________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताः // ईशशिरोधिनिवासा गंगादेवि त्वमेवैका ॥३०॥करुणा यं तेवृणुतेतमेव मुक्तिस्तदैवकामानि // मन्येऽखिलादिगण्ये त्युभयोरनयोर्मतं चैकम् // 31 // कुटिला शरला भूयान्मूलाधारावलंबिनी काऽपि // भुजगी त्रिधामरूपा शिरसि शिवन समरसीभवतु // 32 // स्वात्मतया स्पृहणीया मनुभुबनानां यतोहि शोणासा / अथवाशुद्वारक्ता भक्तस्योद्धरणरागणी यस्मात् // 33 // श्रीशंभुनाऽनुभूतंपितुः स्वभाव हि कठिनयोः कुचयोः॥ तापघ्नं गिरिजेते सद्भक्तैर्दृगंचले सततम् वै // 34 // नीरागाऽपिसरागा शरणागतरक्षणे त्रिपुरा // निष्कामापि सकामा तस्यैवोद्धारणाय सा भवति ॥२५॥सवेषां स्पृहणीया ह्यन्तर्याम्यात्मरूपिणी हियतः। सत्यपि शुद्धा शोणा स्वानामुद्धाररागिणी यद्वा // 36 // शंभोर्भाग्यवशेन हि नीरागापि च सरागरूपवती / जाता हिमगिरिकन्या निरंजनापि साञ्जना भवति // 37 // नखमणिकान्त्याकृपया तमसांस्तोमं सतां हि हृद्भुबनात् // दूरीकुर्वन्त्याम्ब प्रकाशते वस्तुचरणंते // 38 // शरणागत संरक्षण पोषणकरणे विचक्षणं चरणम् // सत्सेव्याया गाढ़श्रेयस्करणं गृहीतमस्तीह // 39 // अतोमे निर्वाहमुक्तो च का चिन्ता न कापीति भावः॥ रजसा रजस्तमस्को योनायुक्तोहिविवृद्धशुक्ल गुणः। मातः पदपङ्कजयोः संस्तेसोऽभ्येति निर्वाणम् // 40 // चरणं चिन्तयतो मेचतो भ्रमरायते मातः // मुखचन्द्रं चतदेव हि तव दवि चकोरवदाभाति // 41 // मृगमदविलसितभाला करधृतमाला मुखाब्जमधुहाला // मानसमणिमयशाला नि For Private and Personal Use Only