________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (31) ॐ। स्मितमुखोज्ज्वला सूर्यशोभिनी कुवलयेक्षणा चंद्रशेखरा / कुसुमबाणिनी चेनुचापिनी कुचभरैर्नता स्थीयतां हृ. दि // 1 // सकलदृङ्मनोहारि ते वपुः निखिलवाङ्मनोऽतीतवैभवम् // सकलभुक्तिदं मुक्तिदं शिवे मममनः सदा तेन यु. ज्यताम् // 2 // शरणमीयुषां शर्मदं नृणां ध्वजसरोरुहाद्यङ्कितं तव / करुणयाहि मे दीनपालिके चरणपङ्कजं मस्तके कुरु // 3 // जननि तेकृपा किं न साधयेत् विषममीश्वरि प्रणतपालिके // सममिदंकरोत्यल्पबोधकं निखिलबोधिनं सर्वभूषणम् // 4 // जननिते जनोवीजमद्भुतं स्मरति वाग्भ. वं चन्द्रनिर्मलम् / वदनकञ्जतोवैखरी सुधा / मधुझरी समु. त्पद्यतेऽचिरात् // 5 // जननिपुण्यकृद्दीजमध्यमंतवभजेज. नोबिम्बकान्तिमत् / भजति तं बधर्मुक्तिरीश्वरि / बुधमनोहरा ते प्रसादतः // 6 // तव शिवन्तिमं सायमग्निभं जपति योनरोबीजमम्बिके / सकलसिद्धिभाक् जायते स वै चरणचिन्तकः पूज्यतेजनैः // 7 // परमवैभवात् ते कृपाबलात्तव मनोर्जपात् शात्रवं मनः। जननि भेदकृत् हृत्यमूलतोनिजपदं जनोयाति सौरव्यतः // 8 जननि ते कृपापारगौरवैरमृतशीतलैः शोभनैरसैः॥ तव दृगंचलैः कामवर्षणैः स्नपयमां शिवे विश्वतापितम् // 6 // तव कृपारसैहर्षवर्षणैः सुकृतपाकजैस्तुष्टिदायकैः / शशिकलोज्ज्वलैः शीतलैः स्मितैरुचिकरैर्नृणां स्नापयाऽधुना // 10 // अकृतसौहृदं स्वाम्बिकासुतं ह्यपिपरंपरेत्यस्ति पातिया // भुवनपालिके विश्वसूर्जनं कुकृतिनं परंपाहि मामपि // 11 // मधुकरोयथा पद्ममीहते मम मन For Private and Personal Use Only