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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अम्बादर्शनलालसाभरमहो तस्याः प्रसादादहं साफल्यं विदधे ह्यतश्च सदृशः कोऽनेन भूयान्नृणाम् // एतादृक् फलसिद्धये न हि यथा मोक्षस्य भक्तिं विना हेतुर्भक्तिविलब्धयेऽत्र जगति स्याद्भक्तसंग विना // 1 // नामश्रवणं जातं सफलं श्रवणं तदेव संजातम् // अधुना नयनं सफलं करोमि ते देवि दर्शनतः // 2 // चरणं कमलं मन्ये लक्ष्मीः संपद्यते हि यतः अथवेष्टदानदक्ष कल्पतरं चरणमम्बायाः // 3 // विधिलिखितं दुर्वर्ण भालस्थं मेऽयविलुम्पामि ॥अम्बा चरणसरोजद्वयमधुना सह परागण // 4 // यस्याः प्रसादात् खलु मानवानां स्वर्गापवर्गों सुलभौ भवेताम् // अतोहमम्बां प्रणिपत्य सादरं संप्रार्थयामीह कृपां तदीयाम् // 5 // इतिश्री श्लोकपञ्चकमेतदम्बिकायाः परमपावनगुर्जर प्रांतदेशस्थायाः समाप्तम् / / उँ'अज्ञानतामिश्रदिवाकराभं प्रपन्नचित्ताब्जरविप्रकाशम्॥ दैन्यगुमछेदन सत्कुठारं ह्याराध्य पादाज्वमहं नतोऽस्मि 1 // आनन्दकन्दमसुरामर वृन्दवन्धं श्रीवारणेन्द्रमुखमीप्सितदानदक्षम् // आमोद मोदक सुभाजन पाणिपद्मं विघ्नापहं वरदराजमहं नमामि // 2 // प्रकाशसूर्याविव संप्रयुक्तौ लीलासमाश्लेषित दिव्यरूपौ // परस्परावासित मानसौ तो वन्दे शिवौ वाङ्मनसोविशुद्धये // 3 // विश्वेषां रक्षणाय त्रिदशवरनुतः कालकूटं पपो यः ख्यातः कालान्तकोऽसौ पुनरपि हि सदा मीलिताक्षः स्मरारिः // नागास्तृप्ति For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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