्मि // 5 // पञ्चरत्नमिदंस्तोत्रं यःपठेद्भक्ति मानरः // ऐहिकामुष्मिकी सिधिं स्वयंप्राप्नोत्यसंशयः // 6 // धनं धान्यं यशःसौख्यं राज्यं निहतकंटकम् / / ज्ञानविज्ञानसं. युक्तस्वरूपं वनितां सुतम् // 7 // विद्याः कवित्वं लभते परा. म्बायाः प्रसादतः // असाध्यं सुखसाध्यंच भवत्येव नसंशयः // 8 // इतिश्री पञ्चरत्नं समाप्तम् // श्रीगुरुपादुकाभ्योनमः ! श्रीगणेशायनमः ॐ श्रीसरस्व त्यैनमः / ॐ श्रीमती सकलान्तर्यामिणी वागमतवर्षिणा For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 77 ) विजयतेतराम // ॐ गलद्रक्तमुण्डं कृपाणिंभीति वरं संदधाना करैरम्यरूपैः // गलत्सृक्विणी रक्तधारामुखाब्जा मवन्ती जनान्स्वान् भजे श्यामलाम्बाम् // 1 ॥शबाकार शम्भुस्थितां सामरस्य प्रमोदांसदा चन्द्रमौलि त्रिनेत्राम् // लसत्स्मेरवक्त्रां विवासाविलासा प्रतित्वां प्रपन्नोस्मिभक्ता निहंत्रीम् // 2 // त्वमेकैव विश्वस्य माता विधात्री तथा संहरीभोगमोक्षकदात्री॥घनश्यामलांगीरुपापर्णवृष्टिःस्थिता मन्मनस्तावके धाग्निभूयाः // 3 // त्वदीये पदाब्जे प्रपन्ना जना ये मनोभीष्टदानप्रवीणेन तेषाम् // कृपालोकनात् ते हि मातर्भयं नो मतिनैवशेगो न शोकोभवानि // 4 // सदासविलासः सदासहिमर्शः सदादानकर्ता सुपात्रेस्वतन्त्रः सुखीवीर्य सौन्दर्यशाली सुभक्तः कविर्तानवांस्ते कटाक्षावलोकी // 5 // पञ्जरत्नमिदं स्तोत्रं नरः पठति नित्यदा // शिवा रुपाकढानार्थी ध्यानकच्चेष्टमाप्नुयात् // इति पञ्चरत्नस्तोत्रं समाप्तम्॥ श्रीमत्पराभैरवो विजयतेतराम् // नित्यःशुद्धः सुबुद्धः परमहितकरोलीलयाबालरूपः शुलं दण्डंदधानः स्फटिकवररुचि श्चन्द्रचूडस्त्रिनेत्रः आपभ्धः संप्रमोक्ता निजशरणगतान् संप्रयोक्ता सुखानां कालःपालस्त्रि. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 78 ) लोक्याः परमविधिकरो भैरवःशङ्करोऽस्तु // 1 // भैरव भैर. वभैरव भजतां न्हणांभयं कुत्र॥ सूर्यस्योदयसमये लेशस्तमसो नविद्यते जगति // 5 // आपद्विलंयातिहि आपत्संसार नामतः सद्यः // शङ्करइतिसंपठनात्सर्वसुखं समुपजायतेशीघ्रम् // 3 // भैरवइतिसंभजनाद्भवविघ्नं दूरतोयाति // सर्वत्रसर्वदावैसिद्धिः कार्यस्य नृणांभवति // 4 // भूतनाथ इलिभजनाद्भूतावशवर्तिनस्तेषाम् // भूतात्मापठमानवसर्वेभ्यश्चेछसीष्टत्वम् // 5 // भवतिजनानांवृद्धिःपठनाद्वैभूतभावनोनानः // क्षेत्रज्ञाभिख्यातोदेहं जानाति नात्मनोरूपम् 6 // क्षेत्रपाल इतिपठनाद्भवतिजनः सक्तिभागचिरात् // क्षेत्रदहति संपठनाल्लभेदिलां धान्यस्यायाम् // 7 // क्षत्रियइतिसंस्म रणाहुलबली भवति धर्मायः // विराडभिख्याभजनात् पश्यति परभैरवं सर्वम् // 8 // स्मशानवासी पठनात्तत्रस्थो रक्षकस्तत्र // मांसाशीति च पठनाइलवानारोग्यसंयुक्तः // खपरभोजीभ जनाद्भक्तोवैराग्यवान् भवति खरान्तकाख्यापा. ठात् दुस्पर्शभैरवोहरति // 10 // रक्तप इति शुभपाठाद्भवति जनोभावभावच धीराणाम् // पानप इतीरणाद्वैचित्तैकाग्यूं सुखंलभते // 11 // उद्गीर्णात्सिद्ध इति सिद्धावस्थां नरो याति // सिद्धिदइतिसंस्मरणात्कामानां सिद्धयः सर्वाः // सिद्धिसुसेवितनाम्नः पाठादणिमादिकास्तस्य // कंकालःइति पठनात्सर्वतपस्या फलंभुङ्क्ते // 93 // भजति सुभक्तोऽभिख्यांश्रीबटुकस्य कालशमन इति // मृत्योर्मृत्युर्भवति हि भैरवदेवस्य सुप्रीत्या // 14 // कलाकाष्टातनुरिति पाठात्का For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (76) लस्वरूपज्ञः // कविरिति वदतां ज्ञानं कविताशक्तिःसमुद्भव. ति // 15 // त्रिनेत्र इति संपठनात् ज्ञानमयं दृश्यते दृश्यम् बहुनेत्राऽभिख्यातोभवति करामलकवविश्वम् // 16 // पिङ्गललोचननाम्नः शत्रूणां नाशकोभवति // शूलपाणि रितिपाठाच्छलकरोभवति शत्रूणाम् // 17 // बटुकस्यखड्ग पाणिः पठनान्नाम्रोहि वैरिणां भवति // नाशकरोहि सुभक्तः कालानलइव समस्तजन्तनाम् // 18 // कंकालीति च पठनाट्यप्रदोवैरिवर्गस्य // धूम्रविलोचननाम्ना दृष्टिहरोहि वैरिणां भवति // 19 // यहास्योच्चारणतः पश्यतिनान्यजगद्र तः // श्रीमद्वैरवरूपात्दृश्यं सर्वहि भैरवोभाति // 20 // वदत्यभीरो महि नरोभवत्येव भयहीनः // मायां वशेहि कुरुषेत्वंभजहेभक्तभैरवीनाथम् // 21 // भूतप इति संभजनाद्भूतानां हि रक्षकोभवति // योगैश्वर्य वान्छसि भज हे भक्त योगिनीपतिमीशम् // 22 // धनदाभिख्यापाठानदधनीशोभवत्येव // धनहारीतिचपठनाद्धनहारी भवति शत्रुवर्ग स्य // २३॥धनवानिति संपठनान्महाधनो भवति लोकेशः। पठतां प्रतिभानुमांश्च सूर्य इवापरस्तेजस्वी // 24 // नाग हार इति पठतां नागेभ्योनैव भवति भयम् // नागपाश इति पठतां पराङ्मुखाः शत्रवस्तेषाम् // 25 // व्योमकेश इति भजतां महत्पदोलाघवंयाति // कपाल द्वैभजतां कापालिक तत्वमाप्नोति // 26 // कालाभिख्यां भजतां सर्वेकालाःसुखा वहास्तेषाम् / / कपालमाली भजतामिति तत्वाप्तिः प्रजायते न्हाणाम् // 27 // कमनीयस्य स्मरणात् प्रियःसदाभवति For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (80) सर्वेषाम् // कलानिधेःसंपठनात्कलानिधिर्मानवोभवति 28 // त्रिलोचनाभिख्यातोभवति जनः सर्वसंदर्शी // ज्वलन्नेत्र इति भजनाद्दाहकरोभवति शत्रुणाम् / 29 / स्मरंस्त्रिशिखीत्याभख्यां सुखं समाप्नोति मानवोभक्त्या // त्रिलोकपाभिख्यातोभैरव रतिभाजनोभवति // 30 // त्रिनेत्रतनयाख्यातो गौरीशः प्रीतिमान् भवति // डिम्भाभिख्याभजनात्पुत्राद्यानां हि सुखं भवति // 31 // शान्ताभिख्याभजनात्सर्वसुखं जायते न्दणाम् // शान्तजनप्रियपाठाछान्ति यान्ति ग्रहादिकाःङ्कराः // ३२वटुकाख्यासंपाठाद्राजकुमारप्रियोभवति // अनयाख्ययैव मनुजोवान्छितमर्थ समाप्नोति // 33 // बहुवेषांभिख्यातोनानाजनीतिमान् भवति // ज्ञानी भवति च भैरवकृपयार्था नीप्सिताँल्लभते // 34 // खटाङ्गवरधारक इति संपठनाजनस्थसर्वेभ्यः // सततं रक्षा भवति हि वरदोदेवोऽस्य भैरवो भवति // 35 // भूताध्यक्षाभिख्याभजनाद्वै भवति भूतपो मनुजः // पशुपतिरिति संकथनान्नरःपशूनां पतिर्भवति 36 // भिक्षुक इत्याख्येयं ज्ञानविरागदायिनी भवति // परिचारक इति पठनात्सुकरं काहि सर्वदा तस्य // 37 // धर्नाभिख्यापाठः कुरुते मनुजं हि मायाज्ञम् // दिगम्बरोच्चारणतो मायावर्णेन हीनात्मा // 38 // शूराभिख्यापठनाद्विश्वजयी शत्रुजयी भवति // हरिणाभिख्याभणनाच्छुद्धोवै भवतिमानवः सद्यः // 39 // पाण्डुविलोचनपाठाछुद्धादृष्टिर्भवेनृणाम् // प्रशान्तपाठाद्भवति हि प्रशान्तशत्रुनरोभक्तः॥ 40 // शान्ति द इति संपाठात्यरकृतकृत्याहि विनाशितास्तेन // शुहाभि For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (81) ख्यामजनाच्छुद्धस्वान्तोहि जनोभवति // 41 // शङ्करप्रिय बन्धुरिति भजतोयुपकारकारकोदेवः // सुखदोभैरवनाथो भवति सदानन्ददायकस्तस्य // 42 // अष्टमूर्तिरिति पाठाप्रसन्नताचाष्ठमूर्तीनाम् // निधीश इति संकथनाद्भवति धना व्योहि पुरुषोसौ // 43 // ज्ञानचक्षुरिति पाठाद्भवति ह्यात्मात्मदर्शकः पुरुषः // तपोमयाभिख्यातः पूतात्मा भवति मानवः सद्यः // 44 // अष्टाधाराभिख्या भजनादाधारवान् हि भवति // षडाधार इति भजनाद्भवतिजनश्चाश्रयीलोके / 45 // सर्पयुक्त इति भजनात्सा न हि भयप्रदास्तस्य // शिखीसखाभिख्यातो मूर्धन्योभवति लोकानाम् // 46 // हुत भुक्तेजा भवति हि भक्तोदेवस्य तापदः शत्रोः भूधरइति संपाठात् क्षमाकरोहि निश्चलोभवति // 47 // पर्वतभयं न ते स्यात्पठमानवभूधराधीशम् // भूपतिरितिसंपाठात् कृपया देवस्य भूपतिर्भवति // 18 // प्रियंवदस्त्वं भवसि हि पठ हे भक्त भूधरात्मेति कङ्कालधारिपाठायंकरोभवति शत्रुवर्ग स्य // 49 // मुण्डोति च संपठनात्संग्रामे हि शत्रुमारको भवति // सोपवीतमानिात पठनात्कालहारकोमवति 50 // जृम्भण इति संपठनान्निद्रातन्द्रायुता घरयः // मोहन इति संपठनान्मोहकरोभवति लोकानाम् // 51 // स्तम्भीति च संभजनात् स्तम्भकरोभवति शत्रूणाम् // मारण इति संपठनाद्भवति कृतान्तोहि शत्रूणाम् // 52 // क्षोभण इति संप ठनात् क्षोभयिता भवति वैरिवर्गाणाम् // शुद्धपूर्वनीलाञ्जन प्रख्यापाठान्नरोभवति // 53 // स्फटिक इवान्तःशुद्धोव्यव For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 82 ) हारकरोहि बहिर्भवति // दैत्यहेति संजपनाहुष्टघ्नोभवति मानवोभक्तः // 54 // मुण्डविभूषितपाठी तेजस्वी चैवयशस्वीसः // बालभुक्नानापाठादेहिकभोगान्समा क्ते // 55 // बलिभङनाथाख्यातो भवतिनरोराजराजेशः // बा लाभिख्याभजनात्समदृष्ठिहिमानवो भवति // 56 // प्रीत. मनाः संक्रीडितः सर्वेषां प्रियतमोन्हणाम् // बालपराक्रम पाठान्महाबलोभवति चौजस्वी // 57 // आपद्विलयं गमयति सर्वापत्तारणाभिरख्यः॥ दुर्गाभिख्याभजनादुष्टोऽपिविमुच्य ते जन्तुः // 58 // दुर्गतिकोऽपि हि सुगतिर्दुर्गमकार्य हि सुगमतरं भवति // भजतांभक्तजनानां मुक्तिकरोभैरवस्तेषांम् // 59 // दुष्टभूतविनिषेवितनाम्नाः पाठाद्भवन्ति भक्ता नाम् // दुष्टा भूता वशगा भैरवनाथप्रसादतः सद्यः // 6 // कामीत्यस्य च पाठाहीस्तरुणी वे भुङ्क्ते // सर्वानन्दसु पूर्णो भवभयभङ्गकारकोमृहङ्गी // 6 // भवति कलानिधि पाठाद्भक्तोनानाकलाभिज्ञः॥ सर्वसमर्थोज्ञानी परमैश्वर्यसंयुतोधर्मी // 62 // कान्तकामिनीवशकद्भजनात्कान्तकामिनी वशगा // भवति भजनकरस्य हि अनुकम्पातोहि भैरवस्य // 63 // वशीत्यभिरव्याभजनात्सर्वे वशगा हि मानवान्ढणाम् सत्वान्तेन्द्रियवर्गों वश्योवशिनोहि महात्म्यतोभवति // 64 / / सर्वसिद्धिसंप्रदइति संजपनासिद्धयःसर्वाः // भैरवनाथरूषा तोभवति सुभक्तस्य विचारणातेन // 65 // वैद्याभिख्याभज नाद्रोगास्तापादिका विनश्यन्ति // संसृतिरोगाक्रान्तोविज्ञा नं हि भेषजं समाप्नोति // 66 // प्रभुरित्याख्यापठनात्सर्व. For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 83 ) समर्थोनरोभवति // विष्ण्वाख्यासंपठनाइयाकरः पालका ज्ञानी 67 // अष्टोत्तरशतनाम्नां महात्म्यं हि वटुकभैरवस्य // उक्तं तत्प्रेरणया पठतां नणां भवेत्सिद्धिः॥ 68 // यद्यन्नाम सुभजनाद्याया सिद्धिरुदारिता // सासास्माच्छतपूर्वाष्ठनामपाठादवेध्रुवम् // 69 // एकनात्म्नश्चपाठादै सिद्धिरेकापि संभवेत् // भक्तस्यात्यन्तिकस्येह रूपया भैरवस्यहि 70 // भैरव भैरव भैरव भजतां न्ढणां च सिद्धयःसर्वाः // हस्तस्थिता भवन्ति हि किमुवक्तव्यं समयसंपठनात् // 71 // विष्णो विष्णो विष्णो संवदतां सर्वगोदेवः // रक्षति जनं स्वकीयं कार्ये सर्वत्र सहायकोभवति // 72 // वटुकनाथ माहात्म्यं नामामृतसंयुतं च जिह्वायाम् // विधृतं येन हि भाग्यादमरःसनरोऽजरोभवति // 73 // इतिश्री परभैरवप्रेरणया श्रीमदानन्दानन्दनाथपूज्यपादशिष्यश्रीप्रतिभानन्द नाथविरचितमापदुद्वारकवटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामामृतमाहा. त्म्यं तथाचैकनाममाहात्म्यम् समाप्तम् // इतिश्री स्तोत्ररत्नावली समाप्ता / / For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (84) श्रीमद्वाग्वैभवविधायिनी विजयतेतराम् // ॐनमः परमकारुणिके। परब्रह्मरूपिणिपरात्मशक्तिस्वरूपिणि / भगवतिभा समानस्वरूपे।लीलागृहीतवपुषिललितेलालयन्तिभक्तान स्वासयन्त्यरीन् / पोषयन्तिपदवज्रपंजरशरणगतान् / आधिव्याधिजन्ममृत्युभयशोकाद्यनकक्केशापहारिणि / तारिणि भवसिंधो श्चतुर्भुजे / सुमनः पंचवाणपुं क्षुचापस्वर्णशणिपाशधरे / परे घरे वरदे / वाग्विभूतिविधायिनि / अंतरज्ञानध्वान्तध्वन्सिनि द्वादशादित्यप्रकाश इव प्रकाशकारिणि // प्रभाकरादिप्रकाशिनि / स्वयंप्रभे नित्ये नित्योदिते नित्योदितानंददाथिनि निखिलजनमनोगंजिनि निर्गुणे सगुण / सृष्टिस्थित्यन्तकारिणि स्वजनमनोहारिणि / स्वाज्ञासकललोकवविधायिनिप्रणतपालिके वालिके धृतपुस्तकाक्षमालिके / तरुणारुणरूपिणि // पारक्तवसनाभरणमाल्यानलोपिनि / सुप्रसन्न चन्द्रवदने , करुणाकलितकमलपत्रायताक्षि।कामाक्षि मय्यधमे // यद्यपि स्वदेकचरणसरोजशरणे // करुणाभरहगंतपातान् / कुरु 2 // नमस्त्वचरणकमलयोरस्तु 3 / ॐमालामंत्रमिदं देव्या // ध्यानं कृत्वा सदा पठेत् निष्कामस्तत्पदं यायात् सकामोऽभीष्टमाप्नुयात् // इतिश्री आनंदानंदनाथ पूज्यपाद शिष्य श्री प्रतिभानन्दविरिचितं मालामन्त्रं समाप्तम् / / श्रीपरमपावनगुर्जरदेशस्थाया दर्शनाभिलाषापूणर्कारिक पामहात्म्यश्लोकटोकाच // अम्बादर्शनलालसाभरमहोयस्याः प्रसादादहम् / संपूर्णां विदधे ह्यतश्चसदृशः कोनेन भूयान्नृणाम् // For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . (85) एताहकूफलसिद्धये न हि यथा मोक्षस्यभात विना / हेतुर्भक्तिविलब्धयेऽत्र जगति स्याद्भक्तसंगं विना // 9 // अंबेतिअम्बादर्शनलालसाभरंतस्याःप्रसादात दर्शनायोग्योऽपि अहो अहं साफल्यं विदधे। अमोघंकर्वे अतोऽस्माद्धेतोःभनेन प्रसादेन सदृशः अम्बादर्शनामिलाषाभरपरिपूर्णे अन्याको हेतुः किंकारणं किंसाधनमिति यावत् // यज्ञयागादिः कोपि नास्ति अम्बादर्शनौत्सुक्यसफलीकरणे अम्बायाःकृपैवकारण मितिभावः यज्ञयागादिसाधनलाघवेन दर्शनफलगौरवेण चतस्या दर्शनस्य दुर्लभत्वात् // मादृशानाम् अधमानाम् अम्बादर्शनं तत्रूपामंतरावति भावः // यथा मोक्षस्य भक्तिं विना साधनांतरं सम्यक् हीति निश्चयेन हेतुर्नस्थात् यथा विशेषेण भक्तिलब्धये भक्तसंगं विना हेतुरन्योत्रजगति अस्मिल्लोके कर्मादिसाधनान्तरं न भवेत् // भक्तिविलब्धये भक्तसंग एव कारणं / तथांबादर्शनलालसाभरसफलीकरणे मादृशानां नीचतराणां / अम्बाकारुण्यवारिधेः / प्रसाद एव कारणं ज्ञातव्यम् / भोजनारेमानसवेति भावः / / अयं समुदयी सदा वदनचन्द्र ईड्येशिवे / नितान्तमुदयंकरः सकललोकनाथः प्रभुः // गुणाकरविभाकरोनिखिलदोषहारी नृणा मनादिनिधनोभवत्वघवितापशांत्यै मम // 2 // टीका-हेशिवे हे ईध्ये अयं तव वदनचन्द्रः सदा समुदयी नितान्त मुदयंकरः / सकललोकनाथः प्रभुः / गुणाकरविभा For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करः। नृणां दोषहारी अनादिनिधनः ! मम अघवितापसांत्यै भवतु / इत्यन्वयः / कविर्भगवत्याः श्रीमुखचन्द्रादति सुच्छं लौकिकचन्द्रंपरिहत्य मुखचन्द्रेश्वर्यम् अत्यधिक मत्वा स्तौति हे ईड्ये सर्वदेवेभ्यः अनेकहेतुतस्त्वमेव वरीयसी त्वत्तोधिकाऽन्या देवता नास्ति अतः सर्वेषां योगुणगुरुभवेत् स एव सर्वेषां स्तोतुंयोग्यो भवेत् अत उक्तं हे ईड्ये सर्वेषां देवानां मध्ये सर्वेषां स्तोतुं योग्या / त्वमेवेति भावः।हेशिवे कल्याणरूपे कल्याणदायिनि परब्रह्मरूप योलोकचन्द्रःसतुदिन दीनतरोभवति / हासवृद्धी तस्य भवतः अयं त्वदनचन्द्रः सदा समुदयी हासवृद्विशून्यअहर्निशमेकरसरूपः सौन्दर्यादिगुणसंपन्नः सदोदयी सन्नेव तिष्ठति / पुनर्नृणामपि निता न्तंनित्यमुदयंकरः ज्ञानवृद्धिकरोमङ्गलकरऐश्वर्यधनादिविभूतिरूपमदयंकरश्च भवति स तु द्विजराजः विप्रराजःनक्षत्र पतिश्चाऽस्ति न तु सर्वेषां पतिः अयं तु सकललोकनाथः चतुर्दशभुवनाधिपः राजराजेश्वर इतियावत् तचन्द्रस्यापि नाथ इतिभावः स तु क्षयरोग्यतोऽसमर्थ असं त्वनातङ्कः प्रभुश्च भक्तानामभीष्टदाने परमसमर्थः इतिभावः / स तु दोषाकरःरात्रिकरः अयं ज्ञानदिनकरः सदैवास्ति पुनदोषाणां गुरु स्त्रीगमनादीनांच आकरःखनिःअयं तु गुणाकरविभाकरः गुणाकरश्चासौविशेषेण भाकरश्चेति कर्मधारयः गुणानां नित्योदयसदोत्सव धर्मशीलपरमसुन्दरनिष्कलंकपापतापाघनिष्टहारकःभक्त हत्कंजविकाशकलक्ष्मीदायकाद्यनेकगुणाना माकरःखनीभूतःसन् विशेषेणभाकरःभायाःसर्वतेजसआकरः For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (87) खनिः यद्वा भक्तानां प्रकाशकारी दीप्तिकारी च यहा स्वस्य ब्रह्मरूपस्य तेजसःप्रकाशकारी यहा विभाकरः नाम दीप्तीनां सूर्या विद्युच्चन्द्राणां सर्वतेजसांखनिःप्रकाशकानामपिप्रकाशकःविपदसामल्लिब्धोयमर्थः कामकलोईबिन्दुपरब्रह्मबिम्ब रूपइत्यर्थतस्यमुखत्वेनप्रतिपादनात्मतएवकामक्रोधादयोदोषा स्तेषांहारीदरकर्त्तानृणांस्वभक्तानामित्यर्थःयद्वासतुस्वयमेवदोषाकरः दोषानामाकरः तदा अन्येषां दोपहरणं क भवति दोष करणंतु तस्य स्यादेवेत्यर्थः स तु अग्रे समुद्रमंथनात्प्राङ्ना. सीत् / प्रलयं च लयं गमिष्यत्येव अतः साधन्त अयं त्वर दनचन्द्रस्तु अनादिनिधन आद्यन्तरहितः सद्रूपादेशकाला धनवछिन्नः सच्चिदानन्दरूपः यः सद्रूपः सचिद्रूपाभवति यः सच्चिद्रूपः स आनंदरूपोभवितुमर्हति स्वतःस्वरूपं प्रकाशयन् विश्वजातं प्रकाशयति अर्थात्भगवत्याः मुखचन्द्र एव सच्चिदानन्दः स वदनचन्द्रः मम अघवितापशांत्यै भवत अघाज्जातोविशेषतापः कायिकबाचकमानसरूपः तस्य शांत्यै नाशाय भवतु स चन्द्रस्तु बहिस्तापनाशकोभवति परंतु त्रिविधतापनाशकः पापनाशकश्च न भवति अयं त्वद्वदनचंद्रः पापतापद्वयनाशकोभवति अतोमया प्रार्थ्यते याचहि धनि नोदानसमर्थस्य धर्मशीलस्या ग्रे क्रियमाणाऽमोघा भवति परंतु रुपणस्यनिर्धनस्याधर्मात्मन इत्यर्थ अयं तु त्वदनच. न्द्रःपापतापनाशकसामर्थ्यरूपधनवान् दानशौन्डःधर्मधुरंधरः धर्मार्थ एवाविर्भावोऽस्याऽतः सर्वमालोच्य मया याच्यते इतिभावः॥ For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (88) रजसारजस्तमस्कोयोना युक्तोहि विवृद्धशुक्गुणः // मातःपदपङ्कजयोः संस्ते सोभ्येति निर्वाणम् // 3 // हेमातः तेपदपङ्कजयोरजसायुक्तोरजस्तमस्कोयो नासना हीति निश्चये विवृद्धशुक्लगुणः सन् निर्वाणमभ्येतीत्यन्वयः यः ना नरस्त्वद्क्तस्ते पदपंकजयोरजसा परागेण परिप्लुतः नमस्कार करणात्ते चरणरजोयुक्तमस्तकः अरजस्तमस्कः प्रथमतोभूत्वा विशेषेण वृद्धशक्तगुणः शुद्धसत्वगुणः सन् अभिसमन्ता. निर्वाणाख्यं सुखरूपं पदंस्थान एतिप्राप्नोति इत्यहोपदपङ्कज पसगमाहात्म्य मितिभावः कुतोयोरजसा युक्तः सो रजस्तम स्कःकथं भवति योरजसा युक्तोभवति सोऽधकारयुक्तोपि भवत्येव रजस्छन्नस्यावश्यमन्धकारप्रसंगात् / तदावश्यं दुःखो दर्कस्थानप्रसंगः स्यात् गमनसमये स्वरूपस्यसन्मार्गस्य चाप्रकाशात् स्खलनं पतनं च भवत्येव अयं तु न तथारजसश्छन्नोपि अरजस्तमस्कारजोन्धकाररहितारजोगुणतमोगुण रहितत्वाद्विवृद्धशुलगुणः विशेषेण वृद्ध उज्ज्वल एवं गुण उज्ज्वलगुणः शुद्धसत्वगुणः सर्वपापरहितत्वात् शुद्धान्तः करणत्वात् आणवकार्मिकमायिकमलरहितः शुद्धब्रह्मरूपःसन् यहाविवृद्धःशुलगुणः विवृद्धसत्वगुणोयस्य सः अर्थात् पूर्व ते पदपङ्कजरजसा युक्त अरजस्तमस्कोरजोगुणतमोगुणरहितो भृत्वा वृद्धसत्वगुणी च भूत्वा पुनस्तेनापि सत्वगुणेन विरहि तः सन् निर्गुणः शुद्धचैतन्यरूपी सन् स्वरूपभूतं निर्वाणाख्यं स्वरूपं पदमभिसमंतात् प्राप्नोति इत्यहोचित्रं चरित्रं चरणाविदस्येति भावः॥ For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (89) // अथ भक्तमहिमा // धन्यास्त एव सुखिनस्त्रिपुरे भवत्याः पादारविन्द युगलं हि समर्चयन्ति / मान्याः सतां समधियो भुवनैकवन्द्याः, भुमो भवानि भवतापहरा जयन्ति // 3 // हेभवानि हेत्रिपुर ये भवत्याः पादारबिन्दयुगलं समर्चयन्ति ते एव अर्चनफललाभात् समधियः / अत एव सतां मान्याः / शरणागतभवतापहराः। अतएव भुवनैकवन्द्याः। सन्तः सुखिनो धन्याः। अतएव भूमौ जयन्ति // 1 // श्रीदुर्गायैनमः॥ ॐअज्ञाजना जननि विष्णुहरादिदेवान्, विश्वस्थिति प्रलय सृष्टिकरावदन्ति // स्वस्वाधिकारकरणे च तएव सृष्टा देवि त्वया कथमिमे प्रभव स्तदा ते // 1 // हेजननि हे देवि विश्वस्थिति प्रलयसृष्टिकरान् / विष्णुहरादिदेवान् / आदिशब्देन // द्रुहिणेन्द्रभास्करगणेशादिकान् अज्ञाजना वदन्ति स्वमतं स्थापयन्ति / स्तुतिकर्ता / त्वयाएवजनन्या त्रिपुरसुन्दर्या स्वस्वाधिकारकरणे सृष्टा इमे तदा पर्वोक्तास्ते देवाः कथं प्रभवः / कथं सृष्टिस्थिति प्रलयेषुब्रह्मा दिदेवाः / स्वतंत्रकारः / अपितु नैवते / सृष्टिस्थितिसंहार कारिणी त्वमेवेत्यर्थः / त्वत्परतंत्रा स्तेऽपि अतोज्ञानिभिः For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (6.) ममुक्षुभिः / सुबुद्धिभि विषयेप्सुभिश्च / स्वष्टसिद्धये त्वमेव ध्येयागेया पूज्याज्ञेयाश्रयणीयेति भावः // उवाङ्मनोतीतरूपामे हृदि स्थीयताम् // ॐवाङ्मनोतीतसौंदर्यस्वरूपायै नमः ॐवाम०सौंदर्यस्वरूपं पूजयामि नमः ॐमृदुमंजुलसूक्ष्मसंध्यारुणस्वर्णसूत्रचातुर्यान. यवसनवासित स्वर्णाभरणभूषित कजलकस्तुरिकादिकलाबिंदुविशेषविलसितधैर्यगांभीर्यभक्तत्राणपरायणत्व सदयहृदयताद्यनंत गुणसंपन्नशृंगारकरुणादिरसालयषडूमिरहित सदा षोडशवर्षवयस्काखण्डषड्भगसहित सकलसौंदर्य सुधासारा वास चारुसांगशुभग सकल वामनीतीतमहिमशालि सचिदानंदरूप भक्तानुग्रहवशघृत शोभनीयसकलस्वरूपायै न. मः // 1 // ॐमूदु० भक्तानुगृहवशधृत शोभनीयसकलशरीरम् // पू० // 1 // ॐमाणिक्यमणिस्तोमखचित हेमकिरीट. जुष्ट मुक्तादामालंकृत श्रीफलाकारातिसुन्दरशीर्षायै नमः॥ 2 // ॐमाणिक्य. श्रीफलाकारातिसुन्दशीर्ष पूजयामि नमः॥२॥ॐ उद्यत दहशतरणिश्रेणिसिंदूरलेखालसितकल्प. द्रुमकुसुमोडुगणविलसित सघनघनश्याम स्निग्धघावलंबि सरलकचरुतवेणिकायै नमः // 3 // ॐ उद्यद्वादश जंगावलंबिसरलकचरुतवेणी पू० // 3 // ॐकदलीपत्रष्टष्टायै नमः // 4 // ॐकदलिपत्रप्टष्टं पू० // 4 // ॐतमःश्यामस्निग्धक चरुतकलापायै नमः // 5 // ॐतमः० कचरूतकल पदयं पू:० // 5 // ॐ उद्यत्तरणिश्रेणिसिंदुरपुरलेखालसितसीमंतायै नमः // 6 // ॐउद्यत्तरणि सिंदूरपूरलेखालसितसीमंतं पू० // 6 // For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 91 ) मृगनाभिलसहिदुशरत्पूर्णेन्दुवत्रिकायै नमः // 7 // मृग० शरत्पूर्णेन्दुवक्त्रं प० // 7 // चंद्रार्धोन्नतविशालभालस्थलायें नमः ॥८॥चंद्रा० विशालभालस्थलंपू० // 8 // माणिक्य तिलकालिकविलोचनायै नमः॥ 9 // माणिक्य० विलोचनं पू० 9 // कामकार्मुक-युगलायै नमः१०॥कामकार्मुकभ्रयुग. लं पू०॥१०॥कामभस्मकजलकलाकलिताद्भुतचमत्कारकारि कामसंजीवनभक्ताज्ञानदारिद्रदलनवंजुलडगंचलांचितकरुणा शृंगार रसाश्रयचपलेक्षणयुगलायै नमः // 11 ॥काम करुणाशंगार रसाश्रयमंदवी क्षणचपलेक्षण युगलं पू०११॥ नासाग्रमौक्तिकलसितहीरमुक्तामणिगणान्वितनासाभरणाभू. पित चंपकपुष्याभनासिकायै नमः // 12 // नासाग्र० चंपकपुष्पाभनासिकां पू० // 12 // ताटंकमहः प्रतिबिंब तालकालिशोभित मृदुमंजुमाणिक्यादर्शकपोल युगलायैनमः ॥१३॥ताटंक०मृदुमाणिक्यादर्शकपोलयुगलं पु० // 13 // पुरटांचितमुक्ताफल कर्णपूरहेमखचित हीरपुंजचलत्ताट. कोहकितगारुडपत्राकृति कर्ण युगलायै नमः // 14 // पूर टां० गारुडपत्राकारकर्णयुगलं पू० // 14 // स्वमाधुर्य पराकतामृतमाधुर्यसहजातिरिक्ताधरोष्ठपुटायै नमः॥ 15 // स्व० सहजारुणोष्ठाधरपुटं पू० // 15 // प्रफुल्लित पङ्कजमुखायै नमः // 16 // प्रफुलितपङ्कजमुखं पू० 16 // स्मितचन्द्रिकामुखचन्द्रायै नमः॥ 17 // स्मितचंद्रिकामुखचन्द्रं पू० // 17 // इति मुख एवपूजयेत् // दरदलिसारविन्दुसुन्दरमुखशुद्धविद्यांकुरसूक्ष्म समकांतिकारिहीरा For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 92) वली शोभाहारिरदनावल्यै नमः // // दर० हीरावली शोभाहारिदंतावली पू० // 18 // इति मुख एव पू०॥ वाणीपरिणतमाणिक्यमूर्ति विलसितरसनायै नमः // 19 // वाणीपरिणतमाणिक्यमूर्ति विलसितरसनां पृ० // 19 // मधुस्नपितमूहिक श्रेयःसंपादिनी गिरायै नमः // 20 // मधु० श्रेयःसम्पादिनीगिरां पू० // 20 // मुख एव पु०॥ कमलमुखकर्परवाटिकामोदस्वासोत्स्वास मंत्रनिमंत्रितागत सौंदर्यमकरंदपानलुब्धकामेश्वर नेत्रमूंगाल्यलकावलि युगलायै नमः // 21 // कमल० कामेश्वरनेत्रमूंगाल्यलकावलियुगलं पू० // 21 // नानारसचातुर्यमाधुर्यादि गुणगणोपेतपिकपेश लालापायै नमः // 22 // नाना० पिकपेशलालापं पू० // 22 // वकेंद्रगोपादर्शदण्डातिसुन्दरचिबुकदेशशोभिन्यै नमः // 23 // वकेंद्र० अतिसुन्दरचिबुकदेशं पू० // 23 // त्रिगा मस्थितिनियमसीमत्रिरेखाविलसित मृणालकंधरायै नमः // 24 // त्रिग्राम० मृणालकंधरां पू० // 24 // कामेशबद्धमांग. ल्यमणिसूत्रलसछीकंठायै नमः // 25 // का० मणिसूत्रलस छीकंठं पू० // 25 // अनौपम्योन्नतस्कंध युगलायै नमः // 26 // अनौपम्योन्नतस्कंधयुगलं पू० // 26 // अनेकमणिप्रवेकभास मानहेमांगदहेमरत्न केयरमणिमयवलयादि सर्वस्वर्णाभरणा कलितसंश्रितेप्सितफलदानदक्षकामेश्वराश्लेषित भुजलतिकायै नमः // 27 // अनेक कामेश्वरश्लेषितभुजलतिकाचतुष्टयं पू० 27 // अनयमणिकूर्षायै नमः // 28 // अनर्घ्य मणिकर्पचतुष्टयं प० // 28 // नानारत्नांचितसुवर्णशणिसुव. For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 93 ) र्णपाशेक्षुचापकुलमशरपंचक विलसितभक्तवरप्रदसकल करा भरणकमनीय शुभसर्वरेखांकितकमल कोमलकरायै नमः 29 // नानारत्नांचित कमलकोमलकरान पू०२९॥ कलधौ तमण्डितमणिमय हस्तफुल्लसमुल्लसितसहजस्वछातिसुन्दरकर पृष्टायैनमः३० / कलधौत० सहजस्वछातिसुन्दरकर पृष्टचतुष्टयं पू० 30 रुक्मरत्नांगुष्टीयकनकमण्यंगुलीयातिरम्यचम्पककलि काकारसरलाविरलांगुल्यैनमः३१॥रुक्म०चम्पककलिकाकारः सरलविरलांगुलीःपू० // 31 // आरक्तोन्नतेंदुमंडलखंड वामह स्तदशनखायै नमः // 32 // आरक्तोन्नतेंदुमंडलखंडवामहस्त दशनखान् पू• // 32 // भंडासुरसंगराविष्कृतरमारमणावतार दशकसमुन्नतारक्तशीतकलाधरमंडलखंड दक्षकरदशनखायै नमः॥३३॥ भंडा०शीतकलाधरमंडलखंड दक्षकरदशनखान पू० // 33 // महामुक्तामाणिहीरहारविभ्राजमानसमुन्नतवि. शालवक्षःस्थलायै नमः॥३४॥ महामुक्ता समुन्नतविशालवक्षःस्थलं पू० // 34 // सुवर्णसुत्रशोभितमुक्ताजालमंडित सुरंगवसनकंचुकीविलसितसुधासारस्वादुस्तन्यपरिपूर्णकुरुबि. न्दकलाकारहेरम्बहरिहरहिरण्यगर्भक्षेत्रेशकात्तीकेयपरिवाज कश्रीमच्छंकराचार्यपरिपीतकामेश्वरकंजपरिपूजितकामेश्वर महाप्रेममहारत्नमहामणिमहाप्रतिपणस्तनयुगलायै नमः॥ ३५॥सुवर्णसूत्रशोभित कामश्वरमहाप्रेममहारत्नमहामाणमहाप्रतिपणस्तनयुगलं पु० // 35 // चलदलसमानाकारा. तिसुन्दरकामेश्वरविलोचनसिद्धि विलद्वारनिम्ननाभिविराजमानस्वजनमन शुद्धिसंपादकत्रिवलित्रिवेणीविलासमाननीले For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (94) द्रमणिरेखारोमराजिरमणीयमुक्तादिमणिमण्डित समस्तवि श्वाश्रयोदरायै नमः // 36 // चलदलसमानाकार० विश्वा श्रयोदरं पू० // 36 // श्रृंगाररसापूर्णनिम्ननाभिसरोवररुद्र नेत्राग्निसंदह्यमानानंगकलेवरसंगसमुत्तिोपरिदेशदूरगतधूम सूक्ष्मावलीरोमावल्यै नमः // 37 // शंगार० सूक्ष्मरोमावली पू०॥ 37 // कामेशविहाराद्रिकुचकमायेंद्रनीलमणिसरणिसूक्ष्मरोमावल्यै नमः // 38 // कामेश० सूक्ष्मरोमावली पू० // 38 // कामेश्वरमनःक्रीड़ाकमनीयकमलाकरनामिमंडलायै नमः // 39 // कामेश्वर० कमनीयकमला करनाभिमंडलं पू० // 39 // कामेश्वरनयनाक्रीड़नाभिसरोवरपद्मरागरत्नसोपानावलीत्रिवल्यै नमः // 40 // कामे श्वर० नाभिसरोवरपद्मरागरत्नसोपानावालीत्रिवली पू० // 40 // स्वजनमनःशुद्धिसंपादकत्रिवेणिकात्रिवल्यै नमः // 40 // स्वजन त्रिवली पू० // 40 // कणितकिंकिणी राजमानक्षुद्रघंटिकाविराजमान कटिमेखलाविभाजमानमुक्ता फलहारभारविलसिताद्भुतशोभाशालिश्री मत्कुचपर्वतभारा तिखदायमान सौंदर्यातिशयत्रुध्यमान कामेश्वरमुष्ठिग्राह्यमान निजभृत्याशीलब्धत्रिवलित्रिबंधनक्षेमायमान भगवत्कामेशभाग्यविलसितवर्तमानमध्यायै नमः // 11 ॥कणित. कामेशभाग्यविलसितवर्तमानकठितटीं पू० // 11 // वा. ङ्मनोविषयमहिमशाल्यानन्दविद्युदात्याकार दीर्घपार्श्वयुग लायै नमः // 12 // वाङ्मनो० आनन्दकारिविद्युदाकत्या . कारदीर्घपार्श्वयुगलं पू० // 12 // रुतविश्वविजयमहीपा For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 95 ) लमदनाधोमुखस्थापित परार्यवसनाछन्त्रालंकारालगतजग त्रिकदुंदुभिनितम्मबिम्बयुगलायै नमः // 41 // कृतविश्वविजय० जगजैत्रिकदुंदुभिनितम्बबिम्बयुगलं पू० // 42 // गीर्वाणराजगजेंद्रशुंडादंडोरुयुगलायै नमः॥ 43 // गीर्वाणराजगजेंद्रशुंडादंडोरुयुगलं पू० // 43 // माणिक्यमुकुटा कारजानयुग्मायै नमः // 14 // माणिक्यमुकटाकारजान यग्मं पू० // 44 // अनंगवीरतूणीरजंघायुगलाय नमः // 45 // अनंगवीरतूणीरजंघायगलं पू० // 45 // अनौपम्यरमरम्यगढगुल्फायै नमः // 46 // अनौपम्पपरमरम्यगूढगुल्फो पू० // 46 // मणिगणलसत्रणत्कनकपादवलयझणनमंजीरकणितपदपत्रकनदद्रत्नांगुष्टीय छम्छम्कतहंसकातिरमणीय समाश्रितसुरवृक्षछायाभरसंलसितसंसारतापहारक श्रीनिवासश्रीकरमुनिमानसपेटिकारत्नश्रुतिमस्तकावतं सस्वयंभूशंभुश्रीपतिसुरेन्द्रप्रभृत्यशेषलेखकिरीटनिकरनीराजि तसुकतिहृदयाम्बुजावासललितलास्यलीलास्पदसकलतीर्थालयसकलमंगलावसथ स्वजनमानसहंस सकलसौंदर्यस्थान निखिलनिगमगीतगुणगणगरिष्ट वरदवरिष्ट शिष्टसंसेव्यनिखि लतेजोनिलयाखिलवाङमनोतीतमहिमहिमशालिप्रकाशविम सामरस्यनिर्वाण स्वरूपाशरणशरणांबुजचरणयुगलायैनमः // 47 // मणिगणलसत्० अशरणशरणांबुजचरणयुगलं प० // 17 // रत्नेंद्रसारनिर्मितपदपत्रनामकाभरणालंहत कर्मप्टष्टाचपावपृष्टायै नमः // 40 // रत्नेंद्र० कूर्म पृष्टोचपादपृष्टयुगलं पू० // 40 // कलहंसकलारावहंसकनि For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 96 ) नदकामराजवशीकरणमंत्रवशीलतकामेश्वरचित्तचिंतामणिन खदशकविलसितविद्रुमलिकाकाराविरल शरलांगुल्यै नमः // 49 // कलहंसकलाराव० विद्रुमसाखाकारनिरंतरसरला गुलीः पू० // 41 // निजजनमानसमेचकहरणहिमकरखं डचरणनखमंडलायै नमः // 50 // निज० नखमंडलं पू० // 50 // सहजारकालतकांचिताईरेखावजूांकुशध्वजसरोरुहायंकितारक्तादात्मबिम्ब प्राप्तिप्रदकमलदलकोमलचरण युगलायै नमः॥५१॥सहजा० कमलदलकोमलचरणयुगलं पू० // 51 // गजेंद्रराजहंसगतिगमनविलासायै नमः // 51 // गजेंद्रराजहंसगतिगमनविलासं पू० // 51 // नपुरहंसकादिशब्दायमानचरणविन्यासलज्जारुतकलहंसराज हसायै नमः // 51 // लजीकृतकलहंसराजहंसनपुरहंसकादिशब्दायमानचरणगतिविलासं पू० // 55 // चरणा विन्दयोरेव पू० // 51 // कामेश्वरभागधेय कामेश्वरैश्वर्य कामेश्वराहतिकामेश्वरपुरषार्थ कामश्वरतपःपाक कामेश्वर प्राण कामेश्वरप्रेम कामेश्वरकारुण्य कामेश्वरतेजोनिखिलसौंदर्यगुणालयसकलशरीरायै नमः // 52 // कामेश्वर० निखिल सौंदर्यगुणालयसकलसरीरम् पू० // 52 // करुणा शंगारविलसितचंचलमंजुहगंचलायै नमः // 53 // करुणा. चंचलमंजुदृगंचलाननेत्रयोः पू० // 53 // भक्तेष्टवरप्रदान दक्षमंजुलामृतमिष्टवचनायै नमः // 54 // भक्तेष्ट० मंजुलामृतीमष्टवचनानि पू० मुखे पू० // 54 // पूजामन्त्रादौ सर्वत्रत्रप्रणवज्ञातव्यः आवृत्तेः पूजनान्ते वा प्रागेवाथ समाहितः // विन्दुस्थाने परां देवीमथ For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वा हृदिकाल्पताम् // 55 // मूर्ति धात्वाविरचितां सम्यप्राणप्रतिष्ठिताम् // महात्रिपुरसुन्दर्याः पूजयेत्साधकोत्तमः // 56 // अंगप्रत्यंगमम्बाया ध्यायध्यायंप्रपूजयेत् // एभिश्त्तालौकिकीपूजामंत्रैःसाधकसत्तमः // 57 // करोति पूजनं भक्तो नरोविगतकल्मषः // मनसाचिन्तितं काय तत्सर्व सिध्यति ध्रुवम् // 58 // निष्कामोदर्शनार्थवै पाण्मासिक त्रिकालकम् ॥यजेदेकाग्रमनसा स्वेष्टसिद्धिमवाप्नुयात् // 59 // इतिश्रीपराम्बिकांगप्रत्यंगपूजनं संपूर्णम् // अथ मानसीपूजाविधिलिख्यते // सामरस्यस्वरूपायाः करोम्यावाहनं तव // सर्वगे क्षम्यतां मातः स्वागछ मणिमंदिर // 1 // इत्यावाहनम् / / उद्यत्सहअरविधामसमानधामां मंदस्मितेक्षणयुतां कुचभारशोभाम्॥ पाशांकुशैक्षवधनुः स्मरबाणहस्तां ध्यायेसदापराशेवांकगतां परांवाम् // 2 // इतिध्यानम् // यस्यां प्रतिष्टितं जातं विश्व मेतच्चराचरम् // तस्यै तुभ्यं ददे रत्नहेमसिंहासनं मुदा 3 // इत्यासनम् // गंगापाद्यजले तुभ्यं गंधपुष्पाक्षतान्वितम् // पायंसमर्पये मातहतां क्षम्यतां मयि / / 4 पाद्यम् // अनयतां जनायांति यत्कृपालेशलेशतः // अध्यं समर्पयेतस्यै ह्यष्टांग विधिपूर्वकम् // 5 // इत्यय॑म् // स्वतः शुद्धस्वरूपायै परशुद्धिविधायिनि // लवंगादिजलेनाम्बशिवे आचमनं ददे // 6 // इत्याचमनम् // स्वमाधुर्यरसामिष्टकतामृतरसे शिवे For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (98) मधुपर्क प्रयछामि गृहाण त्वं क्षमस्त्रमे 7 // इतिमधुपर्क / ॐ पुनरावनं शुद्धतगयै सम्यगर्पये // स्वनामशुद्ध संप्राप्तिकरे मातहाणते // 8 / / इतिपुनराचमनम् // ॐ मलयाचल सं जातनिर्मिते सुंदरारुति // देवार्चिताभ्यां पादाभ्यां पदूके गृह्यतांशिवे // 9 // इनिपादुकापर्णम् // ॐ यागस्थानातुश भगात् स्नानालयमनुत्तमं प्रवेशयामित्वां मातःस्नानायपरमोत्तमे // 10 // इतिस्नानालयप्रवेशनम् // तत्रासनं प्रयछामि हैमं पीठमनोहरम् // स्थित्वास्मिन्नाम्बके सर्वाधाररूपेरुतार्थय // 11 इत्यासनम् // पादतीर्थे तीर्थजलं सुगन्धाक्षतपुष्पकम् हिरण्यपात्रसंभूतं पाद्यन्तेंध्योःसमर्पये // 12 // इतिवाद्यम्। अय॑मष्टांगसंयुक्तं सछास्त्रविधिनार्पितम् // गृहाण रूपयेशानि रत्नपात्रस्थमज्वलं // 13 // इत्यय॑म् // एलालवंगसंमिश्र सुधाणेनामृतीकृतं // जलमाचम्पतांस्वर्ण पात्रस्थं शुद्ध रूपिणि // 14 // दधिसर्पिमधुन्यंव मिश्रितानिमनोहरे // मधुमत्यर्पितानीशे स्वात्मीकत्यकृतार्थय // 15 // इतिमधु पर्कम् // पुनराचमनीयंते शुद्धेनैवसुवारिणा // ददाम्यम्ब तव प्रीत्यै गृहाणत्वंरूपानिधे // 16 // इतिपुनराचमनम् // सुगन्धितैलामलकैः केशस्तिशोधयाम्यहम् // मलहीनस्वतः श्याम स्निग्धकेशसुगंधिनि // 17 // इतिसुगन्धतैलामलका पणम् // सुगन्धिमिश्रितैर्मात रुष्णतीर्थोदकैः शिवैः // सुखस्य स्तवस्नानं कारयेजगदम्बिके // 18 // इत्युष्णोदक स्नानम् // सुरभिस्नेहसंयुक्तः सुगन्धिजलमिश्रितैः // वस्त्रसं चालितै रनपिष्टैःरुद्वर्तनं कुरु // 19 // इत्युद्वर्तनम् // पुष्य For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 99 ) सारसमाकष्टैः चांपेयपाटलादिभिः // श्रीमत्केशादिसर्वागं सुस्नेहैःसंप्रलेपये // 20 // इत्यभ्यंगम् // ॐ सुगंधिमिश्रितैमात० // 21 // इत्युष्णो० // ॐ ततस्त्वांवारुणस्नानं कारये जगदम्बिके / जलैःकनककुम्भस्थैः सर्वतः शुद्धिदायिनि 22 // इतिवारुणस्नानम् // ॐ पयोदधिघृतैर्मातः गव्यैर्मधुभिरीश्वरि / / शर्कराभिःस्वर्णकुंभस्थितैस्त्वांस्नापयेशनैः // 23 // इतिपंचामृतस्नानम् // ॐपुनःपंचामृतैरेकीकृतैःसुद्धजलैस्ततः गंधजलैःशुद्धजलैः पुनस्त्वांस्नापयेंबिके // 24 // इतिपंचामतगंधजल शुद्धजलस्नानम् // ॐ नानाविधैः फलरसैमिष्टे मिष्टाम्लमिश्रकैः // स्नापयामि ततःशुद्धरूपे शुद्धजलैरहम् 25 इतिफलरसशुद्ध जलस्नानम् // रुक्मजलैःस्वर्णजलै रत्नान्वित जलैःशिवे // पुष्पजलैःशुद्धजलैः तवस्नानंसुकारये // 26 // इति रुक्मस्वर्णरत्नजलपुष्पजलशुद्ध जलस्नानम् // ॐसमस्त तीर्थचरणे मायामलीवनाशिनि॥सर्वतीर्थोदकैःस्नानम् कारयामिकपार्णवे // 27 // इतिसर्वतीर्थोदकस्नानम्॥ ॐसहस्रधारयास्तानम् सुवर्णकलऔरलम् // सहस्रैर्जलसंपूणे स्तव स्नानंप्रकल्पये // 28 // इतिसहस्रजलधारासहस्त्रजलकलश स्नानम् // ॐअंतर्बहिश्शुद्धरूपे सदाशुद्धत्वदायिनि // गंगोदकेनाचमनं तुभ्यंदत्तंप्रगृह्यताम् // 21 // इत्याचमनम् // ॐ सर्वांगपोंछनंकुर्वे तवदेविदयानिधे // ससूक्ष्मेणसुवस्त्रेण केशानांपोंछनंतथा // 30 // इत्यङ्गप्रोंछनार्थवस्त्रम् // ॐययै वाछादितंसर्वं ब्रह्मांडमखिलेश्वरि // तस्यै वस्त्राण्यमोल्यानि सुरंगाणिसमर्पये // 31 // इतिपरिधानोतरीयकंचुक्यादि. For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (100) वस्त्रार्पणम् // ॐ आचमनंगद्धजलैः कारयाम्यंबशीतलैः / / स्मरणाच्छद्धिदेशीघ्रं कुरुतैथैःरुपानिधे 32 // इत्य चमनम्॥ ॐ सर्वमंगलरूपायै मणिसूत्रसुमंगलम् ॥श्रीमत्कंठेय॑याम्यम्ब स्वभावरमणीयके // 33 // इतिमंगलसूत्रसमर्पणम् // ॐ पादुकेरत्नघटिते // स्वर्णचातुर्यशोभिते ॥अंगीसत्यपदाब्जा भ्यां कृतार्थंकुरुमांशिवे // 34 // इतिपादुकार्पणम् // ॐस्थि साभवस्वर्णपीठे जगदाधाररूपिणि // केशप्रसाधनाशि सुगंधिद्रव्यमर्पये // 35 // इत्यासनंश्रीमत्केशेषुसुगंधिद्रव्यसमर्पणम् // ॐ धूपयेऽहंततः केशान् शिवमलयजेनते // शोध यित्वास्वलंरुत्यकंकत्यास्वर्णजातया 36 / इतिकेशानांधूपनम् मार्जनं अलंकर्णच // ॐ अस्मिनवसरेमातर्पणतयाम्यहम् मुखचन्द्रस्यसौंदर्य मालोक्यालादमावह // 37 // इति दर्पणार्पणम् // ततोहस्वर्णसूत्रैश्च कल्पद्रुकुसुमोच्चयः // केशा न्ग्रथनामिकामाक्षि प्रीतोभत्याखिलेश्वरि // 38 // इतिकेशग्रंथनम् // पादुकेरत्नखचिते सुवर्ण चितेशुभे // पादयोघे हिमातस्त्वं मच्छिरोलंकतेशिवे 39 // इतिपादुकासमर्पणम् अलङ्कारगृहेरम्ये स्वरूपालरुतेशिवे // त्रैलोक्यमंडपेमातर्मासमेह्याशुमोदय // 40 // इतिभूषामंडपप्रवेशनम्॥सिंहासनं पाद्यमध्ये तथाचमनकंशिवे // मधुपर्कप्रयछामि पुनराचमनं परे // 41 // इत्यासनपाद्यााचमनमधुपर्कपुनराचमनसमपणम् // यदलंकारणात्सर्वं जायतेऽ लंरुतंजगत् // सर्वाप्रलं कृतीस्तस्यै तुभ्यं देविसमर्पये // 42 // इतिसर्वालङ्कारसमर्पणम् // कजलादीनिसौभाग्य द्रव्याणिसकलानिते // योग्या For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (101) नितेस्वसौंदर्यस्वरूपेऽहंसमर्पये // 13 // इतिकजलादिसर्वसौ भाग्यद्रव्यंसमर्पयामि // यागगेहेसमागच्छ च नेकमणिमंडि ते // चित्रचातुर्यशोभाये मातर्दीपावलीयुते // 44 // इति याममंडपप्रवेशनप्रार्थना // पादुकेरत्नखचिते सुवर्णरचितेशुभे पदयोर्धेहिमातस्त्वं मछिरोलंकृतेशिवे // 15 // इतिपादुका समर्पणम् // शिवकामेश्वरांकोपवेशनं कल्पयामिते // पाद्य. माचमनंमिष्टपर्कचाचमनंददे 46 // इतिकामेश्वरांकोपवेशन पाद्याचमनमधुपर्कपुनराचमनसमर्पणम् // स्वर्णपाशांकुशावि क्षु चापवाणान्कौघृते // कामेशांकस्थितेपूजा मंगीकुरुकृपां कुरु // 17 // इतिध्यानपूजाप्रार्थना // स्वभावेनसुगंधायै सुगन्धन्तेशिवपियोचतुर्विधंतवप्रीत्यै गृहाणाम्बक्षमस्वमे 18 इतिचतुर्विधगंध समर्पणम् // स्वभावसुन्दरम् कृत्यै चाक्षतान्य म्बतेऽर्पये // अलंकारार्थमीशायै कृपयागृह्यतांत्वया // 19 // इत्यक्षत समर्पणम् // सूक्ष्ममुक्ताफलान्यंब / ह्यविद्धानिमनो हरे / मयानिवेदितानीशे ललाटेतेप्रगृह्यताम् 49 अविद्धसूक्ष्म मुक्ताफलाक्षतसमपर्णम् स्वाभाविकांगसुरभेनानापुष्पसमुद्रवाम्मालास्तबकसंयुक्तास्तुभ्यंमातःसमर्पये 50 ॥इतिनानापुपस्तबक मालासमर्पणम् // स्वघाणतर्पणेनैव तर्पितायैसमप्रये // धूपनानासुगंधते शिवार्थमेसुगृह्यताम् // 51 // सूर्या ग्निचन्द्रचपला यत्प्रकाशप्रकाशिताः // भासयंत्यखिलान दीपमालास्तस्यैसमर्पये // 52 // इतिदीपमालासमर्पणम् // आचम्यतांशुद्धरूपेमृतोपस्तरणायते // गंगोदकेनार्पितेन कृप याकरुणार्णवे // 53 // इतिमृतोपस्तर्णम् // परामृतंसीधुरसं For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (102 ) मंत्रपतकलार्चितम् // स्वरूपानन्ददंपणे तेर्पयेसुखरूपिणि 54 इतिपरामृतसीधुरस समर्पणम् // जलभूमिवियच्चारि भक्ष्यमांसंसुसंस्कृतम् // स्वानन्देनसदातुष्टे तुभ्यमम्बसमर्पये // 55 // इतिसंस्कृतभक्ष्यपललसमर्पणम् // यदन्नपूर्णयाविभ्व मन्नदानेनपुष्पते // तस्यै चतुर्विधंचानं षड्रसोपेतमर्पये // 56 // इतिनैवेद्यसमर्पणम् // स्वानन्दस्वांतशीतायै तुष्टि पुष्टि करेपये // शैशिरंगांगमुकदं पानार्थेतेसुगन्धितम् // 57 // इतिमध्येपानीय समर्पणम् // अनेकजन्मसत्कर्म फलरूपपदा म्बुजे // नानाफलानिपक्कानि सुमिष्टानिसमर्पये॥५८ // इति फलसमर्पणम्।शिवेसुधापिधानंच गांगवारिमयार्पितम् // तेना म्बाचम्यतांभतया विश्वशुद्धिविधायिनि / / 59 // इत्युत्तरापोसनम् // सुसूक्ष्मेणान्नचूर्णेन करोद्वर्तनकंतथा // कारयामिशिवे चन्द्रचूर्ण संमिश्रितेनच // 60 // इतिकरोद्वर्तनम् // करप्रक्षा लनसाधु कारयामितथामुखम् // प्रक्षालनंदंतशुद्धिं कर्पूरशकलै जलैः / / 61 // इतिकरमुखप्रक्षालनम् // मुखचन्द्रविमृष्टार्थ करमृष्टार्थमेवच // सूक्ष्मवस्त्रंतवार्थेहि शिवेसुष्टुसमर्पये // 6 // इतिकरमुखमष्टार्थसूक्ष्मवस्त्रसमर्पणम् // पाद्यमाचमनीयंते सौगंधेिकजलेनच // करौसुरभिसंयुक्तौ कारयामिसुगंधिनि / / 63 // इतिपाद्याचमन करसुरभिसमर्पणम् // विद्रुमाधरसं. शोमि स्वभावसुरभीकृते // कर्पूरवीटिकांश्रीमन्मुखेतेमातरम् ये // 64 // इतिकर्पूरवीटिकासमर्पणम् // कटाक्षकिंकरी भूत लक्ष्म्यै कनकदक्षिणाम् // ददाम्यहमित्यज्ञानम् तत्क्षम. स्वशिवम्बिके // 65 // इतिकनकदक्षिणासमर्पणम् // त्वद For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 103 ) भिन्नानिवस्तुनि त्वजातानितवैवते // मयानिवेदितान्यम्ब त्वद्योग्यानिसुगृह्यताम् // 66 // इतिसर्वपूजायोग्यसर्ववस्तु समर्पणम् // नीराजयामिदीपस्त्वां यद्दीप्त्यादीपितंजगत् // तांसर्वसाक्षिणीं दृश्यां सुनिरीक्ष्ये रूपान्विताम् // 67 // इति नीराजनम् // मंदारपारिजातादि पुष्पवृष्टिं पदाब्जयोः // कारुण्यामृतवर्षिण्या स्तवकुर्वेसुरार्चिते // 68 // इतिपुष्पकृष्टिसमर्पणम् // मंदारपारिजातादि भूरुहारामवाशिनी // कुर्वेपादाब्जयोः पुष्पवृष्टिंसच्चंपकादिभिः // 69 // इतिपुष्पवृष्टि लमर्पणम् // नानारत्नैःस्वर्णरूप्य पुष्पैः पुष्पाञ्जलिंशिवे // तवपादाब्जयोः कुर्वे भूतिदे भूतिरूपिणि इति नानारत्नवण. रूप्य पुष्पाञ्जलिसमर्पणम् // 69 // ॐ राजोपचारानखिलान् छत्रचामरपूर्वक न् // नृत्यगीतादिकान्सर्वं सामाइयैतसमर्पये ॥७॥इति राजोपचारसमर्पणम्॥ ॐ देशकालानवछिन्नेतव. कुवेंप्रदाक्षिण म् // परितोभक्तरूपया धारिताद्भुतविग्रहे // 71 // इतिप्रदक्षिणा // ॐ विरंचिविष्णुरुद्रादि वंदितांघिसरोरुहे // पादारविंदयोस्तेस्तु नतिर्मेष्टांगकैः कृता // 72 // इतिसाष्टांगप्रणतिः // कल्पलताकामदुघा चिंतामणि चरणपङ्कजेया चे // त्वामहमम्बरूपाधि दहित्वञ्चरणकंजयोक्तिम् 72 // इतिप्रार्थना // अदयरूपानंते निरवधिकैश्वर्यरूपसौंदय // अज्ञानिनमामिशे कृतापराधक्षमस्वाम्ब // 74 // इतिक्षमा पनम् // यस्याश्चरणसरोजे नार्पितमीशेहिकर्मबंधाय // भव तिनृणांतस्यास्ते समर्पितंकर्मसर्वतत् // 75 // इतिसर्वकर्म समर्पणम् // यन्न्यूनंवाह्यधिकं कृतमन्यत्रमानसेनाम्ब // For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 104 ) तत्सर्वैत्रिपूरेतिच नानापूर्णीकरोमीशे // 76 // इतित्यपूर्णीकरणम् // अन्तयामिणिहृदयात्पूजार्थंचागतारूपया // हृदये स्वीयेधाम्रिहि गत्वामेस्थीयतांतत्र 77 // इतिविसर्जनम् // श्रीदुर्गाम्बायै नमः॥ सत्यलोकशीर्षायै नमः सत्यलोकशीर्ष पूजयामी नमः॥तपोलोकललाटायै नमः॥ तपोलोकललाटं पं० // जनोलोकमुखायैनमः जनोलोकमुखंपूजयामिनमः // महर्लोककंठायै नमः महर्लोककंठं पू०॥ स्वर्लोकवक्षःस्थला यै नमः स्वलोकवक्षःस्थलं पू० // भुवर्लोकहृदयायै नमः / / भुवर्लोकहृदयं पू० // भूलॊकोदरायै नमः भूलोकोदरं पू० // अतललोककटितटायैनमः अतलोककटितट पृ०॥ वितललो कशक्थिन्यै नमः॥ वितललोकशक्थिनी पू० // सुतललोक जानुयुग्मायै नमः सुतललोकजानुयुग्मं पू० // तलातललोक जंघायुगलायै नमः // ॐ तलातललोकजंघायुगलं पू० // ॐ महातललोकगुल्फायै नमः // ॐ महातललोकगुल्फो पू० // ॐ रसातललोक पादपृष्टयुगलायै नमः // ॐ रसातल लोकपादपृष्टयुगलं पू०॥ॐ पाताललोकपादतलद्वयायै नमः। पाताललोकपादतलवयं पू० // ॐ चतुर्दशभुवनसकलारी रायै नमः // ॐ चतुर्दशभुवनसकलशरीरं पू० // ॐ सत्यलोकशीर्षादि पाताललोकपर्यंत विराव्यष्टि समष्टिरूपायै महात्रिपुरसुंदर्यै नमः // ॐसत्यलोकशीर्षादि पाताललोक चर्णपर्यंत विराव्यष्टि समष्टिरूपिणी श्रीमहात्रिपुरसुंदरी पू०॥ इतिबृह्म विश्वज्ञानरूपिणी पूजासमाप्त। // For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 105 ) अथ श्रीमत्सप्तशत्यनुसारेणावताराणि कृपापूर्णापांग्याः परदेवतायाः लिख्यते // पुराकदाचित्कल्पान्ते जगत्युदधितांगते // भास्तीर्यशेष पर्यंकं योगनिद्रामजीभजत // 1 // तन्नाभिपह्मतोजातं ब्रह्माणंदैत्यपुङ्गवौ // हरेःकर्णमलोत्पन्नौ जक्षितुंतौसमागतो // 2 // मधुकैटभनामानौ विधिर्भातस्तदाहरेः // शरणंसंस्तु वत्राले स्थितोगछत्पितामहः // 3 // नावबुद्वयत्तदाविष्णुर्यो. गनिद्रावसंगतः // स्तुतोपिबहुधाब्रह्मा नाप्तःकिंचित्फलंतदा // 4 // विष्णुप्रबोधनेहेतुभूतांज्ञात्वश्वरेश्वरीम् // योगनिद्रां महाकाली स्तोतुंतामुपचक्रमे // 5 // आत्मनोरक्षणार्थाय दैत्ययो शनायच // हरेर्जागरणार्थाय संस्तुताह्मणास्वयं // 6 // आविर्बभूवसादेवी ब्रह्मणोहरपथिस्थिता // उत्तस्थौच तदाविष्णु ोगनिद्राविमोचितः // 7 // मधुकैटभाभ्यांहरिः सुचिरंकृतवान्णम्॥नममातेतदादैत्यो ब्रह्मणाविष्णुनास्तुता ॥॥प्रसन्नासामहामाया स्वीययामाययासुरौ // मोहितो तौरुतौसद्य श्छद्मनाविष्णुनाहतौ // 9 // बन्धनमोचनेचैव समर्थैषासनातनी / सर्जनेपालनेशक्ता तथासंहरणेपिच 10 एषःस्थलश्चैतदर्थे मानीभूतोविचार्यताम् // सर्वेषांदेवतानांच वरमस्याउपासनम् // 11 // एवंदैत्यविनाशाय ब्रह्मसंरक्षणा. यच // नानाप्रयोजनार्थाय जगतांस्थानक्लृप्तये // 12 // श्वातीतरदेवैषा मुक्तिदामुक्तिदातथा // ऋग्वेदमूर्तिःश्रीका For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 106 ) ली वान्छितार्थप्रदायिनी // 13 // मधुकैटभनाशिन्या स्तमो वत्याजगत्सुवः // त्रिगुणायानिर्गुणाया अस्याभक्तिःसदास्तुमे // 14 // इतिश्री महाकाल्यत्रतारंचरित्रंच // --0000000-- ततोनंतरमेवासीद्रंभपुत्रोमहाबलः // महिषासुरेंद्रोरुद्रांशो वरहप्तोऽसुराधिपः // 1 // विष्णुरुद्रमहेंद्रादीन् देवान्संजित्य संगरे // सश्चिाभजत्सर्व देवानामधिकारताम् // 2 // दुःखा दुःखतरंप्राप्ताः विचरंतोमहीतले // माइवचते देवाः शरणं परमेश्वरीम् // 3 // जग्मुश्चमनसावाचा कर्मणादितिनंदनाः स्तुतिंचकुर्महेशान्या विष्णुमुख्याश्चदेवताः // 4 // निर्जरे भ्यश्वसर्वेभ्यो निःसृत्यैक्यंगतंमहः // महत्संप्रज्वलन्मेरु रिवा वस्थितमद्भुतम् // 5 // तदेवचाभवनारी रूपंचसुमनोहरम् // दृष्टवंतःसुराःसर्वे परंहर्षमवाप्नुवन् // 6 // उपायनानिश्री देव्यै ददुःसर्वेसुरामुदा // स्तुतियथामतिश्चकु जयजयेतिविभा षिणः // 7 // महिषासुरादिदैत्यानां बधायस्याधिकारताम् // प्राप्तुंयज्ञस्यभागांश्च यस्यादेव्याःप्रसादतः // 8 // ततोभग वतीदेवी देवानांहर्षवर्द्धनम् // अट्टाहासमुच्चैस्तुभद्रकालीचकः रह // 6 // श्रुत्वाहासंश्रीदेव्या महिषःक्रोधमूर्छितः // वृतो बलेन महता देवींप्रतिसमागतः // 10 ॥कोटिशःकोटिशो दैत्या युयुधुर्युगपद्रणे // सहस्रभुजधारिण्या महाबलपराक्रमाः // 11 // निजशस्त्रास्त्रसंपातैः सर्वदैत्यारणेहताः // महादे पाश्चण्डिकया लीलयामहिषोहतः // 12 // रणेहताश्चते For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 107 ) वापुः स्वर्ग देवारयोपिच // श्रीदेव्यामहिषःप्राप्तो हतःसायु ज्यमीशया // 13 // देवींदिव्यैस्तवैस्तुत्वा पूजयित्वायथा विधिः // वरांश्चपुनरेवापि प्रापुःसर्वाश्चदेवताः // 14 // स्व स्वाधिकार संप्राप्ता यज्ञभागानप्रपेदिरे // परांनिवृतिमापन्ना जग्मुःस्वस्वालयंसुराः // 15 // यजुर्वेदपरामूर्ति महालक्ष्मी शिवाम्बिका // धर्मसंस्थापनार्थाय चाविरासीद्युगेयुगे // 16 // विचित्रचित्ररूपायाः विचित्रचरितामृतम् // श्रवणेपठ नमाभुत् तृप्तिमत्वत्प्रसादतः // 17 // इतिश्रीमहालक्ष्म्यवतारंचरित्रंच // -000400--- ॐ निशुंभशंभनाशाय सर्वदेवस्तुसंस्तता॥ पार्वतीदेहसंभू. ता सामवेदस्वरूपिणी // 1 // महासरस्वतीरूपा जाताहि मवतस्तटे // कौशिकीनामसादेवी विख्याताचंडिकेतिच // 2 // कात्यायनीभद्रकाली धूमाक्षस्यविमर्दिनी // भद्राभगवती दुर्गा शुभहन्त्रीशिवाम्बिका // 3 // अतीवसुंदररूपं त्रैलोक्यत्राणकारणम् // द मनोहरंमाता जगतांगंविधायिनी // 4 // हताःशुंभनिशुभाद्याः सगरेसर्वदानवाः // अनयैवजगडाच्या क्रीडत्यास्वेछयारणे // 5 // एकानानाकतिर्देवी सर्वगारणंगा शिवा रणेहतानांदत्यानां दिव्यंपदमदात्परा // 6 // देवाह विर्भुजोजाता यत्प्रसादात्सुरेश्वर त्रैलोक्याधिपतिस्त्वंहि प्राप्तः सर्वेऽमराअपि // 7 // स्वस्वाधिकारतांप्राप्ता लेभिरेपरमां मुदम् // यथामत्यनुसारेण स्तुत्वातांपरदेवताम्॥८॥ तयाद तान्वरान्प्राप्य ययुःस्वस्वालयंसुराः // देव्याश्चित्रचरित्राणि For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (108) व्याहरंतःपरस्परं // 9 // गायतोविहरंतश्च सुखमापुरनुत्तमम् // तस्यास्तुहंसगतिकौ स्यातांमेमानसपदौ // 10 // इति श्री महासरस्वत्यवतारचरित्रम् // मषीवर्णसमप्रख्याकौशिकीकोपसंयुता // तल्ललाटाद्विनि स्क्रान्ता कालीकल्मषनाशिनी // 1 // युद्धेशुंभनिशुंभस्य दा सयोश्चण्डमुण्उयोः // हत्वातौदानवौघोरौ चंडमुंडौमहापशू // 2 // युद्धयज्ञेचंडिकार्थे आगतातत्समीपतः // उत्क्कासमु चितंवाक्यं देवीतष्टिविधायसा // 3 // चामुंडेत्यपरंनाम प्रा पदेवीप्रसादतः // युद्धेशंभनिशुंभस्य रक्तबीजस्यचैवहि // 4 // कौशिक्या:पूर्णरूपायाः एषाजातासहायिका // शोणितरक्तबी जस्य पपौविस्तीर्णवक्रिका // 5 // मुखेसमुद्गतांश्चारीन सर्वाश्चाभक्षयत्तदा // एवंदैत्यःक्षीणरतो रणेचंडिकयाहत: रणेशुंभनिशुंभस्य कौशिक्यादेवविस्मये // भक्षितावहवोदैत्या अनयानाशितारणे // 7 // कर्पूरबीजाधिष्ठात्री चामुंडाकालि. काम्बिका // हृदयेशिवशबासीना स्थिताभवतुमेसदा // 8 // इतिश्यामावतारंचरित्रंच॥रक्तबीजस्यदासस्ययुद्धेशुंभनिशुंभ योः // शक्तिर्विरिंचेरुद्रस्य स्कंदस्यचहरेस्तथा // 1 // वराहस्यनृसिंहस्य देवेंद्रस्यवपुःस्थिता // स्वस्वाधिकारकरणे बलरूपावरप्रदा // 2 // शरीरातुविनिष्क्रम्य चागताश्चंडिकाम्प्रति // ब्राह्मीमाहेश्वरीचैव कौमारीवैष्णवीतथा ॥३॥वाराहीनारसिंहीचमाहेंद्रीचरणाजिरे // रक्तबीजस्यदेव्यश्चदुष्टदैत्यबधायच // ४॥श्रीदैव्याश्चेछयासर्वाः समाजग्मुश्चमा For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 106 ) तरःयस्यदेवस्ययाशक्तिःसावैतद्रूपधारिणी॥५तछस्त्रधारिणीतद्वद्भूषाढ्यातत्पराक्रमा // तच्छीलातद्व्यवहृति स्तद्वद्वाहनवाहिका // 6 // देव्योजयप्रदाःसर्वा युद्धेतीवविशारदाः चंडिकासहिताएताः सुखदावरदाःसदा // 7 // शक्तिदाःशक्तयोमेवै भूयासुरभयप्रदाः // एतादेव्याविभूतीस्ता स्तांचा स्यानौमिभूतयः // इत्यष्टमात्रवतारंचरित्रंच // अस्यादेव्याएताविभूतयः / स्ताविभूतीश्चयुनस्तांनौमिभूतयः शक्तयइ. त्यस्यविशेषणमहमितिशेषः // देवीदेहात्समुत्पन्ना शिवाशत विराविणी त्वरादेत्यविनाशाय ख्यापयंतीस्वगौरवम् // 1 // व्याहरंतीशिवंदूत वंगच्छभगवन्निति // निशुंभशुभनेदीयेब्रूहि वाक्यमयोदितम् ॥२॥शृण्वतांसर्वदैत्यानां तत्रस्थानांममाज्ञ या // त्रैलोक्यांप्राप्नुयादिन्द्रः संतुदेवाहविर्भुजः // 3 // प्रया तयूयंपातालं जीवनेच्छास्तिचेद्यदि // यदायुद्धंसमिछंतो भवंतो बलविणः // 4 // समागछततृप्यतु भवन्मांसेनमच्छिवाः // ययाशिवःकृतोदूतःशिवदूतीतिविश्रुता // 5 // युद्धेशुंभनिशुं भस्यश्रीकौशिक्यामहासुराः॥ निहताश्चानयादेव्या भक्षिता बहवोरणे // 6 // तस्याश्चरणयोर्दास्यं भूयाजन्मनिज न्मनि // 1 // इति शिवदूत्यवतारं चरित्रंच // पुनारहस्योक्तानिचरित्राणि लिख्यते // शुंभनिशुंभबधानंतरम् / देवैःस्तुता श्रीमद्भगवती प्रसन्नाजातातदा कल्या णाय देवैःप्रार्थिताप्रार्थनानुरूप वरानवतरणे हेतुकान्समदात् अतश्च वैवश्वतमन्वंतरेऽष्टाविंशतिमे कलिद्वापुरसंधौनंदगोपस्यकन्या यशोदागर्भसम्भवा नन्दाख्यावतीर्णा // पुनर्जा For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तान् शुंभनिशुंभाद्यान्दानवान् नाशयित्वा विध्याद्रिनिवासि नीचासीत् / पुनरप्यतिरौद्रेणरूपेण भुव्ववतीर्णाविप्रचित्त वंशीयानसुरान्ननाश / कांश्चिदभक्षयच्च / ततोदैत्यरक्तसंलग्न दशनात्स्वेछया श्रीदेव्याः स्वकीयहीररदनावली पद्मरागाली वसमजायत / ततोदेवैःस्वर्गे। भुविचमनुजै रक्तदंतिकेतिना म्ना सास्तुताविख्यातासीत् / इयमपिद्वापुरतीतेऽत्रैव चतुर्थ युगेऽवतीर्णा / रक्तादंताभविष्यति दाडिमीकुसुमोपमेति सप्त सत्यांस्वयमुक्तम् / ततोरक्तदंताइत्युपलक्षणम्। सर्वांगेषु वस्त्रभू षणायुध गंधपुष्पादिषुरक्तत्वमस्याः / अतएवरक्तचामुंडात्वेन व्यवहीयते सर्वभयापहारकोऽ यमवतारोभक्तानां सप्तसत्या मेकादशाध्याये / वरदानार्थकेषु श्लोकेषु / अहमिति सर्वत्र श्रीमद्देव्युक्तिः परस्परमवताराणामभेदख्यापनार्थमिति बोध्यं भूयइयमेव शतशारद्यामनावृष्टौ अयोनिजा एतत्मन्वंतर एव / चत्वारिंशत्तमेयुगे / शताक्षीशाकंभर्यवतीर्णावतरि ष्यति / च तस्मिन्नेवांतरेशक / चत्वारिंशत्तमेयुग इत्यादि श्रीमुखेनैव / लक्ष्मीतंत्रोक्तेचाक्तत्वात्मुनीन्शतनेत्रनीरीक्षणेन सुखयंतीनैजाच्छरीराद्दशविधानिशाकानि पत्रमूलकरीराममूल कांडाधिरूढत्वक् पुष्पकवचानि।