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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुवि विभो // 6 // कान्त्या चन्द्र मसंधाम्ना सूर्य धैर्येणचार्ण वम् // जेतुंस्वर्णमृगेन्द्रत्वं तन्वा दिग्विजये स्थितः // 7 // व शी धीरो वीरो विशद हृदयाल्हाद जनको धनैः कीर्त्यायु तो मधुरमृदुवाक् पाठिचतुरः इति स्वर्गे भूमौ भवतु गुण कीर्ति स्तवसदा सुवर्णत्वां पायात् त्रिभुवनमहेशी प्रतिदिनं // 8 // नृत्यतुभूषायुक्ता तव कृतवाणीश्वरी साक्षात् सर्वत्र सर्वदावै स्वर्ण ज्ञानां स्थिरीकृता हृदि सा // 6 // भाति जगत्रयभूषालंकृतिरूपा तवैव मुखवाणी // इत्थं मया सुवर्ण ध्याताध्यातुश्च सुखदात्री // 10 // ललिता गुणयुक् प्रथिता तवमुखकतिता सभासदांसुखदा / अनिरुद्ध भारतीशा ह्यनिसंभूयात्सतांचसुखदात्री // 11 // सदावाणी भासातवमुखगता सातिसुलभा सदा लक्षमी लोंके तव कृत करांभोजकुहरे सुवर्ण स्वछन्द सुकृति हृदया ल्हाद शुभगा मदीयाशीर्वादा द्भवतु गुण कीर्तिस्तव सदा // 12 // क्षत्रिय रामदयाल कृत श्लोकाः // श्रीमत्सोवनसिंह तुभ्य मनघस्वस्त्यस्त्वसंख्यं नमः सकाव्या रचनक्रिया विरुचये लंकार विद्यावते // श्रीमत्पा णिनि शास्त्र विज्ञ सदसि प्राप्ता प्रतिष्टायमे श्रुत्यायुक्तवि तर्क कर्म रतये तत्कर्म करें सदा // 1 // श्रुता प्रशंसाभवता स्व शास्त्रके मदीय चेतोऽतिसुहर्षतांगतम् // अखंडकीचिर्नु पतेत्त्वदी यिका प्रशंसनीयापिमयाद्यहर्षतः // 2 // परंस्वियंता For Private and Personal Use Only
SR No.020537
Book TitleParambika Stotravali
Original Sutra AuthorN/A
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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