________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 121 ) कोण है ऐसी व्यवस्थाशक्ति सेनाकी देखकर श्रीसर्वेश्वरी ने श्रीमच्छीललिता जुकां सब वृतांत निवेदन किया तब श्रीकामेश्वर अपणा पुंरूपहे जिसके मुखारबिंद कां आप मंदहास संयुक्त होकर देखातो देखते ही श्रीगणेश्वर देवता प्रकट भयो श्रीजीकां नमस्कार करके युद्ध करणेकुं पधारा तो उनगणेशजू के सरीरतै हजारां और गणपति प्रकटभए ओर कितनीहि भंडासुर की सव फोज कुं मारहठाई और अपने दांनां सेती विघ्नयंत्र को चूरण करिछारमे मिलायदिया अरुविजय करके श्रीललिता भगवती का आय नमस्कारकिया श्रीजी बडे प्रसन्न भए और सर्व देवाग्र पूज्य होणे सै वरदानदिये फिर बतीस कुमार भंडा. सुरके युद्ध में आये तो उन कुं श्रीबालाजूने अनायास मा. रडाले फिर श्रीबालाजू का श्रीजीने वडामान कीया और मंत्रिणी ने नीराजना विधि श्रीबालाजी श्रीजीकापरमप्रियरूप है जिस की करी है फेर भंड के भाई विषंग औविश्रुक्रभंडके तुल्यवलथे उन कुं संग्राम भूमिममंणित्री डंडिनी ने बधकिये तदनंतर भंडासुर कुं स्वयं श्रीललिता जूने मारो है और उस का सून्यक पुरको भी भस्मकरके देवतावां. कुं पीछा स्वस्वाधिकारदिया और शिवजूनेकामकां भस्मकर दियाथा, तो देवताओं नेकांमकुं जिवाने के लिये जगदानं. के निमित्त श्रीजीकांदया प्राप्त होने के वास्ते रतीकालाय वाकी दुर्दशा श्रीजीकांदिषाई तब श्रीजीने अपनी कृपा दृ. ष्टि तै कामकांजीवाया ताते जगतकां बहुत आनंद भया For Private and Personal Use Only