विरचितवती आवृष्टि जग. त्पुपोषपोषयिष्यतिच एतदुपासका अन्नामृतपानाद्यक्षय सिद्धिप्राप्नुवन्ति / अक्षय्यमस्नुते / शीघ्रमन्नपानामृतादिक मितिरहस्योक्तेः / तत्रैवचवधिष्यामि दुर्गमाख्यंमहासुर मि. तिसप्तशत्यांतत्रैवेत्युक्तत्वात् / शाकंभर्यवतारएव दुर्गमदेत्यै गतासुंचकार तेन दुर्गेतिप्रकीर्तितेति रहस्योक्तेः / जितेन्द्र For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 111 ) दुर्गमाख्यंमहासुरमवधीत् / ततोदुर्गादेवीति विख्यातासीत् / मुनीनांत्राणायभीमरूपं विधृत्वारक्षांस्यवधीत् // ततोभीमेति वैवस्वतमन्वंतरेपंचाशत्तमे चतुर्थयुगेऽवतीर्णाअवतरीष्यतिच लक्ष्मीतंत्रमेवात्रापिप्रमःणं वैवस्वतमन्वंतरे / एवषष्टितमे चतुर्थयुगे अरुणाख्योमहादैत्योजगत्त्रयंबबाध / तद्भामर्यवतीर्य / तन्ननाशभ्रमरंहस्ते धृतवतीत्यतो भ्रामरीति नाना विख्याताभूत् चित्रभ्रमरपाणिः / सामहामारीति गीयते इति रहस्यप्रामाण्यात् सप्तसती चरित्रसमाप्तम् // सृष्ट्यादौ ब्रह्मणाप्रार्थितो यथाहरस्तल्ललाटोत्पन्नत्वे. नपुत्रो जातस्तथा श्रीमत्पराशक्ति पररूपाप्रकृति रपि ब्रह्मप्रार्थिता सती सत्यपि दक्षकन्यासीत् पतिव्रतध मप्रवर्तनायस्त्रीणां / तदेषा जगदानंददायिनी / कामसं जीवनाय तारकासुरवधाद्यनेकामरकार्यसंपादनाय कार्तिकादि जननार्थं हिमवतः पन्यां मेनायांसंजज्ञे / वसुंधरापिदेवीच्छयाप्रलये तिरोभूता सृष्ट्यादौ / चराचरस्यब्रह्मादि स्तम्बपर्यंतस्य जगतोधारणा याविर्बभूवेति / अन्यान्यापिच / श्री मद्भागतोक्तान्यवताराणि राधालक्ष्मी सरस्वती सावित्रीगंगा मनसास्वधास्वाहा मंगलचंडीषष्टीदक्षिणाप्रभादीनां / बहूनिसंतितानि / ततएवावगंत्त व्यानि // For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 112 ) ॐ श्रीजगदम्बाये नमः॥ श्रीमत्परासक्तिर्विजयतेतराम् // -- - .. श्रीआनन्दानन्दनाथ श्रीआनन्दाम्बा श्रीपादुकाभ्योनमः श्रीविमर्शानन्दनाथ श्रीविमर्शाम्बा श्रीपादुकाभ्योनमः // श्रीसत्यानन्दनाथ श्रीसत्याम्बा श्रीपादुकाभ्योनमः // श्री मदस्मपितृगुरु श्रीजलंधरनाथजीपादुकाभ्योनमः // श्रीसकलमनोरथातिशयचरणकमलदरशनमनोरथ प्रपूरिणीविजते तराम् // . .. श्रीमत्पराशक्ति ललितालावण्यलीला लिख्यते इहखलुश्रीमत्परब्रह्माविना भूतचिच्छक्तिपराशक्तिनाम रूपचरित्राणि महिम्नश्च चतुर्मुख पञ्चमुखसहसमुखा यैः कोटिवर्षशतैरपिवक्तुं लिखितुंचाशक्यानि तदुक्तं मार्क ण्डेयपुराणे ब्रह्मवाक्यं विष्णुः शरीरग्रहणमित्यादि सर्वदेव वाक्यम्। यस्याःप्रभावमतुलमित्यादि हेतुः समस्तजगतामि. त्यादिवेदा अपिनेतिनेति त्रुवंतिवर्णयंतोमुह्यति अन्यत्रापि वेद तंत्रपुराणेषु श्रीमद्भगवत्या महिमादिवर्णने सर्वथा सर्वेषाम् समर्थत्वंयुक्तं तत्कथमेकमुखोऽल्पज्ञोजनः स्वल्पायुर्वक्तुं लिखितुंच समर्थोभवेत् तथापि कैश्चिन्महात्मभिर्मदनुग्रह कारिण्यांतर्यामिण्याप्रेरितैः पृष्ठोहं मंदोपितयेवप्रेरितः संवि दा यावत्प्रेरणाम् यथामतिरुल्लिखामितत्रतावत्प्रथमंकेषांचिन्मते क्रीडार्थमवतारधारणं केचिन्महांतोभक्ता नुग्रहार्थ For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 113 ) मवतारधारणमामनंति केचिद्धर्मपरिपंथिनां दुष्टदैत्यानां ना शायधर्म संस्थापनायचावतारधारणमंगीकुवति तदेतत्रयंशा. स्वसंमतंसमीचीनम् ।श्रीमद्गुरुगणपतीष्टदेवता विजयतेतराम्॥ श्रीमत्पराशक्तिललितालावण्य लीलालिख्यते // अथ कदाचित् समये श्रीमद्योगनिद्रा प्राप्तजीवितव्येश्वय॑स्य ब्रह्मणोवरदानेन भंडासुरनामा दैत्यप्रवरः कश्चिदजा यतः सचत्रिभुवनं शशासवेदमार्गविरोधीत्रिदशान् बहुशः पीडयामास ततोदेवाः श्रीमद्भगवती प्रीतिद्वाराभंडवधस्वेष्ट प्राप्तये श्रीमत्परासक्तिं / समाराधयांचक्रुः केचिजपाशक्ता बभूवुः केचित्स्तुतिपरा अभूवन् केचित् अर्चनेरताः समजायंत / केचिन्नामपारायणेनाराधयामासुः केचित्स्वशरीरा ण्युत्कृत्योत्कृत्ययागानलेजुहवांचक्रुः ततः श्रीमत्परदेवताकृ. पाब्धिः हैयंगवीनहृदया यागानलादनादिनिधना प्रादुरा सीत् साभागधेयंभगवतो भर्गस्थनामधेयंवस्तुजातस्यसामN विश्वसर्जनपालन संहरणाख्यं परमेश्वरस्यमहःपरब्रह्मणः सच्चिदानन्दस्य सारसीमासर्वसौंदर्य्यस्य सिद्धांतं सर्वशास्त्रा णा मालयंसर्वगुणानां कदनं सर्वदैत्यानां साफल्यंदेवमनोरथानां कारणं ब्रह्मादीनांमूर्तिः शृङ्गाररसस्यप्रभा सूर्यस्य ज्योत्स्नाचन्द्रस्य स्वादुतासलिलस्य बलं समीरणस्यदाहिका विभावसोः धारणाधरिण्यश्चेतना पुरुषस्यविजयं देवतानां पराभवोदानवानां सिन्धुर्दयाया:पवित्रं पवित्राणां मंगलंमंगला For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 114 ) नांविष्णुवैष्णवानां शिवः पाशुपतानां गणेशोगाणपत्यानारविः सौराणां / परदेवता शाक्तानां सामरस्यंशिवशक्तेः जीवातुभक्तानां कर्ममैमासिकानां प्रकृतिः सांख्यानां कर्त्तानैयायिका नामीश्वरोयोगिनां ब्रह्मवेदांतिनां इत्थंभूतांजगन्मोहनमोहि नीं मूर्तिसुमनःपञ्चबाणान् ऐक्षवंधनुश्चदक्षवामाभ्यां अध स्तनाभ्यां जातरूपशृणिं पाशंच उपरितनाभ्यां दक्षवामाभ्यां भुजबल्लरीभ्यां दधतीं मंदस्मितमुखाम्बुजां सर्वश्रृंगारशोभादयां कृपापूर्णापांगी देवाददृशुः दर्शनेनानन्दाब्धौमनाः संबभूवुस्ततस्तया परदेवतायाः कृपापाङ्गपातेनानुग्रहतिाःसद्य एव वजसारसर्वाङ्गाहृष्टाः पुष्टाश्चसमभवन् तांचबहुविधं स्तुत्वा भंडासुरबधं प्रार्थयामासुः इतिततश्चस्वीकृतवत्यांतस्यां सिद्धस्वांतार्थाः संबभूवः श्रीब्रह्माण्ड पुराणस्थं लालित्यच. रित्रं समाप्तम् // // श्रीदुर्गाम्बार्यनमः // ___ - --- मार्कण्डेयपुराणे प्राधानिकनामरहस्ये // पुराप्रलये श्री. मदाबामहालक्ष्मी लक्ष्यालक्ष्यस्वरूपाचैकेवसतीसकलसून्यंतमोभूतं धामात्मकेनालक्ष्येणस्वरूपेण व्याप्पव्यवस्थिता एकाकीनरमते इतिश्रुतेः विश्वंसिसृक्षावती केवलेन तमसा श्रीकालीरूपमपरंदधार ततः शुद्धनसत्वेन च सरस्वीरूपमन्ययभारवृत्त्वाचिरकालीसरस्वतीस्वस्याअनुगुणरूपतोमि For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 115 ) थुनेसृजेथामित्युवाचाद्या उक्त्वाचस्वयंहिरएयरुचिरं स्त्रीपुंसात्माकं कमलासनंरजोगुणेन मिथुनमसृजत् ततश्चाद्यया ज्ञितारुद्रत्रय्यात्मकंश्वामाविष्णुंगौर्यात्मकं सरस्वतीमिथुनंप्रकटयामास ततःसकलसूःआद्यलक्ष्मीः रुद्रायवरदांगौरीवासुदेवायश्रियं सर्वसंपद्पांब्रह्मणेत्रयीं वाग्धेनुंचादात्ततोब्रह्मास्वरयात्रय्यासहसमर्थोब्रह्मांडमजीजनत् लक्ष्म्यासहशक्तोविष्णुःपुपोष रुद्रोगोऱ्यांसहेश्वरस्तमंडंबिभेदअंडमध्येप्रधानादिकार्यजातं यदासीत्तत्पालयामास लक्ष्म्यासहहरिरेवमेकैवसर्वेषामादिकारणभूताद्या स्वरूपेण व्यवस्थितास्वयंक्रीडार्थमनेकरूपा प्रथमतः केवलेन तमोगुणेन कालीरूपा ततः शुद्धसत्वेनसरस्वतीरूपाजाताततश्चकेवलेनरजसालक्षलीविरं चात्मकं स्त्रीपुंसात्मकं मिथुनरूपा समजायत ततः कालीस्वरू पेणस्थितवतीरुद्रस्वरात्मकं स्त्रीपुंरूपंमिथुनं चाभवत्ततःआद्यायाज्ञप्तकालीरूपोरुद्रःसरस्वतीरूपागौरी तारकासुरवधार्थं कार्तिकादिजननार्थ कालकूटपानेनजगतो रक्षणार्थंच विषपान जां बाधाममृतदृशां पातेन हरस्यशमनार्थमन्ते विश्वसंहरणलीलार्थमध्ये अनेकविधविश्वरक्षणार्थ कश्चित्कल्पे जगत्सजनार्थच दिव्यदंपतिभावमभजत् पतिश्चपत्नीचेतिश्रुतेः एवंआद्ययाज्ञप्त आद्यारूपोब्रह्मा कालीरूपाचत्रयी विश्वसर्जनादि अनेकलीलार्थ जगतोहितायच दिव्यदंपतिभावमसेवत एवमाद्यासरस्वतीरूपोविष्णुः आद्यारूपालक्ष्मीश्चतुर्दशभुवनपालनलीलार्थपुनाराधाकृष्ण सीतारामायनेकरूपेणानेकदुष्टनिकंदनाय धादिस्थापनाय च भक्तोद्धारणायच For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 116 ) स्वयंदिव्यदंपती भावमंगीचकार एवंचस्वयंपाद्या परब्रह्मपराशक्तिरूपातिस्टभ्य : कालीलक्ष्मी सरस्वतीभ्योदेवीभ्यस्ति. सृभ्यो ब्रह्मविष्णुरुद्रेभ्योदेवेभ्यो धामत्रयलिंगत्रय पीठत्र. यस्वरत्रय वेदत्रयपदत्रयेभ्यः पुराग्रेप्राक्तनीयकाले वर्तमानातुरीयारव्यात्रिपुरा ब्रह्मविद्याश्रीविद्या महामहिषादिदुष्टबधार्थ जगतां रक्षणाय धर्मस्थापनायच देवानांस्वाधि. कारदानपुरःसरं यज्ञभागप्राप्तये चसर्वदेवतेजोरूपं महालक्ष्म्यादिरूपंधृतवती एवमेवकदाचित्काले भंडासुरवधार्थनाना. विधक्रीडार्थं श्रीमल्ललितारूपं जगन्मोहन मोहनमाविःस्कु वन्ती सुधासिंधौमणिद्वीपेकल्पवृक्षवनवाटिकावृते चिन्ता. मणिमंडपे ब्रह्मविष्णुरुद्रेश्वररूपपादचतुष्टयशिवप रिस्तरणे क्रीडितवती भक्तापराधशमयंती अलौकिकगुणेन रूपेणालो. किकेनमनोवाचामविषयेण कृपयागोचरेण च शोभभासर्वगापि भक्तमानसे निवसती प्रकाशविमर्शसामरस्यरूपिणी परदेवताविजयतेतराम् // तस्याश्चरण पंकजौ श्रुतिशिरःशेखरौकृपागौरवेण निश्चलतयास्थितौ मन्मनसिभवेतांतराम् मनोमेगोर्याः कृपयातयोर्वसतुतरां माभून्मेविरहः कदाचित्ताभ्यां मेऽहर्निशंकायिकंवाचकमानसमाभूयात् / इति श्रीमार्कण्डेयपुराणांतर्गतसप्तसतीरहस्योक्तान्यवताराणि // // श्रीपराशक्तयेनम // शक्तिगणेशसूर्यशिवविष्णु एजोपांच देवता हे ते सब विसंचिशक्रादित्रयस्त्रिंशत्कोटिदेवता है तिनसबनमै यही अधिक For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 117) है जहां तहां इनको आधिक्यशास्त्रन मै वर्णन करयो है परंतु श्रीमद्भगवती जगदंबा पराशक्ति जोपरब्रह्म की सत्तास्फुरणा जो हे वो इन च्यारदेवतानहूते सर्वदा अधिक विराजमान हे इन हेतूनत के अवलतो यह सब का सिद्धांत हे के जगत का प्रगट होना क्रम करके जो वरणन कीया है सो तो केवल उपासनार्थ कीया है नहितरु एकोऽहंबहु स्यां ये जो श्रुति है तिस मै कहा है में एक बोहत होउः सो ऐसा परमेश्वर पराशक्ति की इच्छा होते ही जगत्पन्न होता भया तो वही परांबा एक अनेक रूप होगई तो जोये शिवविष्णवादि तृणपर्यंत सब जगत पारमार्थ दृष्टितै तो परासक्ती ही है दूसरा नहीं है परंतु भेद दृष्टि वैष्णवलो क या आधुनिक पूर्व मैमासिकादिलोक जो भगवती सै विष्ण्वादिकांकुं प्रथक मानते है और अधिक मांनते है सो शास्त्रसंमतन हि है इस वास्ते उनका कहताहूं कै शक्ति सहित ये सब होते है तबतो आप आप का अधिकार करणै कुंसमर्थ होतेहै विगरशक्ति को इदेव वमनुष्य पशुपक्षी आदि कोई कार्य करणेकुं समर्थ नहीं होते है चैतन्यता का व्यंजक शक्ति ही है शक्नोक्तिविश्वनिर्माणादि कर्तु मिति शक्यते सर्वत्रव्यामोतीति वाशक्तिःसृष्टिस्थिति संहारशक्ति ही करती है ईश्वरका सगुन और निर्गुनरूप बतलानेवाली बोध करानेवाली शक्ति ही है और सर्वत्र वह व्यापक है कोई वस्तु उस विगर नही है परमेश्वर परशक्ति तो एक ही है. नाम. मात्र भिन्न हैं ये सब शास्त्रां में कह्या है और सब शास्त्र For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 118 ) का ये सिद्धांत है / शक्ति शक्तिमतोरभेदः शक्ति के अरुश क्तिमान के अभेद है अर्थात् एक ही है ईहां बोत श्रुती और पुराण के वचन उपलभ्य है महात्मालोक श्रीमदुर्गोपनिषदादि उपनिषदनते और ऋगादिवेद / और श्रीमद्भगवती भागवत मार्कंडेयपुराण नारदपुराण देवीपुराण महाभारथ सनत्कुमार संहितादिकनते और रुद्रयामल महाकाल संहिता सूतसंहितादि आगमन और श्रीपूज्यपाद भगवच्छंकराचार्य के वचन सौंदर्य लहर्यादिकनते जानऊगे और जो प्रथक मानोंगे तो और सिवाय क्या है परंतु वो जो परमात्मा सच्चिदानंद है सो जगदीश्वर तो उसी करके कहा जायगा और उससहित सदा रहता है कभी वियुक्त नहीं होता जो कभी वियुक्त होजावे तो कुछ कार्य करण माफिक वो नही रहता है ओष्टफुरकाणे तक भी सामर्थ्य उसकी नहीं होती हो सृष्टिस्थिति संहार करणाऔर भक्त का उद्धार करणा ये तो बोहत दूर रहा उस विगर शिवशववत है। उस सहित हि परम मंगल रूप और परम ऐश्वर्यवान् कर्ता पालयिता हर्ता भक्तांका उद्धर्ता भगवान् तो जबही कहा वेगा के शक्ति सहित होगा शक्ति परमेश्वर तें अभिन्न अ. जब सामर्थ्य है करै और नहीं भी करे और विलक्षण कर देवे अघटन घटना में बड़ी प्रवीणहै तिनहीते ईश्वरसर्व समर्थ है और नित्य श्रीमंगलरूपइसीकरके होताहै,जोचाहै सो करता है, परमेश्वरके सर्वकार्य करणेकी सिद्धि रूपिणीयहीहै, इस वास्ते शक्ति का नाम हर सिद्धि है।हरनाम यहां परमेश्वर का दुःख हरण से है जहांतहां लोकिक में और परमार्थह में For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 116 ) भी शक्ति मान की प्रसंसा होती है / शक्ति रहित का नहीं होती रुद्रादि रहित होगा तो निंदित नहीं होगा जो शक्ति रहित होगा वही निंदा का आश्रय होगा शक्ति सर्वत्र व्यापक है ब्रह्मांडपुराण में कया है शक्तः सर्वत्र संभवः चि. छक्तिश्चेतनारूपा जडशक्तिर्जडात्मिका कोई पदार्थ शक्तिरहित नहीं है। सब पदार्थ का और तिनकी शक्ति का निदान वो पराशक्ति ही है तिसका कभी घाटवाढ़ नही होता और अनित्या कभी नहीं होती चैतन्य रूपसदा एक रस परब्रह्म तें अभिन्न भई रहती है और सब देवतों का मायुः प्रमाण है / ओरशक्तिः कालकलना ते सून्य हे महाबिंदुरूपिणी निराकार सृष्टि समय मैं गुणां का आश्रय कर्ति है तिन का अंश शिव विष्णवादि देवता है तिश वास्ते सब ते अधिक सवतै उत्तम सब की ईश्वरी सब का उत्पन्न करने हारी सवतै परे सब की पूज्याभगवती पराशक्ती है - ह्मांठपुराण मार्कंडेयपुराणादिकां में बहुत प्रपंच कीया है, महिषासुरादिक दैत्यांने समर में सब देवों को भगादिये है और सब का अधिकार छीन लीया है, तब सब देवता दुखी होकर श्रीपराशक्ति का पाराधन कीया तब पराशक्ति ने अपना अंस सब देवतावों में अपने अपने कार्य करणे के लिये जो रखा था उसमें सै फेर पराशक्ति ने अपनी इच्छा सै सब देवशक्तिकां अंसते सवरूप एकत्र करके नारी रूप महिषासुर मर्दिनीने दुर्गाका अवतार धारण करके देवताओं की सहायता करीहै अरु महिषासरादि दैत्यों को उनकी फोज. सहित आप अकेली ही नेमार करके देवताओं को अपने अपने For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 120 ) अधिकार पर स्थापनकीये हैं इसी का मारकंडेयपुरण में महालक्ष्मी भद्रकाली अंबिकादुर्गा भगवती कात्यायिनी चंडिका इत्यादि नामां से ओर अन्यत्र उग्रचंडी प्रचंडा करके व. रणन कीया है कोई समय भंडासुरनामा दैत्यमहिषासुरादिकां से भी अधिक समर्थ हुआ है, उसने सबदेवों को जीत अधिकार उनका छीन लीया ओर वेदमार्ग विछिन्न करदिया तो महिषासुरादिक जो सप्तसती में लिखा है, उन सब दैत्यनकां प्रगट कीये है तब श्रीमन्महात्रिपुरसुंदरी ने श्रीदुर्गा को प्रकट करके सब दैत्योंको दुर्गासै मरवाये है // और भंडासुरादि दश दैत्यन कां प्रकट कीये है तो श्रीललिता जूनी चतुर्भुजस्वरूप है जिस में दोय जो दक्ष भुजा का करपल्लब के दस नखां से मत्स्यदिक दसही विष्णु का अवतार प्रकट करके दसही असुरां का उनसेहि मरवाये है और बोहतसी फोज वडे योद्धार महारथियों को श्रीललिताजुकी शक्तिने और केई शक्तियां की मालिक जो संपदीश्वरी अस्वारूढानाकुली तिरस्करण कादि नाम जो शक्ति है सो सब कितनीक दुरधर्ष फोज कुंमार खपाई है और सब असुर जिनसै अत्यधिकपत्रह असुर कूटयोधी थे उनका कामेश्वर्यादि पंचदश शक्तियां ने वडाभारी युद्ध करके. उनको मारे है और प्रथम युद्ध कुछ हुआ था उस वक्त में भंडासुर ने प्रथम विघ्नयंत्र शक्ति सेनापर चलाया तो सबकुं चक्र केणें लगगयो के कोणमंत्रिपणी है। और कोण दंडिनी है हम नहीं मानता है ललिता For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 121 ) कोण है ऐसी व्यवस्थाशक्ति सेनाकी देखकर श्रीसर्वेश्वरी ने श्रीमच्छीललिता जुकां सब वृतांत निवेदन किया तब श्रीकामेश्वर अपणा पुंरूपहे जिसके मुखारबिंद कां आप मंदहास संयुक्त होकर देखातो देखते ही श्रीगणेश्वर देवता प्रकट भयो श्रीजीकां नमस्कार करके युद्ध करणेकुं पधारा तो उनगणेशजू के सरीरतै हजारां और गणपति प्रकटभए ओर कितनीहि भंडासुर की सव फोज कुं मारहठाई और अपने दांनां सेती विघ्नयंत्र को चूरण करिछारमे मिलायदिया अरुविजय करके श्रीललिता भगवती का आय नमस्कारकिया श्रीजी बडे प्रसन्न भए और सर्व देवाग्र पूज्य होणे सै वरदानदिये फिर बतीस कुमार भंडा. सुरके युद्ध में आये तो उन कुं श्रीबालाजूने अनायास मा. रडाले फिर श्रीबालाजू का श्रीजीने वडामान कीया और मंत्रिणी ने नीराजना विधि श्रीबालाजी श्रीजीकापरमप्रियरूप है जिस की करी है फेर भंड के भाई विषंग औविश्रुक्रभंडके तुल्यवलथे उन कुं संग्राम भूमिममंणित्री डंडिनी ने बधकिये तदनंतर भंडासुर कुं स्वयं श्रीललिता जूने मारो है और उस का सून्यक पुरको भी भस्मकरके देवतावां. कुं पीछा स्वस्वाधिकारदिया और शिवजूनेकामकां भस्मकर दियाथा, तो देवताओं नेकांमकुं जिवाने के लिये जगदानं. के निमित्त श्रीजीकांदया प्राप्त होने के वास्ते रतीकालाय वाकी दुर्दशा श्रीजीकांदिषाई तब श्रीजीने अपनी कृपा दृ. ष्टि तै कामकांजीवाया ताते जगतकां बहुत आनंद भया For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 