________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 78 ) लोक्याः परमविधिकरो भैरवःशङ्करोऽस्तु // 1 // भैरव भैर. वभैरव भजतां न्हणांभयं कुत्र॥ सूर्यस्योदयसमये लेशस्तमसो नविद्यते जगति // 5 // आपद्विलंयातिहि आपत्संसार नामतः सद्यः // शङ्करइतिसंपठनात्सर्वसुखं समुपजायतेशीघ्रम् // 3 // भैरवइतिसंभजनाद्भवविघ्नं दूरतोयाति // सर्वत्रसर्वदावैसिद्धिः कार्यस्य नृणांभवति // 4 // भूतनाथ इलिभजनाद्भूतावशवर्तिनस्तेषाम् // भूतात्मापठमानवसर्वेभ्यश्चेछसीष्टत्वम् // 5 // भवतिजनानांवृद्धिःपठनाद्वैभूतभावनोनानः // क्षेत्रज्ञाभिख्यातोदेहं जानाति नात्मनोरूपम् 6 // क्षेत्रपाल इतिपठनाद्भवतिजनः सक्तिभागचिरात् // क्षेत्रदहति संपठनाल्लभेदिलां धान्यस्यायाम् // 7 // क्षत्रियइतिसंस्म रणाहुलबली भवति धर्मायः // विराडभिख्याभजनात् पश्यति परभैरवं सर्वम् // 8 // स्मशानवासी पठनात्तत्रस्थो रक्षकस्तत्र // मांसाशीति च पठनाइलवानारोग्यसंयुक्तः // खपरभोजीभ जनाद्भक्तोवैराग्यवान् भवति खरान्तकाख्यापा. ठात् दुस्पर्शभैरवोहरति // 10 // रक्तप इति शुभपाठाद्भवति जनोभावभावच धीराणाम् // पानप इतीरणाद्वैचित्तैकाग्यूं सुखंलभते // 11 // उद्गीर्णात्सिद्ध इति सिद्धावस्थां नरो याति // सिद्धिदइतिसंस्मरणात्कामानां सिद्धयः सर्वाः // सिद्धिसुसेवितनाम्नः पाठादणिमादिकास्तस्य // कंकालःइति पठनात्सर्वतपस्या फलंभुङ्क्ते // 93 // भजति सुभक्तोऽभिख्यांश्रीबटुकस्य कालशमन इति // मृत्योर्मृत्युर्भवति हि भैरवदेवस्य सुप्रीत्या // 14 // कलाकाष्टातनुरिति पाठात्का For Private and Personal Use Only