________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (133 ) की उपासना करी है और उनकी उपासना के फलसे जगत् कर्ता पालयिता संहादि अधिकारवान् सबभए है सौ मानसो ल्लासादि अनेकतंत्र पुराणादिकां मे कहा है // विष्णुःशिवः सुरज्येष्टो मनुश्चंद्रोधनाधिपः // लोपामुद्रातथागस्त्यः स्कंदः कुस्तुमसायकः // 1 // सुराधीशो रौहिणेयो दत्तात्रेयो महा मुनिः // दुर्वासाइति विख्याता ऐते मुख्याउपासकाः // तो ये तो सब श्रीजीके उपासक है ओ श्रीजीइनके उपास्य है तो सबका उपास्य होवे जिसकी उपासना करणी मुनासब है। और पराशक्तिके आज्ञा सै विष्णवादिक अवतार धर्म की रक्षाके निमित्त लेवे है वहां भी इनकी स हायता विगर केवल विष्णादिकां से कुछ नहीं होसक्ता है सो इंद्रकृत महालक्ष्मी स्तोत्र मे और दूसरे बहुत पुरा नन में लिखा है इंद्र वाक्यं / राघवत्वे भवेत्सीता रुक्मिणी कृष्णजन्मानि अन्येषुचावतारेषु विष्णोरेषासहायिनी // 1 // सो विष्ण्वादि अवतारन के भगवत्यवतार सापेक्ष्य हे जेसै भगवती अवतार मै किसी देवता के अवतार की अपेक्षा नहीं है स्वतंत्र कार्य कारण में समर्थ है और जेसै विष्णु के अवतारांने धर्म मे चलते राजावांकुं वा अन्यांकुं देवता आं के पक्षपात से धर्म से च्याविता किये है तादृश परा शक्तिने किसीकुं धर्म भ्रष्ट नहीं किये है // अरु विष्णु ने जहां तहां कई जगे अपणे भक्तका अपहास्य करवाया है नारद कुं मुंहमागा वांछित देकै वानर कर दिया तो ये बोहतही अनु चित किया है और भक्तवी उन के असेई है के मा For Private and Personal Use Only