122 ) और जगत की बोहतसी बृद्विभई रति बहुत आनंदितभई इसीतरे असंख्यातवेर श्रीपरांबाका ने सहायकरी है और कीसी समय में इन का पराजय नहीं हुवा और हर समय देवतावांने जाकर दुः खनिवेदन किया है तो अन्यदेव वत् आपने श्रीमुख से आज्ञा नहीं करी है के कुछ काल देषो फिर मारेंगे समय आणेदो असी आज्ञा नहीं करी है उसी वक्त करुणा सिंधुने येही हुक्म किया के में तुमारादुःख निवर्तकरूंगा फेर कुछ भी विलंब नहीं किया और झटिति देवन का दुःख निवर्त करके छीना हुवा राज्याधिकार देकर अनायास होय जेसे यही आज्ञा फिर करी हे के हे देवताओं फिर तुमारा कोई काम बाकी रहाहे तो कहो वो में अभी करूं तुम हमारे भक्त हो तो इस सेभी जांणा जाता है के काल भगवती के आधीन हे भगवती काल के अन्य देववत् आधीन नहींहे एक जरासा भ्रूभंग करणे से हात जोड़ काल खडा होता है सोतो श्रीजीकी महिमा के आगे छोटि सी बात है परन्तु कालका काल महामृत्युंजय एसे जो शिवजी महाराज हे वो भी हात जोड़े ऊवे हमे से सा. मने षड़े रहते हैं सो कहाहे तत्रोंमे करे स्थितं ब्रह्मरसं पिवंती भ्रूभंगमात्रेण जगत् स्रजंतीयस्या पुरोबद्धकर: कपालीददातुसिद्धिं मम कालिकासा // 1 // और श्रीजी की इच्छानुकूल काल विश्व में विचरता है जरासा भ्रू भंग होणे से जगतका सृष्टि पालन संहार होजाता है और असंख्यात ब्रह्मा विष्णु रुद्रकी कारण भूमी है असंख्यात For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मांड उनके रोमकूप में हे सबमें व्यापक सबते न्यारी है वो एकही क्रीडार्थ दिव्य दम्पती भावकु भजती है श्रुती मैं कहा है एकाकीनरमते पतिश्चपत्नीच सो सब देवताओं से श्रेष्ट है देखो वा जो एक वस्तु है सोही पुरूप स्त्री रूप भई है अव सुनो के सब बांते अधिक ब्राह्मण है जिनके अरु दूसरों के जो सनातन धर्म पर दृष्टि देवोतो वेदनही सवोंपास्य शक्ति ही लिखा है गायत्री की उपासना त्रैवर्णका कुं अवश्य नित्य है और गायत्री मंत्र ब्रह्म प्रतिपादक है तथापि तेजोरूप कर प्रतिपादन कियाहे तातै इसमंत्र की देवता शक्ति है प्रातमध्याह्न सायाह्न में गायत्री का स्त्री रूप ध्यान है नाम भी स्त्रीलिंग है इस उपासना विगर बाह्मणादि पतित होजाते हैं ब्रह्मत्व नहीं रहता है अरु किसी लायक नहीं रहते फिर नरक प्राप्ति होति है यद्यपि वि. Sणवादि मंत्र दीक्षा शास्त्र में कही है परंतु वेदमें तो मुख्य सिवाय गायत्री के अन्य नहीं है गायत्री विना दूसरे मंत्रजा जयों तो कवी कल्याण नहीं होगा किंतु अनिष्टही होगा और दूसरे कोई भी मंत्र नहीं जपेंगे और केवल श्रीगायत्री का ही अराधन करेंगे तो झटिति पवि. त्रात्मा हो कर ऐहिक पारलोलिक मोक्ष पर्यन्त सुख कां प्रात होयही जायगें इसमें कुच्छ संदेह नहीं है सो गायत्री प्रसिद्धतर तो यही है के जो चतुर्विशत्पक्षरात्मिका है परंतु इनहीं तै रहस्यभूत वेद पुरुष नै और सदा शिव. जू नै पंचदशाक्षरी तथा षोडशाक्षरी ब्रह्म विद्या गायत्री For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (124) अतिगुप्त दूसरी भी वर्णन करी है चतुर्विशति वर्णात्मिकातें भी अधिक महिमा इसकी वर्णन लक्षावधि ग्रंथ करिके करी है और इसका आचार पूजा यंत्र नित्य नौमित्तक काम्य विधान स्थूल सूक्ष्म पर त्रिविधध्यान उपासनादि अनेक प्रकार लिखी हैं पंचदशाक्षरी का सकृत जप करणेसै चतुर्विंशत्यक्षरां का च्यारवेर जप होजाता है ऐसी महिमा लिखी है और आचार निष्टतो सद्गति कुं प्राप्तहोवै जिसमें केणाही क्या है परंतु या जो गायत्री है सो शिष्णोदर परायण जीवां कुं भी यथार्थ आराधन करी हुई लोगांकी दुर्वासना झटिति दूरकरके अनेक सिद्धियांकुं प्राप्तिकरके सद्योमुक्ति करती है शिवजू ने कह्या है हेपारवति कोटिमुख जिव्हा हमारे होवे तदपि इस महा विद्याकी महिमा हम से कही नहीं जाती है सो पंचमुख पंच जिव्हा से तो कैसै कही जावे इत्यादि अनेक तरां से अत्यंत महिमा कही है सो अनेक जन्मां के पुण्य उदय होने से ईश्वरानुगृहीत पुरुष होता है तब सद्गुरुके मुखारविंद तैया गायत्री प्राप्तहोती है वह साक्षात् शिवरूप सर्व सिद्धियां का भाजन परमानन्दि होजाता है तीसरी गायत्री अजपा नाम कहै सो इसका भी वहिर्यजनादि सब प्रकार हे परंतु मुख्य करके ध्यानरूप युग्म अक्षरांका मानसिक जपही प्रधान है इकवीस हजार छवसो प्राणा के गतागतसै स्वतै सर्वप्राणी जपते हैं परंतु श्रीगुरु मुखसे श्रवण करे विगर फलप्राप्त नहीं होती सो इसका माहात्म्य For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 125) और विधि तो एसा लिखा है के मूलाधारादि ब्रह्मरंध्रांतचतुर्दल कम लादि सहस्रदल कमलपर्यन्त मै गणेशादि श्री परमेश्वर रूपकी गुरुनाथस्थित है तिनका शास्त्र में लिखा है उस मुजब ध्यान करके यथा विभाग इकीस हजार छवसो स्वासात्मक अजपामंत्रका संकल्प करिके जो नित्य अर्पण करे असक्त होय तो शिरसि ब्रह्मरंध्रस्थ सहसूदल कमल कर्णिकामध्य वर्तिनी श्रीगुरु पादुका के ही समर्पणकरे अर्पण संकल्प इसतरै करणा मयाद्यपूर्वेयुरहो रात्रोच्चारतमुत्स्वास निखासात्मकं षट्शताधिकमेकविंशतिसहस्रसं ख्याक मजपाजप ब्रह्मरन्ध्रस्थसहस्रदल कर्णिका मध्य वर्तिन्यै श्री गुरु श्री पादुकायैनमः दूसरे दिनका संकल्प इसी रीति से करणा अद्य श्रीसूर्योदय मारभ्या होरात्रैणोच्चरित मुत्स्वास निस्वासात्मक षट्शताधिकमेकविंशति सहस्र सं. ख्याकमजपाजप महंकरिरष्ये // इस मंत्र रूप संकल्प करिके इकवीस हजार छयसो स्वसात्मक अजपा गायत्री मंत्र श्रीगुरुपादुका के समर्पण करणे सै सायुज्य मुक्ति प्राप्त होती है एसा महात्म इस महामंत्र का है अरुये सब मंत्रो में श्रेष्ट है इस के आराधन में कुछ क्रिया कलाप नहीं है केवल अंतर मुख होकर नित्यगुरूक्त विधि से अ. भ्यास करे पद्मासन बांधकर नासाग्र दृष्टि रखकर दो अक्षरां का चिन्तवन करै अरु अक्षरां के वीचमें कुंभक सहज सूक्ष्मरहता है तिन का वधावै फिर तो क्याकेणा है परंतु यह भाभ्यास नहीं जानपड़े तो केवल युग्माक्षर कम से For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 126 ) अथवा व्यतिक्रम सै ध्यानकर और मान पूर्वक निरन्तर दृढा भ्यास करै तो थोड़े ही काल में वो पुरुषमाया मेहत छूट कर शीघ्र ही मोक्ष भागी होता है इस का आराधनकुं रा. जयोग कहते हैं इस तें बहुतमहात्मा मार्कंडेय ध्रुव प्रह्लादादि सिद्धकुं प्राप्त भए हैं निर्विकल्पसमाधि इस से त्वरा होती है जेसी अन्य नहीं होती है तो ये भी शिवशक्त्यात्मक तद्वाची तदैवत्यमंत्र है इस तीन मंत्रों सिवाय कोई निरव. धिक महिमा साली मंत्र नहीं है सोये परशक्तिवाचक है। अरु जेसा मनकुं आह्लादशक्तिध्यान से होता है तादृश पुरुषसै नहीं होता त्यातै पुरुषकां चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धिका लिये पराशक्ति ही की उपासना अवश्यकर्तव्य है बृह्मादि तीनदेवमुख्य है तेतो निगुर्ण निराकार ज्योति स्वरूप श्रीपरा शक्तिके सगुणस्वरूप मूलप्रकृति है तिन का एक एक गुण तें त्रिदेवता भए हैं // अरुबृह्मादि पंचदेवता भी शक्ति के बनाये हुवे है येपांच देवताश्रीभगवती के चरणों में अहनिश मंचरूप होकर रहते है सो कहा है रुद्रयामला दितंप्रमें ओ ब्रहमांड पुराणमे // ब्रह्माविष्णश्चरुद्रश्च ईश्वरश्च सदाशिव // एते पंचमहा प्रेता देव्याः पादतले स्थिताः॥१॥ ब्रह्मा विष्णु रुद्र ईश्वर तो पंचवरण रूप है और सदाशिवफलक रूप हे तो इस से भी सर्व श्रेष्टत्वपराशक्ति कही हुआ इसवास्ते राजकुं छोड राजकिंकर की उपासनाकरणा मुर्खाका काम है फेर श्रेष्टता इस रूप से है के भगवती सै तो ये तीनदेवताकी उत्पत्ति है सो मार्कंडेय में ब्रह्माने आप. ही कहा है विष्णुः शरीरग्रहण मित्यादि हेतुः समस्त जग. For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 127 ) सांत्रिगणादिदोनशाय से हरिहरादि भिरय्यपारेत्यादिश्च औरइनतीनां से कदापिपरासक्ति की उत्पत्ती कहि नहीं लिषी है और कई कल्प ब्रह्मा से रुद्र से शिव विष्णु सूरजगणे श से जगदुत्पत्ती लिषी है तो ईनांने शक्ति का आश्रय करके करी है वैसै पराशक्ति ने किसी का आश्रय करके नहीं करी लिषी है और नहीं अनुमान मै आवे है और ललिताजूने जैसे नृसिंहादि विष्णु का अवतारानकुं अपने हस्त के दस नख से प्रकटकिये तैसें रुद्र विष्णुनै पराशक्ति के अवतारान कुंभी कहीं प्रकट नहीं किये हैं // और परा. शक्ति की तो शिवादिनने बोहतसी जगे अपणा दुःख नि. बृत्यर्थ स्तुतीकी है अरु पराशक्ति ने कभी किसी की स्तुति नहीं करी है सो तो ई है परंतु इनका अवतारांने भी अपणी सहायता निमित्त कभी किसी की स्तुती नहीं करी है पराशक्ति स्वतंत्र है और शिव है सो पराशक्ति के परत है सो भगवत्पूज्यपाद श्रीशंकराचार्य स्वामी ने देवी का सौंदर्यलहरी नामक स्तुति है जिस में लिखा है अरु शिव जूके प्रकट किये हुवे रुद्रयामलादि प्रधान तंत्र चतुःषष्टि है 64 और यूंतो अगणित तंत्र है जिल में वर्णन शिवशक्ति का कीया है उसी के अनुसार श्रीशंकर स्वामी ने स्तुति की है जिस में कहा है व्यंजन सब शिवरूप ह और षोडशस्वर हे सोशक्ति रूपहै सो स्वरांका उच्चारण तो हलविगरही हो जाता है और हलका उच्चारण विगर स्वरांके नहीं होता इसलिये शिव शक्तिके परतंत्रहै इत्यादि बहुत प्रकारसै शिवकां शक्ति के आधीन लिखा शक्ति किसी के आधीन नहींहै इसीतरांसे सब For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 128 ) की कारणं पराशक्ति है ये सब सास्त्र का उद्घोष है तो कारज कारण के आधीन रहता ही है विष्णुवादिसब देवता पराके परतंत्र हे सोश्रीभागवत मै कह्या है कि जो विष्णु स्वतंत्र हो तातो लक्ष्मी का भोगविलासवैकुंट का सुख छोड मच्छ कूर्मादितिर्यंचयोनिमे केसे अवतार लेते और अपनी स्त्री कारहण दुःख काहेकुं सहते और दुःख भी माहात्मा धर्म के लिये कीर्ति निमित्त सहते हैं / परन्तु स्त्री हरण करावणे मे क्या धर्म हुवा और इसमें कीर्ति भी क्या भई और कृष्णावतार में भील के हात से बांण लागणे के निमित्त देहत्याग का कारण विख्यात किया सो इस स क्या धर्म भया अथवा क्या कीर्ति भई और नृसिंहावतार ने भी प्रह्लाद की रक्षाकरी और दुष्टहरणकश्यपूकां पछाड़ाये तो ठीक किया पर फेर क्रोध वशमया हुआ जीतपाय के मदोद्धत होय सब जगतकुं पीड़ा देने लगे तब शिवजू नै शरभ पक्षिराज रूपधार नृसिंह कू चंचू में लेकर आकाश में उडगये अरु उनकां शांत किया तो इसकर्त्तव्य में भी क्या धर्म भया क्या कीर्ति भई नहीं तो कुच्छ धर्म भया नहीं कुच्छ कित्ति भई परंतु पराधीन होता है तो उसका सुख दुःखादिक और जस अपजस भी सब उनके स्वाधीन नहीं है पराशक्तिके आधीन है वो जेसा हुक्म करती है वही यह शिरपर धरते है तथाच श्रुतिः यद्भयाद्वाति वातो यंसूर्य स्तपतियद्भयादित्यादि सर्ब इनपराम्बा के आधीन है यह सर्वथा सर्वत्र स्वतंत्र अरु अव्याहतैश्वर्य है अन्यनही For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 126 ) तो इसकारण करके भी उपासना पराही की करणी मनुष्य कां उचित हे पेड में जल सीचणे सै डालादिकन में जल पाँचजाता है अरु विष्णवादिकों कुं शक्तिका रूपहि लिखा है कार्य कारण का अभेद मानके जैसे आत्मावैजायन्ते पुत्र इसी तरोंसे सब जगतनाम रूप क्रियाकालात्मक शक्ति रूपहिमाना है और रामकृष्णादिक अवतारां में अज्ञानता कई जगा जाहिर पाई जाती है और ईश्वर में अज्ञानता कबी नहीं संभव है तो ये ईश्वर की विभूति है साक्षात् परमेश्वर तो विष्णु ही नहीं है सतोगुणावछिन्न ईश्वरांश विष्णु है तिनहूकां अज्ञान कई जगह भयो है सो कई जगै तौ श्रीपराशक्ति नैस्वयमवनिवृत्त कस्यौ हे और कई काल में पराकी आज्ञासै दूसरांने कयोंहे श्रीपरा ने कल्पादिमे विणु को को है सो श्रीमद्भागवत में लिष्यो है अर्द्धश्लो. क रूप भागवत का उपदेश करके विष्णु को अज्ञान निवृत्त कह्यो हे भगवतीभागवतकों कितनेक पुराणोके मतसे तो अष्टादश पुराणन में गिनाया है और विष्णु भागवतकों उपपुरानन में गिनाया हे और कितनेक पुरानन के मतसे देवी भागवतकों उपपुराननमें रखा हे परंतु दोनुहि भागवत व्यासप्रणीत होने में किसी तरेका संदेह नहीं है श्रीमद्भगवती भागवतकी / टीका में स्यष्टपुरानन के वचन लिखै है सो किसीकुं संदेह होतो वो देखलेना अरु रुद्रयामलकी श्लोक बद्धपद्धती चारांनवरात्र की है जिसमें नवरात्र में देवीभागवत का पाठकरणे का वडा फल लिखा है और For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोई विष्णुभागवतकां बोपदेव कृत कहते है सो भी गलत है इसी का भी ब्रह्मयामल में प्रयोगां की विधी और सप्ताह पाठकी विधि अच्छीतरास लिखी है तात ये भी प्रामाणिक है हमकां अशास्त्रीय वार्ता पसंद नहीं है ता ते जैसा शास्त्र संमत हे वैसाहि सब हम लिखा है किसिकी निंदा स्तुती नहीं है अवल रामावतार मैं राज्याभिषेक का रामचन्द्र जूने खुसीमानी है तो भावीवनवास की जो खबर होती तो खुसी कदमानते // और सीताका हरण में प्राकृत मनुष्य जैसा रोदनादि चेष्टा स्वतंत्र ईश्वर होते काहै करते अरु ब्रह्माजीका काहेकां ईस तरे कहते के हेमहाराज में तो अपणी आतमांकुं दशरथ पुत्रमानताहुं जव ब्रह्माके केणेसै जांण्या के में विष्णु का अवतार सानात्विष्णुही इसीतरै जुद्ध में भागणाक्षत्रियनकुंवडाअध है तोश्रीकृष्ण जरासंदओ कालनमी का संग्राम में भागकर द्वारका को चले गए जब से रणछोडुजी ये नाम उनका पड़गया तो मतलब ये है के ये सब देवता है सो कोई स्वतंत्र नहीं है तब फल देना उनके आधीन कहां रहा तो स्वतंत्र होवे उसकू स्वामी करणा चाहिये सो फेर दूसरे की अपेक्षा नहीं रहे इसवास्ते भी सेव्यपर:पदाब्ज हीहे और श्रेष्ठ भी वही है और कदास कोई कहेगाके स्त्रीस्वरूप तुम मानते हो तो स्त्रीतो पुरुषके आधीन होती हे तो ये कहां स्वतंत्र होगी तो उत्तर ये है कि वास्तव तो एका संविदेव सञ्चित्सुख रूपाहै वो अखंड अद्वितीय सर्वदा स्वतंत्र पर ब्रह्मा विना भूतचिछक्ति // एकाकी नरमत पति. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 131) अपत्नीच इत्यादिक जो श्रुतियां तिनमें कहा है के एक जोतिः स्वरूप रमणकी ईछा करी तब रमण एक से नहीं होता सो वो वस्तु जो पराशक्ति है ताने स्त्री पुंरूप धारलिया तो अवल तो ये दिव्यदंपति हैं सो समसत्वासमोजौ इत्यादि श्रुतिमै तुल्य प्राधनता है वो उन के आधीन है वो उनके आधीन है असा कभी नहीं के पुंरूप के हीज स्त्रीरूप आधीन होवे पुंरूप भी स्त्री रूपके सर्वथा आधीन है देखिये की घर सब की मालिक स्त्री है और पुरुष स्त्री के लिये अनेक दुःख उठाते हैं परदेस में भटकते हैं अनेक स्वांग करके द्रव्योपर्जन करके स्त्री को भूषित करते है और उन्ही का प्रियाचरण करते है वो मालिक की तर कहीं नहीं जाती है और हुक्म देतीहै और उस का जो त्याग करता है केवल दुःख भागी होता है सो श्री भर्तृहरिने भी कहा है स्त्रीमुद्राझषकेतनस्यजननी सर्वार्थसंपत्करी ये मूडाःप्रविहाय यान्ति कुधियोमिथ्याफलान्वेषिणः तेतेनैव निहत्य निर्दयतरं नग्नीकृतामुण्डिताः केचित्पंचशिखी कृताश्च जटिलाः कापालिकाश्चापरे // 1 // इत्यादि अरुमोक्ष निमित्त त्याग करणेका कहोगे तो इसवात से मोक्षनही होती मोक्ष ज्ञान से होती है ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः तो गृहस्थी को मोक्षक वाध कांहां है अनेक याज्ञवल्क्यादि ऋषि लोकजनकादिक राजास्त्री सहित ही रहकर मोच गऐ है परस्पर अनुकूलता से धर्म अर्थ काम मोक्ष पर्यंतका सुखदेती हे और फिर देखो के अभी विकटोरिया है सब For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज्य लंदनका और हिंदुस्थान दो वलातां का वही महा राणी करती हे हुक्म भी उसी का है और पती भी उस का उस के आधीन रहता है यह भी व्यवहार है अरु जो स्त्री पति के आधीन नहीं होय तो क्या फिकर है पुरुष कोई दूजा हो और स्त्री रूप दूसरा होवे जवतो हानिभी होवे परंतु प्राकृत स्त्री पुरुष जेलै तो वे दिव्य दंपतो नहीं है सोतो कहता ही चलाआताहुं के पराशक्ति अरु पाब्रह्म नाममात्र भिन्न है वस्तु एक ही है सदा अभेद एक रस रूप वही परा शक्ती नै रमणकी इछा करी तब दोरूप धारलीया तो फिर इस में हानी किसतरे आसक्ती है जगत का पालन पोषण मे भी कुछ भी स्त्री रूपका आधिक्य है श्रीमद्भगवान् शं. करखामीने कहा है के // तवस्वाधिष्ठाने हुतवहमधिष्ठा यनिरतं तम डे संवत जननी महतींतांचसमयां / यदालोके लोकान्दहति महति क्रोधकलिले दयादृष्टिस्तशिशिर मुपचा रंचरयति // 1 // शिव तमोगुणावछिन्न परमेश्वरांशजग को अपणे तृतीय नेत्राग्नितै घालता है संहार करता है। और तूं पीछा दयादृष्टि से शीतल उपचार करके फिर उत्पन्न करती है तो जगत के आराम तो ईश्वर का स्त्री रूप जेसा करता है वेसा पुंरूप ही और परमार्थ भी इनसे जेसा होता है तादृश और रूप से नहीं शीघ्र सिद्धी इनसै होती है जेसी स्वरूपांतर से नहीं होती कारण इस रूपमे मनोरंजन बोहोत होता है एकाग्रअका होता है और एका होणेसै ही सिद्धि है // विष्णवादिकांने भी पराशक्ति ही For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (133 ) की उपासना करी है और उनकी उपासना के फलसे जगत् कर्ता पालयिता संहादि अधिकारवान् सबभए है सौ मानसो