________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (73 ) विग्रहः // शुक्लवर्णोरक्तवर्णो गौरोद्विभुजधारकः // 20 // शिवदोन्तर्विहारीच द्वैताद्वैतप्रवर्तकः // करुणादृष्टिसंपात प्रपन्नजनतारकः॥ 21 // एकत्रिनवधानन्त रूपविश्वोपकारक: मतान्तरोत्तममतो विषामृतविधायकः // 22 // द्विनेत्रत्र्यम्ब कश्चैव त्रिनेत्रायुगनेत्रधृक् // अनन्तनयनोनन्ता भिख्याकमचरित्रकः // 23 // चतुर्भुजोऽनन्तबाहु नाशस्त्रास्त्रधारकः // स्वात्माभिन्नपराशक्ति समुपासनतत्परः // 24 // पराशक्तिरहोपास्ति क्रियाकलकारकः // परापादाब्जमधुलिट् च्छिष्यःपरपदाप्तिहत् // 25 // विश्वतापार्तिहत्स्वात्म वरहस्तातपत्रकः // पशुपाशहरःसंविदेशकालातिगोभवः // 26 // जितगुर्ज्ञानरूपात्मा हितकज्जगतांप्रियः // स्वीयमानसकञ्जालि तिसूक्ष्मविचारकः // 27 // अनाश्रयाश्रयः स्वस्थो गुणरत्नालयस्वधीः // शिशिरोष्णमहातेजःसमुद्रःसर्व दर्शकः // 28 // गुप्तप्रकटमार्गस्थो गुप्ताचारपरायणः // संसारव्यालसन्दष्ठ गारुत्मगुणरूपधृक् // 29 // स्वाधिप्रणतदेवद्रूस्तिमिरावृतभानुमान् // संसारतापसन्तप्तसुधासाराभि वर्षणः // 30 // अष्टोत्तरशतंश्रीमन्नाम्नां निजगुरोः सदा // पठन्नभीष्ठलभते भोगमोक्षात्मकंफलम् // 31 // पठतोनास्तिदारिद्रं न भीतिः कस्यचिद्भवेत् // प्रसादाच्छ्रीगुरोर्जीवो महानन्दमयोभवेत् // 32 // कविगुणपाठविहीना वाणीरच. ना हिमामकीस्वामिन् // यद्यपितेविषयातो दोषविहीनेवस तांमुदेभवतु // 63 // इतिश्री आनन्दानन्दनाथ पूज्यपाद For Private and Personal Use Only