________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 126 ) तो इसकारण करके भी उपासना पराही की करणी मनुष्य कां उचित हे पेड में जल सीचणे सै डालादिकन में जल पाँचजाता है अरु विष्णवादिकों कुं शक्तिका रूपहि लिखा है कार्य कारण का अभेद मानके जैसे आत्मावैजायन्ते पुत्र इसी तरोंसे सब जगतनाम रूप क्रियाकालात्मक शक्ति रूपहिमाना है और रामकृष्णादिक अवतारां में अज्ञानता कई जगा जाहिर पाई जाती है और ईश्वर में अज्ञानता कबी नहीं संभव है तो ये ईश्वर की विभूति है साक्षात् परमेश्वर तो विष्णु ही नहीं है सतोगुणावछिन्न ईश्वरांश विष्णु है तिनहूकां अज्ञान कई जगह भयो है सो कई जगै तौ श्रीपराशक्ति नैस्वयमवनिवृत्त कस्यौ हे और कई काल में पराकी आज्ञासै दूसरांने कयोंहे श्रीपरा ने कल्पादिमे विणु को को है सो श्रीमद्भागवत में लिष्यो है अर्द्धश्लो. क रूप भागवत का उपदेश करके विष्णु को अज्ञान निवृत्त कह्यो हे भगवतीभागवतकों कितनेक पुराणोके मतसे तो अष्टादश पुराणन में गिनाया है और विष्णु भागवतकों उपपुरानन में गिनाया हे और कितनेक पुरानन के मतसे देवी भागवतकों उपपुराननमें रखा हे परंतु दोनुहि भागवत व्यासप्रणीत होने में किसी तरेका संदेह नहीं है श्रीमद्भगवती भागवतकी / टीका में स्यष्टपुरानन के वचन लिखै है सो किसीकुं संदेह होतो वो देखलेना अरु रुद्रयामलकी श्लोक बद्धपद्धती चारांनवरात्र की है जिसमें नवरात्र में देवीभागवत का पाठकरणे का वडा फल लिखा है और For Private and Personal Use Only