ल्लासादि अनेकतंत्र पुराणादिकां मे कहा है // विष्णुःशिवः सुरज्येष्टो मनुश्चंद्रोधनाधिपः // लोपामुद्रातथागस्त्यः स्कंदः कुस्तुमसायकः // 1 // सुराधीशो रौहिणेयो दत्तात्रेयो महा मुनिः // दुर्वासाइति विख्याता ऐते मुख्याउपासकाः // तो ये तो सब श्रीजीके उपासक है ओ श्रीजीइनके उपास्य है तो सबका उपास्य होवे जिसकी उपासना करणी मुनासब है। और पराशक्तिके आज्ञा सै विष्णवादिक अवतार धर्म की रक्षाके निमित्त लेवे है वहां भी इनकी स हायता विगर केवल विष्णादिकां से कुछ नहीं होसक्ता है सो इंद्रकृत महालक्ष्मी स्तोत्र मे और दूसरे बहुत पुरा नन में लिखा है इंद्र वाक्यं / राघवत्वे भवेत्सीता रुक्मिणी कृष्णजन्मानि अन्येषुचावतारेषु विष्णोरेषासहायिनी // 1 // सो विष्ण्वादि अवतारन के भगवत्यवतार सापेक्ष्य हे जेसै भगवती अवतार मै किसी देवता के अवतार की अपेक्षा नहीं है स्वतंत्र कार्य कारण में समर्थ है और जेसै विष्णु के अवतारांने धर्म मे चलते राजावांकुं वा अन्यांकुं देवता आं के पक्षपात से धर्म से च्याविता किये है तादृश परा शक्तिने किसीकुं धर्म भ्रष्ट नहीं किये है // अरु विष्णु ने जहां तहां कई जगे अपणे भक्तका अपहास्य करवाया है नारद कुं मुंहमागा वांछित देकै वानर कर दिया तो ये बोहतही अनु चित किया है और भक्तवी उन के असेई है के मा For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 134 ) लिकका रूप आप मांगणा येबी बात बोहत बुरी है और वो जो अंतर्यामी है तबतो विचारे नारद का दोसही क्या है उनांने जेसी प्रेरणाकरी वैसाही उसने प्रार्थना करी ओर वो अंतर्यामी नहीं है तब नारद का दोस है। परंतु वडांन कु क्षमा करणे का अधिकार है सु क्षमा करणी अरु जो क्षमा नही की तो पीछा नारद ने श्राप नहीं देणाथा मालककुं पीछा श्राप देदीया तब वो भक्त क्या भया और भक्त का श्राप मालक कुं लगगया तो वो फेर मालक ही क्या भया ये तो बराबरी भई परंतु जैसे मालिक वेसाही भक्त हमारे तो ये वात पसंद नहीं आई विष्णु की अपेक्षा तें नारद नूनहै और विष्णुका दास है तो दासका अपराध क्षमा करणा था समर्थ क्षमा करै उसमें उनका बड़ा यश बीस्तीर्ण होता है अरु नारद कुं दंड मंजूर खुसी के साथ करलेणा था क्यूंके मालक चावे सो करे जो करे उसीमें दासकुं प्रसन्नता सै रहणा येही दासका परम धर्म हे नहीं जब धर्मनष्ट होजाता है सु इस तरे नहीं तो किसी भक्तके साथ भगवती ने अनार्य जुष्ट कर्म कियानहीं पराशक्ति के आत्यंतिक भक्तों ने एसी श्रीजी के साथ हरामखोरा कीया और श्रीविष्णुने या उनकाअवतार श्रीकृष्णनेब्राह्मणोंकी जहांतहां बोहत स्तुती करीके और कहा है ये हमारा इष्ट है ब्राह्मण हमारा परम देवत है ब्रह्माण हमारा ही रूप है ब्राह्मण के सामने जो हमारा हाथ होजावे हमारे हाथ से हमारा हाथ काट डारे इस तरे अपणे मुखसै कहकर फेर निरवाह For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 135 ) जरा भी नहीं कियो क्योंकि // भगुकी स्त्री मारडारी देवता वांके पक्ष निमित्त सो स्त्री तो और भी अवध्य है तो ब्राह्मणी तो होवे ही होवे सो ब्राह्मण तो कहां रहा ब्राह्मणी कुं मारडाली फेर वडां का वचन और वडां के पूज्यां सै वडांन का वरतणा इस रीति का ही होता है श्रीजगदम्बा ने ब्राह्मणा का आपका रूप कह्या है तो ब्रह्मणां की बोहत पालना ही करी है अपणे भक्त की नामुसी कही नहीं करी है और एसा कपट भक्तों के साथ कही नहीं किया और भक्ताने भी कही एसा अपराध नहीं किया के जैसा नादर ने कीया श्री मुखसै आज्ञा करके फेर जरा कभी असत्य नहीं किया और ब्राह्मण का बध या इज्जत हतक कभी नहीं कीया है श्रीकृष्ण ने अनीति करी है विभचारादि रूप अधर्म कीया है और श्रीजी के अवतारां ने कही जरा भी अधर्माचरण नहीं किया है तो सब तरांसै श्रीजी का सवतै आधिक्य सर्वदा विराजमान है जयति जगदम्बा गरिमता // अरु ये कही नहीं लिखा है के श्रीजीके मुख्य अवतारां ने परस्पर स्पर्धाकर युद्ध अज्ञान वस होकर किया हैं किंवा शाप दीया है और विष्णु के दसावतारां में परशुराम है ताने अज्ञान वस होकर युद्ध करने को प्रारंभ रघुराम जू सां किया है और परशुरामजी नै अनुचित भी कह्या है फिर अधिक कला रघुरांमजी थे जिनांनै परशुरा. मजी की गति स्तंभित करदी फिर उनका परास्त कर अपनी प्रभुता प्रकट करी तो इसतरे पराके अवतारां ने For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 136 ) अज्ञान वस होकर कही परस्पर पर्दा नहीं करीहे // रघु. राम जूकां और परशुरामजूका चरित्र बालमीक रामायण में कहा है / और अद्भुत रामायण में कथा आवे है के एक रोज श्रीविष्णु भगवान् ब्रह्माजूकी सभा में गए वहां ब्रह्मादिक सब देवता ऊठ खड़े भए जहां सनकादिक वो विष्णु ही के अवतार है सदा उनकी पांच वरसकी अवस्था रहती है वो चारों नहीं उठे तब विष्णु ने क्रोध करके स. नकादिकों को शाप दिया कि तुमारे ज्ञानका बड़ा गर्व है इसवास्ते तुम नहीं उठेसो जावो तुम गर्भवास भुक्तोगे सो उनांने स्वामिकार्तिक का अवतार लिया और सनकादिकों नै विष्णु को शाप दिया के तुमारे सर्व ज्ञाता पणेका और ऐश्वर्य का वोहत घमंड है सुं तुम भी दसरथ के पुत्रहो कर तुमारी स्त्री का हरण होगा जब तुम बोहत विलापात करोगे और तुमारी सर्वज्ञता नष्ट होजायगी तो इस कारण सै सीता जूका रामजू ने इतना दुखः कीया और आत्मा का स्मरण भूलगए जब ब्रह्माजूने बोध कराया तब उनों ने जांणा के हम विष्णु हैं तदनंतर फिर वसिष्ठजने ज्ञान दीया सो योगवासिष्ठ ग्रंथ प्रसिद्ध है // अरु ये कहीं नहीं लिखा है के मुख्य श्रीजी के अवतारों ने परस्पर ईर्षा करके युद्ध अग्यानवस होकर किया है किंवा शापदीया है और विष्णु के मुख्यदशावतारांमें रघुरामजसा परशुराम अज्ञानवस होकर युद्ध करने का प्रारम्भ किया है | तो इस सै साक्षात् ईश्वरत्व इनमें नहीं पाया जाता है ये सब For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 137 ) परांबा के बनाये हुवे है इसी वास्तै तुम जो भोग अरु मोन दोनों चाहो तो परांबा के पादारबिन्द की उपासना करो शास्त्र में कहा है // यत्रास्ति भोगो नाहे तत्रमोक्षे यत्राप्ति मोक्षोन हि तत्रभोगः // श्री सुंदरी पादयुगार्चका नांभुक्तिश्चमुक्तिश्च करस्थितैव // दूसरों की पूजन उपासना ते श्रीपराम्बाका चरणारबिन्द के पूजनके फलकी बाहुल्यता इसश्लोक करके भी कही है और देवीपुराण में कहा है विष्णु पूजासहस्राणि शिवपूजाशतानिच // चंडिका चर्णाचीयाः कलांनाहीत षोडशीम् // 1 // तैसे ये भी कहाहे के जैसे सर्वेपदा हस्तियदे निमग्नाः सब परहाथि के पावमें समावेस होजाते हैं जैसे मूल के सेवन से सब डाल पेड पत्ते फल सेचन होजाता हैं तेसै ही श्रीमत्पराम्बाचरणार्चा न करणेकरी इनतीनां ही देवतान की पूजन होजाती है इनकी पूजा करणे का कुछ प्रयोजन नहीं है सो कहा है श्रीमच्छंकराचार्य चरणांने श्लोकः सौंदर्यलहर्या त्रयाणां देवानां त्रिगुण जनितानां तबाशवेः भवेत्यूजापूजातव चरण याविरचिता // तथाहित्वत्पादोद्वहन मणिपीठस्यनिकटे स्थितायेते शस्वरमुकलितकरोत्तंसमुकटाः // हे शिवे तव चरणयोर्याविरचिता पूजातव त्रिगुणजनितानां त्रयाणां ब्रह्म विष्णु रुद्राणां देवानां पूजाभवत् एते पूर्वोक्ता देवाः मुक. लितकोत्तंसमुकटा त्वत्यादोद्वहनमणिपीठस्य निकटतथा हि स्थिता आसन्त इत्यर्थःअर्थ यह है कि हे कल्याणरूपिणि आपके चरणों की करी हुई पूजा आपके रजोगुण तमोगुण For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 138 ) सतोगुणों से उत्पन्न भए हुए जो ब्रह्मा रुद्र विष्णु है तिनकी पूजा होजाती है तेसै की आपके चरणाकुं धारण करने वाला मणिपीठ है तिसके निकट ही आपके चरणारबिन्द का नमस्कार करणनिमित्त सर्वकालमस्तकके उपरिहाथ जो ड़े हुए येदेवस्थितहोते है इसकारणकरि आपकेचरणारविंद वि पै सद्भक्तां के अर्पन किये हुवे वा करतीवख्त उहां के भी मस्तकपर गंधाक्ष पुष्पबिल्वपत्रादिक के गिरने से उना की भी पूजा होजातीहै और नहीं भी गिरे जदभी केवल श्रीम ती के चरणों को पूजन करणे सै उन की हो जाती अर्थात्त्र. ह्मा की पूजाप्रथक करणे का कुछ प्रयोजन नही श्रीमती का पूजा करणामनुष्य को अवश्यक है इसी तरे नाम महा त्म्य भी सवतै श्री पराम्बा ही का अधिक है सो ब्रह्मांड. पुराण मै श्रीहयग्रीवजनै परम भक्त श्रीअगस्त्यमुनि प्रते कहा है ते श्लोकाः लौकिका द्वचनान्मुख्यं विष्णुनामानु कीर्तनम् // विष्णु नाम सहस्त्राच्च शिवनामैकमुत्तमम् // शिव नामसहस्त्राच्च शक्तिनामैकमुत्तममिति // इत्यादिक श्रीजी कामहिमा हममूर्खबुद्धिक्याकरस के साक्षात् वेदोर ब्रह्मा दिक भी नहीं कर सकते है इसवास्तै भोगमोक्ष का भी जो होवे उस के श्रीमत्परापादाब्ज ही आराधन करणयोग्य है यह सर्व शास्त्र सिद्धांत है इति श्री श्रुतिस्मृतिपुराणतत्र सम्मत श्रीपराशक्ति महात्म्याऽमृतवारीध शीकर कोटि कोटि भाग लेखः // For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 136 ) श्री शाक्तिकारोमणि वार्तामयी स्तुतिर्लिख्यते // हे अद्वैतानंददायिनि अद्वैतरूपिणि स्वेच्छाद्वैतललितचरित्रे शिवे तवपदाब्ज साधारण कलन अधिक हे जोवे पद्म है तेतौ श्रीकों स्वकोषविषराखै है। अरु येपदपंकज असंख्यभक्तनका अप्रमेयसदेवधनदेव है अरु वेकमल हंस हंसनीयां की पादाहति सदैव सहते है अस्येतुमारे पदपंकज हंसन के सदानमनीय है / अरु उनकंजांकाप्रफुलित होणा परतंत्र है / और ये चरनपंकेरुह स्वतंत्र शोभास्पद है / इत्यादिकप्रकार से उनवनजनतें चरण जलजात तुमारे अधिकहै / उन अरविंद का ब्रह्मानीचे को करता है। और तुमारे चरणां भोरुहकां ब्रह्मास्वमस्तकविषै सदाधारनकरे है इसीतरै आप की भुजलता कल्पलता तें अधिक है, क्यों कि कल्पलता निक. टवर्ती जन को प्रार्थित फलदेवेहै / अरुतवभुजलता निकट स्थ दूरस्थ स्वजनाकों अयांचाते ही फल देते हैं / अरुक ल्पलता वांछित फल देव है / अरु भवदीया भुजवल्लरी वांछातै अधिक फल दयो है / सुरथादि सुदर्शनादि नृपन अनेकनकां / और अन्यजाति भक्तन असंख्यन कां वांछा धिक फल दयो है / अरु देवै है / अरु देवेंगे // सोमार्कंडेया दि पुरानन विषै प्रसिद्ध है / अरु लोकविख्यात है फिर अनुभव सिद्ध है याही प्रकार / तब मुखेंदुको ऐश्वर्य लोकिक चन्द्र अधिक हैं किह प्रकार अधिक है सोइ कहतु For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 140 ) हौ कि वह चन्द्र दिनको छविमन्द होतुहै अरु प्रतियो सवह घट बढ होतुहै / यह चन्द्र दिनको छवि सुन्दर भक्त चकोर सुखदायी रहतु है / अरु यो सदावढ्यौ ही रहतु है / अरु जो जाड्यप्रद है अरु यह चैतन्यकारक है अरु वो चन्द्रसकलंक है / योनिस्कलंक आपतो है इहै परंतु यह सुधानिधि कोध्यान करनहारौ / अज्ञानकलंक रहित होते है / अरु वहांद्विजराज है / यह चतुर्दश भुवनाधीश्वर है अरु उनके आश पास तारे रहहुत है / अरु इनके आस पास कामेश्वर्यादि शक्तियां के कस्तूरी बिन्दुकालिमा मृगाङ्कित मुखचन्द्रशत हाजरी में रहतु है / अरु चंद को उदयास्त है / अरु यो सदा उदयही रहतु है / वहचन्द्रसा यन्त हैं वो सातङ्क है योनिरातङ्क है // सोतो हेई के परंतु इसके ध्यानकारों का यह निरातंक करतु है / वो चन्द्र दोषा कर है / यो गुणाकर है प्रकाशकारी है अरु वह गुरु स्त्रीगमनादिक अधर्मकारी है स्वभक्त समदर्शी नहीं है अरु तव मुखेन्दुका आविर्भाव भी धर्मार्थ है सर्व भक्त स्वे. च्छानुकूल सुखवरदायी है / वह चन्द्रसकामी वांछितहै यह चन्द्रसकामी अकामी दोनांको वांछित है वह संयोगी वि. योगी को सुखदुखद है / यह चन्द्र दोनों का सुखकारी है वह भोगद है यहं भोग मोक्षप्रद प्रसिद्ध है / वह कामादि विषयन में प्रेरक है / अरु त्वन्मुखेंदु तव दासनका विषय वासना छुडायसर्वं खल्विदंब्रह्मेति श्रुतिशिरोदित अनुभव सिद्धेन पुनः अहंब्रह्मास्मीति रूप सर्बानंदांतमूर्ति अलोकि For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 141 ) क अनिर्वचनीय अखंडित ब्रह्मानन्द कां देतुहै / अरु लोकिक चन्द्रउदय होत है। तब बाहर को अन्धकार दूर होतुहै अरु तावकमुखचन्द्रोदयांतर्वति द्विधा रूपतमकां दूर करते हैं अरु वो चन्द्र को दूरीकृत तम फिरके विश्व में छाय जातु है। अरु भवदीय मुखाखण्डकलानिधान है। ललिते एकवेर भक्तहृदय गगनोदित होकर माया जन्यतम को इस रीति दूर करतु है कि फिर के प्रादुर्भाव न होय नित्य प्रकाश नित्यानन्द ही रहे सो तव श्रीमद्वदनचन्द्रभुज लताचरन सरोजनसमलौकिक कलानिधिकल्पलताकमल नहीं है / तब चरनादिकन को कमलादिकन ते अधिक ऐश्वर्य वरनन कस्यो तिनहते अत्यधिक ऐश्वर्य हैं सो हम कहांतक कहैं अरु हमारी कहां सामर्थ्य है यथावत वर्णन सहस्रमुख सेषादिकन ते नहीं होतु है साक्षात् तो शब्द ब्रह्मवेदपुरुषभी नेति नेति कहै है / वर्णयन् विमुह्यति कुं ठीभावं प्राप्नोतिच / अरु जोकुछ किंचितमात्र जाने हे कहै है तो / तव प्रसाद ही जान है अरु कहे है अन्यथातव स्वरूप महिमा शिवादिकन केहुअलक्ष्य है // 6 // शाक्तिक शिरोमणी वार्तामयी स्तुति अथवा इन वार्तामयिस्तुतिका नाम // ललिता मुखचन्द्रिका ठीक है // अरु जैसा श्रीमद्भगवती का सर्वोत्कृष्टपना है अरु अलक्ष्य महिमा है इसी प्रकार स्तुति का भी माहात्म्य अरु फल प्राप्ति सकलशिरो मणि रसाभिज्ञलोक समजेंगे परंतु मदुपदेशात् कृतविश्वासा तदितरा अपिइदंसत्पमितिज्ञातुंयोज्ञाभवंतुं। हमारे पूर्वोक्त For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 142 ) उपदेश से कीया है। विश्वास जिनांने एसे जो शिरोमणी रसाभिज्ञ लोक जिनसे जो प्रथकलोक है वो भी सत्य है ऐसा जानने के योग्य होहुगे // // दोहा // अधम उर्द्धगति दा अलख, अविगत अमल अनूप / सबघटव्यापक सुंदरी, जय जय ज्योतिस रूप // 1 // हेलहि महिषादिक हने, असुर घने अघरूप / सो मोमन पंकज वसो, सुभकृत ज्योतिस रूप // 2 // ईष सरासन करलसित, मन्दहसित मुख जास। करि अनुकम्पा मो करिहु, ललिता हृदय निवास // 3 // वरन अंब दरसन चषन, तन मंजन तिह तोय / करन सदा पूजन कर्म सरन चहासुखसोय // 4 // दूरकरहु दुरवासना, तो उपासना मात / सुद्ध धर्म अनुसासना, तुल्य जासनातात // 5 // ॥सोरठा // पापी हीन प्रबोध, व्रतसंयम नहि नियम विध / सकल सुरन मधसौध, त्रिपुर सुन्दरी सरन तव // 1 // // कवित्त इकतीसा // श्रीमद्वदनचंद्रस्तुतिरा सर्वगुणाकरमुषचंद्र अंबरावरो है, वहे चंददोशाकरनामजगपायो है, अंकितकलंकवहेयाहेनिकलं कसदावो है, दिनदीनयह सुंदरता छायो है। घट वढ जात वहै रहतबढ्यौ ही यहै, क्षयीवहअक्षययौ सब मन For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 143 ) भायो है, तो मुष असमशीलसम रजनीकर कां मेरेजांन भ्रंगीपान कर ठहरायो है // 1 // हंसमन भायो हैं सुगंधसरसायो हैं जु देवता न पित्रनको कबहू न भोग्य हैं अंतरीयबाहरनितांततमनासक औभासक सरब काल सजन मनोग्य हैं / सोहन कलंकही न होय जो सुधा करयो दौसाकर नाम शीलछाडके अरोग्य है, विधिनांवनायो हैं उ. पनिषदगायो हैं तो तेरे मुषसाथ अंबतुलबेकांजोग्य हैं / 2 // सीतकरया को जगनांम जो कहै तौ कहो तीनविधतापहु मिटावनको ग्यांननां यद्यपिसुधाकर वोदोषाकरनामी तब तो मुखसुधाकरगुणाकरसमांननां / फूलैजोकुमोदनीतौता तैकहावृद्धिभईसजनमुखकंज फुलायब की जाननां / यातैजग दंबतेरे श्रीमुखसमान सदाश्रीमुखहीसौ हैं, महातेजपुंजाननां // 3 ॥ॐपरमेश्वर एककनेक भयो जगरूप सुतो करिअंबनयो / विनुइंद्रियअर्थ गहे गहि अर्थर है, त्रिहुकाल अलिप्त. भयौ ॥गुरुनाथप्रभावते योमहिमातोहिजांनतजो सुषतेजुछयौ। पुनताकरितोकरिभेदनजांनत ताहिनै विश्वमैमोक्षलयो॥४॥ परमेश्वर की परशक्ति तुही सहजात्रिपुरेतदभिन्नसदा / बलभाग्यसईशताताकी तुही भयमानतवासवआदिजदा // हर सिद्धि तुही जग सिद्धि तुही परवस्तु प्रकाशिनी तुंसुखदा यह मांगतहांसबठांतोहिरूप लषांजगदंबजदाहितदा // 5 // जानतनांहिहुतोसपने यह लायक पापको फूल्योहजारो / सुक्रतकोकबहुनकियो मनचिंतितही गयोवीत जमारौ // पैंजननीनिज और निहारके कंचनकांकियोदासतिहारौ / पा For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 144 ) यलगायलयोजगदंबभयौ मनवांछितकांजहमारो // 6 // रूपनिहारत मो अंखियां वसकर्मकबैनटरोमतटारी / निर्मल चित्रचरित्रकथा सलितारस जुग्मश्रुतीपनिहारी // कंचन श्रीत्रिपुरे शरणागत वत्सलऐही है आसतिहारी। मोहनीमू रत तेरिवसौ मनपंकज होऊ कमतन्यारी // 7 // जाके अग्ररहत कपालीकरजोरेसदा, कोटिब्रह्मांड होतजाके भोहभंगरौं / निजाभिन्नब्रह्मरसपीयतनिरंतर ही शिवशिव रूप होतजा के ही सुसंगतै // कंचनविरंचविष्णुप्रआदि सब देवकहा थिरचरविश्वसबभयो जाकेअंगतें / कामजगजीतभयौ जाकीअनुकंपाकरि ताहिजगदंब कोमेवंदतउमगतें // 8 // पंचसरसौउपुनसुमनकेसो है सदा ईषकोवाकुसुमको चाप करराजे है। ज्याहै भ्रमरालीमयी सुभट वसंतजाके सीतल सुगंध मंदेपोनरथसाजे है // सेना अबलान की बनाय जगजीतलयो नायक अनंगहें कैत्रिभुवन गाजे है। तेरेपदपं कज प्रणाम को प्रभाव अंबत्रिपुरेजगतसीस छत्रहैं कैछा जै है // 6 // कोटि कोटिसोमसौसरूपसो है. कोटि कोटि चंचलाछंटासीतन सोभा उजियारी है / एक जगतात. अरुएक जगमात एक वस्तूद्वै. भांतिहुँ के महिमा विस्तारी है // शब्द अरुअर्थचंद्रिका प्रकाश सूर उश्मता अग्नि ज्यां ही मिलित सुषकारी है / परस्पर ध्याता भोगमोक्षहू के दाता ऐसे शिव अरु शिवाजू को वंदना हमारी है // 10 // एक कोऊ रंभासुर नाम भयो तातै रुद्र पर कीनो उग्र तपता For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 145 ) प्रभाव ते तापर प्रसन्न कह्यौ वरंवहि वोल्यो वह होहु पुत्र तुम मनभावते // शंभु कह्यो ऐसे होहु भयो सो महिष ताने जीते सब देव महाबली जे कहावते // कीनौ धर्मवाध यात मारलीनो भद्रकाली दीन्हो पद दिव्य जहां जोगीजन जावते // 11 // जब जब भीर परे ब्रह्मादिक देव नमें तबतब कहै मात तेरे हाथ लाज है / सुरथ समाधि आदि भक्तन अनेक तारे मारे महिषादिदुष्ट धरमकी पाजहै। रुद्र ओर विरंच विष्णु पावत न पार रहै जाकी अनुसासना तै तत्पर स्वकाज है / यद्यपि करौरै पाप कीनै धाप धाप तो ये करुना समुद्र मेंरेशर्म हिंगलाज है // 12 // जाको नाम लेत महा पाप उप पाप सब दूरहोत पूर सुख संपत समाज है / नानाविधि कोटिदान विप्र सनमान युक्त दियेतें अधिक जाको नामफल गाज है॥