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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 136 ) अज्ञान वस होकर कही परस्पर पर्दा नहीं करीहे // रघु. राम जूकां और परशुरामजूका चरित्र बालमीक रामायण में कहा है / और अद्भुत रामायण में कथा आवे है के एक रोज श्रीविष्णु भगवान् ब्रह्माजूकी सभा में गए वहां ब्रह्मादिक सब देवता ऊठ खड़े भए जहां सनकादिक वो विष्णु ही के अवतार है सदा उनकी पांच वरसकी अवस्था रहती है वो चारों नहीं उठे तब विष्णु ने क्रोध करके स. नकादिकों को शाप दिया कि तुमारे ज्ञानका बड़ा गर्व है इसवास्ते तुम नहीं उठेसो जावो तुम गर्भवास भुक्तोगे सो उनांने स्वामिकार्तिक का अवतार लिया और सनकादिकों नै विष्णु को शाप दिया के तुमारे सर्व ज्ञाता पणेका और ऐश्वर्य का वोहत घमंड है सुं तुम भी दसरथ के पुत्रहो कर तुमारी स्त्री का हरण होगा जब तुम बोहत विलापात करोगे और तुमारी सर्वज्ञता नष्ट होजायगी तो इस कारण सै सीता जूका रामजू ने इतना दुखः कीया और आत्मा का स्मरण भूलगए जब ब्रह्माजूने बोध कराया तब उनों ने जांणा के हम विष्णु हैं तदनंतर फिर वसिष्ठजने ज्ञान दीया सो योगवासिष्ठ ग्रंथ प्रसिद्ध है // अरु ये कहीं नहीं लिखा है के मुख्य श्रीजी के अवतारों ने परस्पर ईर्षा करके युद्ध अग्यानवस होकर किया है किंवा शापदीया है और विष्णु के मुख्यदशावतारांमें रघुरामजसा परशुराम अज्ञानवस होकर युद्ध करने का प्रारम्भ किया है | तो इस सै साक्षात् ईश्वरत्व इनमें नहीं पाया जाता है ये सब For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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