________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 19 ) रविसमरोचिषि चरणे तमहं मातः कदा द्रक्ष्ये // 32 // वद्विरहितं हि मोक्षं स्वाराज्यं किमुत सामाज्यम् ॥नेछंति त्वद्भक्तास्तां त्वां मनसि हि कदा द्रक्ष्ये // 33 // यद्विहितं प्रतिकतुं प्रभवोनो वै विधात्राद्याः इत्यध्यवसाय्यम्ब त्व. त्पदयुगलं कदा द्रक्ष्ये // 34 // विषमे शत्रुत्रस्तैः स्मृता भयध्वंसकरी भवति // यस्याःपदयुगलं तत् दृङमार्गे मे कदा भवतु // 35 // चरणनखंदुज्योत्स्नासंहृतवत्यंतरीयतमः // शीतलयंती हृदयं यातामीशां कदा द्रक्ष्ये // 36 // भन्ने जलधौ पोते महाभये तारिणि त्राहि // वदति स्वीये लोके रक्षति या तां कदा हि संद्रक्ष्ये // 37 // जनयति रागं शंभोर्मनसि मुनीनां स्वरूपसंपदया // वैराग्यमाशुचित्रं तां त्वामम्बां कदा द्रक्ष्ये // 38 // शंभोरीक्षणकुवलयचंद्रसमानां शिवांकगृपदीपाम् // मानसमीनपयोनिधिरूपांतां त्वां कदा द्रक्ष्ये // 39 // असमशरागमसारं सिद्धांतं सकलनिगमानाम् / / भक्तमनोरथमेकं सुरुतफलं चेशितुः कदा द्रक्ष्ये // 40 // प्रसन्नशीतलसलिले सरसि सरवीभिश्चे खेलंती // पद्माकरे ज्वरघ्नी भवति ध्याता कदा हि तां द्रक्ष्ये // 41 // या भरणवसनमाल्यैः कुंकुमकस्तूरिकादिकरंकः // कृष्णावतंससुषमां भजति भवानी कदा द्रक्ष्ये 12 // शारदचंद्रसवर्णा हस्तैः स्फटिकाक्षमालिकां दधती // पुस्तकमभीतिदाने विद्यादां तां कदा द्रक्ष्ये // 43 // याखिलमाता गिरिजा ह्यनाद्यनंता वियोगसंयोगा शंभोः पाणिगृहीता चित्रचरित्रां कदा द्रक्ष्ये // 44 // याविष्करो यागे For Private and Personal Use Only