कोटिब्रत कोटीजग्य कोटी तीरथाव गाह समनहि ताके ताप दूत जमभाज है / यद्यपि करोर पाप कीनै धापधाप तोपै करुना समुद्र मेरेसनं हिंगलाज है // 13 // त्रिपुराअभिन्न रूपराजेनिजग्यानघन जाकी कृपाद्रष्ट होत कटे पशुपास है / जो गुरुपदारबिंद धाराम करंदकीतै न्हावेहोत त्रिविधमल को विनास है // जाकै पर साद प्रानी सदा शिवरूप होत पिंड ब्रहमंड होत जाके दासषास है। जाकी अनुकंपा करि आठों जामरही मेरे जाही को सुचितवन खास प्रति खास है // 14 // ईषको धनुषबान पुष्प मयी राजैजाकै करतल स्वर्णपास अंकुशभ जाम्यहं / गंगतै अमल है प्रसिद्ध वेद तंत्रवीच अधम उ For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धारनी को चरित्र स्मराम्यहं // पंचमुख चारमुख रटत सहस्रमुख नामजाको ताकोही निरंतर जपा म्यहं / भक्त भीरभंजनी सुरंजनी कृपाब्धि मध्य मंजनी निरंजनीके चरननमाम्यहं // 15 // सारद संपूर्णससी सोहनो वदनजाको शशी रंग अंग सो है #भूषन बसनहै। श्वेत अंगराग कर कमल विराजै कंज पुस्तक कास्मीरमालाशुकस्वेत तन है // मंत्र मय निजानंदरूपकां जपतत्रिहदेव तोकांसेवैकरैजडता कदन है। भारतीतूंभवसिंधु आरती हरनहारी टारती वि. घनवास करऊ वदन है // 16 // वषांनततरौरूप सगुननि गुनवैद पैनलहै भेदभानुउदितसंकाशिनी / अतुलअपार सा रमहिमाउरधार के भये पंचदेवतेरे मंचमंदहासिनी / कंच नकहत निजगौरवकृपातै अंवलीला तैसकलवेदतंत्रअनुसासि नी / सुधासिंधुवासिनी प्रकाशिनी परमतत्वनासिनी। असु रहोहुहृदय विलासिनी // 17 // // कवित्त // रुद्रओसदासिवमें सूरजविनायक में, विष्णु और विष्णु. हुकी मायाके विलासमें / धरनी सलिलवात मित्रमें समीरन में, त्यांहीद्विजराज तारागनमें आकासमें // वेदमें पुराननमें सर्वोपरतंत्रनमें, राममें रहीममें कुरान अवकास में। नरऔर नारिन में चराचरविश्वहू में, जितजित देखहु तित त्रिपुरा प्रकास में // 18 // त्रिपुरास्वरूप समरस सुखसिंधू जामें, मेरोमन मीनजुगजुगमें पड्यारहै / जाग्रतविषय मनजीवन केजैसे, मेरेत्रिपुरा सनेह ज्ञानदीपक जग्यो रहे // त्रिपुरा For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 147 ) विसुखजन दुर्जनकनक कहै, ताकी नीचसंगति सों मौमन भग्यो रहै / यहीहैत जाचत बिने जुतस इवनसां मेरोमन घोंसनिसा सेवा में लग्यो रहै // 2 // हात नहिप्रयागादि तीरथ सलिलतोहु हातभयो उज्ज्वलमें छुट्यो पापधेरोहै / हठ और राजयोगादलें अनेकविध साधे नहीं साधे मेरोमियो विश्वफेरो है // पढ्यो नाहिवेद अरुतंत्रन पुरानकछु पढ्यो सब शास्त्र भयोउरमें उजेरो है। दासदुषहारी समरस सुख कारी एसीत्रिपुरा उपासन में मौसुख घनैरो है // 3 // वि. नायक ब्रह्महमें सूरजहरिरुद्रहू में भैरवभगेशहमें मेरीमात नेरी है / दत्तऔर दिगम्बर जलंधर मछन्दरमें गौरखकपिल देवमूरति मैं हेरी है, कंचनकहत गुरुनाथ में निरंतर हू त्रिपुरे त्रिसक्तिहमैं आनंदघनेरीहै / थिरचरविश्वब्रह्मसगुन निगुनहमै जहां होत निश्चय तहांही जोततेरी है // 4 // ॥सवैया // रावरो श्रीमुखइंदुविलोक चकोर भयोमनमेरौ सुभाई / त्यांतुवनासिका दीपपतंग भयोमनमेरौ निहार निकाई // चं. चलमोमन मीन भयोलाख के तनपांनपकी सरसाई। मामन भोरभयौ लखिकै पदपंकज रावरेश्रीत्रिपुराई // 1 // श्रीवि याया मातंग्यादि अंतरंग षट्सखी मध्ये कस्याश्चित्सख्या वचनं / यद्वा / कामेश्वर्यादि कस्या श्चित्सख्या वचनं // ॥सवैया // तनपानपहोज भरयौजु निरंतर पुनके जनके मन नहायत / रसमीन फुहारन की अवलो जिह देह की देख For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 148 ) खरौ सुखछावत // त्रिपुरा रितु ग्रीखम है जुमनां सुखसा। धन तें जु यह समुझावत मुखचन्द जु न्हाई सुहात सदा मुखदाई सुन सुधारस पावत // 1 // भक्त महिमा अज्ञनिन्दा सवैया // राग रु द्वेसनहीं हियमै सबको त्रिपुरा मय जांनत हैं। प्रेमपयोनिध माहिपगे परदेवता रूप वखानत है, ताहिको ध्यानधरै मनमें तिहभिन्न वृथा जिय जांनत है // अज्ञजो निंदत है जिनका तिनकां नितकोट कनांनत है // 1 // शंभू स्वयंभु कां जीव करे पुन जीवहि ब्रह्म करे मनभावें / वा. सवरंक करै पुनरंक कां वासव की पदवी पहुंचावें / सुक्रत दुक्रत दुक्रत सुक्रत कंचन चित्र चरित्रहि गावै // ताहि भजै हम तापद वंछत ताजगदंव कां सीस नमा // 2 // जाके भोह भंगहीत ब्रह्माविष्णु रुद्रकेते उपजे ओ लीनभए गिन ती को करलें / जाके ही पदाब्ज धलि धूसरित होय त्रिहु देव जगरचें पालें फिरके संहरलें // ध्यान धरै जांकोंही हृदंतर सकल मुनि उठिहू विलाय जात भवसिंधुतरलें। यह लोक सुखचाहैं फिर मोक्ष भयौ चाहे त्रिपुरा त्रयक्षर को नाम नित्य नरलें // 3 // पूरन सरद चन्द्र उज्जल वदन जा. को ध्यायो जब हियतम मायिक निकसगौ / जाके कल्पल तिकासीभुजलता छाह आयो तव जिय दयिनताप ता प्रता पषसगौ // जा के पद पंकज पराग लेचढ़ायो सीस तब ही तो मेरो मनभ्रंग तत्रासगो / जब गुरुदेव मोपें क्रपा के वतायदियो तब हि त्रिपुरारूप मेरे चित्त बसगौ // 20 // For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 146 ) ललिता परैशीमुष चन्द्र चन्द्रिका के अग्र नभ चन्द्र चन्द्रि कासु लागत कनीयसी। भक्त मनवंछिततें देत है अधिक फल जाकी भुजलता कल्प लतातैगरीयसी // देत पदकंज जाके सेवक को मुक्तधन यात अनकंजलबिलाजत लघीय सी / सुधाकर कल्पतरु कंचन कमल हुतै मुखभुजपद सो भा राजत वरीयसी // 21 // सरदराकेशमुख चंचल सुमीन नैन सीरूसीनासा अधरबिंबफल पाक्योहै। धनुषसीभों है द्वैज चंदसोललाटबांहै कल्पकलतासी गुरुजनयह भाख्योहै। कंचन कलससमकुचपानकरिबैकां कंचन विधीश विष्णु मन अभिलाख्यौ है / जैसो है त्रिपुरारूप तैसौ को वरनसके एक मुखवारौसेससैस मुषथाक्योहै।॥२२॥ रमावाक वांनीसव्यदक्षन चमर करे ब्रह्मपंच मंचवर आसन बिराज है / उदित सहस्र भानु प्रभासी प्रभा है जाकी महाविश्व सागर की दी रघ जिहाज है // याकलि करालबीच राषे भक्तलाजताहि सेवत उमेशलीये त्रिदससमाज है / कंचनमसोचकर निश्चय विचारलेहु एसे जगदंबतोसे गरीवनिवाज है // ॥छप्यै // उदित कोटि आदित्य अरुन छवि अंग विराजत / श्री गजवदन गुणेश सकल श्रुति होहि सरासत / मधुझर जु. गल कपोल उपरि भ्रंगावलि झंक्रत मधुमानेमनुतोहि भक्त वछल जसगावत // कर कमलपास अंकुसवरद निजरद धारी सुखकरहु / शुंडाग्रवीज पूरक लसत नमततोहि सब दुख हरहु // 1 // For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 150 ) राग विलावल // तालजात्रा // सदासहस्रदल कमल गुरनाथ को ध्यान धर वराभयहस्त भुक्ति मुक्ति दायक // अस्ताई // चइल अवदात्तधृतमाल्यगं ध अवदात्तधृतविभ्रतखांक शक्तिनिज गुनन लायक // 1 // हीरमुक्तादि मनिजटित भूषन सकल अंग सब धरत सुख करत गायक // 2 // क्रांत अवदात मुष कंजनिज बोधदे दूर कृत दुकत मन बचन कायक // 3 // तत्वमस्यादिवा क्यलक्ष्य शिव शक्ति ऐक्य अब्याज भक्तजन मनसिधायक कंचन जिह चरन पर सादलिहे विमलभौ। त्रिपुरसुंदरीप दकमल चायक // 4 // राग चरचरी भैरव // ताल जलद तितालो // चितचरननकों चावे रीमइया चितचरननकोंचावे कोटभ्रंगभ्रंगकंजन ज्यां कंजन सुरजभावे // अस्ताई // // 1 // बिछिया अनवट चरनपत्रजुतनूपुर नादसुहावै / पद कंकण सोभापरिपूरण / सुभकारीरणकावे // 2 // धजाऊर धरेखाकुलिशांकित / शिवसनकादिकध्यावै॥ सरबतेजसोभा के आगर / सुमरतहीदुखजावै // 3 // विधिहरिहरजितनेस ब देवत / मोचितऐकनावै // कंचन दाससदातोयत्रिपुरे। जसगावतसुखपावै // 4 // ॥राग सोरट // ताल जलद तितालो // अथवा धीमो // आजम्हारो हो दुखसो हो दुरगयोछे // 10 // सोत्रिपुरामुख चंदनिरषके भक्तचकोरभयोछै // त्रिविधतापमिटगी तिहछिनही उर सीतलहीभयोछ। कंचनया हिमकरको उपासक ताकुसुष For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 151 ) हनियोछे // 3 // केई मैनहोइचरजाजविलोके // 10 // पूरनचंद्रसिंहासन ऊपरनाचतमीनअनोरे // 4 // कोटिसृर समतेजअरुनविच // अतिअंधियारहिपोषै // 2 // विनजिह धनुषयुगलकरविनहीतांनबांनदुखमोथै // 3 // देषकोइकचित्र अलौकिक अगणित पुण्यनलेणे मंदविकासकमलके भीत रझलकतहीरविसै // लपटरही नागनयुगहिमकरकंचन को भयो। हिमकर षंडदिसा युगपंकजपररमणीक संपये // इत्यलम् / / For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // श्रीः // श्रोमालिपरमविदुत् परमानन्द ऊत श्लोकाः // यः श्वोमान्मरुदेशवंशतिलकोवीरतालंकृतोयबंश्यैः प्रहता हिताङ्गरुधिरैरैक्तीकतामहः // रक्तत्वनाहिदृश्यतेऽरिवनिताने त्राम्बुभिः क्षालितः सत्वं सौवनसिंह संजयममाशीभारतीय सदा // 1 // श्रीमन्तोवनसिंहधन्यभवतः पाणौ कृपाणंरणे॥ दृष्टु शत्रुमहीभुजां भवतुहेखड्गेषुभिन्नाहित / / अंगेवेपथुरंधता नयनयोर्वक्वेतृणंभूयसी भीतिश्चेतसिवाचिसंस्तुतिकथाहस्त द्वयंमस्तके // 2 // संग्रामेरिपुभूभुजांमुखरुचिर्जीवश्चदेवाङ्ग ना चक्षुप्रोल्लसदस्त्रमांसनिवबस्तन्मेदिनीमंडलम् // त्यागिन् धन्ययशस्विसिंहजनक भ्रातोऽस्तुतेप्याटसदाजंबजलबिन्दु बजलजवजंबालवत्ज्ञानिनः // 3 // स्नाताःप्रावृषिवारिवा हसलिलैः संरूढघासांकुर व्याजेनात्तकुशाःप्रणालसलिलँदैत्वा निवापांजलीन् // प्रासादास्तवविद्विषांपरिपतत् कुञ्यस्थापिंड च्छलान्नित्यंमानहरेशिशोस्वपमृतेभ्यःकुर्वतांपिंडमु // 4 // संग्रामोदिवसायतांतवभुजःपूर्वाचलेन्द्रायतां तत्क्रोधोऽप्यरुणा यतांतवल छौर्यप्रकाशायताम् // त्ववैरिस्तिमिरायतांतदबला हृत्सूर्वकान्तायतां त्वत्खड्गोष्णरुचेःप्रतापहरितातभातआ For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 2 ) शीरियम् // 5 // इत्याशीर्वादवचनानि // धत्तेसोवनसिंहता वक्रयशोरामेशशांकेमरु द्वाहेस्वर्गगजेहरेफाणपतौवाण्यांवृषे भेरुचिम् // अन्येषांचतदम्बरेतदहितेतद्व्यंजनतन्मदे तत्कंटेच तदीक्षिणेतदलकेतत्प्रोथकेतत्पथे // 6 // भांत्वासौवनसिंहम यंभुवनंत्वत्कीहिंसीगता व्योमब्रह्ममरालसंगमवशात्सातत्र गर्दिण्यभूत // पश्यस्वर्गतरंगिणीपरिसरेकुंदावदातययामुक्तं भातिनवीनमंडकमिदंशीतयुतेमंडलम् // 7 // अत्युक्तोयदि नप्रकप्यासिमषावादनचेन्मन्यसे तद्ब्रमोद्भुतवस्तुवर्णनवि धोव्यग्राःकवीनांगिरः चिह्न सोवनसिंहतेधवलिते की,विधी स्माचिराल्लोकेऽस्तोवतवुध्यतांकथमहोस्वामीति नाराव्यधुः // 8 // आलानंजयकुंजरस्यदृषदांसेतुर्विपहारिधेः पूर्वाद्रिःकर बालचंडमहसोलीलापधानंश्रियः। संग्रामामृतसागरप्रमथनकी डाविधौमन्दरोराजनाजतिवैरिराजवनितावैधव्यदस्तेभुजः॥ मन्येवारिजिघृक्षयाऽर्णत्रगतैःसाकंवजन्तिमुहः संसर्गात्वडवा नलस्यसमभूदापनसत्वातडित् राजन्सुज्ञतयाकमेणजनितो दैस्त्वत्प्रतापानलो येनारातिबधूविलोचनजलैःसिक्तोऽपिसंव ईते // 10 // राजन्सोवनपूर्वसिंहमदनलावण्यलक्ष्मीजुष स्त्वत्कीर्तेस्तलताकलंकमलिनोधत्तेकथंचन्द्रमाः // स्यादेवत्व दरातिसौधवलभीप्रोद्भुतीकुर ग्रासव्यग्रमतिःपतेद्यदिपुनस्त स्थांकशायीमृगः // 11 // चिंतागंभीरकूपादनवरतवलद्भ रिशोकारघट्यः // व्याकृष्टं निःश्वसत्यःष्टथुनयनघटीयंत्रनिर्मुक्त धारम् // नाशावंशप्रणालीविषमपथपतत्वाप्यवामनार्सहात्म नसंस्त्वरिनार्यः कुचकलशयुगेनान्वहंसंवहन्ति // 12 // For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोर्तिस्तवक्षितिपयातिभुजंगगेहं मातंगसंगमकरीवहिंगतरे षुत्यकाम्बरंभजतिनंदनभप्यगम्यं किंकिंकरोतिननिरर्गलतां गतास्त्री // 13 // लावण्यौकसिसप्रतापगरिमण्यग्रेसरेत्या गिनां देवत्वय्यवनीभरक्षमभुजेचित्रसदातिष्ठति // विद्यातेल युतःसुयोधनगरस्याधीश्वरस्यान्वरे दीपेनास्तिकवादघोर तिमिरप्रावेशएषोयतः // 14 // एकएवमहान्दोषो भवतां विमलेकुले // लुपंतिपूर्वजांकीर्तिराजन् जातागुणाऽधिकाः // 15 // दीनोहंयमतुल्यदाननिहितैरथैः कृतार्थीकतस्त्रैलोक्यफल भारभंगुरशिराः कल्पद्रुमोनिंदति // तत्वांसोवनसिंहयछभगि नोपाणिग्रहार्थं धनंयाचेमांतुनचेबंधोऽसिविवहमानंदिगन्दो परि // 16 // पाश्चात्यानीमान्युपजातिवृतानि // कथाप्रसं गानमिताक्षराशेः निःशेषविश्राणितकोषजातम्सुपात्रदानभव तोभवानी सिंहात्मजोमानधनाग्रयायिन् // 17 ॥बहुप्रदानां धुरिकीर्तनीयाराजन्नुदारामपिगांनिशम्य // स्वार्थोपपत्रिंप तिदुर्बलाशः वीमिकिंचिच्छृणुतत्सुधन्य // 18 // युग्मं पू ज्येषुभाक्तिःस्वकुलोचितातेशास्त्रेषुनित्यस्थिरबुद्धिराहो। अपूर्वमे तत्तवभूषणंयत् धर्मायहेवीतहिरण्मयत्वम् // 19 // तथाहि मूकस्यसुवृत्तिकारयशोभिरामसभंप्रसिद्धः // वृद्धेहिमांशो रमरैकलाक्षयो हाहन्तपीतस्यसुकीर्तनीयः // 20 // युग्मम् शरीरमात्रेणसुवर्णसिंह प्राभासिपात्रप्रतिपादिताः // मुनी श्वरोपात्तफलप्रसूतिः स्तंबननीवारहवावसिष्टः // 21 // त For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दन्वतोभूपधनभागन्यु द्वाहार्थमाहर्तुमहंयतिष्ये // स्वस्त्यस्तु तेधीरजलनेशून्यं शरदघननादतिचातकोऽपि // 22 // // श्रीः // पण्डितवर्य मनोहरशर्म कृतश्लोकाः // नृणांवरामीष्टफलंसमीप्सवोवजन्तिभूपालमतन्द्रिताइमम्। ददातिवांछाधिकमेवयाचितोहिरण्यप्तिहोनुपमःसुरद्रुमः॥१॥ पण्डितवर्य रमानाथ शास्त्री कृतश्लोकाः // आसीत्सूर्यकुलावतंसनृपतिः श्रीमानसिंहःप्रभु पालोघ सुशेखरस्थमणिभिः प्रोघृष्टपादाम्बुजः शक्रस्येवपुरसुियोधन गरीसंपालयन्सर्वदा योगीन्द्रेष्वपिसार्वभोमपदवीसंप्रापचासौ नमः // 1 // प्रतापरस्मिस्तस्यैववैरिपत्नि हदम्बुजम् प्राप्यवैना टयामासवानरींतुनटोयथा // 2 // वहूनजनयत्पुत्रानलेभे चात्मवत्सुतम् तदाश्रीनाथमाराध्यसलेभेचात्मवत्सुतम् // 3 // सर्वेषामेवलोकानांस्वर्णः प्रिथतमोमतः // अतः सुवर्ण सिंहोसावितिनामचकारते // 4 // सोवर्धतयथाकामोयुव तीजनमानसे सुतंवीक्ष्यसवर्धिष्णुःशान्तिमार्गपरोभवत् // 5 // अथसशास्त्रसरित्यतिमंजसा गुरुमुखशवतस्तुवितीर्यच For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अरिकुलं दहनेछुरभूत्स्मरं हरइव त्रिपुरान्तकविक्रमः // 6 // स्वसमकान्तिभरं प्रसमीक्ष्यतं स्वपरिवारगणैस्सहमन्मथः विजयितुंचसुवर्णहरि यो विविध गन्धयुतोपवनेमधौ // 7 // अथस वीक्ष्य वलंयुवतीजनं हिमकरद्युतिमाकलयन्स्वयम् // मृदुदृशैवसुवर्णहरिस्तदा परबलं स्ववशे व्यदधात्क्षणात् 8 // इतिविजित्य तदायुवतीजनान्सततपानविलास युतोधुना / / अपिसराजति हेमहरिस्तदा मधुवनोत्सुकरासकरोयथा 6 // भवानी पुत्रत्वं यदिगतवती सिंहपदभाक् तदाशंभ्वादीना मुदय उदगात्तत्सुततया // अहो सौभाग्यानां सरणिमिहसं प्राप्य समहा न्महायोगीन्द्राणामनुकरण मद्यापिकुरुते 10 // कुम्भोद्भवोस्ति गुरुभक्तियुतं सुवर्ण दानेतुकर्णइति संजगदु. बुंधास्तम् प्रज्ञांतुवीक्ष्य धिषणोस्ति निरंतरं सत्यंच धर्मइति तं गुरवोप्यवोचन् // 11 // चन्द्रन्तु पूर्णकृतियुक्तविधिर्विरच्य तद्योग्यकार्य करणेतु तमादिदेश // वसूर्यवंशज सुवर्ण हरेःसमानं रूपं निदर्शय सदायशसः सुदिक्षु // 12 // असो सकलसजना न्सुखयुजो वितन्वंश्चिरं समस्तगुणगुम्फिता कृ तधियस्तुसन्मानयन् गुरोःप्रणतिभिः सदा हृदयदेशमुल्लास यन्समा अनुपमाः शतं भवतुहेमसिंहप्रभुः // 13 // मयास्ख लितवाक्येनचरित्रंवर्णितं तव रमानाथेन कृतिनास्खलनं क्षम्यतामिह // 14 // धातूनां शुभरोचिषां गुरुतरं नामत्वया स्वीकृतं पंचास्येनयुतः सुवर्ण इतिसद्वर्णेश्च संशोभितः रूपेड पिप्रदर्शनोसि वचनैःपुष्णासि सर्वानतः सर्वे वर्णसमुच्चयाः खलुतवद्वारे लुठन्ति स्फुटम् // 15 // जन्म यस्यरवेशे हनु For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (6) रूपमिदं वपुः दीर्घायुभवता देव इति याचे पराम्बिकाम् // 16 // ॥