________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (124) अतिगुप्त दूसरी भी वर्णन करी है चतुर्विशति वर्णात्मिकातें भी अधिक महिमा इसकी वर्णन लक्षावधि ग्रंथ करिके करी है और इसका आचार पूजा यंत्र नित्य नौमित्तक काम्य विधान स्थूल सूक्ष्म पर त्रिविधध्यान उपासनादि अनेक प्रकार लिखी हैं पंचदशाक्षरी का सकृत जप करणेसै चतुर्विंशत्यक्षरां का च्यारवेर जप होजाता है ऐसी महिमा लिखी है और आचार निष्टतो सद्गति कुं प्राप्तहोवै जिसमें केणाही क्या है परंतु या जो गायत्री है सो शिष्णोदर परायण जीवां कुं भी यथार्थ आराधन करी हुई लोगांकी दुर्वासना झटिति दूरकरके अनेक सिद्धियांकुं प्राप्तिकरके सद्योमुक्ति करती है शिवजू ने कह्या है हेपारवति कोटिमुख जिव्हा हमारे होवे तदपि इस महा विद्याकी महिमा हम से कही नहीं जाती है सो पंचमुख पंच जिव्हा से तो कैसै कही जावे इत्यादि अनेक तरां से अत्यंत महिमा कही है सो अनेक जन्मां के पुण्य उदय होने से ईश्वरानुगृहीत पुरुष होता है तब सद्गुरुके मुखारविंद तैया गायत्री प्राप्तहोती है वह साक्षात् शिवरूप सर्व सिद्धियां का भाजन परमानन्दि होजाता है तीसरी गायत्री अजपा नाम कहै सो इसका भी वहिर्यजनादि सब प्रकार हे परंतु मुख्य करके ध्यानरूप युग्म अक्षरांका मानसिक जपही प्रधान है इकवीस हजार छवसो प्राणा के गतागतसै स्वतै सर्वप्राणी जपते हैं परंतु श्रीगुरु मुखसे श्रवण करे विगर फलप्राप्त नहीं होती सो इसका माहात्म्य For Private and Personal Use Only