________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 126 ) अथवा व्यतिक्रम सै ध्यानकर और मान पूर्वक निरन्तर दृढा भ्यास करै तो थोड़े ही काल में वो पुरुषमाया मेहत छूट कर शीघ्र ही मोक्ष भागी होता है इस का आराधनकुं रा. जयोग कहते हैं इस तें बहुतमहात्मा मार्कंडेय ध्रुव प्रह्लादादि सिद्धकुं प्राप्त भए हैं निर्विकल्पसमाधि इस से त्वरा होती है जेसी अन्य नहीं होती है तो ये भी शिवशक्त्यात्मक तद्वाची तदैवत्यमंत्र है इस तीन मंत्रों सिवाय कोई निरव. धिक महिमा साली मंत्र नहीं है सोये परशक्तिवाचक है। अरु जेसा मनकुं आह्लादशक्तिध्यान से होता है तादृश पुरुषसै नहीं होता त्यातै पुरुषकां चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धिका लिये पराशक्ति ही की उपासना अवश्यकर्तव्य है बृह्मादि तीनदेवमुख्य है तेतो निगुर्ण निराकार ज्योति स्वरूप श्रीपरा शक्तिके सगुणस्वरूप मूलप्रकृति है तिन का एक एक गुण तें त्रिदेवता भए हैं // अरुबृह्मादि पंचदेवता भी शक्ति के बनाये हुवे है येपांच देवताश्रीभगवती के चरणों में अहनिश मंचरूप होकर रहते है सो कहा है रुद्रयामला दितंप्रमें ओ ब्रहमांड पुराणमे // ब्रह्माविष्णश्चरुद्रश्च ईश्वरश्च सदाशिव // एते पंचमहा प्रेता देव्याः पादतले स्थिताः॥१॥ ब्रह्मा विष्णु रुद्र ईश्वर तो पंचवरण रूप है और सदाशिवफलक रूप हे तो इस से भी सर्व श्रेष्टत्वपराशक्ति कही हुआ इसवास्ते राजकुं छोड राजकिंकर की उपासनाकरणा मुर्खाका काम है फेर श्रेष्टता इस रूप से है के भगवती सै तो ये तीनदेवताकी उत्पत्ति है सो मार्कंडेय में ब्रह्माने आप. ही कहा है विष्णुः शरीरग्रहण मित्यादि हेतुः समस्त जग. For Private and Personal Use Only