________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 34 ) णकरणं चानन्दस्यान्वहंहरणम् // विपदांशोभाधरणं ममचिछक्तेहिविश्वसंतरणम् // 5 // करुणादृष्टापतितो जगदीशेश्वरि प्रबलपुण्योधैः // कामाक्षितेहिभक्तः पुरुषःस्याद्भोगयोगसंयुक्तः // 6 // स्वीयहेतिहित्वा भ्रूधनुषामोहनास्त्रदृग्बाणान् // तवहियुवाश्रितस्त्वां कामोजितवाञ्छिवे शम्भुम् // 7 ॥करुणारसंप्रवर्षति भक्तासितकण्ठमधहर्षती॥मंजुकटाक्षघटालीतव कामाक्षि हि शिवाय मे भूयात् ॥८॥प्रावृण्मेघालीवहि रसंप्रवर्षत्यहोहिपल्लवितंम् ॥स्थाणुं तमेवदृष्टया स्मितको मुद्याचकोरशीलधरम् // 6 // इत्यहोचित्रमितिभावः // द्विविधंरसंप्रवर्षति / ललिताकादम्बिनीचैका // कामेशेमायदीने शाारसैवकारुण्यम् // 10 // इत्यहोचित्रचमत्कार इति भावः // अधररसामृततृषितं स्मितगंगावारिवितरंती // प्रा. णप्रियतमाशं ह्यधिकंकुरुतेमहच्चित्रम् // 11 // इत्यहोघटनघटनापटीयसीत्वंतस्याः // क्षणचलिताधूलतिका / जगदु दयं करोति विकरोति ॥पालनमपिसाकुरुते किंतेकामाक्षि वि. श्वनाथाऽसौ // 12 // एषातेभ्रूलतिका ख्यातासंख्येयविश्वेषाम् // जनिपोषणलयकारक की कामाक्षिजीयात्सा // 13 // एषाक्षणेनविश्वं जनयतिहरते सुपुष्णाति॥भ्रूवल्लीतेमातः का जेशा केवलंहिशोभार्थम् // 14 // चंपकवाटीसदने चंपकपुष्पाभनासिकेललिते॥चंपकपूजितचरणे चंपकहारशोभितेनमः॥ 15 // चैतन्यात्रयलिंगे भवमानाप्यलिंगिनीध्रुवरूपा। विश्वसमुद्रं दृष्टाकाप्पद्भुतानीका // 16 // सर्वाङ्गैरनुरक्ता भवतीरक्तासतीहिसर्वाङ्गे // मन्येहिमगिरिकन्ये कामेशेप्रिय For Private and Personal Use Only