समस्या // सुवर्णसिंहेन हरार्चनान्ते पुष्पांजलिः कीटयुतः कृतस्तत् पुष्पं विहायामृत पानलुब्धा पिपीलीका चुम्बति चन्द्र बि. म्बम् // 17 // वालमुकुन्द शर्म कृतश्लोकाः // श्रीमन्स्वर्ण मृगेन्द्रतेऽति विशदा मानोन्नतिं कुर्वते याः सर्वत्र सुकीर्तयः स्तुतिपरा नृत्यन्तु यद्भूतले // इत्थंबालमुकु न्दसुज्ञसुमना याचे सदाशंचते ब्रह्माण्डोदरमम्बुजासन पुनयतेन विस्तारय // 1 // मनीषिणां महानेको मानादान कृपानिधिः // हेमसिंहइति ख्यातो नाम्ना गुणगणैर्भुवि 2 // श्रीमति वरदारम्भे कृपाकरे सुदुःख हरे परेशि रक्षस्वर्णमृ. गेन्द्र कृपया युक्तात्वमेव सुखदात्री // 3 // मया कारीन्द्रा दीन्प्रतिकनकमोदस्त्वयिविभोऽधिकोद्याकृत्यातुप्रतिदिनमना यन्तसुकभाक् // महा योगीन्द्राणां झटिति हृदयाह्लाद करणी सुखाधिनाकार्तिस्तव सुखमवैत्वेवगुरुताम् // 4 // अवर्णनीयंभवता कृतं पुरा नौवर्णनीयं तवमेयशोऽमलं // तथापि त्वद्वाग्परि सेवनात्सदा सुवर्णनीयंच सुखप्रदं सदा // 5 // तृणायन्ते भूपाः सुकृतिहृदयाल्हाद कृतिमः सर स्वत्या लोके भवति रतिकीर्ति स्तव सदा // सुवर्णत्वं धन्या कृति विशदरूपीच सततं बरीवर्तात् मेघः शुभंगुणगणानां For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुवि विभो // 6 // कान्त्या चन्द्र मसंधाम्ना सूर्य धैर्येणचार्ण वम् // जेतुंस्वर्णमृगेन्द्रत्वं तन्वा दिग्विजये स्थितः // 7 // व शी धीरो वीरो विशद हृदयाल्हाद जनको धनैः कीर्त्यायु तो मधुरमृदुवाक् पाठिचतुरः इति स्वर्गे भूमौ भवतु गुण कीर्ति स्तवसदा सुवर्णत्वां पायात् त्रिभुवनमहेशी प्रतिदिनं // 8 // नृत्यतुभूषायुक्ता तव कृतवाणीश्वरी साक्षात् सर्वत्र सर्वदावै स्वर्ण ज्ञानां स्थिरीकृता हृदि सा // 6 // भाति जगत्रयभूषालंकृतिरूपा तवैव मुखवाणी // इत्थं मया सुवर्ण ध्याताध्यातुश्च सुखदात्री // 10 // ललिता गुणयुक् प्रथिता तवमुखकतिता सभासदांसुखदा / अनिरुद्ध भारतीशा ह्यनिसंभूयात्सतांचसुखदात्री // 11 // सदावाणी भासातवमुखगता सातिसुलभा सदा लक्षमी लोंके तव कृत करांभोजकुहरे सुवर्ण स्वछन्द सुकृति हृदया ल्हाद शुभगा मदीयाशीर्वादा द्भवतु गुण कीर्तिस्तव सदा // 12 // क्षत्रिय रामदयाल कृत श्लोकाः // श्रीमत्सोवनसिंह तुभ्य मनघस्वस्त्यस्त्वसंख्यं नमः सकाव्या रचनक्रिया विरुचये लंकार विद्यावते // श्रीमत्पा णिनि शास्त्र विज्ञ सदसि प्राप्ता प्रतिष्टायमे श्रुत्यायुक्तवि तर्क कर्म रतये तत्कर्म करें सदा // 1 // श्रुता प्रशंसाभवता स्व शास्त्रके मदीय चेतोऽतिसुहर्षतांगतम् // अखंडकीचिर्नु पतेत्त्वदी यिका प्रशंसनीयापिमयाद्यहर्षतः // 2 // परंस्वियंता For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (8) लिखितुं द्विजिहिका कथंसमर्थाद्यभवेद्धिलेखिनी // यतोनि वृत्ताःकवयोऽल्यबुद्धिना मयाकुतोवर्णयितुंप्रशक्यते // 3 // पुरातनीक्षत्रियवंशरीतिका स्वशास्त्रविद्याध्ययनस्ययापिसा / / अलंकृताभूपकिलाघसर्वत स्त्वयामहापुण्यवतामनीपिणा // 4 // किलायजातंममपूर्वजन्मतः सुकर्मभोगावदीयदर्श नम् // सदाहिषापछिदिहैवमादृशा सपुण्यपुंसां भयदायक चिराम् // 5 // __ श्री // मानसिंहात्माजेनेयं मरुभूमिर्विराजते // हेमसिं हेन सततं भारत्यासोपकारया // 1 // ययासंविश्रुताकीर्ती राजस्ते भुवि निर्मला // मन्येतयाभवद्वक्रे गिराकिलकृता स्थितिः // 2 // // श्री नावारापण्डित कृत श्लोकः // श्रीमत्स्वर्णमृगेन्द्रततिविशदा कोटीन्दुस्वछप्रभा कीर्तिः क्ष्मातलतोड़गातवपितुः कस्यालयेसंस्थिता ॥श्रीमन्मानमृगे न्द्रनामतरणेनि क्षपानाशिनोतस्यत्वं समभूस्तदाश्रितगुणं पातामुमामाधवौ // 1 // // श्रीराधाकृष्णाभ्यांमनः // टीका-हे श्रीमत्स्वर्णमृगेन्द्रतेतवकीर्तिः अतिविशदा संस्थिताअति विशदत्वे हेतुः कोटीन्दुस्वछप्रभा तवपितुः स्व For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (6) स्ति श्रीमत्सहजकरा करवालधाराप्रतापप्रतापितजगदखंड मंडलधरदीर्घतरकंदरालीन प्रतिपक्षिजनप्रस्तूयमान गुणग णग्रामस्य कत्तिःक्ष्मातलतःक्ष्मायाः पृथिव्याः आसमंतात्त लंभूम्यादि सप्ताधो लोकान्प्रकाशमाना तेषुअवकासरहिता ऊर्द्धगाऊर्द्ध गच्छतीसतीभूम्मादिऊोल्लोकान् प्रकाशमानाक स्यालयेसंस्थिता कस्यनागालयेसंस्थिता यद्वाकस्यब्रह्मण आलयेमोक्षेसत्यपिसिस्थता भविष्यतीतिशेषः कीर्तेः काला यछेद्यतासूचिताइति // कथंभूतस्यतवपितुः श्रीमन्मानमृगे न्द्रनामतरणेः पुनः क० मानक्षपानाशिनस्तस्यजनकजन्यसं वंधेनत्वंसमभूः अतस्तदाश्रित गुणत्वांउमामाधवौ पातामित्य न्वयः // है श्रीमत्स्वर्णमृगेन्द्रेतिनामप्रसिद्धयद्वासुष्टुअर्णानि स्वतः सिद्धानिअक्षराणिविष्णुशिवशक्तिसुर्यगणपतिरूपाणि तानिमृगयंतितेस्मार्ताः तान् इन्दयतीतिरायवितरणपूर्वक सन्मानदानेनइतितेकीर्तिः सुयशोरूपा अतिविशदा अत्यु ज्ज्वला अनहेतु कोटींदूनांस्वछाप्रभाइवप्रभायस्यासायद्वा // तृतीयासमासः तेतवपितुः श्रीमजनकस्यविद्वज्जनेभ्यः सर्व विद्यानिपुणेभ्यः रायः वष्टिवितरणवैभवमार्तंडलोदयेन दूरी कृतदरिद्रतिमिरस्य पुनश्च श्रीमजलंधरनाथपदवाच्यतावछे दकावछिननामाभरणभूषित श्रीगोवर्द्वनोद्धरणधीरभक्तस्यच कीर्तिः क्ष्मातलतोर्ध्वगासतीकस्यालये संस्थिता इति पूर्वमे वस्पष्टीकृतं. कथंभूतस्यतवपितुः श्रीमन्मानमृगेन्द्रनामतर णेरिति पदप्रसिद्धं यद्वामामंत्रे मंदिरेमाने अःशिवे केशवे शर्ये नोनरेचसनाथेपि इत्येकाक्षर कोशात्मश्चअश्चनश्च तेमा For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाः तान् मृगयति इति मानमृगः सएवईंद्रः सएवतरणिस्त स्यप्रसिद्धम् // यागवलत्वंसर्वेप्राज्ञजना एवंकथयंति महदुर्गे ऽति रहसिवहुसमाः स्थित्वासच्चिदानन्दघन मूर्तेरन्वेषणं कृतं श्रीमजनकेनपुनश्चमानेमृगास्तेषांइन्द्रः दंडदातृत्वेनप्रसिद्ध प्रतिपक्षिजनान् स्वस्वकर्म जन्यंविपाकंदत्वापुनः प्रजापाल नात्मके कर्मणिस्थितोभवदिति यद्वाअमानोनाप्रतिषेधे इति मानौनिषेधवाचक शब्दो तावेवमृगौतयोरिन्द्रः निषेधवाच क शब्द नाशकः अत्यौदार्यतयारायवितरणेन // अतएवमा नक्षपानाशिनः // ॥कवित्त गणेशपुरीजीरेकयो हुो // देयसुवरन ध्यानकरके जिहांनकर्न सुवरननामसौन सुवनधामभौ / भ्रंगकीट ध्यानठान देयसुवरनजान सुवरनधाम भोरु सुवरन नामभौ // मानवारेकारनसो मानवारो कार्य मानौ सास्त्रनप्रमानमान मानके ललामभो / सूरिनसमान करि अरिनअमानकरी मानसुत है मैं तूअमान जसदाम भौ // 1 // रावराजा सोनसिंहजीरो कवित्त कविराजाजी मुरारदानजीरेकयो हुप्रो॥ परमपवित्रहो प्रसिद्ध सर्बपृथ्वीमें नैकनचरित्र ताहांदेषी ये दिठानोंसो / भनतमुरार हो स्वरूपविश्वपूषनको भूषन जिहानहूको दारिदको खोनौसौः वारवार सुकविसुनारदेख्यो For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 11 ) तावदेदेः एकसोस्वभावसदा दूसरोनहोनोसोः दायकानंद नृपमानसिंह जुके नंदसोनसिंह तोसोः सबन्याय कहै सो नोसो // 1 // साधु भावनादास कृत श्लोकः // कथमत्यल्पकलिस्थः स्वर्णः स्वर्णेनयाति सादृश्यम् // स्वर्णोमानज शुल्की स्वर्णोऽयंमानजःशुभ्रः // 1 // ॥दोहा॥ लगुसोना कैसैलहै, सोभा सोनसमान / वहै अमानज मानीये, मांनज यहै महान // 1 // // लालचन्द्रजी के कये हुए कवित्त // गुनघनसारभारविरही लगावै अंगपारदकेधोके सिद्धगुटिकावनावे है / कुन्दओ चंबेलीजुही जांनसुरसासधरे चन्द्र मानकै चकोरचित्तहर्षावे है // लालचन्द तारागनगणक गणित करै वज्रमनिहार अभिसारकासजावे है / कीरति तिहारीभारीविभ्रमविलोकदेत रावराजा सोवनसिंह सबकों सुहावे है // 1 // // कवि पत्नी की उक्ति // काहेकों कलपशाखी वृथाचित्त राखी आशका है अभिलाखी भये सिद्धनसमाजाको / चिन्तामनि चिंततहो काहै काज प्राणपती कामधेनुकथारति करो काहाकाजाको लाल For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चन्द पारसकोकारस विचारोकंथ रसायन चायन उपायनसमा जाकौ / भरोसुखसारोचाहो संमतहमारोधारो सुजस उचारोसोनसिंहरावराजाको // 2 // कविकी उक्ति॥मायादेतदीननकां जन जोगमाया तुहीपाया है प्रमोद भक्तिप्रेमरस छाया है / गाया है गुनानुवाद जोही गुनभायाअच्छी आभा सरसा या वहै दर्षन लुभायाहै // लालचन्द भालचन्द जायामहामाया हिये आ रावराजा सोनसिंह ध्यानदर्शाया है / भाया गुरुग्यान दान सुजस उपाया अति कल्पकलता सैं कर कीरति कमायाहै // 3 // विक्रम के विक्रमकों विक्रम कियो है निज विक्रम अनुक्रम में दीन दुःख मेटे तै विद्या के विनोद वरबोध अनुबोध कर ब्रीडत गुरुकुं कीयो काव्य न झपेटे तै लालचन्द लक्षथूल स्थूल लक्षलोकन को राव राजा सोनसिंह जगजस भेटते मानसुत सुषमा सुमेत कर हेत देत कीरतकां लेत भोजकर्ण किये हेटे तै // 4 // योसवाड़े कवरजी के गुरुजीके कये हुए श्लोक // श्रीमद्योधपुरस्थस्य शोभनाख्यमहात्मनः // व्याप्तंचराचरंसम्यग् मार्तण्डइव तद्यशः॥१॥शोभनाख्यो विभात्येषो विद्यानांचेभास्करः॥ आनन्दो भवतेयस्य प्राणिनांदर्शना. दिहः // 2 // गुणागुणविवेकज्ञो यतिराजकृतादरः // प्रतापी शोभनाख्योऽयं सुतरांराजते क्षितौ // 3 // भवान्हिसर्वस. त्वेषु पुण्यकर्मणितत्परः वलवानपिनमात्मा शोभनाख्यो For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महीपतिः॥ 4 ॥विद्याप्रसिद्धोजगतांहिपूज्यः प्रतापवह्निःसुर सेव्यमानः स्वयंप्रभुः सनशशिकांति कान्तिजिज्जीयाद्भवान् शोभनशिंहवर्मा // 5 // महाकीर्त्तिविभत्येषो धर्मेण समलं कृतः // सुनीतिः प्राप्यतेयरय सर्वेषां दृष्टिमात्रतः // 6 // शास्त्रीय प्रौढशक्त्या जनचयजडता मूलमुन्मीलयन् सन् यद्वाक्योहामधाम्ना गुणिगणतरवो रोपिताःपोषिताश्च यस्य प्रोद्यत् प्रतापात् प्रकटमधिगता पूर्व गुप्तासुविद्या प्राज्ञज्ञो व्याहताज्ञस्सजयति मतिमान् शोभनाख्या गुणप्राट् // 7 // पाणिन्यादि मुनित्रयोक्ति लतिका स्वान्तोपभूमौ, मया न्यस्तासारस काव्य पुष्पसहिता संवर्द्धितव्याविभो श्रीमद्राज कृपाकटाक्ष सलिलैस्त्वंह्यर्थिना मर्थकृन्नूनं नीतिसुलोचनः खलुनृपस्त्वत्तोनभिन्नः परः // 8 // दिशाईदिशान्तं भवदत्त द्रव्यं गृहितं मयाविद्धि संग्रामसिंहात् नमसौख्यशेषं विधत्ते कदाचिन्मनश्शोभनाख्यस्य कीर्ती भ्रमद्वै // 6 // शौर्य प्रगीतो भुवनैकवन्धुः कासुपूज्यो हरिवंशकेतुः गुणाम्बुरा. शिर्गुणसौख्यकांति(रोभवान् शोभनसिंह वर्मा // 10 // विभाति विद्वान्वतिनांमहात्मा धर्मप्रभावैःपरिसोभमानः // विपाटितं येनसदारिचक्र विद्याविनोदेस्सुतरांसमानः 11 // तीर्यक् पतत्खञ्जनमञ्जुलेक्षणा विचन्द्र चन्द्राभशुभास्यप जः शिरीषमाला समकोमलच्छविर्जगन्नृपं चोरयते सुदा नतः // 12 // पुण्यंप्रज्ञस्सकलनिलयः सजनानन्दकारी योगाभ्यासी जनितसुकृतोनातिशास्त्रैकसेत्ता सौख्याचारो भुवनविदितस्सर्वदाद्भुतभूतिः कीर्त्यापूज्यो गुणिगणमणिः For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (14) शोभनाख्यो सुशीलः // 13 // धर्माचारो गुणगणतरुःसिंध सारैः सुपूज्यः साधुश्लाघ्यो विनयसहित श्चारुचामीकरश्री योवैसश्वत् सुकृतिसहितःसर्वविद्याभिरामो मायाहीनोविनय सहितः राजते शोभनाख्यः // 14 // पन्डित वर्य श्रीरामकृत श्लोकाः // केरम्याः कथकेषुकेनबलिना चामारि वृत्रोवली केवासं सरधौव्रजन्ति जनितो रूपंकथंस्याञ्चिणि योषित्का नृपते मनोरथवहाकंस्तौतिलोकः सदा मत्प्रष्णोत्तर मध्यमाक्षरपदं श्रीस्वर्णसिंह ह्यवेत् // 1 // नाथ गुरुप्रभवोऽपि गिरजादत्त सहाय विवर्द्धयशा हरिरिव स्वर्णमृगेन्द्रःस्वर्गेभूमौपरंजयति // 2 // मानजमानं मातुमाताऽपि मानजानेशा कथमेते प्रभवः स्युर्मातुंतेऽमानजामनुजाः // 3 // श्रुत्वौदार्यमनुत्तमं धनपतिःखिन्नस्त्वदीयंहियादिकान्ता भिरपारकीर्ति गुणजांशा ढींदधद्भिर्मुदालंकां हेममयों विहाय गुणवान् प्रायोवदर्याश्रम प्रेच्छञ्श्रीदयित प्रसादममलं नाथायितं चोह्यति // 4 // एकादशरुद्राणा मेकागौरीत्यनौचितिं मत्वां मानज किलतव यशसाह्यपिगौरीकृताहरितः // 5 // पन्डित ठाकुरप्रसाद कृत श्लोकाः // कांन्तारस्ययथाग्निरोषभयत स्त्राणार्थिनोवाग्मिनो नास्त्य न्यो जलदंसुशोभनमृते शान्तिविधातुं क्षमः विद्वदैन्यकृशा For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (15) नुतापशमकः श्रीमानसूनुं विना सौर्योदार्ययुतं तथैवसुधियो दौर्विध्यसंत्रासतः // 1 // संसिच्यभूरधकुलं तपनातितप्त मुदण्डदावदहनानिचकाननानि नानानदीनदतडागशतंप्रपूर्य रिक्तोऽपि रुक्मजलदः परमाऽस्यशोभा // 2 // सोयं सुवर्ण जलदोबुध सोनसिंहोनस्याद्धिमानतनयो बहुमानपात्रः नाना दिशागततृषाकुल पण्डितेभ्यः कःकर्तुमीशइहवारिमयीं स्थलींवै // 3 // दृष्टामयानृपतयः सुधियोधनाट्या एकेयुताः परिमलेन परेधनेन स्वर्णेनसौरभगुणेन च भूमिलोके युक्त स्त्वमेवनरवीरविलोकितोऽसि // 4 // लक्ष्मीः सदावसतुते भुवनेविशाला वाणीविहार मनिसं विदधातुबके देवीकलाः कलयतांतव सर्वगात्रेचिछक्तिराश्रयतु शोभनतेहृदब्जे // 5 // दौर्विध्योपहतोयथावहुधनंचान्द्री चकोरःप्रभां तृष्णातःसलिलं क्षुधापरिहतः शाल्योदनं भोजनम् विद्यार्थीस्वगूरुंच शास्त्रकुशलं रोगार्दितोभेषजं तद्वत्त्वां सुधियंस्मरामिसततं श्रीस्वर्णसिंहहृदि // 6 // वाग्देवतात्वद्वदनस्थितावै लक्ष्मीः सदात्वद्भवने वसन्ती चित्तं त्वदीयं शिवशक्ति समाचत्रं सिताकीर्तिरितादिगन्ते // 7 // श्रीमालि वर्य पण्डित छगनलाल // कृत श्लोकाः॥ भवस्य सगर्थिति नाशहेतवे यस्याअपाङ्गप्रभवा अजाद यः वपुर्णहे सा तव चिद्घना जया सुवर्णसिंह स्फुरतान्निर न्तरम् // 1 // चराचरविधायिनी जनसमीहितार्थप्रदा सुरारि For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 16 ) कुलघालिनी गिरिश वामभागे स्थिता जगज भयहारिणी निखिलचित्तसंवासिनी तनोतुगिरिजासदातव सुवर्णसिंहस्य शम् // 2 // ऋद्धास्सन्तु सहस्रशो नृपतयः किंतैरपात्रम्भरै भूपत्वविभवेन भासि लघुनाऽपर्थ्यर्थ संपूरकः दावज्ज्वालक राल शान्तिसुभगः स्वल्पोऽपितोयप्रदः श्लाघ्योनैव सतद्य शांसिलभतेयः लावत्यूपरम् // 3 // राष्ट्रोदामल वंशकंज त रणेः ख्याता मलानेजनिर्विद्वन्मान महीपते गुणनिधेवाहुप्र तापानलैः प्लुष्टाराति कुलातकीति धवलीसंसाधिता शादि ति युक्तंसर्वगुणो भवाननुसरेत् कार्य सदाकारणम् // 4 // दृ प्टेगोचरतांगतं तव महोदार्योद्भवंवै यशः स्त्रीणां विभ्रममा वहत्यतितरां क्रीडापराणां हृदि ज्योत्स्नाश्चंन्द्रमसस्त्विमा इति झटित्याश्लेषविश्लेषितं हर्षमानद मानभूप तनय प्राताचकोरी पुनः // 5 // कल्पद्रुः सजडः शशी क्षययुतो धेनुः सुराणां पशुः पाथोधिलवणः स्मरोऽतनरसो जिश्णुस्सरन्ध्रः सभीः ज्ञात्वैतत्सकलं मयाह्यनुचितं सौवर्णसिंहस्यते सौज न्यामृतवर्षिणः सुयशसः केनोपमामीयते // 6 // यादृग्गुणं वस्तुभवेद्धितादृशं गुणं प्रसृते प्रकटंच तन्नृप सुवर्णसिंहोपि महन् सदार्थिनेददासि दुर्वर्णचयानिहाद्भुतम्॥ 7 // देशवीर मरावधर्म वहुले दौर्जन्य दोषाकुले लुप्तांप्रेक्ष्यगुणज्ञतां क लिवशात्सौजन्य लघ्वादरे देवादर्थिवशादिहेत विदुषां कामोवृथा मास्मभूदित्या लोच्यविधिय॑धात्त्वयि विभोकृत्स्नां गुणग्राहिताम् // 8 // दाने कर्णइवाऽपरः सुरगुरुर्नीतीहि का. व्येकविः तेजोभिस्तपनः शिविः सुकृपया शौय्येर्जुनस्त्वंकृती For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 17 ) गाम्भीर्येण सरित्पतेः सुचरितै रामो रमाया:पतिः सर्वेषां सुलभी कृतास्त्वयिविभो धात्रा समस्तागुणाः // 6 // देहे श्रीहदिचिद्घनाच विजयो दोर्दण्डयुग्मे सदाकण्ठेगीर्वसता द्यशोऽस्तुविपुलं धर्मेदृढासंरतिः औदार्य चकरे क्षयंचरिपव स्संप्राप्नुयुस्तेऽनघजीवत्वं निजपुत्र पौत्रसहितः प्राज्ञःसहस्रं समाः॥ 10 // दुग्गांधाचनदी मिवाकृतधियां मूकस्यसर्वार्थ दां दृष्ट्वापञ्चशती सुधागुणभुतां शब्दार्थदुर्गा कवेः चित्रालंकृति रीति वीचिरसला भूयात्सतांतुष्टये तद्व्याख्यारचितेह मङ्क्तुमनसां सोपान पंक्तिस्त्वया // 11 // गुणरत्नाकरस्येह स्वर्णसिंहस्यतेनृप // शेषोनेष्टे गुणान्वक्तुं छगलस्तुकथं कुधीः // 12 // // इत्यलं शुभंभूयात् // // जोतिर्विद घेटुशर्म कृत श्लोकः॥ श्रीमानसिंह नृपनन्दन हेमसिंह कीर्तिश्चतेऽत्रप्रथिता विपुलाच लोके दानेच भोजसदृशी निखिलेऽन्य कार्ये त्व य्येवयावसति साजनकेच नित्यम् // 1 // सुब्रह्मण्यशास्त्रि कृत श्लोकौः // मानः किंज्वलयेत्प्रतापनिलयः क्रोधेनसूर्यान्वयः किंवा मत्तमतंगजैर्विदलयेकिंवा हयैश्चूर्णयेत् योमांस्थापितवान् वशिष्ट मुनिराट् त्रायेत किंवा नवा इत्थं चिन्तयते सनिर्ज रगलद्वाष्यो भयादवि॒दः॥१॥ प्रासादं मणिनिर्मितं कुटिमि वज्ञात्वापलाशार्जितं राज्यंदन्ति तुरंगमप्रमृतिभि खिंचरे For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 18 ) णूपमम् त्यक्ताधर्म विलोपनस्य समये मानोमहीवल्लभः कान्तरंतपसेययौ मुनिरिवध्यायन् परंचेतसा // 2 // पण्डित हरकिसन कृत श्लोकौ // सप्ता भवन् मानमृगेन्द्र सूनवो विभूतिहर्यक्षमुखाः मनोहराः // तेषांसुविद्या व्रतधर्मशीलवान् दानीभवान् भो जइवाऽपरोऽभवत् // 1 // भगवती भवभीति विनाशिनी सब जभंड विनाशन कारिणी // त्रिदशपालिनी भक्तवरप्रदा तवकरोतु शुभंललिताम्बिका // 2 // दाधीच आसोपा पण्डित बलदेवात्मज पण्डित रामकर्णस्य कृतिः // श्रीसूर्यवंशप्रभवे विशाले राठोड़वंशे मरुभूमिपालः // मा. न्योवदान्योऽजनि मानसिंहः सामन्तचक्रार्चितपादपीठः // 1 // मांलक्ष्मीनयते बुधेषुनितरांकृत्वा परीक्षांस्वयं तस्मा न्मानमहीपतिः प्रभुरभूदन्वर्थनामा मरौ // तत्सूनोश्च सुव र्णसिंह विदुषः संज्ञा यथार्थाऽभवद्विद्वत्वेनच कांचनस्यनित रांदानेनदीप्तद्युतेः॥२॥ विद्वत्त्वमेतस्य विभातमेतत्कृतिर्विधत्ते रुचिरारसाला॥ निपीययस्याःसुरसं रसज्ञाःनिराकुलाःसंस्वदते सदैव // 3 // दानस्यतु कथाका वा वर्ण्यतेऽस्य महीभुजः॥ येन रङ्काः सुबहवो रावयोग्यपदाः कृताः // 1 // सोऽसौ For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 16 ) सुवर्णसिंहाख्योविदुषांमानवर्द्धनः // संयुक्तः पुत्रपौत्राद्यैः संजीव्याच्छरदां शतम् // 5 // युगशरनवचन्द्रेब्दे माघे शुक्ले हरेस्तिथीदत्ता // दध्यङ् कुलोद्भवेन रामेणाशीः सुखकरी भूयात् // 6 // // इति // soga#2OC For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only