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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 138 ) सतोगुणों से उत्पन्न भए हुए जो ब्रह्मा रुद्र विष्णु है तिनकी पूजा होजाती है तेसै की आपके चरणाकुं धारण करने वाला मणिपीठ है तिसके निकट ही आपके चरणारबिन्द का नमस्कार करणनिमित्त सर्वकालमस्तकके उपरिहाथ जो ड़े हुए येदेवस्थितहोते है इसकारणकरि आपकेचरणारविंद वि पै सद्भक्तां के अर्पन किये हुवे वा करतीवख्त उहां के भी मस्तकपर गंधाक्ष पुष्पबिल्वपत्रादिक के गिरने से उना की भी पूजा होजातीहै और नहीं भी गिरे जदभी केवल श्रीम ती के चरणों को पूजन करणे सै उन की हो जाती अर्थात्त्र. ह्मा की पूजाप्रथक करणे का कुछ प्रयोजन नही श्रीमती का पूजा करणामनुष्य को अवश्यक है इसी तरे नाम महा त्म्य भी सवतै श्री पराम्बा ही का अधिक है सो ब्रह्मांड. पुराण मै श्रीहयग्रीवजनै परम भक्त श्रीअगस्त्यमुनि प्रते कहा है ते श्लोकाः लौकिका द्वचनान्मुख्यं विष्णुनामानु कीर्तनम् // विष्णु नाम सहस्त्राच्च शिवनामैकमुत्तमम् // शिव नामसहस्त्राच्च शक्तिनामैकमुत्तममिति // इत्यादिक श्रीजी कामहिमा हममूर्खबुद्धिक्याकरस के साक्षात् वेदोर ब्रह्मा दिक भी नहीं कर सकते है इसवास्तै भोगमोक्ष का भी जो होवे उस के श्रीमत्परापादाब्ज ही आराधन करणयोग्य है यह सर्व शास्त्र सिद्धांत है इति श्री श्रुतिस्मृतिपुराणतत्र सम्मत श्रीपराशक्ति महात्म्याऽमृतवारीध शीकर कोटि कोटि भाग लेखः // For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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