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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (14) शोभनाख्यो सुशीलः // 13 // धर्माचारो गुणगणतरुःसिंध सारैः सुपूज्यः साधुश्लाघ्यो विनयसहित श्चारुचामीकरश्री योवैसश्वत् सुकृतिसहितःसर्वविद्याभिरामो मायाहीनोविनय सहितः राजते शोभनाख्यः // 14 // पन्डित वर्य श्रीरामकृत श्लोकाः // केरम्याः कथकेषुकेनबलिना चामारि वृत्रोवली केवासं सरधौव्रजन्ति जनितो रूपंकथंस्याञ्चिणि योषित्का नृपते मनोरथवहाकंस्तौतिलोकः सदा मत्प्रष्णोत्तर मध्यमाक्षरपदं श्रीस्वर्णसिंह ह्यवेत् // 1 // नाथ गुरुप्रभवोऽपि गिरजादत्त सहाय विवर्द्धयशा हरिरिव स्वर्णमृगेन्द्रःस्वर्गेभूमौपरंजयति // 2 // मानजमानं मातुमाताऽपि मानजानेशा कथमेते प्रभवः स्युर्मातुंतेऽमानजामनुजाः // 3 // श्रुत्वौदार्यमनुत्तमं धनपतिःखिन्नस्त्वदीयंहियादिकान्ता भिरपारकीर्ति गुणजांशा ढींदधद्भिर्मुदालंकां हेममयों विहाय गुणवान् प्रायोवदर्याश्रम प्रेच्छञ्श्रीदयित प्रसादममलं नाथायितं चोह्यति // 4 // एकादशरुद्राणा मेकागौरीत्यनौचितिं मत्वां मानज किलतव यशसाह्यपिगौरीकृताहरितः // 5 // पन्डित ठाकुरप्रसाद कृत श्लोकाः // कांन्तारस्ययथाग्निरोषभयत स्त्राणार्थिनोवाग्मिनो नास्त्य न्यो जलदंसुशोभनमृते शान्तिविधातुं क्षमः विद्वदैन्यकृशा For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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