________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुकामकूटेन // पुष्पंतवनिर्माल्यं शिरसिशरण्यात्वमेवैका ॥२७॥कामकला तव रूपं स्वात्माभिन्न विभावयन्विहरे // नेवच नित्यं मातर्यथासुखंचरणशरणंमे // 22 // मातश्चे श्वरमूर्तरोविधिमुखा देवास्त्रयस्तेऽपिहि रुत्वाभारसमर्पणं स मभवन्सौभाग्यभाजोऽचिरात् // ज्ञात्वेत्थमनसाबलेनववसा कायेनतेकर्मणा दोस्तंभषुचतुष्टयेषु सततं मद्गेहभारोर्पितः // 23 // इति क्षमापनस्तोत्रं सदापठतियोनरः // स्वीयानु भावनपरा प्रसन्नास्यात्कृपानिधिः / / 21 // इतिश्रीअपराध समापनस्ते.त्रं संपूर्णम् // श्रीमतीसकलमनोरथातिशयचरणदर्शनमनोरथप्रपूरि णीविजियतेतरम् // द्रक्ष्येकदानुमातत्सिल्येनैव सम्मुखेतिष्टन् // इष्टांविदद्र क्ति तंचरणहिसर्वसामान्ते // 1 // तवपदयुगनी संमुखमायां तीमम्बकथयन्तीम् // नूपुरनादमिषेणहि कामाक्ष्यभयंकद द्र क्ष्ये // 2 // वाणीमानसदूरां पददीभक्तकामनापूराम् ॥इ स्याद्यागमगीतां नेदिष्टांमातरपिकदाद्रक्ष्ये // 3 // युगलंतेपद कमलं समलं मामम्बमलंविनाकुर्वत्॥प्रभयास्पया वितिमिरं रुपांबुनोधारया कदा द्रक्ष्ये // 4 // केवलरुपावशेनहि न तुमे कृत्येन कामाक्षि // मधुरं रणयन्नपुरमम्ब पदंते कदा द्रक्ष्ये // 5 // येन विना न भवन्ति हि साकं ब्रह्माविभिलोकाः // तत्पदयुगलं मातर्ब्रह्मादिविधानकत्कदा द्रक्ष्ये For Private and Personal Use Only