________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (17) // 6 // पदुपासनाविहीनादेवावृह्मादिकाःसर्वे // कार्य कर्जुमशक्तास्तत्पदयुगलं कदा द्रक्ष्ये // 7 // शिशवेक्षुधादिताय प्रसूस्तनं राति रुदिताय // तद्वत्ते पदयुगलं हम्ब कदा दर्शयिष्यसि मे // 8 // भी स्वधर्मनिरतां सुखयत्यागत्य दूरस्थाम् // धर्मज्ञोहि तथा मां दर्शनदानेन ते पदाम्बुजयोः // 9 // विरहातुराहि कांता निजेप्सितं प्राप्य मुदं भर्तारम् / मातः प्रयाति तहद् द्रष्ट्रवाशु पदं मुदं कदा लप्स्ये // 10 // सुतृड्व्यसनितबालो निजजननी स्तन्यपानेन ।सुखमनुभव तितथाऽहं तवपददी सुखीकदाम्बस्याम् // 11 // मृर्दानमलं कर्तुं चाधाद्यद्वेदपुरुषोऽपि // पदयुगलं ते मातर्मुकुट तयाहं कदाद्रशे // 12 // विरचति पाति च हरतिहि वि. धिर्हरियम्बकोम्बैतत् // विश्वं यत्सेवनया पदयुगलं तत्क दाहि ते द्रक्ष्ये // 13 // अज्ञानावत हृदये नखभंडलचंद्रमः खंडैः ॥ज्योत्स्नावद्भिर्मातः पदकमलं ते कदाद्रक्ष्ये // 14 // यदुपासकाभवाद्याःसंत्यखिलेशास्त्रिदेवताजगति / तत्पदयुग. संरूपयो विनिमिषदृष्ट्या कदाद्रक्ष्ये।१५।वांछाधिकप्रदानात् खर्वीरुतकल्परक्षं यत् // कान्त्योद्यन्तं भानु स्वकरं ते पदं कदाद्रक्ष्ये // 16 // नखकान्त्यंतर्नि तमोहरं चाभिषेचनिकम कामशतादधिकं में प्रेयोमातः पदं कदा द्रक्ष्ये // 17 // यदुपासना जनानां भाति समस्तं तवैव रूपं तत् चिन्मात्र स्वानन्यं तत्पदयुगलं कदाद्रक्ष्ये // 18 // मूकः कवयति रंकोभूपति वृद्धोह्यनंगइवाचरति // यत्पदयुगलरूपातस्तद्पं ते कदा द्रक्ष्ये // 19 // सर्वेश्वरसामाज्ञि जातिविभिन्नं पर For Private and Personal Use Only