________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (76) लस्वरूपज्ञः // कविरिति वदतां ज्ञानं कविताशक्तिःसमुद्भव. ति // 15 // त्रिनेत्र इति संपठनात् ज्ञानमयं दृश्यते दृश्यम् बहुनेत्राऽभिख्यातोभवति करामलकवविश्वम् // 16 // पिङ्गललोचननाम्नः शत्रूणां नाशकोभवति // शूलपाणि रितिपाठाच्छलकरोभवति शत्रूणाम् // 17 // बटुकस्यखड्ग पाणिः पठनान्नाम्रोहि वैरिणां भवति // नाशकरोहि सुभक्तः कालानलइव समस्तजन्तनाम् // 18 // कंकालीति च पठनाट्यप्रदोवैरिवर्गस्य // धूम्रविलोचननाम्ना दृष्टिहरोहि वैरिणां भवति // 19 // यहास्योच्चारणतः पश्यतिनान्यजगद्र तः // श्रीमद्वैरवरूपात्दृश्यं सर्वहि भैरवोभाति // 20 // वदत्यभीरो महि नरोभवत्येव भयहीनः // मायां वशेहि कुरुषेत्वंभजहेभक्तभैरवीनाथम् // 21 // भूतप इति संभजनाद्भूतानां हि रक्षकोभवति // योगैश्वर्य वान्छसि भज हे भक्त योगिनीपतिमीशम् // 22 // धनदाभिख्यापाठानदधनीशोभवत्येव // धनहारीतिचपठनाद्धनहारी भवति शत्रुवर्ग स्य // २३॥धनवानिति संपठनान्महाधनो भवति लोकेशः। पठतां प्रतिभानुमांश्च सूर्य इवापरस्तेजस्वी // 24 // नाग हार इति पठतां नागेभ्योनैव भवति भयम् // नागपाश इति पठतां पराङ्मुखाः शत्रवस्तेषाम् // 25 // व्योमकेश इति भजतां महत्पदोलाघवंयाति // कपाल द्वैभजतां कापालिक तत्वमाप्नोति // 26 // कालाभिख्यां भजतां सर्वेकालाःसुखा वहास्तेषाम् / / कपालमाली भजतामिति तत्वाप्तिः प्रजायते न्हाणाम् // 27 // कमनीयस्य स्मरणात् प्रियःसदाभवति For Private and Personal Use Only