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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 107 ) वापुः स्वर्ग देवारयोपिच // श्रीदेव्यामहिषःप्राप्तो हतःसायु ज्यमीशया // 13 // देवींदिव्यैस्तवैस्तुत्वा पूजयित्वायथा विधिः // वरांश्चपुनरेवापि प्रापुःसर्वाश्चदेवताः // 14 // स्व स्वाधिकार संप्राप्ता यज्ञभागानप्रपेदिरे // परांनिवृतिमापन्ना जग्मुःस्वस्वालयंसुराः // 15 // यजुर्वेदपरामूर्ति महालक्ष्मी शिवाम्बिका // धर्मसंस्थापनार्थाय चाविरासीद्युगेयुगे // 16 // विचित्रचित्ररूपायाः विचित्रचरितामृतम् // श्रवणेपठ नमाभुत् तृप्तिमत्वत्प्रसादतः // 17 // इतिश्रीमहालक्ष्म्यवतारंचरित्रंच // -000400--- ॐ निशुंभशंभनाशाय सर्वदेवस्तुसंस्तता॥ पार्वतीदेहसंभू. ता सामवेदस्वरूपिणी // 1 // महासरस्वतीरूपा जाताहि मवतस्तटे // कौशिकीनामसादेवी विख्याताचंडिकेतिच // 2 // कात्यायनीभद्रकाली धूमाक्षस्यविमर्दिनी // भद्राभगवती दुर्गा शुभहन्त्रीशिवाम्बिका // 3 // अतीवसुंदररूपं त्रैलोक्यत्राणकारणम् // द मनोहरंमाता जगतांगंविधायिनी // 4 // हताःशुंभनिशुभाद्याः सगरेसर्वदानवाः // अनयैवजगडाच्या क्रीडत्यास्वेछयारणे // 5 // एकानानाकतिर्देवी सर्वगारणंगा शिवा रणेहतानांदत्यानां दिव्यंपदमदात्परा // 6 // देवाह विर्भुजोजाता यत्प्रसादात्सुरेश्वर त्रैलोक्याधिपतिस्त्वंहि प्राप्तः सर्वेऽमराअपि // 7 // स्वस्वाधिकारतांप्राप्ता लेभिरेपरमां मुदम् // यथामत्यनुसारेण स्तुत्वातांपरदेवताम्॥८॥ तयाद तान्वरान्प्राप्य ययुःस्वस्वालयंसुराः // देव्याश्चित्रचरित्राणि For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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