________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (38) नोहरणं ह्यजरामरणं पराम्बायाः // 55 // कर्माधीनोऽहंते कर्माधीनं तथैव जगदीश्वरि वारय कर्मविपाकं स्वरूपभूतं प्रदेहि मे प्रपदम् ॥५६॥अमलं तव पदकमलं समलं शुद्धं सुवित नोति // मामखिलेशि शिवेशि हि मम हृत्कमलेऽस्तुवासोऽस्य // 57 // जयति त्रिपुरात्रिपदं प्रकाशविमर्शसामरस्याख्यं हि // तुर्यं निर्वाणाख्यं वेदशिरोऽलंकृतीभूतम् // 58 // सं. मृतिसमुद्रपोतं नानानन्दैकदायकं पुंसाम् / श्रीत्रिपुरापदयुगलं श्रीगुरुकृपया मया लब्धम् // 56 // द्रढतरगुणैर्निववा ललिते मां तावकैः परमैः / पशुपतिभावं नीत्वा पशुता प्रोत्सारणीया मे // 60 // चरणे भवभयहरणे रम्यरणन्नू पुराभरणे / अरबिन्दश्रीहरणे स्वान्तस्यादम्बते हि शिवकरणे // 61 // कमनीयं चरणयुगंसत्पुरुषाणां सदैव शरणीयम्। भजनीयं ते शोभन ब्रह्मादीनां सुनमनीयम् // 62 // धाम्ने त्रिलोकधाम्ने परिमितनाम्नेऽतिचैत्याव / प्रस्फुटललितानाम्ने कारुण्याय लुभ्यते मे चेतः // 63 // श्रीसर्वान्तर्यामिणि जानासि त्वं मनोगतं सर्वम् // एवंकुरु मा चैवं कथयामि तवाग्रतः किमतः // 64 // हरिणाङ्काङ्कितभालं करिणामीश्वर इवास्यसंचालम् // कुचकलशभारखिन्नं ब्रह्माभिन्नं तवेशि रूपमलम् // 65 // नलिनीदलगतजलवत् स्पृशति न यं देवि कर्मलेशोऽपि / वन्दे तं तवभक्तं अन्तरशक्तं हि कर्मकुर्वाणम् ॥६६॥अलकावल्यलिमाला शोभितपङ्केरुहाननं यस्याः / चित्रं स्मितकौमुद्या स्तमोन्तरीयं हरत्याशु // 67 // कामशिलीमुखन यनं तच्चापभ्रूयुतंकृत्वा // दृक्चाराक्षेपेण हि For Private and Personal Use Only