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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 122 ) और जगत की बोहतसी बृद्विभई रति बहुत आनंदितभई इसीतरे असंख्यातवेर श्रीपरांबाका ने सहायकरी है और कीसी समय में इन का पराजय नहीं हुवा और हर समय देवतावांने जाकर दुः खनिवेदन किया है तो अन्यदेव वत् आपने श्रीमुख से आज्ञा नहीं करी है के कुछ काल देषो फिर मारेंगे समय आणेदो असी आज्ञा नहीं करी है उसी वक्त करुणा सिंधुने येही हुक्म किया के में तुमारादुःख निवर्तकरूंगा फेर कुछ भी विलंब नहीं किया और झटिति देवन का दुःख निवर्त करके छीना हुवा राज्याधिकार देकर अनायास होय जेसे यही आज्ञा फिर करी हे के हे देवताओं फिर तुमारा कोई काम बाकी रहाहे तो कहो वो में अभी करूं तुम हमारे भक्त हो तो इस सेभी जांणा जाता है के काल भगवती के आधीन हे भगवती काल के अन्य देववत् आधीन नहींहे एक जरासा भ्रूभंग करणे से हात जोड़ काल खडा होता है सोतो श्रीजीकी महिमा के आगे छोटि सी बात है परन्तु कालका काल महामृत्युंजय एसे जो शिवजी महाराज हे वो भी हात जोड़े ऊवे हमे से सा. मने षड़े रहते हैं सो कहाहे तत्रोंमे करे स्थितं ब्रह्मरसं पिवंती भ्रूभंगमात्रेण जगत् स्रजंतीयस्या पुरोबद्धकर: कपालीददातुसिद्धिं मम कालिकासा // 1 // और श्रीजी की इच्छानुकूल काल विश्व में विचरता है जरासा भ्रू भंग होणे से जगतका सृष्टि पालन संहार होजाता है और असंख्यात ब्रह्मा विष्णु रुद्रकी कारण भूमी है असंख्यात For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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