________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 18 ) न दर्शयसि // मामम्ब निरंतरं हि बुद्धिकुमारी तु सहचरी कुरुते // 20 // संविन्मात्रमनन्यं चैकमनंतं गृहीतगुणरूपम् // भूरिकपं पदयुगलं दृक्पथिकृत्वा मुदं कदा लप्स्ये // 21 // दृश्यस्तथापि साक्षी शनैश्चरोभानुरिवाभाति // आरक्तोऽपि हि शुक्रांघ्रिस्ते दृक्चरोभूयात् // 22 // रक्तविरक्तिदाता ह्यदयरूपो.पि युगलात्मा // चित्रं कुर्वश्चरणो दृङ्मा र्गे स्मात्सदैवसुखदाता // 23 // यच्चरणांबुजमधुना मनाविस्मृत्य देहगेहादीन् // लीनास्तस्मिन्नेवहि सन्तिशिवायाः पदं कदाद्रक्ष्ये // 24 // कुवलयबंधुमुखेनहि स्मितचंद्रिकया प्रतोषितं कुर्वत् // स्वान्तत्र्ति स्वान्तं रूपं शश्वत्कदांवि के द्रक्ष्ये // 25 // वरदानायायान्ती कणयंती नूपुरे पदयोः।। स्थान्तं शीतलयन्ती माध्च्या गिरया कदा द्रक्ष्ये / / 26 // सुनो गृहाण भक्तिं मद्विषयामिष्टरूपान्ते // इति मां पदयोः पतितं भाषन्तीं त्वां कदा द्रक्ष्ये // 27 // श्राव्यं यदेवभाव्यं भुक्तिं मुक्ति समीहद्भिः // दृश्यं मृग्यं गेयं ते पदयुगलं कदा म्ब संद्रक्ष्ये // 28 // हरिहरगणेशदुर्गाभास्करभक्ताः समारा ध्य // स्वेष्टत्वेन यदेवहि यान्ति पदं तत्कदा द्रक्ष्ये // 29 // दृक्पथि कदानु कुर्वे अम्बैकत्वेन पृथक्त्त्वेन // जगतोयत्वच्च रणं तिष्ठति मेनौमि सदा मनसि // 30 // यस्याश्चरणाप्त रोजदयपूजनतोनृणां हि हृदयेया // शीघ्रस्फुरति सतांतांद्रक्ष्ये. नुकदाशीवोक्तमार्गेण // 31 // यस्मिन्नुदयति भाति त्रि यामिनीपंचपर्वानो // रविसमरोचिषि चरणे तमहंमातः कदा द्रक्ष्य।।३॥त्वविरहितं हि मोक्षं स्वाराज्यं किमुत सामाज्यम् // For Private and Personal Use Only