________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 24 ) मानंदांबांकदाद्रक्ष्ये // 100 // अग्नावौष्णंपुरुष चेतनता स्वादुतासलिले // यास्तिज्योत्स्नाचंद्रे भवसारांतांकदाद्रक्ष्ये // 101 // विश्वातंकत्रस्ते यस्यानामामृतौषधंदत्वा // सद् गुरुभिषग्वरस्तां सुखयतिनितरांकदाद्रक्ष्ये // 102 // कामक. लोईगविन्दु वदनंलिपिगौतुवक्षोजौ // तस्यायस्याहा जधनायंगंकदाहितांद्रक्ष्ये // 103 // अंजनवतीहियातां रागवतीनिरजनीश्वेता // हंसीरुतनिजदासा नवगतचारांकदाद्रक्ष्ये // 104 // भवभयभंगव्यसनां हीरकदशनांप्रकाशमद्ध सनाम् // तारुण्येनोल्लसनां वाणीरसनांकदाद्रक्ष्ये // 105 // नेत्रेभूयान्मनसिच रूपयन्निर्गुणसगुणम् // चरणौशिवादिवंद्यौ शीर्षेमेतेसदास्याताम् / / 106 / / व्योमादिमनोभवादि विद्या रूपांशिवैकसंवद्याम् / / पूर्णपिरांपरेशी निजरूपयात्वांकदाद्रक्ष्ये // 107 // एकावर्णमयूखैस्संसाराभिन्नचक्रेस्वे // व्याप्यसदायातिष्ठति चक्रमयीतांकदाद्रक्ष्ये // 108 // यस्या भजनमहिम्ना वाणीकांतश्चकमलापः॥ रतियोपिज्ञानी भवतिकदातांसदाद्रक्ष्ये / / 109 // ऋग्यजुरादिकवेदा स्तेऽपि विदन्तिप्रसोनयत्तत्त्वम् // हरिहरविरंचयोपिहि तामलमंबां कदाद्रक्ष्ये // 110 // प्लवंसंसाराब्धेः स्वजनतरणायातिसु दृढम् महामोहघ्वांतव्ययविधिविभास्वविनिभम् // त्वदीया नांतापप्रशमनधुरीणशिवनुते कदाद्रक्ष्ये मातस्तवचरणपकेरुहयुगम् // 111 // यस्यांस्थापितमम्बत्वयिकामक्रोधतम्क रत्रस्तैः // मानसरत्नसमूहम्मुनिवरसंधैर्मयाऽपितत्रैव 113 // इतिश्री आर्याभिलाषाष्टोत्तरशतकं समाप्तम् // For Private and Personal Use Only