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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 117) है जहां तहां इनको आधिक्यशास्त्रन मै वर्णन करयो है परंतु श्रीमद्भगवती जगदंबा पराशक्ति जोपरब्रह्म की सत्तास्फुरणा जो हे वो इन च्यारदेवतानहूते सर्वदा अधिक विराजमान हे इन हेतूनत के अवलतो यह सब का सिद्धांत हे के जगत का प्रगट होना क्रम करके जो वरणन कीया है सो तो केवल उपासनार्थ कीया है नहितरु एकोऽहंबहु स्यां ये जो श्रुति है तिस मै कहा है में एक बोहत होउः सो ऐसा परमेश्वर पराशक्ति की इच्छा होते ही जगत्पन्न होता भया तो वही परांबा एक अनेक रूप होगई तो जोये शिवविष्णवादि तृणपर्यंत सब जगत पारमार्थ दृष्टितै तो परासक्ती ही है दूसरा नहीं है परंतु भेद दृष्टि वैष्णवलो क या आधुनिक पूर्व मैमासिकादिलोक जो भगवती सै विष्ण्वादिकांकुं प्रथक मानते है और अधिक मांनते है सो शास्त्रसंमतन हि है इस वास्ते उनका कहताहूं कै शक्ति सहित ये सब होते है तबतो आप आप का अधिकार करणै कुंसमर्थ होतेहै विगरशक्ति को इदेव वमनुष्य पशुपक्षी आदि कोई कार्य करणेकुं समर्थ नहीं होते है चैतन्यता का व्यंजक शक्ति ही है शक्नोक्तिविश्वनिर्माणादि कर्तु मिति शक्यते सर्वत्रव्यामोतीति वाशक्तिःसृष्टिस्थिति संहारशक्ति ही करती है ईश्वरका सगुन और निर्गुनरूप बतलानेवाली बोध करानेवाली शक्ति ही है और सर्वत्र वह व्यापक है कोई वस्तु उस विगर नही है परमेश्वर परशक्ति तो एक ही है. नाम. मात्र भिन्न हैं ये सब शास्त्रां में कह्या है और सब शास्त्र For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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