________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 131) अपत्नीच इत्यादिक जो श्रुतियां तिनमें कहा है के एक जोतिः स्वरूप रमणकी ईछा करी तब रमण एक से नहीं होता सो वो वस्तु जो पराशक्ति है ताने स्त्री पुंरूप धारलिया तो अवल तो ये दिव्यदंपति हैं सो समसत्वासमोजौ इत्यादि श्रुतिमै तुल्य प्राधनता है वो उन के आधीन है वो उनके आधीन है असा कभी नहीं के पुंरूप के हीज स्त्रीरूप आधीन होवे पुंरूप भी स्त्री रूपके सर्वथा आधीन है देखिये की घर सब की मालिक स्त्री है और पुरुष स्त्री के लिये अनेक दुःख उठाते हैं परदेस में भटकते हैं अनेक स्वांग करके द्रव्योपर्जन करके स्त्री को भूषित करते है और उन्ही का प्रियाचरण करते है वो मालिक की तर कहीं नहीं जाती है और हुक्म देतीहै और उस का जो त्याग करता है केवल दुःख भागी होता है सो श्री भर्तृहरिने भी कहा है स्त्रीमुद्राझषकेतनस्यजननी सर्वार्थसंपत्करी ये मूडाःप्रविहाय यान्ति कुधियोमिथ्याफलान्वेषिणः तेतेनैव निहत्य निर्दयतरं नग्नीकृतामुण्डिताः केचित्पंचशिखी कृताश्च जटिलाः कापालिकाश्चापरे // 1 // इत्यादि अरुमोक्ष निमित्त त्याग करणेका कहोगे तो इसवात से मोक्षनही होती मोक्ष ज्ञान से होती है ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः तो गृहस्थी को मोक्षक वाध कांहां है अनेक याज्ञवल्क्यादि ऋषि लोकजनकादिक राजास्त्री सहित ही रहकर मोच गऐ है परस्पर अनुकूलता से धर्म अर्थ काम मोक्ष पर्यंतका सुखदेती हे और फिर देखो के अभी विकटोरिया है सब For Private and Personal Use Only