________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 146 ) ललिता परैशीमुष चन्द्र चन्द्रिका के अग्र नभ चन्द्र चन्द्रि कासु लागत कनीयसी। भक्त मनवंछिततें देत है अधिक फल जाकी भुजलता कल्प लतातैगरीयसी // देत पदकंज जाके सेवक को मुक्तधन यात अनकंजलबिलाजत लघीय सी / सुधाकर कल्पतरु कंचन कमल हुतै मुखभुजपद सो भा राजत वरीयसी // 21 // सरदराकेशमुख चंचल सुमीन नैन सीरूसीनासा अधरबिंबफल पाक्योहै। धनुषसीभों है द्वैज चंदसोललाटबांहै कल्पकलतासी गुरुजनयह भाख्योहै। कंचन कलससमकुचपानकरिबैकां कंचन विधीश विष्णु मन अभिलाख्यौ है / जैसो है त्रिपुरारूप तैसौ को वरनसके एक मुखवारौसेससैस मुषथाक्योहै।॥२२॥ रमावाक वांनीसव्यदक्षन चमर करे ब्रह्मपंच मंचवर आसन बिराज है / उदित सहस्र भानु प्रभासी प्रभा है जाकी महाविश्व सागर की दी रघ जिहाज है // याकलि करालबीच राषे भक्तलाजताहि सेवत उमेशलीये त्रिदससमाज है / कंचनमसोचकर निश्चय विचारलेहु एसे जगदंबतोसे गरीवनिवाज है // ॥छप्यै // उदित कोटि आदित्य अरुन छवि अंग विराजत / श्री गजवदन गुणेश सकल श्रुति होहि सरासत / मधुझर जु. गल कपोल उपरि भ्रंगावलि झंक्रत मधुमानेमनुतोहि भक्त वछल जसगावत // कर कमलपास अंकुसवरद निजरद धारी सुखकरहु / शुंडाग्रवीज पूरक लसत नमततोहि सब दुख हरहु // 1 // For Private and Personal Use Only