________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 35 ) तमेसततम् // 17 // त्रिपुरेऽतुलितोमहिमा विराजते भुञ्जतोभोगान् // विगताहन्ता ममता त्वद्भक्तस्यैवनान्यस्य // 18 // पल्लवसुरतरुरूपा लोकोत्तरदुग्धपूर्णघटफाला॥ जयति हि का चिदपूर्वा संसृतिरोगापनोदिनीलतिका // 16 // अद्वयरसपरिपूर्णोहिमगिरिलतिकासमाश्लिषः / स्थाणुरपूर्वोजयति हि चैतन्यानन्दसद्रूपः // 20 // हिमगिरिजातापूर्वा लतिकाकापिचमत्कारिणीजयति // भवतिहितदर्शनतःस्थाणुःसद्यश्चपल्लवितः॥२१॥भक्तिददातिमुक्तिंसुक्क्यानहिदायतेभक्तिः॥ नृपपरिचारकयोरिव शिवेऽनयोगरीयसीतेभक्तिः // 22 // भक्तिस्तत्रहिमुक्तिःसहचर्यम्ब हिकथंनकामाक्षि / राज्ञींविहायचेटींसेवेतकोवैविचारसंपन्नः // 23 // चक्षुर्युगलेतरलां सरलां चित्ते शिवस्यकरुणांताम् / विरला भजन्त्यराला केशे कुचयोः कठोरतापन्नाम् // 24 // श्रुतिपथचार्यपि नयनं साजनमिव भात्यनञ्जनं ललिते // सत्संगत्या मुञ्चति कोपि न धम्म स्वभावसंभूतम् // 25 // श्रुतिपथचार्यपि नयनं चपलतरं वामगतिकमरिवलेशि / स्वस्मै नापेक्षितमाप कल्याणं दिशति कथं न दासाय // 26 // श्रुतिपथचार्य्यपि नयनं कारुण्यं यच्चशुद्धतां धत्ते ॥युक्तं परमंजनतां एगं कामाक्षि कथमरालत्वम् // 27 // अद्वैतश्रुतिचारे चारुाण नयनेतिशोभना करुणा / काचित्कामशिवस्य त्रातुं विश्व चमांजयति // 28 // कृपाम्बुधाराक्षालित सुजनस्वान्ता घपङ्कबाहुल्याम् // परचित्कलास्वरूपां शिवादिवंद्यां समाश्रयगंगाम् // 26 // यद्यपिनद्योवह्वयः सन्तिमहत्योभुविख्या For Private and Personal Use Only