________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मांड उनके रोमकूप में हे सबमें व्यापक सबते न्यारी है वो एकही क्रीडार्थ दिव्य दम्पती भावकु भजती है श्रुती मैं कहा है एकाकीनरमते पतिश्चपत्नीच सो सब देवताओं से श्रेष्ट है देखो वा जो एक वस्तु है सोही पुरूप स्त्री रूप भई है अव सुनो के सब बांते अधिक ब्राह्मण है जिनके अरु दूसरों के जो सनातन धर्म पर दृष्टि देवोतो वेदनही सवोंपास्य शक्ति ही लिखा है गायत्री की उपासना त्रैवर्णका कुं अवश्य नित्य है और गायत्री मंत्र ब्रह्म प्रतिपादक है तथापि तेजोरूप कर प्रतिपादन कियाहे तातै इसमंत्र की देवता शक्ति है प्रातमध्याह्न सायाह्न में गायत्री का स्त्री रूप ध्यान है नाम भी स्त्रीलिंग है इस उपासना विगर बाह्मणादि पतित होजाते हैं ब्रह्मत्व नहीं रहता है अरु किसी लायक नहीं रहते फिर नरक प्राप्ति होति है यद्यपि वि. Sणवादि मंत्र दीक्षा शास्त्र में कही है परंतु वेदमें तो मुख्य सिवाय गायत्री के अन्य नहीं है गायत्री विना दूसरे मंत्रजा जयों तो कवी कल्याण नहीं होगा किंतु अनिष्टही होगा और दूसरे कोई भी मंत्र नहीं जपेंगे और केवल श्रीगायत्री का ही अराधन करेंगे तो झटिति पवि. त्रात्मा हो कर ऐहिक पारलोलिक मोक्ष पर्यन्त सुख कां प्रात होयही जायगें इसमें कुच्छ संदेह नहीं है सो गायत्री प्रसिद्धतर तो यही है के जो चतुर्विशत्पक्षरात्मिका है परंतु इनहीं तै रहस्यभूत वेद पुरुष नै और सदा शिव. जू नै पंचदशाक्षरी तथा षोडशाक्षरी ब्रह्म विद्या गायत्री For Private and Personal Use Only