________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 137 ) परांबा के बनाये हुवे है इसी वास्तै तुम जो भोग अरु मोन दोनों चाहो तो परांबा के पादारबिन्द की उपासना करो शास्त्र में कहा है // यत्रास्ति भोगो नाहे तत्रमोक्षे यत्राप्ति मोक्षोन हि तत्रभोगः // श्री सुंदरी पादयुगार्चका नांभुक्तिश्चमुक्तिश्च करस्थितैव // दूसरों की पूजन उपासना ते श्रीपराम्बाका चरणारबिन्द के पूजनके फलकी बाहुल्यता इसश्लोक करके भी कही है और देवीपुराण में कहा है विष्णु पूजासहस्राणि शिवपूजाशतानिच // चंडिका चर्णाचीयाः कलांनाहीत षोडशीम् // 1 // तैसे ये भी कहाहे के जैसे सर्वेपदा हस्तियदे निमग्नाः सब परहाथि के पावमें समावेस होजाते हैं जैसे मूल के सेवन से सब डाल पेड पत्ते फल सेचन होजाता हैं तेसै ही श्रीमत्पराम्बाचरणार्चा न करणेकरी इनतीनां ही देवतान की पूजन होजाती है इनकी पूजा करणे का कुछ प्रयोजन नहीं है सो कहा है श्रीमच्छंकराचार्य चरणांने श्लोकः सौंदर्यलहर्या त्रयाणां देवानां त्रिगुण जनितानां तबाशवेः भवेत्यूजापूजातव चरण याविरचिता // तथाहित्वत्पादोद्वहन मणिपीठस्यनिकटे स्थितायेते शस्वरमुकलितकरोत्तंसमुकटाः // हे शिवे तव चरणयोर्याविरचिता पूजातव त्रिगुणजनितानां त्रयाणां ब्रह्म विष्णु रुद्राणां देवानां पूजाभवत् एते पूर्वोक्ता देवाः मुक. लितकोत्तंसमुकटा त्वत्यादोद्वहनमणिपीठस्य निकटतथा हि स्थिता आसन्त इत्यर्थःअर्थ यह है कि हे कल्याणरूपिणि आपके चरणों की करी हुई पूजा आपके रजोगुण तमोगुण For Private and Personal Use Only