________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 128 ) की कारणं पराशक्ति है ये सब सास्त्र का उद्घोष है तो कारज कारण के आधीन रहता ही है विष्णुवादिसब देवता पराके परतंत्र हे सोश्रीभागवत मै कह्या है कि जो विष्णु स्वतंत्र हो तातो लक्ष्मी का भोगविलासवैकुंट का सुख छोड मच्छ कूर्मादितिर्यंचयोनिमे केसे अवतार लेते और अपनी स्त्री कारहण दुःख काहेकुं सहते और दुःख भी माहात्मा धर्म के लिये कीर्ति निमित्त सहते हैं / परन्तु स्त्री हरण करावणे मे क्या धर्म हुवा और इसमें कीर्ति भी क्या भई और कृष्णावतार में भील के हात से बांण लागणे के निमित्त देहत्याग का कारण विख्यात किया सो इस स क्या धर्म भया अथवा क्या कीर्ति भई और नृसिंहावतार ने भी प्रह्लाद की रक्षाकरी और दुष्टहरणकश्यपूकां पछाड़ाये तो ठीक किया पर फेर क्रोध वशमया हुआ जीतपाय के मदोद्धत होय सब जगतकुं पीड़ा देने लगे तब शिवजू नै शरभ पक्षिराज रूपधार नृसिंह कू चंचू में लेकर आकाश में उडगये अरु उनकां शांत किया तो इसकर्त्तव्य में भी क्या धर्म भया क्या कीर्ति भई नहीं तो कुच्छ धर्म भया नहीं कुच्छ कित्ति भई परंतु पराधीन होता है तो उसका सुख दुःखादिक और जस अपजस भी सब उनके स्वाधीन नहीं है पराशक्तिके आधीन है वो जेसा हुक्म करती है वही यह शिरपर धरते है तथाच श्रुतिः यद्भयाद्वाति वातो यंसूर्य स्तपतियद्भयादित्यादि सर्ब इनपराम्बा के आधीन है यह सर्वथा सर्वत्र स्वतंत्र अरु अव्याहतैश्वर्य है अन्यनही For Private and Personal Use Only