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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 135 ) जरा भी नहीं कियो क्योंकि // भगुकी स्त्री मारडारी देवता वांके पक्ष निमित्त सो स्त्री तो और भी अवध्य है तो ब्राह्मणी तो होवे ही होवे सो ब्राह्मण तो कहां रहा ब्राह्मणी कुं मारडाली फेर वडां का वचन और वडां के पूज्यां सै वडांन का वरतणा इस रीति का ही होता है श्रीजगदम्बा ने ब्राह्मणा का आपका रूप कह्या है तो ब्रह्मणां की बोहत पालना ही करी है अपणे भक्त की नामुसी कही नहीं करी है और एसा कपट भक्तों के साथ कही नहीं किया और भक्ताने भी कही एसा अपराध नहीं किया के जैसा नादर ने कीया श्री मुखसै आज्ञा करके फेर जरा कभी असत्य नहीं किया और ब्राह्मण का बध या इज्जत हतक कभी नहीं कीया है श्रीकृष्ण ने अनीति करी है विभचारादि रूप अधर्म कीया है और श्रीजी के अवतारां ने कही जरा भी अधर्माचरण नहीं किया है तो सब तरांसै श्रीजी का सवतै आधिक्य सर्वदा विराजमान है जयति जगदम्बा गरिमता // अरु ये कही नहीं लिखा है के श्रीजीके मुख्य अवतारां ने परस्पर स्पर्धाकर युद्ध अज्ञान वस होकर किया हैं किंवा शाप दीया है और विष्णु के दसावतारां में परशुराम है ताने अज्ञान वस होकर युद्ध करने को प्रारंभ रघुराम जू सां किया है और परशुरामजी नै अनुचित भी कह्या है फिर अधिक कला रघुरांमजी थे जिनांनै परशुरा. मजी की गति स्तंभित करदी फिर उनका परास्त कर अपनी प्रभुता प्रकट करी तो इसतरे पराके अवतारां ने For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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