________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोई विष्णुभागवतकां बोपदेव कृत कहते है सो भी गलत है इसी का भी ब्रह्मयामल में प्रयोगां की विधी और सप्ताह पाठकी विधि अच्छीतरास लिखी है तात ये भी प्रामाणिक है हमकां अशास्त्रीय वार्ता पसंद नहीं है ता ते जैसा शास्त्र संमत हे वैसाहि सब हम लिखा है किसिकी निंदा स्तुती नहीं है अवल रामावतार मैं राज्याभिषेक का रामचन्द्र जूने खुसीमानी है तो भावीवनवास की जो खबर होती तो खुसी कदमानते // और सीताका हरण में प्राकृत मनुष्य जैसा रोदनादि चेष्टा स्वतंत्र ईश्वर होते काहै करते अरु ब्रह्माजीका काहेकां ईस तरे कहते के हेमहाराज में तो अपणी आतमांकुं दशरथ पुत्रमानताहुं जव ब्रह्माके केणेसै जांण्या के में विष्णु का अवतार सानात्विष्णुही इसीतरै जुद्ध में भागणाक्षत्रियनकुंवडाअध है तोश्रीकृष्ण जरासंदओ कालनमी का संग्राम में भागकर द्वारका को चले गए जब से रणछोडुजी ये नाम उनका पड़गया तो मतलब ये है के ये सब देवता है सो कोई स्वतंत्र नहीं है तब फल देना उनके आधीन कहां रहा तो स्वतंत्र होवे उसकू स्वामी करणा चाहिये सो फेर दूसरे की अपेक्षा नहीं रहे इसवास्ते भी सेव्यपर:पदाब्ज हीहे और श्रेष्ठ भी वही है और कदास कोई कहेगाके स्त्रीस्वरूप तुम मानते हो तो स्त्रीतो पुरुषके आधीन होती हे तो ये कहां स्वतंत्र होगी तो उत्तर ये है कि वास्तव तो एका संविदेव सञ्चित्सुख रूपाहै वो अखंड अद्वितीय सर्वदा स्वतंत्र पर ब्रह्मा विना भूतचिछक्ति // एकाकी नरमत पति. For Private and Personal Use Only